QuoteIn every state there are a few districts where development parameters are strong. We can learn from them and work on weaker districts: PM
QuoteA spirit of competitive and cooperative federalism is very good for country: PM Modi
QuotePublic participation in development process yields transformative results: PM Modi
QuoteEssential to identify the areas where districts need improvement and then address the shortcomings: Prime Minister

आदरणीय सुमित्रा ताईजी, मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्रीमान आनंद कुमार, डिप्‍टी स्‍पीकर श्रीमान थंबीदुरई जी, देशभर से आए हुए सभी विधानसभाओं के आदरणीय स्‍पीकार महोदय, सभी राजनीतिक दलों के सभी वरिष्‍ठ नेतागण, सांसदगण, विधायकगण।

मैं सबसे पहले सुमित्राजी का आभार व्‍यक्‍त करना चाहूंगा इस कार्यक्रम की रचना के लिए। हम लोगों को पता है कि हमारे सामान्‍य जीवन में हम लोगों का मन करता है किसी बड़े तीर्थ क्षेत्र में जाएं, अपने माता-पिता को ले जाएं, और जब बड़े तीर्थक्षेत्र में जाते हैं तो वहां जा करके मन में एक संकल्‍प भी करते है कि भई मैं जीवन में ये करूंगा या परिवार में ये करूंगा; कोई न कोई संकल्‍प लेते हैं। हर कोई अपने-अपने तीर्थ क्षेत्र में करते हैं।

आज आप सब सिर्फ एक कार्यक्रम में नहीं हैं। आप कल्‍पना कीजिए- आप कहां बैठे हैं? ये वो सदन है जहां मैंने जीवन में पहली बार 2014 के मई महीने में प्रवेश किया था, उसके पहले मैंने सेंट्रल हॉल देखा नहीं था। मुख्‍यमंत्री आ सकते हैं यहां, कोई रोक नहीं थी मुख्‍यमंत्रियों के लिए, लेकिन मुझे कभी ऐसा अवसर आया नहीं। और जब देश ने बहुमत दिया और यहां नेता का चुनाव होना था तो उस दिन मैं इस सेंट्रल हॉल में आया था। ये वो सेंट्रल हॉल है, जहां पर सविंधान सभा की विस्‍तार से मीटिंगें हुईं, सालों तक हुईं। आप उस जगह पर बैठे हैं जहां पर कभी वहां उसी जगह पर पंडित नेहरू बैठे होंगे, कभी बाबा साहेब अंबे‍डकर बैठे होंगे, कहीं सरदार वल्‍लभ भाई पटेल बैठे होंगे, राजगोपालाचार्य बैठे होंगे, डॉक्‍टर राजेंद्र बाबू बैठे होंगे, कमा मुंशी बैठे होंगे।

यानी देश में ऐसे महापुरुष- जिनके नाम हमारे भीतर एक नई प्रेरणा देते हैं- वो यहां कभी बैठते थे, संविधान सभा की चर्चा करते थे, उस जगह पर आज आप बैठे हैं। यानी अपने आप में एक पवित्रता का एहसास, अगर इन बातों को हम स्‍मरण करें- तो अपने-आप होता है।

संविधान निर्माताओं ने और खास करके बाबा साहेब अंबेडकर ने हमारे संविधान को एक सामाजिक दस्‍तावेज के रूप में उसका वर्णन किया। और ये बात सही है, दुनिया में हमारे संविधान की विशेषता है, सिर्फ धाराओं के कारण नहीं है, अधिकारों के कारण नहीं है, कार्यों के बंटवारे के कारण नहीं है; लेकिन देश में सदियों से जो बुराइयां घर कर गई थीं, उससे मुक्ति दिलाने की एक जद्दोजहद में से, एक मंथन में से जो अमृत निकला, वो हमारे संविधान के अंदर शब्‍द रूपी उसने स्‍थान पाया है; और वो बात थी सामाजिक न्‍याय की। अब ज्‍यादातर हम सामाजिक न्‍याय की चर्चा करते हैं तो समाज की अवस्‍था तक ही सीमित रहते हैं, आवश्‍यक भी है, लेकिन कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि सामाजिक न्‍याय का एक और दायरा भी है।

कोई मुझे बताए कि एक घर में बिजली है, बगल वाले घर में बिजली नहीं है- क्‍या सामाजिक न्‍याय हम पर ये जिम्‍मेदारी नहीं बनाता है कि उसके घर में भी बिजली होनी चाहिए? एक गांव में बिजली है, लेकिन बगल वाले गांव में बिजली नहीं है- क्‍या सामाजिक न्‍याय का वो संदेश नहीं है कि अगर इस गांव में बिजली है तो उस गांव में भी होनी चाहिए? एक district फला-फूला है, बहुत आगे बढ़ा है लेकिन दूसरा district पीछे रह गया है- क्‍या सामाजिक न्‍याय की बात करने में हमारी बाध्‍यता नहीं है कि वो district भी तो कम से कम बराबरी में तो आएं? और इसलिए सामाजिक न्‍याय का सिद्धांत हम सबको इस दायित्‍व के लिए प्रेरित करता है।

|

हो सकता है कि देश, जो सबकी अपेक्षा हुई- वहां नहीं पहुंचा होगा, लेकिन हमारे ही राज्‍य में पांच district बहुत अच्‍छे पहुंचे हैं लेकिन तीन district बहुत पीछे रह गए हैं, इसका मतलब पांच तक तो पहुचने की क्षमता है ही है, उन तीन को भी पांच की बराबरी में लाया जा सकता है। अगर राज्‍य के अंदर कुछ पैरामीटर्स में कुछ district बहुत अच्‍छा कर सकते हैं, मतलब उस राज्‍य के अंदर potential है, लेकिन कुछ district पीछे रह गए हैं, क्‍या हम तय कर सकते हैं क्‍या?

हमारे देश में हमारा स्‍वभाव क्‍या है, हम exam देते हैं जब स्‍कूल में पढ़ते हैं तो, अगर geography में हम weak हैं तो हम सोचते हैं यार mathematic में इतना जोर लगा लूंगा ताकि geography में marks कम आएंगे तो compensate  कर लूंगा लेकिन first class में निकल जाऊंगा। हर कोई इसी प्रकार से, हम लोग पले-बढ़े ही ऐसे हैं। राज्‍य को भी जब target आते हैं, या भारत सरकार भी कोई target तय करती है तो क्‍या करते हैं? जो easily result देने वाले लोग हैं, उन्‍हीं को ताकत लगाते हैं, यार कर लो। और उसका परिणाम ये आता है- जो अच्‍छा करते हैं वो तो लगातार अच्‍छे से अच्‍छे होते चले जाते हैं और आंकड़ों के हिसाब से रिजल्‍ट भी अच्‍छा लगता है कि वाह बढ़िया हो गया, इतना पर्सेंट तय कयिा था हो गया, लेकिन जो पिछड़ गए हैं वो और पिछड्ने की दशा में आ जाते हैं। और इसलिए strategically हमें अपना development model को थोड़ा और बारीकी की ओर जाने की आवश्‍यकता पैदा हुई है। हम राज्‍यों के हिसाब से देखें तो अच्‍छा हआ है। एक competitive cooperative federalism  का माहौल बना है। और मैं इस दृश्‍य को भी मानता हूं। ये दृश्‍य अपने-आप में federalism का एक जीता-जागता रूप है- जहां पार्लियामेंट के मेंबर, विधायक के साथ बैठ करके इलाके की, राज्‍य की और देश की चिंता और चर्चा कर रहे हैं। ये अपने-आप में एक federalism को एक नया आयाम मिला है इस अवसर से।

क्‍या न हम- cooperative federalism के कारण राज्‍यों के बीच तो तुलना होने लगी है और कोई राज्‍य पीछे रह गया तो आलोचना भी होती है। उनको भी लगता है नहीं हम भी कुछ करेंगे- ये माहौल तो बना है, लेकिन देश जो अपेक्षाएं करता है, अगर उन अपेक्षाओं को पूरा करना है तो हम उसी पैरामीटर के हिसाब से और उसी इकाई के हिसाब से चलेंगे तो शायद उचित परिणाम नहीं मिलेगा।

एक अनुभव आया स्‍वच्‍छता अभियान का। स्‍वच्‍छता का जब ranking शुरू हुआ- नगर-नगर के बीच हुआ; महानगर-महानगर के बीच होने लगा, तो एक स्‍पर्धा पैदा हुई और एक अगर नगर पीछे रह गया तो गांव के लोग ही आवाज उठाने लगे, कि भई क्‍या कारण है, वो नगर तो आगे बढ़ गया, हम क्‍यों गंदे रह गए? उसमें से एक आंदोलन खड़ा हुआ, एक competition पैदा हुआ है।

जब इस विषय को देखा तो भई आखिरकार देश में जो कुछ तो बहुत अच्‍छी प्रगति कर रहे हैं, फिर भी देश आगे क्‍यों नहीं बढ़ रहा है? स्थितियां बदली क्‍यों? तो उसमें से एक विचार आया कि क्‍यों न हम देश में उन डिस्ट्रिकों को छांटे, कुछ पैरामीटर तय करें और जो officially publication जिसका हो चुका है, उन्‍हीं आंकड़ों को आधार लें। कुछ आंकड़े 2011 के मानदंड पर हैं, उसके बाद के सर्वे नहीं हैं, लेकिन जो भी उपलब्‍ध हैं। forty eight अल्‍प–अल्‍प पैरामीटर निकाले और उसमें से देखा कि भई इन 48 पैरामीटर्स में पीछे हैं, वैसे डिस्ट्रिक्‍ट कौन से हैं? और अनुभव आया कि जो पांच-दस पैरामीटर में पीछे हैं, ज्‍यादातर वो सब पैरामीटर में पीछे हैं।

होता क्‍या है- राज्‍य में भी 10 district मेहनत करके आगे बढ़ रहे हैं लेकिन पांच district पीछे हैं तो वो उसको pool करते हैं- आगे गए हुए को भी पीछे खींचने का काम करते हैं। सब district , push करें, ये व्‍यावहारात्‍मक दृष्टि से बहुत आवश्‍यक है और उसी में से विचार आया कि निश्चित पैरामीटर के साथ identify करें कि कौन district जहां काम करने के लिए विशेष ध्‍यान देने zative ertilzm दस्‍तावेजन की आवश्‍यकता है। करीब साल भर से इसके लिए होमवर्क चला है। अलग-अलग स्‍तर पर चर्चाएं हुईं, मीटिंगें हुईं, identification हो गया। बाद में उन 115 district, जो डीएम हैं, कलेक्‍टर है, district magistrate कहते हैं कहीं पर, उनको यहां बुलाया गया। उनका दो दिन का workshop किया गया कि भई समस्‍या कहां है?

अब राजनीति- जैसा स्‍वभाव है हम लोगों, उसमें आप और मैं कोई अलग नहीं हैं, सब एक ही हैं। हम लोगों का स्‍वभाव क्‍या बना हुआ है, अच्‍छा ठीक है- बजट बताओ, पैसे कहां हैं? लेकिन कभी अगर ध्‍यान से देखेंगे तो उपलब्‍ध संसाधनों से ही अगर एक district आगे गया है, उसी संसाधन मौजूद होने के बावजूद दूसरा पीछे रह गया है; मतलब संसाधन issue नहीं है, शायद governance is a issue, leadership is a issue, coordination is a issue, effective implementation is a issue, और इसलिए हम इन चीजों को कैसे बदलें? और उसमें से सभी कलेक्‍टर मे साथ मैं भी बैठा, बातचीत की, भारत सरकार के सभी वरिष्‍ठ अधिकारी, उनके साथ बैठे।

एक चीज मेरे ध्‍यान में आई, मैं किसी की आलोचना करने के लिए नहीं कह रहा हूं, लेकिन एक सदन में ऐसे लोग आज बैठे हैं कि जिनके सामने अगर मैं खुल करके कुछ बात करूं तो बुरा नहीं होगा। मै हैरान था, आमतौर पर district collector जो होते हैं उनकी average उम्र 27, 28, 30 के करीब-करीब होती है। यंग आईएस अफसर होते हैं, उनको तीन-चार साल में वहां जाने का अवसर मिल जाता है, लेकिन ये 115 district मैंने देखे, उसमें 80 पर्सेंट से ज्‍यादा district कलेक्‍टरों को मैं मिला, वे 40 प्‍लस थे, कोई 45 तक वाले थे।

अब मुझे बताइए 40-45 की उम्र का अफसर उस district में है, वो बच्‍चे बड़े हुए, उसकी एडमिशन की चिंता कर रहा है, बड़े शहर में काम मिल जाए, उसके दिमाग में रहता है; बच्‍चों की पढ़ाई का कुछ हो जाए- उसके दिमाग में वो ही रहता है। दसूरा- ज्‍यादातर ये स्‍टेट कैडर के जो promote officer होते हैं, उन्‍हीं को वहां जाने का, मतलब सोच में ही बैठ गया है कि ये तो बैकवर्ड हैं, district बैकवर्ड है, इसी को भेज दो यार गाड़ी चल जाएगी- वहीं से शुरूआत होती है। अगर हम सब मिल करके तय करें कि नहीं 115 district में आने वाले पांच साल तक फ्रेश अफसरों को लगाएंगे जिसमें ऊर्जा है, करने का जज्‍बा है, आप देखिए चीजें बदलना शुरू हो जाएंगी।

मैं मुख्‍यमंत्रियों से बात कर रहा हूं कि आप, और उसको विश्‍वास दीजिए कि भई कि तुम्‍हें चैलेंज दे रहे हैं। वहां भेजा- मतलब अफसर लोग ही अंदर-अंदर चर्चा करने लगते हैं- मर गया तू। क्‍या करें- कोई political link नहीं है यार? क्‍या हुआ तुझे क्‍यों यहां डाल दिया? यही psyche शुरू होती है।

कभी-कभी लगता है हमको संसाधन। अब कोई मुझे बताए कि भई एक district में vaccination  का बहुत अच्‍छा काम हो रहा है लेकिन बगल वाले में नहीं हो रहा है। क्‍या कमी है? मैं नहीं मानता हूं कोई कमी है। लेकिन जो motivation चाहिए, जो एक perfect planning चाहिए, people’s participation चाहिए, उसका अभाव है कि vaccination  नहीं है, vaccination  नहीं है तो बीमारियों के लिए दरवाजा खुल गया है, दरवाजा खुल गया है तो बीमारियां आती रहती हैं; वो एक के बाद एक बढ़ता चला जा रहा है।

School dropout- स्‍कूल है? है। टीचर है? है। बिल्डिंग है? है। सब कुछ है। बजट है? है। लेकिन यहां पर dropout कम है, वहां पर, बगल में ही दो दृष्टि। कहने का तात्‍पर्य है कि मामला संसाधन पर अटका हुआ नहीं है।

दूसरा आपने देखा होगा जहां पर अफसरों ने और लोकल लीडरशिप ने एक mission mode  में लीडरशिप दी है, लोगों को जोड़ा है; आप देखिए- देखते ही देखते बहुत बड़ा परिणाम मिलता है।

जनभागीदारी और सभी एक दिशा में- क्‍या हमारे पंचायत के प्रधान हों, पंचायत के सदस्‍य हों, नगरपालिका के सदस्‍य हों, नगरपालिका के प्रधान हों, डिस्ट्रिक्‍ट पंचायत हो, तहसील पंचायत हो, इन सारे जो भी अपने समाज जीवन में जिनके पास प्रतिनिधित्‍व का अवसर मिला है, एक विधायक के रूप में, एक सांसद के रूप में मेरे क्षेत्र में अगर इस प्रकार का aspirational district आया है, हम तय करेंगे कि हम सब एक दिशा में चार काम तो पूरा करके रहेंगे, ये दस काम तो पूरा करके रहेंगे, हम ताकत लगाएंगे, हम लोगों को जोड़ेंगे। आप देखिए, बदलाव शुरू होगा।

कभी-कभी बारीकी में जाने से कैसा बदलाव आता है- कोई एक व्‍यक्ति अच्‍छा-खासा तंदुरुस्‍त, दौड़ता-कूदता, काम करने वाला व्‍यक्ति; खाना ठीक से खा रहा है, फैमिली लाईफ ठीक है, व्‍यवस्‍थाएं अच्‍छी हैं कोई दुविधा नहीं है- लेकिन धीरे-धीरे-धीरे weight कम हो रहा है। तो उसको लगता है नहीं, नहीं- शुरू में तो वो कह देता है नहीं मैं थोड़ा डायटिंग करता हूं। पहले से जरा फिट लग रहा हूं। फिर भी weight कम होता है, तो उसको लगता है यार क्‍या हुआ? तभी weakness शुरू होने लगती है, फिर भी जिंदगी अपनी वैसे ही जी रहा है, मस्‍त जी रहा है। लेकिन कोई अच्‍छा अनुभवी डॉक्‍टर कहता है अरे भाई एक बार चैक करवाओ। और जब चैक करवाता है, पता चलता है यार डाय‍बिटीज है, और उसी के कारण इतना बढ़िया सा तंदुरुस्‍त शरीर, एक बार अगर डायबिटीज enter कर गया, और जैसे ही उसने डायबिटीज को address किया, उसने जो भी दवाएं लेनी शुरू कीं, डायबिटीज तो था-गया नहीं- कंट्रोल हुआ बाकी सारे पैरामीटर्स ठीक होने लगे।

मैं समझता हूं हमारे districts का भी यही हाल है। हम एक बार देखें कि वो कौन सी चीज है जो इस districts को weak करती चली जा रही है, हम उसको address करें और उसमें से परिवर्तन लाने का प्रयास करें; आप देखिए कोई district पीछे नहीं रहेगा।

कल्‍पना कीजिए 115 district, उसमें 30-35 left wing extremism के हैं, जिसको होम मिनिस्‍ट्री को मैंने specially कहा है कि उसमें कोई विशेष ध्‍यान दे करे हम उस समस्‍याओं का समाधान कैसे कर सकते हैं, लेकिन बाकी करीब-करीब 80-90 districts ऐसे हैं कि जिसको हम बड़ी आसानी से address कर सकते हैं। अब district का प्‍लानिंग भी कैसा होना चाहिए? एक district में भी आपने देखा होगा, एक तहसील होगा, हो सकता है vaccination में बहुत अच्‍छा जाता होगा, एक तहसील ऐसा होगा कि जो शायद dropout के अंदर बहत पोजिटिव सिगनल देता होगा, dropout बहुत कम होते होंगे। कहीं न कहीं उसमें भी strength होगी। उसमें जो weak point वाले इलाके हैं, धीरे-धीरे से गांव की ओर नजर करें, भई इस गांव में तीन चीजें तो बहुत अच्‍छी हैं लेकिन दो चीजें कम हैं, उस दो को address करें।

एक बार, और ये ज्‍यादा मेहनत नहीं लगेगी। 115 district की कमियों को, और आपको जब नीति आयोग के लोग presentation देंगे, मैंने अभी दो दिन पहले सभी मंत्रियों के साथ बैठ करके presentation देखा। सरकार के presentation में पिछले 20 साल से देखता आया हूं, लेकिन इतना सटीक, इतना स्‍पष्‍ट और एक layman को भी समझ आए कि भई हां इसका रास्‍ता ये है, इतना बढ़िया presentation मैंने अमिताभ कान्त ने दिया अभी, नीति आयोग का presentation था, I was so impressed वो आपको भी देने वाले हैं, आपको भी दिखाने वाले हैं।

उसमें एक विषय है कि भई आपका ये डिस्ट्रिक, इस विषय में आपके राज्‍य की जो एवरेज स्थिति है, उससे इतना पीछे है, आपके राज्‍य का जो best performing district है, उससे इतना है। नेशनल एवरेज से इतना पीछे है और nation  का best performing district से इतना पीछे। इन चार पैरामीटर्स से उसको बार-बार देखा जाता है। आपको भी लगेगा कि अगर मेरे देश के 200 district आगे बढ सकते हैं तो मेरा district भी आगे बढ़ सकता है। मेरे देश के हजार तहसील आगे बढ़ सकते हैं तो मेरा तहसील भी आगे बढ़ सकता है। और ये बात हम मानकर चलें, हम यहां सभी राजनीतिक दल के लोग बैठे हैं। कोई एक जमाना था जब देश में hard core politics, दिन-रात पॉलिटिक्‍स, आंदोलन की राजनीति, बयान की राजनीति, संघर्ष की राजनीति; ये बहुत काम आती थीं। आज वक्‍त बदला है, आप सत्‍ता में हैं या विपक्ष में, जनता के काम आते हैं कि नहीं आते हैं, इस बात को जनता देखती है।

आप कितनी लड़ाई लड़ी, कितने मोर्चे निकाले, कितनी बार जेल गए, वो आज से 20 साल पहले matter करता था आपके political carrier में, आज स्थिति बदल चुकी है। आज तो वो चाहता है, और आपने देखा होगा, जो बार-बार चुन करके आते हुए प्रतिनिधि हैं, उनका अगर आप analysis करोगे, तो इसलिए नहीं चुन कर आते कि उन्‍होंने कितनी बार संघर्ष किया, लेकिन आप बिल्‍कुल देखना-उनके जीवन में एक-दो चीज ऐसी होती हैं जो बिल्‍कुल राजनीति से परे, सत्‍ता संघर्ष से परे, जनता के सुख-दुख से जुड़ी हुईं और वो उसमें identify होता है, ऐसा वो तो पहुंच गया होता है। वो हर बार उसके विषय में कुछ न कुछ करता है, चाहे अस्‍पताल जाता होगा, मिलता होगा; उस छवि से उसकी बाकी राजनीति चल जाती है।

हमें भी कोशिश करनी होगी कि hard core politics, आप छोड़ दें- ऐसा मैं नहीं कहता हूं, लेकिन समाज की रचना ही छुड़वा रहीं है। समाज में जो जागृति आई है, वो ही छुड़वा रही है। वे चाहते हैं‍ कि मेरे सुख-दुख के समय कौन मेरे साथ है? मेरे जीवन में बदलाव लाने के लिए कौन मेरे साथ है? इसका बहुत बड़ा प्रभाव होता है। हम अपने क्षेत्र में तय करें कि भई मैं girl child education में 100 percent काम करूंगा। मैं अपना initiative एक चीज बदलाव करेंगे, अपने आप सिस्‍टम बदलना शुरू कर देगा।

कोई कहेगा कि भई इंद्रधनुष योजना है, वैक्‍सीनेशन की डेट है, उस दिन तो मैं फील्‍ड में रहूंगा ही रहूंगा, मेरे volunteers को रखूंगा, हमारे समाज जीवन में जो लोग हैं उनको भी इकट्ठा करूंगा। इंद्रधनुष स्‍कीम के तहत मैं वैक्‍सीनेशन का काम पूरा करूंगा। अब पहले हमारे यहां वैक्‍सीनेशन 30 पर्सेंट, 40 पर्सेंट, 50 पर्सेंट; सरकार खर्चा नहीं करती थी, ऐसा नहीं था- सरकार खर्चा करती थी। बजट खर्च करते थे। गुलाम नबी जी जब हेल्‍थ मिनिस्‍ट्री देखते थे तब भी होता था। लेकिन जन-भगीदारी के अभाव में वो चीजें अटक जाती थीं।

इंद्रधनुष योजना के तहत एक विशेष प्रयास आरंभ किया, अब वैक्‍सीनेशन करीब 70-75 तक इसे पहुंचाया। लेकिन क्‍या हम 90 पर्सेंट तक पहुंचा सकते हैं? एक बार 90 पर्सेंट पहुंचाएंगे तो 100 पर्सेंट में मुसीबत नहीं आएगी। और अगर वैक्‍सीनेशन हो गया pregnant women का और बच्‍चों का, पोलियो मुक्ति अपने-आप हो जाएगी और गंभीर प्रकार की बीमारियों से बचने का काम अपने-आप हो जाएगा।

व्‍यवस्‍थाएं है, योजना है और कोई आवश्‍यकता नहीं है कि नए बजट की जरूरत है। जो बजट है, जो resources हैं, जो man power है, वहीं अगर mission mode में काम करें तो परिणाम उत्‍तम मिल सकता है, इसी एक भूमिका के साथ aspiration और उसको मैंने backward शब्‍द प्रयोग करने से मना किया है, वरना psyche वहीं से शुरू होती है।

आपको मालूम होगा पहले हमारे यहां रेलवे में तीन क्‍लास हुआ करते थे। First class, second class and third class. फिर बाद में सरकार ने आज से 20-25 साल पहले थर्ड क्‍लास कैंसिल कर दिया। डिब्‍बे में कोई फर्क नहीं किया लेकिन सार्इक्‍लोजीकली बहुत बड़ा चेंज आया कि जो आदमी उसमें बैठता था उसके प्रति नफरत, अच्‍छा ये थर्ड क्‍लास में जा रहा है? अब वो बदलाव आ गया। डिब्‍बा वो ही है, बैठने की जगह वो ही है, और इसलिए अगर हम backward शब्‍द करेंगे तो फिर, यार छोड़ो यार, मैं तो उस backward district का‍ विधायक हूं। अच्‍छा-अच्‍छा तुम भी backward हो? वहीं से शुरू हो जाता है। हमें देश में backward की स्‍पर्धा नहीं करनी है, हमें देश में स्‍पर्धा forward की करनी है। और हम, हमारे इन इलाकों को, इन क्षेत्रों का विकास सामाजिक न्‍याय का काम है, अगर उस district का डेवलेपमेंट हआ, मतलब अपने आप सामाजिक न्‍याय का हक बन ही जाएगा।

अगर सब बच्‍चों को शिक्षा मिलती है हमारे क्षेत्र में, इसका मतलब सामाजिक न्‍याय का एक कदम हआ। अगर सब घरों में बिजली है, मतलब सामाजिक न्‍याय का एक कदम हुआ। सामाजिक न्‍याय की जो विभावना इसी सदन के इसी सभागृह में हमारे महापुरुषों ने हमारे सामने रखी थी, उसको एक नए स्‍वरूप में, और जिसमें संघर्ष की संभावना बहुत कम है- तुझे मिला, मुझे नहीं मिला, भाव का कम है, सबके लिए करना- इस भाव को लेकर चलते हैं तो कितना बड़ा परिणाम हम प्राप्‍त करें सकते हैं।

और मुझे विश्‍वास है सभी राजनीतिक दल के नेता यहां मौजूद हैं। उन्‍हीं क्षेत्र के विधायक और सांसद यहां मौजूद हैं। एक बार आप ठान लें। अभी मैं मेरा दौरा करता हूं, तो मै aspirational district के जो अफसर मुझे मिले थे पहले, जिनका दो महीने पहले अभ्‍यासवर किया था, उनको मैं वहां बुलाता हूं, पूछता हूं। अभी मैं परसों झुंझनू था, तो मैंने राजस्‍थान के पांच aspirational district को भी बुला लिया था और हरियाणा के एक थे, उनको भी बुला लिया था। मैंने पूछा, बताओ भाई- आधा घंटा बैठा था उनके साथ, बताओ भाई क्‍या हुआ? मैं देख रहा हूं कि अगर हम लोग भी उनका एक helping hand के रूप में काम करेंगे, हम हिसाब-किताब मांगें तो वो थक जाएंगे।  क्‍यों नहीं हुआ? मेरे इलाके में क्‍यों नहीं हुआ? फलानां, वो ठीक है, वो राजनीति का अपना स्‍वभाव है- लेकिन, अरे भई तम चिन्‍ता न करो, मैं रहूंगा। अच्‍छा लोग मदद नहीं करते, मैं आता हूं तुम्‍हारे साथ, चलो, उसका हौसला बुलंद हो जाएगा। हम उस सरकार में बैठे हुए लोगों को उनका हौंसला बुलंद करें।

जन-भागीदारी को बढ़ाएं। क्‍यों न हम उस इलाके के जितने एनजीओ हैं, उनको इकट्ठा करें? जितनी युवा की activity हैं, उनको इकट्ठा करें, कि देखो भाई ये स्थिति बदलनी है हमें। हमारे पास resources हैं, परिणाम नहीं आ रहा है। हमें बीच की खाई भरनी है और हम करेंगे। शासन व्‍यवस्‍था अपने-आप दौड़ने लग जाएगी क्‍योंकि उनको भी जब परिणाम मिलने लगता है तो उनका हौंसला बुलंद हो जाता है। तभी तो आप हैरान होंगे 115 districts में कुछ district ऐसे हैं कि जिसका नाम सुनते ही हम भड़क जाएंगे, अच्‍छा ये भी बैकवर्ड है? यहां तो इतना बड़ा industrial development हुआ और ये नाम बैकवर्ड है? कारण क्‍या- वो industrial development या किसी एक चीज के कारण इसका तामझाम इतना बड़ गया कि नीचे जैसे वो डायबिटिक पेशेंट का होता है ना, बाकी चीजों का कोई ध्‍यान ही नहीं रहा, एक ही बड़ी चीज का जय-जयकार होता गया। ऐसे भी district ध्‍यान में आए, कि अपने-आप में बहुत नाम कमाया हुआ district, लेकिन बारीकी में देखें तो पैरामीटर में लड़खड़ा गया था। और वो एक ऐसी चीज उसके पास थी कि वो कोई भी जाकर अभिभूत हो जाता है, वाह- इतना बढ़िया है? लेकिन नीचे गड़बड़ होती थी।

तो ऐसी भी कुछ चीजें ध्‍यान में आई हैं। कुछ लोगों के मन में ये रह सकता है कि भई मेरा district नहीं आया, मेरा ऐसा है। मैं समझता हूं अभी तो एक 2011 के जो figures थे, उसके आधार पर कुछ लिया है, कुछ figures बाद में मिले। राज्‍यों को भी बताया गया‍ कि भई ये district आपके select किए हैं, आपको अगर लगता है कि बदलना चाहिए तो, एक पांच-छह राज्‍य ऐसे हैं जिन्होंने district change करवाया था।

बाकी एक इसको कोई राजनीतिक रंग न दिए बिना- उसका हुआ, मेरा नहीं हुआ- उस भाव को छोड़ करके, हम सब मिल करके, एक साल- मैं ज्‍यादा नहीं कर रहा हूं दोस्‍तो- एक साल, अगर एक साल हम सब लग जाएं और ये अगर पैरामीटर बदल जाए तो आपके राज्‍य के पैरामीटर्स बदल जाएंगे, देश का चित्र बदल जाएगा। Your human development index, दुनिया में हम 130-131 नंबर पर खड़े हैं।

आज विश्‍व में भारत की अगर जिस प्रकार की आशा-अपेक्षाएं बनी हैं, हम human development index की दृष्टि से उसको अगर हम अपना improvement करते हैं, और ये 115 district  में improvement होगा तो देश का improvement अपने-आप होने वाला है, extra कुछ करना नहीं पड़ेगा।

और इसको अगर करके चलेंगे, योजनाओं का फायदा भी है। देखिए, कभी-कभी क्‍या लगता है- जैसे मनरेगा है- गरीब, जहां रोजगार नहीं है, उनको रोजगार मिले- ये उसका मूलभूत लक्ष्‍य है। अनुभव ये आया है कि जहां सबसे ज्‍यादा गरीबी है, वहां कम से कम मनरेगा होता है, और जहां समृद्धि है, वहां ज्‍यादा मनरेगा होता है। ज्‍यादा लोगों काम-क्‍यों? कारण यही है कि जो अच्‍छे स्‍टेट हैं वहां गुड गवर्नेंस  है जो उसका natural benefit मनरेगा में भी जाना जाता है और जहां पर गरीबी भी है, मजदूरी की जरूरत भी है, मनरेगा का पैसा भी है, लेकिन गवर्नेंस में weakness  है, तो पैसा उन गरीबों तक पहुंचता नहीं है।

हकीकत में जो देश के अच्‍छे, आर्थिक समृद्धि वाले राज्‍य हैं, वहां तो मनरेगा का minimum पैसा जाना चाहिए और जहां गरीबी है, उन राज्‍यों में सबसे ज्‍यादा जाना चाहिए, लेकिन संसाधन समस्‍या नहीं है। Good governance is a problem, coordination is a problem, focus activities is a problem. इन चीजों को अगर बल देते हैं तो हम बहुत बड़ा परिणाम ला सकते हैं।

मैं फिर एक बार सुमित्रा जी का हृदय से आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि एक अच्‍छे समागम के माध्‍यम से, दो दिन के मंथन से, इन 115 districts के भाग्‍य को बदलने का काम- संविधान सभा जहां बैठी थी, जहां हमारे महापुरुषों ने बैठ करके चिंतन किया था, राष्‍ट्र के लिए जो सपना देखा था; उसी सदन में बैठ करके आज हम अपने एक नए आयाम की ओर कदम रख रहे हैं। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। मैं फिर एक बार यहां आने के लिए आप सबका हृदय से धन्‍यवाद करता हूं।

Thank you.

 

Explore More
ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಭಾರತೀಯನ ರಕ್ತ ಕುದಿಯುತ್ತಿದೆ: ಮನ್ ಕಿ ಬಾತ್ ನಲ್ಲಿ ಪ್ರಧಾನಿ ಮೋದಿ

ಜನಪ್ರಿಯ ಭಾಷಣಗಳು

ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಭಾರತೀಯನ ರಕ್ತ ಕುದಿಯುತ್ತಿದೆ: ಮನ್ ಕಿ ಬಾತ್ ನಲ್ಲಿ ಪ್ರಧಾನಿ ಮೋದಿ
FSSAI trained over 3 lakh street food vendors, and 405 hubs received certification

Media Coverage

FSSAI trained over 3 lakh street food vendors, and 405 hubs received certification
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
The new complex will enhance the ease of living for MPs in Delhi: PM Modi
August 11, 2025
QuoteJust a few days ago, I inaugurated the Kartavya Bhavan and, today, I have the opportunity to inaugurate this residential complex for my colleagues in Parliament: PM
QuoteToday, if the country fulfills the need for new homes for its MPs, it also facilitates the housewarming of 4 crore poor people through the PM-Awas Yojana : PM
QuoteThe nation today not only builds Kartavya Path and Kartavya Bhavan but also fulfills its duty to provide water through pipelines to millions of citizens: PM
QuoteFrom solar-enabled infrastructure to the country’s new records in solar energy, the nation is continuously advancing the vision of sustainable development: PM

कार्यक्रम में उपस्थित श्रीमान ओम बिरला जी, मनोहर लाल जी, किरेन रिजिजू जी, महेश शर्मा जी, संसद के सभी सम्मानित सदस्यगण, लोकसभा के महासचिव, देवियों और सज्जनों !

अभी कुछ ही दिन पहले मैंने कर्तव्य पथ पर कॉमन सेंट्रल सेक्रेटरिएट, यानि कर्तव्य भवन का लोकार्पण किया है। और, आज मुझे संसद में अपने सहयोगियों के लिए इस residential complex के उद्घाटन का अवसर मिला। ये जो चार टॉवर्स हैं, उनके नाम भी बहुत सुंदर हैं- कृष्णा, गोदावरी, कोसी, हुगली, भारत की चार महान नदियां, जो करोड़ों जनों को जीवन देती हैं। अब उनकी प्रेरणा से हमारे जनप्रतिनिधियों के जीवन में भी आनंद की नई धारा बहेगी। कुछ लोगों को परेशानी भी होगी, कोसी नदी रखा है नाम, तो उनको कोसी नदी नहीं दिखेगी, उनको बिहार का चुनाव नजर आएगा। ऐसे छोटे मन के लोग जो होते हैं उनकी परेशानियों के बीच भी मैं जरूर कहूंगा कि ये नदियों के नामों की परंपरा देश की एकता के सूत्र में हमें बांधती है। दिल्ली में हमारे सांसदों का Ease of Living बढ़े, हमारे सांसदों के लिए दिल्ली में उपलब्ध सरकारी घर की संख्या अब और ज्यादा हो जाएगी। मैं सभी सांसदों को बधाई देता हूं। मैं इन फ्लैट्स के निर्माण से जुड़े सभी इंजीनियर्स और श्रमिक साथियों का भी अभिनंदन करता हूँ, जिन्होंने मेहनत और लगन से ये काम पूरा किया है।

|

साथियों,

हमारे सांसद साथी जिस नए आवास में प्रवेश करेंगे, अभी मुझे उसका एक sample फ्लैट देखने का मौका मिला। मुझे पुराने सांसद आवासों को देखने का भी मौका मिलता ही रहा है। पुराने आवास जिस तरह बदहाली का शिकार होते थे, सांसदों को जिस तरह आए दिन परेशानियों का सामना करना पड़ता था, नए आवासों में गृह प्रवेश के बाद उससे मुक्ति मिलेगी। सांसद साथी अपनी समस्याओं से मुक्त रहेंगे, तो वो अपना समय और अपनी ऊर्जा, और बेहतर तरीके से जनता की समस्याओं के समाधान में लगा पाएंगे।

साथियों,

आप सभी जानते हैं, दिल्ली में पहली बार जीतकर आए सांसदों को घर allot करवाने में कितनी कठिनाई आती थी, नए भवनों से ये परेशानी भी दूर होगी। इन मल्टी-स्टोरी बिल्डिंग्स में 180 से ज्यादा सांसद एक साथ रहेंगे। साथ ही, इन नए आवासों का एक बड़ा आर्थिक पक्ष भी है। अभी कर्तव्य भवन के लोकार्पण पर ही मैंने बताया था, अनेक मंत्रालय जिन किराए की बिल्डिंग्स में चल रहे थे, उनका किराया ही करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपए साल भर होता था। ये देश के पैसे की सीधी बर्बादी थी। इसी तरह, पर्याप्त सांसद आवास ना होने की वजह से भी सरकारी खर्च बढ़ता था। आप कल्पना कर सकते हैं, सांसद आवास की कमी होने के बावजूद, 2004 से लेकर 2014 तक लोकसभा सांसदों के लिए एक भी नए आवास का निर्माण नहीं हुआ था। इसलिए, 2014 के बाद हमने इस काम को एक अभियान की तरह लिया। 2014 से अब तक, इन फ्लैट्स को मिलाकर करीब साढ़े तीन सौ सांसद आवास बनाए गए हैं। यानि एक बार ये आवास बन गए, तो अब जनता का भी पैसा बच रहा है।

साथियों,

21वीं सदी का भारत, जितना विकसित होने के लिए अधीर है, उतना ही संवेदनशील भी है। आज देश कर्तव्य पथ और कर्तव्य भवन का निर्माण करता है, तो करोड़ों देशवासियों तक पाइप से पानी पहुंचाने का अपना कर्तव्य भी निभाता है। आज देश अपने सांसदों के लिए नए घर का इंतज़ार पूरा करता है, तो पीएम-आवास योजना के जरिए 4 करोड़ गरीबों का गृह प्रवेश भी करवाता है। आज देश संसद की नई ईमारत बनाता है, तो सैकड़ों नए मेडिकल कॉलेज भी बनाता है। इन सबका लाभ हर वर्ग, हर समाज को हो रहा है।

|

साथियों,

मुझे खुशी है कि नए सांसद आवासों में sustainable development इसका भी विशेष ध्यान रखा गया है। ये भी देश के pro-environment और pro-future safe initiatives का ही हिस्सा है। सोलर enabled इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर सोलर एनर्जी में देश के नए records तक, देश लगातार sustainable development के विज़न को आगे बढ़ा रहा है।

साथियों,

आज मेरा आपसे कुछ आग्रह भी हैं। यहाँ देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों के सांसद एक साथ रहेंगे। आपकी उपस्थिति यहाँ ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का प्रतीक बनेगी। इसलिए अगर इस परिसर में हर प्रांत के पर्व त्योहारों का समय-समय पर सामूहिक आयोजन होगा, तो इस परिसर को चार चांद लग जाएंगे। आप अपने क्षेत्र की जनता को भी बुलाकर इन कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी करवा सकते हैं। आप अपने-अपने प्रांतों की भाषा के कुछ शब्द भी एक दूसरे को सिखाने का प्रयास कर सकते हैं। Sustainability और स्वच्छता, ये भी इस बिल्डिंग की पहचान बनें, ये हम सबका कमिटमेंट होना चाहिए। न केवल सांसद आवास, बल्कि ये पूरा परिसर हमेशा साफ-स्वच्छ रहे, तो कितना ही अच्छा होगा।

|

साथियों,

मुझे आशा है, हम सब एक टीम की तरह काम करेंगे। हमारे प्रयास देश के लिए एक रोल मॉडल बनेंगे। और मैं मंत्रालय से और आपकी आवास कमेटी से आग्रह करूंगा, क्या साल में दो या तीन बार ये सांसदों के जितने परिसर हैं, उनके बीच स्वच्छता की कंपटीशन हो सकती है क्या? और फिर घोषित किया जाए कि आज ये जो ब्लॉक था वो सबसे ज्यादा स्वच्छ पाया गया। हो सकता है एक साल के बाद हम ये भी तय करें कि सबसे अच्छे वाला कौन सा, और सबसे बुरे वाला कौन सा, दोनों घोषित करें।

|

साथियों,

मैं जब ये नवनिर्मित फ्लैट देखने गया, तो मैंने जब अंदर प्रवेश किया, तो पहला मेरा कमेंट था, इतना ही है क्या? तो उन्होंने कहा नहीं साहब ये तो शुरुआत है, अभी अंदर चलो आप, मैं हैरान था जी, मुझे नहीं लगता कि सारे कमरे आप भर पाएंगे, काफी बड़े हैं। मैं आशा करूंगा, इन सबका सदुपयोग हो, आपके व्यक्तिगत जीवन में, आपके पारिवारिक जीवन में, ये नए आवास भी एक आशीर्वाद बनें। मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।