Text of PM’s address at National Hand-loom Day

Published By : Admin | August 7, 2015 | 16:38 IST
QuoteWe need to make our handloom tradition the centrepiece of fashion for India and the world: PM
QuoteWe should enlarge the scope of e-commerce for sale of handloom products: PM Modi
QuoteGovernment is committed to extend robust social security cover to weaver families: PM
QuoteThe handloom sector has inherent strengths that we need to market: PM
QuoteHandloom can be our weapon against poverty, says PM Modi
QuoteInnovative  design backed by good marketing is essential for promotion of handlooms: PM

वणक्कम्, 

Weaver brothers and sisters Awardees Ladies and Gentlemen 

तमील नाट्टुक्कु वन्ददिल् ।। मीक्क मगील्ची ।

नेशवालअ अन्बरगलै ।। काण्बदिल् ।। मेलूम् मगील्ची


सबसे पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री आदरणीय डॉक्टर जे. जयललिता जी का, Tamil Nadu Government का और तमिलनाडु के नागरिकों का हृदय से अभिनंदन करता हूं कि आपने एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम को एक host के रूप में तमिलनाडु में मनाया। आज राष्ट्रीय Handloom Day का प्रारंभ हो रहा है और तमिलनाडु से हो रहा है सामान्य रूप से सरकार को सब चीज दिल्ली में करने की आदत है, लेकिन मेरी कोशिश है कि सरकार दिल्ली से बाहर निकले और आज पूरी दिल्ली सरकार तमिलनाडु में मौजूद है। 

I congratulate you and extend my best wishes on the occasion of the first National Handloom Day. 

The Swadeshi movement was launched on 7th August, 1905. It is remembered as one of the major events of our freedom struggle. It was on this day that Indians started to boycott imported textiles. Therefore this day has a special significance for handlooms. Hence we have chosen this day to be celebrated as National Handlooms day.

आजादी का जंग जब चल रहा था, उस समय गुलामी से मुक्ति के लिए handloom एक हथियार था। आज आजाद भारत में गरीबी से मुक्ति के लिए handloom एक हथियार बन सकता है।

India is home to several world famous handloom products. To name a few we have Kanchivaram (कांजीवरम) of Tamil Nadu, Baluchari and Jamdani (बालुचारी and जामदानी) of West Bengal, Chanderi and Maheswari (चंदेरी and महेश्वरी) of Madhya Pradesh, Muga (मूगा) of Assam, Patola (पटोला) of Gujarat, Kani and Shehtoosh (कानी and शहतूश) of Jammu and Kashmir and Pochampally (पोचमपल्ली) of Andhra Pradesh. The handloom sector has inherent strengths that we need to market.

Handloom mainly uses natural fiber like cotton, silk, wool, jute etc. Therefore it is Eco-friendly. We can make it even more Eco-friendly by using vegetable dyes and other organic products.

Today people are very conscious of the environment and holistic healthcare. We need to exploit this in marketing handloom products both domestically and for exports. On 2nd October last year, I had asked people to use one item of Khadi to brighten the lives of artisans. I am informed that since then sale of Khadi has gone up by 60% as compared to the same period last year. मैंने पिछली बार, दिवाली से पहले मन की बात में लोगों से प्रार्थना की थी कि आप घर में पच्चीसों प्रकार की fabric रखते हैं। कोई रिश्तेदार आए तो बताते हैं कि मेरे पास ये है, ये है, ये है लेकिन एक खादी नहीं होता है। कम से कम घर में एकाध-एकाध चीज खादी की रखा करिए। इतनी से मेरी request को देशवासियों ने मान लिया और 60 प्रतिशत बिक्री बढ़ गई, गरीब के घर में दीया जला।

We now also need to give a similar call for handlooms. Can we not enhance use of handlooms in our daily lives? We have many options such as clothes curtains bed sheets table covers door mats and rugs just to name a few. This will not only support handlooms but will also support our weavers.

I am told that handlooms form 15% of total cloth consumption. If we raise this to just 20%, from 15% to 20%, it will give a huge boost to handlooms. Handloom turnover will increase by 33%.

People, especially women, wear handloom clothes on social occasions like marriages and major festivals. We need to popularize this among our youth. This will give the much-needed boost to the handloom sector.

मुझे कभी-कभी लगता है कि हम कभी Five Star Hotel में खाएं, Seven Star Hotel में खाना खाएं, लेकिन जब घर में मां के हाथ का खाना मिलता है तो उसका आनंद कुछ और होता है, एक अलग संतोष होता है, क्यों? क्योंकि मां जब खिलाती है, तब सिर्फ खाना नहीं खिलाती है, उसमें भरपूर प्यार भी मिला हुआ होता है और इसके कारण हमें संतोष भी उतना ही मिलता है। मैं कभी-कभी जब खादी या हैंडलूम पर सोचता हूं तो मुझे लगता है कि दुनिया की चाहे कितनी ही variety क्यों न पहन लें, लेकिन जब हैंडलूम या खादी की चीज लगती है, तो ऐसा ही लगता है, जैसे मां ने परोसा है, प्यार से परोसा है, प्यार से बनाया है। ये जो फर्क है, ये जो फर्क हम महसूस करेंगे तब हमें पता चलेगा कि ये कितनी प्यार से बनाई हुई चीज, मेरे शरीर पर मैंने धारण की है।

किसी बुनकर परिवार में हम जाएं, हम देखेंगे कि पूरे घर में 80% जगह, 80% place वो लूम के लिए देते हैं और 20% place में पूरा परिवार गुजारा करता है और जब एक साड़ी लूम की बनती हुई होती है, पांच महीने-छह महीने, एक-एक ताना-बाना का काम होता है, पूरा परिवार उस साड़ी को ऐसे बनाता है जैसे मां अपनी बेटी को बड़ा बना रही हो, जैसे अपनी बेटी का लालन-पालन करती हो, उस रूप में परिवार के अंदर पूरा परिवार, उस साड़ी को बुनता है और जब वो साड़ी घर से विदाई होकर के किसी दुल्हन के शरीर पर जाने वाली होती है, उस परिवार को भी उतनी ही आनंद होता है और वैसे ही उस साड़ी की विदाई करते हैं, जैसे मां-बाप अपनी लाडली की विदाई करते हैं। इतना प्यार उस बुनकर को उन कपड़ों को बुनते-बुनते हो जाता है।

..और बुनकर परिवार जो साड़ी बनाता है उसका इतना लगाव होता है कि 15-20 साल के बाद कोई मिल जाए और पता चले कि उसने वो साड़ी पहनी है, जो उन्होंने बनाई थी, उसे देखकर के उतना उनका मन भर आता है जैसे अपने परिवार का स्वजन मिला हो, इतना लगाव बुनकर को एक ताने और बाने के साथ होता है।



We need to take several initiatives to make handlooms fashionable. This can be done by bringing new designs and colour schemes, constantly evolving and innovating, ensuring quality. Fashion and design education in India also needs to be re-oriented. We need to make our handloom tradition the centerpiece of fashion for India and the world. 

We are committed to give a rightful place to our famous traditional handloom products. India Handloom Brand has been launched with the sole objective of winning the trust and confidence of customers. 

मुझे अभी किसी ने एक किताब दी थी। उस किताब में, दुनिया में हैंडलूम के भिन्न-भिन्न प्रकार, handicraft के भिन्न-भिन्न प्रकार के, किस शताब्दी में क्या-क्या काम होता है। दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों के.. उन्होंने बड़ी ही एक tree बनाया है। कोई 1500 साल पुरानी चीजें थीं उसमें, कोई 1400 साल थी, कोई 1000 साल थी, कोई 200 साल थी। मैं हैरान था छोटे-छोटे देशों का भी उसमें नाम था, लेकिन पूरी उस tree में handicraft औऱ handloom की दुनिया में हिन्दुस्तान का नामो-निशान नहीं था। I was shocked, एक उनकी अज्ञानता के ऊपर और दूसरा हम लोगों ने कभी हमारी बातों को branding नहीं किया। दुनिया को पता तक नहीं कि एक जमाना था कि हमारे देश के बुनकरों और कारीगरों से बनाई हुई चीजें, दुनिया के पांचों खंडों में चाहे अफ्रीका हो, यूरोप हो, चाहे अरब राष्ट्र हो, चाहे China हो सब दूर हमारी चीजें बिकती थीं और उसको लेने के लिए दुनिया लालायित रहती थी। लेकिन आज जो लोग किताबें लिखते हैं उनको पता तक नहीं है कि हमारा कभी इतना भव्य इतिहास रहा है क्योंकि हमने हमारी चीजों का जो global branding करना चाहिए, global marketing करना चाहिए उसमें कहीं न कहीं हम कम पड़े हैं। 

कभी-कभी हम लोग सोचते हैं कि इस काम को कैसे बढाया जाए। छोटे-छोटे प्रयास भी भी हमें बहुत बड़ा परिवर्तन देते हैं। जैसे The film industry has a major role in popularizing fashion in India. And of course I know that Chennai is a big center of the film industry. Can our film makers decide that at least one out of five films will only use handlooms, handicrafts and khadi? 

हमारे फिल्म इंडस्ट्री वाले अपनी फिल्म को popular करने के लिए कुछ दृश्यों के विषयों में बताते हैं कि ये वहां का दृश्य है, ये ढिकना का shooting है तो automatic उनको देखने वाले मिल जाते हैं। अगर वे तय करें कि भई मैं पांच फिल्मों से एक फिल्म ऐसी बनाऊंगा,जिसमें हर कोई हैंडलूम का ही उपयोग होगा, सबके कपड़े भी हैंडलूम के होंगे, handicraft का उपयोग होगा, सारी चीजें ऐसी होगी। मैं उनको विश्वास दिलाता हूं, देश के करोड़ों बुनकर, करोड़ों कारीगर उनकी फिल्म देखने के लिए जरूर जाएंगे, अपने आप उनको मार्केट मिल जाएगा। 

आज के मैनेजमेंट गुरु जब industrial development की बात करते हैं तो cluster concept की बात करते हैं तो cluster को promote करने की बात करते हैं। हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले अगर हम सिर्फ handloom और handicraft को देखें तो हमें पता चलेगा कि कैसे cluster से हमारे यहां काम होता था। अब देखिए उत्तर प्रदेश जाइए तो बनारस handloom का एक बहुत बड़ा cluster बना हुआ है। अगर आप यहां कांचीपुरम जाइए, आपको handloom का बहुत बड़ा cluster बना हुआ आपको दिखाई देगा, आप देवगिरी जाइए, महाराष्ट्र में आपको बहुत बड़ा हैंडलूम का cluster बना हुआ दिखाई देगा यानि उस समय भी चाहे supply chain की बात हो, चाहे marketing की बात हो, चाहे cluster development की बात हो, चाहे raw material supply की बात हो। आज के जितने भी मैनेजमेंट गुरु जो बातें बताते हैं वो सदियों से handloom-handicraft की दुनिया में हमारे पूर्वजों ने develop किया हुआ था।

Recently, we have launched the “Digital India Movement”. which will soon connect all Indians through the Internet. Young consumers are now buying extensively through e-commerce platforms. Therefore we should enlarge the scope of e-commerce for sale of handloom products.

As we develop markets for handlooms we also need to extend support to our weavers on the production side. I am happy to learn that the National Handloom Development Corporation supplied 27% more yarn during 2014-15 as compared to the previous year.

Assistance to individual weavers for building work sheds and purchasing loom and accessories will now be directly transferred to their bank accounts. We have taken a major step for developing handloom clusters at the block level. Earlier, assistance of only about 60 lakhs rupees was being given for one handloom cluster. This has now been increased up to 2 crore rupees.

पहले बिचौलिये और दलालों की दुनिया चलती थी। अब सीधा बैंक अकाउंट में weaver के पास पैसा पहुंचेगा। दूसरा, पहले जो shed के लिए आपको सात लाख रुपया दिया जाता था, अब दो करोड़ रुपया दिया जाएगा।

The main objective of all our efforts is to increase wages of our weavers. Weaving is a very laborious job. In some cases, a weaver takes months to weave a single saree. We need to put in place systems that will ensure that they are paid their rightful wages. We also need to improve technology to enhance productivity and reduce labour in the pre-loom activity.

This will help enhance income levels. Apart from increasing incomes our Government is also committed to extend robust social security cover to weaver families.

We have launched a national drive for financial inclusion through Jan Dhan Yojana. Recently we have also launched three new social security schemes intended to benefit unorganized sectors.

The Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Beema Yojana will provide life insurance. The Pradhan Mantri Suraksha Beema Yojana will give you accident insurance cover. The Atal Pension Yojana will give you a pension from the age of 60. You can protect your future by paying a small amount every month.

I call upon all of you to join these schemes and also ask your friends and relatives to do so.

To address financing problems of Micro, Small & Medium Industries the Government has announced the creation of a MUDRA Bank. This bank has a corpus of Rs. 20,000 crores and a credit guarantee corpus of Rs. 3,000 crores. MUDRA Bank would ensure that at least 60% of the credit flows to loans of less than Rs. 50,000.

I am sure this initiative will benefit handloom weavers in a big way.

I congratulate all those who are being awarded today. Their expertise should be utilized for skill development programmes, as well as for production of master pieces for display.

Innovative design backed by good marketing is essential for promotion of handlooms. In this context I would like the request to the Textile Ministry to consider holding competitions and giving awards for design creation and marketing of handloom products.

National Handloom Day celebrations should not end with just a ceremony today. We have to make this a continuous movement. A movement to popularize Handlooms and to improve the lives of our weavers.

एक प्रकार से बुनकर परिवार से जुड़े लोग उनका पूरा हिसाब-किताब ताने-बाने के साथ जुड़ा हुआ है। सारा खेल ताना और बाना से बना हुआ है।

अब समय की मांग है कि हम एक नये सिरे से इस चीज का आगे बढ़ाए। हमारे पास जो परंपरागत कला है उस ताने को आधुनिक बाने के साथ कैसे जोड़े?

Handloom में ज्‍यादातर महिलाएं हैं। Handloom गांवो में है। समय की मांग है कि गांव का ताना global बाने के साथ कैसे जुड़े और गांव का ताना और global बाने का मिलन कैसे हम?

समय की मांग है कि गरीबी का ताना और अमीरी का बाना दोनों को जोड़ करके हम आर्थिक समृद्धि की दिशा में handloom को आगे बढ़ाए। उत्‍तर-दक्षिण का ताना और पूरब-पश्चिम का बाना भारत के कोने-कोने में पड़ी इस कला को एक दूसरे से परिचित करा करके एक महाशक्ति के रूप में handloom को कैसे उभारे?

गांव का un-skill से ले करके दुनिया के हर high-skill के साथ एक तरफ un-skill का ताना, तो दूसरी तरफ high skill का बाना। इस ताने और बाने के मिलन से हम handloom के उद्योग को नई ऊंचाईयों पर कैसे ले जाए।

Zero defect का ताना, Zero effect का बाना और हम हमारा ऐसा product करे जो दुनिया को भा जाए और जो environment के लिए सहायक हो, उपकारक हो, environment friendly हो।

मैं फिर एक बार आज सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले सभी हमारे कारीगर भाईयों-बहनों का सम्‍मान करता हूं, अभिनंदन करता हूं और तमिलनाडु की सरकार का, नागरिकों का हृदय से अभिनंदन करता हूं। बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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आदरणीय सभापति जी,

आदरणीय राष्ट्रपति जी के संबोधन पर आभार प्रकट करने के लिए मैं उपस्थित हुआ हूं। कल और आज कल तो रात देर तक सभी माननीय सांसदों ने अपने विचारों से इस आभार प्रस्ताव को समृद्ध किया। कई माननीय अनुभवी सांसदों ने भी अपने विचार प्रकट किए, और स्वाभाविक है कि लोकतंत्र की परंपरा भी है जहां आवश्यकता थी वहां पर प्रशंसा हुई, जहां परेशानी थी वहां कुछ नकारात्मक बातें भी हुई, लेकिन यह बहुत स्वाभाविक है! अध्यक्ष जी मेरे लिए बहुत बड़ा सौभाग्य है कि देश की जनता ने मुझे 14वीं बार इस जगह पर बैठकर के राष्ट्रपति जी के उद्बोधन को आभार प्रकट करने के लिए का अवसर दिया है और इसलिए मैं आज जनता जनार्दन का भी बड़े आदर के साथ आभार व्यक्त करना चाहता हूं, और सदन में चर्चा में जिन-जिन लोगों ने हिस्सा लिया, चर्चा को समृद्ध किया, उन सबका भी मैं आभार व्यक्त करता हूं।

आदरणीय सभापति जी,

हम 2025 में हैं, एक प्रकार से 21वीं सदी का 25 परसेंट हिस्सा बीत चुका है। समय तय करेगा 20वीं सदी के आजादी के बाद और 21वीं सदी के प्रथम 25 साल में क्या हुआ, कैसा हुआ, लेकिन इस राष्ट्रपति जी के संबोधन में अगर हम बारीकी से इसको अध्ययन करेंगे, तो यह साफ नजर आता है कि उन्होंने देश के सामने भविष्य के 25 वर्ष और विकसित भारत के लिए एक नया विश्वास जगाने वाली बात, एक प्रकार से आदरणीय राष्ट्रपति जी का यह उद्बोधन विकसित भारत के संकल्प को मजबूती देने वाला है, नया विश्वास पैदा करने वाला है और जन सामान्य को प्रेरित करने वाला है।

आदरणीय सभापति जी,

सारे अध्ययन बार-बार यह कह चुके हैं कि गत 10 वर्ष में देश की जनता ने हमें सेवा करने का मौका दिया। 25 करोड़़ देशवासी गरीबों को परास्त करके गरीबी से बाहर निकले हैं।

आदरणीय सभापति जी,

पांच-पांच दशक तक गरीबी हटाओ के नारे सुने हो और अब 25 करोड़़ गरीब गरीबी को परास्त करके बाहर निकले हैं, ऐसे ही नहीं योजनाबद्ध तरीके से समर्पित भाव से अपनेपन की पूरी संवेदनशीलता के साथ जब गरीबों के लिए जीवन खपाते हैं ना, तब यह होता है।

आदरणीय सभापति जी,

जब जमीन से जुड़े लोग जमीन की सच्चाई को जानते हुए जमीन पर जीवन खपाते हैं, तब जमीन पर बदलाव निश्चित होकर रहता है।

आदरणीय सभापति जी,

हमने गरीब को झूठे नारे नहीं, हमने सच्चा विकास दिया है। गरीब का दु:ख सामान्य मानवीय की तकलीफ मिडिल क्लास के सपने ऐसे ही नहीं समझ जाते हैं। आदरणीय सभापति जी, इसके लिए एक जज्बा चाहिए और मुझे दु:ख के साथ कहना है कि कुछ लोगों में यह है ही नहीं।

आदरणीय सभापति जी,

बारिश के दिनों में कच्ची छत, उसकी प्लास्टिक की चादर वाले छत उसके नीचे जीवन गुजारना कितना मुश्किल होता है। पल-पल सपने रौंद दिए जाते हैं, ऐसे पल होते हैं। ये हर कोई नहीं समझ सकता।

आदरणीय सभापति जी,

अब तक गरीबों को 4 करोड़़ घर मिले हैं। जिसने उस जिंदगी को जिया है ना उसे समझ होती है कि पक्की छत वाला घर मिलने का मतलब क्या होता है।

आदरणीय सभापति जी,

एक महिला जब खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हो जाती है। वो या तो सूर्योदय के पहले, या सूर्यास्त के बाद कठिनाइयों के झेलने के बाद, इस छोटा सा अपना नित्य कर्म करने के लिए निकल सकती है तब उसे क्या तकलीफ होती थी, ऐसे लोग समझ नहीं सकते हैं आदरणीय सभापति जी।

आदरणीय सभापति जी,

हमने 12 करोड़़ से ज्यादा शौचालय बनाकर बहनों बेटियों की मुश्किलें दूर की हैं। आदरणीय सभापति जी, आजकल मीडिया में जरा ज्यादा ही चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया में और अधिक हो रही है। कुछ नेताओं का फोकस घरों में जकूजी पर, स्टाइलिश शावर्स पर, लेकिन हमारा फोकस तो हर घर जल पहुंचाने पर है। आजादी के 75 साल के बाद देश में 70-75% करीब-करीब 16 करोड़़ से भी ज्यादा घरों के पास जल का करने के लिए नल का कलेक्शन नहीं था। हमारी सरकार ने 5 साल में 12 करोड़़ परिवारों को घरों में नल से जल देने का काम किया है और वह काम तेजी से आगे भी बढ़ रहा है।

आदरणीय सभापति जी,

हमने गरीबों के लिए इतना काम किया और इसके कारण आदरणीय राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में इसका विस्तार से वर्णन किया है। जो लोग गरीबों की झोपड़ियों में फोटो सेशन कराकर अपना मनोरंजन करते रहते हैं, उन्हें संसद में गरीबों की बात बोरिंग ही लगेगी।

आदरणीय सभापति जी,

मैं उनका गुस्सा समझ सकता हूं। आदरणीय सभापति जी, समस्या की पहचान करना एक बात है लेकिन अगर जिम्मेदारी है तो समस्या की पहचान कर करके छूट नहीं सकते, उसके समाधान के लिए समर्पित भाव से प्रयास करना होता है। हमने देखा है, और पिछले 10 साल के हमारे काम को देखा होगा और राष्ट्रपति जी के अभिभाषण में भी देखा होगा, हमारा प्रयास समस्या की समाधान का रहता है और हम समर्पित भाव से प्रयास करते हैं।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे देश में एक प्रधानमंत्री हुआ करते थे, उनको मिस्टर क्लीन कहने की एक फैशन हो गई थी। प्रधानमंत्री जी को मिस्टर क्लीन कहने की फैशन हो गई थी। उन्होंने एक समस्या को पहचाना था और उन्होंने कहा था की दिल्ली से 1 रुपया निकलता है, तो गांव में 15 पैसा पहुंचता है। अब उस समय तो पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक एक ही पार्टी का राज था, पंचायत से पार्लियामेंट तक एक ही पार्टी का राज था और उस समय उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि 1 रुपया निकलता है 15 पैसा पहुंचता है। बहुत गजब की हाथ सफाई थी। 15 पैसा किसके पास जाता था यह देश का सामान्य मानवी भी आसानी से समझ सकता है।

आदरणीय सभापति जी,

देश ने हमें अवसर दिया, हमने समाधान खोजने का प्रयास किया। हमारा मॉडल है बचत भी विकास भी, जनता का पैसा जनता के लिए। हमने जनधन आधार मोबाइल की जेम ट्रिनिटी बनाई और डीबीटी से डायरेक्ट बेनिफिट, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यह देना शुरू किया।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे कार्यकाल में हमने 40 लाख करोड़़ रूपया सीधा जनता जनार्दन के खाते में जमा किया।

आदरणीय सभापति जी,

इस देश का दुर्भाग्य देखिए सरकारें कैसे चलाई गई किसके लिए चलाई गईं।

आदरणीय सभापति जी,

जब ज्यादा बुखार चढ़ जाता है न तब लोग कुछ भी बोलते हैं, लेकिन इसके साथ-साथ ज्यादा हताशा निराशा फैल जाती है, तब भी बहुत कुछ बोलते हैं।

आदरणीय सभापति जी,

जिनका जन्म नहीं हुआ था, जो भारत की इस धरती पर अवतरित नहीं हुए थे, ऐसे 10 करोड़़ फर्जी लोग सरकारी खजाने से अलग-अलग योजनाओं का फायदा ले रहे थे।

आदरणीय सभापति जी,

सही को अन्याय ना हो इसलिए राजनीतिक फायदा नुकसान की परवाह किए बिना हमने इन 10 करोड़़ फर्जी नामों को हटाया और असली लाभार्थियों को खोज-खोज करके उन तक मदद पहुंचाने का अभियान चलाया।

आदरणीय सभापति जी,

ये 10 करोड़़ फर्जी लोग जब हटे और भिन्न-भिन्न योजनाओं का हिसाब लगाएं, तो करीब-करीब 3 लाख करोड़़ रूपया गलत हाथों में जाने से बच गए। मैं हाथ किसका था यह नहीं कह रहा हूं गलत हाथों से।

आदरणीय सभापति जी,

हमने सरकारी खरीद में भी टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग किया, ट्रांसपेरेंसी लाए और जेम पोर्टल जो आज राज्य सरकारें भी उसका उपयोग कर रही हैं। जेम पोर्टल से जो खरीदी हुई उससे आमतौर पर जो खरीदी होती है उससे कम पैसों में खरीदी हुई और सरकार के 1,15,000 करोड़ रुपए की बचत हुई।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे स्वच्छता अभियान का बहुत मजाक उड़ाया गया, ऐसा जैसे हमने कोई पाप कर दिया, कोई गलती कर दी। ना जाने क्या-क्या कहा जाता था, लेकिन आज मुझे संतोष से कहना है इन सफाई के कारण हाल के वर्षों में सिर्फ सरकारी दफ्तरों से जो कबाड़ बेचा गया है ना, उसमें 2300 करोड़़ रूपया सरकार को मिले हैं। महात्मा गांधी ट्रस्टीशिप के सिद्धांत की बात करते थे। वो कहते थे कि हम ट्रस्टी हैं, यह संपत्ति जनता जनार्दन की है और इसलिए हम पाई पाई को इस ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के आधार पर बचाने की और सही जगह पर उपयोग करने का प्रयास करते हैं और तब जाकर के स्वच्छता अभियान से कबाड़ बेचकर 2300 करोड़़ रूपया देश के सरकार के खजाने में आ रहा है।

आदरणीय सभापति जी,

हमने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया इथेनॉल ब्लेंडिंग का। हम जानते हैं हम एनर्जी इंडिपेंडेंस नहीं है हमें बाहर से लाना पड़ता है। जब इथेनॉल ब्लेंडिंग किया और हमारे पेट्रोल डीजल की आय कम हुई, उस एक निर्णय से 100000 करोड़ रुपए का फर्क पड़ा है और यह पैसे करीब करीब 100000 करोड़़ रूपया किसानों की जेब में गया है।

आदरणीय सभापति जी,

मैं बचत की तो बात कर रहा हूं, लेकिन पहले अखबारों की हेडलाइन हुआ करती थी, इतने लाख के घोटाले, इतने लाख के घोटाले, इतने लाख के घोटाले, 10 साल हो गए यह घोटाले ना कर करके, घोटाले ना होने से भी देश के लाखों करोड़़ रुपए बचे हैं, जो जनता जनार्दन की सेवा में लगे हैं।

आदरणीय सभापति जी,

हमने यह जो अलग-अलग कदम उठाए हैं, उससे लाखों करोड़़ रुपए के बचत हुई, लेकिन उन पैसों का उपयोग हमने शीश महल बनाने के लिए नहीं किया। इसका उपयोग हमने देश बनाने के लिए किया है। इंफ्रास्ट्रक्चर का बजट 10 साल पहले 180000 करोड़़ था, हमारे आने से पहले। आदरणीय सभापति जी, आज 11 लाख करोड़़ रूपया इंफ्रास्ट्रक्चर का बजट है और इसलिए राष्ट्रपति जी ने भारत की नींव कैसे मजबूत हो रही है इसका वर्णन इसमें किया है। रोड हो, हाईवे हो, रेलवे हो, ग्राम सड़क हो, इन सभी कामों के लिए विकास की एक मजबूत नींव रखी गई है।

आदरणीय सभापति जी,

सरकारी खजाने में बचत हुई वह तो एक बात है और वो करना भी चाहिए जैसा मैंने ट्रस्टी शिप की बात कही, लेकिन हमने इस बात पर भी ध्यान रखा है कि जन सामान्य के उनको भी इस बचत का लाभ मिलना चाहिए, योजनाएं ऐसी हो ताकि जनता को भी बचत हो और आपने देखा होगा आयुष्मान भारत योजना बीमारी के कारण सामान्य मानवीय को जो खर्च होता था अब तक जिन लोगों ने इसका बेनिफिट लिया है उसी के हिसाब से मैं कहता हूं, कि करीब करीब देशवासियों का आयुष्मान योजना का बेनिफिट लेने के कारण जो खर्चा उनको अपनी जेब से करना पड़ता वैसे 120000 करोड़़ रूपया जनता जनार्दन के बचे हैं। यह आवश्यक है कि अब जैसे जन औषधि केंद्र, आज मध्यम वर्ग के परिवार में सब 60-70 साल उम्र के परिवार के सज्जन हो, तो स्वाभाविक है कोई ना कोई बीमारी आ ही जाती है, दवाई का खर्चा भी होता है, दवाई महंगी भी होती हैं, हमने जब से जन औषधि केंद्र खोले हैं जिसमें 80% डिस्काउंट होता है और उसके कारण जिन परिवारों ने इन जन औषधि केंद्रों से दवाइयां ली हैं, उनके करीब करीब 30000 करोड़ रुपए दवाइयों का खर्चा बचा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

यूनिसेफ का भी अनुमान है उनका कहना है कि जिसके घर में स्वच्छता और टॉयलेट बना है उन्होंने इसका बड़ा सर्वे किया था, उस परिवार को करीब करीब साल भर में 70,000 रुपये के बचत हुई है। स्वच्छता अभियान कहो, टॉयलेट बनाने का काम कहो, शुद्ध जल पहुंचने का काम कहो, कितना बड़ा फायदा हमारे सामान्य परिवार को हो रहा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

नल से जल मैंने प्रारंभ में उसका उल्लेख किया। WHO की एक रिपोर्ट आई है, WHO का कहना है की नल से जल शुद्ध पानी मिलने के कारण उन परिवारों में जो अन्य बीमारियों के खर्चे होते थे, औसत 40000 रुपया परिवार का बचा है। मैं ज्यादा गिन नहीं रहा हूं, लेकिन ऐसी अनेक योजना है जिन योजनाओं ने सामान्य मानवीय के खर्चे में बचत की है।

आदरणीय सभापति जी,

करोड़़ों देशवासियों को मुफ्त अनाज उसकी भी उस परिवार के हजारों रुपए बचते हैं। पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जहां-जहां यह योजना लागू हुई, उन परिवारों को औसतन साल भर के 25 से 30 हजार रुपए बिजली के पैसों में बचत हो रही है, खर्च में बचत हो रही है और अगर ज्यादा बिजली है तो बेचकर के कमाई कर रहा है वो अलग। यानी सामान्य मानवीय के बचत भी हमने एलईडी बल्ब का एक अभियान चलाया था। आपको मालूम है कि हमारे आने से पहले एलईडी बल्ब 400-400 रुपये में बिकते थे। हमने इतना अभियान चलाया उसकी कीमत ₹40 हो गई और एलईडी बल्ब के कारण बिजली की भी बचत हुई और उजाला भी ज्यादा मिला और उसमें देशवासियों के करीब 20000 करोड़ रुपए बचे हैं।

आदरणीय सभापति जी,

जिन किसानों ने सॉइल हेल्थ कार्ड का वैज्ञानिक तरीके से उपयोग किया है उनको बहुत फायदा हुआ है और ऐसे किसानों को प्रति एकड़ 30000 रुपये की बचत हुई है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

बीते 10 साल में इनकम टैक्स को कम करके भी हमने मिडिल क्लास की बचत को बढ़ाने का काम किया है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

2014 के पहले ऐसे बम गोले फेके गए, बंदूक की ऐसी गोलियां चलाई गई कि देशवासियों का जीवन छलनी कर दिया गया था। हमने धीरे-धीरे उन गावों को भरते भरते आगे बढ़े। 200000 रूपया, 2013-14 में ₹200000 रूपया सिर्फ ₹200000 रूपया उस पर इनकम टैक्स माफी थी और आज 12 लाख रुपए संपूर्ण रूप से इनकम टैक्स से मुक्ति और हमने बीच के कालखंड में भी 2014 में भी, 2017 में भी, 2019 में भी, 2023 में भी, हम लगातार यह करते आए घाव भरते गए और आज बैंडेज बाकी था वो भी कर लिया। स्टैंडर्ड डिडक्शन उसके अगर 75000 जोड़ दें तो पहली अप्रैल के बाद देश में जो सैलरीड क्लास है उनके पौने 13 लाख रुपए तक कोई इनकम टैक्स नहीं देना पड़ेगा।

आदरणीय सभापति जी,

आप जिस समय युवा मोर्चा में काम करते थे, तब एक बात आप सुनते होंगे, पढ़ते भी होंगे, एक प्रधानमंत्री आए दिन 21वीं सदी 21वीं सदी बोला करते थे एक प्रकार से यह रट गया था, तकिया कलाम जैसा हो गया था। वह बोलते थे 21वीं सदी 21वीं सदी। जब इतनी बार बोला जाता था तो उस समय टाइम्स आफ इंडिया में आर के लक्ष्मण ने एक बड़ा शानदार कार्टून बनाया था, वह कार्टून बड़ा इंटरेस्टिंग था, उस कार्टून में एक हवाई जहाज है, एक पायलट है, उन्होंने पायलट क्यों पसंद किया वह तो मुझे मालूम नहीं, कुछ पैसेंजर बैठे थे और हवाई जहाज एक ठेले पर रखा हुआ था और मजदूर ठेले को धक्का मार रहे थे और 21वीं सदी लिखा हुआ था। वह कार्टून उस समय तो मजाक लग रहा था, लेकिन आगे चलकर के वह सच सिद्ध हो गया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

यह कटाक्ष था जमीनी सच्चाई से तब के प्रधानमंत्री कितने कटे हुए थे कि हवाई हवाई बातों में लगे हुए थे इसका वह जीता जागता प्रदर्शन करने वाला कार्टून था।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

जिन्होंने तब एक 21वीं सदी की बातें की थी, वो 20वीं सदी की जरूरतों को भी पूरा कर नहीं पाए थे।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आज जब मैं देखता हूं पिछले 10 साल से पहले की सारी बीती हुई बातों को बारीकी से देखने का अवसर मिला है, तो मुझे बड़ा दर्द होता है। हम 40 50 साल लेट है जो काम 40 50 साल पहले हो जाने चाहिए थे, और इसलिए यह साल जब 2014 से देश की जनता ने हमको सेवा का अवसर दिया, हमने ज्यादा से ज्यादा युवाओं पर फोकस किया। हमने युवाओं की आकांक्षाओं पर बल दिया, हमने युवाओं के लिए ज्यादा अवसर बनाए, हमने कई क्षेत्रों को खोल दिया और जिसके कारण हम देख रहे हैं, देश के युवा अपने सामर्थ्य का परचम लहरा रहे हैं। देश में हमने स्पेस सेक्टर को खोल दिया, डिफेंस सेक्टर को खोला, सेमीकंडक्टर मिशन लेकर के आए, इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए अनेक नई योजनाओं को हमने आकार दिया, स्टार्टअप इंडिया इकोसिस्टम पूरा डेवलप किया और इस बजट में भी आदरणीय अध्यक्ष जी एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय हुआ है। 12 लाख की आय पर इनकम टैक्स की माफी यह समाचार इतना बड़ा बन गया कि बहुत से महत्वपूर्ण चीजों पर अभी भी कुछ लोगों का ध्यान नहीं गया है। वह महत्वपूर्ण निर्णय हुआ है हमने न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर को ओपन कर दिया है और इसके दूरगामी सकारात्मक प्रभाव और परिणाम देश को देखने के लिए मिलने वाले हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

AI, 3D प्रिंटिंग, रोबोटिक्स, वर्चुअल रियलिटी की चर्चा हम तो गेमिंग का भी महात्मय क्या होता है इसके लिए भी प्रयास करने वाले लोगों में से हैं। मैंने देश के नौजवानों से कहा है कि दुनिया का गेमिंग क्रिएशन का क्रिएटिविटी वर्ल्ड का कैपिटल भारत क्यों ना बने और मैं देख रहा हूं बहुत तेजी से हमारे लोग काम कर रहे हैं। कुछ लोगों को अब जब एआई के बात होती है, कुछ लोगों को यह शब्द फैशन में है, तो बोला जाता है लेकिन मेरे लिए सिंगल एआई नहीं है, डबल एआई है, भारत की डबल ताकत है, एक एआई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दूसरा एआई एस्पिरेशनल इंडिया। हमने स्कूलों में 10000 टिंकरिंग लैब्स शुरू किए और आज उन टिंकरिंग लैब्स से निकले बच्चे robotics बनाकर के लोगों को चकित कर रहे हैं और इस बजट में 50000 नए टिंकरिंग लैब्स, उसका प्रावधान किया गया है। भारत वह देश है जिसके इंडिया एआई मिशन को लेकर के पूरी दुनिया बहुत आशावादी है और विश्व के एआई प्लेटफॉर्म में भारत की मौजूदगी एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुकी है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

इस साल बजट में हमने deep tech के डोमन कॉम में इन्वेस्टमेंट की बात की है और deep tech मैं समझता हूं हमारे लिए तेज गति से आगे बढ़ाने के लिए और 21वीं सदी पूरी तरह टेक्नोलॉजी ड्रिवन सेंचुरी है, ऐसे में हमारे लिए आवश्यक है कि भारत deep tech के क्षेत्र में बहुत तेजी से आगे बढ़े।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम लगातार युवा भविष्य को ध्यान में रखते हुए काम कर रहे हैं, लेकिन कुछ दल हैं जो लगातार युवाओं के साथ धोखा कर रहे हैं उन्हें धोखा दे रहे हैं। ये दल चुनाव के दरमियान ये भत्ता देंगे वो भत्ता देंगे, वादा तो करते हैं लेकिन पूरा नहीं करते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

यह दल युवाओं के भविष्‍य पर आपदा बनकर गिरे हुए हैं। आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम कैसे काम करते हैं, यह हरियाणा में अभी-अभी देश ने देखा है। बिना खर्ची, बिना पर्ची, नौकरी देने का वायदा किया था, सरकार बनते ही नौकरी मिल गई नौजवानों को, हम जो कहते हैं, उसी का परिणाम है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हरियाणा में तीसरी बार भव्य विजय और हरियाणा के इतिहास में तीसरी बार विजय, यह अपने आप में ऐतिहासिक घटना है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

महाराष्ट्र में भी ऐतिहासिक परिणाम, जनता-जनार्दन का आशीर्वाद, महाराष्ट्र के इतिहास में सत्ता पक्ष के पास इतनी सीटें पहली बार, ये जनता-जनार्दन के आशीर्वाद से हम करके आए हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आदरणीय राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में हमारे संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर भी विस्तार से चर्चा की है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

संविधान में जो धाराएं हैं, उसके साथ-साथ संविधान का एक स्पिरिट भी है और संविधान को मजबूती देने के लिए संविधान की भावना को जीना पड़ता है और मैं आज उदाहरणों के साथ बताना चाहता हूं। हम वो लोग हैं जो संविधान को जीते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

हमारे यहां यह बात सही है परंपरा है कि राष्ट्रपति जी जब उद्बोधन करते हैं, तो उस सरकार के उस साल के कार्यकाल का ब्यौरा देते हैं। उसी प्रकार से राज्यों में गवर्नर का जो उद्बोधन होता है सदन में, वो उस राज्य के कार्यकलापों का ब्यौरा देते हैं। संविधान और लोकतंत्र का स्पिरिट क्या होता है? जब गुजरात के 50 वर्ष हुए, गोल्डन ज्युबिली ईयर मना रहे थे और सद्भाग्‍य से मुझे उस समय मुख्‍यमंत्री के रूप में सेवारत था मैं, तो हमने एक महत्‍वपूर्ण निर्णय किया। हमने किया इस गोल्डन ज्युबिली ईयर में पिछले 50 वर्ष में सदन में जितने भी गवर्नर के भाषण हुए हैं, मतलब उस समय की सरकारों का ही वाह-वाही उसमें होती है। हमने कहा कि उन 50 साल में जितने भी गवर्नर के भाषण हुए हैं, सबको ही एक पुस्तक के रूप में तैयार किया जाए, एक ग्रंथ बनाया जाए और आज सभी लाइब्रेरीज में वो ग्रंथ available है। मैं तो बीजेपी वाला था, गुजरात में तो ज्यादातर कांग्रेस की सरकारें रही थीं। उन सरकारों के गवर्नर के भाषण थे, लेकिन उसको भी प्रसिद्ध कराने का काम भाजपा को, भाजपा से बना यह मुख्‍यमंत्री कर रहा था, क्यों? हम संविधान को जीना जानते हैं। हम संविधान को समर्पित हैं। हम संविधान के स्पिरिट को समझते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आप जानते हैं 2014 में जब हम आए, तब माननीय विपक्ष नहीं था। Recognised Opposition Party नहीं थी। उतने अंक भी लेकर के कोई नहीं आए थे। भारत के अनेक कानून ऐसे थे कि हमें पूरी स्वतंत्रता थी उस कानून के हिसाब से काम करने की, अनेक कमेटियाँ ऐसी थीं जिसमें लिखा था लीडर ऑफ द ऑपॉजिशन उसमें आएंगे। लेकिन ऑपॉजिशन था ही नहीं, Recognised Opposition नहीं था। यह हमारा संविधान जीने का स्‍वभाव था, यह हमारा संविधान का स्पिरिट था, यह हमारी लोकतंत्र की मर्यादाओं का पालन करने का इरादा था, हमने तय किया कि भले माननीय विपक्ष नहीं होगा, Recognised Opposition नहीं होगा, लेकिन जो सबसे बड़े दल का सब नेता है, उसको मीटिंगों में बुलाएंगे। यह लोकतंत्र का स्पिरिट होता है, तब होता है। चुनाव आयोग की कमिटियाँ

आदरणीय अध्यक्ष जी,

पहले तो प्रधानमंत्री फाइल करके निकालते थे, यह हम हैं जिसने Opposition के Leader को भी उसमें बिठाया है और हमने इसके लिए कानून भी बनाया और आज विधिवत रूप से इलेक्शन कमीशन बनेगा, तो Opposition Leader भी उसके निर्णय की प्रक्रिया में हिस्सा होंगे, ये काम हम करते हैं। और यह मैंने पहले ही किया, हम इसलिए करते हैं कि हम संविधान को जीते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

दिल्‍ली में आपको कई स्थान ऐसे मिलेंगे जहां कुछ परिवारों ने अपने म्यूजियम बनाकर के रखे हुए हैं। जनता-जनार्दन के पैसों से काम हो रहा है, लोकतंत्र का स्पिरिट क्या होता है, संविधान को जीना किसको कहते हैं, हमने पीएम म्यूजियम बनाया और देश के पहले से लेकर के मेरे पूर्व तक के सभी प्रधानमंत्रियों के जीवन को और उनके कार्य को उस पीएम म्यूजियम बनाया गया है और मैं तो चाहूंगा कि यह पीएम म्यूजियम में जो-जो महापुरुष हैं, उनके परिवारजनों ने समय निकालकर के उस म्यूजियम को देखना चाहिए और उसमें कुछ जोड़ने के लिए लगता है, तो सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहिए ताकि वो म्यूजियम समृद्ध हो और देश के नव बालकों को प्रेरणा दें, यह होता है संविधान की भावना! अपने लिए तो सब करते हैं, खुद के लिए जीने वालों की जमात बहुत छोटी नहीं है, संविधान के लिए जीने वाले यहां बैठे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

जब सत्ता सेवा बन जाए, तो राष्ट्र निर्माण होता है। जब सत्ता को विरासत बना दिया जाए, तब लोकतंत्र खत्म हो जाता है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम संविधान की भावना को लेकर के चलते हैं। हम जहर की राजनीति नहीं करते। हम देश की एकता को सर्वोपरि रखते हैं और इसलिए सरदार वल्‍लभभाई पटेल का दुनिया का सबसे ऊँचा स्‍टेच्‍यू बनाते हैं और स्‍टेच्‍यू ऑफ यूनिटी देश को जोड़ने का जिस महापुरुष ने काम किया, उसका हम स्मरण करते हैं और वो भाजपा के नहीं थे, वो जनसंघ के नहीं थे। हम संविधान को जीते हैं, इसलिए इस सोच से आगे बढ़ते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

ये देश का दुर्भाग्य है कि आजकल कुछ लोग अर्बन नक्सल की भाषा खुलेआम बोल रहे हैं और अर्बन नक्सल जिन बातों को बोलते हैं, Indian State के सामने मोर्चा लेना, ये अर्बन नक्सल की भाषा बोलने वाले, Indian State के खिलाफ लड़ाई की घोषणा करने वाले न संविधान को समझ सकते हैं, न देश की एकता को समझ सकते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

सात दशक तक जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख, उसे संविधान के अधिकारों से वंचित रखा गया। यह संविधान के साथ भी अन्याय था और जम्मू एंड कश्मीर और लद्दाख के लोगों के साथ भी अन्याय था। हमने आर्टिकल 370 की दीवार गिरा दी, अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के उन राज्यों को देशवासियों को जो अधिकार हैं, वो अधिकार उनको मिल रहे हैं और संविधान का महात्मय हम जानते हैं, संविधान की भावना को जीते हैं, इसलिए ऐसे मजबूत निर्णय भी हम करते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हमारा संविधान हमें भेदभाव करने का अधिकार नहीं देता है। जो लोग संविधान को जेब में लेकर के जीते हैं, उनको पता नहीं है कि आपने मुस्लिम महिलाओं को कैसी मुसीबतों में जीने के लिए मजबूर कर दिया था। हमने ट्रिपल तलाक का खात्मा कर-कर के संविधान की भावना के अनुरूप मुस्लिम बेटियों को हक देने का काम किया है, समानता का अधिकार दिया है। जब भी देश में एनडीए की सरकार रही है, हमने एक लंबे विजन के साथ काम किया है। पता नहीं देश को बांटने के लिए किस-किस प्रकार की भाषाओं का प्रयोग किया जा रहा है, हताशा-निराशा पता नहीं उनको कहां तक ले जाएगी, लेकिन हमारी सोच कैसी है, एनडीए के साथी किस दिशा में सोचते हैं, हमारे लिए जो पीछे है, जो आखिरी है और महात्मा गांधी जी ने जो कहा था, उसकी तरफ हमारा ध्यान ज्यादा है और उसी का परिणाम है कि अगर हम मंत्रालयों की रचना करते हैं, तो भी मंत्रालय कौन सा बनाते हैं, पूर्वोत्तर के लिए अलग मंत्रालय बनाते हैं। हम देश में, इतने साल हो गए, अटल जी आए तब तक किसी को समझ नहीं आया था, भाषण तो देते रहते हैं, आदिवासियों के लिए अलग मंत्रालय एनडीए ने बनाया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हमारे दक्षिण के राज्य समुद्री तट से जुड़े हैं। हमारे पूर्व के कई राज्य समुद्री तट से जुड़े हैं। वहां के समाज में फिशरीज का काम और फिशरमेन की संख्या बहुत बड़ी तादाद में है। उनका भी ख्‍याल रखना चाहिए और जमीन के भीतर के एक छोटे पानी के जो इलाके रहते हैं, वहां भी फिशरमेन के रूप में समाज के आखिरी तबके के लोग हैं, यह हमारी सरकार है जिसने फिशरीज के लिए अलग मंत्रालय बनाया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

समाज के दबे-कुचले वंचित लोग इनके अंदर एक सामर्थ्‍य होता है, अगर स्‍किल डेवलेपमेंट पर बल दिया जाए तो उनके लिए नए अवसर बन सकते हैं। उनकी आशा-आकांक्षाएं एक नई जिंदगी बना सकते हैं और इसलिए हमने अलग स्किल मंत्रालय बनाया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

देश में लोकतंत्र का पहला धर्म होता है कि हम सत्ता को सामान्‍य से सामान्‍य नागरिक तक उसका अवसर मिले और इस बात को ध्‍यान में रखते हुए भारत के cooperative sector को और समृद्ध बनाने के लिए और तंदुरुस्त बनाने के लिए, देश के करोड़ों लोगों को जोड़ने का उसमें अवसर है। अनेक क्षेत्रों में cooperative movement को बढ़ाया जा सकता है और उसको ध्‍यान में रखते हुए हमने अलग cooperative मंत्रालय बनाया है, विजन क्‍या होता है यह यहां पता चलता है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

जाति की बातें करना कुछ लोगों के लिए फैशन बन गई है। पिछले 30 साल से, पिछले 30 साल से सदन में आने वाले ओ‍बीसी समाज के सांसद, दलों के भेदभाव से ऊपर उठकर के एक हो करके 30-35 साल से मांग कर रहे थे कि ओ‍बीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा दिया जाए। जिन लोगों को आज जातिवाद में मलाई दिखती है, उनको उस समय ओबीसी समाज की याद नहीं आई, यह हम हैं जिन्होंने ओबीसी समाज को संवैधानिक दर्जा दिया। पिछड़ा वर्ग आयोग आज संवैधानिक व्यवस्था में जुड़ा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हर सेक्टर में एससी, एसटी, ओबीसी को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिले, उस दिशा में हमने बहुत मजबूती के साथ काम किया है। मैं आज इस सदन के माध्यम से देशवासियों को उनके सामने एक अहम सवाल रखना चाहता हूं और अध्यक्ष महोदय जरूर देशवासी मेरे इस सवाल पर चिंतन भी करेंगे और चौराहे पर चर्चा भी करेंगे। कोई मुझे बताए, क्या एक ही समय में संसद में एससी वर्ग के, एक ही परिवार के तीन सांसद कभी हुए हैं क्या? एससी वर्ग के, एक ही परिवार के तीन सांसद कभी भी हुए क्या? मैं दूसरा सवाल पूछता हूं, कोई मुझे बताएं कि एक ही कालखंड में, एक ही समय में, संसद में एसटी वर्ग के एक ही परिवार के तीन एमपी हुए हैं क्या?

आदरणीय अध्यक्ष जी,

कुछ लोगों की वाणी और व्यवहार में कितना फर्क होता है मेरे एक सवाल के जवाब में मिल गया। जमीन आसमान का अंतर होता है, रात दिन का अंतर होता है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम एससी एसटी समाज को कैसे सशक्त कर रहे हैं। आदरणीय अध्यक्ष जी, समाज में तनाव पैदा किए बिना एकता की भावना को बरकरार रखते हुए समाज के वंचितों का कल्याण कैसे किया जाता है इसका मैं एक उदाहरण देता हूं। 2014 से पहले हमारे देश में मेडिकल कॉलेज की संख्या 387 थी। आज 780 मेडिकल कॉलेज हैं। अब मेडिकल कॉलेज बढ़ी है तो सीटें भी बढ़ी हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण एंगल है आदरणीय अध्यक्ष जी और इसलिए कॉलेज भी बढ़ी है सीटें भी बढ़ी हैं। 2014 से पहले हमारे देश में एससी छात्रों की एमबीबीएस की सीट 7700 थी। हमारे आने से पहले दलित समाज के हमारे 7700 युवा डॉक्टर बनने की संभावना थी। 10 साल हमने काम किया, आज संख्या बढ़कर एससी समाज के 17000 एमबीबीएस डॉक्टर की व्यवस्था की है। कहां 7700 और कहां 17000, अगर दलित समाज का कोई कल्याण और अगर समाज में तनाव लाए बिना एक दूसरे के सम्मान को बढ़ाते हुए।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

2014 के पहले एसटी छात्रों के लिए एमबीबीएस की सीटें 3800 थी। आज यह संख्या बढ़कर लगभग 9000 हो गई है। 2014 के पहले ओबीसी के छात्रों के लिए एमबीबीएस में 14000 से भी कम, 14000 से भी कम सीटें थी। आज इनकी संख्या लगभग 32000 हो गई है। ओबीसी समाज के 32000 एमबीबीएस डॉक्टर बनेंगे।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

पिछले 10 साल में हर सप्ताह एक नई यूनिवर्सिटी बनी है, हर दिन एक नई आईटीआई बनी है, हर 2 दिन में एक नया कॉलेज खुला है, सोचिए एससी, एसटी, ओबीसी हमारे युवा युवतियों के लिए कितनी वृद्धि हुई है इसका आप अंदाज लगा सकते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम हर योजना के पीछे लगे हैं- 100% सैचुरेशन शत् प्रतिशत उसको लागू करें उसके जो भी लाभार्थी हैं वो उसमें छूट न जाए उस दिशा में हम काम कर रहे हैं। पहले ताकि हम चाहते हैं कि जिसका हक है उसको मिलना चाहिए, अगर योजना है उसका हक है तो उस तक पहुंचना चाहिए, 1रुपया 15 पैसे वाला खेल नहीं चल सकता। लेकिन कुछ लोगों ने क्या किया मॉडल ही ऐसा बनाया कि कुछ ही लोगों को दो औरों को तड़पाओं और तुष्टिकरण की राजनीति करो। देश को विकसित भारत बनाने के लिए तुष्टिकरण से मुक्ति पानी होगी, हमने रास्ता चुना है संतुष्टीकरण, तुष्टिकरण नहीं संतुष्टीकरण का, और उस रास्ते पर हम चले हैं। हर समाज हर वर्ग के लोगों को बिना भेदभाव के जो उसके हक का है वह उसको मिलना चाहिए यह है संतुष्टीकरण और मेरे हिसाब से जब मैं 100% सैचुरेशन की बात करता हूं तो उसका मतलब होता है एक असल में सामाजिक न्याय है। ये असल में सेकुलरिज्म है और असल में यह संविधान का सम्मान है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

संविधान की भावना है- सबको बेहतर स्वास्थ्य मिले और आज कैंसर डे भी है, देश भर में और दुनिया भर में आज हेल्थ को लेकर के काफी चर्चा भी हो रही है। लेकिन कुछ लोग हैं जो गरीब को, बुजुर्गों को, आरोग्य की सेवाएं मिले उसमें अड़गे डाल रहे हैं और वह भी अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण। आज आयुष्मान से देश के 30000 अस्पताल जुड़े हैं और और अच्छे स्पेशलाइज्ड प्राइवेट अस्पताल जुड़े हैं। जहां आयुष्मान कार्ड वाले को मुफ्त इलाज मिलता है। लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने अपने संकुचित मानस के कारण, कुनीतियों के कारण, गरीबों के लिए इन अस्पतालों के दरवाजे बंद करके रखे हुए हैं और इसका नुकसान कैंसर के मरीजों को उठाना पड़ा है। पिछले दिनों पब्लिक हेल्थ जर्नल लैंसेट की स्टडी आई है उसका कहना है कि आयुष्मान योजना से समय पर कैंसर का इलाज शुरू हो रहा है। सरकार कैंसर की जांच करने के संबंध में बहुत ही गंभीर है। क्योंकि जितना जल्दी जांच हो, जितना जल्दी ट्रीटमेंट शुरू हो, हम कैंसर पेशेंट को बचा सकते हैं और लैंसेट ने आयुष्मान योजना को क्रेडिट देते हुए कहा है कि भारत में इस दिशा में बहुत बड़ा काम हुआ है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

इस बजट में भी हमने कैंसर की दवाइयों को सस्ते करने की दिशा में बहुत बड़ा महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इतना ही नहीं एक महत्वपूर्ण जो निर्णय लिया है वह आने वाले दिनों में और जब आज कैंसर डे है तो मैं जरूर कहना चाहूंगा, सभी माननीय सांसद इसका लाभ ले सकते हैं अपने इलाके ऐसे मरीजों के लिए, और वह है मरीज को आप जानते हैं अस्पताल उतने नहीं होने के कारण भी काफी दिक्कत रहती है बाहर से आने वाले पेशेंट को, 200 डे केयर सेंटर बनाने का निर्णय इस बजट में किया गया है। यह डे केयर सेंटर पेशेंट को भी उसके परिवार को भी बहुत बड़ी राहत देने वाला काम करेगा।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय जी,

राष्ट्रपति जी के भाषण की चर्चा के समय यहां विदेश नीति की भी चर्चा हुई और कुछ लोगों को लगता है जब तक फॉरेन पॉलिसी नहीं बोलते तब तक वो मेच्योर नहीं लगते, इसलिए उनको लगता है फॉरेन पॉलिसी तो बोलना चाहिए फिर भले ही देश का नुकसान हो जाए। मैं ऐसे लोगों को जरा कहना चाहता हूं, अगर उन्हें सच में फॉरेन पॉलिसी सब्जेक्ट में रुचि है और फॉरेन पॉलिसी को समझना है और आगे जाकर के कुछ करना भी है, यह मैं शशि जी के लिए नहीं कह रहा हूं, तो मैं ऐसे लोगों को कहूंगा एक किताब जरूर पढ़ें, हो सकता है उनको बहुत फिर कहां क्या बोलना है उतनी समझ हो जाएगी, वह किताब का नाम है JFK's forgotten crisis JF कैनेडी की बात है। JFK's forgotten crisis नाम की किताब है। यह किताब एक प्रसिद्ध फॉरेन पॉलिसी स्कॉलर ने लिखी है और उसमें महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र है। इस किताब में भारत के पहले प्रधानमंत्री और वो विदेश नीति को भी नेतृत्व करते थे। इस किताब में पंडित नेहरू और अमेरिका के तब के राष्ट्रपति जॉन एफ केन के बीच हुई चर्चाओं और निर्णय का भी विस्तार से वर्णन है। जब देश ढेर सारी चुनौतियों का सामना कर रहा था। तब विदेश नीति के नाम पर क्या खेल हो रहा था, उस किताब के माध्यम से अब सामने आ रहा है और इसलिए अब मैं कहूंगा की जरा यह किताब पढ़िए।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

राष्ट्रपति जी के अभिभाषण के बाद एक महिला राष्ट्रपति जी, एक गरीब परिवार की बेटी, उनका सम्मान ना कर सके आपकी मर्जी, लेकिन क्या-क्या कहकर उनको अपमानित किया जा रहा है। मैं राजनीति हताशा निराशा समझ सकता हूं, लेकिन एक राष्ट्रपति के खिलाफ क्या कारण है, क्या कारण है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आज भारत इस प्रकार की विकृत मानसिकता को छोड़कर के, उस सोच को छोड़कर के वीमेन लेड डेवलपमेंट के मंत्र को लेकर के आगे बढ़ रहा है। अगर आधी आबादी उसको अगर पूरा अवसर मिले तो भारत दो गुनी रफ्तार से आगे बढ़ सकता है और यह मेरा विश्वास है, 25 साल से इस क्षेत्र में काम करने के बाद मेरा विश्वास और दृढ हुआ है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

पिछले 10 साल में सेल्फ हेल्प ग्रुप्स अब तक 10 करोड नई महिलाएं SHG में जुड़ी हैं, और ये महिलाएं वंचित परिवारों से हैं, ग्रामीण बैकग्राउंड से हैं। समाज के अंतिम पायदान पर बैठी इन महिलाओं का सामर्थ्य बढ़ा, उनका सामाजिक स्तर भी ऊपर उठा और सरकार ने इनकी मदद 20 लाख रुपए तक बढ़ा दी है, ताकि वो इस काम को आगे बढ़ा सके। उनकी कार्य क्षमता बढ़े, उसका स्केल बढ़े, उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं और उसका आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव हो रहा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में लखपति दीदी अभियान की चर्चा की है। हमारी नई सरकार तीसरी बार बनने के बाद अब तक जो जानकारियां रजिस्टर हुई है उस हिसाब से 50 लाख से ज्यादा लखपति दीदी की जानकारी हम तक पहुंची है और जब से मैंने इस योजना को आगे बढ़ाया है, अब तक करीब करीब सवा करोड़ महिलाएं लखपति दीदी बनी हैं और हमारे लक्ष्य है कि हम तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाएंगे और इसके लिए आर्थिक कार्यक्रमों पर बल दिया जाएगा।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आज देश के अनेक गांवों में ड्रोन दीदी की चर्चा हो रही है, एक मनोवैज्ञानिक परिवर्तन गांव में आया है, महिला के हाथ में ड्रोन चलाते हुए देख के गांव के लोगों का महिला के प्रति देखने का नजरिया बदल रहा है और आज नमो ड्रोन दीदी खेतों में काम कर करके लाखों रुपया कमाने लगी हैं। मुद्रा योजना भी नारी शक्ति के लिए उसके सशक्तिकरण की बहुत बड़ी भूमिका अदा कर रहा है। करोड़ महिलाएं पहली बार मुद्रा योजना लेकर के उद्योग के अंदर अपने कदम रखे हैं और उद्योगपति की भूमिका में आई हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

4 करोड़ परिवारों को जो घर दिए उसमें से करीब करीब 75 परसेंट मकान ऐसे हैं जिसका मालिकाना हक महिलाओं को मिला है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

यह बदलाव 21वीं सदी के सशक्त भारत की नींव रख रहा है। आदरणीय अध्यक्ष जी, विकसित भारत का लक्ष्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था उसको सशक्त किए बिना हम विकसित भारत का निर्माण नहीं कर सकते हैं और इसलिए रूरल इकोनॉमी के हर क्षेत्र को हमने स्पर्श करने का प्रयास किया हैं और हम जानते हैं, रूरल इकोनॉमी में खेती किसानी का बहुत महत्व रहता है। विकसित भारत के 4 स्तंभों में हमारा किसान एक मजबूत स्तंभ है। बीते दशक में खेती के बजट में 10 गुना वृद्धि की गई है, 10 टाइम। 2014 के बाद की बात मैं बताता हूं और यह बहुत बड़ा जंप है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आज जो लोग यहां किसान की बातें करते हैं, 2014 से पहले यूरिया मांगने पर लाठी पड़ती थी। रात-रात कतारों में खड़ा रहना पड़ता था और वह जमाना था, जब खाद किसानों के नाम पर निकलती थी, लेकिन खेत में नहीं पहुंचती थी, कहीं और ही काली बाजरी में और 1 रुपया और 15 पैसे वाला हाथ की सफाई का खेल चलता था। आज किसान को पर्याप्त खाद मिल रही है। कोविड का महासंकट आया, सारी सप्लाई चैन डिस्टर्ब हो गई, दुनिया में अनाप-शनाप दाम बढ़ गए और परिणाम यह हुआ, क्योंकि हम यूरिया पर डिपेंडेंट हैं, हमें बाहर से लाना पड़ता है, आज भारत सरकार को जो बोरा यूरिया का ₹3000 में पड़ता है, सरकार ने बोझ झेला और किसान को 300 से भी कम कीमत पर दिया है, 300 रुपये से कम। किसान को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो, इसके लिए लगातार हम काम कर रहे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

किसानों को सस्ती खाद मिले इस एक काम के लिए पिछले 10 साल में 12 लाख करोड़ रूपया खर्च किया गया है। पीएम किसान सम्मान निधि, उससे करीब साढे तीन लाख करोड रुपए डायरेक्ट किसान के खाते में पहुंचे हैं। हमने रिकॉर्ड एमएसपी भी बढ़ाया और पहले की तुलना में बीते दशक में तीन गुना अधिक हमने खरीदी की है। किसान को ऋण मिले, आसान ऋण मिले, सस्ता ऋण मिले, उसमें भी तीन गुना वृद्धि की गई है। पहले प्राकृतिक आपदा में किसान को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता था। हमारे सेवाकाल के दौरान पीएम फसल बीमा के तहत 2 लाख करोड़ रुपए किसानों को मिले हैं।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

सिंचाई के लिए बीते दशक में अभूतपूर्व कदम उठाए गए हैं और जो लोग संविधान की बातें करते हैं उनको ज्यादा ज्ञान नहीं है, यह भी दुर्भाग्य है, बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हमारे देश में डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर ने पानी की योजनाओं को लेकर इतना उनका विजन क्लियर था, इतना व्यापक था और इतना समावेशी था, जो आज भी हम लोगों को प्रेरणा देता है और 100 से बड़ी सिंचाई परियोजनाओं, जो दशकों से लटकी हुई थीं, हमने उसको पूरा करने का अभियान चलाया, ताकि किसानों के खेत में पानी पहुंचे। बाबा साहब का विजन भा नदियों को जोड़ने का, नदियों को जोड़ने की वकालत बाबा साहब अंबेडकर ने की थी। लेकिन सालों तक, दशकों-दशक बीत गए, कुछ नहीं हुआ। आज हमने केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट और पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है और मैं तो गुजरात में कई नदियों को इस प्रकार से जोड़कर के लुप्त हुई नदियों को जिंदा करने का काम करने का मेरा सफल अनुभव भी रहा है।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

हर देशवासी का ये सपना होना चाहिए। हम सबका सपना होना चाहिए कि दुनिया के हर डायनिंग टेबल पर मेड इन इंडिया फूड पैकेट क्यों न हो। आज मुझे खुशी होती है जब भारत की चाय इसके साथ-साथ अब हमारी कॉफी भी दुनिया में अपनी महक फैला रही है। बाजारों में धूम मचा रही है। Even हमारा टर्मरिक कोविड के बाद सबसे ज्यादा मांग बढ़ी है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आप जरूर देखेंगे, आने वाले समय में हमारा Processed Seafood और जिसको लेकर के कुछ लोगों को पता नहीं कब क्यों दर्द हुआ, बिहार का मखाना दुनिया में पहुंचने वाला है। हमारा मोटा अनाज यानी श्री अन्‍न, यह भी दुनिया के बाजारों में भारत की शान बढ़ाएगा।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

विकसित भारत के लिए Future Ready शहर वो भी बहुत जरूरी है। हमारा देश बहुत तेजी से Urbanisation की ओर बढ़ रहा है और इसे चुनौती और संकट नहीं मानना चाहिए। इसे अवसर मानना चाहिए और हमने उस दिशा में काम आगे करना चाहिए। Infrastructure का विस्तार अवसरों का प्रसार होता है। जहां connectivity बढ़ती है, वहां संभावनाएं भी बढ़ती है। दिल्ली-यूपी को जोड़ने वाली पहली नमो रेल, उसका लोकार्पण था और मुझे भी उसमें यात्रा करने का अवसर मिला। ऐसी connectivity, ऐसा Infrastructure भारत के सभी प्रमुख शहरों को पहुंचे, यह हमारी आने वाली दिनों की जरूरत है और हमारी दिशा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

दिल्ली का नेटवर्क डबल हुआ और आज टियर-2, टियर-3 सिटी में भी मेट्रो नेटवर्क पहुंच रहा है। आज हम सभी गर्व कर सकते हैं, आज भारत का मेट्रो नेटवर्क 1000 किलोमीटर पार कर गया है और इतना ही नहीं, वर्तमान में 1000 किलोमीटर और उस पर भी काम चल रहा है। यानी हम कितना तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

प्रदूषण को कम करने की दिशा में भी कई initiative भारत सरकार ने लिए हैं। 12 हजार इलेक्‍ट्रिक बस हमने देश में दौड़ाना शुरू किया है और दिल्‍ली को भी बड़ी सेवा करी है, हमने दिल्ली को भी दिया है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हमारे देश में एक नया अर्थव्यवस्था हमेशा समय-समय पर इसका विस्तार होता रहा है। आज बड़े शहरों में Gig Economy एक महत्‍वपूर्ण एरिया डेवलप हो रहा है। लाखों युवा इसमें जुड़ रहे हैं। हमने इस बजट में कहा है कि श्रम! ई-श्रम पोर्टल पर ऐसे Gig वर्कर अपनी रजिस्ट्री करवाए और वेरिफिकेशन के बाद उनको इस न्‍यू ऐज सर्विस इकोनॉमी है, उसको हम किस प्रकार से सहायता कर सकें और उनको एक आईडी कार्ड मिले ई-श्रम पोर्टल पर आने के बाद और हमने कहा है कि इन Gig वर्कर्स को आयुष्मान योजना का भी लाभ दिया जाएगा ताकि Gig वर्कर को एक सही दिशा में जाने की सुविधा मिलेगी और एक अनुमान है कि आज देश में करीब-करीब एक करोड़ Gig वर्कर हैं और उस दिशा में भी हम काम कर रहे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

MSME सेक्टर बहुत बड़ी मात्रा में जॉब के अवसर लेकर के आता है और यह ऐसा क्षेत्र है कि जिसमें रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। यह छोटे उद्योग आत्मनिर्भर भारत के प्रतीक हैं। देश की अर्थव्यवस्था में हमारा MSME सेक्टर बहुत बड़ा योगदान दे रहा है। हमारी नीति साफ है, MSMEs को सरलता, सहुलियत और संबल एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोजगार की संभावनाएं हैं और इस बार हमने Mission Manufacturing उस पर बल दिया है और एक Mission Mode में हम Manufacturing Sector मतलब के MSMEs को बल देना और MSMEs के माध्यम से अनेक नौजवानों को रोजगार देना और स्किल डेवलपमेंट से रोजगार के लिए नौजवानों को तैयार करना, ऐसे पूरे इकोसिस्टम को हम बल देते हुए आगे बढ़ रहे हैं। MSMEs सेक्‍टर में सुधार के लिए कई पहलुओं पर हमने काम शुरू किया है। MSMEs के लिए Criteria 2006 में बनाया गया था, उसे अपडेट नहीं किया गया। पिछले 10 वर्षों में इस Criteria में हमने दो बार अपग्रेडेशन करने का प्रयास किया और इस बार एक बहुत बड़ा जंप लगाया है। पहली बार 2020 में, दूसरी बार इस बजट में हमने MSMEs को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। हर तरफ उनको आर्थिक सहायता दी जा रही है।

MSMEs के सामने चुनौती Formal Financial Resources की कमी की रही है। कोविड के संकट के काल में MSMEs को एक विशेष बल दिया गया। हमने खिलौना उद्योग, उस पर एक विशेष बल दिया है। हमने कपड़ा उद्योग को विशेष बल दिया, उनको कैश-फ्लो की कमी नहीं होने दी और बिना किसी गारंटी के लोन दिया। हजारों उद्योगों में लाखों नौकरियों की संभावनाएं बनीं और नौकरियां सुरक्षित भी हुईं। छोटे उद्योग, उनके लिए Customised Credit Card, Credit Guarantee Coverage, उस दिशा में हमने कदम उठाए जिसके कारण वो अपने Ease of doing business को भी बढ़ावा मिले और वो गैर-जरूरी नियमों को कम करने के कारण, उनका Administrative बोझ जो रहता था, एकाध व्यक्ति को उनको काम पर पैसा देना पड़ता था, वो भी बंद कर दिया गया। MSMEs को बढ़ावा देने के लिए जो हमने नई नीतियां बनाई हैं, आपको खुशी होगी एक समय था 2014 के पहले, खिलौने जैसे चीजें हम इंपोर्ट करते थे, आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि मेरे देश के खिलौने बनाने वाले छोटे उद्योग आज दुनिया के अंदर खिलौने एक्‍सपोर्ट हो रहे हैं और आयात में बहुत बड़ी गिरावट आई है। निर्यात में करीब 239 परसेंट वृद्धि हुई है। MSMEs के जरिए संचालित ऐसे कई सेक्‍टर्स हैं, जो दुनिया भर में अपनी पहचान बना रहे हैं। मेड इन इंडिया कपड़े, Electronics, Electrical Scouts के सामान आज दूसरे देशों के जीवन का हिस्सा बन रहे हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

विकसित भारत के सपने को पूरा करने के लिए देश आगे बढ़ रहा है और बड़े आत्‍मविश्‍वास के साथ आगे बढ़ रहा है। विकसित भारत का सपना, यह कोई सरकारी सपना नहीं होता है। वो 140 करोड़ देशवासियों का सपना है और इस सपने को अब सबने जितनी ऊर्जा दे सकते हैं, देने का प्रयास करना है और दुनिया में उदाहरण हैं, 20-25 साल के कालखंड में दुनिया के कई देशों ने विकसित बनकर के दिखाया है, तो भारत के पास तो सामर्थ्य अपार है। हमारे पास डेमोग्राफी है, डेमोक्रेसी है, डिमांड है, हम क्यों नहीं कर सकते? इस विश्वास के साथ हमें आगे बढ़ना है और हम भी 2047, जब देश आजाद होगा तब आजादी के 100 साल होंगे जब तब हम विकसित भारत बनकर रहेंगे, यह सपने लेकर के चल रहे हैं।

और आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं विश्वास से कहता हूँ हमें और बड़े लक्ष्य पार करने हैं और हम करके रहेंगे और माननीय अध्यक्ष जी, यह तो अभी हमारी तीसरी ही टर्म है। हम देश की आवश्यकता के अनुसार, आधुनिक भारत बनाने के लिए, सक्षम भारत बनाने के लिए और विकसित भारत का संकल्प साकार करने के लिए, हम आने वाले अनेक वर्षों तक जुटे रहने वाले हैं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं सभी दलों से आग्रह करता हूं, सभी नेताओं से आग्रह करता हूं, देशवासियों से आग्रह करता हूं, अपनी-अपनी राजनीतिक विचारधाराएं होंगी, अपने-अपने राजनीतिक कार्यक्रम होंगे, लेकिन देश से बड़ा कुछ नहीं हो सकता है। हम सबके लिए देश सर्वोपरि है और हम मिलकर के विकसित भारत के सपने को अपना 140 करोड़ देशवासियों का सपना भी अपना सपना है कि जहां बैठा हुआ हर सांसद विकसित भारत के सपने को पूरा करने के लिए काम कर रहा हो।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण पर अपना धन्यवाद व्यक्त करते हुए आपका भी आभार व्यक्त करता हूं, सदन का भी आभार व्यक्त करता हूं। धन्यवाद!