Always recall what your parents did for you. They sacrificed their own happiness for yours: PM
Let's pledge that we will do something for poor: PM Modi
Our nation is scaling new heights of progress and with such a youthful population we can achieve so much: PM
Dream to do something and not to become someone: PM Modi
This is a century of knowledge & whenever there has been an era of knowledge India has shown the way: PM

उपस्‍थि‍त महानुभाव और आज के केन्‍द्र बि‍न्‍दु, सभी युवा साथि‍यों,

आपके जीवन का यह बड़ा महत्‍वपूर्ण अवसर है। एक प्रकार से KG से प्रारंभ करे तो 20 साल-22 साल-25 साल, एक लगातार तपस्‍या का एक महत्‍वपूर्ण पड़ाव है और मैं नहीं मानता हूं की आप भी यह मानते होंगे कि‍ यह मंजि‍ल पूरी हो गई है। अब तक आपको कि‍सी ने यहां पहुंचाया है। अब आपको अपने आपको कहीं पहुंचाना है। अब तक कोई ऊंगली पकड़कर के यहां लाया है, अब आप अपने मकसद को लेकर के खुद को कसौटी पर कसते हुए, मंजि‍ल को पाने के लि‍ए, अनेक चुनौति‍यों को झेलते हुए आगे बढ़ना है। लेकि‍न वो तब संभव होता है कि‍ आप यहां से क्‍या लेकर जाते हैं। आपके पास वो कौन-सा खजाना है जो आपकी जि‍न्‍दगी बनाने के लि‍ए काम आने वाला है। जि‍सने यह खजाना भरपूर भर लि‍या है, उसको जीवन भर, हर पल, हर मोड़ पर, कहीं न कहीं यह काम आने वाला है। लेकि‍न जि‍सने यहां तक आने के लि‍ए सोचा था।

ज्‍यादातर अगर युवकों को पूछते हैं कि‍ क्‍या सोचा है आगे? तो कहता है, पहले एक बार पढ़ाई कर लूं। जो इतनी ही सोच रखता है, उसके लि‍ए कल के बाद एक बहुत बड़ा question mark जि‍न्‍दगी में शुरू हो जाता है कि‍ यह तो हो गया, अब क्‍या? लेकि‍न जि‍से पता है कि‍ इसके बाद क्‍या। उसे कि‍सी के सहारे की जरूरत नहीं लगती है। मॉ-बाप जब संतान को जन्‍म देते हैं तो उनकी खुशी का पार नहीं होता है। लेकि‍न जब संतान जीवन में सि‍द्धि‍ प्राप्‍त करता है तो मॉ-बाप अनंत आनंद में समाहि‍त हो जाते हैं। संतान को जन्‍म देने से जो खुशी है, उससे संतान की सि‍द्धि‍ हजारों गुना ज्‍यादा खुशी उन मॉ-बाप को देती है।

आप कल्‍पना कर सकते हैं कि‍ आपके जन्‍म से ज्‍यादा आपके जीवन की खुशी आपके मॉ-बाप को देती है, तब आपकी जि‍म्‍मेवारी कि‍तनी बढ़ जाती हैं। आपके मॉ-बाप ने कि‍न-कि‍न सपनों को लेकर के आपके जीवन को बनाने के लि‍ए क्‍या कुछ नहीं झेला होगा? कभी आपको कुछ खरीदना होगा, मनीऑर्डर की जरूरत होगी, बैंक में money transfer करने की इच्‍छा हो, अगर दो दि‍न late भी हो गए होंगे तो आप परेशान हो गए होंगे कि‍ पता नहीं मम्‍मी-पापा क्‍या कर रहे हैं? और मॉ-बाप ने भी सोचा होगा, अरे! बच्‍चे को दो दि‍न पहले जो पहुंचना था.. देर हो गई। अगली बार कुछ सोचेंगे, कुछ खर्च में कमी करेंगे, पैसे बचाकर रखेंगे ताकि‍ बच्‍चे को पहुंच जाए। जीवन के हर पल को अगर हम देखते जाएंगे तो पता चलेगा कि‍ क्‍या कुछ योगदान होगा, तब हम जि‍न्‍दगी में कुछ पा सकते हैं, कुछ बन सकते हैं। लेकि‍न ज्‍यादातर हम इन चीजों को भूल जाते हैं। जो भूलना चाहि‍ए वो नहीं भूल पाते हैं, जो नहीं भूलना चाहिए उसे याद रखना मुश्‍कि‍ल हो जाता है।

आप में से बहुत होंगे जि‍न्‍होंने बचपन में अपने मॉ-बाप से सुना होगा कि‍ इसको तो इंजीनि‍यर बनाना है, इसको तो डॉक्‍टर बनाना है, इसको तो क्रि‍केटर बनाना है। कुछ न कुछ मॉ-बाप ने सपने देखे होंगे और धीरे-धीरे वो आपके अंदर inject हो गए होंगे। दसवीं कक्षा में बड़ी मुश्‍कि‍ल से नि‍कले होंगे लेकि‍न वो सपने सोने नहीं देते होंगे क्‍योंकि‍ मॉ-बाप ने कहा था, inject कि‍या हुआ था और कुछ नहीं हुआ तो घूमते-फि‍रते यहां पहुंच गए और जब यहां पहुंच गए तो इस बात का आनंद नहीं है कि‍ इतनी बढ़ि‍या university में आए हैं, बढ़ि‍या शि‍क्षा का माहौल मि‍ला है। लेकि‍न परेशानी एक बात की रहती है कि‍ जाना तो वहां था, पहुंचा यहां। जि‍सके दि‍ल-दि‍माग में, जाना तो वहां था लेकि‍न पहुंच नहीं पाया, इसका बोझ रहता है, वो जि‍न्‍दगी कभी जी नहीं सकता है और इसलि‍ए मेरा आपसे आग्रह है, मेरा आपसे अुनरोध है। ठीक है, बचपन में, नासमझी में बहुत कुछ सोचा होगा, नहीं बन पाए, उसको भूल जाइए। जो बन गए है, उस वि‍रासत को लेकर के जीने का हौसला बुलंद कीजि‍ए, अपने आप जि‍न्‍दगी बन जाएगी।

कुंठा, असफलता, सपनों में आईं रूकावटें, ये बोझ नहीं बननी चाहि‍ए, वो शि‍क्षा का कारण बनना चाहि‍ए। उससे कुछ सीखना होता है और अगर उसको सीख लेते हैं तो जि‍न्‍दगी में और बड़ी चुनौति‍यों को स्‍वीकार करने का सामर्थ्‍य आ जाता है। पहले के जमाने में कहा जाता था कि‍ भई इस tunnel में चल पडा मैं, तो आखि‍री मंजि‍ल उस छोर पर जहां से tunnel पूरी होगी, वहीं नि‍कलेगी। अब वक्‍त बदल चुका है। इसके बाद भी जरूरी नहीं है कि‍ जि‍स रास्‍ते पर आप चल पड़े हैं वहीं पर आखि‍री छोर होगा, वहीं गुजारा करना पड़ेगा। अगर आप में हौसला है तो jump लगाकर के कहीं और भी चले जा सकते हैं, कोई और नए क्षि‍ति‍ज को पार कर सकते हैं। ये बुलन्‍दी होनी चाहि‍ए, ये सपने होने चाहि‍ए।

बहुत सारे वि‍द्यार्थी इस देश में, university में पढ़ते होंगे। क्‍या आप भी उन करोड़ों वि‍द्यार्थि‍यों में से एक है, क्‍या आप भी उन सैंकड़ों university में से एक university के student है? मैं समझता हूं सोचने का तरीका बदलि‍ए। आप उन सैंकड़ों university में से एक university के student नहीं है। आप उन करोड़ों वि‍द्यार्थि‍यों की तरह एक वि‍द्यार्थी नहीं है, आप कुछ और है। और मैं जब और है कहता हूं तो उसका तात्‍पर्य मेरा यह है कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान में कई university चलती होंगी जो taxpayer के पैसों से, सरकारी पैसों से, आपके मॉ-बाप की फीस से चलती होगी। यही एक university अपवाद है, जि‍समें बाकी सब होने के उपरांत माता वैष्‍णो देवी के चरणों में हैं। जि‍न गरीब लोगों ने पैसे चढ़ाए हैं, उसके पास पैसे नहीं थे घोड़े से पहुंचने के लि‍ए, उसकी उम्र 60-65-70 हुई होगी, वो अपने गांव से बड़ी मुश्‍कि‍ल से without reservation चला होगा, केरल से-कन्‍याकुमारी से, वो वैष्‍णो देवी तक आया होगा। मॉं को चढ़ावा चढ़ाना है इसलि‍ए रास्‍ते में एक वक्‍त का खाना छोड़ दि‍या होगा कि‍ मॉं को चढ़ावा चढ़ाना है। ऐसे गरीब लोगों ने और हि‍न्‍दुस्‍तान के हर कोने के गरीब लोगों ने, कि‍सी एक कोने के नहीं हर कोने के गरीब लोगों ने इस माता वैष्‍णो देवी के चरणों में कुछ न कुछ दि‍या होगा। दि‍या होगा तब तो उसको लगा होगा कि‍ शायद कुछ पुण्‍य कमा लूं लेकि‍न जो दि‍या है उसका परि‍णाम है कि‍ इतना बड़ा पुण्‍य कमाने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है। इसलि‍ए आपकी शि‍क्षा-दीक्षा में इस दीवारों में, इस इमारत में, यहां के माहौल में उन गरीबों के सपनों का वास है। और इसलि‍ए औरों से हम कुछ अलग है और universities से हम कुछ अलग है और शायद ही दुनि‍या में करोड़ों-करोड़ों गरीबों के दो रुपए-पाँच रुपए से कोई university चलती हो, यह अपने आप में एक अजूबा है और इसलि‍ए इसके प्रति‍ हमारा भाव उन कोटि‍-कोटि‍ गरीबों के प्रति‍ अपनेपन के भाव में परि‍वर्ति‍त होना चाहि‍ए। मुझे कोई गरीब दि‍खाई दे, मैं जीवन की कि‍सी भी ऊँचाई पर पहुंचा क्‍यों न हो, मुझे उस पल दि‍खना चाहि‍ए कि‍ इस गरीब के लि‍ए कुछ करूंगा क्‍योंकि‍ कोई गरीब था जि‍सने एक बार खाना छोड़कर के मॉं के चरणों में एक रुपया दि‍या था, जो मेरी पढ़ाई में काम आया था। और इसलि‍ए यहां से हम जा रहे हैं तब आपको इस बात की भी खुशी होगी कि‍ बस ! बहुत हो गया, चलो यार कुछ पल ऐसे ही गुजारते हैं। ऐसा बहुत कुछ होता है। लेकि‍न जि‍न्‍दगी की कसौटी तब शुरू होती है जब अपने आप के बलबूते पर दि‍शा तय करनी होती है, फैसले लेने होते हैं।

अभी तो इस campus में कुछ भी करते होंगे, कोई तो होगा जो आपको ऊंगली पकड़कर के चलाता होगा। आपका जो senior होता होगा वो भी कहता है नहीं, नहीं ऐसा मत करो यार, तुम इस पर ख्‍याल रखो। अच्‍छा हो जाएगा। अरे campus के बाहर कोई चाय बेचने वाला होगा, वो भी कहता है भाई अब रात देर हो गई, बहुत ज्‍यादा मत पढ़ो, जरा सो जाओ, सुबह तुम्‍हारा exam है। कि‍सी peon ने भी आपको कहा होगा कि‍ नहीं-नहीं भाई ऐसा नहीं करते, अपनी university है, ऐसा क्‍यों करते हो? कि‍तने-कि‍तने लोगों ने आपको चलाया होगा।

और उसमें पहली बार दीक्षांत समारोह की कल्पना को साकार किया गया है। भारत में ये परंपरा हजारों वर्ष से संस्थागत बनी हुई है और एक प्रकार से दीक्षांत समारोह ये शिक्षा समारोह नहीं होता है और इसलिए मुझे आपको शिक्षा देने का हक नहीं बनता है। ये दीक्षांत समारोह है जो शिक्षा हमने पाई है, जो अर्जित किया है उसको समाज, जीवन को दीक्षा के लिए समर्पित करने के लिए लिए हमें कदम उठाने हैं, समाज के चरणों में रखने के लिए कदम उठाने हैं। ये देश विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। 800 Million Youth का देश जो 35 से कम Age Group का है, वो दुनिया में क्या-कुछ नहीं कर सकता है। हर नौजवान का सपना हिंदुस्तान की तरक्की का कारण बन सकता है। हम वो लोग हैं जिन्होंने उपनिषद् से लेकर के उपग्रह तक की यात्रा की है। उपनिषद् से उपग्रह तक की यात्रा करने वाले हम लोग हैं। हम वो लोग हैं जिन्होंने गुरुकुल से विश्वकुल तक अपने आप का विस्तार किया है, हम वो लोग हैं और भारत का नौजवान, जब Mars मिशन पर दुनिया कितने ही सालों से प्रयास कर रही थी।

हर किसी को कई बार Failure मिला, कई बार Failure मिला लेकिन ये हिंदुस्तान का नौजवान था, हिंदुस्तान की Talent थी कि पहले ही प्रयास में वो दुनिया में पहला देश बना, पहले ही प्रयास में Mars मिशन में सफल हुआ और हम लोग, हम गरीब देश के लोग हैं तो हम हमारी, सपने कितने ऊंचे नहीं होते, गरीबी में से रास्ता निकालना भी हम लोगों को आता है। Mars मिशन का खर्चा कितना हुआ, यहां से कटरा जाना है तो ऑटो रिक्शा में शायद 1 किलोमीटर का 10 रुपया लगता होगा लेकिन ये देश के वैज्ञानिकों की ताकत है, इस देश के Talent की ताकत देखिए कि Mars मिशन की यात्रा का खर्च 1 किलोमीटर का 7 रुपए से भी कम आया। इतना ही नहीं हॉलीवुड की जो फिल्में बनती हैं उससे कम खर्चे में मेरे हिंदुस्तान का नौजवान Mars मिशन पर सफलतापूर्वक अपने कदम रखा सकता है। जिस देश के पास ये Talent हो, सामर्थ्य हो उस देश को सपने देखने का हक भी होता है, उस देश को विश्व को कुछ देने का मकसद भी होता है और उसी की पूर्ति के लिए अपने आप को सामर्थ्य बनाने का कर्तव्य भी होता है, उस कर्तव्य के पालन के लिए, हम आज जीवन को देश के लिए क्या करेंगे। उसे पाने का अगर प्रयास करते हैं तो आप देखिए जीवन का संतोष कई गुना बढ़ जाएगा। आप यहां से कई सपने लेकर के जा रहे हैं और खुद को कुछ बनाने के सपने गलते हैं, ऐसा मैं नहीं मानता हूं लेकिन कभी-कभार बनने के सपने निराशा के कारण भी बन जाते हैं। जो बनना चाहो और नहीं बन पाए तो जैसा मैंने प्रारंभ में कहा, वो बोझ बन जाता है लेकिन अगर कुछ करने का सपना होता है तो हर पल करने के बाद एक समाधान होता है, एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है, एक नई गति मिलती है, एक नया लक्ष्य मिलता है, नया सिद्धांत, आदर्श मिल जाता है और जीवन को कसौटी पर कसने का एक इरादा बन जाता है और वही तो जिंदगी को आगे बढ़ाता है और इसलिए आज जब माता वैष्णो देवी के चरणों से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करके आप जा रहे हैं और माँ भी खुश होती होगी कि लड़कियों ने कमाल कर दिया है, हो सकता है कुछ दिनों के बाद आंदोलन चले पुरुषों के आरक्षण का, वो भी कोई मांग लेकर के निकल पड़े कि इतने Gold Medal तो हमारे लिए रिजर्व होने चाहिए।

कल ही भारत की एक बेटी दीपिका ने हिंदुस्तान का नाम रोशन कर दिया। रियो के लिए उसका Selection हुआ और पहली बार एक बेटी जिमनास्टिक के लिए जा रही है। यही चीजें हैं जो देश में ताकत देती हैं। घटना एक इस कोने में और कहां त्रिपुरा, छोटा सा प्रदेश, कहां संसाधन होंगे, क्या संसाधन होने से वो रियो पहुंच रही है.... नहीं, संकल्प के कारण पहुंच रही है। भारत का झंडा ऊंचा करने का इरादा है इसलिए पहुंच रही है और इसलिए व्यवस्थाएं, सुविधाएं यही सब कुछ होती है जिंदगी में, ऐसा नहीं है। जीवन में जो लोग सफल हुए हैं, उनका इतिहास कहता है जिस अब्दुल कलाम जी ने एस University का प्रारंभ किया था, कभी अखबार बेचते थे और मिसाइल मैन के नाम से जाने गए। जरूरी नहीं है जिंदगी बनाने के लिए सुख, सुविधा, अवसर, व्यवस्था हों तभी होता है। हौंसला बुलंद होना चाहिए अपने आप चीजें बन जाने लग जाती हैं और रास्ते भी निकल आते हैं। वो दशरथ मांझी की घटना कौन नहीं जानता है। बिहार का एक गरीब किसान, वो पढ़ा-लिखा नहीं था लेकिन उसका मन कर गया एक रास्ता बनाने का और उसने रास्ता बना दिया और उसने इतिहास बना दिया। वो सिर्फ रास्ता नहीं था मानवीय पुरुषार्थ का एक इतिहास उसने लिख दिया है और इसलिए जीवन में उसी चीजों का जो हिसाब लगाता रहता था, यार ऐसा होता तो अच्छा होता, ऐसा होता तो अच्छा होता तो शायद जिनके पास सब सुविधाएं हैं, उनको कुछ भी बनने में दिक्कत नहीं आती लेकिन देखा होगा आपने, जिनके पास सब कुछ है उनको विरासत में मिल गया, मिल गया बाकी ऐसे बहुत लोग होते हैं जिनके पास कुछ नहीं होता है वो अपना नई दुनिया खड़े कर देते हैं इसलिए अगर सबसे बड़ी संपत्ति है और 21वीं सदी जिसकी मोहताज है और वो है ज्ञानशक्ति और पूरे विश्व को 21वीं सदी में वो ही नेतृत्व करने वाला है जिसके पास ज्ञानशक्ति है और 21वीं सदी वो ज्ञान का युग है और भारत का इतिहास कहता है जब-जब मानव जात ज्ञान युग में प्रवेश किया है, भारत ने विश्व का नेतृत्व किया है। 21वीं सदी ज्ञान युग की सदी है।

भारत के पास विश्व का नेतृत्व करने के लिए ज्ञान का संकुल है और आप लोग हैं, जो उस ज्ञान के वाहक हैं, आप वो हैं जो ज्ञान को ऊर्जा के रूप में लेकर के राष्ट्र के लिए कुछ करने का सामर्थ्य रखते हैं और इसलिए इस दीक्षांत समारोह से अपने जीवन के लिए सोचते-सोचते, जिनके कारण में ये जीवन में कुछ पाया है, उनके लिए भी मैं कुछ सोचूंगा, कुछ करूंगा और जीवन का एक संतोष उसी से मिलेगा और जीवन में संतोष से बड़ी ताकत नहीं होती है। संतोष अपने आप में एक अंतर ऊर्जा है, उस अंतर ऊर्जा को हमें अपने आप में हमेशा संजोए रखना होता है। मुझे महबूबा जी की एक बात बहुत अच्छी लगी कि यहां के लोगों के लिए, हम वो लोग हैं जिनकी बातें हम दुनिया भर में पहुंचाने वाले हैं कि कितने प्यारे लोग हैं, कितनी महान परंपरा के लोग हैं, कितने उदार तरीके के लोग हैं, कैसे प्रकृति के साथ उन्होंने जीना सीखा दिया और एक एबंसेडर के रूप में मैं जम्मू-कश्मीर की इस महान धरती की बात, भारत के मुकुट मणि की बात मैं जहां जाऊं, कैसे पहुंचाऊं, इस University के माध्यम से मैं कर सकता हूं, उसके एक विद्यार्थी के नाम कर सकता हूं और यही ताकत लेकर के हम जाएं, हिंदुस्तान के अनेक राज्य यहां हैं। एक प्रकार ये University, इस सभागृह में मिनी हिंदुस्तान नजर आ रहा है। भारत के कई कोने होंगे जिसको पता नहीं होगा कि जम्मू-कश्मीर की धरती पर भी एक मिनी हिंदस्तान अपने सपनों को संजो रहा है तब हर भारतीय के दिलों में कितना आनंद होगा कि जम्मू-कश्मीर की धरती पर भारत के भविष्य के लिए सपने संजोने वाले नौजवान मेरे सामने बैठे हैं, उनके लिए कितना आनंद होगा।

इस आनंद धारा को लेकर के हम चलें और सबका साथ, सबका विकास। साथ सबका चाहिए, विकास सबका होना चाहिए। ये संकल्प ही राष्ट्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है और हम राष्ट्र को एक ऊंचाई पर ले जाने वाले एक व्यक्ति के रूप में, एक ऊर्जा के रूप में हम अपने जीवन में कुछ काम आएं, उस सपनों को लेकर के चलें। मेरी इन सभी नौजवानों को हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं, विशेषकर के जिन बेटियों ने आज पराक्रम दिखाया है उनको मैं लाख-लाख बधाईयां देता हूं, उनके मां-बाप को बधाई देता हूं। उन्होंने अपने बेटियों को पढ़ने के लिए यहां तक भेजा है। बेटी जब पढ़ती है तो बेटी का तो योगदान है ही है लेकिन उस माँ का ज्यादा योगदान है, जो बेटी को पढ़ने के लिए खुद कष्ट उठाती है। वरना मां को तो करता होगा अच्छा होगा कि वो घर में है ताकि छोटे भाई के साथ थोड़ा उसको संभाल ले, अच्छा है घर में रहे ताकि मेहमान आए तो बर्तन साफ के काम आ जाए लेकिन वो मां होती है, जिसको अपने सुख के लिए नहीं बच्चों के सुख के लिए जीने का मन करता है तब मां बेटी को पढ़ने के लिए बाहर भेजती है। मैं उन माता को भी प्रणाम करता हूं, जिन माता ने  इन बेटियों को पढाने के लिए आगे आई है, उन सबको मैं प्रणाम करते हुए आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। धन्यवाद।

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Prime Minister visited the Indian Arrival monument at Monument Gardens in Georgetown today. He was accompanied by PM of Guyana Brig (Retd) Mark Phillips. An ensemble of Tassa Drums welcomed Prime Minister as he paid floral tribute at the Arrival Monument. Paying homage at the monument, Prime Minister recalled the struggle and sacrifices of Indian diaspora and their pivotal contribution to preserving and promoting Indian culture and tradition in Guyana. He planted a Bel Patra sapling at the monument.

The monument is a replica of the first ship which arrived in Guyana in 1838 bringing indentured migrants from India. It was gifted by India to the people of Guyana in 1991.