PM addresses at the Birth Centenary function of Shri Girdhari Lal Dogra in Jammu & Kashmir
PM Narendra Modi pays tribute to Shri Girdhari Lal Dogra
There is no question of political untouchability. Everyone who worked for the nation has to be respected: PM

उपस्थित प्‍यारे भाईयों और बहनों।

यह कार्यक्रम, गिरधारी लाल जी के नाम पर जो ट्रस्‍ट चल रहा है, उनके द्वारा आयोजित किया गया है और उनका यह शताब्‍दी वर्ष है। आमतौर पर राजनीति का दुर्भाग्‍य ऐसा है कि मरने के बाद बहुत ही कम राजनेता जीवित रहते हैं। कुछ ही समय में वो भुला दिए जाते हैं। लोग भी भूल जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे अपवाद होते हैं, जो अपने कार्यकाल में जो कार्य करते हैं। जिस प्रकार का जीवन जीते हैं, जिसके कारण मृत्‍यु के कई वर्षों के बाद भी वो जीवित रहते हैं और मैं मानता हूं कि गिरधारी लाल जी उसमें से एक हैं।

मैं कल यहां आने से पूर्व देख रहा था उनके जीवन की तरफ, वे सार्वजनिक जीवन में देशभक्ति की प्रेरणा से आए थे। वे तब सार्वजनिक जीवन में आए थे, जब लेना, पाना, बनना दूर-दूर तक नजर नहीं आता था। उस समय वो सार्वजनिक जीवन में आए थे और लाहौर की धरती पर आजादी के आंदोलन के साथ अपने को जोड़ा था, विद्यार्थी काल में भी उन्‍होंने आजादी के लिए कुछ न कुछ करना इस प्रबल भावना के साथ अपने आप को जोड़ दिया था। और बाद में राजनीतिक यात्रा में जीवन का अधिकतम समय उनको सत्‍ता में रहने का अवसर मिला है। जिसमें 26 बार बजट देने का सौभाग्‍य शायद ही दो-चार लोगों को मिला नहीं है। 26 बार बजट देने के पीछे की दो बात साबित होती है, एक तो राजनीतिक जीवन में स्‍वीकिृति और स्थिरता और दूसरी जो दायित्‍व मिला है उसके प्रति expertise और समर्थन, तभी जाकर के होता है। otherwise तो लोग आते हैं, जाते हैं, बनते हैं, बदलते हैं यह रहता है। लेकिन मूलभूत बातें जब होती हैं तभी यह संभव होता है।



और आज शायद जम्‍मू-कश्‍मीर में दो या तीन पीढ़ी ऐसी होगी सार्वजनिक जीवन में जो गर्व से कहते होंगे कि मुझे गिरिधारी लाल जी की उंगली पकड़कर चलने का सौभाग्‍य मिला था। मेरे राजनीतिक जीवन को shape देने का प्रारंभ उन्‍हीं के हाथों से हुआ था। जैसे अभी गुलाम नबी जी बता रहे थे कि उन्‍होंने मुझे तैयार किया। यह भी उनकी एक सफलता है कि अपने पीछे एक ऐसे कार्यकर्ताओं की परंपरा तैयार करना जो आगे चलकर के राजनीतिक जीवन को आगे बढ़ाए और इस दृष्टि से भी वे सिर्फ राजनेता नहीं लेकिन एक सार्वजनिक जीवन में निरंतर चेतना बनाए रखने का प्रयत्‍न करने वाले उन व्‍यक्तियों में से थे, जिन्‍होंने पीढि़यों को तैयार करने की चिंता की।

मैं अभी यहां आया तो मैंने पहले उनकी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया और प्रदर्शनी देख रहा था। एक बात मेरे मन को छू गई उस प्रदर्शनी में और छू इसलिए गई कि आज के राजनीतिक जीवन में वो नजर नहीं आता है। मैंने उनकी राजनीतिक यात्रा की जितनी तस्‍वीरें देखी उन तस्‍वीरों में उनके परिवार का एक भी व्‍यक्ति कहीं नजर नहीं आता है। यह छोटी बात नहीं है। यह बहुत बड़ी बात है कि इतना लम्‍बे समय का सार्वजनिक जीवन हो, राजनीतिक जीवन हो, सत्‍ता के गलियारों में हो। देश के सभी पहले प्रधानमंत्रियों के साथ निकट संबंध रहा हो, लेकिन कहीं पर भी राजनीतिक यात्रा में एक भी तस्‍वीर में परिवार मुझे नजर नहीं आया। मैं कल्‍पना कर सकता हूं कि यह कठिन काम होता है, सरल नहीं होता। अपनों की थोड़ी बहुत इच्‍छा रहती है। लेकिन अपने काम के समय भई आप अपनी जगह पर जब घर आउंगा तब ठीक है। परिवार के जन दिखाई दिए एक तस्‍वीर में, कब? जब उनकी अन्‍त्‍येष्टि की यात्रा की तस्‍वीर है, सिर्फ वहीं परिवार जन दिखाई दे रहे हैं। आज के राजनीतिक जीवन के लिए यह अपने आप में संदेश है। कभी-कभार लोगों को लगता है कि भई यह शताब्‍दी मनाना वगैरह क्‍या होता ? मैं मानता हूं कि यही सबसे बड़ा सबक होता है कि जब उनके जीवन को याद करते हैं, जो आज नजर नहीं आता है, वो वहां नजर आता है तो शायद कभी उस प्रकार से जीने की इच्‍छा कर जाती है। उस प्रकार से कुछ काम करने की इच्‍छा जग जाती है। वहीं से प्रेरणा मिल जाती है और उस अर्थ में मैं मानता हूं कि उन्‍होंने सार्वजनिक जीवन की मर्यादाओं का पालन पल-पल किया होगा। हर गतिविधि में इस बात का ध्‍यान रखा होगा और तब जाकर के इतने लम्‍बे कार्यकाल में यह संभव हुआ होगा।

मुझे और एक बात भी नजर आती है कि डोगरा साहब को व्‍यक्तियों की परख बड़ी पक्‍की होगी, ऐसा मुझे लगता है। जैसे उन्‍होंने गुलाम नबी जी को युवा मोर्चा का अध्‍यक्ष बना दिया, तो व्‍यक्तियों की परख बहुत ही अच्‍छी रहती होगी। वो बराबर नाप लेते होंगे कि व्‍यक्ति ठीक है या नहीं है। और उसका उदाहरण है उन्‍होंने जो दामाद चुने हैं। यह उनकी….वरना अरूण जी की विचारधारा को और उनकी राजनीतिक विचारधारा का कोई मेल नहीं था। उसके बावजूद भी कुर्सी दे कि न दें, बेटी तो दी। और यह भी विशेषता है कि दामाद ससुर के कारण नहीं जाने जाते और ससुर दामाद के कारण नहीं जाने जाते। वरना इतने साल के सार्वजनिक जीवन में अरूण जी को कभी तो मन कर गया होगा कि ससुर इतनी बड़ी जगह पर बैठे हैं, लेकिन उन्‍होंने भी अपने आप को दूर रखा और उन्‍होंने भी इनको दूर रखा। आप अपना भाग्‍य अपने खुद तय कीजिए मेरा जिम्‍मा मैं निभाऊंगा और आज तो हम जानते हैं कि दामादों के कारण क्‍या-क्‍या बातें होती हैं। और इसलिए मैं कहता हूं कि किस दल से थे, किस विचार से जुड़े थे, किसके नेतृत्‍व में काम करते थे इसके आधार पर सार्वजनिक जीवन नहीं चलता है।



और सार्वजनिक जीवन में एक अहम आवश्‍यकता है आज देश में, जो चिंता का विषय है। हम हमारी विरासत को बंटने न दें। कभी-कभार तो हर कोई सार्वजनिक जीवन का व्‍यक्ति अपने-अपने कालखंड में अपनी-अपनी विचारधारों को लेकर काम किया, लेकिन वो जीता है देश के लिए, मरता है देश के लिए। हम जो आज की पीढ़ी के लोग हैं उनका काम नहीं है कि उनके लिए हम दीवार पैदा करें, हमारे लिए तो वो सभी महापुरूष हैं, उन सभी महापुरूषों ने, जिसके लिए देश के लिए काम किया है आदर और गौरव का विषय होना चाहिए, इसमें कभी छुआछूत नहीं होना चाहिए। वो नेशनल कांफ्रेंस में थे या कांग्रेस में थे, प्रधानमंत्री को आना चाहिए कि नहीं आना चाहिए। सवाल यह नहीं है आना इसलिए चाहिए कि उन्‍होंने अपनी जवानी देश के लिए खपाई थी।

और इसलिए हमारी विरासतें कभी बंटनी नहीं चाहिए। किसी भी विचार में न हो, मुझे याद है जब अटल जी की सरकार बनी, पहली बार अटल जी प्रधानमंत्री बने थे। पहली बार या दूसरी बार, पहली बार शायद 13 दिन के थे, दूसरी बार मुझे याद नहीं रहा और उसी दिन कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के एक बहुत बड़े नेता, जिनका केरल में स्‍वर्गवास हो गया। उस समय वो सत्‍ता में तो नहीं थे और अभी तो शपथ समारोह पूरा हुआ था। उसी समय अटल जी ने कहा आडवाणी जी आप उनकी अन्‍त्‍येष्टि में जाइये, उन्‍होंने देश के लिए बहुत काम किया है। कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के नेता थे। भारतीय जनता पार्टी के घोर विरोध करने वाली उनकी विचार धारा थी। लेकिन सरकार बनने के दूसरे ही दिन फूल माला पहनने का कार्यक्रम नहीं, आडवाणी जी को वहां भेजा गया था। यह सार्वजनिक जीवन की आवश्‍यकता होती है।

सार्वजनिक जीवन में.... अब हम यहां मस्‍ती से बैठे हैं लेकिन परसों देखना आप कैसा मुकाबला होता है। ये लोकतंत्र का सहज गुण-धर्म है। हर फोरम में अपनी बात होती है, लेकिन राजनीतिक छूआछूत नहीं चलती हैं। देश के लिए जीने-मरने वालों के लिए समान भाव होना जरूरी होता है, उनके प्रति सम्‍मान होना जरूरी होता है और उसी के तहत डोगरा जी आज होते तो हमारा विरोध करते, शायद उनके दामाद का भी करते। लेकिन उनके जीवन को, उनके कार्य को हम गौरव के साथ देखें, उनसे कुछ सीखें-पाएं और आगे बढ़ें। इसी अपेक्षा के साथ हम सब ऐसे महापुरूषों को याद करते रहें, उनसे प्रेरणा लेते रहें।

रमजान का पवित्र महीना उन्‍नता पर है। बहुत बड़ी उमंग और उत्‍साह के साथ देश और दुनिया में ईद की प्रतीक्षा हो रही है। मेरी तरफ से ईद के पावन पर्व के लिए सभी इस पंरपरा को मानने वाले महानुभावों को हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

नमस्कार,

अभी दो ढाई घंटे पहले ही मैं कुवैत पहुंचा हूं और जबसे यहां कदम रखा है तबसे ही चारों तरफ एक अलग ही अपनापन, एक अलग ही गर्मजोशी महसूस कर रहा हूं। आप सब भारत क अलग अलग राज्यों से आए हैं। लेकिन आप सभी को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने मिनी हिन्दुस्तान उमड़ आया है। यहां पर नार्थ साउथ ईस्ट वेस्ट हर क्षेत्र के अलग अलग भाषा बोली बोलने वाले लोग मेरे सामने नजर आ रहे हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही गूंज है। सबके दिल में एक ही गूंज है - भारत माता की जय, भारत माता की जय I

यहां हल कल्चर की festivity है। अभी आप क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारी कर रहे हैं। फिर पोंगल आने वाला है। मकर सक्रांति हो, लोहड़ी हो, बिहू हो, ऐसे अनेक त्यौहार बहुत दूर नहीं है। मैं आप सभी को क्रिसमस की, न्यू ईयर की और देश के कोने कोने में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों की बहुत बहुत शुभकानाएं देता हूं।

साथियों,

आज निजी रूप से मेरे लिए ये पल बहुत खास है। 43 years, चार दशक से भी ज्यादा समय, 43 years के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कुवैत आया है। आपको हिन्दुस्तान से यहां आना है तो चार घंटे लगते हैं, प्रधानमंत्री को चार दशक लग गए। आपमे से कितने ही साथी तो पीढ़ियों से कुवैत में ही रह रहे हैं। बहुतों का तो जन्म ही यहीं हुआ है। और हर साल सैकड़ों भारतीय आपके समूह में जुड़ते जाते हैं। आपने कुवैत के समाज में भारतीयता का तड़का लगाया है, आपने कुवैत के केनवास पर भारतीय हुनर का रंग भरा है। आपने कुवैत में भारत के टेलेंट, टेक्नॉलोजी और ट्रेडिशन का मसाला मिक्स किया है। और इसलिए मैं आज यहां सिर्फ आपसे मिलने ही नहीं आया हूं, आप सभी की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करने के लिए आया हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही मेरे यहां काम करने वाले भारतीय श्रमिकों प्रोफेशनल्श् से मुलाकात हुई है। ये साथी यहां कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े हैं। अन्य अनेक सेक्टर्स में भी अपना पसीना बहा रहे हैं। भारतीय समुदाय के डॉक्टर्स, नर्सज पेरामेडिस के रूप में कुवैत के medical infrastructure की बहुत बड़ी शक्ति है। आपमें से जो टीचर्स हैं वो कुवैत की अगली पीढ़ी को मजबूत बनाने में सहयोग कर रही है। आपमें से जो engineers हैं, architects हैं, वे कुवैत के next generation infrastructure का निर्माण कर रहे हैं।

और साथियों,

जब भी मैं कुवैत की लीडरशिप से बात करता हूं। तो वो आप सभी की बहुत प्रशंसा करते हैं। कुवैत के नागरिक भी आप सभी भारतीयों की मेहनत, आपकी ईमानदारी, आपकी स्किल की वजह से आपका बहुत मान करते हैं। आज भारत रेमिटंस के मामले में दुनिया में सबसे आगे है, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय भी आप सभी मेहनतकश साथियों को जाता है। देशवासी भी आपके इस योगदान का सम्मान करते हैं।

साथियों,

भारत और कुवैत का रिश्ता सभ्यताओं का है, सागर का है, स्नेह का है, व्यापार कारोबार का है। भारत और कुवैत अरब सागर के दो किनारों पर बसे हैं। हमें सिर्फ डिप्लोमेसी ही नहीं बल्कि दिलों ने आपस में जोड़ा है। हमारा वर्तमान ही नहीं बल्कि हमारा अतीत भी हमें जोड़ता है। एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे। और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है। भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले,कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीक वुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत की ज्वेलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवैत के मोतियों का भी योगदान है। गुजरात में तो हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं, कि पिछली शताब्दियों में कुवैत से कैसे लोगों का, व्यापारी-कारोबारियों का आना-जाना रहता था। खासतौर पर नाइनटीन्थ सेंचुरी में ही, कुवैत से व्यापारी सूरत आने लगे थे। तब सूरत, कुवैत के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था। सूरत हो, पोरबंदर हो, वेरावल हो, गुजरात के बंदरगाह इन पुराने संबंधों के साक्षी हैं।

कुवैती व्यापारियों ने गुजराती भाषा में अनेक किताबें भी पब्लिश की हैं। गुजरात के बाद कुवैत के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाज़ारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। यहां के प्रसिद्ध व्यापारी अब्दुल लतीफ अल् अब्दुल रज्जाक की किताब, How To Calculate Pearl Weight मुंबई में छपी थी। कुवैत के बहुत सारे व्यापारियों ने, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकाता, पोरबंदर, वेरावल और गोवा में अपने ऑफिस खोले हैं। कुवैत के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की मोहम्मद अली स्ट्रीट में रहते हैं। बहुत सारे लोगों को ये जानकर हैरानी होगी। 60-65 साल पहले कुवैत में भारतीय रुपए वैसे ही चलते थे, जैसे भारत में चलते हैं। यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर, भारतीय रुपए ही स्वीकार किए जाते थे। तब भारतीय करेंसी की जो शब्दाबली थी, जैसे रुपया, पैसा, आना, ये भी कुवैत के लोगों के लिए बहुत ही सामान्य था।

साथियों,

भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है, जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। और इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है। वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है। मैं कुवैत के लोगों का, यहां की सरकार का बहुत आभारी हूं। मैं His Highness The Amir का उनके Invitation के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं।

साथियों,

अतीत में कल्चर और कॉमर्स ने जो रिश्ता बनाया था, वो आज नई सदी में, नई बुलंदी की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज कुवैत भारत का बहुत अहम Energy और Trade Partner है। कुवैत की कंपनियों के लिए भी भारत एक बड़ा Investment Destination है। मुझे याद है, His Highness, The Crown Prince Of Kuwait ने न्यूयॉर्क में हमारी मुलाकात के दौरान एक कहावत का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- “When You Are In Need, India Is Your Destination”. भारत और कुवैत के नागरिकों ने दुख के समय में, संकटकाल में भी एक दूसरे की हमेशा मदद की है। कोरोना महामारी के दौरान दोनों देशों ने हर स्तर पर एक-दूसरे की मदद की। जब भारत को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी, तो कुवैत ने हिंदुस्तान को Liquid Oxygen की सप्लाई दी। His Highness The Crown Prince ने खुद आगे आकर सबको तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया। मुझे संतोष है कि भारत ने भी कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर इस संकट से लड़ने का साहस दिया। भारत ने अपने पोर्ट्स खुले रखे, ताकि कुवैत और इसके आसपास के क्षेत्रों में खाने पीने की चीजों का कोई अभाव ना हो। अभी इसी साल जून में यहां कुवैत में कितना हृदय विदारक हादसा हुआ। मंगफ में जो अग्निकांड हुआ, उसमें अनेक भारतीय लोगों ने अपना जीवन खोया। मुझे जब ये खबर मिली, तो बहुत चिंता हुई थी। लेकिन उस समय कुवैत सरकार ने जिस तरह का सहयोग किया, वो एक भाई ही कर सकता है। मैं कुवैत के इस जज्बे को सलाम करूंगा।

साथियों,

हर सुख-दुख में साथ रहने की ये परंपरा, हमारे आपसी रिश्ते, आपसी भरोसे की बुनियाद है। आने वाले दशकों में हम अपनी समृद्धि के भी बड़े पार्टनर बनेंगे। हमारे लक्ष्य भी बहुत अलग नहीं है। कुवैत के लोग, न्यू कुवैत के निर्माण में जुटे हैं। भारत के लोग भी, साल 2047 तक, देश को एक डवलप्ड नेशन बनाने में जुटे हैं। कुवैत Trade और Innovation के जरिए एक Dynamic Economy बनना चाहता है। भारत भी आज Innovation पर बल दे रहा है, अपनी Economy को लगातार मजबूत कर रहा है। ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे को सपोर्ट करने वाले हैं। न्यू कुवैत के निर्माण के लिए, जो इनोवेशन, जो स्किल, जो टेक्नॉलॉजी, जो मैनपावर चाहिए, वो भारत के पास है। भारत के स्टार्ट अप्स, फिनटेक से हेल्थकेयर तक, स्मार्ट सिटी से ग्रीन टेक्नॉलजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए Cutting Edge Solutions बना सकते हैं। भारत का स्किल्ड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नई स्ट्रेंथ दे सकता है।

साथियों,

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने का भी सामर्थ्य है। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। ऐसे में भारत दुनिया की स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। और इसके लिए भारत दुनिया की जरूरतों को देखते हुए, अपने युवाओं का स्किल डवलपमेंट कर रहा है, स्किल अपग्रेडेशन कर रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में करीब दो दर्जन देशों के साथ Migration और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इनमें गल्फ कंट्रीज के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, मॉरिशस, यूके और इटली जैसे देश शामिल हैं। दुनिया के देश भी भारत की स्किल्ड मैनपावर के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं।

साथियों,

विदेशों में जो भारतीय काम कर रहे हैं, उनके वेलफेयर और सुविधाओं के लिए भी अनेक देशों से समझौते किए जा रहे हैं। आप ई-माइग्रेट पोर्टल से परिचित होंगे। इसके ज़रिए, विदेशी कंपनियों और रजिस्टर्ड एजेंटों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। इससे मैनपावर की कहां जरूरत है, किस तरह की मैनपावर चाहिए, किस कंपनी को चाहिए, ये सब आसानी से पता चल जाता है। इस पोर्टल की मदद से बीते 4-5 साल में ही लाखों साथी, यहां खाड़ी देशों में भी आए हैं। ऐसे हर प्रयास के पीछे एक ही लक्ष्य है। भारत के टैलेंट से दुनिया की तरक्की हो और जो बाहर कामकाज के लिए गए हैं, उनको हमेशा सहूलियत रहे। कुवैत में भी आप सभी को भारत के इन प्रयासों से बहुत फायदा होने वाला है।

साथियों,

हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश का सम्मान करते हैं और भारत को नई ऊंचाई छूता देख उतने ही प्रसन्न भी होते हैं। आप सभी भारत से यहां आए, यहां रहे, लेकिन भारतीयता को आपने अपने दिल में संजो कर रखा है। अब आप मुझे बताइए, कौन भारतीय होगा जिसे मंगलयान की सफलता पर गर्व नहीं होगा? कौन भारतीय होगा जिसे चंद्रयान की चंद्रमा पर लैंडिंग की खुशी नहीं हुई होगी? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं। आज का भारत एक नए मिजाज के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इकॉनॉमी है। आज दुनिया का नंबर वन फिनटेक इकोसिस्टम भारत में है। आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। आज भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है।

मैं आपको एक आंकड़ा देता हूं और सुनकर आपको भी अच्छा लगेगा। बीते 10 साल में भारत ने जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, भारत में जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, उसकी लंबाई, वो धरती और चंद्रमा की दूरी से भी आठ गुना अधिक है। आज भारत, दुनिया के सबसे डिजिटल कनेक्टेड देशों में से एक है। छोटे-छोटे शहरों से लेकर गांवों तक हर भारतीय डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहा है। भारत में स्मार्ट डिजिटल सिस्टम अब लग्जरी नहीं, बल्कि कॉमन मैन की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। भारत में चाय पीते हैं, रेहड़ी-पटरी पर फल खरीदते हैं, तो डिजिटली पेमेंट करते हैं। राशन मंगाना है, खाना मंगाना है, फल-सब्जियां मंगानी है, घर का फुटकर सामान मंगाना है, बहुत कम समय में ही डिलिवरी हो जाती है और पेमेंट भी फोन से ही हो जाता है। डॉक्यूमेंट्स रखने के लिए लोगों के पास डिजि लॉकर है, एयरपोर्ट पर सीमलैस ट्रेवेल के लिए लोगों के पास डिजियात्रा है, टोल बूथ पर समय बचाने के लिए लोगों के पास फास्टटैग है, भारत लगातार डिजिटली स्मार्ट हो रहा है और ये तो अभी शुरुआत है। भविष्य का भारत ऐसे इनोवेशन्स की तरफ बढ़ने वाला है, जो पूरी दुनिया को दिशा दिखाएगा। भविष्य का भारत, दुनिया के विकास का हब होगा, दुनिया का ग्रोथ इंजन होगा। वो समय दूर नहीं जब भारत दुनिया का Green Energy Hub होगा, Pharma Hub होगा, Electronics Hub होगा, Automobile Hub होगा, Semiconductor Hub होगा, Legal, Insurance Hub होगा, Contracting, Commercial Hub होगा। आप देखेंगे, जब दुनिया के बड़े-बड़े Economy Centres भारत में होंगे। Global Capability Centres हो, Global Technology Centres हो, Global Engineering Centres हो, इनका बहुत बड़ा Hub भारत बनेगा।

साथियों,

हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। भारत एक विश्वबंधु के रूप में दुनिया के भले की सोच के साथ आगे चल रहा है। और दुनिया भी भारत की इस भावना को मान दे रही है। आज 21 दिसंबर, 2024 को दुनिया, अपना पहला World Meditation Day सेलीब्रेट कर रही है। ये भारत की हज़ारों वर्षों की Meditation परंपरा को ही समर्पित है। 2015 से दुनिया 21 जून को इंटरनेशन योगा डे मनाती आ रही है। ये भी भारत की योग परंपरा को समर्पित है। साल 2023 को दुनिया ने इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया, ये भी भारत के प्रयासों और प्रस्ताव से ही संभव हो सका। आज भारत का योग, दुनिया के हर रीजन को जोड़ रहा है। आज भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन, हमारा आयुर्वेद, हमारे आयुष प्रोडक्ट, ग्लोबल वेलनेस को समृद्ध कर रहे हैं। आज हमारे सुपरफूड मिलेट्स, हमारे श्री अन्न, न्यूट्रिशन और हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा आधार बन रहे हैं। आज नालंदा से लेकर IITs तक का, हमारा नॉलेज सिस्टम, ग्लोबल नॉलेज इकोसिस्टम को स्ट्रेंथ दे रहा है। आज भारत ग्लोबल कनेक्टिविटी की भी एक अहम कड़ी बन रहा है। पिछले साल भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर की घोषणा हुई थी। ये कॉरिडोर, भविष्य की दुनिया को नई दिशा देने वाला है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा, आप सभी के सहयोग, भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी के बिना अधूरी है। मैं आप सभी को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं। नए साल का पहला महीना, 2025 का जनवरी, इस बार अनेक राष्ट्रीय उत्सवों का महीना होने वाला है। इसी साल 8 से 10 जनवरी तक, भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन होगा, दुनियाभर के लोग आएंगे। मैं आप सब को, इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करता हूं। इस यात्रा में, आप पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ जी का आशीर्वाद ले सकते हैं। इसके बाद प्रयागराज में आप महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पधारिये। ये 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है, करीब डेढ़ महीना। 26 जनवरी को आप गणतंत्र दिवस देखकर ही वापस लौटिए। और हां, आप अपने कुवैती दोस्तों को भी भारत लाइए, उनको भारत घुमाइए, यहां पर कभी, एक समय था यहां पर कभी दिलीप कुमार साहेब ने पहले भारतीय रेस्तरां का उद्घाटन किया था। भारत का असली ज़ायका तो वहां जाकर ही पता चलेगा। इसलिए अपने कुवैती दोस्तों को इसके लिए ज़रूर तैयार करना है।

साथियों,

मैं जानता हूं कि आप सभी आज से शुरु हो रहे, अरेबियन गल्फ कप के लिए भी बहुत उत्सुक हैं। आप कुवैत की टीम को चीयर करने के लिए तत्पर हैं। मैं His Highness, The Amir का आभारी हूं, उन्होंने मुझे उद्घाटन समारोह में Guest Of Honour के रूप में Invite किया है। ये दिखाता है कि रॉयल फैमिली, कुवैत की सरकार, आप सभी का, भारत का कितना सम्मान करती है। भारत-कुवैत रिश्तों को आप सभी ऐसे ही सशक्त करते रहें, इसी कामना के साथ, फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।