Gujarat Chief Minister addressed a Asia BRTS Conference, Ahmedabad

Published By : Admin | September 6, 2012 | 15:05 IST

क छोटे से कमरे में, एशिया के भिन्न-भिन्न देशों के नीति निर्धारक बैठकर के मल्टीमोड ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम पर सोच रहे हैं। आम तौर पर इस प्रकार के सेमीनार सिंगापोर में होते हैं, टोक्यो में होते हैं, कभी-कभी बीजिंग में होते हैं। इस प्रकार के विषयों का नेतृत्व कभी भी हिंदुस्तान को नसीब नहीं होता है। लेकिन ये गुजरात का सौभाग्य और अहमदाबाद का कमाल है कि बी.आर.टी.एस. की सफलता ने एशिया के अनेक देशों को यहाँ खींच लाने के लिए सफलता प्राप्त की है। ऐेसे मैं इस शहर को हृदय से बहुत=बहुत अभिनंदन करता हूँ, बधाई देता हूँ..!

ज विश्व के सभी देशों के सामने ट्रांसपोर्टेशन के विषय को लेकर एक बहुत बडी चिंता का हम अनुभव कर रहें हैं। एक तो बढ़ती हुई जनसंख्या, मल्टीमोड ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम्स, बढ़ती हुई वेहिकलों की संख्या, इंसान का स्पीड की ओर अधिक लगाव और दूसरी तरफ एनर्जी क्राइसिस। इन सभी सवालों के जवाब हमें एक साथ ढूंढ़ने हैं, ताकि लोगों को बस की सुविधाएं मिलें, ट्रांसपोर्टेशन की सुविधाएं मिलें, एनर्जी कन्ज़रवेशन में हम कुछ कान्ट्रीब्यूट करें, लोगों के समय की बचत करें, हमारी व्यवस्थाएं ऐसी हों जिसमें सामान्य मानवी को सुरक्षा का अहसास हो, इन सभी पहलुओं पर अगर हमने सोचने में देरी की, तो कितना बड़ा सकंट पैदा हो सकता है इसका हम अंदाजा लगा सकते हैं। आज किसी व्यक्ति को मुंबई जाना है, मुंबई में बसना है तो सबसे पहले उसके दिमाग में समस्या यह आती है कि दिनभर मैं आऊंगा कैसे-जाऊंगा कैसे..? वह पचास बार सोचता है, सबसे पहले समस्या ये आती है। आज हिंदुस्तान के कई शहर ऐसे हैं कि जहाँ डेस्टिनैशन पर पहुँचने का एवरेज टाइम 55 से 60 मिनट है। अभी हम गुजरात में भागयवान हैं, अहमदाबाद-सूरत जैसे शहरों में अभी भी हमारा रिचिंग टाइम एवरेज 20 मिनट का है। लेकिन फिर भी, चाहे ये 20 हो, 55 हो या कहीं पर 60 हो, ये अपने आप में इसको कैसे कम किया जाए और फिर भी सुविधा बढ़ाई जाए, यह एक बहुत बड़ी चैलेंज है, और इस चैलेंज को हम कैसे पूरा कर पाएंगे..!

दूसरी बात है कि इन सारे विषयों को अगर हम टुकड़ों में सोचेंगे, कि चलिए भाई, आज लोगों को जाने-आने में दिक्कत हो रही है, तो ट्रांसपोर्ट के लिए सोचो..! फिर कभी बैठेंगे तो सोचेंगे कि बच्चों को स्कूल जाने की व्यवस्था के लिए सोचो..! तीसरे दिन सोचेंगे, कि चलिए भाई, वहाँ कोई फैस्टिवल हो रहा है, तो वहाँ का ही कुछ सोचो..! अगर टुकड़ों में चीजों को सोचा जाएगा तो इन समस्याओं का कभी समाधान नहीं होगा। और इसलिए हमारे देश ने और विशेष कर के एशिया के कुछ देशों ने इस क्षेत्र में काम किया है, उनसे सीखते हुए हमें पूरे गवर्नेंस के मॉडल को विकसित करना पड़ेगा, अर्बन डेवलपमेंट का साइंटिफिक एप्रोच क्या हो, इस पर हमें बल देना होगा। हम सिर्फ हाउसिंग इन्डस्ट्री को एड्रेस करें, हाउसिंग प्राब्लम को एड्रेस करें और रोड इंफ्रास्ट्रक्चर को ना करें, हम रोड इंफ्रास्ट्रक्चर को करें लेकिन ट्रांसपोर्टेशन को ना करें, हम ट्रांसपोर्टेशन को करें लेकिन पावर सप्लाई को ना करें, हम पावर सप्लाई को करें लेकिन गैस ग्रिड को ना करें, हम गैस ग्रिड को करें लेकिन ब्रॉड-बैंड कनेक्टिविटी ना दें... अगर हम ऐसे टुकड़ों में करेंगे, तो मैं नहीं मानता हूँ कि हम सुविधाओं को पहुँचा सकते हैं। और इसलिए एक इन्टीग्रेटेड हॉलिस्टिक एप्रोच, और उसके लिए सबसे पहली आवश्यकता जो मैं अपने देश में महसूस करता हूँ, कि जिस प्रकार से आई.आई.एम. के अंदर भिन्न-भिन्न प्रकार के कोर्सेज चलते हैं, एम.बी.ए. के भिन्न-भिन्न प्रकार के कोर्सेज चलते हैं, ये समय की मांग है कि हमारे देश में जितना हो सके उतना जल्दी अर्बन मैनेजमेंट,अर्बन इनिशियेटिव्स को लेकर के युनिवर्सिटीज में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट पर विशेष ध्यान दिया जाए। एक्सपर्ट टैलेंट हमको तैयार करनी होगी, जो इन बढ़ते हुए, क्योंकि गुजरात एक ऐसा स्टेट है जहाँ हमारा आज 42% अर्बन पॉप्यूलेशन है और 50% पॉप्यूलेशन अर्बन एरिया पर डिपेन्डन्ट है, अगर यह मेरी स्थिति है तो मेरे लिए आवश्यक बन जाता है। आज इस प्रकार का सांइटिफिक नॉलेज रखने वाले ह्यूमन रिसोर्स भी उपलब्ध नहीं है। अगर कहीं कोई विदेश पढ़ करके आया है, तो ऐसे दो चार लोग मिल जाएंगे कि जिन्होंने इसी विषय पर मास्टरी की है। आवश्यकता यह है कि हमारे देश की गिवन सिचूऐशन के संदर्भ में, एशियन कंट्रीज़ की गिवन सिचूएशन के संदर्भ में, हम किस प्रकार का अर्बन मैनेजमेंट खड़ा कर सकते हैं..! और जब अर्बन मैनेजमेंट का पूरा सोचते हैं, तब जा कर के उसमें ट्रासंपोर्टेशन का मुद्दा आता है।

ब जैसे गुजरात जैसा प्रदेश है, बी.आर.टी.एस. में हम सफल हुए, और कभी-कभी मुझे लगता है कि हम बी.आर.टी.एस. में सिर्फ सफल होते तो दुनिया का ध्यान नहीं जाता..! हमारा दुर्भाग्य यह है कि हम कितना ही पसीना बहाएं, कितना ही अच्छा करें, लेकिन शुरू में किसी का उस पर ध्यान नहीं जाता है। जब दिल्ली में बी.आर.टी.एस. फेल हुआ, तब गुजरात पर ध्यान गया। अगर दिल्ली फेल ना गया होता तो हमारी सक्सेस की तरफ किसी की नजर नहीं जाती..! हमारे यहाँ ‘ज्योती ग्राम योजना’, चौबीस घंटे, थ्री फेज़, अनइन्ट्रप्टेड पावर गुजरात के अंदर पिछले पांच-छह साल से हम सप्लाई कर रहे हैं, सक्सेसफुली कर रहे हैं, लेकिन देश का कभी ध्यान नहीं गया। लेकिन अभी थोड़े दिन पहले जब पूरा हिंदुस्तान अंधेरे में फंस गया, 19 राज्य अंधेरे में फंस गएं, तब लोगों को गुजरात का उजाला दिखाई दिया और वॉशिंगटन पोस्ट तक सबको लिखना पड़ा कि एक गुजरात है जहाँ एनर्जी की दिशा में ये सेल्फ सफिशियंट है। तो ये दिल्ली में जब बी.आर.टी.एस. फेल गया, तब जा करके गुजरात के अहमदाबाद के बी.आर.टी.एस. प्रोजेक्ट की सफलता की तरफ दुनिया का ध्यान गया..! मित्रों, ये बी.आर.टी.एस. की बात हो, कोई भी बात हो, एक बात लिख कर रखिए, जब भी दिल्ली विफल जाएगा,गुजरात सक्सेस करके दिखाएगा। व्हेनएवर दिल्ली फेल्स,गुजरात सक्सीड्स..! और हम सफलता कि दिशा में, सफलता की ओर लोगों को ले जाने के पक्ष में हैं।

ब हम बी.आर.टी.एस. पर रुकने के मूड में नहीं हैं, और ट्रांसपोर्टेशन के सिस्ट्म्स की ओर हम आगे बढऩा चाहते हैं। अभी आप लोगों को जिस दिन मैंने कांकरिया और रिवर फ्रंट का लोकार्पण किया था, उस दिन हमने कहा था कि हिंदुस्तान में पहली बार हम एम्फि सर्विस को शुरू करने जा रहे हैं। साबरमती रिवर फ्रंट के अंदर जो कि नर्मदा का पानी बहा है, अब उसमें हम उस ट्रांस्पोर्टेशन को ला रहे हैं कि जिस में बस पानी में चलेगीऔर जहाँ पानी पूरा हो जाएगा, फिर वो जमीन पर दौडऩे लगेगी..! हमें नई-नई व्यवस्थाओं का उपयोग करना होगा।

ब गुजरात के पास 1600 किलोमीटर कोस्टलाइन है। लेकिन अभी तक ट्रांसपोर्टेशन के लिए भी इस 1600 किलोमीटर कोस्टलाइन का उपयोग होना चाहिए, इस पर ध्यान नहीं दिया गया। हम आने वाले दिनों में, और हम बीते हुए कल के गाने गा करके दिन गुजारने वाले लोग नहीं हैं, रोज नए सपने देखते हैं और सपनों को साकार करने के लिए जी-जान से जुटते रहते हैं..! 1600 किलोमीटर कोस्टलाइन, विद इन स्टेट, हमारा पूरा ट्रांसपोर्टेशन मोड क्यों ना बने..? सारा हमारा जो बर्डन आज है उसको हम कितना परसेंट रिड्यूस कर सकते हैं..! आज हमारे जो नेशनल हाइवेज़ हैं, आज अगर मुबंई से कोई लगेज आता है और मुझे मुंद्रा तक ले जाना है, या मुझे कच्छ मांडवी तक ले जाना है, अगर वो ही लगेज को मैं समुद्री तट से ले आता हूँ, तो मैं पूरे ट्रांसपोर्टेशन का कितना प्रेशर कम कर देता हूँ..! और सेफ और सस्ता भी कर देता हूँ, एनर्जी सेविंग का भी काम कर सकता हूँ। और इसलिए हम अभी 1600 किलोमीटर कोस्टलाइन पर अभी इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर रहे हैं।

मुझे याद है, मैं जब छोटा था, स्कूल में पढ़ता था, अखबार पढऩे की आदत थी, तो हर मुख्यमंत्री या मंत्री के मुंह से एक बात हम बचपन में पढ़ा करते थे, सुना करते थे कि घोघा-दहेज फेरी सर्विस..! मैं मुख्यमंत्री बना तो मैंने लोगों से सवाल पूछा कि भाई, मैं ये बचपन से सुनता-पढ़ता आया हूँ, इसका हुआ क्या..? मित्रों, अखबार में तो हम चीज देखते थे लेकिन कागज पर, फाइल में कहीं नजर नहीं आती थी..! और मैंने वो बीड़ा उठाया है और मैं उस घोघा-दहेज फेरी सर्विस को शुरू करने जा रहा हूँ। अभी इसका इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम चल रहा है, दोनो तरफ चल रहा है। अब ये एक नया ट्रांसपोर्टेशन का मोड होगा, सौ से अधिक व्हीकल उसके अंदर आ जाएंगे, एक हजार से अधिक पैसेंजर आ जाएंगे... कितना एनर्जी सेविंग होगा, कितना समय का बचाव होगा, और कितना एग्ज़िस्टिंग ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के प्रेशर को वो कम करेगा..! हम उस दिशा में जा रहे हैं।

मित्रों, मेरे गुजरात की लाइफ लाइन है नर्मदा,लेकिन सिर्फ पानी बहता रहे तो वो लाइफ लाइन रहेगी ऐसा मैं नहीं मानता..! मैंने कुछ लोगों को अभ्यास करने में लगाया है कि गुजरात के हार्ट में से निकलने वाली 500 किलोमीटर की कैनाल है, मेन कैनाल, क्या उसके अंदर हम ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्थाओं को विकसित कर सकते हैं..? लोगों को फन भी मिल जाएगा, प्रेशर भी कम होगा और कम से कम लगेज तो ले जा सकते हैं..! छोटे से, पानी से एक फुट ऊंचे ऐसा एक बने तो कहीं पर भी ब्रिज आता होगा, नाले के नीचे से निकलना होगा, तो भी वो 500 किलोमीटर लॉंग..., यानि जो काम करने के लिए अरबों-खरबों रूपये 500 किलोमीटर रोड बनाने के लिए लग जाएगा, वो आज वॉटर वे ट्रांसपोर्ट सिस्टम से हो सकता है क्या..? हम इसको कैसे आगे बढ़ाएं..!

मेट्रो ट्रेन..! अहमदाबाद में,सूरत में,बड़ौदा में, मेट्रो ट्रेन कि दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन अगर सूरत के मेट्रो ट्रेन का मॉडल एक होगा, बड़ौदा की मेट्रो ट्रेन का मॉडल एक होगा, अहमदाबाद का मेट्रो ट्रेन का एक मॉडल होगा, तो ये बिखरी हुई अवस्था हमें मंजूर नहीं है। इसलिए हिंदुस्तान में, गुजरात विल बी द फर्स्ट स्टेट, जो हम आने वाले दिनों में मल्टीमोडएफॉर्डेबल ट्रांसपोर्ट अथोरिटी का निर्माण करने वाले हैं। एक अम्ब्रेला के नीचे गुजरात के सभी शहरों में इंटरसिटी के लिए, इवन हमारे जो नए स्पेशल इनवेस्टमेंट रिजन बन रहे हैं वहाँ पर,ये मल्टीमोडएफॉर्डेबल, इस काम को करने के लिए एक सेपरैट ट्रांसपोर्ट अथोरिटी बनाएंगे और शॉर्टफॉर्म होगा उसका, ‘एम. ए. टी. ए. - माता’..! और माता शब्द आते ही सुविधाएं ही सुविधाएं मिलती हैं, जहाँ माता शब्द होता है..! तो ये ‘माता’ शब्द के साथ मल्टीमोड एफॉर्डेबल ट्रांसपोर्ट अथोरिटी का निर्माण गुजरात के अंदर किया जाएगा और जितने भी प्रकार के आवागमन के संसाधनों की व्यवस्थाएं हैं, आज एग्ज़िस्टिंग हैं, नई आने की संभावनाएं हैं, एक होलिस्टिक एप्रोच और एक दूसरे के साथ कॉन्ट्रडिक्टरी ना हो, एक-दूसरे के साथ नए कॉन्ट्रास्ट पैदा करें ऐसे ना हों, एक दूसरे के पूरक हों और व्यवस्था ऐसी कॉमन हो, ताकि काफी खर्च नीचे लाया जा सके। अगर सूरत का एक बोर्ड है, अहमदाबाद का दूसरा बोर्ड है, तो दोनों का सप्लाई करने वाली टीमें अलग बन जाएगी, खर्चा बढ़ जाएगा। लेकिन अगर मार्केट कॉमन पैदा किया जाए, तो मैन्युफैक्चरिंग भी कॉमन होगा, तो उसके कारण उसकी कॉस्ट नीचे लाने में भी बहुत सुविधा होगी, और उस दिशा में काम करने का हम प्रयास कर रहे हैं।

मित्रों, जो लोग गुजरात की विकास यात्रा को देखते हैं, मैं जानता हूँ कि स्वस्थता पूर्वक, बारीकियों से चीजों को एनालिसिस करने का स्वभाव समाज में कम होता जा रहा है। अध्ययन करके चीजों का मूल्यकांन करने की आदत कम होती जा रही है। ऐसे बहुत से अच्छे इनिशियेटिव होते हैं, जिस पर किसी का ध्यान जाता नहीं है। क्या कारण होगा कि बी.आर.टी.एस. का नाम हमने ‘जन मार्ग’ रखा हुआ है, क्या कारण है कि हजारों करोड़ रूपयों की गोल्डन वैल्यू की जमीन हमने इस प्रकार से इस काम के लिए लगा दी होगी..! वरना इसकी कीमत की जाए तो हजारों करोड़ रूपये की कीमत की जमीन है जिस पर आज बी.आर.टी.एस. दौड़ रही है, लेकिन स्टडी करके इतने अरबों-खरबों रूपया खपाना..! कुछ लोग कहते हैं कि इतने बढिय़ा... मेरी आलोचना क्या हुई है..? मेरी आलोचना ये हुई है कि इतने बढिय़ा बस स्टेशन की क्या जरूरत थी..? मुझे कभी-कभी ये गरीब सोच वाले लोग होते हैं, उन पर बड़ी दया आती है। सामान्य मानवी के लिए अगर अच्छी सुविधा होती है तो लोगों की आंख में चुभने लगती है, लेकिन अरबों-खरबों का एयरपोर्ट बन जाता है,तो लोगों के आंख में नहीं चुभता..! एयरपोर्ट अच्छा क्यों बना ऐसा कोई सवाल नहीं पूछता है, लेकिन बस स्टेशन अच्छा क्यों बना, हमें सवाल पूछा जा रहा है..? क्या सामान्य मानवी के लिए अच्छी सुविधा नहीं होनी चाहिए, हमें इसके लिए क्वेश्चन किया जाता है..? और ये कुछ लोगों की मानसिक दरिद्रता होती है। और मुझे एक कथा बराबर याद है, बहुत सालों पहले की घटना है और सत्य घटना है। मैं मेहसाणा के प्लेटफार्म पर खड़ा था और वहाँ पर भीख मांगने वाला एक इंसान, किसी ने ब्रेड दिया होगा, तो ब्रेड अपने हाथ के अंदर ऐसे डूबो-डूबो कर खा रहा था और बड़े चाव से खा रहा था। मेरी यूँ ही नजर गई, मैंने देखा कि उसके हाथ में तो कुछ है नहीं, तो ये ब्रेड जो है उसे ऐसे डूबो-डूबो कर कैसे खा रहा है..? तो मेरा मन कर गया और उस गरीब आदमी के पास जाकर मैंने पूछा। मैंने कहा भइया, तुम ब्रेड खा रहे हो, तेरे हाथ में तो कुछ है नहीं, ये ऐसे बराबर डूबो-डूबो कर क्यों खा रहे हो..? तो उसने मुझे जवाब दिया, उसने कहा साहब, ऐसा है कि अकेली ब्रेड टेस्टी नहीं लगती, तो मैं मन से सोचता हूँ कि मेरे हाथ में नमक है और नमक में डूबो के मैं उसे खा रहा हूँ..! मैंने कहा यार, कल्पना ही करनी है तो श्रीखंड की कर, नमक की क्यों कर रहा है..? लेकिन वो गरीब आदमी की कल्पना की दरिद्रता इतनी थी कि वो उससे बाहर नहीं जा सका था..! मित्रों, आप गुजरात का अध्ययन करेंगे तो देखेंगे कि जो गरीबों की भलाई के काम हैं उसको ऊचांई पर ले जाने की हमारी सोच है। हमने ‘ज्योतिग्राम योजना’ क्यों की..? सामान्य मानवी को 24 घंटे बिजली क्यों नहीं मिलनी चाहिए..! अमीर तो अपने घर में जनरेटर लगा सकता है, गरीब के घर में स्वीच ऑन करने से बिजली मिलनी चाहिए। उन गरीबों के प्रति लगाव का परिणाम है कि ‘ज्योतिग्राम योजना’ ने जन्म लिया..! ‘108’ क्यों आई..? किसी अमीर को अस्पताल जाना है तो उसके लिए पचास एम्बूलेंस घर के सामने खड़ी हो जाएंगी, हैल्थ केयर करने वाला एक पूरा कोन्वॉय उसके घर आ जाएगा। सामान्य आदमी बीमार हो तो कहाँ जाएगा और उस पीड़ा में से, उस दर्द में से ‘108’ सेवा का जन्म हुआ और आज गरीब से गरीब व्यक्ति एक रूपया खर्च किये बिना ‘108’ अपने घर पर बुला सकता है और उसको आगे ले जा सकता है। अभी परसों हमने एक कार्यक्रम किया, हिंदुस्तान में पहली बार ऐसा कार्यक्रम हमने दिया है। ‘खिलखिलाट’, ये ‘खिलखिलाट’ योजना..! अस्पताल तक तो ले जाती है ‘108’, लेकिन वो ठीक होने के बाद, बच्चा जन्म लेता है और बच्चे को लेकर वो घर जाता है और उसको अगर सही व्यवस्था नहीं मिली, और 48 अवर्स में बच्चा जब घर जा रहा है और उसको कोई इनफ़ेक्शन लग गया, तो हमें उस बच्चे की जान गंवा देनी पड़ती है। उस बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए, उस मां और उस नवजात शिशु को उसके घर तकछोडऩे के लिए मुफ्त में ट्रांसपोर्टेशन देने का काम, ये ‘खिलखिलाट’ योजना हमने दो दिन पूर्व समर्पित की।

मारी हर योजना के केन्द्र में गरीब हैबी.आर.टी.एस.,गरीब सामान्य मानवी को समय पर पहुँचाने के लिए और सम्मान पूर्वक बैठने के लिए हमने व्यवस्था की। हमने स्मार्ट कार्ड बनाया तो किसका पास बनाया? स्मार्ट कार्ड योजना से एक सामान्य मानवी के लिए टिकट की व्यवस्था की। हमने बिलो पॉवर्टी लाइन के लोगों को, जो सस्ता अनाज की दुकान से पी.डी.एस. सिस्टम का लाभ लेने के लिए दुकान पर जाते हैं, तो गुजरात इज़ द ओन्ली स्टेट, जिसने बार कोड सिस्टम बनाई है ताकि उसको किस तारिख को माल मिला वहाँ तक का पूरा रिकार्ड होगा और कोई दुकानदार उसको डिनाई नहीं कर सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था क्यों की..? हमारे दिलो-दिमाग के अंदर हर पल एक गरीब आदमी की सुख-सुविधा रहती है। जितनी भी योजनाएं हैं, उसका कोई अध्ययन करेगा तो उसको ध्यान आएगा। गुजरात एक ऐसा प्रदेश है, 2001 में जब मैंने कार्यभार संभाला था तब मेरे राज्य के अंदर मुश्किल से 32% माताएं ऐसी थीं,जिन्हें इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी का लाभ मिलता था, अस्पताल में उनकी डिलीवरी होती थी, ओन्ली 32%..! भाइयों-बहनों, गरीबों के लिए योजनाएं बनाईं, ‘चिरंजीवी स्कीम’ लाए, सरकार ने हिस्सा लिया, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप का मॉडल लाए, नई व्यवस्थाएं खड़ी कीं... और आज मैं गर्व से कहता हूँ कि मेरे राज्य के अंदर करीब 96% इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी होती हैं, गरीब माताओं की प्रसूती अस्पतालों में होने लगी हैं या डॉक्टरों की मदद से होने लगी हैं..! ये स्थिति हम लाए क्यों..? मुझे गरीब मां को बचाना है, गरीब बच्चों को बचाना है और इसलिए की है। जितनी भी योजनाओं का अध्ययन करोगे, वो बी.आर.टी.एस. का होगा तो भी, उस योजना के केन्द्र में सामान्य मानवी की सुविधा है, गरीब मानवी की सुविधा है। उस प्रेरणा से काम हो रहा है और तब जाकर के बी.आर.टी.एस. सफल होती है, तब जाकर के योजनाएं सफल होती हैं और उस योजनाओं को सफल करने की दिशा में प्रयास करते हैं।

आने वाले दिनों में हमारे यहाँ जापान के साथ मिल कर के एक डेडिकैटेड इंडस्ट्रियलकॉरिडोर खड़ा हो रहा है। वो भी ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के अगल-बगल में डेवलपमेंट का पूरा मॉडल है, वो भी होने वाला है। हम कैनाल नेटवर्क का उपयोग करना चाहते हैं, हम कोस्टल नेटवर्क का उपयोग करना चाहते हैं, हम इंटर डिस्ट्रीक्ट का, तीन सिटी का प्लान तैयार करने जा रहे हैं जिसको ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम की प्राथमिकता से जोडऩा चाहते हैं। यानि, इतने विषयों के इनिशियेटिव दिमाग में भरे पड़े हैं जिसको धरती पर उतारने के सपने लेकर के काम कर रहे हैं, उसमें ये जो एशिया की कान्फ्रेंस हो रही है, यह एशिया की कान्फ्रेंस हमें भी नई दिशा और दर्शन देंगे, नई शक्ति देंगे, नए विचार देंगे, और उसको लेकर के हम इस शहर के सामान्य मानवी की सुख सुविधाओं में और अधिक बढ़ोतरी कर पाएंगे।

मुझे आप सब के बीच आने का अवसर मिला, आप सब से बात करने का सौभाग्य मिला, मैं अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का बहुत आभारी हूँ और इस इनिशियेटिव के लिए उनका अभिनदंन करता हूँ..!

य जय गरवी गुजरात...!!

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!