ടയർ 2, ടയർ 3 നഗരങ്ങൾ ഇപ്പോൾ സാമ്പത്തിക പ്രവർത്തനങ്ങളുടെ കേന്ദ്രമായി മാറുകയാണ്, ആ മേഖലകളിലെ വ്യവസായ ക്ലസ്റ്ററുകൾ വികസിപ്പിക്കുന്നതിൽ നാം ശ്രദ്ധ കേന്ദ്രീകരിക്കണം: പ്രധാനമന്ത്രി മോദി
ഡിജിറ്റൽ പേയ്‌മെന്റ് സംവിധാനം ഉപയോഗിക്കുന്നതിന് ചെറുകിട കച്ചവടക്കാർ പരിശീലനം നേടിയിരിക്കണം. ഇത് ഉറപ്പാക്കാൻ മേയർമാർ മുൻകൈയെടുക്കണം: പ്രധാനമന്ത്രി നരേന്ദ്ര മോദി
2014 വരെ നമ്മുടെ രാജ്യത്തെ മെട്രോ ശൃംഖലയുടെ നീളം 250 കിലോമീറ്ററിൽ താഴെയായിരുന്നു. ഇന്ന് രാജ്യത്തെ മെട്രോ ശൃംഖല 775 കിലോമീറ്ററിലധികമാണ്: പ്രധാനമന്ത്രി മോദി

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जेपी नड्डा जी वरिष्ठ पदाधिकारीगण, गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, संसद में मेरे साथी भाई सीआर पाटिल, देशभर से आए भाजपा के सभी महापौर, उप महापौर, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनो, भाजपा मेयर्स कॉन्क्लेव में आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है, अभिनंदन है। आजादी के अमृतकाल में, अगले 25 वर्ष के लिए भारत के शहरी विकास का एक रोडमैप बनाने में भी इस सम्मेलन की बड़ी भूमिका है। मैं भारतीय जनता पार्टी के हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान नड्डा जी को और उनकी पूरी टीम को इस कार्यक्रम की कल्पना करने के लिए और योजना बनाने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। क्योंकि अपनेआप में सामान्य नागरिक का संबंध अगर सरकार नाम की किसी व्यवस्था से सबसे पहले आता है तो पंचायत से आता है, नगर पंचायत से आता है, नगरपालिका से आता है, महानगरपालिका से आता है।

सामान्य मानवी का रोजमर्रा के जीवन का संबंध आप ही लोगों के जिम्मे है, और इसलिए इस प्रकार के विचार-विमर्श का महत्व बहुत बढ़ जाता है। हमारे देश के नागरिकों ने बहुत लंबे अर्से से शहरों के विकास को लेकर भाजपा पर जो विश्वास रखा है, उसे निरंतर बनाए रखना, उसे बढ़ाना, हम सभी का दायित्व है। शायद आप में से जो लोग जनसंघ के जमाने की बातें जानते होंगे कि कर्नाटका में उडुपी नगरपालिका, जनसंघ के लोगों को वहां के लोग हमेशा काम करने का अवसर देते थे। और जब स्पर्धाएं होती थी तो उडुपी हमेशा देश में अव्वल नंबर पर रहता था परफॉर्मेंस में। मैं ये जनसंघ के कालखंड की बात कर रहा हूं। यानी तब से लेकर अब तक सामान्य मानवी के मन में एक विश्वास पैदा हुआ है कि ये व्यवस्था अगर भाजपा के कार्यकर्ताओं के हाथ आती है तो वो जी-जान से जो भी सिमित संसाधन हो उसको लेकर के लोगों के जीवन में कठिनाइयां दूर हो, सुविधाएं उपलब्ध हो और विकास प्लान-वे में हो, हेजार्डस न हो।

साथियों,


आज आप सभी जिस अमदाबाद शहर में हैं, उसकी अपनी बहुत बड़ी प्रासंगिकता है। सरदार बल्लवभाई पटेल जी कभी अहमदाबाद म्यूनिसिपैलिटी से जुड़े हुए सदस्य हुआ करते थे, कभी मेयर के रूप में भी अहमदाबाद का उन्होंने नेतृत्व किया था। और यहीं से जो उनकी शुरुआत हुई देश के उप प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। सरदार साहब ने दशकों पहले म्यूनिसिपैलिटी में जो काम किए, उसे आज भी बहुत सम्मान से याद किया जाता है। आपको भी अपने शहरों को उस स्तर पर ले जाना है, कि आने वाली पीढ़ियां आपको याद करके कहें कि, हां, हमारे शहर में एक मेयर हुआ करते थे तब ये काम हुआ था। हमारे शहर में भाजपा का बोर्ड जीतकर आया था तब ये काम आया था। भाजपा के लोग जब सत्ता में आए थे, तब इतना बड़ा परिवर्तन आया था। ये लोगों के मानस में स्थिर होना चाहिए।

साथियों,


सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास और सबसे महत्वपूर्ण बात है सबका प्रयास, ये जो वैचारिक परिपाटी भाजपा ने अपनाई है, वही हमारे शासन के गवर्नेंस के मॉडल के, डेवलपमेंट के मॉडल के हमारी शहरी विकास में भी वो झलकती है। यही हमारे गवर्नेंस मॉडल को दूसरों से अलग करता है। जब विकास, मानव केंद्रित होता है, जब जीवन को आसान बनाना, Ease of Living सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है, तो सार्थक परिणाम ज़रूर मिलते हैं। आप सभी इस समय गुजरात में हैं और मैंने भी वहां कई वर्षों तक वहां की जनता की सेवा करने का मौका मिला, वहां मुझे एमएलए बनने का मौका मिला। बाद में लोगों ने मुझे मुख्यमंत्री का भी काम दिया, और जब मेरा लंबा कालखंड गुजरात में गया है और आप सब आज जब गुजरात में हैं तो स्वाभाविक है कि आज जिन बातों का उदाहरण दूंगा उसमें थोड़ी चर्चा गुजरात की रहेगी।


अब जैसे अर्बन ट्रांसपोर्ट की बात करें तो गुजरात ही था जो B.R.T.S. जैसा प्रयोग सबसे पहले प्रारंभ किया। आज देश के शहरों में App Based Cabs, यानी आप एप के द्वारा टैक्सी मंगवाते हैं और तुरंत मिल जाती है, ये बात आज हिंदुस्तान में कॉमन हो गई है। लेकिन गुजरात में बहुत साल पहले इनोवेटिव रिक्शा सर्विस, G-autos की शुरुआत हुई थी।
और ये इनोवेशन किसी और ने नहीं बल्कि हमारे ऑटो ड्राइवर्स की टीम ने ही किया था। आज रिजनल रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम और मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी की इतनी चर्चा होती है। लेकिन गुजरात में बरसों पहले से मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी पर काम हो रहा है। ये सारे उदाहरण मैं आपको इसलिए भी दे रहा हूं क्योंकि इससे हमें ये भी संदेश मिलता है कि हमें बहुत आगे की सोचकर काम करना होगा। मुझे पता है कि आप में से कई मेयर्स, इस दिशा में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। और जब ये सम्मेलन हो रहा है तो हमें एक दूसरे से बहुत कुछ सीखना है। साथ बैठेंगे, साथ बात करेंगे तो बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और नए-नए प्रयोगों का पता चलेगा।

साथियों,


आज़ादी के अमृतकाल में आज भारत अपने अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर पर अभूतपूर्व निवेश कर रहा है। 2014 तक हमारे देश में मेट्रो नेटवर्क ढाई सौ किलोमीटर से भी कम का था। आज देश में मेट्रो नेटवर्क 775 किलोमीटर से भी ज्यादा हो चुका है। एक हजार किलोमीटर के नए मेट्रो रूट पर काम भी चल रहा है। हमारा प्रयास है कि हमारे शहर होलिस्टिक लाइफ स्टाइल का भी केंद्र बनें। आज सौ से अधिक शहरों में स्मार्ट सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। इस अभियान के तहत अभी तक देशभर में 75 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक के प्रोजेक्ट्स पूरे किए जा चुके हैं। ये वो शहर हैं जो भविष्य में अर्बन प्लानिंग के लाइटहाउस बनने वाले हैं।

साथियों,


हमारे शहरों की एक बहुत बड़ी समस्या अर्बन हाउसिंग की भी रहती है। मुझे याद है कि मुख्यमंत्री के रूप में शहरी निकायों के साथ मिलकर हमने झुग्गी में रहने वाले साथियों के लिए बेहतर आवास बनाने का अभियान शुरू किया था। इसके तहत गुजरात में हजारों घर शहरी गरीबों को, झुग्गी में बसने वाले परिवारों को पक्के मकान देने का बडा अभियान चला था। इसी भाव के साथ प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी इसके तहत पूरे देश में करीब सवा करोड़ घर स्वीकृत किए गए हैं। साल 2014 से पहले जहां शहरी गरीबों के घरों के लिए 20 हज़ार करोड़ रुपए का प्रावधान था, वहीं पिछले 8 वर्षों में इसके लिए 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का प्रावधान किया गया है। आपलोग ये आंकड़े याद रखोगे मैं ये आशा करता हूं।

2014 के पहले 20 हजार करोड़ और आज दो लाख करोड़ से ज्यादा ये शहरी गरीबों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दिखाता है। लेकिन ये हमारा दायित्व बनता है, जब सबका प्रयास सबका विश्वास कहते हैं। क्या इन लाभार्थियों के बीच जाकर के हम बैठते हैं। जो झुग्गी-झोपड़ी में जिन्हें आगे जाकर घर मिलने वाला है, उन्हें जाकर के विश्वास देते हैं क्या? उनके बीच बैठकर उनके लिए क्या काम हो रहा उनकी कभी चर्चा करते हैं क्या? हमें लगता है कि अखबार में छप गया तो काम हो गया। जितना ज्यादा गरीबों के बीच में जाकर के काम करेंगे उनको जो लाभ मिलेगा उस लाभ का वो समाज में सवाया कर के वापस करेगा, गरीब का यह स्वभाव रहता है। साथियों शहरों में रोजी-रोटी के लिए जो साथी अस्थाई रूप से आते हैं, उनको भी उचित किराए पर घर मिले, इसके लिए भी बड़े स्तर पर काम चल रहा है।
इस मेयर्स कॉन्क्लेव में आप सभी से मेरा आग्रह है कि अपने-अपने शहरों में इस अभियान को गति दें, इससे जुड़े कार्य तेजी से पूरे कराएं। और क्वालिटी में कंप्रोमाइज मत होने देना। समय सीमा में काम करेंगे तो पैसे बचते हैं, उन पैसों का अच्छा सदुपयोग होता है।

साथियों,


शहरी गरीबों के साथ-साथ जो हमारा मध्यम वर्ग है, उसके घर के सपने को पूरा करने के लिए भी सरकार ने हज़ारों करोड़ रूपए की मदद दी है। हमने RERA जैसे कानून बनाकर लोगों के हित सुरक्षित किए है। खासकर के मध्य वर्ग के परिवार जिस स्कीम में पैसा डाल देता था वह स्कीम पूरी ही नहीं होती थी। जिस काम का पहले नक्शा दिखाया जाता था, पंपलेट दिखाया जाता था, जब मकान बन जाता था तो दूसरा हो जाता था। साइज छोटी हो जाती थी कमरा बदल जाता था। RERA के कारण अब उसको ये अधिकार मिला है कि जो निर्णय हुआ है वही चीज मिले। भाजपा के मेयर्स के रूप में, शहरों के मुखिया के रूप में रियल एस्टेट सेक्टर को बेहतर और ट्रांसपेरेंट बनाने का आपका दायित्व ज्यादा है। सुरक्षा के लिहाज़ से शहरों में बिल्डिंग्स का बेहतर और ट्रांसपेरेंट ऑडिट्स हो ये बहुत आवश्यक है। पुरानी बिल्डिंगों का गिरना और बिल्डिंगों में आग लगना, ये चिंता का विषय होता है। यदि हम नियम कायदों का पालन करें, उसका आग्रही बने, उसको सुनिश्चित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

साथियों,


मैं आपको एक और बात बताना चाहता हूं। चुने हुए जनप्रतिनिधियों की सोच सिर्फ चुनाव को ध्यान में रखते हुए सीमित नहीं होनी चाहिए। चुनाव केंद्रित सोच से हम शहर का भला नहीं कर सकते। कई बार शहर के लिए फैसला बेहतर होते हुए भी इस डर से नहीं किया जाता कि कहीं चुनावी नुकसान ना हो जाए। मुझे याद है जब मैं गुजरात में था तो 2005 में हमनें urban Development year मनाने का कार्यक्रम बनाया और करीब सौ डेढ सौ ऐसे प्वाइंट निकाले जिसके आधार पर शहर में चौराहे की चिंता करना, Encroachment हटाना, सफाई की चिंता करना, बिजली के तार पुराने हैं तो बदलना, ऐसे बहुत से प्वाइंट पैरामिटर थे और जनभागीदारी से चौराहों के सुशोभन के लिए भी बहुत काम हुआ।

उसमें एक मुद्दा था Encroachment हटाना और जब Encroachment हटाना शुरू किया, तो मुझे मेरे गुजरात के भाजपा के नेता मिलने आए। उनका कहना था कि साहब अभी तो हमाारा Corporation और पंचायतों का चुनाव आने वाला है, और आपने ये कार्यक्रम कैसे ले लिया। और मैं भी यह भूल गया था कि 2005 को मैंने Urban Development Year मनाया, लेकिन उस समय चुनाव है, मुझे भी ध्यान नहीं था। जब सब लोग आए, तो मैंने कहा देखो भाई अब ये बदल नहीं होगा। हमें लोगों को समझाना होगा लोगों का विश्वास बढ़ाना होगा, मैं जानता हूं कि जब हम Encroachment को हटाते हैं तो जिसका जाता है उसे गुस्सा भी आता है। नाराजगी होती है, लेकिन मेरा अनुभव दूसरा रहा, जब हमने एक ईमानदारी से प्रयास शुरू किया तो लोग स्वंय आगे आए, लोगों ने जो आधा फुट, एक फुट, दो फुट अपना जो किया था, उसे हटाना शुरू किया, रोड खुल गए, रोड चौ़ड़े बनने लग गए, क्योंकि उनको विश्वास हो गया कि यहां पर कोई भाई-भतीजावाद नही है। मेरा-तेरा नहीं है। एक कतार में जो भी है सबका हटाया जा रहा है। तो लोगों ने मदद की, अतिक्रमण हटा। रास्ते चौड़े हो गए। कहने का तातपर्य ये है कि अगर हम सही काम करते हैं, जनहित में करते हैं तो लोगों का साथ मिलता है, डरने की जरूरत नहीं है जी। जब जनता को ईमानदारी दिखती है, बिना भेदभाव के अमल दिखता है, तब लोग स्वयं आगे बढ़कर के साथ देते हैं।

साथियों,


आर्थिक गतिविधियों के महत्वपूर्ण सेंटर्स के रूप में शहरों की प्लानिंग पर हमें विशेष फोकस करने की ज़रूरत है। हम चाहें या न चाहे अर्बनाइजेशन होते ही रहने वाला है। शहरों पर दबाव बढ़ने वाला है, शहरों की जनसंख्या बढ़ने वाली है, शहरों की जिम्मेवारी अब बढ़ने वाली है। और ये भी सच्चाई है कि आर्थिक गतिविधि का केंद्र शहर में बहुत तेज गति से आगे बढ़ता है और इसलिए अगर हम मेयर हैं तो मेरा शहर आर्थिक रूप से समृद्ध हो, मेरा शहर किसी न किसी प्रोडक्ट के लिए जाना जाए, मेरा शहर टूरिज्म का केंद्र बने, मेरा शहर उसकी पहचान बने। इन सारी चीजों में आर्थिक व्यवस्थाएं जुड़ी हुई हैं। आपने देखा होगा कि इस वर्ष का जो बजट है, उसमें अर्बन प्लानिंग पर बहुत अधिक बल दिया गया है। अब ये भी आवश्यक है कि शहरों की प्लानिंग का भी विकेंद्रीकरण होना चाहिए डी-सेंट्रलाइजेशन होना चाहिए, राज्यों के स्तर पर भी शहरों की प्लानिंग होनी चाहिए। सबकुछ दिल्ली से नहीं हो सकता है। मुझे याद है जब मैं चंडीगढ़ में रहता था। तो चंडीगढ़ के नजदीक पंचकुला बहुत अच्छा डेवलप हुआ, मोहाली बहुत अच्छा डेवलप हुआ। हमारे गांधीनगर के बगल में यथापूर्वक बहुत अच्छी तरह से डेवलप हो रहे हैं। देश में ऐसे अनेक सैटेलाइट टाउन्स हैं, जो बड़े शहर के नजदीक में विकसित हो रहे हैं। और योजनाबद्ध तरीके से सेटेलाइट टॉउन को डेवलप करना ही चाहिए। तभी शहरों पर दबाव कम होगा।


और बीजेपी ने सैटेलाइट्स टाउन्स को लेकर सचमुच में जो बेहतरीन काम किया है, आपलोग भी जानते हैं कि इस प्रकार के प्रयासों का कितना लाभ होता है। मुझे एक घटना याद आती है। भारतीय जनता पार्टी को पहली बार अहमदाबाद में 87-88 में बहुमत मिला उसको। पहली बार शासन में आई थी। और उस समय सदभाग्य से राज्य सरकार में भी जो सरकार थी, उस समय भाजपा थी और भाजपा के लोग भी उसमें पार्टनर थे। तो उस समय अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में हमारे साथियों ने विचार किया कि भाई अहमदाबद के अगल-बगल में जो 40-50 किलोमीटर का एरिया है जेसे लांबा है, रोपड़ है, आंबी है, होड़ा है, ऊमा है ये सारे जो इलाके हैं, अगर वहां सटी बस जाना-आना शुरू कर दे, और आने-जाने की व्यवस्था मिल जाए तो लोग शहर में आकर रहने के लिए जो महंगा खर्च करते हैं वो वहीं रहना पसंद करेंगे। राज्य सरकार से बात हुई, राज्य सरकार का क्षेत्र था ट्रांसपोर्टेशन का, हालांकि मान गए, सहमति मिल गई। और बसों को काफी दूर-दूर तक फैलाया। साबरमती के उस पार शालीग्राम गांव, साबरमती के काफी दूर-दूर तक का क्षेत्र हो, उधर गांधीनगर को जोड़ दिया गया।

इसका परिणाम ये हुआ कि छोटे-छोटे सेटेलाइट टॉउन डेवलप हो गया और शहर का बहुत विस्तार हो गया। और शहर पर दबाव कम हो गया। हमें सेटेलाइट टॉउन के अलवा टीयर-2 टीयर-3 सिटी उन शहरो की प्लानिंग भी राज्यों को अभी से करनी चाहिए। क्योंकि टीयर-2 टीयर-3 सिटी भी इकोनॉमी एक्टिविटी के सेंटर बन रहे हैं। आपने देखा होगा स्टार्ट्सअप टीयर-2 टीयर-3 सिटी में हो रहे हैं। लोग भी सोचते हैं कि भाई छोटा-मोटा कारखाना लगाना है, तो छोटे शहर में लगा देंगे बडें शहर में जाने की जरूरत नहीं है, थोड़े सस्ते में काम शुरू हो जाएगा। हम प्लानिंग से टीयर-2 टीयर-3 को भी शुरू करें तो बड़े-बड़े महानगरों पर जो दबाव आता है वो भी कम हो जाएगा। और वहां पर रोजगार के अवसर भी बढ़ जाते हैं। हमें यहां इंडस्ट्रियल क्लस्टर बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। किस नगरपालिका में किस प्रकार की इंडस्ट्री के क्लस्टर बन सकते हैं, पास-पास की दो-तीन नगरपालिकाओं में क्या हो सकता है। तो इकोनॉमी को बढ़ाने में वो बहुत मदद करता है। अर्बन प्लानिंग और कैपेसिटी बिल्डिंग में हमें स्टेंडर्डनाइजेशन की बहुत आवश्यकता है। हमें कैजुअल, एडहॉक इन चीजों से बाहर आ जाना चाहिए। नीति निर्धारित कर के किया जाना चाहिए। आप देखिए बदलाव अच्छे आएंगे। डिसिजन में भी ट्रांसपेरेंसी होनी चाहिए, ग्रे एरिया लगभग खत्म हो जाना चाहिए।

साथियों,


स्थानीय निकायों को बजट के लिए ज्यादा से ज्यादा आत्मनिर्भर कैसे बना सकते हैं। देखिए शहर का विकास करना है तो शहर को धन भी लगता है। कभी हम स्कूल के बच्चों को बताते ही नहीं हैं कि ये रोड बना है तो इस पर कितना खर्चा लगा है, ये फुटपाथ बना है तो इस पर कितना खर्चा लगा है, पैड लगाने का हमने ये लोहे का जो सुरक्षा कवच बनाया है उस पर कितना खर्चा लगता है, ये बिजली के खंबे लगे हैं उसका कितना खर्चा लगता है। समाज के सामान्य मानवी को ये पता नहीं होता है कि इन सारी चीजों पर कितना खर्चा लगता है। वो अपने घर में छोटी भी दीवार बनाता है तो उसको खर्चा पता चलता है, लेकिन नगर में इतने सारे खर्चे होते हैं इसका उनको पता ही नहीं होता है। हमें उसको प्रशिक्षित करना चाहिए, बच्चों को समझाना चाहिए कि ये इतना महंगा होता है उसको नुकसान नहीं होना चाहिए ये हमारी संपत्ति है। समाज को जोड़ते रहना चाहिए है।

साथियों,


अर्बन प्लानिंग में हमने देखा होगा कि शहर के सामान्य मानवी की सुविधाओं को कौन संभालता है भाई। बड़ा वर्ग जो है वो कोई बड़े-ब़ड़े मॉल में नहीं जाता है। उसकी आवश्यताएं रेहड़ी-पटरी वाले पूरी करते हैं। रेहड़ी-पटरी और ठेले वाले जो होते हैं, जो मोहल्ले में आकर सब्जी बेचते हैं। अखबार वाले आते हैं, कपड़ा बेचने वाले आते हैं। वे भी इकोनोमी का एक ड्राइविंग फोर्स होते हैं और सामान्य मानवी की सेवा बहुत करते हैं। क्या हमारे पास उनकी योजना है क्या। अब देखिए पीएम स्वनिधि योजना चल रही है। मैं आप सभी मेयरों से आग्रह करूंगा कि आपके महानगर में एक भी रेहड़ी-पटरी वाला न हो जिसकी रजिस्ट्री न हुई हो, पीएम स्वनिधि से बैंक से उसे पैसा न मिला हो और उसकी ट्रेनिंग न हुई हो कि मोबाइल फोन से कैसे वो डिजिटल लेनदेन करे। वो सब्जी बेचेगा, दूध बेचेगा तो भी वो डिजिटली लेनदेन करेगा। वो थोक में सब्जी खरीदेगा तो भी डिजिटली पेमेंट करेगा। अगर वो ये करता है तो धीरे-धीरे उसके ब्याज में कटौती की जाती है।

इतना ही नहीं उसे कुछ इनाम भी दिया जाता है। अब बताइए रेहड़ी पटरी वाले जो प्राइवेट से महंगे ब्याज पर पैसे लाते हैं उन्हें कितनी मुक्ति मिल जाएगी। मैं तो ये भी कहूंगा कि साल में एक बार इन रेहड़ी पटरी वालों के परिवार के साथ सम्मेलन करना चाहिए। उनके बच्चों में जो टैलेंट हो उसके हिसाब से इनाम देना चाहिए। उन बच्चों के द्वारा गीत-संगीत के कार्यक्रम करने चाहिए। ये बहुत बड़ी ताकत होते हैं. जी। मैं तो चाहूंगा यहां जितने भी मेयर बैठे हैं वे सभी ये करें। ताकि उनको भी लगेगा कि महानगर की सेवा कर रहे हैं। जनता की भलाई के लिए काम कर रहे हैं। देखिए, आज करीब 35 लाख ऐसे रेहड़ी-पटरी वाले हमारे साथी हैं जिनको बैंक से पैसा मिला है। और मैंने देखा है कि वे समय से पहले वापिस भी दे देते हैं और नया ऋण भी ले लेते हैं।

साथियों,
ये सिर्फ वन टाइम लोन देने की सुविधा मात्र नहीं है, बल्कि ये लगातार उनका व्यापार चलेगा बैंकों के साथ। और डिजिटल पेमेंट से उनको बहुत लाभ मिलेगा उसे गति मिलेगी। देखिए पीएम स्वनिधि का आप अपने शहरों में व्यापक विस्तार करें, और उनको होने वाली परेशानियों का आप कैसे कम कर सकते हैं, उनकी आप ट्रेनिंग करो, आप उनके साथ बैठिए, और इससे आपकी ताकत बढ़ेगी, आप उनसे बात करके देखो।

साथियों,
शहरों की समस्याओं को सुलझाने के लिए ये भी आवश्यक है कि हमें हमारी आदतें बदलनी होंगी। नागरिकों के Behavioural में change लाना पड़ता है। वरना हमने तो देखा है कि लोगों का स्वभाव कैसा होता है। कुछ लोग जल्दी उठ जाते हैं। क्यों, अपने घर का कचरा साफ करके बगल वाले घर के सामने डाल देते हैं। फिर बगल वाला कूड़ा-कचरा साफ करता है, तो वो उठाकर इस घर के सामने डाल देता है। अब ये आदत कौन बदलेगा जी। हमने नागरिकों के स्वभाव को बदलना होगा। बिजली बचाने की आदत डालनी पड़ेगी। पानी बचाने की आदत डालनी पड़ेगी। समय पर टैक्स भरने की आदत डालनी पड़ेगी। गंदगी न करने की आदत डालनी पड़ेगी। स्वच्छता और सुशोभन करने का आग्रह करने की आदत डालनी पड़ेगी। इसके लिए मेहनत करनी पड़ती है। और आप वहां के काउंसलर, वहां के मेयर ये काम बहुत आसानी से कर सकते हैं। और इसके लिए हमें भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्यक्रम करने चाहिए।


निबंध स्पर्धा हो, रंगोली स्पर्धा हो, बच्चों की रैलियां हों, कविताओं का सम्मेलन हो, स्वच्छता पर कविताएं हों। ऐसे भांति-भांति के जनजागरण के कार्यक्रम करने चाहिए। दीवारों पर अच्छी तरह से लिखें- जैसे बगीचे होते हैं, मुझे बताइये बगीचों को संभालने का जिम्मा गांव के नागरिकों का है कि नहीं है। हमने तो ये तय किया है कि म्युनिसिपलिटी के दो आदमी होंगे। जी नहीं, हमें जो लोग डेली बगीचे में आते हैं, उनकी एक कमेटी बना देनी चाहिए। और हम ये भी कर सकते हैं कि वहां एक टेंपररी सा बोर्ड लगाने की व्यवस्था की जाए कि उस इलाके में जो बच्चे ड्राइंग बनाएंगे, तो चलो शनिवार शाम को 6 से 7 यहां पर उनके ड्राइंग को डिस्प्ले करेंगे। कोई अच्छी कविताएं लिखते हैं तो चलो भाई रविवार शाम को यहां कविता का पाठ बगीचे के अंदर लाकर करेंगे।

हमारे बगीचों को जिंदा बना देना चाहिए। हमारे शहर की आत्मा के रूप में जागृत बना देना चाहिए। तो बगीचा भी अच्छा रहेगा, सरकारी खर्चे की जरूरत नहीं, वो ही संभालेंगे अपना बगीचा। वो ही सोचेंगे कि भई ये तो हमारी जगह है. इसमें हम गंदगी नहीं होने देंगे। पेड़-पौधे को टूटने नहीं देंगे। हमें नेतृत्व देना होगा। सब काम पैसों से होते हैं, ऐसा नहीं है जी। अधिकतम काम जन सामान्य के समर्थन से होते हैं और ये चुने हुए जन प्रतिनिधि जितना ध्यान देते हैं, उतना परिणाम आता है। और हमने तो देखा है कि स्वच्छता के विषय को देश ने उठा लिया। पूरे देश के हर घर के अंदर छोटा बच्चा भी स्वच्छता की बात करने लग गया है। हमारे शहर में भी कूड़ा-कचरा, गीला कचरा कहां होगा, सूखा कचरा कहां होगा, उसको उठाने की व्यवस्था होगी। हम जितनी ज्यादा लोगों की आदतें बदलने के लिए आग्रही बनेंगे, मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी व्यवस्थाएं विकसित हो रही हैं, उनका ज्यादा से ज्यादा लाभ हमारे नागरिको को मिलता रहता है। हमें ये सारी चीजों को ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना है। इसका आगे चलकर लाभ होगा।

हमे एक बात बताइए, हम देखते हैं कि सरकार की तरफ से CCTV कैमरे लगता है, होम मिनिस्ट्री लगाती है। पुलिस के लोग करते हैं। लेकिन क्या ये CCTV कैमरा हम नागरिकों को, सरकारी दफ्तरों को कह सकते हैं कि भई आपका प्राइवेट जो CCTV है, एक कैमरा घर के बाहर भी देखने के लिए रखो। कितने CCTV कैमरे का नेटवर्क खड़ा हो जाएगा। बिना खर्च के हो जाएगा। अच्छा अभी हम क्या करते हैं CCTV कैमरा का उपयोग Crime Detection के लिए करते हैं। अगर ट्रैफिक कंट्रोल करना है तो भी CCTV कैमरे का उपयोग हो सकता है। स्वच्छता के लोग समय पर काम करने आए कि नहीं, वो भी CCTV से देखा जा सकता है।


एक ही चीज का मल्टीपल उपयोग कैसे हो। अब आपने देखा कई शहरों में Integrated command and control centre बन चुके हैं, उन्हें भी multiple utility के रूप में उपयोग किया जा सकता है। और इसके लिए हमें जुड़ना पड़ता है। हम उसके साथ इनवॉल्व हो जाते हैं तो कर सकते हैं।

आप सभी जानते हैं कि मान लीजिए आपका अच्छा सा मकान है। घर के बाहर बढ़िया महंगी गाड़ी भी खड़ी है। लेकिन अगर परिवार में ढंग से कोई चीजें नहीं हैं कोई इधर-उधर पड़ा हुआ है। सोफा का ठिकाना नहीं। चेयर का ठिकाना नहीं। कोई भी व्यक्ति आएगा, उसके वो कार देखकर उसको अच्छा लगेगा, अंदर वो गंदा देखकर बुरा लगेगा। वो आपके घर की छवि कहां से ले जाएगा। आपने कैसी व्यवस्था रखी, उस पर निर्भर है। आपका रहन-सहन कैसा है। हमारे शहर की छवि भी हम कैसे रहन-सहन रखते हैं, इस पर निर्भर करता है। और इसलिए हमें सौंदर्यीकरण Beautification मैं तो लगातार कहता हूं कि हर बोर्ड में, हर महीने सिटी ब्यूटी कम्पटीशन होते रहना चाहिए। और इनाम घोषित होना चाहिए कि इस बार चलो भाई 13 नंबर का वार्ड ब्यूटीफिकेशन में आगे आया। 20 नंबर का वार्ड आया। 25 नंबर का वार्ड आया लगातार इस पर स्पर्धा चलनी चाहिए और नागरिकों के बीच में स्पर्धा खड़ी होनी चाहिए। सिटी ब्यूटी कम्पटीशन ये शहर का स्वभाव बनना चाहिए। और दुनिया में नाम तब होता है ना। और इसलिए मैं चाहता हूं कि हमें शहर को व्यवस्थित भी रखना है और शहर को सुंदर भी रखना है।

छोटी-छोटी बातों का ध्यान हमे रखना होता है। अब देखिए कि जयपुर पिंक सिटी दुनियाभर के टूरिस्ट देखने के लिए आते हैं। क्या कारण है भई। किसी ने तो पिंक सिटी बनाया है। हमारा आणंद कभी देखेंगे तो क्रीम सिटी के रूप में उन्होंने प्रयास किया है। धीरे-धीरे उसकी पहचान बन जाएगी। अब आप भोपाल की पहचान आप लोग क्या कहेंगे, भई ये तो झीलों का शहर है, यानि किसी ने कुछ न कुछ प्लानिंग किया है, तब जाकर उस शहर की पहचान बनी है। क्या आपने तय किया है मेरे शहर ग्रीन सिटी के रूप में जाना जाएगा। मेरा शहर इस बात के लिए जाना जाएगा। जो उसकी पहचान बनेगी और लोगों को भी लगेगा कि इसमें कोई कंप्रोमाइज नहीं करना है। अगर आप इसको लोगों को प्रोत्साहित करेंगे तो मुझे पक्का विश्वास है कि आप अच्छे ढंग से इसको कर सकते हैं। और टूरिस्ट भी बहुत बड़ा इनकम का साधन होता है। लोगों को मन करना चाहिए आपके शहर आने का यानी कि अच्छा शहर होगा सुंदर शहर होगा तो लोग अपना रोजी-रोटी और उद्योग करने के लिए भी वहां आना पसंद करेंगे। और इसलिए मेरा प्रयास है। इसी प्रकार से सिटी लाइफ में परिवर्तन आता है, उसका एक लाभ भी मिलता है।

अब आप देखिए अहमदाबाद में सावरमती रिवरफ्रंट या फिर आप कांकरिया झील की बात करें तो किसी समय इसकी ऐसी स्थिति थी कि नगर के लोगों को बोर लगते थे, लेकिन आज वो नगर के लोगों के लिए गर्व का विषय है।अब उसको संभालने का काम भी नगर के लोग करने लगे हैं। और उसी का परिणाम है कि आज देखिए अहमदाबाद को हेरिटेज सिटी का दर्जा मिला हुआ है। हेरिटेज वाक के लिए लोगों का सुबह कार्यक्रम होता है उसके लिए यहां टूरिस्ट आते हैं। मुझे एक विषय और भी कहना है। दुनिया के अंदर आपने देखा होगा कि हर शहर का अपना एक सिटी म्यूजियम होता है। क्या आपको नहीं लगता है कि आपके शहर का भी एक सिटी म्यूजियम हो।

शहर का इतिहास जहां है, शहर की विशेषता क्या है. शहर में कब क्या हुआ था, बढ़िया सी पुरानी-पुरानी फोटो हो, ऐसा अगर आप करें, तो मुझे बताइए कि आपके शहर की नई पीढ़ी को इस शहर के नए बच्चों को काम आएगा कि नहीं आएगा। इन दिनों आजादी का अमृत महोत्सव, पोलिटिकली सोचते तो हम क्या करते, राजनीतिक लाभ डेवलप करने के लिए सोचते तो हम क्या करते। अगर नेताओं की छवि चमकाने का काम कार्यक्रम करना होता तो हम क्या करते? तो बहुत बड़ा पिलर खड़ा कर देते, विजय स्तंभ खड़ा कर देते, कोई एक गेट बना देते आजादी के अमृत महोत्सव की यादगिरी में। हमने ऐसा नहीं किया, हमने दूसरा किया। हमने क्या किया कि हर जिले में 75 तालाब बनाएंगे, 75 अमृत सरोबन बनाएंगे। आप देखिए, ये कल्पना अपनेआप में मानवजाति की कितनी बड़ी सेवा करेगी। आजादी का उत्सव भी हो जाएगा और हमारे यहां तालाब के एसेट बन जाएंगे। अब हमारे यहां पुरानी बाबरियां होती हैं पुराने तालाब होते हैं क्या उसकी सफाई उसका रखरखाव हम मेयर के नाते उसके लिए चिंता करते हैं क्या। हमारा बोर्ड चिंता करता है क्या। बहुत सारे शहर है जहां से नदी गुजरती है। क्या नदी उत्सव मना कर के नदी के महत्व को महात्म्य देते हैं क्या। हम शहर का जन्मदिवस मना कर के शहर के लिए लोगों का लगाव बढ़ाते हैं क्या। जन भागीदारी विकास के लिए बहुत आवश्यक है।

हर शहरों में नए-नए व्यंजन होते हैं, हर शहर की अपनी विशेषता होती है। अब आप मुंबई जाएंगे तो कहेंगे कि खाउबली जाना है। अहमदाबाद जाएंगे तो कहेंगे मानक चौक जाना है। दिल्ली जाएंगे तो कहेंगे परांठे वाली गली जाना है, बनारस में जाएंगे तो कहेंगे कि कचौड़ी गली में जाना है। यानी हर शहर में ऐसी विशेषता होती है, लेकिन क्या कभी आपने पुराने जमाने में जो चला वो चला अभी उसको हाइजेनिक दृष्टि से Hygiene पर फोकस करते हुए वहां पर बेचने वाले लोग साफ सुथरे हैं, हाथ में ग्लब्स पहना हुआ है, सामान को हाथ नहीं लगाते हैं पानी को हाथ नहीं लगाते हैं। आप देखिए लोग कंसस हैं आज-कल, लोग फाइव स्टार होटल में जाना पसंद नहीं करेंगे, वो गली में आकर के खाना पसंद करेंगे, क्योंकि भाई यहां तो साफ-सफाई बहुत होती है।

क्या आप अपने शहर में एक इलाका ऐसा नहीं बना सकते। पक्का बना सकते है दोस्तो। लोग याद करेंगे कि हां भाई पहले तो यहां ऐसे ही लोग खड़े हो जाते थे, कोई पानी-पुरी बेचता था तो कोई पापड़ी बेचता था, अब इतना शानदार हो गया, अब जब शानदार होगा न तो लोग दो रुपये ज्यादा देने के लिए तैयार हो जाते हैं। सौंदर्य भी बढ़ता है। स्वास्थ्य के लिए भी याद होता है। ये सारी चीजें एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं। देखिए बीते 8 वर्षों के सतत प्रयासों से आज स्वच्छता को लेकर अभूतपूर्व जनजागृति हमने देखी है। लेकिन उसको भी हमें नेक्स्ट स्टेज पर ले जाना होगा, नेक्स्ट जेनरेशन सोचना पड़ेगा। स्वच्छता को हमें स्थिर बनाना है, स्थायी बनाना है तो Solid Waste Management और Waste to Wealth ये हमारी व्यवस्था का हमारी योजना का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। 2014 से पहले की तुलना में solid waste की processing कभी 18 प्रतिशत होती थी पहले आज हम 75 प्रतिशत तक पहुंचे हैं। लेकिन यहां हमें रुकना नहीं है जी हमें इस अभियान में और तेज़ी लाना है। शहरों में जो कूड़े के पहाड़ हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए हमें अपने प्रयास बढ़ाने हैं। सूरत की बात होती है, इंदौर की बात होती है। कैसे हुआ यही किया गया।

अब इंदौर में तो कूड़े-कचरे से उन्होंने गैस का प्लांट लगा दिया है, कमाई शुरू कर दी है। एक प्रकार से उसमें से कमाई आनी शुरू हो जाती है। सामाजिक संगठन भी उनके साथ जुड़ जाते हैं। मैं चाहूंगा कि हम भी इस दिशा में प्रयत्न करें। कितने ही शहरों में देखते हैं। कि युवाओं ने मिलकर के छोटे-छोटे संगठन बनाए हैं, एनजीओ बनाए हैं और वे स्वच्छता का काम करते हैं, सुशोभन का काम करते हैं। आपको भी देखना चाहिए कि आपके हर वार्ड में ऐसे युवकों की कंपीटिशन हो। ऐसे ऊर्जावान युवा आगे आए, वे छोटी-छोटी टोलियां बनाएं और डेली आधा घंटा, एक घंटा, कोई सप्ताह में एक घंटा ऐसा दे। आदत डाल लीजिए आपको नेतृत्व देना चाहिए। नई पीढ़ी, नए नौजवान की पीढ़ी ये करने की शौकीन होती है, स्वभाव होता है उनको अच्छा लगता है। सिर्फ उनको दिशा देने की जरूरत होती है। और तभी जाकर के सब का प्रयास एक विकसित भारत बनाने का काम आता है। अगर विकसित भारत बनाना है तो हम इन चीजों को करेंगे।

देखिए भाजपा के मेयर का कार्य भाजपा शासित निकायों का कामकाज अलग से नजर आना चाहिए। ये मेरी तो अपेक्षा है ही लेकिन आपका भी संकल्प होगा, आप भी चाहते हो और इसलिए अब जैसे ग्लोबल वार्मिंग की चर्चाएं बहुत होती है, पर्यावरण की चर्चाएं होती है, कभी नगरपालिका की रेवेन्यू की चर्चा होती है। क्या कभी आपने साइंटिफिक तरीके से आपकी जो स्ट्रीट लाइट है उसका ऑडिट किया है क्या? एलईडी बल्व आपकी स्ट्रीट लाइट में हंड्रेड परसेंट लगा है क्या? क्या आपने तय किया है कि रात को 10 बजे तक ये लाइट जरूरी है लेकिन 10 बजे के बाद छह लाइट की बजाए दो लाइट होगी तो चलेगा। 12 बजे के बाद इस पूरे रोड पर एक लाइट भी होगी तो चलेगा। सुबह पांच बजे के पहले कई जगहों पर लाइट नहीं होगी तो चलेगा।

साइंटीफिक तरीके से टेक्नोलॉजी की मदद से सब संभव होता है। कितनी बिजली का पैसा बचेगा वो विकास के काम आएगा कि नहीं आएगा। पानी, पानी की मोटर इसकी कितनी बर्बादी होती है, बचत होगी तो फायदा होगा कि नहीं होगा। और इसलिए हमें आर्थिक दृष्टि से भी और समाज हित में भी प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना यह हमारे एजेंडा में होना चाहिए। हम वेस्टफुल एक्सपेंडिचर के पक्ष में नहीं होने चाहिए। जितना ज्यादा इस प्रकार से काम होगा, आप देखिए बहुत बड़ा बदलाव आएगा। मुझे विश्वास है कि हमारे सारे मेयर जो यहां पर जुटे हुए हैं जब यहां से जाएंगे एक नई ऊर्जा ऩया विश्वास लेकर के जाएंगे, नए-नए तौर तरीके सीकखर के जाएंगे, एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखकर के जाएंगे।

और आप सभी मेयर का एक व्हाट्सएप ग्रुप बन जाएगा, और हरेक मिलकर के एक दूसरे के संपर्क में रहेंगे। आपके नगर में क्या हो रहा है उसको भेजेंगे। सोशल मीडिया का एक बहुत बड़ा नेटवर्क भाजपा के सभी मेयर का, उपमहापौर का स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन का, हेल्थ कमेटी के चेयरमैन का यानी सभी का एक संगठन बनना चाहिए, संपर्क जीवंत होना चाहिए। सोशल मीडिया एक अच्छा प्लेटफार्म है। अभी इलाहाबाद में कुछ हुआ है और पुणे में पता चलता है तो आनंद होता है। पुणे में कुछ होता है और काशी में पता चलता है तो और आनंद होता है। हम जितना ज्यादा हमारा संपर्क जीवंत बनाएंगे, हमें पक्का विश्वास है कि हम सब मिलकर के देश का विकास करेंगे, अपने शहर का विकास करेंगे और अपने जीवन में एक संतोष की अनुभूति करेंगे। इसी अपेक्षा के साथ आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। बहुत-बहुत धन्यवाद!

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78-ാം സ്വാതന്ത്ര്യ ദിനത്തില്‍ ചുവപ്പ് കോട്ടയില്‍ നിന്ന് പ്രധാനമന്ത്രി ശ്രീ നരേന്ദ്ര മോദി നടത്തിയ പ്രസംഗം

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!