तुम्हा सर्वांना विवेकानंद जयंती आणि राष्ट्रीय युवा दिवसाच्या खूप खूप शुभेच्छा.
आज बेळगावीचे हे विहंगम दृश्य, हे भव्य चित्र पाहून असे वाटत आहे की सर्व काही विवेकानंदमय होऊन गेले आहे. आज या ठिकाणी सर्व धर्म सभेचे आयोजन देखील करण्यात येत आहे. यासाठी देखील तुम्हा सर्वांना माझ्या मंगलकामना.
या वेळी जो उत्साह मला दिसत आहे, त्याने सर्वांच्या मन-मस्तिष्कांना, मनमंदिरांना एकरुप केले आहे, एकीकृत केले आहे.
“सहस्र-सहस्र विवेक आवाहन”यांच्या साथीने विश्वविक्रम स्थापित होत आहे.
हे सर्व काही परमपूज्य श्री सिद्धलिंग महाराज, श्री यल्लालिंग प्रभू आणि श्री सिद्ध रामेश्वर महास्वामी यांच्या आशीर्वादानेच होत आहे. त्यांच्या आशीर्वादाची ऊर्जा यावेळी तुम्हा सर्वांच्या चेहऱ्यावर दिसत आहे.
ती ऊर्जा, तो आशीर्वाद मला देखील जाणवत आहे. बंधु आणि भगिनींनो बेळगावी येण्याचा अनुभव माझ्यासाठी नेहमीच अतिशय सुखद राहिला आहे. या ठिकाणी एक भारत- श्रेष्ठ भारताचे भव्य चित्र पाहायला मिळते. अतिशय लहानशा भागात पाच वेगवेगळ्या भाषांचा प्रवाह देशाच्या इतर भागांमध्ये फार कमीच पाहायला मिळतो. मी तुम्हा सर्वांसोबतच बेळगावीच्या भूमीला देखील प्रणाम करतो. बेळगावी कित्तूरची राणी चेन्नमा यांची भूमी आहे. इंग्रजांच्या विरोधात लढा उभारणारे महान योद्धा संगोली रायन्ना यांची भूमी आहे. स्वामी विवेकानंद यांनी देखील बेळगाव मध्ये दहा दिवस प्रवास केला होता.
ते म्हैसूरच्या सुप्रसिद्ध महालात देखील राहिले होते. म्हैसूरहून पुढे जात ते केरळ आणि तमिळनाडूला गेले जिथे कन्याकुमारीमध्ये त्यांना एक नवी प्रेरणा प्राप्त झाली. याच प्रेरणेने ते शिकागोला गेले आणि त्यांनी सर्व जगाला मोहून टाकले.
इस वर्ष स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो में दिए गए संबोधन के 125 वर्ष हो रहे हैं।
जब उस संबोधन के सौ वर्ष हुए थे तो मैं विशेषतौर पर शिकागो गया था। उस बात को भी पच्चीस साल बीत गए हैं। उनकी बातों के, उनके संबोधन के इतने बरस बीत जाने के बाद भी हमें हर रोज, हर मोड़ पर,
हर समस्या का निदान खोजते हुए लगता है – अरे, स्वामी विवेकानंद जी ने ऐसा कहा था !!! कितना ठीक कहा था !!! हमें विवेकानंद जी को याद करने की जरूरत नहीं होती, वे सदैव मन में उपस्थित रहते हैं।
एक भारतीय को कैसा होना चाहिए, इस बारे में विवेकानंद जी ने बहुत ही शक्तिशाली मंत्र दिया था। ये था, स्वदेश मंत्र। इसकी हर पंक्ति में शक्ति और प्रेरणा भरी है।
उन्होंने कहा था-
“ऐ भारत, तुम मत भूलना तुम्हारा जीवन अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं है। ऐ वीर, गर्व से बोलो कि मैं भारतवासी हूं और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है। गर्व से पुकार कर कहो कि हर भारतवासी मेरा भाई है, भारतवासी मेरे प्राण हैं। भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है। भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है।“
ऐसे थे विवेकानंद। भारत से एकाकार विवेकानंद। भारत से एकरूप विवेकानंद। भारत के सुख-दुख में अपना सुख दुख मानने वाले विवेकानंद। वो हर बुराई से लड़े। विदेश में भारत को सपेरों और नटों का देश बताने वाले कुटिल प्रोपेगैण्डा को उन्होंने ध्वस्त किया। दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई। उनमें ज्ञान-विज्ञान, भाषा, सामाजिक सुधार, आधुनिक जगत के बढ़ते कदमों के साथ कदम मिलाकर चलने का साहस था।
उनमें समाज में व्याप्त विकृतियों, छुआछूत, भेदभाव, पाखण्ड को खण्ड-खण्ड करने का योद्धा-भाव था। इसी भाव ने विवेकानंद को योद्धा सन्यासी बनाया। स्वामी विवेकानंद ने कोलम्बो से अल्मोड़ा की यात्रा में जाति के भेदभाव के खिलाफ आवाज बुलंद की।
उन्होंने लोगों को दो टूक कहा कि –
“ज्ञान और दर्शन में दुनिया में तुम्हारे जैसा कोई महान नहीं होगा, पर व्यवहार में ऐसी निष्कृष्टता भी कोई नहीं करता होगा। धिक्कार है, तुम्हारे ऐसे व्यवहार पर !!!“
सौ-सवा सौ साल पहले उन्होंने जो कहा था, वो शायद इतनी बेबाकी से आज भी कोई कहने का साहस न दिखा सके। साथियों, हमें ये माहौल बदलना होगा, ये मानसिकता बदलनी होगी। विवेकानंद को मानना है तो भीतर से जाति का द्वेष, जाति भेद का जहर कालकर बाहर करना होगा, खत्म करना होगा।
श्री सिद्धलिंग महाराज जी की प्रेरणा से आपके मठ ने भी तो बीते दशकों में जाति के हर तरह के भेदभाव को खत्म करने के लिए काम किया है। बिना किसी की जाति की परवाह किए, किसी की जाति पूछे समाज के उपेक्षित और कमजोर वर्गों को आपके द्वारा आवश्यक सहायता दी जाती रही है।
आपके मठ से जुड़े लोगों द्वारा गांव-गांव जाकर बाढ़ राहत का काम किया जाता है,
गरीबों को मुफ्त दवाइयां बांटी जाती हैं, फ्री मेडिकल कैंप लगाए जाते हैं, लोगों को भोजन दिया जाता है, कपड़े दिए जाते हैं, तो क्या उसका आधार जाति होती है? नहीं।
बहुत मुश्किल से, दशकों तक किए गए लोगों के प्रयास से देश जाति के बंधन से मुक्त होने की तरफ बढ़ रहा है। लेकिन आप जैसे लाखों-करोड़ों लोगों की इस मेहनत पर कुछ समाज विरोधी लोगों ने अपनी नजरें टिका दी हैं। ये लोग फिर से देश को जाति के नाम पर बांटने का षड़यंत्र कर रहे हैं।
ऐसे लोगों को आज की युवा पीढ़ी द्वारा जवाब दिया जा रहा है। भारत का नौजवान कुछ मुट्ठी भर लोगों के बहकावे में नहीं आने वाला। देश में जातिवाद, कुरीतियां, अंध विश्वास
खत्म करने का संकल्प लेने वाले ऐसे नौजवान, न्यू इंडिया के सपने को साकार करने के लिए संकल्प लेने वाले ऐसे नौजवान ही विवेकानंद हैं। वो भारत के नए विक्रमी-पराक्रमी, विकासमान चेहरे का प्रतीक हैं।
ऐसा हर नौजवान जो राष्ट्र निर्माण में Pro-Active होकर अपनी ड्यूटी निभा रहा है, न्यू इंडिया के संकल्प को सिद्ध करने के लिए काम कर रहा है, विवेकानंद है। किसी खेत में, किसी कारखाने में, किसी स्कूल में, किसी कॉलेज में, गली-मोहल्ले-नुक्कड़ में देश की सेवा में जुटा हर व्यक्ति विवेकानंद है।
जो इस समय स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ा रहा है, गांव-गांव जाकर लोगों को डिजिटल सारक्षता प्रदान कर रहा है, वो विवेकानंद है। जो दलित-पीड़ित-शोषित वंचित के लिए काम कर रहा है, वो विवेकानंद है। जो अपनी energy को, अपने ideas को, अपने innovations को समाज के हित में लगा रहा है, वो विवेकानंद है।
साथियों, पिछले वर्ष एक कार्यक्रम हुआ था- स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन। इस कार्यक्रम में 40 हजार से ज्यादा युवा, देश की लगभग 600 समस्याओं के डिजिटल समाधान के लिए जुटे थे। ये भी मेरे लिए विवेकानंद ही हैं। लाखों-करोड़ों साधारण से लोग, भारत की मिट्टी की सुगंध लिए न्यू इंडिया के निर्माता, हमारे नए युग के विवेकानंद हैं। इन्हें मैं प्रणाम करता हूं, इस कार्यक्रम में मौजूद हर विवेकानंद को, देश में मौजूद हर विवेकानंद को मैं नमन करता हूं।
भाइयों और बहनों, हजारों साल का इतिहास समेटे हुए हमारे देश में समय के साथ परिवर्तन आते रहे हैं। व्यक्ति में परिवर्तन, समाज में परिवर्तन। लेकिन समय के साथ ही कुछ बुराइयां भी समाज में शामिल होती रही हैं।
ये हमारे समाज की विशेषता है कि जब भी ऐसी बुराइयां आई हैं, तो सुधार का काम समाज के बीच में ही किसी ने शुरू किया है। ऐसे महान समाज सुधारकों ने हमेशा जनसेवा को केंद्र में रखा। अपने मन-वचन-कर्म से उन्होंने समाज को शिक्षा तो दी ही, लोगों की सेवा को प्राथमिकता भी दी। देश के सामान्य मानवी को उसकी आसान भाषा में समझाया।
ये एक तरह का जनआंदोलन था जिसका विस्तार सैकड़ो वर्षों के कालखंड में नजर आया।
ये आंदोलन दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभचार्य, रामानुजाचार्य,
पश्चिम में मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, रामदास, नरसी मेहता, उत्तर में रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास, पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, और शंकर देव जैसे संतों के विचारों से सशक्त हुआ।
ये भी हमारे देश की अद्भुत शक्ति है कि इन्हें कभी धार्मिक आंदोलन से जोड़कर नहीं देखा गया। हमारे यहां हमेशा ज्ञान, भक्ति और कर्म, तीनों का संतुलन स्वीकार किया गया।
ज्ञान में ये संत, इस मूलभूत प्रश्न के उत्तर को खोजते थे कि आखिर मैं कौन हूं।
भक्ति, समर्पण का दूसरा नाम था और कर्म पूरी तरह से सेवा भाव पर आधारित था। ऐसे अनेक संतों, महापुरुषों का ही प्रभाव था कि देश तमाम विपत्तियों को सहते हुए आगे बढ़ पाया। उस कालखंड में, देश के हर क्षेत्र, हर इलाके, हर दिशा में मंदिरों-मठों से बाहर निकलकर हमारे संतों ने एक सामाजिक चेतना जगाने का प्रयास किया।
हम गर्व के साथ कह सकते हैं हिंदुस्तान के पास ऐसी महान परंपरा है, ऐसे महान संत-मुनि रहे हैं, जिन्होंने अपनी तपस्या, अपने ज्ञान का उपयोग राष्ट्र का निर्माण करने के लिए किया है।
इसी कड़ी में स्वामी दयानंद सरस्वती, राजा राम मोहन राय, ज्योतिबा फुले, महात्मा गांधी, बाबा साहेब अम्बेडकर, बाबा आम्टे, पांडुरंग शास्त्री आठवले, विनोबा भावे, जैसे अनगिनत महापुरुष हुए। इन्होंने सेवा को केंद्र में रखा और सामाजिक सुधार भी किया।
इन्होंने देश के लिए, समाज के लिए जो संकल्प लिया, उसे सिद्ध करके दिखाया।
साथियों, आपके मठ ने भी त्याग की परंपरा को अपनाया है, सेवा की परंपरा को अपनाया है। आपके मठ को विरक्त मठ के नाम से जाना जाता है। विरक्त यानि हर तरह के सांसारिक मोह से मुक्त। अलग-अलग राज्यों में फैले आपके 360 से ज्यादा मठ जब अन्नदान की प्रथा पर चलते हैं, गरीब और भूखे लोगों को भोजन कराते हैं, तो निश्चित तौर पर धरती मां की, मानवता की सर्वोत्तम सेवा होती है।
“शिव भावे जीव सेवा” का ये उत्तम उदाहरण है। हमारे तो देश का इतिहास रहा है सेवा का,
सेवा भाव का। हर कुछ दूरी पर गरीबों के लिए भोजन और रहने की व्यवस्था हमारी परंपरा रही है। ये व्यवस्था साधु-संतो के आशीर्वाद से सामान्य समाज के लोग करते थे। आज भी अनेक शहरों-गांवों में ये व्यवस्था जीवित है, फल-फूल रही है।
भाइयों और बहनों, भारत ने हमेशा पूरे विश्व को मानवता, लोकतंत्र, सुशासन, अहिंसा का संदेश दिया है। जब दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने, पश्चिम के बड़े-बड़े जानकारों ने लोकतंत्र को, एक नए दृष्टिकोण के तौर पर देखना शुरू किया, उससे सदियों पहले भारत ने इन मूल्यों को ना सिर्फ आत्मसात किया, बल्कि अपनी प्रशासनिक पद्धति में शामिल भी किया।
भगवान बसवेश्वर ने बारहवीं शताब्दी में दुनिया को लोकतंत्र का, समानता का विचार दिया था। उन्होंने ‘अनुभव मंडप’ नाम की एक ऐसी व्यवस्था विकसित की जिसमें हर तरह के लोग, गरीब-दलित-पीड़ित-वंचित- अपने विचार रख सकते थे। यहां सब बराबर थे।
2015 में जब मैं ब्रिटेन गया था, तो वहां भगवान बसवेश्वर की मूर्ति का लोकार्पण करने का सौभाग्य भी मुझे मिला था।
मुझे ध्यान है उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मैग्ना कार्टा का जिक्र कर रहे थे।
लेकिन मैग्ना कार्टा से भी बहुत पहले बसेश्वर ने हमें एक तरह से पहली संसद से परिचय करा दिया था।
भगवान बसवेश्वर का ‘वचन’ था कि-
“जब विचारों का आदान-प्रदान ना हो, जब तर्क के साथ बहस ना हो, तब अनुभव गोष्ठी भी प्रासंगिक नहीं रह जाती और जहां ऐसा होता है, वहां ईश्वर का वास भी नहीं होता”।
यानि उन्होंने विचारों के इस मंथन को ईश्वर की तरह शक्तिशाली और ईश्वर की तरह ही आवश्यक बताया था। अनुभव मंडप में महिलाओं को भी खुलकर बोलने की स्वतंत्रता थी।
समाज के हर वर्ग से आई महिलाएं अपने विचार व्यक्त करती थीं। कई महिलाएं ऐसी भी होती थीं जिनसे अपेक्षा नहीं की जाती थी कि वो उस समय के तथाकथित सभ्य समाज के बीच भी आएं, वैसी महिलाएं भी आकर अनुभव मंडप में अपनी बात रखती थीं।
महिला सशक्तिकरण को लेकर उस दौर में ये बहुत बड़ा प्रयास था। मैंने पिछले वर्ष ही भगवान बसवेश्वर के वचनों के 23 भाषाओं में हुए अनुवाद का लोकार्पण किया था।
मुझे आशा है कि ये भगवान बसवेश्वर के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहे होंगे।
इस अवसर पर मैं पूर्व उप राष्ट्रपति श्री बी. डी. जत्ती को भी नमन करता हूं और बासवा समिति में उनके योगदान का स्मरण करता हूं। श्री अरविंद जत्ती का भी मैं विशेष उल्लेख करना चाहूंगा।
साथियों, मुझे बताया गया है कि पूजनीय श्री सिद्ध रमेश्वर महास्वामी जी द्वारा अनुभव मंडप को फिर से प्रारंभ करने का संकल्प लिया गया था। वो इसे यहां के मठ में स्थापित करना चाहते थे।
ये बहुत प्रसन्नता की बात है कि उनका ये स्वप्न श्री मुरुघा राजेंद्र महास्वामी के नेतृत्व में साकार हो रहा है। इस “अनुभव मंडप” से देश में समानता के अधिकार का संदेश प्रसारित होगा। “सर्व जन सुखिनो भवंतु” के मंत्र पर चलते हुए, सभी के सुख की कामना के साथ हो रहे इस आयोजन के लिए मैं आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
साथियों, 2022 में हमारा देश स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का पर्व मनाएगा। ये पर्व क्या हम देश की आंतरिक कमजोरियों के साथ मनाएंगे? नहीं। हम सभी ने संकल्प लिया है न्यू इंडिया बनाने का। इस संकल्प में आपका योगदान, संकल्प से सिद्धि की इस यात्रा को और सुगम कर देगा। क्या शिक्षा के क्षेत्र में, बेटियों को पढ़ाने के क्षेत्र में, युवाओं में कौशल विकास के क्षेत्र में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में, स्वच्छता के क्षेत्र में, डिजिटल साक्षरता के क्षेत्र में,
सौर ऊर्जा के प्रसार के लिए, क्या आपके द्वारा भी कोई संकल्प लिया जा सकता है?
मुझे पता है कि आप इस तरह के क्षेत्रों में पहले से काम कर रहे हैं। लेकिन क्या आंकड़ों में लक्ष्य तय करके कोई संकल्प लिया जा सकता है। जैसे क्या ये संकल्प लिया जा सकता है कि अगले दो वर्ष में 2 हजार, 5 हजार गांवों को खुले में शौच से मुक्त कराने में मदद की जाएगी। क्या ये संकल्प लिया जा सकता है कि अगले दो वर्ष में आपके चुने हुए
5 हजार गांवों में, हर घर में LED बल्ब होगा।
साथियों, सरकार इन सभी सेक्टरों में कार्य कर रही है लेकिन लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने में, लोगों को प्रेरित करने में आपकी बहुत बड़ी भूमिका है। मेरा विश्वास है कि आप जब कदम बढ़ाएंगे, तो लाखों विवेकानंद की शक्ति आपके संकल्पों को सिद्ध करेगी।
अभी बेलगावी में दस हजार विवेकानंद जुटे हैं, तब लाखों विवेकानंद जुटेंगे। आपके कार्य सिद्ध होंगे तो हमारी सामाजिक व्यवस्था को भी और मजबूती मिलेगी। एक भारत-
श्रेष्ठ भारत का, सामर्थ्यवान भारत का स्वामी विवेकानंद का सपना पूरा होगा।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त कर रहा हूं। एक बार फिर मैं मंच पर उपस्थित सभी संतों को प्रणाम करता हूं। आप सभी को राष्ट्रीय युवा दिवस और सर्व धर्म सभा की पुन: बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
बहुत-बहुत धन्यवाद !!!
Swami Vivekananda emphasised on brotherhood. He believed that our wellbeing lies in the development of India: PM @narendramodi https://t.co/mH5WSFU7Je
— PMO India (@PMOIndia) January 12, 2018
There was a lot of propaganda against India in the Western world that Swami Vivekananda proved wrong. He also raised a voice against social evils: PM @narendramodi https://t.co/mH5WSFU7Je
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Some people are trying to divide the nation and the youth of this country are giving a fitting answer to such elements. Our youth will never be misled: PM @narendramodi https://t.co/mH5WSFU7Je
— PMO India (@PMOIndia) January 12, 2018
It is India's youth that is taking the Swachh Bharat Mission to new heights: PM @narendramodi https://t.co/mH5WSFU7Je
— PMO India (@PMOIndia) January 12, 2018
India has been home to several saints, seers who have served society and reformed it: PM @narendramodi https://t.co/mH5WSFU7Je
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Seva Bhav is a part of our culture. All over India, there are several individuals and organisations selflessly serving society: PM @narendramodi
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Let us work to make our nation ODF: PM @narendramodi https://t.co/mH5WSFU7Je
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