वहां उपस्थित सभी आचार्य भगवंत, सभी साध्वी महाराज साहिब, सभी श्रावतजन,
कुछ समय पहले मैंने कोशिश की थी कि मेरी बात आप तक पहुंचे। लेकिन शायद टेक्नोलॉजी की कुछ सीमाएं होती हैं। बीच में व्यवधान आ गया और जैसे दूरदर्शन वाले कहते हैं, मैं भी कहता हूं रूकावट के लिए खेद है। मैं जब पुस्तकों का लोकार्पण कर रहा था। तब तक तो शायद आप मुझे देख पा रहे थे। सबसे पहले मुझे आप सबकसे क्षमा मांगनी है, क्योंकि मैं वहां स्वयं उपस्थित नहीं रह पाया, लेकिन यह मेरे लिए बहुत सौभाग्य का विषय होता कि सभी आचार्य भगवंतों के चरणों में बैठने का मुझे आज संभव हुआ होता। लेकिन कभी-कभार समय की ऐसी सीमाएं रहती हैं। कुछ जिम्मेवारियां भी ऐसी रहती हैं कि कुछ कामों को अत्यंत महत्वूर्ण होने के बावजूद भी करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। मैं भले भौगोलिक दृष्टि से आप सबसे काफी दूर बैठा हूं। लेकिन हृदय से मैं पूरी तरह आपके साथ हूं और आचार्य भगवंत के चरणों में हूं।
आज मुझे यह 300वें ग्रंथ के लोकार्पण का अवसर मिला। लेकिन कहीं पर लिखा गया है यह साहित्य की रचनाएं हैं। मेरा उसमें थोड़ा मतभेद हैं, यह साहित्य की रचनाएं नहीं है। एक संत का अभी यह तपस्या, आत्मानुभूति, दिव्यता का साक्षात्कार और उस पर से गंगा की तरह पवित्र जो मनोभाव है, उसे शब्द-देह मिला हुआ है। और इसलिए एक प्रकार से यह वो रचना नहीं है, जो साहित्यकारों की तपस्या का परिणाम होती है, एक यह वाणी का संपुट है, जिसमें सामाज के साक्षात्कार से निकली हुई पीड़ा का, संभावनाओं का और सामाज जीवन को कुछ देने की अदम्य इच्छा शक्ति का यह परिणाम है।
50 साल मुनी की तरह एक अविरत भ्रमण और सामान्य रूप से पूज्य महाराज साहब को सुनने के लिए हजारों लोगों की भीड़ लगी रहती हैं। उनके एक-एक शब्द को सुनने के लिए हम जैसे सभी लोग ललायित रहते हैं। लेकिन यह भी विशेषता है कि वे एक उत्तम श्रोता भी हैं। श्रावकों के साथ बात करना, यात्रा के दरमियान छोटे-छोटे लोगों से बातें सुनना, एक प्रकार से पूरे हिंदुस्तान के जीवन को अपनी इस यात्रा के दमियान अपने भीतर समा लेने का उन्होंने एक अविरत प्रयास किया है। और उसी का परिणाम है कि उत्तम एक दिव्यता का अंश हम सबको प्राप्त हुआ है।
सामान्य रूप से संतों महंतों के लिए, आचार्य भगवंतों के लिए धार्मिक परंपराओं की बातें करना, ईश्वर के साक्षात्कार की बातें करना वक्त समूह को अच्छा लगता है, लेकिन पूज्य महाराज साहब ने इससे हट करके सिर्फ अपने श्रावकों को पसंद आ जाए, अपने भक्तजनों को पसंद आ जाए उसी बातों को कहने की बजाय, उन्होंने सामाज की जो कमियां हैं, व्यक्ति के जीवन के जो दोष है, पारिवारिक जीवन के सामने जो खरे हैं, उसके खिलाफ आक्रोश व्यक्त करते रहे हैं। कभी-कभी उनकी वाणी में चांदनी की शीतलता अनुभव होती है। तो कभी-कभी तेजाब का भी अनुभव होता है। उनके शब्दों की ताकत, कभी हमें दुविधापूर्ण मन हो, निराशा छाई हुई हो तो एक शीतलता का अनुभव कराती है, लेकिन कभी-कभी समाज में ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, एक संत का मन विचलित हो जाता है। आक्रोश में उठता है, भीतर ज्वाला धधकती है और वाणी के रूप में वो बहने लगती है और समाज को जगाने के लिए वो अपने आप को आंदोलित कर देते हैं। यह मैंने अनुभव किया है, और इसलिए जितनी उन्होंने साम्प्रदायिक परंपराओं की सेवा की है, उससे ज्यादा समाज में सुधार की अनुभूति कराई है। और उससे भी ज्यादा उन्होंने समाज को इस बात के लिए प्रेरित किया कि हर धर्म से ऊपर अगर कोई धर्म है तो वो राष्ट्र धर्म है। वे लगातार है राष्ट्र धर्म जगाना, राष्ट्र की भावना जगाना यह करते रहे हैं। और कभी भी उनके प्रति आस्था में कमी नहीं आई हैं। हम गर्व के साथ कह सकते हैं हिंदुस्तान के पास ऐसी महान परंपरा है, ऐसे महान संत-मुनि हैं, ऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अपनी तपस्या, अपने ज्ञान का उपयोग राष्ट्र के भाग्य को बदलने के लिए, राष्ट्र का भावी निर्माण करने के लिए अपने आप को खपाया है।
हम वो लोग हैं, जिनको शायद दुनिया जिस रूप में समझना चाहिए अभी तक समझ नहीं पाई हैं। भारत एक ऐसा देश है जिसने विश्व को किसी साम्प्रदायिक में बांधने का प्रयास नहीं किया है। भारत ने विश्व को न साम्प्रदाय दिया है, न साम्प्रदायिकता दी है। हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने, परंपराओं ने विश्व को साम्प्रदायिकता नहीं, अध्यात्मिकता दी है। कभी-कभी साम्प्र,दाय समस्याओं का सृजक बन जाता है, आध्यात्म समस्याओं का समाधान बन जाता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम हमेशा कहते थे कि समस्याआं को समाधान करने के लिए मानवजात का अध्यात्मिकरण होना चाहिए, spiritualism होना चाहिए। जो राष्ट्र धर्म के आलेख पूज्य महाराज साहब ने अविरत रूप से जगाई है, वो आलेख उस बात से परिचित कराती है।
300 ग्रंथ यह छोटी बात नहीं है। अनेक विषय व्यक्ति से ले करके परिवार, परिवार से ले करके समाज, समाज से ले करके राज्य, राज्य से ले करके राष्ट्र, राष्ट्र से ले करके पूरी समष्टि, पूरा ब्रह्माण कोई विषय ऐसा नहीं है, जिस पर महाराज साहब ने अपने विचार न रखें हों। उन्होंने लिखना प्रारंभ किया, तब से ले करके आज देखें तो लगता है शायद महीने में.. हर महीने शायद उनकी एक किताब निकली है, तब जा करके आज 300 किताबें हुई हैं। यह बहुत बड़ा समाज को तोहफा है।
समाज में सामान्य रूप से साहित्य की रचनाएं जो होती है, वो समाज को जानने-समझने के लिए, समस्याओं को जानने-समझाने के लिए काम आती हैं। लेकिन महाराज साहब ने हमें जो दिया है, वो हमें जीने का तरीका भी सिखाया है, परिवार में संकट हो तो महाराज साहब की किताब हाथ लग गई हो, तो परिवार को संकट से बाहर निकालने का रास्ता परिवार के लोग निकालने लगते हैं। बेटा घर में कुछ गलत रास्ते पर चलने लगा हो, मां-बाप के लिए कुछ अलग ढंग से सोचने लगा हो और कहीं महाराज साहब का एक वाक्य पढ़ने को मिल गया तो उसने अपने जीवन की राह बदल दी हो और फिर से मां-बाप के पास जाकर समर्पित हो गया हो। बहुत सारा धन कमाया हो, लेकिन महाराज साहब की एक बात सुनी हो तो उसका मन बदल जाता है और उसको लगता है मैं अब आगे अपना धन समाज सेवा में समर्पित करूंगा। कोई न कोई समाज सेवा का काम करूंगा, किसी दुखियारे की मदद करने का प्रयास करूंगा। यह एक प्रकार से सामाजिक क्रांति का प्रयास है और यह प्रयास आने वाले दिनों में हम सबका प्रेरणा देता रहेगा।
मैं आज आचार्य भगवंत, रत्नसुंदरसुरिस्वर जी महाराज साहब के चरणों में प्रणाम करता हूं। जिन गुरूजनों के साथ बैठ करके एक सच्चे शिष्य के रूप में अपने जीवन को उन्होंने ढाला, वे उत्तम गुरू-शिष्य परंपरा का भी उदाहरण है। अब खुद गुरू पद पर बैठने के बाद उत्तम शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाने का काम करके उन्होंने वो भी अपनी भूमिका निभाई है। मेरा सौभाग्य रहा है उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का, उनके विचारों को सुनने का, उनके सुझावों को समझने का। आज मेरा सौभाग्य है कि उनके यह 300वें ग्रंथ के लोकार्पण का मुझे अवसर मिला है और यह भी भारत भक्ति का ही उनका एक प्रयास है।
मां भारती के लिए हम कैसे कुछ करें। हमारा देश गरीबी से मुक्त कैसे हो, सवा सौ करोड़ देशवासी स्वच्छ भारत के सपने को कैसे पूर्ण करें। 35 साल से कम उम्र के करोड़ों-करोड़ों लोग, ऐसे हमारे नौजवान भारत के भाग्य को बदलने के लिए बहुत बड़ी शक्ति कैसे बनें। इन सपनों को साकार करने के लिए हम सब मिल करके एक अविरत प्रयास करते रहें।
मैं आज के इस शुभ अवसर पर, इस भव्य आयोजन के लिए समिति को बधाई देता हूं, पूज्य महाराज साहब को प्रणाम करता हूं और भगवान महावीर के चरणों में प्रार्थना करता हूं कि ऐसे आचार्य भगवंतों को ऐसी आचार्य शक्ति दें, ऐसी दिव्यता दें कि आने वाली सदियों तक मानवजाति के कल्याण के लिए उनका रास्ता हमें काम आए। मैं फिर एक बार आप सबको प्रणाम करता हूं, पूज्य महाराज साहब को प्रणाम करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।