One nation, one fertilizer: PM Modi

Published By : Admin | October 17, 2022 | 11:11 IST
Inaugurates 600 Pradan Mantri Kisan Samruddhi Kendras
Launches Pradhan Mantri Bhartiya Jan Urvarak Pariyojana - One Nation One Fertiliser
Launches Bharat Urea Bags
Releases PM-KISAN Funds worth Rs 16,000 crore
3.5 Lakh Fertiliser retail shops to be converted to Pradan Mantri Kisan Samruddhi Kendras in a phased manner; to cater to a wide variety of needs of the farmers
“The need of the hour is to adopt technology-based modern farming techniques”
“More than 70 lakh hectare land has been brought under micro irrigation in the last 7-8 years”
“More than 1.75 crore farmers and 2.5 lakh traders have been linked with e-NAM. Transactions through e-NAM have exceeded Rs 2 lakh crore”
“More and more startups in agriculture sector augur well for the sector and rural economy”

भारत माता की– जय

भारत माता की– जय

भारत माता की– जय

त्योहारों की गूंज सुनाई दे रही है चारों तरफ, दिवाली दरवाजे पर दस्‍तक दे रही है। और आज एक ऐसा अवसर है इस एक ही परिसर में, इस एक ही premises में, एक ही मंच पर स्टार्ट अप्स भी हैं और देश के लाखों किसान भी हैं। जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान, एक प्रकार से ये समारोह, इस मंत्र का एक जीवंत स्वरूप हमें नजर आ रहा है।

साथियों,

भारत की खेती के सभी बड़े भागीदार आज प्रत्यक्ष रूप से और वर्चुअली, पूरे देश के हर कोने में इस कार्यक्रम में हमारे साथ जुड़े हुए हैं। ऐसे महत्वपूर्ण मंच से आज किसानों के जीवन को और आसान बनाने, किसानों को और अधिक समृद्ध बनाने और हमारी कृषि व्यवस्थाओं को और आधुनिक बनाने की दिशा में कई बड़े कदम उठाए जा रहे हैं। आज देश में 600 से ज्‍यादा प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों की शुरुआत हो रही है। और मैं अभी यहां जो प्रदर्शनी लगी है, उसे देख रहा था। एक से बढ़कर एक ऐसी अनेक टेक्‍नोलॉजी के इनोवेशन वहां हैं, तो मेरा मन तो कर रहा था कि वहां जरा और ज्‍यादा रुक जाऊं, लेकिन त्‍योहरों का सीजन है आपको ज्‍यादा रोकना नहीं चाहिए, इसलिए मैं मंच पर चला आया। लेकिन वहां मैंने ये प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र की जो रचना देखी, उसका एक जो मॉडल खड़ा किया है, मैं वाकई मनसुख भाई और उनकी टीम को बधाई देता हूं कि किसान के लिए सिर्फ उर्वरक खरीद-बिक्री का केंद्र नहीं है, एक सम्‍पूर्ण रूप से किसान के साथ घनिष्‍ठ नाता जोड़ने वाला, उसके हर सवालों का जवाब देने वाला, उसकी हर आवश्‍यकता में मदद करने वाला ये किसान समृद्धि केंद्र बना है।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही, देश के करोड़ों किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि के रूप में 16 हज़ार करोड़ रुपए की एक और किश्त उनके खाते में जमा हो गई है। आप में से अभी जो किसान यहां बैठे होंगे, अगर मोबाइल देखेंगे तो आपके मोबाइल पर खबर आ गई होगी कि 2000 रुपये आपके जमा हो चुके हैं। कोई बिचौलिया नहीं, कोई कंपनी नहीं, सीधा-सीधा मेरे किसान के खाते में पैसा चला जाता है। मैं इस दिवाली से पहले इस पैसे का पहुंचना, खेती के अनेक महत्वपूर्ण कामों के समय पैसा पहुंचना, मैं सभी हमारे लाभार्थी किसान परिवारों को, देश के कोने-कोने में सभी किसानों को, उनके परिवारजनों को इस अवसर पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

जो एग्रीकल्चर स्टार्ट अप्स यहां पर हैं, इसके जो आयोजन में आए हैं, मैं उन सबका भी जो हिस्‍सा ले रहे हैं, किसानों की भलाई के लिए उन्‍होंने जो नए-नए इनोवेशन किए हैं, उनकी (किसानों की) मेहनत कैसे कम हो, उनके पैसों में बचत कैसे हो, उनके काम में गति कैसे बढ़े, उनकी सीमित जमीन में ज्‍यादा उत्‍पादन कैसे हो, ऐसे अनेक काम, ये हमारे स्‍टार्टअप वाले हमारे इन नौजवानों ने किए हैं। मैं वो भी देख रहा था। एक से बढ़कर एक इनोवेशन नजर आ रहे हैं। मैं ऐसे सभी युवाओं को भी, जो आज किसानों के साथ जुड़ रहे हैं, उनको बहुत-बहुत बधाई देता हूं और उनका इसमें भागीदार होने के लिए हृदय से अभिनंदन और स्वागत करता हूं।

साथियों,

आज वन नेशन, वन फर्टिलाइजर, इसके रूप में किसानों को सस्ती और क्वालिटी खाद भारत ब्रांड के तहत उपलब्ध कराने की योजना है, ये शुरू हो गई है आज। 2014 से पहले फर्टिलाइजर सेक्टर में कितने बड़े संकट थे, कैसे यूरिया की कालाबाज़ारी होती थी, कैसे किसानों का हक छीना जाता था, और बदले में किसानों को लाठियां झेलनी पड़ती थीं, ये हमारे किसान भाई-बहन 2014 के पहले के वो दिन कभी नहीं भूल सकते हैं। देश में यूरिया के बड़े-बड़े कारखाने बरसों पहले ही बंद हो चुके थे। क्‍योंकि एक नई दुनिया खड़ी हो गई थी, इम्पोर्ट करने से कई लोगों के घर भरते थे, जेबें भरतीं थीं, इसलिए यहां के कारखाने बंद होने में उनका आनंद था। हमने यूरिया की शत प्रतिशत नीम कोटिंग करके उसकी कालाबाजारी रुकवाई। हमने बरसों से बंद पड़े देश के 6 सबसे बड़े यूरिया कारखानों को फिर से शुरू करने के लिए मेहनत की है।

साथियों,

अब तो यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत अब तेजी से लिक्विड नैनो यूरिया, प्रवाही नैनो यूरिया की तरफ बढ़ रहा है। नैनो यूरिया, कम खर्च में अधिक प्रोडक्शन का माध्यम है। एक बोरी यूरिया, आप सोचिए, एक बोरी यूरिया को जिसके लिए जरूरत लगती है, वो काम अब नैनो यूरिया की एक छोटी सी बोतल से हो जाता है। ये विज्ञान का कमाल है, टेक्‍नोलॉजी का कमाल है, और इसके कारण किसानों को जो यूरिया के बोरे लाना-ले जाना, उसकी मेहनत, ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा, और घर में भी जा करके रखने के लिए जगह, इन सब मुसीबतों से मुक्ति। अब आप आए बाजार में, दस चीजें ले रहे हैं, एक बोतल जेब में डाल दिया, अपना काम हो गया।

फर्टिलाइजर सेक्टर में Reforms के हमारे अब तक के प्रयासों में आज दो और प्रमुख reform, बड़े बदलाव जुड़ने जा रहे हैं। पहला बदलाव ये है कि आज से देशभर की सवा 3 लाख से अधिक खाद की दुकानों को प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्रों के रूप में विकसित करने के अभियान को आरंभ किया जा रहा है। ये ऐसे केंद्र होंगे जहां सिर्फ खाद ही नहीं मिलेंगी ऐसा नहीं, बल्कि बीज हों, उपकरण हों, मिट्टी की टेस्टिंग हो, हर प्रकार की जानकारी, जो भी किसान को चाहिए, वो इन केंद्रों पर एक ही जगह पर मिलेगी।

हमारे किसान भाई-बहनों को अब कभी यहां जाओ, फिर वहां जाओ, यहां भटको, वहां भटको, इस सारे झंझट से भी मेरे किसान भाइयों को मुक्ति। और एक बड़ा महत्‍वपूर्ण बदलाव किया है, अभी नरेंद्र सिंह जी तोमर बड़े विस्‍तार से उसका वर्णन कर रहे थे। वो बदलाव है खाद के ब्रांड के संबध में, उसके नाम के संबंध में, प्रॉडक्‍शन की समान क्‍वालिटी के संबंध में। अभी तक इन कंपनियों के प्रचार अभियानों के कारण और वहां जो फर्टिलाइजर बेचने वाले लोग होते हैं, जिसको ज्‍यादा कमीशन मिलता है तो वो ब्रांड ज्‍यादा बेचता है, कमीशन कम मिलता है तो वो ब्रांड बेचना नहीं है। और इसके कारण किसान को जरूरत के हिसाब से जो गुणवत्‍ता वाला खाद मिलना चाहिए, वो इन स्‍पर्धा के कारण, भिन्‍न-भिन्‍न नामों के कारण और वो बेचने वाले एजेटों की मनमानी के कारण किसान परेशान रहता था। और किसान भी भ्रम में फंसा रहता था, पड़ोस वाला कहता कि मैं ये लाया तो उसको लगता था मैं ये लाया हूं मैंने तो गलती की, अच्‍छा छोड़ो इसको पड़ा रहने दो, वो मैं नया लेकर आता हूं। कभी-कभी किसान इस भ्रम में डबल-डबल खर्चा कर देता था।

DAP हो, MOP हो, NPK हो, ये किस कंपनी से खरीदें। यही किसान के लिए चिंता का विषय रहता था। ज्यादा मशहूर खाद के फेर में कई बार पैसा भी ज्यादा देना पड़ता था। अब मान लीजिए उसके दिमाग में एक ब्रांड भर गया है, वो नहीं मिला और दूसरा लेना पड़ा, तो वो सोचता है चलो इसमें जरा पहले एक किलो उपयोग करता था, अब दो किलो करूं क्‍योंकि ब्रांड दूसरा है पता नहीं कैसे, मतलब उसका खर्च भी ज्‍यादा हो जाता था। इन सारी समस्‍याओं को एक साथ एड्रेस किया गया है।

अब वन नेशन, वन फर्टिलाइजर से किसान को हर तरह के भ्रम से मुक्ति मिलने वाली है और बेहतर खाद भी उपलब्ध होने वाली है। देश में अब हिंदुस्तान के किसी भी कोने में जाइए, एक ही नाम, एक ही ब्रांड से, और एक समान गुणवत्ता वाले यूरिया की बिक्री होगी और ये ब्रांड है- भारत ! अब देश में यूरिया भारत ब्रांड से ही मिलेगी। जब पूरे देश में फर्टिलाइजर का ब्रांड एक ही होगा तो कंपनी के नाम पर फर्टिलाइज़र को लेकर होने वाली मारा-मारी भी खत्‍म हो जाएगी। इससे फर्टिलाइज़र की कीमत भी कम होगी, खाद, तेज़ी से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होगी।

साथियों,

आज देश में लगभग 85 प्रतिशत हमारे जो किसान हैं, वो छोटे किसान हैं। एक हेक्‍टेयर, डेढ़ हेक्‍टेयर से ज्‍यादा जमीन नहीं है इनके पास। और इतना ही नहीं, समय के साथ जब परिवार का विस्‍तार होता है, परिवार बढ़ता है तो उतने छोटे से टुकड़े के भी टुकड़े हो जाते हैं। जमीन और छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाती है और आजकल जलवायु परिवर्तन देखते हैं हम। दिवाली तो आ गई, बारिश जाने का नाम नहीं ले रही है। प्राकृतिक प्रकोप चलता रहता है।

साथियों,

उसी प्रकार से अगर मिट्टी खराब होगी, अगर हमारी धरती माता की तबियत ठीक नहीं रहेगी, हमारी धरती माता ही बीमार रहेगी, तो हमारी मां उसकी उपजाऊ क्षमता भी घटेगी, पानी की सेहत खराब होगी तो और समस्याएं होंगी। ये सब कुछ किसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए, अच्छी उपज के लिए, हमें खेती में नई व्यवस्थाओं का निर्माण करना ही होगा, ज्यादा वैज्ञानिक पद्धतियों को, ज्यादा टेक्नॉलॉजी को खुले मन से अपनाना ही होगा।

इसी सोच के साथ हमने कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धतियों को बढ़ाने, टेक्नोलॉजी के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल पर बल दिया है। आज देश में किसानों को 22 करोड़ सॉयल हेल्थ कार्ड दिए जा चुके हैं ताकि उन्हें मिट्टी की सेहत की सही जानकारी मिले। हम अच्छी से अच्छी क्वालिटी के बीज किसानों को मिलें, इसके लिए वैज्ञानिक तरीके से जागृत प्रयास कर रहे हैं। बीते 7-8 साल में 1700 से अधिक वैरायटी के ऐसे बीज किसानों को उपलब्ध कराए गए हैं, जो ये बदलती जलवायु परिस्थिति है, उसमें भी अपना मकसद पूरा कर सकते हैं, अनुकूल रहते हैं।

हमारे यहां जो पारंपरिक मोटे अनाज - Millets होते हैं, उनके बीजों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी आज देश में अनेक Hubs बनाए जा रहे हैं। भारत के मोटे अनाज पूरी दुनिया में प्रोत्साहन पाएं, इसके लिए सरकार के प्रयासों से अगले वर्ष पूरी दुनिया में मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष भी घोषित किया गया है। दुनियाभर में हमारे मोटे अनाज की चर्चा होने वाली है। अब मौका आपके सामने है, दुनिया में कैसे पहुंचना है।

आप सभी पिछले 8 साल में सिंचाई को लेकर जो कार्य हुए हैं, उससे भी भली भांति परिचित हैं। हमारे यहां खेतों को पानी से लबालब भरना, जब तक किसान को खेत में सारी फसल पानी में डूबी हुई नजर नहीं आती है, एक भी पौधे की मुंडी अगर बाहर दिखती है तो उसको लगता है पानी कम है, वो पानी डालता ही जाता है, तालाब जैसा बना देता है पूरे खेत को। और उससे पानी भी बर्बाद होता है, मिट्टी भी बर्बाद होती है, फसल भी तबाह हो जाती है। हमने इस स्थिति से किसानों को बाहर निकालने पर भी काम किया है। Per drop more crop, सूक्ष्‍म सिंचाई, माइक्रो इरीगेशन उस पर बहुत अधिक बल दे रहे हैं, टपक सिंचाई पर बल दे रहे हैं। स्प्रिंकलर पर बल दे रहे हैं।

पहले हमारे गन्‍ना का किसान ये मानने को तैयार नहीं था कि कम पानी से भी गन्‍ने की खेती हो सकती है। अब ये सिद्ध हो चुका है स्प्रिंकलर से भी गन्‍ने की खेती बहुत उत्‍तम हो सकती है और पानी बचाया जा सकता है। उसके तो दिमाग में यही है कि जैसे पशु को पानी ज्‍यादा‍ पिलाया तो दूध ज्‍यादा देगा, गन्‍ने के खेत को पानी ज्‍यादा दिया तो गन्‍ने का रस ज्‍यादा निकलेगा। ऐसे ही हिसाब-किताब चलते रहे हैं। पिछले 7-8 वर्षों में देश की लगभग 70 लाख हेक्टेयर ज़मीन को माइक्रोइरीगेशन के दायरे में लाया जा चुका है।

साथियों,

भविष्य की चुनौतियों के समाधान का एक अहम रास्ता नैचुरल फार्मिंग से भी मिलता है। इसके लिए भी देशभर में बहुत अधिक जागरूकता आज हम अनुभव कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती को लेकर गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश के साथ-साथ यूपी, उत्तराखंड में बहुत बड़े स्तर पर किसान काम कर रहे हैं। गुजरात में तो जिला और ग्राम पंचायत स्तर पर भी इसको लेकर योजनाएं बनाई जा रही हैं। बीते वर्षों में प्राकृतिक खेती, नैचुरल फार्मिंग को जिस प्रकार नए बाज़ार मिले हैं, जिस प्रकार प्रोत्साहन मिला है, उससे उत्पादन में भी कई गुणा वृद्धि हुई है।

साथियों,

आधुनिक टेक्नॉलॉजी के उपयोग से छोटे किसानों को कैसे लाभ होता है, इसका एक उदाहरण पीएम किसान सम्मान निधि भी है। इस योजना के शुरू होने के बाद से 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा, सीधे किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर किए गए हैं। जब बीज लेने का समय होता है, जब खाद लेने का समय होता है, तब ये मदद किसान तक पहुंच जाती है। देश के 85 प्रतिशत से अधिक छोटे किसानों के लिए ये बहुत बड़ा खर्च होता है। आज देशभर के किसान मुझे बताते हैं कि पीएम किसान निधि ने उनकी बहुत बड़ी चिंता को कम कर दिया है।

साथियों,

आज बेहतर और आधुनिक टेक्नॉलॉजी का उपयोग करते हुए हम खेत और बाज़ार की दूरी को भी कम कर रहे हैं। इसका भी सबसे बड़ा लाभार्थी हमारा छोटा किसान ही है, जो फल-सब्ज़ी-दूध-मछली जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों से जुड़ा हुआ है। किसान रेल और कृषि उड़ान हवाई सेवा से, इसमें छोटे किसानों को भी बहुत लाभ मिला है। ये आधुनिक सुविधाएं आज किसानों के खेतों को देशभर के बड़े शहरों से, विदेश के बाज़ारों से कनेक्ट कर रही हैं।

इसका एक परिणाम ये भी हुआ है कि कृषि क्षेत्र से एक्सपोर्ट, अब उन देश को भी होने लगा है, जहां पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। कृषि निर्यात की बात करें तो भारत दुनिया के 10 प्रमुख देशों में है। कोरोना की रुकावटों के बावजूद भी, दो साल मुसीबत में गए, उसके बावजूद भी हमारे कृषि निर्यात में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

गुजरात से बड़े पैमाने पर कमलम फ्रूट, जिसको पहाड़ी भाषा में ड्रैगन फ्रूट कहते हैं, आज विदेश जा रहा है। हिमाचल से पहली बार ब्लैक-गार्लिक का एक्सपोर्ट हुआ है। असम का बर्मीज़ अंगूर, लद्दाख की ख़ुबानी, जलगांव का केला या भागलपुरी ज़रदारी आम, ऐसे अनेक फल हैं जो विदेशी बाज़ारों को भा रहे हैं। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट जैसी योजनाओं के तहत ऐसे उत्पादों को आज प्रोत्साहन दिया जा रहा है। आज जिला स्तर पर एक्सपोर्ट हब भी बनाए जा रहे हैं, जिसका लाभ किसानों को हो रहा है।

साथियों,

आज Processed food में भी हमारी हिस्सेदारी बहुत अधिक बढ़ रही है। इससे किसानों को उपज के ज्यादा दाम मिलने के रास्ते खुल रहे हैं। उत्तराखंड का मोटा अनाज पहली बार डेनमार्क में गया। इसी प्रकार कर्नाटक का ऑर्गेनिक Jackfruit Powder भी नए बाज़ारों में पहुंच रहा है। अब त्रिपुरा भी इसके लिए तैयारी करने लगा है। ये बीज हमने पिछले 8 वर्षों में बोए हैं, जिसकी फसल अब पकनी शुरु हो गई है।

साथियों,

आप सोचिए, मैं कुछ आंकड़े बताता हूं। ये आंकड़े सुन करके आपको लगेगा कि प्रगति और परिवर्तन कैसे होते हैं। 8 साल पहले जहां 2 बड़े फूड पार्क ही देश में थे, आज ये संख्या 23 हो चुकी है। अब हमारा प्रयास ये है कि किसान उत्पादक संघों यानि FPO और बहनों के स्वयं सहायता समूहों को भी इस सेक्टर से कैसे अधिक से अधिक जोड़ें। कोल्ड स्टोरेज हो, फूड प्रोसेसिंग हो, एक्सपोर्ट हो, ऐसे हर काम में छोटा किसान सीधे जुड़े, इसके लिए आज सरकार लगातार प्रयास कर रही है।

साथियों,

तकनीक का ये प्रयोग बीज से लेकर बाज़ार तक पूरी व्यवस्था में बड़े परिवर्तन ला रहा है। हमारी जो कृषि मंडियां हैं उनको भी आधुनिक बनाया जा रहा है। वहीं टेक्नॉलॉजी के माध्यम से किसान घर बैठे ही देश की किसी भी मंडी में अपनी उपज बेच सके, ये भी e-NAM के माध्यम से किया जा रहा है। e-NAM से अब तक देश के पौने 2 करोड़ से ज्यादा किसान और ढाई लाख से अधिक व्यापारी जुड़ चुके हैं।

आपको ये जानकर भी खुशी होगी कि अभी तक इसके माध्यम से 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का लेन-देन हुआ है। आपने देखा होगा आज देश के गांवों में ज़मीन के, घर के नक्शे बनाकर किसानों को प्रॉपर्टी कार्ड भी दिए जा रहे हैं। इन सभी कामों के लिए ड्रोन जैसी टेक्नोलॉजी, आधुनिक टेक्नॉलॉजी का उपयोग किया जा रहा है।

साथियों,

खेती को ज्यादा से ज्यादा लाभकारी बनाने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग को हमारे स्टार्ट अप्स नए युग में ले जा सकते हैं। आज यहां इतनी बड़ी संख्या में स्टार्ट अप से जुड़े साथी मौजूद हैं। बीते 7-8 सालों में खेती में स्टार्ट अप्स की संख्या, ये भी आंकड़ा सुन लीजिए, पहले 100 थे, आज 3 हजार से ज्यादा स्‍टार्टअप्स खेती में टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं। ये स्टार्टअप, ये इनोवेटिव युवा, ये भारत का टैलेंट, भारतीय कृषि का, भारत ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भविष्य नए सिरे से लिख रहे हैं। लागत से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक की हर समस्या का समाधान हमारे स्टार्ट अप्स के पास है।

अब देखिए, किसान ड्रोन से ही किसान का जीवन कितना आसान होने वाला है। मिट्टी कैसी है, मिट्टी को कौन सी खाद चाहिए, कितनी सिंचाई चाहिए, बीमारी कौन सी है, दवाई कौन सी चाहिए, इसका अनुमान ड्रोन लगा सकता है और आपको सही मार्गदर्शन दे सकता है। दवाई का स्प्रे करना है तो ड्रोन उसी हिस्से में स्प्रे करता है, जहां ज़रूरत है, जितनी ज़रूरत है। इससे स्प्रे और खाद की बर्बादी भी रुकेगी और किसान के शरीर पर जो केमिकल गिरता है उससे भी मेरा किसान भाई-बहन बच जाएगा।

भाइयों और बहनों,

आज एक और बहुत बड़ी चुनौती है, जिसका जिक्र मैं आप सभी किसान साथियों, हमारे इनोवेटर्स के सामने ज़रूर करना चाहूंगा। आत्मनिर्भरता पर इतना बल मैं क्यों दे रहा हूं और खेती की, किसानों की इसमें क्या भूमिका है, ये हम सबको समझ करके मिशन मोड में काम करने की जरूरत है। आज सबसे अधिक खर्च जिन चीज़ों को आयात करने में हमारा होता है, वो खाने का तेल है, फर्टिलाइज़र है, कच्चा तेल है। इनको खरीदने के लिए ही हर साल लाखों करोड़ रुपए हमारे दूसरे देशों को देना पड़ता है। विदेशों में जब कोई समस्या आती है, तो इसका पूरा असर हमारे यहां पर भी पड़ता है।

अब जैसे पहले कोरोना आया हम मुश्किलें झेलते-झेलते दिन निकाल रहे थे, रास्‍ते खोज रहे थे। अभी कोरोना तो पूरा नहीं गया, तो लड़ाई छिड़ गई। और ये ऐसी जगह है, जहां से हम बहुत सी चीजें वहां से खरीदते थे। जहां से ज्‍यादा हमारे पास ज़रूरतें थीं, वो ही देश लड़ाइयों में उलझे हुए हैं। ऐसे ही देशों पर लड़ाई का प्रभाव भी ज्‍यादा हुआ है।

अब खाद को ही लीजिए। यूरिया हो, DAP हो या फिर दूसरे फर्टिलाइजर, ये आज दुनिया के बाज़ारों में दिन-रात इतनी तेजी से महंगे होते जा रहे है, इतना आर्थिक बोझ पड़ रहा है, जो हमारे देश को झेलना पड़ रहा है। आज हम विदेशों से 75-80 रुपए किलो के हिसाब से यूरिया खरीदते हैं। लेकिन हमारे देश के किसान पर बोझ ना पड़े, हमारे किसान उन पर कोई नया संकट न आए, जो 70-80 रुपए में हमारा यूरिया आज हम बाहर से लाते हैं, हम किसानों को 5 या 6 रुपए में पहुंचाते हैं भाइयों, ताकि मेरे किसान भाइयों-बहनों को कष्‍ट न हो। किसानों को कम कीमत में खाद मिले, इसके लिए इस वर्ष, अब इसके कारण सरकारी खजाने पर बोझ आता है, कई कामों को करने में रुकावटें खड़ी हो जाती हैं। इस वर्ष लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए केंद्र सरकार का सिर्फ ये यूरिया को खरीदने के पीछे हमको लगाना पड़ रहा है।

भाइयों और बहनों,

आयात पर हो रहे खर्च को कम करने के लिए, देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हम सबको मिलकर संकल्‍प करना ही होगा, हम सबको मिल करके उस दिशा में चलना ही होगा, हम सबको मिल करके विदेशों से खाने के लिए चीजें लानी पड़ें, खेती के लिए चीजें लानी पड़ें, इससे मुक्‍त होने का संकल्‍प करना ही पड़ेगा। कच्चे तेल और गैस पर विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए बायोफ्यूल, इथेनॉल पर बहुत अधिक काम आज देश में चल रहा है। इस काम से सीधे किसान जुड़ा है, हमारी खेती जुड़ी हुई है। किसान की उपज से पैदा होने वाले इथेनॉल से गाड़ियां चलें और कचरे से, गोबर से बनने वाली बायोगैस से बायो-सीएनजी बने, ये काम आज हो रहा है। खाने के तेल की आत्मनिर्भरता के लिए हमने मिशन ऑयल पाम भी शुरू किया है।

आज मैं आप सभी किसान साथियों से आग्रह करुंगा कि इस मिशन का अधिक से अधिक लाभ उठाएं। तिलहन की पैदावार बढ़ाकर हम खाद्य तेल का आयात बहुत कम कर सकते हैं। देश के किसान इसमें पूरी तरह से सक्षम हैं। दालों के मामले में जब मैंने 2015 में आपका आह्वान किया था, आपने मेरी बात को सिर-आंखों पर उठा लिया था और आपने करके दिखाया था।

वरना पहले तो क्‍या हाल था, हमें दाल भी विदेशों से ला करके खानी पड़ती थी। जब हमारे किसानों ने ठान लिया तो देखते ही देखते दाल का उत्पादन लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ाकर दिखा दिया। ऐसी ही इच्छा शक्ति के साथ हमें आगे बढ़ना है, भारत की कृषि को और आधुनिक बनाना है, नई ऊंचाई पर पहुंचाना है। आज़ादी के अमृतकाल में खेती को हम आकर्षक और समृद्ध बनाएंगे, इसी संकल्प के साथ, सभी मेरे किसान भाइयों-बहनों को, सभी स्‍टार्ट अप्‍स से जुड़े युवाओं को मैं बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद !

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