Shri Narendra Modi addresses SME Convention of Vibrant Gujarat 2013

Published By : Admin | January 12, 2013 | 15:21 IST

मंच पर उपस्थित सभी महानुभाव और स्मॉल और मीडियम उद्योग जगत के सभी साहसिक भाईयों और बहनों..! जिन लोगों ने कल का समारोह देखा होगा, वे अगर आज के इस समारोह को देखेंगे तो वे अनुमान लगा सकते हैं कि गुजरात किस रेंज में काम कर रहा है। जितना बड़े उद्योगों का महात्म्य है, उससे भी ज्यादा छोटे उद्योगों का महात्म्य है। और आज पूरा दिन इस समिट में छोटे उद्योगों के विकास के लिए हम सब मिल कर के क्या कर सकते हैं, छोटे उद्योगों के द्वारा प्रोडक्ट की हुई चीजों को मार्केट कैसे मिले, छोटे उद्योग भी विश्व व्यापार में अपनी जगह कैसे बनाएं, छोटे उद्योगों का भी एक ब्रांड इमेज कैसे बने... ये सारे विषय ऐसे हैं कि जिसको अगर हम मिल बैठ कर सोचें तो एक बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। किसी एक जिले में एकाध छोटे उद्योगकार के लिए एकदम नई टैक्नोलॉजी को लाना उसके बूते से बाहर होता है, उसके लिए कठिनाई होती है। लेकिन बदलती हुई टैक्नोलॉजी के संबंध में हम लगातार हमारे उद्योग जगत के मित्रों को जोड़ते रहें, उनको अवसर दें, चाहे एक्जीबिशन हो, फेयर्स हो, सेमीनार्स हो, तो एक साथ 12-15 लोग आगे आएंगे और कहेंगे कि हाँ भाई, हम इस टैक्नोलॉजी को हायर करना चाहते हैं। और जब सब प्रकार की कोशिश करने के बाद सफलता मिलती है, सब लोग जुड़ते हैं तो अपने आप किसी भी उद्योगकार के लिए निर्णय करने में कठिनाई नहीं होती। इस प्रकार की समिट के माध्यम से हम हमारे गुजरात के छोटी-छोटी तहसील में बैठे हुए जो छोटे-छोटे उद्योगकार हैं, एकाध छोटा मशीन है, खुद मेहनत करते हैं, कुछ ना कुछ कर रहे हैं... लेकिन उनका भी इरादा तो है आगे बढ़ने का। वे भी चाहते हैं कि नई ऊंचाइयों को पार करना है, लेकिन उनको कभी-कभी रास्ता नहीं सूझता है। कभी कान पर कोई जानकारी पड़ती है लेकिन रास्ता पता नहीं होने के कारण, सोर्स पता नहीं होने के कारण, किन लोगों के माध्यम से करें उसका रास्ता पता नहीं होने के कारण वो अपनी जिदंगी उसी में पूरी कर देता है। पिताजी का एक कारखाना छोटा-मोटा चल रहा है, बच्चे बड़े हो रहे हैं, बच्चों को लगता है कि कुछ करें, लेकिन पिताजी को लगता है कि नहीं भाई, इतने साल से मैं चला रहा हूँ, ऐसा साहस करोगे तो कहीं डूब ना जाएं, अभी जरा ठहरो..! कभी माँ-बाप भी जो नई पीढ़ी प्रवेश करती है अपने पारिवारिक व्यवसाय में, तो उससे भी वो कभी-कभी चिंतित हो जाते हैं कि क्या करें..! इस प्रकार के समारोह से दोनों पीढ़ी की सोच को बदलने के लिए हम एक कैटलिक एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। जो पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, जो पुरानी परंपरा से अपना काम करना चाहते हैं, पुरानी टैक्नोलॉजी का उपयोग कर के काम करना चाहते हैं, बहुत ही प्रोटेक्टिव एन्वायरमेंट में काम करना चाहते हैं और नई पीढ़ी है जो बहुत ज्यादा एग्रेसिव है, साहस करना चाहती है, नई टैक्नोलॉजी को एडाप्ट करना चाहती है और कुछ भी आने से पहले घर में ही तनाव रहता है। बेटा बाप को समझा नहीं पा रहा है, बाप बेटे को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता है और सालों तक ऐसे ही चलता है। यहाँ कई लोग बैठे होंगे जिनको इस प्रकार का अनुभव होता होगा..! लेकिन जब ये दोनों पीढ़ी इस प्रकार के अवसर पर आती हैं तब और ‘सीइंग इज़ बिलीविंग’, जब वो इन चीजों को निकट से देखते हैं तो उनका हौंसला बुलंद हो जाता है और पल भर में वो निर्णय करते हैं कि हाँ बेटे, तुम जो कहते थे वो ठीक है, मुझे भरोसा नहीं था लेकिन मैंने देखा तो मुझे लगता है कि हाँ यार, हम कर सकते हैं..! तो मित्रों, हमें हमारे इस लघु उद्योग क्षेत्र को टैक्नोलॉजी की दृष्टि से अपग्रेड करना है। हम चाहते हैं कि जगत में जो बदलाव आया है उस बदलाव को हम कैसे एडाप्ट करें, अपने मन को कैसे बदलें, उस टैक्नोलॉजी के लिए गवर्नमेंट किस प्रकार से सपोर्ट करे, किस प्रकार की व्यवस्थाओं को विकसित करने से हम अच्छी स्थिति में बदल सकते हैं।

भी-कभी कुछ प्रोडक्ट ऐसे होते हैं जो समाज के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। हेल्थ केयर सेक्टर का कोई प्रोडक्ट होगा, एज्यूकेशन सेक्टर का कोई प्रोडक्ट होगा, इवन सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए कोई छोटा सा मशीन बनाता होगा। एकाध व्यक्ति के लिए मुश्किल होता है, वो करता भी है कभी-कभी तो क्या करता है? अगर मान लीजिए साल में वो छह मशीन बनाता है, तो फिर वो आठ-दस ग्राहकों से ज्यादा जगह में पहुंचता नहीं है। उसको लगता है इस आठ-दस क्लाइंट को पकड़ लिया, कस्टमर को पकड़ लिया, काम हो गया। उसकी तो रोजी-रोटी चलती है, लेकिन उसकी वो टैक्नोलॉजी जो सर्वाधिक लोगों को काम आ सकती है वो हर साल आठ या दस जगह पर ही पहुंचती है। उसके पास इतनी बड़ी विरासत है, उसके पास एक एसेट है, उसने एक प्रोडक्ट किया है, अगर वो ऐसे स्थान पर आता है जहां वो प्रोडक्ट बाहर आती है दुनिया के सामने, तो सबको लगता है कि यार, इसका प्रोडक्शन बढ़ाने की जरूरत है, इसका जरा मार्केटिंग करने की जरूरत है। साल में आठ लोग क्यों, अस्सी जगह पर क्यों नहीं पहुंचनी चाहिए..? तो मित्रों, उसके कारण एक उपयोगिता का भी माहौल बनता है। हर किसी को लगता है कि हाँ, अगर ये व्यवस्था विकसित होती है तो ये इस नगरपालिका को काम आ सकती है, पंचायत को काम आ सकती है, सरकारी दफ्तर में काम आ सकती है, कॉर्पोरेट हाऊस में काम आ सकती है..! और इसलिए मित्रों, इस प्रकार के प्रयासों से हम समाजोपयोगी जो प्रोडक्टस हैं, जो व्यवस्थाओं में बदलाव लाने का एक आधार बनती है, उन प्रोडक्ट्स को शो-केस करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि सब लोग इन चीजों को देखें। अब ये बात सही है कि एक छोटे से गाँव में बैठे उद्योगकार के लिए ये सब करना मुश्किल होता है क्योंकि बेचारा खुद ही जा करके लेथ पर बैठ कर के काम करता है, वो मार्केटिंग करने कहाँ जाएगा। उसके लिए वो संभव ही नहीं है, तो फिर हमें ही कोई ऐसा मैकेनिज्म डेवलप करना चाहिए। जैसे हमने कुछ उद्योगकार मित्रों को अभी सम्मानित किया। ये वो लोग हैं जिन्होंने छोटे-छोटे उद्योगों में रहते हुए भी कुछ ना कुछ नया इनोवेशन किया है, कुछ नया अचीव किया है, कुछ वर्क कल्चर में बदलाव लाए हैं, प्रोडक्टिविटी में बदलाव लाए हैं, क्वालिटी ऑफ प्रोडक्शन में बदलाव लाए हैं..! अब इन लोगों को जब ये सब लोग देखते हैं तो इनको लगता है कि अच्छा भाई, हमारे जिले में इस व्यक्ति ने ऐसा काम किया है..? तो देखेंगे, पूछेंगे कि बताओ तुमने क्या किया था। तो उसको भी लगेगा कि हाँ यार, मैं भी अपनी फैक्ट्री में कर सकता हूँ, मैं भी मेरे यहाँ लगा सकता हूँ..!

मित्रों, एक बात सही है कि हमें अधिकतम रोजगार देने की क्षमता इन लघु उद्योगकारों के हाथों में है, आप लोगों के हाथों में है। और हम उस प्रकार की अर्थ व्यवस्था चाहते हैं जिसमें अधिकतम लोगों को लाभ हो। मास प्रोडक्शन हो, वो इकोनॉमी के लिए जरूरी भी है, लेकिन साथ-साथ प्रोडक्शन बाय मासिस भी होना चाहिए। मास प्रोडक्शन हो, लेकिन एक लिमिटेड मशीन के द्वारा सारी दुनिया चल जाती है तो हम जॉब क्रियेट नहीं कर सकते। स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज के नेटवर्क के माध्यम से प्रोडक्शन बाय मासिस होता है। और जब प्रोडक्शन बाय मासिस होता है, तो लाखों हाथ लगते हैं, तो लाखों लोगों का पेट भी भरता है और इसलिए स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज अधिकतम लोगों को रोजगार देने का एक अवसर है। अब अधिकतम लोगों को रोजगार देने में भी कभी-कभी ये दिक्कत आती है कि फैक्ट्री में उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन कभी किसी नौजवान को रख लेते हैं तो छह महीने तो उसे सिखाने में चले जाते हैं। ये कोई कम इन्वेस्टमेंट नहीं होता है। और उसके बावजूद भी भरोसा नहीं रहता है कि भाई, इस लड़के को मैं लाया हूँ, छह महीने मैंने इसे सिखाया है, उसको काम में लगाया है, लेकिन पता नहीं मेरी गैरहाजिरी में वो जो चीज़ बनाएगा वो बाजार में चलेगी की नहीं चलेगी, उसके मन में टेंशन रहता है। लेकिन अगर उसको स्किल्ड मैन पावर मिले, हर प्रकार से आधुनिक विज्ञान और ज्ञान तथा टैक्नोलॉजी से परिचित नौजवान मिलेगा तो उसका हौंसला बुलंद हो जाता है। उसको लगता है कि मैं जिस पद्घति से काम करता था उसमें तो मेरे दो घंटे ज्यादा जाते थे, ये स्किल्ड लेबर मुझे मिला है, नौजवान ऐसा है, थोड़ा इस विषय को जानता है तो मित्रों, हमारी प्रोडक्शन कॉस्ट भी कम होगी, क्वालिटी इम्प्रूव होगी और उस फील्ड में सालों से काम करने वाला जो उद्योगपति है, जो बिजनस मैन है उसको भी भरोसा हो जाएगा कि यस, स्किल्ड मैनपावर के नेटवर्क के द्वारा, उनकी मदद के द्वारा मैं ऊंची क्वालिटी की चीजें बाजार में ले जा सकता हूँ। और इसलिए मित्रों, जितना समयानुकूल टैक्नोलॉजी अपग्रेडेशन आवश्यक है, जितना हमारी सोच में बदलाव आवश्यक है, उतना ही हमारे लिए स्किल डेवलपमेंट पर बल देना आवश्यक है। और स्किल्ड मैन पावर को तैयार करने के लिए हम टेलर मेड सॉल्यूशन नहीं निकाल सकते। हम लोगों को नीड बेस्ड स्किल डेवलपमेंट करना पड़ेगा। जहां जिस प्रकार की स्किल की आवश्यकता है, उस स्किल को हम प्रोवाइड कर सकते हैं क्या? हम हमारे कोर्सेस को भी उस कंपनी को या उस उद्योग को जिस प्रकार के मैन पावर की आवश्यकता है उस प्रकार के सिलेबस से हम तैयार कर सकते हैं क्या? गुजरात ने उस दिशा में एक प्रयास किया है।

स प्रकार के मिलन के माध्यम से हम ये भी आईडेन्टीफाई करना चाहते हैं कि अगर मान लीजिए गुजरात में लाखों छोटे उद्योग हैं और गुजरात के उद्योगों की बैकबोन स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज हैं। लोग कितना ही भ्रम क्यों ना फैलाएं, लेकिन सच्चाई जो यहाँ बैठी है वो है। लेकिन कुछ लोगों ने झूठ फैला के रखा है गुजरात के बारे में और लगातार झूठ फैलाने में उनको आनंद भी आता है। और जनता उनको जरा ठीक-ठाक भी करती रहती है। लेकिन उनकी आदत सुधरने की संभावना नहीं है, उन से कोई भरोसा नहीं कर सकते हम, क्योंकि उनके वेस्टेड इन्टरेस्ट है। मित्रों, हमें गुजरात के अंदर स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज के नेटवर्क को बल देना है, इतना ही नहीं, हम स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज को भी क्लस्टर के रूप में डेवलप करना चाहते हैं। अब देखिए, यहां साणंद से लेकर बहुचराजी तक पूरा ऑटोमोबाइल का एक क्लस्टर बना रहा है। अब ये ऑटोमोबाइल का क्लस्टर बन रहा है, तो कोई एक बड़ा कारखाना बनने से मोटर बनती नहीं है। एक मोटर तब बनती है जब पाँच सौ-सात सौ छोटे-छोटे उद्योगकार छोटे-छोटे स्पेयर पार्ट्स बना कर के उसको सप्लाई करते हैं, तब जा करके एक कार बनती है। किसी का इस पर ध्यान ही नहीं जाता है, उनको तो मारूति दिखती है या फोर्ड दिखती है या नैनो दिखती है। लेकिन ये फोर्ड हो, मारूति हो या नैनो हो, जब तक ये लोग काम नहीं करते तब तक बन नहीं पाती है। और उसके नेटवर्किंग के लिए आवश्यकता क्या होती है कि जहां पर जिस इन्डस्ट्री का क्लस्टर हो, वहीं पर सराउन्डिंग में अगर हम उस प्रकार के छोटे-छोटे उद्योगों का एक पूरा जाल बिछा दें और फिर मान लो कि ऑटो कम्पोनेंट बनाने वाले अगर लोग हैं, तो वहीं पर उस प्रकार की हमारी आई.टी.आई. जो होंगी, उन आई.टी.आई. के कोर्सेज भी वही होंगे जो वहीं के बच्चों को वहीं के उद्योगों में रोजगार दिला सकें, यानि एक इन्टीग्रेटिड अप्रोच होगा। अब मान लीजिए, वापी में कोई टैक्सटाइल इन्डस्ट्री है और पालनपुर में आई.टी.आई. में टैक्सटाइल का कोर्स चल रहा है। मुझे बताइए, क्या पालनपुर का लड़का वापी के अंदर टैक्सटाइल के कारखाने में नौकरी करने के लिए जाएगा..? अपने माँ-बाप को छोड़ कर जाएगा क्या..? वहाँ पर मकान किराए पर लेकर रहेगा क्या..? नहीं रहेगा..! लेकिन वापी में अगर टैक्सटाइल इन्डस्ट्री है और मैं वापी में ही टैक्सटाइल इन्डस्ट्री के लिए रिक्वायर्ड स्किल डेवलपमेंट के काम को करता हूँ, तो वहां के नौजवानों को रोजगार मिल जाता है, वहां की कंपनी को मैन पावर मिल जाता है और वहां से ज्यादातर लोगों का नौकरी छोड़ कर भाग जाने का कारण भी नहीं बनता है। वरना कभी-कभी क्या होता है, किसी उद्योगकार को चिंता यही रहती है और बड़ा ऑर्डर लेता नहीं है। ऑर्डर क्यों नहीं लेता है..? उसको लगता है कि यार बाकी तो सब ठीक है लेकिन ये नौकरी छोड़ कर चला जाएगा तो मैं आर्डर कैसे पूरा करूंगा, मेरे पास आदमी तो हैं नहीं..! यानि एक प्रकार से वो अपने साथ काम करने वाला जो व्यक्ति है उस पर डिपेन्डेट हो जाता है, लेकिन अगर ऐसा क्लस्टर है और क्लस्टर के अंदर उसी इलाके के नौजवानों को उसी काम के लिए अगर ट्रेन किया गया है तो यदि एक छोड़ कर जाएगा तो दूसरा मिल जाएगा, लेकिन उन उद्योगों को मैन पावर की कभी कमी नहीं पड़ेगी और मैन पावर का भी एक्सप्लॉइटेशन नहीं होगा।

मित्रों, गुजरात में औद्योगिक जगत से जुड़े हुए आप सब मित्रों का एक बात के लिए मैं अभिनंदन करता हूँ कि आज गुजरात में जो ज़ीरो मैन्डेस लॉस है, पीसफुल लेबर है, उसका मूल कारण यह है कि हमारे यहां औद्योगिक जीवन में एक परिवार भाव है। अपनी कंपनी में काम करने वाला लड़का भी परिवार का हिस्सा हो जाता है, एक अपनापन का भाव होता है और उसके कारण कभी मालिक और नौकर का हमारे यहां माहौल नहीं बनता है। हम जितनी मात्रा में ये मालिक और नौकर वाले हिस्से से बचे हैं, उतना हमारा औद्योगिक विकास हुआ है। और हिन्दुस्तान के बहुत से राज्य ऐसे हैं, हिन्दुस्तान के बहुत से छोटे उद्योगकार ऐसे हैं जिनको गुजरात की इस क्वालिटी का बहुत कम पता है। हमारे यहाँ आठ घंटे की नौकरी होगी तो भी वो मजदूर नौ घंटे तक काम क्यों करेगा..? उसको लगता है कि नहीं-नहीं, ये तो मेरी कंपनी की इज्जत का सवाल है, ये माल तो मुझे सात तारिख को देना है, मैं काम करके रहूँगा..! सेठ चाहे या ना चाहे, उद्योगकार की इच्छा हो या ना हो, लेकिन वो लेबर उसको रात तक भी काम करके उसको दे देता है। मित्रों, ये माहौल जो हमारे यहाँ बना है, इसका मतलब यह हुआ कि जिस प्रकार से प्रोडक्ट की वैल्यू हमने बढ़ाई है, उसी प्रकार से उस प्रोडक्ट के पीछे जिन हाथों से काम होता है, उन हाथों की इज्जत हम जितनी बढ़ाते हैं, उतनी ही हमारे व्यवसाय में गारंटी बढ़ती है, क्वालिटी में गारंटी बढ़ती है और हमारे परिणाम में बढोतरी हो जाती है। और इसलिए मित्रों, हमें जितनी छोटे उद्योगों की केयर करनी है, उतनी ही हमारे साथ काम करने वाले हमारे लेबरर्स की चिंता करनी है। हम कभी उनका एक्सप्लॉइटेशन नहीं करेंगे, ये जिन-जिन लोगों ने ठानी और मैंने देखा है कि अगर उसको पाँच रूपये का काम मिलता है तो वो आपको पच्चीस रूपये का काम करके देता है। कभी कोई घाटे में नहीं जाता है। अपने साथियों को संभालने के कारण घाटे में गई हो, ऐसी कोई कंपनी नहीं होगी। लेकिन जो अपनी ही टीम के लोगों के साथ इस प्रकार का काम नहीं करते हैं, तो वो घाटे में जाती है।

सी प्रकार से मित्रों, सरकार भी नहीं चाहती है कि फैक्ट्रियों में जा करके नई-नई परेशानियाँ पैदा करे। पहले तो ऐसे-ऐसे कानून हुआ करते थे, जैसे एक बॉयलर इन्सपेक्शन का रहता था। अब जिन कंपनियों को बॉयलर की जरूरत होती थी वो सरकार को लिखते थे कि फलानी तारिख को हमारा इन्सपेक्शन हो जाना जरूरी है, वरना मुझे अपना बॉयलर ऑपरेशन बंद करना पड़ेगा। अब वो बॉयलर इन्सपेक्शन करने वाला जो होता है, उसके पास लोड बहुत होता है और वो डेट देता नहीं है। उसको टेंशन रहता है और क्या-क्या परेशानियाँ होती है वो सब जानते हैं..! मैंने एक छोटा कानून बना दिया। मैंने कहा भाई, जो फैक्ट्री चलाता है, वो मरना चाहता है क्या? वो अपना बॉयलर फट जाए ऐसी इच्छा करता है क्या? उसको अपने बॉयलर की चिंता नहीं होती होगी क्या? तो हमने कहा कि आप ऐसा काम करो कि उसके ऊपर जिम्मेदारी डालो और उस कंपनी को बोलो कि वो आउट सोर्स करके, जो भी इसके लाइसेंसी लोग हैं, उनसे बॉयलर इन्सपेक्शन करवा लें और कागज सरकार को भेज दें। मित्रों, इतना सरल हो गया..! अच्छा, उसके उपर जिम्मेवारी आ गई और उसके ऊपर जिम्मेवारी आ जाने के कारण वो सरकार जितना करे उससे ज्यादा करने लगा। उसको लगा कि हाँ यार, मेरा बॉलयर अगर कुछ खराब हो गया तो मेरी फैक्ट्री में आग लग जाएगी और मेरे पचास लोग मर जाएंगे। जिम्मेवारी खुद उसके उपर आ गई। मित्रों, ऐसे बहुत से छोटे-मोटे कानूनी बदलाव है। अगर आप में से उस प्रकार के सुझाव आएंगे, जिसके कारण सिम्पलीफिकेशन हो, सरकार आ कर के कम से कम परेशानियाँ पैदा करे... और मित्रों, ये जो मैं बोल रहा हूँ ना, ये मुझे करना है और मैं लगातार करता आया हूँ, काफी कुछ मैंने कर भी लिया है। लेकिन फिर भी कहीं कुछ कोने में रह गया हो तो मुझे उसको ठीक करना है और उसमें मुझे आप लोगों की मदद चाहिए। ये सरकार ऐसी नहीं है कि सब आपके भरोसे छोड़ दे और आप को कह दे कि भाई, जो होगा वो होगा, तुम जानो, तुम्हारा काम जाने, मरो-जीओ तुम्हारी मरजी... नहीं, ये हमारा काम है कि आप प्रगति करो, ये हमारा काम है कि आपकी कठिनाइयाँ दूर हों, ये हमारा काम है कि हम सब मिल कर के आगे बढ़ें..! मित्रों, आज गुजरात में इन्डस्ट्री ग्रो कर रही है उसका कारण यही है कि हमने एक ऐसा इन्वायरमेंट क्रियेट किया है और उस इन्वायरमेंट का लाभ हर किसी को मिले उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।

मित्रों, अभी मैं कुछ दिन पहले सूरत में ‘स्पार्कल’ कार्यक्रम में गया था, जेम्स एंड ज्वेलरी का कार्यक्रम था। वहां पर भारत सरकार के भी लघु उद्योग विभाग को देखने वाले एक अधिकारी आए थे। उन्होंने जो भाषण किया वहां, वो जानकारी मेरे लिए भी बहुत आनंद की थी। वही जानकारी मुझे मेरे सरकार के अधिकारियों ने दी होती तो मैं उनको दस सवाल पूछता। मैं उनको कहता कि नहीं यार, ये बात मेरे गले नहीं उतर रही है, ये कैसे हो सकता है..? मेरे मन में सवाल उठते। लेकिन क्योंकि भारत सरकार के अधिकारी ने कहा है तो मुझे मालूम था कि वो सात जगह पर पूछ कर के आया होगा और बिना वेरीफाई किये कुछ नहीं कहेगा। और मित्रों, उन्होंने जो जानकारी दी, वो जानकारी सचमुच में हम सभी लघु उद्योग से जुड़े मित्रों के लिए एक बहुत ही आनंद और प्रोत्साहन का विषय है। उन्होंने कहा कि पूरे हिन्दुस्तान में स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज़ का जो ग्रोथ है, वो 19% है और गुजरात ऐसा राज्य है जिसकी स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज़ का ग्रोथ 85% है। आप विचार किजीए मित्रों, इसका मतलब कि भारत सरकार का एक जो रिपोर्ट आया है, वो रिपोर्ट ये कहता है कि गुजरात एक ऐसा राज्य है जहां मिनीमम बेरोजगार लोग हैं। बेकारों की संख्या पूरे हिन्दुस्तान में कम से कम कहीं है, तो गुजरात में है। मैं पॉलिटिकली जो बेकार हो गए हैं उनकी बात नहीं कर रहा हूँ, वो तो बेचारे पंद्रह साल से बेरोजगार हैं। मिनीमम बेरोजगार कहीं किसी राज्य में है तो वो गुजरात में हैं। भारत सरकार का दूसरा एक रिपोर्ट कहता है कि पूरे हिन्दुस्तान में पिछले पांच सात साल में जो रोजगार दिए गए हैं, उसमें 72% रोजगार अकेले गुजरात ने दिए हैं। अब इन तीनों चीजों को मिला कर देखें कि देश का ग्रोथ 19% और हमारा 85%, दूसरा रिपोर्ट कहता है कि मिनीमम बेरोजगार लोग, तीसरा रिपोर्ट कहता है कि 72% एम्लायमेंट हम देते हैं, ये तीनों को जोड़ के जब हम देखते हैं तो साफ नजर आता है कि हमारे स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज के ग्रोथ ने देश के नौजवानों की कितनी बड़ी सेवा की है। रोजगार देने के लिए एक क्षेत्र कितना बड़ा उपकारक हुआ है, कितना बड़ा लाभ हुआ है। और ये तीनो चीजें, सारे फिगर भारत सरकार के हैं।

मित्रों, इससे स्पष्ट होता है कि हमारा ये जो स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज पर बल देने का प्रयास है उसमें हम कुछ और कदम आगे बढ़ना चाहते हैं, भाईयों। और आप सब लोग शायद नहीं कर पाओगे, लेकिन मित्रों, निर्णय तो करना ही पड़ेगा..! एक है, सारी दुनिया से आया माल अब डंप हो रहा है, उसके सामने हमें टिकना है। मैं 1999-2000 की बात करता हूँ, तब तो मैं मुख्यमंत्री नहीं था लेकिन मुझे याद है, 12-15 साल पहले की बात है। मैंने उनसे कहा था कि भाई, आपकी चिंता तो सही है लेकिन इसका तो उपाय यही है कि हम चीन से अच्छे जूतें दें और चीन से सस्ते जूतें दें। अगर हम इन बातों पर बल देंगे तो कोई हमारा मुकाबला नहीं कर सकता। और हमने जब कहा कि अच्छे जूतें दें तो उसका मतलब जूतें टिकाऊ होने चाहिए, सिर्फ दिखने में अच्छे नहीं। और मैंने कहा, मेरा विश्वास है कि अगर आप टिकाऊ चीजों पर बल दोगे तो हिन्दुस्तान के ग्राहक का जो मानस है वो टिकाऊ चीजें पंसद करता है और फिर दुनिया की कोई ताकत ऐसी नहीं है कि वो उसका माल यहाँ बेच जाए। मित्रों, ये छोटा सा एक सिद्धांत है, क्या हम जिन चीज़ों का प्रोडक्शन करते हैं उसको दुनिया से जो माल हिन्दुस्तान की तरफ आ रहा है उसके सामने टिकने के लिए क्या वो टिकाउ है या नहीं, इस पर हमें गंभीरता से सोचना पड़ेगा और तभी हम इस ग्लोबल मार्केट में और इस कन्जूमरिज़म के जमाने में हम टिक पाते हैं, अदर्वाइज़ हम टिक नहीं पा सकते, मित्रों। कभी तो हमें कम मुनाफा ले कर भी टिकाउ चीज़ों पर बल देना ही पड़ेगा, ऐट द सैम टाइम, मार्केट का एक दूसरा नेचर बना है, आपने कई लोग देखे होंगे, 20 साल की उम्र में जिस प्रकार का जूता पहेनते थे, वो 75 साल के हो गए तो भी वो बदलते नहीं है। वे वो ही मोची को खोजेंगे, उसी से बनावाएंगे, ऐसा रहता था। लेकिन आज की पीढ़ी में..? आज की पीढ़ी का स्वभाव बदला है। उसको लगातार नई डिजाइन चाहिए, नया कलर चाहिए... इसका मतलब हुआ कि हमारे यहाँ लगातार रिसर्च होना चाहिए। भले ही हम स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज वाले क्यों ना हो, अगर हम मार्केट में नई चीज नहीं देंगे, तब तक हम ये दुनिया से जो मार्केट का हमला हो रहा है उसके सामने टिक नहीं सकते हैं और इसलिए हमें लगातार डिजाइनिंग हो, क्वालिटी रिसर्च हो, काम्पोनेंट रिसर्च हो, इन सारे विषयों पर बल देना पड़ेगा, क्योंकि हमें टिकना है। वरना बताइए मित्रों, जो लोग होली में पिचकारी बना कर बेचते थे, वो बेचारा साल भर पिचकारी बनाता था और होली के समय माल बेचता था और रोजी-रोटी कमाता था। उसने सब बना कर रखा है और मानो चाइना से पिचकारी आकर डम्प हो गई तो उसकी बेचारे की पिचकारी कौन खरीदेगा..! उसे चिंता रहती है। लेकिन अगर हमारी चीजें टिकाऊ हैं मित्रों, तो मैं मानता हूँ कि हम किसी भी हमले को पार कर सकते हैं।

दूसरी बात है मित्रों, कि हमें डिफेंसिव ही रहना है क्या..? कैसे भी करके अपनी रोजी-रोटी कमा लो, अपने धंधे को बचा लो यार, चला लो। बच्चे बड़े होंगे तो वे देख लेंगे, हम तो हमारा गुजरा कर लें..! ये ज्यादातर हमें सुनने को मिलता है। मैं मानता हूँ कि हमें मनोवैज्ञानिक रूप से एक बहुत बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। हमारे उद्योग जगत के मित्रों को डिफेंसिव नहीं होना चाहिए। क्यों ना हम ये सपना देखें कि मैं जो प्रोडक्ट बना रहा हूँ, मैं दुनिया के बाजार में जाकर के, सीना तान करके बेच कर आऊंगा। हम ही क्यों ना एग्रेसिव हो..? हम पूरे विश्व के बाजार पर कब्ज़ा करने की कोशिश क्यों ना करें..? मित्रों, इस समिट के माध्यम से हम जिस तरह दुनिया की टैक्नोलॉजी लाने के लिए उत्सुक हैं, वैसे दुनिया से बाजार खोजने में भी उत्सुक हैं। विश्व में हम अपना माल कहाँ-कहाँ बेच सकते हैं कहाँ-कहाँ पहुंचा सकते हैं, कहाँ-कहाँ मार्केट की संभावना है, वहाँ की इकॉनोमी के अनुकूल हमारी प्रोडक्ट हम कैसे पहुंचा सकते हैं... अगर इन चीजों पर हमने बल दिया तो मित्रों, हमें कभी भी किस देश का कौन सा माल यहाँ आकर टपक पड़ने वाला है, किसके यहाँ से कितना डंप होने वाला है, ऐसी कोई बात हमारी चिंता का कारण नहीं बनेगी। हम यदि एग्रेसिव होते हैं, ऑफेन्सिव होते हैं, हम विश्व के बाजार पर कब्जा करने के लिए सोचते हैं... और मैं मानता हूँ मित्रों, गुजरात के लोग साहसिक हैं, ये कर सकते हैं। गुजरात के व्यापारियों में दम है, अगर उन्हें कहा जाए कि तुम गंजे को कंघा बेच कर आ जाओ तो वो बेच कर आ जाएगा। उसके अंदर वो एन्टरप्रोन्योशिप है, वो कर सकता है। अगर उसको कहा जाए कि तुम हिमालय के अंदर फ्रिज बेच के आ जाओ तो साहब, वो बेच के आ जाएगा। वो समझा देगा कि ग्लोबल वार्मिंग क्या है, हिमालय अब गर्म होने वाला है, तुम्हे फ्रिज की ऐसे जरूरत पड़ेगी..! मित्रों, जिसके अंदर ये एन्टरप्रन्योरशिप की क्वालिटी है, उसके मन में ये विचार क्यों नहीं आता है कि मैं दुनिया के बाजार पर कब्ज़ा करुँ..!

मित्रों, बदलते हुए युग में हमारी छोटी-मोटी इन्डस्ट्रीज को भी एकाध नौजवान को तो अपने यहां इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी से जुड़ा रखना ही पड़ेगा। आज ऑनलाइन बिज़नेस इतनी बड़ी मात्रा में होता है, विश्व की रिक्वायरमेंट का पता चलता है। आप किसी को भले ही दो घंटे के लिए टेम्परेरी हायर करो। कुछ ऐसे आई.टी. के बच्चे भी हो सकते हैं कि दिन में छह कंपनीओं में दो-दो घंटे सेवा दे सकते हैं, जैसे एकाउन्टेंट होते थे पहले। आपके यहां एकाउन्टेंट कोई परमानेंट थोड़े ही रखते थे, हफ्ते में दो घंटे आता था और अपना अकाउंट का काम करके चला जाता था। तो इसी प्रकार से हमें एक नई विधा डेवलप करनी होगी। ये जो आई.टी. के क्षेत्र में जिन बच्चों एक्सपर्टीज़ हैं, ऐसे बच्चों की हफ्ते में दो-तीन घंटे सेवा लेना, उनको कहना कि भाई, दुनिया में देखो क्या-क्या हो रहा है, नई टैक्नोलॉजी क्या है, नई व्यापार की संभावनाएं क्या है, देखो और कॉरस्पोन्डैंस करो, अपना माल हम बेच सकते हैं क्या..? मित्रों, थोड़ा अगर आप सोचोगे तो आज जगत इतना छोटा हो गया है कि हम अपना मार्केट खोज सकते हैं और अगर प्रोडक्ट में दम है तो मित्रों, हम अपनी बात दुनिया में पहुंचा भी सकते हैं और माल भी पहुंचा सकते हैं और मुझे लगता है कि हमारे गुजरात के उद्योगकारों को उस दिशा में विचार करना चाहिए।

क और बात है, मित्रों। मैंने देखा है कि कई हमारे उद्योगकार जिन्होंने अपनी चीजों को विशेष रूप से बनाया है, लेकिन अब पुराने जमाने का हमारा स्वाभाव है और उसके कारण हम हमारे प्रोडक्ट का पेटेंट नहीं करवाते हैं। कोई छोटा भी कोई उद्योगकार क्यों ना हो, हमें पेटेंट करवाना चाहिए। मित्रों, इस बार मैं अब से एक काम करने वाला हूँ। सरकार के अंदर जो इन्डेक्स-बी जैसे जो हमारे डिपार्टमेंट हैं, अब के बाद हम डेडिकेटिड टू द स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज, एक पूरा यूनिट सरकार के उद्योग विभाग में खोलने वाले हैं। पूरी एक सरकारी व्यवस्था डेडिकेटिड टू द स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज़ होगी। वो लघु उद्योगो के लिए, छोटे उद्योगों के लिए, कॉटेज इन्डस्ट्रीज के लिए होगा और उनको इस प्रकार की कानूनी मदद कैसे मिले जैसे कि पेटेंट कैसे करवाना, पेटेंट कैसे रजिस्टर होगा, उसकी कंपनी का नाम होगा, ब्रांड होगा, प्रेासेस होगा, प्रोडक्ट होगा... इन सारी बातों में सरकार आपकी मदद करना चाहती है। आने वाले दिनों में उस इकाई को भी हम खड़ा करेंगे जिसके कारण छोटे-छोटे लोगों को भी मदद मिलेगी। वरना क्या होता है, आप एक चीज बना लीजिए, दूसरा उसको खोल कर के, सोचेगा कि हाँ यार, ये तो मैं भी कर सकता हूँ, तो वो भी अपने यहां शुरू कर देगा..! और उसके कारण जिसने मेहनत की हो उसको तो बेचारे को मुसीबत हो जाती है। तो हम चाहते हैं कि आपकी सिक्योरिटी के लिए भी व्यवस्था हो और हमारी सरकार की तरफ से हम आपकी मदद करना चाहते हैं ताकि आपके पास जो नॉलेज है, इनोवेशन है, उसका पेटेंट आपके पास रहे, वो आपकी अथॉरिटी बनी रहे, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

र एक बात है मित्रों, हम सब लोग छुट-पुट अपनी चीजों के लिए दुनिया में अपनी जगह जल्दी बना नहीं सकते। हब सबको मालूम है कि आज से पाँच-दस साल पहले बाजार में हम पैन भी खरीदने जाते थे और अगर उस पर ‘मेड इन जापान’ लिखा है तो हम कभी पूछते नहीं थे कि जापान की किस कंपनी ने इस पेन को बनाया है, कभी नहीं पूछते थे..! उस पेन पर कंपनी का नाम भी नहीं लिखा होता था, लेकिन सिर्फ ‘मेड इन जापान’ लिखा है तो हम खरीद लेते थे, अपनी जेब में रखते थे और अपने दस दोस्तों को महीने भर बताते थे कि देखिए, ‘मेड इन जापान’ है..! ये था एक जमाना..! इसका मतलब ये हुआ कि उन्होंने अपना एक ब्रांड बना लिया, फिर सब कंपनियों का माल ‘मेड इन जापान’ लिख दिया तो बाजार में चल जाता था। मित्रों, हमारे लिए भी आवश्यक है कि हम हर कंपनी का ब्रांड बनाने जाएंगे तो शायद हमारी इतनी पहुंच भी नहीं होगी और इतनी ताकत भी नहीं होगी, लेकिन अगर हम ‘मेड इन गुजरात, इंडिया’ ये अगर माहौल बना दें..! मित्रों, ये बहुत आवश्यक है और इसलिए मेरा आग्रह है कि हम आज मिले हैं उस पर चर्चा करें, आपके छोटे-छोटे एसोसिएशन में भी इस पर चर्चा हो, लेकिन कभी ना कभी इस दिशा में सोचना होगा। लेकिन ये तब होगा, केवल उस पर लिख दिया ‘मेड इन गुजरात, इंडिया’ उससे काम नहीं होता है। हमें हमारी प्रोडक्ट की क्वालिटी के विषय में कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं रहने देने के नॉर्म्स बनाने पड़ेंगे। जीरो डिफैक्ट, हम जो भी मैन्यूफक्चर करते हैं, जो भी प्रोडक्ट करते हैं, उसमें अगर जीरो डिफैक्ट होगा तब जाकर दुनिया में हम खड़े हो सकते हैं, हम जो प्रोडक्ट करते हैं वो कॉस्ट इफैक्टिव है तो दुनिया में जाकर हम खड़े हो सकते हैं, हम जो प्रोडक्ट करते हैं वो टिकाऊ है तो हम दुनिया में जा करके खड़े रह सकते हैं और इसलिए भाईयों-बहनों, हमें उस दिशा में काम करना होगा।

र एक मार्केटेबल चीज आज बाजार में है। आप अगर अपने प्रोडक्ट के साथ ये कहो कि ये एन्वायरमेंट फ्रेन्डली टैक्नोलॉजी से बनी है तो दुनिया का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो उसको खरीदता है। आज भी जैसे खान-पान में एक बहुत बड़ा वर्ग तैयार हुआ है, उसको अगर ये कहो कि लीजिए खाइए, तो वो कहेगा कि नहीं-नहीं, अभी मैं खाना खा कर आया हूँ, अभी मेरा मन नहीं करता है। लेकिन उसको अगर आप धीरे से ये कहो कि नहीं-नहीं खाइए ना, ये आर्गेनिक है, तो वो तुरंत कहेगा, अच्छा आर्गेनिक है, लाइए-लाइए..! अब चीजें चल पड़ती हैं भइया, अब उसके पास कोई लेबोरेटरी तो है नहीं कि टेस्ट करेगा कि आर्गेनिक है कि नहीं है, लेकिन वो खाएगा कि आर्गेनिक है..! मित्रों, हमें झूठ नहीं करना है, सही करना है। एन्वायरमेंट फ्रेन्डली टैक्नोलॉजी, ये भी प्रोडक्ट के साथ-साथ बिकने वाली चीज बनने वाली है। दुनिया में हर चीज को देखिए, अच्छा ये एन्वायर फ्रेन्डली टैक्नोलॉजी है तो ठीक है..! और इसलिए मित्रों, दुनिया के मार्केट की जो सोच बदल रही है, कंज्यूमर की जो सोच बदल रही है, उन चीजों को भी हमारी स्मॉल स्केल इन्डस्ट्रीज ग्लोबल विजन के साथ तैयार करे ये मेरा सपना है। वो यहां धौलका-धंधुका में माल बेचे इसके लिए हम इतनी मेहनत नहीं कर रहे हैं, मित्रों। दुनिया के बाजार में छाती पर पैर रख के मेरे गुजरात का व्यापारी माल बेचे इसके लिए हम ये कोशिश कर रहे हैं। विश्व के बाजार में हमें अपना कदम रखना है इसके लिए हमारी कोशिश है। हिन्दुस्तान में तो है, हिन्दुस्तान में तो आपका माल बिकना ही बिकना है, आपकी अपनी एक प्रतिष्ठा है, लेकिन उस दिशा में हम प्रयास करें।

मित्रों, मैं चाहता हूँ कि पूरा दिन इस विषय पर चर्चा होने वाली है, बहुत ही एक्सपर्ट लोगों से हमें मदद मिलने वाली है और इस विधा को हम लगातार आगे बढ़ाना चाहते हैं और मेरा मकसद है मित्रों, नई टैक्नोलॉजी कैसे आए, नए इनोवेशंस कैसे हों, अधिकतम नौजवानों को रोजगार कैसे मिले, इसके लिए अनुकूल स्कूल डेवलपमेंट कैसे हो और हम विश्व के बाजार को अपना माल पहुंचाने के लिए किस प्रकार से एग्रेसिव, प्रो-एक्टिव हो कर के काम करें, हम डिफेंसिव ना हों, उस दिशा में आगे बढ़ें। मेरी आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं, धन्यवाद..!

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ನನ್ನ ಪ್ರಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳಿಗೆ ನಮಸ್ಕಾರ. 2025 ಇನ್ನೇನು ಬಂದೆ ಬಿಟ್ಟಿತು, ನವ ಸಂವತ್ಸರ  ಬಾಗಿಲು ತಟ್ಟುತ್ತಿದೆ. 2025ರ ಜನವರಿ 26 ರಂದು ನಮ್ಮ ಸಂವಿಧಾನ ಜಾರಿಗೆ ಬಂದು 75 ವರ್ಷಗಳು ತುಂಬುತ್ತವೆ. ನಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ಇದು ಹೆಮ್ಮೆಯ ವಿಷಯ. ನಮ್ಮ ಸಂವಿಧಾನ ನಿರ್ಮಾತೃಗಳು ನಮಗೆ ಒಪ್ಪಿಸಿದ ಸಂವಿಧಾನವು ಎಲ್ಲಾ ಕಾಲದಲ್ಲು ಪ್ರಸ್ತುತವಾಗಿದೆ. ಸಂವಿಧಾನ ನಮಗೆ ದಿಕ್ಸೂಚಿಯಾಗಿದೆ, ಮಾರ್ಗದರ್ಶಕನಾಗಿದೆ. ಭಾರತದ ಸಂವಿಧಾನದಿಂದಾಗಿಯೇ  ಇಂದು ನಾನು ಇಲ್ಲಿದ್ದೇನೆ, ನಿಮ್ಮೊಂದಿಗೆ ಮಾತನಾಡುತ್ತಿದ್ದೇನೆ. ಈ ವರ್ಷ, ನವೆಂಬರ್ 26 ರ ಸಂವಿಧಾನ ದಿನದಿಂದ ಒಂದು ವರ್ಷದ ಅವಧಿಯವರೆಗೆ ಜರುಗುವ ಅನೇಕ ಚಟುವಟಿಕೆಗಳು ಪ್ರಾರಂಭವಾಗಿವೆ. ದೇಶದ ನಾಗರಿಕರನ್ನು ಸಂವಿಧಾನದ ಪರಂಪರೆಯೊಂದಿಗೆ ಜೋಡಿಸಲು, constitution75.com ಎಂಬ ವಿಶೇಷ ವೆಬ್‌ಸೈಟ್ ಅನ್ನು ಸಹ ರಚಿಸಲಾಗಿದೆ. ಇದರಲ್ಲಿ ನೀವು ಸಂವಿಧಾನದ ಪೀಠಿಕೆಯನ್ನು ಓದಿ ನಿಮ್ಮ ವೀಡಿಯೊವನ್ನು ಅಪ್‌ಲೋಡ್ ಮಾಡಬಹುದು. ನೀವು ವಿವಿಧ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಸಂವಿಧಾನವನ್ನು ಓದಬಹುದು ಮತ್ತು ಸಂವಿಧಾನದ ಬಗ್ಗೆ ಪ್ರಶ್ನೆಗಳನ್ನು ಕೇಳಬಹುದು. ‘ಮನದ  ಮಾತಿನ’ ಕೇಳುಗರು, ಶಾಲಾ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು, ಕಾಲೇಜಿಗೆ ಹೋಗುವ ಯುವಕರು, ಈ ವೆಬ್‌ಸೈಟ್‌ಗೆ ಖಂಡಿತಾ ಭೇಟಿ ನೀಡಿ ಮತ್ತು ಇದರಲ್ಲಿ ಪಾಲ್ಗೊಳ್ಳಿ ಎಂದು ನಾನು ಆಗ್ರಹಿಸುತ್ತೇನೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಮುಂದಿನ ತಿಂಗಳು 13 ರಿಂದ ಪ್ರಯಾಗರಾಜ್‌ನಲ್ಲಿ ಮಹಾಕುಂಭವೂ ನಡೆಯಲಿದೆ. ಸದ್ಯ ಸಂಗಮದ ದಡದಲ್ಲಿ ಭರ್ಜರಿ ಸಿದ್ಧತೆಗಳು ನಡೆಯುತ್ತಿವೆ. ನನಗೆ ನೆನಪಿದೆ, ಕೆಲವೇ ದಿನಗಳ ಹಿಂದೆ, ನಾನು ಪ್ರಯಾಗರಾಜ್‌ಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡಿದಾಗ, ಹೆಲಿಕಾಪ್ಟರ್‌ನಿಂದ ಇಡೀ ಕುಂಭ ಜರುಗುವ ಪ್ರದೇಶವನ್ನು ವೀಕ್ಷಿಸಿ ನನಗೆ ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷವಾಯಿತು. ಎಷ್ಟು ಬೃಹದಾದುದು! ಎಷ್ಟು ಸುಂದರ! ಎಂತಹ ಭವ್ಯತೆ!

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಮಹಾಕುಂಭದ ವಿಶೇಷತೆ ಅದರ ಅಗಾಧತೆಯಲ್ಲಿ ಮಾತ್ರ ಅಡಗಿಲ್ಲ. ಅದರ ವೈವಿಧ್ಯತೆಯೂ ಕುಂಭದ ವಿಶೇಷತೆಯಾಗಿದೆ. ಈ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮದಲ್ಲಿ ಕೋಟಿಗಟ್ಟಲೆ ಜನ ಒಗ್ಗೂಡುತ್ತಾರೆ. ಲಕ್ಷಗಟ್ಟಲೆ ಸಂತರು, ಸಾವಿರಾರು ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳು, ನೂರಾರು ಪಂಥಗಳು, ಹಲವು ಅಖಾಡಗಳು, ಎಲ್ಲರೂ ಈ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮದಲ್ಲಿ ಮೇಳೈಸುತ್ತಾರೆ. ಯಾವುದೇ ತಾರತಮ್ಯವಿಲ್ಲ, ಯಾರೂ ದೊಡ್ಡವರಲ್ಲ, ಯಾರೂ ಚಿಕ್ಕವರಲ್ಲ. ಅನೇಕತೆಯಲ್ಲಿ ಏಕತೆಯ ಇಂತಹ ದೃಶ್ಯ ಜಗತ್ತಿನ ಬೇರೆಲ್ಲೂ ಕಾಣಲು ಸಾಧ್ಯವಿಲ್ಲ. ಆದ್ದರಿಂದಲೇ ನಮ್ಮ ಕುಂಭ ಏಕತೆಯ ಮಹಾಕುಂಭವಾಗಿದೆ. ಈ ಬಾರಿಯ ಮಹಾಕುಂಭವು ಏಕತೆಯ ಮಹಾಕುಂಭದ ಮಂತ್ರಕ್ಕೆ ಪುಷ್ಟಿ ನೀಡಲಿದೆ. ನಾವು ಕುಂಭದಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿದಾಗ,  ಏಕತೆಯ ಸಂಕಲ್ಪದೊಂದಿಗೆ ಹಿಂತಿರುಗೋಣ ಎಂದು ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರನ್ನು ಕೇಳಿಕೊಳ್ಳುತ್ತೇನೆ. ಸಮಾಜದಲ್ಲಿನ ಒಡಕು ಮತ್ತು ದ್ವೇಷ ಭಾವನೆಯನ್ನು ತೊಡೆದುಹಾಕುವ ಪ್ರತಿಜ್ಞೆಯನ್ನೂ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳೋಣ. ಕೆಲವೇ ಪದಗಳಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆ ನಾನು ಹೇಳಬಯಸುವುದು …

ಮಹಾಕುಂಭದ ಸಂದೇಶಒಂದಾಗಲಿ ಸಂಪೂರ್ಣ ದೇಶ.

ಮಹಾಕುಂಭದ ಸಂದೇಶಒಂದಾಗಲಿ ಸಂಪೂರ್ಣ ದೇಶ.

ಮತ್ತು ನಾನು ಅದನ್ನು ಬೇರೆ ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆನಾನು ಹೀಗೆ ಹೇಳುತ್ತೇನೆ ...

ಗಂಗೆಯ ನಿರಂತರ ಪ್ರವಾಹದಂತೆ ಇರಲಿ ಒಗ್ಗೂಡಿ ನಮ್ಮ ಸಮಾಜ ಇಬ್ಭಾಗವಾಗದಂತೆ.

ಗಂಗೆಯ ನಿರಂತರ ಪ್ರವಾಹದಂತೆ ಇರಲಿ ಒಗ್ಗೂಡಿ ನಮ್ಮ ಸಮಾಜ ಇಬ್ಭಾಗವಾಗದಂತೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಈ ಬಾರಿ ದೇಶ ಮತ್ತು ಪ್ರಪಂಚದಾದ್ಯಂತದ ಭಕ್ತರು ಪ್ರಯಾಗರಾಜ್‌ನಲ್ಲಿ ಡಿಜಿಟಲ್ ಮಹಾಕುಂಭಕ್ಕೆ ಸಾಕ್ಷಿಯಾಗಲಿದ್ದಾರೆ. ಡಿಜಿಟಲ್ ನ್ಯಾವಿಗೇಷನ್ ಸಹಾಯದಿಂದ, ನೀವು ವಿವಿಧ ಘಾಟ್‌ಗಳು, ದೇವಾಲಯಗಳು, ಸಾಧುಗಳ ಅಖಾಡಾಗಳನ್ನು ತಲುಪುವ ಮಾರ್ಗವು ಲಭಿಸಲಿದೆ. ಈ ನ್ಯಾವಿಗೇಷನ್ ಸಿಸ್ಟಮ್ ನಿಮಗೆ ಪಾರ್ಕಿಂಗ್ ತಲುಪಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ. ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ, ಮಹಾಕುಂಭ ಆಯೋಜನೆಯಲ್ಲಿ ಕೃತಕ ಬುದ್ಧಿಮತ್ತೆಯ ಚಾಟ್‌ಬಾಟ್ ಅನ್ನು ಬಳಸಲಾಗುವುದು. AI ಚಾಟ್‌ಬಾಟ್ ಮೂಲಕ, ಕುಂಭಕ್ಕೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ರೀತಿಯ ಮಾಹಿತಿಯನ್ನು 11 ಭಾರತೀಯ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಪಡೆಯಬಹುದು.  ಈ ಚಾಟ್‌ಬಾಟ್‌ ಗೆ text ಟೈಪ್ ಮಾಡುವ ಮೂಲಕ ಅಥವಾ ಧ್ವನಿ ಮೂಲಕ ಯಾವುದೇ ರೀತಿಯ ಸಹಾಯವನ್ನು ಯಾಚಿಸಬಹುದು. ಕಾರ್ಯಕ್ರಮ ನಡೆಯುವ ಸಂಪೂರ್ಣ ಪ್ರದೇಶವನ್ನು AI ಚಾಲಿತ ಕ್ಯಾಮೆರಾಗಳಿಂದ ಅವರಿಸಲಾಗಿದೆ. ಕುಂಭದಲ್ಲಿ ಯಾರಾದರೂ ತಮ್ಮ ಬಂಧು ಬಳಗದಿಂದ ಬೇರ್ಪಟ್ಟರೆ, ಅವರನ್ನು ಹುಡುಕಲು ಈ ಕ್ಯಾಮೆರಾಗಳು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತವೆ. ಭಕ್ತರು ಡಿಜಿಟಲ್ ಲಾಸ್ಟ್ & ಫೌಂಡ್ ಸೆಂಟರ್ ಸೌಲಭ್ಯವನ್ನೂ ಪಡೆಯಲಿದ್ದಾರೆ. ಸರ್ಕಾರದಿಂದ ಅನುಮೋದಿತ ಪ್ರವಾಸ ಪ್ಯಾಕೇಜ್‌ಗಳು, ವಸತಿ ಮತ್ತು ಹೋಂಸ್ಟೇಗಳ ಬಗ್ಗೆಯೂ ಭಕ್ತರಿಗೆ ಮೊಬೈಲ್‌ನಲ್ಲಿ ಮಾಹಿತಿ ನೀಡಲಾಗುವುದು.  ನೀವೂ ಸಹ ಮಹಾಕುಂಭಕ್ಕೆ ತೆರಳಿದರೆ, ಈ ಸೌಲಭ್ಯಗಳ ಪ್ರಯೋಜನವನ್ನು ಪಡೆದುಕೊಳ್ಳಿ ಮತ್ತು ನಿಮ್ಮ ಸೆಲ್ಫಿಯನ್ನು #EktaKaMahaKumbh ಜೊತೆಗೆ ಅಪ್‌ಲೋಡ್ ಮಾಡಿ.     

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ‘ಮನ್ ಕಿ ಬಾತ್’ ಅಂದರೆ ಎಂಕೆಬಿಯಲ್ಲಿ ಈಗ ನಾವು ಕೆಟಿಬಿಯ ಬಗ್ಗೆ ಮಾತನಾಡೋಣ, ಹಿರಿಯರಲ್ಲಿ, ಅನೇಕರಿಗೆ ಕೆಟಿಬಿ ಬಗ್ಗೆ ತಿಳಿದಿಲ್ಲ. ಆದರೆ ಮಕ್ಕಳನ್ನು ಕೇಳಿ, ಕೆಟಿಬಿ ಅವರಲ್ಲಿ ಬಹಳ ಸೂಪರ್ಹಿಟ್ ಆಗಿದೆ. ಕೆಟಿಬಿ ಎಂದರೆ ಕ್ರಿಶ್, ತ್ರಿಶ್ ಮತ್ತು ಬಾಲ್ಟಿಬಾಯ್. ಮಕ್ಕಳ ಮೆಚ್ಚಿನ ಅನಿಮೇಷನ್ ಸರಣಿಯ ಬಗ್ಗೆ ನಿಮಗೆ ತಿಳಿದಿರಬಹುದು, ಅದರ ಹೆಸರು ಕೆಟಿಬಿ – ಭಾರತ್ ಹೈ ಹಮ್ ಮತ್ತು ಈಗ ಅದರ ಎರಡನೇ ಸೀಸನ್ ಕೂಡ ಬಂದಿದೆ. ಈ ಮೂರು ಅನಿಮೇಷನ್ ಪಾತ್ರಗಳು ಬೆಳಕಿಗೆ ಬಾರದ ಭಾರತೀಯ ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯ ಹೋರಾಟದ ನಾಯಕರು ಮತ್ತು ನಾಯಕಿಯರ ಬಗ್ಗೆ ನಮಗೆ ಹೇಳುತ್ತವೆ. ಇತ್ತೀಚಿಗೆ ಗೋವಾದ ಇಂಟರ್ನ್ಯಾಷನಲ್ ಫಿಲ್ಮ್ ಫೆಸ್ಟಿವಲ್ ಆಫ್ ಇಂಡಿಯಾದಲ್ಲಿ ವಿಶೇಷ ಶೈಲಿಯಲ್ಲಿ ಅದರ ಸೀಸನ್-2 ನ್ನು ಪ್ರಾರಂಭಿಸಲಾಯಿತು. ಈ ಸರಣಿಯು ಹಲವು ಭಾರತೀಯ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೆ ವಿದೇಶಿ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿಯೂ ಪ್ರಸಾರವಾಗುತ್ತದೆ ಎಂಬುದು ಅತ್ಯಂತ ಅದ್ಭುತ ಸಂಗತಿ. ಇದನ್ನು ದೂರದರ್ಶನ ಮತ್ತು ಇತರ OTT ಪ್ಲಾಟ್‌ಫಾರ್ಮ್‌ಗಳಲ್ಲಿ ನೋಡಬಹುದು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಮ್ಮ ಅನಿಮೇಷನ್ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು, ಸಾಮಾನ್ಯ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು ಮತ್ತು ಟಿವಿ ಧಾರಾವಾಹಿಗಳ ಜನಪ್ರಿಯತೆಯು ಸೃಜನಶೀಲ ಉದ್ಯಮದಲ್ಲಿ ಭಾರತದ ಅದೆಷ್ಟು ಸಾಮರ್ಥ್ಯ ಹೊಂದಿದೆ ಎಂಬುದನ್ನು ತೋರಿಸುತ್ತದೆ. ಈ ಉದ್ಯಮವು ದೇಶದ ಪ್ರಗತಿಯಲ್ಲಿ ದೊಡ್ಡ ಕೊಡುಗೆಯನ್ನು ನೀಡುತ್ತಿದೆ ಅಲ್ಲದೆ ನಮ್ಮ ಆರ್ಥಿಕತೆಯನ್ನು ಮತ್ತಷ್ಟು ಎತ್ತರಕ್ಕೆ ಕೊಂಡೊಯ್ಯುತ್ತಿದೆ. ನಮ್ಮ ಚಲನಚಿತ್ರ ಮತ್ತು ಮನರಂಜನಾ ಉದ್ಯಮವು ತುಂಬಾ ದೊಡ್ಡದಾಗಿದೆ. ದೇಶದ ಹಲವು ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ತಯಾರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು creative content ಸಿದ್ಧಗೊಳಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ. ನಾನು ನಮ್ಮ ಚಲನಚಿತ್ರ ಮತ್ತು ಮನರಂಜನಾ ಉದ್ಯಮವನ್ನು ಅಭಿನಂದಿಸುತ್ತೇನೆ ಏಕೆಂದರೆ ಅದು ‘ಏಕ್ ಭಾರತ್ – ಶ್ರೇಷ್ಠ ಭಾರತ’ ಎಂಬ ಭಾವನೆಗೆ ಪುಷ್ಟಿ ನೀಡುತ್ತದೆ.   

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, 2024ರಲ್ಲಿ ನಾವು ಚಿತ್ರರಂಗದ ಅನೇಕ ಮಹಾನ್ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳ 100 ನೇ ಜನ್ಮ ಜಯಂತಿಯನ್ನು ಆಚರಿಸುತ್ತಿದ್ದೇವೆ. ಈ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳು ಭಾರತೀಯ ಚಿತ್ರರಂಗಕ್ಕೆ ವಿಶ್ವ ಮಟ್ಟದಲ್ಲಿ ಮನ್ನಣೆ ತಂದು ಕೊಟ್ಟರು. ರಾಜ್ ಕಪೂರ್ ಅವರು ಭಾರತದ ಸಾಫ್ಟ್ ಪವರ್ ಅನ್ನು ಚಲನಚಿತ್ರಗಳ ಮೂಲಕ ಜಗತ್ತಿಗೆ ಪರಿಚಯಿಸಿದರು. ರಫಿ ಸಾಹಬ್ ಅವರ ಧ್ವನಿಯಲ್ಲಿ ಎಂಥ ಮಾಂತ್ರಿಕತೆ ಇತ್ತೆಂದರೆ, ಎಲ್ಲರ ಹೃದಯವನ್ನು ಮುಟ್ಟುತ್ತಿತ್ತು. ಅವರ ಧ್ವನಿ ಅದ್ಭುತವಾಗಿತ್ತು. ಭಕ್ತಿಗೀತೆಗಳಾಗಲಿ, ಪ್ರಣಯ ಗೀತೆಗಳಾಗಲಿ, ನೋವಿನ ಗೀತೆಗಳಾಗಲಿ, ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಭಾವಕ್ಕೆ ತಮ್ಮ ಕಂಠದಿಂದ ಅವರು ಜೀವ ತುಂಬುತ್ತಿದ್ದರು. ಇಂದಿಗೂ ಯುವ ಪೀಳಿಗೆ ಅವರ ಹಾಡುಗಳನ್ನು ಅಷ್ಟೇ ಪ್ರೀತಿಯಿಂದ ಕೇಳುತ್ತಾರೆ ಎಂದರೆ ಈ ಮೂಲಕ ಆ ಕಲಾವಿದನ ಹಿರಿಮೆಯನ್ನು ಅಳೆಯಬಹುದಾಗಿದೆ. ಇದೆ ಅಲ್ಲವೇ ಕಾಲಾತೀತವಾದ ಕಲೆಯಾ ಗುರುತು. ಅಕ್ಕಿನೇನಿ ನಾಗೇಶ್ವರ ರಾವ್ ಅವರು ತೆಲುಗು ಚಿತ್ರರಂಗವನ್ನು ಹೊಸ ಎತ್ತರಕ್ಕೆ ಕೊಂಡೊಯ್ದಿದ್ದಾರೆ. ಅವರ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು ಭಾರತೀಯ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳು ಮತ್ತು ಮೌಲ್ಯಗಳನ್ನು ಚೆನ್ನಾಗಿ ಪ್ರಸ್ತುತಪಡಿವೆ. ತಪನ್ ಸಿನ್ಹಾ ಅವರ ಚಿತ್ರಗಳು ಸಮಾಜಕ್ಕೆ ಹೊಸ ದೃಷ್ಟಿಕೋನ ನೀಡಿದವು. ಅವರ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು ಸಾಮಾಜಿಕ ಪ್ರಜ್ಞೆ ಮತ್ತು ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಏಕತೆಯ ಸಂದೇಶವನ್ನು ಒಳಗೊಂಡಿದ್ದವು. ಈ ಸೆಲೆಬ್ರಿಟಿಗಳ ಜೀವನ ನಮ್ಮ ಇಡೀ ಚಿತ್ರರಂಗಕ್ಕೆ ಸ್ಪೂರ್ತಿದಾಯಕ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಾನು ನಿಮಗೆ ಇನ್ನೊಂದು ಸಂತಸದಾ  ಸುದ್ದಿಯನ್ನು ನೀಡಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಭಾರತದ ಸೃಜನಶೀಲ ಪ್ರತಿಭೆಯನ್ನು ವಿಶ್ವದೆದುರು ಪ್ರದರ್ಶಿಸಲು ಒಂದು ದೊಡ್ಡ ಅವಕಾಶ ಒದಗಿ ಬಂದಿದೆ. ಮುಂದಿನ ವರ್ಷ, ವಿಶ್ವ ಆಡಿಯೋ ವಿಷುಯಲ್ ಎಂಟರ್‌ಟೈನ್‌ಮೆಂಟ್ ಶೃಂಗಸಭೆ ಅಂದರೆ ವೇವ್ಸ್ ಶೃಂಗಸಭೆಯನ್ನು ನಮ್ಮ ದೇಶದಲ್ಲಿ ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ ಆಯೋಜಿಸಲಾಗುವುದು. ವಿಶ್ವದ ಆರ್ಥಿಕ ಕ್ಷೇತ್ರದ ದಿಗ್ಗಜರು ಒಗ್ಗೂಡುವ ದಾವೋಸ್ ಬಗ್ಗೆ ನೀವೆಲ್ಲರೂ ಕೇಳಿರಬಹುದು. ಅದೇ ರೀತಿ, ವೇವ್ಸ್ ಶೃಂಗಸಭೆಯಲ್ಲಿ, ವಿಶ್ವದ ಮಾಧ್ಯಮ ಮತ್ತು ಮನರಂಜನಾ ಉದ್ಯಮದ ದಿಗ್ಗಜರು ಮತ್ತು ಸೃಜನಶೀಲ ಪ್ರಪಂಚದ ಜನರು ಭಾರತಕ್ಕೆ ಬರುತ್ತಾರೆ. ಭಾರತವನ್ನು ಜಾಗತಿಕ content creation ಕೇಂದ್ರವನ್ನಾಗಿ ಮಾಡುವ ನಿಟ್ಟಿನಲ್ಲಿ ಈ ಶೃಂಗಸಭೆಯು ಪ್ರಮುಖ ಹೆಜ್ಜೆಯಾಗಿದೆ. ಈ ಶೃಂಗಸಭೆಯ ತಯಾರಿಯಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ದೇಶದ ಯುವ creator ಗಳು ಕೂಡಾ ಸಂಪೂರ್ಣ ಉತ್ಸಾಹದಿಂದ ಭಾಗವಹಿಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ ಎಂದು ಹೇಳಲು ನನಗೆ ಹೆಮ್ಮೆಯಾಗುತ್ತಿದೆ. ನಾವು 5 ಟ್ರಿಲಿಯನ್ ಡಾಲರ್ ಆರ್ಥಿಕತೆಯತ್ತ ಸಾಗುತ್ತಿರುವಾಗ, ನಮ್ಮ creator  economy ಹೊಸ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ತುಂಬುತ್ತಿದೆ. ನೀವು ಯುವ creators ಆಗಿರಬಹುದು ಅಥವಾ ಪ್ರಸಿದ್ಧ ಕಲಾವಿದರಾಗಿರಬಹುದು, ಬಾಲಿವುಡ್ ಅಥವಾ ಪ್ರಾದೇಶಿಕ ಸಿನಿಮಾ ಕ್ಷೇತ್ರದವರಾಗಿರಬಹುದು, ಟಿವಿ ಉದ್ಯಮದಲ್ಲಿ ವೃತ್ತಿಪರರು ಅಥವಾ ಅನಿಮೇಷನ್, ಗೇಮಿಂಗ್ ಅಥವಾ ಮನರಂಜನಾ ತಂತ್ರಜ್ಞಾನದಲ್ಲಿ ಪರಿಣಿತರಾಗಿರಬಹುದು , ನೀವೆಲ್ಲರೂ ವೇವ್ಸ್ ಶೃಂಗಸಭೆಯಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿ ಎಂದು ನಾನು ಭಾರತದ ಸಂಪೂರ್ಣ ಮನರಂಜನೆ ಮತ್ತು ಸೃಜನಶೀಲ ಉದ್ಯಮವನ್ನು ಆಗ್ರಹಿಸುತ್ತೇನೆ .

ನನ್ನ ಪ್ರಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳೇ, ಭಾರತೀಯ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯ ಪ್ರಕಾಶ ಇಂದು ಪ್ರಪಂಚದ ಮೂಲೆ ಮೂಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಹೇಗೆ ಹರಡುತ್ತಿದೆ ಎಂಬುದು ನಿಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ತಿಳಿದಿದೆ. ನಮ್ಮ ಸಾಂಸ್ಕೃತಿಕ ಪರಂಪರೆಯ ಜಾಗತಿಕ ವಿಸ್ತರಣೆಗೆ ಸಾಕ್ಷಿಯಾಗಿರುವ ಮೂರು ಖಂಡಗಳಿಂದ ಅಂತಹ ಪ್ರಯತ್ನಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಇಂದು ನಾನು ನಿಮಗೆ ಹೇಳಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಇವೆಲ್ಲವೂ ಒಂದಕ್ಕೊಂದು ಮೈಲುಗಟ್ಟಲೆ ದೂರದಲ್ಲಿದ್ದರೂ ಭಾರತದ  ಬಗ್ಗೆ ತಿಳಿದುಕೊಳ್ಳುವ ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯಿಂದ ಕಲಿಯುವ ಅವರ ಬಯಕೆ ಒಂದೇ ರೀತಿಯದ್ದಾಗಿದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ವರ್ಣಚಿತ್ರಗಳ ಪ್ರಪಂಚ ಎಷ್ಟು ಬಣ್ಣಗಳಿಂದ ತುಂಬಿರುತ್ತದೆಯೋ ಅಷ್ಟೇ ಸುಂದರವಾಗಿರುತ್ತದೆ. ಟಿವಿ ಮೂಲಕ ‘ಮನದ ಮಾತು’ ವೀಕ್ಷಿಸುತ್ತಿರುವ ಸ್ನೇಹಿತರು ಈಗ ಟಿವಿಯಲ್ಲಿ ಕೆಲವು ವರ್ಣಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ವೀಕ್ಷಿಸಬಹುದು. ಈ ವರ್ಣಚಿತ್ರಗಳಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ದೇವ ದೇವತೆಗಳು, ನೃತ್ಯ ಕಲೆಗಳು ಮತ್ತು ಶ್ರೇಷ್ಠ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳನ್ನು ನೋಡಿ ನಿಮಗೆ ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷವಾಗಬಹುದು. ಇವುಗಳಲ್ಲಿ ನೀವು ಭಾರತದಲ್ಲಿ ಕಂಡುಬರುವ ಪ್ರಾಣಿ ಪಕ್ಷಿಗಳಲ್ಲದೆ ಇನ್ನು ಬಹಳಷ್ಟು ವಿಷಯಗಳನ್ನು ನೋಡಬಹುದು. ಇವುಗಳಲ್ಲಿ ತಾಜ್ ಮಹಲ್‌ನ ಭವ್ಯವಾದ ವರ್ಣಚಿತ್ರವೂ ಸೇರಿದೆ, ಇದನ್ನು 13 ವರ್ಷದ ಬಾಲಕಿ ರಚಿಸಿದ್ದಾಳೆ. ಈ ಅಂಗವಿಕಲ ಬಾಲಕಿ ತನ್ನ ಬಾಯಿಯಿಂದಲೇ ಈ ಪ್ಯಾಟಿಂಗ್ ಅನ್ನು ಸಿದ್ಧಪಡಿಸಿದ್ದಾಳೆ ಎಂದು ತಿಳಿದು ನಿಮಗೆ ಆಶ್ಚರ್ಯವಾಗಬಹುದು. ಅತ್ಯಂತ ಕುತೂಹಲಕಾರಿ ಸಂಗತಿಯೆಂದರೆ, ಈ ಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ನಿರ್ಮಿಸಿದವರು ಭಾರತದವರಲ್ಲ ಹೊರತು ಈಜಿಪ್ಟ್‌ನ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು. ಕೆಲವೇ ವಾರಗಳ ಹಿಂದೆ ಈಜಿಪ್ಟ್ ನ ಸುಮಾರು 23 ಸಾವಿರ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು ಚಿತ್ರಕಲಾ ಸ್ಪರ್ಧೆಯಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿದ್ದರು. ಅಲ್ಲಿ ಅವರು ಭಾರತದ ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಮತ್ತು ಉಭಯ ದೇಶಗಳ ಐತಿಹಾಸಿಕ ಸಂಬಂಧಗಳನ್ನು ಬಿಂಬಿಸುವ ಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ಬರೆಯಬೇಕಿತ್ತು. ಈ ಸ್ಪರ್ಧೆಯಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿದ ಎಲ್ಲಾ ಯುವಕರನ್ನು ನಾನು ಅಭಿನಂದಿಸುತ್ತೇನೆ. ಅವರ ಸೃಜನಶೀಲತೆ ಬಗ್ಗೆ  ಎಷ್ಟು ಹೊಗಳಿದರೂ ಸಾಲದು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಪರಾಗ್ವೆ, ದಕ್ಷಿಣ ಅಮೆರಿಕಾದಲ್ಲಿರುವ ಒಂದು ದೇಶ. ಅಲ್ಲಿ ವಾಸಿಸುವ ಭಾರತೀಯರ ಸಂಖ್ಯೆ ಸಾವಿರದಷ್ಟಿರಬಹುದು. ಪರಾಗ್ವೆಯಲ್ಲಿ ಒಂದು ಅದ್ಭುತ ಪ್ರಯತ್ನ ಮಾಡಲಾಗುತ್ತಿದೆ. ಎರಿಕಾ ಹ್ಯೂಬರ್, ಅಲ್ಲಿನ ಭಾರತೀಯ ರಾಯಭಾರ ಕಚೇರಿಯಲ್ಲಿ ಉಚಿತವಾಗಿ ಆಯುರ್ವೇದ ಸಮಾಲೋಚನೆ ಕೈಗೊಳ್ಳುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಆಯುರ್ವೇದ ಸಲಹೆ ಪಡೆಯಲು ಅವರ ಬಳಿ ಹೆಚ್ಚಿನ ಸಂಖ್ಯೆಯಲ್ಲಿ ಸ್ಥಳೀಯರು ಆಗಮಿಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಎರಿಕಾ ಹ್ಯೂಬರ್ ಎಂಜಿನಿಯರಿಂಗ್ ವ್ಯಾಸಂಗ ಮಾಡಿದ್ದರೂ, ಅವರಿಗೆ ಆಯುರ್ವೇದದತ್ತ ಹೆಚ್ಚು ಒಲವು. ಆಯುರ್ವೇದಕ್ಕೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ ಕೋರ್ಸ್‌ಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದ್ದ ಅವರು ಕಾಲಕ್ರಮೇಣ ಅದರಲ್ಲಿ ಪ್ರಾವೀಣ್ಯತೆ ಸಾಧಿಸಿದ್ದಾರೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಪ್ರಪಂಚದ ಅತ್ಯಂತ ಪುರಾತನ ಭಾಷೆ ತಮಿಳು ಮತ್ತು ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಭಾರತೀಯನಿಗೂ ಇದು ಹೆಮ್ಮೆಯ ವಿಷಯವಾಗಿದೆ. ಪ್ರಪಂಚದಾದ್ಯಂತದ ದೇಶಗಳಲ್ಲಿ ಇದನ್ನು ಕಲಿಯುವವರ ಸಂಖ್ಯೆ ನಿರಂತರವಾಗಿ ಹೆಚ್ಚುತ್ತಿದೆ. ಕಳೆದ ತಿಂಗಳ ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ, ಫಿಜಿಯಲ್ಲಿ ಭಾರತ ಸರ್ಕಾರದ ಸಹಾಯದಿಂದ ತಮಿಳು ಬೋಧನಾ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮ ಪ್ರಾರಂಭವಾಯಿತು. ಕಳೆದ 80 ವರ್ಷಗಳಲ್ಲಿ ತಮಿಳು ಭಾಷೆಯಲ್ಲಿ ತರಬೇತಿ ಪಡೆದ ಶಿಕ್ಷಕರು ಫಿಜಿಯಲ್ಲಿ ಈ ಭಾಷೆಯನ್ನು ಕಲಿಸುತ್ತಿರುವುದು ಪ್ರಥಮ ಬಾರಿಯಾಗಿದೆ. ಇಂದು ಫಿಜಿಯನ್ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು ತಮಿಳು ಭಾಷೆ ಮತ್ತು ಸಂಸ್ಕೃತಿಯನ್ನು ಕಲಿಯಲು ಉತ್ಸುಕರಾಗಿರುವುದ್ದನ್ನು ಅರಿತು ನನಗೆ ಸಂತೋಷವಾಯಿತು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಈ ವಿಷಯಗಳು, ಈ ಘಟನೆಗಳು ಕೇವಲ ಯಶಸ್ಸಿನ ಕಥೆಗಳು ಮಾತ್ರವಲ್ಲ, ನಮ್ಮ ಸಾಂಸ್ಕೃತಿಕ ಪರಂಪರೆಯ ಗಾಥೆಗಳೂ ಆಗಿವೆ . ಈ ಉದಾಹರಣೆಗಳು ನಾವು ಹೆಮ್ಮೆ ಪಡುವಂತೆ ಮಾಡುತ್ತವೆ. ಕಲೆಯಿಂದ ಆಯುರ್ವೇದದವರೆಗೆ ಮತ್ತು ಭಾಷೆಯಿಂದ ಸಂಗೀತದವರೆಗೆ, ಭಾರತದಲ್ಲಿಯಾ ಅದೆಷ್ಟೋ ವಿಷಯಗಳು ವಿಶ್ವಾದ್ಯಂತ ಪ್ರಭಾವ ಬೀರುತ್ತಿವೆ. ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಚಳಿಗಾಲದ ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ದೇಶಾದ್ಯಂತ ಕ್ರೀಡೆ ಮತ್ತು ಸದೃಢತೆ ಕುರಿತಂತೆ ಅನೇಕ ಚಟುವಟಿಕೆಗಳು ನಡೆಯುತ್ತಿವೆ. ಜನರು ಫಿಟ್ನೆಸ್ ಅನ್ನು ತಮ್ಮ ದಿನಚರಿಯ ಭಾಗವನ್ನಾಗಿಸಿಕೊಂಡಿರುವುದು ನನಗೆ ಸಂತಸ ತಂದಿದೆ. ಕಾಶ್ಮೀರದಲ್ಲಿ ಸ್ಕೀಯಿಂಗ್ ನಿಂದ ಹಿಡಿದು ಗುಜರಾತ್ ನಲ್ಲಿ ಗಾಳಿಪಟ ಸ್ಪರ್ಧೆಯವರೆಗೂ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ವಿಧದ ಕ್ರೀಡೆಯಲ್ಲಿ ಉತ್ಸಾಹ ಕಂಡು ಬರುತ್ತಿದೆ. #SundayOnCycle ಮತ್ತು #CyclingTuesday ನಂತಹ ಅಭಿಯಾನಗಳಿಂದ ಸೈಕ್ಲಿಂಗ್ ಗೆ ಸಾಕಷ್ಟು ಪ್ರಚಾರ  ದೊರೆಯುತ್ತಿದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಾನು ಈಗ ನಿಮಗೆ ವಿಶೇಷವಾದ ವಿಷಯವೊಂದನ್ನು ಹೇಳಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಇದು ನಮ್ಮ ದೇಶದಲ್ಲಿ ಉಂಟಾಗುತ್ತಿರುವ ಬದಲಾವಣೆ ಮತ್ತು ಯುವಜನತೆಯ ಉತ್ಸಾಹದ ಸಂಕೇತವಾಗಿದೆ.  ನಮ್ಮ ಬಸ್ತರ್ ನಲ್ಲಿ ಒಂದು ವಿಶಿಷ್ಠ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ಆರಂಭವಾಗಿದೆ ಎಂಬುದು ನಿಮಗೆ ಗೊತ್ತೇ! ಹೌದು, ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ ಬಸ್ತರ್ ನಲ್ಲಿ ನಡೆದಿರುವ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ನಿಂದ ಅಲ್ಲಿ ಹೊಸ ಕ್ರಾಂತಿ ಉದಯವಾಗುತ್ತಿದೆ. ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ಸ್ ನ ಕನಸು ನನಸಾಗುತ್ತಿರುವುದು ನನಗಂತೂ ಬಹಳ ಸಂತಸದ ವಿಷಯವಾಗಿದೆ. ಒಂದು ಕಾಲದಲ್ಲಿ ಮಾವೋವಾದಿಗಳ ಹಿಂಸಾಚಾರಕ್ಕೆ ಸಾಕ್ಷಿಯಾಗಿದ್ದ ಈ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ ಈಗ ಒಲಿಂಪಿಕ್ಸ್ ನಡೆದಿರುವುದು ನಿಮಗೆ ಕೂಡಾ ಸಂತಸವೆನಿಸುತ್ತದೆ.  ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ಸ್ ನ ಅದೃಷ್ಟರೂಪಿ ಬೊಂಬೆ – ‘ಕಾಡೆಮ್ಮೆ’ ಮತ್ತು ‘ಗುಡ್ಡಗಾಡಿನ ಮೈನಾ ಆಗಿದೆ. ಇದರಲ್ಲಿ ಬಸ್ತರ್ ನ ಶ್ರೀಮಂತ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯ ನೋಟ ಕಂಡುಬರುತ್ತದೆ. ಈ ಬಸ್ತರ್ ಕ್ರೀಡಾ ಮಹಾಕುಂಭದ ಘೋಷ ವಾಕ್ಯ ಇದಾಗಿದೆ–

ಕರಸಾಯ ತಾ ಬಸ್ತರ್ ಬರಸಾಯೇ ತಾ ಬಸ್ತರ್

ಅಂದರೆಆಡುತ್ತದೆ ಬಸ್ತರ್ – ಗೆಲ್ಲುತ್ತದೆ ಬಸ್ತರ್ |

ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ನಲ್ಲಿ 7 ಜಿಲ್ಲೆಗಳ ಒಂದು ಲಕ್ಷ 65 ಸಾವಿರ ಆಟಗಾರರು ಪಾಲ್ಗೊಂಡಿದ್ದಾರೆ. ಇದು ಕೇವಲ ಅಂಕಿ-ಅಂಶ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ – ಇದು ನಮ್ಮ ಯುವಜನತೆಯ ಸಂಕಲ್ಪದ – ಬದ್ಧತೆಯ ಕಥೆಯಾಗಿದೆ. ಅಥ್ಲೆಟಿಕ್ಸ್, ಬಿಲ್ಲುಗಾರಿಕೆ, ಬ್ಯಾಡ್ಮಿಂಟನ್, ಫುಟ್ಬಾಲ್, ಹಾಕಿ, ವೈಟ್ ಲಿಫ್ಟಿಂಗ್, ಕರಾಟೆ, ಕಬಡ್ಡಿ, ಖೋ-ಖೋ, ಮತ್ತು ವಾಲೀಬಾಲ್ – ಹೀಗೆ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಆಟದಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ಯುವಜನತೆ ತಮ್ಮ ಪ್ರತಿಭೆಯನ್ನು ಪ್ರದರ್ಶಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಕಾರಿ ಕಶ್ಯಪ್ ಅವರ ಕತೆಯು ನನ್ನಲ್ಲಿ ಬಹಳ ಸ್ಫೂರ್ತಿ ತುಂಬುತ್ತದೆ. ಒಂದು ಸಣ್ಣ ಗ್ರಾಮದಿಂದ ಬಂದಿರುವ ಕಾರೀ ಅವರು ಬಿಲ್ಲುಗಾರಿಕೆಯಲ್ಲಿ ಬೆಳ್ಳಿ ಪದಕ ವಿಜೇತರಾಗಿದ್ದಾರೆ. ಅವರು ಹೀಗೆ ಹೇಳುತ್ತಾರೆ – “ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ನಮಗೆ ಕೇವಲ ಆಟದ ಮೈದಾನ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೇ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಮುಂದೆ ಸಾಗುವ ಅವಕಾಶವನ್ನೂ ನೀಡಿದೆ ಸುಕ್ಮಾ ದ ಪಾಯಲ್ ಕವಾಸೀ ಅವರ ಮಾತುಗಳು ಕೂಡಾ ಬಹಳ ಸ್ಫೂರ್ತಿದಾಯಕವಾಗಿದೆ. Javelin ಎಸೆತದಲ್ಲಿ ಚಿನ್ನದ ಪದಕ ವಿಜೇತೆ ಪಾಯಲ್ ಹೀಗೆನ್ನುತ್ತಾರೆ – “ಶಿಸ್ತು ಮತ್ತು ಕಠಿಣ ಪರಿಶ್ರಮದಿಂದ ಯಾವುದೇ ಗುರಿ ಸಾಧನೆ ಅಸಂಭವವಲ್ಲ” ಸುಕ್ಮಾದ ದೋರನ್ ಪಾಲ್ ನ ಪುನೆಮ್ ಸನ್ನಾ ಅವರ ಕತೆಯಂತೂ ನವಭಾರತದ ಪ್ರೇರಣಾದಾಯಕ ಕತೆಯಾಗಿದೆ. ಒಂದೊಮ್ಮೆ ನಕ್ಸಲರ ಪ್ರಭಾವಕ್ಕೆ ಒಳಗಾಗಿದ್ದ ಪುನೇಮ್ ಅವರು ಇಂದು ಗಾಲಿಕುರ್ಚಿಯಲ್ಲಿ ಓಡಿ ಪದಕ ಗೆಲ್ಲುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಅವರ ಧೈರ್ಯ ಮತ್ತು ಸಾಹಸ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರಿಗೂ ಸ್ಫೂರ್ತಿದಾಯಕವಾಗಿದೆ. ಕೋಡ್ ಗಾಂವ್ ನ ಬಿಲ್ಲುಗಾರ್ತಿ ರಂಜು ಸೋರಿ ಅವರನ್ನು ಬಸ್ತರ್ ಯೂತ್ ಐಕಾನ್ ಎಂದು ಆಯ್ಕೆ ಮಾಡಲಾಯಿತು. ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ದೂರ ದೂರದ ಪ್ರದೇಶಗಳ ಯುವಜನತೆಗೆ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ವೇದಿಕೆ ತಲುಪುವ ಅವಕಾಶವನ್ನು ನೀಡುತ್ತಿದೆ ಎನ್ನುವುದು ಅವರು ಭಾವಿಸುತ್ತಾರೆ.   

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಒಲಿಂಪಿಕ್ ಕೇವಲ ಒಂದು ಕ್ರೀಡಾ ಆಯೋಜನೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ. ಇದು ಅಭಿವೃದ್ಧಿ ಮತ್ತು ಕ್ರೀಡೆಯ ಸಂಗಮದ ವೇದಿಕೆಯಾಗಿದೆ. ಇಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ಯುವಜನತೆ ತಮ್ಮ ಪ್ರತಿಭೆಯನ್ನು ಮೆರೆಯುತ್ತಿದ್ದಾರೆ ಮತ್ತು ಒಂದು ನವ ಭಾರತ ನಿರ್ಮಾಣ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದಾರೆ.

ನೀವಿರುವ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ ಇಂತಹ ಕ್ರೀಡಾಕೂಟಗಳಿಗೆ ಪ್ರೋತ್ಸಾಹಿಸಿ.

ಆಡುತ್ತದೆ ಭಾರತ – ಗೆಲ್ಲುತ್ತದೆ ಭಾರತದೊಂದಿಗೆ ನಿಮ್ಮ ಪ್ರದೇಶದ ಕ್ರೀಡಾ ಪ್ರತಿಭೆಗಳ ಗಾಥೆಗಳನ್ನು ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳಿ.

ಸ್ಥಳೀಯ ಕ್ರೀಡಾ ಪ್ರತಿಭೆಗಳಿಗೆ ಮುನ್ನಡೆಯುವ ಅವಕಾಶ ನೀಡಿ ಎಂದು ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರಲ್ಲಿ ಮನವಿ ಮಾಡುತ್ತೇನೆ.

ನೆನಪಿಡಿ, ಕ್ರೀಡೆಗಳಿಂದ ಕೇವಲ ದೈಹಿಕ ಬೆಳವಣಿಗೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೇ, ಇದು ಕ್ರೀಡಾಕಾರ ಮನೋಭಾವದೊಂದಿಗೆ ಸಮಾಜವನ್ನು ಜೋಡಿಸುವ ಒಂದು ಪ್ರಬಲ ಮಾಧ್ಯಮವೂ ಆಗಿದೆ. ಚೆನ್ನಾಗಿ ಆಟವಾಗಿ – ಚೆನ್ನಾಗಿ ಆಟವಾಡಿ.

ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳೇ, ಭಾರತದ ಎರಡು ದೊಡ್ಡ ಸಾಧನೆಗಳು ಇಂದು ವಿಶ್ವದ ಗಮನವನ್ನು ಸೆಳೆಯುತ್ತಿವೆ. ಇದನ್ನು  ಕೇಳಿದರೆ ನೀವು ಕೂಡಾ ಹೆಮ್ಮೆ ಪಡುತ್ತೀರಿ - ಈ ಎರಡೂ ಯಶಸ್ಸುಗಳು  ಸಾಧನೆಯಾಗಿರುವುದು ಆರೋಗ್ಯ ಕ್ಷೇತ್ರದಲ್ಲಿ.  ಮೊದಲ ಯಶಸ್ತು ದೊರೆತಿರುವುದು ಮಲೇರಿಯಾ ವಿರುದ್ಧದ ಹೋರಾಟದಲ್ಲಿ. ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗವು ನಾಲ್ಕು ಸಾವಿರ ವರ್ಷಗಳಿಂದ ಮಾನವಕುಲಕ್ಕೆ ಒಂದು ದೊಡ್ಡ ಸವಾಲಾಗಿದೆ. ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯದ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಕೂಡಾ ಇದು ನಮ್ಮ ಆರೋಗ್ಯ ಸಂಬಂಧಿತ ಸವಾಲುಗಳ ಪೈಕಿ ಒಂದೆನಿಸಿತ್ತು. ಒಂದು ತಿಂಗಳ ಶಿಶುವಿನಿಂದ ಹಿಡಿದು ಐದು ವರ್ಷ ವಯಸ್ಸಿನ ಮಕ್ಕಳ ಪ್ರಾಣ ಹರಣ ಮಾಡುವ ಎಲ್ಲಾ ಸಾಂಕ್ರಾಮಿಕ ರೋಗಗಳ ಪೈಕಿ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗಕ್ಕೆ ಮೂರನೇ ಸ್ಥಾನ. ಇಂದು, ದೇಶವಾಸಿಗಳೆಲ್ಲಾ ಒಗ್ಗಟ್ಟಾಗಿ ಈ ಸವಾಲನ್ನು ಎದುರಿಸಿದ್ದಾರೆಂದು ನಾನು ಸಂತೋಷದಿಂದ ಹೇಳಬಲ್ಲೆ. ವಿಶ್ವ ಆರೋಗ್ಯ ಸಂಘಟನೆ -WHO ವರದಿ ಹೀಗೆನ್ನುತ್ತದೆ “ಭಾರತದಲ್ಲಿ 2015 ರಿಂದ 2023 ರ ಮಧ್ಯೆ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗ ಮತ್ತು ಅದರಿಂದ ಸಂಭವಿಸುವ ಸಾವುಗಳ ಸಂಖ್ಯೆಯಲ್ಲಿ ಶೇಕಡಾ 80 ರಷ್ಟು ಕಡಿಮೆಯಾಗಿದೆ” ಇದು ಒಂದು ಸಣ್ಣ ಸಾಧನೆಯಲ್ಲ. ಅತ್ಯಂತ ಸಂತಸದ ವಿಷಯವೆಂದರೆ, ಈ ಯಶಸ್ಸು ಜನರ ಭಾಗೀದಾರಿಯಿಂದ ದೊರೆತಿದೆ. ಭಾರತ ಮೂಲೆ ಮೂಲೆಯಿಂದ, ಪ್ರತಿ ಜಿಲ್ಲೆಯಿಂದ, ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರೂ ಆ ಅಭಿಯಾನದ ಭಾಗವಾಗಿದ್ದಾರೆ. ಅಸ್ಸಾಂನಲ್ಲಿ ಜೋರ್ ಹಾಟ್ ನ ಚಹಾ ತೋಟಗಳಲ್ಲಿ ನಾಲ್ಕು ವರ್ಷಗಳ ಹಿಂದಿನವರೆಗೂ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗ ಜನರ ಚಿಂತೆಯ ಬಹು ದೊಡ್ಡ ಕಾರಣವಾಗಿತ್ತು. ಆದರೆ ಅದನ್ನು ನಿರ್ಮೂಲಸಲು ಚಹಾ ತೋಟದಲ್ಲಿ ವಾಸಿಸುವ ಜನರು ಒಗ್ಗಟ್ಟಿನಿಂದ ಮುಂದೆ ಬಂದಾಗ, ಇದರಲ್ಲಿ ಸಾಕಷ್ಟು ಯಶಸ್ಸು ದೊರೆಯಲಾರಂಭಿಸಿತು. ಅವರು ತಮ್ಮ ಈ ಪ್ರಯತ್ನದಲ್ಲಿ ತಂತ್ರಜ್ಞಾನದ ಜೊತೆಗೆ ಸಾಮಾಜಿಕ ಮಾಧ್ಯಮವನ್ನು ಬಹಳಷ್ಟು ಉಪಯೋಗಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಇದೇ ರೀತಿ ಹರಿಯಾಣಾದ ಕುರುಕ್ಷೇತ್ರ ಜಿಲ್ಲೆಯು ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗದ ನಿಯಂತ್ರಣಕ್ಕಾಗಿ ಉತ್ತಮ ಮಾದರಿಯನ್ನು ಪ್ರಸ್ತುತಪಡಿಸಿದೆ. ಇಲ್ಲಿ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗದ ಮೇಲೆ ನಿಗಾ ಇರಿಸುವುದಕ್ಕೆ ಜನರ ಸಹಭಾಗಿತ್ವ ಸಾಕಷ್ಟು ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿದೆ. ಬೀದಿ ನಾಟಕಗಳು ಮತ್ತು ರೇಡಿಯೋ ಮೂಲಕ ಇಂತಹ ಸಂದೇಶಗಳಿಗೆ ಒತ್ತು ನೀಡಲಾಯಿತು. ಸೊಳ್ಳೆಗಳ ಸಂತಾನೋತ್ಪತ್ತಿ ಕಡಿಮೆ ಮಾಡುವಲ್ಲಿ ಇವು ಸಾಕಷ್ಟು ಸಹಾಯಕವಾಯಿತು. ದೇಶಾದ್ಯಂತ ಇಂತಹ ಪ್ರಯತ್ನಗಳಿಂದಲೇ ನಾವು ಮಲೇರಿಯಾ ವಿರುದ್ಧದ ಹೋರಾಟವನ್ನು ಮತ್ತಷ್ಟು ವೇಗವಾಗಿ ಮುನ್ನಡೆಸಲು ಸಾಧ್ಯವಾಯಿತು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಾವು ನಮ್ಮ ತಿಳುವಳಿಕೆ ಮತ್ತು ಸಂಕಲ್ಪ ಶಕ್ತಿಯಿಂದ ಏನು ಬೇಕಾದರೂ ಸಾಧಿಸಬಹುದು ಎನ್ನುವುದಕ್ಕೆ ಮತ್ತೊಂದು ಉದಾಹರಣೆ ಎಂದರೆ ಅದು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ವಿರುದ್ಧದ ಹೋರಾಟ. ವಿಶ್ವದ ಪ್ರಸಿದ್ಧ ಮೆಡಿಕಲ್ ಜರ್ನಲ್ ಲ್ಯಾನ್ಸೆಟ್ ನ ಅಧ್ಯಯನ ನಿಜಕ್ಕೂ ಬಹಳ ಭರವಸೆದಾಯಕವಾಗಿದೆ. ಈ ಪತ್ರಿಕೆಯ ಅನುಸಾರ ಈಗ ಭಾರತದಲ್ಲಿ ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಕ್ಕೆ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಆರಂಭಿಸುವ ಸಾಧ್ಯತೆ ಬಹಳಷ್ಟು ಹೆಚ್ಚಾಗಿದೆ.  ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಎಂದರೆ– ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಿಯ ಚಿಕಿತ್ಸೆ 30 ದಿನಗಳೊಳಗಾಗಿ ಆರಂಭವಾಗುವುದು ಎಂದರ್ಥ ಹಾಗೂ ಇದರಲ್ಲಿ ‘ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಭಾರತ್ ಯೋಜನೆ‘ ಬಹು ದೊಡ್ಡ ಪಾತ್ರ ನಿರ್ವಹಿಸಿದೆ. ಈ ಯೋಜನೆಯಿಂದಾಗಿ ಶೇಕಡಾ 90 ರಷ್ಟು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಿಗಳು ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ತಮ್ಮ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಆರಂಭಿಸಲು ಸಾಧ್ಯವಾಗುತ್ತಿದೆ. ಹೀಗಾಗಿ ಈ ಮೊದಲು ಹಣದ ಕೊರತೆಯಿಂದಾಗಿ ಬಡ ರೋಗಿಗಳು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಕ್ಕಾಗಿ ತಪಾಸಣೆ ಮತ್ತು ಅದರ ಚಿಕಿತ್ಸೆಗೆ ಹಿಂಜರಿಯುತ್ತಿದ್ದರು. ಈಗ ‘ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಭಾರತ್ ಯೋಜನೆ’ ಅವರಿಗೆ ಬಹು ದೊಡ್ಡ ಆಸರೆಯಾಗಿದೆ. ಈಗ ಅವರು ತಮ್ಮ ರೋಗಕ್ಕೆ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಪಡೆಯಲು ಮುಂದಾಗುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಭಾರತ್ ಯೋಜನೆಯು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗದ ಚಿಕಿತ್ಸೆಗೆ ಉಂಟಾಗುವ ಖರ್ಚಿನ ಆತಂಕವನ್ನು ಸಾಕಷ್ಟು ಕಡಿಮೆ ಮಾಡಿದೆ. ಇಂದು ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಕ್ಕೆ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಪಡೆದುಕೊಳ್ಳುವ ಕುರಿತು ಜನರು ಹಿಂದೆಂದಿಗಿಂತಲೂ ಹೆಚ್ಚು ಜಾಗರೂಕರಾಗಿದ್ದಾರೆ ಎನ್ನುವುದು ಉತ್ತಮ ವಿಚಾರವಾಗಿದೆ. ಈ ಸಾಧನೆಯು ನಮ್ಮ ಆರೋಗ್ಯರಕ್ಷಣೆ ವ್ಯವಸ್ಥೆಯಷ್ಟೇ, ನಮ್ಮ ವೈದ್ಯರು, ದಾದಿಯರು ಮತ್ತು ತಾಂತ್ರಿಕ ಸಿಬ್ಬಂದಿಯದ್ದೂ ಆಗಿದೆ, ಅಷ್ಟೇ ಅಲ್ಲ ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರದ್ದೂ, ನನ್ನ ನಾಗರಿಕ ಸೋದರ ಸೋದರಿಯರದ್ದೂ ಆಗಿದೆ. ಎಲ್ಲರ ಪ್ರಯತ್ನದಿಂದ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗವನ್ನು ಹಿಮ್ಮೆಟ್ಟಿಸುವ ಸಂಕಲ್ಪ ಮತ್ತಷ್ಟು ಬಲವಾಗಿದೆ. ಅರಿವು ಮೂಡಿಸಲು ಪ್ರಮುಖ ಕೊಡುಗೆ ನೀಡಿದ ಎಲ್ಲರಿಗೂ ಆ ಯಶಸ್ಸಿನ ಶ್ರೇಯ ಸಲ್ಲುತ್ತದೆ.

ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ವಿರುದ್ಧ ಹೋರಾಡಲು ಒಂದೇ ಒಂದು ಮಂತ್ರವಿದೆ – ಅದೆಂದರೆ ಅರಿವು, ಕ್ರಮ ಮತ್ತು ಭರವಸೆ – ಅವೇರ್ನೆಸ್, ಆಕ್ಷನ್ ಮತ್ತು ಅಶ್ಯೂರೆನ್ಸ್. ಅವೇರ್ನೆಸ್ ಎಂದರೆ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ಮತ್ತು ಅದರ ಲಕ್ಷಣಗಳ ಕುರಿತ ಅರಿವು, ಆಕ್ಷನ್ ಎಂದರೆ ಸಮಯಕ್ಕೆ ಸರಿಯಾಗಿ ತಪಾಸಣೆ ಮತ್ತು ಚಿಕಿತ್ಸೆ, ಅಶ್ಯೂರೆನ್ಸ್ ಎಂದರೆ ರೋಗಿಗೆ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಸಹಾಯವೂ ಲಭ್ಯವಿದೆ ಎನ್ನುವ ಭರವಸೆ. ಬನ್ನಿ, ನಾವೆಲ್ಲರೂ ಒಗ್ಗಟ್ಟಾಗಿ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ವಿರುದ್ಧದ ಈ ಹೋರಾಟವನ್ನು ವೇಗದಿಂದ ಮುನ್ನಡೋಸೋಣ ಮತ್ತು ಹೆಚ್ಚು ಹೆಚ್ಚು ರೋಗಿಗಳಿಗೆ ಸಹಾಯ ಮಾಡೋಣ.

ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳೇ, ನಾನು ಇಂದು ನಿಮಗೆ ಒಡಿಶಾದ ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯಲ್ಲಿ ಅತ್ಯಂತ ಕಡಿಮೆ ನೀರು ಮತ್ತು ಕಡಿಮೆ ಸಂಪನ್ಮೂಲಗಳಿದ್ದರೂ ಕೂಡಾ ಅವಿರತ ಪ್ರಯತ್ನದಿಂದ ಸಾಧಿಸಿರುವ ಯಶಸ್ಸಿನ ಕತೆಯೊಂದನ್ನು ನಿಮಗೆ ಹೇಳಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಇದು ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ತರಕಾರಿ ಕ್ರಾಂತಿ. ಒಂದು ಕಾಲದಲ್ಲಿ ರೈತರು ಜಾಗ ತೊರೆದು ಬೇರೆಡೆಗೆ ಹೋಗಬೇಕಾಗಿತ್ತೋ ಅದೇ ಜಾಗ ಇಂದು, ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ಗೋಲಾ ಮುಂಡಾ ಬ್ಲಾಕ್ ನ ಒಂದು ತರಕಾರಿ ಹಬ್ ಆಗಿ ಪರಿವರ್ತನೆಯಾಗಿದೆ. ಈ ಪರಿವರ್ತನೆಯಾದದ್ದು ಹೇಗೆ? ಇದು ಕೇವಲ 10 ಮಂದಿ ರೈತರ ಒಂದು ಸಣ್ಣ ಗುಂಪಿನಿಂದ ಆರಂಭವಾಯಿತು. ಈ ಗುಂಪು ಒಂದುಗೂಡಿ ಒಂದು FPO - ‘ರೈತ ಉತ್ಪನ್ನ ಸಂಘ’ ಸ್ಥಾಪಿಸಿತು, ಕೃಷಿಯಲ್ಲಿ ಆಧುನಿಕ ತಂತ್ರಜ್ಞಾನದ ಬಳಕೆ ಶುರು ಮಾಡಿತು, ಮತ್ತು ಇಂದು ಅವರ ಈ FPO ಕೋಟಿಗಟ್ಟಲೆ ವಹಿವಾಟು ನಡೆಸುತ್ತಿದೆ. ಇಂದು 200 ಕ್ಕೂ ಅಧಿಕ ರೈತರು FPO ನೊಂದಿಗೆ ಜೋಡಣೆಯಾಗಿದ್ದಾರೆ, ಇದರಲ್ಲಿ 45 ಮಂದಿ ಮಹಿಳಾ ರೈತರೂ ಇದ್ದಾರೆ. ಇವರೆಲ್ಲರೂ ಸೇರಿ 200 ಎಕರೆ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ ಟೊಮ್ಯಾಟೋ ಕೃಷಿ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದಾರೆ, 150 ಎಕರೆ ಜಾಗದಲ್ಲಿ ಹಾಗಲಕಾಯಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಈಗ ಈ FPO ದ ವಾರ್ಷಿಕ ವಹಿವಾಟು ಕೂಡಾ ಅಧಿಕವಾಗಿ, ಒಂದೂವರೆ ಕೋಟಿಗೆ ತಲುಪಿದೆ. ಇಂದು ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ತರಕಾರಿಗಳು ಕೇವಲ ಒಡಿಶಾದ ಬೇರೆ ಬೇರೆ ಜಿಲ್ಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೇ, ಬೇರೆ ರಾಜ್ಯಗಳಿಗೂ ತಲುಪುತ್ತಿವೆ, ಮತ್ತು ಅಲ್ಲಿನ ರೈತ ಈಗ ಆಲೂಗಡ್ಡೆ ಮತ್ತು ಈರುಳ್ಳಿಯ ಕೃಷಿಯ ಹೊಸ ತಂತ್ರಗಳನ್ನು ಕೂಡಾ ಕಲಿಯುತ್ತಿದ್ದಾನೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಸಂಕಲ್ಪ ಶಕ್ತಿ ಮತ್ತು ಸಾಮೂಹಿಕ ಪ್ರಯತ್ನದಿಂದ ಏನೆಲ್ಲಾ ಸಾಧಿಸಬಹುದು ಎಂಬುದನ್ನು ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ಈ ಯಶಸ್ಸು ನಮಗೆ ಕಲಿಸುತ್ತದೆ. ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರಲ್ಲಿ ಮನವಿ ಮಾಡುವುದೇನೆಂದರೆ :-

  • ನೀವಿರುವ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ FPO ಅನ್ನು ಪ್ರೋತ್ಸಾಹಿಸಿ.
  • ರೈತ ಉತ್ಪನ್ನ ಸಂಘಗಳೊಂದಿಗೆ ಸೇರಿಕೊಳ್ಳಿ ಮತ್ತು ಅವುಗಳನ್ನು ಬಲಪಡಿಸಿ. 

ನೆನಪಿಡಿ – ಸಣ್ಣ ಆರಂಭದಿಂದಲೇ ಭಾರೀ ಪರಿವರ್ತನೆಗಳು ಸಾಧ್ಯವಾಗುತ್ತವೆ. ಅದಕ್ಕಾಗಿ ನಮಗೆ ದೃಢ ಸಂಕಲ್ಪ ಮತ್ತು ಒಗ್ಗಟ್ಟಿನ ಭಾವನೆಯ ಅಗತ್ಯವಿರುತ್ತದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಇಂದು ‘ಮನದ ಮಾತಿನಲ್ಲಿ’ ನಮ್ಮ ಭಾರತ ವಿವಿಧತೆಯಲ್ಲಿ ಏಕತೆ ಎಂಬ ಭಾವನೆಯಿಂದ ಯಾವರೀತಿ ಮುಂದೆ ಸಾಗುತ್ತಿದೆ ಎಂಬುದನ್ನು ಆಲಿಸಿದೆವು. ಅದು ಆಟದ ಮೈದಾನವಿರಲಿ, ಅಥವಾ ವಿಜ್ಞಾನ ಕ್ಷೇತ್ರವೇ ಆಗಲಿ, ಆರೋಗ್ಯ ಅಥವಾ ಶಿಕ್ಷಣ ಕ್ಷೇತ್ರವೇ ಆಗಲಿ, ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಕ್ಷೇತ್ರದಲ್ಲಿ ಭಾರತ ಉನ್ನತ ಶಿಖರಗಳನ್ನು ತಲುಪುತ್ತಿದೆ. ನಾವು ಒಂದು ಕುಟುಂಬದಂತೆ ಒಂದುಗೂಡಿ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಸವಾಲನ್ನೂ ಎದುರಿಸಿದ್ದೇವೆ ಮತ್ತು ಹೊಸ ಸಾಧನೆಗಳನ್ನು ನಮ್ಮದಾಗಿಸಿಕೊಂಡಿದ್ದೇವೆ. 2014 ರಲ್ಲಿ ಆರಂಭವಾದ ‘ಮನದ ಮಾತಿನ’ 116 ಸಂಚಿಕೆಗಳಲ್ಲಿ ‘ಮನದ ಮಾತು’ ದೇಶದ ಸಾಮೂಹಿಕ ಶಕ್ತಿಯು ಜೀವಂತ ದಾಖಲೆಯಾಗಿರುವುದನ್ನು ನಾನು ನೋಡಿದ್ದೇನೆ.  ತಾವೆಲ್ಲರೂ ಈ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮವನ್ನು ತಮ್ಮದಾಗಿಸಿಕೊಂಡಿರುವಿರಿ. ಪ್ರತಿ ತಿಂಗಳೂ ನಿಮ್ಮ ನಿಮ್ಮ ಚಿಂತನೆಗಳು ಮತ್ತು ಪ್ರಯತ್ನಗಳನ್ನು ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಿದ್ದೀರಿ. ಕೆಲವೊಮ್ಮೆ ಯುವ ಆವಿಷ್ಕಾರಕನ ಚಿಂತನೆಯಿಂದ ಪ್ರಭಾವಿತನಾದರೆ, ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಹೆಣ್ಣು ಮಗಳೊಬ್ಬಳ ಸಾಧನೆ ನನಗೆ ಹೆಮ್ಮೆ ತಂದಿದೆ. ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರ ಸಹಭಾಗಿತ್ವವೇ ದೇಶದ ಮೂಲೆ ಮೂಲೆಯಿಂದ ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ಒಟ್ಟುಗೂಡಿಸುತ್ತದೆ. 'ಮನದ ಮಾತು' ಈ ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಶಕ್ತಿ ವರ್ಧನೆಯ ವೇದಿಕೆಯಾಗಿ ಮಾರ್ಪಟ್ಟಿದೆ ಮತ್ತು ಈಗ, 2025 ಬಾಗಿಲು ತಟ್ಟುತ್ತಿದೆ. ಮುಂಬರುವ ವರ್ಷದಲ್ಲಿ ‘ಮನದ ಮಾತಿನ’ ಮೂಲಕ ನಾವೆಲ್ಲರೂ ಮತ್ತಷ್ಟು ಪ್ರೇರಣಾದಾಯಕ ಪ್ರಯತ್ನಗಳನ್ನು ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳೋಣ. ದೇಶವಾಸಿಗಳ ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಚಿಂತನೆ ಮತ್ತು ಆವಿಷ್ಕಾರದ ಭಾವನೆಯಿಂದ ಭಾರತ ಹೊಸ ಶಿಖರಗಳನ್ನು ತಲುಪುತ್ತದೆ ಎಂಬ ವಿಶ್ವಾಸ ನನಗಿದೆ. ನೀವೆಲ್ಲರೂ ನಿಮ್ಮ ಸುತ್ತಮುತ್ತಲಿನ ವಿಶಿಷ್ಠ ಪ್ರಯತ್ನಗಳ ಬಗ್ಗೆ #Mannkibaat  ನಲ್ಲಿ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಿರಿ. ಮುಂದಿನ ವರ್ಷದ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಮನದ ಮಾತಿನಲ್ಲಿ ನಮ್ಮಲ್ಲಿ ಪರಸ್ಪರ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳಲು ಬಹಳಷ್ಟು ವಿಷಯಗಳಿರುತ್ತವೆ ಎಂದು ನನಗೆ ಗೊತ್ತು. ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರಿಗೂ 2025 ನೂತನ ವರ್ಷಕ್ಕಾಗಿ ಅನೇಕಾನೇಕ ಶುಭಾಕಾಂಕ್ಷೆಗಳು. ಆರೋಗ್ಯದಿಂದಿರಿ, ಸಂತೋಷದಿಂದಿರಿ. Fit India Movement ನೊಂದಿಗೆ ನೀವೆಲ್ಲರೂ ಸೇರಿಕೊಳ್ಳಿ, ನೀವೆಲ್ಲರೂ ಸದೃಢರಾಗಿರಿ. ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಅಭಿವೃದ್ಧಿ ಹೊಂದುತ್ತಿರಿ. ಅನೇಕಾನೇಕ ಧನ್ಯವಾದ.