उपस्थित सभी महानुभाव,

आप सबको क्रिसमस के पावन पर्व की बुहत-बहुत शुभकामनाएं। ये आज सौभाग्य है कि 25 दिसंबर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्म जयंती पर, मुझे उस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है जिसके कण-कण पर पंडित जी के सपने बसे हुए हैं। जिनकी अंगुली पकड़ कर के हमें बड़े होने का सौभाग्य मिला, जिनके मार्गदर्शन में हमें काम करने का सौभाग्य मिला ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी आज जन्मदिन है और आज जहां पर पंडित जी का सपना साकार हुआ, उस धरती के नरेश उनकी पुण्यतिथि का भी अवसर है। उन सभी महापुरुषों को नमन करते हुए, आज एक प्रकार से ये कार्यक्रम अपने आप में एक पंचामृत है। एक ही समारोह में अनेक कार्यक्रमों का आज कोई-न-कोई रूप में आपके सामने प्रस्तुतिकरण हो रहा है। कहीं शिलान्यास हो रहा है तो कहीं युक्ति का Promotion हो रहा है तो Teachers’ Training की व्यवस्था हो रही है तो काशी जिसकी पहचान में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि यहां कि सांस्कृतिक विरासत उन सभी का एक साथ आज आपके बीच में उद्घाटन करने का अवसर मुझे मिला है। मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

मैं विशेष रूप से इस बात की चर्चा करना चाहता हूं कि जब-जब मानवजाति ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत ने विश्व गुरू की भूमिका निभाई है और 21वीं सदी ज्ञान की सदी है मतलब की 21वीं सदी भारत की बहुत बड़ी जिम्मेवारियों की भी सदी है और अगर ज्ञान युग ही हमारी विरासत है तो भारत ने उस एक क्षेत्र में विश्व के उपयोगी कुछ न कुछ योगदान देने की समय की मांग है। मनुष्य का पूर्णत्व Technology में समाहित नहीं हो सकता है और पूर्णत्व के बिना मनुष्य मानव कल्याण की धरोहर नहीं बन सकता है और इसलिए पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना उसी अगर मकसद को लेकर के चलते हैं तो विज्ञान हो, Technology हो नए-नए Innovations हो, Inventions हो लेकिन उस बीच में भी एक मानव मन एक परिपूर्ण मानव मन ये भी विश्व की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था Robot पैदा करने के लिए नहीं है। Robot तो शायद 5-50 वैज्ञानिक मिलकर शायद लेबोरेटरी में पैदा कर देंगे, लेकिन नरकर्णी करे तो नारायण हो जाए। ये जिस भूमि का संदेश है वहां तो व्यक्तित्व का संपूर्णतम विकास यही परिलक्षित होता है और इसलिए इस धरती से जो आवाज उठी थी, इस धरती से जो संस्कार की गंगा बही थी उसमें संस्कृति की शिक्षा तो थी लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था शिक्षा की संस्कृति और आज कहीं ऐसा तो नहीं है सदियों से संजोयी हुई हमारी शैक्षिक परंपरा है, जो एक संस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित हुई है। वो शिक्षा की संस्कृति तो लुप्त नहीं हो रही है? वो भी तो कहीं प्रदूषित नहीं हो रही है? और तब जाकर के आवश्यकता है कि कालवाह्य चीजों को छोड़कर के उज्जवलतम भविष्य की ओर नजर रखते हुए पुरानी धरोहर के अधिष्ठान को संजोते हुए हम किस प्रकार की व्यवस्था को विकसित करें जो आने वाली सदियों तक मानव कल्याण के काम आएं।

हम दुनिया के किसी भी महापुरुष का अगर जीवन चरित्र पढ़ेंगे, तो दो बातें बहुत स्वाभाविक रूप से उभर कर के आती हैं। अगर कोई पूछे कि आपके जीवन की सफलता के कारण तो बहुत एक लोगों से एक बात है कि एक मेरी मां का योगदान, हर कोई कहता है और दूसरा मेरे शिक्षक का योगदान। कोई ऐसा महापुरुष नहीं होगा जिसने ये न कहा हो कि मेरे शिक्षक का बुहत बड़ा contribution है, मेरी जिंदगी को बनाने में, अगर ये हमें सच्चाई को हम स्वीकार करते हैं तो हम ये बहुमूल्य जो हमारी धरोहर है इसको हम और अधिक तेजस्वी कैसे बनाएं और अधिक प्राणवान कैसे बनाएं और उसी में से विचार आया कि, वो देश जिसके पास इतना बड़ा युवा सामर्थ्य है, युवा शक्ति है।

आज पूरे विश्व को उत्तम से उत्तम शिक्षकों की बहुत बड़ी खोट है, कमी है। आप कितने ही धनी परिवार से मिलिए, कितने ही सुखी परिवार से मिलिए, उनको पूछिए किसी एक चीज की आपको आवश्यकता लगती है तो क्या लगती है। अरबों-खरबों रुपयों का मालिक होगा, घर में हर प्रकार का सुख-वैभव होगा तो वो ये कहेगा कि मुझे अच्छा टीचर चाहिए मेरे बच्चों के लिए। आप अपने ड्राइवर से भी पूछिए कि आपकी क्या इच्छा है तो ड्राइवर भी कहता है कि मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षी ही मेरी कामना है। अच्छी शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में नहीं आती। Infrastructure तो एक व्यवस्था है। अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षकों से जुड़ी हुई होती है और इसलिए अच्छे शिक्षकों का निर्माण कैसे हो और हम एक नए तरीके से कैसे सोचें?

आज 12 वीं के बीएड, एमएड वगैरह होता है वो आते हैं, ज्यादातर बहुत पहले से ही जिसने तय किया कि मुझे शिक्षक बनना है ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ज्यादातर कुछ न कुछ बनने का try करते-करके करके हुए आखिर कर यहां चल पड़ते हैं। मैं यहां के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। हम एक माहौल बना सकते हैं कि 10वीं,12वीं की विद्यार्थी अवस्था में विद्यार्थियों के मन में एक सपना हो मैं एक उत्तम शिक्षक बनना चाहता हूं। ये कैसे बोया जाए, ये environment कैसे create किया जाए? और 12वीं के बाद पहले Graduation के बाद law faculty में जाते थे और वकालत धीरे-धीरे बदलाव आया और 12वीं के बाद ही पांच Law Faculty में जाते हैं और lawyer बनकर आते हैं। क्या 10वीं और 12वीं के बाद ही Teacher का एक पूर्ण समय का Course शुरू हो सकता है और उसमें Subject specific मिले और जब एक विद्यार्थी जिसे पता है कि मुझे Teacher बनना है तो Classroom में वो सिर्फ Exam देने के लिए पढ़ता नहीं है वो अपने शिक्षक की हर बारीकी को देखता है और हर चीज में सोचता है कि मैं शिक्षक बनूंगा तो कैसे करूंगा, मैं शिक्षक बनूंगा ये उसके मन में रहता है और ये एक पूरा Culture बदलने की आवश्यकता है।

उसके साथ-साथ भले ही वो विज्ञान का शिक्षक हो, गणित का शिक्षक हो उसको हमारी परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे Child Psychology का पता होना चाहिए, उसको विद्यार्थियों को Counselling कैसे करना चाहिए ये सीखना चाहिए, उसे विद्यार्थियों को मित्रवत व्यवहार कैसे करना है ये सीखाना चाहिए और ये चीजें Training से हो सकती हैं, ऐसा नहीं है कि ये नहीं हो सकता है। सब कुछ Training से हो सकता है और हम इस प्रकार के उत्तम शिक्षकों को तैयार करें मुझे विश्वास है कि दुनिया को जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, हम पूरे विश्व को, भारत के पास इतना बड़ा युवा धन है लाखों की तादाद में हम शिक्षक Export कर सकते हैं। Already मांग तो है ही है हमें योग्यता के साथ लोगों को तैयार करने की आवश्यकता है और एक व्यापारी जाता है बाहर तो Dollar या Pound ले आता है लेकिन एक शिक्षक जाता है तो पूरी-पूरी पीढ़ी को अपने साथ ले आता है। हम कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा काम हम वैश्विक स्तर पर कर सकते हैं और उसी एक सपने को साकार करने के लिए पंड़ित मदन मोहन मालवीय जी के नाम से इस मिशन को प्रारंभ किया गया है। और आज उसका शुभारंभ करने का मुझे अवसर मिला है।

आज पूरे विश्व में भारत के Handicraft तरफ लोगों का ध्यान है, आकर्षण है लेकिन हमारी इस पुरानी पद्धतियों से बनी हुई चीजें Quantum भी कम होता है, Wastage भी बहुत होता है, समय भी बहुत जाता है और इसके कारण एक दिन में वो पांच खिलौने बनाता है तो पेट नहीं भरता है लेकिन अगर Technology के उपयोग से 25 खिलौने बनाता है तो उसका पेट भी भरता है, बाजार में जाता है और इसलिए आधुनिक विज्ञान और Technology को हमारे परंपरागत जो खिलौने हैं उसका कैसे जोड़ा जाए उसका एक छोटा-सा प्रदर्शन मैंने अभी उनके प्रयोग देखे, मैं देख रहा था एक बहुत ही सामान्य प्रकार की टेक्नोलोजी को विकसित किया गया है लेकिन वो उनके लिए बहुत बड़ी उपयोगिता है वरना वो लंबे समय अरसे से वो ही करते रहते थे। उसके कारण उनके Production में Quality, Production में Quantity और उसके कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाने की संभावनाएं और हमारे Handicrafts की विश्व बाजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। आज हम उनको Online Marketing की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। युक्ति, जो अभियान है उसके माध्यम से हमारे जो कलाकार हैं, काश्तकारों को ,हमारे विश्वकर्मा हैं ये इन सभी विश्वकर्माओं के हाथ में हुनर देने का उनका प्रयास। उनके पास जो skill है उसको Technology के लिए Up-gradation करने का प्रयास। उस Technology में नई Research हो उनको Provide हो, उस दिशा में प्रयास बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रम तो बहुत होते रहते हैं। कई जगहों पर होते हैं। बनारस में एक विशेष रूप से भी आरंभ किया है। हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने में इसकी बहुत बड़ी ताकत है। आप देखते होंगे कि दुनिया ने, हम ये तो गर्व करते थे कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने हमें योग दिया holistic health के लिए preventive health के लिए योग की हमें विरासत मिली और धीरे-धीरे दुनिया को भी लगने लगा योग है क्या चीज और दुनिया में लोग पहुंच गए। नाक पकड़कर के डॉलर भी कमाने लग गए। लेकिन ये शास्त्र आज के संकटों के युग में जी रहे मानव को एक संतुलित जीवन जीने की ताकत कैसे मिले। योग बहुत बड़ा योगदान कर सकता है। मैं सितंबर में UN में गया था और UN में पहली बार मुझे भाषण करने का दायित्व था। मैंने उस दिन कहा कि हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएं और मैंने प्रस्तावित किया था 21 जून। सामान्य रूप से इस प्रकार के जब प्रस्ताव आते हैं तो उसको पारित होने में डेढ़ साल, दो साल, ढ़ाई साल लग जाते हैं। अब तक ऐसे जितने प्रस्ताव आए हैं उसमें ज्यादा से ज्यादा 150-160 देशों नें सहभागिता दिखाई है। जब योग का प्रस्ताव रखा मुझे आज बड़े आनंद और गर्व के साथ कहना है और बनारस के प्रतिनिधि के नाते बनारस के नागरिकों को ये हिसाब देते हुए, मुझे गर्व होता है कि 177 Countries Co- sponsor बनी जो एक World Record है। इस प्रकार के प्रस्ताव में 177 Countries का Co- sponsor बनना एक World Record है और जिस काम में डेढ़-दो साल लगते हैं वो काम करीब-करीब 100 दिन में पूरा हो गया। UN ने इसे 21 जून को घोषित कर दिया ये भी अपने आप में एक World Record है।

हमारी सांस्कृतिक विरासत की एक ताकत है। हम दुनिया के सामने आत्मविश्वास के साथ कैसे ले जाएं। हमारा गीत-संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, साहित्य कितनी बड़ी विरासत है। सूरज उगने से पहले कौन-सा संगीत, सूरज उगने के बाद कौन-सा संगीत यहां तक कि बारीक रेखाएं बनाने वाला काम हमारे पूर्वजों ने किया है और दुनिया में संगीत तो बहुत प्रकार के हैं लेकिन ज्यादातर संगीत तन को डोलाते हैं बहुत कम संगीत मन को डोलाते हैं। हम उस संगीत के धनी हैं जो मन को डोलाता है और मन को डोलाने वाले संगीत को विश्व के अंदर कैसे रखें यही प्रयासों से वो आगे बढ़ने वाला है लेकिन मेरे मन में विचार है क्या बनारस के कुछ स्कूल, स्कूल हो, कॉलेज हो आगे आ सकते हैं क्या और बनारस के जीवन पर ही एक विषय पर ही एक स्कूल की Mastery हो बनारस की विरासत पर, कोई एक स्कूल हो जिसकी तुलसी पर Mastery हो, कोई स्कूल हो जिसकी कबीर पर हो, ऐसी जो भी यहां की विरासत है उन सब पर और हर दिन शाम के समय एक घंटा उसी स्कूल में नाट्य मंच पर Daily उसका कार्यक्रम हो और जो Tourist आएं जिसको कबीर के पास जाना है उसके स्कूल में चला जाएगा, बैठेगा घंटे-भर, जिसको तुलसी के पास जाना है वो उस स्कूल में जाए बैठेगा घंटे भर , धीरे-धीरे स्कूल टिकट भी रख सकता है अगर popular हो जाएगी तो स्कूल की income भी बढ़ सकती है लेकिन काशी में आया हुआ Tourist वो आएगा हमारे पूर्वजों के प्रयासों के कारण, बाबा भोलेनाथ के कारण, मां गंगा के कारण, लेकिन रुकेगा हमारे प्रयासों के कारण। आने वाला है उसके लिए कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जन्म से ही तय करके बैठा है कि जाने है एक बार बाबा के दरबार में जाना है लेकिन वो एक रात यहां तब रुकेगा उसके लिए हम ऐसी व्यवस्था करें तब ऐसी व्यवस्था विकसित करें और एक बार रात रुक गया तो यहां के 5-50 नौजवानों को रोजगार मिलना ही मिलना है। वो 200-500-1000 रुपए खर्च करके जाएगा जो हमारे बनारस की इकॉनोमी को चलाएगा और हर दिन ऐसे हजारों लोग आते हैं और रुकते हैं तो पूरी Economy यहां कितनी बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए ये छोटी-छोटी चीजें काम आ सकती हैं।

हमारे हर स्कूल में कैसा हो, हमारे जो सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत जो हमारे ज्ञान-विज्ञान हैं उसको तो प्रस्तुत करे लेकिन साथ-साथ समय की मांग इस प्रकार की स्पर्धाएं हो सकती हैं, मान लीजिए ऐसे नाट्य लेखक हो जो स्वच्छता पर ही बड़े Touchy नाटक लिखें अगर स्वच्छता के कारण गरीब को कितना फायदा होता है आज गंदगी के कारण Average एक गरीब को सात हजार रुपए दवाई का खर्चा आता है अगर हम स्वच्छता कर लें तो गरीब का सात हजार रुपए बच जाता है। तीन लोगों का परिवार है तो 21 हजार रुपए बच जाता है। ये स्वच्छता का कार्यक्रम एक बहुत बड़ा अर्थ कारण भी उसके साथ जुड़ा हुआ है और स्वच्छता ही है जो टूरिज्म की लिए बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। क्या हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन में ऐसे मंचन, ऐसे काव्य मंचन, ऐसे गीत, कवि सम्मेलन हो तो स्वच्छता पर क्यों न हो, उसी प्रकार से बेटी बचाओ भारत जैसा देश जहां नारी के गौरव की बड़ी गाथाएं हम सुनते हैं। इसी धरती की बेटी रानी लक्ष्मीबाई को हम याद करते हैं लेकिन उसी देश में बटी को मां के गर्भ में मार देते हैं। इससे बड़ा कोई पाप हो नहीं सकता है। क्या हमारे नाट्य मंचन पर हमारे कलाकारों के माध्यम से लगातार बार-बार हमारी कविताओं में, हमारे नाट्य मंचों पर, हमारे संवाद में, हमारे लेखन में बेटी बचाओ जैसे अभियान हम घर-घर पहुंच सकते हैं।

भारत जैसा देश जहां चींटी को भी अन्न खिलाना ये हमारी परंपरा रही है, गाय को भी खिलाना, ये हमारी परंपरा रही है। उस देश में कुपोषण, हमारे बालकों को……उस देश में गर्भवती माता कुपोषित हो इससे बड़ी पीड़ा की बात क्या हो सकती है। क्या हमारे नाट्य मंचन के द्वारा, क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर के द्वारा से हम इन चीजों को प्रलोभन के उद्देश्य में ला सकते हैं क्या? मैं कला, साहित्य जगत के लोगों से आग्रह करूंगा कि नए रूप में देश में झकझोरने के लिए कुछ करें।

जब आजादी का आंदोलन चला था तब ये ही साहित्यकार और कलाकार थे जिनकी कलम ने देश को खड़ा कर दिया था। स्वतंत्र भारत में सुशासन का मंत्र लेकर चल रहे तब ये ही हमारे कला और साहित्य के लोगों की कलम के माध्यम से एक राष्ट्र में नवजागरण का माहौल बना सकते हैं।

मैं उन सबको निमंत्रित करता हूं कि सांस्कृतिक सप्ताह यहां मनाया जा रहा है उसके साथ इसका भी यहां चिंतन हो, मनन हो और देश के लिए इस प्रकार की स्पर्धाएं हो और देश के लिए इस प्रकार का काम हो।

मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से सपने पूरे हो सकते हैं साथियों, देश दुनिया में नाम रोशन कर सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं, 6 महीने के मेरे अनुभव से कह सकता हूं पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है हम तैयार नहीं है, हम तैयार नहीं है हमें अपने आप को तैयार करना है, विश्व तैयार बैठा है।

मैं फिर एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय जी की धरती को प्रणाम करता हूं, उस महापुरुष को प्रणाम करता हूं। आपको बहुत-बुहत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

Explore More
78 व्या स्वातंत्र्य दिनी, पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी लाल किल्याच्या तटावरून केलेले संबोधन

लोकप्रिय भाषण

78 व्या स्वातंत्र्य दिनी, पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी लाल किल्याच्या तटावरून केलेले संबोधन
Employment increases 36 pc to 64.33 cr in last ten years: Mansukh Mandaviya

Media Coverage

Employment increases 36 pc to 64.33 cr in last ten years: Mansukh Mandaviya
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
The Constitution is our guiding light: PM Modi
A special website named constitution75.com has been created to connect the citizens of the country with the legacy of the Constitution: PM
Mahakumbh Ka Sandesh, Ek Ho Poora Desh: PM Modi in Mann Ki Baat
Our film and entertainment industry has strengthened the sentiment of 'Ek Bharat - Shreshtha Bharat': PM
Raj Kapoor ji introduced the world to the soft power of India through films: PM Modi
Rafi Sahab’s voice had that magic which touched every heart: PM Modi remembers the legendary singer during Mann Ki Baat
There is only one mantra to fight cancer - Awareness, Action and Assurance: PM Modi
The Ayushman Bharat Yojana has reduced the financial problems in cancer treatment to a great extent: PM Modi

माझ्या प्रिय देशवासीयांनो, नमस्कार!  2025 हे वर्ष तर आता आलंच आहे, दरवाजावर येऊन ठेपलं आहे.   26 जानेवारी 2025 रोजी आपली राज्यघटना लागू होऊन 75 वर्षे पूर्ण होत आहेत.  आपल्या सर्वांसाठी ही खूप अभिमानाची आणि गौरवास्पद बाब आहे.  आपल्या राज्यघटनाकारांनी आपल्या हाती सुपूर्द केलेली राज्यघटना, काळाच्या प्रत्येक निकषावर सिद्ध झाली आहे. राज्यघटना आपल्यासाठी मार्गदर्शक प्रकाश- दीपस्तंभ आहे, मार्गदर्शक आहे.   भारताच्या राज्यघटनेमुळेच आज मी इथे आहे, तुमच्याशी बोलू शकत आहे.  यावर्षी 26 नोव्हेंबरला संविधान दिनापासून वर्षभर चालणाऱ्या अनेक उपक्रमांना सुरुवात झाली आहे.  देशातील नागरिकांना राज्यघटनेच्या  वारशाशी जोडण्यासाठी constition75.com नावाचे खास संकेतस्थळही तयार करण्यात आले आहे.  यामध्ये तुम्ही राज्यघटनेची प्रास्ताविका वाचून तुमची ध्वनीचित्रफीतही टाकू शकता.  तुम्ही राज्यघटना वेगवेगळ्या भाषांमध्ये वाचू शकता… राज्यघटनेबद्दल प्रश्नही विचारू शकता.  ‘मन की बात’चे श्रोते, शाळेत शिकणारी मुले, महाविद्यालयात जाणारे तरुणतरुणी यांना मी विनंती करतो की त्यांनी या संकेतस्थळाला नक्कीच भेट द्यावी आणि त्याचा एक भाग व्हावे.

मित्रांनो, पुढील महिन्याच्या 13 तारखेपासून प्रयागराजमध्ये महाकुंभ मेळाही सुरू होणार आहे.  संगमाच्या काठावर सध्या जोरदार तयारी सुरू आहे.  मला आठवतं, काही दिवसांपूर्वी मी प्रयागराजला गेलो होतो तेव्हा हेलिकॉप्टरमधून कुंभमेळ्याचा संपूर्ण  परिसर बघून खूप आनंद झाला होता.  इतका महाकाय!  इतका सुंदर! एवढा भव्यपणा !

मित्रांनो, महाकुंभ मेळ्याचे वैशिष्ट्य केवळ त्याच्या विशालतेतच नाही.  कुंभाचे वैशिष्ट्य त्यातील वैविध्यात देखील आहे.  या कार्यक्रमात कोट्यवधी लोक एकावेळी एकत्र येतात.  लाखो संत, हजारो परंपरा, शेकडो पंथ, अनेक आखाडे… प्रत्येकजण या कार्यक्रमाचा एक भाग बनतो.  कुठेही भेदभाव दिसून येत नाही, कोणी मोठा नाही, कोणी लहान नाही.  विविधतेतील एकतेचे असे दृश्य जगात कुठेही दिसणार नाही.  म्हणूनच आपला कुंभमेळा हा एकतेचा महाकुंभही आहे.  यावेळच्या महाकुंभातूनही एकतेच्या महाकुंभाचा मंत्र दृढ होणार आहे.  मी तुम्हा सर्वांना सांगेन की, जेव्हा आपण कुंभमेळ्याला जाल, तेव्हा  एकतेचा हा संकल्प घेऊन परत या. आपण,  समाजातील फूट आणि द्वेषाची भावना नष्ट करण्याची शपथही घेतली पाहिजे. अगदी कमी शब्दात सांगायचे झाले तर मी म्हणेन...

महाकुंभमेळ्याचा संदेश, एक व्हावा संपूर्ण देश!

महाकुंभमेळ्याचा संदेश, एक व्हावा संपूर्ण देश!

आणि जर मला ते आणखी वेगळ्या प्रकारे सांगायचे असेल तर मी म्हणेन ...

गंगेचा अखंड प्रवाह, दुभंगता कामा नये आपला समाज. 

गंगेचा अखंड प्रवाह, दुभंगता कामा नये आपला समाज. 

मित्रांनो, यावेळी देशभरातील आणि जगभरातील भाविक प्रयागराजमध्ये डिजिटल महाकुंभाचे साक्षीदार होणार आहेत.  डिजिटल मार्गदर्शनाच्या मदतीने तुम्हाला विविध घाट, मंदिरे, साधूंचे आखाडे यांच्यापर्यंत पोहोचण्याचा रस्ता सापडेल.  ही मार्गदर्शक प्रणाली तुम्हाला वाहनतळा पर्यंत पोहोचण्यासही मदत करेल. कुंभमेळ्याच्या कार्यक्रमात प्रथमच एआय चॅटबॉट चा वापर केला जाणार आहे.  AI चॅटबॉटच्या माध्यमातून कुंभमेळ्याशी संबंधित प्रत्येक प्रकारची माहिती 11 भारतीय भाषांमध्ये मिळू शकते.  मजकूर टाइप करून किंवा बोलून कोणीही या चॅटबॉटवरून कोणत्याही प्रकारची मदत मागू शकतो. कुंभमेळ्याचा  संपूर्ण परिसर कृत्रिम बुद्धिमत्ता संचालित कॅमेऱ्यांनी टिपला जात आहे.  कुंभकाळात कुणी आपल्या व्यक्तीपासून हरवले… ताटातूट झाली… तर त्यांना शोधण्यातही हे कॅमेरे मदत करतील. भाविकांना,  डिजीटल लॉस्ट अँड फाउंड सेंटर, या हरवले आणि सापडले केंद्राची  सुविधाही मिळणार आहे.  तसेच भाविकांना, सरकारमान्य टूर पॅकेज, निवास आणि होमस्टे म्हणजे स्थानिकांच्या घरात पर्यटकांची राहण्याची सुविधा याबाबतची माहिती मोबाईलवर दिली जाईल.  तुम्हीही महाकुंभमेळ्याला गेलात तर या सुविधांचा लाभ घ्या आणि हो, #EktaKaMahaKumbh या हॅशटॅगसह  तुमचा सेल्फी नक्कीच टाका.     

मित्रांनो, 'मन की बात' अर्थात MKB मध्ये आता आपण KTB बद्दल बोलणार आहोत. ज्येष्ठांच्या पिढीतील अनेकांना KTB बद्दल माहीत नसेल.  पण जरा मुलांना विचारा, त्यांच्यात KTB खूप प्रसिद्ध आहे.  KTB म्हणजे क्रृश, तृश आणि बाल्टीबॉय.  तुम्हाला कदाचित मुलांच्या आवडत्या ॲनिमेशन मालिकेबद्दल माहिती असेल आणि तिचे नाव आहे ‘KTB – भारत हैं हम’ ….आणि आता या मालिकेचा दुसरा हंगामही आला आहे.  ही तीन ॲनिमेशन पात्रे आपल्याला भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील त्या नायक आणि नायिकांबद्दल सांगतात ज्यांची फारशी चर्चा होत नाही.  नुकताच या मालिकेचा हंगाम-2, गोवा इथे नुकत्याच झालेल्या भारतीय आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सव-इफ्फीत अतिशय खास पद्धतीने सुरू करण्यात आला.  सर्वात महत्वाची गोष्ट अशी की ही मालिका फक्त अनेक भारतीय भाषांमध्येच नाही तर परदेशी भाषांमध्येही प्रसारित केली जाते.  ही मालिका दूरदर्शन तसेच इतर OTT मंचांवर पाहता येईल.

मित्रांनो, आपल्या ॲनिमेशनपटांची, नियमित चित्रपटांची आणि टीव्ही मालिकांची लोकप्रियता हेच दाखवते की भारताच्या सर्जनशील उद्योगात केवढी क्षमता आहे.  हा उद्योग देशाच्या प्रगतीत मोठे योगदान तर देत आहेच, पण आपल्या अर्थव्यवस्थेलाही नवी उंची गाठून देत आहे.  आपल्या देशाचा चित्रपट आणि मनोरंजन उद्योग खूप मोठा आहे.  देशातील कितीतरी भाषांमध्ये चित्रपट बनवले जातात आणि सर्जनशील आशयाची निर्मिती होते.  मी आपल्या चित्रपट आणि मनोरंजन उद्योगाचेही अभिनंदन करतो… कारण त्यांनी ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ ही भावना मजबूत केली आहे.

मित्रांनो, 2024 मध्ये आपण चित्रपटसृष्टीतील अनेक महान व्यक्तींची 100 वी जयंती साजरी करत आलो आहोत.  या व्यक्तिमत्त्वांनी भारतीय चित्रपटसृष्टीला जागतिक स्तरावर ओळख मिळवून दिली.  राज कपूरजींनी चित्रपटांच्या माध्यमातून, जगाला भारताच्या सॉफ्ट पॉवरची- सुप्तशक्तीची ओळख करून दिली.  रफीसाहेबांच्या आवाजात असलेली जादू  प्रत्येकाच्या हृदयाला भिडणारी होती आणि आहे.  त्यांचा आवाज अप्रतिम होता.  भक्तिगीते असोत की प्रेमगीते असोत….दर्दभरी गाणी असोत, प्रत्येक भावना त्यांनी आपल्या आवाजाने जिवंत केली. कलाकार म्हणून त्यांची महत्ता किती आहे, हे आजही तरुण पिढी त्यांची गाणी तितक्याच तन्मयतेने ऐकते , यावरून समजते- हीच कालातीत कलेची ओळख आहे.  अक्किनेनी नागेश्वर राव गारू यांनी तेलुगू सिनेमाला नव्या उंचीवर नेले आहे.  त्यांच्या चित्रपटांनी भारतीय परंपरा आणि मूल्ये उत्तम प्रकारे मांडली.  तपन सिन्हाजी यांच्या चित्रपटांनी समाजाला एक नवी दृष्टी दिली.  त्यांच्या चित्रपटांमध्ये सामाजिक जाणिवा आणि राष्ट्रीय एकात्मतेचा संदेश होता. आपल्या संपूर्ण चित्रपटसृष्टीसाठी या वलयांकित मान्यवरांचे जीवन म्हणजे एक प्रेरणा आहे.

मित्रांनो, मला तुम्हाला आणखी एक आनंदाची बातमी द्यायची आहे.  भारताची सर्जनशील प्रतिभा जगासमोर दाखवण्याची मोठी संधी येत आहे.  पुढील वर्षी, वर्ल्ड ऑडिओ व्हिज्युअल एंटरटेनमेंट समिट म्हणजेच WAVES, ही  जागतिक ध्वनी चित्र करमणूक परिषद, आपल्या देशात प्रथमच आयोजित करण्यात येणार आहे.  तुम्ही सर्वांनी दावोसबद्दल ऐकले असेल जिथे जगातील अर्थविश्वातले रथीमहारथी  एकत्र येतात.  त्याचप्रमाणे, WAVES समिटमध्ये जगातील माध्यम आणि मनोरंजन उद्योगातील दिग्गज आणि सर्जनशील जगतातील लोक भारतात येणार आहेत.  भारताला जागतिक आशयघन करमणूक निर्मितीचे केंद्र बनवण्याच्या दिशेने ही  परिषद एक महत्त्वपूर्ण पाऊल आहे.  मला सांगायला अभिमान वाटतो की, या शिखरपरिषदेच्या तयारीत आपल्या देशातील तरुण निर्मातेही उत्साहाने सहभागी होत आहेत.  आपण 5 ट्रिलियन अर्थात पाच लाख कोटी डॉलरच्या अर्थव्यवस्थेकडे वाटचाल करत असताना आपली निर्मिती अर्थव्यवस्था एक नवीन ऊर्जा घेऊन येत आहे.  मी भारतातील संपूर्ण मनोरंजन आणि सर्जनशील उद्योगांना विनंती करेन - तुम्ही एक नवोदीत निर्मिक असाल किंवा प्रस्थापित कलाकार, बॉलीवूडशी संबंधित असाल किंवा प्रादेशिक चित्रपटकर्मी असाल, दूरचित्रवाणी उद्योगातील व्यावसायिक असाल किंवा ॲनिमेशनतज्ञ असाल, गेमिंग कर्ते असाल किंवा मनोरंजन तंत्रज्ञानातील नवोन्मेषक…..तुम्ही सर्व WAVES परिषदेचा एक भाग व्हा.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो, आज जगाच्या कानाकोपऱ्यात भारतीय संस्कृतीचे तेज कसे पसरत आहे हे तुम्हा सर्वांना माहीत आहे.  आज मी तुम्हाला तीन खंडांमध्ये सुरू असलेल्या अशा प्रयत्नांबद्दल सांगेन, जे आपल्या सांस्कृतिक वारशाच्या जागतिक विस्ताराचे साक्षीदार आहेत.  ते सर्व एकमेकांपासून मैलो न मैल दूर आहेत.  पण भारताला जाणून घेण्याची आणि आपल्या संस्कृतीतून काही शिकण्याचा त्यांचा ध्यास,  एकसमान आहे.

मित्रांनो, चित्रांचे जग जितके रंगांनी भरलेले आहे तितकेच ते सुंदर आहे.  तुमच्यापैकी जे दूरचित्रवाणी-टीव्हीच्या माध्यमातून 'मन की बात' पाहत आहेत,  ते आता टीव्हीवर काही चित्रेही पाहू शकतात.  या चित्रांमध्ये आमचे देव-देवी, नृत्यकला आणि महान व्यक्तिमत्त्वे पाहून तुम्हाला खूप बरे वाटेल.  यामध्ये तुम्हाला भारतात आढळणाऱ्या प्राणीमात्रांसोबत आणखी बरेच काही  पाहायला मिळेल.  यामध्ये, एका 13 वर्षाच्या मुलीने काढलेल्या ताजमहालच्या भव्य चित्राचाही समावेश आहे. तुम्हाला हे जाणून  आश्चर्य वाटेल की या दिव्यांग मुलीने स्वतःच्या तोंडाच्या मदतीने हे चित्र काढले आहे. बरं… सर्वात मनोरंजक बाब म्हणजे ही चित्र काढणारे विद्यार्थी, भारतातील नसून इजिप्तमधील आहेत.  काही आठवड्यांपूर्वी, इजिप्तमधील सुमारे 23 हजार विद्यार्थ्यांनी चित्रकला स्पर्धेत भाग घेतला होता.  तिथे त्यांना भारताची संस्कृती आणि दोन्ही देशांमधील ऐतिहासिक संबंध दाखवणारी चित्रे  काढायची होती.  या स्पर्धेत सहभागी झालेल्या सर्व तरुणाईचे मी कौतुक करतो.  त्याच्या सर्जनशीलतेची कितीही प्रशंसा केली तरी ती कमीच आहे.

मित्रांनो, पॅराग्वे हा दक्षिण अमेरिकेतील एक देश आहे.  तिथे राहणाऱ्या भारतीयांची संख्या एक हजारापेक्षा जास्त नाही.  पॅराग्वेमध्ये एक अनोखा उपक्रम होत आहे.  एरिका ह्युबर तिथल्या भारतीय दूतावासात मोफत आयुर्वेद सल्ला देत असतात.  आज, स्थानिक लोकही त्यांच्याकडे आयुर्वेदिक सल्ला घेण्यासाठी मोठ्या संख्येने लोटत आहेत.  एरिका ह्युबर यांनी अभियांत्रिकीचे शिक्षण घेतले असले, तरी त्यांचे मन मात्र आयुर्वेदातच रमते. त्यांनी आयुर्वेदाशी संबंधित अभ्यासक्रम शिकून पूर्ण केले  आणि काळानुरूप त्या, त्यामध्ये पारंगत होत गेल्या.

मित्रांनो, ही आपल्यासाठी खूप अभिमानास्पद बाब आहे की जगातील सर्वात जुनी भाषा तामिळ आहे आणि प्रत्येक भारतीयाला तिचा अभिमान आहे.  जगभरातील देशांमध्ये तामिळ शिकणाऱ्या लोकांची संख्या सातत्याने वाढत आहे.  गेल्या महिन्याच्या अखेरीस, भारत सरकारच्या मदतीने फिजीमध्ये, तामिळ अध्यापन कार्यक्रम सुरू झाला.  फिजीमध्ये तामिळच्या प्रशिक्षित शिक्षकांनी ही भाषा शिकवण्याची, गेल्या 80 वर्षांतील ही पहिलीच वेळ आहे.  आज फिजीचे विद्यार्थी तामिळ भाषा आणि संस्कृती शिकण्यात खूप रस घेत आहेत हे जाणून मला आनंद झाला.

मित्रांनो, या गोष्टी, या घटना या केवळ यशोगाथाच नाहीत.  या आपल्या सांस्कृतिक वारशाच्याही गाथा आहेत. या अशा उदाहरणांमुळे, आपला ऊर अभिमानाने भरून येतो.  कलेपासून आयुर्वेदापर्यंत आणि भाषेपासून संगीतापर्यंत, भारतात असे बरेच काही आहे जे संपूर्ण जगाला व्यापून उरत आहे.

मित्रांनो,  हिवाळ्याच्या या ऋतूमध्ये देशभरात खेळ आणि तंदुरुस्ती संबंधी अनेक उपक्रम हाती घेण्यात आले आहेत.  मला आनंद आहे की लोक तंदुरुस्तीला  आपल्या दिनचर्येचा भाग बनवत आहेत .  काश्मीरमधील स्कीईंग पासून ते गुजरातमधील पतंग महोत्सवापर्यंत, सगळीकडे खेळाचा  उत्साह पहायला मिळत आहे. #SundayOnCycle आणि #CyclingTuesday यासारख्या अभियानांमुळे सायकल चालवण्याला प्रोत्साहन मिळत आहे.

मित्रांनो, आता मी तुम्हाला एक अशी अनोखी गोष्ट सांगणार आहे जी आपल्या देशात होत असलेले परिवर्तन आणि युवा मित्रांच्या उत्साह आणि आवड यांचे  प्रतीक आहे.  तुम्हाला माहित आहे का, आपल्या बस्तर मध्ये एक अनोखे ऑलिंपिक सुरू झाले आहे.  हो,  प्रथमच पार पडलेल्या बस्तर ऑलिंपिकमुळे बस्तर मध्ये एक नवीन क्रांती उदयाला येत आहे.  माझ्यासाठी ही खूप आनंदाची गोष्ट आहे की बस्तर ऑलिंपिकचे  स्वप्न साकार झाले आहे.  तुम्हाला देखील हे ऐकून आनंद होईल की, 

हे त्या भागात होत आहे, जो कधीकाळी  माओवादी हिंसेचा साक्षीदार होता. बस्तर ऑलिंपिकचा शुभंकर आहे-  'जंगली म्हैस आणि डोंगरी मैना . यामध्ये बस्तरच्या समृद्ध संस्कृतीची झलक पहायला मिळते.

या बस्तर क्रीडा महाकुंभचा मूलमंत्र आहे -

‘करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर’ म्हणजेच

‘खेळेल बस्तर – जिंकेल  बस्तर’ .

पहिल्यांदाच बस्तर ऑलिंपिक मध्ये सात जिल्ह्यांमधून एक लाख 65 हजार खेळाडूंनी भाग घेतला आहे . हा केवळ एक आकडा नाही , ही आपल्या युवकांच्या संकल्पाची  गौरव गाथा आहे . ऍथलेटिक्स , तिरंदाजी,  बॅडमिंटन , फुटबॉल,  हॉकी , वेटलिफ्टिंग,  कराटे , कबड्डी,  खो-खो आणि व्हॉलीबॉल प्रत्येक क्रीडा प्रकारात  आपल्या युवकांनी आपल्या प्रतिभेची छाप पाडली  आहे.  कारी कश्यप  यांची कहाणी मला खूप प्रेरित करते.  एका छोट्याशा गावामधून आलेल्या  कारीजी यांनी तिरंदाजीमध्ये रौप्य पदक जिंकले आहे.  त्या सांगतात, "बस्तर ऑलिंपिकने आम्हाला केवळ खेळण्याचे मैदानच दिले नाही तर आयुष्यात पुढे जाण्याची संधी दिली आहे. "  सुकमाच्या पायल कवासी यांचीही गोष्ट काही कमी प्रेरणादायक नाही.  भालाफेक मध्ये सुवर्णपदक जिंकणाऱ्या पायल जी सांगतात "शिस्त  आणि कठोर परिश्रमाने कोणतेही लक्ष्य  अशक्य रहात नाही. "  सुकमाच्या दोरनापाल  येथील पूनम सन्ना यांची कहाणी तर नवीन भारताची प्रेरणादायी कथा आहे.  एकेकाळी नक्षली प्रभावात आलेल्या पुनमजी  आज व्हीलचेअर  वरून धावून पदक जिंकत आहेत.  त्यांचे साहस  आणि जिद्द  प्रत्येकासाठी प्रेरणा आहे . कोडागावच्या तिरंदाज रंजू सोरीजी यांना 'बस्तर युथ आयकॉन'  म्हणून निवडवण्यात आले आहे.  त्यांचं म्हणणं आहे,  बस्तर ऑलिंपिक दुर्गम भागातील युवकांना राष्ट्रीय व्यासपीठापर्यंत  पोहोचण्याची संधी देत आहे.

मित्रांनो,  बस्तर ऑलिंपिक हे केवळ क्रीडास्पर्धेचे  आयोजन नाही.  हा एक असा मंच आहे जिथे विकास आणि खेळाचा संगम होत आहे.  जिथे आपले युवक आपली प्रतिभा विकसित करत आहेत आणि एका नव्या भारताची निर्मिती करत आहेत.  मी तुम्हा सर्वांना आवाहन करतो,

-आपापल्या भागात अशा क्रीडा स्पर्धांच्या आयोजनाला प्रोत्साहन द्या

-#खेलेगा भारत – जीतेगा भारत या हॅशटॅग सह  आपल्या भागातील गुणवंत खेळाडूंच्या कथा सामायिक करा

-स्थानिक गुणवंत खेळाडूंना पुढे जाण्याची संधी द्या.

लक्षात ठेवा,  खेळामुळे केवळ शारीरिक विकास होत नाही तर खिलाडूवृत्तीने  समाजाला जोडण्याचे देखील हे एक सशक्त माध्यम आहे.  तर खूप खेळा आणि खूप विकास करा.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो,  भारताच्या दोन मोठ्या उपलब्धी  आज जगाचे लक्ष आकर्षित करत आहेत .  हे ऐकून तुम्हाला देखील अभिमान वाटेल.  या दोन्ही उपलब्धी आरोग्य  क्षेत्राशी निगडित आहेत. पहिले यश मिळाले  आहे , मलेरिया विरुद्ध लढाईत. मलेरिया हा आजार 4000 वर्षांपासून मानवतेसाठी एक मोठे आव्हान राहिला आहे.  स्वातंत्र्याच्या काळातही हे आपल्या सर्वात मोठ्या आरोग्य विषयक आव्हानांपैकी एक होते. एक महिन्यापासून ते पाच वर्षापर्यंतच्या मुलांसाठी जीवघेण्या अशा सर्व संसर्गजन्य आजारांमध्ये मलेरिया तिसऱ्या स्थानी आहे . आज मी समाधानाने म्हणू शकतो की देशवासियांनी मिळून या आव्हानाचा अतिशय निर्धाराने सामना केला आहे.  जागतिक आरोग्य संघटना - डब्ल्यू एच ओ च्या अहवालात म्हटले आहे ,  भारतात 2015  ते 2023 दरम्यान  मलेरियाचे रुग्ण आणि त्यामुळे होणाऱ्या मृत्यूमध्ये 80 टक्क्यांची घट झाली आहे . हे काही सामान्य यश नाही.  सर्वात सुखद गोष्ट ही आहे,

हे यश लोकांच्या सहभागातून मिळालं  आहे . भारताच्या कानाकोपऱ्यातून,  प्रत्येक जिल्ह्यातून प्रत्येक जण या अभियानाचा भाग बनला आहे.  आसाममधील जोरहाटच्या चहाच्या मळ्यांमध्ये मलेरिया चार वर्षांपूर्वी लोकांसाठी चिंतेचे  मोठं कारण बनला होता.  मात्र जेव्हा याच्या निर्मूलनासाठी चहाच्या मळ्यात राहणारे एकजूट झाले,  तेव्हा यात  बऱ्याच प्रमाणात यश मिळू लागले.  आपल्या या प्रयत्नांमध्ये त्यांनी तंत्रज्ञानासह सोशल मीडियाचा देखील भरपूर वापर केला आहे . अशाच प्रकारे हरियाणाच्या कुरुक्षेत्र जिल्ह्याने देखील मलेरियावरील नियंत्रणासाठी खूप चांगलं मॉडेल सादर केलं आहे.  इथे मलेरियाच्या देखरेखीसाठी लोक सहभाग खूप यशस्वी ठरला आहे.  पथनाट्य आणि रेडिओच्या माध्यमातून अशा संदेशांवर भर देण्यात आला ज्यामुळे  डासांची पैदास कमी करण्यास मोठी मदत मिळाली आहे.  देशभरात अशा प्रयत्नांमुळे आपण मलेरिया विरुद्ध लढाईला अधिक वेगाने  पुढे नेऊ  शकलो आहोत .

मित्रांनो,  आपली जागरूकता आणि संकल्प शक्तीने आपण काय साध्य करू शकतो याचे दुसरे उदाहरण आहे,  कर्करोग  विरोधातली लढाई . जगातील प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लान्सेट च्या  अभ्यासानं मोठी आशा निर्माण केली आहे.  या जर्नलनुसार आता भारतात वेळेवर कर्करोगावरील उपचार सुरू होण्याची शक्यता वाढली आहे.  वेळेवर उपचाराचा अर्थ - कर्करोग रुग्णावरील उपचार 30 दिवसांच्या आत सुरू होणे  आणि यात मोठी भूमिका पार पाडली आहे आयुष्मान भारत योजनेने. या योजनेमुळे कर्करोगाचे 90% रुग्ण वेळेवर आपले उपचार सुरू करू शकले आहेत . असे यामुळे झाले आहे कारण आधी पैशांच्या अभावी गरीब रुग्ण कर्करोगाची चाचणी, त्यावरील उपचार करण्यासाठी पुढे येत नव्हते. आता आयुष्यमान भारत योजना त्यांच्यासाठी मोठा दिलासा बनली आहे. आता ते स्वतःहून आपले उपचार करण्यासाठी पुढे येत आहेत.

'आयुष्मान भारत योजनेने' …कर्करोगावरील उपचारात येणारी पैशांची  समस्या मोठ्या प्रमाणात कमी केली आहे . आणि हे देखील आहे की आज वेळेवर कर्करोगावरील उपचाराबाबत लोक पूर्वीपेक्षा अधिक जागरूक बनले आहेत. हे  यश जेवढं आपल्या आरोग्य सेवा यंत्रणेचं  आहे , डॉक्टर,  परिचारिका आणि तांत्रिक कर्मचाऱ्यांचे आहे तेवढेच तुमचं माझ्या  सर्व नागरिक बंधू-भगिनींचे देखील आहे.  सर्वांच्या प्रयत्नातून कर्करोगावर मात करण्याचा संकल्प अधिक मजबूत झाला आहे.  या यशाचे श्रेय त्या सर्वांना जातं, ज्यांनी जागरूकता निर्माण करण्यात आपलं महत्वपूर्ण योगदान दिलं  आहे.

कर्करोगाचा सामना करण्यासाठी  एकच मंत्र आहे-  जागरूकता,  कृती आणि हमी . जागरूकता म्हणजे कर्करोग आणि त्याच्या लक्षणांप्रती जागरूकता,  कृती म्हणजे वेळेवर तपासणी आणि उपचार,  हमी म्हणजे रुग्णांसाठी सर्वतोपरी मदत उपलब्ध होण्याचा विश्वास.  चला आपण सर्व मिळून कर्करोगा विरुद्धच्या या लढाईला अधिक वेगाने पुढे घेऊन जाऊ आणि जास्तीत जास्त रुग्णांची मदत करू.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो , आज मी तुम्हाला ओडिशाच्या कालाहंडी येथील एका प्रयत्नाबाबत सांगू इच्छितो , जे कमी पाणी आणि कमी संसाधनांमध्ये देखील यशाची नवीन कहाणी लिहीत आहे.  ती आहे काला हंडीची 'भाजी क्रांती' .  जिथे कधीकाळी शेतकरी पलायन करण्यासाठी प्रवृत्त झाले होते तेच आज कालाहंडीचा गोलामुंडा तालुका एक भाजी केंद्र बनला  आहे.  हे परिवर्तन कसं घडलं ? याची सुरुवात केवळ दहा शेतकऱ्यांच्या एका छोट्या समूहापासून झाली. या समूहाने मिळून एक एफपीओ शेतकरी उत्पादन संघटना स्थापन केली.  शेतीमध्ये आधुनिक तंत्रज्ञानाचा वापर सुरू केला आणि आज त्यांची ही शेतकरी उत्पादक संघटना कोट्यवधींचा व्यवसाय करत आहे.

आज दोनशेहून अधिक.. शेतकरी या एफपीओशी  जोडलेले आहेत , ज्यामध्ये 45 महिला शेतकरी देखील आहेत .  हे लोक एकत्रितपणे  200 एकर मध्ये टोमॅटोची शेती करत आहेत,  दीडशे एकरमध्ये कारल्याचे पीक घेत आहेत.  आता या एफपीओची  वार्षिक उलाढाल देखील दीड कोटीहून अधिक झाली आहे.  आज कालाहंडीच्या भाज्या केवळ ओडिशाच्या विविध जिल्ह्यांमध्ये नाही तर अन्य राज्यांमध्ये देखील पोहोचत आहेत .  आणि तिथला शेतकरी आता बटाटा आणि कांद्याच्या शेतीचे नवीन तंत्रज्ञान  शिकत आहे .

मित्रांनो,  कालाहंडीचे हे  यश आपल्याला शिकवते की संकल्प शक्ती आणि सामूहिक प्रयास यातून काय  साध्य करता येऊ शकते.  मी तुम्हा सर्वांना आवाहन करतो -

-आपापल्या भागात एफपीओ ना  प्रोत्साहन द्या

शेतकरी उत्पादक संघटनांमध्ये सहभागी व्हा आणि त्यांना मजबूत बनवा .

लक्षात ठेवा, छोट्या सुरुवातीमधूनच मोठं  परिवर्तन शक्य आहे . आपल्याला केवळ दृढ संकल्प आणि सांघिक भावनेची गरज आहे .

मित्रांनो, आजच्या मन की बात मध्ये आपण ऐकलं की कसा आपला भारत विविधतेमध्ये एकतेसह पुढे जात आहे . मग ते खेळण्याचे  मैदान असो किंवा विज्ञानाचं क्षेत्र , आरोग्य असो किंवा शिक्षण . प्रत्येक क्षेत्रात भारत नवीन शिखर गाठत  आहे.  आपण एका कुटुंबाप्रमाणे मिळून प्रत्येक आव्हानाचा सामना केला आणि नवीन यश संपादन केलं.  2014 पासून सुरू झालेल्या मन की बातच्या 116 भागांमध्ये मी पाहिलं आहे की मन की बात देशाच्या सामूहिक शक्तीचा एक जिवंत दस्तावेज बनला आहे. तुम्ही सर्वांनी या कार्यक्रमाला आपलंसं केलं , आपलं केलं .

प्रत्येक महिन्यात तुम्ही तुमचे … विचार आणि प्रयत्नांबाबत माहिती दिली. कधी एखाद्या युवा  नवोन्मेषकाच्या  कल्पनेने प्रभावित केलं तर कधी एखाद्या मुलीच्या यशाने गौरवान्वित केलं. हा तुम्हा सर्वांचा सहभाग आहे जो देशाच्या कानाकोपऱ्यातून सकारात्मक ऊर्जा एकत्र आणत आहे.  मन की बात याच सकारात्मक ऊर्जेच्या विस्ताराचा मंच बनला  आहे आणि आता 2025 जवळ येऊन ठेपले आहे.  नव्या वर्षात  मन की बातच्या  माध्यमातून आपण आणखी प्रेरणादायी प्रयत्न सामायिक करू.  मला विश्वास आहे की देशवासीयांचे सकारात्मक विचार आणि नवोन्मेषाच्या  भावनेने भारत नवीन उंची गाठेल.  तुम्ही तुमच्या आसपासचे  वैशिष्ट्यपूर्ण प्रयत्न  मन की बात बरोबर सामायिक करत रहा . मला माहित आहे की पुढल्या वर्षीच्या प्रत्येक मन की बातमध्ये आपल्याकडे एकमेकांबरोबर सामायिक करण्यासाठी खूप काही असेल.  तुम्हा सर्वांना 2025 च्या अनेक अनेक शुभेच्छा.  निरोगी रहा , आनंदी रहा , फिट इंडिया चळवळीत तुम्ही देखील सहभागी व्हा , स्वतःला तंदुरुस्त ठेवा, जीवनात प्रगती करत रहा, खूप खूप धन्यवाद !