नमस्कार !!

टेक्नॉलॉजी के माध्यम से देशभर के हज़ारों जनऔषधि केंद्रों से जुड़े सभी साथियों को होली की मुबारक और आप सबका इस कार्यक्रम में बहुत-बहुत स्वागत है। अनेक केंद्रों में मंत्रिमंडल के मेरे तमाम साथी भी मौजूद हैं। आप सभी को दूसरे जनऔषधि दिवस की बहुत-बहुत बधाई !!

आज हफ्तेभर से मनाए जा रहे जनऔषधि सप्ताह का भी आखिरी दिन है। इस प्रशंसनीय पहल के लिए भी मैं सभी जनऔषधि केंद्रों के संचालकों का भारत सरकार का, और इसमें सहयोग देने वाले सबका बहुत-बहुत अभिनंदन!!

साथियों,

जनऔषधि दिवस सिर्फ एक योजना को सेलिब्रेट करने का दिन नहीं है, बल्कि उन करोड़ों भारतीयों, लाखों परिवारों के साथ जुड़ने का दिन है, जिनको इस योजना से बहुत राहत मिली है, उनके माध्यम से और लोगों तक भी इस बात का व्यापक प्रचार करने का भी ये अवसर है। ताकि गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस योजना का लाभ अवश्य लें। हर भारतवासी के स्वास्थ्य के लिए हम 4 सूत्रों पर काम कर रहे हैं।

पहला, कि हर भारतीय को बीमार होने से बचाया जाए।

दूसरा, बीमारी की स्थिति में सस्ता और अच्छा इलाज मिले।

तीसरा, इलाज के लिए बेहतर और आधुनिक अस्पताल हों, पर्याप्त संख्या में अच्छे डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ हो, ये सुनिश्चित किया जा रहा है। और,

चौथा सूत्र है, मिशन मोड पर काम करके चुनौतियों को सुलझाने का।

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना यानि पीएम-बीजेपी, इसी की एक अहम कड़ी है। ये देश के हर व्यक्ति तक सस्ता और उत्तम इलाज पहुंचाने का संकल्प है। मुझे बहुत संतोष है कि अब तक 6 हज़ार से अधिक जनऔषधि केंद्र पूरे देश में खुल चुके हैं। जैसे-जैसे ये नेटवर्क बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इसका लाभ भी और अधिक लोगों तक पहुंच रहा है। आज हर महीने एक करोड़ से अधिक परिवार इन केंद्रों के माध्यम से बहुत सस्ती दवाइयों का लाभ ले रहे हैं।

जैसा कि आपने अनुभव भी किया है, जनऔषधि केंद्रों पर मिलने वाली दवाओं की कीमत बाज़ार से 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक कम होती है। जैसे कैंसर की बीमारी के इलाज में उपयोग होने वाली एक दवा जो बाज़ार में करीब साढ़े 6 हज़ार रुपए की मिलती है, वो जनऔषधि केंद्रों पर सिर्फ साढ़े 8 सौ में उपलब्ध है। इससे पहले की तुलना में इलाज पर खर्च बहुत कम हो रहा है।

मुझे बताया गया है कि अभी तक पूरे देश में करोड़ों गरीब और मध्यम वर्ग के साथियों को पहले जो खर्चा होता था दवाई के लिए और अब जो खर्चा हो रहा है करीब-करीब दो-ढाई हजार करोड़ रूपए इसकी बचत ये जन औषधि केंद्रो से जो दवाइंया ली उसके कारण हुआ है। हमारे देश के एकाद-करोड़ परिवार के दो-ढाई हजार करोड़ रूपए बचना ये अपने आप में उनकी बहुत बड़ी मदद है। 2200 करोड़ रुपए की बचत जनऔषधि केंद्रों के कारण हुई है।

साथियों,

आज के इस कार्यक्रम में जनऔषधि केंद्र चलाने वाले साथी भी जुड़े हैं। आप सभी प्रशंसनीय काम कर रहे हैं। आपके इस काम को पहचान दिलाने के लिए सरकार ने इस योजना से जुड़े पुरस्कारों की शुरुआत करने का भी फैसला लिया है।

मुझे विश्वास है कि इन पुरस्कारों से जनऔषधि के क्षेत्र में एक नई स्वस्थ स्पर्धा शुरु होगी, जिसका लाभ गरीब को, मध्यम वर्ग को मिलने वाला है। देश को मिलेगा।

आइए आज की चर्चा की शुरुआत करते हैं-

मुझे कहा गया है कि सबसे पहले असम के गुवाहाटी चलना है।

 

प्रशन: 1  प्रधानमंत्री जी, मेरा नाम अशोक कुमार बेटाला है और मैं असम के गुवाहाटी से हूं। मेरी उम्र 60 वर्ष है।

मुझे डायबिटीज़ और बल्ड प्रेशर की समस्या है, मैं हार्ट पेशेंट भी हूं। 5 साल पहले मेरी सर्जरी भी हो चुकी है, तभी से मैं दवाइयां ले रहा हूं। पिछले 10 महीने से मैं जनऔषधि केंद्र से लगातार दवाएं ले रहा हूं।

जब से जनऔषधि केंद्र से दवाएं लेनी शुरु की हैं, तब से मुझे 2500 रुपए की बचत हर महीने हो रही है। इस बचत के पैसे का उपयोग मैं अपनी पोती के नाम पर सुकन्या समृद्धि योजना खाते में जमा कर पा रहा हूं।

आप का ऐसी योजनाओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !!

आपने मेरी टेंशन तो कम कर दी है, लेकिन ये जो कोरोना वायरस की टेंशन है, इसको लेकर कई बातें चल रही हैं। इस वायरस से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर: 1

पहले तो आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। जनऔषधि के कारण जो बचत आपकी हो रही है, उसका उपयोग आप अपनी पोती के बेहतर भविष्य में लगा रहे हैं। जहां तक आपने कोरोना वायरस की बात की, तो ये सही है कि बहुत से लोग इसे लेकर बहुत चिंता में हैं।

मैं समझता हूं इसमें आपकी और हमारी सतर्कता बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे केंद्र सरकार हो या हमारी तमाम राज्य सरकारें हों, सभी इस मामले को लेकर उचित इंतज़ाम और देखरेख कर रही हैं। हमारे पास कुशल डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ भी हैं, संसाधन भी हैं और जागरूक नागरिक भी हैं। हमें बस अपनी सावधानियां में कोई कमी नहीं आने देनी है।ये सावधानियां क्या हैं, ये अलग-अलग माध्यमों से आपको बताया जा रहा है। मैं फिर आपके सामने दोहरा रहा हूं।

साथियों,

एक तो हमें बिना ज़रूरत के कहीं इकट्ठा होने से बचना होगा और दूसरा हमें बार-बार, जितना हो सके अपने हाथ धोते रहना चाहिए। अपने चेहरे को, अपने नाक और अपने मुंह को बार-बार छूने की हमारी एक आदत होती है।जितना हो सके, इस आदत को हमें कंट्रोल करना है और धुले हुए हाथों से ही अपने मुंह को टच करना है। जानकारों का कहना है कि ये खांसते या छींकते समय जो छींटे निकलते हैं, उसके संपर्क में आने से फैलता है। ऐसे में जिस भी चीज पर ये छींटे गिरते हैं, उसमें ये वायरस कई दिनों तक जीवित रह सकता है। इसलिए बार-बार साबुन से हाथ धोना ज़रूरी होता है। एक और आदत हमें ज़रूर डालनी है। अगर खांसी और छींक हमें आती है तो कोशिश यही करनी है कि दूसरों पर इसके छींटे न पड़ें और जो कपड़ा या रुमाल हमने छींकने समय इस्तेमाल किया होता है, उसे भी दूसरों के संपर्क में न आने दें।

साथियों,

जिन साथियों को ये संक्रमण हुआ है, उनको तो ज़रूरी निगरानी में रखा ही जा रहा है। लेकिन अगर किसी साथी को शक होता है कि वो किसी संक्रमित साथी के संपर्क में आया है, तो उसको बहुत घबराने की ज़रूरत नहीं है। अपने मुंह को मास्क से ढंककर या किसी कपड़े से ढककर पहले किसी नज़दीकी अस्पताल में चेक अप कराने के लिए चले जाएं।परिवार में जो बाकी लोग होते हैं उनको भी infection होने की आशंका ज्यादा होती है, ऐसे में उनको भी ज़रूरी टेस्ट करा लेने चाहिए। ऐसे साथियों को मास्क भी पहनने चाहिए, गलब्स भी पहनने चाहिए और दूसरों से कुछ दूरी बनाकर रहना चाहिए।

मास्क पहनना है या नहीं पहनना है, इसे लेकर जानकारों की अलग-अलग राय है, लेकिन ध्यान यही रखना है कि खांसते या छींकते समय उसके छींटे या Droplets दूसरों पर न जाएं।वैसे मास्क पहनते समय भी एक चीज ध्यान रखनी है। मास्क को अडजस्ट करते हुए हमारा हाथ बार-बार मुंह को छूता है। इससे बचाव की जगह infection फैलने की आशंका बढ़ जाती है।

साथियों,

ऐसे समय में अफवाहें भी तेज़ी से फैलती हैं। कोई कहता है ये नहीं खाना है, वो नहीं करना है, कुछ लोग चार नई चीजें लेकर आ जाएंगे कि ये खाने से कोरोना वाइरस से बचा जा सकता है। हमें इन अफवाहों से भी बचना है। जो भी करें, अपने डॉक्टर की सलाह से करें। और हां, पूरी दुनिया नमस्ते की आदत डाल रही है। अगर किसी कारण से हमने ये आदत छोड़ दी है, तो हाथ मिलाने के बजाय इस आदत को फिर से डालने का भी ये उचित समय है।

मोदी जी को सादर प्रणाम सर मेरा नाम मुकेश अग्रवाल है मैं देहरादून में कई जनऔषधि केंद्रों का संचालन करता हूं और ये प्रेरणा मुझे इसलिए मिली है कि यहां पर कुछ मरीज़ ऐसे थे जो दयनीय स्थिति में थे मैं उनकी मदद करना चाहता था पर मंहगी दवाईयां होने के कारण मैं उनको सहमत नही हो पाता था तब ये जन औषधि केंद्रों का पता लगा माननीय मुख्यमंत्री जी से हमारा सहयोग है तो फिर हमने इसके लिए प्रयास किया हमने चैरिटेबल प्रयास ट्रस्ट बनाया हमने लोगों को मुफ्त दवाईयां भी दी हैं। सस्ती दवाईयो का हम डिस्प्ले करते हैं।

प्रश्न- 2 नमस्कार प्रधानमंत्री जी !!

मेरा नाम दीपा शाह है। मैं देहरादून उत्तराखंड से हूं। मेरी आयु 65 वर्ष है।

मुझे 2011 में पैरालिसिस हुआ था। तब से ही मैं दवाएं ले रही हूं। लेकिन 2015 से मैं जनऔषधि केंद्र से दवाएं ले रही हूं। मेरे पति भी दिव्यांग हैं। ऐसे में हर महीने में पहले के मुकाबले हमारा खर्च 3000 रुपए कम हुआ है। मेरा अनुभव है कि ये दवाएं सस्ती भी हैं और अच्छी क्वालिटी की भी हैं। पहले बात करने में और चलने फिरने में मुझे बहुत दिक्कत होती थी, अब इसमें काफी सुधार है। लेकिन, लोगों में अभी भी Generic दवाओं को लेकर कुछ भ्रम हैं। ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए क्या किया जाए ?

उत्तर – 2

आपने सही कहा कि Generic दवाओं को लेकर अफवाहें फैलाएं जाती हैं। पुराने अनुभवों के आधार पर कुछ लोगों को ये भी लगता है कि आखिर इतनी सस्ती दवा कैसे हो सकती है, कहीं कोई खोट तो इसमें नहीं है। कहीं रंगीन गोलियां बनाकर तो कोई नही दे रहा है ऐसे भ्रम फैलाएं जाते हैं। लेकिन दीपा जी आपको देखकर के पूरे देशवासियों को विश्वास होगा कि generic दवाओं की ताकत क्या है आज आपने सबूत के साथ उसको पेश किया है। मैं समझता हूं किसी laboratory से बड़ा दीपा जी आपका अनुभव है।

ऐसे सभी साथियों को मैं बता दूं कि ये दवाएं दुनियाभर के बाजार में उपलब्ध किसी भी दवाई से ज़रा भी कम नहीं है। ये दवाएं बेहतरीन लैब्स से सर्टिफाइड होती हैं, हर प्रकार की सख्त जांच से निकले दवा निर्माताओं से खरीदी जाती हैं। यदि किसी दवा निर्माताओं के विरुद्ध शिकायतें आती हैं, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है।

ये दवाएं भारत में ही बनती हैं, इसलिए सस्ती हैं। भारत की बनी Generic दवाओं की पूरी दुनिया में डिमांड है। सरकार ने हर अस्पताल के लिए Generic दवाएं लिखना ज़रूरी कर दिया है। कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर डॉक्टर Generic दवाएं ही लिखें, ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है। मेरा आप सभी लाभार्थियों से भी निवेदन रहेगा कि अपने अनुभवों को अधिक से अधिक साझा करें। इससे जनऔषधि का लाभ ज्यादा से ज्यादा मरीज़ों तक पहुंच सकेगा

प्रश्न- 3 नमस्कार प्रधानमंत्री जी !!

मैं ज़ेबा खान हूं। मैं पुणे से हूं। मेरी age 41 साल है।

मैं किडनी की patient हूँ और जनऔषधि केन्द्र की दवाओं से मुझे इलाज में बहुत मदद मिल रही है।

पिछले 6 महीने से मैं जनऔषधि केंद्र से दवाएं ले रही हूं। पहले की तुलना में मुझे 14-15 सौ रुपए हर महीने कम खर्च करने पड़ रहे हैं। ये जितना भी मैं बचा पाती हूं, उससे मेरी तीन बेटियों की पढ़ाई-लिखाई में बहुत मदद होती है।

जनऔषधि केंद्रों के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने दवाइयां सस्ती कीं, स्टेंट भी बहुत सस्ते किए, 5 लाख तक मुफ्त इलाज भी तय कर दिया। योग और आयुर्वेद को लेकर भी आप हमेशा बात करते रहते हैं।

अब आपसे गरीब और मिडिल क्लास की उम्मीदें और बढ़ गई हैं। करोड़ों लोगों की उम्मीदों के प्रेशर को आप कैसे हैंडल करते हैं?

उत्तर-3

सबसे पहले तो मैं आपकी बेहतर सेहत की कामना करता हूं। आपकी बेटियों के बेहतर भविष्य के लिए भी शुभकामनाएं। मुझे विश्वास है कि आप जरूर इस दवाई से आपको जो लाभ हुआ है दो प्रकार के लाभ हुए हैं एक तो आपने सर्वाधिक मंहगी और कष्टदायक स्थिति से निकली हैं और उसपे कम से कम आपको आर्थिक मदद मिल गई। और इस व्यवस्था से जाने के कारण अब आपको दवाईयां सस्ती मिली है, डाइलिसिस की सुविधा भी मिली है। और आप अपने परिवार की बी अच्छी देखभाल कर पा रही है। मैं समझता हूं कि जब सरकार की कोई योजना पूरे परिवार का हित करती है पूरे समाज का हित करती है तो वो अपने आप में आशीर्वाद का कारण बनती है।

देखिए, जब आप जैसे देश के करोड़ों साथियों के जीवन में आने वाले बदलाव के बारे में सुनता हूं तो प्रेशर के लिए गुंजाइश ही नहीं बचती। मैं अपेक्षा को दबाव नहीं मानता बल्कि प्रोत्साहन मानता हूं।

देश के गरीब को, मध्यम वर्ग को ये विश्वास हुआ है कि उनकी सरकार उसको उत्तम, सस्ता और सुलभ इलाज देने में जुटी है। इससे अपेक्षा जितनी बढ़ी है, उतने ही हमारे प्रयास भी व्यापक हो रहे हैं।

अब देखिए, करीब-करीब 90 लाख गरीब मरीज़ों को आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज मिल चुका है। प्रधानमंत्री डायलिसिस प्रोग्राम के तहत 6 लाख से अधिक का मुफ्त में डायलिसिस किया जा चुका है।

यही नहीं, एक हजार से अधिक जरूरी दवाइयों की कीमत नियंत्रित होने से मरीजों के 12,500 करोड़ रुपये बचे हैं। स्टेंट्स और नी-इम्प्लांट्स की कीमत कम होने से लाखों मरीजों को नया जीवन मिला है। साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने की दिशा में हम तेज़ी से काम कर रहे हैं। इस योजना के तहत देश के गांव-गांव में आधुनिक Health and Wellness Centre बनाए जा रहे हैं। अभी तक जो 31 हज़ार से ज्यादा सेंटर तैयार हो चुके हैं, उनमें 11 करोड़ से ज्यादा साथी अपनी जांच करा चुके हैं।

इनमें करीब साढ़े 3 करोड़ हाइपरटेंशन, करीब 3 करोड़ डाइबिटीज,1 करोड़ 75 लाख Oral कैंसर,70 लाख सर्वाइकल कैंसर,1 करोड़ से ज्यादा Breast कैंसर,ऐसी अनेक गंभीर बीमारियों की स्क्रीनिंग इन सेंटर्स पर हो चुकी है। प्रयास ये है कि देश में लोगों को मेडिकल सुविधा के लिए ज्यादा दूर ना जाना पड़े। इसलिए देशभर में 22 नए AIIMS बनाए जा रहे हैं। देशभर में 75 जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदला गया है,जिससे नए स्वीकृत मेडिकल कॉलेज की संख्या 157हो चुकी है।

इसी वर्ष देश में 75 नए मेडिकल कॉलेज बनाने की स्वीकृति दी गई है, जिससे देश में मेडिकल की 4 हज़ार से अधिक PG और लगभग 16 हज़ार MBBS सीटों की बढ़ोतरी होगी। उचित मात्रा में अच्छे डॉक्टर और दूसरा मेडिकल स्टाफ तैयार हो, इसके लिए ज़रूरी कानूनी बदलाव किए जा रहे हैं। नेशनल मेडिकल कमीशन इसी दिशा में उठाया गया कदम है।

देश में बेहतर दवाओं के निर्माण के लिए, रिसर्च और क्लिनिकल ट्रायल के लिए नियम बनाए गए हैं। हाल में आपने सुना होगा कि सभी मेडिकल उपकरणों को भी दवाइयों की परिभाषा के दायरे में लाया गया है। भारत में जब ये दवाएं और दूसरा सामान अधिक से अधिक बनेगा तो इनकी कीमत में और कमी आना स्वभाविक है। ऐसे अनेक प्रयास चल रहे हैं, जो देश में स्वास्थ्य सुविधाओं में व्यापक सुधार लाने वाले हैं।

प्रश्न 4 मेरा नाम अलका मेहरा है। मेरी आयु 45 वर्ष है। मैं आपके शहर वाराणसी से हूं।कल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। मैं खुद भी जनऔषधि केंद्र चलाती हूं। जनऔषधि केंद्र में मात्र 1 रुपए में सेनिटेरी पैड आज उपलब्ध हो रहे हैं, जिससे ग्रामीण महिलाओं को बहुत लाभ हो रहा है। ऐसी ही अनेक योजनाएं हैं जो महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए आपने चलाई हैं।

चाहे टॉयलेट हो, सेनिटेरी पैड हो, उज्जवला हो, आपने समाज की पुरानी सोच को चुनौती दी। इन फैसलों को लेकर कभी चिंता आपके मन में नहीं आई कि, समाज कैसे रिएक्ट करेगा?  

उत्तर- 4

अलका जी हर हर महादेव!

आप सभी को, देशभर की बहनों को, बेटियों को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अग्रिम बधाई। जैसा कि आपको पता है कि कल मेरा सोशल मीडिया अकाउंट कुछ बहनें ही हैंडल करने वाली हैं। बीते हफ्तेभर से अनेक बहनों के प्रेरक प्रसंग देशभर से बहनें भेज रही हैं, जो उत्साहित करने वाला है और देश की नारी शक्ति के सामर्थ्य के बारे में अद्भुत जानकारी देने वाला भी है।जहां तक आपने महिला स्वास्थ्य को लेकर पुरानी सोच की बात है, तो उससे देश को बाहर निकालने के लिए ही तो हमें काम करना है।

अगर कोई बात सही है, तो मेरा हमेशा से ये मत रहा है कि समाज भी उस बात को ज़रूर समझता है, बस एक कदम उठाने वाले की ज़रूरत होती है।यही इन योजनाओं में भी हुआ। सरकार ने सिर्फ एक कदम उठाया, बाकी का काम खुद उसी समाज ने किया।

इन योजनाओं का परिणाम ये हुआ है कि आज महिला स्वास्थ्य में अभूतपूर्व सुधार हो रहा है। बेटियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। स्कूलों में अलग टॉयलेट बनने से बेटियां अब बीच में स्कूल नहीं छोड़तीं। सुरक्षित मातृत्व अभियान से माता और शिशु दोनों के जीवन पर खतरा बहुत कम हुआ है।

प्रधानमंत्री मातृवंदना योजना के तहत देश की 1 करोड़ 20 लाख महिलाओं को लगभग 5 हजार करोड़ रुपए सरकार द्वारा सीधे उनके बैंक खातों में ट्रांसफर किए गए हैं। मिशन इंद्रधनुष के तहत 3 करोड़ 50 लाख शिशुओं और लगभग 90 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण हो चुका है। जनऔषधि योजना का लाभ भी तो समाज के हर वर्ग को हुआ है, गरीब और मध्यम वर्ग को हुआ है। इसमें भी हमारी बेटियों, बहनों को विशेष लाभ हुआ है। आज के इस कार्यक्रम में भी अनेक बहनें जुड़ी हुई हैं।

मार्केट में 10 रुपए तक मिलने वाले सेनिटेरी पैड आजजनऔषधि केंद्रों में 1 रुपए में उपलब्ध हैं। आपको याद होगा कि चुनाव के दौरान हमने कहा था कि जनऔषधि केंद्रों पर ढाई रुपए के पैड की कीमत 1 रुपए की जाएगी। इस वादे को पहले 100 दिन में ही पूरा किया गया। ये सैनिटेरी नेपकिन सस्ते भी हैं और पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। आप ज्यादा से ज्यादा बेटियों तक इस लाभ को पहुंचाने में जुटी हैं। भोले बाबा आपको और शक्ति दे, सामर्थ्य दे, अच्छा स्वास्थ्य दे, ये मेरी कामना है।

प्रश्न-5 नमस्कार प्राइम मिनिस्टर साहब मेरा नाम गुलाम नबी डार है। मैं जम्मू कश्मीर के पुलवामा से हूं। मैं 74 साल का हूं। मुझे थायरॉयड, ब्लड प्रेशर, गैस्ट्रो, की दिक्कत है। मुझे डॉक्टरों ने लगातार दवाएं लेने के लिए एडवाइस किया है। पहले बाज़ार से मैं दवाइयां लेता था, लेकिन बीते 2 ढाई साल से जनऔषधि केंद्र से ले रहा हूं। मेरी मंथली इनकम 20-22 हज़ार रुपए है। पहले इसका ज्यादातर हिस्सा दवाइयों में ही लग जता था। जनऔषधि की दवाएं लेने के बाद हर महीने 8-9 हज़ार रुपए की बचत हो रही है। मेरी आप से गुज़ारिश ये है कि जम्मू कश्मीर जैसे पहाड़ी इलाकों में इसे और बढ़ावा दिया जाए।

उत्तर- 5

गुलाम नबी साहब, आपके एक हमनाम तो यहां दिल्ली में मेरे बहुत करीबी मित्र भी हैं। जम्मू-कश्मीर से ही और देश के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं। मैं उनसे मिलूंगा तो आपके बारे में जरूर बताऊंगा। गुलाम नबी जी, आपकी जो दिक्कतें हैं, इनमें लगातार दवाओं की ज़रूरत रहती ही है। हमें संतोष है कि जम्मू कश्मीर में जनऔषधि योजना के तहत आप जैसे साथियों को बहुत लाभ हो रहा है।

आपने सही कहा जम्मू कश्मीर हो, नॉर्थ ईस्ट हो, या दूसरे पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्र, यहां पर जनऔषधि योजना को विस्तार भी देना है और सारी दवाएं उपलब्ध रहें, ये सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है। सरकार का भी निरंतर यही प्रयास है। अब जम्मू कश्मीर और लद्दाख में जो नई व्यवस्थाएं बनी हैं, उनसे इस प्रकार की सुविधाओं में और तेज़ी आएगी। पहले केंद्र की योजनाओं को वहां लागू कर पाना बहुत मुश्किल होता था, लेकिन अब ये अड़चनें हट गई हैं। बीते डेढ़ साल में जम्मू कश्मीर में अभूतपूर्व तेज़ी से विकास का काम चल रहा है। इस दौरान साढ़े 3 लाख से ज्यादा साथियों को आयुष्मान योजना से जोड़ा गया है, 3 लाख बुजुर्गों, महिलाओं और दिव्यांगजनों को सरकार की पेंशन योजना से जोड़ा गया है।

यही नहीं पीएम आवास योजना के तहत 24 हज़ार से ज्यादा घरों का निर्माण किया गया है, ढाई लाख शौचालय बनाए गए हैं और सवा 3 लाख से ज्यादा घरों को मुफ्त बिजली कनेक्शन दिया गया है। जहां तक स्वास्थ्य सुविधाओं की बात है, तो वहां 2 AIIMS और दूसरे मेडिकल कॉलेज पर भी काम तेज़ी से चल रहा है। जम्मू कश्मीर के विकास में आ रही ये तेज़ी अब और बढ़ने रही है। अब सही मायने में सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की भावना वहां जमीन पर उतर रही है।

प्रश्न- 6 प्रधानमंत्री सर, मेरा नाम गीता है। मैं कोयम्बटूर, तमिलनाडु से बोल रही हूँ। मैं 62 साल की हूं। मैं diabetes और hypertension का इलाज करवा रही हूँ। जब से जनऔषधि केंद्र से दवाएं ले रही हूं, तब से हर साल 30 हज़ार रुपए तक की बचत हो रही है। गरीब और मिडिल क्लास के लिए ये बहुत बड़ी राहत है। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं अपने आसपास अपने जानकारों को भी जनऔषधि की दवाएं लेने के लिए कहती हूं और उनको बताती हूं।

आप क्योंकि योग और आयुर्वेद को लेकर भी बात करते रहते हैं, तो मैं ये जानना चाहती हूं कि डायबिटीज जैसी बीमारियों पर इसका कितना असर होता है?

उत्तर-6 - धन्यवाद गीताजी।

आपको जो बचत हो रही है, उसका लाभ दूसरों को भी मिले, आप ये सुनिश्चित कर रही हैं। आप जैसे जागरूक नागरिक ही इस देश को और मजबूत बना रहे हैं। आप खुद का नहीं बल्कि दूसरे लोगों का भी हित सोच रही है, यही एक नागरिक के रूप में हमारा बहुत बड़ा दायित्व है। हर जरूरतमन्द को अच्छा और सस्ता इलाज मिले ये सरकार की ज़िम्मेदारी होती है। लेकिन इलाज के चक्कर में ही न पड़ना पड़े, प्रयास यही होना चाहिए। निरोग होने से अच्छा है निरोग रहना। सरकार स्वच्छ भारत, योग दिवस, फिट इंडिया जैसे अभियान इसीलिए तो चला रही है।

देखिये, डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन जैसी अनेक बीमारियां आज देश में तेज़ी से बढ़ रही हैं। ये सभी लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां है। इनका पूरी तरह से इलाज उतना संभव नहीं है, इनको कंट्रोल करना पड़ता है। जब इनका कारण ही हमारा लाइफ स्टाइल है तो जाहिर है कंट्रोल भी हमारे लाइफ स्टाइल में ही है। यही कारण है कि अपने लाइफ स्टाइल में हमें फिटनेस और हाइजीन से जुड़ी आदतों को अपनाना ज़रूरी है।

योग यही काम करता है। योग हमारे अंगों के साथ-साथ हमारी सांस का भी व्यायाम है। ये एक प्रकार से हमें अनुशासित रूप से जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। बहनों के लिए तो ये ज्यादा ज़रूरी है। क्योंकि अक्सर बहनें परिवार में सबका ख्याल रखते-रखते, अपना ख्याल रखना नजरअंदाज कर देती हैं। ये ठीक बात नहीं है। परिवार के दूसरे सदस्यों का भी ये दायित्व है वो घर का पूरा काम संभाल रही बहनों को, माताओं को, फिटनेस के लिए प्रेरित करते रहें।

प्रश्न 7- सर, मेरा नाम पंकज कुमार झा है। मैं बिहार के मुज़फ्फरपुर से हूं।

7 साल पहले नक्सलियों ने मेरे गांव में एक बम प्लांट किया था। जिसके फटने से मुझे मेरा हाथ खोना पड़ा। मैंने हाथ ज़रूर खोया लेकिन हौसला नहीं छोड़ा। एक दिन न्यूजपेपर में मुझे जनऔषधि योजना का पता चला और मैंने इससे जुड़ने का फैसला किया। मैं 3 साल से ये काम कर रहा हूं। आज लोगों की सेवा भी हो रही है और 4-5 लाख रुपए की सेल हर महीने हो जाती है।

मेरा सवाल ये है सर कि दिव्यांगों को अधिक से अधिक इस योजना से जोड़ने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

उत्तर : देखिए पंकज, सबसे पहले तो आपको बहुत-बहुत साधुवाद। आपका हौसला प्रशंसनीय है। आप सही मायने में जनऔषधि की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं।

ये योजना सस्ती दवाओं के साथ-साथ आज दिव्यांग जनों सहित अनेक युवा साथियों के लिए आत्मविश्वास का बहुत बड़ा साधन भी बन रही है। जनऔषधि केंद्रों के साथ-साथ डिस्ट्रिब्यूशन, क्वालिटी टेस्टिंग लैब, जैसे अनेक दूसरे साधनों का भी विस्तार हो रहा है। जिसमें हज़ारों युवा साथियों को रोज़गार मिल रहे हैं।

जहां तक दिव्यांग जनों का सवाल है, तो मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि उनके सामर्थ्य का और बेहतर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

21वीं सदी में भारत की अर्थव्यवस्था में दिव्यांग जनों के कौशल को, उनकी प्रोडक्टिवटी को राष्ट्र के विकास में अधिक से अधिक हिस्सेदारी देना जरूरी है। यही कारण है कि बीते 5 वर्षों से दिव्यांग जनों की सुविधा और उनके कौशल विकास को लेकर व्यापक ध्यान दिया जा रहा है। दिव्यांगों को शिक्षा, रोज़गार और दूसरे अधिकार देने के लिए ज़रूरी कानूनी बदलाव भी किए गए हैं। निश्चित रूप से जनऔषधि जैसी हमारी योजनाओं मे भी दिव्यांगों की अधिक से अधिक भागीदारी हम सभी को सुनिश्चित करनी है।

हमारे मंत्री जी, सांसद वहां बैठे है ए प्रकार से आपने जन औषधि केंद्र का एक उत्सव सा खड़ा कर दिया है तो मैं सचमुच में आज जहां-जहां देश के कोने में मुझे बात करने का मौका मिला है आप लोगों ने समय निकाला लेकिन एक बात है जनऔषधि केंद्र सच्चे अर्थ में जनशक्ति बन रहे हैं। सरकार देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। जनऔषधि योजना को भी और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निरंतर काम चल रहा है। इसके साथ-साथ ज़रूरी ये है कि देश का हर नागरिक स्वास्थ्य के प्रति अपने दायित्व को भी समझे। हमें अपने जीवन में, अपनी दिनचर्या में स्वच्छता, योग, संतुलित आहार, खेल और दूसरे व्यायाम को ज़रूर जगह देनी चाहिए। मैं माता-पिता से भी आग्रह करूंगा कि बच्चों को पढ़ने के लिए आप जितना आग्रह करते हैं खेलने के लिए भी उतना ही आग्रह कीजिए। बच्चे का दिन में अगर 4 बार पसीना नही आता है, उतना मेहनत नही करता है तो मां बाप ने चिंता करनी चाहिए। फिटनेस को लेकर हमारे प्रयास ही स्वस्थ भारत के संकल्प को सिद्ध करेंगे।

मैं एक बार फिर जनऔषधि केंद्र के इस अभियान में जुड़ने के लिए जो जन औषधि केंद्र चला रहे हैं उनको भी अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं देश के कोटि-कोटि जन अभी भी इस व्यवस्था से अपरिचित है मैं आपको भी कहूंगा मैं मीडिया के साथियों को बी कहूंगा कि मानवता का काम है, सेवा का काम है आप अपनी तरफ से भी इसका भरसक प्रचार कीजिए, प्रसार कीजिए और गरीब से गरीब लोग इन सुविधाओं का लाभ लें आप किसी न किसी की ज़िदंगी में मददगार होंगे अब इस काम को मिलकर करें आप सबको फिर से एक बार बेहतर स्वास्थ्य की मंगलकामनाएं करता हूं। आप सबको होली के पावन-पवित्र त्यौहार की भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और जैसा मैने प्रारंम्भ में कहा था ये कोरोनावायरस के नाम पर डरने की जरूरत नही है जागरूक होने की जरूरत, अपवाह फैलाने की जरूरत नही है उसमें जो Do’s and Dont है उसका पालन करने की जरूरत है अगर इतना हम कर लेंगे तो हम विजयी होकर आगे बढ़ेंगे मेरी फिर से एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

बहुत-बहुत धन्यवाद !

 

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Prime Minister Narendra Modi to attend Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India
December 22, 2024
PM to interact with prominent leaders from the Christian community including Cardinals and Bishops
First such instance that a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India

Prime Minister Shri Narendra Modi will attend the Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) at the CBCI Centre premises, New Delhi at 6:30 PM on 23rd December.

Prime Minister will interact with key leaders from the Christian community, including Cardinals, Bishops and prominent lay leaders of the Church.

This is the first time a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India.

Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) was established in 1944 and is the body which works closest with all the Catholics across India.