Mahatma Gandhi always highlighted the importance of villages and spoke about 'Gram Swaraj': PM Modi
Urge people to focus on the education of their children: PM Modi
Our efforts are towards self-reliance in the agriculture sector: PM
Jan Dhan, Van Dhan, Gobar Dhan trio aimed at empowering the tribal and farm communities: PM Modi
A transformation of villages would ensure a transformation of India: PM Modi

मंच पर विराजमान मध्‍यप्रदेश के गर्वनर श्रीमती आनंदी बेन पटेल, राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह, केंद्र में मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्रीमान नरेंद्र सिंह जी तोमर, श्रीमान पुरुषोत्तम रूपाला, राज्‍य सरकार के मं‍त्री गोपाल जी, ओमप्रकाश जी, संजय जी, संसद में मेरे साथी श्रीमान फग्गन सिंह कुलस्ते  जी, श्रीमती संपत्यिा वी.के.जी, और अब भारतीय जनता पार्टी के जो अध्‍यक्ष बने हैं और हमारे जबलपुर के सांसद हैं; श्रीमान राकेश सिंह जी, मंडला जिला पंचायत की अध्‍यक्षा श्रीमती सरस्‍वती मरावी जी और आज बड़े गर्व के साथ एक और परिचय भी करवाना चाहता हूं- हमारे बीच बैठे हैं त्रिपुरा के उप-मुख्‍यमंत्री। पिछले दिनों त्रिपुरा के चुनाव ने एक ऐतिहासिक काम किया। वहां की जनता ने एक ऐतिहासिक निर्णय किया और भारी बहुमत से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाई।

त्रिपुरा में ज्‍यादातर जनजातीय समुदाय रहता है।   आपको जैसे यहां गौंड परम्‍परा का इतिहास है वैसे ही त्रिपुरा में आदि जाति के लोगों का, जनजातीय समुदायों का, वहां के राज-शासन का एक बहुत बड़ा लम्‍बा इतिहास है। और मुझे खुशी है कि आज उस त्रिपुरा के नव-निर्वाचित उप-मुख्‍यमंत्री श्रीमान जिश्‍नूदेव वर्मा जी मेरे बीच में हैं और वे त्रिपुरा के उस जनजातीय समुदाय से आते हैं और उस राजपरिवार से आते हैं जिन्‍होंने अंग्रेज सल्‍तनत के सामने लोहा लिया था; आज उनका यहां मध्‍यप्रदेश की धरती पर स्‍वागत करने में मुझे गर्व हो रहा है।

भाइयो, बहनों, हम सब आज मां नर्मदा की गोद में इकट्ठे हुए हैं। मैं सबसे पहले करीब-करीब 1300 किलोमीटर लम्‍बे पट वाली मां नर्मदा, यहां से शुरू होकर गुजरात में समुद्री तट तक जाने वाली मां नर्मदा, हमारे करोड़़ों लोगों की जिंदगी को संभालने-संवारने वाली मां नर्मदा; हमारा पशुपालन हो, हमारी कृषि हो, हमारा ग्रामीण जीवन हो; सदियों से मां नर्मदा ने हमें नई जिंदगी देने का काम किया है। मैं उस मां नर्मदा को प्रणाम करता हूं।

आज मेरा सौभाग्‍य है, मुझे इस क्षेत्र में पहले भी आने का सौभाग्‍य मिलता रहा है। रानी दुर्गावती, पराक्रम की गाथाएं, त्‍याग और बलिदान की गाथाएं हम सबको प्रेरणा देती रही हैं। और ये हमारे देश की विशेषता रही है चाहे रानी दुर्गावती हो, चाहे रानी अवन्‍तीबाई हो; समाज के लिए संघर्ष करते रहना, विदेशी सल्‍तनत के सामने कभी झुकना नहीं, जीना तो शान से और मरना तो संकल्‍प को ले करके मरना, ये परम्‍परा के साथ आज हम इस धरती पर हमारी आदिजाति का एक गौरवपूर्ण कार्यक्रम का प्रारंभ कर रहे हैं।

लेकिन साथ-साथ आज पंचायत दिवस भी है। पूज्‍य बापू के सपनों को साकार करने का एक महत्‍वपूर्ण अवसर है क्‍योंकि महात्‍मा गांधी ने भारत की पहचान भारत के गांवों से है, इस संकल्‍प को बार-बार दोहराया था। महात्‍मा गांधी ने ग्राम स्‍वराज की कल्‍पना दी थी। महात्‍मा गांधी ने ग्रामोदय से राष्‍ट्रोदय, ये मार्ग हमें प्रशस्‍त करने के लिए प्रेरित किया था। और आज पंचायत राज दिवस पर मैं देश की करीब दो लाख चालीस हजार पंचायतों को, इन पंचायतों में रहने वाले कोटि-कोटि मेरे भारतवासियों को, इन पंचायतों में जन‍प्रतिनिधियों के रूप में बैठे हुए 30 लाख से ज्‍यादा जनप्रितिनिधियों को और उसमें भी एक-तिहाई से ज्‍यादा हमारी माताएं-बहनें, जो आज ग्रामीण जीवन का नेतृत्‍व कर रही हैं, ऐसे सबको आज पंचायती राज दिवस पर प्रणाम करता हूं, बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

और मैं उनको विशवास दिलाना चाहता हूं आपके अपने गांव के विकास के लिए, आपके अपने गांव के लोगों के सशक्तिकरण के लिए, आपके अपने गांव को समस्‍याओं से मुक्ति दिलाने के लिए आप जो भी संकल्‍प करेंगे उन संकल्‍पों को पूरा करने के लिए हम भी, भारत सरकार भी कंधे से कंधा मिला करके आपके साथ चलेगी। आपके सपनों के साथ हमारे सपने भी जुड़ेंगे, और हम सबके सपने मिल करके सवा सौ करोड़ देशवासियों के सपनों को हम सिद्ध करके रहेंगे। इसी एक भावना के आज पंचायत राज दिवस पर गांव के लिए कुछ करने का संकल्‍प करें।

पुराने जमाने में कभी-कभी हम जब यहां भी मंडला में आते हैं तो उस किले की पहचान होती है, उस राजपरिवार की व्‍यवस्‍था की पहचान होती है और हम सब बड़ा सीना तान कर कहते हैं कि सदियों पहले गौंड राजाओं ने कितना बड़ा काम किया था, कैसी बड़ी व्‍यवस्‍थाएं की थीं। उस समय राज-व्‍यवस्‍थाएं थीं, राज-परम्‍पराएं थी और राज-परम्‍पराओं से जुड़े हुए लोग अपने इलाके के नागरिकों की भलाई के लिए कुछ ऐसा काम करने का प्रयास करते थे जिसको आज सदियों के बाद भी हम इतिहास के माध्‍यम से स्‍मरण करते हैं, गर्व करते हैं और हमारी आने वाली पीढ़ियों को बताते हैं। उस जमाने में जो व्‍यवस्‍था जी उस व्‍यवस्‍था के तहत ये होता था।

अब लोकतंत्र है, एक निश्चित अवधि के लिए गांव के लोगों ने हमें जिम्‍मेदारी दी है, गांव के लोगों ने हम पर भरोसा रखा है। ऐसा कौन पंचायत का प्रधान होगा, ऐसा कौन पंचायत का चुना हुआ प्रतिनिधि होगा जिसके दिल में ये इच्‍छा न हो कि पांच साल जो मुझे मिले हैं, मैं पांच साल में मेरे गांव के लिए ये 5 अच्‍छे काम, 10 अच्‍छे काम, 15 अच्‍छे काम मेरे कार्यकाल में करके ही रहूंगा। ये संकल्‍प, और तब जा करके 20 साल, 25 साल, 30 साल के बाद, जब आप बुढ़ापे से गुजरते होंगे, घर में पोते-पोतियों को ले करके कभी रास्‍ते में निकलेंगे, तो आप भी अपने पोते-पोतियों को बताएंगे कि 25 साल पहले मैं पंचायत का प्रधान था, 25 साल पहले मैं पंचायत में चुन करके आया था और देखो मेरे समय में मैंने ये तालाब का काम किया था, मेरे समय में ये स्‍कूल में मैंने ये पेड़ लगाया था, मेरे समय में मैंने ये तालाब में काम किया था, मेरे समय में मैंने ये कुंआ खुदवाया था, गांव को पानी मिला था। आप भी जरूर चाहेंगे कि कुछ ऐसा काम करके जाएं कि जब अपने पोते-पोतियों को आप कहें कि जनता ने आपको चुन करके बिठाया था और आपने 25 साल, 30 साल पहले ये काम किया था और जिसका हमें संतोष है। कौन पंचायत का व्‍यक्ति हो जिसके दिल में ये इच्‍छा नहीं होगी?  

मैं आपके हृदय में वो इच्‍छा को प्रबल करना चाहता हूं। आपको मजबूत संकल्‍पों का धनी बनाना चाहता हूं। अपने गांव के लिए कुछ कर गुजरने का इरादा और उसके लिए जो पांच साल मिलते हैं, वे पांच साल पल-पल जनता-जनार्दन के लिए खपा देने का अगर प्रण ले करके चलें तो दुनिया की कोई ताकत नहीं हैं, दुनिया की कोई चुनौती नहीं है, कोई ऐसी मुसीबत नहीं है, जिसको हम परास्‍त करके हम हमारे गांव की जिंदगी को बदल न सकें।

कभी-कभी गांव के विकास की बात आती है तो ज्‍यादातर लोग बजट की बातें करते हैं। कोई एक जमाना था जब बजट के कारण शायद मुसीबतें रही हों, लेकिन आज बजट की चिंता कम है, आज चिंता है बजट का, पैसों का सही उपयोग कैसे हो? सही समय पर कैसे हो? सही काम के लिए कैसे हो? सही लोगों के लिए कैसे हो? और जो हो इसमें ईमानदारी भी हो, पारदर्शिता भी हो और गांव में हर किसी को पता होना चाहिए कि ये काम हुआ, इतने पैसों से हुआ और ये गांव को हिसाब में दे रहा हूं। ये आदत, समस्‍या पैसों की कभी नहीं है, लेकिन समस्‍या कभी प्राथमिकता की होती है।

आप मुझे बताइए, गांव में स्‍कूल है, स्‍कूल का अच्‍छा मकान है, गांव में मास्‍टरजी को नियुक्‍त किया गया है, मास्‍टरजी को तनख्‍वाह रेग्‍युलर मिल रही है, स्‍कूल के समय स्‍कूल खुल रहा है, लेकिन अगर उसके बावजूद भी मेरे गांव के पांच-पच्‍चीस बच्‍चे स्‍कूल नहीं जाते हैं, खेत में जा करके छिप जाते हैं, पेड़ पर जा करके बैठ जाते हैं, और मेरे गांव के 5-25 बच्‍चे अनपढ़ रह जाते हैं, मुझे बताइए ये 5-25 बच्‍चे अनपढ़ रह गए, क्‍या बजट समस्‍या थी? जी नहीं, मास्‍टर की समस्‍या थी? जी नहीं। हम गांव के लोगों ने हमारे गांववासियों को ये जो बात समझानी चाहिए कि भई स्‍कूल है, मास्‍टरजी हैं, सरकार फीस देती है, सरकार यूनिफार्म देती है, सरकार मध्याह्न भोजन देती है। आओ, हमारे गांव में एक भी बच्‍चा स्‍कूल से छूट नहीं जाएगा। हमारे गांव से एक भी बच्‍चा अनपढ़ नहीं रहेगा, क्‍या ये हम नहीं निर्णय कर सकते?

हमारे माता-पिता अनपढ़ रहे होंगे, उनको शायद वो सौभाग्‍य नहीं मिला होगा। उस समय की सरकारों के रहते हुए वो पढ़ नहीं पाए होंगे लेकिन हम अगर पंचायत में चुन करके आए हैं, राज्‍य में भी सरकार, केंद्र में भी सरकार, बच्‍चों की शिक्षा के लिए आग्रही है, बेटियों की शिक्षा के लिए विशेष आग्रही है; तो क्‍या हमारा दायित्‍व नहीं है कि जनप्रतिनिधि के नाते पांच साल में ऐसा काम करूं कि स्‍कूल जाने की उम्र का एक भी बच्‍चा अनपढ़ न रहे। आप देखिए वो बच्‍चा जब बड़ा होगा, अच्‍छी पढ़ाई करे आगे निकलेगा; वो बच्‍चा बड़ा हो करके कहेगा कि मैं तो गरीब मां का बेटा था, कभी मां के साथ खेत में काम करने जाता था, लेकिन मेरे गांव के प्रधानजी थे, वो खेत में से मुझे पकड़ कर ले गए थे और मुझे कहा- बेटे अभी तेरी उम्र खेत में काम करने की नहीं है, चल स्‍कूल चल, पढ़ाई कर, और प्रधानजी मुझे ले गए थे। उसी की बदौलत आज मैं डॉक्‍टर बन गया, आज मैं इंजीनियर बन गया, आज मैं IAS अफसर बन गया, मेरे परिवार की जिंदगी बदल गई। एक प्रधानजी के कारण एक जिंदगी भी बदल जाती है तो पूरा हिंदुस्‍तान बदलने सही दिशा में चल पड़ता है।

और इसलिए मेरे प्‍यारे सभी प्रतिनिधि, ये पंचायत राज दिवस, ये हमारे संकल्‍प का दिवस होना चाहिए। आप मुझे बताइए, आज के जमाने में आरोग्‍य के क्षेत्र में इतने अच्‍छे संशोधन हुए हैं। अगर पोलियो की खुराक सही समय पर बच्‍चों को पिला दी जाए तो हमारे गांव में बच्‍चे को पोलियो होने की संभावना नहीं है, बच जाता है। आप मुझे बताइए आज भी आपके गांव में कोई 40 साल का, कोई 50 साल का व्‍यक्ति पोलियो के कारण परेशानी की जिंदगी जीता होगा, दिव्‍यांग अवस्‍था में आप देखते होंगे, आपके मन में पीड़ा होती होगी कि नहीं  होती होगी? आपको लगता होगा कि नहीं लगता होगा, अरे भगवान ने  इसके साथ ऐसा क्‍यों कर दिया बेचारा चल भी नहीं पाता है। आपके मन में जरूर भाव उठता होगा।

मेरे भाइयो, बहनों, 40-50 साल की उम्र के उस व्‍यक्ति को शायद वो सौभाग्‍य मिला नहीं। लेकिन आज, आज पोलियो का खुराक, आपके गांव के किसी भी बच्‍चे को अपाहिज नहीं होने देता है, दिव्‍यांग नहीं बनने देता है, उसको पोलियो की बीमारी नहीं आ सकती है। क्‍या पोलिया का खुराक, इसके बजट लगेगा क्‍या? डॉक्‍टर आते हैं, सरकार आती है, पैसे खर्च किए जाते हैं, पोलियो के खुराक की तारीख की टीवी में, अखबार में लगातार एलान होता है। क्‍या मैं पंचायत में से चुना हुआ व्‍यक्ति, मैं मेरे गांव में पोलियो केखुराक के अंदर कभी भी कोताही नहीं बरतूं, क्‍या ये निर्णय मैं कर सकता हूं कि नहीं कर सकता? क्‍या ये काम मैं कर सकता हूं कि नहीं कर सकता हूं?

लेकिन कभी-कभी जनप्रतिनिधियों को लगता है ये काम तो सरकारी बाबुओं का है, हमारा काम नहीं है। जी नहीं, मेरे प्‍यारे भाइयो, बहनों, हम जनता के सेवक हैं, हम सरकार के सेवक नहीं हैं। हम जनप्रतिनिधि जनता की सुखाकारी के लिए आते हैं और इसलिए हमारी शक्ति, हमारा समय अगर उसी काम के लिए लगता है तो हम अपने गांव की जिंदगी बदल सकते हैं।

आप मुझे बताइए- मैं छोटी-छोटी बातें इसलिए बताता हूं कि कभी-कभी बड़ी बातें करने के लिए तो बहुत सही जगह होती हैं और बड़े-बड़े लोग बड़ी-बड़ी बातें बताते भी रहते हैं। लेकिन हमें अपने गांव में छोटी-छोटी बातों से भी परिवर्तन आता है।

हमें मालूम है हमारे गांव का किसान- क्‍या उसको ये पता है कि अगर जिस खेत से उसका पेट भरता है, जिस खेत से वो समाज का पेट भरता है, अगर उस मिट्टी की सेहत अच्‍छी नहीं होगी, तो कभी न कभी वो धरती माता रूठ जाएगी कि नहीं जाएगी? धरती माता आज जितनी फसल देती है, वो देना बंद करेगी कि नहीं करेगी? हम भी भूखे मरेंगे और भी भूखे मरेंगे। हमारी आने वाली पीढ़ी भी गरीबी में गुजारा करने के लिए मजबूर हो जाएगी। क्‍या कभी सोचा है हम कभी गांव के लोगों को बिठाएं, बिठा करके तय करें कि भाई बताओ, हम जल्‍दी-जल्‍दी फसल, ज्‍यादा-ज्‍यादा फसल दिखाई दे इसलिए इतनी बड़ी मात्रा में यूरिया डालते हैं। बगल वाले ने एक थैला यूरिया डाल दिया तो मैं भी एक थैला डाल देता हूं। बगल वाले ने दो थैला डाल दिया तो मैं भी दो थैला डाल देता हूं। बगल वाले ने लाल डिब्‍बे वाली दवाई डाल दी तो मैं भी लाल डिब्‍बे वाली दवा डाल दूं और उसके कारण मैं मेरी जमीन को बर्बाद करता हूं।

क्‍या गांव के लोग मिल करके तय करें कि हम अगर पहले पूरे गांव में 50 थैला यूरिया आता था, अब हम 40 थैले से चलाएंगे, 40 बैग से चलाएंगे। ये बताइए, गांव के 10 बैग का पैसा बचेगा कि नहीं बचेगा? गांव के अंदर यूरिया के कारण जो हमारी मिट्टी की सेहत खराब हो रही है, हमारी जमीन बर्बाद हो रही है, हमारी धरती माता बर्बाद हो रही है, उसको बचाने की थोड़ा सी भी हमारी कोई भूमिका बनेगी कि नहीं बनेगी? पैसे भी बचेंगे, धीरे-धीरे फसल भी अच्‍छी लगने लगेगी। हमारी मां, धरती माता हम पर खुश हो जाएगी, वो भी हमें आशीर्वाद बरसाएगी कि दवाईयां पिला-पिला कर मुझे मार रहा था। अब मेरा बेटा सुधर गया है, अब मैं भी एक धरती मां की तरह से उसका पेट भरने के लिए ज्‍यादा करूंगी। आप मुझे बताइए कर सकते हैं कि नहीं कर सकते?

मैं आपसे, मेरे आदिवासी भाइयों से पूछना चाहता हूं, मैं जनजाति के भाइयों से पूछना चाहता हूं क्‍या ये काम हम कर सकते हैं कि नहीं कर सकते? कर सकते हैं कि नहीं कर सकते हैं?

आप मुझे बताइए अब सरकार ने एक बड़ा अच्‍छा नियम बना दिया। मैं मंडला के जंगलों में खड़ा हूं आज। यहां पर बांस की खेती होती है। एक समय था बांस को हमारे देश में पेड़ माना गया था। अब मुझे भी समझ नहीं आ रहा, मैं फाइलें पढ़ रहा हूं कि इतने साल तक ये बांस को, बाम्‍बू को पेड़ क्‍यों माना गया है। और उसके कारण हुआ क्‍या, मेरा जनजाति का भाई जो जंगलों में रहता है, वो बांस को काट नहीं सकता, बांस को बेच नहीं सकता और अगर कभी जाता है ले करके, और किसी फॉरेस्‍ट ऑफिसर ने देख लिया तो फिर उसको तो बेचारे को दिन में ही रात के तारे दिखाई देते हैं। ये मुसीबत आती है कि नहीं आती है? परेशानियां होती थीं कि नहीं होती थीं?

सरकार ने एक बड़ा अहम फैसला ले लिया। सरकार ने अहम फैसला ले लिया कि अब बांस को, बम्‍बू को पेड़ की श्रेणी में नहीं, उसको ग्रास की श्रेणी में रखा जाएगा ताकि किसान अपने खेत के मेढ़ पर बाम्‍बू की खेती कर सकता है, बाम्‍बू बेच सकता है, बाम्‍बू से अलग-अलग चीजें बना करके बाजार में बेच सकता है, गांव के अंदर एक नया रोजगार पैदा हो सकता है।

आप हैरान होंगे इतने जंगल, इतने जनजाति का मेरा समुदाय, इतने बम्‍बू, लेकिन मेरे देश में 12-15 हजार करोड़ रुपये के बाम्‍बू हम विदेशों से लाते हैं। अगरबत्‍ती बनानी है बाम्‍बू विदेश से लाओ, दियासलाई बनानी है बाम्‍बू विदेश से लाओ, पंतग बनाना है, बाम्‍बू विदेश से लाओ। घर बनाना है, बाम्‍बू काटने की इजाजत नहीं। हजारों करोड़ रुपया विदेश चला जाता है।

अब मैं मेरे जनजातीय भाइयों को गांव के मेरे किसानों से आग्रह करता हूं कि अच्‍छी क्‍वालिटी का बाम्‍बू अपने खेत की मेढ़ पर, बाकी जो खेती करते हैं वो करते रहें हम, खेत के किनारे पर अगर हम बाम्‍बू लगा दें, दो साल में, तीन साल में वो कमाई करना शुरू कर देगा। मेरे किसान की आय बढ़ेगी कि नहीं बढ़ेगी। जो जमीन बेकार पड़ी थी किनारे पर वहां अतिरिक्‍त आय होगी कि नहीं होगी?

मैं आपसे आग्रह करता हूं, मेरे पंचायत के प्रतिनिधियों से आग्रह करता हूं क्‍या हम कृषि के क्षेत्र में हमारे गांव के किसानों को आत्‍मनिर्भर कर सकते हैं कि नहीं कर सकते? हमारे हिमाचल के गर्वनर साहब हैं, देवव्रत जी। वे गर्वनर हैं लेकिन पूरा समय जीरो बजट वाली खेती लोगों को सिखाते रहते हैं। एक गाय हो एक गाय, और दो एकड़ भू‍मि हो, तो कैसे जीरो बजट से खेती हो सकती है, वो सिखाते रहते हैं और कई लोगों ने उस प्रकार से रास्‍ता बनाया है। क्‍या मेरे पंचायत के प्रतिनिधि इन चीजों को सीख करके अपने गांव के किसानों को तैयार कर सकते हैं कि नहीं कर सकते?

अभी हम लोग अभियान चला रहे हैं शहद का। मधुमक्‍खी पालन का। अगर छोटा सा भी किसान हो, अगर 50 पेटी अपने खेत में रख लें तो साल भर में डेढ़-दो लाख रुपयों का शहद बेच सकता है और अगर बिका नहीं, गांव में खाया भी, तो भी शरीर को लाभ हो जाएगा। आप मुझे बताइए खेती की इन्‍कम में बढ़ोत्‍तरी हो सकती है कि नहीं? क्‍या ये काम बजट से करने की जरूरत है, जी नहीं। ये काम अपने-आप हो सकते हैं। और इसलिए हम तय करें।

अब मनरेगा का पैसा आता है, लोगों को सरकार, भारत सरकार पैसे भेजती है। मजदूरी के लिए पैसे देती है। क्‍या हम अभी से तय कर सकते हैं कि भाई अप्रैल, मई, जून- तीन महीना जो मनरेगा का काम होगा, जो हम मजदूरी देंगे, हम पहले तय करेंगे कि गांव में पानी बचाने के लिए क्‍या-क्‍या काम हो सकते हैं। अगर तालाब गहरा करना है, छोटे-छोटे check dam बनाने हैं, पानी रोकने का प्रबंध करना है। बारिश की एक-एक बूंद, ये पानी बचाने के लिए ही तीन महीने मनरेगा के पैसों का काम, उसी में लगाएंगे। जो भी मजदूरी का काम करेंगे, उसी काम के‍ लिए करेंगे।

आप मुझे बताइए अगर गांव का पानी गांव में रहता है, बारिश का एक-एक बूंद का पानी बच जाता है तो जमीन में पानी जो गहरे जा रहे हैं वो पानी ऊपर आएंगे कि नहीं आएंगे? पानी निकालने का खर्चा कम होगा कि नहीं होगा? अगर बारिश कम अधिक हो गई तो उसी पानी से खेती को जीवनदान मिल सकता है कि नहीं मिल सकता है? गांव को कोई भूखा मरने की नौबत आएगी की क्‍या?

ऐसा नहीं है कि योजनाएं नहीं हैं, ऐसा नहीं है कि पैसों की कमी है। मैं गांव के प्रति‍निधियों से आग्रह करता हूं, आप तय करें- चाहे शिक्षा का मामला हो, चाहे आरोग्‍य का मामला हो, चाहे पानी बचाने का मामला हो, चाहे कृषि के अंदर बदलाव लाने का मामला हो, ये ऐसे काम हैं जिसमें नए बजट के बिना भी गांव के लोग आज जहाँ हैं वहां से आगे जा सकते हैं।

एक और बात मैं कहना चाहूंगा – एक योजना हमने लागू की थी जनधन योजना, बैंक का खाता। दूसरी योजना ली थी 90 पैसे में बीमा योजना। मैं नहीं मानता हूं गरीब का, गरीब से गरीब 90 पैसे खर्च नहीं कर सकता है। अगर उसको बीड़ी पीने की आदत होगी तो शायद वो दिन में दो रुपये की तो बीड़ी पी लेता होगा। 90 पैसे वो निकाल सकता है।

आपने देखा होगा यहां मंच पर मुझे एक जनजाति समुदाय की मां को दो लाख रुपया देने का सौभाग्‍य मिला। ये दो लाख रुपये क्‍या थे?  उसने जो 90 पैसे वाला बीमा लिया था और उसके परिवार में आपत्ति आ गई, परिवार के मुखिया का स्‍वर्गवास हो गया। उस 90 पैसे की बदौलत आज उसको दो लाख रुपये का बीमा मिल गया। एक गरीब मां के हाथ में दो लाख रुपया आ जाए, मुझे बताइए जिंदगी की इस मुसीबत के समय उसकी जिंदगी को मदद मिलेगी कि नहीं मिलेगी?

क्‍या मेरा जनप्रति‍निधि, क्‍या मेरा पंचायत का प्रधान मेरे गांव में एक भी परिवार ऐसा नहीं होगा जिसका प्रधानमंत्री जनधन खाता नहीं होगा और जिसका कम से कम 90 पैसे वाला बीमा नहीं होगा, और अगर उस परिवार में मुसीबत आई तो दो लाख रुपया उस परिवार को मदद मिल जाएगी। गांव पर वो परिवार कभी बोझ नहीं बनेगा, क्‍या ये काम नहीं कर सकते हैं?

भाइयो, बहनों, तीन चीजों पर मैं आपका ध्‍यान आकर्षित करना चाहता हूं और वो- एक जनधन, दूसरा वनधन और तीसरा गोबरधन, गोबरधन । ये तीन चीजों से हम गांव की अर्थव्‍यवस्‍था में एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। जनधन योजना से अर्थव्‍यवस्‍था की मुख्‍य धारा में हमारे परिवार को, हर नागरिक को ला सकते हैं।

वनधन-  हमारे यहां जो वन संपदाएं हैं, जो प्राकृति संपदाएं हैं; उसका मूल्‍य समझ करके- अरे आज तो, अगर गांव के अंदर नीम का पेड़ है और नीम की फली नीचे गिरती है- अगर पांच-पच्‍चीस महिलाएं उस नीम की फली इकट्ठी कर लें, उसका तेल निकलता है और यूरिया का नीम कोटिंग होता है, गांव की महिला को भी कमाई हो जाती है। वो नीम का पेड़, नीम की फली कभी मिट्टी में मिल जाती थी, आज- आज वो वनधन बन सकती है। क्‍या हम ये बदलाव नहीं ला सकते हैं?

मैं जंगलों में रहने वाले मेरे सभी जनजातीय बंधुओं से कहना चाहूंगा, मैं सभी सरकारों से भी कहना चाहूंगा। और आज यहां पर मध्‍य प्रदेश की सरकार ने जनजातीय समुदाय के लिए एक बहुत बड़ी योजना को लॉन्‍च किया है। जिसमें वनधन का भी महात्‍मय है।

तीसरी बात मैंने कही- गोबरधन। गांव में पशु होते हैं, जो गोबर है उसका वैज्ञानिक तरीके से उपयोग नहीं होता है। अगर गांव का गोबर, गांव को कूड़ा-कचरा, इसको एक संपत्ति मानें, उसमें से गैस पैदा हो सकती है, उसमें से बिजली निकल सकती है, उसमें से उत्‍तम प्रकार का खाद बन सकता है। यूरिया की जरूरत के बिना उत्‍तम खाद से गांव की खेती चल सकती है। गांव मे बीमारी नहीं आ सकती है। ये काम भी पैसों के बिना हो सकता है। सरकार की योजनाओं का लाभ ले करके हो सकता है।

और इसलिए भाइयो, बहनों, आज जब मैं देशभर के पंचायतों के चुने हुए लोगों के साथ हिन्‍दुस्‍तान के सभी गांवों में, दो लाख चालीस हजार गांवों को, आज मां नर्मदा की धरती से, मंडला की धरती से, माता दुर्गावती के आशीर्वाद के साथ आज जब मैं संबोधन कर रहा हूं तब मैं आपसे आग्रह करता हूं- आइए हम संकल्‍प करें- 2022, जब आजादी के 75 साल होंगे, और इसी वर्ष 2 अक्‍तूबर को महात्‍मा गांधी की 150वीं जयंती का प्रारंभ होगा, ये ऐसा हमारे लिए अवसर है कि हम गांधी के सपनों का गांव बनाए। हम मिल करके भारत को बदलने के लिए गांव को बदलें। हम सब मिल करके गांव के अंदर पैसों का सही इस्‍तेमाल करें।

आज अभी एक कार्यक्रम मैंने लॉन्‍च किया जिसके तहत टैक्‍नोलॉजी का उपयोग करके सरकार से कितना पैसा आता है, किस काम के लिए आता है, वो काम हुआ कि नहीं हुआ, जहां होना चाहिए वहां हुआ कि नहीं हुआ, ये सारा ब्‍यौरा अब आप अपने मोबाइल फोन पर देख पाएंगे। आपको पता चलेगा कि कुंए के लिए पैसा आया था, लेकिन कुंआ तो कहीं नजर नहीं आया तो आप गांव में पूछोगे कि भाई ये तो जो सरकार ने व्‍यवसथा की, इस पर तो दिखता नहीं है कुंआ। तो गांव वाला भी सोचगा हां भाई रह गया है चलो महीने में करवा देता हूं। मुझे बताइए हिसाब-किताब बनेगा कि नहीं बनेगा? गांव में ईमानदारी से काम करने की आदत आएगी कि नहीं आएगी? बाबुओं को काम का जवाब देना पड़ेगा कि नहीं देना पड़ेगा? पाई-पाई का हिसाब देना पड़ेगा कि नहीं पड़ेगा?

और इसलिए मेरे प्‍यारे भाइयो, बहनों सही समय पर सही काम- आप देखिए पांच साल का हमारा कार्यक्रम स्‍वर्णिम कार्यकाल बना सकता है। गांव याद करेगा कि भाई फलाने वर्ष से फलाने वर्ष तो जो बॉडी चुन करके आई थी उसने गांव की शक्‍ल-सूरत बदल दी। इस संकल्‍प को ले करके आगे चलना और इसी के लिए आज मुझे यहां एक एलपीजी के प्‍लांट का लोकार्पण करने का अवसर‍ मिला और ये एलपीजी प्‍लांट का जो मैंने लोकार्पण किया, आपने देखा होगा कि हम गैस तो पहुंचा रहे हैं लोगों को, लेकिन अब वो गैस भरने के जो सिलिंडर हैं, उसके कारखाने लगाने पड़ रहे हैं। यहीं पर 120 करोड़ रुपये की लागत से ये कारखाना लगेगा। गैस सिलिंडर भरने का काम होगा और ये व्‍यवस्‍था कहते हैं अगल-बगल में पन्‍ना हो, सतना हो, रीवा हो, सिंगरौली हो, शहडोल हो, उमरिया हो, डिंडोरी हो, अनुपुर हो, मंडला हो, सीवन हो, बालाघाट हो, जबलपुर हो, कटनी हो, दमोह हो; इन सारे डिस्ट्रिक्‍ट में ये गैस सिलिंडर पहुंचाने का काम सरल हो जाएगा। यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा और आपके यहां एक नई दुनिया शुरू हो जाएगी। ये काम भी आज मुझे आपके बीच में करने का अवसर मिला है।

भाइयो, बहनों, कई विषय हैं जिसकी मैं चर्चा कर सकता हूं1 लेकिन मैं चाहता हूं हम ग्राम केन्‍द्री जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान इस मंत्र को आगे बढ़ाते हुए जाना है।

अब आप लोगों ने देखा- मैं देख रहा था कि अभी जब शिवराज जी बता रहे थे कि भारत सरकार ने बेटियों के साथ दुर्व्‍यवहार करने वाले राक्षसी मनोवृत्ति के लोगों को अब फांसी पर लटकाने का कानून बनाया है। और जब मुख्‍यमंत्री जी ने इस बात को कहा, मैं देख रहा था पूरा मंडप तालियों से गूंज रहा था। तालियां बंद नहीं हो रही थीं। ये दिल्‍ली में ऐसी सरकार है जो आपके दिल की आवाज सुनती है और निर्णय करती है।

और मैं कहूंगा, हम परिवार में बेटियों को सम्‍मान देना सीखें, हम परिवार में बेटियों का महात्‍मय बढ़ाएं और परिवार में जरा बेटों को जिम्‍मेदारी सिखाना भी शुरू करें। अगर बेटों को जिम्‍मेदारी सिखाना शुरू करेंगे तो बेटियों को सुरक्षित करना कभी कठिन नहीं होगा और इसलिए जो बईमानी करेगा, जो भ्रष्‍ट आचरण करेगा, राक्षसी कार्य करेगा, वो तो फांसी पर लटक जाएगा। लेकिन हमने हमारे परिवारों में भी हमारी बेटियों के मान-सम्‍मान का जिम्‍मा उठाना पड़ेगा। एक सामाजिक आंदोलन खड़ा करना होगा। और हम सब मिल करके देश को ऐसी मुसीबतों से बाहर निकाल सकते हैं। और मैं चाहूंगा कि इन चीजों को आप आगे बढ़ाएंगे।

भाइयो, बहनों, सरकार ने एक बहुत बड़ा महत्‍वपूर्ण काम सोचा हुआ है। हमारे देश का दुर्भाग्‍य रहा कि आजादी की लड़ाई कुछ ही लोगों के आसपास, कुछ ही परिवारों के आसपास सिमट गई।  सच्‍चे बलिदानियों की कथा इतिहास के पन्‍नों पर भी दर्ज होने से पता नहीं क्‍या मुसीबत आई, मैं नहीं जानता।

अगर 1857 से देखें, उसके पहले भी सैंकड़ों सालों की गुलामी के कालखंड में कोई एक वर्ष ऐसा नहीं गया है कि हिन्‍दुस्‍तान के किसी न किसी इलाके में आत्‍मसम्‍मान के लिए, संस्‍कृति के लिए, आजादी के लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान न दिया हो। सैंकड़ों सालों तक लगातार दिया है। लेकिन मानों 1857 के बाद भी देखें, बहुत कम लोगों को पता है और हमें भुला दिया गया है कि मेरे जनजाति के भाइयों-बहनों ने भारत की आजादी के लिए कितने बलिदान दिए हैं। भारत के सम्‍मान के लिए कितनी बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी हैं। दुर्गावती, अवन्‍तीबाई को तो याद करते हैं, बिरसा मुंडा को याद करते हैं, कितने लोगों ने दिए हैं1

मेरा सपना है हिन्‍दुस्‍तान के हर राज्‍य में, जहां-जहां जनजातीय समुदाय के हमारे पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई लड़ी है, उनका हर राज्‍य में एक आधुनिक म्‍यूजियम बनाया जाएगा। स्‍कूल के बच्‍चों को वहां ले जाया जाएगा और उनको बताया जाएगा कि ये हमारे जंगलों में रहने वाले हमारे जनजातीय बंधुओं ने हमारे देश की संस्‍कृति और इतिहास के लिए कितने बलिदान दिए थे और आने वाले दिनों में मध्‍यप्रदेश में भी ये काम होने वाला है।

और इसलिए मेरे भाइयो, बहनों, आज हम मंडला की धरती से मां दुर्गावती का स्‍मरण करते हुए आदि मेला कर रहे हैं, तब, पंचायतराज के भी इस महत्‍वपूर्ण पर्व पर हमारा  पंचायतराज का सशक्तिकरण हो, हमारी लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो, हमारे जनप्रतिनिधि मां भारती के कल्‍याण के लिए, अपने गांव के कल्‍याण के लिए अपने-आपको खपा दें। इसी एक भावना के साथ मैं आप सबको हृदयपूर्वक बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं1 श्रीमान तोमर जी, रूपाला जी और उनके विभाग के सभी अधिकारियों को भी मैं हृदय से बधाई देता हूं1 क्‍योंकि उन्‍होंने देशभर में ग्राम स्‍वराज अभियान चलाया है।

आने वाली 30 अप्रैल को आयुष्‍मान भारत का लोक-जागरण होने वाला है। 2 मई को किसानों के लिए कार्यशालाएं होने वाली हैं। गांव के जीवन से जुड़ी हुई बातें जुड़ने वाली हैं। आप सब बड़े उत्‍साह और उमंग के साथ उसके साथ जुड़ें।

इसी एक अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद। 

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