भारत माता की.... जय
भारत माता की.... जय
दीनदयाल उपाध्याय...... अमर रहें, अमर रहें
दीनदयाल उपाध्याय..... अमर रहें, अमर रहें
दीनदयाल उपाध्याय..... अमर रहें, अमर रहें
कार्यक्रम में मेरे साथ उपस्थित भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान् जेपी नड्डा जी, पार्टी के सभी वरिष्ठ पदाधिकारीगण, और सभी माननीय सांसद।
आज हम सब दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि पर उनके चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्र हुए हैं। पहले भी अनेक अवसर पर हमें दीनदयाल जी से जुड़े कार्यक्रमों में शामिल होने का, अपने विचार रखने का और अपने वरिष्ठजनों से विचार सुनने का अवसर मिलता रहा है। यहां पर तो सभी लोग उस विचार परिवार के सदस्य हैं, दीनदयाल जी जिसके मुखिया की तरह, एक प्रेरणा की तरह अविरत रूप से हमें प्रेरणा देते रहते हैं। आप सबने दीनदयाल जी को पढ़ा भी है और उन्हीं के आदर्शों से अपने जीवन को गढ़ा भी है। और इसलिए, आप सब उनके विचारों से, उनके समर्पण से भली-भांति परिचित हैं। मेरा अनुभव है और आपने भी महसूस किया होगा कि हम जैसे-जैसे दीनदयाल जी के बारे में सोचते हैं, बोलते हैं, सुनते हैं, उनके विचारों को पढ़ने का प्रयास करते हैं, हमें उनकी बातों में, उनके विचारों में हर बार एक नई ताजगी, एक नया दृष्टिकोण, एक नवीनता का अनुभव होता है। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने तब थे। और आने वाले समय में भी उतने ही आवश्यक रहेंगे जितने आज हैं। एकात्म मानव दर्शन का उनका विचार मानव मात्र के लिए था। इसलिए, जहां भी मानवता की सेवा का प्रश्न होगा, मानवता के कल्याण की बात होगी, दीनदयाल जी का एकात्म मानव दर्शन प्रासंगिक रहेगा ही रहेगा। एकात्म मानव दर्शन में विशेष रूप से इन तीन शब्दों पर व्यष्टि से समष्टि की यात्रा व्यक्त होती है, स्वार्थ से परमार्थ की यात्रा का मार्ग स्पष्ट होता है और मैं नहीं तू ही संकल्प भी सिद्ध होता है।
साथियो,
हमारे यहां कहा जाता है- “स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान सर्वत्र पूज्यते।” अर्थात, सत्ता की ताकत से आपको सीमित सम्मान ही मिल सकता है। जहां सत्ता की ताकत प्रभावी होगी वहीं सम्मान मिलेगा। लेकिन विद्वान का सम्मान हर जगह होता है। दीनदयाल जी इस विचार के साक्षात, जीता-जागता उदाहरण हैं। उनका एक-एक विचार, उनके एक-एक शब्द उन्हें पूरी दुनिया में एक विलक्षण व्यक्तित्व बना देते थे। सामाजिक जीवन में एक नेता को कैसा होना चाहिए, भारत के लोकतन्त्र और मूल्यों को कैसे जीना चाहिए, दीनदयाल जी इसके भी बहुत बड़े उदाहरण हैं। एक ओर वो भारतीय राजनीति में एक नए विचार को लेकर आगे बढ़ रहे थे, वहीं दूसरी ओर, वो हर एक पार्टी, हर एक विचारधारा के नेताओं के साथ भी उतने ही सहज रहते थे। हर किसी से उनके आत्मीय संबंध थे। उन्होंने अपनी पॉलिटिकल डायरी लिखी थी, जिसमें नेहरू जी की सरकार की सुरक्षा के संबंध में, खाद्य नीतियों के संबंध में, कृषि नीति के संबंध में खुलकर तथ्यपरक आलोचना की थी। बहुत ही क्रिटिसाइज किया था। लेकिन जब उन्होंने अपनी इस डायरी को प्रकाशित किया पुस्तक के रूप में, तो इसका प्राक्कथन उन्होंने कांग्रेस नेता और यूपी के मुख्यमंत्री रहे श्रीमान् सम्पूर्णानन्द जी से लिखवाया। सम्पूर्णानन्द जी ने अपनी टिप्पणी में एक बहुत ही प्रभावी लाइन लिखी है। उन्होंने लिखा है, ये पुस्तक फ्यूचर रीडर्स के लिए एक “साइकोलॉजिकल ग्लो” है। आज दुनिया देख रही है कि इस महापुरुष के विचारों का ये ‘ग्लो’ कैसे पूरे भारत में अपनी चमक बिखेर रहा है।
साथियो,
हमारे शास्त्रों में कहा गया है- “स्वदेशो भुवनम् त्रयम्।” अर्थात, अपना देश ही हमारे लिए सब कुछ है, तीनों लोकों के बराबर है। जब हमारा देश समर्थ होगा, तभी तो हम दुनिया की सेवा कर पाएंगे। एकात्म मानव दर्शन को सार्थक कर पाएंगे। दीनदयाल उपाध्याय जी भी यही कहते थे। उन्होंने एक स्थान पर लिखा था- “एक सबल राष्ट्र ही विश्व को योगदान दे सकता है”। यही संकल्प आज आत्मनिर्भर भारत की मूल अवधारणा है। इसी आदर्श को लेकर ही देश आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। कोरोनाकाल में देश ने अंत्योदय की भावना को सामने रखा, और अंतिम पायदान पर खड़े हर गरीब की चिंता की। आत्मनिर्भरता की शक्ति से देश ने एकात्म मानव दर्शन को भी सिद्ध किया, पूरी दुनिया को दवाएं पहुंचाईं, और आज दुनिया को वैक्सीन भी पहुंचा रहा है।
साथियो,
देश की एकता अखंडता के लिए भी आत्मनिर्भरता की जरूरत पर दीनदयाल जी ने विशेष जोर दिया था। 1965 में भारत पाक युद्ध के दौरान भारत को विदेशों से हथियारों के लिए निर्भर रहना पड़ता था। दीनदयाल जी ने कहा था कि- हमें सिर्फ अनाज में ही नहीं बल्कि हथियार और विचार के क्षेत्र में भी भारत को आत्मनिर्भर बनाना होगा। उनके इस विज़न को पूरा करने के लिए भारत आगे बढ़ रहा है। आज भारत में डिफेंस कॉरिडॉर बन रहे हैं, स्वदेशी हथियार बन रहे हैं, और तेजस जैसे फाइटर जेट्स भी हवा में उड़ान भर रहे हैं। हथियार के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता से अगर भारत की ताकत और भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है, तो विचार की आत्मनिर्भरता से भारत आज दुनिया के कई क्षेत्रों में नेतृत्व दे रहा है। आज भारत की विदेश नीति दबाव और प्रभाव से मुक्त होकर, राष्ट्र प्रथम के नियम से चल रही है। नेशन फर्स्ट, प्रकृति के साथ सामंजस्य का दर्शन दीनदयाल जी ने हमें दिया है। भारत आज इंटरनेशनल सोलर अलायंस का नेतृत्व करके दुनिया को वही राह दिखा रहा है।
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साथियो,
दीनदयाल उपाध्याय जी ने दुनिया की किसी भी सोच के प्रभाव में अपने विचारों को नहीं गढ़ा था। इसलिए उनके विचारों में एक मौलिकता थी। भारत की भावना, भारत का मानस, भारत के मूल्य वेद से विवेकानंद तक की भारत की चिंतन यात्रा ये सारी बातें दीनदयाल जी के चिंतन में झलकती है, इसलिए वो एक ऐसी अर्थव्यवस्था की बात करते थे, जिसमें पूरा भारत शामिल हो, जिसमें पूरे भारत की विविधता झलके। लोकल इकोनॉमी पर विजन इस बात का प्रमाण है कि उस दौर पर भी उनकी सोच कितनी प्रैक्टिकल और व्यापक थी। आज वोकल फॉर लोकल के मंत्र से देश इसी विजन को साकार कर रहा है। आज आत्मनिर्भर भारत अभियान देश के गांव-गरीब, किसा-मजदूर और मध्यम वर्ग के भविष्य के निर्माण का एक माध्यम बन रहा है। आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति का भी जीवनस्तर कैसे सुधरे, ईज ऑफ लिविंग कैसे बढ़े, इसके प्रयास आज सिद्ध होते दिख रहे हैं। उज्ज्वला योजना, जनधन खाते, किसान सम्मान निधि, हर घर में शौचालय, हर गरीब को मकान आज देश एक-एक कदम आगे बढ़ते हुए इसको सिद्ध करते हुए गौरव के साथ विकास की राह पर चल पड़ा है। इंफ्रास्ट्रक्चर की दिशा में हो रहा बड़ा बदलाव भी सामान्य मानवी के जीवन को सरल बनाएगा। देश को एक नई, भव्य और आधुनिक पहचान देगा।
साथियो,
आज जब देश में इतने सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं, पूरी दुनिया में भारत का कद बढ़ रहा है, तो कौन भारतीय होगा, कौन इस मां का लाल होगा जिसको गौरव न होता हो, उसका सीना चौड़ा न होता हो, उसका माथा ऊंचा न होता हो। आज विश्व भर में फैला हुआ भारतीय समुदाय जिस गर्व के साथ जी रहा है उसका कारण भारत में हो रही गतिविधि है। हमें गर्व होता है कि हम अपने महापुरुषों के सपनों को पूरा कर रहे हैं। हमें गर्व है कि हमारी विचारधारा देशभक्ति को ही अपना सब कुछ मानती है। हमारी विचारधारा देशभक्ति से शुरू होती है, हमारी विचारधारा देशभक्ति से प्रेरित होती है, हमारी विचारधारा देशहित के लिए होती है। हम उसी विचारधारा में पले हैं जो विचारधारा राष्ट्र प्रथम, Nation First की बात करती है। ये हमारी विचारधारा है कि हमें राजनीति का पाठ राष्ट्रनीति की भाषा में पढ़ाया जाता है। हमारी राजनीति में भी राष्ट्रनीति सर्वोपरि है। हमें राजनीति और राष्ट्रनीति में से एक को स्वीकार करना होगा तो हमें संस्कार मिले हैं, राष्ट्रनीति को स्वीकार करना राजनीति को नंबर दो पर रखना। हमें गर्व है कि हमारी विचारधारा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की बात करती है। उस मंत्र को जीती है।
आप देखिए, हमारी पार्टी ने अपनी सरकारों में ऐसी कितनी ही उपलब्धियां हासिल की हैं जिन पर आपको गर्व होगा, आने वाली पीढ़ियों को गर्व होगा।
जो निर्णय देश में बहुत कठिन माने जाते थे, राजनीतिक रूप से मुश्किल माने जाते थे, हमने वो निर्णय लिए, और सबको साथ लेकर लिए। उदाहरण के तौर पर देश में नए जनजाति कार्य मंत्रालय का गठन, जनजातीय समुदाय कोई हमारे आने के बाद का थोड़े था, पहले भी था, लेकिन उस मंत्रालय का अलग से गठन भाजपा की ही सरकार में हुआ है। ये भाजपा सरकार की ही देन है कि पिछड़ा आयोग भी, उसको संवैधानिक दर्जा मिल सका है। संवैधानिक स्टेटस हमारे यहां ही मिल सका। और ये भाजपा की ही सरकार है जिसने सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को भी आरक्षण देने का काम किया है। और आप देखिए देश में जब भी ऐसे कोई काम हुए हैं तनाव पैदा हुआ है, संघर्ष हुआ है, समाज बंट गया है। उसी काम को हमने मेल-जोल, प्यार के वातावरण में किया है। क्योंकि राष्ट्रनीति सर्वोपरि है, राजनीति एक व्यवस्था है। राज्यों का विभाजन देख लीजिए। राज्यों का विभाजन जैसा काम राजनीति में कितने रिस्क का काम समझा जाता था। इसके उदाहरण भी हैं अगर कोई नया राज्य बना तो देश में कैसे हालत बन जाते थे। लेकिन जब भाजपा की सरकार ने 3 नए राज्य बनाए तो हर कोई हमारे तौर-तरीकों में दीनदयाल जी के संस्कारों का प्रभाव स्पष्ट देख सकता है। उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड का निर्माण हुआ। झारखंड बिहार से बनाया गया। और छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग आकार दिया गया, लेकिन उस समय हर राज्य में उत्सव का माहौल था। न शिकायत थी न कोई गिला शिकवा था, आनंद ही आनंद था दोनो तरफ आनंद था। हमारी सरकार ने लद्दाख करगिल को अलग केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया है आज वहां भी उत्सव का ही वातावरण है। इसी तरह, जम्मू कश्मीर और वहां के लोगों की आकांक्षाओं को भी हम पूरी तरह साकार करने में प्राण-पण से जुटे हैं। उसी प्रकार सेलबासा और दमन-दीव अलग थे, हमने उसको जोड़ दिया, दोनों तरफ आनंद है। अगर उनकी नई रचना की तो भी आनंद है, सम्मिलित किया तो भी आनंद है। क्योंकि हमारी प्रेरणा राष्ट्रनीति है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए हम निर्णय नहीं करते, और इसका असर जन सामान्य के मन पर होता है।
साथियो,
हम राजनीति में सर्वसम्मति को महत्व देते हैं। हम सहमति के प्रयास को करते-करते सर्वसम्मति तक जाना चाहते है। दीनदयाल जी कभी भी राजनीतिक अस्पृश्यता में विश्वास नहीं रखते थे। और आपको याद होगा जब मैं 2014 में आया मुझे सदन में बोलने का मौका मिला, तब मैंने सदन में कहा था और बड़ी जिम्मेवारी के साथ कहा था और बड़े ही CONVICTION के साथ कहा था। जिस CONVICTION को हम लोग जीते हैं, हमें संस्कार में मिले थे और मैंने पार्लियामेंट में कहा था “बहुमत से सरकार चलती है, बहुमत से सरकार तो चलती है, लेकिन देश तो सहमति से चलता है, सर्वसम्मति से चलता है।” और हम सिर्फ सरकार चलाने नहीं आए हैं, हम तो देश को आगे ले जाने आए हैं। हमारे राजनीतिक दल हो सकते हैं, हमारे विचार अलग हो सकते हैं, हम चुनाव में पूरी शक्ति से एक दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं, पर इसका मतलब ये नहीं कि हम अपने राजनीतिक विरोधी का सम्मान ना करें। आपने देखा होगा प्रणब मुखर्जी साहब, हमें भारत रत्न देने में गर्व हुआ। वे कोई हमारी पार्टी के नहीं थे, हमारे आलोचक थे। अभी असम में तरूण गोगाई जी, नागालैंड में एम.सी.जमीर जी, ये सारे हमारे राजनीतिक विचार से, हमारे राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं था। ना ही हमारी पार्टी का हिस्सा था, ना ही हमारे गठबंधन का हिस्सा थे। लेकिन राष्ट्र के प्रति उनके योगदान का सम्मान करना हमारा कर्तव्य, हमने पद्मश्री दिया, पद्मभूषण दिया। राजनीतिक अस्पृश्यता का विचार हमारा संस्कार नहीं है। आज देश भी इस विचार को, अस्पृश्यता के विचार को देश अस्वीकार कर चुका है। हां, ये बात जरूर है कि हमारी पार्टी में वंशवाद को नहीं कार्यकर्ता को महत्व दिया जाता है। इसीलिए आज देश हमसे जुड़ रहा है, और हमारे कार्यकर्ता भी हर देशवासी को अपना परिवार मानते हैं। कहीं कोई आपदा आती है तो हमारे करोड़ों कार्यकर्ता अपना सब कुछ छोड़कर वहाँ पहुँच जाते हैं। कोरोना जैसा इतना बड़ा संकट आया, दुनिया में हर कोई अपने जीवन के लिए डरा हुआ था, लेकिन हमारे करोड़ों कार्यकर्ताओं ने अपना दायित्व समझकर दिन-रात एक कर दिया, राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से आवाहन किया था कि सरकार के साथ साथ वो भी अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँ, हर कार्यकर्ता ने सेवा के इस संकल्प को राष्ट्रव्यापी मिशन बना दिया। और मैं पार्टी का आभारी हूं, राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का आभारी हूं, कि मुझे वीडियो कांन्फ्रेंस के माध्यम से देश भर के कार्यकर्ताओं के साथ इस कोरोना कालखंड में उन्होंने जो सेवाकार्य किए उसका वृत्त सुनने का मुझे अवसर मिला था। हमारे कार्यकर्ताओं ने कैसे-कैसे संकटों को, रिस्क को उठाया था और कितने जी-जान से उन्होंने गरीबों की सेवा की थी। किसी गरीब के घर में चूल्हा जले, कोई गरीब रात को भूखा ना सोए, इसके लिए भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ता गांव-गांव में कार्यकर्ता दिन-रात लगा रहा था।
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मैं देख रहा था जब हमारे श्रमिक बंधु, अफवाहों के चलते, भय के चलते और कुछ लोगों के राजनीतिक इरादों के चलते जब शहरों को छोड़कर के, रोजी-रोटी छोड़कर के गांव की तरफ चल पड़े थे, तब भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता राह पर खड़े रहकर के उनको जूते तक देने की चिंता करते थे, उनकी दवाई की चिंता करते थे, उनके पानी की चिंता करते थे। ये सारा वृत्त मैं सुन रहा था, मेरे मन को छू रहा था। और कार्यकर्ताओं के इस परिश्रम से मुझे भी काम करने की प्रेरणा मिलती थी। इस अभियान में किसी ने वोट बैंक की चिंता नहीं की, ये नहीं सोचा कि किसका वोट हमें मिलता किसका नहीं मिलता।
साथियो,
हमारी पार्टी, हमारी सरकार आज महात्मा गांधी के उन सिद्धांतों पर चल रही है जो हमें प्रेम और करुणा के पाठ पढ़ाते हैं। हमने बापू की 150वीं जन्मजयंती भी मनाई, और उनके आदर्शों को अपनी राजनीति में, अपने जीवन में भी उतारा। हमारी सरकार ने हमारे महापुरुषों को भी राजनैतिक समीकरण के चश्मे से कभी नहीं देखा। जिन स्वाधीनता सेनानियों की उपेक्षा होती रही, उन्हें हमने सम्मान दिया। ये हमारी ही सरकार है, जिसने नेताजी को वो सम्मान दिया जिसके वो हकदार थे, उनसे जुड़ी हुई फाइल्स को खोला। लालकिले पर झंडा फहराने का काम नेताजी की स्मृति में करना, शायद किसी और शासन में कोई सोच नहीं सकता था। अंडमान-निकोबार में नेताजी को याद करके उस द्वीपसमूह में एक का नाम नेताजी के नाम से कर देना, शायद किसी और सरकार में सोच नहीं सकता था। सरदार पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा बनवाकर हमने उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन किया। देश की एकता के मंत्र को आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा के रूप में उस जगह से चेतना मिलती रहे, उस रूप में उस परिसर को खड़ा किया गया है। और तो मैं अपने सभी सांसदों को चाहूंगा कि कभी ना कभी अपने कार्यकर्ताओं की टोली बनाकर के जरूर उस स्थान पर जाइए। कम से कम एक रात वहां बिताइए।
दूसरा, मैं अपने सभी सांसदों से आग्रह करूंगा, जब भी मौका मिले अपने कार्यकर्ता और अपने साथियों के साथ काशी जाकर के काशी के निकट में ही जहां पंडित दीनदयाल ने अपना अंतिम सांस लिया था, जहां एक स्मारक उत्तर प्रदेश सरकार ने बनाया है, देखने जैसा स्मारक है। दीनदयाल जी की भव्य प्रतिमा वहां रखी है, वो इतना बढ़िया परिसर बना है, हम लोगों के लिए बड़ा एजुकेटिव है। आप जरूर कभी, काशी से कोई ज्यादा दूर नहीं है, बायरोड आप चले जा सकते हैं और वहां एक बार हो आइए। हमारे लिए सारे तीर्थ क्षेत्र है और हम लोगों ने कभी ना कभी मौका लेकर के वहां जाना चाहिए। आप देखिये जिस जगह हम बैठे हैं। बाबा साहेब अंबेडकर की स्मृति में बना ये भवन, क्या कोई और सरकार बनाती क्या? ये हमारे संस्कार हैं जो हमें इस काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। बाबा साहब अंबेडकर को भी भारत रत्न तब मिला जब बीजेपी के समर्थन से सरकार बनी थी। इन कार्यों का भाजपा को, हम सभी को बहुत गर्व है।
साथियो,
अगले महीनों में पांच राज्यों में चुनाव भी आना वाला है। हम सभी कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के नेतृत्व में अपनी सकारात्मक सोच और परिश्रम के आधार पर जनता के बीच में जाना है। जनता इन छह सालों में हमारी नीतियों को भी देख चुकी है और सबसे बड़ी ताकत हमारी जो है, देश ने हमारी नीयत को भी देखा है, परखा है, और पुरस्कार भी दिया है। हमें उसी विश्वास को लेकर के आगे बढ़ना है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के नेतृत्व में हम जरूर सफलता पाएंगे।
साथियो,
हमने देखा है कि पिछले कुछ सालों में टेक्नोलॉजी का यूज करके हम बहुत बड़े स्केल पर लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने में सफल हुए हैं। गरीब, कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति टेक्नोलॉजी को यूज नहीं कर पाएगा, ऐसे सारे मिथक को तोड़कर आज देश रिकॉर्ड स्तर पर डिजिटल लेन-देन कर रहा है। आज देश में हर महीने चार लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का लेनदेन UPI के माध्यम से हो रहा है, मोबाइल फोन से वो खरीद-बिक्री कर रहा है, पैसे लेना-देना कर रहा है। डिजिटल लेन-देन करना अब लोगों के व्यवहार का हिस्सा बनता जा रहा है। टेक्नोलॉजी के बेहतर इस्तेमाल की वजह से अब गरीब-से-गरीब व्यक्ति अपना हक बिना किसी भ्रष्टाचार के पा रहा है। पहले कितनी ही योजनाओं का पैसा गरीब तक पहुंच ही नहीं पाता था। आज उसके हक का वही पैसा सीधे उसके बैंक खाते में ट्रांसफर किया जा रहा है। कितनी ही योजनाएं ऐसी थीं, जिसमें लाभार्थियों की सही पहचान नहीं हो पाती थी, जो अपात्र होते थे, वे इसका फायदा उठा लेते थे, लेकिन अब टेक्नोलॉजी की वजह से वे सारी पुरानी अवस्थाएं बदल गई हैं। करोड़ों ऐसे नाम जो सिर्फ कागजों में मिलते थे, जो किसी गरीब का हक उस तक पहुंचने नहीं देते थे, उन नामों को हटाया जा चुका है। आज 1,80,000 करोड़ रुपये से अधिक गलत हाथों में जाने से पैसा बच रहा है। टेक्नोलॉजी का बेहतर इस्तेमाल आपको अपने क्षेत्र के लोगों से कनेक्ट करने में बहुत मदद कर सकता है। इसके लिए एक अहम माध्यम नमो ऐप्प भी है। नमो ऐप्प पर जो टूल्स हैं, वो आपको जनता-जनार्दन से संवाद में सहायता कर सकते हैं। मैं चाहता हूं मेरे सभी सांसदों के लिए ये हथियार बहुत काम आएंगे, आप थोड़ा समय दीजिए उसके लिए, आप देखिए, उसमें इतनी चीजें हैं, जो आपके क्षेत्र में लोगों से संपर्क बनाने के लिए वो बहुत बड़ा साधन, बहुत बड़ा हथियार, बहुत बड़ा माध्यम आपके टेलिफोन में उपलब्ध है, आपके मोबाइल फोन में उपलब्ध है। आप उसका फायदा उठाइए। और उसकी अच्छी एक बड़ी ताकत ये है, ये टू-वे कम्यूनिकेशन का भी बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है। आप अपने कार्यकर्ताओं के साथ छोटी-मोटी मीटिंग आराम से कर सकते हैं उसके ऊपर। आप लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं। और लोग भी उतनी ही आसानी से अपनी बात आप तक पहुंचा सकते हैं।
साथियो,
आजादी के पचहत्तर वर्ष का अवसर आज हमारे एकदम सामने है। आत्मनिर्भर भारत को लेकर आज पूरे देश में एक चेतना जगी है। मैं आपसे आग्रह करूंगा, पार्टी की हर ईकाई, देश में भी, राज्यों में भी, जिलों में भी और पोलिंग बूथ में भी- हर ईकाई आजादी के 75 साल निमित्त कम से कम 75 ऐसे कोई न कोई काम हम करेंगे। कर सकते हैं क्या। कम से कम 75 काम के साथ हम जुड़ेंगे। भले एक साल लगे, डेढ़ साल लगे, लेकिन हम करेंगे। हम उन 75 कामों को आइडेंटिफाई करें। आजादी के 75 साल के निमित्त इस काम को अवश्य करें और उसका हिसाब-किताब रखें। देश के सामान्य मानवी से जुड़ने का हम प्रयास करें। आजादी के 75 साल सिर्फ रंगारंग कार्यक्रर्म से समाप्त नहीं होना चाहिए। जन मन से साथ जुड़ने का एक बहुत बड़ा अवसर होना चाहिए, नई पीढ़ी को राष्ट्र के लिए प्रेरणा देने की एक ताकत के रूप में परिवर्तित होना चाहिए। और इसलिए, भारतीय जनता पार्टी के हर कार्यकर्ता, जिसके लिए राष्ट्रनीति ही प्रेरणा है, इसके लिए आजादी का 75 का वर्ष ये भी अपने आप में बहुत बड़ी प्रेरणा है।
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साथियो,
वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत, मैं सभी मेरे एमपी साथियों से आग्रह करता हूं, मेरे सांसद साथियों से आग्रह करता हूं, मैं भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं से आग्रह करता हूं, जो राह हमें दीनदयाल जी ने दिखाई थी, उस राह पर चलने के लिए हम कहीं तो कुछ तो सोंचें। एक काम आप कर सकते हैं क्या। कठिन है, लेकिन करना है। मैं कहूंगा तो आपको लगेगा का ये तो बहुत सरल है, लेकिन फिर भी मैं कहता हूं बहुत कठिन है। परिवार के आपके अपने सदस्य सब बैठकरके, उसमें भी आपके नौजवान बेटे-बेटी, भाई-बहन जो भी हों, उनके साथ बैठें। एक काम कीजिए। एक अच्छी सी डायरी लेकर लिखिए, सुबह उठने से रात को सोने तक जिन-जिन चीजों का उपयोग करते हैं उसमें से कितनी हिन्दुस्तान की हैं और कितनी बाहर की हैं, जरा सूची बनाइए। मैं बिलकुल कहता हूं, आप जब खुद सूची बनाएंगे तो आप चौंक जाएंगे, आप डर जाएंगे। हमें पता ही नहीं है, बिना कारण, जो चीज हमारे देश में उपलब्ध है, जो चीज हमारे देश के लोग बनाते हैं, मेहनतकश लोग बनाते हैं, वे भी चीजें जाने-अनजाने में हमारे जीवन में घुस गई हैं। अगर देश की मिट्टी की सुगंध जिसमें न हो, देश के मजदूर का पसीना जिसमें न हो, ऐसी चीजों से मुक्ति पानी चाहिए कि नहीं पानी चाहिए, ये जिम्मा हमें लेना चाहिए कि नहीं लेना चाहिए। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि भाई आपके पास कोई घड़ी है, कोई चश्मा है, तो फेंक दो। मैं इस बात का, विचार का पक्षधर नहीं हूं। लेकिन सोचिए तो, बिना कारण चीजें घुस गई हैं। अस्सी परसेंट तो चीजें वो होंगी, जब लिखोगे तो लगेगा अच्छा मैं ये भी चीज बाहर की उपयोग कर रहा हूं, अरे-अरे कैसी गलती कर दी। आपका भी मन ऊब जाएगा। और जब हम अपने से शुरू करेंगे तो कन्वीक्शन के साथ हम औरों को भी कह पाएंगे। और इसमें गर्व होगा। और मैंने देखा है जब मैं वोकल फॉर लोकल की बात कर रहा हूं तो ज्यादातर लोग क्या करते हैं, देखिए ये दीया लोकल है। नहीं भाई, दीवाली के दीये से बात पूरी नहीं हो जाती। वो तो हमारे मन के अंधेरे को दूर करने के लिए छोटी सी शुरुआत है। हमें जरा व्यापक रूप से देखना चाहिए।
साथियो,
दीनदयाल जी ने हमें जो संस्कार दिए हैं। जिस समाज के प्रति हमारी जो संवेदना होती है, उस संवेदना का सामर्थ्य कितना होता है। अब देखिए, सरकारें इतनी आईं, कुछ काम हम ऐसे कर रहे हैं, जिसमें आपको वो बात नजर आएगी। जैसे मैंने अभी कई चीजें बताईं, शौचालय का सोचने का विचार एकात्म मानव दर्शन के कारण आता है, सबका साथ सबका विकास के मंत्र से आता है। आपने देखा होगा कि सरकार ने एक काम किया है, हमारे देश में भाषाएं तो अलग-अलग हैं, और हम अलग-अलग भाषाओं के कारण अपनी-अपनी दुनिया में जीते भी हैं। ये हमारी विविधिता अपनी ताकत भी है। लेकिन क्या कारण है कि हमार देश में ये जो हमारे मूक-बधिर भाई-बहन होते हैं, हमारे दिव्यांग होते हैं, उनके लिए भी आजादी के इतने सालों के बाद हम कॉमन लैंगवेज नहीं बना पाए। तमिलनाडु के एक मूक-बधिर जिस लैंग्वेज को जानता था, दिल्ली का बच्चा वो नहीं जानता था, जो बंगाल का जानता था, वो गुजरात का नहीं जानता था, क्यों। हरेक ने अपने-अपने तरीके से शाइनिंग डेवलप की थी, इस सरकार की संवेदनशीलता देखिए कि हमने मेहनत करके अब पूरे देश में एक ही प्रकार की शाइनिंग जिसे वो समझ पाता है, ये शिक्षा शुरू की। इसमे देश की एकता का भी मुद्दा है, सरलता का भी मुद्दा है। यों तो लगने वाली चीज बहुत छोटी है, लेकिन देश में छोटे-छोटे लोगों की चिंता करने से ही देश बड़ा बनता है। कोई चीज छोटी नहीं होती, कोई काम छोटा नहीं होता, कोई व्यक्ति छोटा नहीं होता है। जिसकी आवश्यकता हमें छोटी लगती हो, लेकिन उसकी जिंदगी में वो बहुत बड़ी होती है। ये जो है एकात्म मानव दर्शन का एक रूप है। और इसलिए हमलोगों का काम है पंडित दीनदयाल जी के जीवन को देखें- सादगी, परिश्रम, ये बातें हमें बहुत उभर करके सामने आती हैं। मुझे पंडित दीनदयाल जी को देखने का सौभाग्य नहीं मिला, मुझे उन्हें सुनने का सौभाग्य नहीं मिला। लेकिन जितना सुना है, जितना पढ़ा है। कहते हैं कि जब वो भारत में यात्रा करते थे, संगठन के लिए काम करते थे। पार्टी के पास आरक्षण के पैसे नहीं होते थे ट्रेन में। तो ट्रेन में जो टॉयलेट होता है उसके बगल में बिस्तर रखकर बैठे रहते थे। चौबीस-चौबीस घंटे यात्रा करके किसी कार्यकर्ता के यहां पहुंचते थे। ये परिश्रम कर के इस पार्टी को बनी है जी। अनेक लोगों ने उस प्रकार का जीवन जीया है। हम लोग तो भाग्यशाली हैं कि आज हमें, हमारे नसीब में यह सब आया है। लेकिन तीन-तीन, चार-चार पीढ़ियों के अखंड, एकनिष्ठ
पुरुषार्थ का परिणाम है कि आज एक वट वृक्ष बना है। और यह साधना कम नहीं है जी, आप अपने इलाकों में देखेगो, ऐसे कई परिवार मिलेंगे, जो तीन-तीन, चार-चार पीढ़ी लगी हैं और उन्होंने कभी कुछ पाया नहीं है, लिया भी नहीं है, मांगा भी नहीं है। उनके सम्मान की चिंता हम लोगों का दायित्व है। हम एक परिवार हैं, हमारे संस्कार हैं।
मैं इस कोरोना काल में, क्योंकि पहले मैं संगठन का काम करता था, मैं देशभर में सभी लोगों से ज्यादातर परिचित रहा, बीच में ये गुजरात मुख्यमंत्री बन गया तो थोड़ा मेरा संपर्क कम भी हो गया। लोग बदल भी गए। लेकिन मैंने इस कोरोना काल में सुबह हर दिन 25-50 लोगों से फोन पर बात करने का एक कार्यक्रम बनाया। और जो भी बड़ी आयु के हैं 70-75 के आयु के आसपास के पुराने लोग, सबको फोन करके उनके आशीर्वाद मांगता था। आप कल्पना कर सकते हैं, आपके क्षेत्र में भी कई लोग होंगे जिनको मेरा फोन गया होगा। वे इतना आशीर्वाद देते थे। कोई शिकायत नहीं करते थे। फोन आया तो फिर ज्यादातर कहते थे कि अरे मोदी जी इतना काम है आपके पास, आप काहे को मेरी इतनी चिंता करते हो, अरे हम कर लेंगे। यह एक परिवार भाव यह अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत होता है। हमने इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। आप देखिए दीनदयाल जी के पास क्या था, कुछ नहीं था जी। वे अनिकेत थे, वे अकिंचन थे, न घर था, न धन था, लेकिन हमारे दिलों में आज भी हैं।
साथियो, ऐसी प्रेरक व्यक्तित्व, ऐसे प्रेरक विचार, ऐसी परंपरा की विरासत हमारे पास जब हो, तो हमें राष्ट्रसेवा के हमारे संकल्पों से कोई विचलित नहीं कर सकता। कोई हमें विमुख नहीं कर सकता।
साथियो,
एक राष्ट्र जब किसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ता है तो उस लक्ष्य के प्राप्ति की जो प्रक्रिया है उसमें व्यक्ति निर्माण का कार्य होता है। उस लक्ष्य के प्रति उत्साहित, समर्पित-संकल्पित लोग देश के लिये तो मूल्यवान होते ही है वो किसी भी संगठन के लिए भी उतने ही मूल्यवान होते हैं। इसलिए एक संगठन के रूप में हमारे सामने अवसर है की इस प्रक्रिया में हमें ऐसे कई नए लोग ख़ासकर युवा साथी मिलेंगे जिनके स्वभाव में देश के लिए कुछ करना, देशवासियों के प्रति प्रेम - यह सब सहज रूप से होगा। अलग-अलग क्षेत्रों से ऐसे लोगों को भाजपा से जोड़ना यह भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। हमें हमारे परिवार का विस्तार करना चाहिए। जितनी हिंदुस्तान की सीमाएं हैं, उतनी ही भाजपा की सीमाएं भी होनी चाहिए। हमारे संगठन के Quantitative और Qualitative विस्तार का भी यह अवसर है। इसलिए मैं चाहूंगा में हमें इसमें कहीं कोई कमी नहीं करनी चाहिए। एक और बात मैं कहना चाहूँगा। हमें अपने विचारों को व्यापक बनाने का प्रयास भी लगातार करते रहना चाहिए। इसके लिए दीनदयाल जी हमेशा अध्ययन पर विशेष जोर देते थे। आप सभी अध्ययन के लिए जरूर समय निकालें। आप संसद के संसाधनों का प्रयोग करें, और भी जैसी रुचि हो उस विषयों से भी जुड़ें। दीनदयाल जी को पढ़ने समझने के लिए भी आप समय निकालें। इसी तरह, आप बाबा साहब अंबेडकर को, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को, नेता जी सुभाष चंद्र बोस को, इन सबको जरूर पढ़ें। इससे आपके राजनैतिक जीवन में एक नई दिशा मिलेगी, आप एक अलग छाप छोड़ पाएंगे।
मुझे विश्वास है कि हम सब दीनदयाल जी के इन आदर्शों को लेकर के आगे बढ़ेंगे। दीनदयाल जी का अंत्योदय का जो सपना था, वो 21वीं सदी में एक नए भारत के निर्माण के साथ पूरा होगा। मेरे साथियो, देश की हमसे बहुत अपेक्षाएं हैं। उन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए हमें अपनी तरफ नहीं देखना है, आखिरी छोर पर जो इंसान बैठा है, जो परिवार बैठा है उसकी तरफ देखना है। अगर हम उसको मन में रखकर काम करेंगे तो न कभी थकान आएगी, न विराम का मन करेगा, न कोई मोह में उस दिशा में खींच कर ले जाएगा। हम विरक्त भाव से, तन-मन-धन से उसकी सेवा का आनंद ले पाएंगे। इसी एक भाव के साथ जब हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो आखिर में एक पंक्ति दोहरा कर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि आप सबको अनेक-अनेक शुभकामना देते हुए मैं ही कहना चाहूंगा-
राष्ट्रभक्ति ले हृदय में हो खड़ा यदि देश सारा,
संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा।
बहुत-बहुत धन्यवाद।