मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि बहुत ही कम अवधि में मुझे दोबारा नेपाल की भूमि के दर्शन करने का सौभाग्य मिला है। इन दिनों विश्व के कई देशों में मेरा जाना हुआ है। कई वैश्विक स्तर की मीटिंगों में जाना हुआ है, लेकिन नेपाल के साथ मेरी जो स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं, नेपाल ने मुझे जो प्यार दिया है, अपनापन दिया है, वो मैं कभी भूल नहीं सकता हूं। इसके लिए मैं नेपाल का बहुत बहुत आभारी हूं।

आज ये Trauma Center का लोकार्पण हो रहा है। एक प्रकार से ये जीवन रक्षा का अभियान है। First Golden Hour, आकस्मिक परिस्थियों में इंसान की जिदंगी बचाने का बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। उस First Golden Hour में अगर उपयुक्त सुविधा मिल जाए, proper treatment का सहारा मिल जाए, तो इंसान की जिंदगी बचाई जा सकती है। नेपाल और भारत की मैत्री का ये उत्तम नजराना है, जो एक प्रकार से जीवन की सौगात दे रहा है। जो नजराना जीवन की सौगात देता है, वो हमें जड़ों से जोड़ता है, हमें जीवन से जोड़ता है, हमें अरमान से जोड़ता है और हमें अरमान पूरे करने के लिए प्रयास करने की एक शक्ति भी देता है। इसलिए ये Trauma Center भारत और नेपाल के बीच एक जीवंत संबंध का उदाहरण बन रहा है।

आगे भी इस Trauma Center का upgradation करना होगा, technology support की आवश्यकता होगी, human resource development की आवश्यकता होगी। भारत भविष्य में भी इस काम में नेपाल के साथ रहेगा, पूरी सहायता करता रहेगा और हम चाहेंगे कि नेपाल अपने पैरों पर खड़े हो करके..इस Trauma Center को चलाने का उसमें सार्मथ्य आए। वहां तक जो भी मदद चाहिए, भारत खुले दिल से यहां के लोगों की ज़िंदगी बचाने के लिए सदा सर्वदा आपके साथ खड़ा है। और वो हमारे लिए सौभाग्य होगा। एक प्रकार से अपनों की सेवा करने का यह अवसर है और अपने यहाँ तो, सेवा परमोधर्म- ये शास्त्रों ने कहा है। और जिस शास्त्र ने हमें ‘सेवा परमोधर्म’ कहा है, उस शास्त्र से हम दोनों जुड़े हुए हैं। इसलिए एक सेवा का यह प्रकल्प है और मुझे गर्व है कि आज मुझे इस समारोह में लोकार्पण के काम में आने का अवसर मिला। भारत और नेपाल का एक अटूट नाता, एक जीवंत नाता, उसका एक जीवंत स्मारक हमारे सामने आज खड़ा हुआ है।

जब मैं पिछली बार आया था, तब भी मैंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि मैं उस समय तो जनकपुर, मुक्तिनाथ और लुम्बिनी नहीं जा पाया था, मैंने कहा था कि मैं अगली बार आउंगा तो जाउंगा। इस बार भी मेरा इरादा था कि मैं by-road जाउं। By-road जाने का मेरा इरादा इसलिए था कि मैं खुद अनुभव करना चाहता था कि नेपाल से वहां आने वाले लोगों को वहां क्या दिक्कतें होती हैं, क्या तकलीफ होती हैं। भारत से उस तरफ जाने वाले लोगों को क्या दिक्कतें होती हैं, क्या तकलीफ होती हैं। उसे मैं खुद experience करना चाहता था और फिर मैं उसको ठीक करना चाहता था। लेकिन, समयाभाव के कारण मैं इस बार उसको नहीं कर पाया हूं। मैं विषेश रूप से जनकपुर, लुम्बिनी और मुक्तिनाथ - वहां के नागरिकों को जो कष्ट हुआ है, जो निराशा हुई है, मैं भलीभांति उनकी पीड़ा को समझ सकता हूं। लेकिन, मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूं कि निकट भविष्य में जब भी मुझे अवसर मिलेगा मैं आपके बीच आउंगा। आपके प्यार को मैं भली-भांति दूर बैठे-बैठे भी अनुभव कर रहा हूं। और इसलिए वहां के सभी नागरिकों को मैं विश्वास दिलाता हूं। नेपाल के हर नागरिक का भारत पर पूरा अधिकार, भारतीयों पर पूरा अधिकार है, सरकार पर अधिकार है और भारत के प्रधानसेवक पर प्रधान अधिकार है।

मैं जब पिछली बार आया था, और आज मैं आया हूं, सौ दिन भी नहीं हुए हैं। लेकिन जब विश्वास का इजिंन किसी काम को लग जाता है, तो काम कितनी तेजी से होता है, कितना अच्छा हो सकता है, इसका मैं आज अनुभव कर रहा हूं। आज नेपाल और भारत के बीच भरोसे का, विश्वास का एक बहुत बड़ा horse power वाला इजिंन लग गया है, जो विश्वास का इजिंन है, भरोसे का इजिंन है। उसी के कारण 100 दिन के अंदर जिस प्रकार से नेपाल और भारत ने एक के बाद एक निर्णय किए, काम शुरू किया, 25-25, 30-30 साल से रूके हुए काम - ये आज आगे बढ़े हैं। हमारे यहां कहावत है - एक हाथ से ताली नहीं बजती है। ये संभव इसलिए हुआ है कि नेपाल सरकार, नेपाल के सभी राजनीतिक दल, नेपाल के प्रशासनिक व्यवस्था में जुड़े हुए अधिकारी - उन सब ने मिल करके आगे बढ़ने की शुरूआत की। आगे बढ़ाया। छोटी-मोटी रूकावटें आईं तो उन रूकावटों को भी बहुत बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से, उसका निराकरण करते हुए, चीज़ों को ठोस रूप देने का काम किया है। इसलिए मैं आदरणीय प्रधानमंत्री जी का, उनकी सरकार का, सभी राजनीतिक दलों का, प्रशासनिक अधिकारियों का भारत की तरफ से हृदय से अभिनदंन करता हूं, कि उन्होंने ये काम न किया होता तो आज 100 दिन के भीतर भीतर 25-25, 30-30 साल से लटके हुए काम, अटके हुए काम आज पूरे न होते।

मैं आज एक संतोश का भाव अनुभव कर रहा हूं कि मेरी पहली मुलाकात और दूसरी मुलाकात के बीच में तेज़ गति से एक के बाद एक फैसले हुए हैं। ये फैसले नेपाल के जीवन को तो ताकत देने वाले हैं, भारत को बहुत बड़ा संतोश देने वाले हैं। हमारे लिए नेपाल की खुशी, नेपाल का आनंद हमारी मुस्कुराहट का कारण बनता है। अगर नेपाल खुश नहीं तो हिंदूस्तान मुस्कुरा नहीं सकता है। इसलिए हमारे लिए नेपाल की खुशी, ये हमारे लिए संतोश की औषध है। वो संतोश की औषध हमें प्राप्त हुई है, उसके लिए नेपाल से संबंधित सभी जनों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

खासतौर पर Hydro Power. कितने समय से यह लटका हुआ था, कितने विवाद चल रहे थे, आशंकाओं के बादल हर बार छाए रहते थे। लेकिन, यहां के सभी राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार की दूर दृष्टि का परिचय करवाया है, और उसका परिणाम यह हुआ है कि Power Trade Agreement, 900 Megawatt Upper Karnali Project, Pancheshwar Development Authority, 900 मेगावाट क्षमता वाले Arun III Project - यानि एक के बाद एक। शायद 10 साल में एक चीज़ हो जाए तो भी बड़ा आनंद हो जाता है। यहां तो 100 दिन में इतने सारे काम आगे बढ़ गए। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि दो देश मिल करके क्या नहीं कर सकते हैं।

उसी प्रकार से हमने कहा था Transmission Line के संबंध में। हम चाहते थे कि नेपाल को बिजली मिले, ज्यादा बिजली मिले। Transmission Line मज़बूत बनाने के लिए बहुत ही कम समय में काम पूरा हो जाएगा। 125 मेगावाट बिजली और यहां आना शुरू हो जाएगा। इतना ही नहीं, एक नई लाइन तैयार हो रही है, जिसकी क्षमता 1000 मेगावाट की है। अब नेपाल जगमगा उठेगा, ये मेरा पूरा विश्वास है। हमने पिछली बाद कहा था कि एक बिलियन डॉलर - यानि कि 10 हज़ार करोड़ नेपाली रूपयों की कीमत जिसकी होती है - कम ब्याज़ पर और लंबे समय के लिए हम देंगे। आज हम मिल रहे हैं, उसका Final Agreement हो जाएगा। ये भी काम एक प्रकार से आज पूरा हो गया, मान लीजिए।

हम एक Motor Vehicle Agreement पर करार कर रहे हैं और मैं मानता हूं कि नेपाल और भारत को जोड़ने के लिए ये बहुत ही उत्तम व्यवस्था हो रही है। उसी के तहत आज ही काठमांडू से दिल्ली Regular Bus Service शुरू करने का भी हमें सौभाग्य मिल रहा है। काठमांडू से दिल्ली जब Regular Bus Service शुरू होती है तो यहां के सामान्य मानव के जीवन में वो कितनी बड़ी आर्थिक रूप से सहायता करने वाली सुविधाजनक होती है, उसका आप अंदाज़ लगा सकते हैं।

लेकिन नेपाल और भारत के बीच चलने वाली ये टूरिज्म की दृश्टि से चलने वाली बस में यात्री भी उसका फायदा उठाते हैं, international यात्री भी प्राकृतिक सौदंर्य का अनुभव करने के लिए बस से सफर करना पसंद करते हैं। हम चाहते हैं कि नेपाल का टूरिज़्म भी बढ़े। लेकिन टूरिज़्म बढ़ता है, उसके लिए कुछ सुविधाएं चाहिएं। उसमें एक महत्वपूर्ण सुविधा होती है- connectivity. मैंने मेरे अफसरों को कहा है कि क्या हम - ये जो दिल्ली काठमांडू के बीच बस सर्विस चलेगी - वो बस सेवा Wi-Fi के साथ हो सकती है क्या? अगर Wi-Fi के साथ वो बस सेवा होगी तो टूरिस्ट जरूर पसंद करेगा क्योंकि वो बस में जाता रहेगा, वो दूनिया से अपना connect होता रहेगा, अपना आनंद लेता रहेगा। हमारे अफसरों ने कहा कि “साब मालूम नहीं है, हम ज़रा देखेंगे कि कितना संभव है।“ मैंने कहा तो है, अब देखते हैं technological अगर support मिल गया तो ये काम भी हम करवा देंगे। हम चाहते हैं, व्यवस्थाएं हों, व्यवस्थाएं आधुनिक हों और सुविधाजनक हों।

मैंने एक चिंता जताई थी कि भारत में हमारे नेपाल के लोग बहुत बड़ी मात्रा में हैं। नेपाल और भारत की रिश्तेदारी भी बहुत है, व्यापारिक संबंध भी है और इसलिए, यहां के फोन कॉल बहुत महंगे होते हैं। मैंने कहा था कि अमरीका बात करना सस्ता जाता है लेकिन Nepal-India बात करना महंगा जाता है। मैंने कहा था कि ये सस्ता होना चाहिए। मैं भारत गया, मैंने पूछा, “भई! ये क्या कर रहे हो? क्या हम नहीं मदद कर सकते?” लेकिन जब जाना तो बहुत आश्चर्य हुआ मुझे। भारत में तो इसका रेट सिर्फ 40 पैसा है, लेकिन यहां पर वो रेट शायद 3.50 रूपया है, नेपाल में, नेपाल authority जो है। मैं हैरान हो गया कि “भई अब क्या करूं? मैंने तो कह दिया है।“

मैंने कहा कि “ठीक है, हम कम लेते है। न के बराबर लेते हैं तो भी कुछ कम करें।“ मैंने 35% कम करने का फैसला कर लिया। लेकिन, अब मैं चाहता हूं, नेपाल की जो टेलीफोन सेवा हैं, वो भी उसमें कुछ कम करें ताकि नेपाल के लोगों को, और नेपाल से जुड़े हुए भारत के संबंधों में ये टेलीफोन का खर्चा थोड़ा कम होना चाहिए। मेरी तरफ से जो कर सकता हूं, उतना ज़रूर कर दिया है। मैं चाहूंगा कि यहां उस दिशा में कुछ हो।

Border Infrastructure - खासतौर से road मार्ग से जब हम आते हैं - तो वहां पर कुछ प्रश्न थे, पिछली बार, मैंने उसे तेज़ गति से आगे बढ़ाने के लिए काम किया है। कुछ पुराने contract की भी समस्याएं थीं, उसको भी रद्द करने के लिए कह दिया है। मैं मानता हूं छः महीने के भीतर-भीतर आपको सही रूप में वहां पर प्रगति दिखाई देगी।

एक और बात है, नेपाल और भारत के संबंधों में। एक तो, बहुत बड़ी मात्रा में नेपाल के लोग जो भारत में काम करते हैं, वो यहां आते हैं, भारत के टूरिस्ट यहां आते हैं। एक कठिनाई थी- 500 और 1000 रूपए के नोट। वो प्रतिबंधित थे। हमने नेपाल सरकार को प्रार्थना की थी। और हमने मिल करके एक निर्णय किया है कि अब भारत से 500 रूपए और 1000 रूपए के नोट 25 हज़ार की मर्यादा में, ये हम ला सकते हैं। इसके कारण, भारत में काम करने वाले जो लोग अपने घर वापस आते हैं, उनको साथ में पैसे लाने हों तो उनका सुविधा बनेगी। और जो टूरिस्ट आते हैं, टूरिस्ट के हाथ में भी पैसे रह पाएंगे। तो इस व्यवस्था को भी हमने निर्णय कर लिया है।

एक काम जिसका मेरा स्वयं का बहुत अच्छा अनुभव है। मैं जब गुजरात में काम करता था तो गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते एक महत्वपूर्ण initiative हमने लिया था। हिंदुस्तान में हमने सबसे पहले इस काम को किया था, और वो था soil testing। आमतौर पर हम developing countries में मनुष्य का भी health card नहीं होता है। लेकिन हमने कोशिश की थी कि soil health card बने। किसान के पास जो जमीन है, उस जमीन में क्या गुण हैं, क्या अवगुण हैं, क्या अच्छाईयां हैं, क्या बिमारियां हैं, वो ज़मीन किस crop के लिए उपयुक्त है, किस crop के लिए अनउपयुक्त है, किस ज़मीन पर कौन सी दवाई सूट करेगी, कौन सी दवाई सूट नहीं करेगी - ये सारी चीज़ें soil testing से संभव होती हैं। ये करने से औसत एक एकड़ भूमि में किसान फसल तो ज्यादा कर ही सकता है, लेकिन साथ-साथ, जो फालतू खर्चे होते हैं- गलत दवाईयां डाल देता है, गलत fertilizer डाल देता है, गलत crop डाल देता है, वो सब उसका बच जाता है और करीब-करीब एक एकड़ भूमि में 15-20 हज़ार तो सहज रूप से उसकी मदद हो जाती है। ये soil testing का काम नेपाल में भी हो, ये बात मैंने पिछली बार प्रधानमंत्री जी से मैं जब मिला तो कही थी कि आपको लाभ होगा। तो उन्होंने कहा कि देखेंगे और मुझे लगा कि मैं सुझाव देके चला हूं, वो शोभा नहीं देता है, मुझे कुछ करना चाहिए। तो आज हम एक Mobile soil test laboratory नेपाल को भेंट दे रहे हैं। उसकी पूरी technology दे रहे हैं। उससे पता चलेगा कि निश्चित एरिया में इस प्रकार की जांच हो गई। आप देखिए, उसको अगर बाद में आप चलाएंगे तो बहुत लाभ होगा, तो एक बहुत बड़ा काम।

हमने पिछली बार कहा था कि people-to-people contact. देश जुड़ते हैं, तब जब जन जुड़ता है। और जन भी तब जुड़ता है जब मन जुड़ता है। लेकिन मन जुड़ने की, जन जुड़ने की प्रक्रिया कुछ व्यवस्था के तहत होती है। और इसलिए हम चाहते थे कि जन-जन संपर्क बढ़ना चाहिए। इसीलिए हमने Youth Exchange की बात की थी। मुझे खुशी है कि Youth Exchange Programme में पहली बैच already हिंदुस्तान पहुंची हुई है। इन दिनों कलकत्ता युनिवर्सिटी में वे नौजवान, सारे नेपाल के - वहां का नजारा देख रहे हैं, अभ्यास कर रहे हैं, वहां के लोगों से मिल रहे हैं, बातचीत कर रहे हैं।

तो एक एक चीज़ हम तेजी से कर रहे हैं।

दूसरा, मैंने कहा था - हम नेपाल को e-library देंगे। मुझे खुशी है कि नेपाल सरकार की तरफ से और नेपाल के कुछ प्रमुख लोगों की तरफ से, e-library उनको कैसी चाहिए, उसके बहुत अच्छे सुझाव आए। मैं मानता हूं कि हमारे लिए भी सीखने जैसे अच्छे सुझाव आए। मैं मानता हूं कि ये जो आपका सक्रिय योगदान था, तो e-library का काम बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। जैसी आपकी अपेक्षा है, उन आपके सुझावों को संकलित करते हुए, उस e-library को हम प्रारंभ करेंगे। मैं मानता हूं कि वक्त बदल चुका है। 21वीं सदी ज्ञान की सदी है। जो ज्ञान के उपासक हैं, उनका ये युग आने वाला है। नेपाल और भारत की इस भूखंड की सांस्कृतिक ज्ञान की उपासना की संस्कृति रही है। नेपाल भी ज्ञान की उपासना वाली संस्कृति की विरासत को लेकर चल रहा है और इसलिए e-library उस ज्ञान वर्धन का एक बहुत बड़ा माध्यम बनेगी। ये युग ऐसा है कि जितनी highways की जरूरत है उतनी ही i-ways की जरूरत है। Highways भी चाहिए information-ways भी चाहिए। e-library एक प्रकार से i-ways का काम करेगी और जो हम नेपाल में प्रवेश करने वाले रास्ते ठीक करेंगे, वो highways का काम करेंगे। भारत आपकी highways की भी चिंता करेगा, i-ways की भी चिंता करेगा और उस काम को हम आगे बढ़ाएंगे।

हमारा सुरक्षा सहयोग भी.. बहुत ही एक विश्वास का वातावरण चाहिए। सुरक्षा का काम तब होता है, जब दो देश के बीच में अटूट विश्वास हो, भरोसा हो। और आज भारत और नेपाल के बीच में विश्वास का ताना बाना इतना मजबूत हुआ है कि जिसके कारण रक्षा के क्षेत्र में भी भारत और नेपाल मिल करके काम कर रहे हैं।

आज मेरे लिए खुशी की बात है कि हम एक ‘ध्रुव हेलीकॉप्टर’ जो सेना के काम आएगा, वो आज भारत की तरफ से नेपाल को हम समर्पित कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि नेपाल को एक अच्छा रक्षा कवच मिलेगा, वो एक नई ताकत बनेगा। यहां पर पुलिस एकेडेमी का काम भी, उसका foundation stone, उसकी चिंता भी हम करेंगे।

यानि अनगिनत चीज़ें, सौ दिन के भीतर-भीतर, अनगिनत चीज़ों का एक के बाद एक हो जाना, ये अपने आप में ही दो सरकारों के बीच विश्वास की ताकत कितनी बड़ी गति देती है, कितना बड़ा परिणाम देती है।

मेरा ये सौभाग्य रहा कि पिछली बार जब मैं आया, तब आपकी संविधान सभा को संबोधित करने का मुझे अवसर मिला था। Constituent Assembly को संबोधित करने का अवसर मिला था। एक प्रकार से नेपाल के सभी stake holdres कहिए, नेपाल की सभी क्रीम कहिए - उस सभी विशाल समूह के सामने मैं आया था। तब मैंने कहा था कि नेपाल जितना जल्द अपना सविंधान बनाएगा, उतना ही नेपाल के भविष्य के लिए वो एक नई ताकत मिलेगी। नेपाल के संविधान के निर्मिति में जितना विलंब होगा, वो विलंब नेपाल के लिए अच्छा नहीं होगा। संविधान आप बनाएं, आपके तरीके से बनाइए, आपके निर्णय होंगे, भारत का उसमें कोई दखल नहीं हो सकता, होना भी नहीं चाहिए। लेकिन, आपकी खुशी, हमें मुस्कुराहट देती है और इसलिए भी संविधान का जल्दी बनना बहुत ज़रूरी है। मेरा यह भी आग्रह था कि संविधान के अंदर एक ऐसा गुलदस्ता बने कि नेपाल के हर कोने में रहने वाले व्यक्ति को लगे कि मेरा भी फूल उस गुलदस्ते में है। मेरे फूल की महक भी उस गुलदस्ते में है। कभी मधेसी को यह नहीं लगना चाहिए कि हमारा पूछने वाला कौन? कहीं पहाड़ी को यह नहीं लगना चाहिए कि हमारा पूछने वाला कौन? माओवादी को यह नहीं लगना चाहिए कि हमारा पूछने वाला कौन? ये संविधान ऐसा होना चाहिए कि जिसमें हर किसी की आवाज़ हो, हर किसी के सपने हों, हर किसी के अरमान हों, हर किसी को काम करने का अवसर हो। इस काम में नेपाल की संविधान सभा बहुत अच्छे ढंग से आगे बढ़ रही है, लेकिन समय बहुत जा रहा है।

इसलिए मैं आज सार्वजनिक रूप से आज नेपाल के सभी राजनीतिक नेताओं से आग्रह करूंगा कि सविंधान का निर्माण सहमति से ही करने से फायदा होगा। संख्या के बल पर संविधान का निर्माण कभी भी नेपाल का भला नहीं करेगा। सहमति से संविधान बने और आगे चलकर भी - आज भी, भारत का संविधान, इतने वर्ष हो गए, हर वर्ष हम कुछ न कुछ amendment करते ही जाते हैं। और वो amendment दो तिहाई से करते हैं। एक बार सविंधान सहमति से बने, बाद में संसद बने और संसद में दो चार चीज़े जोड़नी, कम करनी लगती हैं, तो आप दो तिहाई बहुमत से ज़रूर कर सकते हैं। लेकिन, पहला प्रारूप अगर सबको अपना नहीं लगता है तो नेपाल को बहुत बड़ी कठिनाई आएगी।

आपके एक मित्र देश के नाते, आपको दुख हो, आपको कठिनाई हो और हमें समझ हो, तो वो स्थिति हम देखना नहीं चाहते हैं। फिर एक बार, आज सार्वजनिक रूप से, जिस प्रकार से ज़िंदगी बचाने के लिए ये Trauma Center काम आ रहा है, उसी प्रकार से नेपाल के सपनों को संवारने के लिए संविधान एक अवसर बन करके आ रहा है। मैं चाहूंगा कि संविधान की पवित्रता, उसी पवित्र भाव से..और मैंने कहा था कि ऋषि-मन होगा तो संविधान बनेगा, संविधान सभा में बैठे हर व्यक्ति का ऋषि-मन होना चाहिए और ऋषि-मन को लेकर संविधान का निर्माण होगा, ये मैंने आग्रह से कहा था।

मैं आज फिर नेपाल की धरती पर आया हूं। मैं विश्वनाथ की धरती पर काम करता हूं, पशुपतिनाथ की धरती पर आया हूं। तो मेरा भी आपको प्रार्थना करने का हक बन जाता है। मैं प्रार्थना करने आया हूं। मैं उसी धरती से आया हूं। बोध गया से मैं आज एक पौधा ले करके आया हूं, जो हमारे एम्बेसेडर लुम्बिनी में जा करके उसको रोपित करने वाले हैं। एक ऐसा संदेश ले करके आया हूं जो हमें सांस्कृतिक प्राणशक्ति देता रहता है और उस भरोसे भी मैं कह सकता हूं कि मैं प्रार्थना करता हूं कि आप संविधान बनाने के काम में विलंब मत कीजिए। सहमति से बनाने का ही प्रयास कीजिए और सारे रास्ते नए संकटों को जन्म देंगे। मैं अयोध्या और जनकपुरी का नाता जानता हूं, इसलिए भी हम लोगों को आपसे प्रार्थना करने का हक बनता है कि आप सहमति से संविधान का निर्माण कीजिए, जल्द कीजिए। लोगों की आशाओं पर आप खरे उतरें।

आप देखिए कि आप लोगों का नेतृत्व नेपाल को कहां से कहां पहुंचाएगा और युग इस भूभाग के भविष्य का है। एशिया के भविष्य का समय है। नेपाल को ये मौका चूकना नहीं चाहिए। विश्व के अंदर एक ताकत बन करके नेपाल ने खड़े होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था नेपाल को एक नई ताकत देगी, नई पहचान देगी, विश्व नेपाल को स्वीकार करने लग जाएगा। ये स्थिति आपके हाथों में है, मौका आपके पास है। 30-40 दिन का समय बचा है। मैं विश्वास करता हूं कि इस काम को आप आगे बढ़ाएंगे।

फिर एक बार, ये Trauma Center यहां के किसी भी पीड़ित को बचाने के काम आएगा, भारतवासियों को बहुत संतोश होगा। हमारे लिए एक प्रकार से ‘सेवा परमोधर्म’, जीव-दया का ये काम हुआ है, एक मन के संतोश के साथ, मुझे इस अवसर पर आने का अवसर मिला, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूं। प्रधानमंत्री जी का बहुत बहुत आभारी हूं। उनके परिवार में संकट होने के बाद भी, जिस उमंग और उत्साह के साथ इस पूरे सार्क समिट की आप चिंता कर रहे हैं। पूरा नेपाल अभिनंदन का अधिकारी है। मैं ऐयरपोर्ट से उतरा हूं, मैं देख रहा हूं, क्या उत्साह है, क्या उमंग है। आपने सार्क देशों के सभी नेताओं का दिल जीत लिया है। इन व्यवस्थाओं के लिए नेपाल ने जो ताकत दिखाई है, अपनापन दिखाया है, बहुत बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। प्रधानमंत्री जी को और पूरे नेपाल को मैं हृदय से नमन करता हूं, बहुत बहुत अभिनंदन करता हूं।

धन्यवाद।

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भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

नमस्कार,

अभी दो ढाई घंटे पहले ही मैं कुवैत पहुंचा हूं और जबसे यहां कदम रखा है तबसे ही चारों तरफ एक अलग ही अपनापन, एक अलग ही गर्मजोशी महसूस कर रहा हूं। आप सब भारत क अलग अलग राज्यों से आए हैं। लेकिन आप सभी को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने मिनी हिन्दुस्तान उमड़ आया है। यहां पर नार्थ साउथ ईस्ट वेस्ट हर क्षेत्र के अलग अलग भाषा बोली बोलने वाले लोग मेरे सामने नजर आ रहे हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही गूंज है। सबके दिल में एक ही गूंज है - भारत माता की जय, भारत माता की जय I

यहां हल कल्चर की festivity है। अभी आप क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारी कर रहे हैं। फिर पोंगल आने वाला है। मकर सक्रांति हो, लोहड़ी हो, बिहू हो, ऐसे अनेक त्यौहार बहुत दूर नहीं है। मैं आप सभी को क्रिसमस की, न्यू ईयर की और देश के कोने कोने में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों की बहुत बहुत शुभकानाएं देता हूं।

साथियों,

आज निजी रूप से मेरे लिए ये पल बहुत खास है। 43 years, चार दशक से भी ज्यादा समय, 43 years के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कुवैत आया है। आपको हिन्दुस्तान से यहां आना है तो चार घंटे लगते हैं, प्रधानमंत्री को चार दशक लग गए। आपमे से कितने ही साथी तो पीढ़ियों से कुवैत में ही रह रहे हैं। बहुतों का तो जन्म ही यहीं हुआ है। और हर साल सैकड़ों भारतीय आपके समूह में जुड़ते जाते हैं। आपने कुवैत के समाज में भारतीयता का तड़का लगाया है, आपने कुवैत के केनवास पर भारतीय हुनर का रंग भरा है। आपने कुवैत में भारत के टेलेंट, टेक्नॉलोजी और ट्रेडिशन का मसाला मिक्स किया है। और इसलिए मैं आज यहां सिर्फ आपसे मिलने ही नहीं आया हूं, आप सभी की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करने के लिए आया हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही मेरे यहां काम करने वाले भारतीय श्रमिकों प्रोफेशनल्श् से मुलाकात हुई है। ये साथी यहां कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े हैं। अन्य अनेक सेक्टर्स में भी अपना पसीना बहा रहे हैं। भारतीय समुदाय के डॉक्टर्स, नर्सज पेरामेडिस के रूप में कुवैत के medical infrastructure की बहुत बड़ी शक्ति है। आपमें से जो टीचर्स हैं वो कुवैत की अगली पीढ़ी को मजबूत बनाने में सहयोग कर रही है। आपमें से जो engineers हैं, architects हैं, वे कुवैत के next generation infrastructure का निर्माण कर रहे हैं।

और साथियों,

जब भी मैं कुवैत की लीडरशिप से बात करता हूं। तो वो आप सभी की बहुत प्रशंसा करते हैं। कुवैत के नागरिक भी आप सभी भारतीयों की मेहनत, आपकी ईमानदारी, आपकी स्किल की वजह से आपका बहुत मान करते हैं। आज भारत रेमिटंस के मामले में दुनिया में सबसे आगे है, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय भी आप सभी मेहनतकश साथियों को जाता है। देशवासी भी आपके इस योगदान का सम्मान करते हैं।

साथियों,

भारत और कुवैत का रिश्ता सभ्यताओं का है, सागर का है, स्नेह का है, व्यापार कारोबार का है। भारत और कुवैत अरब सागर के दो किनारों पर बसे हैं। हमें सिर्फ डिप्लोमेसी ही नहीं बल्कि दिलों ने आपस में जोड़ा है। हमारा वर्तमान ही नहीं बल्कि हमारा अतीत भी हमें जोड़ता है। एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे। और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है। भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले,कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीक वुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत की ज्वेलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवैत के मोतियों का भी योगदान है। गुजरात में तो हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं, कि पिछली शताब्दियों में कुवैत से कैसे लोगों का, व्यापारी-कारोबारियों का आना-जाना रहता था। खासतौर पर नाइनटीन्थ सेंचुरी में ही, कुवैत से व्यापारी सूरत आने लगे थे। तब सूरत, कुवैत के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था। सूरत हो, पोरबंदर हो, वेरावल हो, गुजरात के बंदरगाह इन पुराने संबंधों के साक्षी हैं।

कुवैती व्यापारियों ने गुजराती भाषा में अनेक किताबें भी पब्लिश की हैं। गुजरात के बाद कुवैत के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाज़ारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। यहां के प्रसिद्ध व्यापारी अब्दुल लतीफ अल् अब्दुल रज्जाक की किताब, How To Calculate Pearl Weight मुंबई में छपी थी। कुवैत के बहुत सारे व्यापारियों ने, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकाता, पोरबंदर, वेरावल और गोवा में अपने ऑफिस खोले हैं। कुवैत के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की मोहम्मद अली स्ट्रीट में रहते हैं। बहुत सारे लोगों को ये जानकर हैरानी होगी। 60-65 साल पहले कुवैत में भारतीय रुपए वैसे ही चलते थे, जैसे भारत में चलते हैं। यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर, भारतीय रुपए ही स्वीकार किए जाते थे। तब भारतीय करेंसी की जो शब्दाबली थी, जैसे रुपया, पैसा, आना, ये भी कुवैत के लोगों के लिए बहुत ही सामान्य था।

साथियों,

भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है, जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। और इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है। वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है। मैं कुवैत के लोगों का, यहां की सरकार का बहुत आभारी हूं। मैं His Highness The Amir का उनके Invitation के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं।

साथियों,

अतीत में कल्चर और कॉमर्स ने जो रिश्ता बनाया था, वो आज नई सदी में, नई बुलंदी की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज कुवैत भारत का बहुत अहम Energy और Trade Partner है। कुवैत की कंपनियों के लिए भी भारत एक बड़ा Investment Destination है। मुझे याद है, His Highness, The Crown Prince Of Kuwait ने न्यूयॉर्क में हमारी मुलाकात के दौरान एक कहावत का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- “When You Are In Need, India Is Your Destination”. भारत और कुवैत के नागरिकों ने दुख के समय में, संकटकाल में भी एक दूसरे की हमेशा मदद की है। कोरोना महामारी के दौरान दोनों देशों ने हर स्तर पर एक-दूसरे की मदद की। जब भारत को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी, तो कुवैत ने हिंदुस्तान को Liquid Oxygen की सप्लाई दी। His Highness The Crown Prince ने खुद आगे आकर सबको तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया। मुझे संतोष है कि भारत ने भी कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर इस संकट से लड़ने का साहस दिया। भारत ने अपने पोर्ट्स खुले रखे, ताकि कुवैत और इसके आसपास के क्षेत्रों में खाने पीने की चीजों का कोई अभाव ना हो। अभी इसी साल जून में यहां कुवैत में कितना हृदय विदारक हादसा हुआ। मंगफ में जो अग्निकांड हुआ, उसमें अनेक भारतीय लोगों ने अपना जीवन खोया। मुझे जब ये खबर मिली, तो बहुत चिंता हुई थी। लेकिन उस समय कुवैत सरकार ने जिस तरह का सहयोग किया, वो एक भाई ही कर सकता है। मैं कुवैत के इस जज्बे को सलाम करूंगा।

साथियों,

हर सुख-दुख में साथ रहने की ये परंपरा, हमारे आपसी रिश्ते, आपसी भरोसे की बुनियाद है। आने वाले दशकों में हम अपनी समृद्धि के भी बड़े पार्टनर बनेंगे। हमारे लक्ष्य भी बहुत अलग नहीं है। कुवैत के लोग, न्यू कुवैत के निर्माण में जुटे हैं। भारत के लोग भी, साल 2047 तक, देश को एक डवलप्ड नेशन बनाने में जुटे हैं। कुवैत Trade और Innovation के जरिए एक Dynamic Economy बनना चाहता है। भारत भी आज Innovation पर बल दे रहा है, अपनी Economy को लगातार मजबूत कर रहा है। ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे को सपोर्ट करने वाले हैं। न्यू कुवैत के निर्माण के लिए, जो इनोवेशन, जो स्किल, जो टेक्नॉलॉजी, जो मैनपावर चाहिए, वो भारत के पास है। भारत के स्टार्ट अप्स, फिनटेक से हेल्थकेयर तक, स्मार्ट सिटी से ग्रीन टेक्नॉलजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए Cutting Edge Solutions बना सकते हैं। भारत का स्किल्ड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नई स्ट्रेंथ दे सकता है।

साथियों,

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने का भी सामर्थ्य है। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। ऐसे में भारत दुनिया की स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। और इसके लिए भारत दुनिया की जरूरतों को देखते हुए, अपने युवाओं का स्किल डवलपमेंट कर रहा है, स्किल अपग्रेडेशन कर रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में करीब दो दर्जन देशों के साथ Migration और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इनमें गल्फ कंट्रीज के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, मॉरिशस, यूके और इटली जैसे देश शामिल हैं। दुनिया के देश भी भारत की स्किल्ड मैनपावर के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं।

साथियों,

विदेशों में जो भारतीय काम कर रहे हैं, उनके वेलफेयर और सुविधाओं के लिए भी अनेक देशों से समझौते किए जा रहे हैं। आप ई-माइग्रेट पोर्टल से परिचित होंगे। इसके ज़रिए, विदेशी कंपनियों और रजिस्टर्ड एजेंटों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। इससे मैनपावर की कहां जरूरत है, किस तरह की मैनपावर चाहिए, किस कंपनी को चाहिए, ये सब आसानी से पता चल जाता है। इस पोर्टल की मदद से बीते 4-5 साल में ही लाखों साथी, यहां खाड़ी देशों में भी आए हैं। ऐसे हर प्रयास के पीछे एक ही लक्ष्य है। भारत के टैलेंट से दुनिया की तरक्की हो और जो बाहर कामकाज के लिए गए हैं, उनको हमेशा सहूलियत रहे। कुवैत में भी आप सभी को भारत के इन प्रयासों से बहुत फायदा होने वाला है।

साथियों,

हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश का सम्मान करते हैं और भारत को नई ऊंचाई छूता देख उतने ही प्रसन्न भी होते हैं। आप सभी भारत से यहां आए, यहां रहे, लेकिन भारतीयता को आपने अपने दिल में संजो कर रखा है। अब आप मुझे बताइए, कौन भारतीय होगा जिसे मंगलयान की सफलता पर गर्व नहीं होगा? कौन भारतीय होगा जिसे चंद्रयान की चंद्रमा पर लैंडिंग की खुशी नहीं हुई होगी? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं। आज का भारत एक नए मिजाज के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इकॉनॉमी है। आज दुनिया का नंबर वन फिनटेक इकोसिस्टम भारत में है। आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। आज भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है।

मैं आपको एक आंकड़ा देता हूं और सुनकर आपको भी अच्छा लगेगा। बीते 10 साल में भारत ने जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, भारत में जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, उसकी लंबाई, वो धरती और चंद्रमा की दूरी से भी आठ गुना अधिक है। आज भारत, दुनिया के सबसे डिजिटल कनेक्टेड देशों में से एक है। छोटे-छोटे शहरों से लेकर गांवों तक हर भारतीय डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहा है। भारत में स्मार्ट डिजिटल सिस्टम अब लग्जरी नहीं, बल्कि कॉमन मैन की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। भारत में चाय पीते हैं, रेहड़ी-पटरी पर फल खरीदते हैं, तो डिजिटली पेमेंट करते हैं। राशन मंगाना है, खाना मंगाना है, फल-सब्जियां मंगानी है, घर का फुटकर सामान मंगाना है, बहुत कम समय में ही डिलिवरी हो जाती है और पेमेंट भी फोन से ही हो जाता है। डॉक्यूमेंट्स रखने के लिए लोगों के पास डिजि लॉकर है, एयरपोर्ट पर सीमलैस ट्रेवेल के लिए लोगों के पास डिजियात्रा है, टोल बूथ पर समय बचाने के लिए लोगों के पास फास्टटैग है, भारत लगातार डिजिटली स्मार्ट हो रहा है और ये तो अभी शुरुआत है। भविष्य का भारत ऐसे इनोवेशन्स की तरफ बढ़ने वाला है, जो पूरी दुनिया को दिशा दिखाएगा। भविष्य का भारत, दुनिया के विकास का हब होगा, दुनिया का ग्रोथ इंजन होगा। वो समय दूर नहीं जब भारत दुनिया का Green Energy Hub होगा, Pharma Hub होगा, Electronics Hub होगा, Automobile Hub होगा, Semiconductor Hub होगा, Legal, Insurance Hub होगा, Contracting, Commercial Hub होगा। आप देखेंगे, जब दुनिया के बड़े-बड़े Economy Centres भारत में होंगे। Global Capability Centres हो, Global Technology Centres हो, Global Engineering Centres हो, इनका बहुत बड़ा Hub भारत बनेगा।

साथियों,

हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। भारत एक विश्वबंधु के रूप में दुनिया के भले की सोच के साथ आगे चल रहा है। और दुनिया भी भारत की इस भावना को मान दे रही है। आज 21 दिसंबर, 2024 को दुनिया, अपना पहला World Meditation Day सेलीब्रेट कर रही है। ये भारत की हज़ारों वर्षों की Meditation परंपरा को ही समर्पित है। 2015 से दुनिया 21 जून को इंटरनेशन योगा डे मनाती आ रही है। ये भी भारत की योग परंपरा को समर्पित है। साल 2023 को दुनिया ने इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया, ये भी भारत के प्रयासों और प्रस्ताव से ही संभव हो सका। आज भारत का योग, दुनिया के हर रीजन को जोड़ रहा है। आज भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन, हमारा आयुर्वेद, हमारे आयुष प्रोडक्ट, ग्लोबल वेलनेस को समृद्ध कर रहे हैं। आज हमारे सुपरफूड मिलेट्स, हमारे श्री अन्न, न्यूट्रिशन और हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा आधार बन रहे हैं। आज नालंदा से लेकर IITs तक का, हमारा नॉलेज सिस्टम, ग्लोबल नॉलेज इकोसिस्टम को स्ट्रेंथ दे रहा है। आज भारत ग्लोबल कनेक्टिविटी की भी एक अहम कड़ी बन रहा है। पिछले साल भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर की घोषणा हुई थी। ये कॉरिडोर, भविष्य की दुनिया को नई दिशा देने वाला है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा, आप सभी के सहयोग, भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी के बिना अधूरी है। मैं आप सभी को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं। नए साल का पहला महीना, 2025 का जनवरी, इस बार अनेक राष्ट्रीय उत्सवों का महीना होने वाला है। इसी साल 8 से 10 जनवरी तक, भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन होगा, दुनियाभर के लोग आएंगे। मैं आप सब को, इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करता हूं। इस यात्रा में, आप पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ जी का आशीर्वाद ले सकते हैं। इसके बाद प्रयागराज में आप महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पधारिये। ये 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है, करीब डेढ़ महीना। 26 जनवरी को आप गणतंत्र दिवस देखकर ही वापस लौटिए। और हां, आप अपने कुवैती दोस्तों को भी भारत लाइए, उनको भारत घुमाइए, यहां पर कभी, एक समय था यहां पर कभी दिलीप कुमार साहेब ने पहले भारतीय रेस्तरां का उद्घाटन किया था। भारत का असली ज़ायका तो वहां जाकर ही पता चलेगा। इसलिए अपने कुवैती दोस्तों को इसके लिए ज़रूर तैयार करना है।

साथियों,

मैं जानता हूं कि आप सभी आज से शुरु हो रहे, अरेबियन गल्फ कप के लिए भी बहुत उत्सुक हैं। आप कुवैत की टीम को चीयर करने के लिए तत्पर हैं। मैं His Highness, The Amir का आभारी हूं, उन्होंने मुझे उद्घाटन समारोह में Guest Of Honour के रूप में Invite किया है। ये दिखाता है कि रॉयल फैमिली, कुवैत की सरकार, आप सभी का, भारत का कितना सम्मान करती है। भारत-कुवैत रिश्तों को आप सभी ऐसे ही सशक्त करते रहें, इसी कामना के साथ, फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।