Come out of the role of being a regulator and act as an enabling entity: PM to Bureaucrats
Push for reform comes from political leadership but the perform angle is determined by officers and Jan Bhagidari transforms: PM
E -governance, M-governance, social media are good means to reach out to the people and for their benefits: PM
Competition can play a big role in bringing a qualitative change: PM Modi

All India Civil Service Day के रूप में आज का यह दिवस एक प्रकार से re-dedication का दिवस है। देशभर में अब तक यह जिन महानुभाव ने इस कार्य को करने का सौभाग्‍य प्राप्‍त किया है, आज देश के हर कौने में इस सेवा के अंतर्गत सेवारथ आप सभी को बहुत-बहुत बधाई, बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

आप लोग इतने अनुभवी हैं। मैं नहीं मानता हूं कि आपको अपनी शक्ति का एहसास नहीं है और न ही आपको चुनौतियों का अंदाज है, ऐसा नहीं है। शक्ति का भी पता है, चुनौतियों का भी पता है, जिम्‍मेदारियों का भी पता है। और हमने देखा है कि यही उपलब्‍ध व्‍यवस्‍था के तहत देश को उत्‍तम परिणाम भी मिले हैं। लेकिन आज से 15-20 साल पहले और आज की स्थिति में बहुत अंतर है और आज से पांच साल की स्थिति में शायद बहुत ही अंतर होगा। क्‍योंकि 15-20 साल पहले हम ही हम थे, जो कुछ थे हम ही थे। सामान्‍य मानव की जिंदगी की सारी आवश्‍यकताएं हमारे रास्‍ते से ही गुजरती थी। उसको पढ़ना था तो सरकार के पास ही आना पढ़ता था, वो बीमार होता था तो सरकार के पास ही आना पड़ता था। उसको सीमेंट चाहिए, लोहा चाहिए तो भी सरकार के पास आना पड़ता था। यानी जीवन का वो कालखंड था, जिसमें सरकार ही सबकुछ थी। और जब सरकार ही सब कुछ थी तो हम ही हम सब कुछ थे और जब हम ही हम सब कुछ होते हैं तो बुराईयां आने की स्‍वाभाविक प्रवृति रहती है। कमियां नजरअंदाज करने की आदत भी बन जाती है, लेकिन पिछले 15-20 साल एक competition का कालखंड शुरू हुआ है। और उसके कारण सामान्‍य मानव भी यह comparison करता है कि भई सरकार का हवाई जहाज तो ऐसे जाता है, private हवाई जहाज ऐसे जाता है। और उसको तुरंत लगता है सरकार बेकार है। सरकार वाले बेकार है, क्‍यों उसको यह alternate देखने को मिला है।

पहले उसको सरकारी अस्‍पताल में डॉक्‍टर प्‍यार से भी आ जाए कुछ न करे, ऐसे ही BP नाप ले, तो भी उसको लगता है मेरी त‍बियत ठीक हो रही है, डॉक्‍टर ने मेरी सेवा की है। आज दस बार भी डॉक्‍टर आ जाए, तो यह सरकारी है, private में गया होता तो अच्‍छा होता। यानी सामान्‍य मानव के जीवन में 10-15-20 साल में एक alternate उपलब्‍ध हुआ है। अब alternate उपलब्‍ध होने के कारण सरकार नाम की व्‍यव्‍सथा की और सरकार में बैठे हुए लोगों की और विशेषकर सिविल सर्विस से जुड़े हुए लोगों की जिम्‍मेदारी आज से 20 साल पहले थी उससे ज्‍यादा बढ़ गई है। कार्य बोझ नहीं बढ़ा है। चुनौती बढ़ी है। कार्य के बोझ के कारण कठिनाइयां नहीं पैदा हुई है। चुनौतियों की तुलना में खड़े रहने में कमी पा रहे हैं। कोई भी व्‍यवस्‍था स्‍पर्धा में होनी ही चाहिए और वही qualitative change लाने के लिए बहुत बड़ा role play करती है। अगर स्‍थगितता है, aspirations नहीं है, तुलानात्‍मक कोई व्‍यवस्‍था नहीं है तो लगता है जो है सब अच्‍छा है। लेकिन जब तुलनात्‍मक स्थिति आती हमें भी लगता है कि हमें आगे बढ़ना है। अब उसका उपाय यह नहीं है कि यार उसे नीचे गिराओ, हम आगे दिखने चाहिए, नहीं जो भी बढ़ सकते हैं उनको बढ़ाते रहना और अच्‍छा यह होगा कि जितना जल्‍दी हम हमारी कार्यशैली को बदलें, हम हमारे सोचने के तरीके को बदले। जितना जल्‍दी हम regulator के मिजाज से निकल करके एक enabling entity के रूप में develop होंगे। तो यह चुनौती अवसर में पलट जाएगी। जो आज हमें चुनौती लग रही है, वो अवसर बन जाएगी और इसलिए बदलते हुए समय में सरकार के बिना कमी महसूस हो, लेकिन सरकार के रहते बोझ अनुभव न हो। ऐसी व्‍यवस्‍था कैसे विकसित करें। और यह व्‍यवस्‍था विकसित तब होगी, जब हम चीजों को उस तरीके से देखना शुरू करेंगे।

अब यहां पर कुछ प्रयास चल रहा है। आप सिर्फ इस Civil Service Day को ही याद कीजिए कि पहले ऐसा था, अब ऐसा है क्‍यों? इसका जवाब यह तो नहीं होना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने सोचा और हमने कर दिया, जी नहीं। सोचने का तरीका यह होना चाहिए कि इतना बड़ा अच्‍छा अवसर होता था हमने इसको ritual बना दिया था। अगर प्राणवाण बनाते हैं, उसमें प्राण भर देते हैं, अपने आप को जोड़ देते हैं, आने वाले दिनों की सोच रखते हैं तो वही अवसर हमें एक नई ताकत दे देता है। इस एक अवसर में जो बदलाव नजर आ रहा है और अगर आपको यह सही लगता है, तो आपके हर काम में यही संभावनाएं अंतरनिहित है, inherent हैं। सिर्फ उसको एक बार स्‍पर्श करने की आवश्‍यकता होती है, अनुभूति होने लग जाएगी। क्‍या हम इससे इन बातों को सिख सकते हैं। क्‍या कारण हैं आप भी तो कभी उसी प्रक्रिया से निकलेंगे हैं। आपने भी किसी गांव में काम किया। धीरे-धीरे करके district में आए, ऐसा करते-करते हम पहुंचे हैं। और भी बहुत लोग होंगे जो पिछले बार भी district में काम करते थे, इस बार भी district में काम करते हैं। लेकिन पहले उनको नहीं लगा, इसलिए entry hundred से भी कम आई। और इस बार एकदम से ज्‍यादा आई। quantum jump तो हुआ है और मैं इसका स्‍वागत करता हूं। हो सकता है किसी ने पूछा होगा कि क्‍या तुमने भेजा कि नहीं भेजा? तो उसको लगा कि यार नहीं भेजने से भी सवला उठेगा, इसलिए भेज तो दो। लेकिन जब मेरे सामने रिपोर्ट आया तो मेरा दिमाग कुछ और चलने लगा। मैंने कहा ऐसा कीजिए भाई अच्‍छा है quantum jump हुआ है। 100 से नीचे थे, अब 500 से ज्‍यादा हो गए, अच्‍छी बात है। अब थोड़ा qualitative analysis होना चाहिए। हम यह तो देखे कि जिसको हम भले number one, number two, number three नहीं देने पाएंगे, लेकिन at least seriously देखना पड़े, मन करे यार जरा देख तो सही कैसा किया है। excellence की category में आए, इसमें इतने कितने हैं। मैं वे आंकड़ा बताना नहीं चाहता हूं, Live TV चल रहा है। लेकिन फिर भी मैं संतुष्‍ट इसलिए हूं, चलो भई एक शुरूआत हुई, quantum jump हुआ। अब मैं चाहता हूं कि एक साल में qualitative change होना चाहिए। excellence से नीचे तो कोई entry होनी ही चाहिए। क्‍योंकि इस व्‍यवस्‍था में वो लोग हैं जिनको excellence का ठप्‍पा लगा है, तभी तो यहां पहुंचे हैं जी।



यह ठीक है कि उन्‍होंने कोई coaching class join किए होंगे.. चलिए आप लोग समझ गए। लेकिन फिर भी ठप्‍पा तो लग गया कि जो Excellency है वो यही पर है। अगर Excellency यही पर है यह ठप्‍पा है फिर perform भी तो वैसे ही करने का हमें आदत बनानी होगी और धीरे-धीरे कभी-कभार आपने देखा होगा कि एक गृहणी होती है, कभी उसका रूतबा, उसका कौशल्‍य, उसकी क्षमता परिवार में नो‍टिस ही नहीं होती। एक taken for granted होता है। लेकिन परिवार का मुखिया ईश्‍वर ने अगर छीन लिया अचानक ध्‍यान आता है कि कल तक चूल्‍हे से जुड़ी हुई एक गृहणी पूरे परिवार का कारोबार चलाने लग जाती है। बच्‍चों की परवरिश ऐसी उत्‍तम कर देती है। और अड़ोस-पड़ोस के पुरूषों को भी शर्मिंदगी हो इतना उत्‍तम अपने पारिवारिक जीवन को ऊँचाई पर ले जाती है। कल तक वो गुमनाम थी, मतलब inherent ताकत पड़ी थी, जैसे ही अवसर आया उसने अपने आप को खिला डाला, विकसित करते हुए जिम्‍मेदारियों को निभाया। यहां वो लोग हैं exam देते हुए कितने ही pressure से गुजरे होंगे, लेकिन अब आपके पास इतनी बड़ी व्‍यव्‍सथा आ गई है। इतना बड़ा अवसर आ गया है, चीजों को नये तरीके से देखना का मौका मिल गया है। क्‍या आप इसे अपनाते हैं। एक मैं अनुभव कर रहा हूं, Hierarchy का बोझ वो तो है ही है। शायद वो ब्रिटिशों के जमाने की विरासत है, जो मसूरी से भी में से हम निकाल नहीं पाए। लेकिन मुझे सब आता है, मेरे जमाने में तो ऐसा होता था। अरे तू अभी नया आया है यार हम तो कई साल पहले, 20 साल पहले district करके आए हैं, यह जो अनुभव का बोझ है। वो बोझ हम ट्रांसफर करते चले जा रहे हैं। हम सोचे सीनियर लोग सोचे यह अनुभव बोझ तो नहीं बन रहा है। कहीं हमारा अनुभव नये experiment के लिए ब्रेक का काम तो नहीं कर रहा है। कहीं मुझे ऐसा तो नहीं लग रहा है कि मैं अब यहां secretary बन गया हूं। उस district में मैं पहले काम करता था मैंने मेरे समय में इस काम को पूरा करने की कोशिश की थी, नहीं किया। 20 साल बीत गए। अब यह नया लड़का आया है वो कर रहा है, यार मेरी इज्‍जत खराब हो जाएगी। कोई पूछेगा कि तू था नहीं हुआ, देख इस बच्‍चे ने कर दिया। तो मेरे अनुभव का बोझ ब्रेक बढ़ रहा है और मैं ही रूकावट बन जाता हूं। किसी दूसरे district का तो कर दूंगा, लेकिन जिस district में मैं काम करके आया था और मेरे रहते नहीं हुआ था। अब तू कर करके कमाई नहीं कर सकता इज्‍जत... यह है। अच्‍छा लगे, बुरा लगे, लेकिन यह है। हमें गर्व होना चाहिए कि जिस खेत को मैंने जोता था, मैं वहां से चल निकला, लेकिन मेरे बाद जो आया उनसे पानी का प्रबंध किया था। उसके बाद तीसरा आया वो कहीं से पौधा ले आया था। चौथा आया उसने उसको वटवृक्ष बनाया। पांचवा आया, मेरे पास फल ले करके आ गया। पांचों का मूल्‍य है, जब जा करके परिणाम हुआ है। यह भाव के साथ अगर इस परंपरा को हम आगे बढ़ाएंगे तो हम शक्ति जोड़ंगे और शक्ति को जोड़ना यह हम लोगों का प्रयास हो सकता है। हमें कोशिश करनी चाहिए।

मैंने पिछली बार भी कहा था सिविल सर्विस की सबसे बड़ी ताकत क्‍या रही है। और यह छोटी ताकत नहीं है। और गुजराती हम एक कहावत है, हिंदी में क्‍या होगा, मुझे मालूम नहीं है। ठोठनिशार यानि होशिआर नि कद्र यानी जो पढ़ने में weak होता है, उसको जो पढ़ने में तेज होता है, उसकी कीमत उसको ज्‍यादा feel होती है कि हां यह तेज है जो बिल्‍कुल weak होता है, उसको पता है। पैसा एक गुण जो है आपका वो हम पॉलिटिशनों को बराबर समझ आता है। और मैं समझता हूं कि यह बहुत बड़ी ताकत है। इसको खोने नहीं देना चाहिए। बहुत बड़ी ताकत है और वो है, अनामिकता।

कई अफसर आप देखेंगे उन्‍होंने अपने कार्यकाल में ऐसी कोई vision उनके मन में आया होगा, idea आया होगा। उसको कार्यरत किया होगा, उसका पूरा implementation का framework बनाया होगा और उसके परिणाम पूरे देश को मिलते होंगे। लेकिन खोजने जाने पर भी पता नहीं चलेगा यह कौन अवसर था, यार। किसको idea आया था। कैसे किया था। यह अनामिका, यह इस देश के सिविल सर्विस की उत्‍तम से उत्‍तम ताकत है, ऐसा मैं मानता हूं। क्‍योंकि मुझे मालूम है कि इसकी ताकत क्‍या होती है। लेकिन दुर्भाग्‍य से कहीं, उसमें कमी तो नहीं आ रही है। मैं सोशल मीडिया की ताकत को पहचानने वाला इंसान हूं। उसके महत्‍मय को समझने वाला इंसान हूं। लेकिन व्‍यवस्‍थाओं को विकास अगर उसके माध्‍यम से होता हो, और यह व्‍यवस्‍थाओं को जनता जनार्दन से जोड़ने के काम आता है, तब तो उसका उपयोग है। अगर मैं सोशल मीडिया के नेटवर्क के द्वारा एक district का अफसर हूं और मैं टीकाकरण का प्रचार करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करता हूं कि 20 तारीख को टीकाकरण है, जरूर आइये, बात पहुंचाइये। मैं सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा हूं, लेकिन अगर मैं टीकाकरण में दो बूंद पिलाने गया हूं और मेरी फोटो फेसबुक पर प्रचारित कर रहा हूं तो अनामिका के लिए मैं सवालिया निशान बन जाता हूं। एक ही व्‍यवस्‍था को मैं कैसे उपयोग करूं। आज मैं देखता हूं district level के जो अफसर हैं वो इतने busy हैं, इतने busy हैं, इतने busy हैं कि ज्‍यादातर समय इसी में जाता है। मैंने आजकल मेरी मीटिंगों में सबको एंट्री बंद कर दी है। वरना सारी मीटिंगों में निकाल करके शुरू हो जाता है। जो ताकत किस काम के लिए आनी चाहिए, किसके लिए नहीं आनी चाहिए। इसका अगर विवेक नहीं रहेगा। आवश्‍यक है कि जन-जन तक पहुंचने के लिए उत्‍तम साधन हमारे हाथ आया है।

E-governance से M-governance की ओर दुनिया चल पड़ी है। Mobile governance ये समय का सत्‍य है, हम इससे दूर नहीं रह सकते। लेकिन वो जन-आवयकताओं की पूर्ति के लिए हो, जन-सुविधाओं की पूर्ति के लिए हो, मैं समझता हूं ये जो अनामिका; ये जो हमारी पूरी ताकत रही है। ताजमहल कितनों ने design की होगी, कितनों ने concept paper तैयार किए होंगे, कितनों ने परिश्रम किया होगा, लेकिन न आप जानते हैं, न मैं जानता हूं; लेकिन ताजमहल हमें याद दिलाता है By and large इस क्षेत्र के लोगों ने यही काम किया है जीवन भर कभी कभार तो उसको खुद को भी पूछोगे रिटायर होने के बाद, 20 साल के बाद पूछोगे भई जरा एक पांच चीजें बताओ, तो उसको भी याद नहीं क्‍योंकि उसने इतना समर्पण भाव से वो जुड़ गया है तो उसको लगा कि अरे भई मैंने करते में था, मैंने कर दिया, चल दिए, चलो आगे चलो भाई। ये कितनी बड़ी ताकत है हमारे देश के पास। और उस ताकत के मालिक आप हैं। और इसका मूल्‍य मुझे बराबर समझ है क्‍योंकि हमें मालूम है कि हम लोगो की जो फोटो इधर से उधर हा जाए तो भी हमारी रात खराब हो जाती है, हम लोगों की बिरादरी ऐसी है। और इसलिए मुझे मालूम है कि अपने की पहचान बनाए बिना देश के लिए दिन-रात काम करना, ये छोटी चीज नहीं है जी। इसको मैं भली-भांति appreciate कर सकता हूं जी। इसकी ताकत मैं भली-भांति समझता हूं। लेकिन ये जो परंपरा हमारी आगे की पीढ़ी ने और हमारी senior पीढ़ी ने जो निर्माण किए हैं, उसको बरकरार रखना हमारी नई पीढ़ी की बहुत बड़ी जिम्‍मेदारी है और उसको कहीं खरोंच न आ जाए, ये देखने की आवश्‍यकता है।



हम ये civil service day मना रहे हैं तब governance के reform के लिए दुनिया भर की कमेटियां बनी होंगी, कमीशन बैठे होंगे; केंद्र सरकार में बैठे होंगे, राज्‍य सरकार में बैठे होंगे। और जिन्‍होंने बनाया होगा, उन्‍होंने भी पूरा पढ़ा नहीं होगा। क्‍योंकि 6 लोगों ने piece लिखें होंगे फिर किसी ने तीसरे ने उसको combine किया होगा। ये जो सच्‍चाई है जिसे अच्‍छा लगे बुरा लगे, जो reality है ये। और उसके बाद तो शायद address भी पता नहीं होगा, कहां पड़ा है। राज्‍यों में भी ऐसे ढेर सारे, हर सरकार को लगा होगा, कुछ reform करेंगे, कुछ reform करेंगे, commission बनाएंगे और ठीक है कुछ लोगों को काम-धाम मिल जाता है रिटायर होने के बाद, लेकिन बदलाव नहीं आता है। मेरा आज भी अनुभव से मैं कह सकता हूं, मेरा सद्भाग्‍य रहा है कि मैं भी अगर आपकी तरह इस व्‍यवस्‍था में होता, हो नहीं सकता था क्‍योंकि मुझे coaching class तो कहीं मिलना नहीं था, लेकिन 16 साल कोई नौकरी करे तो क्‍या बन सकता है, deputy secretary बन जाता है, क्‍या बनता है? हैं, Director बन जाता है, तो मैं Director की category में आ जाता, क्‍योंकि मैं 16 साल से आप लोगों के साथ काम कर रहा हूं। इसी व्‍यवस्था के साथ आप ही लोगों के बीच काम कर रहा हूं। और इसलिए मेरा मत है और मैंने अनुभव देखा है, सचमुच में इस व्‍यवस्‍था में काम करने वालों का जो अनुभव है और उनके सुझाव हैं, इससे बड़ा reform के लिए कोई commission सुझाव दे ही नहीं सकता जी, ये हमारी गलत सोच है जी। आप लोगों के पास जो है, उससे उत्‍तम सुझाव बाहर से आ ही नहीं सकता साहब। ये हम अभी भी उसको न तवज्‍जो देते हैं और न ही हम उसको follow करते हैं। क्‍या हम अपने character में ला सकते हैं, भई छोटा सा व्‍यक्ति अपने अनुभव से ये जो exercise चल रहा है ना, जो paper लिख रहा है, नए लोगों से मैंने चार latest जो batch के लोग हैं, उनसे कहा भई आप लिख करके दो, एक नई thought process आए हमारे पास, आए, सबने लिखा। हो सकता है कुछ ने cut-paste किया होगा। मैंने देखा नहीं पूरा लेकिन ये सब मनुष्‍य का स्‍वभाव है होता रहता है। लेकिन फिर भी, फिर भी कुछ न कुछ ऐसा आया होगा, जिसमें मंथन हुआ होगा। अब ये व्‍यवस्‍था का मुख्‍य लोगों का काम है कि ये जो exercise था, हमने कोई degree पाने के लिए नहीं की है; academic ranking के लिए नहीं की है, मेरा पेपर स्‍वीकृत होगा इसके लिए नहीं की है। जो आए हैं, अनुभव की बातें आई हैं, धरती पर काम करने वाले इंसान ने कहीं हैं, जो रोजमर्रा किसानों के साथ जिंदगी गुजारता है, रोजमर्रा अपने clerical काम करने वालों से जिंदगी गुजारता है, जो अपने नए Computer-operator के साथ जिंदगी गुजारता है, Office timing के कारण और सीजन के साथ जो crisis आते हैं, वो जिसने देखा है; उसने कहा है।

हम इसको एक Holy-book की तरह पकड़ सकते हैं क्‍या? भले ही छोटे व्‍यक्ति ने कहा हो, लेकिन हमारे अंदर से कहा है तो उसकी ताकत बहुत बड़ी है, ये हम अपना mind-set तैयार कर सकते हैं क्‍या? आप देखिए। हमें, अच्‍छा, जब अंदर से बात आती है तो उसकी ownership होती है जी। Ownership किसी भी success की पहली guarantee होती है जी। सफलता तब मिलती है जबकि Team ownership लेती है। ownership की संख्‍या जितनी ज्‍यादा बढ़ती है, सफलता उतनी तेजी आती है, जिम्‍मेवारी कम हो जाती है, बोझ कम हो जाता है, परिणाम का यश सबको मिलता है। ये जो प्रयास है वो एक प्रकार का ownership का movement है। ये दो दिन जो हम बैठते हैं ना, ये सबसे बड़ी बात है एक ownership का movement है। हर किसी को लगता है कि हां ये देश मेरा है, सरकार मेरी है, जिम्‍मेवारी मेरी है, परिणाम मुझे लाना है, समस्‍या का समाधान मुझे देना है।

ये बात निश्चित है कि व्‍यक्ति के तौर पर इंसान की सही कसौटी कब होती है, आपको भी भलीभांति पता होगा क्‍योंकि आप उस जगह पर बैठे हैं। अभावग्रस्‍त अवस्‍था, ये व्‍यक्ति का सही मूल्यांकन नहीं करती है। प्रभावग्रस्‍त अवस्‍था व्‍यक्ति का सही मूल्‍यांकन करती है। आपके पास सब है फिर भी आप अलिप्‍त हैं, तब जाकर करके पता चलता है कि हां, ये कुछ बात है। कुछ नहीं है तो लगता है यार, ठीक है ऐसे ही जीते हैं; तो कोई देखता ही नहीं है, महत्‍व ही नहीं है इसका। आपके पास हर प्रकार का प्रभाव है, पूरी शासन व्‍यवस्‍था आपकी उंगलियों पर है, आपके शब्‍द की ताकत है, आपकी साइन की, तो किसी की दुनिया इधर से उधर बदल जाती है; तब जाकर आप क्‍या करते हैं ये आपकी कसौटी है। और इसलिए अभावग्रस्‍त अवस्‍था में न व्‍यक्ति का मूल्‍यांकन सफल होता है, प्रभावग्रस्‍त वयवस्‍था में होता है।

उसी प्रकार से प्रगति में contribution, By and large हम देश में ऐसे कालखंड से गुजरे हैं, हमारे में से बहुतों की सोच अभाव के बीच कैसे रास्‍ते खोजना, उसकी रही है। विपुलता के बीच कैसे काम करना, ये By and large हमारे बहुत बड़ा class है जिसकी सोच में बैठता नहीं है। उसको ये तो मालूम था कि अकाल हो तो कैसे perfect management करना है लेकिन उसको ये मालूम नहीं था कि भरपूर पाक पैदा हो तो कैसे management करना है, वहां फिर वो चूक जाता है। उसे ये तो मालूम था कि engineering collage में सीट खाली हो तो लोगों को कैसे admission देना, लेकिन जब सीटें कम पड़ जाएं और विद्यार्थियों की संख्‍या बढ़ जाए तब कैसे manage करना, तो वो संकट में पड़ जाता है।

जिस तरह देश बढ़ रहा है, जिस तरह देश में जन-सामान्‍य के expressions के साथ उसका परिश्रम जुड़ रहा है, तो विपुलता के भी दर्शन हो रहे हैं। कम पानी है तो कैसे नहाना आ जाता है लेकिन fountain ऊपर चल रहा है और कम पानी से नहाने की सूचना आए तो follow करना मुश्किल हो जाता है। हम विपुलता के बीच, जहां-जहां विपुलता की संभावनाएं दिख रही हैं, या विपुलताओं को हमारे सामने नजर के देख रहे हैं, उसके लिए हमारी stagey बदल सकते हैं क्‍या? हम अपनी mind-set बदल सकते हैं क्‍या? नहीं तो हम बड़े बन नहीं पाऐंगे जी। हमारी सोच की सीमा वही रहेगी जी। हमने उस चुनौतियों को स्‍वीकार कर करके आगे बढ़ने के लिए सोचा है जी।

जैसे मैंने कहा शुरू में हमारा अपने-अपने में था, दूसरे district के साथ भी competition नहीं था। ये district जो है वहां पानी है इसलिए खेती अच्‍छी होती है, वहां सूखा है इसलिए खेती नहीं होती; होता है, होता है, मैं, मेरे पूर्वजों ने भी ये किया, ऐसा था। अब सिर्फ district, district नहीं, दुनिया इतनी बदल चुकी है कि अब राज्‍यों, राज्‍यों के बीच competition है, अब देश और देश के बीच competition है, कल और आज के बीच competition है। हर पल हमने इस प्रथा की चुनौतियों से अपने आपको ऊपर उठाना है और वैश्विक संदर्भ में भी करने की आवश्‍यकता है।

Civil service की एक और ताकत, और मैं मानता हूं उसकी ताकत भी है उसका धर्म भी है, Civil service के व्‍यक्ति को उस धर्म से चलित होने का कोई हक नहीं है; और वो है, वो district में बैठा हो, तहसील में बैठा हो या final authority के रूप में बैठा हो; उसका दायित्‍व बनता है, हर proposal को, हर घटना को, हर निर्णय को राष्‍ट्रहित के तराजू से ही तौलना, उसे टुकड़ों में देखने का अधिकार नहीं है। ये निर्णय मैं यहां करता हूं लेकिन मेरे देश के किसी कोने में negative impact तो नहीं करेगा? मेरा तो यहां काम चल जाएगा, मेरे लिए तो वाहवाही हो जाएगी, लेकिन मेरा ये निर्णय मेरे देश के किसी कोने पर तो impact नहीं करता है; ये तराजू Civil service के पास है। उसकी training ही उस प्रकार से हुई है, उसमें कभी भी कमी नहीं आने दें। सरकारों आएंगी, जाएंगी; नेता आएंगे, जाएंगे; ये व्‍यवस्‍था अजर-अमर है। और इस व्यवस्‍था का मूलभूत धर्म हर निर्णय को राष्‍ट्रहित के तराजू से तौलना है। और भावी समय में भी क्या impact होगा, वो भी उसको देखना पड़ेगा। अगर भावी समय में उसके impact के बारे में अगर वो नहीं सोचता है तो भी नहीं चलेगा। और इसलिए Civil service में हम लोगों ने जो training पाई है बदलते हुए युग को समझते हुए, हम उसमें अपने-आपको relevant कैसे बनाएं। बदली हुई दुनिया में अगर हम irrelevant हो जाएंगे तो शायद स्थिति कहां से कहां पहुंच जाएगी, हम कहीं के नहीं रहेंगे। और इसलिए हमारा institutional growth, institutional development , institutional mechanism, इसको लगातार हमें overhauling करते रहना पड़ेगा, lubricating की जरूरत है।

हां यहां HR की बात हुई है, काफी मात्रा में, मुझे मालूम नहीं HR में lubricating विषय आया कि नहीं आया। क्‍या कारण है हम सब civil service के लोग हैं, 25 साल पुराना मामला लटका पड़ा है, 30 साल पुराना मामला लटका पड़ा है, leadership के निर्णय के अभाव में नहीं, department की, दो department के बीच की फाइलों के बीच में लटका पड़ा है, क्‍या कारण है? और वो ही मुद्दा जब भारत के प्रधानमंत्री PRAGATI (Pro-Active Governance And Timely Implementation) कार्यक्रम करें और ऐसे ही PRAGATI कार्यक्रम में listing हो जाए कि इतनी चीजों पर PRAGATI कार्यक्रम में देखने वाले हैं और फटाफट 24 घंटे में निर्णय हो जाए, सारे clearance मिल जाएं, और project clear हो जाए, 8-9 लाख करोड़ रूपये के project clear हो गए, क्‍या कारण था? PRAGATI की success हो तो मैं जय-जयकार कर सकता हूं कि देश का एक ऐसा प्रधानमंत्री है कि जो technology का उपयोग करते हुए लटकी पड़ी कई समस्‍याओं का समाधान कर रहा है। मेरे लिए वो संतोष का विषय नहीं है, मेरे लिए उस में से सीख का विषय है और सीख का विषय ये है कि मेरे सभी साथी ये सोचें, क्‍या कारण है कि जो निर्णय आपने 24 घंटे में किया, वो 15 साल से क्‍यों लटका पड़ा था? Road बन रहा है, लोगों को जरूरत है लेकिन forest department अटका पड़ा है, लेकिन प्रधानमंत्री ने intervene का clear हो गया, ये स्थिति अच्‍छी नहीं है। PRAGATI की success के लिए मोदी का जय-जयकार हो जाए, उससे देश का भला नहीं होगा, वो एक temporary चीज है। देश का भला इसमें है कि मेरी व्‍यवस्‍था सुचारू रूप से चलती हो, हर अफसर के बीच में एक lubricating व्‍यवस्‍था होनी चाहिए जी, lubricating cooperation होना चाहिए। घर्षण शक्ति को व्‍यय करता है जी, lubrication शक्ति को smooth कर देता है जी। क्‍या हम उस दिशा में सोचते हैं क्‍या? अभी भी मैं समझ नहीं पाता हूं जी। सरकार के दो department कोर्ट में क्‍यों झगड़ा कर रहे हैं, मैं नहीं समझ पाता। अदालत के अंदर दो अलग अलग department, अलग अलग view, सरकार एक। क्‍या हम एक All India Civil Service के नाते हमारी कमजोरी स्‍वीकार करते हैं? क्‍या कोई दायित्‍व से घबरा रहा है? दायित्‍व से भाग रहा है? या कहीं Ego बीच में आ रहा है। मैं चाहूंगा Civil Service Day पर ये हमारा आत्‍मचिंतन का अवसर भी होना चाहिए। देश की अदालतों का कितना टाइम जा रहा है, देश के सामान्‍य मानवी को जो जरूरत है उसमें कितनी रूकावटें आ रही हैं। और केस हार-जीत का कारण क्‍या बनता है, एक अफसर ने पूरा सोचे बिना अगर एक लाइन फाइल में लिख दी, और कोई interested group ने उस फाइल को हाथ लगा लिया, मामला चौपट हो जाता है। मिल-बैठ करके, बात कर कर के और ये सोचने की जरूरत नहीं है कि कोई निर्णय जल्‍दी करता है तो कोई बुरे के इरादे से करता है। ऐसे अरोप लगाने वालों ने अभी तक कोई आरोप पूरा नहीं हुए हैं। और इसलिए मन ये झिझक रखने की जरूरत, अगर सत्‍यनिष्‍ठा से, ईमानदारी से जन-सामान्‍य के हित में किया है तो दुनिया की कोई ताकत आपको बुरा नहीं ठहरा सकती है। पलभर के लिए कुछ हो जाए, हो जाए, देखा जाएगा, मैं आपके साथ खड़ा हूं।



सत्‍यनिष्‍ठा से काम होना चाहिए, कौन रोकता है जी। और आज एक अवसर आया है हिम्‍मत से फैसले लेने का, आज एक अवसर आया है out of the box सोचने का, आज एक अवसर आया है निर्धारित मार्ग से भी नया मार्ग पर कदम रख करके स्थितियों को बदलने का अवसर आया है और मैं मानता हूं मेरे साथ काम करने वाले हर साथियों को ऐसा अवसर उनकी जिंदगी में बहुत कम आया होगा जो आज आया है। क्‍योंकि मैं इस सोच का व्‍यक्ति हूं।

यहां पर reform, perform, transform की बात हो रही है। राजनीति की इच्‍छाशक्ति निर्भर करती है reform के लिए लेकिन आपकी कर्तव्‍य शक्ति निर्भर करती है perform के लिए। राजनीति की इच्‍छा शक्ति reform कर सकती है लेकिन अगर ये अगर ये team की कर्तव्‍य शक्ति कम पड़ जाएगी तो perform नहीं होता है और जन-भागीदारी नहीं होती तो transform नहीं होता है। तो ये तीनों चीजें; political will power, ये reform कर सकता है, लेकिन Bureaucratic system, governance, ये perform करता है। और जन-भागीदारी transform करती है। हमें इन तीनों को एक wave length में चलाना बहुत जरूरी है। जब हम तीनों को एक wave length में चलाते हैं तो में इच्छित परिणाम मिलता है।

मैं चाहूंगा कि civil service day के निमित्‍त हम आत्‍मचिंतन करने में कोई कोताही न बरतें। सोचें, जिस दिन civil service के लिए आप select हुए होंगे आपके मां-बाप ने आपको किस रूप में देखा होगा, आपके यार-दोस्‍तों ने कैसे देखा होगा, और आप भी जब घर से चलें होंगे, उस पाल को याद कीजिए। मैं मानता हूं वो पल ही, उससे, उससे बड़ा, उत्‍तम से उत्‍तम आपका कोई मार्गदर्शक नहीं हो सकता है, जो जीवन की वो पहली पल थी। वो ही आपके जीवन की ताकत है। अगर कुछ और है तो आप derail हुए हैं, अगर वो बना हुआ है तो आप सच्‍चे रास्‍ते पर, ना मेरे शब्‍दों को याद करने की जरूरत है, न हिन्‍दुस्‍तान के कितने ही आपके senior लोगों ने आपको कहा हो कि किसी को याद करने के लिए, सिर्फ अपने-आप जिस दिन आप civil service के लिए select हुए थे, उस पल आपके मन में जो विचार आया था, वो ही आपकी प्रेरणा रहेगा; मैं नहीं मानता हूं इस देश को कोई नुकसान होगा। कोई बाहर से जरूरत नहीं है जी। उसी को याद करें, बार-बार याद करें, civil service day को याद करें; फिर से एक बार जरा 30-40 साल 25 साल पीछे चले जाइए जरा उस पल को याद कीजिए, जब मां-बाप को पता चला होगा कि आप UPSC पास करके, IAS हो करके अब आप आगे बढ़ रहे हैं, अब मंसूरी के लिए निकलने वाले हैं। उस पल को याद कीजिए, रेलवे स्‍टेशन पर आपके मां-बाप छोड़ने आए होंगे, पल याद कीजिए। बस, स्‍टेशन पर आपके साथी छोड़ने आए होंगे, पल याद कीजिए। वो पहले 24, 48 घंटों को याद कीजिए, जिंदगी में कैसे-कैसे सपने भर करके निकले थे, क्‍या कहीं उसमें dilution, diversion तो नहीं आया है? किसी और के उपदेश की आवश्‍यकता नहीं, किसी प्रेरक कथा की आवश्‍यकता नहीं है, ये अपने-आप में बहुत बड़ी ताकत होती है।

सरकार का एक स्‍वभाव होता है, इसमें बहुत बड़े बदलाव की जरूरत है, और वो target पूरा हुआ है। क्‍या सचमुच मे आंकड़ों के खेल से बदलाव आता है क्‍या? आप लोगों के बीच में एक कथा बड़ी प्रचलित है, शायद आप लोग जानते भी हैं या कि हम सुनते हैं, पता नहीं कौन-कौन सोचते हैं। एक बगीचे में कुछ लोग काम कर रहे थे। एक senior व्‍यक्ति ने देखा। ये दो लोग इतनी मेहतन कर रहे हैं, पसीना बहा रहे हैं। एक गड्ढा गोद रहा है और दूसरा मिट्टी भर रहा है। तो उसको बड़ा कौतुहल हो गया, थोड़ा जागरूक नागरिक था। उसने जाकर पूछा भाई ये क्‍या कर रहे हो? आप इतने दो लोग, नहीं बोले, दो नहीं हम तो तीन हैं। पूछे, तीन हैं? नहीं बोले तीसरा आज आया नहीं है। तो बोले क्‍या काम कर रहे हो? तो बोले मेरे जिम्‍मे है गड्ढा करना, जो आज नहीं आया उसका जिम्‍मा है पैड लगाना और इसका जिम्‍मा है मिट्टी डालना। लेकिन वो नहीं आया, लेकिन हमारा काम चल रहा है। वो गड्ढा खोद रहा है, मैं, वो नहीं आया। कम हुआ? हुआ, जितने घंटे करना था किया, जितनी मिट्टी निकालनी थी, नि‍काली, जितनी डालनी थी, डाली; देश का क्‍या लाभ हुआ? क्‍यों? क्‍योकि एक missing था।

Outcome Centric, हमें हर चीज को तौलना चाहिए और इस बार पहली बार बड़ी हिम्‍मत की है, गत वर्ष बजट के साथ एक outcome related document बजट के साथ दिया जाता है, बहुत कम लोगों ने इसको study किया होगा। पहली बार हिंदुस्तान में बजट के साथ outcome documental दिया जाता है। हम नीचे तक इस बात को एक हमारे culture के रूप में प्रचलित करें कि हर चीज को outcome के तराजू से तौलना होगा, output के तराजू से नहीं। Output, CAG के लिए ठीक है, Outcome एक step CAG+1 वाला है, और वो देश का लोकतंत्र है; जो CAG से भी दो कदम आगे है। और इसलिए हम CAG केन्द्रित Output देखेंगे तो देश में बदलाव शायद नहीं देख पाएंगे, लेकिन CAG+ की सोच के साथ करेंगे, Outcome के साथ, तो हम देश के लिए कुछ देकर जाएंगे।

आजादी के 70 साल बाद पहली बार सारी प्रक्रियाएं शत-प्रतिशत पूर्ण करते हुए देश का बजट 31 मार्च को सारी प्रक्रिया पूर्ण हो जाए और 1 अप्रैल को नया बजट, नया धन खर्च करना शुरू हो, आजादी के 70 साल बाद पहली बार हुआ, पहली बार हुआ। आप ही तो लोग हैं, ये आप ही का कमाल है जी, आप ही ने करके दिखाया। इसका मतलब ये हुआ कि आज भी हमारे साथियों में ये, मेरे ये सेना में जो तय करें वो करने में दम है, ये मैं अनुभव करता हूं। और इसलिए मेरा विश्‍वास अनेक गुना ज्‍यादा है। लोग कभी निराशा की बात करते हैं, मैं आप लोगों को याद करता हूं, आप लोगों के कर्तव्‍यों को याद करता हूं, मेरे निराशा नाम की कोई चीज मुझे धड़कती नहीं है जी, मुझे छूती नहीं है।

पिछले तीन साल में मैंने अनुभव किया है, मेरा गुजरात का अनुभव तो गहरा है लेकिन यहां मेरा तीन साल का अनुभव है; तीन साल में मैंने अनुभव किया है कि एक विचार मैंने रखा हो और मुझे उसका परिणाम न मिला हो, ऐसी कोई घटना मेरे सामने मुझे याद नहीं आ रही है, किसने किया? और इसलिए reform करने के लिए political will चाहिए, मुझे वो problem नहीं है; शायद extra है। लेकिन perform के लिए कर्तव्‍य बहुत आवश्‍यक होता है। और ये काम कौन करता है, मुझे बताइए? प्रधानमंत्री ने कहा कि भई ऐसा एक मेरे मन में विचार आता है, उस idea को policy में कौन convert करता है? आप लोग करते हैं। Scheme में कौन convert करता है? आप करते हैं। जिम्‍मेवारी कौन allot करता है? आप करते हैं। संसाधन कहां से निकालेंगे? आप करते हैं। तय करने के बाद monitoring कौन करता है? आप करते हैं। कमियां कहां रहीं, वो ढूंढता कौन है? आप ही ढूंढते हैं। गलत क्‍या हुआ, कौन ढूंढता है? आप ही ढूंढते हैं। सब चीज, बाहर के वाला व्‍यक्ति जब देखेगा तो उसको आश्‍चर्य होगा कि यही लोग अपनी कमियां भी ढूंढते हैं! यही लोग अपनी गलतियां भी ढूंढते हैं! यही लोग हैं उसके सुधार के लिए प्रयास करते हैं! ऐसी homogeneous व्‍यवस्‍था, ये बहुत बड़ी देन है देश को All India Civil Service, और इसलिए आज का दिन इसलिए देश के लिए भी बड़ा मत्‍वपूर्ण है कि ये एक व्‍यवस्‍था है जो व्‍यवस्‍था देश को इस प्रकार से देश को हर बार अपने-आपके कसौटी से कसते-कसते, अपने-आपको ठीक-ठाक करते-करते; हो सकता है अपेक्षा से शायद दो कदम पीछे रहते हों, लेनि कोशिश रहती है अपेक्षाओं को पूर्ण करने की, यही तो Team करती है; इस Team के प्रति देशवासियों का आदर भाव कैसे बढ़े? सामान्‍य मानवी के मन में ये भाव क्‍यों पैदा हुआ है? कभी आप भी आत्‍मचिंतन कीजिए; आप बुरे लोग नहीं हैं, आपने बुरा नहीं किया है, आप बुरा करने के लिए निकले नहीं हैं, फिर भी जन-सामान्‍य के मन में आपके प्रति भाव होने के बजाय अभाव क्‍यों है? क्‍या कारण है? ये आत्‍मचिंतन हम लोगों ने करना चाहिए। और आत्‍मचिंतन करेंगे तो मैं नहीं मानता हूं कि कोई बहुत बड़ा बदलाव की जरूरत पड़ेगी। थोड़ा सा विषय होता है जो संभालना होता है। अगर ये हम संभाल लेते हैं तो अपने-आप में अभाव, भाव में परिवर्तित हो जाता है।

कश्‍मीर के अंदर बाढ़ आती है, और जब फौज के लोग किसी की भी जिंदगी बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं, तो वो ही लोग उनके लिए ताली भी बजा देते हैं, भले बाद में पत्‍थर मारते हों; लेकिन एक पल के लिए तो उसको भी छू जाता है, ये हैं मेरे लिए मरने वाले लोग हैं। ये ताकत आप में है, ये ताकत आपमें है। ऐसे उज्‍ज्‍वल भूतकाल के साथ हम आगे चलने वाले लोग हैं।

मैं आपसे चाहूंगा, 2022, आजादी के 75 साल हो रहे हैं। हमने टुकड़ों में देश नहीं चलाना चाहिए, हमने एक सपने के साथ देश जोड़ना चाहिए। हर सपने को संकल्‍प के रूप में परिवर्तित करने के लिए हमने catalytic agent के रूप में role play करना चाहिए। सवा सौ करोड़ देशवासियों के मन में ये भाव क्‍यों न जगे? 2022, आजादी के दीवानों ने जो सपने देखे और जिसके कारण हमें आजादी मिली; और जिसके कारण हम इस अवस्‍था में पहुंचे, उनके सपनों को पूरा करने के लिए हमारा भी तो कोई संकल्‍प होना चाहिए। हमारा भी तो कोई मंथन होना चाहिए। जिस इकाई को मैं देखता हूं उस इकाई के अपने संकल्‍प होंगे कि नहीं होंगे? जिन लोगों के साथ मैं कारोबार करता हूं उनके साथ, मेरे उन सपनों के साथ उनको भी मैं खीचूंगा कि नहीं खींचूंगा? मेरे साथ लूंगा कि नहीं लूंगा? अगर 2022, भारत की आजादी के 75 साल, ये भारत के सरकार के अंदर बैठा हुआ छोटे से बड़ा हर मुलाजिम का अगर सपना नहीं बनता है तो आजादी के उन दीवानों के प्रति हम अन्‍याय कर देंगे, जिन्‍होंने देश के लिए जान की बाजी लगा दी थी। ये हम सबका संकल्प होना चाहिएजी।

गंगा सफाई की बात हम करते हैं, कोई न कोई Civil Service का व्‍यक्ति तो होगा कि गंगा के तट के कोई न कोई गांव उसके charge में होगा? ऐसा कोई गांव गंगा तट का नहीं होगा जो किसी न किसी Civil Service के व्‍यक्ति के साथ जुड़ा न हो। राजीव गांधी के जमाने से गंगा सफाई की बात चल रही है, उस तट पर जो गांव है उस पर कोई न कोई Civil Service का व्‍यक्ति का charge रहा ही होगा। वो district में रहा होगा जब भी वो गांव under में आया होगा, वो तहसील में होगा तब भी आया होगा। अगर मैं Civil Service में हूं, देश गंगा सफाई चाहता है, भारत सरकार का गंगा सफाई का कार्यक्रम है, कम से कम मैं गंगा तट के उस गांव में गंदगी नहीं जाने दूंगा, इतना संकल्‍प मेरा साथी नहीं कर सकता है क्‍या? एक बार वहां In-charge मेरा अफसर तय करे, मैं जिस गांव का In-charge हूं, यहां से कोई गंदगी अब गंगा में नहीं जाएगी, कौन कहता है गंगा साफ नहीं हो सकती है? करने के तरीके यहीं बनाने होंगे। हमारे सपनो और संकल्‍पों को micro level पर management क्‍या हो, इसके साथ हमें अपने आपको जोड़ना पड़ेगा। जिम्‍मेवारी लेनी पड़ेगी, ownership का भाव, अगर इस चीजों को हम करते हैं तो हम परिवर्तन ला सकते है जी। और ये मान के चलें दुनिया भारत के प्रति एक बहुत बड़ी आशा की नजर से देख रही है। भारत के democratic values बदलते हुए विश्‍व में भारत को एक अलग तरीके से दुनिया देख रही है। कल तक हम अपना गुजारा करने के लिए जो भी करते थे, करते थे, लेकिन 2022 के पहले हमने सपने देखने चाहिए कि विश्‍व के अंदर भी भारत एक ताकत के रूप में कैसे उभरे, ये सपना देख करके हमें चलना चाहिए। और ये चुने हुए लोगों का ही सिर्फ कर्तव्‍य नहीं है, सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों का कर्तव्‍य नहीं है, शासन व्‍यवस्‍था में जीने वालों का ज्‍यादा कर्तव्‍य है। ये अगर हो और प्रशासक हो या शासक हो, हर एक का अगर एक दिशा में चलना हो, wave length एक हो, मुझे मन विश्‍वास है कि हम निश्चित परिणाम प्राप्‍त कर सकते हैं।

सरदार वल्‍लभ भाई पटेल को हम हमेशा याद करते हैं। इस व्‍यवस्‍था को भारतीय संदर्भ में विकसित करने का काम सरदार वल्‍लभ भाई पटेल के सपनों के अनुकूल बनाने का काम हर किसी ने प्रयास किया। अब हम लोगों का दायित्‍व बनता है कि बदलते हुए युग में, चुनौतियों के कालखंड में, स्‍पर्धा के वातावरण में, हम अपने आपको सिद्ध कैसे करें, और सामान्‍य मानवी के सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास करें।

मैं फिर एक बार आपको इस Civil Service Day पर देश भर में और दुनिया के हर कोने में बैठे हुए इसी क्षेत्र के हमारे साथियों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं, और देश को यहां तक पहुंचाने में आपकी जितनी भी पीढि़यों ने काम किया है, उन सबको आज उनका ऋण स्‍वीकार करता हूं, उनका धन्‍यवाद करता हूं, आप सबको शुभ कामनाएं देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Text Of Prime Minister Narendra Modi addresses BJP Karyakartas at Party Headquarters
November 23, 2024
Today, Maharashtra has witnessed the triumph of development, good governance, and genuine social justice: PM Modi to BJP Karyakartas
The people of Maharashtra have given the BJP many more seats than the Congress and its allies combined, says PM Modi at BJP HQ
Maharashtra has broken all records. It is the biggest win for any party or pre-poll alliance in the last 50 years, says PM Modi
‘Ek Hain Toh Safe Hain’ has become the 'maha-mantra' of the country, says PM Modi while addressing the BJP Karyakartas at party HQ
Maharashtra has become sixth state in the country that has given mandate to BJP for third consecutive time: PM Modi

जो लोग महाराष्ट्र से परिचित होंगे, उन्हें पता होगा, तो वहां पर जब जय भवानी कहते हैं तो जय शिवाजी का बुलंद नारा लगता है।

जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...

आज हम यहां पर एक और ऐतिहासिक महाविजय का उत्सव मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं। आज महाराष्ट्र में विकासवाद की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सुशासन की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सच्चे सामाजिक न्याय की विजय हुई है। और साथियों, आज महाराष्ट्र में झूठ, छल, फरेब बुरी तरह हारा है, विभाजनकारी ताकतें हारी हैं। आज नेगेटिव पॉलिटिक्स की हार हुई है। आज परिवारवाद की हार हुई है। आज महाराष्ट्र ने विकसित भारत के संकल्प को और मज़बूत किया है। मैं देशभर के भाजपा के, NDA के सभी कार्यकर्ताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, उन सबका अभिनंदन करता हूं। मैं श्री एकनाथ शिंदे जी, मेरे परम मित्र देवेंद्र फडणवीस जी, भाई अजित पवार जी, उन सबकी की भी भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं।

साथियों,

आज देश के अनेक राज्यों में उपचुनाव के भी नतीजे आए हैं। नड्डा जी ने विस्तार से बताया है, इसलिए मैं विस्तार में नहीं जा रहा हूं। लोकसभा की भी हमारी एक सीट और बढ़ गई है। यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान ने भाजपा को जमकर समर्थन दिया है। असम के लोगों ने भाजपा पर फिर एक बार भरोसा जताया है। मध्य प्रदेश में भी हमें सफलता मिली है। बिहार में भी एनडीए का समर्थन बढ़ा है। ये दिखाता है कि देश अब सिर्फ और सिर्फ विकास चाहता है। मैं महाराष्ट्र के मतदाताओं का, हमारे युवाओं का, विशेषकर माताओं-बहनों का, किसान भाई-बहनों का, देश की जनता का आदरपूर्वक नमन करता हूं।

साथियों,

मैं झारखंड की जनता को भी नमन करता हूं। झारखंड के तेज विकास के लिए हम अब और ज्यादा मेहनत से काम करेंगे। और इसमें भाजपा का एक-एक कार्यकर्ता अपना हर प्रयास करेगा।

साथियों,

छत्रपति शिवाजी महाराजांच्या // महाराष्ट्राने // आज दाखवून दिले// तुष्टीकरणाचा सामना // कसा करायच। छत्रपति शिवाजी महाराज, शाहुजी महाराज, महात्मा फुले-सावित्रीबाई फुले, बाबासाहेब आंबेडकर, वीर सावरकर, बाला साहेब ठाकरे, ऐसे महान व्यक्तित्वों की धरती ने इस बार पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। और साथियों, बीते 50 साल में किसी भी पार्टी या किसी प्री-पोल अलायंस के लिए ये सबसे बड़ी जीत है। और एक महत्वपूर्ण बात मैं बताता हूं। ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा के नेतृत्व में किसी गठबंधन को लगातार महाराष्ट्र ने आशीर्वाद दिए हैं, विजयी बनाया है। और ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।

साथियों,

ये निश्चित रूप से ऐतिहासिक है। ये भाजपा के गवर्नंस मॉडल पर मुहर है। अकेले भाजपा को ही, कांग्रेस और उसके सभी सहयोगियों से कहीं अधिक सीटें महाराष्ट्र के लोगों ने दी हैं। ये दिखाता है कि जब सुशासन की बात आती है, तो देश सिर्फ और सिर्फ भाजपा पर और NDA पर ही भरोसा करता है। साथियों, एक और बात है जो आपको और खुश कर देगी। महाराष्ट्र देश का छठा राज्य है, जिसने भाजपा को लगातार 3 बार जनादेश दिया है। इससे पहले गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, और मध्य प्रदेश में हम लगातार तीन बार जीत चुके हैं। बिहार में भी NDA को 3 बार से ज्यादा बार लगातार जनादेश मिला है। और 60 साल के बाद आपने मुझे तीसरी बार मौका दिया, ये तो है ही। ये जनता का हमारे सुशासन के मॉडल पर विश्वास है औऱ इस विश्वास को बनाए रखने में हम कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेंगे।

साथियों,

मैं आज महाराष्ट्र की जनता-जनार्दन का विशेष अभिनंदन करना चाहता हूं। लगातार तीसरी बार स्थिरता को चुनना ये महाराष्ट्र के लोगों की सूझबूझ को दिखाता है। हां, बीच में जैसा अभी नड्डा जी ने विस्तार से कहा था, कुछ लोगों ने धोखा करके अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की, लेकिन महाराष्ट्र ने उनको नकार दिया है। और उस पाप की सजा मौका मिलते ही दे दी है। महाराष्ट्र इस देश के लिए एक तरह से बहुत महत्वपूर्ण ग्रोथ इंजन है, इसलिए महाराष्ट्र के लोगों ने जो जनादेश दिया है, वो विकसित भारत के लिए बहुत बड़ा आधार बनेगा, वो विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि का आधार बनेगा।



साथियों,

हरियाणा के बाद महाराष्ट्र के चुनाव का भी सबसे बड़ा संदेश है- एकजुटता। एक हैं, तो सेफ हैं- ये आज देश का महामंत्र बन चुका है। कांग्रेस और उसके ecosystem ने सोचा था कि संविधान के नाम पर झूठ बोलकर, आरक्षण के नाम पर झूठ बोलकर, SC/ST/OBC को छोटे-छोटे समूहों में बांट देंगे। वो सोच रहे थे बिखर जाएंगे। कांग्रेस और उसके साथियों की इस साजिश को महाराष्ट्र ने सिरे से खारिज कर दिया है। महाराष्ट्र ने डंके की चोट पर कहा है- एक हैं, तो सेफ हैं। एक हैं तो सेफ हैं के भाव ने जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर लड़ाने वालों को सबक सिखाया है, सजा की है। आदिवासी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, ओबीसी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, मेरे दलित भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, समाज के हर वर्ग ने भाजपा-NDA को वोट दिया। ये कांग्रेस और इंडी-गठबंधन के उस पूरे इकोसिस्टम की सोच पर करारा प्रहार है, जो समाज को बांटने का एजेंडा चला रहे थे।

साथियों,

महाराष्ट्र ने NDA को इसलिए भी प्रचंड जनादेश दिया है, क्योंकि हम विकास और विरासत, दोनों को साथ लेकर चलते हैं। महाराष्ट्र की धरती पर इतनी विभूतियां जन्मी हैं। बीजेपी और मेरे लिए छत्रपति शिवाजी महाराज आराध्य पुरुष हैं। धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज हमारी प्रेरणा हैं। हमने हमेशा बाबा साहब आंबेडकर, महात्मा फुले-सावित्री बाई फुले, इनके सामाजिक न्याय के विचार को माना है। यही हमारे आचार में है, यही हमारे व्यवहार में है।

साथियों,

लोगों ने मराठी भाषा के प्रति भी हमारा प्रेम देखा है। कांग्रेस को वर्षों तक मराठी भाषा की सेवा का मौका मिला, लेकिन इन लोगों ने इसके लिए कुछ नहीं किया। हमारी सरकार ने मराठी को Classical Language का दर्जा दिया। मातृ भाषा का सम्मान, संस्कृतियों का सम्मान और इतिहास का सम्मान हमारे संस्कार में है, हमारे स्वभाव में है। और मैं तो हमेशा कहता हूं, मातृभाषा का सम्मान मतलब अपनी मां का सम्मान। और इसीलिए मैंने विकसित भारत के निर्माण के लिए लालकिले की प्राचीर से पंच प्राणों की बात की। हमने इसमें विरासत पर गर्व को भी शामिल किया। जब भारत विकास भी और विरासत भी का संकल्प लेता है, तो पूरी दुनिया इसे देखती है। आज विश्व हमारी संस्कृति का सम्मान करता है, क्योंकि हम इसका सम्मान करते हैं। अब अगले पांच साल में महाराष्ट्र विकास भी विरासत भी के इसी मंत्र के साथ तेज गति से आगे बढ़ेगा।

साथियों,

इंडी वाले देश के बदले मिजाज को नहीं समझ पा रहे हैं। ये लोग सच्चाई को स्वीकार करना ही नहीं चाहते। ये लोग आज भी भारत के सामान्य वोटर के विवेक को कम करके आंकते हैं। देश का वोटर, देश का मतदाता अस्थिरता नहीं चाहता। देश का वोटर, नेशन फर्स्ट की भावना के साथ है। जो कुर्सी फर्स्ट का सपना देखते हैं, उन्हें देश का वोटर पसंद नहीं करता।

साथियों,

देश के हर राज्य का वोटर, दूसरे राज्यों की सरकारों का भी आकलन करता है। वो देखता है कि जो एक राज्य में बड़े-बड़े Promise करते हैं, उनकी Performance दूसरे राज्य में कैसी है। महाराष्ट्र की जनता ने भी देखा कि कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल में कांग्रेस सरकारें कैसे जनता से विश्वासघात कर रही हैं। ये आपको पंजाब में भी देखने को मिलेगा। जो वादे महाराष्ट्र में किए गए, उनका हाल दूसरे राज्यों में क्या है? इसलिए कांग्रेस के पाखंड को जनता ने खारिज कर दिया है। कांग्रेस ने जनता को गुमराह करने के लिए दूसरे राज्यों के अपने मुख्यमंत्री तक मैदान में उतारे। तब भी इनकी चाल सफल नहीं हो पाई। इनके ना तो झूठे वादे चले और ना ही खतरनाक एजेंडा चला।

साथियों,

आज महाराष्ट्र के जनादेश का एक और संदेश है, पूरे देश में सिर्फ और सिर्फ एक ही संविधान चलेगा। वो संविधान है, बाबासाहेब आंबेडकर का संविधान, भारत का संविधान। जो भी सामने या पर्दे के पीछे, देश में दो संविधान की बात करेगा, उसको देश पूरी तरह से नकार देगा। कांग्रेस और उसके साथियों ने जम्मू-कश्मीर में फिर से आर्टिकल-370 की दीवार बनाने का प्रयास किया। वो संविधान का भी अपमान है। महाराष्ट्र ने उनको साफ-साफ बता दिया कि ये नहीं चलेगा। अब दुनिया की कोई भी ताकत, और मैं कांग्रेस वालों को कहता हूं, कान खोलकर सुन लो, उनके साथियों को भी कहता हूं, अब दुनिया की कोई भी ताकत 370 को वापस नहीं ला सकती।



साथियों,

महाराष्ट्र के इस चुनाव ने इंडी वालों का, ये अघाड़ी वालों का दोमुंहा चेहरा भी देश के सामने खोलकर रख दिया है। हम सब जानते हैं, बाला साहेब ठाकरे का इस देश के लिए, समाज के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है। कांग्रेस ने सत्ता के लालच में उनकी पार्टी के एक धड़े को साथ में तो ले लिया, तस्वीरें भी निकाल दी, लेकिन कांग्रेस, कांग्रेस का कोई नेता बाला साहेब ठाकरे की नीतियों की कभी प्रशंसा नहीं कर सकती। इसलिए मैंने अघाड़ी में कांग्रेस के साथी दलों को चुनौती दी थी, कि वो कांग्रेस से बाला साहेब की नीतियों की तारीफ में कुछ शब्द बुलवाकर दिखाएं। आज तक वो ये नहीं कर पाए हैं। मैंने दूसरी चुनौती वीर सावरकर जी को लेकर दी थी। कांग्रेस के नेतृत्व ने लगातार पूरे देश में वीर सावरकर का अपमान किया है, उन्हें गालियां दीं हैं। महाराष्ट्र में वोट पाने के लिए इन लोगों ने टेंपरेरी वीर सावरकर जी को जरा टेंपरेरी गाली देना उन्होंने बंद किया है। लेकिन वीर सावरकर के तप-त्याग के लिए इनके मुंह से एक बार भी सत्य नहीं निकला। यही इनका दोमुंहापन है। ये दिखाता है कि उनकी बातों में कोई दम नहीं है, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ वीर सावरकर को बदनाम करना है।

साथियों,

भारत की राजनीति में अब कांग्रेस पार्टी, परजीवी बनकर रह गई है। कांग्रेस पार्टी के लिए अब अपने दम पर सरकार बनाना लगातार मुश्किल हो रहा है। हाल ही के चुनावों में जैसे आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, हरियाणा और आज महाराष्ट्र में उनका सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस की घिसी-पिटी, विभाजनकारी राजनीति फेल हो रही है, लेकिन फिर भी कांग्रेस का अहंकार देखिए, उसका अहंकार सातवें आसमान पर है। सच्चाई ये है कि कांग्रेस अब एक परजीवी पार्टी बन चुकी है। कांग्रेस सिर्फ अपनी ही नहीं, बल्कि अपने साथियों की नाव को भी डुबो देती है। आज महाराष्ट्र में भी हमने यही देखा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसके गठबंधन ने महाराष्ट्र की हर 5 में से 4 सीट हार गई। अघाड़ी के हर घटक का स्ट्राइक रेट 20 परसेंट से नीचे है। ये दिखाता है कि कांग्रेस खुद भी डूबती है और दूसरों को भी डुबोती है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ी, उतनी ही बड़ी हार इनके सहयोगियों को भी मिली। वो तो अच्छा है, यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस के सहयोगियों ने उससे जान छुड़ा ली, वर्ना वहां भी कांग्रेस के सहयोगियों को लेने के देने पड़ जाते।

साथियों,

सत्ता-भूख में कांग्रेस के परिवार ने, संविधान की पंथ-निरपेक्षता की भावना को चूर-चूर कर दिया है। हमारे संविधान निर्माताओं ने उस समय 47 में, विभाजन के बीच भी, हिंदू संस्कार और परंपरा को जीते हुए पंथनिरपेक्षता की राह को चुना था। तब देश के महापुरुषों ने संविधान सभा में जो डिबेट्स की थी, उसमें भी इसके बारे में बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी। लेकिन कांग्रेस के इस परिवार ने झूठे सेक्यूलरिज्म के नाम पर उस महान परंपरा को तबाह करके रख दिया। कांग्रेस ने तुष्टिकरण का जो बीज बोया, वो संविधान निर्माताओं के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है। और ये विश्वासघात मैं बहुत जिम्मेवारी के साथ बोल रहा हूं। संविधान के साथ इस परिवार का विश्वासघात है। दशकों तक कांग्रेस ने देश में यही खेल खेला। कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए कानून बनाए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक की परवाह नहीं की। इसका एक उदाहरण वक्फ बोर्ड है। दिल्ली के लोग तो चौंक जाएंगे, हालात ये थी कि 2014 में इन लोगों ने सरकार से जाते-जाते, दिल्ली के आसपास की अनेक संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी थीं। बाबा साहेब आंबेडकर जी ने जो संविधान हमें दिया है न, जिस संविधान की रक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। संविधान में वक्फ कानून का कोई स्थान ही नहीं है। लेकिन फिर भी कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए वक्फ बोर्ड जैसी व्यवस्था पैदा कर दी। ये इसलिए किया गया ताकि कांग्रेस के परिवार का वोटबैंक बढ़ सके। सच्ची पंथ-निरपेक्षता को कांग्रेस ने एक तरह से मृत्युदंड देने की कोशिश की है।

साथियों,

कांग्रेस के शाही परिवार की सत्ता-भूख इतनी विकृति हो गई है, कि उन्होंने सामाजिक न्याय की भावना को भी चूर-चूर कर दिया है। एक समय था जब के कांग्रेस नेता, इंदिरा जी समेत, खुद जात-पात के खिलाफ बोलते थे। पब्लिकली लोगों को समझाते थे। एडवरटाइजमेंट छापते थे। लेकिन आज यही कांग्रेस और कांग्रेस का ये परिवार खुद की सत्ता-भूख को शांत करने के लिए जातिवाद का जहर फैला रहा है। इन लोगों ने सामाजिक न्याय का गला काट दिया है।

साथियों,

एक परिवार की सत्ता-भूख इतने चरम पर है, कि उन्होंने खुद की पार्टी को ही खा लिया है। देश के अलग-अलग भागों में कई पुराने जमाने के कांग्रेस कार्यकर्ता है, पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, जो अपने ज़माने की कांग्रेस को ढूंढ रहे हैं। लेकिन आज की कांग्रेस के विचार से, व्यवहार से, आदत से उनको ये साफ पता चल रहा है, कि ये वो कांग्रेस नहीं है। इसलिए कांग्रेस में, आंतरिक रूप से असंतोष बहुत ज्यादा बढ़ रहा है। उनकी आरती उतारने वाले भले आज इन खबरों को दबाकर रखे, लेकिन भीतर आग बहुत बड़ी है, असंतोष की ज्वाला भड़क चुकी है। सिर्फ एक परिवार के ही लोगों को कांग्रेस चलाने का हक है। सिर्फ वही परिवार काबिल है दूसरे नाकाबिल हैं। परिवार की इस सोच ने, इस जिद ने कांग्रेस में एक ऐसा माहौल बना दिया कि किसी भी समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए वहां काम करना मुश्किल हो गया है। आप सोचिए, कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकता आज सिर्फ और सिर्फ परिवार है। देश की जनता उनकी प्राथमिकता नहीं है। और जिस पार्टी की प्राथमिकता जनता ना हो, वो लोकतंत्र के लिए बहुत ही नुकसानदायी होती है।

साथियों,

कांग्रेस का परिवार, सत्ता के बिना जी ही नहीं सकता। चुनाव जीतने के लिए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं। दक्षिण में जाकर उत्तर को गाली देना, उत्तर में जाकर दक्षिण को गाली देना, विदेश में जाकर देश को गाली देना। और अहंकार इतना कि ना किसी का मान, ना किसी की मर्यादा और खुलेआम झूठ बोलते रहना, हर दिन एक नया झूठ बोलते रहना, यही कांग्रेस और उसके परिवार की सच्चाई बन गई है। आज कांग्रेस का अर्बन नक्सलवाद, भारत के सामने एक नई चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। इन अर्बन नक्सलियों का रिमोट कंट्रोल, देश के बाहर है। और इसलिए सभी को इस अर्बन नक्सलवाद से बहुत सावधान रहना है। आज देश के युवाओं को, हर प्रोफेशनल को कांग्रेस की हकीकत को समझना बहुत ज़रूरी है।

साथियों,

जब मैं पिछली बार भाजपा मुख्यालय आया था, तो मैंने हरियाणा से मिले आशीर्वाद पर आपसे बात की थी। तब हमें गुरूग्राम जैसे शहरी क्षेत्र के लोगों ने भी अपना आशीर्वाद दिया था। अब आज मुंबई ने, पुणे ने, नागपुर ने, महाराष्ट्र के ऐसे बड़े शहरों ने अपनी स्पष्ट राय रखी है। शहरी क्षेत्रों के गरीब हों, शहरी क्षेत्रों के मिडिल क्लास हो, हर किसी ने भाजपा का समर्थन किया है और एक स्पष्ट संदेश दिया है। यह संदेश है आधुनिक भारत का, विश्वस्तरीय शहरों का, हमारे महानगरों ने विकास को चुना है, आधुनिक Infrastructure को चुना है। और सबसे बड़ी बात, उन्होंने विकास में रोडे अटकाने वाली राजनीति को नकार दिया है। आज बीजेपी हमारे शहरों में ग्लोबल स्टैंडर्ड के इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। चाहे मेट्रो नेटवर्क का विस्तार हो, आधुनिक इलेक्ट्रिक बसे हों, कोस्टल रोड और समृद्धि महामार्ग जैसे शानदार प्रोजेक्ट्स हों, एयरपोर्ट्स का आधुनिकीकरण हो, शहरों को स्वच्छ बनाने की मुहिम हो, इन सभी पर बीजेपी का बहुत ज्यादा जोर है। आज का शहरी भारत ईज़ ऑफ़ लिविंग चाहता है। और इन सब के लिये उसका भरोसा बीजेपी पर है, एनडीए पर है।

साथियों,

आज बीजेपी देश के युवाओं को नए-नए सेक्टर्स में अवसर देने का प्रयास कर रही है। हमारी नई पीढ़ी इनोवेशन और स्टार्टअप के लिए माहौल चाहती है। बीजेपी इसे ध्यान में रखकर नीतियां बना रही है, निर्णय ले रही है। हमारा मानना है कि भारत के शहर विकास के इंजन हैं। शहरी विकास से गांवों को भी ताकत मिलती है। आधुनिक शहर नए अवसर पैदा करते हैं। हमारा लक्ष्य है कि हमारे शहर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहरों की श्रेणी में आएं और बीजेपी, एनडीए सरकारें, इसी लक्ष्य के साथ काम कर रही हैं।


साथियों,

मैंने लाल किले से कहा था कि मैं एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लाना चाहता हूं, जिनके परिवार का राजनीति से कोई संबंध नहीं। आज NDA के अनेक ऐसे उम्मीदवारों को मतदाताओं ने समर्थन दिया है। मैं इसे बहुत शुभ संकेत मानता हूं। चुनाव आएंगे- जाएंगे, लोकतंत्र में जय-पराजय भी चलती रहेगी। लेकिन भाजपा का, NDA का ध्येय सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, हमारा ध्येय सिर्फ सरकारें बनाने तक सीमित नहीं है। हम देश बनाने के लिए निकले हैं। हम भारत को विकसित बनाने के लिए निकले हैं। भारत का हर नागरिक, NDA का हर कार्यकर्ता, भाजपा का हर कार्यकर्ता दिन-रात इसमें जुटा है। हमारी जीत का उत्साह, हमारे इस संकल्प को और मजबूत करता है। हमारे जो प्रतिनिधि चुनकर आए हैं, वो इसी संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें देश के हर परिवार का जीवन आसान बनाना है। हमें सेवक बनकर, और ये मेरे जीवन का मंत्र है। देश के हर नागरिक की सेवा करनी है। हमें उन सपनों को पूरा करना है, जो देश की आजादी के मतवालों ने, भारत के लिए देखे थे। हमें मिलकर विकसित भारत का सपना साकार करना है। सिर्फ 10 साल में हमने भारत को दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी बना दिया है। किसी को भी लगता, अरे मोदी जी 10 से पांच पर पहुंच गया, अब तो बैठो आराम से। आराम से बैठने के लिए मैं पैदा नहीं हुआ। वो दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर रहेगा। हम मिलकर आगे बढ़ेंगे, एकजुट होकर आगे बढ़ेंगे तो हर लक्ष्य पाकर रहेंगे। इसी भाव के साथ, एक हैं तो...एक हैं तो...एक हैं तो...। मैं एक बार फिर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, देशवासियों को बधाई देता हूं, महाराष्ट्र के लोगों को विशेष बधाई देता हूं।

मेरे साथ बोलिए,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

बहुत-बहुत धन्यवाद।