सर जगन्‍नाथ जी, मारीशस सरकार के मंत्रीपरिषद के सभी महानुभाव, सभी वरिष्‍ठ नागरिक भाईयों और बहनों,

सर जगन्‍नाथ जी ने कहा कि छोटे भारत में भारत के प्रधानमंत्री का स्‍वागत करता हूं। ये लघू भारत शब्‍द सूनते ही पूरे तन मन में एक वाइब्रेशन की अनुभूति होती है, एक अपनेपन की अनुभूति होती है। एक प्रकार से 1.2 मिलियन के देश को 1.2 बिलियन का देश गले लगाने आया है। ये अपने आप में हमारी सांस्‍कृतिक विरासत है। हम कल्‍पना कर सकते हैं कि सौ डेढ़ सौ साल पहले हमारे पूर्वज यहां श्रमिक के रूप में आए और साथ में तुलसीदासकृत रामायण, हनुमान चालीसा और हिंदी भाषा को ले करके आए। इन सौ डेढ़ सौ साल में अगर ये तीन चीज़ें न होती और बाकी सब होता, तो आप कहां होते और मैं कहां होता, इसका हम अंदाज कर सकते हैं। इसे हमने बचाए भी रखा है, बनाए भी रखा है और जोड़ करके भी रखा है।

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1975 में, जब नागपुर में विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन हुआ तब श्री शिवसागर जी वहां आए थे और आपने उस समय प्रस्‍ताव रखा था, एक विश्‍व हिंदी सचिवालय होना चाहिए। 1975 में इस विचार को स्‍वीकार किया गया था, लेकिन उस बात को आगे बढ़ते-बढ़ते सालों बीत गए। और मैं मानता हूं कि आज विश्‍व सचिवालय की एक नई इमारत का शिलान्‍यास हो रहा है, तो उसकी खुशी विश्‍वभर में फैले हिंदी प्रेमियों को तो होगी ही होगी, लेकिन मुझे विश्‍वास है कि सर शिवसागर जी जहां कहीं भी होंगे, उनको अति प्रसन्‍नता होगी कि उनके सपनों का यह काम आज साकार हो रहा है।

जब अटल जी की सरकार थी तो 1975 के विचार को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास हुआ। डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी यहां आए थे। फिर बाद में गाड़ी में रूकावट आ गई और शायद ये काम मेरे ही भाग्‍य में लिखा था। लेकिन मैं चाहूंगा कि अब ज्‍यादा देर न हो। आज जिसकी शुरूआत हो, अभी तय कर लें कि इतनी तारीख को उसका उद्घाटन हो जाए।

मॉरीशस ने हिंदी साहित्‍य की बहुत बड़ी सेवा की है। बहुत से सार्क देशों में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम रहा है। अनेक भाषा भाषी लोगों ने हिंदी भाषा को सीखा है। दूनिया की अनेक युनिवर्सिटीज़ में हिंदी सिखाई जाती है। कई पुस्‍तकों का हिंदी में अनुवाद हुआ है। कई भाषाओं की किताबों का अनुवाद हुआ है। लेकिन जैसे मूर्धन्‍य साहित्‍यकार दिनकर जी कहते थे कि मॉरीशस अकेला एक ऐसा देश है जिसका, उसका अपना हिेंदी साहित्‍य है। ये मैं मानता हूं, बहुत बड़ी बात है।

अभी 2015 का प्रवासी भारतीय दिवस हुआ। इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस में कार्यक्रम रखा गया था कि प्रवासी भारतीयों के द्वारा जो साहित्‍य सर्जन हुआ है, उसकी एक प्रदर्शनी लगाई जाए। दूनियाभर में फैले हुए भारतीयों ने जो कुछ भी रचनाएं की हैं, अलग-अलग भाषा में की हैं, उसकी प्रदर्शनी थी। और मैं आज गर्व से कहता हूं कि विश्‍वभर में फैले हुए भारतीयों के द्वारा लिखे गए साहित्‍य की इस प्रदर्शनी में डेढ़ सौ से ज्‍यादा पुस्‍तकें मॉरीशस की थीं। यानि यहां पर हिंदी भाषा को इतना प्‍यार किया गया है, उसका इतना लालन-पालन किया गया है, उसको इतना दुलार मिला है, शायद कभी कभी हिंदुस्‍तान के भी कुछ इलाके होंगे जहां इतना दुलार नहीं मिला होगा जितना मॉरीशस में मिला है।

भाषा की अपनी एक ताकत होती है। भाषा भाव की अभिव्‍यक्ति का एक माध्‍यम होता है। जब व्‍यक्ति अपनी भाषा में कोई बात करता है, तब वो दिमाग से नहीं निकलती है, दिल से निकलती है। किसी और भाषा में जब बात की जाती है तो पहले विचार, दिमाग में ट्रांसलेशन चलता है और फिर प्रकट होता है। सही शब्‍द का चयन करने के लिए दिमाग पूरी डिक्‍शनरी छान मारता है और फिर प्रकट होता है। लेकिन, अपनी भाषा भाव की अभिव्‍यक्ति का बहुत बड़ा माध्‍यम होती है। जयशंकर राय ने कहा था कि मारीशस की हिंदी.. ये श्रमिकों की भक्ति का जीता जागता सबूत है। ये जयशंकर राय ने कहा था।

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और मैं मानता हूं कि मॉरीशस में जो हिंदी साहित्‍य लिखा गया है, वो कलम से निकलने वाली स्‍याही से नहीं लिखा गया है। मॉरीशस में जो साहित्‍य लिखा गया है, उस कलम से, श्रमिकों की पसीने की बूंद से लिखा गया है। मॉरीशस जो हिंदी साहित्‍य है, उसमें यहां के पसीने की महक है। और वो महक आने वाले दिनों में साहित्‍य को और नया सामर्थ्‍य देगी। और जैसा मैंने कहा कि भाव की अभिव्‍यक्ति .. हर भाषा का भाषातंर संभव नहीं होता है। और भाव का तो असंभव होता है।

जैसे हमारे यहां कहा गया है- "राधिका तूने बांसूरी चुराई।" अब यहां बैठे हुए जो लोग भी हिंदी भाषा को जानते हैं, उन्‍हें पूरी समझ है कि मैं क्‍या कह रहा हूं। “राधिके तूने बांसूरी चुराई।“ लेकिन यही बात बहुत बढिया अंग्रेजी़ में मैं ट्रांसलेट करके कहूंगा तो ये कहूंगा कि “Radhika has stolen the flute. Go to police station and report.” भाषा भाव की अभिव्‍यक्ति का एक बहुत बड़ा माध्‍यम होता है। भाषा से अभिव्‍यक्‍त होने वाले भाव सामर्थ्‍य भी देते हैं। हम हमारे प्रधानमंत्री श्री अनिरूद्ध जगन्‍नाथ जी को जानते हैं। नाम भी बोलते हैं लेकिन हमें पता नहीं होगा शायद कि जगन्‍नाथ में से ही अंग्रेजी डिक्‍शनरी में एक शब्‍द आया है और मूल शब्‍द वो जगन्‍नाथ का है.. और अंगेज़ी में शब्‍द आया है- Juggernaut. यानी ऐसा स्रोत,ऐसी शक्ति का स्रोत जिसे रोका नहीं जा सकता। इस के लिए और अंगेज़ी में शब्‍द आया है- Juggernaut. ये जगन्‍नाथ से गया है।

क्योंकि जब पुरी में जगन्‍नाथ जी यात्रा निकलती है और जो दृश्‍य होता है, उसमें जो शब्‍द वहां पहुंचा है। मैं एक बार Russia के उस क्षेत्र में गया जो हिंदूस्‍तान से सटा हुआ है। वहां के लोगों को tea शब्‍द पता नहीं है लेकिन चाय पता है। Door मालूम नहीं लेकिन द्वार पता है। कभी कभार ये भी अवसर होता है।

और मैं चाहूंगा कि ये जो हमारा विश्‍व हिंदी सचिवालय जो बन रहा है, वहां टेक्‍नॉलॉजी का भी भरपूर उपयोग हो। दूनिया की जितनी भाषाओं में हिंदी ने अपनी जगह बनाई है, किसी न किसी रूप में, पिछले दरवाजे से क्‍यों न हो, लेकिन पहूंच गई है, उसको भी कभी खोज कर निकालना चाहिए कि हम किस किस रूप में पहुंचे और क्‍यों स्‍वीकृति हो गई। विश्‍व की कई भाषाओं में हमारी भाषा के शब्‍द पहुंचे हैं। जब ये जानते हैं तो हमें गर्व होता है। ये अपने आप में एक राष्‍ट्रीय स्‍वाभिमान का कारण बन जाता है।

विश्‍व में फैले हुए हिंदी प्रेमियों के लिए ये आज के पल अत्‍यंत शुभ पल हैं। आज 12 मार्च है, जब मॉरीशस अपना राष्‍ट्रीय दिवस मना रहा है। मैं मॉरीशस के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों की सवा सौ करोड़ शुभकामनाएं ले करके आया हूं।

आज का वो दिन है, 12 मार्च,1930, जब महात्‍मा गांधी ने साबरमती के तट से दांडी यात्रा का आरंभ किया था। दांडी यात्रा भारत की आज़ादी के आंदोलन का एक turning point बनी थी। उसी साबरमती के तट से निकला था जिस साबरम‍ती का पानी पीकर मुझे भी तो बड़े होने का सौभाग्‍य मिला है। आज उसी 12 मार्च को ये अवसर आया है। महात्‍मा गांधी मॉरीशस आए थे। महात्‍मा गांधी ने मॉरीशस को भरपूर प्‍यार दिया था। सौ साल पहल.. महात्‍मा गांधी से जिनको बहुत प्रेम रहता था, एसे मणिलाल डॉ.. सौ वर्ष पूर्व उन्‍होंने यहां पर हिंदी अख़बार शुरू किया था.. हिंदुस्‍तानी। उस अख़बार की यह विशेषता थी.. कि अभी भी जब कुछ लोग भाषाओं के झगड़े करते हैं, लेकिन उस डॉ मणिलाल ने महात्‍मा गांधी की प्रेरणा से रास्‍ता निकाला था। वो हिंदुस्‍तानी अखबार ऐसा था जिसमें कुछ पेज गुजराती में छपते थे, कुछ हिंदी में छपते थे और कुछ अंग्रेज़ी में छपते थे और एक प्रकार से three language formula वाला वो अख़बार सौ साल पहले निकलता था।

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लेकिन वो हिंदुस्‍तानी अख़बार मॉरीशस के लोगों को जोड़ने का एक बहुत बड़ा माध्‍यम बना हुआ था। तो महात्‍मा गांधी के विचारों का प्रभाव उसमें अभिव्यक्त होता था। और स्‍वदेश प्रेम स्‍वदेशी भाषा से उजागर हो जाता है। अपनी भाषा से उजागर होता है। भाषा के बंधनों में बंधन वाले हम लोग नहीं हैं। हम तो वो लोग हैं जो सब भाषाओं के अपने गले लगाना चाहते हैं, क्‍योंकि वही तो समृद्धि का कारण बनता है। अगर अंग्रेजी ने जगन्‍नाथ को गले नहीं लगाया होता तो juggernaut शब्‍द पैदा नहीं होता। और इसलिए, भाषा की सम़द्धि भी बांधने से बंधती नहीं है। एक बगीचे से जब हवा चलती है तो हवा उसकी सुगंध को फैलाती जाती है। भाषा की भी वो ताकत होती है कि वो अपने प्रवाह के साथ सदियों तक नई चेतना, नई उर्जा, नया प्राण प्रसारित करती रहती है।

उस अर्थ में आज मेरे लिए बड़ा गर्व का विषय है कि मॉरीशस की धरती पर विश्‍व हिंदी सचिवालय के नए भवन का निर्माण हो रहा है। भाषा प्रेमियों के लिए, हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए, भारत प्रेमियों के लिए, और महान विरासत जिस भाषा के भीतर नवप‍ल्‍लवित होती रही है, उस महान विरासत के साथ विश्‍व को जोड़ने का जो प्रयास हो रहा है, उसको मैं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। और इस अवसर पर मुझे आपके बीच आने का अवसर मिला उसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं।

बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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The mantra of the Bharatiya Nyaya Sanhita is - Citizen First: PM Modi
December 03, 2024
These Laws signify the end of colonial-era laws: PM Modi
The new criminal laws strengthen the spirit of - "of the people, by the people, for the people," which forms the foundation of democracy: PM Modi
Nyaya Sanhita is woven with the ideals of equality, harmony and social justice: PM Modi
The mantra of the Bharatiya Nyaya Sanhita is - Citizen First: PM Modi

केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी श्रीमान अमित शाह, चंडीगढ़ के प्रशासक श्री गुलाबचंद कटारिया जी, राज्यसभा के मेरे साथी सासंद सतनाम सिंह संधू जी, उपस्थित अन्य जनप्रतिनिधिगण, देवियों और सज्जनों।

चंडीगढ़ आने से लगता है कि अपनों के बीच आ गया हूं। चंडीगढ़ की पहचान शक्ति-स्वरूपा माँ चंडीका नाम से जुड़ी है। माँ चंडी, यानी शक्ति का वह स्वरूप जिससे सत्य और न्याय की स्थापना होती है। यही भावना भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के पूरे प्रारूप का आधार भी है। एक ऐसे समय में जब देश विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, जब संविधान के 75 वर्ष हुए हैं.. तब, संविधान की भावना से प्रेरित भारतीय न्याय संहिता का प्रभाव प्रारंभ होना, उसका प्रभाव में आना, ये एक बहुत बड़ी शुरुआत है। देश के नागरिकों के लिए हमारे संविधान ने जिन आदर्शों की कल्पना की थी, उन्हें पूरा करने की दिशा में ये ठोस प्रयास है। ये कानून कैसे अमल में लाये जाएंगे, अभी मैं इसका Live Demo देख रहा था। और मैं भी यहां सबसे आग्रह करता हूं कि समय निकालकर के इस Live Demo का जरूर देखें। Law के Students देखें, Bar के साथी देखें, Judiciary के भी साथियों को अगर सुविधा हो, वे भी देखें। मैं इस अवसर पर, सभी देशवासियों को भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता के लागू होने की अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और चंडीगढ़ प्रशासन से जुड़े सबको बधाई देता हूं।

साथियों,

देश की नई न्याय संहिता अपने आपमें जितना समग्र दस्तावेज़ है, इसको बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही व्यापक रही है। इसमें देश के कितने ही महान संविधानविदों और कानूनविदों की मेहनत जुड़ी है। गृह मंत्रालय ने इसे लेकर जनवरी 2020 में सुझाव मांगे थे। इसमें देश के मुख्य न्यायधीशों का सुझाव और मार्गदर्शन रहा। इनमें हाइ-कोर्ट्स के चीफ़ जस्टिसेस उन्होंने भरपूर सहयोग दिया। देश का सुप्रीम कोर्ट, 16 हाइकोर्ट, judicial academies, अनेकों law institutions, सिविल सोसाइटी के लोग, अन्य बुद्धिजीवी....इन सबने वर्षों तक मंथन किया, संवाद किया, अपने अनुभवों को पिरोया, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देश की जरूरतों पर चर्चा की गई। आज़ादी के 7 दशकों में न्याय व्यवस्था के सामने जो challenges आए, उन पर गहन मंथन किया गया। हर कानून का व्यावहारिक पक्ष देखा गया, futuristic parameter पर उसे कसा गया...तब भारतीय न्याय संहिता अपने इस स्वरूप में हमारे सामने आई है। मैं इसके लिए देश के सुप्रीम कोर्ट का, honorable judges का, देश की सभी हाइ-कोर्ट्स का, विशेषकर हरियाणा, पंजाब हाईकोर्ट का मैं विशेष आभार प्रकट करता हूँ। मैं Bar का भी धन्यवाद करता हूँ कि जिन्होंने आगे आकर इस न्याय संहिता की ownership ली है, Bar के सभी साथी बहुत-बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। मुझे भरोसा है, सबके सहयोग से बनी भारत की ये न्याय संहिता भारत की न्याय यात्रा में मील का पत्थर साबित होगी।

साथियों,

हमारे देश ने 1947 में आज़ादी हासिल की थी। आप कल्पना करिए, सदियों की गुलामी के बाद जब हमारा देश आज़ाद हुआ, पीढ़ियों के इंतज़ार के बाद, लक्ष्यावदी लोगों के बलिदानों के बाद, जब आज़ादी की सुबह आई...तब कैसे-कैसे सपने थे, देश में कितना उत्साह था, देशवासियों ने भी सोचा था...अंग्रेज गए हैं, तो अंग्रेजी क़ानूनों से भी मुक्ति मिलेगी। अंग्रेजों के अत्याचार का, उनके शोषण का ज़रिया ये कानून ही तो थे। ये कानून बनाए भी तब गए थे, जब अंग्रेजी सत्ता भारत पर अपना शिकंजा बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। 1857 में और मेरे नौजवान साथियों को मैं कहूंगा- याद रखिए, 1857 में देश का पहला बड़ा स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया। उस 1857 के स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी हुकुमत की जड़े हिला दी थीं, देश के हर कौने में बहुत बड़ी चुनौती पैदा कर दी थी। तब जाकर के, उसके जवाब में, अंग्रेज़ 1860 में, 3 साल के बाद इंडियन पीनल कोड, यानी IPC लेकर आए। फिर कुछ साल बाद इंडियन एविडेंस एक्ट लाया गया। और फिर CRPC का पहला ढांचा अस्तित्व में आया। इन क़ानूनों की सोच और मकसद यही था कि भारतीयों को दंड दिया जाए, गुलाम रखा जाए, और दुर्भाग्य देखिए, आजादी के बाद...दशकों तक हमारे कानून उसी दंड संहिता और penal mindset के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे, मंडराते रहे। और जिनका इस्तेमाल नागरिकों को गुलाम मानकर होता था। समय-समय पर इन क़ानूनों में छोटे-मोटे सुधार करने के प्रयास हुए, लेकिन इनका चरित्र वही बना रहा। आजाद देश में गुलामों के लिए बने कानूनों को क्यों ढोया जाए? ये सवाल ना हमने खुद से पूछा, ना शासन कर रहे लोगों ने इस पर विचार करने की ज़रूरत समझी। गुलामी की इस मानसिकता ने भारत की प्रगति को, भारत की विकास यात्रा को बहुत ज्यादा प्रभावित किया।

साथियों,

देश अब उस colonial माइंडसेट से बाहर निकले, राष्ट्र के सामर्थ्य का प्रयोग राष्ट्र निर्माण में हो....इसके लिए राष्ट्रीय चिंतन आवश्यक था। और इसीलिए, मैंने 15 अगस्त को लालकिले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प देश के सामने रखा था। अब भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता इसके जरिए देश ने उस दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया है। हमारी न्याय संहिता ‘of the people, by the people, for the people' की उस भावना को सशक्त कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार होती है।

साथियों,

न्याय संहिता समानता, समरसता और सामाजिक न्याय के विचारों से बुनी गई है। हम हमेशा से सुनते आए हैं कि, कानून की नज़र में सब बराबर होते हैं। लेकिन, व्यवहारिक सच्चाई कुछ और ही दिखाई देती है। गरीब, कमजोर व्यक्ति कानून के नाम से डरता था। जहां तक संभव होता था, वो कोर्ट-कचहरी और थाने में कदम रखने से डरता था। अब भारतीय न्याय संहिता समाज के इस मनोविज्ञान को बदलने का काम करेगी। उसे भरोसा होगा कि देश का कानून समानता की, equality की गारंटी है। यही...यही सच्चा सामाजिक न्याय है, जिसका भरोसा हमारे संविधान में दिलाया गया है।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता...हर पीड़ित के प्रति संवेदनशीलता से परिपूर्ण है। देश के नागरिकों को इसकी बारीकियों का पता चलना ये भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए मैं चाहूंगा, आज यहां चंडीगढ़ में दिखाए Live Demo को हर राज्य की पुलिस को अपने यहां प्रचारित, प्रसारित करना चाहिए। जैसे शिकायत के 90 दिनों के भीतर पीड़ित को केस की प्रगति से संबंधित जानकारी देनी होगी। ये जानकारी SMS जैसी डिजिटल सेवाओं के जरिए सीधे उस तक पहुंचेगी। पुलिस के काम में बाधा डालने वाले व्यक्ति के खिलाफ एक्शन लेने की व्यवस्था बनाई गई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए न्याय संहिता में एक अलग चैप्टर रखा गया है। वर्क प्लेस पर महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा, घर और समाज में उनके और बच्चों के अधिकार, भारतीय न्याय संहिता ये सुनिश्चित करती है कि कानून पीड़िता के साथ खड़ा हो। इसमें एक और अहम प्रावधान किया गया है। अब महिलाओं के खिलाफ बलात्कार जैसे घृणित अपराधों में पहली हियरिंग से 60 दिन के भीतर चार्ज फ्रेम करने ही होंगे। सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के भीतर-भीतर फैसला भी सुनाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। ये भी तय किया गया है कि किसी केस में 2 बार से अधिक स्थगन, एडजर्नमेंट नहीं लिया जा सकेगा।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है- सिटिज़न फ़र्स्ट! ये कानून नागरिक अधिकारों के protector बन रहे हैं, ‘ease of justice’ का आधार बन रहे हैं। पहले FIR करवाना भी कितना मुश्किल होता था। लेकिन अब ज़ीरो FIR को भी कानूनी रूप दे दिया गया है, अब उसे कहीं से भी केस दर्ज कराने की सहूलियत मिली है। FIR की कॉपी पीड़ित को दी जाए, उसे ये अधिकार दिया गया है। अब आरोपी के ऊपर कोई केस अगर हटाना भी है, तो तभी हटेगा जब पीड़ित की सहमति होगी। अब पुलिस किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से हिरासत में नहीं ले सकेगी। उसके परिजनों को सूचित करना, ये भी न्याय संहिता में अनिवार्य कर दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता का एक और पक्ष है...उसकी मानवीयता, उसकी संवेदनशीलता अब आरोपी को बिना सजा बहुत लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। अब 3 वर्ष से कम सजा वाले अपराध के मामले में गिरफ़्तारी भी हायर अथॉरिटी की सहमति से ही हो सकती है। छोटे अपराधों के लिए अनिवार्य जमानत का प्रावधान भी किया गया है। साधारण अपराधों में सजा की जगह Community Service का विकल्प भी रखा गया है। ये आरोपी को समाज हित में, सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के नए अवसर देगा। First Time Offenders के लिए भी न्याय संहिता बहुत संवेदनशील है। देश के लोगों को ये जानकर भी खुशी होगी कि भारतीय न्याय संहिता के लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों कैदियों को छोड़ा गया है...जो पुराने क़ानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। आप कल्पना कर सकते हैं, एक नई व्यवस्था, नया कानून नागरिक अधिकारों के सशक्तिकरण को कितनी ऊंचाई दे सकता है।

साथियों,

न्याय की पहली कसौटी है- समय से न्याय मिलना। हम सब बोलते और सुनते भी आए हैं- justice delayed, justice denied! इसीलिए, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए देश ने त्वरित न्याय की तरफ बड़ा कदम उठाया है। इसमें जल्दी चार्जशीट फाइल करने और जल्दी फैसला सुनाने को प्राथमिकता दी गई है। किसी भी केस में हर चरण को पूरा करने के लिए समय-सीमा तय की गई है। ये व्यवस्था देश में लागू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं। इसे परिपक्व होने के लिए अभी समय चाहिए। लेकिन, इतने कम अंतराल में ही जो बदलाव हमें दिख रहे हैं, देश के अलग-अलग हिस्सों से जो जानकारियां मिल रही हैं...वे वाकई बहुत संतोष देने वाली हैं, उत्साहजनक है। आप लोग तो यहां भली-भांति जानते हैं, हमारे इस चंडीगढ़ में ही वाहन चोरी, व्हीकल की चोरी करने के एक केस में FIR होने के बाद आरोपी को सिर्फ 2 महीने 11 दिन में अदालत से सजा सुना दी, उसको सजा मिल गई। क्षेत्र में अशांति फैलाने के एक और आरोपी को अदालत ने सिर्फ 20 दिन में पूरी सुनवाई के बाद सजा भी सुना दी। दिल्ली में भी एक केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 60 दिन का समय लगा...आरोपी को 20 साल की सजा सुनाई गई। बिहार के छपरा में भी एक मर्डर केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 14 दिन लगे और आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो गई। ये फैसले दिखाते हैं कि भारतीय न्याय संहिता की ताकत क्या है, उसका प्रभाव क्या है। ये बदलाव दिखाता है कि जब सामान्य नागरिकों के हितों के लिए समर्पित सरकार होती है, जब सरकार ईमानदारी से जनता की तकलीफ़ों को दूर करना चाहती है, तो बदलाव भी होता है, और परिणाम भी आते हैं। मैं चाहूंगा कि देश में इन फैसलों की ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो ताकि हर भारतीय को पता चले कि न्याय के लिए उसकी शक्ति कितनी बढ़ गई है। इससे अपराधियों को भी पता चलेगा कि अब तारीख पर तारीख के दिन लद गए हैं।

साथियों,

नियम या कानून तभी प्रभावी रहते हैं, जब समय के मुताबिक प्रासंगिक हों। आज दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है। अपराध और अपराधियों के तोर-तरीके बदल गए हैं। ऐसे में 19वीं शताब्दी में जड़ें जमाए कोई व्यवस्था कैसे व्यावहारिक हो सकती थी? इसीलिए, हमने इन क़ानूनों को भारतीय बनाने के साथ-साथ आधुनिक भी बनाया है। यहां अभी हमने देखा भी कि अब Digital Evidence को भी कैसे एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में रखा गया है। जांच के दौरान सबूतों से छेड़छाड़ ना हो, इसके लिए पूरे प्रोसेस की वीडियोग्राफी को अनिवार्य किया गया है। नए कानूनों को लागू करने के लिए ई-साक्ष्य, न्याय श्रुति, न्याय सेतु, e-Summon Portal जैसे उपयोगी साधन तैयार किए गए हैं। अब कोर्ट और पुलिस की तरफ से सीधे फोन पर, electronic mediums से सम्मन सर्व किए जा सकते हैं। विटनेस के स्टेटमेंट की audio-video recording भी की जा सकती है। डिजिटल एविडेंस भी अब कोर्ट में मान्य होंगे, वो न्याय का आधार बनेंगे। उदाहरण के तौर पर, चोरी के मामले में फिंगर प्रिंट का मिलान, बलात्कार के मामलों में DNA sample का मिलान, हत्या के केस में पीड़ित को लगी गोली और आरोपी के पास से जब्त की गई बंदूक के साइज़ का मैच....विडियो एविडेंस के साथ ये सब कानूनी आधार बनेंगे।

साथियों,

इससे अपराधी के पकड़े जाने तक अनावश्यक समय बर्बाद नहीं होगा। ये बदलाव देश की सुरक्षा के लिए भी उतने ही जरूरी थे। डिजिटल साक्ष्यों और टेक्नोलॉजी के इंटिग्रेशन से हमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने में भी ज्यादा मदद मिलेगी। अब नए क़ानूनों में आतंकवादी या आतंकी संगठन कानून की जटिलताओं का फायदा नहीं उठा सकेंगे।

साथियों,

नई न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता से हर विभाग की productivity बढ़ेगी और देश की प्रगति को गति मिलेगी। कानूनी अड़चनों के कारण जो भ्रष्टाचार को बल मिलता था, उस पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। ज़्यादातर विदेशी निवेशक पहले भारत में इसलिए निवेश नहीं करना चाहते थे, क्योंकि कोई मुकदमा हुआ तो उसी में वर्षों निकल जाएंगे। जब ये डर खत्म होगा, तो निवेश बढ़ेगा, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

साथियों,

देश का कानून नागरिकों के लिए होता है। इसलिए, कानूनी प्रक्रियाएँ भी पब्लिक की सुविधा के लिए होनी चाहिए। लेकिन, पुरानी व्यवस्था में process ही punishment बन गया था। एक स्वस्थ समाज में कानून का संबल होना चाहिए। लेकिन, IPC में केवल कानून का डर ही एकमात्र तरीका था। वो भी, अपराधी से ज्यादा ईमानदार लोगों को, जो बेचारे विक्टिम हैं, उनको डर रहता था। यहाँ तक की, सड़क पर किसी का एक्सिडेंट हो जाए तो लोग मदद करने से घबराते थे। उन्हें लगता था कि उल्टा वो खुद पुलिस के पचड़े में फंस जाएंगे। लेकिन अब मदद करने वालों को इन परेशानियों से मुक्त कर दिया गया है। इसी तरह, हमने अंग्रेजी शासन के 1500 से ज्यादा कानून, पुराने कानूनों को भी खत्म किया। जब ये कानून खत्म हुये, तब लोगों को हैरानी हुई थी कि क्या देश में ऐसे-ऐसे कानून हम ढ़ो रहे थे, ऐसे-ऐसे कानून बने थे।

साथियों,

हमारे देश में कानून नागरिक सशक्तिकरण का माध्यम बनें, इसके लिए हम सबको अपना नज़रिया व्यापक बनाना चाहिए। ये बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारे यहाँ कुछ क़ानूनों की तो खूब चर्चा हो जाती है। चर्चा होनी भी चाहिए लेकिन, कई अहम कानून हमारे विमर्श से वंचित रह जाते हैं। जैसे, आर्टिकल-370 हटा, इस पर खूब बात हुई। तीन तलाक पर कानून आया, उसकी खूब चर्चा हुई। इन दिनों वक़्फ़ बोर्ड से जुड़े कानून पर बहस चल रही है। हमें चाहिए, हम इतना ही महत्व उन क़ानूनों को भी दें जो नागरिकों की गरिमा और स्वाभिमान बढ़ाने के लिए बने हैं। अब जैसे आज अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस है। देश के दिव्यांग हमारे ही परिवारों के सदस्य हैं। लेकिन, पुराने क़ानूनों में दिव्यांगों को किस कैटेगरी में रखा गया था? दिव्यांगों के लिए ऐसे-ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिन्हें कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता। हमने ही सबसे पहले इस वर्ग को दिव्यांग कहना शुरू किया। उन्हें कमजोर फील कराने वाले शब्दों से छुटकारा दिया। 2016 में हमने Rights of Persons with Disabilities Act लागू करवाया। ये केवल दिव्यांगों से जुड़ा कानून नहीं था। ये समाज को और ज्यादा संवेदनशील बनाने का अभियान भी था। नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी इतने बड़े बदलाव की नींव रखने जा रहा है। इसी तरह, ट्रांसजेंडर्स से जुड़े कानून, Mediation act, GST Act, ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जिन पर सकारात्मक चर्चा आवश्यक है।

साथियों,

किसी भी देश की ताकत उसके नागरिक होते हैं। और, देश का कानून नागरिकों की ताकत होता है। इसीलिए, जब भी कोई बात होती है, तो लोग गर्व से कहते हैं कि- I am a law abiding citizen. कानून के प्रति नागरिकों की ये निष्ठा राष्ट्र की बहुत बड़ी पूंजी होती है। ये पूंजी कम न हो, देशवासियों का विश्वास बिखरे ना...ये हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। इसलिए, मैं चाहता हूं कि हर विभाग, हर एजेंसी, हर अधिकारी और हर पुलिसकर्मी नए प्रावधानों को जाने, उनकी भावना को समझे। विशेष रूप से मैं देश की सभी राज्य सरकारों से अनुरोध करना चाहता हूँ, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता...प्रभावी ढंग से लागू हो, उनका जमीन पर असर दिखे, इसके लिए सभी राज्य सरकारों को सक्रिय होकर काम करना होगा। और मेरा फिर कहना है...नागरिकों को अपने इन अधिकारों की ज्यादा से ज्यादा जानकारी होनी चाहिए। हमें मिलकर इसके लिए प्रयास करना है। क्योंकि, ये जितना प्रभावी तरीके से लागू होंगे, हम देश को उतना ही बेहतर भविष्य दे पाएंगे। ये भविष्य आपके भी और आपके बच्चों का जीवन तय करने वाला है, आपके सर्विस satisfaction को तय करने वाला है। मुझे विश्वास है, हम सब मिलकर इस दिशा में काम करेंगे, राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका बढ़ाएंगे। इसी के साथ, आप सभी को, सभी देशवासियों को एक बार फिर भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूं, और चंडीगढ़ का ये शानदार माहौल, आपका प्यार, आपका उत्साह उसको सलाम करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद!