देश के अलग-अलग कोने से आए हुए सभी वरिष्ठ महानुभाव आज 6 दिसंबर, पूज्य बाबा साहब अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण का प्रसंग है। मैं नहीं मानता हूं कभी किसी ने सोचा होगा कि भारत का सिक्का, जिस पर बाबा साहब अम्बेडकर का चित्र हो, ऐसा भी कभी इस देश में दिवस आ सकता है।
आमतौर पर सार्वजनिक जीवन में ज्यादातर लोग, मृत्यु के पहले ही चिरविदाई हो जाती है, कुछ लोगों की मृत्यु के साथ चिरविदाई हो जाती हैं लेकिन शायद बहुत कम लोग होते हैं जो मृत्यु के साठ साल के बाद भी जिंदा होते हैं, और बाबा साहब अम्बेडकर वो मनीषी हैं। शायद उनके अपने कार्यकाल में बहुतों का उन पर ध्यान नहीं गया होगा। एक student के रूप में देखा गया होगा, एक अर्थशास्त्री के रूप में देखा गया होगा, लेकिन जैसा अरुण जी ने कहा भारत की आज की समस्याओं के संदर्भ में जब बाबा साहब को देखते हैं तब लगता है कि कोई व्यक्ति कितना दीर्घदृष्टा हो सकता है, कितनी गहन सोच रखता है, और कितनी समावेशी कल्पना रखता होगा।
इसलिए सामान्य तौर पर ये हमारे देश में ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति की एकाध चीज से पहचान बन जाती है सामान्य जन के लिए। बहुमुखी प्रतिभाएं सबके सामने बहुत कम आती हैं, और उसका कारण ये नहीं है कि प्रतिभा में कोई कमी है, कमी हम लोगों में है कि सारी बहुमुखी चीजें हम देख नहीं पाते, समझ नहीं पाते। उसको समझने में कभी-कभी 60 साल लग जाते हैं। अब वो सामाजिक चिंतन के विषय में तो बाबा साहब के विचार, खास करके social justice की बातें नीचे तक percolate हुई हैं और सबको लगता भी है, लेकिन बाबा साहब के आर्थिक चिंतन के संदर्भ में उतनी गहराई से चर्चा नहीं हुई है।
इस 125 वर्ष के समय , अच्छा होगा कि हम नई पीढ़ी को बाबा साहब के इस फलक के विषय में परिचित कैसे करवाएं। संसद के अंदर दोनों सदनों ने गहन चर्चा की, अच्छी चर्चा की। सभी माननीय सदस्यों ने अपने-अपने तरीके से वर्तमान स्थिति का भी आंकलन किया और बाबा साहब के दृष्टिकोण को भी जोड़ने का प्रयास किया। कुछ लोगों के मन में सवाल भी उठा कि मोदीजी हम ये तो समझ सकते हैं कि 15 अगस्त क्या है, हम ये भी समझ सकते हैं कि 26 जनवरी क्या है, लेकिन आप 26 नवंबर कहां से उठा के ले आए हो? सवाल पूछे गए मुझे house में। मैं नहीं मानता हूं जिसने बाबा साहब अम्बेडकर को समझा होता तो शायद ऐसा सवाल करता।
हम 26 जनवरी की जब बात करते हैं तब भी बाबा साहब अम्बेडकर उजागर हो करके देश के सामने नहीं आते हैं, ये मानना पड़ेगा। 15 अगस्त को हम याद करते हैं तो महात्मा गांधी, भगत सिंह सब आते हैं सामने लेकिन 26 जनवरी करते समय नहीं आते हैं, और इतने बड़े योगदान को हम नकार नहीं सकते हैं। और आने वाली पीढि़यों को संस्कारित करने के लिए भी, और राष्ट्र की एकता के लिए भी ऐसे महापुरुषों का योगदान, उसका स्मरण हमारे लिए वो एक ताकत बनता है जो समाज को जोड़ने का हमें अवसर देती है। और उस अर्थ में संसद के अंदर और ये मेरा इरादा है कि देश में बाबा साहब अम्बेडकर और संविधान, इसके विषय में निरंतर चर्चा होनी चाहिए, हमारी नई पीढ़ी को जोड़ना चाहिए, ऐसे competitions होने चाहिए, स्पर्द्धाएं होनी चाहिए, online competition होने चाहिए, speech competition होने चाहिए, ये लगातार चलना चाहिए। मैंने कहा है सरकार में कि इसको जरा workout कीजिए। आने वाले दिनों में 26 नवंबर से 26 जनवरी तक इसको किया जाए। 26 जनवरी को सब ईनाम announce किए जाएं। ऐसी एक व्यवस्था खड़ी करनी चाहिए ताकि नई पीढ़ी को पता चले।
बाबा साहब अम्बे्डकर, उनकी विविधता, विशेषता देखिए, मैं अलग दृष्टिकोण से देखता हूं। समाज से वो पीडि़त थे, समाज से वो दुखी भी थे और समाज के प्रति उनके मन में आक्रोश भी था और इस परिस्थिति में बदलाव लाने की एक ललक भी थी, वो एक रूप में। लेकिन इस अवस्था के बावजूद भी उन्होंने जब विश्व को देखा और उन्होंने लिखा है कि मैं जब भारत के बाहर पांच साल रहा तो अस्पृश्यता क्या होती है, un-touchability क्या होती है, वो मैं भूल चुका था। मुझे याद ही नहीं था, क्योंकि, जब एक तरफ यहां इस प्रकार की अपमानित अवस्था हो, दूसरी तरफ सम्मान का अनुभव मिला हो, फिर भी कोई इन्सान का जज्बा कैसा होगा, वो सम्मान की अवस्था छोड़ करके अपमान की जिंदगी भले जीनी पड़े लेकिन जाऊंगा वापस, और वापस आता है, ये छोटी बात नहीं है। एक व्यक्तित्व का, व्यक्तित्व को पहचानने का ये एक दृष्टिकोण है कि वरना किसी को मन कर जाए, यार अब वहां क्याे जाके रहेंगे, पहले गांव में पैदा हुए थे, वहां बिजली नहीं, रास्ते, नहीं, चलो यहीं बस जाते हैं। इस इन्साेन को तो इतनी यातनाएं झेलनी पड़ीं, इतने अपमान झेलने पड़े और उसके बाद भी वो कहता है ठीक है यहां मुझे मान मिला, सम्मान मिला, un-touchablility का नामो-निशान नहीं है, वहां जो है लेकिन जाऊंगा वहीं। किंतु एक विशेष, माने भीतर कोई आंतरिक ताकत होती है तब होता है।
दूसरी विशेषता देखिए, समाज के प्रति ये आक्रोश होना, ये दर्द होना, पीड़ा होना, ये सब होने के बावजूद भी उनकी भारत-भक्ति हर पल झलकती है, हर पल झलकती है। लेकिन भारत भक्ति एक देश के रूप में मुझे, एक जो सीमा में बंधा हुआ एक देश है उस रूप में नहीं, उसकी सांस्कृतिक विरासत के प्रति वह गर्व अनुभव करते थे। जिसकी विकृतियों ने इतनी महाबल मुसीबतें पैदा की थीं, बहुत कठिन होता है कि ऐसी अवस्था में भी सत्य तक पहुंचना और इसलिए जब उन्होंने अपना PhD किया , उसका एक विषय था Ancient Indian Commerce , अब यह Ancient Indian Commerce की ओर उनका मन जाना यह इस बात का सबूत है की वे भारत की गरिमा और भारत के गौरव गान इससे उनका अटूट नाता मानते थे| वरना दूसरा पहलू ही उभर कर के आता | मैं तो यह मानता हूँ कि आज जो नीति निर्धारक हैं, जो think tank चलाते हैं उन्होंने आर्थिक Global Economy के संदर्भ में बाबा साहब अम्बेडकर के आर्थिक चिंतन का क्या छाया है या क्या सोच थी उसका कोई तालमेल है कि अभी भी दुनिया को बाबा साहब तक पहुंचने में समय लगने वाला है, इस पर विशेष शोध निबंध होने चाहिए, पता चलेगा। भारत जैसे देश में वो आर्थिक चिंतन का उनका मंत्र बड़ा simple था “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय|”
ये जो “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’’, ये मूल तत्व है। मैं समझता हूं आर्थिक दृष्टि से किसी भी सरकार के लिए इस दायरे के बाहर जाने का कोई कारण ही नहीं बनता है, कोई कारण ही नहीं बनता है।
आज हम रिजर्व बैंक की कल्पना करते हैं। देश आजाद नहीं हुआ था तब बाबा साहब अंबेडकर ने अपने thesis में भारत में रिजर्व बैंक की कल्पना की थी। आज हम federal sector की बात करते है, फाइनेंस कमिशन राज्य की मांग रहती है इतना पैसा कौन देगा, इतना पैसा कौन देगा, कौन राज्य कैसे क्रम में चलेगा। देश आजाद होने से पहले बाबा साहब अंबेडकर ने ये विचार रखा था फाइनेंस कमिशन का और संपत्ति का बंटवारा केंद्र और राज्य के बीच कैसे हो, इसकी गहराई से उन्होंने चिंतन प्रकट किया था और उसी विचारों के प्रकाश में आज ये फाइनेंस कमिशन, चाहे RBI हो ऐसी, अनेक institutions हैं।
आज हम नदी जोड़ो का अभियान चलाते है river grid की बात करते हैं आज हिन्दुस्तान में एक महत्वपूर्ण issue है अभी दो दिन पूर्व मैं चीफ जस्टिस साहब के साथ भोजन पर बैठा था वो भी पूछ रहे थे कि river grid का क्या हो रहा है। बाबा साहब अंबेडकर ने उस जमाने में पानी को ले करके कमिशन के निर्माण की कल्पना की। यानी कोई दीर्घदृष्टा व्यक्ति किस प्रकार से आगे सोच सकता है |
उन्होंने विकास में नारी के महत्व को, उसके योगदान को उजागर किया| जब पुरुष के लिए भी सम्मान के दिन नहीं थे| उस समय दलित, पीड़ित, शोषित समाज अपमान का शिकार हो चुका था ऐसी अवस्था में भी इस महापुरुष को यह विचार आता है कि विकास यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर equal partnership की कल्पना की थी| और इसके लिए वो कहते थे – ‘शिक्षा’ और देखिए साहब! उन्होंने ...बाबा साहब अंबेडकर जी ने हर चीज के केंद्र में शिक्षा को एकदम top priority दी है। बाकि सब बाद में , पहले पढ़ो, कठिनाई में भी पढ़ो। पढ़ोगे तो दुनिया वो एक चीज है तुमसे लूट नहीं सकती।
ये पढ़ने का जो उनका आग्रह था, पढ़ाने का जो आग्रह था और यही है जिसने समाज को एक नई ताकत दी है। और आज जब हम एक तरफ 125वीं जयंती और दूसरी तरफ हम ये विचार ले करके चल रहे हैं।
बाबा साहब अंबेडकर का भारत के मूल जीवन के साथ नाते की जो मैं चर्चा कर रहा था। आखिर के दिनों में शारीरिक स्थिति बहुत खराब थी यानी एक प्रकार से बीमारियों का घर बन गया था उनका शरीर और बचपन में, जवानी में जब शरीर को मजबूत बनाने की अवस्था होती है तब उनको अवसर नहीं था क्योंकि उतना पेटभर खाना भी कहां मौजूद था और जब जीवन में कुछ संभावनाएं बनीं तो खुद को उन्होंने समाज और देश के लिए खपा दिया। और जो काम लेते थे वो पागलपन से करते थे यानी एक तरह से पूरी तरह डूब जाते थे और इसलिए एक स्थिति आ गई शरीर ने साथ देना छोड़ दिया।
इतना सरल जीवन में ऊंचाइयां पाने के बाद किसी को भी लग सकता था कि चलो भई अब शरीर काम नहीं करता, ईश्वर के शरण में चले जायें, छोड़ दो सब। जो होगा, होगा।
इन्होंने हार नहीं मानी, उनकी आखिरी किताब मृत्यु के चार दिन पहले ही पूर्ण की। चार दिन के बाद उनका स्वर्गवास हुआ। आखिरी किताब का भी धारा देखिए चितंन की यानी पहली thesis जिसने उनको दुनिया में recognise करवाया वो शुरू होती है – ‘इंडियन-एंशियंट कॉमर्स’, आखिरी किताब होती है – ‘‘बुद्ध और कालमार्क्स’|
अब देखिए उस समय हवा कालमार्क्स की चल रही थी। समाजवादी चिंतन एवं भारत में भी करीब-करीब उसकी हवा चलती थी। उस समय ये महापुरूष भगवान बुद्ध के चिंतन को मूल आधार बना करके और ‘बुद्ध एंड कालमार्क्स’ नहीं लिखा है। ‘बुद्ध और कालमार्क्स’ लिखा है और उनका ये आग्रह रहा है कि सर्वसमावेशी, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय ।
अगर आर्थिक चिंतन का विचार करना है तो वो भारत की मूल मिट्टी से जुड़ता है। जिसमें बुद्ध भी एक बहुत बड़ी प्रमुख धारा रह करके ये जो बाबा साहब अंबेडकर का योगदान था। और इसलिए मैं समझता हूं कि ऐसी महामूल्य चीजें कोई भी राष्ट्र अपने, अपने पुरखों से, अपने इतिहास से हमेशा रस-कस पाता है तभी जा करके पल्लवित होता है। हमें इतिहास को भुला देने का प्रयास और हमारे महापुरूषों को भुला देने का प्रयास हमें कभी ताकत नहीं देता है।
बाबा साहब अंबेडकर वो मनीषी थे, वो ताकत थे जिन्होंने आज हमें इतना बड़ा सामाजिक दृष्टिकोण दिया, आर्थिक दृष्टिकोण दिया, वैधानिक दृष्टिकोण दिया, और एक प्रकार से समाज और राष्ट्र् संचालन की जो मूलभूत विधाएं है उन मूलभूत विधाओं के फाउंडेशन में उन्होंने अपनी ताकत जोड़ दी थी।
आज ऐसे महापुरूष को उनके पुण्य स्मरण करने का अवसर मिला है और यह गर्व की बात है कि भारत सरकार आज ये coin और मैं जानता हूं, शायद, शायद भारत सरकार का ये पहला coin ऐसा होगा कि जिसको standing ovation मिला होगा।
Coin तो बहुत निकले होंगे और समाज का हर दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित जिसके पास सवा सौ रुपए की ताकत नहीं होगी खुद के जेब में उनके लिए ये पुण्य प्रसार मणि बन जाएगा आप देख लेना। ऐसा इसका रूप बन जाएगा और इसलिए यह अर्पित करते हुए एक दायित्व निभाने का संतोष हो रहा है।
आने वाली पीढि़यों को दिशा देने के लिए यह सारी चीजें काम आयें यही एक शुभ आशीष है। मैं फिर एक बार Finance Minister को अभिनंदन देता हूं कि समय के साथ सारी चीजें हो रही है। इसके लिए मैं Finance Ministry को हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद!