महात्मा मंदिर, गांधीनगर

मंच पर विराजमान मंत्रे परिषद के मेरे साथी, राज्य के शिक्षा मंत्री श्रीमान भूपेन्द्र सिंह जी, प्रो. वसुबेन, इस कार्यक्रम को विशेषरूप से सहयोग दे रहे हैं ऐसे इटली के एम्बैसेडर हिज़ एक्सेलेन्सि डेनियल मानुसिनि, प्रो. दिनेश सिंह जी, प्रो. राजन वेलुकर जी, प्रो. चार्ल्सो जुकोस्‍की, प्रो. लता रामचन्द्र, डॉ. किशोर सिंह जी, मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए हुए शिक्षा क्षेत्र के सभी विद्वज जनों और विद्यार्थी मित्रों, मैं गुजरात की धरती पर आप सभी का बहुत-बहुत स्वातगत करता हूं..!

जिस स्थान पर हमारा ये कार्यक्रम चल रहा है, इस महात्मा मंदिर का निर्माण उस दौरान हुआ था, जब 2010 में हम गुजरात का गोल्डन जुबली ईयर मना रहे थे। उस समय हमने सोचा था कि ये गांधीनगर है तो गांधीजी की याद में भी यहां कुछ व्यवस्थाएं विकसित होनी चाहिए। आपको जानकर आनंद और आश्चर्य होगा कि हमारे देश में भी ऐसा निर्माण 182 दिनों में हो सकता है..! हमने इस महात्मा मंदिर का प्रमुख हिस्सा 2010 में कुल 182 दिनों में तैयार करके, 2011 में वाईब्रेंट समिट यहां आयोजित की थी। कहने का तात्प‍र्य यह है कि हमारे देश के पास अपार क्षमताएं हैं, विपुल संभावनाएं हैं और ढ़ेर सारी आकांक्षाएं हैं, आवश्यमकता है कि उसे समझें, उसे जोड़ें और देशवासी इसके लिए जुट जाएं, तो सब कुछ संभव होगा..!

हम लगातार विचार-विमर्श का प्रयास कर रहे हैं और हमारा एक कन्वींक्शन है कि देश के भिन्ने-भिन्न भागों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, देश के विद्वजनों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, दुनिया से भी बहुत कुछ सीखकर हमारे देश के काम लाया जा सकता है। यह अवसर हम सभी गुजरात वालों के लिए सीखने का अवसर है, जानने का अवसर है, समझने का अवसर है और आप सभी हमें ज्ञान देने के लिए, शिक्षा देने के लिए इतनी बड़ी मात्रा में आएं हैं, इसलिए मैं विशेष रूप से आप सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूं, स्वागत करता हूं..!

एक प्रकार से भारत का युवा मन, भारत की शिक्षा का स्वरूप, एक लघु रूप में आज इस महात्मा मंदिर में इक्ट्ठा हुआ है। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम में संघ शासित प्रदेश और राज्य‍ मिलाकर कुल 33 राज्यों से लोग आएं हैं और इस समारोह में शरीक हुए हैं। हिंदुस्तान के 100 से अधिक वाइस चांसलर और डायरेक्टर इस समारोह में मौजूद हैं। इस समिति में 84 ऐसे स्कॉ‍लर और इनोवेटर आएं है जिनकी विश्व में गणना होती है, उन सभी ने यहां आकर कॉन्फ्रेंस के भिन्न-भिन्न हिस्सों को सम्बोधित किया है। 1500 से अधिक प्रोफेसर और टीचर्स इसमें शरीक हुए हैं। गुजरात के 1500 और गुजरात के बाहर से 3000 से ज्यादा विद्यार्थी यहां मौजूद हैं। इसके अलावा, इस समिट में तकरीबन 40 देशों के 200 से अधिक छात्र भी मौजूद हैं। शिक्षा को लेकर किए गए इस प्रयास मे लोगों की उपस्थिति को देखा जाए तो भी, आप कल्पना कर सकते हैं कि यह प्रयास कितना महत्वपूर्ण है। मैं इस प्रयास में सहयोग देने वाले, इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हमारे डिपार्टमेंट के सभी लोगों को, यूर्नीवर्सिटी के सभी साथियों और देश के अन्य कोनों से मदद करने वाले सभी लोगों का हृदय से अभिनंदन करता हूं, उनका धन्यवाद करता हूं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

भाईयों-बहनों, हम सभी लम्बे अरसे से एक बात सुनते आ रहे हैं और बोलते भी आ रहे हैं -“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामों-निशां हमारा... कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी...” आखिर वो कौन सी बात है, कभी तो सोचें, क्या कारण है कि हजारों साल पुरानी परम्परा, हजारों साल पुराना ये समाज आज तक है, ये हस्ती मिटी क्यों नहीं..! हमले कम नहीं हुए है, संकट कम नहीं आए, दुविधाएं भी आई, प्रलोभन भी था, सब कुछ हुआ, लेकिन इसके बावजूद भी हस्ती मिटती नहीं हमारी, इसका कारण क्या है..? मित्रों, इस बात के कई कारण कई लोग बता सकते हैं और वह हो भी सकते हैं, लेकिन मैं जो कारण देख रहा हूं, वह यह है कि हमारे पूर्वजों ने जो इंवेस्टमेंट किया था, वह ह्यूमन वेल्थ के लिए किया था, उन्होने मानव समाज के निर्माण के लिए शक्ति जुटाई थी, हर युग में, हर समाज में, हर नेतृत्व में, निरंतर विकास किया था, व्यक्ति के निर्माण पर बल दिया गया था और व्यक्ति के निर्माण में शिक्षा-दीक्षा, गुरू-शिष्य, संस्कार-संक्रमण जैसी उत्तम परम्पाराओं को विकसित किया था, जिसके कारण एक ऐसे समाज की रचना हुई, जो ज्ञान पर आधारित था, उसके सारे पैरामीटर डायनामिक थे, वे बदलाव को स्वीकार करने वाली व्यवस्था वाले थे, युगानुकूल परिवर्तन को स्वीकार करने वाला समाज बनाया, ये ज्ञान की परम्प्रावाली हमारी जो विरासत है, इन्ही के भरोसे हम कह सकते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी..! और इसलिए अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई और चालाकी से इसी पर वार करने की कोशिश की थी। लॉर्ड मैकॉले ने उस काल में शिक्षा व्यावस्थाओं और पम्पराओं पर हमला बोला था, बाकी किसी ने हमें हिलाया-डुलाया और ड़राया नहीं, लेकिन ये एक ऐसा इंजेक्शन हो गया, जिसने हमारी भीतर की शक्ति को झकझोर डाला..!

समय की मांग थी कि देश की आजादी के बाद विश्व को क्या चाहिए, आने वाला कल कैसा होगा, समाज कैसा होना चाहिए, क्याक ये देश विश्व को कुछ देने का सामर्थ्ये रखता है या नहीं, क्या इस देश को विश्व को कुछ देने का मन बनाना चाहिए या नहीं, क्या‍ ऐसे बड़े सपने सजोने चाहिए या नहीं, अगर इन सभी मूलभूत बातों को उठाया होता और उसी को लेकर हम आगे चले होते, और हमारी पुरानी विरासत की अच्छा ईयों को आगे बढ़ाते हुए, उसमें आवश्यक आधुनिकताओं के बदलाव को स्वीकार करते हुए हम नवीन व्यवस्थाओं को विकसित करने का प्रयास करते, तो आज हम विश्व को कुछ दे पाने के योग्य बन जाते..! भाईयों-बहनों, अभी भी वक्त है, कुछ कठिनाईयां जरूर होगी लेकिन रास्ते अभी भी खोजे जा सकते है, मंजिलें अभी भी पार की जा सकती हैं और मानव जाति की कल्यांण के लिए नई ऊर्जा का स्त्रोत हमारी भारत मां की पवित्र भूमि बन सकती है, ऐसे सपने हमें संजोने चाहिए..!

आज कठिनाई क्या हुई है, कभी हम सोचें कि हमारा शिशु मंदिर का बालक, यूर्नीवर्सिटी में रिसर्च करने तक की यात्रा में क्याम कोई लिंक है..? हर जगह पर हमें बिखराव नजर आता है..! अगर पूरी विकास यात्रा इंटीग्रल नहीं है, अगर वो सर्किल के रूप में है, छोटा सर्कल, बड़ा सर्कल, उससे बड़ा सर्कल.... तो मेरी समझ के मुताबिक वह मनुष्यै के विकास से नहीं जुड़ेगा। अगर वह छोटे सर्कल में है तो वहीं रहेगा, बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, उससे बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, और उसी में घूमता रहेगा। अगर हम एक छोर से शुरू करें, और राउंड करते-करते उसी सर्कल को बढ़ाते चलें, व्यक्तित्व का विस्तार करते चलें, जो व्यूक्ति से लेकर समूह तक, समूह से समाज तक, समाज से समष्टि तक अगर उस यात्रा को आगे बढ़ाया जाएं तो उससे व्यक्तित्व का विकास होगा। हम वो लोग हैं, जो कहते हैं कि ‘नर करणी करे तो नारायण हो जाए’, हमारे यहां ऐसा नहीं माना जाता है कि ईश्वर पैदा होते हैं, हमारे यह माना जाता है कि हमारी सोच में इतना सामर्थ्य‍ है कि व्यक्ति के विकास को ईश्वर की ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है..!

हमें आवश्याकता है कि नई व्यवस्थाओं को विकसित किया जाए। हमने एक छोटा प्रयास किया, हम सभी जानते है कि हमारे देश में एक व्यंवस्था है जो अंग्रेजों के ज़माने से आई होगी, वो यह है कि जब भी हम स्कूल से पढ़कर निकलते हैं तो हमें एक कैरेक्टार सर्टिफिकेट दिया जाता है, और हम जहां भी जाते हैं वह कैरेक्टैर सर्टिफिकेट दिखाते रहते हैं। और देश के करोड़ों-करोड़ों नागरिकों के कैरेक्टर सर्टिफिकेट के शब्दे एक ही प्रकार के हैं, एक ही सॉफ्टवेयर से निकले हुए कैरेक्टोर सर्टिफिकेट हैं..! देने वाले को भी पता है क्यों दे रहा है और लेने वाले को भी पता है क्यों ले रहा है, फिर भी गाड़ी चल रही है, क्या किसी ने सवाल पूछा कि ये क्यों..? आखिर इसका क्या, उपयोग है..? और अगर सर्टिफिकेट मिल गया तो क्या मान लिया जाए कि वह व्यक्ति सही है..? मैनें अभी हमारी सरकार में एक सुझाव दिया है और उस पर काम चल रहा है कि क्यूं न हम बालक को एप्टीट्यूड सर्टिफिकेट दें..! जब वह स्कूल में पढ़ता है तो कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो उसका लगातार आर्ब्जूवेशन करता रहे, इसके लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए, बारी-बारी से उनसे संवाद करके पता किया जाए, उनकी दिनचर्या को देखा जाए, उनकी फैमिली को देखा जाए, तो इससे उसके बारे में पता चला चलेगा, जैसे-कि यह बच्चा बड़ा साहसी है, ये इसका एप्टीट्यूड है, और उसे उसी क्षेत्र में प्रेरित किया जाए, जैसे कि सेना के जवानों से मिलवाया जाए, कभी आर्मी कैन्टान्मेंट में ले जाया जाए, ऐसे बच्चों का टूर प्रोग्राम भी वहीं रखा जाएं तो इससे उसे लगेगा कि हां यार, जिन्दगी ऐसे बनानी चाहिए..! स्कूल के दस बच्चें हैं जिनके हाथ में कोई भी चीज आई तो वह चीजों को तोड़-फोड़ कर देखते हैं कि इसके अंदर क्या है, मतलब उसका एप्टीट्यूड रिसर्च करने वाला है, वह जानना-समझना चाहता है, तो ऐसे बच्चों को इक्ट्ठा करके उनका प्रोग्राम किसी अच्छी मैनुफैक्चरिंग कम्पनी जहां ऐसे रिसर्च होते हों, वहां ले जाओं तो वह बड़ा मन से देखेगें..! लेकिन हमारे यहां टूर प्रोग्राम होता है तो एक साथ सब उदयपुर देखने जाएंगे, सब ताजमहल देखने जाएंगे..! कहने का तात्प्र्य यह है कि हम माइंड एप्लाई ही नहीं करते, चलती है गाड़ी तो चलने दो..! क्या इसके लिए भी पार्लियामेंट में कानून बनाना पड़ेगा, कोई संशोधन करना पड़ेगा..? ऐसा नहीं है, मित्रों। हमने सिलेबस को बल दिया है, आवश्याकता है कि हम एक-एक बच्चेको सेलिब्रिटी मानें और उसके जीवन पर बल दें तो हम स्थितियों को बदल सकते हैं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

मित्रों, समाज और इन व्यवस्था ओं का डिस्कंनेक्टक कैसा हुआ है..! शायद चार-छ: महीने पहले की बात होगी, मैं रात को देर से आया तो सोचा कि दिन भर की क्या खबरें होगी इसलिए टीवी ऑन किया, एक टीवी चैनल पर विवाद चल रहा था - किसी स्कूल में बच्चे सफाई का काम कर रहे थे, झाडू-पोछा कर रहे थे, अपना स्कूल साफ कर रहे थे, और विवाद इस बात पर था कि बच्चों से ऐसा काम क्यों लिया जाता है..? मैं हैरान था, हमारे देश में तो गांधी जी भी कहते थे कि श्रम हमारी शिक्षा के केंद्र में होना चाहिए, उससे सारी चीजें करवानी चाहिए, तभी एक बालक तैयार होगा और हमारे देश का वर्तमान मीडिया इस बात पर बहस कर रहा था..! श्रम कार्य, हमारे देश में शिक्षा का हिस्सा था, लेकिन आज माना जाता है कि ये शिक्षा के व्यापारी लोग बच्चों का शोषण करते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं... परन्तु यदि हमें व्याक्तित्व का विकास करना हो, तो समाज को भी प्रशिक्षित करना पड़ेगा कि इसका क्या‍ महत्व है, क्या जरूरत है..! मैं इसे नहीं मानता हूं। जैसे हमारी पूरी सृष्टि की जो रचना है, तो हमारी मैथोलॉजी में जो कॉन्सेप्ट है, उसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की बात है, जिस प्रकार सृष्टि में तीनों का होना जरूरी है उसी प्रकार, शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व, के विकास में सिर्फ हेड से काम नहीं चलेगा, सिर्फ दिमाग में सब भरा जाएगा तो वह रोबोट की तरह कहीं उगलता रहेगा और उससे आगे दुनिया नहीं चलेगी, इसलिए सिर्फ हेड नहीं बल्कि हेड, हार्ट और हैंड, तीनों का मेल होना जरूरी है जैसे पूरी सृष्टि के लिए ब्रह्मा, विष्णु , महेश जरूरी है..! व्यक्ति की ऊर्मियां, उसकी भावनाएं, उसके भीतर पड़ी हुई ललक, उसके हृदय का स्पंदन, ये सब उसके व्यक्तित्व के साथ जुड़ा हुआ होता है। उसका हेड जितना सामर्थ्य्वान होगा, जितना फर्टाइल होगा, जितना इनोवेटिव होगा, जितना क्रिएटिव होगा, वह एक ताकत के रूप में उभरेगा, लेकिन अगर उसके हैंड बेकार है, उनमें कौशल नहीं है, अगर वह किसी के काम नहीं आते हैं, किसी के काम में जुड़ते नहीं है, तो उस व्यक्ति और एक अच्छी किताब के बीच कोई फर्क नहीं है..! हमें इंसान किताब के रूप में नहीं बल्कि जीती-जागती व्यवस्था के रूप में चाहिए, जो व्यवस्था!ओं को विकसित करने का हिस्सा बनना चाहिये। इसलिए, हमें हमारी शिक्षा को उस तराजु पर तौलने की आवश्यकता है कि वह मनुष्य के इस रूप को बनाने में सक्षम है या नहीं..!

प्राइमरी स्कूल में जो बच्चे होते हैं, उनमें से कुछ छूट जाते हैं, कुछ सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते हैं, कुछ हॉयर सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते है, कुछ कॉलेज में जाते हैं, और कॉलेज में भी कुछ इसलिए जाते हैं कि जाएं तो जाएं कहां...। इसके बाद, वो कहीं नौकरी के लिए जाते हैं तो उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है, डिग्री है, वो सब ठीक है, लेकिन क्या तुम्हे ये आता है..? तो छात्र बोलता है कि नहीं, हमें कॉलेज में ये तो नहीं सिखाया गया। फिर उस छात्र को लगता है कि मैनें अपनी जिन्देगी क्यों खराब की, चार साल कॉलेज में क्यों गया..? हमारी शिक्षा व्यवस्था से उस प्रकार का जीवन तैयार हों, उस प्रकार की शख्सियत तैयार हों, उस प्रकार की शक्ति तैयार हों, जिसे समाज खोजता हो..! लोग ऐसा कहें कि अरे मेरे यहां आओ, मुझे जरूरत है, तुम काम करो, तुम्हारे पास ताकत है, हम मिलकर कुछ करेगें... ये स्थिति हमें पैदा करनी चाहिए। और हमारी कोशिश यह है कि व्यक्तित्व को उस दिशा में ले जाना चाहिए..!

उसी प्रकार से, हमारे देश में व्हाइट कॉलर जॉब ने हमारा बहुत नुकसान किया है, लोगों की सोच बन गई है कि छोटा-मोटा काम करना बुरा है, हालांकि अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है, यूथ को लगने लगा है कि वह कुछ नया करें, अलग करें, अच्छा करें। हम समाज का ये स्वभाव कैसे बनाएं, कि ऑफिस में फाइलों में साइन करने के बजाय, या बैंकों में चेकबुक पर काम करने के बजाय भी तो दुनिया में कोई काम हो सकता है..! एक बार मैं एक एग्रीकल्चर के कार्यक्रम में गया था, हमारे कृषि विभाग का एक कार्यक्रम था, जिसमें किसानों को अवॉर्ड देना था। मैनें जाने से पहले सोचा कि सब वयोवृद्ध, तपोवृद्ध लोग होगें। उस दिन मुझे लगभग 35 कृषिकारों को अवॉर्ड देना था, और उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि उसमें से कम से कम 27-28 किसान, 35 से कम आयु वाले जींस-पैंट पहने हुए किसान थे, मन को बहुत आनंद हुआ कि नई पीढ़ी में भी बदलाव आया है..! कुछ दिनों पहले, मुझसे विदेश से एक-दो लड़के मिलने आए थे, वो बोले कि वह कुछ करना चाहते हैं। मैनें कहा कि क्या सोचा है..? वो बोले कि वह तबेला खोलेंगे, गाय-भैंस रखेगें, उनका लालन-पालन करेगें और दुध का मार्केट कैप्चर करूंगा। मैनें कहा गुजरात में क्या करोगे, यहां अमूल है, जो दिनेश सिंह की रगों तक पहुंच गया है..! उसने कहा कि मैं करूंगा और करके दिखाउंगा..! मित्रों, ये जो मन की रचना तैयार होती है वह सिर्फ किताबों से नहीं होती है, हमें वो एन्वॉयरमेंट तैयार करना पड़ेगा। क्या हमने वो माहौल तैयार किया है..? हमारी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में, हमारे कॉलेज में, जहां सभी आपस में ये बातें करते हैं कि किसने कितनी सेंचुरी मारी, किसने कितने रन बनाएं और उसी में सारा समय जाता है। कौन सा फिल्मं शो चल रहा है, अगले फ्राइडे कौन सी मूवी आएगी, किसने ज्यादा कमाई की, नई फैशन में क्या आया है... छात्र इसी बारे में बातें करते हैं और उनका सारा समय इसी में जाता है..! क्या कैम्पस में दुनिया कहां जा रही है, जगत में किस प्रकार की आधुनिक, आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तकनीकी आ रही है और उनका क्या प्रभाव है, क्या ऐसी सहज बातों का माहौल बनता है..? लेकिन एक-आध प्रोफेसर ऐसा होता है जो माहौल बदल देता है, जिसके कारण बदलाव आता है। कहा जाता है कि एक समय में वाराणसी का माहौल ऐसा था, कि लोग आते-जाते शास्त्र में बात करते थे, जीवन की समस्याओं की चर्चा भी शास्त्रों को वर्णित करके करते थे, शास्त्र बहुत सहज रूप से उनके जीवन का हिस्सा बन गया था, इसी कारण सदियों बाद भी वाराणसी उसकी पंडिताई के लिए जाना जाता है और उस समय ये सब कुछ इंफॉर्मल था। क्यों न हम ऐसी व्यवस्थाओं को विकसित करने की दिशा में एक एन्वॉयरमेंट डेपलप करें..!

सारी दुनिया जानती है कि 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंर्फोमेशन टेक्नो्लॉजी आई और रेवोल्यूशन हुआ, उसने जीवन पर बहुत बड़ा इम्पे्क्टा डाल दिया। 21 वीं सदी में ईटी यानि एन्वॉहयरमेंट टेक्नोलॉजी का प्रभाव रहने वाला है। क्या अभी से हमने अपने आपको ईटी के लिए तैयार किया है..? क्या हमारे इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स, हमारा मैनुफैक्चकरिंग सेक्टर, हमारे रिसर्चर ईटी के लिए तैयार हैं..? सारी दुनिया में एन्वॉयरमेंट टेक्नोहलॉजी एक पैरामीटर बन रहा है। क्या हमारे पास ऐसा बुद्धिधन है, जो एन्वॉयरमेंट टेक्नोलॉजी में पूरे विश्व को लीड़ कर सकें, उसे नए रास्ते दिखाएं..? अगर आईटी के माध्यम से हम जगत में अपनी जगह बना पाए हैं, तो इंजीनियरिंग स्किल के माध्यम से 21 वीं सदी में ईटी के क्षेत्र में भी दुनिया में अपनी जगह बना सकते हैं, दुनिया की आवश्य्कताओं की पूर्ति कर सकते हैं..!

आईटीआई, टेक्नोलॉजी फील्ड़ में स्किल डेवलपमेंट में शिक्षा के स्तर पर सबसे छोटी ईकाई होती है। हमने अपने राज्य में आईटीआई में छोटे-छोटे बदलाव किए हैं। हमारे राजेन्द्र् जी इंटरडिसीप्लेन के विषय के बारे में अभी कह रहे थे, कुछ चीज़ें कैसे बदलाव लाती हैं, और हमने इसमें प्रतिष्ठा देने के विषय में एक छोटा सा प्रयोग किया है। जो बच्चे 7 वीं कक्षा, 8 वी कक्षा में होते हैं और आगे पढ़ नहीं पाते हैं, उनका मन नहीं लगता है या संजोग नहीं हो पाता, और वह रोजी-रोटी कमाने के लिए कुछ काम सीखते हैं जैसे प्लैम्बर, टर्नर, फिटर, वायरमैन, आदि, और कोई सलाह देता है तो आईटीआई में चले जाते हैं कि इनमें से कुछ बन जाएंगे। वहां जाने के बाद, उसके अंदर मैच्योरिटी आती है, उसे लगता है कि स्कूल छूट गया तो अपना जीवन बर्बाद कर दिया, अब उसे कुछ करना चाहिए, लेकिन व्यवस्था ऐसा होती है कि दरवाजे बंद हो जाते हैं। उसे मन में इच्छा जग जाती है लेकिन हम उसकी इच्छा के अनुसार कोई व्यवस्थां विकसित नहीं करते हैं। इसी को लेकर हमने एक छोटा सा प्रयास किया, कि जिस बच्चेने 7 वीं, 8 वीं, और 9 वीं से कक्षा से स्कूल छोड़ दिया है और मान लीजिए कि वह दो साल आईटीआई करता है, तो हम उसे 10 वीं पास मानते हैं और उसे सर्टिफिकेट दे देते हैं..! पहले वो छात्र आईटीआई कहने से शर्माता था, कोई पूछता था कि क्याऔ पढ़ते हो, तो वह दूसरे विषय पर ही बात करने लगता था, उसे शर्म आती थी, लेकिन इस बदलाव को करने के बाद, छात्र में कॉन्फीडेंस बढ़ा, वो कहने लगा कि नहीं 10 वीं पास हूं। जो छात्र 10 वीं के बाद आईटीआई में जाता है और दो साल आईटीआई करता है उसे हमने 12 वीं पास के बराबर दर्जा दे दिया, वो कहने लगा कि हां मैने, 12 वीं पास किया है। 12 वीं के बराबर होने के नाते, उसके लिए डिप्लोमा इंजीनियरिंग के दरवाजे हमने खोल दिए, यूं तो उसके स्कूल 8 वीं में ही छोड़ दिया था, लेकिन इस आईटीआई और उसके एप्टीट्यूट के कारण उसे अवसर मिल गया और वह इंजीनियरिंग के डिप्लोमा में चला गया। और उसकी इन विषयों में रूचि होने के कारण, 8 वीं में पढ़ाई छोड़ने के बाद भी इंजीनियरिंग की ओर चला गया, डिग्री की ओर चला गया..! मित्रों, हमें दरवाजे खोलने होगें..! 8वीं, 9वीं, 10 वीं के कारणों से जिन छात्रों का जीवन रूक गया है, उसको रूकने नहीं देना होगा। हमें ऐसे छात्रों के लिए दरवाजे खोलने होगें, उन्हे अवसर देना होगा..! इसके लिए यहां हमारे शिक्षाशास्त्री बैठे हैं, हम इस बदलाव को कैसे एडॉप्ट कर सकते हैं, और उसे एडॉप्टए करने के बाद, उसके विकास के लिए क्या कर सकते हैं..? क्यों न हम बच्चों को उनके एप्टीट्यूड के हिसाब से काम दें..! मैने गुजरात सरकार में एक प्रयोग किया है, वैसे सरकारी व्यवस्थां में इस प्रकार का प्रयोग करने के लिए बहुत बड़ी हिम्मत लगती है, जो मेरे अंदर ज्या्दा ही है..! सरकार में पद्धति ऐसी होती है कि हर अफसर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक निर्धारित दायरे में अपना-अपना काम करता है और उसी दायरे में सोचता है, धीरे-धीरे वह रोबोट जैसा हो जाता है, उसे मालूम होता है कि दिन में 6 फाइल आने वाली हैं और उसे ऐसा-ऐसा करना है..! इसको लेकर हमने छोटा सा प्रयोग किया, हमने अफसरों के लिए ‘स्वान्त: सुखाय्’ नाम का एक कार्यक्रम बनाया, जिसमें सरकारी कामकाज के अलावा, उसके मन को आनंद देने वाले किसी एक काम को वो चुनें और करें। इस कार्यक्रम को लेकर मुझे इतने आश्चर्यजनक परिणाम मिले हैं कि हमारे सैं‍कड़ों सरकारी अधिकारियों ने उनकी निर्धारित नौकरी के अलावा, अपनी पसंद का एक काम लिया, उसमें जी-जान से जुट गए, और वह इतने इनोवेटिव होते हैं, इतने रिर्सोस मोबिलाइज़ करते हैं और साल-दो साल में उस काम को पूरा करते हैं। जब ट्रांसफर हो जाता है, तो ट्रांसफर होने के बाद भी अपने यार, दोस्तो और रिश्तेोदार आते हैं तो उनको साथ लेकर जाते हैं और बताते हैं कि मैं जब यहां कलेक्टबर था, तो ये काम किया था। इससे उसके जीवन को अत्यंत संतोष मिलता है, क्योंकि उसके एप्टीमट्यूट के अनुकूल उसे एक अवसर मिलता है, दिया जाता है..! अगर ऐसा परिवर्तन कट्टर सरकारी व्यवस्था में हो सकता है तो शिक्षा में आसानी से हो सकता है, ये मेरा मत है..!

इसलिए मित्रों, ये जो हमारा मंथन है, जो मोदी कह रहा है वो अल्टीमेट नहीं हो सकता है और न होना चाहिए, लेकिन इस ज्योत को जलाने की शुरूआत की जाए, इसे जलाया जाए, इसे स्पार्क किया जाए..! मिलें, बैठें और सपना देखें, 21 वीं सदी में विश्व को कुछ देने का सामर्थ्य देखें..! लोग कहते है कि 21 वीं सदी हिंदुस्तान की सदी है, इसका मतलब क्यां है..? इसके बारे में कुछ तो डिफाइन करो, हिंदुस्तान की सदी कैसे है, क्यों है..? परन्तु यदि हम पुरातन काल में देखें कि जब-जब मानव जाति ज्ञान के युग में जी रही थी, हर बार हिंदुस्तान ने मानव जाति का नेतृत्व किया था। 21 वीं सदी भी नॉलेज की सदी है, ज्ञान की सदी है और अगर यह ज्ञान की सदी है, तो हम लोग इसमें काफी कुछ कॉन्ट्रीब्यूट कर सकते हैं और हमें लीड करना चाहिए। हमारी दूसरी पॉजीटिव शक्ति यह है कि हम विश्व में सबसे युवा देश हैं। वी आर द यंगेस्ट नेशन..! हमारे देश की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। जिस देश के पास इतनी जवानी भरी हो, वो देश क्या नहीं कर सकता है..! डेमोग्रफिक डिवीडेंट हमारी सबसे बड़ी ताकत है..! हमारे देश के नौजवान आईटी के माध्यम से दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत रखते हैं..! ये जो हमारी डेमोग्राफिक स्ट्रेंथ है, डेमोग्रफिक डिवीडेंट है, अगर ऐसे नौजवानों को हुनर मिले, कौशल मिले, सामर्थ्य मिले, अवसर मिले, तो वह नौजवान पूरे विश्व में अपनी ताकत दिखा सकता है..! हमारा तीसरा सशक्त पहलू यह है कि हम एक वाईब्रेंट डेमोक्रेटिक देश हैं। ये लोकतंत्र हमारे देश की बहुत बड़ी अमानत है..! विश्व भर में चल रही स्पर्धा में हमारे पास ये चीज ऐसी है जिसके कारण हम पहले से एक कदम आगे होने की ताकत रखते हैं। अगर इन सपनों को लेकर, हम आगे की नई पीढ़ी को तैयार करने के लिए इस पर ध्यान दें कि कॉलेज की सोच कैसे बदलें, यूनिवर्सिटी की सोच कैसे बदलें, हमारी शिक्षा व्यवस्था की सोच कैसे बदलें, तो बेहतर होगा..! हमें सिर्फ नौकरशाहों को पैदा करने के लिए इतना बड़ा शिक्षा का क्षेत्र चलाने की क्या जरूरत है..? हमें तो समाज के निर्माताओं को तैयार करना है, युग निर्माताओं को तैयार करना है, आने वाली पीढि़यों को तैयार करने का काम करना है, और इस बदलाव को लेकर हम अपनी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर सोचें..!

मुझे विश्वास है कि दो दिन चलने वाला मंथन और पिछले 7 दिनों से इस संदर्भ में चल रहे प्रयासों से हमें कुछ न कुछ अमृत मिलेगा..! ये कोई टोकन काम नहीं है, हम लगातार इसके लिए प्रयासरत रहते हैं। पहले यूनीवर्सिटी के स्तृर पर काम किया, पिछले वाइब्रेंट समिति में पूरे विश्व से 45 यूनीवर्सिटी को बुलाकर एक वर्कशॉप किया। उसके बाद, लॉर्ड भीखु पारेख जैसे लोगों को बुलाकर एक इनहाउस मंथन का काम किया और आज इस स्तर पर कार्य कर रहे हैं। यानी कि हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, ये अचानक से काम शुरु नहीं किया है। इसके बाद भी हम और आगे जाएंगे, आगे सोचेंगे और कदम उठाएंगे। हमारी कोशिश है कि हम गुजरात में कुछ करना है। गुजरात कुछ सीखना चाहता है, देश के बुद्धिजीवियों को हमने कुछ सीखने के लिए बुलाया है। हम शिक्षाशास्त्री नहीं है, इसलिए अपने मन के विचारों को आप सभी के सामने रखने और आपसे सीखने के लिए बुलाया है। इससे कहीं तो कुछ शुरू होगा और कहीं भी कुछ भी शुरू होने पर परिवर्तन आ सकता है, और उसी के प्रयास के हिस्से के रूप में हम आएं हैं..!

हमें सेंटर फॉर एक्सीलेंसी की ओर बल देना होगा। मैने देखा है कभी-कभी गांव का एक किसान एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी के सांइटिस्ट से ज्यादा बढि़या काम करता है। गांव में खेती करने वाला किसान, लेबोरेट्री में काम करने वाले सांइटिस्ट‍ से अगर दो कदम आगे है तो दोनों को साथ में जोड़ने की जरूरत है..! एक वेटेनेरी डॉक्टर से ज्यादा, पशुओं का पालन करने वाली अनपढ महिला जानती होगी कि पशुओं की केयर कैसे करनी चाहिए, उसकी देखभाल कैसे की जाएं की वह ज्यादा दूध दे, वो ज्यादा जिन्देगी कैसे जिएं, तो इसमें भी दोनों को जोड़ने की जरूरत है..! अगर हम इन चीजों पर बल देगें तो बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। एक बार फिर से यहां आने वाले सभी लोगों का स्वागत करता हूं..! लता जी तो गला खराब होने के कारण बोल नहीं पा रही है, उसके बाद भी इस कार्यक्रम में शरीक हुई, मैं उनका विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं। आप सभी का स्वागत करते हुए, बहुत-बहुत धन्यउवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!

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There is only one mantra to fight cancer - Awareness, Action and Assurance: PM Modi
The Ayushman Bharat Yojana has reduced the financial problems in cancer treatment to a great extent: PM Modi

माझ्या प्रिय देशवासीयांनो, नमस्कार!  2025 हे वर्ष तर आता आलंच आहे, दरवाजावर येऊन ठेपलं आहे.   26 जानेवारी 2025 रोजी आपली राज्यघटना लागू होऊन 75 वर्षे पूर्ण होत आहेत.  आपल्या सर्वांसाठी ही खूप अभिमानाची आणि गौरवास्पद बाब आहे.  आपल्या राज्यघटनाकारांनी आपल्या हाती सुपूर्द केलेली राज्यघटना, काळाच्या प्रत्येक निकषावर सिद्ध झाली आहे. राज्यघटना आपल्यासाठी मार्गदर्शक प्रकाश- दीपस्तंभ आहे, मार्गदर्शक आहे.   भारताच्या राज्यघटनेमुळेच आज मी इथे आहे, तुमच्याशी बोलू शकत आहे.  यावर्षी 26 नोव्हेंबरला संविधान दिनापासून वर्षभर चालणाऱ्या अनेक उपक्रमांना सुरुवात झाली आहे.  देशातील नागरिकांना राज्यघटनेच्या  वारशाशी जोडण्यासाठी constition75.com नावाचे खास संकेतस्थळही तयार करण्यात आले आहे.  यामध्ये तुम्ही राज्यघटनेची प्रास्ताविका वाचून तुमची ध्वनीचित्रफीतही टाकू शकता.  तुम्ही राज्यघटना वेगवेगळ्या भाषांमध्ये वाचू शकता… राज्यघटनेबद्दल प्रश्नही विचारू शकता.  ‘मन की बात’चे श्रोते, शाळेत शिकणारी मुले, महाविद्यालयात जाणारे तरुणतरुणी यांना मी विनंती करतो की त्यांनी या संकेतस्थळाला नक्कीच भेट द्यावी आणि त्याचा एक भाग व्हावे.

मित्रांनो, पुढील महिन्याच्या 13 तारखेपासून प्रयागराजमध्ये महाकुंभ मेळाही सुरू होणार आहे.  संगमाच्या काठावर सध्या जोरदार तयारी सुरू आहे.  मला आठवतं, काही दिवसांपूर्वी मी प्रयागराजला गेलो होतो तेव्हा हेलिकॉप्टरमधून कुंभमेळ्याचा संपूर्ण  परिसर बघून खूप आनंद झाला होता.  इतका महाकाय!  इतका सुंदर! एवढा भव्यपणा !

मित्रांनो, महाकुंभ मेळ्याचे वैशिष्ट्य केवळ त्याच्या विशालतेतच नाही.  कुंभाचे वैशिष्ट्य त्यातील वैविध्यात देखील आहे.  या कार्यक्रमात कोट्यवधी लोक एकावेळी एकत्र येतात.  लाखो संत, हजारो परंपरा, शेकडो पंथ, अनेक आखाडे… प्रत्येकजण या कार्यक्रमाचा एक भाग बनतो.  कुठेही भेदभाव दिसून येत नाही, कोणी मोठा नाही, कोणी लहान नाही.  विविधतेतील एकतेचे असे दृश्य जगात कुठेही दिसणार नाही.  म्हणूनच आपला कुंभमेळा हा एकतेचा महाकुंभही आहे.  यावेळच्या महाकुंभातूनही एकतेच्या महाकुंभाचा मंत्र दृढ होणार आहे.  मी तुम्हा सर्वांना सांगेन की, जेव्हा आपण कुंभमेळ्याला जाल, तेव्हा  एकतेचा हा संकल्प घेऊन परत या. आपण,  समाजातील फूट आणि द्वेषाची भावना नष्ट करण्याची शपथही घेतली पाहिजे. अगदी कमी शब्दात सांगायचे झाले तर मी म्हणेन...

महाकुंभमेळ्याचा संदेश, एक व्हावा संपूर्ण देश!

महाकुंभमेळ्याचा संदेश, एक व्हावा संपूर्ण देश!

आणि जर मला ते आणखी वेगळ्या प्रकारे सांगायचे असेल तर मी म्हणेन ...

गंगेचा अखंड प्रवाह, दुभंगता कामा नये आपला समाज. 

गंगेचा अखंड प्रवाह, दुभंगता कामा नये आपला समाज. 

मित्रांनो, यावेळी देशभरातील आणि जगभरातील भाविक प्रयागराजमध्ये डिजिटल महाकुंभाचे साक्षीदार होणार आहेत.  डिजिटल मार्गदर्शनाच्या मदतीने तुम्हाला विविध घाट, मंदिरे, साधूंचे आखाडे यांच्यापर्यंत पोहोचण्याचा रस्ता सापडेल.  ही मार्गदर्शक प्रणाली तुम्हाला वाहनतळा पर्यंत पोहोचण्यासही मदत करेल. कुंभमेळ्याच्या कार्यक्रमात प्रथमच एआय चॅटबॉट चा वापर केला जाणार आहे.  AI चॅटबॉटच्या माध्यमातून कुंभमेळ्याशी संबंधित प्रत्येक प्रकारची माहिती 11 भारतीय भाषांमध्ये मिळू शकते.  मजकूर टाइप करून किंवा बोलून कोणीही या चॅटबॉटवरून कोणत्याही प्रकारची मदत मागू शकतो. कुंभमेळ्याचा  संपूर्ण परिसर कृत्रिम बुद्धिमत्ता संचालित कॅमेऱ्यांनी टिपला जात आहे.  कुंभकाळात कुणी आपल्या व्यक्तीपासून हरवले… ताटातूट झाली… तर त्यांना शोधण्यातही हे कॅमेरे मदत करतील. भाविकांना,  डिजीटल लॉस्ट अँड फाउंड सेंटर, या हरवले आणि सापडले केंद्राची  सुविधाही मिळणार आहे.  तसेच भाविकांना, सरकारमान्य टूर पॅकेज, निवास आणि होमस्टे म्हणजे स्थानिकांच्या घरात पर्यटकांची राहण्याची सुविधा याबाबतची माहिती मोबाईलवर दिली जाईल.  तुम्हीही महाकुंभमेळ्याला गेलात तर या सुविधांचा लाभ घ्या आणि हो, #EktaKaMahaKumbh या हॅशटॅगसह  तुमचा सेल्फी नक्कीच टाका.     

मित्रांनो, 'मन की बात' अर्थात MKB मध्ये आता आपण KTB बद्दल बोलणार आहोत. ज्येष्ठांच्या पिढीतील अनेकांना KTB बद्दल माहीत नसेल.  पण जरा मुलांना विचारा, त्यांच्यात KTB खूप प्रसिद्ध आहे.  KTB म्हणजे क्रृश, तृश आणि बाल्टीबॉय.  तुम्हाला कदाचित मुलांच्या आवडत्या ॲनिमेशन मालिकेबद्दल माहिती असेल आणि तिचे नाव आहे ‘KTB – भारत हैं हम’ ….आणि आता या मालिकेचा दुसरा हंगामही आला आहे.  ही तीन ॲनिमेशन पात्रे आपल्याला भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील त्या नायक आणि नायिकांबद्दल सांगतात ज्यांची फारशी चर्चा होत नाही.  नुकताच या मालिकेचा हंगाम-2, गोवा इथे नुकत्याच झालेल्या भारतीय आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सव-इफ्फीत अतिशय खास पद्धतीने सुरू करण्यात आला.  सर्वात महत्वाची गोष्ट अशी की ही मालिका फक्त अनेक भारतीय भाषांमध्येच नाही तर परदेशी भाषांमध्येही प्रसारित केली जाते.  ही मालिका दूरदर्शन तसेच इतर OTT मंचांवर पाहता येईल.

मित्रांनो, आपल्या ॲनिमेशनपटांची, नियमित चित्रपटांची आणि टीव्ही मालिकांची लोकप्रियता हेच दाखवते की भारताच्या सर्जनशील उद्योगात केवढी क्षमता आहे.  हा उद्योग देशाच्या प्रगतीत मोठे योगदान तर देत आहेच, पण आपल्या अर्थव्यवस्थेलाही नवी उंची गाठून देत आहे.  आपल्या देशाचा चित्रपट आणि मनोरंजन उद्योग खूप मोठा आहे.  देशातील कितीतरी भाषांमध्ये चित्रपट बनवले जातात आणि सर्जनशील आशयाची निर्मिती होते.  मी आपल्या चित्रपट आणि मनोरंजन उद्योगाचेही अभिनंदन करतो… कारण त्यांनी ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ ही भावना मजबूत केली आहे.

मित्रांनो, 2024 मध्ये आपण चित्रपटसृष्टीतील अनेक महान व्यक्तींची 100 वी जयंती साजरी करत आलो आहोत.  या व्यक्तिमत्त्वांनी भारतीय चित्रपटसृष्टीला जागतिक स्तरावर ओळख मिळवून दिली.  राज कपूरजींनी चित्रपटांच्या माध्यमातून, जगाला भारताच्या सॉफ्ट पॉवरची- सुप्तशक्तीची ओळख करून दिली.  रफीसाहेबांच्या आवाजात असलेली जादू  प्रत्येकाच्या हृदयाला भिडणारी होती आणि आहे.  त्यांचा आवाज अप्रतिम होता.  भक्तिगीते असोत की प्रेमगीते असोत….दर्दभरी गाणी असोत, प्रत्येक भावना त्यांनी आपल्या आवाजाने जिवंत केली. कलाकार म्हणून त्यांची महत्ता किती आहे, हे आजही तरुण पिढी त्यांची गाणी तितक्याच तन्मयतेने ऐकते , यावरून समजते- हीच कालातीत कलेची ओळख आहे.  अक्किनेनी नागेश्वर राव गारू यांनी तेलुगू सिनेमाला नव्या उंचीवर नेले आहे.  त्यांच्या चित्रपटांनी भारतीय परंपरा आणि मूल्ये उत्तम प्रकारे मांडली.  तपन सिन्हाजी यांच्या चित्रपटांनी समाजाला एक नवी दृष्टी दिली.  त्यांच्या चित्रपटांमध्ये सामाजिक जाणिवा आणि राष्ट्रीय एकात्मतेचा संदेश होता. आपल्या संपूर्ण चित्रपटसृष्टीसाठी या वलयांकित मान्यवरांचे जीवन म्हणजे एक प्रेरणा आहे.

मित्रांनो, मला तुम्हाला आणखी एक आनंदाची बातमी द्यायची आहे.  भारताची सर्जनशील प्रतिभा जगासमोर दाखवण्याची मोठी संधी येत आहे.  पुढील वर्षी, वर्ल्ड ऑडिओ व्हिज्युअल एंटरटेनमेंट समिट म्हणजेच WAVES, ही  जागतिक ध्वनी चित्र करमणूक परिषद, आपल्या देशात प्रथमच आयोजित करण्यात येणार आहे.  तुम्ही सर्वांनी दावोसबद्दल ऐकले असेल जिथे जगातील अर्थविश्वातले रथीमहारथी  एकत्र येतात.  त्याचप्रमाणे, WAVES समिटमध्ये जगातील माध्यम आणि मनोरंजन उद्योगातील दिग्गज आणि सर्जनशील जगतातील लोक भारतात येणार आहेत.  भारताला जागतिक आशयघन करमणूक निर्मितीचे केंद्र बनवण्याच्या दिशेने ही  परिषद एक महत्त्वपूर्ण पाऊल आहे.  मला सांगायला अभिमान वाटतो की, या शिखरपरिषदेच्या तयारीत आपल्या देशातील तरुण निर्मातेही उत्साहाने सहभागी होत आहेत.  आपण 5 ट्रिलियन अर्थात पाच लाख कोटी डॉलरच्या अर्थव्यवस्थेकडे वाटचाल करत असताना आपली निर्मिती अर्थव्यवस्था एक नवीन ऊर्जा घेऊन येत आहे.  मी भारतातील संपूर्ण मनोरंजन आणि सर्जनशील उद्योगांना विनंती करेन - तुम्ही एक नवोदीत निर्मिक असाल किंवा प्रस्थापित कलाकार, बॉलीवूडशी संबंधित असाल किंवा प्रादेशिक चित्रपटकर्मी असाल, दूरचित्रवाणी उद्योगातील व्यावसायिक असाल किंवा ॲनिमेशनतज्ञ असाल, गेमिंग कर्ते असाल किंवा मनोरंजन तंत्रज्ञानातील नवोन्मेषक…..तुम्ही सर्व WAVES परिषदेचा एक भाग व्हा.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो, आज जगाच्या कानाकोपऱ्यात भारतीय संस्कृतीचे तेज कसे पसरत आहे हे तुम्हा सर्वांना माहीत आहे.  आज मी तुम्हाला तीन खंडांमध्ये सुरू असलेल्या अशा प्रयत्नांबद्दल सांगेन, जे आपल्या सांस्कृतिक वारशाच्या जागतिक विस्ताराचे साक्षीदार आहेत.  ते सर्व एकमेकांपासून मैलो न मैल दूर आहेत.  पण भारताला जाणून घेण्याची आणि आपल्या संस्कृतीतून काही शिकण्याचा त्यांचा ध्यास,  एकसमान आहे.

मित्रांनो, चित्रांचे जग जितके रंगांनी भरलेले आहे तितकेच ते सुंदर आहे.  तुमच्यापैकी जे दूरचित्रवाणी-टीव्हीच्या माध्यमातून 'मन की बात' पाहत आहेत,  ते आता टीव्हीवर काही चित्रेही पाहू शकतात.  या चित्रांमध्ये आमचे देव-देवी, नृत्यकला आणि महान व्यक्तिमत्त्वे पाहून तुम्हाला खूप बरे वाटेल.  यामध्ये तुम्हाला भारतात आढळणाऱ्या प्राणीमात्रांसोबत आणखी बरेच काही  पाहायला मिळेल.  यामध्ये, एका 13 वर्षाच्या मुलीने काढलेल्या ताजमहालच्या भव्य चित्राचाही समावेश आहे. तुम्हाला हे जाणून  आश्चर्य वाटेल की या दिव्यांग मुलीने स्वतःच्या तोंडाच्या मदतीने हे चित्र काढले आहे. बरं… सर्वात मनोरंजक बाब म्हणजे ही चित्र काढणारे विद्यार्थी, भारतातील नसून इजिप्तमधील आहेत.  काही आठवड्यांपूर्वी, इजिप्तमधील सुमारे 23 हजार विद्यार्थ्यांनी चित्रकला स्पर्धेत भाग घेतला होता.  तिथे त्यांना भारताची संस्कृती आणि दोन्ही देशांमधील ऐतिहासिक संबंध दाखवणारी चित्रे  काढायची होती.  या स्पर्धेत सहभागी झालेल्या सर्व तरुणाईचे मी कौतुक करतो.  त्याच्या सर्जनशीलतेची कितीही प्रशंसा केली तरी ती कमीच आहे.

मित्रांनो, पॅराग्वे हा दक्षिण अमेरिकेतील एक देश आहे.  तिथे राहणाऱ्या भारतीयांची संख्या एक हजारापेक्षा जास्त नाही.  पॅराग्वेमध्ये एक अनोखा उपक्रम होत आहे.  एरिका ह्युबर तिथल्या भारतीय दूतावासात मोफत आयुर्वेद सल्ला देत असतात.  आज, स्थानिक लोकही त्यांच्याकडे आयुर्वेदिक सल्ला घेण्यासाठी मोठ्या संख्येने लोटत आहेत.  एरिका ह्युबर यांनी अभियांत्रिकीचे शिक्षण घेतले असले, तरी त्यांचे मन मात्र आयुर्वेदातच रमते. त्यांनी आयुर्वेदाशी संबंधित अभ्यासक्रम शिकून पूर्ण केले  आणि काळानुरूप त्या, त्यामध्ये पारंगत होत गेल्या.

मित्रांनो, ही आपल्यासाठी खूप अभिमानास्पद बाब आहे की जगातील सर्वात जुनी भाषा तामिळ आहे आणि प्रत्येक भारतीयाला तिचा अभिमान आहे.  जगभरातील देशांमध्ये तामिळ शिकणाऱ्या लोकांची संख्या सातत्याने वाढत आहे.  गेल्या महिन्याच्या अखेरीस, भारत सरकारच्या मदतीने फिजीमध्ये, तामिळ अध्यापन कार्यक्रम सुरू झाला.  फिजीमध्ये तामिळच्या प्रशिक्षित शिक्षकांनी ही भाषा शिकवण्याची, गेल्या 80 वर्षांतील ही पहिलीच वेळ आहे.  आज फिजीचे विद्यार्थी तामिळ भाषा आणि संस्कृती शिकण्यात खूप रस घेत आहेत हे जाणून मला आनंद झाला.

मित्रांनो, या गोष्टी, या घटना या केवळ यशोगाथाच नाहीत.  या आपल्या सांस्कृतिक वारशाच्याही गाथा आहेत. या अशा उदाहरणांमुळे, आपला ऊर अभिमानाने भरून येतो.  कलेपासून आयुर्वेदापर्यंत आणि भाषेपासून संगीतापर्यंत, भारतात असे बरेच काही आहे जे संपूर्ण जगाला व्यापून उरत आहे.

मित्रांनो,  हिवाळ्याच्या या ऋतूमध्ये देशभरात खेळ आणि तंदुरुस्ती संबंधी अनेक उपक्रम हाती घेण्यात आले आहेत.  मला आनंद आहे की लोक तंदुरुस्तीला  आपल्या दिनचर्येचा भाग बनवत आहेत .  काश्मीरमधील स्कीईंग पासून ते गुजरातमधील पतंग महोत्सवापर्यंत, सगळीकडे खेळाचा  उत्साह पहायला मिळत आहे. #SundayOnCycle आणि #CyclingTuesday यासारख्या अभियानांमुळे सायकल चालवण्याला प्रोत्साहन मिळत आहे.

मित्रांनो, आता मी तुम्हाला एक अशी अनोखी गोष्ट सांगणार आहे जी आपल्या देशात होत असलेले परिवर्तन आणि युवा मित्रांच्या उत्साह आणि आवड यांचे  प्रतीक आहे.  तुम्हाला माहित आहे का, आपल्या बस्तर मध्ये एक अनोखे ऑलिंपिक सुरू झाले आहे.  हो,  प्रथमच पार पडलेल्या बस्तर ऑलिंपिकमुळे बस्तर मध्ये एक नवीन क्रांती उदयाला येत आहे.  माझ्यासाठी ही खूप आनंदाची गोष्ट आहे की बस्तर ऑलिंपिकचे  स्वप्न साकार झाले आहे.  तुम्हाला देखील हे ऐकून आनंद होईल की, 

हे त्या भागात होत आहे, जो कधीकाळी  माओवादी हिंसेचा साक्षीदार होता. बस्तर ऑलिंपिकचा शुभंकर आहे-  'जंगली म्हैस आणि डोंगरी मैना . यामध्ये बस्तरच्या समृद्ध संस्कृतीची झलक पहायला मिळते.

या बस्तर क्रीडा महाकुंभचा मूलमंत्र आहे -

‘करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर’ म्हणजेच

‘खेळेल बस्तर – जिंकेल  बस्तर’ .

पहिल्यांदाच बस्तर ऑलिंपिक मध्ये सात जिल्ह्यांमधून एक लाख 65 हजार खेळाडूंनी भाग घेतला आहे . हा केवळ एक आकडा नाही , ही आपल्या युवकांच्या संकल्पाची  गौरव गाथा आहे . ऍथलेटिक्स , तिरंदाजी,  बॅडमिंटन , फुटबॉल,  हॉकी , वेटलिफ्टिंग,  कराटे , कबड्डी,  खो-खो आणि व्हॉलीबॉल प्रत्येक क्रीडा प्रकारात  आपल्या युवकांनी आपल्या प्रतिभेची छाप पाडली  आहे.  कारी कश्यप  यांची कहाणी मला खूप प्रेरित करते.  एका छोट्याशा गावामधून आलेल्या  कारीजी यांनी तिरंदाजीमध्ये रौप्य पदक जिंकले आहे.  त्या सांगतात, "बस्तर ऑलिंपिकने आम्हाला केवळ खेळण्याचे मैदानच दिले नाही तर आयुष्यात पुढे जाण्याची संधी दिली आहे. "  सुकमाच्या पायल कवासी यांचीही गोष्ट काही कमी प्रेरणादायक नाही.  भालाफेक मध्ये सुवर्णपदक जिंकणाऱ्या पायल जी सांगतात "शिस्त  आणि कठोर परिश्रमाने कोणतेही लक्ष्य  अशक्य रहात नाही. "  सुकमाच्या दोरनापाल  येथील पूनम सन्ना यांची कहाणी तर नवीन भारताची प्रेरणादायी कथा आहे.  एकेकाळी नक्षली प्रभावात आलेल्या पुनमजी  आज व्हीलचेअर  वरून धावून पदक जिंकत आहेत.  त्यांचे साहस  आणि जिद्द  प्रत्येकासाठी प्रेरणा आहे . कोडागावच्या तिरंदाज रंजू सोरीजी यांना 'बस्तर युथ आयकॉन'  म्हणून निवडवण्यात आले आहे.  त्यांचं म्हणणं आहे,  बस्तर ऑलिंपिक दुर्गम भागातील युवकांना राष्ट्रीय व्यासपीठापर्यंत  पोहोचण्याची संधी देत आहे.

मित्रांनो,  बस्तर ऑलिंपिक हे केवळ क्रीडास्पर्धेचे  आयोजन नाही.  हा एक असा मंच आहे जिथे विकास आणि खेळाचा संगम होत आहे.  जिथे आपले युवक आपली प्रतिभा विकसित करत आहेत आणि एका नव्या भारताची निर्मिती करत आहेत.  मी तुम्हा सर्वांना आवाहन करतो,

-आपापल्या भागात अशा क्रीडा स्पर्धांच्या आयोजनाला प्रोत्साहन द्या

-#खेलेगा भारत – जीतेगा भारत या हॅशटॅग सह  आपल्या भागातील गुणवंत खेळाडूंच्या कथा सामायिक करा

-स्थानिक गुणवंत खेळाडूंना पुढे जाण्याची संधी द्या.

लक्षात ठेवा,  खेळामुळे केवळ शारीरिक विकास होत नाही तर खिलाडूवृत्तीने  समाजाला जोडण्याचे देखील हे एक सशक्त माध्यम आहे.  तर खूप खेळा आणि खूप विकास करा.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो,  भारताच्या दोन मोठ्या उपलब्धी  आज जगाचे लक्ष आकर्षित करत आहेत .  हे ऐकून तुम्हाला देखील अभिमान वाटेल.  या दोन्ही उपलब्धी आरोग्य  क्षेत्राशी निगडित आहेत. पहिले यश मिळाले  आहे , मलेरिया विरुद्ध लढाईत. मलेरिया हा आजार 4000 वर्षांपासून मानवतेसाठी एक मोठे आव्हान राहिला आहे.  स्वातंत्र्याच्या काळातही हे आपल्या सर्वात मोठ्या आरोग्य विषयक आव्हानांपैकी एक होते. एक महिन्यापासून ते पाच वर्षापर्यंतच्या मुलांसाठी जीवघेण्या अशा सर्व संसर्गजन्य आजारांमध्ये मलेरिया तिसऱ्या स्थानी आहे . आज मी समाधानाने म्हणू शकतो की देशवासियांनी मिळून या आव्हानाचा अतिशय निर्धाराने सामना केला आहे.  जागतिक आरोग्य संघटना - डब्ल्यू एच ओ च्या अहवालात म्हटले आहे ,  भारतात 2015  ते 2023 दरम्यान  मलेरियाचे रुग्ण आणि त्यामुळे होणाऱ्या मृत्यूमध्ये 80 टक्क्यांची घट झाली आहे . हे काही सामान्य यश नाही.  सर्वात सुखद गोष्ट ही आहे,

हे यश लोकांच्या सहभागातून मिळालं  आहे . भारताच्या कानाकोपऱ्यातून,  प्रत्येक जिल्ह्यातून प्रत्येक जण या अभियानाचा भाग बनला आहे.  आसाममधील जोरहाटच्या चहाच्या मळ्यांमध्ये मलेरिया चार वर्षांपूर्वी लोकांसाठी चिंतेचे  मोठं कारण बनला होता.  मात्र जेव्हा याच्या निर्मूलनासाठी चहाच्या मळ्यात राहणारे एकजूट झाले,  तेव्हा यात  बऱ्याच प्रमाणात यश मिळू लागले.  आपल्या या प्रयत्नांमध्ये त्यांनी तंत्रज्ञानासह सोशल मीडियाचा देखील भरपूर वापर केला आहे . अशाच प्रकारे हरियाणाच्या कुरुक्षेत्र जिल्ह्याने देखील मलेरियावरील नियंत्रणासाठी खूप चांगलं मॉडेल सादर केलं आहे.  इथे मलेरियाच्या देखरेखीसाठी लोक सहभाग खूप यशस्वी ठरला आहे.  पथनाट्य आणि रेडिओच्या माध्यमातून अशा संदेशांवर भर देण्यात आला ज्यामुळे  डासांची पैदास कमी करण्यास मोठी मदत मिळाली आहे.  देशभरात अशा प्रयत्नांमुळे आपण मलेरिया विरुद्ध लढाईला अधिक वेगाने  पुढे नेऊ  शकलो आहोत .

मित्रांनो,  आपली जागरूकता आणि संकल्प शक्तीने आपण काय साध्य करू शकतो याचे दुसरे उदाहरण आहे,  कर्करोग  विरोधातली लढाई . जगातील प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लान्सेट च्या  अभ्यासानं मोठी आशा निर्माण केली आहे.  या जर्नलनुसार आता भारतात वेळेवर कर्करोगावरील उपचार सुरू होण्याची शक्यता वाढली आहे.  वेळेवर उपचाराचा अर्थ - कर्करोग रुग्णावरील उपचार 30 दिवसांच्या आत सुरू होणे  आणि यात मोठी भूमिका पार पाडली आहे आयुष्मान भारत योजनेने. या योजनेमुळे कर्करोगाचे 90% रुग्ण वेळेवर आपले उपचार सुरू करू शकले आहेत . असे यामुळे झाले आहे कारण आधी पैशांच्या अभावी गरीब रुग्ण कर्करोगाची चाचणी, त्यावरील उपचार करण्यासाठी पुढे येत नव्हते. आता आयुष्यमान भारत योजना त्यांच्यासाठी मोठा दिलासा बनली आहे. आता ते स्वतःहून आपले उपचार करण्यासाठी पुढे येत आहेत.

'आयुष्मान भारत योजनेने' …कर्करोगावरील उपचारात येणारी पैशांची  समस्या मोठ्या प्रमाणात कमी केली आहे . आणि हे देखील आहे की आज वेळेवर कर्करोगावरील उपचाराबाबत लोक पूर्वीपेक्षा अधिक जागरूक बनले आहेत. हे  यश जेवढं आपल्या आरोग्य सेवा यंत्रणेचं  आहे , डॉक्टर,  परिचारिका आणि तांत्रिक कर्मचाऱ्यांचे आहे तेवढेच तुमचं माझ्या  सर्व नागरिक बंधू-भगिनींचे देखील आहे.  सर्वांच्या प्रयत्नातून कर्करोगावर मात करण्याचा संकल्प अधिक मजबूत झाला आहे.  या यशाचे श्रेय त्या सर्वांना जातं, ज्यांनी जागरूकता निर्माण करण्यात आपलं महत्वपूर्ण योगदान दिलं  आहे.

कर्करोगाचा सामना करण्यासाठी  एकच मंत्र आहे-  जागरूकता,  कृती आणि हमी . जागरूकता म्हणजे कर्करोग आणि त्याच्या लक्षणांप्रती जागरूकता,  कृती म्हणजे वेळेवर तपासणी आणि उपचार,  हमी म्हणजे रुग्णांसाठी सर्वतोपरी मदत उपलब्ध होण्याचा विश्वास.  चला आपण सर्व मिळून कर्करोगा विरुद्धच्या या लढाईला अधिक वेगाने पुढे घेऊन जाऊ आणि जास्तीत जास्त रुग्णांची मदत करू.

माझ्या प्रिय देशवासियांनो , आज मी तुम्हाला ओडिशाच्या कालाहंडी येथील एका प्रयत्नाबाबत सांगू इच्छितो , जे कमी पाणी आणि कमी संसाधनांमध्ये देखील यशाची नवीन कहाणी लिहीत आहे.  ती आहे काला हंडीची 'भाजी क्रांती' .  जिथे कधीकाळी शेतकरी पलायन करण्यासाठी प्रवृत्त झाले होते तेच आज कालाहंडीचा गोलामुंडा तालुका एक भाजी केंद्र बनला  आहे.  हे परिवर्तन कसं घडलं ? याची सुरुवात केवळ दहा शेतकऱ्यांच्या एका छोट्या समूहापासून झाली. या समूहाने मिळून एक एफपीओ शेतकरी उत्पादन संघटना स्थापन केली.  शेतीमध्ये आधुनिक तंत्रज्ञानाचा वापर सुरू केला आणि आज त्यांची ही शेतकरी उत्पादक संघटना कोट्यवधींचा व्यवसाय करत आहे.

आज दोनशेहून अधिक.. शेतकरी या एफपीओशी  जोडलेले आहेत , ज्यामध्ये 45 महिला शेतकरी देखील आहेत .  हे लोक एकत्रितपणे  200 एकर मध्ये टोमॅटोची शेती करत आहेत,  दीडशे एकरमध्ये कारल्याचे पीक घेत आहेत.  आता या एफपीओची  वार्षिक उलाढाल देखील दीड कोटीहून अधिक झाली आहे.  आज कालाहंडीच्या भाज्या केवळ ओडिशाच्या विविध जिल्ह्यांमध्ये नाही तर अन्य राज्यांमध्ये देखील पोहोचत आहेत .  आणि तिथला शेतकरी आता बटाटा आणि कांद्याच्या शेतीचे नवीन तंत्रज्ञान  शिकत आहे .

मित्रांनो,  कालाहंडीचे हे  यश आपल्याला शिकवते की संकल्प शक्ती आणि सामूहिक प्रयास यातून काय  साध्य करता येऊ शकते.  मी तुम्हा सर्वांना आवाहन करतो -

-आपापल्या भागात एफपीओ ना  प्रोत्साहन द्या

शेतकरी उत्पादक संघटनांमध्ये सहभागी व्हा आणि त्यांना मजबूत बनवा .

लक्षात ठेवा, छोट्या सुरुवातीमधूनच मोठं  परिवर्तन शक्य आहे . आपल्याला केवळ दृढ संकल्प आणि सांघिक भावनेची गरज आहे .

मित्रांनो, आजच्या मन की बात मध्ये आपण ऐकलं की कसा आपला भारत विविधतेमध्ये एकतेसह पुढे जात आहे . मग ते खेळण्याचे  मैदान असो किंवा विज्ञानाचं क्षेत्र , आरोग्य असो किंवा शिक्षण . प्रत्येक क्षेत्रात भारत नवीन शिखर गाठत  आहे.  आपण एका कुटुंबाप्रमाणे मिळून प्रत्येक आव्हानाचा सामना केला आणि नवीन यश संपादन केलं.  2014 पासून सुरू झालेल्या मन की बातच्या 116 भागांमध्ये मी पाहिलं आहे की मन की बात देशाच्या सामूहिक शक्तीचा एक जिवंत दस्तावेज बनला आहे. तुम्ही सर्वांनी या कार्यक्रमाला आपलंसं केलं , आपलं केलं .

प्रत्येक महिन्यात तुम्ही तुमचे … विचार आणि प्रयत्नांबाबत माहिती दिली. कधी एखाद्या युवा  नवोन्मेषकाच्या  कल्पनेने प्रभावित केलं तर कधी एखाद्या मुलीच्या यशाने गौरवान्वित केलं. हा तुम्हा सर्वांचा सहभाग आहे जो देशाच्या कानाकोपऱ्यातून सकारात्मक ऊर्जा एकत्र आणत आहे.  मन की बात याच सकारात्मक ऊर्जेच्या विस्ताराचा मंच बनला  आहे आणि आता 2025 जवळ येऊन ठेपले आहे.  नव्या वर्षात  मन की बातच्या  माध्यमातून आपण आणखी प्रेरणादायी प्रयत्न सामायिक करू.  मला विश्वास आहे की देशवासीयांचे सकारात्मक विचार आणि नवोन्मेषाच्या  भावनेने भारत नवीन उंची गाठेल.  तुम्ही तुमच्या आसपासचे  वैशिष्ट्यपूर्ण प्रयत्न  मन की बात बरोबर सामायिक करत रहा . मला माहित आहे की पुढल्या वर्षीच्या प्रत्येक मन की बातमध्ये आपल्याकडे एकमेकांबरोबर सामायिक करण्यासाठी खूप काही असेल.  तुम्हा सर्वांना 2025 च्या अनेक अनेक शुभेच्छा.  निरोगी रहा , आनंदी रहा , फिट इंडिया चळवळीत तुम्ही देखील सहभागी व्हा , स्वतःला तंदुरुस्त ठेवा, जीवनात प्रगती करत रहा, खूप खूप धन्यवाद !