PM Narendra Modi attends a conference on Legal Services Day
I believe in 'Sabka Saath, Sabka Vikas' and with that there must be 'Sabka Nyay': PM Modi'
Union Government committed to working towards Sabka Saath, Sabka Vikas, Sabka Nyaya: PM
Lok Adalats have become a means for people to access justice that is timely and satisfactory: PM
We have given the labourers a unique ID card number. This will help the labourers immensely in several ways: PM Modi
Through Jan Dhan we have banked the unbanked: PM Modi

उपस्थित सभी वरिष्ठ महानुभाव,

ठाकुर साहब कह रहे थे कि पहली बार कोई प्रधानमंत्री इस कार्यक्रम में आए हैं। मैं बहुत भाग्‍यशाली हूं कि पुराने लोगों ने, मैं बहुत भाग्‍यशाली हूं कि पुराने लोगों ने बहुत अच्‍छे-अच्‍छे काम मेरे लिए बाकी रखे हैं। और वे अच्‍छे काम का मैं मौका भी नहीं छोड़ता हूं।

आमतौर पर न्‍यायाधीश, न्‍यायालय, सामान्‍य मानवी को लगता है कि ये फांसी पर लटका देंगे, ये जेल में भेज देंगे, पता नहीं क्‍या होगा, लेकिन आज का समागम अगर टीवी पर लोग देखते होंगे या बातें सुनते होंगे, उनको पता चलेगा कि यहां पर कितनी संवेंदनाएं हैं। गरीब की खातिर कितना दिमाग लोग खपा रहे हैं। गरीब को न्‍याय मिले, इसके लिए कितनी चिंता जताई जा रही है। ये पहलू दुर्भाग्‍य से उजागर नहीं होते हैं हमारे देश में। शायद मैं भी यहां न आता तो इतनी बारीकी से चीजों को न जान पाता, औरों की तो बात छोड़ दीजिए।

और इस अर्थ में मैं इस प्रयास को एक सामाजिक संवेदना के मुखर रूप के रूप में देखता हूं। एक डॉक्‍टर अगर महीने में एक दिन patient की मुफ्त में सेवा करता है तो 29 दिन तक उस डॉक्‍टर की इतनी वाहवाही चलती है, बड़े सेवाभावी हैं, बहुत पैसे नहीं लेते गरीब से, महीने में एक दिन कर ले। यहां पर दिन-रात गरीब की चिंता होती है, लेकिन ये सेवाभावी है ऐसा tag नहीं लग रहा है। ये जो हमारे यहां सोच है उसमें बदलाव आएं ये मैं समझता हूं बहुत आवश्‍यक है। और इसीलिए legal awareness के साथ-साथ मुझे एक पहलु ये भी जरूरी लगता है कि institution का भी awareness हो। लोगों को पता चले कि ऐसी व्‍यवस्‍था है। और इसके लिए सरकार के जिम्‍मे जो काम होगा मैं खुद इसकी चिंता करूंगा। मेरा एक मंत्र रहा है ‘सबका साथ, सबका विकास’ लेकिन साथ जुड़ता है सबका न्‍याय, तो सबका साथ, सबका विकास, सबका न्‍याय।

दो प्रकार के विषय हैं, कभी हमारे यहां expert लोगों ने, यो तो हमारी law universities ने, एक काम करना चाहिए, एक special assignment उनके students को देना चाहिए कि देश के अलग-अलग इलाकों में लोक-अदालत पर research करें, उसके project submit करें और वे कुछ suggestions भी दें। क्‍योंकि ये आवश्‍यक मुझे लगता है कि हमारे law students को भी पढ़ते समय ही पता चले कि लोक-अदालतें हैं क्‍या? क्‍योंकि वो जब study करने जाएगा तो बारीकी से देखेगा और वो अपने-आपको उसको sensitize करना एक बड़ा अवसर बन जाएगा। और वो एक neutral mind से modern mind-set से अगर इसका analysis करता है, एक university एक state ले लें, study करें, अगली बार दूसरा state ले लें, हर बार students को मौका मिल जाए, तो कितना बड़ा काम होगा।

सबसे बड़ी बात, लोक-अदालत और court के बीच में बहुत बड़ा अन्‍तर क्‍या आया है। सामान्‍य व्‍यक्ति भी ये सोचता है भई court के चक्‍कर में नहीं पड़ना है। और उसका मतलब court के चक्‍कर में मतलब वकील के चक्‍कर में नहीं पड़ना है, पता नहीं कब बाहर निकलूंगा। इसलिए वो सोचता है भई अन्‍याय झेल लूंगा लेकिन छोड़ो भई मुझे अब नहीं जाना है, ऐसा बहुत बड़ा वर्ग है जिसको पता है कि मैं हकदार हूं, मेरा न्‍याय होना चाहिए, लेकिन वो हिम्‍मत नहीं करता है। लोक अदालत ने इस कमी को भर दिया है। जिसके कारण उसको लगता है कि हो सकता है कि हम एक बार हो आऊं।

लोक अदालत ने इतने कम समय में एक ऐसी प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त की है कि जहां पर नागरिक को प्रक्रिया में भी भरोसा है और परिणाम में भी भरोसा है। और ये ऐसी जगह है जहां शत-प्रतिशत satisfaction होता है। न्‍यायपालिका में एक को न्‍याय मिलता है दूसरा नाराजगी के साथ घर जाता है। यहां होता तो वो ही है लेकिन दोनों को संतोष मिलता है चलो यार हो गया, बहुत दिन हो गए थे, छुट्टी हो गई। ये लोक अदालत की प्रतिष्‍ठा है और इसलिए सामान्‍य मानवी को हम लोक अदालतों की और कैसे divert करें, ज्‍यादा लोग जाएं, छोटी-छोटी बातों को करें।

ठाकुर साहब से मेरा ज्‍यादा परिचय तो नहीं था, लेकिन इस एक कार्यक्रम हेतु मुझे उनसे बातचीत करने का अवसर मिला, मैं हैरान था जी, इस विषय पर उनका जो involvement मैंने देखा, यानी लगाव देखा, एक यानी एक प्रकार का mission-mode में वो सारी बातें कर रहे थे। आज भी मैं सुन रहा था, वो ही मिजाज था। अगर ऐसा नेतृत्‍व केंद्र पर और राज्‍य स्‍तर पर मिलता है तो मैं समझता हूं कि समस्‍याओं का समाधान अपने-आप हो जाएगा। Institution को ताकत मिलती है। कभी-कभार किसी frame work में से institutions rule लेते हैं और कभी-कभार एक-आध parking point होता है जिसमें institution का गर्भाधान होता है। ये लोक अदालत उस parking point में से पैदा हुआ है। किसी ने चार लोगों ने बैठ करके कागज पर लिख करके लोक अदालत का तो विकास नहीं किया और बहुत successful गया।

अनिल जी गुजरात का जिक्र कर रहे थे, मैं वहां मुख्‍यमंत्री रहने का मुझे अवसर मिला। जब मैं वहां था, लोक अदालत में जो न्‍याय मिलता था, वो 35 पैसे में मिलता था, 35 पैसे, 35 paisa only, यानी किसी भी गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति को विश्‍वास हो जाता है भई कोई खर्चा नहीं हुआ, मेरा काम हो गया। अब कितना है मुझे मालूम नहीं, जैन भाई बता सकते हैं शायद 35 पैसे बचा है कि और ज्‍यादा हो गए, एक रुपए तक तो अभी नहीं पहुंचा होगा। लेकिन ये सिद्धि छोटी नहीं है और उसका कारण हर किसी ने अपना कुछ न कुछ छोड़ा है। समय दिया, अपने बाकी जो privileges होते हैं वो छोड़े, जाकर के जैसी गली-मोहल्‍ला है जाकर के वहां बैठे। कई लोक अदालत तो ऐसी जगह है जहां पर कि पंखा भी नहीं है, चलती है लोक अदालत, क्‍यों? Commitment है। ये चीजें उजागर नहीं हुई और इसलिए इतनी बड़ी Institutions, इतने कम समय में 15 लाख से ज्‍यादा लोक अदालत होना। साढ़े आठ करोड़ से ज्‍यादा लोगों को न्‍याय मिलना और साढ़े आठ करोड़ मतलब in a way 17 करोड़ हुए, क्‍योंकि दो पार्टी आई है। ये बहुत बड़ा नंबर है और इसलिए इस व्‍यवस्‍था की अपनी एक ताकत है।

आज कुछ नए initiative लिए जा रहे हैं लेकिन अगर शासन भी न्‍याय के प्रति समर्पित हो, न्‍याय के प्रति सजग हो तो रास्‍ते भी खुल सकते हैं। मैं अप नाएक उदाहरण बताता हूं। मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री बना तो भूकंप के तुरंत बाद मुझे मुख्‍यमंत्री बनना पड़ा था। अब लाखों लोग तबाह हुए थे, सरकार ने पैकेज घोषित किया। लेकिन यह सवालिया निशान रहता है कि सरकार ने कह तो दिया कि ये टूट जाए तो ये मिलेगा, ये मर गया तो ये मिलेगा, हाथ टूटा तो ये सब, लिखा, कागज में तो आ गया। लेकिन अगर लोगों की शिकायत हो तो क्‍या करेंगे? तो उस समय मैंने हाईकोर्ट से request की थी। मैंने कहा मुझे लचीली व्‍यवस्‍था चाहिए अगर आप मेरी मदद कर सकते हैं तो। तो उन्होंने कहा क्‍या? मैंने कहा हमारे जो भूकंप पीड़ित लोग है उनके लिए एक Ombudsman की व्‍यवस्‍था हो और सरकार की योजनाएं उसके पास रहे, वो चाहे तो सरकार आकर के उनको brief कर दे कि ये हमारा पैकेज है और जिस किसी नागरिक को जो इसका हकदार है और उसको लगता है कि सरकार ने मेरे साथ न्‍याय नहीं किया, तो उसके लिए आप एक व्‍यवस्‍था दीजिए। और मेरी तरफ से गारंटी है कि जब भी शिकायत करने वाला आपके पास आएगा, इस Ombudsman के पास और सरकार की तरफ से हम कोई पेशी नहीं करेंगे। आप उनको सुनिए और आपको जो ठीक लगे हमें कहिए हम follow करेंगे। आप हैरान होंगे 30,000 लोगों के मसले पूरे हो गए और भूकंप पीड़ित का एक भी case नहीं चला। अगर वही व्‍यवस्‍था न्‍याय-अन्‍याय के चैनल में चली गई होती तो पता नहीं आ भूकंप वाले परिवार के लोग रहे भी नहीं होते और case चलता रहता होता। लेकिन हाईकोर्ट ने initiative लिया, हमारी मदद की, न्‍यायमूर्तियों ने जिम्‍मे लेने के लिए समय दिया, भूकंप पीड़ित इलाके में गए और लोगों को व्‍यवस्‍था मिल गई। कभी-कभार out of box चीजें हम विकसित करते हैं तो कितना परिणाम मिल सकता है। ऐसे कई उदाहरण है, कई उदाहरण मिलते हैं।

मैं देख रहा था ठाकुर साहब जब कर्नाटक का उदाहरण दे रहे थे और बार-बार बोल रहे थे 3,000 करोड़ रुपया पड़ा है, un-organised क्षेत्र का 3,000 करोड़ रुपया पड़ा है। वो बड़ी पीड़ा मुझे दिखती थी। मैं यहां आया साहब, नई नौकरी पर और मेरे ध्‍यान में आया गरीब मजदूरों के 27,000 करोड़ रुपया सरकार की तिजोरी में पड़ा है। मैं परेशान हो गया, 27,000 करोड़ रुपया गरीब व्‍यक्‍ति का। क्‍यों? कारण ये है कि वो एक जगह पर नौकरी करता है, उसका कोई PF वगैरह कट जाता है। 6-8 महीने के बाद कहीं और चला जाता है, दो साल के बाद कहीं और चला जाता है। वो amount इतनी होती है कि यहां से गया तो वापिस आकर लेने के लिए फरसत नहीं होती है। उसको भी लगता है कि 200 रुपए के लिए कहां जाऊंगा। ऐसा करते-करते 27,000 करोड़, और वे ये construction के contractor के नहीं थे। खुद के उसके अपने पसीने के पैसे थे। सरकार संवेदनाहीन थी। I am sorry to say. हमने आकर के कहा कि भई उसके हक का पैसा उसको मिलना चाहिए। क्‍या न्‍याय डंडा मारे तभी हम सुधरेंगे क्‍या, क्‍या judges का टाइम लेकर के ही हम स्‍थितियों को बदलेंगे क्‍या? हमने एक व्‍यवस्‍था खड़ी की और मैं मानता हूं कि ये लंबे अरसे तक देश का बहुत भला करेगी। हमने सभी labourers के लिए, एक unique identity card नंबर दिया है। वो जहां भी जाएगा उसका बैंक अकाउंट उसके साथ चला जाएगा, ट्रांसफर होता जाएगा और इसलिए उसके हक के पैसे लेने के लिए कभी.. और 27,000 करोड़ रुपए देने के लिए मैं लगा हूं। लोग नहीं मिल रहे है भई। अब तो पैसे आए थे, कहां थे, कुछ नहीं। ऐसे ही पड़ा था, कोशिश कर रहा हूं मैं इनको। लेकिन आगे आने वाले दिनों में उनके पैसे जो भी जमा होते होंगे, वो नौकरी बदलेंगे, जहां जाएंगे, शहर बदलेंगे, राज्‍य बदलेंगे, ये amount उनके साथ-साथ चलती जाएगी। जब जरूरत पड़ेगी, वो अपना withdraw कर सकता है।

और इसलिए हम, ये जो हमारे अनुभव है लोक-अदालत के हैं, legal aid के है, मैं चाहता हूं कि हमारी law-Universities उसमें से कुछ objective सुझाव भी निकाले कि भई ये ठीक है, ये हजार प्रकार के लोग एक ही काम के लिए आते हैं। आप थोड़ी व्‍यवस्‍था में बदलाव करो न, नियम बदलो। कितनो का न्‍याय हो जाएगा। तो हमारा ये जो judiciary का burden है वो भी हम कम कर सकते हैं और quality justice का जो हमारा इरादा है उसमें हम बल दे सकते हैं और इसलिए सरकार और ये व्‍यवस्‍था दोनों के बीच में इतना संकलन चाहिए। जब ये चीजें ध्‍यान में आती है तो उसका उपयोग होना चाहिए।

अभी मैं ठाकुर साहब से पूछ रहा था, डरते-डरते पूछ रहा था। मैंने कहा साहब, ये जो नए-नए judges बनते हैं, उनका जो recruitment होता है कभी हम सोच सकते हैं क्‍या कि इसको पूछा जाए कि आपने free legal aid में कितने समय, कितना काम किया, कितने गरीबों का भला किया है। एक बार अगर ये मानदंड बन गया, भले ही 10 marks होंगे पूरे interview में। लेकिन नीचे हर एक को लगेगा कि भई अब judiciary में जाना है तो मेरी जवाबदारी, सामाजिक संवेदना ये प्राथमिकता है मेरी। समय रहते.. अभी से recruitment होगा तो 5-10 साल में हमारा prime sector judiciary का बन जाएगा जिसमें गरीब-गरीब-गरीब का ही न्‍याय ये विषय केन्‍द्रीय स्‍तर हो जाएगा। बदलाव लाया जा सकता है। और इसलिए, मुझे तो यहां बैठे-बैठे जो विचार आए वो मैं बोल रहा हूं लेकिन मुझे पूरी उसकी nit-grity मालूम नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि हम ऐसी चीजों को कर सकते हैं।

उसी प्रकार से, कोई भी Institution एक ही ढर्रे में नहीं रह सकती। समयानुकूल उसमें बदलाव अनिवार्य होता है। सोचने के तरीके बदलने की आवश्‍यकता होती है। पुरानी चीज उत्‍तम ही है इसलिए हम उसको हाथ नहीं लगाएंगे, इससे बात बनती नहीं है। लोक अदालत, इतना सफल प्रयोग; legal aid इतना सफल प्रयोग, लेकिन अगर हम ये कहे कि बस पूर्णत: हो गई, फिर तो ये स्‍थगितता आ जाएगी।

मैं ठाकुर साहब का अभिनंदन करता हूं, सिकरी साहब जैसे जिन-जिन लोगों ने आपकी मदद की है मैं उनका अभिनंदन करता हूं कि आप रांची जाए, tribal के साथ बैठे। आप चिंता करे कि भई समाज के कौन लोग है जिनको जरा हम priority में ले। मैं समझता हूं ये एक छोटा काम नहीं है जो आपने किया है। आपने Institution को प्राणवान बनाने का प्रयास किया है। एक नई-नई ताकत देने का प्रयास किया है। हर व्‍यवस्‍था में निरंतर उसका दायरा बढ़ना चाहिए, उसके रूप-रंग बदलने चाहिए, उसकी ताकत बढ़ती रहनी चाहिए और ये काम आज आपने एक निश्‍चित road-map के साथ, नए tribal के लिए क्‍या करेंगे, जेल के अंदर जो लोग हैं उनके लिए क्‍या करेंगे, पहाड़ों में रहने वाले लोग है, जिनको राय चाहिए, उनके लिए क्‍या करेंगे। धीरे-धीरे ये विकसित होगा। और ये बात सही है, न्‍याय की बात छोड़ो साहब।

हमारा देश ऐसा है। मुझे पता है एक बैंक अकाउंट खोलना, ये कोई कठिन काम तो है नहीं। बैंक की जिम्‍मेवारी है बैंक अकाउंट खोलना। नागरिक के लिए सुविधा है बैंक अकाउंट खोलना। बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण को करीब 40 साल से अधिक समय हो गया। लेकिन इस देश के 40% नागरिक, उनका बैंक अकाउंट नहीं था। यानी financial mainstream की व्‍यवस्‍था से 40% लोग इस देश के बाहर थे। ऐसा अन्‍याय, शहर आए, उसको मालूम नहीं है कि मुझे कहीं न्‍याय भी मिल सकता है, ऐसे मिल सकता है। मेरे पास पैसे नहीं भी होंगे तो भी मैं न्‍याय पाने का अधिकारी हूं, उसको मालूम नहीं है। इस देश के 40% लोगों को मालूम नहीं था कि वो फटे-टूटे कपड़ों के बीच भी बैंक के दरवाजे तक जा सकता है। इससे बड़ा दुर्भाग्‍य क्‍या हो सकता है।

हमने अभियान चलाया प्रधानमंत्री जन-धन योजना का और आज मैं गर्व से कहता हूं कि इस देश के शत-प्रतिशत करीब-करीब, कहीं निकल जाए तो मैं नहीं चाहता हूं, क्‍योंकि मीडिया को काम मिल जाएगा कि मोदी कह रहा था, लेकिन ये दो परिवार बाकी रह गए। लेकिन मैं कहता हूं कि करीब-करीब शत-प्रतिशत लोगों के बैंक आकउंट हो गए हैं और कभी-कभी-कभी गरीब लोगों के विषय में हमारी सोच बदलनी पड़ेगी। जब मैं प्रधानमंत्री जन-धन योजना का काम कर रहा था और बैंकों ने भी बड़ी मेहनत की, वो पूरी ताकत से लग गए। वो खुद जाते थे, झुग्‍गी-झोपड़ी में जाते थे। उसको पूछते थे कि तेरा बैंक अकाउंट है, चल मैं खोलता हूं क्‍योंकि एक टारगेट देकर के काम शुरू किया था। लेकिन उसमें एक सुविधा दी थी कि जीरो बैलेंस से बैंक अकाउंट खोलेंगे, क्‍योंकि एक बार शुरू तो करे, वो mainstream में आए तो। मैंने अमीरों की गरीबी भी देखी है और मैंने प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अंतर्गत गरीबों की अमीरी भी देखी है। अमीरों की गरीबी का तो हमें बार-बार पता चलता है। लेकिन गरीबों की अमीरी का पता बहुत कम चलता है। सरकार ने कहा था जीरो बैलेंस से बैंक अकाउंट खुलेगा, लेकिन इस प्रधानमंत्री जन-धन योजना में इन गरीबों ने 24 हजार करोड़ रुपया जमा किया, 24 हजार करोड़ रुपया। आप देखिए कितना बड़ा बदलाव लाया गया और ये सब समय-सीमा में हुआ है जी। कहने का हमारा तात्‍पर्य यह है कि justice कहाँ, एक account तक खोलने की, बेचारे की हिम्‍मत नहीं है। ये जो हमारा सामाजिक जीवन बना है इसको कहीं न कहीं तो हमें ब्रेक करना पड़ेगा। हमें सबको assimilate करना पड़ेगा, सबको जोड़ना पड़ेगा। हर एक के लिए कुछ करना पड़ेगा और उसमें जब आप इस प्रकार का initiative लेते हैं। मैं मानता हूं बहुत बड़ा फायदा है।

Transgender, आप कल्‍पना कर सकते हैं कि इनके प्रति कितनी उदासीनता है। परमात्‍मा ने उसके जीवन में जो दिया है, सो दिया है। हम कौन होते हैं उसको अन्‍याय करने वाले। हमें व्‍यवस्‍था विकसित करनी पड़ेगी। कानूनी व्‍यवस्‍थाओं में बदलाव लाना पड़ेगा। नियमों में बदलाव पड़ेगा। सरकार को अपने नजरिए में बदलाव लाना पड़ेगा। ऐसे समाज में कितने लोग होंगे कि जिनके लिए हम सबको मिलकर कुछ करना होगा। मैं आज ठाकुर साहब को, उनकी इस पूरी टीम को और विशेषकर के जिन्‍होंने आज अवार्ड प्राप्‍त किए हैं, उनको हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं, अभिनंदन करता हूं क्‍योंकि आपने जब काम किया होगा तब आपको भी पता नहीं होगा कि आपको कभी किसी मंच पर जाने का या senior judges से हाथ मिलाने का मौका मिलेगा, आपक दिमाग में तो वो गरीब रहा होगा और आज उस गरीब के दुख ने आपको बैचेन बनाया होगा और इसलिए आपने court जाना भी छोड़ दिया होगा, उस गरीब के घर जाना पसंद किया होगा। तब जाकर के आपको अवार्ड मिला होगा और इसलिए आपके इस काम को मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं, आपकी बहुत-बहुत बधाई करता हूं।

Judiciary में भी मैंने देखा है, मेरा गुजरात का अनुभव रहा है। जिनके पास एक जिम्‍मेवारी होती है। मेरा अनुभव रहा है, उनका ऐसा commitment होता है। उसको काम को वो अपने यानी जैसे family matter होते हैं उस रूप में देखते हैं। लोक अदालत हुई कि नहीं हुई legal aid का काम हुआ कि नहीं हुआ। मैंने देखा है कि ये जो Judiciary का involvement है, यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है, बहुत बड़ी ताकत है और इसलिए पूरे देश में इस कार्य को जिन्‍होंने अब तक संभाला है, जो आज संभाल रहे हैं, जो भविष्‍य में संभालने वाले हैं उन सबको मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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PM chairs 45th PRAGATI Interaction
December 26, 2024
PM reviews nine key projects worth more than Rs. 1 lakh crore
Delay in projects not only leads to cost escalation but also deprives public of the intended benefits of the project: PM
PM stresses on the importance of timely Rehabilitation and Resettlement of families affected during implementation of projects
PM reviews PM Surya Ghar Muft Bijli Yojana and directs states to adopt a saturation approach for villages, towns and cities in a phased manner
PM advises conducting workshops for experience sharing for cities where metro projects are under implementation or in the pipeline to to understand the best practices and key learnings
PM reviews public grievances related to the Banking and Insurance Sector and emphasizes on quality of disposal of the grievances

Prime Minister Shri Narendra Modi earlier today chaired the meeting of the 45th edition of PRAGATI, the ICT-based multi-modal platform for Pro-Active Governance and Timely Implementation, involving Centre and State governments.

In the meeting, eight significant projects were reviewed, which included six Metro Projects of Urban Transport and one project each relating to Road connectivity and Thermal power. The combined cost of these projects, spread across different States/UTs, is more than Rs. 1 lakh crore.

Prime Minister stressed that all government officials, both at the Central and State levels, must recognize that project delays not only escalate costs but also hinder the public from receiving the intended benefits.

During the interaction, Prime Minister also reviewed Public Grievances related to the Banking & Insurance Sector. While Prime Minister noted the reduction in the time taken for disposal, he also emphasized on the quality of disposal of the grievances.

Considering more and more cities are coming up with Metro Projects as one of the preferred public transport systems, Prime Minister advised conducting workshops for experience sharing for cities where projects are under implementation or in the pipeline, to capture the best practices and learnings from experiences.

During the review, Prime Minister stressed on the importance of timely Rehabilitation and Resettlement of Project Affected Families during implementation of projects. He further asked to ensure ease of living for such families by providing quality amenities at the new place.

PM also reviewed PM Surya Ghar Muft Bijli Yojana. He directed to enhance the capacity of installations of Rooftops in the States/UTs by developing a quality vendor ecosystem. He further directed to reduce the time required in the process, starting from demand generation to operationalization of rooftop solar. He further directed states to adopt a saturation approach for villages, towns and cities in a phased manner.

Up to the 45th edition of PRAGATI meetings, 363 projects having a total cost of around Rs. 19.12 lakh crore have been reviewed.