तीन अलग अलग सवाल अलग अलग तरीके से आये हैं मैं सबसे पहले तो MyGov के साथ सक्रिय रूप से जडने के लिए देशवासियों को और आप सबको हदय से बहुत’-बहुत-बधाई देता हूं, धन्यवाद करता हूं हमारे देश मे लोकतंत्र को एक सरल अर्थ ये हो गया कि एक बार वोट दे दो और फिर पांच साल के लिए उनको कोन्ट्रेक्ट दे दो कि बस ये तुमको दिया और अब तुम्हारी जिम्मेवारी है सारी समस्याओं का समाधान कर दिया और पांच साल में कुछ कमी रही तो फिर वोट देकर कर दूसरा कोन्ट्रक्टर ढूंढ लेंगें और उसको कहेगें कि देखो उसने नहीं किया तुम कर दो सिर्फ वोट देकर कर सरकार चुनना अब लोकतंत्र वहां पर सीमित हो जाता है तो लोकतंत्र को जो स्पीरिट है वो कभी पनप नहीं सकता है और इसलिए पार्टी स्पीटरी डेमोक्रेसी जनभागीदारी वाला लोकतंत्र इस सबसे बड़ी भारत जैसे विशाल देश में आवश्यकता है, टेक्नोलोजी के कारण ये सहज संभव हुआ है। आज जो स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है वो जनभागीदारी का उत्तम उदाहरण है लोग अपने आप संगठन नेता सब लोग कुछ-न-कुछ करने का प्रयास करते हैं आपका सवाल था गुड गर्वनस, हमारे देश में माना गया है गुड गर्वनस is a bad politics ये सही है ज्यादातर राजनीति में चुनाव जीतने के बाद सरकारों को इस बात पर ध्यान रहता है कि वे अगला चुनाव कैसे जीते और इसीलिए उनकी योजनाओं की priority उसी बात पर रहती है कि भाई अपना जनाधार कैसे बढ़ाए और अधिक वोट पाने के रास्ते खोजे और उसके कारण जिस उद्देश्य से कारवाह चलता है वो कुछ ही कदमों पर जाकर के लुढ़क जाता है।
आपने जो सोचा, समझा निर्णय किया धन लगाया अगर उसके लाभार्थी तक वो पहुंचता नहीं है आपने जो योजना बनाई, वो योजना को अगर लाभ नहीं मिलता है तो कुछ दिनों के लिए तो वाह-वाही हो जाती है कि सरकार ने अच्छा निर्णय किया एडीटोरियल भी लिखे जाएगें हैडलाइन न्यूज भी बन जाएगी लेकिन अगर हम गुड गर्वनस पर बल नहीं देंगें तो सामान्य मानव के जीवन में बदलाव नहीं आएगा मान लीजिए सरकारी खजाने से पैसे खर्च करके एक बहुत बढि़या अस्तपताल बन गया बहुत बढिया इमारत बन गई उत्तम से उत्तम संसाधन वहां लगाएगे साधन लाएगे टेक्नोलोजी लाई गई लेकिन वहां जो मरीज आता है अगर उस मरीज को इसका लाभ नहीं मिलता है एक कमरे से दूसरे कमरे उसको भटकना पड़ रहा है इमरजेंसी को पेंशन्ट आया है कोई देखने वाला नहीं है तो इतना डेवेलपमेंट होने के बाद भी इतना धन लगाने के बाद भी इतना बढि़या अस्पताल बनाने के बाद भी lack of good governence ये अरबों खरबों रूपया बेकार जाते हैं और इसलिए डेवेलपमेंट एंड गुड गर्वनस इन दोनों को संतुतिल संबंध होना चाहिए तभी जाकर कर सामान्य मानव को लाभ होगा। गुड गर्वनस हमारे देश में एक दुर्भाग्य है कुछ ओपनियन मेकर किसी पंचायत में कुछ हो जाए तो भी प्रधानमंत्री को पूछेगे, नगर पंचायत में ये हो गया तो भी प्रधानमंत्री को पूछेगें, जिला परिषद में हो गया तो भी प्रधानमंत्री का जवाब मांगेगे नगरपालिका में गया तो भी प्रधानमंत्री जवाब दें, महानगर पालिका में हो गया तो भी प्रधानमंत्री जवाब दें, राज्य में हो गया तो भी प्रधानमंत्री जवाब दें पॉलिटीकली तो ये ठीक है TRP के लिए भी शायद ठीक होगा। अब प्रधानमंत्री को तकलीफ हो वो कोई बुरी चीज नहीं है लोकतंत्र में होनी भी चाहिए और मेरे जैसे को ज्यादा होनी चाहिए लेकिन उसका दुष्प्रणाम ये होता है कि पंचायत अपनी जिम्मेवारी फील ही नहीं करता है, नगर पंचायत को लगता है कि ये मेरी जिम्मेवारी नही हैं, नगरपालिका को लगता है मेरी नहीं है, महानगर पालिका को लगता है मेरी नहीं है राज्यों को लगता है मेरी नहीं और उसके कारण गर्वनर को बहुत बड़ा नुकसान होता है। गुड गर्वनस के लिए पहली आवश्यकता है जिस जिस की जो जिम्मेवारी है उससे उस जिम्मेवारी का हिसाब मांगना चाहिए न नीचे हिसाब मागंना चाहिए न उपर ये सीधा सीधा उससे मांगना चाहिए तब सुधार होगा, सुधार तब होगा और इसलिए गुड गर्वनस एंड पीपल एवरनेस एंड ओपनियन मेकर ये बहुत आवश्यक है कि जिसकी जिम्मेवारी हो उसकी जवाबदेही हो ये एक बहुत अनिवार्य है दूसरा गुड गर्वनस में मेरा मत है कभी-कभी समस्याओं की जड़ में सरकार स्वयं होती है मैं जानता हूं ये मैं बोल रहा हूं इसके कारण क्या-क्या हुआ है। सरकार जितनी निकल जाए उतना ही जनता सामर्थ्यवान बनेगी और जनता राष्ट्र को जो चाहिए वो दे सकती है सरकार हर जगह पर आड़े आने की जरूरत नहीं हैं लेकिन अग्रेजों के जमाने से ये आदत बनी हुई हैं असको बदलना कठिन काम होने के बावजूद भी गुड गर्वनस के लिए ये बदलाव जरूरी है सरकारों ने अपने आपको बदलना होगा रूकावटें पैदा करे जनता को बार-बार हमारे पास आना पड़े, हमसे हिसाब मांगना पड़े ऐसी स्थिति क्यों होनी चाहिए अब आप सिंपिल सी बात है जेरोक्स का जमाना हुआ टेक्नोलॉजी आ गई लेकिन उसके बावजूद भी हम सर्टिफिकेट एटेस्ड करने के लिए उसको आग्रह करते थे कारपोरेटर को साइन ले आओ, एम.एल.ए का साइन ले आओ, एम.पी का साइन ले आओ, तहसीलदार का साइन ले आओ वो बेचारा साइन लेने के लिए घूमता फिरता था हमने आकर कर के निर्णय किया कि जनता पर भरोसा करो न, जेरोक्स मशीन है वो जेरोक्स करके भेज देता है जब फाइनल जोब मिलेगा तब ओरजिनल सर्टिफिकेट देख देना, टेली कर लेना गुड गवर्नस में प्रोसेस कम हो, सामान्य नागरिक को कोई भी चीज आसानी से पता चल जाए ये हम सहज रूप से डेवेलप करने के पक्ष में हैं ये ठीक है कि भारत सरकार को तत्काल नागरिकों से संबंध उतनी मात्रा में नहीं आता है जितना राज्यों को आता है, जितना महानगर पालिका को आता है लेकिन फिर भी अभी हमने ईज आफ डूयिंग बिजनेस का अभियान चलाया राज्यों के बीच काम्पीटिशन की ये सारे लाइसेंस के चक्करों को थोड़ा कम करो भाई, सेनसेटाईज किया उन्हें समझाया और मुझे खुशी है कि देश के कई राज्य जिनको कभी हम डेवेलप स्टेट नहीं मानते हैं उन्होंने initiative लिया अच्छे राज्यों ने initiative लिया और कई प्रोसेज को छोटा कर दिया सिंपिल कर दिया और टेक्नोलॉजी बेस कर दिया गुड गर्वनस का अनुभव होने लगा सामान्य मानवीय की आवश्यकता है अभी जैसे हमने इनाम नाम की योजना बनाई है ईमण्डी। आज किसान को कितने रूपये में माल बेचना चाहिए वो कोई और तय करता था अब टेक्नोलॉजी के माध्यम से किसान खुद तय करेगा कि मुझे कहां माल बेचना है, कितने दाम से बेचना है किसान का फायदा होगा और इसलिए गुड गर्वनस की ये आवश्यकता है दूसरा लोकतंत्र में एक सबसे बड़ी ताकत मैं मानता हूं तो वो है ग्रीवन्स रीडयसल सिस्टम क्या सरकार जनता की आवाज सुनती है, सुनती है तो उस पर जिम्मेवारी के साथ रिसपोन्स करती है हमारे गुड गर्वनस की आवश्यकता है और अभी बहुत कुछ करना है। सामान्य से सामान्य नागरिक की शिकायत, ये सूनने की उत्तम से उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए और टाइम पर निर्धारित समय सीमा पर उसको उसका रिसपोन्स मिलना चाहिए उसकी कठिनाइयां है तो उसमें से उसका बाहर निकालने के लिए सरकारी व्यवस्था ने उसकी अंगुली पकड़ करके उसकी मदद करनी चाहिए, उसको चुप नहीं करना चाहिए गुड गर्वनस की दृष्टि से इस दिशा में हम काम कर रहे हैं और जितनी ग्रीवन्स रीडयसल सिस्टम मैं अभी इन दिनों हर महीने एक प्रगति का कार्यक्रम करता हूं सभी सेक्रेटरी सभी चीफ सेक्रेटरी राज्यों के बैठता हूं जनता की जो बाते मेरे पास आती हैं मैं सीधा उनसे पूछता हूं, ईशू एक उठाता हूं लेकिन एडरेस पूरे सिस्टम को करता हूं अगर किसी ने पेशन को ले करके शिकायत की तो पेंशन के जितने मसलें है सब पर दबाव डाल करके मैं कहता हूं क्यों नहीं हुआ, कैसे करोगे, टाइम फ्रेम में कैसे करोगे तो गुड गर्वनस के लिए हम कुछ initiative ले रहे हैं और मुझे विश्वास है कि हमारी बहुत सारी समस्याओं को समाधान गुड गर्वनस से हुआ है दूसरा सवाल सरकार के ही एक निर्वत अधिकारी ने पूछा था और उनका सवाल था कि भारत आज विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यव्स्था है ये बात सही है कि बड़े देशों में भारत आज सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली इकोनॉमी है और वो भी सिर्फ हम आगे बढ़ रहे हैं ऐसा नहीं है दो भयंकर अकाल ड्राउट हमारा देश एग्रीकल्चर इकोनॉमी का बहुत बड़ा रोल है और उसमें अगर दो लगातार अकाल हो कितना बड़ा संकट हो सकता है हम समझ सकते है। दूसरा पूरे विश्व में मंदी का दौर चल रहा है रिसेशन (resession) का दौर चल रहा है। पूरी दुनिया की purchasing capacity काफी नीचे गिर है। जब विश्व की अर्थरचना का ये हाल हो, भारत के भीतर एग्रीकल्चर सेक्टर को इतना बड़ा प्रेशर हो और ऐसी विकट परिस्थिति में 7.5% से ज्यादा ग्रोथ पाना मैं सवा सौ करोड़ देशवासियों को अभिनंदन करता हूं, उनका वंदन करता हूं। ये उनके पुरूषार्थ और परिणाम का परिणाम है कि आज देश तेज गति से आर्थिक विकास की ओर आगे बढ़ रहा है।
और इसलिए अब सवाल ये है कि इस आर्थिक विकास की बदलाव क्या आता है। हम जानते है हमारे परिवार में अगर आज एक व्यक्ति कमाता है और 20 हजार रूपया आता है तो हम परिवार कैसे चलाते है उस 20 हजार रूपयों में प्रायोरिटी तय करते है कि भई क्या लाना है, क्या नहीं लाना है, कितना खाना, कितना नहीं खाना, सब्जी लानी की नहीं लानी दूध लाना की नहीं लाना, बच्चों के लिए नए कपड़े लाना की नहीं लाना सोचते है।
लेकिन परिवार में एक और व्यक्ति को कहीं रोजगार मिल जाए और 10 हजार रूपया और इनकम आ जाए तो तुरन्त हमारी इकोनॉमी का मेनेजमेंट बदल जाता है। जैसा परिवार का है वैसा ही देश का है।
अगर देश के खजाने में ज्यादा पैसा है तो ज्यादा विकास के काम होते है, ज्यादा विकास के काम होते है, तो ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। अगर ज्यादा पैसे होंगे तो रोड़ बढि़या बनेंगे, दूर-दूर तक बनेंगे तो रोड़ बनाने वालों को काम मिलेगा। बनाने वालों को काम मिलेगा तो पहले वो जूते नहीं खरीदता था अब वो जूते खरीदेगा। पहले वो एक टाइम खाना खाता था अब दो टाइम खाएगा। उसकी जेब में पैसा आया तो पैसा खर्च करेगा। खर्च करेगा तो पैसा फिर बाजार में आएगा, फिर बाजार में आएगा तो वो इकोनॉमी को ड्राइव करेगा और इसलिए सिम्पल सा अर्थकारण है इसके लिए स्ट्रेजी चाहिए, ऐसे नहीं होता है।
एक कुछ नियम, कुछ व्यवस्थाएं इन सब पर बल देना पड़ता है लेकिन optimal utilization of the natural resources जितना ज्यादा हम, हमारे पास जो प्राकृतिक संपदा है उसका हम जितना ज्यादा उपयोग करेंगे, उतना हमारी इकोनॉमी बढ़ेगी। हम ह्यूमन रिसोर्स का भी प्रॉपर यूटीलाइजेशन कर पाएगें। सिर्फ हम युवा है Eight hundred million, thirty five से नीचे हमारा ऐज ग्रुप के लोग है इससे करेगे तो नहीं होगा। हमें फोकस करके किसकी क्या क्षमता है, कहा उपयोगिता है उसको जोड़ेंगे तो इकोनॉमी बढ़ेगी।
भारत जैसा देश हजारों साल पुरानी विरासत हमारे पास है। हम अगर टूरिजम को बढ़ावा दें और सफलतापूर्वक बढ़वा दें। दुनियाभर के टूरिस्ट आए तो हमारी ये जो, हजारों साल से हमारे पास ये जो विरासत है वो हमारी इकोनॉमी में कनवर्ट हो जाएगी, वो हमारी इकोनॉमी को बढ़ा देगी और इसलिए ताजमहल में इनवेस्टमेंट किसने किया होगा।
उस समय शायद अखबार निकलते होंगे तो एडिटोरियल भी आया होगा कि एक ऐसा राजा है लोग भूखे मर रहे है, ताजमहल बना रहा है उस समय शायद टीवी चैनल चल होगी तो सब आया होगा मजदूरों के हाल क्या है, कैसे हो रहा है। लेकिन वो ही ताजमहल आज लाखों लोगों के रोजगार का कारण बन चुका है इसलिए हम किन बातों का कैसे उपयोग करते है उसके आधार पर तय होता है कि हम इकोनॉमी को कैसे ड्राइव कर सकते है। और ये देश के लिए आवश्यक है।
ज्यादा नहीं यारों, 30 साल। अगर हम 8 percent से ज्यादा ग्रोथ अचीव कर लेते है तो दुनिया में आज जो कुछ भी उत्तम देखते है वो सारा आपके कदमों में हो सकता है, हिन्दुस्तान में हो सकता है और ये हम सबका लक्ष्य रहना चाहिए। किसान है तो भी। अगर दो एकड़ भूमि है तो है, दो की ढाई शायद नहीं होगी। लेकिन दो एकड़ भूमि में मैं ज्यादा उत्पादन कैसे करूं, उस पर अगर मैं बल देता हूं, मैं ग्रोथ को ताकत देता हूं।
हम कितना ज्यादा, दूसरा भारत के जो मैन्यूफैक्चर्स है। उन्हें ग्लोबल मार्केट की ओर टारगेट करना चाहिए। जब भारत में बनी हुई ट्रेन मेट्रो ऑस्ट्रेलिया में एक्पोर्ट होती है। भारत में बनी हुई जापानी कंपनी मारूति जब भारत में कार बनाती है और जापान उसको इंपोर्ट करता है तो हिन्दुस्तान की इकोनॉमी बढ़ती है।
आज हम अरबों-खरबों रूपयों का पैट्रोलियम प्रोडेक्ट बाहर से लाते है, हम सोलर एनर्जी पर बल दें। हमारी अपनी ताकत पर हमारा इंपोर्ट कम करने की स्थिति में आ जाए, हम ग्रोथ में एक नया एडिशन जोड़ सकते है। डिफेंस अरबों-खरबों रूपयों का डिफेंस इक्यूपमेंट हमको बाहर से लाना पड़ता है। भारत के नौजवानों के पास टैलेंट है।
अगर हम डिफेंस इक्यूपमेंट मैन्यूफ्रैक्चरिंग के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेंगे, एफडीआई लाएगे, लेकिन बनाएगे यहां नौजवान को रोजगार भी मिलेगा और हमें इंपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ेगी। भारत अपने आप पर सुरक्षित होगा। तो हमारा आर्थिक विकास तेज गति से हो constant हो, उतार-चढ़ाव, उतार-चढ़ाव नहीं आने चाहिए। अगर ये हम करने में सफल हो गए।
30 साल 30 साल में आज जो भी दुनिया में उत्तम से उत्तम देखते है वो सब आपकी आंखों में, आंखों के सामने हिन्दुस्तान की धरी पर होगा। ये मेरा विश्वास है।
एक तीसरा सवाल था मैडम का हेल्थ सेक्टर के संबंध में। उनकी चिंता बहुत स्वाभाविक है, हम लोग बचपन से सुनते आए है ‘हेल्थ इज वेल्थ’ लेकिन हमने देखा है कि जब खाने के टेबल पर बैठते है, एक-दूसरे को खाने के लिए आग्रह करते है और डायटिंग की चर्चा करते है। ये अक्सर आपने देखा होगा, ये हेल्थ का भी ऐसा ही है। हर कोई व्यक्ति दूसरे को सलाह देता है, लेकिन खुद पालन करने से कतराता है। वो दूसरे को कहेगा 40 प्लस हो गए ना हर साल रेगुलर मेडिकल चेकअप करवाओ। फिर आपको पूछो आपकी क्या उम्र है, मेरी 47 अपने कितनी बार करवाया, नहीं मैंने नहीं करवाया।
क्या कारण है कि हमारे देश में एक जमाना था कि गांव में एक वैद्यराज हुआ करता था और पूरा गांव स्वस्थ रहता था। आज आंखों का डॉक्टर अगल है, कान का डॉक्टर अलग है, पैर का डॉक्टर अलग है, हाथ का डॉक्टर अलग है, दिमाग का डॉक्टर अलग है। लेकिन बीमारी बढ़ रही है और इसका मतलब ये है कि preventive health के प्रति हम उदासीन है preventive health care पर हमें बल देना चाहिए। डॉक्टर की जरूरत ही न पड़े उस पर हम बल दे।
अगर हम पीने का शुद्ध पानी ये अगर हम पहुंचाने में सफल होते है जो सामान्य मानव का हक है। मैं जनता हूं काम बड़ा कठिन है लेकिन किसी ने तो सोचना चाहिए। बिमारियों की काफी कठिनाईयां वहीं से दूर होना शुरू हो जाएगी। ये जो मैं स्वच्छता अभियान के पीछे लगा हुआ हूं।
स्वच्छता अभियान एक प्रकार से बीमारी के खिलाफ लड़ाई है और गरीब को मदद करने का सबसे बड़ा उपक्रम है। अगर एक गरीब परिवार में बीमारी आती है तो वर्ल्ड बैंक का कहना है एवरेज 7 हजार रूपया उस गरीब परिवार का बीमारी को ले करके खर्च होता है। अगर वो परिवार स्वस्थ रहें, सिर्फ दवाई नहीं एक ऑटो रिक्शा वाला बीमार हो जाता है तो तीन दिन ऑटो रिक्शा बंद हो जाती है और तीन दिन पूरा परिवार भूखा बैठा रहता है और इसलिए जब हम हेल्थ की चर्चा करें तब सामान्य मानवीकि जिन्दगी में हम क्या कर सकते है उस पर अगर हम बल देंगे तो हम वाकईय, वाकईय हेल्थ सेक्टर में बदलाव आएगा। preventing health care पर बल देना पड़ेगा। चाहे वो स्वच्छता का विषय हो, योगा हो एक्सरसाइज हो, खान-पान की आदतें हो, दूसरा affordable health care ।
आज आप देखिए हिन्दुस्तान में किडनी को ले करके समस्याएं इतनी तेजी से बढ़ रही है कि हम सैकड़ों की तादात में डायलिसिस सेन्टर खोल दे तो भी कहना कठिन है कि वो क्यू बंद होगा कि नहीं होगा। पिछली बार बजट में हमने घोषित किया है पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के मॉडल पे सरकारी अस्पतालों में कमरा दे देंगे। आप आईए इन्वेस्टमेंट कीजिए, डायलिसिस सेन्टर चलाइए।
सामान्य मानवी कहा जाएगा और ये बिमारियों कोई अमीरों को होती है ऐसा नहीं है। सामान्य मानवी को होती है उनके लिए हम कैसे काम करें। हमारे देश में अरबों-खरबों रूपयों की एडवर्डटाइजिंग होती है। टीकाकरण के लिए, टीकाकरण के लिए सरकार खर्चा करती है, करती है। बजट कम है नहीं है, अफसर काम करते है करते है, मां-बाप को जागरूक करने के लिए प्रयास होता है होता है, टीवी पर एडवर्डटाइजमेंट अखबारों पर एडवर्डटाइजमेंट देते है, देते है।
उसके बावजूद भी लाखों की तादाद में वो बच्चे पाए गए जिन्होंने टीकाकरण नहीं करवाया था। अब हम जानते है टीकाकरण बच्चों के स्वास्थ्य के लिए और भविष्य के लिए बहुत ही पुरूवंत व्यवस्था है। लेकिन उदासीनता है, बहुत उच्च परिवार के लोग कभी उनको शर्मिंदगी महसूस होती है कि ऐसी लाइन में हम क्यों खड़े रहे, इसलिए उनका रह जाता है और गरीब परिवार- अरे भई आज तो रोजगार कमाने जाना है देखेगें अगली बार करवा लेंगे।
अभी हमने योजना के तहत। ऐसे कितने बच्चे रहे गए, खोजने का अभियान चलाए पूरे देश में। और लाखों की तादाद में ऐसे बच्चे पाए गए कि सरकार की सारी सुविधाएं होने के बावजूद भी उन्होंने इसका फायदा नहीं लिया। अब घर-घर जा करके टीकाकरण का काम चल रहा है। हेल्थ विभाग बहुत तेजी से इस काम को कर रहा है।
हेल्थ सेक्टर में हम एक Insurance की और आगे बढ़ रहे है कुछ ही दिनों में शायद उसको हम finalize करेगे। बजट में उसका हमने उल्लेख किया था ताकि हमारे देश का गरीब से गरीब व्यक्ति हेल्थ के संबंध में सिर्फ हेल्थ नहीं, हेल्थ assurances पर बल दिया गया है। उस दिशा में हम काम कर रहे है और उसका लाभ होगा ऐसा मुझे लगता है।
कल 7 अगस्त है हैंडलूम डे है हमें मालूम है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में विदेशी कपड़ों की होली और स्वदेशी का मंत्र इसके साथ-साथ जुड़ी हुई है और इसलिए हैंडलूम में हमने पिछले साल से 7 अगस्त से शुरू किया है हमारे देश में गरीब से गरीब लोगों को रोजगार देने की ताकत एग्रीकल्च्र के बाद किसी एक सेक्टर में है तो वो है टेक्सटाइल, हैंडलूम, खादी, विविंग ये जो काम है उसकी सबसे बडी ताकत है। सवा सौ करोड़ देशवासी तय कर लें कि मैं जो कपड़ों के पीछे खर्च करता हूं उसमें से ज्यादा नहीं पांच परसेंट मैं इन परोडक्ट पर लगा दूंगा मैं आपको विश्वास दिलाता हूं इन सामान्य गरीब लोग जो हाथ से काम करता है उसकी ईकोनोमी में आसमान जमीन का परिवर्तन आ जाएगा। मैं हर एक को कहता हूं 2 अक्टूबर को कुछ न कुछ जरूर खादी का खरीदिए और वो महीने भर कमीशन भी देते हैं जरूरी नहीं कि आप खादीदारी बने एकाध चीज तो खादी की घर में रख सकते हैं जेब में रख सकते हैं आप देखिए गरीब आदमी को मदद मिलती है हैण्डलूम अपने आप में एक फैशन की जगह ली एक जमाना था कि खादी आजादी की लड़ाई का एक सिम्बल था मंत्र था खादी फोर नेशन आज खादी फोर नेशन खादी फोर फैशन ये अगर हम मूड बनाते हैं पर हैंण्डलूम के विकास के लिए बहुत संभावना है, उसमे टेक्नोलोजी को अपग्रेडशन भी चल रहा है उसमें फैशन डिजाइनर भी अब आ रहे हैं और दूसरा जो ग्लोबीली होलिस्टिक हेल्थ केयर की तरफ लोग चल रहे हैं, उसकी तरफ झुकाव रखते हैं उनका हैंडलूम और खादी की चीजों की तरफ आकर्षण बढ़ रहा है हम जो टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए नौजवान यहां बैठे हैं हम ईप्लेटफार्म को ग्लोबल मार्किटिंग करके हमारे इन गरीब लोगों की चीजो को दुनिया में बेचने को एक बहुत बड़ा अभियान चला सकते हैं और मैंने देखा कि आज आपने एक मर्चनटाइल एक्टिविटी को भी यहां से लॉन्च करवाया है मेरे हाथ से लेकिन मुझे खुशी हुई कि बाद आपने कहा कि ये पराफिट गंगा सफाई में जाएगा तो मेरा डर कम हो गया वर्ना होता कि ये मोदी अब बिजनेस करने लग गया है लेकिन एक अच्छा इनिसिएटिव है हम हैण्डलूम को पॉपूलर करें हमारे गरीब बुनकर जो इतनी मेहनत करते हैं उनके लिए हम सुविधा करें आप देखिए, देखते ही देखते ग्रामीण इकोनोमी में बदलाव आ जाएगा।
पहला सवाल था विदेश नीति के संबंध में विदेश नीति कोई ये सारे एग्रेसिव, प्रोग्रेसिव और प्रोएक्टिव इन शब्दों की जरूरत नहीं है एकचूलि विदेश नीति देश के हित की नीति होती है। इंडिया फर्स्ट उसका सेंटर पॉवइट यही है इंडिया फर्स्ट भारत के र्स्टेजिक जो हित है उसकी रक्षा हो भारत आथ्रिक दृष्टि से फले फूले दुनिया में जहां जगह हो वहां पहुंचे और तीसरी बात है वक्त बदल चुका है पूरी दुनिया इंटरडिपेंडट है दुनिया का कोई देश एक खेमें में भी नहीं है और खेमे वाला युग भी पूरा हो चुका हो हर कोई किसी से जुड़ा हुआ है और पांच चीजों में साथ चलता होगा दो चीजों में सामने चलता होगा फिर भी साथ-साथ रहते होंगें ये अवस्था है इसका बारीकी से समझना उपयोग करना और भारत के हितों की चिंता करना ये मैं समझता हूं बहुत बड़ा काम है और दूसरा एक पहलू जो हमने उपयोग करना चाहिए वो है हमारा diaspora दुनिया में बसे हुए भारतीयों की अपनी एक ताकत है, दुनिया में बसे हुए भारतीयों की अपनी एक साख है, इज्जत है, उनकी उन उन सरकारों ने उनके प्रति बड़ा आदरभाव है ये हमारी शक्ति का भारत के लिए दुनिया के साथ संबंधों को जोड़नें के लिए एक बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं इन दिनों diaspora काफी प्रोएक्टिव हुआ है। एसरटिव भी होने लगा है। मैं समझता हूं ये भारत के लिए बहुत आवश्यक है और बहुत अच्छी तरह दुनिया के लिए भारत एक नई उर्जा के साथ, एक प्रतिष्ठा के साथ अपनी जगह बना रहा है और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़े हुए देशों में भारत आज कई initiative ले रहा है जिसमें दुनिया हमारा साथ दे रही है तीसरा सवाल उन्होंने मेरा व्यक्तिगत पूछा जो विदेश में रह रहे है उनके लिए सवाल बहुत स्वाभाविक है क्योंकि वो जेकलेस से परेशान रहते हैं तो इसलिए उन्होंने खास पूछा कि आप इतना सफर करके जाते हो और फिर वापिस चले जाते हो मुझे लगता है कि ये सवाल, ये सवाल मुझे बहुत लोग पूछते हैं और आज से नहीं पूछते हैं मुझे कई साल से पूछते हैं कि आप थकते नहीं है क्या। सवा सौ करोड़ देशवासी उनके सपने, उनकी स्थिति, मैं पूरे मन से उनसे जुड़ा रहता हूं और इसलिए मुझे हमेशा लगता है कि मेरे पास जितना समय है जितना शक्ति है उसे इसमें खपा दूं, खर्च कर दूं अपने आपको आभूत कर दूं और कभी लोगों में सोच ये हैं कि आपमें इतनी उर्जा है इसलिए आप इतना काम कर पाओगे ये अर्थमेटिक गलत है इतनी उर्जा है इसलिए आप इतना काम कर पाओगे, ऐसा नहीं है एक बार आपको पता चल जाए कि इतना काम है ये मेरा मिशन है कि उर्जा अपने आप आने लग जाती है, हर व्यक्ति को ईश्वर ने उर्जा दी हुई है कोई उस उर्जा को खंडित होने देता है कोई उस उर्जा को तेजस्वी बना देता है हम सबके पास आपसे मेरे पास अलग कुछ नही है आपको ईश्वर ने जो दिया है मेरे पास उतना ही है लेकिन मैं एक मिशन मोड़ में उसको खपा देने के लिए निकला हूं तो वो बढ़ती चली जा रही है और काम आती जा रही है आप भी इसी मंत्र को ले करके चल सकते हैं दूसरा विषय था टूरिज्म इन सरकार ने जो इनीसिएटिव ली है उसके कारण टूरिज्म में काफी वृद्धि हुई है चालीस लाख से ज्यादा विदेश के टूरिस्ट पिछले छ: महीने में भारत आए हैं , ईवीजा के कारण और सुविधा हुई है स्वच्छता के कारण टूरिज्म को एक स्वाभाविक हमें बायप्रोडेक्ट के रूप में फायदा हो रहा है पहले लोग आते थे सब कुछ देखते थे लेकिन जा करके यार है तो बढि़या लेकिन थोड़ा ये थोड़े में से बाहर आ रहे हैं हम लोग, तीसरी बात है भारत में भारत की जो विरासत है दुनिया को उसके लिए आकर्षित करना चाहिए हम ये कहें कि हमारे समुद्र तट से टूरिज्म आएगा तो दुनिया में इससे भी अच्छे बहुत से समुद्रतट मिल जाएगें लेकिन अगर किसी को ये पता चले कि पांच हजार साल पुरानी ये चीज है, दो हजार साल पुरानी ये चीज है, एक हजार साल पुरानी ये चीज है, तो उसको ये लगता है कि अच्छा ऐसा है चलो भई ये कैसी संस्कृति, मानव संस्कृति जरा देखे तो सही दुनिया आकर्षित हुई आप हैरान होंगे जी भारत के पास भोजन उसकी विविधताएं इतनी है कि हम अगर परोपर मार्किटिंग करें तो दुनिया को पागल कर सकते हैं विश्व ने तो एक कोने में जो पीजा हट देखा हजारों किलोमीटर दूसरे कोने पर वही पीजा हट होता है वही टेस्ट होता है और कोई फर्क नहीं होता है हमारे यहां तो तमिलनाडू के एक कोने से निकले दूसरे कोने पर जाएं तो इडली के दस टेस्ट बदल जाते हैं लेकिन हमारी इस ताकत को हमने हमारी इन चीजों को ताकत के रूप में देखा नहीं, ये हमारी ताकत है मैंने एक बार फैशन डिजाइनरों से चर्चा कर रहा था मैंने कहा कभी भारत में ये जो कपड़े पहने जाते हैं आपने कभी उसका स्टडी किया है क्या कारण है इस इलाके के लोग कपड़े ऐसे पहनते है इस इलाके के लोग कपड़े ऐसे पहनते है भारत में मर्यादा नाम की चीज का बहुत बड़ा वो है प्रेशर लेकिन फिर भी कुछ समाज ऐसे हैं कि जहां महिलाओं का अपना घाघरा पांव से आधा फूट उपर होता है क्या कारण है वर्ना समृध महिला अपने पैर का नाखून भी नहीं दिखने देती हैं क्या कारण है, आपने स्टडी किया है वो कहे नहीं ऐसा नहीं स्टडी किया है मैंने कहा यही तो है हिन्दुस्तान की विशेषता वो अगर पगड़ी पहनता है तो क्या वेदर था, क्या कारण था पगड़ी क्यों ऐसे पहनने लगा, वो अगर शरीर पर ऐसा कपड़ा डालता था तो क्या कारण था उपर की तरफ जाओ तो एक प्रकार धोती पहनता है दक्षिण की तरफ जाओ तो लुंगी पहनता है क्या कारण है जी दुनिया को हमारी विविधताओं से हम आकर्षित कर सकते हैं और जितना ज्यादा हमारी विरासत से लोगों को जोड़ेगे उतने हमारे टूरिज्म को बल मिलेगा बाकि जो आधुनिक चीजे हैं आज दुनिया में हमसे बहुत अच्छी चीजे देने के लिए विश्व में सब कुछ मौजूद है जो दुनिया के पास नहीं है जो हमारे पास है उस पर ही हमें फोकस करना चाहिए। टूरिज्म स्वभाव से भी जुड़ा हुआ है भारत के लोग अतिथि सत्कार के स्वभाव के है इसको हम जितना पनपायेगें लाभ होगा और मैं विदेश में रहने वाले भारतीयों से कहना चाहूंगा कि आप हिन्दुस्तान में डॉलर इन्वेस्ट करें या न करें, आप हिन्दुस्तान में आकर करके कोई सामाजिक कार्य करें या न करें एक काम हर कोई कर सकता है विश्व में फैला हुआ भारतीय समाज एक काम आसानी से कर सकता है वहां वो नौकरी पर जाता है काम पर जाता है तो उस देश के नागरिकों से उसका संबंध आता है तय करें कि हर वर्ष पांच नॉन इंडियन फेमिली को भारत जाने के लिए समझाऊगां, भेजूगां इतना करो। भारत सरकार का टूरिज्म डिर्पाटमेंट से सैंकड़ो गुना काम ये लोग कर सकते हैं कोई मुश्किल काम नहीं है हम टूरिज्म को बढ़ा सकते है।
देखिए भारत में सामाजिक काम करना ये हमारे संस्कारों में है, हमारी विरासत में है। कोई भी संकट आया होगा आप देखते होंगे लोग पहुंच जाते है, कुछ न कुछ करते है। तो भारत में समाज सेवा ये कोई सिखनी नहीं पड़ती है, उसके कोई क्लास नहीं पड़ते है, ये हमारे स्वाभाव में होते है।
समस्या ये है कि इन दिनों समाज सेवा के साथ मेरा ज्ञान ये जुड़ गया है। सचमुच में आप कल्पना करिये कि बाबा साहब अंबेडकर शिक्षा-दिक्षा पा करके इतने बड़े व्यक्ति बने। भारत में दलित होने के कारण उनको बहुत सारे अपमान सहने पड़ते थे। विदेशों में उनके लिए मान-सम्मान पद-प्रतिष्ठा-पदवी सब कुछ मौजूद था। लेकिन ये बाबा साहब अंबेडकर का सेवाभाव देखिए कि वो सारी अच्छाईयों को छोड़ करके यहां अपमानित होऊंगा भले हो जाऊंगा लेकिन जा करके हिन्दुस्तान में ही काम करूंगा, ये है प्रेरणा और वो आए।
महात्मा गांधी बेरिस्टर थे छोड़-छाड़ करके आ गए, सरदार वल्लभई पटेल बेरिस्टर थे बहुत कुछ कमा-धमा सकते थे। पढ़ाई की छोड़ दिया आ गए। वीर सावरकर बेरिस्टर थे बहुत बड़ी संभावनाएं थी छोड़ दिया। आ गए अंडमान की जेलों में जिन्दगी गुजार दी जवानी खपा दी आ गए।
अनगिनत ऐसे लोग है जिन्होंने देश के लिए कुछ न कुछ छोड़ा है। स्वयं से भी संघर्ष सेवाभाव से हमारे भीतर एक स्पार्क होना चाहिए। हम कुछ नहीं कर सकते हमारे रहने के नजदीक में कोई गवर्नमेंट स्कूल है। कभी आधा घंटा जाए तो सही पूछे तो सही इन बच्चों को, धीरे-धीरे मन लगेगा चलो भई इन बच्चों को मैं दम है वो टीचर तो नहीं पढ़ाता है, मैं पढ़ाऊंगा आप स्वयं एक संगठन है। कोई बड़े संगठन की जरूरत नहीं होती है, कोई बहुत बड़े डोनेशन की जरूरत नहीं होती है, बहुत बड़ी इंस्टीट्यूशन बनाने की जरूरत नहीं होती है। बस तय करे कि मुझे कुछ करना है।
मैं कभी-कभी ये जो गौ-रक्षा के नाम पर कुछ लोग अपनी दुकानें खोल करके बैठ गए है, मुझे इतना गुस्सा आता है। गऊ भक्त अलग है, गऊ सेवक अलग है। पुराने जमाने में आपने देखा होगा कि बादशाह और राजाओं की लड़ाई होती थी, तो बादशाह क्या करते थे अपनी लड़ाई की फौज के आगे गायें रखते थे। राजा के परेशानी होती थी कि लड़ाई में अगर हम शस्त्रों का वार करेगे तो गाय मर जाएगी तो पाप लगेगा और इसी उलझन में वो हार जाते थे और वो भी बड़ी चालाकी से गाय रखते थे।
मैंने देखा है कि कुछ लोग जो पूरी रात एंटी सोशल एक्टिविटी करते है, कुछ लोग। लेकिन दिन में गऊ रक्षक का चोला पहन लेते है। मैं राज्य सरकारों को अनुरोध करता हूं कि ऐसे जो स्वयंसेवी निकले है, अपने आप को बड़ा गौ-रक्षक मानते है उनको जरा डोजियर तैयार करो। 70-80 percent ऐसे निकलेंगे जो ऐसे गोरख धंधे करते है जो समाज स्वीकार नहीं करता है लेकिन अपनी उस बुराईयों को उनसे बचने के लिए ये गौ-रक्षा का चोला पहन करके निकलते है। और सचमुच में, सचमुच में वो गऊ सेवक है तो मैं उनसे आग्रह करता हूं एक काम कीजिए। सबसे ज्यादा गाय कत्ल के कारण मरती नहीं है, प्लास्टिक खाने से मरती है। आपको जान करके हैरानी होगी गाय कूड़-कचरे में से प्लास्टिक खा जाती है और उसका परिणाम होता है कि गाय मर जाती है। मैं जब गुजरात में था तो मैं कैटल हेल्थ कैंप लगाता था। पशुओं के हेल्थ कैंप लगाता था बड़े-बड़े कैंप लगाता था और उसमें मैं ऐसी गायों के बीमारी को उनके ऑपरेशन करवाता था। एक बार मैं एक इस कार्यक्रम में गया एक गाय उसके पेट में से दो बाल्टी से भी ज्यादा प्लास्टिक निकाला, पेट में से काट करके। अब ये जो समाज सेवा करना चाहते है कम से कम गाय को प्लास्टिक खाना बंद करवा दें और प्लास्टिक लोगों को फेंकना बंद करवा दें तो भी बहुत बड़ी गौ सेवा होगी।
और इसलिए स्वयं सेवी संगठन, स्वयं सेवा ये औरों को प्रताडि़त करने के लिए नहीं होती है, औरों को दबाने के लिए नहीं होती है। एक समर्पण चाहिए, करूणा चाहिए, त्याग चाहिए, बलिदान चाहिए तब जा करके सेवा होती है और इसलिए अगर हम सब कुछ न कुछ समाज के लिए करें। कभी हमने हमारे अखबार बाटने वाले को पूछा नहीं होगा कि भई क्या करते हो, बच्चे कितने है, क्या पढ़ने नहीं पूछा होगा। दूध देने आता है घर पे थैली रख करके चला जाता है कभी नहीं पूछा होगा। पोस्टमैन आता है, डाक देकर जाता है कभी पूछा नहीं होगा क्या है भई। कभी तो अपनों के आस–पास जो सामान्य जीवन जीने वाले उनको पूछो तो सही कि भई क्या हाल है तेरा, तेरे बच्चे की पढ़ाई क्या है। आप देखिए सेवा करने के लिए प्रधानमंत्री के भाषण की जरूरत नहीं पढ़ेगी। आपके बगल में खड़े हुए इंसान उसका जवाब ही आपको कुछ करने की प्रेरणा दे देगा और अगर ये आपने कर लिया मुझे विश्वास है कि आप देश की भलाई के लिए बहुत कुछ कर सकते है। मुझे अच्छा लगा आज काफी समय हो गया इसको पूरा करना चाहिए। अच्छा लगा मुझे आप सबसे मिलने का अवसर मिला। जिन लोगों को आज सम्मानित करने का मुझे अवसर मिला है, जिन्होंने योगदान किया है, जिन्होंने अचीव किया है ऐसे सभी साथियों को मैं बधाई देता हूं। लेकिन और लोग भी जो लगातार ये पुरूषार्थ कर रहे है, परिश्रम कर रहे है और जोड़ रहे है। सरकार में सजगता इससे आती है। आज ये सबसे बड़ा एम्पावरमेंट है टेक्नोलॉजी एक जमाना था कि कुछ लोग दिन-रात हमें उपदेश देते थे। ये अच्छा ये बुरा, आपको ये करना चाहिए वो करना चाहिए बहुत कुछ हमें कहते थे, देशवासियों को कहते थे, नागरिकों को कहते थे, खिलाडि़यों को कहते थे हर किसी को कहते थे।
आज एक ऐसी ताकत आपके हाथ में आ गई है आप उसको भी कहते हो कि भई तुम बहुत झूठ बोल रहे हो सच ये है। ये ताकत छोटी नहीं है जी। प्रधानमंत्री कुछ कह दे तो एक जमाना था कि राष्ट्र के नाम संदेश दे दिया, दे दिया लोगों ने सुन लिया। अच्छा लगा ठीक है नहीं लगा ठीक है। आज प्रधानमंत्री बोलेगे तो तीन मिनट में वो आ जाता है कि साहब ये तो ठीक है लेकिन आप 10 साल पहले ये करते थे ये ताकत है।
हम तो सार्वजनिक जीवन में आलोचनाएं सह-सह करके बड़े हुए है और वो लोकतंत्र की विशेषता है लेकिन बहुत लोग है उनको आलोचना पचती नहीं है। मैं तो उनको, उनको बुखार आ जाता है, मैं हैरान हूं क्योंकि अब तक उनको उपदेश देने का ही मौका मिला था। हम सबको, हम सबको आलोचनाओं को स्वीकार करना, आलोचनाओं को समझना और मैं मानता हूं कि ये टेक्नोलॉजी का प्लेटफॉर्म। हमें संस्कारित करता है, हमें शिक्षित करता है। हम अपनी बुराईयों को किसी के माध्यम से आसानी से जान सकते है वरना अलग-बगल के मित्र भी संकोच करते है यार कहूं के नहीं कहूं, कहूं की नहीं कहूं बुरा लगता था। आज तो वो दे देता है साहब मोदी जी बाकि सब ठीक है लेकिन जवाब बहुत लंबे थे, लिख देगा वो, उसको कोई संकोच नहीं है। ये भी कह देगा कि मोदी जी आपने ये कहा लेकिन ये ठीक नहीं है यही एम्पावरमेंट है MyGov के द्वारा सरकार को जनभागीदारी से चलाने का इरादा है लाखों लोग जुड़े हैं करोड़ों लोग जुड़े ये अपेक्षा है और आप सबके प्रयासों से ये सब होगा बहुत बहुत धन्यवाद