Shri Narendra Modi addressing Valedictory Function of Vibrant Gujarat 2013

Published By : Admin | January 13, 2013 | 15:41 IST

मुझे लगता है कि मैं सबसे पहले एक महत्वपूर्ण कार्य पूरा कर दूँ और बाद में सारी बातें बताऊँ। मैं यहाँ खड़ा हुआ हूँ आपको इन्वीटेशन देने के लिए। आप लिख लीजिए, 11 जनवरी 2015, सातवीं वाइब्रेंट समिट के लिए मैं आपको निमंत्रण देता हूँ। ऐसा ही निमंत्रण जब मैंने 2011 में दिया था तो दूसरे दिन हमारे मीडिया के मित्रों ने मेरी पिटाई की थी कि अभी चुनाव बाकी हैं और मोदी 2013 का इन्वीटेशन कैसे दे रहे हैं..! इस बार ऐसा संकट नहीं है, तो मैं आप सबको बड़े उमंग और उत्साह के साथ, नए सपनों के साथ, नई उम्मीदों के साथ फिर एक बार वाइब्रेंट गुजरात समिट में आने का निमंत्रण देता हूँ और मुझे विश्वास है कि आप आवश्य आएंगे।

मित्रों, ये जो वाइब्रेंट समिट का आपने अनुभव किया, देखा, सुना... विश्व भर के जितने भी लोग आते हैं उन सब के लिए एक अजूबा है। मित्रों, इन्टरनेशनल कॉन्फरेंसिस में मैं भी गया हूँ, सेमिनार्स में मैं भी गया हूँ, लेकिन इतने बड़े स्केल पर, इतनी माइन्यूट डिटेल के साथ, इतनी विविधताओं के साथ, इतनी सारी मल्टीपल एक्टीविटीस् को जोड़ कर के शायद ही विश्व में कोइ इवेंट आयोजित होता होगा। इस काम को सफल करने में अनेक लोगों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मदद की है, जिम्मेवारी उठाई है, परिश्रम किया है। मैं इस मंच से इसे सफल बनाने वाले सभी लोगों का हृदय से धन्यवाद करता हूँ, गुजरात की जनता की तरफ से इस कार्य को सफल बनाने में जुड़े हुए सभी का अभिनंदन करता हूँ..! भाइयों-बहनों, इस इवेंट में अनेक पहलुओं पर लोगों का ध्यान जाता है, लेकिन एक बात की और भी नजर करने की आवश्यकता है। करीब 121 देशों के लोग यहां आए, ये पूरा नजरिया उन्होंने देखा। पल भर के लिए कल्पना कीजिए मित्रों, ये 121 देशों के 2100-2200 लोग जब अपने देश जाएंगे, अपने लोगों से बात करेंगे तो क्या कहेंगे..? यही कहेंगे कि मैं हिन्दुस्तान गया था, मैं इन्डिया गया था, मैं भारत गया था..! इसका मतलब सीधा-सीधा है मित्रों, ये इवेंट से दुनिया के 121 से अधिक देशों में हम एक संदेश पहुंचाने में सफल हुए हैं कि ये भी एक हिन्दुस्तान है, हिन्दुस्तान का यह भी एक सामर्थ्य है..! मित्रों, हिन्दुस्तान के हमारे एक इवेंट ने 121 देशों में नए एम्बेसेडर्स को जन्म दिया है और ये हमारे देश के नए एम्बेसेडर्स, इनकी चमड़ी का रंग कोई भी क्यों ना हो, उनकी भाषा कोई भी क्यों ना हो, लेकिन जब कभी हिन्दुस्तान का जिक्र आएगा, मैं विश्वास से कहता हूँ ये 121 देशों के लोग हमारे लिए कुछ ना कुछ अच्छा बोलेंगे, बोलेंगे और बोलेंगे..! एक देश के नागरिक के लिए इससे बड़े गर्व की बात क्या हो सकती है मित्रों कि इतने देशों में इतने गौरवपूर्ण रूप से हमारे देश की चर्चा हो, हमारे देश की तारीफ हो, हमारे देश की अच्छाइयों की बात हो..! मित्रों, हर हिन्दुस्तानी के लिए ये सीना तान कर के याद करने वाली घटना घटती है और इसलिए, परिश्रम भले ही गुजरात के लोगों ने किया होगा, धरती भले ही गुजरात की होगी, इवेंट के साथ भले ही गुजरात का नाम जुड़ा होगा, लेकिन ये भारत की आन, बान, शान को बढ़ाने वाली घटना है, इस बात को हमें स्वीकृत करना होगा।

भाइयों-बहनों, मैं देख रहा था कि जो जीवन में कुछ करना चाहते हैं, जिनके अपने कुछ सपने हैं, साधन भले ही सीमित होंगे लेकिन ऊंची उडान का जिनका इरादा है, कुछ नया करके दिखाने की जिनकी इच्छा है, ऐसे हजारों नौजवान इस समिट के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इन सबको कभी दुनिया के हर देशों में जाने का अवसर नहीं मिलने वाला है और जब तक अवसर मिले तब तक इन्हें एक्सपोजर नहीं मिलने वाला है। मित्रों, इस इवेंट के कारण, इस एक्जीबिशन के कारण, दुनिया के इतने देशों के लोगों से बात करने के कारण, हमारे देश के, हमारे गुजरात के, जो उभरते हुए एन्ट्रप्रेनर्स हैं, जो उभरती हुई पीढ़ी है, उस पीढ़ी का एक विश्वास पैदा होता है कि हाँ यार, दुनिया इतनी बड़ी है, इतना सारा है तो चलिए हम भी किसी छोर को हाथ लगा लें, हम भी उस दिशा में आगे बढ़ जाएं, ये विश्वास पैदा करता है। मित्रों, कभी हम स्वीकार करें या ना करें, हम मानें या ना मानें, लेकिन हर व्यक्ति के अंदर एक फियर हमेशा अस्तित्व रखता है। मैं हूँ, आप हो, यहां बैठे हुए हर एक के मन में होता है। और वो फियर क्या होता है..? अपने आप में एक अननोन फियर होता है। आप अगर पहली बार मुंबई जाते हैं तो आपके मन में एक फियर रहता है। आपके लिए मुंबई अननोन है तो फियर रहता है कि कैसा होगा, कहाँ जाऊँगा, किसको मिलूँगा, कैसे शुरू करुँगा... आप के मन के अंदर एक छुपा हुआ भय रहता है। यह बहुत स्वाभाविक है। मित्रों, इस इवेंट के कारण दुनिया के इतने देशों को देखना, मिलना, समझना, सुनना... इसके कारण मेरे देश की, मेरे राज्य की जो नई पीढ़ी है उनके लिए अननोन फियर के जो सेन्टीमेंट्स हैं वो अपने आप खत्म हो जाता है और उनके अंदर विश्वास का बीज बो देता है। अगर वो यहाँ किसी न्यूजीलैंड के व्यक्ति को मिला है तो न्यूजीलैंड जाने से पहले उसको न्यूजीलैंड के विषय में विश्वास पैदा हो जाता है, अननेान फियर उसके दिल में होता नहीं है। मित्रों, एक मनोवैज्ञानिक परिणाम होता है और उस मनोवैज्ञानिक परिणाम की अपनी एक ताकत होती है। मैं नहीं मानता कि जो रुपयों-पैसों के तराजू को लेकर बैठे हैं उनके लिए इन बातों को समझना संभव होगा..! शायद मेरी दस समिट होने के बाद कई लोग ऐसे होंगे जिनको समझदारी शुरू हो जाएगी।

मित्रों, कोई कंपनी, कोई राज्य अरबों-खरबों रूपया खर्च करके पी.आर. एजेंसी हायर कर लें, दुनिया के अंदर वो कंपनी या कोई स्टेट अपनी ब्रांडिंग के लिए कोशिश करें, मैं दावे से कहता हूँ मित्रों, इतने कम समय में गुजरात ने जो अपना ब्रांडिंग किया है, शायद दुनिया की दसों ऐसी कंपनियां इक्कठी हों, ये स्थिति पैदा नहीं कर सकती है। और कैसे हुआ है..? वो इसलिए हुआ है कि हमने प्रारंभ से एक मंत्र लिया। लोग भिन्न-भिन्न माध्यम से गुजरात के विषय में जानते थे। मैँ पहली बार जब 2003 में लंदन गया था, समिट को सफल करने के लिए मैं लोगों से मिलने गया था। उधर आस्ट्रेलिया की तरफ भी गया था। लोगों को मैं बता रहा था कि आप गुजरात आइए। तब लोगों के मन एक जिज्ञासा थी और पूछते थे कि गुजरात कहाँ है..? मुझे कहना पड़ता था कि मुंबई से नार्थ में एक घंटे का फ्लाईट है। आज लोग कहते हैं कि मुंबई जाना है तो बस गुजरात के पास ही है। मित्रों, ये चीजें सामान्य नहीं है। इसके लिए सोच समझ करके हमने पुरूषार्थ किया है। और तब, मैं जब पहली बार गया था, उस समय हिन्दुस्तान की परंपरा क्या थी..? परंपरा ये थी कि हिन्दुस्तान के राजनेता विदेशों में जाते थे, निकलने से पहले अपने स्टेट में प्रेस कान्फ्रेंस करते थे, मुख्यमंत्री जाते थे और कहते थे कि हम इन्वेस्टमेंट के लिए जा रहे हैं। दुनिया के किसी देश में जाते थे, दो-चार एम.ओ.यू. करते थे, फिर वापिस आते थे और दुनिया को बताते थे कि हम इतने एम.ओ.यू. करके आएं हैं और उस टूर को सफल माना जाता था। और फिर कभी मीडिया उनको पूछता नहीं था कि भाई, आप वो जा कर आए थे उसका क्या हुआ..? उस समय का जमाना वैसा था। मित्रों, 2003 के पहले ईश्वर ने हमें क्या समझ दी होगी, क्या हमें ऐसा विचार दिया होगा, मैं ईश्वर का आभारी हूँ कि मैंने डे वन से काम किया। मैंने कहा कि हम दुनिया के देशों में जा कर के लोगों को समझाएंगे और बात करेंगे, लेकिन हम वो काम नहीं करेंगे जो आम तौर पर हिन्दुस्तान की सरकारें करती हैं। मित्रों, यहाँ मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूँ। मैं एक दृष्टिकोण में बदलाव कैसे आता है वो दिखाना चाहता हूँ। और मैं जब विदेशों में गया तो लोग मुझे कहते थे कि आप क्या चाहते हैं..? मैं कहता था कि मैं कुछ नहीं चाहता हूँ, मैं बस इतना ही चाहता हूँ कि सिर्फ एक बार गुजरात आईए। और मैं कहता था, फील गुजरात..! इतनी छोटी सी बात मैं कह कर आया हूँ दुनिया को, “फील गुजरात”..! आज मित्रों, जो लोग मेरे गुजरात की धरती पर आते हैं और मैं मेरी मिट्टी की कसम खा कर के कहता हूँ, इस मिट्टी ताकत इतनी जबर्दस्त है, हमारे पुरखों ने इतना परिश्रम करके संजाई हुई ये ऐसी मिट्टी है कि यहां आने वाला वाला हर व्यक्ति उसकी सुगंध से अभिभूत हो करके दुनिया के देशों में जाकर के अपनी बात बताता है। मित्रों, कल मंच पर से पूछा गया था कि पता नहीं गुजरात की मिट्टी में ऐसा क्या है..! ये सवाल बहुत स्वाभाविक है, हर किसी के मन में उठता है। पहले नहीं उठता था, अब तो उठता ही है। भाइयों-बहनों, इस मिट्टी में एक पवित्रता है और इस मिट्टी में हमारे पुरखों का पसीना है, इस धरती को हमारे पुरखों ने अपने खुद के पसीने से सींचा है और तब जा कर के ये धरती उर्वरा बनी है। और इस धरती के अन्न को खाने वाला भी उसी उर्वरा और शक्ति का भरा हुआ होता है जो दुनिया के साथ आंख से आंख मिला कर बात करने का सामर्थ्य रखता है।

भाइयों-बहनों, हम विकास की नई ऊंचाइयों को पार करना चाहते हैं। अगर हम जगत को जानेंगे नहीं, जगत को समझेंगे नहीं, बदलती हुई दुनिया को पहचानेंगे नहीं, हम उनसे बात नहीं करेंगे तो हम एक कुंए के मेंढक की तरह अपनी दुनिया में मस्त रहेंगे और हो सकता है हमारी जिंदगी पूरी हो जाए तो भी हमें आनंद ही आनंद रहेगा कि बहुत कुछ हुआ। लेकिन जब बदलते हुए विश्व को देखेंगे, जहां समृद्घि पहुंच चुकी है उस विश्व को देखेंगे तो हमारे भीतर भी होगा कि अरे यार, ये तो यहाँ पहुंच गए, हमें तो पहुंचना अभी बहुत बाकी है..! और तब जाकर के दौड़ने की इच्छा जगती है, चलने का मन करता है, नए सपने जगते हैं और परिश्रम करने की पराकाष्ठा होती है और इसलिए परिवर्तन आने की संभावना पैदा होती है। और इसलिए भाइयों-बहनों, समय की माँग है कि हम बदले हुए युग में किसी भी विषय में विश्व से अलग नहीं रह सकते। अपने आप को दुनिया से अलग थलग करके, एक कोने में बैठ कर के हम अपनी दुनिया को आगे बढ़ाने के सपनों को कभी पूरा नहीं कर सकते। और इसलिए, बदलते हुए विश्व को समझने का अवसर इस प्रकार की समिट से मिलता है। मित्रों, मुझे खुशी है, गुजरात के सामान्य परिवार के लोग लाखों की तादात में ये एक्जीबिशन देखने के लिए पिछले पाँच दिन से कतार में खड़े हैं। क्यों..? उनको तो कुछ लेना-बेचना नहीं है, वो यहां जो देखेंगे उससे तो उनकी दुनिया बदल जाने वाली नहीं है। लेकिन हमने एक अर्ज पैदा की है। और ये हमारी सबसे बड़ी सफलता है कि मेरे राज्य के सामान्य से सामान्य नागरिक के भीतर हमने एक अर्ज पैदा की है, उसका भी मन करता है कि चलो यार, क्या अच्छा है, जरा देखें तो सही..! उसको लगता है कि हो सकता है आज देखेंगे तो कल पाएंगे भी सही..! मित्रों, एक ट्रांसफोर्मेशन है, एक बदलाव है, उस बदलाव को हमें समझने की आवश्यकता है। और इस समिट के माध्यम से मैं मेरे गुजरात की एक बहुत बड़ी शख्सियत और शक्ति, चाहे गाँव हो, तहसील हो, जिला हो, वहाँ पर समाज जीवन को संचालन करने वाली एक शक्ति रहती है, उस शक्ति के अंदर समिट के माध्यम से मैं नए सपनों को संजोने का, नई दिशा को पकड़ने का, एक नया आयामों की ओर जाने का एक नया अनफोल्डमेंट कर रहा हूँ। ये समिट उस अनफोल्डमेंट का कारण बन रही है। ये बहुत बड़ा बदलाव आ रहा है। मित्रों, किसी भी गुजराती को गर्व होता है। आगरा में 200 देशों के लोग ताजमहल देख कर जाएंगे तो भी आगरा का आदमी वो गौरव अनुभव नहीं करता है, क्योंकि ताजमहल ने बनाने वाले ने बनाया, ईश्वर की इच्छा थी कि उस महाशय का आगरा में जन्म हुआ और आने वाले को ये पता चला की ये दुनिया की एक अजायबी है तो चलो मैं भी एक फोटो खिचवां कर आ जाऊँ..! अपनापन महसूस नहीं होता है। लेकिन इस धरती पर अपने पसीने से कोशिश कर कर के दुनिया के 121 देशों के लोग आएं तो हमारे सब लोगों को लगता है कि यार, मेरे मेहमान हैं, ये मेरे अपने हैं..!

मित्रों, मैं एक और बात बताना चाहता हूँ। ये बात भी जो मैं कह रहा हूँ ये बहुत लोगों की समझ के बाहर की चीज है, वो समझेंगे उनके लिए मैं समझ छोड़ कर रखता हूँ। मित्रों, ये 121 देशों के लोगों का यहाँ आना, हर वाइब्रेंट समिट में आने वाले लोगों की संख्या भी काफी है। अनेक देश के लोग हैं जो हर वाईब्रेंट समिट में आते हैं। मित्रों, बार-बार यहाँ आने से इस धरती के प्रति उनको भी लगाव हो रहा है, उनको भी अपनापन महसूस हो रहा है। आपने देखा होगा, इतने सारे देशों के लोग, हर किसी की कोशिश है ‘नमस्ते’ बोलने की, हर किसी की कोशिश है ‘केम छो’ बोलने की..! वो अपने आप को इस मिट्टी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। यहाँ की परंपरा और यहाँ की संस्कृति से अपने आप को जोड़ने का उसमें उमंग है। इसका मतलब ये हुआ मित्रों, जिसको हम किसी थर्मामीटर से नाप नहीं सकते, किसी पैरामीटर से नाप नहीं सकते ऐसी एक घटना आकार ले रही है। और वो घटना क्या है? दुनिया के अनेक लोगों का गुजरात के साथ बॉन्डिंग हो रहा है। ये मेरी बात आने वाले दिनों में सत्य हो कर के सिद्घ होगी और मैं साफ मानता हूँ कि ये जो बॉन्डिंग है, वो अमूल्य है। इसका कोई हिसाब-किताब नहीं लगा सकते। और मैं विश्वास से कहता हूँ कि दिस बॉन्डिंग इज़ स्ट्रॉंगर दैन ब्रान्डिंग..! गुजरात के ब्रांड की जितनी ताकत है मित्रों, उससे ज्यादा गुजरात के साथ जो बॉन्डिंग हो रहा है, वो पिढ़ियां तक रहने वाला काम इस धरती पर हो रहा है। गुजरात में कोई भी घटना घटेगी, अच्छी हो या बुरी, आप विश्वास किजीए मित्रों, इन सब के देशों में गुजरात की चर्चा आवश्य होगी। अच्छी-बुरी घटना के साथ उनका भी मन जुड़ा होगा। मित्रों, एक अर्थ में गुजरात का एक विश्वरूप खड़ा हो रहा है। ऍक्स्पैन्शन ऑफ गुजरात, एक नया विश्व रूप गुजरात का खड़ा हो रहा है। मित्रों, इतने कम समय में एक राज्य का विश्वरूप बनना ये अपने आप में बहुत बड़ी सिद्घि है। और इस सिद्घि को नापने के लिए आज की प्रचलिए जो परंपराएं हैं, मान्यताएं हैं वो कभी काम नहीं आएंगी। एक दूसरे नजरिए से देखना पड़ेगा। भाइयों-बहनों, दुनिया के इतने सारे देश के लोग, हमारे उत्तर प्रदेश के व्यक्ति को भी गुजराती खाना खाना हो तो पूछता है कि यार, उसमें गुड़ तो नहीं डाला है ना..! दाल मीठी तो नहीं होगी ना..! उसके मन में सवाल रहता है। मित्रों, जिनको एक घंटा नॉन-वेज के बिना चलता नहीं है ऐसे 121 देश के नागरिक दो दिन अपनी परंपराएं छोड़ कर के हमारी गुजरात की जो भी वेजिटेरियन डिश है उसका मजा ले रहे हैं। मित्रों, ये छोटी चीज है क्या..?

मित्रों, इस समिट में मैंने कहा था कि मेरे दिमाग में हमारे देश की युवा शक्ति है, मेरे राज्य का युवा धन है। हम लंबे अर्से तक इंतजार नहीं कर सकते मित्रों, हमें हमारे राज्य के युवकों को सज्ज करना होगा। बदलते हुए विश्व के अंदर अपनी ताकत से सिर ऊंचा करके निकल पाएं ये स्थिति हमारे नौजवानों के लिए पैदा करनी होगी। और ये हम सबका दायित्व है, सरकार के नाते दायित्व है, समाज के नाते दायित्व है, शिक्षा संस्थाओं के नाते दायित्व है, हमें उन्हें सज्ज करना होगा। लेकिन एक-दो एक-दो प्रयासों से ड्रैस्टिक चेंज नहीं आता है, मित्रों। छुट-पुट प्रयासों से इम्पेक्ट क्रियेट नहीं होता है। इसके लिए तो सामूहिक रूप से, बड़े फलक पर और बड़े एग्रेसिव मूड में उस विराटता के दर्शन करवाने होंगे, तब जाकर के बदलाव आता है। मित्रों, कभी-कभी हमारे शास्त्रों से हम भी कुछ सीख सकते हैं। छोटे से कृष्ण ने मिट्टी खाई। मैं नहीं मानता हूँ कि मक्खन खाने वाले व्यक्ति को मिट्टी खाने का शौक होगा..! लेकिन कोई ना कोई तो रहस्य होगा, तभी तो मिट्टी खाई होगी। और मिट्टी छुप कर के नहीं खाई थी, माँ यशोदा देख ले उस प्रकार से खाई थी, माँ यशोदा को गुस्सा आए उस प्रकार से मिट्टी खाई थी और तब जाकर के माँ यशोदा ने मुंह खोला और पूरे विश्वरूप का दर्शन हुआ और तब जा कर के यशेादा ने कृष्ण की ताकत को स्वीकार किया था। मित्रों, मनुष्य का स्वाभाव है..! यशोदा को भी शक्ति का साक्षात्कार नहीं हुआ तब तक उसे शक्ति की अनुभूति नहीं हुई थी, इसलिए हमारी इस नई पीढ़ी को भी हमें शक्ति का साक्षात्कार करवाना होगा। और उस मूल विचार को लेकर के हमने इस बार नॉलेज को केन्द्र में रखते हुए विश्व के अनेक देशों से गणमान्य यूनिवर्सिटीज को बुलाया। मित्रों, मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ, आज तक पूरी दुनिया में कहीं पर भी दुनिया के अलग-अलग देशों की 145 यूनिवर्सिटीज एक रूफ के नीचे इक्कठी हुई हो और उस राज्य के लोग उस 145 लीडिंग यूनिवर्सिटीज के साथ बैठ कर के, दो दिन संवाद करके अपने राज्य के युवा जगत को कहाँ ले जाना उसकी ब्लू प्रिंट तैयार करते हो, ये घटना दुनिया में कहीं नहीं हुई है, दोस्तों। मुझे गर्व है वो घटना मेरे गुजरात में घट गई, इस वाइब्रेंट गुजरात के साथ घटी..! मित्रों, 145 युनिवर्सिटीज का एक साथ आना और गुजरात आज जहाँ है उसको ध्यान में रख के चर्चा कर के आगे बढ़ने के सपने संजोना और रोड मैप तैयार करना, ये अपने आप में एक बहुत बड़ी शुभ शुरूआत है।

मित्रों, हम इस बात को मान कर के चलते हैं कि भारत 21 वीं सदी का नेतृत्व करेगा। ये सदइच्छा हम सब के दिलों में पड़ी है। और विश्वास भी इसलिए पैदा होता है कि 21 वीं सदी ज्ञान की सदी है और जब-जब मानव जात ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है, हमेशा-हमेशा हिन्दुस्तान ने विश्व का नेतृत्व किया है। ये सदभाग्य है कि हमारे रहते हुए हमने उस ज्ञान युग में प्रवेश किया है और 21 वीं सदी हिन्दुस्तान की होने की संभावना है। अगर ये पिठीका तैयार है तो हम लोगों का दायित्व बनता है कि विश्व ने ज्ञान की जिस ऊंचाइयों को प्राप्त किया है, उस ज्ञान कि ऊँचाइयों को छूने का सामर्थ्य हमारी युवा पीढ़ी में आना चाहिए, हमारे एज्यूकेशन इंस्टीट्यूशन में आना चाहिए, हमारी संस्थाओं में उस प्रकार का नेचर बनना चाहिए। और उसके लिए एक प्रयास इस वाइब्रेंट समिट के साथ किया। मित्रों, पूरे विश्व को हम बूढ़ा होता हुआ देखते हैं। अपनी आँखों से देख रहे हैं कि विश्व बहुत तेजी से बुढ़ापे की ओर जा रहा है। दुनिया के कई देश हैं जहां अगर चौराहे पर खड़े हो कर घंटे भर लोगों को आते-जाते हुए देखोगे तो बड़ी मुश्किल से 2-5% नौजवान दिखेंगे, ज्यादातर बूढ़े लोग जा रहे होंगे..! आज विश्व में एक अकेला हिन्दुस्तान है जो विश्व का सबसे युवा देश है। 65 प्रतिशत, मेरे देश के 65% नागरिक 35 वर्ष से कम आयु के हैं..! जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो, ज्ञान का युग हो और जब हम स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती मना रहे हैं और आज जब स्वामी विवेकानंद का 150 वां जन्म दिन है, उस पल जब हम बात कर रहे हैं तब, क्या हम लोगों का दायित्व नहीं है कि हम सब लोग मिल कर के 150 साल जिस व्यक्ति के जन्म को हुए हैं और जिसने आज से 125 साल पहले सपना देखा था। 125 साल बीत गए, क्या कभी हमने सोचा है कि विवेकानंद जैसे महापुरुष के सपने क्यों अधूरे रहे..? क्या कमी रह गई..? उन्होंने सपना देखा था और विश्वास से कहा था कि मैं मेरी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी भारत माता जगदगुरू के स्थान पर विराजमान है, दैविप्यमान तस्वीर मैं मेरी भारत माँ की देख रहा हूँ, ये स्वामी विवेकानंद ने कहा था। मित्रों, क्या समय की माँग नहीं है कि जब हम स्वामी विवेकानंद जी के 150 साल मना रहे हैं, तो उनके सपनों को साकार करने के लिए हम अपने आप को सज्ज करें, प्रतिबद्घ करें, प्रतिज्ञित करें और पुरूषार्थ की पराकाष्ठा कर-कर के इस भारत माता को जगदगुरू के स्थान पर विराजमान करने का सपना लेकर के आगे बढ़ें। जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो वो देश क्या कुछ नहीं कर सकता है..! उसकी भुजाओं में सामर्थ्य हो तो जगत की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए हम अपने आप को सज्ज क्यों नहीं कर सकते हैं?

मित्रों, इतने बड़े सपने को पूरा करना भी बहुत छोटी सी शुरूआत से संभव होता है। और हमने बल दिया है स्किल डेवलपमेंट पर। इस पूरे समिट में हम उस बात पर बल दे रहे हैं कि सारी दुनिया को वर्क-फोर्स की जरूरत है, स्किल्ड मैन पावर की जरूरत है। आज मैं यू.के. के लोगों के साथ बात कर रहा था, ब्रिटिश डेलिगेशन के साथ। वो मुझे पूछ रहे थे कि आपको क्या आवश्यकता है। मैंने उनको अलग पूछा, मैंने कहा कि आप बताइए, आपको दस साल के बाद किन चीजों की जरूरत पड़ेगी इसका हिसाब लगाया है क्या..? मैंने कहा हिसाब लगाइए और हमें बताइए, हम उसकी पूर्ति के लिए अभी से अपने आप को तैयार करेंगे। दुनिया को नर्सिस चाहिए, दुनिया को टीचर्स चाहिए, दुनिया को लेबरर्स चाहिए... और मित्रों, मेरा सपना है। अभी भी मैं कहता हूँ कि कुछ बातें हैं जो कुछ लोगों के पल्ले पड़ना संभव नहीं है, दोस्तों..! लोगों को लगता होगा कि यहां से मारूति एक्सपोर्ट हो, लोगों को लगता होगा कि यहाँ से फोर्ड एक्सपोर्ट हो, लोगों को लगता होगा यहाँ से उनकी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट हो... मित्रों, मेरा तो सपना ये है कि मेरे यहाँ से टीचर्स एक्सपोर्ट हों..! मित्रों, एक व्यापारी जब दुनिया में जाता है तो डॉलर और पाऊंड जमा करता है, लेकिन एक टीचर जाता है तो पूरी एक पीढ़ी पर कब्जा करता है..! ये ताकत होती है टीचर की..! और जब विश्व में माँग है और हमारे पास नौजवान हैं, तो क्यों ना इन दोनों का मेल करके हम दुनिया में हमारे टीचर्स को पहुँचाएं..! विश्व की आवश्यकता भी पूरी होगी और हमारे नौजवानों का भाग्य भी बदलेगा। मित्रों, पूरी सोच बदलने की आवश्यकता है और उस सोच को बदलने की दिशा में इस समिट के माध्यम से समाज और राष्ट्र के अंदर किस प्रकार के बदलाव आने चाहिए वो दुनिया के साथ मिल बैठ कर के हम सोच कर के आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। और मित्रों, इसी अर्थ में मैं इस इवेंट को सबसे सफल इवेंट मैं मानता हूँ।

2003 में हमने जब पहली बार वाइब्रेंट समिट की तो गुजरात के व्यापारी और उद्योगकार, हिन्दुस्तान के व्यापारी और उद्योगकार ये सब मिल के जितनी संख्या आई थी, 2013 में उससे चार गुना ज्यादा विदेश की संख्या आई है। उस समय सब मिला कर के जितने थे... हमने छोटे से टागोर हॉल में किया था और कहीं मीडिया की नजर में हमारी बुराई ना हो इसलिए मैंने कहा था कि पीछे यार, कुछ लोग बैठ जाना ताकि भरा हुआ दिखाई दे..! क्योंकि पहली बार प्रयोग करता था, लोग सवाल उठा रहे थे कि लोग गुजरात क्यों आएंगे..? उस नकारात्मक चीज में से ये रास्ता खोजने की कोशिश की और आज 2013 हम देख रहे हैं मित्रों, क्या हाल है..! मैं तो कहता हूँ मित्रों, कि मेरा ये वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, ये कन्सेप्ट डेवलप न हुआ होता तो शायद ये महात्मा मंदिर भी ना बनता। इतनी बड़ी व्यवस्थाएं खड़ी क्यों हो रही हैं..? ये व्यवस्थाएं इसलिए खड़ी हो रही हैं क्योंकि हमें लग रहा है कि हम विश्व के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए अपने आप को सज्ज कर रहें हैं। मित्रों, यहाँ जो व्यवस्था में नौजवान लगे हैं वे कॉलेज स्टूडेंस हैं, स्कूल स्टूडेंटस हैं, एक हफ्ते के लिए यहां उनकी स्पेशल ट्रेनिंग भी हो रही है, देख रहे हैं। मित्रों, उनकी आंखों में कॉन्फिडेंस देखिए आप, इतना बड़ा इवेंट उन्होंने सिर्फ देखा है। किसी को कहा इधर जाइए, किसी को कहा यहां बैठिए... यही काम किया होगा। इतने मात्र से व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों की आँखों में इतनी चमक आई है, तो मित्रों, मेरे पूरे गुजरात में जो लोग इस निर्णय प्रक्रिया में शामिल होतें हैं उनके जीवन में कितना बड़ा बदलाव आएगा वो हम सीधा-सीधा देख सकते हैं, बाहर कुछ खोजने की जरूरत नहीं है, मित्रों।

भाइयों-बहनों, हमें गुजरात को नई-नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। हमने पिछले वर्ष एक छोटा सा प्रयोग किया। वो प्रयोग था एग्रीकल्चर सैक्टर के लिए। कभी मैंने देखा था कि इजराइल के अंदर जब एग्रीकल्चर फेयर होता है, तो मेरे गुजरात से कम से कम दो हजार किसान हजारों रुपया खर्च करके इजराइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने के लिए जाते हैं। कुछ कॉ-आपरेटिव वाले भी जाते हैं, लेकिन उनको तो खर्च का प्रबंध वहाँ से हो जाता है, लेकिन सामान्य किसान भी जाता है..! और तब मैंने सोचा कि मेरे किसानों के लिए भी मुझे कुछ करना चाहिए। हमने 2012 में पहली बार दुनिया के देश के लोगों को, एग्रो टेक्नोलॉजी क्षेत्र के लोगों को यहाँ बुलाया। इसी महात्मा मंदिर में ऐसा ही बड़ा मैंने किसानों का कार्यक्रम किया था और इतनी ही शान से किया था। प्रारंभ था, हिन्दुस्तान के करीब 14 राज्य उसमें शरीक होने के लिए आए थे। और उसकी सफलता को देख कर मित्रों, हमने निर्णय किया है कि हम जैसे वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करते हैं, वैसे ही 2014 में, फिर ’16 में फिर ’18 में एग्रीकल्चर सेक्टर में टेक्नोलॉजी कैसे आए, फूड प्रोसेसिंग कैसे हो, वैल्यू एडिशन कैसे हो... इन सारे विषयों को मैं मेरे गाँव तक ले जाना चाहता हूँ, किसानों तक ले जाना चाहता हूँ और सारी दुनिया को मैं यहाँ लाना चाहता हूँ, मित्रों। मेरा किसान देखे, उसको समझे..! हम उस दिशा में प्रयास करना चाहते हैं। मित्रों, हमने विकास की नई ऊचाइयों को पार किया है उसमें आज मैं एस.एम.ईज के साथ बैठा था। और एक बात हमारे एस.एम.ई. सैक्टर में आज ध्यान में आई है कि हम अपनी कंपनी में जो भी उत्पादन करते हैं, घरेलू बाजार तक सोच कर के ना करें, हम दुनिया के बाजार में कदम रखना चाहते हैं, उस दिशा में हमारी छोटी-छोटी कंपनियाँ भी जाएँ। और मित्रों, सब संभव है। ये कोई चीन का ही ठेका नहीं है कि वो माल पैदा करे और हमारे बाजार में डाल दे। हम में भी दम है, हम दुनिया के बाजार में जा करके, सीना तान के माल बेच सकते हैं। मित्रों, ये मिजाज होना चाहिए। वरना कभी कभी मैंने देखा है कि जब व्यापारी मिलते हैं तो साब, क्या करें, व्यापार ही खत्म हो गया है। मैंने कहा, क्यों..? अरे छोड़ों साहब, पहले तो अम्ब्रेला बेचता था, लेकिन अब तो चाइना से इतनी बड़ी मात्रा में अम्ब्रेला आता है कि मेरा अम्ब्रेला बिकता नहीं है। अरे, रोते क्यों रहते हो, भाई..? हम चाइना के बाजार में जाकर अम्ब्रेला बेचने का मूड बनाएं, हम पूरी दुनिया को बेच सकते हैं, मित्रों..! मैं ये वातावरण बदलना चाहता हूँ और इसलिए मैं कोशिश कर रहा हूँ। हम एग्रीकल्चर सेक्टर में भी उसी प्रकार से जाना चाहते हैं।

मित्रों, आज अभी देखा, कनाडा से एक्सीलेंसी मिनीस्टर यहाँ आए हुए हैं, उन्होंने कहा कि वो यहाँ कनेडा का जो ऑफिस है उसको और अपग्रेड कर रहे हैं, उनको लगता है कि उनके रेग्यूलर काम के लिए जरूरी हो गया है। मुझे आज यू.के. के हाई कमीश्नर बता रहे थे कि यहाँ का जो ब्रिटिश एम्बेसी का यहाँ का जो चैप्टर है उसको वो इक्विवेलन्ट टू मुंबई बनाने जा रहे हैं। अब कितनी सुविधाएं बढ़ेंगी, मित्रों..! मित्रों, गुजरातीज आर बेस्ट टूरिस्ट्स..! इन्होंने हफ्ते में एक दिन थाईलैंड से विमान की सेवा शुरू करने के लिए कहा है। देखना, तीन महीने में हफ्ते में तीन दिन ना करें तो मुझे कहना..! मित्रों, ये जो छोटी-छोटी चीजें हैं जिसकी अपनी एक ताकत है, मित्रों। आप देखिए मित्रों, गुजरात को एशिया में अपनी एक पहचान बनानी चाहिए, एशिया के देशों में अपनी जगह बनानी चाहिए और जगह बनाने के लिए एक रास्ता है, भगवान बुद्घ..! बहुत कम लोगों का समझ आता होगा ये..! और मित्रों, थाइलैंड और गुजरात का ये नाता सिर्फ एक विमान की सेवा का नहीं है, थाइलैंड और गुजरात के बीच सीधी विमान की सेवा गुजरात की धरती पर जो बुद्घ की अनुभूति है और थाइलैंड जो बुद्घ का भक्त है। इस बुद्घ के माध्यम से थाइलैंड और गुजरात का जुड़ना, जापान और गुजरात का जुड़ना, श्रीलंका और गुजरात का जुड़ना, एश्यिन कंट्रीज के बुद्घिज़म का गुजरात के बुद्घिज़म का जुड़ना... और हम भाग्यवान हैं कि हमारे पास भगवान बुद्घ के रेलिक्स हैं। सारी दुनिया हमारे भगवान बुद्घ के रेलिक्स को हाथ लगा कर देख सकती है। हम इसके माध्यम से पूरे एशिया को गुजरात के साथ जोड़ना चाहते हैं। सिर्फ टीचर्स भेज कर के काम अटकने वाला नहीं है मेरा..!

मित्रों, बहुत सारे सपने मन में पड़े हुए हैं। और ये समय नहीं है कि सब बातें पूरी कर दूँ आज ही। लेकिन भाइयों-बहनों, ये राज्य सफलता की नई ऊंचाइयों को छूने के लिए संकल्पबद्घ है। हम गुजरात के सामान्य से सामान्य जीवन की भलाई के लिए कोशिश करने वाले लोग हैं। मैंने देखा है कि इस बार एक सेमीनार पूरा अफोर्डएबल हाऊसिंग के लिए था और दुनिया की टॉपमोस्ट कंपनियाँ जल्दी से जल्दी मकान कैसे बने, सस्ते से सस्ता मकान कैसे बने, अच्छे से अच्छी टेक्नोलॉजी से मकान कैसे बने, कम से कम जगह में बड़े टॉवर कैसे खड़े किये जाएं... उन सारे विषयों पर आज चर्चा कर रहे थे। ये चर्चा क्या गरीब की भलाई के काम आने वाली नहीं है..? लेकिन ये कौन समझाए..! मित्रों, यहाँ कृषि के क्षेत्र में जो बदलाव आए हैं उसकी चर्चा करने के लिए डेलिगेशन्स यहाँ हैं और कृषि के क्षेत्र में क्या नई टेक्नोलॉजी ले कर के आएँ हैं उसकी चर्चा कर रहे हैं। मित्रों, हमने कनाडा के साथ एक एम.ओ.यू. किया और पहली बार हमारे गुजरात की एक कंपनी मल्टीनेशनल के रूप में कनाडा में जा कर के उद्योग शुरू कर रही है। उद्योग शब्द आते ही कई लोगों के कान भड़क जाते हैं..! उद्योग यानि पता नहीं कोई बड़ा पाप हो, ऐसा एक माहौल देश में बना दिया गया है..! मेरी ये कंपनी कनाडा में जा कर के क्या करेगी..? कनाडा में जा करके वहाँ की सरकार से मिल कर के वहाँ हम पोटाश का कारखाना लगाएंगे और वो पोटाश मेरे गुजरात के किसानों के खेत में काम आए इसके लिए मेहनत कर रहे हैं। उद्योग शब्द सुनते ही कुछ लोग को भड़क जाते हैं जैसे कि कोई पाप हो रहा हो..! मित्रों, जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव कैसे आए, क्वालिटी ऑफ लाइफ में कैसे परिवर्तन आए, विश्व की बराबरी करने का सामर्थ्य हमारे में कैसे पैदा हो... इस समिट के माध्यम से जीवन के सभी क्षेत्रों को स्पर्श करने का हमने प्रयास किया है। ये हमारी टैक्सटाइल इन्डस्ट्री के संबंध में हमारे बहुत बड़े सेमिनार हुए। ये जो इन्वेस्टमेंट के लिए काफी लोग आए हैं, वो टैक्सटाइल क्षेत्र में ज्यादा आए हैं। जो लोग उद्योग को गाली देने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं मैं उनको पूछना चाहता हूँ, मेरा किसान जो कॉटन पैदा करता है, उस किसान का पेट कैसे भरेगा अगर मेरी भारत सरकार कॉटन एक्सपोर्ट नहीं करने देती। मेरे किसान का कॉटन पैदा हुआ है और हजारों, लाखों, करोड़ों का नुकसान मेरे किसान को पड़ता है। तो क्यों ना मैं मेरे किसान के इस कॉटन पे वैल्यू एडिशन करूँ, क्यों ना मैं टैक्सटाइल इन्डस्ट्री लगा कर के मेरे किसान का कॉटन उठा करके रेडिमेड गारमेंट बना करके दुनिया के बाजार में बेचूँ..? क्या ये किसान की भलाई के लिए नहीं है? लेकिन पता नहीं क्यों एक एसा माहौल बना दिया गया है। ये विकृतियाँ और नकारात्मकता से गुजरात काफी बाहर निकल चूका है।

मित्रों, इस समिट का सबसे बड़ा संदेश ये है कि दुनिया के समृद्घ देश भी रिसेशन की चर्चा में डूबे हुए हैं, बाजार की मंदी का प्रभाव विश्व के समृद्घ देश अनुभव कर रहे हैं, पूरा विश्व इकॉनामी लड़खड़ा रही है इस चिंता में लगा हूआ है... मित्रों, ऐसे माहोल में, धुंधली सी अवस्था में, कन्फूजन की अवस्था में, उजाला कब होगा इसके इंतजार की अवस्था में, मैं दावे से कहता हूँ मित्रों, ये समिट पूरे विश्व को आर्थिक जगत के अंदर एक पॉजिटिव मैसेज देने का सामर्थ्य रखती है, दुनिया के हर समृद्घ देश को गुजरात की ये घटना एक पॉजिटिव मैसेज देने की ताकत रखती है। अनेक विषयों में हमने सिद्घि पाई है। ये सिद्घि परिवर्तन की एक नई आशा लेकर के आई है। मित्रों, इस गुजरात को महान बनाना है, भव्य बनाना है, समृद्घ बनाना है और स्वामी विवेकानंद जी के सपने पूरे हों, उन सपनों को पूरा करने के लिए गुजरात की जितनी जिम्मेवारी है उनको बखूबी निभाने का हमारा प्रयास है।

मैं फिर एक बार इस समिट के लिए विश्व के जितने देशों ने सहयोग किया उनका मैं आभारी हूँ। मैं विशेष रूप से कनाडा के प्राइम मिनिस्टर का आभारी हूँ, जिन्होंने विशेष रूप से कल अपने एक एम.पी. को भेज कर एक चिट्ठी मेरे लिए भेजी और हमें शुभकामनाएं दी और इसलिए मैं कनाडा के प्रधानमंत्रीजी का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने गुजरात पर इतना विश्वास रखा है। दुनिया का समृद्घ देश भारत जैसे देश के एक छोटे से राज्य के प्रति इतने आदर के साथ जुड़ने का प्रयास करे वो अपने आप में बेमिसाल है। मैं विश्व के सभी जो राजनेता यहाँ आए, राजदूत आए, विश्व के सभी देशों ने हिस्सेदारी की मैं उन सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूँ, धन्यवाद करता हूँ और फिर एक बार आप सब आए, आपका बहुत-बहुत आभार..! और फिर एक बार 11 जनवरी, 2015 के लिए आपको मैं फिर से निमंत्रण देता हूँ, यू आर मोस्ट वेलकम, 11 जनवरी, 2015..! थैंक यू वेरी मच दोस्तों, थैंक्स अ लोट..!

Explore More
78 व्या स्वातंत्र्य दिनी, पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी लाल किल्याच्या तटावरून केलेले संबोधन

लोकप्रिय भाषण

78 व्या स्वातंत्र्य दिनी, पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी लाल किल्याच्या तटावरून केलेले संबोधन
Cabinet extends One-Time Special Package for DAP fertilisers to farmers

Media Coverage

Cabinet extends One-Time Special Package for DAP fertilisers to farmers
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
The Constitution is our guiding light: PM Modi
A special website named constitution75.com has been created to connect the citizens of the country with the legacy of the Constitution: PM
Mahakumbh Ka Sandesh, Ek Ho Poora Desh: PM Modi in Mann Ki Baat
Our film and entertainment industry has strengthened the sentiment of 'Ek Bharat - Shreshtha Bharat': PM
Raj Kapoor ji introduced the world to the soft power of India through films: PM Modi
Rafi Sahab’s voice had that magic which touched every heart: PM Modi remembers the legendary singer during Mann Ki Baat
There is only one mantra to fight cancer - Awareness, Action and Assurance: PM Modi
The Ayushman Bharat Yojana has reduced the financial problems in cancer treatment to a great extent: PM Modi

माझ्या प्रिय देशवासीयांनो, नमस्कार!  2025 हे वर्ष तर आता आलंच आहे, दरवाजावर येऊन ठेपलं आहे.   26 जानेवारी 2025 रोजी आपली राज्यघटना लागू होऊन 75 वर्षे पूर्ण होत आहेत.  आपल्या सर्वांसाठी ही खूप अभिमानाची आणि गौरवास्पद बाब आहे.  आपल्या राज्यघटनाकारांनी आपल्या हाती सुपूर्द केलेली राज्यघटना, काळाच्या प्रत्येक निकषावर सिद्ध झाली आहे. राज्यघटना आपल्यासाठी मार्गदर्शक प्रकाश- दीपस्तंभ आहे, मार्गदर्शक आहे.   भारताच्या राज्यघटनेमुळेच आज मी इथे आहे, तुमच्याशी बोलू शकत आहे.  यावर्षी 26 नोव्हेंबरला संविधान दिनापासून वर्षभर चालणाऱ्या अनेक उपक्रमांना सुरुवात झाली आहे.  देशातील नागरिकांना राज्यघटनेच्या  वारशाशी जोडण्यासाठी constition75.com नावाचे खास संकेतस्थळही तयार करण्यात आले आहे.  यामध्ये तुम्ही राज्यघटनेची प्रास्ताविका वाचून तुमची ध्वनीचित्रफीतही टाकू शकता.  तुम्ही राज्यघटना वेगवेगळ्या भाषांमध्ये वाचू शकता… राज्यघटनेबद्दल प्रश्नही विचारू शकता.  ‘मन की बात’चे श्रोते, शाळेत शिकणारी मुले, महाविद्यालयात जाणारे तरुणतरुणी यांना मी विनंती करतो की त्यांनी या संकेतस्थळाला नक्कीच भेट द्यावी आणि त्याचा एक भाग व्हावे.

मित्रांनो, पुढील महिन्याच्या 13 तारखेपासून प्रयागराजमध्ये महाकुंभ मेळाही सुरू होणार आहे.  संगमाच्या काठावर सध्या जोरदार तयारी सुरू आहे.  मला आठवतं, काही दिवसांपूर्वी मी प्रयागराजला गेलो होतो तेव्हा हेलिकॉप्टरमधून कुंभमेळ्याचा संपूर्ण  परिसर बघून खूप आनंद झाला होता.  इतका महाकाय!  इतका सुंदर! एवढा भव्यपणा !

मित्रांनो, महाकुंभ मेळ्याचे वैशिष्ट्य केवळ त्याच्या विशालतेतच नाही.  कुंभाचे वैशिष्ट्य त्यातील वैविध्यात देखील आहे.  या कार्यक्रमात कोट्यवधी लोक एकावेळी एकत्र येतात.  लाखो संत, हजारो परंपरा, शेकडो पंथ, अनेक आखाडे… प्रत्येकजण या कार्यक्रमाचा एक भाग बनतो.  कुठेही भेदभाव दिसून येत नाही, कोणी मोठा नाही, कोणी लहान नाही.  विविधतेतील एकतेचे असे दृश्य जगात कुठेही दिसणार नाही.  म्हणूनच आपला कुंभमेळा हा एकतेचा महाकुंभही आहे.  यावेळच्या महाकुंभातूनही एकतेच्या महाकुंभाचा मंत्र दृढ होणार आहे.  मी तुम्हा सर्वांना सांगेन की, जेव्हा आपण कुंभमेळ्याला जाल, तेव्हा  एकतेचा हा संकल्प घेऊन परत या. आपण,  समाजातील फूट आणि द्वेषाची भावना नष्ट करण्याची शपथही घेतली पाहिजे. अगदी कमी शब्दात सांगायचे झाले तर मी म्हणेन...

महाकुंभमेळ्याचा संदेश, एक व्हावा संपूर्ण देश!

महाकुंभमेळ्याचा संदेश, एक व्हावा संपूर्ण देश!

आणि जर मला ते आणखी वेगळ्या प्रकारे सांगायचे असेल तर मी म्हणेन ...

गंगेचा अखंड प्रवाह, दुभंगता कामा नये आपला समाज. 

गंगेचा अखंड प्रवाह, दुभंगता कामा नये आपला समाज. 

मित्रांनो, यावेळी देशभरातील आणि जगभरातील भाविक प्रयागराजमध्ये डिजिटल महाकुंभाचे साक्षीदार होणार आहेत.  डिजिटल मार्गदर्शनाच्या मदतीने तुम्हाला विविध घाट, मंदिरे, साधूंचे आखाडे यांच्यापर्यंत पोहोचण्याचा रस्ता सापडेल.  ही मार्गदर्शक प्रणाली तुम्हाला वाहनतळा पर्यंत पोहोचण्यासही मदत करेल. कुंभमेळ्याच्या कार्यक्रमात प्रथमच एआय चॅटबॉट चा वापर केला जाणार आहे.  AI चॅटबॉटच्या माध्यमातून कुंभमेळ्याशी संबंधित प्रत्येक प्रकारची माहिती 11 भारतीय भाषांमध्ये मिळू शकते.  मजकूर टाइप करून किंवा बोलून कोणीही या चॅटबॉटवरून कोणत्याही प्रकारची मदत मागू शकतो. कुंभमेळ्याचा  संपूर्ण परिसर कृत्रिम बुद्धिमत्ता संचालित कॅमेऱ्यांनी टिपला जात आहे.  कुंभकाळात कुणी आपल्या व्यक्तीपासून हरवले… ताटातूट झाली… तर त्यांना शोधण्यातही हे कॅमेरे मदत करतील. भाविकांना,  डिजीटल लॉस्ट अँड फाउंड सेंटर, या हरवले आणि सापडले केंद्राची  सुविधाही मिळणार आहे.  तसेच भाविकांना, सरकारमान्य टूर पॅकेज, निवास आणि होमस्टे म्हणजे स्थानिकांच्या घरात पर्यटकांची राहण्याची सुविधा याबाबतची माहिती मोबाईलवर दिली जाईल.  तुम्हीही महाकुंभमेळ्याला गेलात तर या सुविधांचा लाभ घ्या आणि हो, #EktaKaMahaKumbh या हॅशटॅगसह  तुमचा सेल्फी नक्कीच टाका.     

मित्रांनो, 'मन की बात' अर्थात MKB मध्ये आता आपण KTB बद्दल बोलणार आहोत. ज्येष्ठांच्या पिढीतील अनेकांना KTB बद्दल माहीत नसेल.  पण जरा मुलांना विचारा, त्यांच्यात KTB खूप प्रसिद्ध आहे.  KTB म्हणजे क्रृश, तृश आणि बाल्टीबॉय.  तुम्हाला कदाचित मुलांच्या आवडत्या ॲनिमेशन मालिकेबद्दल माहिती असेल आणि तिचे नाव आहे ‘KTB – भारत हैं हम’ ….आणि आता या मालिकेचा दुसरा हंगामही आला आहे.  ही तीन ॲनिमेशन पात्रे आपल्याला भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील त्या नायक आणि नायिकांबद्दल सांगतात ज्यांची फारशी चर्चा होत नाही.  नुकताच या मालिकेचा हंगाम-2, गोवा इथे नुकत्याच झालेल्या भारतीय आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सव-इफ्फीत अतिशय खास पद्धतीने सुरू करण्यात आला.  सर्वात महत्वाची गोष्ट अशी की ही मालिका फक्त अनेक भारतीय भाषांमध्येच नाही तर परदेशी भाषांमध्येही प्रसारित केली जाते.  ही मालिका दूरदर्शन तसेच इतर OTT मंचांवर पाहता येईल.

मित्रांनो, आपल्या ॲनिमेशनपटांची, नियमित चित्रपटांची आणि टीव्ही मालिकांची लोकप्रियता हेच दाखवते की भारताच्या सर्जनशील उद्योगात केवढी क्षमता आहे.  हा उद्योग देशाच्या प्रगतीत मोठे योगदान तर देत आहेच, पण आपल्या अर्थव्यवस्थेलाही नवी उंची गाठून देत आहे.  आपल्या देशाचा चित्रपट आणि मनोरंजन उद्योग खूप मोठा आहे.  देशातील कितीतरी भाषांमध्ये चित्रपट बनवले जातात आणि सर्जनशील आशयाची निर्मिती होते.  मी आपल्या चित्रपट आणि मनोरंजन उद्योगाचेही अभिनंदन करतो… कारण त्यांनी ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ ही भावना मजबूत केली आहे.

मित्रांनो, 2024 मध्ये आपण चित्रपटसृष्टीतील अनेक महान व्यक्तींची 100 वी जयंती साजरी करत आलो आहोत.  या व्यक्तिमत्त्वांनी भारतीय चित्रपटसृष्टीला जागतिक स्तरावर ओळख मिळवून दिली.  राज कपूरजींनी चित्रपटांच्या माध्यमातून, जगाला भारताच्या सॉफ्ट पॉवरची- सुप्तशक्तीची ओळख करून दिली.  रफीसाहेबांच्या आवाजात असलेली जादू  प्रत्येकाच्या हृदयाला भिडणारी होती आणि आहे.  त्यांचा आवाज अप्रतिम होता.  भक्तिगीते असोत की प्रेमगीते असोत….दर्दभरी गाणी असोत, प्रत्येक भावना त्यांनी आपल्या आवाजाने जिवंत केली. कलाकार म्हणून त्यांची महत्ता किती आहे, हे आजही तरुण पिढी त्यांची गाणी तितक्याच तन्मयतेने ऐकते , यावरून समजते- हीच कालातीत कलेची ओळख आहे.  अक्किनेनी नागेश्वर राव गारू यांनी तेलुगू सिनेमाला नव्या उंचीवर नेले आहे.  त्यांच्या चित्रपटांनी भारतीय परंपरा आणि मूल्ये उत्तम प्रकारे मांडली.  तपन सिन्हाजी यांच्या चित्रपटांनी समाजाला एक नवी दृष्टी दिली.  त्यांच्या चित्रपटांमध्ये सामाजिक जाणिवा आणि राष्ट्रीय एकात्मतेचा संदेश होता. आपल्या संपूर्ण चित्रपटसृष्टीसाठी या वलयांकित मान्यवरांचे जीवन म्हणजे एक प्रेरणा आहे.

मित्रांनो, मला तुम्हाला आणखी एक आनंदाची बातमी द्यायची आहे.  भारताची सर्जनशील प्रतिभा जगासमोर दाखवण्याची मोठी संधी येत आहे.  पुढील वर्षी, वर्ल्ड ऑडिओ व्हिज्युअल एंटरटेनमेंट समिट म्हणजेच WAVES, ही  जागतिक ध्वनी चित्र करमणूक परिषद, आपल्या देशात प्रथमच आयोजित करण्यात येणार आहे.  तुम्ही सर्वांनी दावोसबद्दल ऐकले असेल जिथे जगातील अर्थविश्वातले रथीमहारथी  एकत्र येतात.  त्याचप्रमाणे, WAVES समिटमध्ये जगातील माध्यम आणि मनोरंजन उद्योगातील दिग्गज आणि सर्जनशील जगतातील लोक भारतात येणार आहेत.  भारताला जागतिक आशयघन करमणूक निर्मितीचे केंद्र बनवण्याच्या दिशेने ही  परिषद एक महत्त्वपूर्ण पाऊल आहे.  मला सांगायला अभिमान वाटतो की, या शिखरपरिषदेच्या तयारीत आपल्या देशातील तरुण निर्मातेही उत्साहाने सहभागी होत आहेत.  आपण 5 ट्रिलियन अर्थात पाच लाख कोटी डॉलरच्या अर्थव्यवस्थेकडे वाटचाल करत असताना आपली निर्मिती अर्थव्यवस्था एक नवीन ऊर्जा घेऊन येत आहे.  मी भारतातील संपूर्ण मनोरंजन आणि सर्जनशील उद्योगांना विनंती करेन - तुम्ही एक नवोदीत निर्मिक असाल किंवा प्रस्थापित कलाकार, बॉलीवूडशी संबंधित असाल किंवा प्रादेशिक चित्रपटकर्मी असाल, दूरचित्रवाणी उद्योगातील व्यावसायिक असाल किंवा ॲनिमेशनतज्ञ असाल, गेमिंग कर्ते असाल किंवा मनोरंजन तंत्रज्ञानातील नवोन्मेषक…..तुम्ही सर्व WAVES परिषदेचा एक भाग व्हा.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो, आज जगाच्या कानाकोपऱ्यात भारतीय संस्कृतीचे तेज कसे पसरत आहे हे तुम्हा सर्वांना माहीत आहे.  आज मी तुम्हाला तीन खंडांमध्ये सुरू असलेल्या अशा प्रयत्नांबद्दल सांगेन, जे आपल्या सांस्कृतिक वारशाच्या जागतिक विस्ताराचे साक्षीदार आहेत.  ते सर्व एकमेकांपासून मैलो न मैल दूर आहेत.  पण भारताला जाणून घेण्याची आणि आपल्या संस्कृतीतून काही शिकण्याचा त्यांचा ध्यास,  एकसमान आहे.

मित्रांनो, चित्रांचे जग जितके रंगांनी भरलेले आहे तितकेच ते सुंदर आहे.  तुमच्यापैकी जे दूरचित्रवाणी-टीव्हीच्या माध्यमातून 'मन की बात' पाहत आहेत,  ते आता टीव्हीवर काही चित्रेही पाहू शकतात.  या चित्रांमध्ये आमचे देव-देवी, नृत्यकला आणि महान व्यक्तिमत्त्वे पाहून तुम्हाला खूप बरे वाटेल.  यामध्ये तुम्हाला भारतात आढळणाऱ्या प्राणीमात्रांसोबत आणखी बरेच काही  पाहायला मिळेल.  यामध्ये, एका 13 वर्षाच्या मुलीने काढलेल्या ताजमहालच्या भव्य चित्राचाही समावेश आहे. तुम्हाला हे जाणून  आश्चर्य वाटेल की या दिव्यांग मुलीने स्वतःच्या तोंडाच्या मदतीने हे चित्र काढले आहे. बरं… सर्वात मनोरंजक बाब म्हणजे ही चित्र काढणारे विद्यार्थी, भारतातील नसून इजिप्तमधील आहेत.  काही आठवड्यांपूर्वी, इजिप्तमधील सुमारे 23 हजार विद्यार्थ्यांनी चित्रकला स्पर्धेत भाग घेतला होता.  तिथे त्यांना भारताची संस्कृती आणि दोन्ही देशांमधील ऐतिहासिक संबंध दाखवणारी चित्रे  काढायची होती.  या स्पर्धेत सहभागी झालेल्या सर्व तरुणाईचे मी कौतुक करतो.  त्याच्या सर्जनशीलतेची कितीही प्रशंसा केली तरी ती कमीच आहे.

मित्रांनो, पॅराग्वे हा दक्षिण अमेरिकेतील एक देश आहे.  तिथे राहणाऱ्या भारतीयांची संख्या एक हजारापेक्षा जास्त नाही.  पॅराग्वेमध्ये एक अनोखा उपक्रम होत आहे.  एरिका ह्युबर तिथल्या भारतीय दूतावासात मोफत आयुर्वेद सल्ला देत असतात.  आज, स्थानिक लोकही त्यांच्याकडे आयुर्वेदिक सल्ला घेण्यासाठी मोठ्या संख्येने लोटत आहेत.  एरिका ह्युबर यांनी अभियांत्रिकीचे शिक्षण घेतले असले, तरी त्यांचे मन मात्र आयुर्वेदातच रमते. त्यांनी आयुर्वेदाशी संबंधित अभ्यासक्रम शिकून पूर्ण केले  आणि काळानुरूप त्या, त्यामध्ये पारंगत होत गेल्या.

मित्रांनो, ही आपल्यासाठी खूप अभिमानास्पद बाब आहे की जगातील सर्वात जुनी भाषा तामिळ आहे आणि प्रत्येक भारतीयाला तिचा अभिमान आहे.  जगभरातील देशांमध्ये तामिळ शिकणाऱ्या लोकांची संख्या सातत्याने वाढत आहे.  गेल्या महिन्याच्या अखेरीस, भारत सरकारच्या मदतीने फिजीमध्ये, तामिळ अध्यापन कार्यक्रम सुरू झाला.  फिजीमध्ये तामिळच्या प्रशिक्षित शिक्षकांनी ही भाषा शिकवण्याची, गेल्या 80 वर्षांतील ही पहिलीच वेळ आहे.  आज फिजीचे विद्यार्थी तामिळ भाषा आणि संस्कृती शिकण्यात खूप रस घेत आहेत हे जाणून मला आनंद झाला.

मित्रांनो, या गोष्टी, या घटना या केवळ यशोगाथाच नाहीत.  या आपल्या सांस्कृतिक वारशाच्याही गाथा आहेत. या अशा उदाहरणांमुळे, आपला ऊर अभिमानाने भरून येतो.  कलेपासून आयुर्वेदापर्यंत आणि भाषेपासून संगीतापर्यंत, भारतात असे बरेच काही आहे जे संपूर्ण जगाला व्यापून उरत आहे.

मित्रांनो,  हिवाळ्याच्या या ऋतूमध्ये देशभरात खेळ आणि तंदुरुस्ती संबंधी अनेक उपक्रम हाती घेण्यात आले आहेत.  मला आनंद आहे की लोक तंदुरुस्तीला  आपल्या दिनचर्येचा भाग बनवत आहेत .  काश्मीरमधील स्कीईंग पासून ते गुजरातमधील पतंग महोत्सवापर्यंत, सगळीकडे खेळाचा  उत्साह पहायला मिळत आहे. #SundayOnCycle आणि #CyclingTuesday यासारख्या अभियानांमुळे सायकल चालवण्याला प्रोत्साहन मिळत आहे.

मित्रांनो, आता मी तुम्हाला एक अशी अनोखी गोष्ट सांगणार आहे जी आपल्या देशात होत असलेले परिवर्तन आणि युवा मित्रांच्या उत्साह आणि आवड यांचे  प्रतीक आहे.  तुम्हाला माहित आहे का, आपल्या बस्तर मध्ये एक अनोखे ऑलिंपिक सुरू झाले आहे.  हो,  प्रथमच पार पडलेल्या बस्तर ऑलिंपिकमुळे बस्तर मध्ये एक नवीन क्रांती उदयाला येत आहे.  माझ्यासाठी ही खूप आनंदाची गोष्ट आहे की बस्तर ऑलिंपिकचे  स्वप्न साकार झाले आहे.  तुम्हाला देखील हे ऐकून आनंद होईल की, 

हे त्या भागात होत आहे, जो कधीकाळी  माओवादी हिंसेचा साक्षीदार होता. बस्तर ऑलिंपिकचा शुभंकर आहे-  'जंगली म्हैस आणि डोंगरी मैना . यामध्ये बस्तरच्या समृद्ध संस्कृतीची झलक पहायला मिळते.

या बस्तर क्रीडा महाकुंभचा मूलमंत्र आहे -

‘करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर’ म्हणजेच

‘खेळेल बस्तर – जिंकेल  बस्तर’ .

पहिल्यांदाच बस्तर ऑलिंपिक मध्ये सात जिल्ह्यांमधून एक लाख 65 हजार खेळाडूंनी भाग घेतला आहे . हा केवळ एक आकडा नाही , ही आपल्या युवकांच्या संकल्पाची  गौरव गाथा आहे . ऍथलेटिक्स , तिरंदाजी,  बॅडमिंटन , फुटबॉल,  हॉकी , वेटलिफ्टिंग,  कराटे , कबड्डी,  खो-खो आणि व्हॉलीबॉल प्रत्येक क्रीडा प्रकारात  आपल्या युवकांनी आपल्या प्रतिभेची छाप पाडली  आहे.  कारी कश्यप  यांची कहाणी मला खूप प्रेरित करते.  एका छोट्याशा गावामधून आलेल्या  कारीजी यांनी तिरंदाजीमध्ये रौप्य पदक जिंकले आहे.  त्या सांगतात, "बस्तर ऑलिंपिकने आम्हाला केवळ खेळण्याचे मैदानच दिले नाही तर आयुष्यात पुढे जाण्याची संधी दिली आहे. "  सुकमाच्या पायल कवासी यांचीही गोष्ट काही कमी प्रेरणादायक नाही.  भालाफेक मध्ये सुवर्णपदक जिंकणाऱ्या पायल जी सांगतात "शिस्त  आणि कठोर परिश्रमाने कोणतेही लक्ष्य  अशक्य रहात नाही. "  सुकमाच्या दोरनापाल  येथील पूनम सन्ना यांची कहाणी तर नवीन भारताची प्रेरणादायी कथा आहे.  एकेकाळी नक्षली प्रभावात आलेल्या पुनमजी  आज व्हीलचेअर  वरून धावून पदक जिंकत आहेत.  त्यांचे साहस  आणि जिद्द  प्रत्येकासाठी प्रेरणा आहे . कोडागावच्या तिरंदाज रंजू सोरीजी यांना 'बस्तर युथ आयकॉन'  म्हणून निवडवण्यात आले आहे.  त्यांचं म्हणणं आहे,  बस्तर ऑलिंपिक दुर्गम भागातील युवकांना राष्ट्रीय व्यासपीठापर्यंत  पोहोचण्याची संधी देत आहे.

मित्रांनो,  बस्तर ऑलिंपिक हे केवळ क्रीडास्पर्धेचे  आयोजन नाही.  हा एक असा मंच आहे जिथे विकास आणि खेळाचा संगम होत आहे.  जिथे आपले युवक आपली प्रतिभा विकसित करत आहेत आणि एका नव्या भारताची निर्मिती करत आहेत.  मी तुम्हा सर्वांना आवाहन करतो,

-आपापल्या भागात अशा क्रीडा स्पर्धांच्या आयोजनाला प्रोत्साहन द्या

-#खेलेगा भारत – जीतेगा भारत या हॅशटॅग सह  आपल्या भागातील गुणवंत खेळाडूंच्या कथा सामायिक करा

-स्थानिक गुणवंत खेळाडूंना पुढे जाण्याची संधी द्या.

लक्षात ठेवा,  खेळामुळे केवळ शारीरिक विकास होत नाही तर खिलाडूवृत्तीने  समाजाला जोडण्याचे देखील हे एक सशक्त माध्यम आहे.  तर खूप खेळा आणि खूप विकास करा.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो,  भारताच्या दोन मोठ्या उपलब्धी  आज जगाचे लक्ष आकर्षित करत आहेत .  हे ऐकून तुम्हाला देखील अभिमान वाटेल.  या दोन्ही उपलब्धी आरोग्य  क्षेत्राशी निगडित आहेत. पहिले यश मिळाले  आहे , मलेरिया विरुद्ध लढाईत. मलेरिया हा आजार 4000 वर्षांपासून मानवतेसाठी एक मोठे आव्हान राहिला आहे.  स्वातंत्र्याच्या काळातही हे आपल्या सर्वात मोठ्या आरोग्य विषयक आव्हानांपैकी एक होते. एक महिन्यापासून ते पाच वर्षापर्यंतच्या मुलांसाठी जीवघेण्या अशा सर्व संसर्गजन्य आजारांमध्ये मलेरिया तिसऱ्या स्थानी आहे . आज मी समाधानाने म्हणू शकतो की देशवासियांनी मिळून या आव्हानाचा अतिशय निर्धाराने सामना केला आहे.  जागतिक आरोग्य संघटना - डब्ल्यू एच ओ च्या अहवालात म्हटले आहे ,  भारतात 2015  ते 2023 दरम्यान  मलेरियाचे रुग्ण आणि त्यामुळे होणाऱ्या मृत्यूमध्ये 80 टक्क्यांची घट झाली आहे . हे काही सामान्य यश नाही.  सर्वात सुखद गोष्ट ही आहे,

हे यश लोकांच्या सहभागातून मिळालं  आहे . भारताच्या कानाकोपऱ्यातून,  प्रत्येक जिल्ह्यातून प्रत्येक जण या अभियानाचा भाग बनला आहे.  आसाममधील जोरहाटच्या चहाच्या मळ्यांमध्ये मलेरिया चार वर्षांपूर्वी लोकांसाठी चिंतेचे  मोठं कारण बनला होता.  मात्र जेव्हा याच्या निर्मूलनासाठी चहाच्या मळ्यात राहणारे एकजूट झाले,  तेव्हा यात  बऱ्याच प्रमाणात यश मिळू लागले.  आपल्या या प्रयत्नांमध्ये त्यांनी तंत्रज्ञानासह सोशल मीडियाचा देखील भरपूर वापर केला आहे . अशाच प्रकारे हरियाणाच्या कुरुक्षेत्र जिल्ह्याने देखील मलेरियावरील नियंत्रणासाठी खूप चांगलं मॉडेल सादर केलं आहे.  इथे मलेरियाच्या देखरेखीसाठी लोक सहभाग खूप यशस्वी ठरला आहे.  पथनाट्य आणि रेडिओच्या माध्यमातून अशा संदेशांवर भर देण्यात आला ज्यामुळे  डासांची पैदास कमी करण्यास मोठी मदत मिळाली आहे.  देशभरात अशा प्रयत्नांमुळे आपण मलेरिया विरुद्ध लढाईला अधिक वेगाने  पुढे नेऊ  शकलो आहोत .

मित्रांनो,  आपली जागरूकता आणि संकल्प शक्तीने आपण काय साध्य करू शकतो याचे दुसरे उदाहरण आहे,  कर्करोग  विरोधातली लढाई . जगातील प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लान्सेट च्या  अभ्यासानं मोठी आशा निर्माण केली आहे.  या जर्नलनुसार आता भारतात वेळेवर कर्करोगावरील उपचार सुरू होण्याची शक्यता वाढली आहे.  वेळेवर उपचाराचा अर्थ - कर्करोग रुग्णावरील उपचार 30 दिवसांच्या आत सुरू होणे  आणि यात मोठी भूमिका पार पाडली आहे आयुष्मान भारत योजनेने. या योजनेमुळे कर्करोगाचे 90% रुग्ण वेळेवर आपले उपचार सुरू करू शकले आहेत . असे यामुळे झाले आहे कारण आधी पैशांच्या अभावी गरीब रुग्ण कर्करोगाची चाचणी, त्यावरील उपचार करण्यासाठी पुढे येत नव्हते. आता आयुष्यमान भारत योजना त्यांच्यासाठी मोठा दिलासा बनली आहे. आता ते स्वतःहून आपले उपचार करण्यासाठी पुढे येत आहेत.

'आयुष्मान भारत योजनेने' …कर्करोगावरील उपचारात येणारी पैशांची  समस्या मोठ्या प्रमाणात कमी केली आहे . आणि हे देखील आहे की आज वेळेवर कर्करोगावरील उपचाराबाबत लोक पूर्वीपेक्षा अधिक जागरूक बनले आहेत. हे  यश जेवढं आपल्या आरोग्य सेवा यंत्रणेचं  आहे , डॉक्टर,  परिचारिका आणि तांत्रिक कर्मचाऱ्यांचे आहे तेवढेच तुमचं माझ्या  सर्व नागरिक बंधू-भगिनींचे देखील आहे.  सर्वांच्या प्रयत्नातून कर्करोगावर मात करण्याचा संकल्प अधिक मजबूत झाला आहे.  या यशाचे श्रेय त्या सर्वांना जातं, ज्यांनी जागरूकता निर्माण करण्यात आपलं महत्वपूर्ण योगदान दिलं  आहे.

कर्करोगाचा सामना करण्यासाठी  एकच मंत्र आहे-  जागरूकता,  कृती आणि हमी . जागरूकता म्हणजे कर्करोग आणि त्याच्या लक्षणांप्रती जागरूकता,  कृती म्हणजे वेळेवर तपासणी आणि उपचार,  हमी म्हणजे रुग्णांसाठी सर्वतोपरी मदत उपलब्ध होण्याचा विश्वास.  चला आपण सर्व मिळून कर्करोगा विरुद्धच्या या लढाईला अधिक वेगाने पुढे घेऊन जाऊ आणि जास्तीत जास्त रुग्णांची मदत करू.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो , आज मी तुम्हाला ओडिशाच्या कालाहंडी येथील एका प्रयत्नाबाबत सांगू इच्छितो , जे कमी पाणी आणि कमी संसाधनांमध्ये देखील यशाची नवीन कहाणी लिहीत आहे.  ती आहे काला हंडीची 'भाजी क्रांती' .  जिथे कधीकाळी शेतकरी पलायन करण्यासाठी प्रवृत्त झाले होते तेच आज कालाहंडीचा गोलामुंडा तालुका एक भाजी केंद्र बनला  आहे.  हे परिवर्तन कसं घडलं ? याची सुरुवात केवळ दहा शेतकऱ्यांच्या एका छोट्या समूहापासून झाली. या समूहाने मिळून एक एफपीओ शेतकरी उत्पादन संघटना स्थापन केली.  शेतीमध्ये आधुनिक तंत्रज्ञानाचा वापर सुरू केला आणि आज त्यांची ही शेतकरी उत्पादक संघटना कोट्यवधींचा व्यवसाय करत आहे.

आज दोनशेहून अधिक.. शेतकरी या एफपीओशी  जोडलेले आहेत , ज्यामध्ये 45 महिला शेतकरी देखील आहेत .  हे लोक एकत्रितपणे  200 एकर मध्ये टोमॅटोची शेती करत आहेत,  दीडशे एकरमध्ये कारल्याचे पीक घेत आहेत.  आता या एफपीओची  वार्षिक उलाढाल देखील दीड कोटीहून अधिक झाली आहे.  आज कालाहंडीच्या भाज्या केवळ ओडिशाच्या विविध जिल्ह्यांमध्ये नाही तर अन्य राज्यांमध्ये देखील पोहोचत आहेत .  आणि तिथला शेतकरी आता बटाटा आणि कांद्याच्या शेतीचे नवीन तंत्रज्ञान  शिकत आहे .

मित्रांनो,  कालाहंडीचे हे  यश आपल्याला शिकवते की संकल्प शक्ती आणि सामूहिक प्रयास यातून काय  साध्य करता येऊ शकते.  मी तुम्हा सर्वांना आवाहन करतो -

-आपापल्या भागात एफपीओ ना  प्रोत्साहन द्या

शेतकरी उत्पादक संघटनांमध्ये सहभागी व्हा आणि त्यांना मजबूत बनवा .

लक्षात ठेवा, छोट्या सुरुवातीमधूनच मोठं  परिवर्तन शक्य आहे . आपल्याला केवळ दृढ संकल्प आणि सांघिक भावनेची गरज आहे .

मित्रांनो, आजच्या मन की बात मध्ये आपण ऐकलं की कसा आपला भारत विविधतेमध्ये एकतेसह पुढे जात आहे . मग ते खेळण्याचे  मैदान असो किंवा विज्ञानाचं क्षेत्र , आरोग्य असो किंवा शिक्षण . प्रत्येक क्षेत्रात भारत नवीन शिखर गाठत  आहे.  आपण एका कुटुंबाप्रमाणे मिळून प्रत्येक आव्हानाचा सामना केला आणि नवीन यश संपादन केलं.  2014 पासून सुरू झालेल्या मन की बातच्या 116 भागांमध्ये मी पाहिलं आहे की मन की बात देशाच्या सामूहिक शक्तीचा एक जिवंत दस्तावेज बनला आहे. तुम्ही सर्वांनी या कार्यक्रमाला आपलंसं केलं , आपलं केलं .

प्रत्येक महिन्यात तुम्ही तुमचे … विचार आणि प्रयत्नांबाबत माहिती दिली. कधी एखाद्या युवा  नवोन्मेषकाच्या  कल्पनेने प्रभावित केलं तर कधी एखाद्या मुलीच्या यशाने गौरवान्वित केलं. हा तुम्हा सर्वांचा सहभाग आहे जो देशाच्या कानाकोपऱ्यातून सकारात्मक ऊर्जा एकत्र आणत आहे.  मन की बात याच सकारात्मक ऊर्जेच्या विस्ताराचा मंच बनला  आहे आणि आता 2025 जवळ येऊन ठेपले आहे.  नव्या वर्षात  मन की बातच्या  माध्यमातून आपण आणखी प्रेरणादायी प्रयत्न सामायिक करू.  मला विश्वास आहे की देशवासीयांचे सकारात्मक विचार आणि नवोन्मेषाच्या  भावनेने भारत नवीन उंची गाठेल.  तुम्ही तुमच्या आसपासचे  वैशिष्ट्यपूर्ण प्रयत्न  मन की बात बरोबर सामायिक करत रहा . मला माहित आहे की पुढल्या वर्षीच्या प्रत्येक मन की बातमध्ये आपल्याकडे एकमेकांबरोबर सामायिक करण्यासाठी खूप काही असेल.  तुम्हा सर्वांना 2025 च्या अनेक अनेक शुभेच्छा.  निरोगी रहा , आनंदी रहा , फिट इंडिया चळवळीत तुम्ही देखील सहभागी व्हा , स्वतःला तंदुरुस्त ठेवा, जीवनात प्रगती करत रहा, खूप खूप धन्यवाद !