Text of PM’s address at the 87th ICAR Foundation Day Celebrations at Patna

Published By : Admin | July 25, 2015 | 17:25 IST
QuotePM Modi speaks at 87th ICAR Foundation Day Celebrations in Patna
QuoteThe country now needs a second Green Revolution which must come from eastern India: PM
QuoteScientific innovations in agriculture sector should move from lab to land for benefit of farmers: PM
QuoteIndia must aim to become totally self-sufficient in the agriculture sector, says PM Modi

उपस्थित सभी महानुभाव

सभी महानुभाव, आज जिनका मुझे सम्‍मान करने का अवसर मिला है। जिन्‍होंने अपने-अपने क्षेत्रों के द्वारा देश के कृषि जगत को कुछ न कुछ मात्रा में सकारात्‍मक योगदान किया है। ऐसे पुरस्‍कार प्राप्‍त करने वाले सभी महानुभावों को हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। बहुत-बहुत बधाई देता हूं।



ये समारोह हर वर्ष होता है और बड़े लंबे अरसे से होता है लेकिन दिल्‍ली में ही होता है। तो पिछली बार जब मैं गया था पहली बार तो मैंने कहा था भई हम जरा दिल्‍ली से बाहर निकलें और उसका आरंभ आज बिहार में पटना की धरती से हो रहा है। मैं राज्‍य सरकार का भी आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि उन्‍होंने इस समारोह को सफल बनाने में योगदान दिया और मैं विभाग के मित्रों का भी आभारी हूं कि उन्‍होंने एक पहल की है। तो उसके कारण उस राज्‍य के अंदर भी कुछ दिन चर्चा चलती है, अनेक लोगों के सामने नई-नई बातें आती है। देशभर से ये कृषि वैज्ञानिक यहां आते है उनको भी स्‍थानीय लोगों से बातचीत करने के कारण अपने विषय में क्‍या-क्‍या नया चल रहा है, उसकी जानकारियां मिलती है। तो एक प्रकार से ये अलग-अलग स्‍थान पर जाने से हमें स्‍वाभाविक रूप से हमें अतिरिक्‍त लाभ होता है और उसका प्रारंभ आज यहां से हुआ है और मुझे ये भी खुशी है कि ये बिहार से प्रारंभ हो रहा है। क्‍योंकि पूसा का जन्‍म इसी धरती पर हुआ और एक विदेशी व्‍यक्ति ने गुलामी के कालखंड में भारत के कृषि सामर्थ्‍य को भांपा होगा, उसको अंदाज आया होगा और Phillip USA के द्वारा बनी हुई ये कामगिरी पूसा के नाम से प्रचलित हो गई। लेकिन उन्होंने बिहार क्‍यों चुना होगा, कोई अचानक तो हुआ नहीं होगा। जब वो सोचा गया होगा तब उनको ध्‍यान आया होगा ये सबसे ऊर्वरा जगह होगी, यहां के लोग प्रयोगशील होगें, प्रगतिशील होगें, कृषि क्षेत्र में नया करने की सोच रखते होगें। हिन्‍दुस्‍तान के अन्‍य भू-भागों से यहां की कृषि की कोई न कोई extra शक्ति होगी तभी जा करके उन्‍होंने उस काम को यहां प्रारंभ करना सोचा होगा, ऐसा मैं अनुमान करता हूं। अब करीब-करीब 100 साल होने जा रहे है। इसलिए मैं पूरे record न देखूं तब तक तो मैं कह नहीं सकता कि वो क्‍या है लेकिन मैं अनुमान करता हूं। इसका मतलब ये हुआ कि ये भू-भाग और यहां के नागरिक दोनों में कृषि क्षेत्र में नई सिद्धियां प्राप्‍त कराने का सामर्थ्‍य पड़ा हुआ है।

हम कभी-कभी अपनी चीजों को भूल जाते है। चीजें कोई अचानक शुरू नहीं होती होगी किसी-न-किसी कारण विशेष कारण से शुरू हुई होगी। उसके मूल में अगर जाते है तो ध्‍यान आता है और मैं राधामोहन सिंह जी को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि आपदा ग्रस्‍त कारणों के साथ कारण पूछा यहां से दिल्‍ली चला गया। अब दिल्ली में तो खेती होती नहीं है लेकिन पूसा वहां है और जहां खेती होती थी जो देश का पेट भरता था वहां से पूसा चला गया। तो हमने वापिस लाने की कोशिश की है और मुझे विश्‍वास है कि भले 90 साल पहले किसी को विचार आया होगा उसमें जरूर कोई न कोई दम होगा, कोई ताकत होगी। मुझे फिर से एक बार उसको तलाशना है, देखना है और देश के वैज्ञानिक मेरी इस बात से सहमत होगें कि हम इन नए क्षेत्रों में पदार्पण कैसे करें। कुछ बातें आप लोगों ने आज अच्‍छी शुरूआत कर रहे है। मैं नहीं जानता हूं कि हमारे वैज्ञानिक मित्रों को कितना पसंद आया होगा या कितनी सुविधा होगी। क्‍योंकि वैज्ञानिक अपने काम में इतना खोया हुआ होता है। करीब जिदंगी का महत्‍वपूर्ण समय उसका lab में ही चला जाता है। न वो अपने परिवार को काम आता है, न वो खुद को काम आता है। वो उसमें डूब जाता है, पागल की तरह लगा रहता है और तभी जा करके आने वाली पीढि़यों का भला होता है। एक जब अपने सपनों को खपा देता है तब औरों के सपने बन पाते हैं और इसलिए वैज्ञानिकों का जितना मान-सम्‍मान होना चाहिए, वैज्ञानिकों के योगदान की जितनी सराहना होनी चाहिए, उसको जितना बल मिलेगा, उतनी भावी पीढि़यों का कल्‍याण होगा।

दुर्भाग्‍य से हमारे देश में, हमारी अपनी कठिनाइयां हैं देश की, गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ना है और इसलिए इन क्षेत्रों में जितना बजट देना चाहिए उतना दे नहीं पाते हैं। उसके बावजूद भी छोटी-छोटी lab में बैठ करके भी हमारे scientist लगातार काम करते रहते हैं और कोई न कोई नई चीजें देते रहते हैं।

लेकिन एक और कदम की ओर जाने का मैंने पिछली बार बात कही थी आपने उसको योजना के रूप में रखा, Lab To Land. laboratory में कितना ही yield आए, laboratory में चीकू नारियल जैसा बन जाए, लेकिन अगर धरती पर नहीं होता है तो वो काम नहीं आता है। इसलिए हमारी सच्‍ची कसौटी ये है कि ये जो हम सफलता पाई है lab में, उसको हमें धरती पर भी कसना चाहिए और किसानों के द्वारा कसना चाहिए। एक प्रकार से एक scientist का fellow traveler हमारा किसान बनना चाहिए। extension of the mind of the scientist should be a farmer. ये हमें व्‍यवस्‍था खड़ी करनी चाहिए और इसलिए इस योजना के तहत देश के जितने agriculture scientist है, उनकी टोली बनाकर के उनको एक-एक block गोद लेने की योजना है। उसकी lab कहीं पर भी होगी, लेकिन उसको लगेगा भई मैं जो research कर रहा हूं, उस इलाके के किसानों में उस प्रकार की रुचि है तो वो वहां उनके साथ जुड़ेगा, progressive farmer के साथ जुड़ेगा, किसानों के साथ जुड़ेगा और उसमें जो ज्ञान की संपदा है वो जमीन पर किसानों के माध्‍यम से।

और किसान का एक स्‍वभाव है, उसको भाषण-भाषण काम नहीं आते। वो तो जब तक अपनी आंख से देखता नहीं है, वो किसी चीज को मानता नहीं है। और एक बार उसने अपनी आंख से देखा तो वो फिर अपना risk लेने के लिए तैयार हो जाता है, वो संकट उठाने के लिए तैयार हो जाता है। और इसलिए आवश्‍यकता होती है कि हमने हमारी हर lab को, हर farm को lab में कैसे convert करना है, हर किसान को scientist के रूप में कैसे convert करना है। और उस यात्रा को मैं जानता हूं, आप जिस साधना को कर रहे हैं, जिस तपस्‍या को कर रहे हैं वहां से बाहर जाना थोड़ा कठिन है, लेकिन जिस दिन आप जाओगे। कोई scientist अच्‍छे से अच्‍छी दवाई की 100-100 खोज करे और परिवार को भी पता नहीं होता है कि इसने कहां काम किया है। उनको लगता है हां यार, रात देर से आते हैं अब खाना खाएंगे, सो जाएंगे। लेकिन जब पता चलता है कि फलां व्‍यक्‍ति जिंदगी से जूझ रहा था और उसकी दवाई काम आ गई, उसकी जिन्‍दगी बच गई और जब पता चलता है इस दवाई से आने वाले दिनों में ऐसे लाखों लोगों की भी जिन्‍दगी बचने वाली है तो वो परिवार भी सीना तान करके, हां हमारे उन लोगों ने किया है, मेरे पति ने किया है, मेरे भाई ने किया है। कब होता है, जब बाहर कोई उसका achievement दिखता है। आपको भी अपने lab में किया हुआ संतोष जब तक खेत में नहीं दिखता और किसान के हाथ में नहीं दिखता है, आपको संतोष नहीं हो सकता है। और वो व्‍यवस्‍था करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं।

भारत ने first green revolution किया, उसका फायदा हमें मिला है। लेकिन अब देश second green revolution के लिए ज्‍यादा इंतजार नहीं कर सकता है। वैसे भी late हो चुके हैं। second green revolution के लिए हमें अपने आपको सज्‍ज करना होगा। किस क्षेत्र में जाना है, कैसे जाना है। first green revolution की पहली आवश्‍यकता थी कि देश को अन्‍न बाहर से लाना न पड़े, देश का पेट भरे। second green revolution का इतना मतलब नहीं हो सकता, उसका मकसद कुछ और भी हो सकता है। क्‍यों न हमारे देश के agro-economists, हमारे देश के agro-technicians, हमारे देश के agro-scientist, food security से जुड़े हुए scientist, ये सब मिलकर के workshop करें, हर level पर workshop करें। और design workout करें कि भई हां, second green revolution का model क्‍या है, priorities क्‍या हो, हमें किन चीजों के उत्‍पादन पर जाना चाहिए। उत्‍पादकता बढ़ानी है तो किस चीजों की बढ़नी चाहिए। सारे global परिवेश में, आज विश्‍व में क्‍या-क्‍या चीजों की आवश्‍यकता है और दुनिया के बहुत देश है, जिनको आर्थिक रूप से वो कुछ चीजें करना मुश्‍किल है तो वो कहते हैं कि बाहर से ले आओ भई, यहां नहीं करो। तो ऐसे कितने देश हैं जिनको ढूंढेंगे और हम बाहर से भेजेंगे।हमें एक विस्‍तृत सोच के साथ हमारे second green revolution को इस रूप में तैयार करना चाहिए।

हमारे architecture college बहुत कुछ पढ़ाती है। building के लिए तो काफी कुछ होता है, road कैसे बने उस पर भी होता है। मैं मानता हूं कि कभी इस agro scientists ने, progressive farmers ने, government ने, architecture colleges के साथ बैठकर के उनका भी syllabus बनाने की आवश्‍यकता है कि हमारे agriculture, infrastructure का architecture क्‍या हो? हमारी canal बनती हो तो कैसी आधुनिक canal बने, किस material से बने। road बनाने के लिए तो काफी research होते हैं लेकिन canal बनाने के लिए research बहुत कम होते हैं। ये मुझे पूरा paradigm shift करना है। एक मूलभूत चीजों में बदलाव लाना है और इसलिए हमारे जो architecture colleges है, उनका भी जिम्‍मा बनता है कि agro related हमारे infrastructure कैसे हो।

पुराने जमाने में, घर में हमारे गांव के अंदर, किसान परिवारों में मिट्टी की बड़ी-बड़ी कोठियां तैयार होती थीं और उसमें क्‍या material डालना है उसकी बड़ी विशेषता रहती थी। specific प्रकार का material डाल करके वो कोठी बनाई जाती थी और उस कोठी में अन्‍न भरा जाता था। वो सालों तक खराब नहीं होता था और निकालने की technique भी ऐसी होती थी, वो ऊपर से नहीं निकालते थे, नीचे से निकालते थे ताकि पुराना माल पहले निकलता था, नया माल ऊपर आता जाता था। देखिए सामान्‍य लोगों की बुद्धि कितनी कमाल की रहती थी। ये जो कोठार बनते थे या कोठी बनती थी जिसमें सामान भरा जाता था वो कौन सी चीजों का, उनको ज्ञान था कि जिसके कारण हमारे agro-product को इतने लंबे समय तक संभाल पाते थे। preservation के संबंध में हमारे यहां technically कितना काम हुआ है। हमारे यहां अचार, अचार की जो परंपरा है। उस समय ये technology कहां थी जी। गांव की गरीब महिला भी अचार इस प्रकार से preserve करती थी कि साल भर अचार खराब नहीं होता था। मतलब कि विज्ञान उस घर की गली तक पहुंचा हुआ था। हम बदले हुए युग में, इन चीजों को और अधिक अच्‍छे तरीके से कैसे करें, ताकि हमारे agriculture sector में।



क्योंकि आज wastage एक बहुत बड़ी चिन्‍ता का विषय है। value addition पर हमें जाना पड़ेगा। किसान इतनी मेहनत करे और उसकी पकाई हुई चीजें अगर बर्बाद होती है तो कितना बड़ा नुकसान होता है। मैं agro scientists से आग्रह करता हूं कि आप एक काम करके research कीजिए और मुझे छ महीने में एक report दे सकते हैं क्‍या ? मैं एक दिशा में आगे बढ़ना चाहता हूं।

हमारे किसान फल पैदा करते हैं लेकिन फल की उम्र बहुत कम होती है। बहुत ही कम समय में खराब हो जाते हैं। उसका packaging भी बड़ा महंगा होता है क्‍योंकि एक-एक चीज को संभालना पड़ता है। अगर दब गए तो और खराब हो जाते हैं। वो फल जिसमें से juice निकलता है। ये जितने aerated water बाजार में बिकते हैं। भांति-भांति का taste होता है। मुझे तो नाम भी पूरे याद नहीं है लेकिन कई प्रकार की bottles में लोग पीते रहते हैं। coca-cola और fanta और क्‍या-क्‍या नहीं, thums-up. क्‍या हम natural fruit, उसका 1 percent, 2 percent, 5 percent natural juice उसमें mix कर सकते हैं क्‍या। अगर ने natural fruit का juice उसमें mix होता है इस aerated water में। उसका market बहुत बड़ा है। मैं विश्‍वास से कहता हूं हिन्‍दुस्‍तान में जो किसान फल पैदा करता है उसको कभी wastage की नौबत नहीं आएगी, उसका माल खेत से ही बिक जाएगा और 5 percent अगर उसमें mix हो गया। उसका माल खेत से ही बिक जाएगा और 5% उसमें अगर mix हो मेरे फल पैदा करने वाला किसान कभी दु:खी नहीं होगा। लेकिन ये साइंटिस्‍ट जब तक खोज करके नहीं बताएंगे वो कंपनियों को मनवाना जरा कठिन हो जाता है। क्‍या हम इस प्रकार की research कर सकते है, हम समझा सकते है कि these are the results । आप अगर 5% उसके अंदर natural fruit juice डालते है तो आपके market को कोई तकलीफ नहीं होगी, आपकी चीज के test में कोई तकलीफ नहीं होगी आपकी product और अच्‍छी बनेगी और उसमें आपका nutrition value भी जाएगा, जो ultimately आपके business को benefit करेगा। हम किस प्रकार से नई चीजों को करें उस पर हमें सोचने की आवश्‍यकता है।

हमने जो initiatives लिए है कुछ चीजों पर हम ये मान के चले के दुनिया में, बहुत बड़ी मात्रा में उत्‍पादकता पर बल दिया जाता है। हमें भी जमीन कम होती जा रही है, परिवार विस्‍तृत होते जा रहे हैं, एक-एक परिवार में जमीन के टुकड़े बंटते चले जा रहे हैं। हमें पर एकड़ उत्‍पादकता कैसे बड़े, उस पर बल दिए बिना हमारा किसान सुखी नहीं हो सकता है। हमें वो देना पड़ेगा।

पिछली बार मैंने मेरे मन की बात में कहा था किसानों से कि देश को pulses और oil seeds की बड़ी आवश्‍यकता है। तिलहन और दलहन... देखिए मैं इस देश के किसानों को जितना नमन करूं उतना कम है। उस बात को उन्‍होंने माना और इस बार अभी तक जो खबर आई हैं कि record-break showing दलहन और तिलहन का हमारे किसानों ने दिया है। वरना वो crop change करने को तैयार नहीं था लेकिन उसने माना कि भई देश को जरूरत है चलिए हम बाकि छोड़ देते है इस बार दलहन और तिलहन में चले जाते है और बहुत बड़ी मात्रा में शायद मुझे लगता है डेढ़ गुना हो जाएगा, दो गुना अब ये-ये मैं समझता हूं कि अपने-आप में और भारत को import करना पड़ता है।

हमारे agriculture साइंटिस्‍टों ने और progressive farmers ने और government ने बैठ करके तय करना चाहिए। भारत चूंकि कृषि प्रधान देश है। हम तय करें कि agriculture sector की कितनी चीजें अभी भी हम import करते है और हम तय करें कि फलाने-फलाने वर्ष के बाद हमें agriculture sector में कम से कम कुछ भी import नहीं करना पड़ेगा। हम स्‍वयं आत्‍मनिर्भर बनेंगे, हमारे किसान को इस काम के लिए प्रेरित करना पडेगा। हमें targeted काम करना पड़ेगा जी तब जा करके हमारे किसान को आर्थिक रूप से लाभ होगा। अगर वो नहीं करेगे तो लाभ नहीं होगा। आज भी अगर कृषि प्रधान देश को five star होटलों में कुछ सब्जियां विदेश से मंगवानी पड़ती है। हमारा किसान भी तो तैयार कर सकता है, उसको जरा ज्ञान मिल जाए, पद्धति मिल जाए वो कर सकता है। देश की आवश्‍यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता किसान में है, आवश्‍यकता है कि ज्ञान का भंडार और किसान का सामर्थ्‍य इसको जोड़ना और उसको जोड़ने की दिशा में हमने प्रयास किया है। कुछ चीजें बड़ी सरल है जिसको हम कर सकते है और करना चाहिए।

कभी-कभार हमारे किसान को जीवन में ज्‍यादातर हमारे यहां कोई उतना irrigation network तो है नहीं ज्‍यादातर हमारा किसान परमात्‍मा की कृपा पर निर्भर है, बारिश हुई तो अच्‍छी बात ,है नहीं हुई तो मुसीबत है। उसकी extra income के जो रास्‍ते है। उसमें पशुपालन हो, poultry farm हो, मतस्‍य उद्योग हो ये थोड़ा बहुत प्रचलित है। लेकिन हमारा एक बात पर ध्‍यान नहीं गया है और वो है शहद पर.. honey bee.. globally बहुत बड़ा market है और कम-से-कम मेहनत वाला काम है और उसमें बिगड़ने का कोई chance नहीं है और उत्‍पादन भी बिकेगा अगर शहद bottle में भर दिया तो 2-5-10 साल तक तो उसको कुछ नहीं होता है। आज देश में, मुझे बताया गया शायद 5 लाख किसान शहद की activity से जुड़े हैं। ये हम target करके 5 करोड़ पर पहुंचा सकते हैं। एक साल, दो साल, तीन साल में। उसकी income कितनी बढ़ेंगी आप कल्‍पना नहीं कर सकते और दुनिया में market है। ऐसा नहीं कि market नहीं है। हमारे किसान को हम इस प्रकार से नई-नई चीजों के साथ कैसे.. और उसके खेत में वैसे ही होने वाला है।

मैं नहीं जानता हूं कि हमारे scientist मित्र मेरी इन बातों को स्‍वीकार करेंगे कि नहीं करेंगे क्‍योंकि मैं न तो ऐसे ही किसानों के साथ बैठते-उठते सुनी हुए बातें मैंने जो भी ज्ञान अर्जित किया है, उसी की बात मैं कर रहा हूं।

हमारे जिस इलाके में elephants, हाथियों के कारण खेती को बड़ा नुकसान होता है जिन-जिन इलाकों में हाथी है। मैंने सुना भी है, पढ़ा भी है और मेरा मानना है कि उसमें सच्‍चाई भी है। ऐसे खेतों में अगर honey bee हो तो honey bee की आवाज़ से हाथी भाग जाता है। वो आता नहीं है। अब मुझे बताइए farmer का protection होगा कि नहीं होगा। अब ये इसको कौन समझाएगा, उससे बात कौन करेगा और कम से कम investment से इतनी बड़ी चीज को बचाता है और international science magazine इस बात को स्‍वीकार कर चुके है कि हाथी उस आवाज़ को सहन नहीं कर सकता है तो वहीं से आते ही चला जाता है पीछे। हमारे कई इलाके ऐसे हैं जहां हाथियों के कारण किसानों को परेशानी हो रही है। हम ऐसे व्‍यवहार्य चीजें और उसके साथ-साथ उसको शहद का व्‍यापार भी मिल जाएगा, उसकी आर्थिक संपदा को भी फायदा होगा।

दूसरा काम है, जो मेरे स्‍वच्‍छ भारत मिशन से भी जुड़ा हुआ है और organic farming से भी जुड़ा हुआ है। अब ये मान के चलिए कि दुनिया में organic चीजों का एक बहुत बड़ा बाजार खुल गया है। holistic health care ये by and large समाज का स्‍वभाव बना है।

अभी हमने देखा योगा दिवस पर दुनिया ने क्‍या इसको महत्‍व दिया है। वो इसी बात का परिचायक है कि holistic health care की तरफ पूरी दुनिया जागरूक हुई, उसमें युवा पीढ़ी ज्‍यादा जागृत है। कुछ लोग तो यहां तक exchange ला रहे हैं कि वो chemical से color किए हुए कपड़े पहनने के बजाए colored cotton से बना हुआ कपड़ा ही पसंद करते हैं और अब तो cotton भी कई colors में आना शुरू हुआ है। natural grow हो रहा है, genetic engineering के कारण। लेकिन organic requirement दुनिया में बहुत बढ़ रही है। हमारा किसान जिस पैदावार से एक रुपया कमाता है अगर वो organic है तो उसका एक डॉलर मिल जाता है। economically बहुत viable हो रहा है। लेकिन, उसके कुछ नियम है, कुछ आवश्‍यकताएं हैं। लेकिन एक काम हम कर सकते हैं क्‍या? आज मान लीजिए देश में vermin-composting . मान लीजिए आज 50 मिलियन टन होता है।

मैं आपको अनुमान कहता हूं। क्‍या vermin-composting हम 500 मिलियन टन कर सकते हैं क्‍या? आज अगर केंचुएं, earth warms . ये मान लीजिए देश में 10 मिलियन टन है। ये 100 मिलियन टन हो सकते हैं क्‍या। आपको कुछ नहीं करना है। सिर्फ लोगों को ज्ञान देना है, बाकी काम तो वो केंचुएं खुद कर लेंगे। और कोई भी छोटे नगर के बगल में ये काम चलता है, तो उस शहर आधा कूड़ा-कचरा वो ही साफ कर देंगे। स्वच्‍छता का काम भी चल जाएगा, composed fertilizer भी तैयार हो जाएगा और जो केंचुए का काम करते हैं उनके केंचुएं भी बिकते हैं। बहुत बड़ी मात्रा में केंचुएं बिकते हैं। एक ऐसा क्षेत्र है कि जो organic farming को बढ़ावा दे सकता है, हमारा कूड़ा-कचरा साफ हो सकता है, हमारे chemical fertilizer की requirement कम होती है, किसान की खेती सस्‍ती हो सकती है। इन चीजों को साथ लेकर के हम सब वैज्ञानिक जगत के लोग। क्‍योंकि ये बात आपके level पर आएगी तो गले उतरेगी और उसको स्‍वीकार करेगा। आप प्रयोग करके कहीं लगाओगे वो करेगा। कुछ लोग कर रहे हैं। स्‍वच्‍छता अभियान का सबसे बड़ा दूत केंचुआ बन सकता है और हमारा बहुत बड़ा काम वो कर सकता है और उससे organic farming को एक बहुत बड़ा बढ़ावा मिल सकता है। हमारी जमीन बर्बाद हो रही है। chemical के कारण उसकी उर्वरा ताकत कम होती रही है, उसकी हमें चिन्‍ता करने की आवश्‍यकता है। ये काम हो सकता है सहज रूप से। ये चीजें प्राकृतिक व्‍यवस्‍थाओं का उपयोग करते हुए की जा सकती हैं। मैं आग्रह करता हूं कि हम हमारे कृषि जीवन में जो second green revolution की ओर जा रहे है। उसको एक नए दायरे पर ले जा सकते है।

कई वर्षों से pulses में yield में भी बढ़ावा नहीं हो पा रहा है और pulses में सबसे बड़ी challenge है कि उसके protein content कैसे बढ़े? क्‍योंकि भारत जैसा देश जहां दलहन से ही protein प्राप्‍त होता है गरीब को, protein content ज्‍यादा हो इस प्रकार का दलहन का निर्माण कैसे हो? ये हमारे scientist lab के अंदर mission के रूप में काम करें। हम उसमें achieve कर सकते है परिणाम मिल सकता है।

हमारे देश का तिरंगा झंडा और उसमें blue colour का चक्र। मैं मानता हूं देश में चर्तुर क्रांति की आवश्‍यकता है। तिरंगें झंडे के तीन रंग जो है और blue colour का चक्र है उन चार रंगों की चर्तुर क्रांति की आवश्‍यकता है।



एक तो saffron revolution, अब saffron revolution का अर्थ पता है भांति-भांति के लोग अलग-अलग करेंगे। ऊर्जा का रंग है saffron और कहने का मेरा तात्‍पर्य है ऊर्जा क्रांति। ऊर्जा क्रांति बहुत आवश्‍यक है। अब आप देखिए बिहार इतना बड़ा प्रदेश। सिर्फ 250-300 मेगावाट बिजली का उत्‍पादन का होता है। अभी मैं भूटान गया, भूटान के अंदर hydropower project का मैंने काम शुरू किया है, उसकी maximum बिजली बिहार को मिलने वाली है...Maximum बिजली।

बिहार को आगे ले जाने के लिए आज मैंने अभी एक पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय ग्राम ज्‍योति योजना का आरंभ किया गांव में 24 घंटे बिजली। हमारे किसानों को भी अगर value addition के लिए जाना है तो उसको इस प्रकार की बिजली की सुविधा सबसे पहले चाहिए तब जा करके वो technology introduce करेगा और इसलिए हम भूटान से नेपाल से ऊर्जा के द्वारा कैसे बिजली बिहार को पहुंचे, बहुत बड़ी मात्रा में बिजली कैसे मिलें उस दिशा में काम में लगे है आज बिहार की अपनी बिजली है उसे तीन गुना का काम मैंने भूटान में जा करके कर दिया है। लेकिन उससे काम होने वाला नहीं है उसकी और जरूरत है।

दूसरा है green revolution जिसकी मैंने चर्चा की, हरा रंग है, तीसरा है white colour, white revolution और white revolution में हम जानते है। हमारा दूध उत्‍पादन, हमारे पशुओं की तुलना में दूध की quantity बहुत कम है। ये हमारी quantity कैसे बढ़े, पशुओं की संख्‍या बढ़ने से काम होना नहीं है। पशु के द्वारा ज्‍यादा दूध उत्‍पादन..... और हमारे पशुपालन को भी आधुनिक बनाना पड़ेगा। हमारे यहां जो sheeps है...भेड़े। मैंने एक छोटा प्रयोग किया था जब गुजरात में था। हमारा जो भेड़ पालने वाला होता है वो जब उसका ऊन निकालता है, उसके बाल निकालता है तो उसके पास एक कैंची होती है । उसके टुकड़े हो जाते है। टुकड़े होने के कारण जो income होती है वो इतनी income होती नहीं है। दाम कम हो जाता है। मैंने क्या किया ऐसे जितने भेड़ वाले थे उनको जो five star hotel में और नीतिश कुमार जी जिस मशीन का उपयोग करते है trimming का। मैंने सभी जो भेड़ पालक है उनको मशीन दिया और battery वाला दिया। तो आज वो क्‍या करता है साल में दो बार उस मशीन से उसके बाल निकालता है। उसकी लंबाई ज्‍यादा होने के कारण उसकी income बढ़ गई। छोटी-छोटी चीजे होती हैं जी, लेकिन सामन्‍य प्रयोगों से भी हम कितना बड़ा बदलाव ला सकते है।

हम हैरान है जी, हमारा देश इतनी सारी हम आज भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारे यहां पशुओं के hospital में dentist की व्‍यवस्‍था नहीं होगी पशुओं के लिए। अगर हमारे दांत खराब होते हैं तो पशुओं के होते नहीं है। पशु खाता नहीं है या loose motion कर देता है। कोई पूछने को तैयार नहीं, देखने को तैयार नहीं कि उसका dental problem है। मैं जब गुजरात में था मैंने एक बड़ा अभियान चलाया था पशुओं की dental treatment का। हमारा मोतीबिंदु होता है पशु का मोतिबिंदु होता था मैं पशुओं का मोतिबिंदु का ऑपरेशन करता था बहुत बड़ी मात्रा में। मैंने अमेरिका हमारे कुछ डॉक्‍टरों को भेजा था lager technology सीखने के लिए और पशुओं का bloodless surgery कैसे हो और मैं पशुओं के bloodless surgery में सफलतापूर्वक हमारे यहां लोगों को काम पर लगाया था। हमारे पशुपालन को वैज्ञानिक तरीकों में हमें लाना पड़ेगा। उसकी भी पीड़ा को हमें समझना होगा और मैं मानता हूं, तब जा करके हम white revolution की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

और मैंने चौथा कहा वो, blue revolution. आज भी बिहार में इतना पानी है, लेकिन बिहार, आंध्र से 400 करोड़ रुपए की मछली लाकर के खाता है। अगर हम blue revolution करें। गरीब से गरीब किसान, जहां छोटे-मोटे तालाब हैं। अगर हम उसको मत्‍स्‍य उद्योग और उसमें भी कई अब तो विशेषताएं हैं। even ornamental fish का revolution इतना बढ़ आया है। बहुत बड़ा market है, global market है, ornamental fish का। हम अगर इस blue revolution की ओर भी उतना ही ध्‍यान दें और ये सारी चीजें हैं जो ultimately गांव-गरीब किसान का भला करती है और इसलिए हम इन बातों को लेकर के हमारे वैज्ञानिक तौर-तरीकों के साथ ये जो हमारा तिरंगे झंडे का तीनों रंग है और चौथा हमारा blue अशोक चक्र है, उन चतुर्थ क्रान्‍ति की दिशा में कैसे आगे बढ़े और हमारे किसान भाइयों के भलाई के लिए और एक सुरक्षित आर्थिक व्‍यवस्‍था किसानों को मिले, उस दिशा में कैसे काम करे।

मैं फिर एक बार राधामोहन सिंह जी का अभिनन्‍दन करता हूं कि आज पटना में। क्‍योंकि मुझे लगता है जी हिन्‍दुस्‍तान का green revolution, second green revolution को पूर्वी उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पश्‍चिम बंगाल, असम से ही आने वाला है। ये मैं साफ देख पा रहा हूं। और यही बिहार की धरती हिन्‍दुस्‍तान में कृषि क्रान्‍ति लाकर रहेगी और जिसका प्रारंभ आज इस कार्यक्रम से हो रहा है।

मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Quote"ಸಬ್ ಕಾ ಪ್ರಾಯಸ್" ದೇಶದ ಬಹುದೊಡ್ಡ ಶಕ್ತಿ: ಪ್ರಧಾನಮಂತ್ರಿ

ಮಹಂತ್ ಶ್ರೀ ರಾಮ್ ಬಾಪು ಜಿ, ಸಮಾಜದ ಗೌರವಾನ್ವಿತ ಸದಸ್ಯರೆ ಮತ್ತು ಇಲ್ಲಿ ನೆರೆದಿರುವ ಲಕ್ಷಾಂತರ ಶ್ರದ್ಧಾಭಕ್ತಿಯುಳ್ಳ ಸಹೋದರ ಸಹೋದರಿಯರೆ - ನಮಸ್ಕಾರ ಮತ್ತು ಜೈ ಠಾಕುರ್!

ಮೊಟ್ಟ ಮೊದಲನೆಯದಾಗಿ, ಭರ್ವಾಡ್ ಸಮುದಾಯದ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳಿಗೆ, ಎಲ್ಲಾ ಗೌರವಾನ್ವಿತ ಸಂತರು ಮತ್ತು ಮಹಾಂತರಿಗೆ ಮತ್ತು ಈ ಪವಿತ್ರ ಸಂಪ್ರದಾಯ ಸಂರಕ್ಷಿಸಲು ತಮ್ಮ ಸಂಪೂರ್ಣ ಜೀವನವನ್ನೇ ಮುಡಿಪಾಗಿಟ್ಟಿರುವ ಎಲ್ಲರಿಗೂ ನನ್ನ ಗೌರವ ನಮನಗಳನ್ನು ಸಲ್ಲಿಸುತ್ತೇನೆ. ಇಂದು, ನಮ್ಮ ಸಂತೋಷವು ಹಲವು ಪಟ್ಟು ಹೆಚ್ಚಾಗಿದೆ. ಈ ಬಾರಿ, ಮಹಾಕುಂಭವು ಐತಿಹಾಸಿಕ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೆ ನಮಗೆ ಬಹಳ ಹೆಮ್ಮೆಯ ಕ್ಷಣವೂ ಆಗಿತ್ತು. ಏಕೆಂದರೆ, ಈ ಶುಭ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ, ಮಹಾಂತ ಶ್ರೀ ರಾಮ್ ಬಾಪು ಜಿ ಅವರಿಗೆ ಮಹಾಮಂಡಲೇಶ್ವರ ಎಂಬ ಬಿರುದು ನೀಡಲಾಗಿದೆ. ಇದು ಮಹತ್ವದ ಸಾಧನೆ ಮತ್ತು ನಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ಅಪಾರ ಸಂತೋಷದ ಕ್ಷಣವಾಗಿದೆ. ರಾಮ್ ಬಾಪು ಜಿ ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಸಮುದಾಯದ ಎಲ್ಲಾ ಕುಟುಂಬಗಳಿಗೆ ನನ್ನ ಹೃತ್ಪೂರ್ವಕ ಅಭಿನಂದನೆಗಳನ್ನು ಸಲ್ಲಿಸುತ್ತೇನೆ.

ಕಳೆದ 1 ವಾರದಲ್ಲಿ, ಭಾವನಗರದ ಪುಣ್ಯಭೂಮಿಯು ಶ್ರೀಕೃಷ್ಣನ ವೃಂದಾವನವಾಗಿ ರೂಪಾಂತರವಾದಂತೆ ಭಾಸವಾಯಿತು, ಇದನ್ನು ಇನ್ನಷ್ಟು ವಿಶೇಷವಾಗಿಸಲು, ನಮ್ಮ ಪೂಜ್ಯ ಸಹೋದರರ ಭಾಗವತ ಕಥೆಯೂ ನಡೆಯಿತು. ಭಕ್ತಿ ಹರಿಯುವ ರೀತಿ ಮತ್ತು ಜನರು ಕೃಷ್ಣನ ಪ್ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಮುಳುಗಿದ ರೀತಿ ನಿಜವಾಗಿಯೂ ದೈವಿಕ ವಾತಾವರಣ ಸೃಷ್ಟಿಸಿತು. ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ಕುಟುಂಬ, ಬವಾಲಿಯಾಲಿ ಧಾಮ್ ಕೇವಲ ಧಾರ್ಮಿಕ ತಾಣವಾಗದೆ, ಇದು ಭರ್ವಾಡ್ ಸಮುದಾಯ ಮತ್ತು ಇತರ ಅನೇಕರಿಗೆ ನಂಬಿಕೆ, ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಮತ್ತು ಏಕತೆಯ ಸಂಕೇತವಾಗಿದೆ.

 

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ನಾಗ ಲಖಾ ಠಾಕರ್ ಅವರ ಕೃಪೆಯಿಂದ, ಈ ಪವಿತ್ರ ಸ್ಥಳವು ಯಾವಾಗಲೂ ಭರ್ವಾಡ್ ಸಮುದಾಯಕ್ಕೆ ನಿಜವಾದ ಮಾರ್ಗದರ್ಶನ ಮತ್ತು ಉದಾತ್ತ ಸ್ಫೂರ್ತಿಯ ಅಪಾರ ಪರಂಪರೆ ಒದಗಿಸಿದೆ. ಇಂದು, ಈ ಪವಿತ್ರ ಸ್ಥಳದಲ್ಲಿ ಶ್ರೀ ನಾಗ ಲಖಾ ಠಾಕರ್ ದೇವಾಲಯದ ಮರುಪ್ರತಿಷ್ಠಾಪನೆಯು ನಮ್ಮ ಪಾಲಿಗೆ ಸುವರ್ಣ ಅವಕಾಶವಾಗಿದೆ. ಕಳೆದ ವಾರದಿಂದಲೂ ಭವ್ಯ ಆಚರಣೆಯ ವಾತಾವರಣ ತುಂಬಿದೆ. ಸಮುದಾಯದ ಉತ್ಸಾಹ ಮತ್ತು ಸಂಸತ ಗಮನಾರ್ಹವಾಗಿವೆ - ನಾನು ಎಲ್ಲೆಡೆಯಿಂದ ಪ್ರಶಂಸೆಗಳನ್ನು ಕೇಳುತ್ತಲೇ ಇದ್ದೇನೆ. ನನ್ನ ಹೃದಯದಲ್ಲಿ, ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರ ನಡುವೆ ಇರಬೇಕೆಂದು ನನಗೆ ಅನಿಸುತ್ತಿದೆ, ಆದರೆ ಸಂಸತ್ತಿನಲ್ಲಿ ನನ್ನ ಕೆಲಸಗಳ ಬದ್ಧತೆಗಳಿಂದಾಗಿ, ಅದನ್ನು ಬಿಡುವುದು ಕಷ್ಟಕರವಾಗಿದೆ. ಆದಾಗ್ಯೂ, ನಮ್ಮ ಸಾವಿರಾರು ಸಹೋದರಿಯರು ಪ್ರದರ್ಶಿಸಿದ ಭವ್ಯವಾದ 'ರಾಸ್'(ನೃತ್ಯ)ದ ಬಗ್ಗೆ ಕೇಳಿದಾಗ, ನನಗೆ ಅಪಾರ ಸಂತೋಷವಾಗುತ್ತಿದೆ - ಅವರು ನಿಜವಾಗಿಯೂ ವೃಂದಾವನವನ್ನು ಅಲ್ಲಿಯೇ ಜೀವಂತಗೊಳಿಸಿದ್ದಾರೆ!

ನಂಬಿಕೆ, ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಮತ್ತು ಸಂಪ್ರದಾಯದ ಮಿಶ್ರಣವು ನಿಜಕ್ಕೂ ಹೃದಯಸ್ಪರ್ಶಿ ಮತ್ತು ಉತ್ತೇಜನಕಾರಿಯಾಗಿದೆ. ಈ ಎಲ್ಲಾ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮಗಳಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿದ ಕಲಾವಿದರು,  ಸಹೋದರ ಸಹೋದರಿಯರು ಈ ಸಂದರ್ಭವನ್ನು ರೋಮಾಂಚಕವಾಗಿಸಿದರು,  ತಮ್ಮ ಪ್ರದರ್ಶನಗಳ ಮೂಲಕ ಸಮಾಜಕ್ಕೆ ಅರ್ಥಪೂರ್ಣ ಸಂದೇಶಗಳನ್ನು ನೀಡಿದರು. ಭಾಯಿ ಜಿ ತಮ್ಮ ಕಥೆ ಹೇಳುವ ಮೂಲಕ ತಮ್ಮ ಬುದ್ಧಿವಂತಿಕೆಯಿಂದ ನಮ್ಮನ್ನು ಬೆಳಗಿಸುವುದನ್ನು ಮುಂದುವರಿಸುತ್ತಾರೆ ಎಂಬ ವಿಶ್ವಾಸ ನನಗಿದೆ. ನಾನು ಎಷ್ಟೇ ಬಾರಿ ನನ್ನ ಕೃತಜ್ಞತೆ ವ್ಯಕ್ತಪಡಿಸಿದರೂ ಅದು ಎಂದಿಗೂ ಸಾಕಾಗುವುದಿಲ್ಲ.

ಈ ಪವಿತ್ರ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಲು ನನಗೆ ಅವಕಾಶ ನೀಡಿದ್ದಕ್ಕಾಗಿ ನಾನು ಮಹಾಂತ್ ಶ್ರೀ ರಾಮ್ ಬಾಪು ಜಿ ಮತ್ತು ಬವಾಲಿಯಾಲಿ ಧಾಮ್ ಗೆ ಪ್ರಾಮಾಣಿಕವಾಗಿ ಧನ್ಯವಾದ ಹೇಳುತ್ತೇನೆ. ಆದಾಗ್ಯೂ, ಈ ಶುಭ ದಿನದಂದು ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರೊಂದಿಗೆ ಇರಲು ಸಾಧ್ಯವಾಗದ ಕಾರಣ ನಾನು ಕ್ಷಮೆ ಕೋರುತ್ತೇನೆ.  ಆದರೂ ನಾನು ನಿಮಗೆ ಭರವಸೆ ನೀಡುತ್ತೇನೆ, ಭವಿಷ್ಯದಲ್ಲಿ ನಾನು ಆ ಸ್ಥಳಕ್ಕೆ ಭೇಟಿ ನೀಡಿದಾಗಲೆಲ್ಲಾ, ನಾನು ಖಂಡಿತವಾಗಿಯೂ ಭಕ್ತಿಯಿಂದ ತಲೆಬಾಗಿ ನಮಿಸಲು  ಬರುತ್ತೇನೆ.

 

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ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ಕುಟುಂಬ ಸದಸ್ಯರೆ,

ಭರ್ವಾಡ್ ಸಮುದಾಯ ಮತ್ತು ಬವಾಲಿಯಾಲಿ ಧಾಮದೊಂದಿಗಿನ ನನ್ನ ಸಂಪರ್ಕವು ಬಹಳ ಹಿಂದಿನಿಂದಲೂ ಇದೆ. ಭರ್ವಾಡ್ ಸಮುದಾಯದ ಸೇವಾ ಮನೋಭಾವ, ಪ್ರಕೃತಿಯ ಮೇಲಿನ ಅವರ ಪ್ರೀತಿ ಮತ್ತು ಗೋಸೇವೆಯ ಮೇಲಿನ ಅವರ ಭಕ್ತಿಯನ್ನು ಕೇವಲ ಪದಗಳಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದು ಕಷ್ಟ. ನಮ್ಮ ಬಾಯಲ್ಲಿ ಯಾವಾಗಲೂ ಬರುವ ಒಂದು ನುಡಿಗಟ್ಟು ಹೀಗಿದೆ:

नगा लाखा नर भला,

पच्छम धरा के पीर।

खारे पानी मीठे बनाये,

सूकी सूखी नदियों में बहाये नीर।

(ನಾಗ ಲಖ, ಉದಾತ್ತ ವ್ಯಕ್ತಿ,

ಪಶ್ಚಿಮ ಭೂಮಿಯ ಸಂತ.

ಅವರು ಉಪ್ಪುನೀರನ್ನು ಸಿಹಿಗೊಳಿಸಿದರು,

ಮತ್ತು ಹರಿಯುವ ತೊರೆಗಳನ್ನು ಒಣಗಿದ ನದಿಗಳಿಗೆ ತಂದರು.)

ಇವು ಕೇವಲ ಪದಗಳಲ್ಲ. ಆ ಕಾಲದಲ್ಲೂ ಸಹ ನಿಸ್ವಾರ್ಥ ಸೇವೆ ಮತ್ತು ಅಸಾಧ್ಯವಾದುದನ್ನು ಸಾಧಿಸುವ ಸಾಮರ್ಥ್ಯ (ಗುಜರಾತಿ ಭಾಷೆಯಲ್ಲಿ ಹೇಳುವಂತೆ, नेवा के पानी मोभे लगा लिए ಅಂದರೆ, ಬತ್ತಿದ ಬಾವಿಯಿಂದ ನೀರು ಸೇದುವುದು) ಅವರ ಕಾರ್ಯಗಳಲ್ಲಿ ಗೋಚರಿಸುತ್ತಿದ್ದವು. ಅವರು ಇಟ್ಟ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಹೆಜ್ಜೆಯೂ ಸೇವೆಯ ಪರಿಮಳ ಹರಡಿತು, ಶತಮಾನಗಳ ನಂತರವೂ ಜನರು ಅವರನ್ನು ನೆನಪಿಸಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಲೇ ಇದ್ದಾರೆ - ಅದುವೇ ಒಂದು ದೊಡ್ಡ ಸಾಧನೆ. ಪೂಜ್ಯ ಇಸು ಬಾಪು ಅವರ ನಿಸ್ವಾರ್ಥ ಸೇವೆಯನ್ನು ನಾನು ವೈಯಕ್ತಿಕವಾಗಿ ನೋಡಿದ್ದೇನೆ. ಅವರ ಸಮರ್ಪಣೆಯನ್ನು ನಾನು ನನ್ನ ಸ್ವಂತ ಕಣ್ಣುಗಳಿಂದ ನೋಡಿದ್ದೇನೆ. ಗುಜರಾತ್‌ಗೆ ಬರ ಹೊಸದಲ್ಲ. 10 ವರ್ಷಗಳಲ್ಲಿ 7 ವರ್ಷಗಳ ಕಾಲ ಗುಜರಾತ್ ಅನ್ನು ಬರಗಾಲ ಅಪ್ಪಳಿಸುತ್ತಿದ್ದ ಸಮಯವಿತ್ತು. ಗುಜರಾತ್‌ನಲ್ಲಿ, "ಏನು ಬೇಕಾದರೂ ಮಾಡಿ, ಆದರೆ ಧಂಧುಕಾದಲ್ಲಿ(ಬರಪೀಡಿತ ಪ್ರದೇಶ) ನಿಮ್ಮ ಮಗಳನ್ನು ಮದುವೆಯಾಗಬೇಡಿ" ಎಂದು ಹೇಳಲಾಗುತ್ತಿತ್ತು. (ಗುಜರಾತಿಯಲ್ಲಿ: बंदूके देजो पण धंधूके न देता, ಅಂದರೆ "ಧಂಧುಕಾದಲ್ಲಿ ನಿಮ್ಮ ಮಗಳನ್ನು ಮದುವೆ ಮಾಡುವುದಕ್ಕಿಂತ ಅವಳನ್ನು ಗುಂಡಿಕ್ಕಿ ಕೊಲ್ಲುವುದು ಉತ್ತಮ"). ಈ ಮಾತು ಅಸ್ತಿತ್ವದಲ್ಲಿತ್ತು, ಏಕೆಂದರೆ ಧಂಧುಕಾ ಆಗಾಗ್ಗೆ ತೀವ್ರ ಬರಗಾಲದಿಂದ ಬಳಲುತ್ತಿತ್ತು. ಧಂಧುಕಾ ಮತ್ತು ರಣಪುರ್ ಸಹ ಕುಡಿಯುವ ನೀರಿಗಾಗಿ ಪರಾದಾಡುತ್ತಿದ್ದ ಸ್ಥಳಗಳಾಗಿದ್ದವು. ಆ ಸಮಯದಲ್ಲಿ, ಪೂಜ್ಯ ಇಸು ಬಾಪು ಅವರ ನಿಸ್ವಾರ್ಥ ಸೇವೆ ಸ್ಪಷ್ಟವಾಗಿತ್ತು. ಅವರು ಬಳಲುತ್ತಿರುವ ಜನರಿಗೆ ಸೇವೆ ಸಲ್ಲಿಸಿದ ರೀತಿ ಇಂದಿಗೂ ಸ್ಮರಣೀಯವಾಗಿದೆ. ನಾನು ಮಾತ್ರವಲ್ಲ, ಇಡೀ ಗುಜರಾತ್ ರಾಜ್ಯವು ಅವರ ಕೆಲಸವನ್ನು ದೈವಿಕವೆಂದು ಪರಿಗಣಿಸುತ್ತದೆ. ಜನರು ಅವರ ಕೊಡುಗೆಗಳನ್ನು ಹೊಗಳುವುದನ್ನು ನಿಲ್ಲಿಸುವುದಿಲ್ಲ. ಅದು ಅಲೆಮಾರಿ ಸಮುದಾಯಗಳಿಗೆ ಸೇವೆ ಸಲ್ಲಿಸುವುದಿರಲಿ, ಅವರ ಮಕ್ಕಳಿಗೆ ಶಿಕ್ಷಣ ಖಚಿತಪಡಿಸುವುದಿರಲಿ, ಪರಿಸರ ಕಾರಣಗಳಿಗಾಗಿ ತಮ್ಮನ್ನು ತಾವು ಅರ್ಪಿಸಿಕೊಳ್ಳುವುದಿರಲಿಲ್ಲಿ ಅಥವಾ ಗಿರ್ ಹಸುಗಳನ್ನು ನೋಡಿಕೊಳ್ಳುವುದಿರಲಿ, ಅವರು ಮಾಡಿದ ಎಲ್ಲ ಸೇವೆಯಲ್ಲಿ ಅವರ ಬದ್ಧತೆಯನ್ನು ಕಾಣಬಹುದು. ಅವರ ಕೆಲಸದ ಮೂಲಕ, ನಿಸ್ವಾರ್ಥ ಸೇವೆಯ ಆಳವಾದ ಬೇರೂರಿರುವ ಸಂಪ್ರದಾಯವನ್ನು ನಾವು ಸ್ಪಷ್ಟವಾಗಿ ನೋಡಬಹುದು.

 

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ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ಕುಟುಂಬ ಸದಸ್ಯರೆ,

ಭರ್ವಾಡ ಸಮುದಾಯವು ಎಂದಿಗೂ ಕಠಿಣ ಪರಿಶ್ರಮ ಮತ್ತು ತ್ಯಾಗದಿಂದ ಹಿಂದೆ ಸರಿದಿಲ್ಲ - ಅವರು ಸದಾ ಕಾಲವೂ ಮುಂಚೂಣಿಯಲ್ಲಿದ್ದಾರೆ. ನಾನು ನಿಮ್ಮ ನಡುವೆ ಬಂದಾಗಲೆಲ್ಲಾ ನಾನು ಪ್ರಾಮಾಣಿಕವಾಗಿ ಮಾತನಾಡಿದ್ದೇನೆ ಎಂದು ನಿಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ತಿಳಿದಿದೆ. ನಾನು ಒಮ್ಮೆ ಭರ್ವಾಡ ಸಮುದಾಯಕ್ಕೆ ಕೋಲುಗಳನ್ನು ಹೊತ್ತೊಯ್ಯುವ ಯುಗ ಮುಗಿದಿದೆ ಎಂದು ಹೇಳಿದ್ದೆ - ನೀವು ಸಾಕಷ್ಟು ಸಮಯದಿಂದ ಕೋಲುಗಳನ್ನು ಹೊತ್ತುಕೊಂಡಿದ್ದೀರಿ, ಆದರೆ ಈಗ ಲೇಖನಿಯ ಯುಗ. ಇಂದು ಗುಜರಾತ್‌ನಲ್ಲಿ ನನ್ನ ಸೇವೆಯ ವರ್ಷಗಳಲ್ಲಿ, ಭರ್ವಾಡ ಸಮುದಾಯದ ಹೊಸ ಪೀಳಿಗೆಯು ಈ ಬದಲಾವಣೆಯನ್ನು ಸ್ವೀಕರಿಸಿದೆ ಎಂದು ನಾನು ಹೆಮ್ಮೆಯಿಂದ ಹೇಳಲೇಬೇಕು. ಮಕ್ಕಳು ಈಗ ಅಧ್ಯಯನ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದಾರೆ, ಪ್ರಗತಿ ಹೊಂದುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಮೊದಲು ನಾನು "ಕೋಲು ಕೆಳಗಿಟ್ಟು ಪೆನ್ನು ಎತ್ತಿಕೊಳ್ಳಿ" ಎಂದು ಹೇಳುತ್ತಿದ್ದೆ. ಈಗ, ನಾನು ಹೇಳುತ್ತೇನೆ, "ನನ್ನ ಹೆಣ್ಣು ಮಕ್ಕಳ ಕೈಯಲ್ಲಿ ಕಂಪ್ಯೂಟರ್‌ಗಳು ಸಹ ಇರಬೇಕು." ಈ ಬದಲಾಗುತ್ತಿರುವ ಕಾಲದಲ್ಲಿ, ನಾವು ಬಹಳಷ್ಟು ಸಾಧಿಸಬಹುದು - ಇದು ನಮಗೆ ಸ್ಫೂರ್ತಿ ನೀಡುತ್ತದೆ. ನಮ್ಮ ಸಮುದಾಯವು ಪ್ರಕೃತಿಯ ರಕ್ಷಕ. ನೀವು ನಿಜವಾಗಿಯೂ "ಅತಿಥಿ ದೇವೋ ಭವ"(ಅತಿಥಿ ದೇವರು) ಎಂಬ ಮನೋಭಾವ ಜೀವಂತಗೊಳಿಸಿದ್ದೀರಿ. ನಮ್ಮ ಗ್ರಾಮೀಣ ಮತ್ತು ಬಲ್ವಾ ಸಮುದಾಯಗಳ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಅನೇಕ ಜನರಿಗೆ ತಿಳಿದಿಲ್ಲ. ವೃದ್ಧಾಶ್ರಮಗಳಲ್ಲಿ ಭರ್ವಾಡ ಸಮುದಾಯದ ಹಿರಿಯರನ್ನು ನೀವು ಕಾಣುವುದಿಲ್ಲ. ಅವರ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯಲ್ಲಿ ಅವಿಭಕ್ತ ಕುಟುಂಬಗಳ ಪರಿಕಲ್ಪನೆ ಮತ್ತು ಹಿರಿಯರ ಸೇವೆಯನ್ನು ದೇವರ ಸೇವೆ ಎಂದು ಪರಿಗಣಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ. ಅವರು ತಮ್ಮ ಹಿರಿಯರನ್ನು ವೃದ್ಧಾಶ್ರಮಗಳಿಗೆ ಕಳುಹಿಸುವುದಿಲ್ಲ - ಅವರು ಅವರನ್ನು ನೋಡಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಾರೆ. ಈ ಮೌಲ್ಯಗಳನ್ನು ಮುಂದಿನ ಪೀಳಿಗೆಗೆ ರವಾನಿಸುವುದು ಗಮನಾರ್ಹ ಸಾಧನೆಯಾಗಿದೆ. ತಲೆಮಾರುಗಳಿಂದ, ಭರ್ವಾಡ ಸಮುದಾಯದ ನೈತಿಕ ಮತ್ತು ಕೌಟುಂಬಿಕ ಮೌಲ್ಯಗಳನ್ನು ಬಲಪಡಿಸುವ ಪ್ರಯತ್ನಗಳು ನಡೆದಿವೆ.

ನಮ್ಮ ಸಮಾಜವು ತನ್ನ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳನ್ನು ಉಳಿಸಿಕೊಂಡು ಆಧುನಿಕತೆಯತ್ತ ವೇಗವಾಗಿ ಮುನ್ನಡೆಯುತ್ತಿರುವುದನ್ನು ನೋಡಿ ನನಗೆ ಅಪಾರ ತೃಪ್ತಿ ಸಿಕ್ಕಿದೆ. ಅಲೆಮಾರಿ ಕುಟುಂಬಗಳ ಮಕ್ಕಳಿಗೆ ಶಿಕ್ಷಣ ಮತ್ತು ಹಾಸ್ಟೆಲ್ ಸೌಲಭ್ಯಗಳನ್ನು ಒದಗಿಸುವುದು ಸಹ ಒಂದು ಉತ್ತಮ ಸೇವೆಯಾಗಿದೆ. ನಮ್ಮ ಸಮುದಾಯವನ್ನು ಆಧುನಿಕತೆಯೊಂದಿಗೆ ಸಂಪರ್ಕಿಸುವುದು ಮತ್ತು ಪ್ರಪಂಚದೊಂದಿಗೆ ಸಂಯೋಜಿಸಲು ಅವಕಾಶಗಳನ್ನು ಸೃಷ್ಟಿಸುವುದು ಸಹ ಒಂದು ನಿರ್ಣಾಯಕ ಜವಾಬ್ದಾರಿಯಾಗಿದೆ. ಈಗ, ನಮ್ಮ ಹೆಣ್ಣು ಮಕ್ಕಳು ಕ್ರೀಡೆಯಲ್ಲೂ ಶ್ರೇಷ್ಠತೆ ಸಾಧಿಸುವುದನ್ನು ನಾನು ನೋಡಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ನಾವು ಈ ಗುರಿಯತ್ತ ಕೆಲಸ ಮಾಡಬೇಕು. ಇದು ಕೂಡ ಒಂದು ಉತ್ತಮ ಸೇವೆಯಾಗಿದೆ. ನಾನು ಗುಜರಾತ್‌ನಲ್ಲಿದ್ದಾಗ, ಖೇಲ್ ಮಹಾಕುಂಭ (ಕ್ರೀಡಾ ಉತ್ಸವ)ದಲ್ಲಿ ಯುವತಿಯರು ಶಾಲೆಗೆ ಹೋಗುವುದನ್ನು ಮತ್ತು ಕ್ರೀಡೆಗಳಲ್ಲಿ ಪದಕಗಳನ್ನು ಗೆಲ್ಲುವುದನ್ನು ನಾನು ನೋಡಿದೆ. ದೇವರು ಅವರಿಗೆ ವಿಶೇಷ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ನೀಡಿದ್ದಾನೆ. ಹಾಗಾಗಿ, ನಾವು ಅವರ ಪ್ರಗತಿಯತ್ತಲೂ ಗಮನ ಹರಿಸಬೇಕು. ನಾವು ನಮ್ಮ ಜಾನುವಾರುಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಕಾಳಜಿ ವಹಿಸುತ್ತೇವೆ - ನಮ್ಮ ಜಾನುವಾರುಗಳು ಅನಾರೋಗ್ಯಕ್ಕೆ ಒಳಗಾದರೆ, ಅವುಗಳ ಆರೋಗ್ಯ ಖಚಿತಪಡಿಸಲು ನಾವು ಸಾಧ್ಯವಿರುವ ಎಲ್ಲವನ್ನೂ ಮಾಡುತ್ತೇವೆ. ಈಗ, ನಾವು ನಮ್ಮ ಮಕ್ಕಳ ಬಗ್ಗೆ ಅದೇ ಸಮರ್ಪಣೆ ಮತ್ತು ಕಾಳಜಿ ಹೊಂದಿರಬೇಕು. ಬವಾಲಿಯಾಲಿ ಧಾಮ್ ಪಶುಸಂಗೋಪನೆಯಲ್ಲಿ, ವಿಶೇಷವಾಗಿ ಗಿರ್ ಹಸು ತಳಿ ಸಂರಕ್ಷಿಸುವಲ್ಲಿ ಉತ್ತಮ ಸಾಧನೆ ಮಾಡಿದೆ, ಇದು ಇಡೀ ರಾಷ್ಟ್ರಕ್ಕೆ ಹೆಮ್ಮೆಯ ವಿಷಯವಾಗಿದೆ. ಇಂದು, ಗಿರ್ ಹಸುವನ್ನು ವಿಶ್ವಾದ್ಯಂತ ಪ್ರಶಂಸಿಸಲಾಗುತ್ತಿದೆ.

ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ಕುಟುಂಬ ಸದಸ್ಯರೆ,

ಸಹೋದರ ಸಹೋದರಿಯರೆ, ನಾವು ಬೇರೆಯಲ್ಲ, ನಾವೆಲ್ಲರೂ ಒಡನಾಡಿಗಳು. ನಾವು ಯಾವಾಗಲೂ ಒಂದೇ ಕುಟುಂಬದ ಸದಸ್ಯರು ಎಂದು ನನಗೆ ಅನಿಸಿದೆ. ನಾನು ಯಾವಾಗಲೂ ನಿಮ್ಮೊಂದಿಗೆ ಕುಟುಂಬದ ಸದಸ್ಯನಾಗಿ ಇದ್ದೇನೆ. ಇಂದು ಬವಾಲಿಯಾಲಿ ಧಾಮದಲ್ಲಿ ನೆರೆದಿರುವ ಲಕ್ಷಾಂತರ ಜನರನ್ನು ನಾನು ನೋಡುತ್ತಿದ್ದಂತೆ, ನಿಮ್ಮಿಂದ ಏನನ್ನಾದರೂ ಕೇಳುವ ಹಕ್ಕು ನನಗಿದೆ ಎಂದು ನನಗೆ ಅನಿಸುತ್ತದೆ. ನಾನು ನಿಮ್ಮಿಂದ ಏನನ್ನಾದರೂ ಕೇಳಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ ಮತ್ತು ನೀವು ನನ್ನನ್ನು ಎಂದಿಗೂ ನಿರಾಶೆಗೊಳಿಸುವುದಿಲ್ಲ ಎಂಬ ನಂಬಿಕೆಯಿಂದ ನಾನು ವಿನಂತಿಸುತ್ತಿದ್ದೇನೆ. ನಾವು ಈಗಿರುವಂತೆಯೇ ಇರಲು ಸಾಧ್ಯವಿಲ್ಲ - ಮುಂದಿನ 25 ವರ್ಷಗಳಲ್ಲಿ ಭಾರತವನ್ನು ಅಭಿವೃದ್ಧಿ ಹೊಂದಿದ ರಾಷ್ಟ್ರವನ್ನಾಗಿ ಮಾಡುವತ್ತ ನಾವು ಒಂದು ದೊಡ್ಡ ಹೆಜ್ಜೆ ಇಡಬೇಕು, ಕೆಲಸ ಮಾಡಬೇಕು. ನಿಮ್ಮ ಬೆಂಬಲವಿಲ್ಲದೆ ನನ್ನ ಕೆಲಸ ಅಪೂರ್ಣವಾಗಿ ಉಳಿಯುತ್ತದೆ. ಈ ಗುರಿಗಾಗಿ ಇಡೀ ಸಮುದಾಯವು ಒಟ್ಟಾಗಿ ಬರಬೇಕು. ನಾನು ಒಮ್ಮೆ ಕೆಂಪುಕೋಟೆಯಿಂದ 'ಸಬ್ಕಾ ಪ್ರಯಾಸ್'(ಸಾಮೂಹಿಕ ಪ್ರಯತ್ನ) ಎಂದು ಒತ್ತಿ ಹೇಳಿದ್ದನ್ನು ನೀವು ನೆನಪಿಸಿಕೊಳ್ಳಬಹುದು. 'ಸಬ್ಕಾ ಪ್ರಯಾಸ್' ನಮ್ಮ ದೊಡ್ಡ ಶಕ್ತಿ. 'ವಿಕಸಿತ ಭಾರತ'ದತ್ತ ಮೊದಲ ಹೆಜ್ಜೆ ನಮ್ಮ ಹಳ್ಳಿಗಳ ಅಭಿವೃದ್ಧಿಯೊಂದಿಗೆ ಪ್ರಾರಂಭವಾಗುತ್ತದೆ. ಪ್ರಕೃತಿ ಮತ್ತು ಜಾನುವಾರುಗಳಿಗೆ ಸೇವೆ ಸಲ್ಲಿಸುವುದು ನಮ್ಮ ಪವಿತ್ರ ಕರ್ತವ್ಯ. ಅದನ್ನು ಗಮನದಲ್ಲಿಟ್ಟುಕೊಂಡು, ನಾವು ಕೈಗೊಳ್ಳಬೇಕಾದ ಇನ್ನೊಂದು ಪ್ರಮುಖ ಕಾರ್ಯವಿದೆ. ಭಾರತ ಸರ್ಕಾರವು ಕಾಲಬಾಯಿ ರೋಗವನ್ನು ಎದುರಿಸಲು ಸಂಪೂರ್ಣವಾಗಿ ಉಚಿತ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮವನ್ನು ನಡೆಸುತ್ತಿದೆ - ಈ ರೋಗವನ್ನು ನಾವು ನಮ್ಮ ಸ್ಥಳೀಯ ಭಾಷೆಯಲ್ಲಿ ಖುರ್ಪಕ-ಮುಹ್ಪಕ ಎಂದು ಕರೆಯುತ್ತೇವೆ. ನಮ್ಮ ಜಾನುವಾರುಗಳನ್ನು ಸಂಪೂರ್ಣವಾಗಿ ರಕ್ಷಿಸಲು, ನಿಯಮಿತ ಲಸಿಕೆ ಹಾಕುವುದು ಅತ್ಯಗತ್ಯ. ಇದು ಕರುಣಾಳು ಕಾರ್ಯವಾಗಿದೆ, ಸರ್ಕಾರವು ಈ ಲಸಿಕೆಗಳನ್ನು ಉಚಿತವಾಗಿ ನೀಡುತ್ತದೆ. ನಮ್ಮ ಎಲ್ಲಾ ಸಮುದಾಯದ ಜಾನುವಾರುಗಳು ನಿಯಮಿತವಾಗಿ ಈ ಲಸಿಕೆಯನ್ನು ಪಡೆಯುವುದನ್ನು ನಾವು ಖಚಿತಪಡಿಸಿಕೊಳ್ಳಬೇಕು. ಆಗ ಮಾತ್ರ ನಮಗೆ ಶ್ರೀಕೃಷ್ಣನ ನಿರಂತರ ಆಶೀರ್ವಾದ ಸಿಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಜಾನುವಾರುಗಳು ನಮ್ಮ ಸಹಾಯಕ್ಕೆ ಬರುತ್ತವೆ.

ನಮ್ಮ ಸರ್ಕಾರ ಕೈಗೊಂಡ ಮತ್ತೊಂದು ಪ್ರಮುಖ ಉಪಕ್ರಮವೆಂದರೆ, ಜಾನುವಾರು ಸಾಕಣೆದಾರರಿಗೆ ಆರ್ಥಿಕ ನೆರವು ನೀಡುವುದು. ಈ ಹಿಂದೆ, ರೈತರಿಗೆ ಮಾತ್ರ ಕಿಸಾನ್ ಕ್ರೆಡಿಟ್ ಕಾರ್ಡ್‌ಗಳು ಲಭ್ಯವಿತ್ತು, ಆದರೆ ಈಗ ನಾವು ಜಾನುವಾರು ಸಾಕಣೆದಾರರಿಗೂ ಕ್ರೆಡಿಟ್ ಕಾರ್ಡ್‌ಗಳನ್ನು ಪರಿಚಯಿಸಿದ್ದೇವೆ. ಈ ಕ್ರೆಡಿಟ್ ಕಾರ್ಡ್‌ನೊಂದಿಗೆ, ಜಾನುವಾರು ಮಾಲೀಕರು ತಮ್ಮ ವ್ಯವಹಾರಗಳನ್ನು ವಿಸ್ತರಿಸಲು ಬ್ಯಾಂಕ್‌ಗಳಿಂದ ಕಡಿಮೆ ಬಡ್ಡಿದರದ ಸಾಲಗಳನ್ನು ಪಡೆಯಬಹುದು. ಹೆಚ್ಚುವರಿಯಾಗಿ, ಸ್ಥಳೀಯ ಹಸು ತಳಿಗಳನ್ನು ಸಂರಕ್ಷಿಸಲು ಮತ್ತು ವಿಸ್ತರಿಸಲು ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಗೋಕುಲ್ ಮಿಷನ್ ಪ್ರಗತಿಯಲ್ಲಿದೆ. ನಿಮಗೆ ನನ್ನ ವಿನಮ್ರ ವಿನಂತಿ ಇದು, ನಾನು ದೆಹಲಿಯಲ್ಲಿ ಈ ಉಪಕ್ರಮಗಳಲ್ಲಿ ಕೆಲಸ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದೇನೆ, ಆದರೆ ನೀವು ಅವುಗಳ ಲಾಭ ಪಡೆಯದಿದ್ದರೆ, ಏನರ್ಥ? ನೀವು ಈ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮಗಳಿಂದ ಪ್ರಯೋಜನ ಪಡೆಯಬೇಕು. ಹಾಗೆ ಮಾಡುವುದರಿಂದ, ಲಕ್ಷಾಂತರ ಪ್ರಾಣಿಗಳು ಮತ್ತು ಜೀವಿಗಳ ಆಶೀರ್ವಾದವನ್ನು ನಾನು ಪಡೆಯುತ್ತೇನೆ. ಆದ್ದರಿಂದ, ಈ ಯೋಜನೆಯ ಸಂಪೂರ್ಣ ಪ್ರಯೋಜನ ಪಡೆದುಕೊಳ್ಳಲು ನಾನು ನಿಮ್ಮನ್ನು ವಿನಂತಿಸುತ್ತೇನೆ.

ನಾನು ಈ ಹಿಂದೆ ಉಲ್ಲೇಖಿಸಿರುವ ಮತ್ತು ಇಂದು ಪುನರಾವರ್ತಿಸುವ ಇನ್ನೊಂದು ಪ್ರಮುಖ ವಿಷಯವೆಂದರೆ, ಸಸಿ ನೆಡುವ ಮಹತ್ವ. ಈ ವರ್ಷ, ನಾನು ವಿಶ್ವಾದ್ಯಂತ ಪ್ರಶಂಸಿಸಲ್ಪಟ್ಟ ಅಭಿಯಾನ ಪ್ರಾರಂಭಿಸಿದೆ: 'ಏಕ್ ಪೇಢ್ ಮಾ ಕೆ ನಾಮ್' (ತಾಯಿಯ ಹೆಸರಿನಲ್ಲಿ 1 ಮರ). ನಿಮ್ಮ ತಾಯಿ ಜೀವಂತವಾಗಿದ್ದರೆ, ಅವರ ಸಮ್ಮುಖದಲ್ಲಿ ಒಂದು ಸಸಿ ನೆಡಿ. ಅವರು ನಿಧನರಾಗಿದ್ದರೆ, ಅವರ ನೆನಪಿಗಾಗಿ 1 ಸಸಿ ನೆಡಿ, ಅವರ ಛಾಯಾಚಿತ್ರವನ್ನು ಅದರ ಮುಂದೆ ಇರಿಸಿ. ಭರ್ವಾಡ ಸಮುದಾಯವು ಬಲವಾದ, ದೀರ್ಘಕಾಲ ಬದುಕುವ ಹಿರಿಯರಿಗೆ ಹೆಸರುವಾಸಿಯಾಗಿದೆ, ಅವರಲ್ಲಿ ಹಲವರು 90ರಿಂದ 100 ವರ್ಷಗಳ ಕಾಲ ಬದುಕುತ್ತಾರೆ. ನಾವು ಅವರಿಗೆ ಸೇವೆ ಸಲ್ಲಿಸಲು ಹೆಮ್ಮೆಪಡುತ್ತೇವೆ. ಈಗ ನಮ್ಮ ತಾಯಂದಿರ ಹೆಸರಿನಲ್ಲಿ ಸಸಿಗಳನ್ನು ನೆಡುವುದರಲ್ಲಿ ನಾವು ಹೆಮ್ಮೆಪಡಬೇಕು. ನಾವು ಭೂಮಿ ತಾಯಿಗೆ ಹಾನಿ ಮಾಡಿದ್ದೇವೆ ಎಂದು ಒಪ್ಪಿಕೊಳ್ಳಬೇಕು, ನಾವು ನೀರನ್ನು ಹೊರತೆಗೆದಿದ್ದೇವೆ, ರಾಸಾಯನಿಕಗಳನ್ನು ಸೇರಿಸಿದ್ದೇವೆ, ಅವಳ ಬಾಯಾರಿಕೆಯನ್ನು ಬಿಟ್ಟಿದ್ದೇವೆ ಮತ್ತು ಅವಳ ಮಣ್ಣನ್ನು ವಿಷಪೂರಿತಗೊಳಿಸಿದ್ದೇವೆ. ಭೂಮಿ ತಾಯಿಯ ಆರೋಗ್ಯ ಮರುಸ್ಥಾಪಿಸುವುದು ನಮ್ಮ ಜವಾಬ್ದಾರಿಯಾಗಿದೆ. ಇದಕ್ಕಾಗಿ, ಜಾನುವಾರು ಗೊಬ್ಬರವು ನಮ್ಮ ಭೂಮಿಗೆ ಸಂಪತ್ತಿನಂತೆ. ಅದು ಮಣ್ಣನ್ನು ಪೋಷಿಸುತ್ತದೆ ಮತ್ತು ಬಲಪಡಿಸುತ್ತದೆ. ಅದಕ್ಕಾಗಿಯೇ ನೈಸರ್ಗಿಕ ಕೃಷಿ ನಿರ್ಣಾಯಕವಾಗಿದೆ. ಭೂಮಿ ಹೊಂದಿರುವವರು ಮತ್ತು ಅವಕಾಶ ಹೊಂದಿರುವವರು ನೈಸರ್ಗಿಕ ಕೃಷಿ ಅಳವಡಿಸಿಕೊಳ್ಳಬೇಕು. ಗುಜರಾತ್ ರಾಜ್ಯಪಾಲ ಆಚಾರ್ಯ ಅವರು ನೈಸರ್ಗಿಕ ಕೃಷಿ ಉತ್ತೇಜಿಸಲು ಹೆಚ್ಚಿನ ಪ್ರಯತ್ನಗಳನ್ನು ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಆದ್ದರಿಂದ, ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರಿಗೂ ನನ್ನ ವಿನಂತಿ ಏನೆಂದರೆ, ನಮ್ಮಲ್ಲಿ ಯಾವುದೇ ಭೂಮಿ ಇದೆಯೋ ಅದು ದೊಡ್ಡದಾಗಿರಲಿ ಅಥವಾ ಚಿಕ್ಕದಾಗಿರಲಿ, ನಾವು ನೈಸರ್ಗಿಕ ಕೃಷಿಯತ್ತ ಗಮನ ಹರಿಸಬೇಕು, ಭೂಮಿ ತಾಯಿಗೆ ಸೇವೆ ಸಲ್ಲಿಸಬೇಕು.

ಪ್ರಿಯ ಸಹೋದರ ಮತ್ತು ಸಹೋದರಿಯರೆ,

ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ, ನಾನು ಭರ್ವಾಡ್ ಸಮುದಾಯಕ್ಕೆ ನನ್ನ ಹೃತ್ಪೂರ್ವಕ ಶುಭಾಶಯಗಳನ್ನು ಸಲ್ಲಿಸುತ್ತೇನೆ, ನಾಗಾ ಲಖಾ ಠಾಕರ್ ಅವರ ಆಶೀರ್ವಾದ ನಮ್ಮೆಲ್ಲರ ಮೇಲೆ ಇರಲಿ ಎಂದು ಪ್ರಾರ್ಥಿಸುತ್ತೇನೆ. ಬವಾಲಿಯಾಲಿ ಧಾಮ್‌ನೊಂದಿಗೆ ಸಂಬಂಧ ಹೊಂದಿರುವ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ವ್ಯಕ್ತಿಗೂ ಸಮೃದ್ಧಿ ಮತ್ತು ಪ್ರಗತಿ ಸಿಗಲಿ, ಇದು ಠಾಕರ್ ಅವರ ಪಾದಗಳಿಗೆ ಎರಗಿ ನಾನು ಪ್ರಾರ್ಥಿಸುತ್ತಿದ್ದೇನೆ. ನಮ್ಮ ಹೆಣ್ಣು ಮಕ್ಕಳು ಮತ್ತು ಗಂಡು ಮಕ್ಕಳು ಶಿಕ್ಷಣ ಪಡೆದು ಪ್ರಗತಿ ಹೊಂದುವುದನ್ನು ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಸಮುದಾಯವು ಬಲವಾಗಿ ಬೆಳೆಯುವುದನ್ನು ನೋಡುವುದಕ್ಕಿಂತ ಹೆಚ್ಚಿನದನ್ನು ನಾವು ಏನು ಕೇಳಬಹುದು? ಈ ಶುಭ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ, ಭಾಯಿ ಅವರ ಮಾತುಗಳನ್ನು ಗೌರವಿಸೋಣ ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಸಮುದಾಯವು ತನ್ನ ಶಕ್ತಿ ಉಳಿಸಿಕೊಂಡು ಆಧುನಿಕತೆಯತ್ತ ಸಾಗುವುದನ್ನು ಖಚಿತಪಡಿಸಿಕೊಳ್ಳುವ ಮೂಲಕ ಅವುಗಳನ್ನು ಮುಂದಕ್ಕೆ ಕೊಂಡೊಯ್ಯೋಣ. ನನಗೆ ನಿಜವಾಗಿಯೂ ಅಪಾರ ಸಂತೋಷವಾಗಿದೆ. ನಾನು ಖುದ್ದಾಗಿ ಬರಲು ಸಾಧ್ಯವಾದರೆ, ಅದು ಇನ್ನೂ ಹೆಚ್ಚಿನ ಸಂತೋಷ ತರುತ್ತಿತ್ತು.

ಜೈ ಠಾಕರ್!