विशाल संख्या में आए हुए माताओं, बहनों और भाईयों,
आज पानीपत की धरती पर हम एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी की और कदम रख रहे हैं। यह अवसर किस सरकार ने क्या किया और क्या नहीं किया? इसका लेखा-जोखा करने के लिए नहीं है। गलती किसकी थी, गुनाह किसका था? यह आरोप-प्रत्यारोप का वक्त नहीं है। पानीपत की धरती पर यह अवसर हमारी जिम्मेवारियों का एहसास कराने के लिए है। सरकार हो, समाज हो, गांव हो, परिवार हो, मां-बाप हो हर किसी की एक सामूहिक जिम्मेवारी है और जब तक एक समाज के रूप में हम इस समस्या के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, जागरूक नहीं होंगे, तो हम अपना ही नुकसान करेंगे ऐसा नहीं है बल्कि हम आने वाली सदियों तक पीढ़ी दर पीढ़ी एक भंयकर संकट को निमंत्रण दे रहे हैं और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों और मैं इस बात के लिए मेनका जी और उनके विभाग का आभारी हूं कि उन्होंने इस काम के लिए हरियाणा को पसंद किया। मैं मुख्यमंत्री जी का भी अभिनंदन करता हूं कि इस संकट को इन्होंने चुनौती को स्वीकार किया। लेकिन यह कार्यक्रम भले पानीपत की धरती पर होता हो, यह कार्यक्रम भले हरियाणा में होता हो, लेकिन यह संदेश हिंदुस्तान के हर परिवार के लिए है, हर गांव के लिए है, हर राज्य के लिए है।
क्या कभी हमने कल्पना की है जिस प्रकार की समाज के अवस्था हम बना रहे हैं अगर यही चलता रहा तो आने वाले दिनों में हाल क्या होगा? आज भी हमारे देश में एक हजार बालक पैदा हो, तो उसके सामने एक हजार बालिकाएं भी पैदा होनी चाहिए। वरना संसार चक्र नहीं चल सकता। आज पूरे देश में यह चिंता का विषय है। यही आपके हरियाणा में झज्जर जिला देख लीजिए, महेंद्रगढ़ जिला देख लीजिए। एक हजार बालक के सामने पौने आठ सौ बच्चियां हैं। हजार में करीब-करीब सवा दौ सौ बच्चे कुंवारे रहने वाले हैं। मैं जरा माताओं से पूछ रहा हूं अगर बेटी पैदा नहीं होगी, तो बहू कहां से लाओगे? और इसलिए जो हम चाहते हैं वो समाज भी तो चाहता है। हम यह तो चाहते है कि बहू तो हमें पढ़ी-लिखी मिले, लेकिन बेटी को पढ़ाना है तो पास बार सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यह अन्याय कब तक चलेगा, यह हमारी सोच में यह दोगलापन कब तक चलेगा? अगर बहू पढ़ी-लिखी चाहते हैं तो बेटी को भी पढ़ाना यह हमारी जिम्मेवारी बनता है। अगर हम बेटी को नहीं पढ़ाऐंगे, तो बहू भी पढ़ी-लिखी मिले। यह अपेक्षा करना अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय है। और इसलिए भाईयों और बहनों, मैं आज आपके बीच एक बहुत बड़ी पीड़ा लेकर आया हूँ। एक दर्द लेकर आया हूँ। क्या कभी कल्पना की हमने जिस धरती पर मानवता का संदेश होता है, उसी धरती पर मां के गर्भ में बच्ची को मौत के घाट उतार दिया जाए।
यह पानीपत की धरती, यह उर्दू साहित्य के scholar अलताफ हुसैन हाली की धरती है। यह अलताफ हुसैन हाली इसी पानीपत की धरती से इस शायर ने कहा था। मैं समझता हूं जिस हरियाणा में अलताफ हुसैन जैसे शायर के शब्द हो, उस हरियाणा में आज बेटियों का यह हाल देखकर के मन में पीड़ा होती है। हाली ने कहा था....उन्होंने कहा था ए मांओ, बहनों बेटियां दुनिया की जन्नत तुमसे हैं, मुल्कों की बस्ती हो तुम, गांवों की इज्जत तुम से हो। आप कल्पना कर सकते हैं बेटियों के लिए कितनी ऊंची कल्पना यह पानीपत का शायर करता है और हम बेटियों को जन्म देने के लिए भी तैयार नही हैं।
भाईयों और बहनों हमारे यहां सदियों से जब बेटी का जन्म होता था तो शास्त्रों में आर्शीवाद देने की परंपरा थी और हमारे शास्त्रों में बेटी को जो आर्शीवाद दिये जाते थे वो आर्शीवाद आज भी हमें, बेटियों की तरफ किस तरह देखना, उसके लिए हमें संस्कार देते हैं, दिशा देते हैं। हमारे शास्त्रों ने कहा था जब हमारे पूर्वज आर्शीवाद देते थे तो कहते थे – यावद गंगा कुरूक्षेत्रे, यावद तिस्तदी मेदनी, यावद गंगा कुरूक्षेत्रे, यावद तिस्तदी मेदनी, यावद सीताकथा लोके, तावद जीवेतु बालिका। हमारे शास्त्र कहते थे जब तक गंगा का नाम है, जब तक कुरूक्षेत्र की याद है, जब तक हिमालय है, जब तक कथाओं में सीता का नाम है, तब तक हे बालिका तुम्हारा जीवन अमर रहे। यह आर्शीवाद इस धरती पर दिये जाते थे। और उसी धरती पर बेटी को बेमौत मार दिया जाए और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों उसके मूल में हमारा मानसिक दारिद्रय जिम्मेवार है, हमारे मन की बीमारी जिम्मेवार है और यह मन की बीमार क्या है? हम बेटे को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं और यह मानते हैं बेटी तो पराये घर जाने वाली है। यहां जितनी माताएं-बहनें बैठी हैं। सबने यह अनुभव किया होगा यह मानसिक दारिद्रय की अनुभूति परिवार में होती है। मां खुद जब बच्चों को खाना परोसती है। खिचड़ी परोसी गई हो और घी डाल रही हो। तो बेटे को तो दो चम्मच घी डालती है और बेटी को एक चम्मच घी डालती है और जब, मुझे माफ करना भाईयों और बहनों यह बीमारी सिर्फ हरियाणा की नहीं है यह हमारी देश की मानसिक बीमारी का परिणाम है और बेटी को, अगर बेटी कहे न न मम्मी मुझे भी दो चम्मच दे दो, तो मां कहते से डरती नहीं है बोल देती है, अरे तुझे तो पराये घर जाना है, तुझे घी खाकर के क्या करना है। यह कब तक हम यह अपने-पराये की बात करते रहेंगे और इसलिए हम सबका दायित्व है, हम समाज को जगाए।
कभी-कभी जिस बहन के पेट में बच्ची होती है वो कतई नहीं चाहती है कि उसकी बेटी को मार दिया जाए। लेकिन परिवार का दबाव, माहौल, घर का वातावरण उसे यह पाप करने के लिए भागीदार बना देता है, और वो मजबूर होती है। उस पर दबाव डाला जाता है और उसी का नतीजा होता है कि बेटियों को मां के गर्भ में ही मार दिया जाता है। हम किसी भी तरह से अपने आप को 21वीं सदी के नागरिक कहने के अधिकारी नही हैं। हम मानसिकता से 18वीं शताब्दी के नागरिक हैं। जिस 18वीं शताब्दी में बेटी को “दूध-पीती” करने की परंपरा थी। बेटी का जन्म होते ही दूध के भरे बर्तन के अंदर उसे डूबो दिया जाता था, उसे मार दिया जाता था। हम तो उनसे भी गए-बीते हैं, वो तो पाप करते थे गुनाह करते थे। बेटी जन्मती थी आंखे खोलकर के पल-दो-पल के लिए अपनी मां का चेहरा देख सकती थी। बेटी जन्मती थी, दो चार सांस ले पाती थी। बेटी जन्मती थी, दुनिया का एहसास कर सकती थी। बाद में उस मानसिक बीमारी के लोग उसको दूध के बर्तन में डालकर के मार डालते थे। हम तो उनसे भी गए-बीते हैं। हम तो बेटी को मां का चेहरा भी नहीं देखने देते, दो पल सांस भी नहीं लेने देते। इस दुनिया का एहसास भी नहीं होने देते। मां के गर्भ में ही उसे मार देते हैं। इससे बड़ा पाप क्या हो सकता है और हम संवेदनशील नहीं है ऐसा नहीं है।
कुछ साल पहले इसी हरियाणा में कुरूक्षेत्र जिले में हल्दा हेड़ी गांव में एक टयूबवेल में एक बच्चा गिर गया, प्रिंस.. प्रिंस कश्यप । और सारे देश के टीवी वहां मौजूद थे। सेना आई थी एक बच्चे को बचाने के लिए और पूरा हिंदुस्तान टीवी के सामने बैठ गया था। परिवारों में माताएं खाना नहीं पका रही थी। हर पल एक-दूसरे को पूछते थे क्या प्रिंस बच गया, क्या प्रिंस सलामत निकला टयूबवेल में से? करीब 24 घंटे से भी ज्यादा समय हिंदुस्तान की सांसे रूक गई थी। एक प्रिंस.. केरल, तमिलनाडु का कोई रिश्तेदार नहीं था। लेकिन देश की संवेदना जग रही है। उस बच्चे को जिंदा निकले, इसके लिए देशभर की माताएं-बहने दुआएं कर रही थी। मैं जरा पूछना चाहता हूं कि एक प्रिंस जिसकी जिंदगी पर संकट आए, हम बेचैन बन जाते हैं। लेकिन हमारे अड़ोस-पड़ोस में आएं दिन बच्चियों को मां के पेट में मार दिया जाए, लेकिन हमें पीड़ा तक नहीं होती है, तब सवाल उठता है। हमारी संवेदनाओं को क्या हुआ है? और इसलिए आज मैं आपके पास आया हूं। हमें बेटियों को मारने का हक नहीं है।
यह सोच है बुढ़ापे में बेटा काम आता है। इससे बड़ी गलतफहमी किसी को नहीं होनी चाहिए। अगर बुढ़ापे में बेटे काम आए होते तो पिछले 50 साल में जितने वृद्धाश्राम खुले हैं, शायद उतने नहीं खुले होते। बेटो के घर में गाड़ियां हो, बंगले हो, लेकिन बांप को वृद्धाश्राम में रहना पड़ता है ऐसी सैकड़ों घटनाएं है और ऐसी बेटियों की भी घटनाएं है। अगर मां-बाप की इकलौती बेटी है तो मेहनत करे, मजदूरी करे, नौकरी करे, बच्चों को tuition करे लेकिन बूढ़े मां-बाप को कभी भूखा नहीं रहने देती। ऐसी सैकड़ों बेटियां बाप से भी सेवा करने के लिए, मां-बाप की सेवा करने के लिए अपने खुद के सपनों को चूर-चूर कर देने वाली बेटियों की संख्या अनगिनत है और सुखी बेटों के रहते हुए दुःखी मां-बाप की संख्या भी अनगिनत है। और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों यह सोच कि बेटा आपका बुढ़ापा संभालेगा, भूल जाइये। अगर आप अपनी संतानों को सामान रूप से संस्कारित करके बड़े करोगे, तो आपकी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा।
कभी-कभी लगता है कि बेटी तो पराये घर की है। मैं जरा पूछना चाहता हूं सचमुच में यह सही सोच है क्या? अरे बेटी के लिए तो आपका घर पराया होता है जिस घर आप भेजते हो वो पल-दो-पल में उसको अपना बना लेती है। कभी पूछती नहीं है कि मुझे उस गांव में क्यों डाला मुझे उस कुटुम्ब में क्यों डाल दिया? जो भी मिले उसको सर-आंखों पर चढ़ाकर के अपना जीवन वहां खपा देती है और अपने मां-बाप के संस्कारों को उजागर करती है। अच्छा होता है तो कहती है कि मेरी मां ने सिखाया है, अच्छा होता है तो कहती है कि मां-बाप के कारण, मेरे मायके के संस्कार के कारण मैं अच्छा कर रही हूं। बेटी कहीं पर भी जाएं वहां हमेशा आपको गौरव बढ़े, उसी प्रकार का काम करती है।
मैंने कल्पना की, आपने कभी सोचा है यहीं तो हरियाणा की धरती, जहां की बेटी कल्पना चावला पूरा विश्व जिसके नाम पर गर्व करता है। जिस धरती पर कल्पना चावला का जन्म हुआ हो, जिसको को लेकर के पूरा विश्व गर्व करता हो, उसी हरियाणा में मां के पेट में पल रही कल्पना चावलाओं को मार करके हम दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों मैं आप आपसे आग्रह करने आया हूं और यह बात देख लीजिए अगर अवसर मिलता है तो बेटे से बेटियां ज्यादा कमाल करके दिखाती हैं।
आज भी आपके हरियाणा के और हिंदुस्तान के किसी भी राज्य के 10th या 12th के result देख लीजिए। first stand में से छह या सात तो बच्चियां होती है जीतने वाली, बेटों से ज्यादा नंबर लाती है। आप हिंदुस्तान का पूरा education sector देख लीजिए। teachers में 70-75 प्रतिशत महिलाएं शिक्षक के रूप में काम कर रही है। आप health sector देख लीजिए health sector में 60 प्रतिशत से ज्यादा, सूश्रूषा के क्षेत्र में बहनें दिखाई देती है। अरे हमारा agriculture sector, पुरूष सीना तान कर न घूमें कि पुरूषों से ही agriculture sector चलता है। अरे आज भी भारत में agriculture और पशुपालन में महिलाओं की बराबरी की हिस्सेदारी है। वो खेतों में जाकर के मेहनत करती है,वो भी खेती में पूरा contribution करती हैं और खेत में काम करने वाले मर्दों को संभालने का काम भी वही करती है।
पश्चिम के लोग भले ही कहते हों, लेकिन हमारे देश में महिलाओं का सक्रिय contribution आर्थिक वृद्धि में रहता है। खेलकूद में देखिए पिछले दिनों जितने game हुए, उसमें ईनाम पाने वाले अगर लड़के हैं तो 50 प्रतिशत ईनाम पाने वाली लड़कियां है। gold medal लाने वाली लड़कियां है। खेलकूद हो, विज्ञान हो, व्यवसाय हो, सेवा का क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो, आज महिलाएं रत्तीभर भी पीछे नहीं है और यह सामर्थ्य हमारी शक्ति में है। और इसलिए मैं आपसे आग्रह करने आया हूं कि हमें बेटे और बेटी में भेद करने वाली बीमारी से निकल जाना चाहिए। “बेटा-बेटी एक समान” यही हमारा मंत्र होना चाहिए और एक बार हमारे मन में बेटा और बेटी के प्रति एक समानता का भाव होगा तो यह पाप करने की जो प्रवृति है वह अपने आप ही रूक जाएगी। और यह बात, इसके लिए commitment चाहिए, संवेदना चाहिए, जिम्मेवारी चाहिए।
मैं आज आपके सामने एक बात बताना चाहता हूं। यह बात मेरे मन को छू गई। किसी काम के लिए जब commitment होता है, एक दर्द होता है तो इंसान कैसे कदम उठाता है। हमारे बीच माधुरी दीक्षित जी बैठी है। माधुरी नैने। उनकी माताजी ICU में हैं, वो जिंदगी की जंग लड़ रही है और बेटी पानीपत पहुंची है। और मां कहती है कि बेटी यह काम अच्छा है तुम जरूर जाओ। Weather इतना खराब होने के बावजूद भी माधुरी जी अपनी बीमार मां को छोड़कर के आपकी बेटी बचाने के लिए आपके बीच आकर के बैठी है और इसलिए मैं कहता हूं एक commitment चाहिए, एक जिम्मेवारी का एहसास चाहिए और यह एक सामूहिक जिम्मेवारी में साथ है। गांव, पंचायत, परिवार, समाज के लोग इन सबको दायित्व निभाना पड़ेगा और तभी जाकर के हम इस असंतुलन को मिटा सकेंगे। यह रातों-रात मिटने वाला नहीं है। करीब-करीब 50 साल से यह पाप चला है। आने वाले 100 साल तक हमें जागरूक रूप से प्रयास करना पड़ेगा, तब जाकर के शायद स्थिति को हम सुधार पाएंगे। और इसलिए मैंने कहा आज का जो यह पानीपत की धरती पर हम संकल्प कर रहे हैं, यह संकल्प आने वाली सदियों तक पीढि़यों की भलाई करने के लिए है।
भाईयों बहनों आज यहां भारत सरकार की और योजना का भी प्रांरभ हुआ है – सुकुन्या समृद्धि योजना। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं। इसको निरंतर बल देना है और इसलिए उसके लिए सामाजिक सुरक्षा भी चाहिए। यह सुकुन्या समृद्धि योजना के तहत 10 साल से कम उम्र की बेटी एक हजार रुपये से लेकर के डेढ़ रुपये लाख तक उसके मां-बाप पैसे बैंक में जमा कर सकते है और सरकार की तरफ से हिंदुस्तान में किसी भी प्रकार की परंपरा में ब्याज दिया जाता है उससे ज्यादा ब्याज इस बेटी को दिया जाएगा। उसका कभी Income Tax नहीं लगाया जाएगा और बेटी जब 21 साल की होगी, पढ़ाई पूरी होगी या शादी करने जाती होगी तो यह पैसा पूरा का पूरा उसके हाथ में आएगा और वो कभी मां-बाप के लिए बोझ महसूस नहीं होगी।
काशी के लोगों ने मुझे अपना MP बनाया है। वहां एक जयापुर पर गांव है। जयापुर गांव ने मुझे गोद लिया है और वो जयापुर गांव मेरी रखवाली करता है, मेरी चिंता करता है। जयपुर में गया था मैंने उनको कहा था कि हमारे गावं में जब बेटी पैदा हो तो पूरे गांव का एक बड़ा महोत्सव होना चाहिए। आनंद उत्सव होना चाहिए और मैंने प्रार्थना की थी कि बेटी पैदा हो तो पाँच पेड़ बोने चाहिए। मुझे बाद में चिट्ठी आई। मेरे आने के एक-आध महीने बाद कोई एक बेटी जन्म का समाचार आया तो पूरे गांव ने उत्सव मनाया और उतना ही नहीं सब लोगों ने जाकर के पाँच पेड़ लगाए। मैं आपको भी कहता हूं। आपकी बेटी पैदा हो तो पाँच पेड़ लगाएंगे बेटी भी बड़ी होगी, पेड़ भी बड़ा होगा और जब शादी का समय आएगा वो पाँच पेड़ बेच दोगे न तो भी उसकी शादी का खर्चा यूं ही निकल जाएगा।
भाईयों बहनों बड़ी सरलता से समझदारी के साथ इस काम को हमने आगे बढ़ाना है और इसलिए आज मैं हरियाणा की धरती, जहां यह सबसे बड़ी चुनौती है लेकिन हिंदुस्तान का कोई राज्य बाकी नहीं है कि जहां चुनौती नहीं है। और मैं जानता हूं यह दयानंद सरस्वती के संस्कारों से पली धरती है। एक बार हरियाणा के लोग ठान लें तो वे दुनिया को खड़ी करने की ताकत रखते हैं। मुझको बड़ा बनाने में हरियाणा का भी बहुत बड़ा role है। मैं सालों तक आपके बीच रहा हूं। आपके प्यार को भली-भांति में अनुभव करता हूं। आपने मुझे पाला-पोसा, बड़ा किया। मैं आज आपसे कुछ मांगने के लिए आया हूं। देश का प्रधानमंत्री एक भिक्षुक बनकर आपसे बेटियों की जिंदगी की भीख मांग रहा है। बेटियों को अपने परिवार का गर्व मानें, राष्ट्र का सम्मान मानें। आप देखिए यह असंतुलन में से हम बहुत तेजी से बाहर आ सकते हैं। बेटा और बेटी दोनों वो पंख है जीवन की ऊंचाईयों को पाने का उसके बिना कोई संभावना नहीं और इसलिए ऊंची उड़ान भी भरनी है तो सपनों को बेटे और बेटी दोनों पंख चाहिए तभी तो सपने पूरे होंगे और इसलिए मेरे भाईयों और बहनों हम एक जिम्मेवारी के साथ इस काम को निभाएं।
मुझे बताया गया है कि हम सबको शपथ लेना है। आप जहां बैठे है वहीं बैठे रहिये, दोनों हाथ ऊपर कर दीजिए और मैं एक शपथ बोलता हूं मेरे साथ आप शपथ बोलेंगे – “मैं शपथ लेता हूं कि मैं लिंग चयन एवं कन्या भ्रूण हत्या का विरोध करूगा; मैं बेटी के जन्म पर खुश होकर सुरक्षित वातारवण प्रदान करते हुए बेटी को सुशिक्षित करूंगा। मैं समाज में बेटी के प्रति भेदभाव खत्म करूंगा, मैं “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं” का संदेश पूरे समाज में प्रसारित करूंगा।“
भाई बहनों मैं डॉक्टरों से भी एक बात करना चाहता हूं। मैं डॉक्टरों से पूछना चाहता हूं कि पैसे कमाने के लिए यही जगह बची है क्या? और यह पाप के पैसे आपको सुखी करेंगे क्या? अगर डॉक्टर का बेटा कुंवारा रह गया तो आगे चलकर के शैतान बन गया तो वो डॉक्टर के पैसे किस काम आएंगे? मैं डॉक्टरों को पूछना चाहता हूं कि यह आपको दायित्व नहीं है कि आप इस पाप में भागीदार नहीं बनेंगे। डॉक्टरों को अच्छा लगे, बुरा लगे, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि आपकी यह जिम्मेवारी है। आपको डॉक्टर बनाया है समाज ने, आपको पढ़-लिखकर के तैयार किया है। गरीब के पैसों से पलकर के बड़े हुए हो। आपको पढ़ाया गया है किसी की जिंदगी बचाने के लिए, आपको पढ़ाया गया है किसी की पीड़ा को मुक्त करने के लिए। आपको बच्चियों को मारने के लिए शिक्षा नहीं दी गई है। अपने आप को झकझोरिये, 50 बार सोचिए, आपके हाथ निर्दोष बेटियों के खून से रंगने नहीं चाहिए। जब शाम को खाना खाते हो तो उस थाली के सामने देखो। जिस मां ने, जिस पत्नी ने, जिस बहन ने वो खाना बनाया है वो भी तो किसी की बेटी है। अगर वो भी किसी डॉक्टर के हाथ चढ़ गई होती, तो आज आपकी थाली में खाना नहीं होता। आप भी सोचिए कहीं उस मां, बेटी, बहन ने आपके लिए जो खाना बनाया है, कहीं आपके के खून से रंगे हुए हाथ उस खाने की चपाती पर तो हाथ नहीं लगा रहे। जरा अपने आप को पूछिये मेरे डॉक्टर भाईयों और बहनों। यह पाप समाज द्रोह है। यह पाप सदियों की गुनाहगारी है और इसलिए एक सामाजिक दायित्व के तहत है, एक कर्तव्य के तहत और सरकारें किसकी-किसकी नहीं, यह दोषारोपण करने का वक्त नहीं है। हमारा काम है जहां से जग गए हैं, जाग करके सही दिशा में चलना।
मुझे विश्वास है पूरा देश इस संदेश को समझेगा। हम सब मिलकर के देश को भविष्य के संकट से बचाएंगे और फिर एक बार मैं हरियाणा को इतने बड़े विशाल कार्यक्रम के लिए और हरियाणा इस संदेश को उठा लेगा तो हिंदुस्तान तो हरियाणा के पीछे चल पड़ेगा। मैं फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ इस संकल्प को लेकर हम जाएंगे। इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए – भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय।