माननीय अध्‍यक्ष महोदय, मैं राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण पर, धन्‍यवाद प्रस्‍ताव पर राष्‍ट्रपति जी का आभार व्‍यक्‍त करने के लिए उपस्थित हुआ। माननीय राष्‍ट्रपति जी ने न्‍यू इंडिया का विजन अपने अभिभाषण में प्रस्‍तुत किया है। 21वीं सदी के तीसरे दशक का माननीय राष्‍ट्रपति जी का ये वक्‍तव्‍य इस दशक के लिए हम सबको दिशा देने वाला, प्रेरणा देने वाला और देश के कोटि-कोटि जनों में विश्‍वास पैदा करने वाला ये अभिभाषण है।

इस चर्चा में सदन के सभी अनुभवी माननीय सदस्‍यों ने बहुत ही अच्‍छे ढंग से अपनी-अपनी बातें प्रस्‍तुत की है, अपने-अपने विचार रखे हैं। चर्चा का समृद्ध करने का हर किसी ने अपने तरीके से प्रयास किया है। श्रीमान अधीर रंजन चौधरी जी, डॉक्‍टर शशि थरूर जी, श्रीमान औवेसी जी, रामप्रताप यादव जी, प्रीति चौधरी जी, मिश्रा जी, अखिलेश यादव जी, कई नाम है मैं सबके नाम लूं तो समय बहुत जाएगा। लेकिन मैं कहूंगा कि हर एक ने अपने-अपने तरीके से अपने विचार प्रस्‍तुत किए हैं। लेकिन एक प्रश्‍न ये उठा है कि सरकार को इन सारे कामों की इतनी जल्‍दी क्‍या है। सब चीजें एक साथ क्‍यों कर रहे हैं।

मैं शुरुआत में श्रीमान सर्वेश्‍वर दयाल जी की एक कविता को उजागर करना चाहूंगा और वही शायद हमारे संस्‍कार भी है, हमारी सरकार का स्‍वभाव भी है। और उसी प्रेरणा के कारण हम लीक से हटकर के तेज गति से आगे बढ़ने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल सर्वेश्‍वर दयाल जी ने अपनी कविता में लिखा है कि .....

लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ ही प्यारे हैं।

माननीय अध्‍यक्ष अब इसलिए लोगों ने सिर्फ एक सरकार बदली है, ऐसा नहीं है सरोकार भी बदलने की अपेक्षा की है। एक नई सोच के साथ काम करने की इच्‍छा के कारण हमें यहां आकर के सेवा करने का अवसर मिला है। लेकिन अगर हम उसी तरीके से चलते तो जिस तरीके से आप लोग चलते थे, उस रास्‍ते से चलते जिस रास्‍ते की आपको आदत हो गई थी। तो शायद 70 साल के बाद भी इस देश में से आर्टिकल 370 नहीं हटता। आप ही के तौर तरीके से चलते तो मुस्लिम बहनों को तीन तलाक की तलवार आज भी डराती रहती। अगर आप ही के रास्‍ते चलते तो नाबालिग से रेप के मामले में फांसी की सजा का कानून नहीं बनता। अगर आप ही की सोच के साथ चलते तो रामजन्‍मभूमि आज भी विवादों में रहती। अगर आप ही की सोच होती तो करतारपुर कॉरिडोर कभी नहीं बनता।

अगर आप ही के तरीके होते, आप ही का रास्‍ता होता तो भारत बांग्‍लादेश सीमा विवाद कभी नहीं सुलझता।

माननीय अध्‍यक्ष जी

जब माननीय अध्‍यक्ष जी को देखता हूं, सुनता हूं तो सबसे पहले किरण रिजिजू जी को बधाई देता हूं क्‍योंकि उन्‍होंने जो फिट इंडिया मूवमेंट चलाया है, उस फिट इंडिया मूवमेंट का प्रचार प्रसार बहुत बढि़या ढंग से करते हैं। वे भाषण भी करते हैं और भाषण के साथ-साथ जिम भी करते हैं। क्‍योंकि ये फिट इंडिया को बल देने के लिए, उसका प्रचार प्रसार करने के लिए मैं मान्‍य सदस्‍य का धन्‍यवाद करता हूं।

माननीय अध्‍यक्ष जी, कोई इस बात से तो इनकार नहीं कर सकता है कि देश चुनौतियों से लोहा लेने के लिए हर पल कोशिश करता रहा है। कभी-कभी चुनौतियों की तरफ न देखने की आदत भी देश ने देखी है। चुनौतियों को चुनने का सामर्थ्‍य नहीं ऐसे लोगों को भी देखा है। लेकिन आज दुनिया की भारत के पास से जो अपेक्षा है.... हम अगर चुनौतियों को चुनौती नहीं देंगें, अगर हम हिम्‍मत नहीं दिखाते और अगर हम सबको साथ लेकर आगे चलने की गति नहीं बढ़ाते तो शायद देश को अनेक समस्‍याओं से लम्‍बे अरसे तक जूझना पड़ता।

और इसके बाद माननीय अध्‍यक्ष जी, अगर कांग्रेस के रास्‍ते हम चलते तो पचास साल के बाद भी शत्रु संपत्ति काननू का इंतजार देश को करते रहना पड़ता। 35 साल बाद भी next generation लड़ाकू विमान का इंतजार देश को करते रहना पड़ता। 28 साल के बाद भी बेनामी संपत्ति कानून लागू नहीं होता। 20 साल बाद भी चीफ ऑफ डिफेंस की नियुक्ति नहीं हो पाती।

माननीय अध्‍यक्ष जी, हमारी सरकार तेज गति की वजह से और हमारा मकसद है हम एक नई लकीर बनाकर के लीक से हटकर के चलना चाहते हैं। और इसलिए हम इस बात को भली-भांति समझते है कि आजादी के 70 साल बाद देश लंबा इंतजार करने के लिए तैयार नहीं है और नहीं होना चाहिए। और इसलिए हमारी कोशिश है कि स्‍पीड भी बड़े, स्‍केल भी बढ़े। determination भी हो और decision भी हो। sensitivity भी हो or solution भी हो। हमने जिस तेज गति से काम किया है। और उस तेज गति से काम का परिणाम है कि देश की जनता ने पांच साल में देखा और देखने के बाद उसी तेज गति से आगे बढ़ने के लिए अधिक ताकत के साथ हमें फिर से खड़ा करने का मौका दिया।

अगर ये तेज गति न होती तो 37 करोड़ लोगों के बैंक अकाऊंट इतने कम समय में नहीं खुलते। अगर गति तेज न होती तो 11 करोड़ लोगों के घरों में शौचालय का काम पूरा नहीं होता। अगर गति तेज नहीं होती तो 13 करोड़ परिवारों में गैस का चूल्‍हा नहीं जलता। अगर गति तेज न होती तो 2 करोड़ नए घर नहीं बनते गरीबों के लिए। अगर गति तेज न होती तो लंबे अरसे से अटके हुए दिल्‍ली की 1700 से ज्‍यादा अवैध कॉलोनियां, 40 लाख से अधिक लोगों की जिंदगी जो अधर में लटकी हुई थी। वो काम पूरा नहीं होता। आज उन्‍हें अपने घर का हक भी मिल गया है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, यहा पर नॉर्थ ईस्‍ट की भी चर्चा हुई है। नॉर्थ ईस्‍ट को कितने दशकों तक इंतजार करना पड़ा वहां पर राजनीतिक समीकरण बदलने का सामर्थ्‍य हो इतनी स्थिति नहीं है और इसीलिए राजनीतिक तराजू से जब निर्णय होते रहे तो हमेशा ही वो क्षेत्र अपेक्षित रहा है। हमारे लिए नॉर्थ ईस्‍ट वोट के तराजू से तोलने वाला क्षेत्र नहीं है। भारत की एकता और अखंडता के साथ दूर-दराज क्षेत्र में बैठे हुए भारत के नागरिकों के लिए और उनके सामर्थ्‍य का भारत के विकास के लिए उपयुक्‍त उपयोग हो, शक्तियों के काम आए देश को आगे बढ़ाने में काम आए इस श्रद्धा के साथ वहां के एक एक नागरिक के प्रति अपार विश्‍वास के साथ आगे बढ़ने का हमारा प्रयास रहा है।

और इसी के कारण नॉर्थ ईस्ट में गत पांच वर्ष में जो कभी उनको दिल्ली उन्हें दूर लगती थी, आज दिल्ली उनके दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गई है। लगातार मंत्री ऑफिस का दौरा करते रहे। रात-रात भर वहां रुकते रहे। छोटे-छोटे इलाके में जाते रहे टीयर-2, टीयर-3 छोटे इलाकों में गए लोगों से संवाद किया उनमें लगातार विश्‍वास पैदा किया। और विकास की जो आवश्‍यकताए होती थी 21वीं सदी से जुड़ी हुई चाहे बिजली की बात हो, चाहे रेल की बात हो, चाहे हवाई अड्डे की बात हो, चाहे मोबाइल कनेक्टिविटी की बात हो, ये सब करने का हमने प्रयास किया है।

और वो विश्‍वास कितना बड़ा परिणाम देता है जो इस सरकार के कार्यकाल में देखा जा रहा है। यहां पर एक बोडो की चर्चा आई। और ये कहा गया कि ये तो पहली बार हुआ है। हमने भी कभी ये नहीं कि ये पहली बार हुआ है हम तो यही कह रहे हैं प्रयोग तो बहुत हुए हैं और अभी भी प्रयोग हो रहे हैं। लेकिन.....लेकिन.... जो कुछ भी हुआ राजनीतिक तराजू से लेखा जोखा करके किया गया है। जो भी किया गया आधे-अधूरे मन से किया गया। जो भी किया गया एक प्रकार से खाना-पूर्ति की गई। और उसके कारण समझौते कागज पर तो हो गए, फोटो भी छप गई वाह-वाही भी हो गई। बड़े गौरव के साथ आज उसकी चर्चा भी हो रही है।

लेकिन कागज पर किए गए समझौते से इतने सालों के बाद भी बोडो समझौते की समस्‍या का समाधान नहीं निकला। 4 हजार से ज्‍यादा निर्दोष लोग मौत के घाट उतारे गए हैं। अनेक प्रकार की बीमारियां समाज-जीवन को जो संकट में डाले ऐसी होती चली गई। इस बार जो समझौता हुआ है वो एक प्रकार से नार्थ ईस्‍ट के लिए भी और देश में आम इंसानों को इंसाफ करने वालों के लिए एक संदेश देने वाली घटनाएं हैं। ये ठीक है कि हमारी जरा वो कोशिश नहीं है ताकि हमारी बात बार-बार उजागर हो, फैले, लेकिन हम मेहनत करेंगे, कोशिश करेंगे।

लेकिन इस बार के समझौते की एक विशेषता है। सभी हथियारी ग्रुपस एक साथ आए हैं, सारे हथियार और सारे अंडरग्राउंड लोग सरेंडर किए है। और दूसरा उस समझौते के एग्रीमेंट में लिखा है कि इसके बाद बोडो समस्‍या से जुड़ी हुई कोई भी मांग बाकी नहीं है। नार्थ-ईस्‍ट में हम सबसे पहले सूरज तो पहले उगता है। लेकिन सुबह नहीं आती थी। सूरज तो आ जाता था। अंधेरा नहीं छंटता था। आज मैं कह सकता हूं कि आज नई सुबह भी आई है, नया सवेरा भी आया है, नया उजाला भी आया है। और वो प्रकाश, जब आप अपने चश्मे बदलोगे तब दिखाई देगा।

मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं ताकि आप बोलने के बीच-बीच में आप मुझे विराम दे रहे हैं।

कल यहां स्‍वामी विवेकानंद जी के कंधों से बंदूके फोड़ी गई। लेकिन मुझे एक पुरानी छोटी सी कथा याद आती है। एक बार कुछ लोग रेल में सफर कर रहे थे। और जब रेल में सफर कर रहे थे तो रेल जैसे गति पकड़ती थी जैसे पटरी में आवाज आती है... सबका अनुभव है। तो वहां बैठे हुए एक संत महात्‍मा थे तो उन्‍होंने कहा कि देखो पटरी में से कैसी आवाज आ रही है। ये निर्जीव पटरी भी हमे कह रही है कि प्रभु कर दे बेड़ा पार.... तो दूसरे संत ने कहा नहीं यार मैंने सुना मुझे तो सुनाई दे रहा है कि प्रभु तेरी लीला अपरम्पार..... प्रभु तेरी लीला अपरम्पार..... वहां एक मौलवी जी बैठे थे उन्‍होंने कहा कि मुझे तो सुनाई दे रहा है दूसरा... संतों ने कहा कि आपको क्‍या सुनाई दे रहा है उन्‍होंने कहा मुझे सुनाई दे रहा है या अल्‍लाह तेरी रहमत... या अल्‍लाह तेरी रहमत तो वहां एक पहलवान बैठे थे उन्‍होंने कहा मुझे भी सुनाई दे रहा है तो पहलवान ने कहा मुझे सुनाई दे रहा है। खा रबड़ी कर कसरत... खा रबड़ी कर कसरत...

कल जो विवेकानंद जी के नाम से कहा गया जैसी मन की रचना होती है वैसी ही सुनाता है .... आपको ये देखने के लिए इतना दूर नजर करने की जरूरत ही नहीं थी बहुत कुछ पास में है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, मेरी किसानों के विषय में भी बातचीत हुई है। बहुत से महत्‍वपूर्ण काम, और बहुत से नए तरीके से, नई सोच के साथ पिछले दिनों किया गया है और आदरणीय राष्‍ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में उसका जिक्र भी किया है। लेकिन जिस प्रकार से यहां चर्चा करने का प्रयास हुआ है। मैं नहीं जानता कि वो अज्ञानवश है या जानबूझ कर कह रहे हैं। क्‍योंकि कुछ चीजें ऐसी है अगर जानकारियों हो भी तो शायद हम ऐसा न करते।

हम जानते हैं कि डेढ़ गुना अलग से करने वाला विषय है। कितने लंबे समय से अटका हुआ था। हमारे समय का नहीं था पहले का था लेकिन ये किसानों के प्रति हमारी जिम्‍मेवारी थी कि उस काम को भी हमने पूरा कर दिया। मैं हैरान हूं। सिंचाई योजनाएं 20-20 साल से पड़ी हुई थीं। कोई पूछने वाला नहीं था। फोटो निकलवा दी बस काम हो गया। हम को ऐसी 99 योजनाएं को हाथ लगाना पड़ा। 1 लाख करोड़ रुपये से ज्‍यादा खर्च करके उनको logical end तक ले गए और अब किसानों को उसका फायदा होने शुरू होने लगा है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत इस व्‍यवस्‍था से किसानों में लगातार विश्‍वास पैदा हुआ है। किसानों की तरफ से करीब 13 हजार करोड़ रुपया प्रीमियम आया है। लेकिन प्राकृतिक आपदा के कारण जो नुकसान हुआ उसके तहत करीब 56 हजार करोड़ रुपये किसानों को बीमा योजना से प्राप्‍त हुआ है। किसान की आय बढ़े है ये हमारी प्राथमिकताएं हैं। Input cost कम हो ये प्राथमिकता है। और पहले एमएसपी के नाम पर क्‍या होता था हमारे देश में पहले 7 लाख टन दाल और तिलहन की खरीद हुई है। हमारे कार्यकाल में 100 लाख टन। e-nam योजना आज डिजिटल वर्ल्‍ड है हमारा किसान मोबाइल फोन से दुनिया के दामदेख रहा है, समझ रहा है। e-nam योजना के नाम किसान अपना बाजार में माल बेच सकते हैं। और मुझे खुशी है कि गांव का किसान इस व्‍यवस्‍था से करीब पौने 2 करोड़ किसान अब तक उससे जुड़ चुके हैं। और करीब-करीब 1 लाख करोड़ का कारोबार किसानों ने अपनी पैदावार का इस e-nam योजना से किया है। हमने किसान क्रेडिट कार्ड का विस्‍तार हो, इसके साथ-साथ अनेक allied activity चाहे पशु-पालन हो, मछली पालन हो, मुर्गी पालन हो। सौर ऊर्जा की तरफ जाने का प्रयास हो। सोलर पंप की बात हो। ऐसी नई अनेक चीजें जोड़ी हैं। जिसके कारण आज उसकी आर्थिक स्थिति में बहुत बड़ा बदलाव आया है।

2014 में हमारे आने से पहले कृषि मंत्रालय का बजट 27 हजार करोड़ रुपये का था। अब ये बढ़कर के 5 गुना.... 27 हजार करोड़ का बढ़कर के 5 गुना और लगभग डेढ़ लाख करोड़ हमने पहुंचाया है। पीएम किसान सम्‍मान योजना किसानों के खाते में सीधे पैसे जाते हैं। अब तक करीब 45 हजार करोड़ रुपये किसान के खाते में ट्रांसफर हो चुका है। कोई बिचौलिया नहीं है। कोई फाइलों की झझंट नहीं। एक क्लिक दबाया पैसे पहुंच गए। लेकिन मैं जरूर यहां मान्‍य सदस्‍यों से आग्रह करूंगा कि राजनीति करते रहिए करनी भी चाहिए... मैं जानता हूं लेकिन क्‍या हम राजनीति करने के लिए किसानों के हितों के साथ खिलावाड़ करेंगे। मैं उन मान्‍य सदस्‍यों से इस विषय का आग्रह करूंगा कि अपने राज्‍य में देखें जो किसानों के नाम पर बढ़चढ़ के बोल रहे हैं... वो जरा ज्‍यादा देखें कि क्‍या उनके राज्‍य के किसानों को पीएम किसान सम्‍मान निधि मिले। उसके लिए वो सरकारें किसानों की सूची क्‍यों नहीं दे रहे हैं ये योजना के साथ क्‍यों नहीं जुड़ रहा। नुकसान किसका हुआ, किसका नुकसान हुआ, उस राज्‍य के किसानों का हुआ। मैं चाहूंगा कि यहां कोई ऐसा मान्‍य सदस्‍य नहीं होगा। कि जो शायद दबी जबान में जो खुलकर के शायद न बोल पाए, कहीं जगह पर बहुत कुछ होता है। लेकिन उनको पता होगा उसी प्रकार से मैं मान्‍य सदस्‍यों से कहूंगा जिन्‍होंने बहुत कुछ कहा है। उन राज्‍यों में जरा देखिए आप कि जहां किसानों को वादे कर-कर के बहुत बड़ी-बड़ी बाते कर-कर के वोट बटोर लिए, शपथ ले लिए, सत्‍ता सिंहासन पा लिया लेकिन किसानों के वादे पूरे नहीं किए गए। कम से कम यहां बैठे हुए मान्‍य सदस्‍य उन राज्‍यों के भी प्रतिनिधि होंगे तो वो जरूर उन राज्‍यों को कहे कि किसानों को उनका हक देने में कोताही न बरते।

माननीय अध्‍यक्ष जी, जब all party meeting हुई थी तब मैंने विस्‍तार से सबके सामने एक प्रार्थना भी की थी और अपने विचार भी रखे थे। उसके बाद सदन के प्रारंभ में जब मीडिया के लोगों से मैं बात कर रहा था। तब भी मैंने कहा था। कि हम पूरी तरह आर्थिक विषय, देश की आर्थिक परिस्थिति सारे विषयों को हम समर्पित करें। हमारे पास जितनी भी चेतना है, जितना भी सामर्थ्‍य है, जितना भी बुद्धिप्रतिभा है सबका निचोड़ इस सत्र में दोनों सदनों में हम लेकर के आए हैं क्‍योंकि जब देश-दुनिया की आज जो आर्थिक स्थिति है उसका लाभ उठाने के लिए भारत कौन से कदम उठाए, कौन सी दिशा को अपनाएं जिससे लाभ हो। मैं चाहूंगा कि ये सत्र अभी भी समय है, ब्रेक के बाद भी जब मिलेंगे तब भी पूरी शक्ति मैं सभी सदस्‍यों से आग्रह करता हूं। हम आर्थिक विषयों पर गहराई से बोले, व्‍यापकता से बोले, और अच्‍छे नए सुझावों के साथ बोले। ताकि देश विश्‍व के अंदर जो अवसर पैदा हुए उसका फायदा उठाने के लिए पूरी ताकत से आगे बढ़े। मैं निमंत्रण करता हूं सबको।

हां मैं मानता हूं कि आर्थिक विषयों पर महत्‍वपूर्ण बाते हम सबका सामूहिक दायित्‍व है। और इस दायित्‍व में पुरानी बातों को हम भूल नहीं सकते हैं। क्‍योंकि आज हम कहां हैं उसका पता तब चलता है कल कहां थे। ये बात सही है लेकिन हमारे माननीय सदस्‍य ये कहते हैं कि ये क्‍यों नहीं हुआ, ये कब होगा, ये कैसे होगा, कब तक करेंगे। तो कुछ लोगों को लगता है कि आप आलोचना करते हैं मैं नहीं मानता हूं कि आप आलोचना करते हैं मुझे खुशी है कि आप मुझे समझ पाए हैं। क्‍योंकि आपको विश्‍वास है करेगा तो यही करेगा.... और अब इसलिए मैं आपकी इन बातों को आलोचना नहीं मानता हूं।

मैं मार्गदर्शन मानता हूं, प्रेरणा मानता हूं। और इसलिए मैं इन सारी बातों का स्‍वागत करता हूं। और स्‍वीकार करने का प्रयास भी करता हूं। और इसलिए इस प्रकार की जितनी बाते बताई गई है। इसके लिए तो मैं विशेष रूप से धन्‍यवाद करता हूं। क्‍योंकि क्‍यों नहीं हुआ, कब होगा, कैसे होगा, ये अच्‍छी बाते हैं। देश के लिए हम सोचते हैं। लेकिन पुरानी बातों के‍ बिना आज की बात को समझना थोड़ा कठिन होता है। अब हम जानते हैं कि हमारा पहले क्‍या कालखंड था। corruption आए दिन चर्चा होती थी हर अखबार की headline सदन में भी corruption पर ही लड़ाई चलती थी। तब भी यही बोला जाता था। Unprofessional banking कौन भूल सकता है। कमजोर Infrastructure policy कौन भूल सकता है। ये सारी स्थितियों में से बाहर निकलने के लिए हमने समस्‍याओं के समाधान खोजने की long term goal के साथ निश्चित दिशा पकड़ करके, निश्चित लक्ष्‍य पकड़ करके उसको पूरा करने का हमने लगातार प्रयास किया है। और मुझे विश्‍वास है कि इसी का परिणाम है कि आज इकोनॉमी में fiscal deficit बनी है, महंगाई नियंत्रित रही है। और Macro Economy Stability भी बनी रही है।

मैं आपका आभारी हूं क्‍योंकि आपने मेरे प्रति विश्‍वास जताया है। ये भी काम हम ही करेंगे। हां एक काम नहीं करेंगे .... एक काम नहीं करेंगे..... न होने देंगे। वो है आपकी बेरोजगारी नहीं हटने देंगें।

जीएसटी का बहुत बड़ा महत्‍वपूर्ण निर्णय हुआ, कॉरोपोरेट टेक्‍स कम करने की बात हो, IBC लाने की बात हो, FDI regime को liberalize करने की बात हो, बैंकों में recapitalization करने की बात हो, जो भी समय-समय पर आवश्‍यकता रही है। और जो भी दीर्धकालीन मजबूती के लिए जरूरत है। सारे कदम हमारी सरकार उठा रही है। उठाएगी और उसके लाभ भी आना शुरू हुए हैं। और वो रिफार्मस जिसकी चर्चा हमेशा हुई है। आपके यहां भी जो पंडित लोग थे वो यही कहते रहते थे। लेकिन कर नहीं पाते थे। अर्थशास्‍त्री भी जिन बातों की बातें करते थे आज एक के बाद एक उसको लागू करने का काम हमारी सरकार कर रही है। Investors का भरोसा बढ़े, आपकी अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूती मिले उसको लेकर के भी हमने कई महत्‍वपूर्ण निर्णय किए हैं।

2019 जनवरी से 2020 के बीच 6 बार जीएसटी Revenue एक लाख करोड़ से ज्‍यादा रहा है। अगर मैं FDI की बात करूं तो 2018 अप्रैल से सितंबर FDI 22 बिलियन डॉलर था। आज उसी अवधि में ये FDI 26 बिलियन डॉलर पार कर गया है। इस बात का सबक है कि विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति विश्‍वास बड़ा है। भारत की अर्थव्‍यवस्‍था पर विश्‍वास बड़ा है। और भारत में आर्थिक क्षेत्र में अपार अवसर है। ये conviction बना है। तब जाकर के लोग आते हैं। और गलत अफवाहें फैलाने के बावजूद भी लोग बाहर निकल करके आ रहे हैं। ये भी बहुत बड़ी बात है।

हमारा विजन Greater Investment, better Infrastructure Increased Value Addition और ज्‍यादा से ज्‍यादा Job creation पर है।

देखिए मैं किसानों से बहुत कुछ सीखता हूं। किसान जो होता है न वो बड़ी गर्मी में खेत जोतकर के पैर रखता है। बीज बोता नहीं उस समय। सही समय पर बीज बोता है और अभी जो पिछले 10 मिनट से चल रहा है न वो मेरा खेत जोतने का काम चल रहा है। अब बराबर आपके दिमाग में जगह हो गई है। अब मैं एक-एक करके बीज डालूंगा।

माननीय अध्‍यक्ष जी, मुद्रा योजना, स्‍टार्ट-अप इंडिया, स्‍टेंड-अप इंडिया, इन योजनाओं ने देश में स्‍वरोजगार को बहुत बड़ी ताकत दी है। इतना ही नहीं। इस देश में करोड़ो-करोड़ो लोग जो पहली बार मुद्रा योजना से लेकर के खुद तो रोजी-रोटी कमाने लगे। लेकिन किसी और एक को, दो को, तीन को रोजगार देने में सफल हुए। इतना ही नहीं पहली बार बैंको से जिनको धन मिला है मुद्रा योजना के अंतर्गत उसमें से 70 प्रतिशत हमारी माताएं-बहने हैं। जो इकोनॉमी एक्टिव के क्षेत्र में नहीं थीं। ये आज कहीं न कहीं इकोनॉमी बढ़ाने में योगदान दे रही हैं। 28 हजार से ज्‍यादा start-up recognize हुए हैं। और ये आज खुशी की बात है कि टीयर-2, 3 सीटी में हैं। यानी हमारे देश का युवा नए संकल्‍पों के साथ आगे बढ़ रहा है। मुद्रा योजना के तहत 22 करोड़ से ज्‍यादा ऋण स्‍वीकृत हुए हैं और करोड़ो युवाओं ने रोजगार पाया है।

World Bank के data on entrepreneurs उसमें भारत का दुनिया कें अंदर तीसरा स्‍थान है। सितंबर 2017 से नवंबर 2019 की बीच ईपीएफओ पेरोल डाटा में एक करोड़ 49 लाख नए subscriber लाए। ये बिना रोजगार के पैसे जमा नहीं करता है ये.... मैंने एक कांग्रेस के नेता का कल घोषणा पत्र सुना। उन्‍होंने घोषणा की है कि 6 महीने में मोदी को डंडे मारेंगे। और ये.... ये बात सही कि काम बड़ा कठिन है। तो तैयारी के लिए 6 महीने तो लगते ही हैं। तो 6 महीने का तो अच्‍छा है। लेकिन मैं 6 महीने तय किया हूं कि रोज सुबह सुरज नमस्‍कार की संख्‍या बढ़ा दूंगा। ताकि अब तक करीब 20 साल से जिस प्रकार की गंदी गालिया सुन रहा हूं। और अपने आपको गाली-प्रूफ बना दिया है। 6 महीने ऐसे सुरज नमस्‍कार करूंगा ऐसे सुरज नमस्‍कार करूंगा कि मेरी पीठ को भी हर डंडे झेलने ताकत वाला बना दे। तो मैं आभारी हूं कि पहले से अनाउंस कर दिया गया है। कि मुझे ये 6 महीने exercise बढ़ाने का टाइम मिलेगा।

माननीय अध्‍यक्ष जी, इंडस्‍ट्री 4.0 और डिजिटल इकोनॉमी ये करोड़ों नई जॉबस के लिए अवसर लेकर के आती है। Skill development, नई स्‍कील्ड वर्क फोर्स को तैयार करना, लेबर रिफार्म सांसद के अंदर already एक प्रस्‍ताव तो आगे बढ़ाया है। और भी कुछ प्रस्‍ताव है। मुझे विश्‍वास है कि ये सदन उसका भी बल देगा। ताकि देश में रोजगार के अवसरों में कोई रूकावट न आए। हम पिछली सदी की सोच के साथ आगे नहीं बढ़ सकते हैं। हमनें बदली हुई वैश्विक परिस्थिति में नई सोच के साथ इन सारे बदलावों के लिए आगे आना होगा। और सदन के सभी मान्‍य सदस्‍यों से प्रार्थना करता हूं labour reform का काम उसको जितना जल्‍दी आगे बढ़ाएंगे। रोजगार के नए अवसरों के लिए सुविधा मिलेगी। और मैं ये विश्‍वास करता हूं कि 5 ट्रिलियन डॉलर इंडियन इकोनॉमी ease of doing business, ease of living.....

माननीय अध्‍यक्ष जी, ये बात सही है कि हमने आने वाले दिनों में 16 करोड़ का इन्फास्ट्रक्चर का मिशन लेकर के आगे चल रहे हैं। लेकिन पिछले कार्यकाल में भी आपने देखा होगा कि देश की इकोनॉमी को ताकत देने के लिए मजबूती देने के लिए इन्फास्ट्रक्चर का बहुत बड़ा महत्‍व होता है। और जितना बल ज्‍यादा इन्फास्ट्रक्चर की गतिविधियों को देते हैं वो इकोनॉमी को drive करता है, रोजगार को भी देता है। नए-नए उद्योगों को भी अवसर देता है। और इसलिए हमने इन्फास्ट्रक्चर के पूरे काम में एक नई गति आए। लेकिन पहले वर्ना इन्फास्ट्रक्चर का मतलब यही होता था सीमेंट कंक्रीट की बात। पहले इन्फास्ट्रक्चर का मतलब यही होता था टेंडर की प्रक्रियाएं। पहले वर्ना इन्फास्ट्रक्चर का मतलब यही होता था बिचौलिए। यही इन्फास्ट्रक्चर की बात आती थी तो लोगों को यही लगता था कि कुछ बू आती थी।

आज हमने transparency के साथ 21वीं सदी आधुनिक भारत बनाने के लिए जो इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करते हैं उस पर बल दिया है। और हमारे लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं सिर्फ एक सीमेंट कंक्रीट का खेल नही है ये। मैं मानता हूं इन्फ्रास्ट्रक्चर एक भविष्‍य लेकर के आता है। करगील से कन्‍या कुमारी और कच्‍छ से कोहिमा इसको अगर जोड़ने का काम करने की ताकत होती तो इन्फ्रास्ट्रक्चर में होती है। aspiration or achievement को जोड़ने का काम इन्फ्रास्ट्रक्चर करता है।

लोगों और उनके सपनों को उड़ान देने की ताकत अगर कहीं पर है तो इन्फ्रास्ट्रक्चर में होती है। लोगों की creativity को consumers से जोड़ने का काम इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण ही संभव हो सकता है। एक बच्‍चे को स्‍कूल से जोड़ने का काम छोटा ही क्‍यों न हो इन्फ्रास्ट्रक्चर करता है। एक किसान को बाजार से जोड़ने का काम इन्फ्रास्ट्रक्चर करता है। एक व्‍यवसायी को उसके consumer के साथ जोड़ने का काम इन्फ्रास्ट्रक्चर करता है। लोगों को लोगों से जोड़ने का काम भी इन्फ्रास्ट्रक्चर करता है। एक गरीब प्रेगनेट मां को भी अस्‍पताल से जोड़ने का काम इन्फ्रास्ट्रक्चर करता है। और इसलिए Irrigation से लेकर Industry तक सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर रूरल इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर तक, रोडस से लेकर पोर्ट तक और airways से लेकर waterways तक हमने अनेक ऐसे initiative लिए। गत 5 वर्ष में देश ने देखा है। और लोगों ने जब देखा है तभी तो यहां बिठाया है जी, यही तो इन्फ्रास्ट्रक्चर है जो यहां पहूंचाता है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं... कि हमारे यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में कैसे काम होता है। हमारे यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में कैसे काम होता था, ये सिर्फ हमारा दिल्‍ली का ही विचार ले लीजिए ये दिल्‍ली में traffic, environment, or हजारों ट्रक दिल्‍ली के बीच से गुजर रहे हैं। 2009 में यूपीए सरकार का संकल्‍प था कि 2009 तक ये दिल्‍ली के surrounding जो expressway है इसको 2009 तक पूरा करने का यूपीए सरकार का संकल्‍प था। 2014 में हम आए। तब तक कागज पर ही वो लकीरें बनकर वो पड़ा हुआ था। और 2014 के बाद मिशन मोड में हमने काम लिया और आज पैरिफेरल एक्‍सप्रेसवे का काम हो गया। 40 हजार से ज्‍यादा ट्रक जो आज यहां दिल्‍ली में नहीं आती सीधी बाहर से जाती हैं और दिल्‍ली को प्रदूषण से बचाने में एक अहम कदम ये भी है। लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर का महत्‍व क्‍या होता है। 2009 तक पूरा करने का सपना 2014 तक कागज की लकीर बनकरके पड़ा रहा। ये अंतर है। उसको समझने के लिए थोड़ा टाइम लगेगा।

माननीय अध्‍यक्ष जी, कुछ और विषयों को मैं जरा स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं। शशि थरूर जी, गुस्‍ताखी होगी लेकिन फिर भी क्‍योंकि कुछ लोगों ने जरा बार-बार यहां पर संविधान बचाने की बाते की हैं। और मैं भी मानता हूं। कि संविधान बचाने की बात कांग्रेस को दिन में 100 बार बोलनी चाहिए। कांग्रेस के लिए मंत्र होना चाहिए। 100 बार संविधान बचाओ, संविधान बचाओ ये जरूरी है... क्‍योंकि संविधान के साथ कब क्‍या हुआ अगर संविधान का महात्‍मय समझते तो संविधान के साथ ये न हुआ होता। और इसलिए जितनी बार आप संविधान बोलेगे हो सकता है कुछ चीजे आपको आपकी गलतियों का अहसास करवा दें। आपके उन इरादों को अहसास करवा देगी और आपको सच में संविधान इस देश में महामूल्‍य है इसकी ताकत का अनुभव कराएगी।

माननीय अध्‍यक्ष जी, यही मौका है इमरजेंसी संविधान बचाने का काम आपको याद नहीं आया था। आपातकाल यही लोग हैं जो संविधान बचाने के लिए उनको बार-बार बोलने की जरूरत है। क्‍योंकि न्‍यायपालिका और न्‍यायि‍क समीक्षा का अधिकार छीना इनको तो संविधान बार-बार बोलना ही पड़ेगा।

जिन लोगों ने लोगों से जीने का कानून छीनने की बात कही थी। उन लोगों को संविधान बार-बार बोलना भी पड़ेगा, पढ़ना भी पड़ेगा। जो लोग सबसे ज्‍यादा बार संविधान के अंदर बदलाव करने का प्रस्‍ताव लाया है उन लोगों को संविधान बचाने की बात बोले बिना कोई चारा नहीं है। दर्जनों बार राज्‍य सरकारों को बर्खास्‍त कर दिया है। लोगों की चुनी हुई सरकारों को बर्खास्‍त कर दिया है। उनके लिए संविधान बचाना ये बोल-बोल कर उन संसकरों को जीने की आवश्‍यकता है।

कैबिनेट ने एक प्रस्‍ताव पारित किया है। लोकतंत्र और संविधान से बनी हुई कैबिनेट उसने एक प्रस्‍ताव पारित किया है। उस प्रस्‍ताव को प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में फाड़ देना उन लोगों के लिए संविधान बचाने की शिक्षा लेना बहुत जरूरी है। और इसलिए उन लोगों को बार-बार संविधान बचाओं का मंत्र बोलना बहुत जरूरी है।

पीएम और पीएमओ के ऊपर National Advisory council.... remote control से सरकार चलाने का तरीका करने वालों को संविधान का महात्‍मय का समझना बहुत जरूरी है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, संविधान की वकालत के नाम पर दिल्‍ली और देश में क्‍या-क्‍या हो रहा है। वो देश भली-भांति देख रहा है। समझ भी रहा है और देश की चुप्‍पी भी कभी न कभी तो रंग लाएगी।

सर्वोच्‍च अदालत वो संविधान के प्रति सीधा-सीधा एक महत्‍वपूर्ण अंग है। देश की सर्वोच्‍च अदालत बार बार कह रही है कि आंदोलन ऐसे न हो जो सामान्‍य मानवी को तकलीफ दे, आंदोलन ऐसे न हो, जो हिंसा के रास्‍ते पर चल पड़े।

संविधान बचाने की बात वाला समय ... लेकिन यही वामपंथी लोग, यही कांग्रेस के लोग, यही वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोग वहां जा-जाकर उकसा रहे हैं। भड़काऊ बाते कर रहे हैं।

माननीय अध्‍यक्ष जी, एक शायर ने कहा था- ख़ूब पर्दा है, कि चिलमन से लगे बैठे हैं। ख़ूब पर्दा है, कि चिलमन से लगे बैठे हैं साफ़ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं! पब्लिक सब जानती है, सब समझती है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, पिछले दिनों जो भाषाएं बोली गईं, जिस प्रकार के वक्‍तव्‍य दिए गए हैं वो इसका जिक्र आज सदन के बड़े-बड़े नेता भी वहां पहुंच जाते हैं इसका बहुत बड़ा अफसोस है। पश्चिम बंगाल के पीड़ित लोग यहां बैठे हैं, अगर वे वहां क्‍या चल रहा है इसका कच्‍चा चिट्ठा खोल देंगे ना तो दादा आपको तकलीफ होगी। निर्दोष लोगों को किस प्रकार से मौत के घाट उतार दिया जाता है वो भली-भांति जानते हैं।

माननीय अध्‍यक्ष जी, कांग्रेस के समय में संविधान की क्‍या स्थिति थी, लोगों के अधिकार की स्थिति क्‍या थी; ये मैं जरा इनको पूछना चाहता हूं। अगर संविधान इतना महत्‍वपूर्ण है, जो हम मानते हैं; अगर आप मानते होते तो जम्‍मू-कश्‍मीर में हिन्‍दुस्‍तान का संविधान लागू करने से आपको‍ किसने रोका था? इसी संविधान के दिए अधिकारों से जम्‍मू-कश्‍मीर के मेरे भाइयों-बहनों को वंचित रखने का पाप किसने किया था? और शशी जी आप तो जम्‍मू-कश्‍मीर के दामाद रहे हैं, अरे उन बेटियों की चिंता करते, आप संविधान की बात करते हो और इसलिए माननीय अध्‍यक्ष जी, एक माननीय सांसद ने कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर ने अपनी identity खोई है, किसी ने कहा, किसी की नजर में तो जम्‍मू-कश्‍मीर का मतलब जमीन ही था।

माननीय अध्‍यक्ष जी, कश्‍मीर में जिनको सिर्फ जमीन दिखती है न उनको इस देश का कुछ अंदाज है और वो उनकी बौद्धिक दरिद्रता का परिचय करवाता है। कश्‍मीर भारत का मुकुट-मणि है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, कश्‍मीर की identity बम-बंदूक व अलगाववाद बना दी गई थी। 19 जनवरी, 1990, जो लोग identity की बात करते हैं; 19 जनवरी, 1990, वो काली रात, उसी दिन कुछ लोगों ने कश्‍मीर की identity को दफना दिया था। कश्‍मीर की identity सूफी परंपरा है, कश्‍मीर की identity सर्वपंत समभाव की है। कश्‍मीर के प्रतिनिधि मां लालदेड़, नंदऋषि, सैय्यद बुलबुल शाह, मीर सैय्यद अली हमदानी, ये कश्‍मीर की identity है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, कुछ लोग कहते हैं आर्टिकल 370 हटाने के बाद आग लग जाएगी, कैसे भविष्‍यवक्‍ता हैं ये। आग लग जाएगी, 370 हटाने के बाद। और आज जो लोग बोलते हैं, मैं उनको कहना चाहता हूं, कुछ लोग कहते हैं कुछ नेता जेल में हैं। जरा मैं इस सदन...ये संविधान की रक्षा करने वाला सदन है, ये संविधान को समर्पित सदन है, ये संविधान का गौरव करने वाला सदन है, ये संविधान के प्रति दायित्‍व निभाने वाले सदस्‍यों से भरा हुआ सदन है....। मैं सभी माननीय सदस्‍यों की आत्‍मा को आज छूने की कोशिश करना चाहता हूं, अगर है तो।

माननीय अध्‍यक्ष जी, महबूबा मुफ्ती जी ने 5 अगस्‍त को क्‍या कहा था- महबूबा मुफ्ती जी ने कहा था, और संविधान को समर्पित लोग जरा ध्‍यान से सुनें, महबूबा मुफ्ती जी ने कहा था, भारत ने...ये शब्‍द बड़े गंभीर हैं, उन्‍होंने कहा था-भारत ने कश्‍मीर के साथ धोखा किया है। हमने जिस देश के साथ रहने का फैसला किया था, उसने हमें धोखा दिया है। ऐसा लगता है कि हमने 1947 में गलत चुनाव कर लिया था। क्‍या ये स‍ंविधान को मानने वाले लोग इस प्रकार की भाषा को स्‍वीकार कर सकते हैं क्‍या? उनकी वकालत करते हो? उनका अनुमोदन करते हो? उसी प्रकार से श्रीमान उमर अब्‍दुल्‍ला जी ने कहा था, उन्‍होंने कहा था- आर्टिकल 370 का हटाना ऐसा भूकंप लाएगा कि कश्‍मीर भारत से अलग हो जाएगा।

माननीय अध्‍यक्ष जी, फारुख अब्‍दुल्‍ला जी ने कहा था- 370 का हटाया जाना कश्‍मीर के लोगों की आजादी का मार्ग प्रशस्‍त करेगा। अगर 370 हटाई गई तो भारत का झंडा फहराने वाला कश्‍मीर में कोई नहीं बचेगा। क्‍या इस भाषा से, इस भावना से क्‍या हिन्‍दुस्‍तान के संविधान को समर्पित कोई भी व्‍यक्ति इसे स्‍वीकार कर सकता है, क्‍या इससे सहमत हो सकता है? मैं ये बात उनके लिए कह रहा हूं जिनकी आत्‍मा है।

माननीय अध्‍यक्ष जी, ये वो लोग हैं जिनको कश्‍मीर की आवाम पर भरोसा नहीं है और इसलिए ऐसी भाषा बोलते हैं। हम वो हैं जिनको कश्‍मीर की आवाम पर भरोसा है। हमने भरोसा किया, हमने कश्‍मीर की आवाम पर भरोसा किया और आर्टिकल 370 को हटाया। और आज तेज गति से विकास भी कर रहे हैं। और इस देश के किसी भी क्षेत्र के हालात बिगाड़ने की मंजूरी नहीं दी जा सकती चाहे वो कश्‍मीर हो, चाहे नॉर्थ-ईस्‍ट हो, चाहे केरल हो, कोई भी इजाजत नहीं दी जा सकती। हमारे मं‍त्री भी पिछले दिनों लगातार जममू-कश्‍मीर का दौरा कर रहे हैं, जनता के साथ संवाद कर रहे हैं। जनता के साथ संवाद करके वहां की समस्‍याओं का समाधान करने के लिए हम प्रयास कर रहे हैं।

माननीय अध्‍यक्ष जी, मैं आज इस सदन से जम्मू-कश्‍मीर के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए, जम्‍मू–कश्‍मीर के विकास के लिए, जम्मू-कश्‍मीर के लोगों की आशा-अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। हम संविधान को समर्पित लोग सबके सब प्रतिबद्ध हैं। लेकिन साथ-साथ मैं लद्दाख के विषय में भी कहना चाहूंगा।

माननीय अध्‍यक्ष जी, हमारे देश में सिक्किम एक ऐसा प्रदेश है जिसने अपने-आपको एक आर्गेनिक स्‍टेट के रूप में उसने अपनी पहचान बनाई है। और एक प्रकार से देश के कई राज्‍यों को सिक्किम जैसे छोटे राज्‍य ने प्रेरणा दी है। सिक्किम के किसान, सिक्किम के नागरिक इसके लिए अभिनंदन के अधिकारी हैं। लद्दाख- मैं मानता हूं लद्दाख के विषय में मेरे मन में बहुत चित्र साफ है। और इसलिए हम चाहते हैं कि लद्दाख जिस प्रकार से हमारे पड़ोस में भूटान की भूरि-भूरि प्रशंसा होती है environment को लेकर, carbon neutral country के रूप में दुनिया में उसकी पहचान बनी है। हम देशवासी संकल्‍प करते हैं और हम सबको संकल्‍प करना चाहिए कि हम लद्दाख को भी एक carbon neutral इकाई के रूप में develop करेंगे। देश के लिए एक पहचान बनाएंगे। और उसका लाभ आने वाली पीढ़ियों को एक मॉडल के रूप में मिलेगा, ऐसा मुझे पूरा विश्‍वास है। और मैं जब लद्दाख जाऊंगा, इनको उनके साथ रह करके मैं इसका एक डिजाइन बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा हूं।

माननीय अध्‍यक्ष जी, यहां पर जो एक कानून सदन ने पारित किया, जो संशोधन दोनों सदनो में पारित हुआ, जो notify हो गया, उसके संबंध में भी कुछ न कुछ कोशिशें हो रही हैं CAA लाने की। कुछ लोग कह रहे हैं CAA लाने की इतनी जल्‍दी क्‍या थी? कुछ माननीय सदस्‍यों ने ये कहा कि ये सरकार भेदभाव कर रही है, ये सरकार हिन्‍दू और मुस्लिम कर रही है। कुछ ने कहा कि हम देश के टुकड़े करना चाहते हैं, बहुत कुछ कहा गया और यहां से बाहर बहुत कुछ बोला जाता है। काल्‍पनिक भय पैदा करने के लिए पूरी शक्ति लगा दी गई है। और वो लोग बोल रहे हैं जो देश के टुकड़े-टुकड़े करने वालों के बगल में खड़े हो करके जो लोग फोटो खिंचवाते हैं। दशकों से पाकिस्‍तान यही भाषा बोलता आया है, पाकिस्‍तान यही बातें कर रहा है।

भारत के मुसलमानों को भड़काने के लिए पाकिस्‍तान ने कोई कसर छोड़ी नहीं। भारत के मुसलमानों को गुमराह करने के लिए पाकिस्‍तान ने हर खेल खेले हैं, हर रंग दिखाए हैं। और अब उनकी बात चलती नहीं है, पाकिस्‍तान की बात बढ़ नहीं पा रही है। तब, जब मैं हैरान हूं कि जिनको हिन्‍दुस्‍तान की जनता ने सत्‍ता के सिंहासन से घर भेज दिया, वो आज उस काम को कर रहे हैं जो कभी ये देश सोच भी नहीं सकता था। हमें याद दिलाया जा रहा है कि ;;;इंडिया का नारा देने वाले, जयहिंद का नारा देने वाले हमारे मुस्लिम ही थे। दिक्‍कत यही है कि कांग्रेस और उसकी नजर में ये लोग हमेशा ही सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम थे। हमारे लिए, हमारी नजर में वो भारतीय हैं, हिन्‍दुस्‍तानी हैं। खान अब्‍दुल गफ्फार खान हो..

माननीय अध्‍यक्ष जी, मेरा सौभाग्‍य रहा है कि लड़कपन में खान अब्‍दुल गफ्फार खान जी के चरण छूने का मुझे अवसर मिला था। मैं इसे अपना गर्व मानता हूं।

माननीय अध्‍यक्ष जी, खान अब्‍दुल गफ्फार खान हो, अशफाक-उल्‍ला खां हों बेगम हजरत महल हों, वीर शहीद अब्‍दुल करीम हों या पूर्व राष्‍्ट्रपति श्रीमान एपीजे अब्‍दुल कलाम हों, सबके सब हमारी नजर से भारतीय हैं।

माननीय अध्‍यक्ष जी, कांग्रेस और उसके जैसे दलों ने जिस दिन भारत को भारत की नजर से देखना शुरू किया, उसे अपनी गलती का एहसास होगा, होगा, होगा। सर, मैं कांग्रेस का और उनके ecosystem का भी बहुत आभारी हूं कि उन्‍होंने Citizenship amendment act को ले करके हो-हल्‍ला मचाए रखा हुआ है। अगर ये विरोध नहीं करते, ये इतना हो-हल्‍ला नहीं करते तो शायद उनका असली रूप देश को पता ही नहीं चलता। ये देश ने देख लिया है कि दल के लिए कौन है और देश के लिए कौन है। और मैं चाहता हूं, ‘जब चर्चा निकल पड़ी है तो बात दूर तक चली जाएगी’।

माननीय अध्‍यक्ष जी, प्रधानमंत्री बनने की इच्‍छा किसी की भी हो सकती है और उसमें कुछ बुरा भी नहीं है। लेकिन किसी को प्रधानमंत्री बनना था इसलिए हिन्‍दुस्‍तान के ऊपर एक लकीर खींची गई और देश का बंटवारा कर दिया गया। बंटवारे के बाद जिस तरह पाकिस्‍तान में हिंदुओं, सिखों और अन्‍य अल्‍पसंख्‍यकों पर अत्‍याचार हुआ, जुल्‍म हुआ, जोर-जबरदस्‍ती हुई उसकी कल्‍पना तक नहीं की जा सकती। मैं कांग्रेस के साथियों से जरा पूछना चाहता हूं, क्‍या आपने कभी भूपेन्‍द्र कुमार दत्त का नाम सुना है? कांग्रेस के लिए जानना बहुत जरूरी है और जो यहां नहीं हैं उनको भी जानना जरूरी है।

भूपेन्‍द्र कुमार दत्त एक समय में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में थे, उसके सदस्‍य थे। स्‍वतन्‍त्रता संग्राम के दौरान 23 साल उन्‍होंने जेल में बिताए थे। वो एक ऐसे महापुरुष थे जिन्‍होंने न्‍याय के लिए 78 दिन जेल के अंदर भुख-हड़ताल की थी और ये भी उनके नाम एक रिकॉर्ड है। विभाजन के बाद भूपेन्‍द्र कुमार दत्त पाकिस्‍तान में ही रुक गए थे। वहां की संविधान सभा के वो सदस्‍य भी थे। जब संविधान का काम चल ही रहा था, अभी तो संविधान का काम चल ही रहा था, शुरूआत ही हुई थी और उस समय भूपेन्‍द्र कुमार दत्त ने उसी संविधान सभा में जो कहा था, उसे आज मैं दोहराना चाहता हूं। क्‍योंकि जो लोग हम पर आरोप मढ़ रहे हैं उनके लिए ये समझना बहुत जरूरी है।

भूपेन्‍द्र कुमार दत्त ने कहा था- So for as this side of Pakistan is concerned, the minorities are practically liquidated. Those of us who are here to live represent near a crore of people still left in East Bengal, live under a total sense of frustration. ये भूपेन्‍द्र कुमार दत्त ने बंटवारे के तुरंत बाद वहां की संविधान सभा में ये शब्‍द व्‍यक्‍त किया था। ये हालत थी, स्‍वतंत्रता के शुरूआत के दिनों से ही अल्‍पसंख्‍यकों की, वहां के अल्‍पसंख्‍यकों की। इसके बाद पाकिस्‍तान में स्थिति इतनी खराब हो गई कि भूपेन्‍द्र दत्त को भारत आ करके शरण लेनी पड़ी और बाद में उनका निधन भी ये मां भारती की गोद में हुआ।

माननीय अध्‍यक्ष जी, तबके पाकिस्‍तान में एक और बड़े स्‍वतंत्र सेनानी रुक गए थे, जोगेन्‍द्र नाथ मंडल। वे समाज के बहुत ही पीड़ित, शोषित, कुचले हुए समाज का प्रतनिधित्‍व करते थे। उन्‍हें पाकिस्‍तान का पहला कानून मंत्री भी बनाया गया था। 9 अक्‍तूबर, 1950- अभी आजादी के और बंटवारे के दो-तीन साल हुए थे। 9 अक्‍तूबर, 1950 को उन्‍होंने अपना इस्‍तीफा दे दिया था। उनके इस्‍तीफे के एक पेराग्राफ, इस्‍तीफे में जो लिखा था उसको मैं कोट करना चाहता हूं। उन्‍होंने लिखा था- I must say that the policy of driving out Hindus from Pakistan has succeeded completely in West Pakistan and is nearing completion in East Pakistan.

उन्‍होंने आगे कहा था- Pakistan has not given the Muslim League entire satisfaction and a full sense of security. They now want to get rid of the Hindu intelligentsia so that the political economic and social life of Pakistan may not in anyway influenced by them. ये मंडल जी ने अपने इस्‍तीफे में लिखा था। इन्‍हें भी आखिरकार भारत ही आना पड़ा और उनका निधन भी मां भारती की गोद में हुआ। इतने दशकों के बाद भी पाकिस्‍तान की सोच नहीं बदली। वहां आज भी अल्‍पसंख्‍यकों पर अत्‍याचार हो रहे हैं। अभी-अभी ननकाना साहब के साथ क्‍या हुआ- वो सारे देश और दुनिया ने देखा है। और ये ऐसा ही नहीं है कि सिर्फ हिंदू और सिखों के साथ होता है, और भी minority के साथ ऐसा ही जुल्‍म वहां होता है। इसाइयों को भी ऐसी ही पीड़ा झेलनी पड़ती है।

सदन के मैं चर्चा के दरम्‍यान गांधी जी के कथन को ले करके भी बात कही गई। कहा गया कि सीएए पर सरकार जो कह रही है, वो गांधीजी की भावना नहीं थी।

खैर, कांग्रेस जैसे दलों ने तो गांधी जी की बातों को दशकों पहले छोड़ दिया था। आपने तो गांधीजी को छोड़ दिया है और इसलिए मैं और न देश आपसे कोई अपेक्षा करता है, लेकिन जिसके आधार पर कांग्रेस की रोजी-रोटी चल रही है, मैं आज उनकी बात करना चाहता हूं।

1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ। भारत और पाकिस्‍तान में रहने वाले minorities की सुरक्षा को ले करके ये समझौता हुआ। समझौते का आधार पाकिस्‍तान में धार्मिक अल्‍पसंख्‍यकों के साथ भेदभावपूर्ण व्‍यवहार नहीं होगा। पाकिस्‍तान में रहने वाले जो लोग हैं, उसमें जो धार्मिक अल्‍पसंख्‍यक हैं, जिसकी बात हम बोल रहे हैं, उसके संबध में नेहरू और लियाकत के बीच में एक एग्रीमेंट हुआ था। अब कांग्रेस को जवाब देना होगा, नेहरू जैसे इतने बड़े secular, नेहरू जैसे इतने बड़े महान विचारक, इतने बड़े visionary और आपके लिए सब कुछ। उन्‍होंने उस समय वहां की minority के बजाय ‘सारे नागरिक’ ऐसा शब्‍द प्रयोग क्‍यों नहीं किया। अगर इतने ही महान थे, इतने ही उदार थे तो क्‍यों नहीं किया भाई, कोई तो कारण होगा। लेकिन इस सत्‍य को आप कब तक झुठलाओगे।

भाइयो और बहनों, माननीय अध्‍यक्ष जी और माननीय सदस्‍यगण, ये उस समय की बात है, ये मैं उस समय की बात बता रहा हूं। नेहरू जी समझौते में पाकिस्‍तान की minority, इस बात पर कैसे मान गए, जरूर कुछ न कुछ वजह होगी। जो बात हम बता रहे हैं आज, वही बात उस समय नेहरूजी ने बताई थी।

माननीय अध्‍यक्ष जी, नेहरूजी ने minority शब्‍द क्‍यों प्रयोग किया, ये आप बोलेंगे नहीं क्‍योंकि आपको तकलीफ है। लेकिन नेहरूजी खुद इसका जवाब देकर गए हैं। नेहरूजी ने नेहरू-लियाकत समझौता साइन होने के एक साल पहले असम के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री श्रीमान गोपीनाथ जी को एक पत्र लिखा था। और गोपीनाथजी को पत्र में जो लिखा था, उसे मैं कोट करना चाहता हूं।

नेहरूजी ने लिखा था- आपको हिंदू शरणार्थियों और मुस्लिम immigrants, इसके बीच फर्क करना ही होगा। और देश को इन शरणार्थियों की जिम्‍मेदारी लेनी ही पड़ेगी। उस समय असम के मुख्‍यमंत्री को उस समय के भारत के प्रधानमंत्री पंडित नेहरूजी की लिखी हुई चिट्ठी है। नेहरू-लियाकत समझौते के बाद कुछ महीनों के भीतर ही नेहरूजी का इसी संसद के फ्लोर पर 5 नवंबर, 1950, नेहरूजी ने कहा था- इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो प्रभावित लोग भारत में settle होने के लिए आए हैं, ये नागरिकता मिलने के हकदार हैं और अगर इसके लिए कानून अनुकूल नहीं है तो कानून में बदलाव किया जाना चाहिए।

1963 में लोकसभा में, इसी सदन में और इसी जगह से, 1963 में Call attention motion हुआ। उस समय प्रधानमंत्री नेहरू तत्‍कालीन विदेश मंत्री के रूप में भी जिम्‍मेदारी संभाल रहे थे। Motion का जवाब देने के लिए विदेश राज्‍यमंत्री श्रीमान दिनेशजी जब बोल रहे थे तो आखिर में प्रधानमंत्री नेहरूजी ने बीच में उन्‍हें टोकते हुए कहा था- और उन्‍होंने जो कहा था, मैं कोट करता हूं- पूर्वी पाकिस्‍तान में वहां की अथॉरिटी हिंदुओं पर जबरदस्‍त दबाव बना रही है, ये प‍ंडित जी का वक्‍तव्‍य है। पाकिस्‍तान के हालात को देखते हुए, गांधीजी नहीं, नेहरूजी की भावना भी रही थी। इतने सारे दस्‍तावेज हैं, चिट्ठियां हैं, स्‍टैंडिग कमेटी की‍ रिपोर्ट है, सभी इसी तरह के कानून की वकालत करते रहे हैं।

मैंने इस सदन में तथ्‍यों के आधार पर, अब मैं कांग्रेस से खास रूप से पूछना चाहता हूं और उनके ecosystem भी ये मेरे सवाल समझेगी। जो ये सारी बातें मैंने बताईं, क्‍या पंडित नेहरू communal थे? मैं जरा जानना चाहता हूं। क्‍या पंडित नेहरू हिंदू-मुस्लिम में भेद किया करते थे? क्‍या पंडित नेहरू हिंदू राष्‍ट्र बनाना चाहते थे?

माननीय अध्‍यक्ष जी, कांग्रेस की दिक्‍कत ये है वो बातें बनाती है, झूठे वादे करती है और दशकों तक वो वादों को टालती रहती है। आज हमारी सरकार अपने राष्ट्र निर्माताओं की भावनाओं पर चलते हुए फैसले ले रही है तो कांग्रेस को दिक्‍कत हो रही है। और मैं फिर से स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं, इस सदन के माध्‍यम से, इस देश के 130 करोड़ नागरिकों को, बड़ी जिम्‍मेदारी के साथ संविधान की मर्यादाओं को समझते हुए ये कहना चाहता हूं, संविधान के प्रति समर्पण भाव से कहना चाहता हूं, देश के 130 करोड़ नागरिकों से कहना चाहता हूं- सीएए, इस एक्‍ट से हिन्‍दुस्‍तान के किसी भी नागरिक पर किसी भी प्रकार का कोई प्रभाव होने वाला नहीं है। चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, इसाई हो, किसी पर नहीं होने वाला। इससे भारत की minority को कोई नुकसान होने वाला नहीं। फिर भी जिन लोगों को देश की जनता ने नकार दिया है, वो लोग वोट बैंक की राजनीति करने के लिए ये खेल खेल रहे हैं।

और मैं जरा पूछना चाहता हूं। मैं कांग्रेस के लोगों से विशेष रूप से पूछना चाहता हूं, जो minority के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहते हैं, क्‍या कांग्रेस को 84 के दिल्‍ली के दंगे याद हैं, क्‍या minority के साथ, क्‍या वो minority नहीं थी? क्‍या आप उन लोगों के हमारे सिख भाइयों के गले में टायर बांध-बांध करके उन्‍हें जला दिया था। इतना ही नहीं, सिख दंगों के आरोपियों को जेल में तक भेजने का काम ने आपने किया ही नहीं। इतना ही नहीं, आज जिन पर आरोप लगे हुए हैं, सिख दंगों को भड़काने के जिन पर आरोप लगे हैं, उनको आज मुख्‍यमंत्री बना देते हो। सिख दंगों के आरोपियों को सजा दिलाने में उन हमारी विधवा माताओं को तीन-तीन दशक तक न्‍याय के लिए इंतजार करना पड़ा। क्‍या वो minority नहीं थी? क्‍या minority के लिए दो-दो तराजू होंगे? क्‍या यही आपके तरीके होंगे?

माननीय अध्‍यक्ष जी, कांग्रेस पार्टी जिसने इतने सालों तक देश पर राज किया, आज वो देश का दुर्भाग्‍य है कि जिसके पास एक जिम्‍मेदार विपक्ष के रूप में देश की अपेक्षाएं थीं, वो आज गलत रास्‍ते पर चल पड़े हैं। ये रास्‍ता आपको भी मुसीबत पैदा करने वाला है, देश को भी संकट में डालने वाला है। और ये चेतावनी मैं इसलिए दे रहा हूं, हम सबको देश की चिंता होनी चाहिएा, देश के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य की चिंता होनी चाहिए।

आप सोचिए, अगर राजस्‍थान की विधानसभा कोई निर्णय करे, कोई व्‍यवस्‍था खड़ी करे और राजस्‍थान में वो कोई मानने को तैयार न हो, जलसे-जुलूस निकालें, हिंसा करें, आगजनी लगाएं, आपकी सरकार है- क्‍या स्थि‍ति बनेगी? मध्‍यप्रदेश- आप वहां बैठे हैं। मध्‍यप्रदेश की विधानसभा कोई निर्णय करे और वहां की जनता उसके खिलाफ इसी प्रकार से निकल पड़े, क्‍या देश ऐसे चल सकता है क्‍या?

आपने इतना गलत किया है इसीलिए तो वहां बैठना पड़ा है। ये आपके ही कारनामों का परिणाम है कि जनता ने आपको वहां बिठाया है। और इसलिए लोकतांत्रिक तरीके से देश में हरेक को अपनी बात बताने का हक है। लेकिन झूठ और अफवाहें फैला करके, लोगों को गुमराह करके हम कोई देश का भला नहीं कर पाएंगे।

और इसलिए मैं आज संविधान की बातें करने वालों को विशेष रूप से आग्रह करता हूं, आइए-

संविधान का सम्‍मान करें।

आइए- मिल-बैठ करके देश चलाएं,

आइए- देश को आगे ले जाएं। 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लिए एक सकंल्‍प ले करके हम चलें।

आइए- देश के 15 करोड़ परिवार, जिनको पीने का शुद्ध जल नहीं मिल रहा है, वो पहुंचाने का संकल्‍प करें।

आइए- देश के हर गरीब को पक्‍का घर लेने के काम को हम मिल करके आगे बढ़ें ताकि उनको पक्‍का घर मिले।

आइए- देश के किसान हों, मछुआरे हों, पशुपालक हों, उनकी आय बढ़ाने के लिए हम कामों को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाएं।

आइए- हर पंचायत को Broadband connectivity दें।

आइए- एक भारत-श्रेष्‍ठ भारत बनाने का संकल्‍प ले करके हम आगे बढ़ें।

माननीय अध्‍यक्ष जी, भारत के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए हम मिल-बैठ करके आगे चलें, इसी एक भावना के साथ मैं माननीय राष्‍ट्रपति जी को अनेक-अनेक धन्‍यवाद करते हुए, मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं। आपका भी मैं विशेष आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

 

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