श्री पटना साहिब, गुरू दी नगरी विखे दशमेश पिता साहिब श्री गुरू गोविंद सिंह जी महाराज दे जन्म दिहाड़े ते गुरू साहिबान दी बख्शीश लेन आई साध-संगत, तुहाणु मैं जी आईयां आखदां हां। इस पवित्र दिहाड़े ते मैं तुहाणु सारियां नू नवे साल दी लख-लख बधाईयां भी दिंदा हां।
आज हम पटना साहिब की इस पवित्र धरती पर इस प्रकाश-पर्व को मनाने में भाग्यशाली हुए हैं। लेकिन आज पूरे विश्व में जहां-जहां भारतीय रहते हैं, सिख समुदाय रहता है, दुनिया के सभी देशों में भारत सरकार ने हमारी एम्बेसीज के माध्यम से इस प्रकाश-पर्व मनाने के लिए योजना बनाई है ताकि न सिर्फ हिन्दुस्तान में लेकिन पूरे विश्व को इस बात का अहसास हो कि गुरू गोविंद सिंह महाराज साढ़े तीन सौ साल (350) पूर्व एक ऐसा दिव्यात्मा का जन्म हुआ, जिसने मानवता को कितनी बड़ी प्रेरणा दी। ये विश्व को भी परिचय हो उस दिशा में भारत सरकार ने भरपूर प्रयास किया है।
मैं श्रीमान नीतीश जी को, सरकार को, उनके सभी साथियों को और बिहार की जनता को विशेष रूप से अभिनंदन देता हूं क्योंकि पटना साहिब में ये प्रकाश-पर्व एक विशेष अहमियत रखता है। हिन्दुस्तान की एकता, अखंडता, भाईचारा, सामाजिक समरसता, सर्वपंत समभाव इसका बहुत ही मजबूत संदेश देने की ताकत ये पटना साहिब में प्रकाश-पर्व को मनाने में है और इसलिए नीतीश जी ने जिस मेहनत के साथ स्वयं, मुझे बताया जाता था, कि स्वयं गांधी मैदान आ करके, हर चीज की बारीकी से चिंता करके इतने बड़े भव्य समारोह की योजना की है।
कार्यक्रम का स्थल भले पटना साहिब में हो, लेकिन प्रेरणा पूरे हिन्दुस्तान को है; प्रेरणा पूरे विश्व को है। और इसलिए ये प्रकाश-पर्व हमें भी मानवता के लिए किस रास्ते पर चलना है, हमारे संस्कार क्या हैं, हमारे मूल्य क्या हैं, हम मानव जाति को क्या दे सकते हैं, इसके लिए एक पुन: स्मरण करके नए उमंग, उत्साह और ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का यह अवसर है।
गुरू गोविंद सिंह जी महाराज एक त्याग की प्रतिमूर्ति थे। हम कल्पना कर सकते हैं कि आंखों के सामने अपने पूज्य पिता का बलिदान देखें और अपनी ही मौजूदगी में अपनी संतानों को भी आदर्शों के लिए, मूल्यों के लिए, मानवता के लिए बलि चढ़ते देखें, और उसके बाद भी त्याग की पराकाष्ठा देखें; गुरू गोविंद सिंह जी महाराज भी इस गुरू परम्परा को आगे बढ़ा सकते थे, लेकिन इनकी दीर्घ-दृष्टि थी कि उन्होंने ज्ञान को केंद्र में रखते हुए गुरू ग्रंथ साहिब के हर शब्द को जीवन-मंत्र मानते हुए हम सबके लिए आखिर में यही कहा; अब गुरू ग्रंथ साहिब ही, उसका हर शब्द, उसका हर पन्ना आने वाले युगों तक हमें प्रेरणा देता रहेगा। ये भी, ये भी उनके त्याग की मिसाल का अंश था; उससे भी आगे जब पंच प्यारे और खालसा पंथ की रचना, उसमें भी पूरे भारत को जोड़ने का उनका प्रयास था।
जब लोग आदि शंकराचार्य की चर्चा करते हैं तो कहते हैं कि आदि शंकर ने हिन्दुस्तान के चारों कोनों में मठ का निर्माण करके भारत की एकता को बल देने का प्रयास किया था। गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने भी हिन्दुस्तान के अलग-अलग कोने से उन पंच-प्यारे की पसंद करके समग्र हिन्दुस्तान को खालसा परम्परा के द्वारा एकता के सूत्र में बांधने का उस जमाने में अद्भुत प्रयास किया था, जो आज भी हमारी विरासत है। और मैं हमेशा हृदय से अनुभव करता हूं कि मेरा कुछ खून का रिश्ता है क्योंकि जो पहले पंच-प्यारे थे उन पंच-प्यारों को उनको ये नहीं कहा गया था आपको ये मिलेगा, आपको ये पद मिलेगा, आप आगे आइए। नहीं, गुरू गोविंद सिंह महाराज साहिब का कसौटी का मानदंड भी बड़ा ऊंचा रहता था। उन्होंने तो सर कटवाने के लिए निमंत्रण दिया था; आइए, आपका सर काट दिया जाएगा और इस त्याग के आधार पर तय होगा आगे कैसे बढ़ना है। और अपना सर देने के लिए देश के अलग-अलग कोने से लोग आगे आए, उसमें एक गुजरात के द्वारिका का दर्जी समाज का बेटा, वो भी आगे आया और पंच-प्यारों में उसने जगह पाई। गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने उसको गले लगाया और पंच-प्यारे खालसा परम्परा निर्माण तो किया था गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने, वे चाहते उस दिशा में ये परम्परा चल सकती थी, लेकिन ये उनका त्याग, उनकी ऊंचाई थी कि गुरू गोविंद सिंह महाराज साहब ने स्वयं को भी उस बंधनों में बांध दिया, और उन्होंने कहा कि ये जो पंच-प्यारे हैं, ये जो खालसा परम्परा बनी है; मेरे लिए भी क्या करना, न करना; कब करना, कैसे करना; ये जो निर्णय करेंगे मैं उसका पालन करूंगा।
मैं समझता हूं कि गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब का इससे बड़ा त्याग की कल्पना कोई कर नहीं सकता कि जिस व्यवस्था वो खुद को खड़ी की, खुद की प्रेरणा से जो व्यवस्था खड़ी हुई, लेकिन उस व्यवस्था को उन्होंने अपने सर पर बिठाया और स्वयं को उस व्यवस्था को समर्पित कर दिया और उस महानता का परिणाम है आज साढ़े तीन सौ (350) साल का प्रकाश-पर्व मनाते हैं तब दुनिया के किसी भी कोने में जाएं, सिख परम्परा से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति होगा वो वहां नतमस्तक होता है, अपने-आप को समर्पित करता है। गु्रू गोविंद सिंह जी महाराज साहब ने जो परम्परा रखी थी उस परम्परा का पालन करता है।
तो ऐसी एक महान प्रेरणा गुरू गोविंद सिंह जी महाराज को जब याद करते हैं तो कुछ इतिहासकार शौर्य और वीरता के पहलू को ही प्रकट करते हैं। लेकिन उनकी वीरता के साथ उनकी जो धीरता थी, धैर्य था, वो अद्भुत था। वे संघर्ष करते थे लेकिन त्याग की पराकाष्ठा अभूतपूर्व थी। वे समाज में बुराइयों के खिलाफ लड़ते थे। ऊंच-नीच का भाव, जातिवाद का जहर, उसके खिलाफ भी लड़ाई लड़के समाज को एकता के सूत्र में बांधना, सबको समानता, इसमें कोई ऊंच-नीच का भेद न हो, उसके लिए जीवन-पर्यन्त अपनों के बीच भी वो आग्रहपूर्वक बातों को मनावाने में अपना जीवन खपाते रहे थे।
समाज-सुधारक हो, वीरता की प्रेरणा हो, त्याग और तपस्या की तपोभूमि में अपने आपको तपाने वाला व्यक्तित्व हो, सब गुण सम्पन्न, ऐसा गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब का जीवन आने वाली पीढि़यों को प्रेरणा देता रहे। हम भी सर्वपंत समभाव के साथ समाज का हर वर्ग बराबर है, न कोई ऊंच है न कोई नीच है, न कोई अपना है न कोई पराया है; इन महान मंत्रों को ले करके हम भी देश में सब दूर उन आदर्शों को प्रस्थापित करेंगे।
देश की एकता मजबूत बनेगी, देश की ताकत बढ़ेगी, देश प्रगति की नई ऊंचाईयों को प्राप्त करेगा। हमें वीरता भी चाहिए, हमें धीरता भी चाहिए; हमें शौर्य भी चाहिए, हमें पराक्रम भी चाहिए; हमें त्याग और तपस्या भी चाहिए। ये संतुलित समाज व्यवस्था, ये गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब के हर शब्द में, जीवन के हर काम में हमें प्रेरणा देने वाली रही है और इसलिए आज इस महान पवित्र आत्मा के चरणों में सर झुकाने का सौभाग्य मिला है।
आज गुरू गोविंद जी महाराज साहब के उसी स्थान पर आ करके गुरू ग्रंथ साहिब को भी नमन करने का सौभाग्य मिला है, मुझे विश्वास है कि ये हमें प्रेरणा देता रहेगा। यहां नीतीश जी ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात को स्पर्श किया। महात्मा गांधी चम्पारण सत्याग्रह की शताब्दी, लेकिन मैं नीतीश जी को हृदय से एक बात के लिए अभिनंदन करता हूं। समाज परिवर्तन का काम बड़ा कठिन होता है, बहुत मुश्किल काम होता है। उसको हाथ लगाने की हिम्मत करना भी बड़ा मुश्किल काम होता है। लेकिन उसके बावजूद भी नशा-मुक्ति का जिस प्रकार से उन्होंने अभियान चलाया है। आने वाली पीढि़यों को बचाने के लिए उन्होंने जो बीड़ा उठाया है, मैं उनकी बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बधाई देता हूं।
और मैं भी पूरे बिहार-वासियों से, सभी राजनीतिक दलों से, सभी सामाजिक जीवन में काम करने वालों से यही गुजारिश करूंगा, ये काम सिर्फ सरकार का नहीं है, ये काम सिर्फ नीतीश कुमार का नहीं है, ये काम सिर्फ किसी राजनीतिक दल का नहीं है; ये जन-जन का काम है। उसको सफल बनाएंगे तो बिहार देश की प्रेरणा बन जाएगा। और मुझे विश्वास है कि जो बीड़ा नीतीश जी ने उठाया है वो जरूर सफल होंगे और हमारी आने वाली पीढ़ी को बचाने के काम में गुरू गोविंद सिंह जी महाराज का ये प्रकाश-पर्व भी उनको आशीर्वाद देगा, उनको एक नई ताकत देगा। और मुझे विश्वास है कि बिहार देश की एक बहुत बड़ी अनमोल शक्ति बनेगा, देश को आगे बढ़ाने में बिहार बहुत बड़ा योगदान करेगा। क्योंकि ये बिहार की धरती है जिसने गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब से अब तक अनेक महापुरुष हमें दिए हैं। राजेन्द्र बाबू की याद करें। चम्पारण सत्याग्रह, सत्याग्रह की कल्पना की भूमि है ये है। जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर; अनगिनत, अनगिनत नर-रत्न इस धरती ने मां भारती की सेवा में दिए हैं। ऐसे भूमि पर गुरू गोविंद सिंह जी महाराज वो प्रेरणा हम सबके लिए एक नया आदर्श, नई प्रेरणा, नई शक्ति देती है। इसी एक अवसर को, प्रकाश-पर्व को, ज्ञान के प्रकाश को जीवनभर अपने अंदर ले जाने के संकल्प के साथ हम इस प्रकाश-पर्व को मनाएं।
विश्वभर में जो भी भारत सरकार के अलग-अलग मिशन्स के द्वारा, एम्बेसीज के द्वारा ये प्रकाश-पर्व मनाया जा रहा है। मैं विश्वभर में फैले हुए गुरू गोविंद सिंह जी महाराज साहब का स्मरण करनेवाले सभी जनों को अंत:करण पूर्वक बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बहुत-बहुत बधाई देता हूं। भारत सरकार ने इस प्रकाश-पर्व को बहुत व्यापक रूप से हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान के बाहर मनाने की योजना बनाई है, समिति बनाई है।
सौ करोड़ रुपया उस काम के लगाया है। रेलवे ने अलग से करीब 40 करोड़ रुपया लगा करके स्थाई व्यवस्थाएं इस प्रकाश-पर्व के निमित्त खड़ी की हैं। भारत सरकार के सांस्कृतिक विभाग ने भी करीब 40 करोड़ रुपया लगा करके अनेक विद् योजनाओं को साकार करने की दिशा में काम किया है ताकि ये हमेशा-हमेशा आने वाली पीढि़यों को प्रेरणा देने वाला काम बने, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं और आगे भी इस काम को आगे बढ़ाते जाएंगे। मैं फिर एक बार इस अवसर पर, इस पवित्र अवसर पर, सहभागी बनने का मुझे सौभाग्य मिला, अपने जीवन को धन्य मानता हूं।
आप सबसे प्रणाम करते हुए जो बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल।