'ധാര്‍മികതയുടെയും വിശ്വസ്തതയുടെയും നിശ്ചയദാര്‍ഢ്യത്തിന്റെയും നേതൃത്വത്തിന്റെയും പ്രതിഫലനമാണു സ്ത്രീകള്‍''
''രാഷ്ട്രത്തിനു ദിശാബോധം പകരാന്‍ സ്ത്രീകള്‍ക്കാകുമെന്നും അവര്‍ക്കതിനു കഴിയണമെന്നും നമ്മുടെ വേദങ്ങളും പാരമ്പര്യവും ആഹ്വാനം ചെയ്യുന്നു''
''സ്ത്രീകളുടെ പുരോഗതി എല്ലായ്‌പ്പോഴും രാജ്യത്തിന്റെ ശാക്തീകരണത്തിനു കരുത്തേകുന്നു''
''ഇന്ത്യയുടെ വികസനയാത്രയില്‍ രാജ്യം മുന്‍ഗണനയേകുന്നത് സ്ത്രീകളുടെ പൂര്‍ണപങ്കാളിത്തത്തിന്''
''സ്റ്റാന്‍ഡപ്പ് ഇന്ത്യക്കുകീഴിലുള്ള വായ്പകളില്‍ 80 ശതമാനവും സ്ത്രീകളുടെ പേരിലാണ്. മുദ്ര യോജനപ്രകാരം 70 ശതമാനം വായ്പകളും നല്‍കിയതു നമ്മുടെ സഹോദരിമാര്‍ക്കും പെണ്‍മക്കള്‍ക്കുമാണ്.''

नमस्कार !

मैं आप सभी को, देश की सभी महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अनेक अनेक शुभकामनाएं देता हूँ। इस अवसर पर देश की आप महिला संतों और साध्वियों द्वारा इस अभिनव कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। मैं आप सभी का अभिनंदन करता हूँ।

माताओं बहनों,

कच्छ की जिस धरती पर आपका आगमन हुआ है, वो सदियों से नारीशक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक रही है। यहाँ माँ आशापूरा स्वयं मातृशक्ति के रूप में विराजती हैं। यहां की महिलाओं ने पूरे समाज को कठोर प्राकृतिक चुनौतियों, सारी विपरीत परिस्‍थ‍ितियाँ उसके बीच जीनासिखाया है, जूझना सिखाया है और जीतना भी सिखाया है।जल संरक्षण को लेकर कच्छ की महिलाओं ने जो भूमिका निभाई, पानी समिति बनाकर जो कार्यकिया, उसे अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी सम्मानित किया है। कच्छ की महिलाओं ने अपने अथक परिश्रम से कच्छ की सभ्यता, संस्कृति को भी जीवंत बनाए रखाहै। कच्छ के रंग, विशेषरूप से यहाँ का handicraft इसका बड़ा उदाहरण है। ये कलाएं और ये कौशल अब तो पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनारहाहै।

आप इस समय भारत की पश्चिमी सीमा केआखिरीगांव में हैं। यानीगुजरात का, हिंदुस्तान की सीमा का आखिरी गांव है। उसके बाद कोई जन जीवन नहीं है। फिर दूसरा देश शुरू हो जाता है।सीमावर्ती गाँवों में वहाँ के लोगों पर देश की विशेष जिम्मेदारियाँ रहती हैं। कच्छ की वीरांगना नारियों ने हमेशा इस दायित्व का भी बखूबी निर्वहन किया है।अब आप कल से वहां हो, शायद जरूर आपने किसी न किसी से सुना होगा, 1971 का जबयुद्धचल रहा था, 1971 में, युद्धमेंदुश्मनोंने भुजके एयरपोर्ट हमला बोला। एयरस्ट्रिपपर बमवर्षा की और हमारी जो हवाई पट्टी थी, उसको नष्‍ट कर दिया। ऐसे समय, युद्ध के समय एक और हवाई पट्टी की जरूरत थी। आप सबको गर्व होगा तब कच्छकी महिलाओं ने अपने जीवन की परवाह न करके रातों-रात एयर स्ट्रिपब नाने का काम किया और भारत की सेना की लड़ाई के लिए सुविधा बनाई थी। इतिहास की बहुत महत्‍वपूर्ण घटना है। उसमें से कई माताएं-बहनें आज भी हमारे साथ अगर आप जानकारी लोगे तो उनकी आयु बहुत ज्‍यादा हो गई है लेकिन फिर भी मुझे भी कई बार मिलकर के उनसे बातें करने का मौका मिला है। तो फिरमहिलाओं के ऐसे असाधारण साहस और सामर्थ्य की इस धरती से हमारी मातृशक्ति आज समाज के लिए एक सेवा यज्ञ शुरू कर रही हैं।

माताओं बहनों,

हमारे वेदों ने महिलाओं का आह्वान 'पुरन्धि: योषा' ऐसेमंत्रों से किया है। यानी, महिलाएं अपने नगर, अपने समाज की ज़िम्मेदारी संभालने में समर्थ हों, महिलाएं देश को नेतृत्व दें। नारी, नीति, निष्ठा, निर्णय शक्ति और नेतृत्व की प्रतिबिंब होती है।उसका प्रतिनिधित्‍व करती हैं।इसीलिए, हमारे वेदों ने, हमारी परंपरा ने ये आवाहन किया है कि नारी सक्षम हों, समर्थ हों, और राष्ट्र को दिशा दें।हम लोग एक बात कभी-कभी बोलते हैं, नारी तू नारायणी! लेकिन और भी एक बात हमने सुनी होगी बड़ा ध्यान से सुनने जैसा है, हमारे यहां कहा जाता है, नर करणी करे तो नारायण हो जाये! यानी नर को नारायण होने के लिये कुछ करना पड़ेगा। नर करणी करे तो नारायण हो जाये! लेकिन नारी के लिये क्‍या कहा है, नारी तू नारायणी! अब देखिये कि कितना बड़ा फर्क है। हम बोलते रहते हैं लेकिन अगर सोचे थोड़ा तो हमारे पूर्वजों ने कितना गहन चिंतन से हमें पुरुष के लिये कहा, नर करणी करे तो नारायण हो जाये! लेकिन माताएं-बहनों के लिये कहा, नारी तू नारायणी!

माताओं बहनों,

भारत, विश्व की ऐसी बौद्धिक परंपरा का वाहक है, जिसका अस्तित्व उसके दर्शन पर केन्द्रित रहा है। और इस दर्शन का आधार उसकी आध्यात्मिक चेतना रही है। और ये आध्यात्मिक चेतना उसकी नारी शक्ति पर केन्द्रित रही है। हमने सहर्ष ईश्वरीय सत्ता को भी नारी के रूप में स्थापित किया है। जब हम ईश्वरीयसत्ता की और ईश्‍वरीय सत्ताओंको स्त्री और पुरुष दोनों रूपों में देखते हैं, तो स्वभाव से ही, पहली प्राथमिकता नारी सत्ता को देते हैं। फिर चाहे वो सीता-राम हों, राधा-कृष्ण हों, गौरी-गणेश हों, या लक्ष्मी-नारायण हों! आप लोगों से बेहतर कौन हमारी इस परंपरा से परिचित होगा। हमारे वेदों में घोषा, गोधा, अपाला और लोपमुद्राअनेक विदनाम हैं जो वैसे हीऋषिकाएं रही हैंहमारे यहां। गार्गी और मैत्रयी जैसी विदुषियों ने वेदान्त के शोध को दिशा दी है।

उत्तर में मीराबाई से लेकर दक्षिण में संत अक्का महादेवी तक, भारत की देवियों ने भक्ति आंदोलन से लेकर ज्ञान दर्शन तक समाज में सुधार और परिवर्तन को स्वर दिया है। गुजरात और कच्छ की इस धरती पर भी सती तोरल, गंगा सती, सती लोयण, रामबाई, और लीरबाईऐसी अनेक देवियों के नाम, आप सौराष्ट्र में जाओ, घर-घर घूमते हैं।इसी तरह आप हर राज्य में हर क्षेत्र में देखिए, इस देश में शायद ही ऐसा कोई गाँव हो, शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो, जहां कोई न कोई ग्रामदेवी, कुलदेवी वहाँ की आस्था का केंद्र न हों! ये देवियाँ इस देश की उस नारी चेतना का प्रतीक हैं जिसने सनातन काल से हमारे समाज का सृजन किया है। इसी नारी चेतना ने आजादी के आंदोलन में भी देश में स्वतंत्रता की ज्वाला को प्रज्वलित रखा।और ये हम याद रखें कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हम याद करें और जब आजादी का अमृत महोत्सव हम मना रहे हैं तो भारत के आजादी के आंदोलन की पीठिका, उसको तैयार करने में भक्ति आंदोलन का बहुत बड़ा रोल था।

हिंदुस्तान के हर कोने में कोई न कोई ऋषि, मुनि, संत, आचार्य पैदा हुए जिन्होंने भारत की चेतनाओं को प्रज्‍वलित करने का अद्भुत काम किया था। और उसकी के प्रकाश में, उसी चेतना के रूप में से देश स्वतंत्रता के आंदोलन में सफल हुआ। आज हम एक ऐसे मुकाम में है कि आजादी के 75 साल हो गए, हमारी आध्यात्मिक यात्रा चलती रहेगी। लेकिन सामाजिक चेतना, सामाजिक सामर्थ्य, सामाजिक विकास, समाज में परिवर्तन, इसका समय हर नागरिक की जिम्मेदारी से जुड़ चुका है। और तब जब इतनी बड़ी तादाद में संत परंपरा की सब माताएं-बहनें बैठी हैं तो मैं समझता हूं कि मुझे आपके साथ वो बात भी करनी चाहिए।और आज मेरा सौभाग्य है कि मैं, नारी चेतना के ऐसे ही एक जागृत समूह से बात कर रहा हूं।

माताओं बहनों,

जो राष्ट्र इस धरती को माँ स्वरूप मानता हो, वहाँ महिलाओं की प्रगति राष्ट्र के सशक्तिकरण को हमेशा बल देती है। आज देश की प्राथमिकता, महिलाओं का जीवन बेहतर बनाने पर है, आज देश की प्राथमिकता भारत की विकास यात्रा में महिलाओं की संपूर्ण भागीदारी में है और इसलिये हमारी माताओं-बहनों कीमुश्किलें कम करने परहम जोर दे रहेहैं। हमारे यहां तो ये स्थिति थी कि करोड़ों माताओं-बहनों को शौच तक के लिए घर के बाहर खुले में जाना पड़ता था। घर में शौचालय ना होने की वजह से उन्हें कितनी पीड़ा सहनी पड़ती थी, इसका अंदाजामुझे शब्दों में वर्णन करने की आवश्यकता आपके सामने नहीं है।ये हमारी ही सरकार है जिसने महिलाओं की इस पीड़ा को समझा।

15 अगस्‍त को लाल किले पर से मैंने इस बात को देश के सामने रखा औरहमने देशभर में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 11 करोड़ से ज्यादा शौचालयबनाए।अब बहुत लोगों को लगता होगा कि ये कोई काम है क्‍या? लेकिन अगर नहीं है तो ऐसा काम भी पहले कोई नहीं कर पाया था।आप सबने देखा है कि गाँवों में माताओं-बहनों को लकड़ी और गोबर से चूल्हे पर खाना बनाना पड़ता। धुएँ की तकलीफ को महिलाओं की नियति मान लिया गया था। इस तकलीफ से मुक्ति दिलाने के लिए ही देश ने 9 करोड़ से ज्यादा उज्ज्वला गैस उन्हें दिए, उन्हें धुएँ से आज़ादी दिलाई। पहले महिलाओं के, खासकर गरीब महिलाओं के बैंक खाते भी नहीं होते थे। इस कारण उनकी आर्थिक शक्ति कमजोर रहती थी। हमारी सरकार ने 23 करोड़ महिलाओं को जनधन खातों के जरिए बैंक से जोड़ा है।वरना पहले हमें मालूम था किचन में, रसोड़े में अगर गेहूं का डिब्बा है तो महिला उसमें पैसे रख के रखती थी। चावल का डिब्बा है तो नीचे दबा कर के रखती थी। आज हमने व्यवस्था की है कि हमारी माताएं-बहनें पैसे बैंक में जमा करें।आज गाँव-गाँव में महिलाएं सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स बनाकर, छोटे उद्योगों के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति दे रही हैं।

महिलाओं के पास कौशल की कभी कोई कमी नहीं है। लेकिन अब वही कौशल उनका और उनके परिवार की ताकत बढ़ा रहा है। हमारी बहनें-बेटियां आगे बढ़ सकें, हमारी बेटियांअपने सपने पूरे कर सकें, अपनी इच्‍छा के अनुसारअपना कुछ काम कर सकें, इसके लिए सरकारअ‍नेक माध्‍यमों सेउन्हें आर्थिक मदद भी दे रही है। आज 'स्टैंडअप इंडिया' के तहत 80 प्रतिशत लोनहमारी माताओं-बहनोंके नाम पर हैं। मुद्रा योजना के तहत करीब 70 प्रतिशत लोन हमारी बहनों-बेटियों को दिए गए हैंऔर ये हजारों-करोड़ रुपये का मामला है। एक और विशेष कार्य हुआ है जिसका जिक्र मैं आपके सामने जरूर करना चाहता हूं। हमारी सरकार ने पीएम आवास योजना के जो 2 करोड़ से अधिक घर बनाकर दिए हैं, क्योंकि हमारा एक सपना है कि हिंदुस्तान में हर गरीब के पास अपना पक्का घर हो।

पक्की छत वाला घर हो और घर भी मतलब चारदीवारी वाला नहीं, घर ऐसा जिसमें शौचालय हो, घर ऐसा जिसमें नल से जल हो, घर ऐसा जिसमें बिजली का कनेक्शन हो, घर ऐसा जिसके अंदर उनको जो प्राथमिक सुविधा हैं, गैस कनेक्‍शन समेत की, ये सारी सुविधाओं वाला घर मिले, दो करोड़ गरीब परिवार के लिए दो करोड़ घर बनें हमारे आने के बाद। ये आंकड़ा बहुत बड़ा है। अब दो करोड़ घर आज घर की कीमत कितनी होती है, आप लोग सोचते होंगे कितनी होती है, डेढ़ लाख, दो लाख, ढाई लाख, तीन लाख, छोटा सा घर होगा तो इसका मतलब दो करोड़ महिलाओं के नाम जो घर बनें हैं मतलब दो करोड़ गरीब महिलाएं लखपति बनीं हैं। जब हम लखपति सुनते हैं तो कितना बड़ा लगता था। लेकिन एक बार गरीबों के प्रति संवेदना हो, काम करने का इरादा हो, तो कैसे काम होता है और आज बहुत एक इन दो करोड़ में से बहुत एक हमारी माताएं-बहनें, उनको येमालिकाना हकमिलाहै।

एक समय था जब महिलाओं के नाम ना जमीन होती थी, ना दुकानहोती थीऔर ना ही घर, कहीं भी पूछ लीजिए कि भई जमीन किसके नाम पर है, या तो पति के नाम पर या बेटे के नाम पर या भाई के नाम पर। दुकान किसके नाम पर, पति, बेटा या भाई। गाड़ी लाएं, स्कूटर लाएं तो किसके नाम पर, पति, बेटा या भाई। महिला के नाम पर ना घर होता है, ना गाड़ी होती है, कुछ नहीं होता है जी। पहली बार हमने निर्णय किया कि हमारी माताओं-बहनों के नाम पर भी संपत्ति होगी और इसलिये हमने ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय किये हैं। और इसमें जब उनके पास ये ताकत आती है ना, ये empowerment होता है, तोघर मेंजबआर्थिक फैसले लेनेकी बात आती है तो माताएं-बहनें इसमें हिस्सेदार बनती हैं।उनकी सहभागिताबढ़ जाती है वरना पहले क्‍या होता था घर में बेटा और बाप कुछ व्यापार और बिजनेस की बात करते हैं और किचन में से मां आकर के थोड़ी मुंडी रखती है, तो तुरंत वो कह देते थे जाओ-जाओ तुम किचन में काम करो, हम बेटे के साथ बात कर रहे हैं।

यानी ये समाज की स्थिति हमने देखी है। आज माताएं-बहनें empowerment होकर के कहती हैं, नी ये गलत कर रहे हो, ये करो। ऐसा करने से ये नुकसान होगा, ऐसा करने से ये लाभ होगा। आज उनकी भागीदारी बढ़ रही है।माताओं बहनों, बेटियाँ पहले भी इतनी ही सक्षम थीं, लेकिन पहले उनके सपनों के सामने पुरानी सोच और अव्यवस्थाओं का बंधन था। बेटियाँ कुछ काम करती थीं, नौकरी करती थीं, तो कई बार उन्हें मातृत्व के समय नौकरी छोड़नी पड़ती थी।अब उस समय उसको जब सबसे ज्‍यादा जरूरत हो, पैसो की भी जरूरत हो, बाकी सहायता की जो उसी समय नौकरी छोड़नी पड़े, तो उसके पेट में जो बच्‍चा है, उस पर प्रभाव होता है।कितनी ही लड़कियों को महिला अपराधों के डर से काम छोड़ना पड़ता था।हमनेयेसारीस्थितियों कोबदलने के लिए बहुत सारे कदम उठाएहैं।

हमने मातृत्व अवकाश को 12 हफ्तों से बढ़ाकर 26 हफ्तेकर दिया है यानी एक प्रकार से 52 हफ्तों का वो साल होता है, 26 हफ्ते छुट्टी दे देते हैं।हमने वर्क प्लेस पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए हैं। बलात्कारऔर हमारे देश में हमारी सरकार ने बहुत बड़ा काम किया है, बलात्‍कारजैसे जघन्य अपराधों पर फांसी जैसी सजा का भी प्रावधान किया है। इसी तरह, बेटे-बेटी को एक समान मानते हुए सरकार बेटियों के विवाह की आयु कोभी 21 वर्ष करनेपर विचार कर रही है, संसद के सामने एक प्रस्‍ताव है।आज देश सेनाओं में बेटियों को बड़ी भूमिकाओं को बढ़ावा दे रहा है, सैनिक स्कूलों में बेटियों के दाखिले की शुरुआत हुई है।

माताओं-बहनों,

नारीशक्ति के सशक्तिकरण की इस यात्रा को तेज गति से आगे बढ़ाना हम सभी का दायित्व है। आप सभी का मुझ पर इतना स्नेह रहा है, आपके इतने आशीर्वाद रहे हैं, आपके बीच में ही मैं पला-बढ़ा हूं, आपके बीच से ही निकला हुआ हूं और इसलिये आज मन करता हैकि मैंआपसेकुछ आग्रहकरूं। कुछ बातों के लिये मैं आपको कहूंगा, आप भी कुछ मेरा मदद कीजिए। अब क्‍या काम करने हैं? मैं कुछ कामआपसेबतानाचाहता हूं।हमारे जो कुछ मंत्री भी वहां आए हैं, कुछ हमारे कार्यकर्ता आए हैं उन्होंने भी शायद बताया होगा या शायद आगे बताने वाले होंगे।

अब देखियेकुपोषण, हम कहीं पर भी हों, हम गृहस्ती हों या सन्यासी हों, लेकिन क्‍या भारत का बच्चा या बच्ची एक कुपोषित हो, हमें दर्द होता है क्या? दर्द होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? क्या इसको हम scientific तरीके से उसका समाधान कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं? क्या जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं और इसलिए मैं कहूंगा कुपोषण केखिलाफ देश में जो अभियान चल रहा है, उसमें आप बहुत बड़ी मदद कर सकती हैं। ऐसे ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान में भी आपकी बड़ी भूमिका है। बेटियां ज्यादा से ज्यादा संख्या में न केवल स्कूल जाएं, बल्कि पढ़ाई भी पूरी करें, इसके लिए आप लोगों को लगातारउनसे बात करनी चाहिए। आपने भी कभी बच्चियों से बुलाकर के उनसे बात करनी चाहिए।

अपने मठ में, मंदिर में, जहां भी, उनको प्रेरित करना चाहिए। अबसरकार एक अभियान शुरू करने जा रही है जिसमें बेटियों के स्कूल प्रवेश का उत्सव मनाया जाएगा। इसमें भी आपकी सक्रिय भागीदारी बहुत मदद करेगी। ऐसे ही एक विषय है, वोकल फॉर लोकल का।बार-बार मेरे मुंह से आपने सुना होगा, आप मुझे बताईये महात्‍मा गांधी हमें कह कर के गए, लेकिन हम लोग सब भूल गए। आज दुनिया में जो हालत हमने देखी है, दुनिया में वही देश चल सकता है, जो अपने पैरों पर खड़ा हो। जो बाहर से चीजे लाकर के गुजारा करता हो, वो कुछ नहीं कर सकता है। अब इसलियेवोकल फॉर लोकलहमारीअर्थव्यवस्था से जुड़ा एक बहुत अहम विषयबन गयाहै, लेकिन इसका महिला सशक्तिकरण सेभीबहुत गहरा संबंध है।

ज़्यादातर स्थानीय उत्पादों की ताकत महिलाओं के हाथों में होती है। इसलिए, अपने संबोधनों में, अपने जागरूकता अभियानों में आप स्थानीय उत्पादों के उपयोग के लिए लोगों को जरूर प्रोत्साहित करें।लोग, अपने घर में आपके जो भक्त लोग हैं न उनको कहो भई तुम्‍हारे घर में विदेशी चीजें कितनी हैं और हिंदुस्तान की चीजें कितनी हैं, जरा हिसाब लगाओ। छोटी-छोटी चीजें हम विदेशी घुस गई है हमारे घर में। ये हमारे देश का व्यक्ति क्‍या… मैंने देखा छाता, वो छाता बोला विदेशी छाता है। अरे भई हमारे देश में छाता सदियों से बन रहा है और विदेशी लाने की क्या जरूरत है। हो सकता है दो-चार रुपये ज्‍यादा लगेगा, लेकिन हमारे कितने लोगों को रोजी-रोटी मिलेगी। और इसलिये मैं मानता हूं कि इतनी चीजें हैं कि हमें बाहर का लाने का हमें शौक बन गया है।

आप लोगों को उस प्रकार का जीवन जीयें, आप उस बात पर लोगों को प्रेरित कर सकते हैं। लोगों को आप दिशा दे सकते हैं। और इसके कारण भारत की मिट्टी की बनी हुई चीजों, भारत की मिट्टी में बनी हुई चीजों, भारत के लोगों का जिसमें पसीना हो, ऐसी चीजों और जब मैं ये वोकल फॉर लोकल कहता हूं तो लोगों को लगता है दीवाली के दीये, दीवाली दीये नहीं भाई, हर चीज की ओर देखिये, सिर्फ दीवाली के दीये पर मत जाइये।ऐसे ही आप जब हमारे बुनकरोंभाईयों-बहनों को, हस्त कारीगरों से मिलें तो उन्हेंसरकार का एकGeMपोर्टलहै, GeMपोर्टलके विषय में बताइये।भारत सरकार ने ये एकऐसापोर्टल बनाया है जिसकी मदद से कोई भी दूर-सुदूर मेंकहीं भी रहता हो, वो अपनी चीज जो बनाता है, वो सरकार कोअपने बेच सकता है।

एक बहुत बड़ा काम हो रहा है।एक आग्रह मेरा ये भी है कि जब भी आप समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों से मिलें, उनसेबात करेंनागरिकों के कर्तव्यों पर बल देने वाली चाहिए। नागरिक धर्म की भावना की बात हमने बतानी चाहिए। और आप लोग तो पितृ धर्म, मातृ धर्म, ये सब बताते ही हैं। देश के लिये नागरिक धर्म उतना ही जरूरी होता है। संविधान में निहित इस भावना को हमें मिलकरमजबूत करना है। इसी भावना को मजबूत करते हुए हम नए भारत के निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त कर पाएंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि, देश को आध्यात्मिक और सामाजिक नेतृत्व देते हुए आप हर जन को राष्ट्र निर्माण की इस यात्रामें जोड़ेंगे।आपकाआशीर्वाद और मार्गदर्शन से हम नए भारत का सपना जल्द ही साकारकर पाएंगे और फिर आप लोगों ने देखा है हिंदुस्तान का आखिरी गांव का नजारा आपको कितना आनंद देता होगा। शायद आप में से कुछ लोग सफेद रण को देखने गए होंगे। कुछ लोग शायद आज जाने वाले होंगे। उसका अपना एक सौंदर्य ही है। और उसमें एक आध्यात्मिक अनुभूति भी कर सकते हैं। कुछ पल अकेले थोड़े दूर जाकर के बैठेंगे। एक नई चेतना का अनुभव करेंगे क्‍योंकि मेरे लिये किसी जमाने में इस जगह का बड़ा दूसरा उपयोग होता था। तो मैं लम्बे अर्से तक इस मिट्टी से जुड़ा हुआ इंसान हूं।

और आप जब वहां आए हो तो आप जरूर देखिए कि उसका अपना एक विशेष अनुभव होता है, उस अनुभव को आप प्राप्त कीजिए। मैं आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। हमारे कुछ साथी वहां हैं, बहुत गहराई से उनसे बात कीजिए। आप समाज के लिये भी आगे आइए। आजादी के आंदोलन में संत परंपरा ने बहुत बड़ा रोल किया था। आजादी के 75 साल बाद देश को आगे बढ़ाने में संत परंपरा आगे आए, अपने दायित्व को सामाजिक दायित्व के रूप में निभाए। यही मेरी आपसे अपेक्षा है।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद!

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PM Modi visits the Indian Arrival Monument
November 21, 2024

Prime Minister visited the Indian Arrival monument at Monument Gardens in Georgetown today. He was accompanied by PM of Guyana Brig (Retd) Mark Phillips. An ensemble of Tassa Drums welcomed Prime Minister as he paid floral tribute at the Arrival Monument. Paying homage at the monument, Prime Minister recalled the struggle and sacrifices of Indian diaspora and their pivotal contribution to preserving and promoting Indian culture and tradition in Guyana. He planted a Bel Patra sapling at the monument.

The monument is a replica of the first ship which arrived in Guyana in 1838 bringing indentured migrants from India. It was gifted by India to the people of Guyana in 1991.