आदरणीय सभापति जी, और सभी आदरणीय वरिष्ठ सदस्यों, सदन में मुझे पहली बार बोलने का अवसर मिला है। यहां सारे अनुभवी, वरिष्ठ महानुभाव हैं। आगे मुझे उन सबसे बहुत कुछ सीखना भी है, लेकिन आज प्रारंभ में मेरे अनुभव की कमी के कारण कोई अगर चूक रह जाए, आप सब मुझे क्षमा करेंगे। राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर सदन में करीब 42 आदरणीय सदस्यों ने अपने विचार रखे हैं। अकेले गुलाम नबी आजाद जी, फिर सतीश जी, देरेक ओब्रायन जी, श्रीमान डी पी त्रिपाठी जी, प्रो. रामगोपाल यादव जी, श्री सीताराम येचुरी जी, सभी वरिष्ठ महानुभावों ने अपने-अपने विचार रखे हैं। सभी दलों के नेताओं ने अपने-अपने विचार रखे हैं और बहुतायत इसका समर्थन हुआ है। कहीं पर कुछ रचनात्मक सुझाव भी आए हैं। कुछ एक में अपेक्षाएं भी व्यक्त की गई हैं, लेकिन ये चर्चा बहुत सार्थक रही है। किसी भी बैंच पर क्यों न बैठे हों, लेकिन स्वीकार करने योग्य भी सुझाव आए हैं, उन सुझावों का आने वाले दिनों में रचनात्मक तरीके से सही उपयोग करने का प्रयास हम करेंगे और इसके लिए मैं रचनात्मक सुझाव देने वाले सभी आदरणीय सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूं।
कुछ आदरणीय सदस्यों ने चिंता व्यक्त की है और आकांक्षा भी व्यक्त की है कि यह कैसे संभव होगा, कब करोगे, कैसे करोगे? ये बात सही है कि पिछले कई वर्षों से एक ऐसा निराशा का माहौल छाया हुआ है और हर किसी का मन ऐसा बन गया है कि अब कुछ नहीं हो सकता, अब सब बेकार हो गया है उसकी छाया अभी भी है और उसके कारण कैसे होगा, कब होगा, कौन करेगा यह सवाल उठना बहुत स्वाभाविक है, लेकिन कुछ ही दिनों में विश्वास हो जाएगा, ऐसे मित्रों को भी कि अब निराशा का माहौल छंट चुका है और एक नये आशा और विश्वास के साथ देश आगे बढने का संकल्प कर चुका है।
कई वर्षों के बाद देश ने एक ऐसा जनादेश दिया है जिसमें देश ने स्थिरता को प्राथमिकता दी है और एक स्टेबल गवर्मेंट के लिए वोट दिया है। भारत के मतदाताओं का ये निर्णय सामान्य निर्णय नहीं है। हम देशवासियों के आभारी हैं। उन्होंने भारत की संसदीय प्रणाली को इतनी उमंग और उत्साह के साथ देश ने अनुमोदन किया है। इसके साथ-साथ समय की मांग है कि हम सब हमारे अपने महान लोकतंत्र के प्रति गौरान्वित हो कर के, विश्व के सामने जरा सिर ऊंचा करके, हाथ मिलाकर बोलने की आदत बनाएं। हमारे मतदाताओं की संख्या अमेरिका और यूरोप, उनकी कुल जनसंख्या से भी ज्यादा हैं, यानी हमारा इतना विशाल देश हैं, इतना बड़ा लोकतंत्र हैं। पर चाहे, हमारे यहां अनपढ़ हो, गरीब हो, गांव में रहता हो, और उसके पास पहनने को कपड़े भी न हो, लेकिन उसकी रगों में जिस प्रकार से लोकतंत्र ने जगह बनाई, ये हमारे देश के लिए बड़े गौरव की बात है, लेकिन हम इसको उस रूप में अभी तक विश्व के सामने ला नहीं पाए हैं। ये हम सबका सामूहिक कर्तव्य है कि हम भारत की इस लोकतांत्रिक ताकत को विश्व के सामने उजागर करें और एक नये आत्मविश्वास का संचार करें, इस दिशा में हम आगे बढ़े।
राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में अनेक बिन्दुओं को स्पर्श किया है और सभी माननीय सदस्यों ने अपने-अपने तरीके से उनको व्यक्त करने का प्रयास किया है। लेकिन एक बात मैं जरूर कहना चाहता हूं कि विजय और पराजय दोनों में सीख देने की ताकत होती है और सीख पाने की आवश्यकता भी होती है, जो विजय से सीख नहीं लेता है, वो पराजय के बीज बोता है और जो पराजय से सीख नहीं लेता वो विनाश के बीज बोता है,‘जय और पराजय’ के तराजू से ऊपर उठ करके, हमने कुछ सीखा है।
मैं एक बार आचार्य विनोबा जी के चिंतन को पढ़ रहा था और उसमें उन्होंने युवा की व्याख्या की है और बड़ी सरल और अच्छी व्याख्या की। उन्होंने कहा युवा वो होता है, जो आने वाले कल की सोचता है, आने वाली कल की बोलता है, लेकिन जो बीती हुई बातों को गाता रहता है, वो युवा नहीं हो सकता। उसकी सोच युवा नहीं हो सकती। उसके लिए बीती हुई बातों को ही गुनगुनाते रहना, लोग चाहे स्वीकार करें, या न करे लोग अस्वीकार करें तो भी उसी अपने लहजे में रहना, ये हमने भी देखा है। कभी रेलवे में बस में कोई ऐसे बूढ़े सज्जन मिल जाते थे, तो उनको देर तक सुनना पड़ता है उनका भूत काल क्या था उनको वो सारी कथायें सुनानी होती हैं। ये विनोबा जी की युवा की बड़ी बढि़या डेफिनेशन है और मैं मानता हूं उसे अपने आने वाले दिनों की ओर सोचने के लिए प्रेरित करेगी।
भारत की एक ताकत उसका संघीय ढांचा है। बाबा साहेब अंबेडकर और उस समय के हमारे विद्धत पुरुषों ने हमें जो संविधान दिया है उसकी सबसे बड़ी एक ताकत है ये संघीय ढांचा है। हमें आत्म-चिंतन करने की आवश्यकता है कि क्या हमने दिल्ली में बैठ करके संघीय ढांचे को ताकत दी है या नहीं दी है, इसको और अधिक सामर्थ्यवान बनाया है या नहीं बनाया है और अगर भारत को आगे बढ़ाना है तो राज्यों को आगे बढ़ना पड़ेगा। अगर राष्ट्र को समृद्ध होना है, तो राज्यों को समृद्ध होना पड़ेगा और अगर राष्ट्र को सशक्त होना है तो राज्यों को सशक्त होना होगा और इसलिए जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में काम करता था, हम एक मंत्र हमेशा बोलते थे ‘भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास’। हम हमेशा ये शब्द प्रयोग करते थे। क्या राज्यों के अंदर ये माहौल हम पनपा पाए हैं?
मेरा ये सदभाग्य रहा है कि एक राज्य के मुखिया के रूप में पीड़ा क्या होती है, उसे बहुत मैंने झेला है, अनुभव किया है। मेरा ये भी सौभाग्य रहा है कि यदि दिल्ली में अनुकूल सरकार हो, तब राज्य का क्या हाल होता है और प्रतिकूल सरकार दिल्ली में हो तब राज्यों का क्या हाल होता है और इसीलिए मैं एक भुक्तभोगी व्यक्ति हूं। मैंने इन कठिनाईयों को झेला है कि राज्यों को कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं मैंने, इसको भली-भांति समझा है। राज्य कितनी ठोकरें खाता है, राज्यों की बात को किस प्रकार से नकारा जाता है, सिर्फ निजी स्वार्थ के खातिर राज्यों की विकास की योजनाओं को किस प्रकार से रोका जाता है। पर्यावरण के नाम पर राज्यों की विकास यात्रा को दबोचने के लिए किस प्रकार के षडयंत्र होते हैं, इन सारी बातों का मैं भुक्तभोगी हूं।
अब इसीलिए एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है, एक ऐसे व्यक्ति को देश की सेवा करने का सौभाग्य मिला है, जो राज्यों की पीड़ा को भली-भांति समझता है। आज मैं इस पीड़ी को जानते हुए इस सदन को विश्वास दिलाता हूं कि हम कार्य करेंगे। आदरणीय सभापति जी, राष्ट्रपति जी के भाषण में हमने इस बात को बल दिया है और हमने को-ऑपरेटिव फेडर्लिज्म की बात की है कि बड़े भाई, छोटे भाई वाला कारोबार नहीं चलेगा। हमें राज्यों के साथ समानता का व्यवहार करना होगा, हमें उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का दिशा बना लेनी है। हमें एक ऐसी कार्य संस्कृति विकसित करनी होगी, जिसमें राज्य को भी अनुभूति हो कि मैं भारत की भलाई के लिए काम कर रहा हूं और भारत की सरकार चलाने वाले लोगों के मन में भी यह रहना चाहिए कि हिन्दुस्तान का छोटा से छोटा राज्य भी क्यों न हो, उसके विकास के बिना हिन्दुस्तान का विकास होने वाला नहीं है। हमें इस मन की रचना के साथ देश को आगे चलाना है। आदरणीय सभापति जी, यह मैं बड़े विश्वास से कहता हूं कि बहुत सी बातें ऐसी हैं अगर हम राज्यों को विश्वास में लें तो हमारे कार्य की गति बहुत बढ़ सकती है। हमने ‘टीम इंडिया कांसेप्ट’ की बात आदरणीय राष्ट्रपति जी के भाषण में कही। भारत जैसे संघीय राज्य व्यवस्था वाले देश को चलना है तो प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्री इनको टीम इंडिया के रूप में काम करना चाहिए। प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट के मंत्री, ये टीम सफिशियंट नहीं है। प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री, यह टीम का एक स्वरूप हमें उभारना होगा और उस पर अगर हम बल देंगे, तो हम राज्यों की ताकत, राष्ट्र के विकास पर में जोड़ पाएंगे।
मैंने सुना, मैत्रीयन जी का भाषण हुआ। उन्होंने कहा कि उनके मुख्यमंत्री ने चालीस चिट्टियां लिखी थी लेकिन एक का जवाब नहीं आया था। ये स्थिति हमें बदलनी होगी। इसलिए इस अवस्था को लाने के लिए कोई मैकेनिज़्म विकसित हो, उस पर हम प्रयास करने के पक्ष में हैं। हम आगे बढ़ना चाहते हैं। हमारे देश में कुछ लोगों को ‘गुजरात मॉडल’ की बडी चिंता हो रही है। कुछ लोगों के मन में ये भी सवाल है कि ‘गुजरात मॉडल’ आखिर है क्या? तो उनकी इस मुसीबत का तो मैं अंदाज लगा सकता हूं। ‘गुजरात मॉडल’ को अगर सरल भाषा में समझना है तो वो ये है कि अगर उत्तर प्रदेश में मायावती जी की सरकार ने कोई अच्छा काम किया, उसको समझना, स्वीकार करना और हमारे यहां लागू करना, यह ‘गुजरात मॉडल’ है। केरल में लेफ्ट की सरकार थी लेकिन उनका एक कुटुम्बश्री प्रोग्राम था, हमने उससे सीखा। हमारे यहां अनुकूलता के अनुसार उसे लागू किया। सबसे बड़ी बात है कि आज एक राज्य दूसरे राज्य की जो चर्चा हो रही है, वो मॉडल की चर्चा है और मॉडल की चर्चा विकास के संदर्भ में हो रही है। ये हमारे लिए एक अच्छा माहौल तैयार कर रही है कि एक राज्य दूसरे राज्य के साथ विकास की स्पर्धा के साथ चर्चा कर रहा है मेरे कान ये सुनने के लिए हमेशा लालायित रहते हैं कि कभी बंगाल ये कहे कि हम गुजरात से आगे निकल गए। कभी तमिलनाडु कहे कि गुजरात और बंगाल दोनों से हम आगे निकल गए। कभी आंध्र कहे कि हम तेलंगाना से आगे निकल गए, तो तेलंगाना कहे कि हम आंध्र प्रदेश से आगे निकल गए। कभी बिहार कहे कि हमने गुजरात को पीछे छोड़ दिया, ये स्पर्धा का माहौल, विकास की स्पर्धा का माहौल, हमें देश में देखना है, बनाना है। उस दिशा में हम इस बात को लेकर के आए हैं कि हम हमें को-ऑपरेटिव फेडर्लिज्म को लेकरके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
हमारे देश में हर राज्य की अपनी शक्ति भी है हर राज्य की अपनी विशेषता भी। हमें उसे समझना होगा। गुजरात जैसा छोटा सा राज्य, लेकिन हर जिले में हमारा एक मॉडल काम नहीं करता है। एक ही प्रकार के कुर्तें सारी दुनिया को पहनाए नहीं जा सकते। वहां की विशेषता ये है कि रेगिस्तान वाला कच्छ का मॉडल हरे-भरे वलसाड में नहीं चल सकता है। उसी प्रकार से एक राज्य का मॉडल दूसरे राज्य पर थोपा नहीं जा सकता। उसी प्रकार से दिल्ली के विचार राज्यों पर नहीं थोपे जा सकते। उसकी Priority क्या है, उसकी कठिनाईयां क्या है। उसके अनुरूप संसाधनों का उपयोग करके, उन शक्तियों को बल देने से वो तेज़ गति से आगे बढ़ेंगी। इसलिए विकास में राज्यों और राष्ट्र की दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है। एक नए राजनीतिक चरित्र की दिशा में हम बढ़ना चाहते हैं। हम भारत माता के चित्र को देखेंगे हमें ध्यान में आता है कि भारत माता का पश्चिमी किनारा वहां तो कोई गतिविधि नज़र आती है, केरल हो, कर्नाटक हो, गोवा हो, महाराष्ट्र हो, गुजरात हो, राजस्थान हो, हरियाणा हो, दिल्ली हो, पंजाब हो, लेकिन हमारे देश का पूर्वी इलाका ओडिशा हो, बिहार हो, पश्चिम बंगाल हो, उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल हो, क्या हमारी भारत माता ऐसी हो कि जिसका एक हाथ तो मजबूत हो और दूसरा हाथ दुर्बल हो। ये भारत मां कैसे मजबूत बनेगी। इसलिए हमारे लिए ये प्राथमिकता है कि भारत का पूर्वी छोर जो विकास में पीछे रह गए, उसको कम से कम पश्चिम की बराबरी में लाने के लिए हमें अथाह प्रयास करना है।
विकास, जब हम कहते हैं ‘सबका साथ, सबका विकास’। विकास सर्व- समावेशी होना चाहिए, विकास सर्व-स्पर्शी होना चाहिए, विकास सर्व-देशिक होना चाहिए, विकास सर्वप्रिय होना चाहिए, विकास सर्वहितकारी होना चाहिए और इसलिए विकास को किसी एक कोने में देखने की आवश्यकता नहीं। जब हम उसको परिभाषित करें तब, एक समग्र कल्याण की परिभाषा को लेकर, आगे बढ़ने की कल्पना लेकर के हम चलने वाले हैं। इसलिए भारत का जो पूर्वी इलाका है उसकी हम चिंता करें। नार्थ-ईस्ट, हम आर्थिक मदद करें। नार्थ-ईस्ट को उसके नसीब पर छोड़ दें, कब तक चलेगा। क्या हम एक नए सिरे से नहीं सोच सकते।
आज हमारे देश में 20 हजार से ज्यादा कॉलेजिज हैं। हर कॉलेज के स्टूडेंट्स दस दिन के लिए टूर पर जाते हैं। यह उनका एक रेगुलर कार्यक्रम रहता है। क्या कभी हमने हमारे कॉलेजों को गाइड किया कि कम से कम हर कॉलेज साल में एक बार दस दिन के लिए नार्थ-ईस्ट का एक टूर जरूर करें। आप विचार कीजिए अगर देश के 30 हजार कॉलेज के 100 विद्यार्थी नार्थ-ईस्ट में एक हफ्ते रहने के लिए जाते हैं, उससे नॉर्थ-ईस्ट का टूरिज्म कितना बढ़ सकता है, इको टूरिज्म कितना बढ़ सकता है। इससे नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के सुख-दुख को हिन्दुस्तान के कोने-कोने का व्यक्ति जानेगा। नॉर्थ-ईस्ट के साथ का अपनापन कितना हो जाएगा। उसे भी लगेगा कि हिन्दुस्तान हर कोने को की भारत मां की जय बोलने वाले लोग हैं। उनको गले लगाने का एक रास्ता नहीं हो सकता। तरीके ढूढ़ने होते हैं किस प्रकार के नए तरीकों से हम देश को चला सकते हैं उसकी योजना बनानी हो तो हो। एक बार मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दरम्यान, नार्थ-ईस्ट के सभी मुख्यमंत्रियों को मैंने इस संबंध में चिट्ठी लिखी थी ।
जब प्रधानमंत्री जी मनमोहन सिंह जी थे तब एक बार उन्होंने एनडीसी बुलार्इ थी उस समय भी मैंने उनसे पब्लिकली यह कहा और आग्रह किया था कि नॉर्थ-ईस्ट के सभी स्टेटस से 200 वुमेन पुलिस आप गुजरात भेजिए 2 साल के लिए और हर 2 साल के बाद चेंज करते रहिए। इससे 15 सौ 2 हजार लोगों को वहां काम मिलेगा और जब वे वापिस जाएंगें तो यहां कई परिवारों से उनका नाता जुड़ जाएगा। इस प्रकार से इंटीग्रेशन का कितना बढि़या काम संभव हो सकेगा। ‘एक भारत’ जो हम कहते हैं न, यह ‘दो’ या ‘तीन’ भारत के संदर्भ में एक नहीं है।
भारत की एकता की बात है। आज जातिवाद के ज़हर ने देश को डूबो दिया है प्रांतवाद की भाषा ने देश को तबाह करके रखा है। समय की मांग है कि यह तोड़ने वाली भाषा को छोड़कर के एकता की भाषा को एकस्वर से बोलना चाहिए और इस लिए एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना लाए हैं। अगर किसी को एक भारत में से ‘दो’ दिखता है, तो यह उनकी मानसिक बीमारी का परिणाम है। हम तो एकता का मंत्र लेकर आए हैं।
हम भाषा से परे हो कर के जाति से परे हो करके, सम्प्रदाय से परे हो करके, एक राष्ट्र का सपना ले करके हम चलें। यह देश विविधता में एकता वाला देश है। हमारा देश एकरूपता वाला देश नहीं है और देश एकरूपता वाला बनना भी नहीं चाहिए। हम वो लोग नहीं है कि हर 20 किलो मीटर पर एक ही प्रकार का पीजा खाएं, हम वे लोग हैं नीचे से निकले तो इडली खाते निकले और ऊपर जाते-जाते परौठा हो जाता है। यह विविधता से भरा हुआ देश है। उसे एकरूपता से उसे नहीं देखा जा सकता है और इसलिए ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का सपना लेकर के हम देश की कल्याण की बात कर रहे हैं।
हमारे देश में संसाधनों के संबंध में हम नए तरीके से प्रेरित कैसे कर सकते हैं। राज्यों के अपने स्वभाव है अपनी विशेषताएं तकनीकी में। उन समस्याओं को सम्मिलित रूप से समस्याओं को समाधान करने का सामूहिक प्रयास करते हैं। जैसे हिमालय स्टेट्स हैं, हिमालय स्टेट को हम तराई के इलाको से प्रगति के मॉडल से फिट नहीं कर सकते हैं। हमारा अफसर जाएगा वह कहेगा कि 60 किमी की स्पीड से गाड़ी चलनी चाहिए, अब हिमालय में 60 किमी की स्पीड से कैसे चलेगी। वो कहेगा कि एक गाडी इतना किमी चलेगा तो इतना डीज़ल मिलेगा, वहां इतना डीज़ल से कहां चलने वाला। केवल इसलिए हमें एक ही प्रकार के सोल्यूशन से बाहर आना पड़ेगा, इसलिए राष्ट्रपति जी के भाषण में इस बात को हमने उजागर भी किया है कि हिमालय रेंज के जितने भी स्टेट्स हैं, उनको एक साथ बैठाकर करके उनकी समस्याओं को समझा जाए। उनके लिए एक न्यूनतम कॉमन व्यवस्था को विकसित कर सकते हैं, क्या इस दिशा में कुछ कर सकते हैं, क्या?
कोस्टों से समुद्री तटीय पर विकास आज विश्व व्यापार का युग है। कितनी तेजी से आज समुद्रीय तटों का विकास हुआ है। हमारा भारत का समुद्रीय तट भारत समृद्धि का प्रवेश द्वार बन सकता है। हमारा कोस्टल एरिया भारत के प्रोपर्टी का साधन बन सकता है। लेकिन आज सबसे ज्यादा उपेक्षित है। हमने ज्यादा से ज्यादा छोटे से मछुआरों का सोचा, हमारे पूरे कोस्टल गेट के development के लिए भी और इसीलिए राष्ट्रपति जी के भाषण में कोस्टल development के लिए एक अलग से विचार करने की व्यवस्था सोची गई है। हम चाहते हैं, कोस्टल राज्य एक साथ बैठे। कोस्टल development में क्या कॉमन विचार हो, उनकी क्या कठिनाईयां हैं एक दूसरे को co-ordinate कैसे करें। एक दूसरे की ताकत कैसे बनें और विकास की स्पर्धा मे अपने अनुभव को कैसे share करे। भारत का समुद्रीतट बहुत बड़ा है। हम एक ऐसे भौगोलिक location में है कि हम east और west को जोड़ने के लिए, एक बहुत बड़ी समुद्री ताकत बन सकते है लेकिन हमें उसमें जितना आगे बढ़ना चाहिए था, नहीं बढ़े। श्रीलंका का कोलंबो छोटा सा है लेकिन आज वह विश्व व्यापार में सामुद्रिक व्यापार का जिस प्रकार का क्षेत्र बना हुआ है। एक तरफ सिंगापुर बना हुआ है।एक तरफ पाकिस्तान के अंदर चीन अपने ports डाल रहा है, तब जा कर के भारत के समुद्र की ओर एक विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। क्या उसके लिए भारत के समुद्री विकास का माँडल उनके साथ बैठकर नहीं बनाया जा सकता।
हमारे यहां landlocked स्टेट्स हैं। उनमें भी विविधताएं भरी पड़ी हैं। उनकी विविधताओं को समझना होगा। हमारे यहां माओवाद से इफेक्टेड एरियाज़ हैं। कुछ माओवाद prone जोन भी हैं। कुछ माओवाद प्रोन जोन भी हैं। क्या उन्हीं को identify करके उनके साथ बैठकर उसी स्पेसिफिक समस्या के समाधान के लिए केन्द्र और राज्य मिलकर काम नहीं कर सकते? इसलिए हम आगे आने वाले दिनों में इन चीजों को आगे कैसे ले जाएं, उस आगे ले जाने का हमारा रास्ता भी यही लेकर हम चलना चाहते है, ताकि हिन्दुस्तान का हर एक राज्य अपनी शक्ति और सामर्थ्य के आधार पर विकास की यात्रा में आगे आएं।
आजकल क्या हुआ है? हम दिल्ली में राजनीतिक माइलेज प्राप्त करने में कोई भी निर्णय कर लेते है, कोई भी कानून बना देते है, लेकिन उसको इम्पलीमेंट करने की जिम्मेदारी स्टे्टस की होती है। उनके पास रिर्सोसेज नहीं होते और इसलिए वह योजना धरी की धरी रह जाती है। अख़बार में चार-छह दिन आ जाता है और फिर गाली पड़ती है कि आपने दिल्ली में यह किया लेकिन उसे आपने लागू नहीं किया। ये तनावपूर्ण वातावरण हम क्यों पैदा करते हैं? मैं राज्य में रहा हूं, इसलिए मु्झे मालूम है कि यह तनाव हमें विपरीत दिशा में ले जाता है और इसलिए हमें इन स्थितियों पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है और उसमें बदलाव करने की आवश्यकता है।
हमारे एग्रीकल्चर के भी Agro-climate zones हैं। हर राज्य में एक फसल का एक निश्चित एरिया हैं। उसकी mapping तो है, लेकिन गेंहू पकाने वाले राज्यों की अलग समस्या है, उनको अलग से बिठाकर बात करेंगे, चावल पकाने वाले राज्यों की अलग समस्या है, उनसे हम अलग से बात करेंगे और गन्ना पकाने वाले राज्यों की अलग समस्या है, उनसे अलग से बात करेंगे। जब तक हम Issue-centric, focused activity नहीं करते, हम इतने बड़े विशाल देश को सिर्फ दिल्ली से चलाने की कोशिश करते रहेंगे और नीतियां बनाने के मामले में हम दुनिया को कहेंगे कि इतने एक्ट बनाये, इतने किए, लेकिन इससे स्थितियां नहीं बदलेंगी।
आज आवश्यकता है कि अपने विचारों को, अपनी बातों को आखिरी व्यक्ति तक कैसे पहुचाएँ। Last man delivery ये सबसे बड़ी समस्या है और इसके लिए मूल कारण Governance.
स्वराज मिला, हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि हम सुराज नहीं दे पाये। मैं नेता चुना गया, जिन्होंने उस दिन का भाषण सुना होगा, मैंने साफ कहा है कि मैं इस विचार का नहीं हूं कि पहले की सरकारों ने कुछ नहीं किया है और कोई सरकार कुछ न कुछ करने के लिए तो आती नहीं है। हर सरकार कुछ करने के लिए आती है। अपने-अपने समय में हर सरकार ने कुछ न कुछ किया है। उन सबका cumulative परिणाम है कि आज हम यहां आये है, लेकिन जितना होना चाहिए था नहीं हुआ है, जिस दिशा में होना चाहिए था उस दिशा में नहीं हुआ है और जिस प्रकार से देश के अंदर उस प्रकार से ऊर्जा नहीं भरी, इन कमियों को हमें पूर्ण करना होगा।
महोदय, यही देश नेता बाहर जाकर आज भी कहते है कि हमारा देश तो गरीब है और वही हमें मिसाइल दिखा रहे है। यह देश कभी सोने की चिडि़या कहा जाता था। यह देश विश्व के समृद्ध देशों में सबसे आगे माना जाता था। यह देश ज्ञान-विज्ञान की दुनिया में प्रगति पर माना जाता था। गुलामी के कालखंडमें सब ध्वस्त हो चुका, उसमें से हम बाहर आ सकतें हैं। हम स्वराज्य की ओर हम कैसे बल दें? हमारे लोकतंत्र के ढांचे से हम इस रूप से दब गये, अपने आप पता नहीं क्या कठिनाईयां महसूस कि हमने Good Governance पर बल नही दिया। Good Governance सामान्य नागरिक के प्रति जवाबदेह होता है। क्या आज हम यह कह सकते हैं कि हमारा पूरा प्रशासन तंत्र सामान्य नागरिक के प्रति जवाब देह है? लोकतंत्र कि पहली शर्त होती है कि वह नागरिकों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, लेकिन यह स्थिति नहीं है। क्या हम यह कह सकते है कि व्यवस्था तंत्र में गरीब से गरीब व्यक्ति कि सुनवाई हो रही है? तो लोकतंत्र की वह कौन सी असलीयत है जो इस प्रकार की कमियां पैदा कर रही है? इसलिए समय की मांग है कि देश के अंदर सुराज पर हमें बल देना पड़ेगा, इसलिए हमें सुराज पर बल देना है।
महोदय, व्यक्ति कितना ही स्वस्थ क्यों न दिखता हो, ऊंचाई हो, वजन ठीक हो, सब हो, कोई बीमारी न हो, लेकिन अगर एक डायबिटिज उसके शरीर में प्रवेश कर जाए, तो उसका सारा शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। जिस प्रकार से शरीर में डायबिटिज का प्रवेश पूरे शरीर को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार से शासन व्यवस्था में bad governance की एंट्री पूरे शासन तंत्र को, पूरे देश को तबाह कर देती है। Bad Governance डायबिटिज से भी भयंकर होता है। हमारा आग्रह है, हमारा प्रयास है कि हम Good Governance से चले।
महोदय, देश में करप्शन की चिंता है और मैं मानता हूं पूरे विश्व में हमारी एक पहचान बनी है, अच्छी है, बुरी है, सही है, गलत है, हरेक के अपने-अपने विचार होंगे, लेकिन दुनिया के सामने हिंदुस्तान एवं ‘Scam India’ यह पहचान बन गई है, और उसी ने भारत की विकास की यात्रा को बहुत बड़ा सदमा पहुंचा है। हमारे टूरिज्म पर बहुत बड़ी ब्रेक लगी, यह क्यों लगी? बलात्कार की घटनाओं ने टूरिस्टों के आने में रोक पैदा कर दी है। पूरे देश की विकास यात्रा में भारत की छोटी-छोटी घटनाएं भी बहुत बड़ी चिंता बनी हुई है और इस पर राजनीति नहीं हो सकती हैं। क्या हम terrorism पर भी राजनीति करेंगे? क्या माओवाद के हमलों पर भी राजनीति करेंगे? क्या मां-बहनों पर बलात्कार पर भी राजनीति करेंगे? निर्दोषों की हत्या पर भी राजनीति करेंगे? समय की मांग है कि हम इससे ऊपर उठकर के एक के सामूहिक दायित्व के साथ इन समस्याओं के संबंध में कोई Compromise नहीं करेंगे, मिल बैठकर कोई रास्ता निकालेंगे और देश की छवि जो बर्बाद हो रही है, उससे बाहर निकलने का प्रयास करेंगे।
महोदय, विश्व का भारत के प्रति आकर्षण बन रहा था। टूरिज्म के लिए लोग भारत की तरफ मुड़े थे, लेकिन अचानक पिछले कुछ समय में इसमें गिरावट आई है। यह गिरावट इन्हीं घटनाओं के कारण आई है। क्या हमारी सामूहिक जिम्मेवारी नहीं है? क्या राजनीति से ऊपर उठ करके इन समस्याओं के समाधान के लिए रास्ता नहीं निकाले जा सकते है?
महोदय, यह ऐसा सदन है, जहां देश का talent बैठता है, यह देश की विद्धवत सभा है। इन्हें मार्गदर्शन करना पड़ेगा। इसी गृह में मार्गदर्शन करना पड़ेगा। हमें मिल करके रास्ते खोजने पड़ेंगे और हमारी कोशिश है कि हम मिल बैठ कर रास्ता खोजें और देश को आगे ले जाएं।
हमारे देश में corruption के खिलाफ आम आदमी का रोष है। हमारी कानूनी व्यवस्था में कौन करप्ट आदमी कब जेल जाएगा, इसके लिए देश इंतजार करने को तैयार नहीं है। उसके हाथ में जो शस्त्र है, उससे राजनेताओं को सजा देने के लिए आज वह काबिल हुआ है। लेकिन, उससे बात बननी है। जितनी चिंता करप्शन के बाद की होती है, उससे ज्यादा चिंता करप्शन न हो, इसके लिए चिंता करने की आवश्यकता है। इसलिए राष्ट्रपति जी के अभिभाषण में इस बात पर भी बल दिया है कि करप्शन के बाद के लिए किए जाने वाले Measures पर ज्यादा चर्चा हो चुकी है, उसके कई मुद्दे हैं, लेकिन करप्शन न हो इसके लिए भी तो कुछ-कुछ चीजें की जा सकती है और उसमें एक है The State must be policy driven, अगर The State must be policy driven है तो करप्शन की संभावनाएं बहुत ही कम रहती है, ग्रे एरिया बहुत ही कम रहता है। दूसरा है टेक्नोलॉजी। आज टेक्नोलॉजी करप्शन को रोकने में बहुत बड़ा रोल प्ले कर सकती है। अगर Environment Ministry की फाइलें ऐसे ही जमा रहती हैं और भांति-भांति के आरोप लगते हैं, लेकिन वही ऑनलाइन हो, कोई भी एप्लिकेंट फॉर्म अपने पासवर्ड से ऑनलाइन देख सकता है। कि आज मेरी फाइल की क्या पोजिशन है? टेक्नोलॉजी के द्वारा इतनी transparency आ सकती है कि हमारे यहाँ एक सामान्य मानव भी करप्शन करने से पहले 50 बार सोचेगा। सीसीटीवी कैमरा जैसी चीजें भी आज आदमी को ङरा रही हैं, खूंखार-खूंखार व्यक्तियों को भी डरा रही है, तो हम टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग कर सकते है। करप्शन को कर्ब करने के लिए अभी ई-टेंडरिंग वगैरह छोटी-मोटी चीजें प्रारम्भ हुई हैं, लेकिन उसको और व्यापक रुप से आगे लाया जाए। इतना ही नहीं, अगर हम स्कूल्स में बच्चों के प्रेजेंस को बोयोमिट्रिक सिस्टम से जोड़ दें, तो फिर अगर कहीं 40 बच्चें है और कोई 80 लिखवाकर सारी सहायता ले रहा है, तो वह करप्शन अपने आप चला जाएगा। ग्रासरुट लेवल से टॉप लेवल तक करप्शन की सारी बातें होती हैं। अगर रेलवे के अंदर सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था होगी तो रेलवे के भीतर चलने वाली गतिविधियों को हम रोक सकते हैं। ऐसी कई बातें हैं, जैसे एक पालिसी-ड्रिवन स्टेट हो, टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग हो और करप्ट लोगों के लिए कठोर से कठोर कार्रवाई करने की व्यवस्था हो, तो मुझे विश्वास है कि हम स्थितियों को बदल सकते हैं।
हम चाहें या न चाहें, देश में हमारे इन सदनों की गरिमा पर चोट लगी हुई है। एक व्यापक चर्चा है कि संसद में वे लोग जाते हैं जिनका criminal बैकग्राउंड होता है। पाँच हों, सात हों, दस हों लेकिन एक छवि बनी हुई है। यह हम लोगों की सामूहिक जिम्मेवारी है कि हम इस कलंक से हमारे इन दोनो सदनों को मुक्त करें और कलंक से मुक्त करने का एक अच्छा उपाय है कि हम सब मिलकर तय करें, भारत के सुप्रीम कोर्ट से रिक्वेस्ट करें कि अभी जितने हमारे सदस्य हैं, उनमें से किसी पर भी यदि एफआईआर लॉज हुई है, तो ज्यूडिशियल मेकैनिज्म के द्वारा उसको एक्सपिडाइट किया जाए और एक साल के भीतर-भीतर दूध का दूध और पानी को पानी होना चाहिए। जो गुनहगार हो, वह जेल चला जाए, जो निर्दोष हों, वे बेदाग होकर वे दुनिया के सामने खड़े हो जाएँ। क्यों राजनीतिक कारणों से इतने गुनाह रजिस्टर होते हैं, कई निर्दोष लोग मारे जाते है? हम देश और दुनिया को बताएँ कि कम से कम 2015 के अंदर हम एक ऐसे हिन्दुस्तान को सदन में देखेंगे, चाहे वह लोक सभा हो या राज्य सभा हो, जहाँ पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति ऐसा नही होगा जिस पर कोई दाग लगा होगा। दुनिया के अंदर हम एक शुरुआत कर सकते हैं। अगर हम इस प्रकार से एक बार लोक सभा को क्लीन कर दें तो फिर राजनीतिक दलों को भी टिकटें देते समय 50 बार सोचना पडेगा। अगर हम एक साल के भीतर यह सफाई कर देते हैं तो सीटें खाली होने लगेंगी, कोई हिम्मत नहीं करेगा। यह क्रम बाद में असेम्बलीज़ में ले जाया जाए और फिर घीरे-धीरे कॉर्पोरेशन में ले जाया जाए। जब एक बार माहौल बन जाएगा और वह सर्वसम्मति से बनेगा तो हम राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कर सकते हैं। इसकी शुरुआत करने का यह सही तरीका हैं। इसलिए राष्टपति जी के अभिभाषण में इस बात का भी उल्लेख किया गया हैं। मैं नहीं मानता हूं कि कोई ऐसा भी होगा, जो इससे मुक्ति न चाहता हो। जिस पर एफआईआर होगी, वह भी कहेगा- साहब, यह तलवार 15 साल से लटक रही है, हर बार मुझे नामांकन करते समय लिखना पड़ता है, हर बार एनजीओ के द्वारा अखबार में छपता है कि इसके ऊपर 30 गुनाह हैं, इसके ऊपर 25 गुनाह है। इससे हर कोई मुक्ति चाहता है। हम न्याय की प्रक्रिया को इस प्रकार से संचालित करें।
मैं मानता हूँ कि सभी सदस्य, चाहे वे लोक सभा के हों, राज्य सभा के हों, ये सब मिलकर इस बात के लिए सहयोग करेंगे और हम उस दिशा में सुप्रीम कोर्ट की मदद लेकर जो गुनाहगार हैं उसके लिए जेल हो, जो बेगुनाह हों वह बेदाग दुनियां के सामने प्रस्तुत हो, उसकी व्यवस्था हमें करनी चाहिए। और इन दो सदनों में वह सामर्थ्य है कि ये उस काम को कर सकते हैं। ऐसे अनेक विषय हैं।
हम लोग यहां से शुरूआत करें और उसके बाद बाकी हो जाएगा। लेकिन मैं आपकी भावना का आदर करता हूं कि कोई बचना नहीं चाहिए। कानून का राज होना चाहिए, बेगुनाहों को सुरक्षा मिलनी चाहिए और गुनाहगारों को सजा मिलनी चाहिए। इसीलिए तो अभी तो जो ब्लैक मनी के लिए दो साल से एस.आई.टी. बनाना लटक रहा था, हमने आते ही उस काम को कर दिया। उस काम को कर दिया, क्योंकि यह हमारी प्राथमिकता है। हम में से कोई नहीं जानता कि वे ब्लैक मनी वाले कौन हैं, लेकिन देश की जनता के सामने यह सत्य आना जरूरी है कि ब्लैक मनी है या नहीं है, तो किसकी है, तो कितनी है, कैसे आई और कहां गई, देश को पता तो चले और अगर नहीं है तो देश से इस प्रकार का धुंआ हट जाएगा। देश एक शांति का आनंद लेगा, इसलिए ऐसे कामों में कोताही बरते बिना हिम्मत के साथ आगे बढ़ना चाहिए और अगर हम आगे बढ़ते हैं तो देश के सामान्य व्यक्ति की संसद के प्रति श्रद्धा बढ़ेगी, लोकतंत्र के प्रति उसकी श्रद्धा बढ़ेगी और सरकारी व्यवस्था में वह भरोसा करने लगेगा।
आज देश के सामने सबसे बड़ा संकट है कि उसका भरोसा टूट गया है और यह भरोसा इस हद तक टूटा है कि यहां बैठे हुए लोग भी कभी मोबाइल फोन से किसी को एस.एम.एस करते होंगे और बाद में फोन करते होंगे कि मेरा एसएमएस मिला? क्यों? भरोसा टूट गया है। भरोसा टूट गया, वरना भरोसा होना चाहिए कि मेरे मोबाइल से मैंने एस.एम.एस भेजा है तो गया ही होगा। लेकिन फोन करके पूछता है कि मैंने कोई एस.एम.एस किया था, वह मिला क्या? यह जो भरोसा टूट गया है उसको पुन: स्थापित करने की आवश्यकता है। सरकारी अस्पताल में गया तो उसको विश्वास होना चाहिए कि उसकी बीमारी ठीक होगी। बच्चा सरकारी स्कूल में गया तो मां-बाप को भरोसा होना चाहिए कि उसकी पढ़ाई में कोई तकलीफ नहीं होगी, यह भरोसा होना चाहिए और यह भरोसा पैदा करना एक बहुत बड़ा चैलेंज है, लेकिन हम मिल बैठकर उस काम को करें, तो कर सकते हैं। आप सबने जो सुझाव दिए हैं, सभी सुझाव हमारे लिए सम्माननीय हैं और मैं कहता हूं और मैं बड़ी नम्रता के साथ कहता हूं, भले ही हम विजयी होकर आए हों, भले ही देश की जनता ने कई वर्षों के बाद हमारा इतना बड़ा समर्थन किया, लेकिन अगर आपका समर्थन नहीं, तो वह समर्थन अधूरा है, और इसलिए हम आपको साथ लेकर चलना चाहते हैं। जरूरत पड़ी तो आपके मार्गदर्शन में चलना चाहते हैं और यह कोई नई बात नहीं है। जब नरसिंह राव जी की सरकार थी, जेनेवा के अंदर एक कांफ्रेंस में जाना था, पाकिस्तान के खिलाफ एक लॉबीइंग करने की आवश्यकता थी और नरसिंह राव जी ने अटल बिहारी वाजपेयी जी को पसंद किया और उनको डेलीगेशन के रूप में भेजा था और उसक काम को किया था। तो सारी जो अच्छी बातें हैं उन बातों को हमें आगे बढ़ाना है और इसलिए हम देश के लिए काम करने वाले लोग हैं। दल से बड़ा देश होता है, इस मंत्र को लेकर चलना है और इस पवित्र सदन में उस मंत्र को उजागर करने के लिए हम लोग प्रयास करेंगे। आपका सहयोग रहेगा तो समस्याओं का समाधान करने की सुविधा और ज्यादा तेज होगी। राजनीति करने के लिए आखिरी वर्ष काफी होता है, अभी तो चार साल सिर्फ राष्ट्र हित के लिए सोचें, राष्ट्रनीति के लिए सोचें। जय और पराजय में कड़वाहट आई है, उसको बाहर रख करके आएं। आती है कड़वाहट। इतनी कड़वाहट के साथ आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है और यह तो वरिष्ठ गृह है, वरिष्ठ गृह का माहौल एक उमंग और उत्साह का होना चाहिए, उसको बरकरार करने के लिए हम कोशिश करेंगे।
मुझे विश्वास है कि देश के सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ विजयी लोग ही नहीं, चुने हुए सब लोगों का जो दायित्व होता है, उस दायित्व को पूरा करने में हम पीछे नहीं रहेंगे। फिर एक बार, सदन के सामने अपनी बात रखने का मुझे अवसर मिला, मैं आपका आभारी हूं और मैं पूरे सदन से प्रार्थना करता हूं कि जो प्रस्ताव आपके सामने रखा गया है, उस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से समर्थन करते हुए देश को हम नई दिशा दें, नई ताकत दें। बहुत-बहुत धन्यवाद।