‘സുഷമ ജീ ബഹുമുഖ വ്യക്തിത്വമായിരുന്നു. ഒപ്പം പ്രവര്‍ത്തിച്ചവര്‍ക്കെല്ലാം അവര്‍ വലിയ വ്യക്തിത്വത്തിന് ഉടമയാണെന്നു മനസ്സിലാക്കാന്‍ സാധിച്ചിട്ടുണ്ട്: പ്രധാനമന്ത്രി
സുഷമജിയുടെ പ്രഭാഷണങ്ങള്‍ ഫലപ്രദവും പ്രചോദനാത്മകവും ആയിരുന്നു: പ്രധാനമന്ത്രി മോദി
മന്ത്രിപദവി ഏറ്റെടുത്ത എല്ലാ വകുപ്പുകളിലെയും തൊഴില്‍സംസ്‌കാരം സുഷമാ ജി മാറ്റിയെടുത്തു: പ്രധാനമന്ത്രി
പരമ്പരാഗത രീതി അനുസരിച്ചു മാത്രമേ ഒര വ്യക്തിക്കു വിദേശകാര്യ മന്ത്രാലയത്തെ സമീപിക്കാന്‍ സാധിക്കുമായിരുന്നുള്ളൂ. എന്നാല്‍, വിദേശകാര്യ മന്ത്രാലയത്തെ ജനകീയമാക്കാന്‍ സുഷമാജിക്ക് സാധിച്ചു: പ്രധാനമന്ത്രി
ഉള്ളിലുള്ളതു തുറന്നുപറയാന്‍ സുഷമ ജി ഒരിക്കലും മടിച്ചില്ല: പ്രധാനമന്ത്രി

सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, भिन्न-भिन्न जीवन के महानुभावों ने जो भाव व्यक्त किए हैं, मैं उसमें अपना स्वर मिलाता हूं। सुषमा जी के व्यक्तित्व के अनेक पहलू थे, जीवन के अनेक पड़ाव थे और हम भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में एक अनन्य निकट साथी के रूप में काम करते-करते अनगिनत अनुभवों, घटनाओं, उसके हम जीवन साक्षी हैं। व्यवस्था के तहत, एक अनुशासनके तहत जो भी काम मिले उसको जी-जान से करना और व्यक्तिगत जीवन में बहुत बड़ी ऊंचाई प्राप्त करने के बाद भी करना, जो भी अपने आप को कार्यकर्ता मानते हैं, उन सब के लिए इससे बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है जो सुषमा जी के जीवन में हमने अनुभव किया।

इस बार जब उन्होंने लोकसभा चुनाव ना लड़ने का फैसला किया, एक बार पहले भी ऐसा फैसला किया था और वो अपने विचारों में बड़ी पक्की रहती थीं तो मैं और वैंकय्या जी उनसे मिले, उन्होंने मना किया। लेकिन जब कहा कि आप कर्नाटक जाइए और विशेष परिस्थिति में इस मुकाबले में उतरिए, परिणाम करीब-करीब निश्चित था लेकिन ये चुनौती भरा काम था, पार्टी के लिए मुझे करना चाहिए। एक पल का भी ना कहे बिना उन्होंने उसको किया, परिणाम निश्चित था फिर भी किया। इस बार, मैं उनको बहुत समझाता रहता था कि आप चिंतामत कीजिए, हम सब संभाल लेंगे आप एक बार। लेकिन इस बार वो इतनी पक्की थीं और शायद उनको भी ये पता था कि शायद कहीं पीछे से मुझ पर दबाव आ जाएगा इसलिए उन्होंने सार्वजनिक घोषणा कर दी ताकि कोई किसी का दबाव चले ही नहीं। यानी वो अपने विचारों की पक्की भी थीं और उसके अनुरूप जीने का प्रयास भी करती थीं। आम तौर पर हम देखते हैं कि कोई मंत्री या कोई सांसद, सांसद नहीं रहता है, मंत्री नहीं रहता है लेकिन सरकार को उसका मकान खाली कराने के लिए सालों तक नोटिस पर नोटिस भेजनी पड़ती है, कभी कोर्ट-कचहरी तक होती है।

सुषमा जी ने एक प्रकार से सबकुछ समेटने का तय ही कर लिया था। चुनाव नतीजे आए, उनका दायित्व पूरा हुआ, पहला काम किया मकान खाली करके अपने निजी निवास स्थान पर पहुंच गईं। सार्वजनिक जीवन में ये सब चीजें बहुत कुछ कह जाती हैं। सुषमा जी का भाषण प्रभावी होता था, इतना ही नहीं, प्रेरक भी होता था। सुषमा जी के व्यक्तित्व में विचारों की गहराई हर कोई अनुभव करता था तो अभिव्यक्ति की ऊंचाई हर पलनए मानक पार करती थी, कभी-कभी तो दोनों में से एक होना स्वाभाविक हैलेकिन दोनों होना बहुत बड़ी साधना के बाद होता है। वे कृष्ण भक्ति को समर्पित थीं, उनके मन-मंदिर में कृष्ण बसे रहते थे। हम जब भी मिलते वो मुझ जय श्री कृष्ण कहती थीं मैं उनको जय द्वारिकाधीष कहता था लेकिन कृष्ण का संदेश वो जीती थीं। उनकी इस यात्रा को अगर पूर्ण रूप से देखें तो लगता है कर्मण्येवाधिकारस्ते क्या होत है सुषमा जी ने जीवन में दिखाया था। अब जीवन की विशेषता देखिए, एक तरफ शायद उन्होंने सैकड़ों घंटों तक अलग-अलग फोरम में जम्मू-कश्मीर की समस्या पर बोला होगा, धारा-370 पर बोला होगा, हर फोरम में बोला होगा। एक प्रकार से उसके साथ वो जी-जान वो हर भारतीय जनता पार्टी या राष्ट्रभक्त विचार के कार्यकर्ताओं के लिए, इतना जुड़ाव था उस मुद्दे पर। जब जीवन का इतना बड़ा सपना पूरा हो, लक्ष्य पूरा हो और खुशी समाती ना हो। सुषमा जी के जाने के बाद जब मैं बांसुरी से मिला तो बांसुरी ने मुझे कहा कि इतनी खुशी-खुशी वो गई हैं जिसकी शायद कोई कल्पना कर सकता है यानी एक प्रकार से उमंग से भरा हुआ मन उनका नाच रहा था और उस खुशी में ही, उस खुशी के पल को जीते-जीते वो श्री कृष्ण के चरणों में पहुंच गईं।

अपने पद को अपनी व्यवस्था में जो काम मिला, उसमें श्रेष्ठ परंपराओं को बनाते हुए समकालीन परिवर्तन क्या लाना, ये उनकी विशेषता रही है। आम तौर पर विदेश मंत्रालय यानी कोट-पैंट, टाई, प्रोटोकॉल, इसी के ही आस-पास। विदेश मंत्रालय की हर चीज में प्रोटोकॉल सबसे पहले होता है, सुषमा जी ने इस प्रोटोकॉल की परिभाषा को पीपल्सकॉल में परिवर्तित कर दिया, वसुधैवकुटुम्बकमविदेश मंत्रालय कैसे सिद्ध कर सकता है, उन्होंने विश्व भर में फैले हुए भारतीय समुदाय के माध्यम से, उनके साथ उस निकटता को जोड़ कर के, उनके सुख-दुख का साथी हिंदुस्तान है, उसके पासपोर्ट का रंग कोई भी क्यों ना हो उसकी रगों में अगर हिंदुस्तानी खून है तो वो मेरा है, उसके सुख-दुख, उसकी समस्या है। ये पूरे विदेश मंत्रालय के चरित्र में परिवर्तन लाना बहुत बड़ा काम था और इतने कम समय में वो परिवर्तन लाईं। मंत्रालय का, मंत्रालय में बैठे लोगों का इतना बड़ा बदलाव करना, कहने में बहुत सरल लगता है लेकिन पल-पल एक-एक चीज को गढ़ना पड़ता है जो काम सुषमा जी ने किया। एक समय था, आजादी के 70 साल करीब-करीब, देश में करीब- करीब 70 पासपोर्ट ऑफिस थे। सुषमा जी के कार्यकाल में मंत्रालय जनता के लिए होना चाहिए उसका परिणाम ये था कि 70 साल में लगभग 70 पासपोर्ट ऑफिस और पांच साल में 505 ऑफिस पासपोर्ट के, यानी कितने बड़े स्केल पर काम होता था और ये काम सुषमा जी सहज रूप से करती थीं। मुझसे उम्र में छोटी थीं, मर्यादाओं से वो जूझती भी रहती थीं, जिम्मेदारियां निभाती भी रहती थीं, उम्र में भले मुझसे छोटी थीं लेकिन मैं सार्वजनिक रूप से कहना चाहूंगा कि मुझे बहुत कुछ उनसे सीखने को मिलता था।

विदेश मंत्रालय की कुछ उत्तम प्रकार की परंपराएं हैं, मैं गया था युनाइटेडनेशन्समें मेरा भाषण होना था, पहली बार जा रहा था सुषमा जी पहले पहुंची थीं और जैसा मेरा स्वभाव रहता है कि मैं बैकटूबैक काम करने की आदत रखता हूं तो मैं पहुंचा तो वोगेट पर रिसीव करने के लिए खड़ी थीं तो मैंने कहा चलिए हम लोग बैठ लेते हैं कल सुबह मुझे बोलना है बताइए क्या करना है, तो सुषमा जी ने पूछा आपकी स्पीच तो मैंने कहा बोल देंगे, चले जाएंगे, क्या है। उन्होंने कहा ऐसा नहीं होता है भाई, ये दुनिया में भारत की बात करनी होती है आप अपनी मन-मर्जी से नहीं बोलते। मैं प्रधानमंत्री था, वो मेरी विदेश मंत्रालय को संभालने वाली मेरी साथी कह रहीं, अरे भाई ऐसा नहीं होता है तो मैंने कहा लिख कर के पढ़ना मेरे लिए बड़ा मुश्किल होता है, मैं अपना बोल लूंगा, उन्होंने कहा नहीं। रात को ही मैं इतना ट्रैवलिंग कर के गया था, मेरे नवरात्रि के उपवास चल रहे थे, रात को ही वो भी बैठीं, बोलीं बताइए आपके विचार आप क्या कहना चाहते हैं, हम उसको लिखते हैं। सबने लिखा, ड्रॉफ्टस्पीच रात को ही तैयार हुई, सुबह मैंने उसको देख लिया। उनका बड़ा आग्रह था आप कितने ही अच्छे वक्ता क्यों ना हों, आपके विचारों में कितनी ही सत्यता क्यों ना हो, लेकिन कुछ फोरम होते हैं, उनकी कुछ मर्यादा होती है और बहुत आवश्यक होती है, ये सुषमा जी ने मुझे पहला ही सबक सिखा दिया था। कहने का तात्पर्य ये है कि एक साथी के पास ये हौसला होता है कि जिम्मेवारी कोई भी हो लेकिन जो आवश्यक है उसको बे रोक-टोक कहना चाहिए।

सुषमा जी की विशेषता, यहां कुछ लोग बोलने की हिम्मत नहीं कर रहे शायद वे मृदु थीं, नम्र थी, ममता से भरी थीं सब था लेकिन कभी-कभी उनकी जबान में पक्का हरियाणवी टच भी रहता था। हरियाणवी टच के साथ बात को फटाक से कहना और उसमें तस से मस ना होना, भीतर से कनविक्शन के रूप में प्रकट होता था ये उनकी विशेषता थी और ये सार्वजनिक जीवन में बहुत कम होता है। गुड़ी-गुड़ी बात करने वाले लोग जीवन में बहुत मिला जाते हैं लेकिन जब जरूरत पड़े तो कठोरता पूर्वक चीज को रखना और तब मेरे लिए कोई क्या सोचेगा उसकी चिंता करने के बजाए इस समय अगर गलत निर्णय हो गया तो नुकसान होगा मुझे इस निर्णय से पार्टी को, साथियों को बचाना चाहिए, परिस्थिति को संभालना चाहिए इस जिम्मेवारी को निभाने के लिए कभी हरियाणवी भाषा का भरपूर उपयोग करना पड़े वो कभी संकोच नहीं करता थीं।

विविधताओं से भरा व्यक्तित्व था, जिम्मेवारियों को निभाने के लिए अपने-आप को कसना, अपने आप को हमेशा एक कार्यकर्ता के रूप में, समर्पित भाव से कार्य करते रहना, एक उत्तम कार्यकर्ता के रूप में, एक श्रेष्ठ साथी के रूप में बहुत कुछ दे कर के गई हैं, बहुत कुछ छोड़ कर के गई हैं। सुषमा जी नहीं है लेकिन विरासत और अमानत हमें दे कर के गई हैं। उस विरासत और अमानत को कभी-कभी जरूरत पड़े तो सजाना होगा और वही सुषमा जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। सुषमा जी की जो ताकत थी उसकी कुछ झलक मैंने बांसुरी में अनुभव की। जिस प्रकार से सुषमा जी गईं, उस पल को संभालना बहुत मुश्किल काम मैं मानता हूं, लेकिन अपने पिता को भी संभालना, बांसुरी का जो धैर्य और मैच्योरिटी का जो मैंने दर्शन किया। सुषमा जी का एक लधु स्वरूप, उस बेटी को बहुत आशीर्वाद देता हूं। इस परिवार के दुख में हम सब उनके साथ हैं, आदर पूर्वक नमन करते हुए उनको श्रद्धांजलि देते हुए हम उन आदर्शों पर चलने का प्रयास करें, यही शक्ति प्रभू हमें दें, धन्यवाद।

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Prime Minister greets on the occasion of Urs of Khwaja Moinuddin Chishti
January 02, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi today greeted on the occasion of Urs of Khwaja Moinuddin Chishti.

Responding to a post by Shri Kiren Rijiju on X, Shri Modi wrote:

“Greetings on the Urs of Khwaja Moinuddin Chishti. May this occasion bring happiness and peace into everyone’s lives.