सर जगन्‍नाथ जी, मारीशस सरकार के मंत्रीपरिषद के सभी महानुभाव, सभी वरिष्‍ठ नागरिक भाईयों और बहनों,

सर जगन्‍नाथ जी ने कहा कि छोटे भारत में भारत के प्रधानमंत्री का स्‍वागत करता हूं। ये लघू भारत शब्‍द सूनते ही पूरे तन मन में एक वाइब्रेशन की अनुभूति होती है, एक अपनेपन की अनुभूति होती है। एक प्रकार से 1.2 मिलियन के देश को 1.2 बिलियन का देश गले लगाने आया है। ये अपने आप में हमारी सांस्‍कृतिक विरासत है। हम कल्‍पना कर सकते हैं कि सौ डेढ़ सौ साल पहले हमारे पूर्वज यहां श्रमिक के रूप में आए और साथ में तुलसीदासकृत रामायण, हनुमान चालीसा और हिंदी भाषा को ले करके आए। इन सौ डेढ़ सौ साल में अगर ये तीन चीज़ें न होती और बाकी सब होता, तो आप कहां होते और मैं कहां होता, इसका हम अंदाज कर सकते हैं। इसे हमने बचाए भी रखा है, बनाए भी रखा है और जोड़ करके भी रखा है।

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1975 में, जब नागपुर में विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन हुआ तब श्री शिवसागर जी वहां आए थे और आपने उस समय प्रस्‍ताव रखा था, एक विश्‍व हिंदी सचिवालय होना चाहिए। 1975 में इस विचार को स्‍वीकार किया गया था, लेकिन उस बात को आगे बढ़ते-बढ़ते सालों बीत गए। और मैं मानता हूं कि आज विश्‍व सचिवालय की एक नई इमारत का शिलान्‍यास हो रहा है, तो उसकी खुशी विश्‍वभर में फैले हिंदी प्रेमियों को तो होगी ही होगी, लेकिन मुझे विश्‍वास है कि सर शिवसागर जी जहां कहीं भी होंगे, उनको अति प्रसन्‍नता होगी कि उनके सपनों का यह काम आज साकार हो रहा है।

जब अटल जी की सरकार थी तो 1975 के विचार को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास हुआ। डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी यहां आए थे। फिर बाद में गाड़ी में रूकावट आ गई और शायद ये काम मेरे ही भाग्‍य में लिखा था। लेकिन मैं चाहूंगा कि अब ज्‍यादा देर न हो। आज जिसकी शुरूआत हो, अभी तय कर लें कि इतनी तारीख को उसका उद्घाटन हो जाए।

मॉरीशस ने हिंदी साहित्‍य की बहुत बड़ी सेवा की है। बहुत से सार्क देशों में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम रहा है। अनेक भाषा भाषी लोगों ने हिंदी भाषा को सीखा है। दूनिया की अनेक युनिवर्सिटीज़ में हिंदी सिखाई जाती है। कई पुस्‍तकों का हिंदी में अनुवाद हुआ है। कई भाषाओं की किताबों का अनुवाद हुआ है। लेकिन जैसे मूर्धन्‍य साहित्‍यकार दिनकर जी कहते थे कि मॉरीशस अकेला एक ऐसा देश है जिसका, उसका अपना हिेंदी साहित्‍य है। ये मैं मानता हूं, बहुत बड़ी बात है।

अभी 2015 का प्रवासी भारतीय दिवस हुआ। इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस में कार्यक्रम रखा गया था कि प्रवासी भारतीयों के द्वारा जो साहित्‍य सर्जन हुआ है, उसकी एक प्रदर्शनी लगाई जाए। दूनियाभर में फैले हुए भारतीयों ने जो कुछ भी रचनाएं की हैं, अलग-अलग भाषा में की हैं, उसकी प्रदर्शनी थी। और मैं आज गर्व से कहता हूं कि विश्‍वभर में फैले हुए भारतीयों के द्वारा लिखे गए साहित्‍य की इस प्रदर्शनी में डेढ़ सौ से ज्‍यादा पुस्‍तकें मॉरीशस की थीं। यानि यहां पर हिंदी भाषा को इतना प्‍यार किया गया है, उसका इतना लालन-पालन किया गया है, उसको इतना दुलार मिला है, शायद कभी कभी हिंदुस्‍तान के भी कुछ इलाके होंगे जहां इतना दुलार नहीं मिला होगा जितना मॉरीशस में मिला है।

भाषा की अपनी एक ताकत होती है। भाषा भाव की अभिव्‍यक्ति का एक माध्‍यम होता है। जब व्‍यक्ति अपनी भाषा में कोई बात करता है, तब वो दिमाग से नहीं निकलती है, दिल से निकलती है। किसी और भाषा में जब बात की जाती है तो पहले विचार, दिमाग में ट्रांसलेशन चलता है और फिर प्रकट होता है। सही शब्‍द का चयन करने के लिए दिमाग पूरी डिक्‍शनरी छान मारता है और फिर प्रकट होता है। लेकिन, अपनी भाषा भाव की अभिव्‍यक्ति का बहुत बड़ा माध्‍यम होती है। जयशंकर राय ने कहा था कि मारीशस की हिंदी.. ये श्रमिकों की भक्ति का जीता जागता सबूत है। ये जयशंकर राय ने कहा था।

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और मैं मानता हूं कि मॉरीशस में जो हिंदी साहित्‍य लिखा गया है, वो कलम से निकलने वाली स्‍याही से नहीं लिखा गया है। मॉरीशस में जो साहित्‍य लिखा गया है, उस कलम से, श्रमिकों की पसीने की बूंद से लिखा गया है। मॉरीशस जो हिंदी साहित्‍य है, उसमें यहां के पसीने की महक है। और वो महक आने वाले दिनों में साहित्‍य को और नया सामर्थ्‍य देगी। और जैसा मैंने कहा कि भाव की अभिव्‍यक्ति .. हर भाषा का भाषातंर संभव नहीं होता है। और भाव का तो असंभव होता है।

जैसे हमारे यहां कहा गया है- "राधिका तूने बांसूरी चुराई।" अब यहां बैठे हुए जो लोग भी हिंदी भाषा को जानते हैं, उन्‍हें पूरी समझ है कि मैं क्‍या कह रहा हूं। “राधिके तूने बांसूरी चुराई।“ लेकिन यही बात बहुत बढिया अंग्रेजी़ में मैं ट्रांसलेट करके कहूंगा तो ये कहूंगा कि “Radhika has stolen the flute. Go to police station and report.” भाषा भाव की अभिव्‍यक्ति का एक बहुत बड़ा माध्‍यम होता है। भाषा से अभिव्‍यक्‍त होने वाले भाव सामर्थ्‍य भी देते हैं। हम हमारे प्रधानमंत्री श्री अनिरूद्ध जगन्‍नाथ जी को जानते हैं। नाम भी बोलते हैं लेकिन हमें पता नहीं होगा शायद कि जगन्‍नाथ में से ही अंग्रेजी डिक्‍शनरी में एक शब्‍द आया है और मूल शब्‍द वो जगन्‍नाथ का है.. और अंगेज़ी में शब्‍द आया है- Juggernaut. यानी ऐसा स्रोत,ऐसी शक्ति का स्रोत जिसे रोका नहीं जा सकता। इस के लिए और अंगेज़ी में शब्‍द आया है- Juggernaut. ये जगन्‍नाथ से गया है।

क्योंकि जब पुरी में जगन्‍नाथ जी यात्रा निकलती है और जो दृश्‍य होता है, उसमें जो शब्‍द वहां पहुंचा है। मैं एक बार Russia के उस क्षेत्र में गया जो हिंदूस्‍तान से सटा हुआ है। वहां के लोगों को tea शब्‍द पता नहीं है लेकिन चाय पता है। Door मालूम नहीं लेकिन द्वार पता है। कभी कभार ये भी अवसर होता है।

और मैं चाहूंगा कि ये जो हमारा विश्‍व हिंदी सचिवालय जो बन रहा है, वहां टेक्‍नॉलॉजी का भी भरपूर उपयोग हो। दूनिया की जितनी भाषाओं में हिंदी ने अपनी जगह बनाई है, किसी न किसी रूप में, पिछले दरवाजे से क्‍यों न हो, लेकिन पहूंच गई है, उसको भी कभी खोज कर निकालना चाहिए कि हम किस किस रूप में पहुंचे और क्‍यों स्‍वीकृति हो गई। विश्‍व की कई भाषाओं में हमारी भाषा के शब्‍द पहुंचे हैं। जब ये जानते हैं तो हमें गर्व होता है। ये अपने आप में एक राष्‍ट्रीय स्‍वाभिमान का कारण बन जाता है।

विश्‍व में फैले हुए हिंदी प्रेमियों के लिए ये आज के पल अत्‍यंत शुभ पल हैं। आज 12 मार्च है, जब मॉरीशस अपना राष्‍ट्रीय दिवस मना रहा है। मैं मॉरीशस के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों की सवा सौ करोड़ शुभकामनाएं ले करके आया हूं।

आज का वो दिन है, 12 मार्च,1930, जब महात्‍मा गांधी ने साबरमती के तट से दांडी यात्रा का आरंभ किया था। दांडी यात्रा भारत की आज़ादी के आंदोलन का एक turning point बनी थी। उसी साबरमती के तट से निकला था जिस साबरम‍ती का पानी पीकर मुझे भी तो बड़े होने का सौभाग्‍य मिला है। आज उसी 12 मार्च को ये अवसर आया है। महात्‍मा गांधी मॉरीशस आए थे। महात्‍मा गांधी ने मॉरीशस को भरपूर प्‍यार दिया था। सौ साल पहल.. महात्‍मा गांधी से जिनको बहुत प्रेम रहता था, एसे मणिलाल डॉ.. सौ वर्ष पूर्व उन्‍होंने यहां पर हिंदी अख़बार शुरू किया था.. हिंदुस्‍तानी। उस अख़बार की यह विशेषता थी.. कि अभी भी जब कुछ लोग भाषाओं के झगड़े करते हैं, लेकिन उस डॉ मणिलाल ने महात्‍मा गांधी की प्रेरणा से रास्‍ता निकाला था। वो हिंदुस्‍तानी अखबार ऐसा था जिसमें कुछ पेज गुजराती में छपते थे, कुछ हिंदी में छपते थे और कुछ अंग्रेज़ी में छपते थे और एक प्रकार से three language formula वाला वो अख़बार सौ साल पहले निकलता था।

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लेकिन वो हिंदुस्‍तानी अख़बार मॉरीशस के लोगों को जोड़ने का एक बहुत बड़ा माध्‍यम बना हुआ था। तो महात्‍मा गांधी के विचारों का प्रभाव उसमें अभिव्यक्त होता था। और स्‍वदेश प्रेम स्‍वदेशी भाषा से उजागर हो जाता है। अपनी भाषा से उजागर होता है। भाषा के बंधनों में बंधन वाले हम लोग नहीं हैं। हम तो वो लोग हैं जो सब भाषाओं के अपने गले लगाना चाहते हैं, क्‍योंकि वही तो समृद्धि का कारण बनता है। अगर अंग्रेजी ने जगन्‍नाथ को गले नहीं लगाया होता तो juggernaut शब्‍द पैदा नहीं होता। और इसलिए, भाषा की सम़द्धि भी बांधने से बंधती नहीं है। एक बगीचे से जब हवा चलती है तो हवा उसकी सुगंध को फैलाती जाती है। भाषा की भी वो ताकत होती है कि वो अपने प्रवाह के साथ सदियों तक नई चेतना, नई उर्जा, नया प्राण प्रसारित करती रहती है।

उस अर्थ में आज मेरे लिए बड़ा गर्व का विषय है कि मॉरीशस की धरती पर विश्‍व हिंदी सचिवालय के नए भवन का निर्माण हो रहा है। भाषा प्रेमियों के लिए, हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए, भारत प्रेमियों के लिए, और महान विरासत जिस भाषा के भीतर नवप‍ल्‍लवित होती रही है, उस महान विरासत के साथ विश्‍व को जोड़ने का जो प्रयास हो रहा है, उसको मैं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। और इस अवसर पर मुझे आपके बीच आने का अवसर मिला उसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं।

बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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Our language is the carrier of our culture: PM Modi at Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan
February 21, 2025
QuoteOur language is the carrier of our culture: PM
QuoteMarathi is a complete language: PM
QuoteSeveral saints of Maharashtra showed a new direction to society through the Bhakti movement in the Marathi language: PM
QuoteThere has never been any enmity among Indian languages, instead they have always adopted and enriched each other: PM

कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ नेता श्रीमान शरद पवार जी, महाराष्ट्र के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस जी, अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ तारा भवालकर जी, पूर्व अध्यक्ष डॉ रविंद्र शोभने जी, सभी सदस्यगण, मराठी भाषा के सभी विद्वतगण और उपस्थित भाइयों और बहनों।

अभी डॉक्टर तारा जी का भाषण पूरा हुआ तो मैंने ऐसे ही कहा थारछाण, तो उन्होंने मुझे गुजराती में जवाब दिया, मुझे भी गुजराती आती है। देशाच्या आर्थिक राजधानीच्या, राज्यातून देशाच्या, राजधानीत आलेल्या सर्व मराठी, सारस्वतांन्ना माझा नमस्कार।

आज दिल्ली की धरती पर मराठी भाषा के इस गौरवशाली कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन एक भाषा या राज्य तक सीमित आयोजन नहीं है, मराठी साहित्य के इस सम्मेलन में आजादी की लड़ाई की महक है, इसमें महाराष्ट्र और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत है। ज्ञानबा-तुकारामांच्या मराठीला आज राजधानी दिल्ली अतिशय मनापासून अभिवादन करते।

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भाइयों-बहनों,

1878 में पहले आयोजन से लेकर अब तक अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन देश की 147 वर्षों की यात्रा का साक्षी रहा है। महादेव गोविंद रानाडे जी, हरि नारायण आप्टे जी, माधव श्रीहरि अणे जी, शिवराम परांजपे जी, वीर सावरकर जी, देश की कितनी ही महान विभूतियों ने इसकी अध्यक्षता की है। शरद जी के आमंत्रण पर आज मुझे इस गौरवपूर्ण परंपरा से जुड़ने का अवसर मिल रहा है। मैं आप सभी को, देश दुनिया के सभी मराठी प्रेमियों को इस आयोजन की बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आणि आज तर जागतिक मातृभाषा दिवस आहे. तुम्ही दिल्लीतील साहित्य सम्मेलनासाठी दिवस सुद्धा अतिशय चांगला निवडला।

साथियों,

मैं जब मराठी के बारे में सोचता हूं, तो मुझे संत ज्ञानेश्वर का वचन याद आना बहुत स्वाभाविक है। 'माझा मराठीची बोलू कौतुके। परि अमृतातेहि पैजासी जिंके। यानी मराठी भाषा अमृत से भी बढ़कर मीठी है। इसलिए मराठी भाषा और मराठी सांस्कृति के प्रति मेरा जो प्रेम है, आप सब उससे भलीभांति परिचित हैं। मैं आप विद्वानों की तरह मराठी में उतना प्रवीण तो नहीं हूं, लेकिन मराठी बोलने का प्रयास, मराठी के नए शब्दों को सीखने की कोशिश मैंने निरंतर की है।

साथियों,

ये मराठी सम्मेलन एक ऐसे समय हो रहा है, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 350 वर्ष पूरे हुए हैं। जब पूण्यस्लोक अहिल्याबाई होल्कर जी की जन्मजयंति के 300 वर्ष हुए हैं और कुछ ही समय पहले बाबा साहेब अंबेडकर के प्रयासों से बने हमारे संविधान ने भी अपने 75 वर्ष पूरे किए हैं।

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साथियों,

आज हम इस बात पर भी गर्व करेंगे कि महाराष्ट्र की धरती पर मराठी भाषी एक महापुरूष ने 100 वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का बीज बोया था। आज ये एक वटवृक्ष के रूप में अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। वेद से विवेकानंद तक भारत की महान और पारंपरिक सांस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक संस्कार यज्ञन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पिछले 100 वर्षों से चला रहा है। मेरा सौभाग्य है कि मेरे जैसे लाखों लोगों को आरएसएस ने देश के लिए जीने की प्रेरणा दी है। और संघ के ही कारण मुझे मराठी भाषा और मराठी परंपरा से जुड़ने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसी कालखंड में कुछ महीने पहले मराठी भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा दिया गया है। देश और दुनिया में 12 करोड़ से ज्यादा मराठी भाषी लोग हैं। मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा मिले, इसका करोड़ों मराठी भाषियों को दशकों से इंतज़ार था। ये काम पूरा करने का अवसर मुझे मिला, मैं इसे अपने जीवन का बड़ा सौभाग्य मानता हूँ।

माननीय विद्वतजन,

आप जानते हैं, भाषा केवल उसके संवाद का माध्यम भर नहीं होती है। हमारी भाषा हमारी संस्कृति की संवाहक होती है। ये बात सही है कि भाषाएँ समाज में जन्म लेती हैं, लेकिन भाषा समाज के निर्माण में उतनी ही अहम भूमिका निभाती है। हमारी मराठी ने महाराष्ट्र और राष्ट्र के कितने ही मनुष्यों के विचारों को अभिव्यक्ति देकर हमारा सांस्कृतिक निर्माण किया है। इसीलिए, समर्थ रामदास जी कहते थे- मराठा तितुका मेळवावा महाराष्ट्र धर्म वाढवावा आहे तितके जतन करावे पुढे आणिक मेळवावे महाराष्ट्र राज्य करावे जिकडे तिकडे मराठी एक सम्पूर्ण भाषा है। इसीलिए, मराठी में शूरता भी है, वीरता भी है। मराठी में सौंदर्य भी है, संवेदना भी है, समानता भी है, समरसता भी है, इसमें आध्यात्म के स्वर भी हैं, और आधुनिकता की लहर भी है। मराठी में भक्ति भी है, शक्ति भी है, और युक्ति भी है। आप देखिए, जब भारत को आध्यात्मिक ऊर्जा की जरूरत हुई, तो महाराष्ट्र के महान संतों ने ऋषियों के ज्ञान को मराठी भाषा में सुलभ कराया। संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत रामदास, संत नामदेव, संत तुकड़ोज़ी महाराज, गाडगे बाबा, गोरा कुम्हार और बहीणाबाई महाराष्ट्र के कितने ही संतों ने भक्ति आंदोलन के जरिए मराठी भाषा में समाज को नई दिशा दिखाई। आधुनिक समय में भी गजानन दिगंबर माडगूलकर और सुधीर फड़के की गीतरामायण ने जो प्रभाव डाला, वो हम सब जानते हैं।

साथियों,

गुलामी के सैकड़ों वर्षों के लंबे कालखंड में, मराठी भाषा, आंक्रांताओं से मुक्ति का भी जयघोष बनी। छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज और बाजीराव पेशवा जैसे मराठा वीरों ने दुश्मनों को नाको चने चबवा दिए, उनको मजबूर कर दिया। आज़ादी की लड़ाई में वासुदेव बलवंत फड़के, लोकमान्य तिलक और वीर सावरकर जैसे सेनानियों ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी। उनके इस योगदान में मराठी भाषा और मराठी साहित्य का बहुत बड़ा योगदान था। केसरी और मराठा जैसे समाचार पत्र, कवि गोविंदाग्रज की ओजस्वी कवितायें, राम गणेश गडकरी के नाटक मराठी साहित्य से राष्ट्रप्रेम की जो धारा निकली, उसने पूरे देश में आज़ादी के आंदोलन को सींचने का काम किया। लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य भी मराठी में ही लिखी थी। लेकिन, उनकी इस मराठी रचना ने पूरे देश में एक नई ऊर्जा भर दी थी।

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साथियों,

मराठी भाषा और मराठी साहित्य ने समाज के शोषित, वंचित वर्ग के लिए सामाजिक मुक्ति के द्वार खोलने का भी अद्भुत काम किया है। ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, महर्षि कर्वे, बाबा साहेब आंबेडकर, ऐसे कितने ही महान समाज सुधारकों ने मराठी भाषा में नए युग की सोच को सींचने का काम किया था। देश में मराठी भाषा ने बहुत समृद्ध दलित साहित्य भी हमें दिया है। अपने आधुनिक चिंतन के कारण मराठी साहित्य में विज्ञान कथाओं की भी रचनाएँ हुई हैं। अतीत में भी, आयुर्वेद, विज्ञान, और तर्कशास्त्र में महाराष्ट्र के लोगों ने अद्भुत योगदान दिया है। इसी संस्कृति के कारण, महाराष्ट्र ने हमेशा नए विचारों और प्रतिभाओं को भी आमंत्रित किया और महाराष्ट्र ने इतनी प्रगति की है। हमारी मुंबई महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश की आर्थिक राजधानी बनकर उभरी है।

और भाइयों बहनों,

जब मुंबई का ज़िक्र आया है, तो फिल्मों के बिना न साहित्य की बात पूरी होगी, और न मुंबई की! ये महाराष्ट्र और मुंबई ही है, जिसने मराठी फिल्मों के साथ-साथ हिन्दी सिनेमा को ये ऊंचाई दी है। और इन दिनों तो ‘छावा’ की धूम मची हुई है। सांभाजी महाराज के शौर्य से इस रूप में परिचय शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास ने ही कराया है।

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साथियों,

कवि केशवसुत का एक पद है- “जुनें जाऊं द्या, मरणालागुनि जाळुनि किंवा, पुरुनि टाकासडत न एक्या ठायी ठाका, यानी हम पुरानी सोच पर थमे नहीं रह सकते। मानवीय सभ्यता, विचार और भाषा लगातार evolve होते रहते हैं। आज भारत दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यताओं में से एक है। क्योंकि, हम लगातार evolve हुये हैं, हमने लगातार नए विचारों को जोड़ा है, नए बदलावों का स्वागत किया है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी भाषाई विविधता इसका प्रमाण है। हमारी ये भाषाई विविधता ही हमारी एकता का सबसे बुनियादी आधार भी है। मराठी खुद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। क्योंकि, हमारी भाषा उस माँ की तरह होती है, जो अपने बच्चों को नए से नया, अधिक से अधिक ज्ञान देना चाहती है। माँ की तरह ही भाषा भी किसी से भेदभाव नहीं करती। भाषा हर विचार का, हर विकास का आलिंगन करती है। आप जानते हैं, मराठी का जन्म संस्कृत से हुआ है। लेकिन, इसमें उतना ही प्रभाव प्राकृत भाषा का भी है। ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ी है, इसने मानवीय सोच को और अधिक व्यापक बनाया है। अभी मैंने लोकमान्य तिलक जी की गीता रहस्य का ज़िक्र किया। गीता रहस्य संस्कृत गीता की व्याख्या है। तिलक जी ने मूल गीता के विचारों को लिया, और मराठी बोध से उसे और ज्यादा जन-सुलभ बनाया। ज्ञानेश्वरी गीता में भी संस्कृत पर मराठी में टिप्पणी लिखी गई। आज वही ज्ञानेश्वरी देश भर के विद्वानों और संतों के लिए गीता को समझने के लिए एक मानक बन गई है। मराठी ने दूसरी सभी भारतीय भाषाओं से साहित्य को लिया है, और बदले में उन भाषाओं को भी समृद्ध किया है। जैसे कि भार्गवराम बिट्ठल वरेरकर जैसे मराठी साहित्यकारों ने ‘आनंदमठ’ जैसी कृतियों का मराठी अनुवाद किया। विंदा करंदीकर, इनकी रचनाएँ तो कई भाषाओं में आईं। उन्होंने पन्ना धाय, दुर्गावती और रानी पद्मिनी के जीवन को आधार बनाकर रचनाएँ लिखीं। यानी, भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा। भाषाओं ने हमेशा एक दूसरे को अपनाया है, एक दूसरे को समृद्ध किया है।

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साथियों,

कई बार जब भाषा के नाम पर भेद डालने की कोशिश की जाती है, तो हमारी भाषाओं की साझी विरासत ही उसका सही जवाब देती है। इन भ्रमों से दूर रहकर भाषाओं को समृद्ध करना, उन्हें अपनाना, ये हम सबका सामूहिक दायित्व है। इसीलिए, आज हम देश की सभी भाषाओं को mainstream language के रूप में देख रहे हैं। हम मराठी समेत सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं। अब महाराष्ट्र के युवा मराठी में हायर एजुकेशन, इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई वहां का युवा आसानी से कर सकेंगे। अंग्रेजी न जानने के कारण प्रतिभाओं की उपेक्षा करने वाली सोच को हमने बदल दिया है।

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साथियों,

हम सब कहते हैं कि हमारा साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य समाज का पथप्रदर्शक भी होता है। इसीलिए, साहित्य सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों की, साहित्य से जुड़ी संस्थाओं की देश में बहुत अहम भूमिका होती है। गोविंद रानडे जी, हरिनारायण आप्टे जी, आचार्य अत्रे जी, वीर सावरकर जी, इन महान विभूतियों ने जो आदर्श स्थापित किए, मैं आशा करता हूँ, अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल उन्हें और आगे बढ़ाएगा। 2027 में साहित्य़ सम्मेलन की इस परंपरा को 150 वर्ष पूरे होंगे। और तब 100वां सम्मेलन होगा। मैं चाहूँगा, आप इस अवसर को विशेष बनाएँ, इसके लिए अभी से तैयारी करें। कितने ही युवा आजकल सोशल मीडिया के जरिए मराठी साहित्य की सेवा कर रहे हैं। आप उन्हें मंच दे सकते हैं, उनकी प्रतिभा को पहचान दे सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग मराठी सीखें, इसके लिए आप ऑनलाइन platforms को, भाषिणी जैसे initiatives को बढ़ावा दें। मराठी भाषा और साहित्य को लेकर युवाओं के बीच प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जा सकता है। मुझे विश्वास है, आपके ये प्रयास, और मराठी साहित्य की प्रेरणाएं विकसित भारत के लिए 140 करोड़ देशवासियों को नई ऊर्जा देंगे, नई चेतना देंगे, नई प्रेरणा देंगे। आप सभी महादेव गोविंद रानडे जी, हरि नारायण आप्टे जी, माधव श्रीहरि अणे जी, शिवराम परांजपे जी, जैसे महान व्यक्तित्वों की महान परंपरा को आगे बढ़ाएं, इसी कामना के साथ, आप सभी का एक बार फिर बहुत-बहुत धन्यवाद!