PM Modi gifts electronic aids to differently abled people in Varanasi
When I say let us use the word 'Divyang' it is about a change in mindset: PM
Let’s not think about what is lacking in a person, Let’s see what is the extra ordinary quality a person is blessed with: PM
People are sympathetic but things are lacking when it comes to facilities be it in trains, buses etc: PM
We will do everything possible, where rules and systems have to be changed, we will change them: PM on Accessible India

केंद्र में मंत्री परिषद के मेरे साथी श्रीमान कलराज मिश्र जी, इसी विभाग के मंत्री मेरे साथी, श्रीमान थावरचंद जी, रेलमंत्री और इसी भूमि की संतान भाई मनोज सिन्‍हा जी, इसी विभाग के मंत्री श्रीमान कृष्‍णपाल जी, श्रीमान विजय सांपला जी, राज्‍य सरकार में मंत्री श्रीमान बलराम जी, भारत सरकार के सचिव श्री लव वर्मा जी, ब्रिटेन के हाऊस ऑफ लार्ड के सदस्‍य और भारत में और दुनिया में विधवाओं के लिए लगातार काम कर रहे लार्ड लुम्‍बा जी, उनकी श्रीमती जी, और आज मुझे जिनका दर्शन करने का सौभाग्‍य मिला है ऐसी सभी दिव्‍यांग भाइयों और बहनों और उपस्थित काशी के मेरे प्‍यारे भाइयो और बहनों....

आज मैं काशी में आया हूं तब, मैं विशेष रूप से दो महानुभावों का पुण्‍य स्‍मरण करना चाहूंगा। एक श्रीमान जयसवाल जी, दूसरे श्रीमान हरीश जी, इन दोनों महानुभावों ने जीवन भर इस क्षेत्र की सेवा की और अब हमारे बीच नहीं हैं। मैं उनका पुण्‍य स्‍मरण करता हूं, उनको आदरपूर्वक अंजलि देता हूं।

आज प्रात: सरकारी व्‍यवस्‍था से हमारे कुछ दिव्‍यांग लाभार्थी इस समारोह में आ रहे थे उनकी बस पलट गई, कुछ लोगों को ईजा हुई, दिल्‍ली से मैं निकला उसी समय मुझे पता चला और हमारे मंत्री महोदय तुरंत वहां पहुंचे, सरकार के अधिकारी पहुंचे। बहुत लोगों को तो बहुत मामूली चोट थी, कुछ लोगों को कुछ दिन के लिए अस्‍पताल में व्‍यवस्‍था रहेगी। ये सारी व्‍यवस्‍था सरकार करेगी और मैं इन सभी बच्‍चों का जल्‍दी से जल्‍दी स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हो, ये ईश्‍वर से प्रार्थना करता हूं।

आज हमारे बीच डॉक्‍टर लुम्‍बा जी और उनकी श्रीमती जी हैं। विदेश के भिन्‍न-भिन्‍न भागों और विदेशों में भी विधवाओं के कल्‍याण के लिए काम करते हैं। कुछ समय पहले मुझे मिले थे, तब चर्चा हुई थी काशी में भी, विधवाओं के लिए कुछ किया जाए और तब से ले करके उन्‍होंने काम शुरू किया है। उस काम को बल मिल रहा है। सम्‍मान के साथ हमारी ये माताएं, बहनें जीवन गुजारा करें, उस दिशा में उनका जो प्रयास है उसका मैं अभिनंदन करता हूं।

दोनों पति-पत्‍नी, जी-जान से इस काम में लगे रहते हैं और उनको आप किसी भी जगह पर मिलोगे, शादी में मिलो, पार्लियामेंट में मिलो, मैं अभी ब्रिटेन गया, पार्लियामेंट में सब लोगों से मिल रहा था लेकिन हमारे लुम्‍बा जी आ गए और तुरंत विधवाओं की बात शुरू कर दी। तो मैंने लुम्‍बा जी को कहा, मुझे कहा, लुम्‍बा जी मुझे कुछ और तो काम करने दो। लेकिन उनके मन में ऐसा, अपनी मां के पुण्‍य स्‍मरण में उन्‍होंने इस काम को हाथ में लिया है, बहुत मनोयोग से कर रहे हैं। मैं उनका भी अभिनंदन करता हूं और विशेष रूप से मेरे काशी क्षेत्र की सेवा में वो हाथ बंटा रहे हैं इसलिए मैं काशी के प्रतिनिधि के रूप में भी आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं, आपका अभिनंदन करता हूं।

कुछ दिन पूर्व जापान के प्रधानमंत्री काशी की मुलाकात के लिए आए थे। अभी दो दिन पूर्व जापान के प्रधानमंत्री जी का जापान के अंदर एक भाषण था। Buddhist Movement के अंतर्गत वो भाषण था लेकिन मैंने Internet पर वो भाषण पढ़ा और मेंने देखा कि उस भाषण में उन्‍होंने काशी की अपनी यात्रा का जो वर्णन किया है, मां गंगा का जो वर्णन किया है, आरती के उस समय उनके मन में जो मनोभाव उठे, उसका जो वर्णन किया है; हर काशीवासी को, हर हिंदुस्‍तानी को उनके ये शब्‍द सुन करके गर्व महसूस होता है कि हमारा अपनापन कितना व्‍यापक और कितना विशाल है। मैं जापान के प्रधानमंत्री Abey का आभारी हूं, उन्‍होंने जापान जा करके भी अभी दो दिन पहले इतने विस्‍तार से हमारे काशी के गुणगान किए, हमारी गंगा के गुणगान किए, गंगा आरती का स्‍मरण किया, मैं इसके लिए भी उनका बहुत-बहुत आभारी हूं।

अभी मैं थावरचंद जी को सुन रहा था। आप लोगों को ज्ञात होगा, जब लोकसभा के चुनाव पूर्ण हुए और पार्लियामेंट के सेंट्रल हॉल में एनडीए के सदस्यों ने मुझे नेता के रूप में चुना, प्रधानमंत्री पद की जिम्‍मेवारी के लिए मुझे पंसद किया और उस दिन मेरा एक भाषण था, उस भाषण में मैंने कहा था कि ये जो सरकार है, ये सरकार गरीबों को समर्पित है। दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो, जिन्‍हें जीवन में कष्‍ट झेलने पड़ते हैं, उनके लिए ये सरकार कुछ न कुछ करने का प्रयास करेगी, ये मैंने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले घोषित किया था और आप लगातार देखते होंगे कि सरकार के सभी कार्यक्रमों के केंद्र में इस देश के गरीब को विकास का लाभ कैसे पहुंचे, गरीबों की जिंदगी में बदलाव कैसे आएं, उस दिशा में एक निंरतर प्रयास चल रहा है।

आज ये जो काशी में कैम्‍प लग रहा है, ये कोई पहला कैम्‍प नहीं है, वरना कुछ लोगों को लगेगा कि प्रधानमंत्री का क्षेत्र है, इसलिए यहां जरा पांचों अंगुलियां घी में हैं, इसलिए यहां कैम्‍प लग रहा है। ऐसा नहीं है, इसके पहले ऐसे ही 1800 कैम्‍प लग चुके हैं। लाखों लोगों को यह सुविधा पहुंचायी जा चुकी है, और ये आखिरी कैंप भी नहीं है। इसके बावजूद भी हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में जा करके ये हमारे दिव्‍यांग भाइयों और बहनों को खोज करके, उनकी क्‍या आवश्‍यकता हैं, क्‍या उनको कोई संसाधन मिल जाए|उनका जीने का विश्‍वास बढ जाए कुछ करने का विश्‍वास बढ़ जाए, कुछ सहजता हो जाए, सुख सुविधा मिल जाए यह प्रयास आज चला है, चलता रहेगा।

सरकारें पहले भी थी| यह विभाग भी 19 92 से चल रहा है। सरकार में ये विभाग nineteen ninety two में बना , बजट भी दिए गये, लेकिन मुझे बताया गया कि 1992 से लेकर करके 2014 तक बड़ी मुश्किल से 50, 55, 100 कैंप लगे थे।

ये सरकार गरीबों के लिए दौड़ने वाली सरकार है, कुछ गुजरने वाली सरकार है कि एक साल के भीतर- 1800 कैंप लगाये ... अट्ठारह सौ। बीस बाईस पच्चीस साल में सौ कैम्प भी नहीं लगे और एक साल में 1800 कैंप लगे और पूरी सरकार खोजने के लिए जाती हैं लाभर्थियों को , जिनका हक़ है उन तक पहुंचने का प्रयास करती है।

हम जानते हैं कभी कभी सरकार की योजनाओं का दुरूपयोग करने वालों की भी कमी नहीं होती है, बिचौलिए मैदान में आ जाते हैं। वो बेचारे के पास पहुंच जाएंगे, उनके साथ चर्चा करेंगे, उसको कहेंगे देखो भाई तुमको ये दिलवाता हूं। इतना बीच में, बीच में मेरा हो जाएगा। तुम्‍हें tricycle दिलवा दूं, कुछ मेरा हो जाए। तुम्‍हें hearing aid की व्‍यवस्‍था करूं, कुछ मेरा हो जाए। ये कैंप लगवाने का परिणाम ये हुआ है कि बिचौलिए नाम की दुनिया समाप्‍त हो गई है।

ये कभी-कभी मुझ पर जो सारी दुनिया का तूफान चलता रहता है, सुबह उठो और आप चारों तरफ से हमले चलते रहते हैं, चारों तरफ लगे रहते हैं। उनको लगता है कि मोदी अपना मुंह, अपना रास्‍ता छोड़कर करके कोई और रास्‍ते पर आ जाएं, विवादों में पड़ जाएं। लेकिन मेरा तो मंत्र है मेरे देश के दुखियारों की, गरीबों की सेवा करना और इसलिए मैं विचलित नहीं होता हूं, लेकिन ये हो इसलिए रहा है कि व्‍यवस्‍थाएं ऐसी बदल रही हैं, nut bolt ऐसे टाइट हो रहे हैं कि बिचौलियों की दुकानें बंद हुई हैं इसलिए ये परेशानियां हो रही हैं। हर प्रकार के ऐसे लोग उनको जरा तकलीफ हो रही है, लेकिन उनकी इस तकलीफ से मुझे जरा भी तकलीफ नहीं है। अगर मुझे तकलीफ है तो मुझे मेरे देश के गरीबों की दुर्दशा से तकलीफ है। बिचौलियों की परेशानी से तकलीफ नहीं है।

आज यहां नौ हजार से अधिक लोगों को इस कैंप के तहत कोई-कोई संसाधन उपलब्‍ध कराएं जा रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि काशी में भी यह काम पूरा हो गया। अभी भी रजिस्‍ट्रेशन चल रहा है। जांच चल रही है, जानकारियां इकट्ठी कर रहे हैं। और भी जैसे-जैसे चीजें ध्‍यान में आएंगी मैं शायद आंऊ या न आऊं लेकिन हर काम चलता रहेगा, काम चलते रहेंगे। अगल-बगल के जिलों में भी भले वो काशी लोकसभा क्षेत्र का हिस्‍सा नहीं होगा, वहां भी इस काम को किया जाएगा और ये व्‍यवस्‍थाएं लोगों को उपलब्‍ध करायी जाएंगी।

मैं यहां छोटे-छोटे बच्‍चों से मिल रहा था। उनके मां-बाप के चहेरे पर मैं चमक देख रहा था क्‍यों क्‍योंकि वे बच्‍चे सुन नहीं पर रहे थे और सुन नहीं पा रहे थे तो बोल नहीं पर रहे थे। जैसे ही सुनना शुरू हुआ साथ-साथ बोलना भी शुरू हो गया और करीब-करीब हर बच्‍चे ने मेरे से कोई न कोई बात की। एक-दो, एक-दो शब्‍द हर कोई बच्‍चा बोला और उनके मां के मन में इतना आनन्‍द भाव था। अब ये बच्‍चे जन्‍म से, उनको ये अवस्‍था मिली थी। पिछले दिनों मैंने सार्वजनिक रूप से मेरे मन की बात में एक इच्‍छा प्रकट की थी कि क्‍यों न हम ये विकलांग शब्‍द को बदल करके दिव्‍यांग शब्‍द उपयोग करें।

दुनिया के हर देश में, हर भाषा में, इस प्रकार की अवस्‍था वाले लोगों के लिए नये नये शब्‍द आए हैं। Terminology बदली गई है और लगातार उसमें सुधार होता ही चला जा रहा है। हर कोई नये-नये तरीके से विषय को परखता है। लेकिन हमारे देश में वर्षों से यही शब्‍द चल पड़ा था। वैसे अचानक ये शब्‍द बदलना कठिन होता है। मेरे भी भाषण में बोलते-बोलते शायद पांच बार में वो पुराना शब्‍द ही प्रयोग कर लूं। क्‍योंकि आदत लगना अभी समय लगेगा। सरकार को भी नियमों में बदलाव लाना पड़ेगा, काफी कुछ प्रक्रियाएं रहती हैं। लेकिन क्‍या हम धीरे-धीरे इसे शुरू कर सकते हैं क्‍या और इसका बड़ा असर होता है।

मान लीजिए कोई हमें मिलता है और परिचय कोई करवाता है कि ये फलाने–फलाने पुजारी हैं। पुजारी कहने के बाद भी, तुरंत हमारा नजर उसके भाल पर जाती है तिलक वगैरह देखता है हमारी आंखें तुरंत चली जाती है देखते हैं। पुजारी कहा, मतलब माला, भाल पर कोई तिलक वगैरह तुरंत नजर आता है। कोई हमें परिचय करवाता है ये बड़े ज्ञानी हैं। तो तुरंत हमारे मन में विचार आता है अच्‍छा-अच्‍छा किस विषय के ज्ञानी होंगे। उनके ज्ञान को जानने की इच्‍छा करता है। हमें कोई परिचय करवाता है कि यह पहलवान है। तो तुरंत हमें उसकी भुजाओं पर नजर जाती है कि कैसा बड़ा मजबूत आदमी है। वैसे ही अगर कोई विकलांग कहता है तो पहली हमारी नजर उसके शरीर की कौन सी कमी है उस तरफ जाती है। शरीर का कौन सा हिस्‍सा दुर्बल है वहां जाती है। मैं ये सोच बदलना चाहता हूं कि उसे मिलते ही कोई कहे ये दिव्‍यांग है तो मेरी नजर उस बात पर जाएगी कि उसके अन्‍दर कौन सी extra ordinary quality भगवान ने दी है।

हम लोग आंखों से देखते हैं, आंखों से पढ़ते है लेकिन एक प्रज्ञाचक्षु उंगली से पढ़ता है। वो ब्रेल लिपि पर अपनी उंगली घूमाता है और उसको पढ़ लेता है वो मतलब ये उसका दिव्‍यांग है। ये दिव्‍यता दी है ईश्‍वर ने उसको। उस दिव्‍यता ने उसे विकसित किया है और इसलिए जब मैं विकलांग से दिव्‍यांग की बात करता हूं तब जब-जब हम अपने ऐसे परिजनों से मिलेंगे, अपनों से मिलेंगे, तब हमें अब उसमें क्‍या कमी है उस तरफ हमारा नज़रिया नहीं जाएगा, उस तरफ हमारी सोच नहीं जाएगी कौन सी extra ordinary quality उसमें है उस तरफ हमारी नजर जाएगी।

मुझे यहां राहुल नाम का एक बच्‍चा मिला, मंदबुद्धि का है, उसको कम्‍प्‍युटर दिया और मैंने देखा तुरंत कहां पर कम्‍प्‍यूटर चालू करना, कैसे प्रोग्राम को आगे बढ़ाना, तुरंत उसने शुरू कर दिया। अब ये उसके परिवार के लिए एक नई आशा ले करके आया है। एक नया विश्‍वास लेकर के आया है और इसलिए हमारी कोशिश यह है कि इन व्‍यवस्‍थाओं के माध्‍यम से हमारे समाज में ये जी करो़ड़ों की तादाद में हमारे परिवारजन हैं इनकी हमें चिंता करनी है।

मैं समाज के नाते भी ये बात अपने दिल से कहना चाहता हूं खास करके जिन परिवारों में मानसिक रूप से दुर्बल बच्‍चे पैदा होते हैं। बहुत कम लोगों को ये कल्‍पना होगी। उस परिवार में मां-बाप का जीवन कैसा होता है। बाहर वालों को अन्‍दाज बहुत कम आता है। अगर परिवार में एक ऐसा बच्‍चा पैदा होता है तब उस मां बाप की उम्र तो होती है 25 साल, 30 साल, 35 साल। जीवन के सारे सपने पूरे होने अभी बाकी होते हैं। लेकिन एक दो साल की उम्र होते ही बालक में एक प्रकार की कमी महसूस होती है। आपने देखा होगा कि उस बालक के मां और बाप और घर में अगर दादा-दादी है तो वो सबके सब अपने जीवन के सारे सपनों को समाप्‍त कर देते हैं। अपनी सारी इच्‍छाओं को मार देते हैं। अपनी पूरी शक्ति, क्षमता जो भी हो उस बालक की सेवा में खपा देते हैं। परिवार में और दो-तीन बच्‍चे होंगे, उसको जितना प्‍यार देते हैं उससे अनेक गुना प्‍यार इस बच्‍चे को वो देते हें। उनके मन में ये भाव होता है कि ईश्‍वर ने हमें एक कसौटी पर कसा है, हमें ईश्‍वर ने जो कसौटी पर कसा है पूरा होगा। लेकिन समाज के नाते हमने सोचना होगा कि जिस परिवार में ईश्‍वर ने इस प्रकार के बालक को जन्‍म दिया है क्‍या उसी परिवार की ये जिम्‍मेवारी है। मेरी आत्‍मा कहती है नहीं। इस परिवार को परमात्‍मा ने इसलिए चुना है कि शायद उस परिवार पर उसका भरोसा है कि ये इस बच्‍चे को संभालेंगे। लेकिन समाज के नाते हम सबका दायित्‍व रहता है कि बालक भले उनकी कोख से पैदा हुआ हो, बालक भले उस घर में पल-बढ़ रहा हो, लेकिन समाज की एक सामूहिक जिम्‍मेवारी होती है ऐसे बालकों की चिंता करने की और इसलिए हमारी सरकार इसी मनोभाव से, इसी भूमिका से, हमारे इस प्रकार के बालकों की चिंता विशेष रूप से कर रही है। आपको जान कर हैरानी होगी जब भी अंतर्राष्‍ट्रीय खेलकूद होती है हमारे बच्‍चे शारीरिक रूप से औरों की तुलना में न इतनी ऊंचाई है, न इतना वजन होता है, उसके बावजूद भी गोल्‍ड मैडल ले करके आते हैं। इस प्रकार के बालकों की जो ओल‍म्पिक होती हैं, सब गोल्‍ड मैडल ले करके आते हे। और मैं हर वर्ष कोशिश करता हूं इस प्रकार के आए हुए बालकों से मिलने का मेरा लगातार प्रयास रहता है। हमें प्रेरणा देते हैं, वो जब इस प्रकार की विजय प्राप्‍त करके आते हैं, उन्‍हें पता होता है, उन्‍होंने देश के लिए क्‍या पाया है, गर्व से कहते हैं और कभी-कभी तो मैंने देखा है, कि वो जो ट्रॉफी ले करके आते हैं जीत करके, ट्रॉफी ले करके आते हैं तो मेरे हाथ में पकड़ा देते हैं, और उनको लगता है कि आपको देना है। मैं कहता हूं नहीं, आप लोग लेकर आए हैं आपको ले जाना है। तो वो कहते हैं, अपने इशारों में समझाते हैं, कि आपके लिए लाए हैं। जब मैं गुजरात में था मन को छू जाने वाली घटनाएं घटती थीं। ये जो शक्ति है, इसको मैं दिव्‍यांग के रूप में देखता हूं। ये भारतमाता का भी दिव्‍यांग है। हर बच्‍चा जिसके जीवन में भाव आया है वो भी हमारे लिए दिव्‍यांग है। उस रूप में हम इसको आगे बढ़ाना चाहते हैं।

आने वाले दिनों में, अभी-अभी हमने एक बड़ा, एक महत्‍वपूर्ण काम उठाया है सुगम्‍य भारत। दुनिया में इस विषय में बड़ी जागरूकता से काम हुआ है। हमारे यहां संवेदना होती है, sympathy होती है, रास्‍ते में कोई जाता है तो हम मदद करने के लिए सब कुछ करते हैं, लेकिन व्‍यवस्‍थाएं विकसित करने का लोगों का थोड़ा स्‍वभाव कम है। और इसलिए हमारे मकान हों, हमारे रेल हों, हमारे बस हों, उसमें ऐसे लोगों को जाना हो, तो उनको ऐसी सुविधा मिलती है जैसी हम जैसे शरीर से हर प्रकार से सक्षम लोगों को मिलती है। अब ये कठिनाई है और इसलिए हमने तय किया है कि एक माहौल बनाएंगे, नया बिल्डिंग बनेगा, भले शायद पूरे जीवन भर एक ही व्‍यक्ति आएगा जिसको tricycle में आना पड़ता है। लेकिन हम वहां व्‍यवस्‍था विकसित करेंगे उसको कोई दिक्‍कत न होगा ले जाने की विकसित करेंगे। धीरे-धीरे हमें आदत डालनी पड़ेगी। इतना बड़ा देश है, ये काम करने में समय लगता है, लेकिन अगर हम शुरूआत करें, जैसी अभी सरकार ने शुरू किया है। भई कम से कम सरकारी भवनों में तो तय करें। अब जितने सरकारी भवन बनेंगे, उसमें इस प्रकार के लोग जो होंगे, उनके लिए अलग Toilet होगा, अलग उनके पास Toilet का सीट होगा, उनको अंदर आने के लिए अलग ramp होगा। ये व्‍यवस्‍थाएं धीरे-धीरे हमें विकसित करनी हैं।

पिछले दिनों एक अभियान के रूप में काम लिया है, हर department को sensitize कर दिया जा रहा है कि भई इतने दिन जो हुआ सो हुआ, अब हम कुछ करेंगे। आप देखिए हर जगह पर उनको विशेष हम priority देंगे और सब सरकारें भी इस पर ध्‍यान देंगी, जहां कानूनी बदलाव लाना होगा कानूनी बदलाव लाएंगे, जहां पर नियमों से व्‍यवस्‍थाएं बदली जा सकती हैं, नियमों को बदलेंगे, लेकिन ये चीजें करने का हम अवश्‍य प्रयास करेंगे, और हमने इस बात को धीरे-धीरे आगे बढ़ाना है। और आप देखिए जब उसको लगेगा कि हां मेरे लिए भी जाने के लिए अच्‍छा रास्‍ता बना हुआ है, उसको महसूस होगा कि हां इस समाज में मेरा भी एक विशेष स्‍थान हे। ये उसका confidence level बढ़ा देगा। वो रोता नहीं है, उसको तो हमसे भी तेज गति से ट्रेन चढ़ जाने की ताकत है उसकी। लेकिन अगर व्‍यवस्‍था विकसित होगी, उसको लगेगा एक समाज मेरे प्रति संवेदनशील है। ये भाव जगाने का प्रयास और व्‍यवस्‍थाएं विकसित करने का प्रयास सरकार की तरफ से चल रहा है।

आने वाले दिनों में इन सारी चीजों का उपयोग मैं समझता हूं एक नई क्षमता पैदा करने के लिए, एक नया विश्‍वास पैदा करने के लिए, एक नया सामर्थ्‍य पैदा करने के लिए होती रहेगी। मैं फिर एक बार श्रीमान गहलोत जी को, कृष्‍णपाल जी को, सांपला जी को, क्‍योंकि तीनों हमारे मंत्री इस विभाग को देखते हैं, जिस लगन के साथ इस काम को वो भक्तिपूर्वक कर रहे हैं और आज मेरे काशी क्षेत्र के लिए जिन्‍होंने मुझे चुन करके भेजा है, उनके लिए आप लोगों ने इतनी मेहनत की, लगातार आप लोग यहां आए, और हमारे इन सारे भाई-बहनों को आपने जो ये व्‍यवस्‍था पहुंचाई है इसलिए मैं विशेष रूप से हमारे इन तीनों मंत्रियों का भी अभिनंदन करता हूं। उनके विभाग के अधिकारियों का भी अभिनंदन करता हूं कि उन्‍होंने इस ठंड के बावजूद भी इस काम को आगे बढ़ाया।

जो मेरे दिव्‍यांग भाई-बहन यहां आए हैं, बहुत लौग हैं, जो शायद मुझे सुन पाते होंगे लेकिन देख नहीं पाते होंगे; बहुत ऐसे होंगे जो मुझे शायद देख पाते होंगे लेकिन सुन नहीं पाते होंगे, उसके बावजूद भी मेरे इस मनोभाव को उन तक पहुंचाने की आज व्‍यवस्‍था तो की है लेकिन मैं उनको विश्‍वास दिलाता हूं कि आप किसी से कम नहीं हैं और हम होगे कामयाब इस मंत्र को ले करके आगे बढ़ना है। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामना है। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

Explore More
78-ാം സ്വാതന്ത്ര്യ ദിനത്തില്‍ ചുവപ്പ് കോട്ടയില്‍ നിന്ന് പ്രധാനമന്ത്രി ശ്രീ നരേന്ദ്ര മോദി നടത്തിയ പ്രസംഗം

ജനപ്രിയ പ്രസംഗങ്ങൾ

78-ാം സ്വാതന്ത്ര്യ ദിനത്തില്‍ ചുവപ്പ് കോട്ടയില്‍ നിന്ന് പ്രധാനമന്ത്രി ശ്രീ നരേന്ദ്ര മോദി നടത്തിയ പ്രസംഗം
India emerges as major hub for global capacity centers

Media Coverage

India emerges as major hub for global capacity centers
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!