Dr. Ambedkar had united the country socially through the Constitution: PM Modi

Published By : Admin | March 21, 2016 | 12:02 IST
26, Alipur Road will be an iconic building of Delhi and for us it will be a source of inspiration: PM Modi
Babasaheb was the voice of the marginalised. He is a Vishwa Manav: PM Modi
Dr. Ambedkar called for labour reforms & at the same time thought about industrialisation for India's progress: PM
Dr. Ambedkar had united the country socially through the Constitution: PM Modi
Dr. Ambedkar raised his voice for all those who suffered injustice: PM Modi

आज मुझे Ambedkar Memorial Lecture देने के लिए अवसर मिला है। यह छठा लेक्‍चर है। लेकिन यह मेरा सौभाग्‍य कहो, या देश को सोचने का कारण कहो, मैं पहला प्रधानमंत्री हूं जो यहां बोलने के लिए आया हूं। मैं मेरे लिए इसे सौभाग्‍य मानता हूं। और इसके साथ-साथ भारत सरकार की एक योजना को साकार करने का अवसर भी मिला है कि 26-अलीपुर जहां पर बाबा साहब का परिनिर्वाण का स्‍थल है वहां एक भव्‍य प्रेरणा स्‍थली बनेगी। किसी के भी मन में सवाल आ सकता है कि जिस महापुरुष ने 1956 में हमारे बीच से विदाई ली, आज 60 साल के बाद वहां पर कोई स्‍मारक की शुरुआत हो रही है। 60 साल बीत गए, 60 साल बीत गए।

मैं नहीं जानता हूं कि इतिहास की घटना को कौन किस रूप में जवाब देगा। लेकिन हमें 60 साल इंतजार करना पड़ा। हो सकता है ये मेरे ही भाग्‍य में लिखा गया होगा। शायद बाबा साहब के मुझे पर आशीर्वाद रहे होंगे के मुझे ये सौभाग्‍य मुझे मिला।

मैं सबसे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं। क्‍योंकि वाजपेयी जी की सरकार ने यह निर्णय न किया होता, क्‍योंकि यह स‍ंपत्ति तो प्राइवेट चली गई थी। और जिस सदन में बाबा साहब रहते थे, वो तो पूरी तरह ध्‍वस्‍त करके नई इमारत वहां बना दी गई थी। लेकिन उसके बावजूद भी वाजपेयी जी जब सरकार में थे, प्रधानमंत्री थे, उन्‍होंने इसको acquire किया। लेकिन बाद में उनकी सरकार रही नहीं। बाकी जो आए उनके दिल में अम्‍बेडकर नहीं रहे। और उसके कारण मकान acquire करने के बाद भी कोई काम नहीं हो पाया। हमारा संकल्‍प है कि 2018 तक इस काम को पूर्ण कर दिया जाए। और अभी से मैं विभाग को भी बता देता हूं, मंत्रि श्री को भी बता देता हूं 2018, 14 अप्रैल को मैं इसका उद्घाटन करने आऊंगा। Date तय करके ही काम करना है और तभी होगा। और होगा, भव्‍य होगा ये मेरा पूरा विश्‍वास है।

इसकी जो design आपने देखी है, इसे आप भी विश्‍वास करेंगे दिल्‍ली के अंदर जो iconic buildings है, उसमें अब इस स्‍थान का नाम हो जाएगा। दुनिया के लिए वो iconic building होगा, हमारे लिए प्रेरणा स्‍थली है, हमें अविरत प्रेरणा देने वाली स्‍थली है, और इसलिए आने वाली पीढि़यों में जिस-जिसको मानवता की दृष्टि से मानवता के प्रति commitment के लिए कार्य करने की प्रेरणा पानी होगी तो इससे बढ़ करके प्रेरणा स्‍थली क्‍या हो सकती है।

कभी-कभार मेरी एक शिकायत रहती है और यह शिकायत मैं कई बार बोल चुका हूं लेकिन हर बार मुझे दोहराने का मन करता है। कभी हम लोग बाबा साहब को बहुत अन्‍याय कर देते हैं जी। उनको दलितों का मसीहा बना करके तो घोर अन्‍याय करते है। बाबा साहब को ऐसे सीमित न करें। वे अमानवीय, हर घटना के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले महापुरूष थे। हर पीढ़ी, शोषित, कुचले, दबे, उनकी वो एक प्रखर आवाज़ थे। उनको भारत की सीमाओं में बांधना भी ठीक है। उनको ‘विश्‍व मानव’ के रूप में हमने देखना चाहिए। दुनिया जिस रूप से मार्टिन लूथर किंग को देखती है, हम बाबा अम्‍बेडकर साहब को उससे जरा भी कम नहीं देख सकते। अगर विश्‍व के दबे-कुचले लोगों की आवाज़ मार्टिन लूथर किंग बन सकते हैं, तो आज विश्‍व के दबे कुचले लोगों की आवाज़ बाबा साहब अम्‍बेडकर बन सकते हैं। और इसलिए मानवता में जिस-जिस का विश्‍वास है उन सबके लिए ये बहुत आवश्‍यक है कि बाबा साहेब मानवीय मूल्‍यों के रखवाले थे।

और हमें संविधान में जो कुछ मिला है, वो जाति विशेष के कारण नहीं मिला है। अन्‍याय की परंपराओं को नष्‍ट करने का एक उत्‍तम प्रयास के रूप में हुआ है। कभी इतिहास के झरोखे से मैं देखूं तो मैं दो महापुरूषों को विशेष रूप से देखना चाहूंगा, एक सरदार वल्‍लभ भाई पटेल और दूसरे बाबा साहब अम्‍बेडकर।

देश जब आजाद हुआ तब, अनेक राजे-रजवाड़ों में यह देश बिखरा पड़ा था। राजनैतिक दृष्टि से बिखराव था व्‍यवस्‍थाओं में बिखराव था, शासन तंत्र बिखरे हुए थे और अंग्रेजों का इरादा था कि यह देश बिखर जाए। हर राजा-रजवाड़े अपना सिर ऊचां कर करके, यह देश को जो हालत में छोड़े, छोड़े, लेकिन सरदार वल्‍लभ भाई पटेल थे, जिन्‍होंने राष्‍ट्र की एकता के लिए सभी राजे-रजवाड़ों को अपने कूटनीति के द्वारा, अपने कौश्‍लय के द्वारा, अपने political wheel के द्वारा और बहुत ही कम समय में इस काम को उन्‍होंने करके दिखाया। और आज से तो हिमाचल कश्‍मीर से कन्‍या कुमारी एक भव्‍य भारत माता का निर्माण सरदार वल्‍लभ भाई पटेल के माध्‍यम से हम देख पा रहे हैं। तो एक तरफ राजनैतिक बिखराव था, तो दूसरी तरफ सामाजिक बिखराव था। हमारे यहां ऊंच-नीच का भाव, जातिवाद का जहर, दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित, आदिवासी इन सबके प्रति उपेक्षा का भाव और सदियों से यह बीमारी हमारे बीच घर कर गई थी। कई महापुरूष आए उन्‍होंने सुधार के लिए प्रयास किया। महात्‍मा गांधी ने किया, कई, यानि कोई शताब्‍दी ऐसी नहीं होगी कि हिंदु समाज की बुराईयों को नष्‍ट करने के लिए प्रयास न हुआ हो।

लेकिन बाबा साहब अम्‍बेडकर ने राजनीतिक-संवैधानिक व्‍यव्‍स्‍था के माध्‍यम से सामाजिक एकीकरण का बीड़ा उठाया, जो काम राजनीतिक एकीकरण का सरदार पटेल ने किया था, वो काम सामाजिक एकीकरण का बाबा साहब अम्‍बेडकर जी के द्वारा हुआ।

और इसलिए ये जो सपना बाबा साहेब ने देखा हुआ है उस सपने की पूर्ति का प्रयास उसमें कहीं कोताही नहीं बरतनी चाहिए। उसमें कोई ढीलापन नहीं आना चाहिए। कभी-कभार बाबा साहेब के विषय में जब हम सोचते हैं, हम में से बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि बाबा साहेब को मंत्रिपरिषद से इस्‍तीफा देने की नौबत क्‍यों आई। या तो हमारे देश में इतिहास को दबोच दिया जाता है, या तो हमारे देश में इतिहास को dilute किया जाता है या divert कर दिया जाता है, अपने-अपने तरीके से होता है। Hindu code bill बाबा साहेब की अध्‍यक्षता में काम चल रहा था और उस समय प्रारंभ में शासन के सभी मुखिया वगैरह सब इस बात में साथ दे रहे थे। लेकिन जब Hindu Code Bill Parliament में आने की नौबत आई और महिलाओं को उसमें अधिकार देने का विषय जो था, संपत्ति में अधिकार, परिवार में अधिकार, महिलाओं को equal right देने की व्‍यवस्‍था थी उसमें क्‍योंकि बाबा साहेब अम्‍बेडकर किसी को भी वंचित, पीडि़त, शोषित देख ही नहीं सकते थे। और ये सिर्फ दलितों के लिए नहीं था, टाटा, बिरला परिवार की महिलाओं के लिए भी था और दलित बेटी के लिए भी था। ये बाबा साहेब का vision देखिए। लेकिन, लेकिन उस समय की सरकार इस progressive बातों के सामने जब आवाज उठी, तो टिक नहीं पाई, सरकार दब गई कि भारत में ऐसा कैसे हो सकता है कि महिलाओं को संपत्ति का अधिकार देंगे वो तो बहू बनके कहीं चली जाती हैं! तो फिर पता नहीं क्‍या हो जाएगा? समाज में कैसे बिखराव, ये सारे डर पैदा हुए, पचासों प्रकार के लोगों ने अपना डर व्‍यक्‍त किया। ऐसे समय बाबा साहेब को लगा, अगर भारत की नारी को हक नहीं मिलता है, तो फिर उस सरकार का बाबा साहेब हिस्‍सा भी नहीं बन सकते और उन्‍होंने सरकार छोड़ दी थी। और जो बातें बाबा साहेब ने सोची थीं, वो बाद में समय बदलता गया, लोगों की सोच में भी थोड़ा सुधार आता गया, धीरे-धीरे करके कभी एक चीज सरकार ने मान ली, कभी दो मान लीं, कभी एक आई, कभी दो आईं। धीरे-धीरे-धीरे करके बाबा साहेब ने जितना सोचा था, वो सारा बाद में सरकार को स्‍वीकार करना पड़ा। लेकिन बहुत साल लग गए, बहुत सरकारें आ के चली गईं।

कहने का मेरा तात्‍पर्य ये है, कि अगर में दलितों के अंदर बाबा साहेब को सीमित कर दूंगा, तो इस देश की 50 प्रतिशत जनसंख्‍या माताओं, बहनों को बाबा साहेब ने इतना बड़ा हक दिया, उनका क्‍या होगा? और इसलिए ये आवश्‍यक है कि बाबा साहेब को उनकी पूर्णता के रूप में समझें, स्‍वीकार करें।

Labour Laws, हमारे देश में महिलाओं को कोयले की खदान में काम करना बड़ा दुष्‍कर था, लेकिन कानून रोकता नहीं था। और ये काम इतना कठिन था कि महिलाओं से नहीं करवाया जा सकता। ये बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने हिम्‍मत दिखाई और महिलाओं को कोयले की खदानों के कामों से मुक्‍त कराने का बहुत बड़ा निर्णय बाबा अम्‍बेडकर ने किया था।

हमारे देश में मजदूरी, सिर्फ दलित ही मजदूर थे ऐसा नहीं, जो भी मजदूर थे, बाबा साहेब उन सबके मसीहा थे। और इसलिए 12 घंटा, 14 घंटा मजदूर काम करता रहता था, मालिक काम लेता रहता था और मजदूर को भी नहीं लगता था कि मेरा भी कोई जीवन हो सकता है, मेरे भी कोई मानवीय हक हो सकते हैं, उस बेचारे को मालूम तक नहीं था। और न ही कोई बाबा साहेब अम्‍बेडकर को memorandum देने आया था कि हमने इतना काम लिया जाता है कुछ हमारा करो। ये बाबा साहेब की आत्‍मा की पुकार थी कि उन्‍होंने 12 घंटे, 14 घंटे काम हो रहा था, 8 घंटे सीमित किया। आज भी हिन्‍दुस्‍तान में जो labour laws है, उसकी अगर मुख्‍य कोई foundation है, वो foundation के रचियता बाबा साहेब अम्‍बेडकर थे।

आप हिन्‍दुस्‍तान के 50 प्रमुख नेताओं को ले लीजिए, जिनको देश के निर्णय करने की प्रकिया में हिस्‍सा लेने का अवसर मिला है, वो कौन से निर्णय है, जिन निर्णयों ने हिन्‍दुस्‍तान को एक शताब्‍दी तक प्रभावित किया। पूरी 20वीं शताब्‍दी में जो विचार, जो निर्णय, देश पर प्रभावी रहे, जो आज 21वीं सदी के प्रारंभ में भी उतनी ही ताकत से काम कर रहे हैं। अगर आप किस-किस के कितने निर्णय, इसका अगर खाका बनाओगे, तो मैं मानता हूं कि बाबा साहेब अम्‍बेडकर नम्‍बर एक पर रहेंगे, कि जिनके द्वारा सोची गई बातें, जिनके द्वारा किए गए निर्णय आज भी relevant हैं।

आप देख लीजिए power generation, electricity, आज हम देख रहे हैं कि हिन्‍दुस्‍तान में ऊर्जा की दिशा में जो काम हुआ है, उसका अगर कोई structured व्‍यवस्‍था बनी तो बाबा साहेब के द्वारा बनी थी। और उसी का नतीजा था कि Electric Board वगैरा, electricity generation के लिए अलग व्‍यवस्‍थाएं खडी़ हुईं जो आगे चल करके देश में विस्‍तार होता गया, और भारत में ऊर्जा की दिशा में self-sufficient बनने के लिए भारत में घर-घर ऊर्जा पहुंचाने की दिशा में उस सोच का परिणाम था, कि उन्‍होंने एक structured व्‍यवस्‍था देश को दी।



आपने देखा होगा, अभी–अभी Parliament में एक bill हम लोग लाए। जब हम ये bill लाए तो लोगों को लगा होगा कि वाह! मोदी सरकार ने क्‍या कमाल कर दिया। Bill क्‍या लाए हैं, हम भारत के पानी की शक्ति को समझ करके Water-ways पर महातम्‍य देना, Water-ways के द्वारा हमारे यातायात को बढाना, हमारे goods-transportation को बढ़ाना, उस दिशा में एक बड़ा महत्‍वपूर्ण निर्णय अभी इस Parliament में किया है। लेकिन कोई कृपा करके मत सोचिए कि मोदी की सोच है। यहां हमने जरूर है, सौभाग्‍य मिला है, लेकिन ये मूल विचार बाबा साहेब अम्‍बेडकर का है। बाबा साहेब अम्‍बेडकर थे जिन्‍होंने उस समय, उस समय भारत की maritime शक्ति और भारत के Water-ways की ताकत को समझा था और उस की structured व्‍यवस्‍था की थी। और उसको वहां आगे बढ़ाना चाहते थे। अगर लम्‍बे समय उनको सरकार में सेवा करने का मौका मिलता जो निर्णय मैंने अभी किया Parliament में, वो आज से 60 साल पहले हो गया होता। यानी बाबा साहेब के न होने का इस देश को कितना घाटा हुआ है, यह हमें पता चलता है और बाबा साहेब का कोई भक्‍त सरकार में आता है, तो 60 साल के बाद भी काम कैसे होता है, ये नजर आता है।

बाबा साहेब हमें क्‍या संदेश देकर गए, और मैं मानता हूं जो बीमारी का सही उपचार अगर किसी ने ढूंढा है, तो बाबा साहेब ने ढूंढा है। बीमारियों का पता बहुतों को होता है, बीमारी से मुक्ति के लिए छोटे-मोटे प्रयास करने वाले भी कुछ लोग होते हैं लेकिन एक स्‍थाई समाधान, अगर किसी ने दिया तो बाबा साहेब ने दिया, वो क्‍या? उन्‍होंने समाज को एक ही बात कही कि भाई शिक्षित बनो, शिक्षित बनो, ये सारी समस्‍याओं का समाधान शिक्षा में है। और एक बार अगर आप शिक्षित होंगे, तो दुनिया के सामने आप आंख से आंख मिला करके बात कर पाओगे, कोई आपको नीचा नहीं देख सकता, कोई आपको अछूत नहीं कह सकता। ये, ये जो Inner Power देने का प्रयास, ये Inner Power था। उन्‍होंने बाहरी ताकतें नहीं दी थीं, आपकी आंतरिक ऊर्जा को जगाने के लिए उन्‍होंने रास्‍ता दिखाया था। दूसरा मंत्र दिया, संगठित बनो और तीसरा बात बताया मानवता के पक्ष में संघर्ष करो, अमानवीय चीजों के खिलाफ आवाज उठाओ। ये तीन मंत्र आज भी हमें प्रेरणा देते रहे हैं, हमें शक्ति देते रहे हैं। और इसलिए हम जब बाबा साहेब अम्‍बेडकर की बात करते हैं त‍ब, हमारा दायित्‍व भी तो बनता है और दायित्‍व बनता है, बाबा साहेब के रास्‍ते पर चलने का। और उसकी शुरुआत आखिरी मंत्र से नहीं होती है, पहले मंत्र से होती है। वरना कुछ लोगों को आखिरी वाला ज्‍यादा पसंद आता है, संघर्ष करो। पहले वाला मंत्र है शिक्षित बनो, दूसरे वाला मंत्र है संगठित बनो। आखिर में जरूरत ही नहीं पड़ेगी, वो नौबत ही नहीं आयेगी। क्‍योंकि अपने आप में इतनी बड़ी ताकत होगी कि दुनिया को स्‍वीकार करना होगा। और बाबा साहेब ने जो कहा, वो जी करके दिखाया था। वरना वे भी शिक्षा छोड़ सकते थे, तकलीफें उनको भी आई थीं, मुसीबतें उनको भी आई थीं, अपमान उनको भी झेलने पड़े थे। और मुझे खुशी हुई अभी हमारे बिहार के गवर्नर एक delegation लेकर बड़ौदा गए थे और बड़ौदा जा करके सहजराव परिवार को उन्‍होंने सम्‍मानित किया। इस बात के लिए सम्‍मानित किया कि यह सहजराव गायकवाड़ थे, जिसको सबसे पहले इस हीरे की पहचान हुई थी। और इस हीरे को मुकुटमणि में जड़ने का काम अगर किसी ने सबसे पहले किया था तो सहजराव गायकवाड़ ने किया था। और तभी तो भारत को सहजराव गायकवाड़ की एक भेंट है कि हमें बाबा साहेब अम्‍बेडकर मिले। और इसलिए धन्‍यवाद प्रस्‍ताव करने के लिए सहजराव गायकवाड़ के परिवार के पास जा करके काफी समाज के लोग गए थे, और उनका सम्‍मान किया, परिवार का। वरना उस समय एक peon भी बाबा साहेब को हाथ से पानी देने के लिए तैयार नहीं था। वो नीचे रखता था, फिर बाबा साहेब उठाते थे। ऐसे माहौल में गायकडवाड़ जी ने बाबा अम्‍बेडकर साहेब को गले लगा लिया था। ये हमारे देश की विशेषता है। इन विशेषताओं को भी हमें पहचानना होगा। और इन विशेषताओं के आधार पर हमने आगे की हमारी जीवन विकास की यात्रा को आगे बढ़ाना होगा।

कभी-कभार हमारे देश में बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने जिस भावना से जिन कामों को किया, वो पूर्णतया पवित्र राष्‍ट्र निष्‍ठा थी, समाज निष्‍ठा थी। राज निष्‍ठा की प्रेरणा से बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने कभी कोई काम नहीं किया। राष्‍ट्र निष्‍ठा और समाज निष्‍ठा से किया और इसलिए हमने भी हमारी हर सोच हमारे हर निर्णय को इस तराजू से तौलने का बाबा अम्‍बेडकर साहब ने हमें रास्‍ता दिखाया है कि राष्‍ट्र निष्‍ठा के तराजू से तोला जाए, समाज निष्‍ठा के तराजू से तोला जाए, और तब जा करके वो हमारा निर्णय, हमारी दिशा, सही सिद्ध होगी।

कुछ लोगों ने एक बात, कुछ लोगों का हमसे, हम लोग वो हैं जिनको कुछ लोग पसंद ही नहीं करते हैं। हमें देखना तक नहीं चाहते हैं। उनको बुखार आ जाता है और बुखार में आदमी कुछ भी बोल देता है। बुखार में वो मन का आपा भी खो देता है, और इसलिए असत्‍य, झूठ, अनाप-शनाप ऐसी बातों को प्रचारित किया जाता है। मैं आज जब, जिन लोगों ने 60 साल तक कोई काम नहीं किया, उस 26-अलीपुर के गौरव के लिए आज यहां खड़ा हूँ तब, मुझे बोलने का हक भी बनता है।

मुझे बराबर याद है, जब वाजपेयी जी की सरकार बनी तो चारों तरफ हो-हल्‍ला मचा था अब ये भाजपा वाले आ गए हैं, अब आपका आरक्षण जाएगा। जो लोग पुराने हैं उनको याद होगा। वाजपेयी जी की सरकार के समय ऐसा तूफान चलाया, गांव-गांव, घर-घर, ऐसा माहौल बना दिया जैसे बस चला ही जाएगा। वाजपेयी जी की सरकार रही, दो-टंब रही लेकिन खरोंच तक नहीं आने दी थी। फिर भी झूठ चलाया गया।

मध्‍यप्रदेश में सालों से भारतीय जनता पार्टी राज कर रही है, गुजरात में, महाराष्‍ट्र में, पंजाब में, हरियाणा में, उत्‍तर प्रदेश में, अनेक राज्‍यों में, हम जिन विचार को लेकर के निकले है, उस विचार वालों को सरकार चलाने का अवसर मिला, दो-तिहाई बहुमत से अवसर मिला, लेकिन कभी भी दलित, पीडि़त, शोषित, tribal, उनके आरक्षण को खरोंच तक नहीं आने दी है। फिर भी झूठ चलाया जा रहा है, क्‍यों? बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने जो राष्‍ट्र निष्‍ठा और समाज निष्‍ठा के आधार पर देश को चलाने की प्रेरणा दी थी, उससे हट करके सिर्फ राजनीति करने वाले लोग हैं, वो इससे बाहर नहीं निकल पाते हैं, इसलिए से बातों को झूठे रूप में लोगों को भ्रमित करने के लिए चला रहे हैं और इसलिए मैं, मैं जब Indu Mills के कार्यक्रम के लिए गया था, चैत्य भूमि के पुनर्निर्माण के शिलान्‍यास के लिए गया था, उस समय मैंने कहा था खुद बाबा साहेब अम्‍बकेडकर भी आ करके, आपका ये हक नहीं छीन सकते हैं। बाबा साहेब के सामने हम तो क्‍या चीज हैं, कुछ नहीं हैं जी। उस महापुरुष के सामने हम कुछ नहीं हैं। और इसलिए ये जो भ्रम फैलाए जा रहे हैं, उनकी राजनीति चलती होगी, लेकिन समाज में इसके कारण दरारें पैदा होती हैं, तनाव पैदा होते हैं और समाज को दुर्बल बना करके, हम राष्‍ट्र को कभी सबल नहीं बना सकते हैं, इस बात को हम लोगों ने जिम्‍मेवारी के साथ समझना होगा।

बाबा साहेब अम्‍बेडकर का आर्थिक चिंतन और वैसे तो अर्थवेत्‍ता थे। उनकी पूरी पढ़ाई आर्थिक विषयों पर हुई और उनकी पीएचडी भी, जो लोग आज भारत की महान परंपराओं को गाली देने में गौरव अनुभव करते हैं, उनको शायद पता नहीं है, कि बाबा साहेब अम्‍बेडकर की Thesis भी भारत की उत्‍तम वैभवशाली व्‍यापार विषय को ले करके उन्‍होंने पीएचडी किया था। जो भारत के पुरातन हमारे गौरव को अभिव्‍यक्‍त करता था। लेकिन बाबा साहेब को समझना नहीं, बाबा साहेब की विशेषता को मानना नहीं, और इसको समझने के लिए सिर्फ किताबें काम नहीं आती हैं, बाबा साहेब को समझने के लिए समाज के प्रति संवेदना चाहिए और उस महापुरुष के प्रति भक्ति चाहिए, तब जा करके संभव होगा, तब जा करके संभव होगा। और इसलिए बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने अपने आर्थिक चिंतन में एक बात साफ कही थी, वो इस बात को लगातार थे कि भारत का औद्योगिकरण बहुत अनिवार्य है। Industrialisation, उस समय से वो सोचते थे, एक तरफ labour reforms करते थे, labour के हक के लिए लड़ाई लड़ते थे, लेकिन राष्‍ट्र के लिए औद्योगिकरण की वकालत करते थे। देखिए कितना बढि़या combination है। लेकिन आज क्‍या हाल है, जो labour की सोचता है वो उद्योग की सोचने को तैयार नहीं, जो उद्योग की सोचता है वो labour की सोचने को तैयार नहीं है। और वहीँ बाबा साहेब अम्‍बेडकर थे जो दोनों की सोचते थे, क्‍योंकि राष्‍ट्र निष्‍ठा की तराजू से तोलते थे। और इसलिए वो दोनों की सोचते थे, और उसी का परिणाम ये है कि बाबा साहेब औद्योगिकरण के पक्षकार थे और उनका बड़ा महत्‍वपूर्ण तर्क था, वो साफ कहते थे, कि मेरे देश के जो दलित, पीडि़त, शोषित हैं, उनके पास जमीन नहीं है और हम नहीं चाहते वो खेत मजदूर की तरह अपनी जिंदगी पूरी करें, हम चाहते हैं वो मुसीबतों से बाहर निकलें। औद्योगिकरण की जरूरत इसलिए है कि मेरे दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित लोगों को रोजगार के नए अवसर उपलब्‍ध हो जाएं, इसलिए औद्योगिकरण चाहिए। दलित, पीडि़त, शोषितों के पास जमीन नहीं है। खेती उसके नसीब में नहीं है। खेत मजदूर के नाते जिंदगी, क्‍या यही गुजारा करेगा क्‍या? और इसके लिए बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने इन बातों को बल दिया। औद्योगिकरण को बल दिया।

इसी विज्ञान भवन में मेरे लिए एक बहुत बड़ा गौरव का दिन था, जब मैं दलित चैंबर के लोगों से यहां मिला था। मिलिंद यहां बैठा है, और देश भर से दलित Entrepreneur आए थे। और मैं तो हैरान, आनंद मुझे तब हुआ, कि दलितों में Women Entrepreneur भी बहुत बड़ी तादाद में आए थे। और उनका संकल्‍प क्‍या था, मैं मानता हूं बाबा साहेब अम्‍बेडकर को उत्‍तम से उत्‍तम श्रद्धाजंलि देने का प्रयास अगर कोई करता है, तो ये दलित चैंबर के मित्र कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा, हम नहीं चाहते हैं कि दलित रोजगार पाने के लिए तड़पता रहे वो रोजगारी के लिए याचक बने, हम वो स्थिति पैदा करना चाहते हैं कि दलित रोजगार देने वाला बने। और उन्‍होंने हमारे सामने कुछ मांगे रखी थीं। और आज मैं गर्व के साथ कहता हूं, उस मीटिंग को चार महीने अभी तो पूरे नहीं हुए हैं, इस बजट में वो सारी मांगे मान ली गई हैं, सारी बातें लागू कर दी हैं। ये आपने अखबार में नहीं पढ़ा होगा। अच्‍छी चीजें बहुत कम आती हैं।

दलित Entrepreneurship, उसके लिए अनेक प्रोत्‍साहन, venture, capital, fund समेत कई बातें, इस field के लोगों ने जिन्‍होंने तय किया, जिनका माद्दा है कुछ करना है हमारे दलित युवाओं के लिए। वो बात इतनी ताकतवर थी कि सरकार को मांगे माने बिना, कोई चारा नहीं था जी। कोई आंदोलन नहीं किया था, कोई संघर्ष नहीं था लेकिन बात में दम था। और ये सरकार इतनी संवेदनशील है कि जिस बात से देश आगे बढ़ता है वो उसकी प्राथमिकता होती है, और हम भी उस पर चलते हैं।

मेरा कहने का तात्‍पर्य ये है भाइयो, कि हमें समाज की एकता को बल देना है। और बाबा साहेब से ये ही तो सीखना पड़ेगा। आप कल्‍पना कर सकते हो कि एक महापुरुष जिसको इतना जुल्‍म सहना पड़ा हो, जिसका बचपन अन्‍याय, उपेक्षा और उत्‍पीड़न से बीता हो, जिसने अपनी मां को अपमानित होते देखा हो, मुझे बताइए ऐसे व्‍यक्ति को मौका मिल जाए तो हिसाब चुकता करेगा कि नहीं करेगा? तुम, तुम मुझे पानी नहीं भरने देते थे, तुम मुझे मंदिर नहीं जाने देते थे, तुम, मेरे बच्‍चों को स्‍कूल में admission देने से मना करते थे। मुनष्‍य को जो level है ना, वहां ये बहुत स्‍वाभाविक है। लेकिन जो मानव से कुछ ऊपर है वो बाबा साहेब अम्‍बेडकर थे, कि जब उनके हाथ में कलम थी, कोई भी निर्णय करने की ताकत थी, लेकिन आप पूरा संविधान देख लीजिए, पूरी संविधान सभा की debate देख लीजिए, बाबा साहेब अम्‍बेडकर की बातों में, वाणी में, शब्‍द में, कहीं कटुता नजर नहीं आती है, कहीं बदले का भाव नजर नहीं आता है। उनका भाव यही रहा, और वो भाव क्‍या था, मैं अपने शब्‍दों में कह सकता हूं, कि कभी-कभार खाना खाते समय दांतों के बीच हमारी जीभ कट जाती है, लेकिन हम दांत तोड़ नहीं देते हैं। क्‍यों? क्‍योंकि हमें पता हैं दांत भी मेरे हैं, जीभ भी मेरी है। बाबा साहेब अम्‍बेडकर के लिए सवर्ण भी उनके थे और हमारे दलित, पीडि़त, शोषित भी, दोनों ही उनके लिए बराबर थे, और इसलिए बदले का नामो-निशान नहीं था, कटुता का नामो-निशान नहीं था। बदले के भाव को जन्‍म न देने का और समाज को साथ ले के चलने की प्रेरणा देने वाला प्रयास बाबा साहेब अम्‍बेडकर की हर बात में झलकता है और ये देश, सवा सौ करोड़ का देश बाबा साहेब अम्‍बेडकर का हमेशा-हमेशा ऋणी रहेगा, जिसने देश की एकता के लिए अपने जुल्‍मों को दबा दिया, गाढ़ दिया। भविष्‍य भारत का देखा और बदले की भावना के बिना समाज को एक करने की दिशा में प्रयास किया है।

क्‍या हम सब, हमारे राजनीतिक कारण कुछ भी होंगे, पराजय को झेलना बड़ा मुश्किल होता है। लेकिन उसके बावजूद भी जय और पराजय से भी समाज का जय बहुत बड़ा होता है, राष्‍ट्र का जय बहुत बड़ा होता है। और इसलिए उसके लिए समर्पित होना ये हम सबका दायित्‍व बनता है। इस दायित्‍व को ले करके बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने जो उत्‍तम भूमिका निभाई है, राजनीतिक कारणों से इस महापुरुष के योगदान को अगर सही रूप में उनके जीवनकाल से ले करके अब तक अगर हमने प्रस्‍तुत किया होता तो आज भी समाज में कहीं-कहीं-कहीं तनाव नजर आता है, कभी-कभी टकराव नजर आता है, कभी-कभी खंरोच हो जाती है। मैं दावे से कहता हूं, अगर बाबा साहेब अम्‍बेडकर को हमने भुला न दिया होता, तो ये हाल न हुआ होता। अगर बाबा साहेब अम्‍बेडकर को फिर से एक बार हम उसी भाव के साथ, श्रद्धा के साथ जनसामान्‍य तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे तो ये जो कमियां हैं वो कमियां भी दूर हो जाएंगी, तो ताकत उस नाम में है, उस काम में है, उस समर्पण में है, उस त्‍याग में है, उस तपस्‍या में है, उस महान चीजें जो हमें दे करके गए हैं उसके अंदर पड़ा हुआ है और उसकी पूर्ति के लिए हम लोगों का प्रयास होना बहुत आवश्‍यक है।

और इसलिए बाबा साहेब मानवता के पक्षकार थे। अमानवता की हर चीज को वो नकारते थे। उसका परिमार्जन का प्रयास करते थे और हर चीज संवैधानिक तरीके से करते थे। लोकतांत्रिक‍ मर्यादाओं के साथ करते थे। बाबा साहेब के साथ क्‍या-क्‍या अन्‍याय किया, किस-किसने अन्‍याय किया, ये हम सब भली-भांति जानते हैं। हमारा संकल्‍प ये ही रहे दलित हो, पीडि़त हो, शोषित हो, जो गण वंचित हो, गरीब हो, आदिवासी हो, गांव में रहने वाला हो, झुग्‍गी-झोंपड़ी में जीने वाला हो, शिक्षा के अभाव में तरसने वाला हो, इन सबके लिए अगर कुछ काम करना है तो बाबा साहेब अम्‍बेडकर हमारे लिए सदा-सर्वदा एक प्रेरणा हैं और वो ही प्रेरणा हमें काम करने के लिए ताकत देती है।

आप देखिए, अभी मैं एक दिन बैठा था, मैं हमारे सरकार के लोगों से हिसाब मांग रहा था। मैंने कहा कि भई कितने गांव हैं जहां अब बिजली का खंभा भी नहीं पहुंचा है। आजादी के इतने साल बाद भी हिन्‍दुस्‍तान में 18 हजार गांव ऐसे पाए कि जहां बिजली का खंभा नहीं पहुंचा है। जिस बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने power generation के लिए पूरा structure बना करके गए, 60 साल के बाद भी 18 हजार गांव में बिजली पहुंचेगी नहीं, तो बाबा साहेब अम्‍बेडकर को क्‍या श्रद्धाजंलि हम देंगे जी? हमने बीड़ा उठाया है, मैंने लालकिले से बोल दिया। जैसे आज बोल दिया न, 14 अप्रैल को मैं उद्घाटन करुंगा, 2018, लालकिले से मैंने बोल दिया 1000 दिन में मुझे 18,000 गांवों में बिजली पहुंचानी है और आप, आप अपने मोबाइल फोन पर देख सकते हैं, आज किस गांव में बिजली पहुंची। आजादी के 60 साल के बाद अब तक करीब-करीब 6000 से अधिक गांवों में बिजली पहुंच चुकी है, 18000 मुझे 1000 दिन में पूरे करने हैं, मैं देख रहा हूं शायद 18000, एक हजार दिन से भी कम समय में पूरा कर दूंगा। आप कल्‍पना कर सकते हैं, आप, आप एक साइकिल अपने पास रखो और सोच रहे हो कि भाई 2018 में स्‍कूटर लाना है। तो आप सोचते हैं किस colour का स्‍कूटर लाएंगे, किस कम्‍पनी का स्‍कूटर लाएंगे, अनेकों बार दुकान होगी तो देखते होंगे, brochure लेते होंगे, स्‍कूटर लाना है। साइकिल से स्‍कूटर जाएं तो भी एक और जिस दिन आए स्‍कूटर 10 रुपये की माला ला करके पहनाएंगे, नारियल फोड़ेंगे, मिठाई बांटेंगे, क्‍यों साइकिल से स्‍कूटर पर आए कितना आनंद होता है। 60 साल के बाद जिस गांव में बिजली आई होगी, कितना आनंद होगा, आप कल्‍पना कर सकते हैं। मैं उन 18000 गांवों को कहता हूं कि 60 साल के बाद आपके घर में भी बिजली आती है, तो मोदी का अभिनंदन मत करना, बाबा साहेब अम्‍बेडकर का करना, क्‍योंकि ये structure वो बनाके गए थे, लेकिन बीच वालों ने काम को पूरा नहीं किया। बाबा साहेब अम्‍बेडकर की इच्‍छा को मैं पूरा करने का सौभाग्‍य मानता हूं।

अभी 14 अप्रैल को मैं मऊ तो जा रहा हूं। ये पंचतीर्थ का निर्माण भी हमारे सौभाग्‍य का कारण बना है। जहां-जहां भाजपा की सरकारें हैं उन्‍हीं के समय हुआ है, ये सब। फिर भी बदनामी हमको दी जा रही है। क्‍या कारण था कि Indu Mills पर चैत्य भूमि का कार्य पहले की सरकारों ने नहीं किया। क्‍या कारण था 26-अलीपुर का फैसला आज करने की नौबत आई? क्‍या कारण है कि लंदन का मकान आज हम ले करके आए और राष्‍ट्र के लिए प्रेरणा दी? कोई भी मेरा दलित अब जाएगा लंदन उस मकान को जरूर देखने जाएगा। पढ़ने के लिए जाएगा या घूमने के लिए जाएगा, जरूर देखने जाएगा, मुझे विश्‍वास है। ये पंचतीर्थ की यात्रा, एक प्रेरक यात्रा बनी है कि समाज जीवन में कैसा परितर्वन आया और हर काम दिल्‍ली के अंदर दो स्‍मारक, 26-अलीपुर और हमारा जो मैंने 15-जनपथ जिसका मैनें, शायद एक साल हो गया और construction उसका तेजी से चल रहा है, उसका लोकार्पण तो बहुत जल्‍द होने की नौबत आ जाएगी।

तो ये सारे काम भारतीय जनता पार्टी के लोगों को सरकार बनाने का सौभाग्‍य मिला तब हुए हैं। और इसलिए क्‍योंकि हमारी ये श्रद्धा है। अभी 14 अप्रैल को मैं मऊ तो जा रहा हूं, लेकिन उस दिन हम एक बड़ा कार्यक्रम कर रहे हैं, मुंबई में। कौन सा कार्यक्रम? बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने जो सपना देखा था भारत की जल शक्ति का maritime का water-way का। हम एक Global Conference 14 अप्रैल को पानी के संदर्भ में मुंबई में करने जा रहे हैं, वो भी बाबा साहेब अम्‍बेडकर की जन्‍म-जयंती पर तय की है।

मैं मऊ में कार्यक्रम launch करने वाला हूं। हमारे देश के किसानों को, क्‍योंकि बाबा साहेब अम्‍बेडकर का आर्थिक चिंतन बड़ा ताकतवर चिंतन है जी और आज भी relevant है। बाबा साहेब अम्‍बेडकर ने किसानों की चिंता की है, अपने चिंतन में। किसान जो पैदावार करता है उसकी market को ले करके बहुत बड़ी कठिनाइयां हैं। और बेचारा घर से निकलता है मंडी में जाता है तब तक मंडी में कोई लेने वाला नहीं होता है। आखिरकार अपनी सब्‍जी वहीं पशुओं को खाने के लिए छोड़ करके घर वापिस चला जाता है, ये हमने देखा है। 14 अप्रैल को हम एक E-market , E-platform तैयार कर रहे हैं, जो हमारा किसान अपने मोबाइल फोन पर तय कर पाएगा कि किस मंडी में क्‍या दाम है, और कहां माल बेचने से ज्‍यादा पैसा मिल सकता है, वो मेरा किसान तय कर सकता है, ये भी, ये भी 14 अप्रैल, बाबा साहेब की जन्‍म-जयंती के दिन हम लोग उसका प्रारंभ करने वाले हैं।

कहने का मेरा तात्‍पर्य ये है कि उस दिशा में देश को चलाना है। ऐसे महापुरुषों के चिंतन वो हमारी प्रेरणा हैं, हमें ताकत देते हैं और हम उनसे सीखते हैं। और मजा ये है कि उनकी बातें आज भी relevant हैं। उन बातों को ले करके चल रहे हैं और राष्‍ट्र के निर्माण के लिए, राष्‍ट्र के कल्‍याण के लिए ये ही सही राह है। एस: पंथ:, ये ही एक मार्ग है। उस मार्ग को ले करके हम आगे बढ़ रहे हैं। मैं फिर एक बार आप सब के बीच आने का मुझे सौभाग्‍य मिला और ये 60 साल से जो निर्णय नहीं हो पा रहा था, वाजपेयी जी ने जो सपना देखा था, उस सपने को पूरा करने का सौभाग्‍य हमें मिला है। मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि 14 अप्रैल, 2018, आप सब मौजूद रहिए। फिर एक बार उस भव्‍य स्‍मारक को बनाएंगे। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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78-ാം സ്വാതന്ത്ര്യ ദിനത്തില്‍ ചുവപ്പ് കോട്ടയില്‍ നിന്ന് പ്രധാനമന്ത്രി ശ്രീ നരേന്ദ്ര മോദി നടത്തിയ പ്രസംഗം

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!