आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

हम सब के लिए और सभी देशवासियों के लिए इतना ही नहीं विश्व के लोकतंत्र प्रेमी नागरिकों के लिए भी हमारे लिए यह बहुत ही गौरव का पल है। बड़े गर्व के साथ लोकतंत्र के उत्सव को मनाने का यह अवसर है। संविधान के 75 वर्ष की यात्रा यादगार यात्रा और विश्व के सबसे महान और विशाल लोकतंत्र की यात्रा, इसके मूल में हमारे संविधान निर्माताओं की दिव्य दृष्टि हमारे संविधान निर्माताओं का योगदान और जिसको लेकर के आज हम आगे बढ़ रहे हैं, यह 75 वर्ष पूर्ण होने पर एक उत्सव मनाने का पल है। मेरे लिए खुशी की बात है कि संसद भी इस उत्सव में शामिल होकर के अपनी भावनाओं को प्रकट करेगा। मैं सभी माननीय सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूं। जिन्होंने इस उत्सव के अंदर हिस्सा लिया, मैं उन सब का अभिनंदन करता हूं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

75 वर्ष की उपलब्धि साधारण नहीं है, असाधारण है और जब देश आजाद हुआ और उसे समय भारत के लिए जो जो संभावनाएं व्यक्त की गई थी उन सभी संभावनाओं को निरस्त करते हुए परास्त करते हुए भारत का संविधान हमें यहां तक ले आया है और इसलिए इस महान उपलब्धि के लिए संविधान निर्माताओं के साथ-साथ मैं देश के कोटि-कोटि नागरिकों का आदर पूर्वक नमन करता हूं। जिन्होंने इस भावना को, इस नई व्यवस्था को जी करके दिखाया है। संविधान निर्माताओं को जब भावनाएं थी उसको जीने में पिछले 75 साल भारत का नागरिक हर कसौटी पर खड़ा उतरा है और इसलिए भारत का नागरिक सर्वाधिक अभिनंदन का अधिकारी है।

आदरणीय सभापति जी,

संविधान निर्माता इस बात में बहुत सजग थे। वह यह नहीं मानते थे कि भारत का जन्म 1947 में हुआ है, वह यह नहीं मानते थे कि भारत में लोकतंत्र 1950 से आ रहा है, वे मानते थे यहां के महान परंपरा को, महान संस्कृति को, महान विरासत को, हजारों साल की उसे यात्रा को उसके प्रति वह सजग थे, उनको इस बात का पूरा ध्यान था ।

आदरणीय सभापति जी,

भारत का लोकतंत्र भारत का गणतांत्रिक अतीत बहुत ही समृद्ध रहा है। विश्व के लिए प्रेरक रहा है और तभी तो भारत आज मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में जाना जाता है। हम सिर्फ विशाल लोकतंत्र है इतना नहीं, हम लोकतंत्र की जननी हैं ।

आदरणीय सभापति जी,

मैं यह जब कह रहा हूं तो मैं तीन महापुरुषों के कोट इस सदन के सामने प्रस्तुत करना चाहता हूं। राजऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन जी, मैं संविधान सभा में हुई चर्चा को लेकर उल्लेख कर रहा हूं। उन्होंने कहा था सदियों के बाद हमारे देश में एक बार फिर ऐसी बैठक बुलाई गई है यह हमारे मन में अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है। जब हम स्वतंत्र हुआ करते थे, जब सभाएं आयोजित की जाती थी, जिसमें विद्वान लोग देश के महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करने के लिए मिला करते थे। दूसरा कोट में पढ़ रहा हूं डॉक्टर राधाकृष्णन जी का। वे भी इस संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होंने कहा था इस महान राष्ट्र के लिए गणतांत्रिक व्यवस्था नई नहीं है। हमारे यहां यह इतिहास के शुरुआत से ही है और तीसरा कोर्ट में बाबा साहब अंबेडकर का कह रहा हूं। बाबा साहब अंबेडकर जी ने कहा था - ऐसा नहीं है कि भारत को पता नहीं था कि लोकतंत्र क्या होता है। एक समय था जब भारत में कई गणतंत्र हुआ करते थे।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे संविधान के निर्माण की प्रक्रिया में हमारे देश की नारी शक्ति ने संविधान को सशक्त करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। संविधान सभा में 15 माननीय महिला सदस्य थीं और सक्रिय सदस्य थीं। मौलिक चिंतन के आधार पर उन्होंने संविधान सभा की डिबेट को समृद्ध किया था और वह सभी बहने अलग-अलग बैकग्राउंड की थीं, अलग-अलग क्षेत्र की थीं। और संविधान में उन्होंने जो जो सुझाव दिए, उन सुझाव का संविधान के निर्माण पर बहुत बड़ा प्रभाव रहा था और हमारे लिए गर्व की बात है कि दुनिया के कई देश आजाद भी हुए, संविधान भी बने, लोकतंत्र भी चला, लेकिन महिलाओं को अधिकार देने में दशकों बीत गए थे। लेकिन हमारे यहां शुरुआत से ही महिलाओं को वोट का अधिकार संविधान में दिया गया है।

आदरणीय सभापति जी,

जब जी-20 समिट हुई। उसी भावना को आगे बढ़ते हुए, क्योंकि संविधान की भावना को लेकर के हम जीने वाले लोग हैं। हमने जी-20 की अध्यक्षता के दरमियान विश्व के सामने वीमेन लेड डेवलपमेंट का विचार रखा था और विश्व के अंदर वीमेन डेवलपमेंट से अब आगे जाने की जरूरत है और इसलिए हमने वीमेन लेड डेवलपमेंट की चर्चा को अंजाम दिया। इतना ही नहीं हम सभी सांसदों ने मिलकर के एक स्वर से नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित करके हमारी महिला शक्ति को भारतीय लोकतंत्र में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हम लोगों ने कदम उठाए।

आदरणीय सभापति जी,

आज हम देख रहे हैं हर बड़ी योजना के सेंटर में महिलाएं होती हैं और यह जब संविधान के हम 75 वर्ष मना रहे हैं। यह संयोग है और अच्छा संयोग हैं कि भारत के राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला विराजमान है। यह हमारे संविधान की भावना की एक अभिव्यक्ति भी है।

आदरणीय सभापति जी,

इस सदन में भी लगातार हमारे महिला सांसदों की संख्या बढ़ रही है, उनका योगदान भी बढ़ रहा है। मंत्री परिषद में भी उनका योगदान बढ़ रहा है। आज सामाजिक क्षेत्र हो, राजनीतिक क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो, खेलकूद का क्षेत्र हो, क्रिएटिव वर्ल्ड की दुनिया हो, जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं का योगदान महिलाओं का प्रतिनिधित्व देश के लिए गौरव दिलाने वाला रहा है। विज्ञान के क्षेत्र में खास करके स्पेस टेक्नोलॉजी में उनके योगदान की सराहना हर हिंदुस्तानी बड़े गर्व के साथ कर रहा है। और इन सबसे बड़ी प्रेरणा हमारा संविधान है।

आदरणीय सभापति जी,

अब भारत देश बहुत तेज गति से विकास कर रहा है। भारत बहुत ही जल्द विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में बहुत मजबूत कदम रख रहा है, और इतना ही नहीं ये 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प है कि जब हम आजादी शताब्दी बनाएंगे, हम इस देश को विकसित भारत बना करके रहेंगे यह हर भारतीय का संकल्प है, यह हर भारतीय का सपना है। लेकिन इस संकल्प से सिद्धि के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है वह है भारत की एकता। हमारा संविधान भी भारत की एकता का आधार है। हमारे संविधान के निर्माण कार्य में इस देश के बड़े-बड़े दिग्गज थे, स्वतंत्रता सेनानी थे, साहित्यकार थे, विवेचक थे, सामाजिक कार्यकर्ता थे, शिक्षाविद थे, कई फील्ड के प्रोफेशनल्स थे, मजदूर नेता थे, किसान नेता थे, समाज के हर वर्ग के प्रतिनिधित्व था और सब के सब भारत की एकता के प्रति बहुत ही संवेदनशील थे। जीवन के भिन्न भिन्न क्षेत्र से आए हुए, देश के अलग भू भाग से आए हुए सभी लोग इस बात के प्रति सजग थे और बाबा साहब अंबेडकर जी ने चेताया था, मैं बाबा साहब का कोट पढ़ रहा हूं। बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था - समस्या यह है कि देश में जो विविधता से भारत जन मानस है उसे किस तरह एक मत किया जाए। कैसे देश के लोगों को एक दूसरे के साथ होकर निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जाए। जिससे कि देश में एकता की भावना स्थापित हो।

आदरणीय सभापति जी,

मुझे बहुत बड़े दुख के साथ कहना है कि आजादी के बाद एक तरफ संविधान निर्माता के दिल दिमाग में एकता थी। लेकिन आजादी के बाद विकृत मानसिकता के कारण या स्वार्थवश अगर सबसे बड़ा प्रहार हुआ तो देश की एकता के मूल भाव पर प्रहार हुआ। विविधता में एकता यह भारत की विशेषता रही है। हम विविधता को सेलिब्रेट करते हैं और इस देश के प्रगति भी विविधता को सेलिब्रेट करने में है। लेकिन गुलामी की मानसिकता में पले बढ़े लोगों ने, भारत का भला न देख पाने वाले लोगों ने और जिनके लिए हिंदुस्तान 1947 में ही पैदा हुआ, जो धारणा बनी थी, उनके लिए वो विविधता में विरोधाभास ढूंढते रहे। इतना ही नहीं विविधता के इस अमूल्य खजाना है हमारा उसको सेलिब्रेट करने के बजाय उस विविधता में ऐसे जहरीले बीज बोने के प्रयास करते रहे ताकि देश की एकता को चोट पहुंचे।

आदरणीय सभापति जी,

हमें विविधता का उत्सव हमारे जीवन का अंग बनाना होगा और वही बाबा साहब अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आदरणीय सभापति जी,

मैं संविधान के प्रकाश में ही मेरी बातों को रखना चाहता हूं और इसलिए अगर आप हमारी नीतियों को देखेंगे। पिछले 10 साल देश की जनता ने जो हमें सेवा करने का मौका दिया है। उस हमारे निर्णयों की प्रक्रिया को देखेंगे, तो भारत की एकता को मजबूती देने का निरंतर हम प्रयास करते रहे हैं। आर्टिकल 370 देश की एकता में रुकावट बन पड़ा था, दीवार बन पड़ा था। देश की एकता हमारी प्राथमिकता थी जो कि हमारे संविधान के भावना थी और इसलिए धारा 370 को हमने जमीन में गाड़ दिया। क्योंकि देश एकता हमारी प्राथमिकता है।

आदरणीय सभापति जी,

इतने बड़े विशाल देश में अगर आर्थिक रूप से आगे बढ़ाना है हमारी व्यवस्थाओं को, और विश्व को भी निवेश के लिए आना है तो भारत में अनुकूल व्यवस्थाएं चाहिए और उसी में से हमारे देश में एक लंबे अरसे तक जीएसटी को लेकर को लेकर के चर्चा चलती रही। मैं समझता हूं इकोनामिक यूनिटी के लिए जीएसटी ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है। उस समय पहले की सरकार का भी कुछ योगदान है। वर्तमान समय में हमें इसको आगे बढ़ने का अवसर मिला और हमने इसको किया और वो भी वन नेशन वन टैक्स उस भूमिका को आगे बढ़ा रहा है।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे देश में राशन कार्ड गरीब के लिए बहुत बड़ी मूल्यवान दस्तावेज रहा है। लेकिन गरीब अगर एक राज्य से दूसरे राज्य जाता था तो गरीब कुछ भी उसकी प्राप्त करने का हकदार नहीं बनता था। इतना बड़ा देश पर किसी भी कोने में जाए उसका उतना ही अधिकार है। एकता के उस भाव को मजबूत करने के लिए हमने वन नेशन वन राशन कार्ड की बात मजबूत की है।

आदरणीय सभापति जी,

देश के गरीब को, देश के सामान्य नागरिक को, अगर मुफ्त में इलाज मिले तो गरीबी से लड़ने की उसकी ताकत अनेक गुना बढ़ जाती है। लेकिन उसके लिए जहां वो काम करता है वहां पर तो मिल जाएगा। लेकिन किसी काम वस वो बाहर गया है और वहां पर वो जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ता हो, ऐसे समय अगर उसका सुविधा नहीं मिलेगी तो व्यवस्था किस काम की और इसलिए देश की एकता के मंत्र को जीने वाले हम लोगों ने यह तय किया कि वन नेशन वन हेल्थ कार्ड और इसलिए हमने आयुष्मान भारत घोषणा की है। आज बिहार के दूर दराज क्षेत्र का व्यक्ति भी अगर पुणे में कुछ काम कर रहा है और अचानक बीमार हो गया है तो उसके लिए आयुष्मान कार्ड होना बहुत इनफ है, उसकी सेवा मिल सकती है।

आदरणीय सभापति जी,

हम जानते हैं देश में कई बार ऐसा हुआ कि देश के एक हिस्से में बिजली थी। लेकिन बिजली सप्लाई नहीं हो रही थी और उसके कारण दूसरे इलाके में अंधेरा था और पिछली सरकार में हमने विश्व के अंदर भारत की बदनामी हैडलाइन से हुआ करती थी अंधेरे की। वो दिन हमने देखे हैं और तब जाकर के एकता के मंत्र को लेकर के संविधान की भावना को जीने वाले हम लोगों ने वन नेशन वन ग्रिड को परिपूर्ण कर दिया और इसलिए आज बिजली के प्रभाव को निर्विरोध रूप से हिंदुस्तान के हर कोने में ले जाया जा सकता है।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर में भी भेदभाव की बू आती रही है। हमने उसे मिटा करके देश की एकता को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित विकास को ध्यान में रखते हुए हमने उस भेदभाव, उस भावना को खत्म करके एकता को मजबूत किया। हमने नॉर्थ ईस्ट हो या जम्मू कश्मीर हो, हिमालय के गोद के इलाके हो या रेगिस्तान के सटे हुए इलाके हो, हमने पूरी तरह इंफ्रास्ट्रक्चर को एक सामर्थ्य देने का प्रयास किया है। ताकि एकता के भाव को अभाव में से कारण कोई दूरी पैदा ना हो उसमें से बदलने का हमने काम किया है।

आदरणीय सभापति जी,

युग बदल चुका है और हम नहीं चाहते हैं कि डिजिटल के क्षेत्र में Haves and Have not की स्थिति बन जाए। देश के लिए समान रूप से और इसलिए दुनिया के अंदर बड़े गर्व के साथ हम कहते हैं कि भारत का जो डिजिटल इंडिया की जो सक्सेस स्टोरी है। उसका एक कारण है हमने टेक्नोलॉजी को democratize करने का प्रयास किया है और उसी का भाग है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें दिशा दिखाई है। कि हमने ऑप्टिकल फाइबर हिंदुस्तान की हर पंचायतों तक ले जाने का प्रयास किया है ताकि भारत की एकता को मजबूती देने में हमें ताकत मिले।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे संविधान की अपेक्षा है एकता की और इसी को ध्यान में रखते हुए हमने मातृभाषा के महातम्य को स्वीकार है। मातृभाषा को दबाकर के हम देश के जनमानस को सांस्करिक नहीं कर सकते और इसलिए हमने न्यू एजुकेशन पॉलिसी में भी मातृभाषा को बहुत बोल दिया है और अब मेरे देश का गरीब का बच्चा भी मातृभाषा में डॉक्टर इंजीनियर बन सकता है, क्योंकि हमारा संविधान सबके पीछे हैं उनकी सबसे दरकार करने का हमें आदेश देता है। इतना ही नहीं हमने क्लासिकल लैंग्वेज के दिशा में भी कई लैंग्वेज जिनका हक बनता था, उनको हमने उस स्थान पर रख करके हमने उनका सम्मान किया था। देश भर में एक भारत श्रेष्ठ भारत का अभियान देश के एकता को मजबूत और नई पीढ़ी को वह संस्कारित करने का काम हमारी तरफ से चल रहा है।

आदरणीय सभापति जी,

काशी तमिल संगमम और तेलुगू काशी संगमम यह आज एक बहुत बड़ा इंस्टीट्यूशनलाइज्ड हुआ है और समाज के निकटता को मजबूती देने का एक सांस्कृतिक प्रयास भी हमारा चलता रहा है। क्योंकि उसका कारण यही है कि संविधान की मूल धारा में भारत की एकता का महत्व स्वीकार किया गया है और उसकी हमें बोल देना चाहिए।

आदरणीय सभापति जी,

संविधान की आज 75 वर्ष हो रहे हैं, लेकिन हमारे यहां तो 25 वर्ष का भी महत्व होता है, 50 वर्ष का महत्व में होता है, 60 साल का भी महत्व में होता है। जरा हम इतिहास की तरफ नजर करें कि संविधान यात्रा के इन महत्वपूर्ण पड़ाव का क्या हुआ था। जब देश संविधान के 25 वर्ष पूरे कर रहा था। उसी समय हमारे देश में संविधान को नोच लिया गया था। इमरजेंसी आपातकाल लाया गया, संवैधानिक व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया, देश को जेल खाना बना दिया गया, नागरिकों के अधिकारों को लूट लिया गया, प्रेस के स्वतंत्रता को ताले लगा दिए गए और कांग्रेस के माथे पर यह जो पाप है ना वह कभी भी धुलने वाला नहीं है, कभी भी धुलने वाले नहीं है। दुनिया में जब-जब लोकतंत्र की चर्चा होगी कांग्रेस के माथे का यह पाप कभी धुलने वाला नहीं है। क्योंकि लोकतंत्र का गला घोट दिया गया था। भारत का संविधान निर्माता के तपस्या को मिट्टी में मिलने की कोशिश की गई थी।

आदरणीय सभापति जी,

जब 50 साल हुए तब क्या भुला दिया गया था, जी नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी और 26 नवंबर को 2000 देश भर में संविधान का 50 वर्ष मनाया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने प्रधानमंत्री के नाते राष्ट्र को एक विशेष संदेश दिया था। एकता जन भागीदारी साझेदारी उसके महत्व पर बल देते हुए उन्होंने संविधान की भावना को जीने का प्रयास किया था, जनता को जगाने का भी प्रयास किया था।

और अध्यक्ष जी,

जब देश संविधान का 50 वर्ष बना रहा था और जब 50 साल की पूर्णावर्ती हुई, तो यह मेरा भी सौभाग्य था कि मुझे भी संविधान की प्रक्रिया से मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल गया और मैं जब मुख्यमंत्री था उसी कार्यकाल में, संविधान के 60 साल हुए और तब मैंने तय किया था मुख्यमंत्री के नाते, कि हम गुजरात में संविधान के 60 साल मनाएंगे और इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब संविधान के ग्रंथ को हाथी पर बना ही अंबारी में रखा गया, उसे विशेष व्यवस्था में रखा गया। हाथी पर संविधान गौरव यात्रा निकाली गई और राज्य का मुख्यमंत्री उस संविधान के नीचे हाथी के बगल में पैदल चल रहा था और देश को संविधान का महत्व को समझाने का सांकेतिक प्रयास कर रहा था। यह सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ था, क्योंकि हमारे लिए संविधान का महत्व क्या है और आज 75 साल हुए हमें अवसर मिला और मुझे याद है जब मैंने लोकसभा के पुराने सदन के अंदर जब 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने के बाद कही थी। तब एक वरिष्ठ नेता ने सामने से आवाज उठाई थी कि 26 जनवरी तो है 26 नवंबर की क्या जरूरत है। क्या भावना घर कर गई थी यह बहुत पुरानी बात है, इसी सदन में मेरे सामने हुआ था।

लेकिन आदरणीय सभापति जी,

मेरे लिए खुशी की बात है इस विशेष सत्र में अच्छा होता संविधान की शक्ति संविधान की विविधताओं पर चर्चा होती, नई पीढ़ी के ऊपर काम आता। लेकिन हर एक की अपनी-अपनी मजबूरियां होती है। हर कोई अपने दुख किसी न किसी रूप में प्रकट करता रहता है। कईयों अपनी विफलताओं का दुख प्रकट किया है। अच्छा होता दलगत की भावनाओं से उठकर के देश हित में संविधान की चर्चा हुई होती तो समृद्धि मिलती देश की नई पीढ़ी को।

आदरणीय सभापति जी,

मैं तो संविधान के प्रति विशेष आदर का भाव व्यक्त करना चाहता हूं। कि ये संविधान के भावना थी कि मेरे जैसे अनेक लोग जो यहां पर पहुंच नहीं पाते, ये संविधान था जिसके कारण हम पहुंच पाए। क्योंकि हमारा कोई बैकग्राउंड नहीं था, हम यहां तक कैसे आते, यह संविधान का सामर्थ्य था, जनता जनार्दन के आशीर्वाद थे। इतना बड़ा दायित्व है और मेरे जैसे बहुत लोग यहां भी जिनका ऐसा कोई बैकग्राउंड नहीं है। यही एक सामान्य परिवार चाहेगा और आज संविधान में हमें यहां तक पहुंचाया है और यह भी कितना बड़ा सौभाग्य है कि हमें देश ने इतना स्नेह दिया एक बार नहीं, दो बार नहीं तीन बार। यह हमारे संविधान के बिना संभव नहीं था।

आदरणीय सभापति जी,

उतार-चढ़ाव तो आए, कठिनाई अभी आई, रुकावटें भी आई, लेकिन मैं फिर एक बार देश के जनता को नमन करता है कि देश की जनता पूरी ताकत के साथ संविधान के साथ खड़ी रही।

आदरणीय सभापति जी,

मैं आज यहां किसी के व्यक्तिगत आलोचना नहीं करना चाहता हूं लेकिन तथ्यों को देश के सामने रखना जरूरी है और इसलिए मैं तथ्यों को रखना चाहता हूं। कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। और मैं इसलिए इस परिवार का उल्लेख करता हूं कि 75 साल की हमारी यात्रा में 55 साल एक ही परिवार ने राज किया है। इसलिए देश को क्या-क्या हुआ है यह जानने का अधिकार है और इस परिवार के कुविचार कुरीति कुनीति इसकी परंपरा निरंतर चल रही है। हर स्तर पर इस परिवार ने संविधान को चुनौती दी है।

आदरणीय सभापति जी,

1947 to 1952, इस देश में इलेक्टेड गवर्नमेंट नहीं थी, एक अस्थाई व्यवस्था थी, एक सिलेक्टेड सरकार थी और चुनाव नहीं हुए थे और जब तक चुनाव ना हो तब तक एक इंटरीम व्यवस्था के रूप में कोई खाखा खड़ा करना चाहिए किया गया था। 1952 के पहले राज्यसभा का भी गठन नहीं हुआ था। राज्यों में भी कोई चुनाव नहीं थे। जनता का कोई आदेश नहीं था। उसके बावजूद भी और अभी-अभी तो संविधान निर्माताओं ने इतना मंथन करके संविधान बनाया था। 1951 में जबकि चुनी हुई सरकार नहीं थी। उन्होंने ऑर्डिनेंस करके संविधान को बदला और किया क्या, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला कर दिया गया और यह संविधान निर्माता का भी अपमान था, क्योंकि ऐसी बातें कोई संविधान सभा में नहीं आई होगी ऐसा नहीं है। लेकिन वहां उनके चली नहीं तो बाद में जैसे ही मौका मिला उन्होंने अभिव्यक्ति की इस आजादी को उस पर उन्होंने हथोड़ा मार दिया और यह संविधान निर्माता का घोर अपमान है। अपने मन की चीजें जो संविधान सभा के अंदर नहीं करवा पाए, वो उन्होंने पिछले दरवाजे से किया और वह भी चुनी हुई सरकार के वो प्रधानमंत्री नहीं थे, उन्होंने पाप किया था।

इतना ही नहीं, इतना ही नहीं, आदरणीय सभापति जी,

उसी दौरान, उसी दरमियान उसे समय के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी ने मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी में उन्होंने लिखा था, नेहरू जी लिखते हैं अगर संविधान हमारे आगे नेहरू जी लिखते हैं, अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए यह नेहरू जी लिख रहे हैं, अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए आगे नेहरू जी कह रहे हैं, तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए यह नेहरू जी ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी।

और आदरणीय सभापति जी,

यह भी देखिए 1951 में यह पाप किया गया, लेकिन देश चुप नहीं था। उसे समय राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी ने चेताया यह गलत हो रहा है। उस समय स्पीकर पद पर बैठे हुए हमारे स्पीकर महोदय ने भी पंडित जी को कहा गलत कर रहे हो। इतना ही नहीं आचार्य कृपलानी जी, जय प्रकाश नारायण, जैसे महान कांग्रेसी लोगों ने भी पंडित नेहरू ने कहा कि यह रोको लेकिन लेकिन पंडित जी का अपना संविधान चलता था। और इसलिए उन्होंने इतने वरिष्ठ महानुभाव की सलाह मानी नहीं और उसे भी उन्होंने दरकिनार कर दिया।

और आदरणीय सभापति जी,

यह संविधान संशोधन करने का ऐसा खून कांग्रेस के मुंह लग गया कि समय-समय पर वह संविधान का शिकार करते रही। यह खून मुंह पर लग गया। इतना ही नहीं संविधान के स्पिरिट को लहू लूहान करती रही।

आदरणीय सभापति जी,

करीब 6 दशक में 75 बार संविधान बदला गया।

आदरणीय सभापति जी,

जो बीज देश के पहले प्रधानमंत्री जी ने बोया था। उसे बीज को खाद्य पानी देने का काम एक और प्रधानमंत्री ने किया उनका नाम था श्रीमती इंदिरा गांधी। जो पाप पहले प्रधानमंत्री करके गए और जो खून लग गया था। 1971 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था। उस सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान बदलकर के पलट दिया गया और 1971 में यह संविधान संशोधन किया गया था। और क्या था, उन्होंने हमारे देश की अदालत के पंख काट दिए थे और यहां कहा था कि संसद संविधान के किसी भी आर्टिकल में जो मर्जी प्रयोग कर सकती है और अदालत उसकी तरफ देख भी नहीं सकती है। अदालत के सारे अधिकारों को छीन लिया गया था। यह पाप 1971 में उस समय के प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था। और इसने, इस परिवर्तन ने इंदिरा जी की सरकार को मौलिक अधिकारों को छीनने का और न्याय पालिका पर नियंत्रण करने का अधिकार दिया, सक्षम बना दिया था।

आदरणीय सभापति जी,

खून मुंह पर लग गया था कोई रोकने वाला था नहीं और इसलिए जब इंदिरा जी के चुनाव को गैर रीति के कारण और संवैधानिक तरीके से चुनाव लड़ने के कारण अदालत ने उनके चुनाव को खारिज कर दिया और उनको एमपी पद छोड़ने की नौबत आई, तो उन्होंने गुस्से में आकर के देश पर इमरजेंसी थोप दी, आपातकाल लगा दिया, अपनी कुर्सी बचाने के लिए और उसके बाद इतना ही नहीं उन्होंने इमरजेंसी तो लगाई, संविधान का दुरुपयोग तो किया ही किया, भारत के लोकतंत्र का गला तो घोट ही दिया, लेकिन 1975 में 39वां संशोधन किया और उसमें उन्होंने क्या किया, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अध्यक्ष, इनके चुनाव के खिलाफ कोई कोर्ट में जा ही नहीं सकता है ऐसा उन्होंने और वह भी रेट्रोस्पेक्टिव किया। आगे के लिए नहीं पीछे का भी अपने पापों का भी उन्होंने।

और आदरणीय सभापति जी,

मैं संविधान की बात कर रहा हूं मैं संविधान के आगे पीछे कुछ नहीं बोल रहा हूं।

आदरणीय सभापति जी,

आदरणीय सभापति जी,

इमरजेंसी में लोगों के अधिकार छीन लिए गए। देश के हजारों लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया। न्यायपालिका का गला घोट दिया गया। अखबारों की स्वतंत्रता पर ताले लगा दिए गए। इतना ही नहीं कमिटेड ज्यूडिशरी इस विचार को उन्होंने पूरी ताकत दी और इतना ही नहीं जिस जस्टिस एच आर खन्ना ने उनके चुनाव में उनको उनके खिलाफ जो जजमेंट दिया था, वो इतना गुस्सा भरा था, कि जब जस्टिस एच आर खन्ना जो सीनियरिटी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनने थे। जिन्होंने संविधान का सम्मान करते हुए उसे स्पिरिट से इंदिरा जी को सजा दी थी, उन्होंने मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया यह संवैधानिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया रही।

आदरणीय सभापति जी,

यहां भी ऐसे कई दल बैठे हैं जिनके मुखिया भी सारे जेल में हुआ करते थे। ये इनकी मजबूरी है कि अब वहां जाकर के बैठे हैं, उनको भी जेलों में ठूंस दिया गया था।

आदरणीय सभापति जी,

देश पर जुल्म और तांडव चल रहा था। निर्दोष लोगों को जेलों में ठूंस दिया जाता था। लाठियां बरसाईं जाती थी। कई लोग जेलों में मौत के शरण हो गए थे और एक निर्दयी सरकार संविधान को चूर-चूर करती रही थी।

आदरणीय सभापति जी,

ये परंपरा यहां नहीं रूकी, जो परंपरा नेहरू जी ने शुरू की थी। जिसको दूसरे प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने आगे बढ़ाया क्‍योंकि खून मुंह पर लग गया था और इसलिए राजीव गांधी जी प्रधानमंत्री बनें। उन्‍होंने संविधान को एक और गंभीर झटका दे दिया। सबको समानता, सबको समानता, सबको न्‍याय, उस भावना को चोट पहुंचाई।

आदरणीय सभापति जी,

आपको मालूम है सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो का जजमेंट दिया था। एक भारत की महिला को न्याय देने का काम संविधान की मर्यादा और स्पिरिट के आधार पर देश की सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। एक वृद्ध महिला को उसका हक मिला था सुप्रीम कोर्ट से लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाह बानो की उस भावना को सुप्रीम कोर्ट में उस भावना को नकार दिया और उन्‍होंने वोट बैंक की राजनीति के खातिर संविधान की भावना को बलि चढ़ा दिया और कट्टरपंथियों के सामने सर झुकाने का काम कर दिया। उन्‍होंने न्‍याय के लिए तड़प रही एक वृद्ध महिला को साथ देने के बजाय उन्‍होंने कट्टरपंथियों का साथ दिया। संसद में कानून बनाकर के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को फिर एक बार पलट दिया गया।

आदरणीय सभापति जी,

बात वहां तक नहीं अटकी है। नेहरू जी ने शुरू किया, इंदिरा जी ने आगे बढ़ाया और राजीव जी ने भी उसको ताकत दी। खाद-पानी देने का काम किया क्‍यों? संविधान के साथ खिलवाड़ करने का लहू उनके मुंह लग गया था।

आदरणीय सभापति जी,

अगली पीढ़ी भी इसी खिलवाड़ में डूबी पड़ी है। एक किताब को मैं quote कर रहा हूं। उस किताब में जो लिखा गया है और उसमें एक प्रधानमंत्री उस समय के मेरे पहले जो प्रधानमंत्री थे, उनको quote किया है। उन्होंने कहा है, मुझे ये स्वीकार करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र है। ये मनमोहन सिंह जी ने कहा है जो इस किताब में लिखा गया है। मुझे ये स्वीकार करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र है। सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है। इतिहास में पहली बार…

आदरणीय सभापति जी,

इतिहास में पहली बार…

आदरणीय सभापति जी,

इतिहास में पहली बार संविधान को ऐसी गहरी चोट पहुंचा दी गई, संविधान निर्माताओं ने चुनी हुई सरकार और चुनी हुई प्रधानमंत्री की कल्पना की हत्या की, हमारा संविधान था। लेकिन इन्‍होंने तो प्रधानमंत्री के ऊपर एक गैर संवैधानिक और जिसने कोई शपथ भी नहीं लिया था, नेशनल एडवाइजरी काउंसिल पीएमओ के भी ऊपर बैठा दिया। पीएमओ के ऊपर अघोषित दर्जा दे दिया गया।

आदरणीय सभापति जी,

इतना ही नहीं और एक पीढ़ी आगे चलें और उस पीढ़ी ने क्‍या किया, भारत के संविधान के तहत देश की जनता जनार्दन सरकार चुनती है और उस सरकार का मुखिया कैबिनेट बनाता है, ये संविधान के तहत है। इस कैबिनेट ने जो निर्णय किया संविधान का अपमान करने वाले अहंकार से भरे लोगों ने पत्रकारों के सामने कैबिनेट के निर्णय को फाड़ दिया। संविधान को हर मौके पर संविधान के साथ खिलवाड़ करना, संविधान को ना मानना, ये जिनकी आदत हो गई थी और दुर्भाग्य देखिए, एक अहंकारी व्यक्ति कैबिनेट के निर्णय को फाड़ दे और कैबिनेट अपना फैसला बदल दे, ये कौन सी, कौन सी व्यवस्था है?

आदरणीय सभापति जी,

मैं जो कुछ भी कह रहा हूं वो संविधान के साथ क्या हुआ उसी की बात कर रहा हूं। उस समय करने वाले पात्रों को लेकर किसी को परेशानी होती होगी लेकिन बात संविधान की है। मेरे मन के और मेरे विचारों को मैं अभिव्यक्त नहीं कर रहा हूं।

आदरणीय सभापति जी,

कांग्रेस ने निरंतर संविधान की अवमानना की है। संविधान के महत्व को कम किया है। कांग्रेस इसके अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा हुआ है। संविधान के साथ धोखेबाजी कैसे करते थे, संवैधानिक संस्थाओं को कैसे नहीं मानते थे। इस देश में बहुत कम लोगों को मालूम होगा, 370 की तो पता है सबको, 35A का पता बहुत कम है। संसद में आए बिना जबकि संसद में आना पड़ता, संसद को ही अस्वीकार कर दिया गया। भारत के संविधान का अगर कोई पहला पुत्र है तो ये संसद है, उसको भी उन्होंने गला घोंटने का काम किया। 35A जो संसद में लाए बिना उन्होंने देश पर थोप दिया और अगर 35A ना होता तो जम्मू-कश्मीर में जो हालत पैदा हुई वो हालत पैदा ना हुई होती। राष्ट्रपति के आदेश पर ये काम किया गया और देश की संसद को अंधेरे में रखा गया।

आदरणीय सभापति जी,

ये संसद का अधिकार था, कोई अपनी मनमानी से नहीं कर सकता था लेकिन और उनके पास बहुमत था, कर सकते थे। लेकिन वो नहीं किया क्योंकि पेट में पाप था। देश की जनता से छुपाना चाहते थे।

आदरणीय सभापति जी,

इतना ही नहीं बाबा साहब आंबेडकर जिनके प्रति आज सम्मान का भाव सबको ही अनुभव कर रहा है और हम लोगों के लिए तो बहुत विशेष है क्‍योंकि हम लोगों के लिए तो जीवन में बहुत बड़ी जो कुछ भी रास्‍ते मिले हैं वहीं से मिले हैं।

आदरणीय सभापति जी,

बाबा साहब आंबेडकर इनके प्रति भी इनके मन में कितना कटुता भरी थी, कितना द्वेष भरा था, मैं आज उसके डिटेल में जाना नहीं चाहता हूं लेकिन जब अटल जी की सरकार थी तब बाबा साहब आंबेडकर जी के स्मृति में एक स्मारक बनवाना तय हुआ, अटल जी के समय में ये हुआ। दुर्भाग्य देखिए 10 वर्ष यूपीए की सरकार हुई, उसने इस काम नहीं किया, ना होने दिया। बाबा साहब आंबेडकर का जब हमारी सरकार आई, बाबा साहब आंबेडकर के प्रति हमारा श्रद्धा होने के कारण हमने अलिपुर रोड पर बाबा साहब मेमोरियल बनवाया और उसका काम किया।

आदरणीय सभापति जी,

दिल्‍ली में जब बाबा साहब आंबेडकर के 1992 में, उस समय चंद्रशेखर जी कुछ समय थे, तब निर्णय किया गया था। आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर यहीं जनपथ के पास, 40 साल तक वो कागज पर ही पड़ा रहा, नहीं किया गया और तब जाकर के 2015 में हमारी सरकार आई और हमने आकर के इस काम पूरा किया। बाबा साहब को भारत रत्न देने का काम भी जब कांग्रेस सत्ता से बाहर गई तब संभव हुआ। इतना ही नहीं…

आदरणीय सभापति जी,

बाबा साहब आंबेडकर के सवा सौ साल तो हमने पूरी दुनिया में बनाए थे। विश्व के 120 देशों में बनाने का काम किया था लेकिन जब बाबा साहब आंबेडकर की शताब्‍दी थी, तब अकेली बीजेपी की सरकार थी मध्‍य प्रदेश में सुंदरलाल जी पटवा हमारे मुख्यमंत्री जी थे और महू में, जहां बाबा साहब आंबेडकर जी का जन्म हुआ था उसको एक स्मारक के रूप में पुनर्निर्माण करने का काम सुंदरलाल जी पटवा जी जब मुख्यमंत्री थे तब मध्‍य प्रदेश में हुआ था। शताब्‍दी के समय भी उनके साथ यही किया गया था।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे बाबा साहब आंबेडकर एक दीर्घदृष्‍टा थे। समाज के दबे-कुचले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए वो प्रतिबद्ध थे और लंबे सोच के साथ भारत को अगर विकसित होना है तो भारत को कोई अंग दुर्बल नहीं रहना चाहिए, ये चिंता बाबा साहब को सताती थी और तब जाकर के हमारे देश में आरक्षण की व्यवस्था बनी। लेकिन वोट बैंक की राजनीति में खपे हुए लोगों ने, डूबे हुए लोगों ने धर्म के आधार पर तुष्टिकरण के नाम पर आरक्षण के अंदर कुछ ना कुछ नुस्खे देने का प्रयास किया और इसका सबसे बड़ा नुकसान एससी, एसटी और ओबीसी समाज को हुआ है।

आदरणीय सभापति जी,

आरक्षण की कथा बहुत लंबी है। नेहरू जी से लेकर के राजीव गांधी तक कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने आरक्षण का घोर विरोध किया है। हिस्ट्री कह रही है, आरक्षण के विरोध में लंबी-लंबी चिट्ठियां स्वयं नेहरू जी ने लिखी है, मुख्यमंत्रियों को लिखी हैं। इतना ही नहीं सदन में आरक्षण के खिलाफ लंबे-लंबे भाषण इन लोगों ने किए हैं। बाबा साहब आंबेडकर, समता के लिए और भारत में संतुलित विकास के लिए आरक्षण लेकर के आए, उन्होंने उसके खिलाफ भी झंडा ऊंचा किया हुआ था। दशकों तक मंडल कमीशन की रिपोर्ट को डिब्बे में डाल दिया था। जब कांग्रेस को देश ने हटाया, जब कांग्रेस गई तब जाकर के ओबीसी को आरक्षण मिला, तब तक ओबीसी को आरक्षण नहीं मिला, ये कांग्रेस का पाप है। अगर उस समय मिला होता तो आज देश के अनेक पदों पर ओबीसी समाज के लोग भी देश की सेवा करते, लेकिन नहीं चलने दिया, नहीं होने दिया, ये पाप इन्‍होंने किया था।

आदरणीय सभापति जी,

जब हमारे यहां संविधान का निर्माण चल रहा था, तब संविधान निर्माताओं ने धर्म के आधार पर आरक्षण होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए इस विषय पर घंटों तक दिनों तक गहन चर्चा की है। विचार विमर्श किया है और सबका मत बना है कि भारत जैसे देश की एकता और अखंडता के लिए धर्म के, संप्रदाय के आधार पर आरक्षण नहीं हो सकता है। सुविचारित मत था, ऐसा नहीं कि भूल गए थे, रह गया था। सोच विचार कर तय किया गया था कि भारत की एकता और अखंडता के लिए संप्रदाय और धर्म के आधार पर ये नहीं होगा। लेकिन कांग्रेस ने सत्ता सुख के लिए, सत्ता भूख के लिए अपनी वोट बैंक को खुश करने के लिए धर्म के आधार पर आरक्षण का नया खेल खेला है, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। इतना ही नहीं, दे भी दिया कुछ जगह पर और सुप्रीम कोर्ट से झटके लग रहे हैं और इसलिए अब दूसरे बहाने से बहाने बता रहे हैं, ये करेंगे वो करेंगे, मन में साफ है धर्म के आधार पर आरक्षण देना चाहते हैं, इसलिए ये खेल खेले जा रहे हैं। संविधान निर्माताओं के भावनाओं पर गहरी चोट करने का ये निर्ल्लज प्रयास है आदरणीय सभापति जी!

आदरणीय सभापति जी,

एक ज्वलंत विषय है जिसकी भी मैं चर्चा करना चाहता हूं और वो ज्वलंत विषय समान नागरिक संहिता, यूनिफॉर्म सिविल कोड! ये विषय भी संविधान सभा के ध्यान बाहर नहीं था। संविधान सभा ने इस यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर के लंबी चर्चा की, गहन चर्चा की और उन्‍होंने बहस के बाद निर्णय किया कि अच्‍छा होगा कि जो भी सरकार चुनकर के आए, वो उसका निर्णय करे और देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करे। ये संविधान सभा का आदेश था और बाबा साहब आंबेडकर ने कहा था, जो लोग संविधान को समझते नहीं है, देश को समझते नहीं है, सत्ता भूख के सिवा कुछ पढ़ा नहीं है। उनको पता नहीं है बाबा साहब ने क्‍या कहा था। बाबा साहब ने कहा था धार्मिक आधार पर बने, ये मैं बाबा साहब की बात कर रहा हूं। ये इतना वीडियो कट करके घुमाना मत!

आदरणीय सभापति जी,

बाबा साहब ने कहा था, धार्मिक आधार पर बने, पर्सनल लॉ को खत्म करने की बाबा साहब ने जोरदार वकालत की थी। उस समय के सदस्य के.एम. मुंशी, मुंशी जी ने कहा था समान नागरिक संहिता को राष्ट्र की एकता और आधुनिकता के लिए अनिवार्य बताया था के.एम. मुंशी ने… सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड जल्‍द से जल्‍द होना चाहिए, सरकारों को आदेश दिए हैं सुप्रीम कोर्ट ने और उसी संविधान की भावना को ध्‍यान में रखते हुए, संविधान निर्माताओं की भावनाओं को ध्‍यान में रखते हुए हम पूरी ताकत से लगे हुए हैं सेकुलर सिविल कोर्ड के लिए और आज कांग्रेस के लोग संविधान निर्माताओं की इस भावना का भी सुप्रीम कोर्ट की भावना का भी अनादर कर रहे हैं। क्योंकि उनकी राजनीति को वो सूट नहीं करता है, उनके लिए संविधान वो पवित्र ग्रंथ नहीं है, उनके लिए एक हथियार है राजनीति का। खेल खेलने का हथियार बना दिया हैद्। लोगों को डराने के लिए संविधान को हथियार बनाया जाता है।

आदरणीय सभापति जी,

और यह कांग्रेस पार्टी उनको तो संविधान शब्द भी उनके मुंह में शोभा नहीं देता है। इसीलिए जो अपनी पार्टी के संविधान को नहीं मानते हैं। जिन्होंने अपनी पार्टी के संविधान को कभी स्वीकार नहीं किया है। क्योंकि संविधान को स्वीकार करने के लिए लोकतांत्रिक स्पिरिट लगता है जी। जो इनकी रगों में नहीं है सत्तावाद और परिवारवाद भरा पड़ा है। अब आप देखिए जो कैसे शुरूआती कितनी गड़बड़ हुई है। मैं कांग्रेस की बात कर रहा हूं। 12 कांग्रेस के प्रदेश के कमेटियों ने 12 प्रदेश कॉमेडियन ने, सरदार पटेल के नाम पर सहमति दी थी। नेहरू जी के साथ एक भी कमेटी नहीं थी, नोट ए सिंगल। संविधान के तहत सरदार साहब ही देश के प्रधानमंत्री बनते। लेकिन लोकतंत्र में श्रद्धा नहीं, खुद के संविधान पर विश्वास नहीं, खुद के ही संविधान को स्वीकारना नहीं और सरदार साहब देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सके और यह बैठ गए। जो लोग अपनी पार्टी के संविधान को, जो लोग अपनी पार्टी के संविधान को नहीं मानते, वो कैसे देश के संविधान को स्वीकार कर सकते हैं।

आदरणीय सभापति जी,

जो लोग संविधान में लोगों के नाम ढूंढते रहते हैं, मैं जरा बताना चाहता हूं। कांग्रेस पार्टी के एक अध्यक्ष हुआ करते थे और वह अति पिछड़े समाज से आते थे, अति पिछड़े, पिछड़े भी नहीं अति पिछड़े। अति ही पिछड़े समाज से आते हुए उनके अध्यक्ष श्रीमान सीताराम केसरी जी, कैसा अपमान किया गया। कहते हैं बाथरूम में बंद कर दिया गया। उठा करके फुटपाथ पर फेंक दिया गया। अपनी पार्टी के संविधान में ऐसा कभी नहीं लिखा गया, लेकिन अपनी पार्टी के संविधान को ना मानना लोकतंत्र की प्रक्रिया को ना मानना और पूरी कांग्रेस पार्टी पर एक परिवार ने कब्जा कर लिया। लोकतंत्र को नकार दिया।

आदरणीय सभापति जी,

संविधान के साथ खिलवाड़ करना, संविधान के स्पिरिट को तहस-नहस करना, यह कांग्रेस की रगों में रहा है। हमारे लिए संविधान उसकी पवित्रता, उसकी सुचिता, हमारे लिए सर्वोपरि है और यह शब्दों में नहीं है जब-जब हमें कसौटी पर कसा गया है हम तप करके निकले हुए लोग हैं। मैं उदाहरण देना चाहता हूं, 1996 में सबसे बड़े दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी जीत करके आई, सबसे बड़ा दल था और राष्ट्रपति जी ने संविधान की भावना तहत सबसे बड़े दल को प्रधानमंत्री की शपथ के लिए बुलाया और 13 दिन सरकार चली। अगर हमें संविधान के स्पिरिट के प्रति हमारी भावना ना होती तो हम भी यह बांटो, वो बांटो, ये दे दो, वो दे दो। इसको डेप्युटी पीएम बना दो, इसको ढिकना बना दो। हम भी सत्ता सुख भोग सकते थे, लेकिन अटल जी ने सौदेबाजी का रास्ता नहीं चुना, संविधान के सम्मान का रास्ता चुना और 13 दिन के बाद इस्तीफा देना स्वीकार कर दिया। यह ऊंचाई है हमारे लोकतंत्र की। इतना ही नहीं 1998 में एनडीए की सरकार थी। सरकार चल रही थी लेकिन कुछ लोगों को हम नहीं तो कोई नहीं यह जो एक परिवार का खेल चला है, अटल जी के सरकार को स्थिर करने के लिए खेल चले गए, वोट हुआ खरीद फरोख्त तब भी हो सकती थी, बाजार में माल तब भी बिकता था। लेकिन संविधान की भावना के प्रति समर्पित अटल बिहारी वाजपयी जी की सरकार ने एक वोट से हारना पसंद किया, इस्तीफा दिया, लेकिन असंवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया। यह हमारा इतिहास है, यह हमारे संस्कार है, यह हमारी परंपरा है और दूसरी तरफ अदालत ने भी जिस पर ठप्पा मार दिया कैश फॉर वोट का कांड एक लघुमति सरकार को बचाने के लिए संसद में नोटों के ढेर रखे गए। असंवैधानिक तरीका सरकार बचाने के लिए भारत के लोकतंत्र की भावना को बाजार बना दिया गया। वोट खरीदे गए।

आदरणीय सभापति जी,

90 के दशक में कई सांसदों को रिश्वत देने का पाप यह संविधान की भावना थी। क्या 140 करोड़ देशवासियों के मन में जो लोकतंत्र पनपा है उस लोकतंत्र के साथ यह खिलवाड़। कांग्रेस के लिए सत्ता सुख, सत्ता की भूख यही एकमात्र कांग्रेस का इतिहास है, कांग्रेस का वर्तमान है।

आदरणीय सभापति जी,

2014 के बाद एनडीए को सेवा का मौका मिला। संविधान और लोकतंत्र को मजबूती मिली। यह पुरानी जो बीमारियां थी उस बीमारी से मुक्ति का हमने अभियान चलाया। बीते 10 साल यहां से पूछा गया हमने भी संविधान संशोधन किए। जी हां हमने भी संविधान संशोधन किए हैं। देश की एकता के लिए, देश के अखंडता के लिए, देश के उज्जवल भविष्य के लिए और संविधान की भावना के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ किए है। हमने संविधान संशोधन किया क्यों किया, इस देश का ओबीसी समाज तीन-तीन दशक से ओबीसी कमिशन को संवैधानिक दर्जा देने के लिए मांग कर रहा था। ओबीसी के सम्मान के लिए उसको संवैधानिक दर्जा देने के लिए हमने संविधान संशोधन किया है, हमें गर्व है यह करने का। समाज के दबे कुचले लोगों को उनके साथ खड़े होना यह हम अपना कर्तव्य मानते हैं इसलिए संविधान संशोधन किया गया।

आदरणीय सभापति जी,

इस देश में एक बहुत बड़ा वर्ग था। वह किसी भी जाति में क्यों ना जन्म हो लेकिन गरीबों के कारण अवसरों को वो पा नहीं सकता था, आगे बढ़ नहीं सकता था और इसलिए उसने असंतोष कर ज्वाला भड़क रही थी और सब की मांग रहते थी, कोई निर्णय नहीं करता था। हमने संविधान संशोधन किया सामान्य जन के गरीब परिवार के 10% और आरक्षण का किया। और यह पहला आरक्षण का संशोधन था देश में कोई विरोध का स्वर नहीं उठा, हर किसी ने प्यार से उसको स्वीकार किया, संसद ने भी सहमति के साथ पारित किया। क्योंकि समाज की एकता की उसमें ताकत पड़ी थी। संविधान की भावनाओं का भाव पड़ा था। सबने सहयोग किया था तब जाकर यह हुआ था।

आदरणीय सभापति जी,

जी हां हमने भी संविधान में संशोधन किए हैं। लेकिन हमने संविधान में संशोधन किया महिलाओं को शक्ति देने के लिए। सांसद और विधानसभा में और संसद का पुराना भवन गवाह है जब देश महिलाओं को आरक्षण देने के लिए आगे बढ़ रहा था और कानून बिल पेश हो रहा था, तब उन्ही का एक साथी दल बेल में आता है, कागज छीन लेता है, फाड़ देता है और सदन स्थगित हो जाता है, और 40 साल तक विषय लटका रहता है और वह आज उनके मार्गदर्शक हैं। जिन्होंने देश की महिलाओं के साथ अन्याय किया वह उनके मार्गदर्शक हैं।

आदरणीय सभापति जी,

हमने संविधान संशोधन किया, हमने देश की एकता के लिए किया। बाबा साहब अंबेडकर का संविधान 370 की दीवार के कारण जम्मू कश्मीर की तरफ देख भी नहीं सकता था। हम चाहते थे बाबा साहब अंबेडकर का संविधान हिंदुस्तान के हर हिस्से में लगना चाहिए और इसलिए बाबा साहब को श्रद्धांजलि भी देनी थी, देश की एकता को मजबूत करना था, हमने संविधान संशोधन किया डंके की चोट पर किया और 370 को हटाया और अब तो भारत का सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे पर मोहर लगा दी है।

आदरणीय सभापति जी,

हमने 370 का हटाने का संशोधन किया। हमने ऐसे कानून भी बनाए। जब देश का विभाजन हुआ महात्मा गांधी समेत देश के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा था, कि पड़ोस के जो हमारे देश हैं वहां जो माइनारटीज हैं वो जब भी संकट में आएगी उनकी चिंता यह देश करेगा गांधी जी का वचन था जो उनके नाम पर सत्ता पर चढ़ जाते थे उन्होंने तो पूरा नहीं किया हमने CAA ला करके उसको पूरा किया। वह कानून हमने लाया, हमने किया है और गर्व के साथ हम आज भी उसको ऑन कर रहे हैं मुंह नहीं छुपाते हैं। क्योंकि देश के संविधान की भावना के साथ मजबूती के साथ खड़े रहने का हमने काम ने किया है।

आदरणीय सभापति जी,

हमने जो संविधान संशोधन किए हैं वो पुरानी गलतियों को ठीक करने के लिए किए है और हमने एक उज्जवल भविष्य का रास्ता मजबूत करने के लिए किए हैं और समय बताएगा समय की कसौटी पर हम खरे उतरेंगे या नहीं। क्योंकि सत्ता स्वार्थ के लिए किया गया पाप नहीं है। हमने देश हित में किया गया पुण्य है और इसलिए जो सवाल पूछते हैं।

आदरणीय सभापति जी,

यहां संविधान पर अनेक भाषण हुए, अनेक विषय उठाए गए, हर एक की अपनी मजबूरियां होगी। राजनीति कुछ ना कुछ करने के लिए कुछ करते होंगे। लेकिन आदरणीय सभापति जी हमारा संविधान सबसे ज्यादा जिस बात को लेकर के संवेदनशील रहा है, वो हैं भारत के लोग। वी द पीपल, भारत के नागरिक, संविधान उनके लिए है, उनके हितों के लिए है, उनके कल्याण के लिए है, उनकी गरिमा के लिए हैं और इसलिए संविधान भारत के कल्याणकारी राज्य के लिए हमें दिशा निर्देश देता है और कल्याणकारी राज्य का मतलब है जहां नागरिकों को भी गरिमा प्राप्त हो उनको गरिमामय जीवन की गारंटी मिलनी चाहिए। हमारे कांग्रेस के साथियों को एक शब्द बहुत प्रिय है मैं आज उस शब्द का उपयोग करना चाहता हूं और उनका सबसे प्रिय शब्द जिसके बिना वह जी नहीं सकते वह शब्द है जुमला। कांग्रेस के हमारे साथी उनको दिन-रात जुमला लेकिन इस देश को पता है हिंदुस्तान में अगर सबसे बड़ा जुमला कोई था और वो चार-चार पीढ़ी ने चलाया वह जुमला था गरीबी हटाओ। यह ऐसा जुमला था यह गरीबी हटाओ ऐसा जुमला था। उनकी राजनीति की रोटी तो हो सकती थी लेकिन गरीब का हाल ठीक नहीं होता था।

आदरणीय सभापति जी,

जरा कोई भी यह कहे आजादी के इतने सालों के बाद क्या एक डिग्निटी के साथ जीने वाले परिवार को क्या उसे टॉयलेट भी उपलब्ध नहीं होना चाहिए। क्या आपको यह काम करने की फुर्सत नहीं मिली। आज देश में टॉयलेट बनाने के अभियान को जो गरीबों के लिए एक सपना था। उसकी डिग्निटी के लिए हमने इस काम को हाथ में लिया और हमने जी जान से जुटे रहे। उसका मजाक उड़ाया गया मुझे मालूम है लेकिन उसके बाद भी सामान्य नागरिक के जीवन का गरिमा यह हमारे दिल और दिमाग में होने के कारण हम डिगे नहीं, हम अड़े रहे, हम आगे बढ़ते चले गए और तब जाकर के यह सपना साकार हुआ। माताएं बहने खुले में शौच जा रही थी या तो सूर्य दो के पहले या सूर्योदय के बाद और आपको कभी पीड़ा नहीं हुई और उसका कारण यह था कि आपने गरीबों को और गरीबों को टीवी में देखा है और अखबार की सुर्खियों में देखा है। आपको गरीब की जिंदगी का पता नहीं है। वरना आप इसके साथ ऐसा जुल्म नहीं करते।

आदरणीय सभापति जी,

इस देश के 80% जनता पीने के शुद्ध पानी के लिए तरसती रही। क्या मेरा संविधान उन्हें रोकना था क्या। संविधान तो यह चाहता था कि सामान्य मानवीय के सुविधाओं पर ध्यान दिया जाए।

आदरणीय सभापति जी,

यह काम भी हमने बड़े समर्पण भाव से आगे बढ़ाया है।

आदरणीय सभापति जी,

इस देश की करोड़ों माताएं चूल्हे में खाना पकाना और धुएं से आंखें लाल, कहते हैं कि सैकड़ो सिगरेट का धुआं खाना पकाते हैं तब धुआं शरीर में जाता है। उन माता बहनों की आंखें लाल होती थी इतना ही नहीं, उनका शरीर स्वस्थ खत्म हो जाता था। उनको धुएं से मुक्ति का काम और 2013 तक क्या चर्चा चलती थी। 9 सिलेंडर देंगे के की 6 सिलेंडर देंगे। इस देश ने देखते ही देखते हर घर के अंदर गैस का सिलेंडर पहुंचा दिया क्योंकि हमारे लिए हर नागरिक 70 साल के बाद जो बेसिक सुविधाएं हैं उसकी तरफ।

आदरणीय सभापति जी,

अगर हमारा गरीब परिवार दिन रात मेहनत करके गरीबी से बाहर निकालने के लिए कोशिश करता है, बच्चों को पढ़ना चाहता है, लेकिन घर में एक बीमारी आ जाए तो उसका सारा प्लान बेकार हो जाता है, पूरा परिवार की सारी मेहनत पानी में चली जाती है। क्या इन गरीब परिवारों के इलाज के लिए आप कुछ सोच नहीं सकते थे। 50 60 करोड़ देशवासियों को मुफ्त इलाज मिले, संविधान की इस भावना का आदर करते हुए हमने आयुष्मान योजना को लागू किया और आज देश के 70 साल के ऊपर के किसी भी वर्ग के क्यों ना हो उनके लिए भी हमने व्यवस्था की।

माननीय सभापति जी,

जरूरतमंदों को राशन देने की बात और उसका भी मजाक उड़ाया जा रहा है। जब हम कहते हैं कि 25 करोड लोग गरीबों को परास्त करने में सफल हुए हैं। तो फिर हमें सवाल पूछा जाता है तो फिर आप गरीब को राशन क्यों देते हो।

आदरणीय सभापति जी,

जो गरीबी से निकाल कर क्या आया है ना उसे पता होता है, कि अस्पताल में भी एक पेशेंट स्वस्थ होने के बाद जब छुट्टी देते हैं ना तो डॉक्टर भी कहता है आप घर जाइए तबीयत ठीक है, ऑपरेशन अच्छा हुआ है। लेकिन महीने भर यह जरा संभलना, यह मत करना क्योंकि पेशेंट दोबारा तकलीफ में ना आए। गरीब दोबारा गरीब ना बने इसलिए उसका हैंड होल्डिंग जरूरी है और इसलिए हम उसको मुफ्त राशन दे रहे हैं उसकी मजाक मत उड़ाओ क्योंकि हमें गरीबी से बाहर निकाले हैं उसको दोबारा गरीबी में जाने नहीं देना है और जो अभी भी गरीबी में है उसे हमें गरीबों से बाहर लाना है।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे देश में गरीबों के नाम पर जो जुमले चले, उसी गरीबों के नाम पर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। किया गया गरीबों के नाम पर लेकिन 2014 तक इस देश के 50 करोड़ नागरिक ऐसे थे जिन्होंने बैंक का दरवाजा तक नहीं देखा था।

आदरणीय सभापति जी,

गरीब को बैंक में प्रवेश तक नहीं था यह पाप आपने किया और आज 50 करोड़ गरीबों के बैंक खाता खोल करके हमने बैंक के दरवाजे गरीबों के लिए खोल दिए हैं। इतना ही नहीं यह एक प्रधानमंत्री कहते थे कि दिल्ली से ₹1 निकलता है तो 15 पैसा पहुंचता है। लेकिन उपाय उनको आता नहीं था उपाय हमने दिखाया आज दिल्ली से ₹1 निकलता है 100 के 100 पैसे गरीब के खाते में जमा होते हैं। क्यों हमने बैंक का सही इस्तेमाल क्या करना, बैंक का सही उपयोग क्या करना।

आदरणीय सभापति जी,

बिना गारंटी के लोन देश के अंदर जिन लोगों को बैंक के दरवाजे तक जाने की इजाजत नहीं थी। आज स्थगित सरकार संविधान के प्रति जो समर्पण है ना, आज बिना गारंटी वह बैंक से लोन ले सकता है यह ताकत हमने गरीब को दी है।

आदरणीय सभापति जी,

गरीबी हटाओ का जुमला इसी के कारण जुमला बनाकर के रह गया। गरीब को इस मुश्किल से मुक्ति मिले यह हमारा बहुत बड़ा मिशन और यह हमारा संकल्प है और हम इसके लिए दिन-रात एक कर रहे हैं। जिनका कोई नहीं पूछता उनको मोदी पूजता है।

आदरणीय सभापति जी,

दिव्यांगजन हर दिन संघर्ष करता है हमारा दिव्यांगजन। अब जाकर के हमारे दिव्यांग को फ्रेंडली इंफ्रास्ट्रक्चर मिले, उसकी व्हीलचेयर आगे तक जाए ट्रेन के डिब्बे तक जाए, यह व्यवस्था दिव्यांगजन के लिए करने का हमारे दिल में तब आया, क्योंकि समाज के दबे कुचले वंचित लोगों की चिंता करना हमारे मन में था तब हुआ।

आदरणीय सभापति जी,

आप मुझे बताइए एक तो भाषा के नाम पर झगड़ा करना तो सिखा दिया आपने, लेकिन मेरे दिव्यांग जनों के साथ कितना अन्याय किया। जो हमारे यहां साइन लैंग्वेज जो है, साइन लैंग्वेज की जो व्यवस्था है खास करके मूक बधिर के लिए। अब दुर्भाग्य ऐसा देश का कि असम में जो भाषा सिखाई जाए उत्तर प्रदेश में दूसरी सिखाई जाए। उत्तर प्रदेश में सिखाया जाए महाराष्ट्र में तीसरी हमारे जाए। हमारे दिव्यांग जनों के लिए एक साइन लैंग्वेज का होना बहुत जरूरी था। आजादी के सात दशक बाद भी उनको उन दिव्यांग जनों की याद नहीं आई। एक कॉमन साइन लैंग्वेज बनाने का काम हमने किया जो आज मेरे देश के सभी दिव्यांग भाई बहनों के लिए काम आ रही है।

आदरणीय सभापति जी,

घुमंतू और अर्ध घुमंतु जन समूह समाज का इसका कोई पूछने वाला नहीं था। उनके कल्याण के लिए वेलफेयर बोर्ड बनाने का काम हमने किया, क्योंकि संविधान की प्राथमिकता है यह लोग, हमने उसको दर्जा देने का काम किया है।

आदरणीय सभापति जी,

हर कोई रेहड़ी पटरी के लोगों से जानता है हर मोहल्ले में, हर इलाके में, हर फ्लैट में ,हर सोसाइटी में, सुबह होते ही वो रेडी पटरी वाला आकर के मेहनत कर करके और लोगों का जीवन चला करने में मदद करता है उसको बेचारे को 12 12 घंटे काम करें, रेहडी भी किसी से किराए पर ले लें, किसी से ब्याज पर पैसा ले, पैसे से सामान खरीदे, शाम का ब्याज का वह पैसा ले जाए बड़ा मुश्किल से अपने बच्चों के लिए ब्रेड का टुकड़ा ले जा सके यह हालत थी। यह हमारी सरकार ने रेहड़ी पटरी वालों के लिए स्वनिधि योजना बनाकर के बैंक से उनका बिना गारंटी लोन देने का शुरू किया और आज उसके कारण वह स्वनिधि योजना के कारण वह तीसरे राउंड तक पहुंचा है और अधिकतम loan बैंक से उसको सामने से मिल रही है उसकी प्रतिष्ठा का और विकास हो रहा है, विस्तार भी हो रहा है।

आदरणीय सभापति जी,

इस देश में हममे से कोई ऐसा नहीं होगा जिसको विश्वकर्मा की जरूरत ना पड़ती हो। समाज की व्यवस्था की एक बहुत बड़ी व्यवस्था बनी थी। सदियों से चली आ रही थी। लेकिन वह विश्वकर्मा साथियों के लिए कभी पूछा नहीं गया। हमने विश्वकर्मा के कल्याण के लिए योजना बनाई, बैंक से लोन लेने की व्यवस्था की, उनको नई ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की, उनको आधुनिक टूल देने की व्यवस्था की, नई डिजाइन से काम बनाने की चिंता की और उसको हमने मजबूत बनाने का काम किया।

आदरणीय सभापति जी,

ट्रांसजेंडर जिसको परिवार ने धुतकार दिया, जिसको समाज ने धुतकार कर दिया, जिसकी कोई चिंता करने वाला नहीं था, यह हमारी सरकार है कि इसको भी भारत के संविधान में हक दिए हैं, उस ट्रांसजेंडर के अधिकारों के लिए कानून व्यवस्थाएं बनाने का काम भी किया। उनको गरिमा पूर्ण जीवन मिले उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए हमने काम किया।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे आदिवासी समाज इतनी सारी बातें करके तो मुझे याद है, मैं जब गुजरात का मुख्यमंत्री बना, तो हमारे यहां उम्र गांव से अंबा जी तक पूरा बेल्ट गुजरात का पूर्व हिस्सा पूरा आदिवासी बेल्ट और एक कांग्रेस के मुख्यमंत्री आदिवासी रह चुके थे। इतने सालों के बाद भी उस पूरे एक इलाके में एक भी साइंस स्ट्रीम की स्कूल नहीं थी। मेरे आने से पहले एक भी साइंस स्ट्रीम की स्कूल नहीं थी। अगर साइंस स्ट्रीम की स्कूल नहीं है तो कितनी आरक्षण की बातें करो वह बेचारा इंजीनियर और डॉक्टर कैसे बन सकता है ये मैंने उस इलाके में काम किया। और वहां साइंस स्‍ट्रीम के स्‍कूल हैं वहां, अब तो वहां यूनिवर्सिटीज बन गई हैं लेकिन, यानी राजनीति की चर्चा करना संविधान के अनुरूप काम ना करना, ये जिनकी सत्ता भूख है ना उसका… हमने आदिवासी समाज में भी जो अति पिछड़े लोग हैं और उसमें मैं राष्ट्रपति जी का आभार व्यक्त करता हूं, उन्होंने मेरा काफी मार्गदर्शन किया। राष्‍ट्रपति महोदया ने मेरा मार्गदर्शन किया, अब उसमें से पीएम जन मन योजना बनी, हमारे देश में पिछड़ी-पिछड़े आदिवासी समाज के छोटे-छोटे समूह हैं जो आज भी, आज भी उनको कोई सुविधा प्राप्त नहीं हुई थी, हमने ढूंढ-ढूंढकर के संख्या बहुत कम है, वोट की राजनीति में उनकी तरफ देखने वाला कोई नहीं था, लेकिन मोदी है जो आखिरी को भी ढूंढता है और इसलिए हमने उनके लिए पीएम जन मन योजना के द्वारा उनकी विकास की।

आदरणीय सभापति जी,

जैसे समाजों में उनके विकास संतुलित होना चाहिए। पिछड़े से पिछड़े व्यक्ति को भी संविधान अवसर देता है। जिम्मेदारी भी संविधान को देता है, उसी प्रकार से कोई भू भाग भी कोई हमारा जियोग्राफिकल इलाका भी वो पीछे नहीं रहना चाहिए और हमारे देश में किया क्या, 60 साल के दर्मियान 100 डिस्ट्रिक्ट आईडेंटिफाई करके कह दिया कि ये तो बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट है और बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट का ऐसा लेबल लग गया कि किसी की ट्रांसफर होती थी तो वो कहता था पनिशमेंट पोस्टिंग तो कोई जिम्‍मेवार अफसर जाता ही नहीं था और उनके तो, हमने पूरी स्थिति को बदल दिया। हमने एसपिरेशनल डिस्ट्रिक्ट की एक कल्पना रखी और 40 पैरामीटर पर ऑनलाइन रेगुलर मॉनिटरिंग करते रहे और आज एसपिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उस राज्य के अच्छे जिलों की बराबरी करने लग गए और कुछ तो नेशनल एवरेज की बराबरी करने लगे। भू भाग भी पीछे ना रहे कोई जिला अब इसको आगे ले जाकर के हमने 500 ब्लॉक को एसपिरेशनल ब्लॉक बनाकर के उनके डेवलप पर स्पेशल फोकस करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं।

आदरणीय सभापति जी,

मैं हैरान हूं, जो लोग बड़ी-बड़ी कथाएं सुनाते हैं क्या इस देश में आदिवासी समाज 1947 के बाद आया है क्या? क्या राम और कृष्ण थे तब आदिवासी समाज था कि नहीं था? जो आदिवासी समाज को आदिपुरुष जो हम कहते हैं लेकिन आजादी के कई दशकों के बाद भी इतना बड़ा आदिवासी समूह उनके लिए अलग मंत्रालय नहीं बनाया गया। पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आई और उन्होंने अलग आदिवासी मंत्रालय बनाया। अलग आदिवासी विकास और विस्तार के लिए बजट दिया।

आदरणीय सभापति जी,

हमारे माछिवा समाज, मच्‍छवारा समाज क्‍या अभी भी आया है क्या? क्या उनकी नजर नहीं गई आपकी? इन मच्छवारे समाज के कल्‍याण के लिए पहली बार हमारी सरकार ने आकर के अलग मंत्रालय बनाया है फिशरिज का, उनके कल्याण के लिए अलग से हमने बजट दिया, समाज के इस तबके की भी चिंता की।

आदरणीय सभापति जी,

मेरे देश का छोटा किसान, उसके जीवन में सहकारिता एक मुख्य अंग है। छोटे किसान की जिंदगी को सामर्थ्य देने के लिए सहकारिता क्षेत्र को जिम्मेदार बनाना, सहकारिता क्षेत्र को सामर्थ्यवान बनाना, सहकारिता क्षेत्र को बल देना, इसकी महात्म्य हम समझते हैं क्योंकि छोटा किसान उसकी चिंता हमारे दिल में थी और इसलिए हमने अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया। हमारी सोचने का तरीका क्या है, हमारे देश में नौजवान है, पूरा विश्व आज वर्क फोर्स के लिए तरस रहा है। देश में डेमोग्राफिक डिविडेंड लेना है तो हमारे इस वर्क फोर्स को स्किलड बनाना चाहिए। हमने अलग स्किल मंत्रालय बनाया ताकि दुनिया की आवश्यकता के अनुसार मेरा देश का नौजवान तैयार हो और विश्व के साथ वो अपने आगे बढ़े।

आदरणीय सभापति जी,

हमारा नॉर्थ-ईस्‍ट इसलिए कि वहां वोट कम है, सीटें कम हैं इसकी कोई परवाह नहीं है। ये अटल जी की सरकार थी जिनसे पहली बार नॉर्थ-ईस्‍ट के कल्‍याण के लिए डोर्नियर मंत्रालय की व्यवस्था की और आज उसका परिणाम है कि नॉर्थ-ईस्ट के विकास की नई चीजों को हम प्राप्त कर पाए। इसी के कारण रेल, रोड, पोर्ट, एयरपोर्ट, ये बनने की इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

आदरणीय सभापति जी,

आज भी दुनिया के देशों में, आज भी दुनिया के देशों में लैंड रिकॉर्ड को लेकर के समृद्ध देशों को भी कई संकट हैं। हमने गांव के हर सामान्‍य व्‍यक्ति को अपना लैंड रिकॉर्ड उसके घर की मालिकिन के हक के कागज नहीं है, उसके कारण उसको बैंक से लोन चाहिए जो, कहीं बाहर जाए तो कोई कब्जा कर ले, एक स्‍वामित्‍व योजना बनाई और देश के, गांव के ऐसे समाज के दबे-कुचले लोगों को वो कागज हम दे रहे हैं जिसके कारण उसका मालिकी हक बन रहा है, वो स्‍वामित्‍व योजना एक बहुत बड़ा दिशा दे रहा है।

आदरणीय सभापति जी,

इन सारे कामों के कारण पिछले 10 वर्ष में हमने जो प्रयास किया, हमने जिस प्रकार से गरीब को मजबूती देने का काम किया है। हमने जिस प्रकार से गरीब के अंदर एक नया आत्‍मविश्‍वास पैदा किया है और एक सही दिशा में चलने का परिणाम है कि इतने कम समय में मेरे देश के 25 करोड़ मेरे गरीब साथी गरीबी को परास्त करने में सफल हुए हैं और हमें इस बात का गर्व है और मैं संविधान निर्माताओं के सामने सर झुकाकर के कहता हूं जो संविधान हमें ये दिशा दे रहा है, उसके तहत मैं ये काम कर रहा हूं और मैंने…

आदरणीय सभापति जी,

जब हम सबका साथ, सबका विकास की बात करते हैं, वो नारा नहीं है। वो हमारे आर्टिकल ऑफ फेथ है और इसलिए हमने सरकार की योजनाएं भी बिना भेदभाव को चलाने की दिशा में काम किया है और संविधान हमें भेदभाव की अनुमति नहीं देता है और इसलिए हमने आगे चलकर के कहा है सैचुरेशन जिसके लिए जो योजना बनी है उसका लाभ उन लाभार्थी को 100% लाभार्थी को मिलना चाहिए। ये सैचुरेशन अगर सच्चा, सच्चा सेक्युलरिज्म कोई है ना तो ये सैचुरेशन में है। सच्चा सामाजिक न्‍याय अगर किसी में है तो ये सैचुरेशन, 100 प्रतिशत, शत प्रतिशत उसको बेनिफिट जिसको जिसका हक है मिलना चाहिए, बिना भेदभाव के मिलना चाहिए। तो ये भाव को लेकर के हम सच्चे सेक्युलरिज्म को और सच्चे सामाजिक न्याय को लेकर के जी रहे हैं।

आदरणीय सभापति जी,

संविधान की हमारे एक और स्पिरिट भी है और हमारे देश को दिशा देने का माध्‍यम, देश को चालक बल के रूप में राजनीति केंद्र में रहती है। आने वाले दशकों में हमारा लोकतंत्र, हमारी राजनीति की दिशा क्या होनी चाहिए, आज हमें मंथन करना चाहिए।

आदरणीय सभापति जी,

कुछ दलों की राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता का भाव, मैं जरा उनसे पूछना चाहता हूं क्या वे कभी अपने आप को और मैं ये सभी दलों के लिए कह रहा हूं। उधर और इधर ये मेरा विषय नहीं है। ये मेरे मन के विचार है जो मैं इस सदन के सामने रखना चाहता हूं। क्‍या इस देश में योग्य नेतृत्व का अवसर मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए? जिनके परिवार में कोई राजनीति में नहीं है, क्या उनके लिए दरवाजे बंद हो जाएंगे? क्या देश को, लोकतंत्र की स्पिरिट को परिवारवाद ने गहरा नुकसान किया है कि नहीं किया है? क्‍या परिवारवाद से भारत की लोकतंत्र की मुक्ति का अभियान चलाना, ये संविधान के तहत हमारी जिम्मेदारी है कि नहीं है? और इसलिए समानता के सिद्धांत वाद के अवसरवाद के हिंदुस्तान के हर किसी को और जो परिवारवादी राजनीति है उनकी धुरी ही परिवार होता है, सब कुछ परिवार के लिए। देश को, देश के नौजवानों को आकर्षित करने के लिए, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए और देश के युवाओं को आगे आने के लिए हम सभी राजनीतिक दलों ने प्रयास करना चाहिए, सभी राजनीतिक दलों ने जिनकी पार्श्व भूमि में राजनीतिक परिवार नहीं है, ऐसे फ्रेश ब्लड को लाने के लिए प्रयास करना, ये हम मैं मानता हूं कि देश की लोकतंत्र की और इसलिए मैंने लाल किले से कहा है कि मेरा एक विषय लेकर मैं लगातार बोल रहा हूं, बोलता रहूंगा । 1 लाख ऐसे नौजवानों को देश की राजनीति में लाना है, जिनका कोई परिवार का बैकग्राउंड राजनीतिक परिवार का नहीं है और इसलिए देश को एक फ्रेश एयर की जरूरत है, देश को नई ऊर्जा की जरूरत है, देश को नए संकल्प और सपने लेकर के आने वाले युवकों की जरूरत है और भारत के संविधान के जब 75 वर्ष मना रहे हैं तब हम उस दिशा में आगे बढ़े।

आदरणीय सभापति जी,

मुझे याद है मैंने एक बार लाल किले से संविधान में हमारे कर्तव्य को लेकर के उल्‍लेख किया था और मैं हैरान हूं कि जिनको संविधान का स समझ नहीं आता है वो कर्तव्य की भी मजाक उड़ाने लग गए। मैंने ऐसा कोई इंसान देखा नहीं इस दुनिया में कि जिसको इसमें भी ऐतराज हो सकता है और नहीं लेकिन देश का दुर्भाग्य है हमारे संविधान ने नागरिकों के अधिकार तय किए हैं, लेकिन संविधान को हम से कर्तव्य की भी अपेक्षा है और हमारी सभ्यता का सार है धर्म, ड्यूटी, कर्तव्य, ये हमारी सभ्यता का सार है । और महात्मा गांधी जी ने कहा था, महात्मा जी का Quote है, उन्होंने कहा था मैंने ये अपनी अशिक्षित लेकिन विद्वान मां से सीखा है कि हम अपने कर्तव्यों को जितना अच्‍छे से निभाते हैं, उसी से अधिकार निकल करके आता है, ये महात्मा जी ने कहा था। मैं महात्मा जी की बात को आगे बढ़ाता हूं और मैं कहना चाहूंगा अगर हम अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करें तो कोई भी हमें विकसित भारत बनाने से नहीं रोक सकता है। संविधान का 75 वा वर्ष कर्तव्य के प्रति हमारे समर्पण भाव को, हमारी प्रतिबद्धता को और ताकत दे, देश कर्तव्य भावना से आगे बढ़े, ये मैं मानता हूं कि समय की मांग है।

आदरणीय सभापति जी,

भारत के भविष्य के लिए संविधान की स्पिरिट से प्रेरित होकर के मैं आज इस सदन के पवित्र मंच से 11 संकल्प सदन के सामने रखना चाहता हूं। पहला संकल्प है, चाहे नागरिक हो या सरकार हो, सभी अपने कर्तव्यों का पालन करें। दूसरा संकल्प है, हर क्षेत्र, हर समाज को विकास का लाभ मिले, सबका साथ सबका विकास हो। तीसरा संकल्प है, भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस हो, भ्रष्‍टाचारी की… भ्रष्‍टाचारी की सामाजिक स्वीकार्यता ना हो, भ्रष्‍टाचारी की सामाजिक स्वीकार्यता ना हो। चौथा संकल्प है, देश के कानून, देश के नियम, देश की परंपराओं के पालन में देश के नागरिकों को गर्व होना चाहिए, गर्व का भाव हो। पांचवा संकल्प, गुलामी की मानसिकता से मुक्‍ति हो, देश की विरासत पर गर्व हो। छठा संकल्प, देश की राजनीति को परिवारवाद से मुक्‍ति मिले। सातवां संकल्प, संविधान को सम्मान हो, राजनीतिक स्वार्थ के लिए संविधान को हथियार ना बना जाए। आठवां संकल्प, संविधान की भावना के प्रति समर्पण रखते हुए जिनको आरक्षण मिल रहा है, वो ना छीना जाए और धर्म के आधार पर आरक्षण की हर कोशिश पर रोक लगे। नौवां संकल्प, विमेन लेड डेवलेपमेंट में भारत दुनिया के लिए मिसाल बने। दसवां संकल्प, राज्य के विकास से राष्ट्र का विकास, ये हमारा विकास का मंत्र हो। ग्‍यारहवां संकल्प, एक भारत श्रेष्ठ भारत का ध्येय सर्वोपरि हो।

आदरणीय सभापति जी,

इसी संकल्प के साथ हम सब मिलकर के अगर हम आगे बढ़ते हैं तो संविधान की जो निहित भावना है, We the people, सबका प्रयास हम इसी मंत्र को लेकर के आगे चलें और विकसित भारत का सपना इस सदन में बैठे हुए सबका तो होना ही चाहिए, 140 करोड़ देशवासियों का सपना जब बन जाता है और संकल्प लेकर के जो देश चल पड़ता है तो इच्छित परिणाम लेकर के रहता है। मेरा 140 करोड़ देशवासियों के प्रति मेरी अपार श्रद्धा रही है। उनके सामर्थ्य पर मेरी श्रद्धा है। देश की युवाशक्ति पर मेरी श्रद्धा है। देश की नारी शक्ति पर मेरी श्रद्धा है और इसलिए मैं कहता हूं कि देश 2047, देश जब आजादी के 100 मनाएगा तब विकसित भारत के रूप में मनाएगा, ये संकल्प के साथ आगे बढ़े। मैं फिर एक बार इस महान पवित्र कार्य को आगे बढ़ाने के लिए सबको शुभकामनाएं देता हूं और मैं आदरणीय सभापति जी आपने समय बढ़ाया, इसके लिए मैं आपका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद।

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