QuoteGovernment is always open to suggestions, feedback and input on its schemes, because it is working for the nation and the poor: PM Modi
QuoteNot ‘New India’, Congress wants ‘Old India’ marked by corruption and scams: PM Modi
QuoteWe are not name or game changers, but aim chasers: PM Modi
QuoteA paradigm shift has been ushered in the working of the Government; innovative projects are being thought and completed in time bound manner: PM
QuoteWhy Congress is blocking the bill for OBC Commission and the anti-Triple Talaq Bill: PM questions the opposition

आदरणीय सभापति जी, आदरणीय राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्‍यवाद प्रस्‍ताव की विशद चर्चा इस सदन ने की है। करीब 38 मान्‍य सदस्‍य ने अपने विचार रखे हैं। Maiden speech के साथ श्रीमान अमित भाई शाह ने प्रस्‍ताव रखा विनय सहस्रबुद्धे जी ने समर्थन किया। श्रीमान ग़ुलाम नबी आजाद जी, डी पी त्रिपाठी जी, प्रमोद तिवारी जी, सरदार बलवंत सिंह जी, नरेश अग्रवाल जी,   दिलीप कुमार तिर्की जी, संजय राउत जी, आनंद शर्मा जी, डेरेक ओब्राईन  जी, डी राजा, संजय सिंह, सुखेन्दु शेखर राय जी, टी के रंगराजन जी, टी जी वेंकटेश जी अनेक सभी आदरणीय सदस्‍यों ने विचार रखे हैं।  रोजगार हो, भ्रष्‍टाचार हो, किसानों की आमदनी की बात हो, विदेश नीति हो, सुरक्षा व्‍यवस्‍था हो, आयुषमान भारत हो, ऐसे अनेक विषयों पर सबने अपने विचार रखे हैं। गुलाम नबी जी को तो मैंने यहां बैठकर के सुना था बाकियों को मैंने कमरे में सुना और इसलिए उनका body language भी देखने का अवसर मिला था। और जब वो वंशवाद पर चर्चा कर रहे थे और एक परिवार को बचाने के लिए काफी कुछ कह रहे थे, जो कह रहे थे वो तो ठीक है, लेकिन उस समय उनकी मासूमियत बड़ी अच्‍छी लग रही थी। और ज्‍यादातर मैंने देखा, अभी आनंद शर्मा जी को भी सुन रहा था। तो गुलाम नबी जी से लेकर के आनंद शर्मा जी तक ज्‍यादातर तो अपनी पुरानी सरकार की बात ही बताने का मौका ले रहे थे। बाहर तो कोई सुनता नहीं है तो यहां तो कहना ही पड़ेगा। खैर कांग्रेस पार्टी या इस राजनीतिक दल ने क्‍या करना चाहिए वो न ही मुझे कुछ कहने का हक बनता है ना ही मुझे। लेकिन आपने आयुषमान भारत योजना की चर्चा की और आपने उदाहरण दिया अमेरिका का और ब्रिटेन का। अब ये अमेरिका का मॉडल और ब्रिटेन का मॉडल और भारत की सामाजिक स्थिति दोनों में आसमान जमीन का अंतर है। कोई चीज वहां सफल हो हमारे यहां सफल नहीं हो सकती है, कोई चीजें वहां विफल हो हमारे यहां बेकार हो सकती है। ऐसा तर्क ठीक नहीं है।  हमें अपनी दृष्टि से सोचना है। अपने देश के लेकिन ये इसलिए होता है कि ज्‍यादातर अब करीब 50-55 साल सत्‍ता में रहना और जमीन से कट जाना बड़ा स्‍वा‍भाविक है। और उसके कारण इस प्रकार के विचार और मर्यादायें आना भी बहुत स्‍वा‍भाविक है। लेकिन मैं नहीं मानता इसमें से कोई इस बात से कोई अहसमत होगा कि हमारे देश में आरोग्‍य के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की आवश्‍यकता है। और बहुत कुछ करने की आवश्‍यकता है it does not mean कि गुलाम नबी जब Health Minister थे तब कुछ नहीं किया। कुछ तो किया ही होगा। लेकिन बहुत कुछ करने की आवश्‍यकता है इसका इन्‍कार तो नहीं कर सकते। और इसलिए हम चर्चा की इस बात को भी समझे कि देश की आशा-अपेक्षाओं के अनुरूप हम कुछ बात को कैसे कर सकते हैं। अब ये ठीक है कि हम आयुषमान भारत योजना लेकर के आए हैं। हो सकता है इसमें कमियां हों लेकिन आखिरकार ये योजना देश के लिए है। किसी दल के लिए है नहीं तो मैं चाहूंगा कि कांग्रेस के मित्र भी एक task force बनाएं और भी दल के लोग अपना task force बनाएं आयुषमान भारत योजना की study करें और उसमें कुछ कमियां हैं तो जरूर मैं समय दूंगा। मैं खुद समय दूंगा। ultimate उद्देश्‍य क्या है ? ultimate उद्देश्‍य ये हैं कि देश में गरीब और निम्‍न मध्‍यम वर्ग का परिवार अगर बीमारी उसके घर में आती है। जो कुछ भी उसने किया कराया है सब zero पर आकर अटक जाता है। negative चला जाता है। कभी सूदखोरों से ब्‍याज से पैसे लेकर उपचार करना पड़ता है। कभी वो सोचता है कि बेटों को कर्ज में डुबाना नहीं है बीमारी झेल लो जिंदगी कम हो जाए तो हो जाए। ये साइकी बनी हुई है। और किसने किया किसने नहीं किया 70 साल क्‍यों नहीं हुए ये सारे सवाल उठ सकते हैं। लेकिन मेरी चर्चा का विषय वो नहीं है। क्‍या हमें ऐसा कुछ करना चाहिए नहीं करना चाहिए। सरकार जो सोचती है मैं आप जैसे हमारी सोच नहीं है कि भगवान ने सब कुछ हमें ही दिया है। हम मानते हैं कि यहां सदन में हमसे भी कई विद्ववान और अनुभवी लोग हैं। उनकी विद्ववता और उनका अनुभव यहां तक की बाहर भी देश में बहुत विद्ववता और अनुभवी लोग हैं। हम बैठकर के, मिल बैठकर के ये आयुषमान भारत योजना को देश के 40-50 करोड़ लोगों को अच्‍छी स्‍वास्‍थ्‍य के लिए एक विश्‍वास पैदा कर सकते हैं क्‍या? और अगर एक बार...और ये Insurance scheme है। और इसलिए मैं समझता हूं कि हम जानते हैं कि Insurance में किस प्रकार की व्‍यवस्‍था होती है। और इसलिए बजट के provision वगैहर की चर्चा करके अटकने की आवश्‍यकता नहीं है। उस पहलू से हम भली-भांति परिचित हैं। लेकिन देश के गरीब को इसका लाभ मिले। और मैं नहीं मानता हूं यहां किसी को दिक्‍कत नहीं होनी चाहिए। हां योजना लागू करने के बाद कुछ कमिया आई हों और ध्‍यान नहीं गया हो आलोचना कह लें वो ठीक है। अभी सुझाव के पीरियड पर एक योजना का प्राथमिक विचार प्रस्‍तुत हुआ है। हम मिलकर के उसको और अच्‍छा कैसे बनाएं और इसलिए मैं तो चाहूंगा कि अच्‍छे सुझाव आने चाहिए। और जो लोग आज के मेरे भाषणों को अगर सुनते होंगे टीवी पर उनसे भी मेरा आग्रह है कि इसमें कोई अच्‍छी परफेक्‍ट कुछ अच्‍छी चीजें आप दे सकते हैं तो दीजिए। देश के गरीब के लिए करना है ये इसमें कोई दल नहीं होता है जी और मैं मानता हूं कि हम सब मिलकर के इस बात को आगे बढ़ाएगें।

ये बात सही है कि अगर मैं यहां बैठकर के अंग्रेजी में 9 लिखता हूं मैं नहीं मानता यहां का कोई व्‍यक्ति इनकार करेगा ये 9 है। लेकिन वहां बैठने वाले को 6 दिखेगा। मैं अंग्रेजी में यहां 9 लिखूं, मैं गलत नहीं हूं लेकिन अब आपको 6 दिखता है तो मैं क्‍या करूंगा। क्‍योंकि आप वहां बैठे हैं। और इसलिए मैं समझता हूं कि अब कोई मुझे बताए कि हिन्‍दुस्‍तान का ease of doing business ये अगर ranking सुधार होता है। हमें दुख क्‍यों होना चाहिए। क्‍या ये इस देश के हर नागरिक को गर्व नहीं होना चाहिए कि ease of doing business हुआ। दुनिया में हमारी एक छवि बनी। देश के लिए एक अच्‍छी बात बनी। अब हमने किया, आपने किया वो मुद्दा हम जब चुनाव में जाएंगे तब खेल खेल लेंगे। लेकिन जब देश की बात होती है तो अच्‍छा है। अच्‍छा कोई हम यहां तक चले जाते हैं जी। कि कोई rating agency को दें तो अब हमपे हमला बोलना कभी संभव नहीं होता है। तो उस rating agency पर ही हमला बोल देते हैं। शायद दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता होगा। और इसलिए और कभी-कभी तो मैं अनुभव कर रहा हूं आपने भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करनी चाहिए। जमकर के करनी चाहिए। आपका हक है। मोदी की भी आलोचना करनी चाहिए। जमकर के करनी चाहिए। बाल नोंच लेने चाहिए। democracy में आपका पूरा हक है। लेकिन भाजपा की बुराईया करते-करते आप भूल जाते हैं। भारत की बुराई करने लग जाते हैं, खिसक जाते हैं आप। आप मोदी पर हमला बोलते-बोलते हिन्‍दुस्‍तान पर हमला बोल देते हैं जाकर के। जहां तक भाजप और मोदी पर करते हैं। राजनीति में आपका हक है और आपको करना भी चाहिए। लेकिन इसके कारण मर्यादा लांघ देते हैं। अब उससे देश का बहुत नुकसान होता है। तो मैं अब ये ठीक है कि आप कभी नहीं स्‍वीकार पाएंगे कि यहां हमारे जैसे लोग बैठे हुए हैं। कैसे स्‍वीकारेंगें। कभी नहीं स्‍वीकारेंगें। आपकी पीड़ा हम समझ सकते हैं। लेकिन मेहरबानी करके देश को नुकसान हो, देश की दुनिया में अब यहां पर एक विषय आया। अब राष्‍ट्रपति जी ने अपने भाषण में न्‍यू इंडिया की कल्‍पना की है। स्‍वामी विवेकानंद जी ने भी नए भारत की चर्चा की थी। महात्‍मा गांधी भी young India की बात करते थे। हमारे पूर्व राष्‍ट्रपति जी ने भी जब पद पर थे तब उन्‍होंने भी नए भारत की संकल्‍पना की बात कही थी। तो मुझे पता नहीं क्‍या परेशानी है। हमें New India नहीं चाहिए। हमें तो हमारा वो भारत चाहिए, हमें पुराना भारत चाहिए। मैं समझता हूं कि हमें गांधी वाला भारत चाहिए। मुझे भी गांधी वाला भारत चाहिए। क्‍योंकि गांधी ने कहा था कि आजादी मिल चुकी है अब कांग्रेस की कोई जरूरत नहीं है। कांग्रेस को बिखेर देना चाहिए। ये कांग्रेस मुक्‍त भारत मोदी का विचार नहीं, गांधी का है ये। हम तो उन पद-चिन्‍हों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं। अब आपको वो भारत चाहिए। आपको, कहते हैं कि हमें वो वाला भारत चाहिए। क्‍या सेना के जीप घोटाले वाला भारत, क्‍या पनडुब्‍बी घोटाले वाला भारत, क्‍या बोफार्स घोटाले वाला भारत, हेलीकाप्‍टर घोटाले वाला भारत। आपको न्‍यू इंडिया नहीं चाहिए आपको वो भारत चाहिए। आपको वो  भारत चाहिए इमरजेंसी वाला, आपातकाल वाला, देश को जेलखाना बना देने वाला। जयप्रकाश नारायण मोरारजी भाई देसाई लोगों को जेल में बंद करने वाला, देश के लाखों लोगों को जेल में बंद करने वाला, इमरजेंसी वाला भारत चाहिए। ये चाहिए आपको भारत। लोकतांत्रिक अधिकारों को छीन लेना, देश की अखबारों पर ताले लगा देना। ये भारत आपको चाहिए। आपको… आपको कौन-सा भारत चाहिए वो भारत कि बड़ा पेड़ गिरने के बाद.... बड़ा पेड़ गिरने के बाद, हजारों निर्दोष सिक्‍खों का कत्‍लआम हो जाए।  आपको… आपको न्‍यू इंडिया नहीं चाहिए। आपको भारत चाहिए। वो भारत... आपको वो भारत चाहिए। आपको वो भारत चाहिए जो तंदूर कांड होता हो और रसूखदार लोगों के सामने प्रशासन घुटने टेकता हो। वो भारत चाहिए। हजारों लोगों की मौत का गुनाहगार विमान में बिठा करके...विमान में बिठा करके उसे देश के बाहर ले जाया जाए। ये आपको भारत चाहिए। डावोस में...डावोस में आप भी गए थे, डावोस में हम भी गए थे। लेकिन आप... आप किसी की चिट्ठी लेकर के किसी को भेजते हैं आपको वो भारत चाहिए। ये और इसलिए आपको न्‍यू इंडिया नहीं चाहिए।

यहां पर जनधन योजना का राष्‍ट्रपति जी ने उल्‍लेख किया है। अब आपने जनधन की भी आलोचना की है और ये कहा ये तो कुछ नहीं पहले हुआ था। मैं चाहूंगा कि कम से कम तथ्‍यों को हम स्‍वीकार करें। political जो बोलना है बोलते जाओ।  जो हम 31 करोड़ जनधन अंकाउट की बात करते हैं। वे सारे के सारे 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद जो हुई है उन्‍हीं की....और ये रिकॉर्ड कोई बदल नहीं सकता है। ये रिकॉर्ड उपलब्‍ध है और इसलिए मैं चाहता हूं कि आप तथ्‍यों को जरा ठीक कर लें तो अच्‍छा होगा आपने ये भी कहा कि हम तो नेम चेंजर हैं गेम चेंजर नहीं हैं।

हमारे कार्यकलापों को देखेंगे और सच्‍चाई से कहना होगा  तो आप कहेंगे कि हम तो Aim changer हैं। हम लक्ष्‍य का पीछा करने वाले लोग हैं और लक्ष्‍य प्राप्‍त करके रहते हैं। और इसलिए हम जो लक्ष्‍य निर्धारित करते हैं समय सीमा में पार करने के लिए रोड मैप तैयार करते है, resource mobilize करते हैं, कड़ी मेहनत करते हैं। ताकि देश को मुसीबतों से मुक्ति दिलाने की दिशा में कुछ हम भी योगदान करें। और इसलिए कांग्रेस का ये तरसना बहुत स्‍वाभाविक है भई... हमारा जय-जयकार करो, हमें बार-बार याद करो, हर जगह पे हमको याद करो आपकी इच्‍छा रहना बहुत स्‍वाभाविक है। और अब ये सुनते-सुनते आपको आदत भी लग गई है कि इसके सिवा कोई चीज अंदर फिट ही नहीं होती है।

मुझे खुशी होगी और आप रिकॉर्ड चेक कर लीजिए कि 15 अगस्त को लालकिले पर आपके जितने प्रधानमंत्रियों को, कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री जो देश प्रधानमंत्री बने उनके भाषण में किसी और सरकार का, किसी और राज्‍य सरकार का, के द्वारा देश की भलाई के लिए कोई काम हुआ हो उसका उल्‍लेख किया हो। मैं हूं जो लालकिले पर से कहता हूं देश आज जहां पहुंचा है अब तक की सभी सरकारों का योगदान है सभी राज्‍यों सरकारों का योगदान है। और ये इसमें संकोच नहीं होना चाहिए। इसमें संकोच नहीं होना चाहिए। और हम इस बात के लिए तड़पते नहीं कि आप अटल जी का नाम याद करो, हम तड़पते नहीं है जी। आप मजबूरी में कहोगे तो ठीक है बाकि तो ठीक है। आपको जो ठीक लगे नाम आप दीजिए। और आपने ये भी कह दिया 2014 के पहले जो कुछ भी हुआ सब आपके खाते में गया। क्रेडिट लेने की बड़ी इच्‍छा हो रही है। और आपके नियम भी बड़े कमाल के हैं। जब हम छोटे थे गांव में क्रिकेट खेलने वालों को देखते थे तो छोटे-छोटे बच्‍चे  खेलते थे, तो बाद में हम देखते थे end में झगड़ा होता था। तो हमें बड़ा आश्‍चर्य होता था कि क्‍यों अभी तो खेल रहे थे  अब लड़ रहे हैं। तो फिर देखा...तो उनका एक नियम होता था जिसके हाथ में बैट होता था वो बैटिंग करता था और जैसे ही वो आउट होता था नहीं भई मैं चलता हूं। आप लोग भी यही है कि बैटिंग आप ही को मिलेगी क्‍या? और फिर अब बैटिंग नहीं मिली तो खेल पूरा, हम जाते हैं ऐसा नहीं होता है भई।

अब आपको आधार की बात आती है। तो आप कहते हैं कि काम हमारा और आप क्रेडिट ले रहे हो। अच्‍छा है अगर आप ये कहते हैं तो लेकिन आपको ये याद रहना चाहिए। और मैं चाहूंगा 7 जुलाई 1998 इसी सदन में और सभापति जी उस समय इस सदन के सदस्‍य थे। तो 7 जुलाई 1998 में उन्‍होंने एक सवाल पूछा था as a member और तब, तब के गृहमंत्री श्रीमान लाल कृष्‍ण आडवाणी जी ने जवाब दिया था इसी सदन में और उस जवाब में उन्‍होंने कहा था Multi Purpose National Identity Cards will also be used for Issuing Passports, Driving Licenses, Rashan Cards, Health Care, Admission & Educational Institution, Employment in Public Private Sector, Life and General Insurance as also for maintenance of Land records and Urban Property holdings.    आधार का बीज यहां है।

बीस साल पहले....

माननीय सभापति जी मेरी आपको प्रार्थना है कि रेणुका जी को कुछ मत कीजिए रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी सुनने का आज सौभाग्‍य मिला है।

बीस साल पहले ये vision अटल बिहारी वाजपेयी जी का था। लेकिन कांग्रेस कहती है आधार उसने शुरू किया तो भी हमें आपको क्रेडिट देने में तकलीफ नहीं है। आधार आपका।

हमनें दल से आगे देश को रखा है। और हमारे निर्णय का आधार देशहित रहता है। आज क्रेडिट लेने के लिए आप बेताब है बहुत स्‍वाभाविक है। SIT बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश किया था। आपने तीन साल तक उसका निर्णय नहीं किया ये क्रेडिट आप ही को जाना चाहिए। और हमने पहला SIT ग्रहण किया लेकिन आप कह सकते हैं कि हमारे सामने ये विषय आया था।  

कालेधन के खिलाफ कार्रवाई करने का क्रेडिट भी कांग्रेस स्‍वीकार कर ले। कांग्रेस ने 28 साल तक बेनामी संपत्ति कानून को लागू नहीं किया। उसकी क्रेडिट भी आप ले लीजिए। और अब तक 35 सौ करोड़ रूपये से ज्‍यादा संपत्ति- आपको पता होना चाहिए, मान्‍य आनंद जी आप लंबे अरसे से यहां बैठे हैं और बोलने की आपकी एक विशेष स्‍टाइल भी है। और आप तो बर्फ पर छुरा बनाकर के घोंप सकते है पता भी न चला। लेकिन ये बेनामी संपत्ति का कानून 28 साल पहले पारित हो चुका था सभी सदनों में पारित हो चुका था। लेकिन उसके rules नहीं बनाए, notify नहीं किया और अटका हुआ था। किसने रोका ये कोई विपक्ष-विपक्ष नहीं था जिम्‍मेवार, जानकारी के लिए। मुझे अच्‍छा लगा आप जैसे विद्ववान को भी कुछ...

अब तक 35 सौ करोड़ रूपये की बेनामी संपत्ति जब्‍त की है। अब आपके काल खंड में इतनी बेनामी संपत्ति बनी तो क्रेडिट तो मिलना चाहिए... क्रेडिट तो मिलना चाहिए। आपके लिए ये सारी क्रेडिट है। सारी दुनिया बदली है, InSolvency code, Bankruptcy law  मैं  नहीं मानता ये कोई ज्ञान नहीं था आपको। लेकिन आपको क्रेडिट जानी चाहिए कि बहुत लोगों के लाभार्थ था, आपने इसको नहीं बनाया। क्रेडिट आपको जानी चाहिए। देश के Industrial Sector को Global Community को भारत के प्रति विश्‍वास पैदा हो, भारत के नियमों और कानूनों के प्रति विश्‍वास पैदा हो। हमनें ये निर्णय किए। One Rank One Pension चार दशक तक देश की आंख में धूल झोंकते रहे और 500 करोड़ का बजट देकर चुनाव में चले गए। हवा बन चुकी थी क्‍या करें। अब जब हम आए तो हमनें देखा कि रिकॉर्ड तक नहीं थे किसी चीज की, बारी‍की से अध्‍ययन तक नहीं हुआ था और जब हमनें ये लागू किया 11 हजार करोड़ रूपये की जरूरत पड़ी, 11 हजार करोड़ रूपये। आप 500 करोड़ से कैसे देते  तो अब ये क्रेडिट सारी आप ही को जाएगी। जीएसटी के लिए मध्‍य रात्रि को समारोह हुआ। कांग्रेस ने इसका बहिष्‍कार किया। सभी दल आए। और आपको ये लगा कि कहीं ये हमारे को क्रेडिट मिल जाएगी और आप मानों या ना मानों ये आप जो कुछ भी कर रहे हो जीएसटी के संबंध में इसकी जितनी negativity है वो आपके खाते में जमा हो रही है और होती रहेगी और देश के दिमाग में फिट हो जाएगा। आप लोग सोचिए कि क्रेडिट कोई ले न जाए इसकी चिंता और खुद की क्रेडिट मिलती रहे।   

अब neem coating की बात आई। आपकी तरफ से कहा गया हमनें शुरू किया देखिए चीज आप आधी-अधूरी शुरू करके छोड़ दें। और आप उसपर कैप लगा दें इससे आगे नहीं जाना है। तब उस योजना का लाभ होने से नुकसान ज्‍यादा होता है। आखिरकार neem coating के पीछे दो विषय थे। जो आपको भी ज्ञान था। एक युरिया की ताकत में वृद्धि होती है। इसलिए किसान को कम यूरिया से काम चल सकता है। दूसरा qualitative change आता है ताकि उत्‍पादन में वृद्धि होती है। ये मानी हुई बात थी। और दूसरा यूरिया किसानों के पास जाने के बजाय ये कारखानों में चला जाता था। बिल किसान के नाम पर पड़ता था। सब्सिडी किसान के नाम पर कटती थी। और चला जाता था कारखानों में। अब 100 प्रतिशत नीम कोटिंग होता है। तो ये किसी कारखानें में काम नहीं आएगा। आपको भी पता था। 35 प्रतिशत करने के बाद 65 प्रतिशत का दरवाजा किसके लिए खुला रखा। ये क्रेडिट मैं किसको दूं।

और इसलिए मैं समझता हूं कि 100 प्रतिशत के पीछे हम लगें। इतना ही नहीं Imported जो यूरिया आता है उसको भी आने से पहले उसका नीम कोटिंग होता है। ये इसलिए कि अब उसी का परिणाम है कि आज यूरिया की कोई किल्‍लत नहीं होती वरना मैं जब मुख्‍यमंत्री था मुझे हर वर्ष दो-तीन चिट्ठी प्रधानमंत्री को युरिया के लिए लिखनी पड़ती थी। मैं यहां आया तो शुरू में सभी Chief Minister से यूरिया की चिट्ठी आती थी। अब आज एक चिट्ठी नहीं आती है। न कहीं लाठीचार्ज होता है। यूरिया लोगों को मिल रहा है। कुछ चीजें बदली जा सकती हैं। मैं ये बताना चाहूंगा कभी-कभी राजनीति इतनी हावी रहती है और ये बात सही है कि बार-बार चुनाव, बार-बार चुनाव का ये नतीजा है कि योजना पूरी बनी हो न बनी हो हम पत्‍थर जड़ देते हैं। फीता काट देते है। तख्‍ती लगवा देते हैं। और उसका परिणाम क्‍या हुआ। अब देखिए हमें रेलवे के बजट में घोषनाएं बंद करनी पड़ी, अभी तो रेलवे का बजट मंजूर हो गया लेकिन क्‍यों जब मैंने देखा कि पुरानी सरकारों ने 15 सौ से ज्‍यादा ऐसे रेलवे की योजना घोषित कर दी थी जिसको बाद में कोई देखने वाला ही नहीं है। ऐसे ही, हो गई घोषित। कुछ दिन हाऊस में तालिया पड़ गई। किसी अखबार में छप गया। उसे एमपी ने घर जाकर के माला पहन ली बात पूरी हो गई। ये कल्‍चर से देश का बहुत नुकसान हुआ है।

और आप हैरान होगें जी मैंने एक प्रगति technology का उपयोग करते हुए initiative लिया। और मैं खुद सारे रूके पड़े project  का review करने लगा। सभी राज्‍यों के Chief Secretaries होते हैं online भारत सरकार के सभी सचिव होते हैं और मैं online सबके साथ बैठता हूं। आप हैरान होगें जी, ऐसे-ऐसे projects सामने आए हैं जो 30 साल 40 साल पहले तय हुए। शिलान्‍यास हो गया। बाद में कागज पर उसकी लकीर भी नहीं थी। ऐसे, अब मैं एक-एक को review करने लगा सब department को इकट्ठा करने लगा मैंने ये नहीं पुरानी सरकार थी मेरी क्‍या जिम्‍मेवारी है जी नहीं, आखिरकार ये देश है continuity,  सरकारें आए, जाए आप बैठे, दूसरा बैठे, तीसरा बैठे हम कोई इसको तो रोक नहीं सकते। लोकतंत्र है लेकिन सरकार में ये भाव नहीं चलता कि ये तो जयराम रमेश के समय हुआ था नहीं, मारो ताला। ऐसा नहीं होता है जी। हमनें खोजा आप हैरान होंगें- 9 लाख करोड़ से ज्‍यादा project मैंने अब तक ऐसे clear किए हैं। सारे Ministry को बैठाया कि जो भी हो 30 साल 40 साल पुराने हैं। अब यही project उस समय हो गया होता तो शायद कुछ हजार करोड़ों में होता। लेकिन आज 9 लाख 10 लाख करोड़ के project बन गए जी। और इसलिए ये काम जो हम कर रहे हैं। सरकार आपने भी चलाई है हम भी चला रहे है। और जो भी सरकार में बैठता है उनको चलानी होती है। उनकी जिम्‍मेवारी है। लेकिन चीजों का अच्‍छे ढंग से चलाते, और ये जो सब जगह पर पत्‍थर हैं आप लोगों के नाम हैं सब हैं जो शायद पत्‍थर लोग चोरी भी करके गए हैं। लेकिन क्रेडिट सब आपको जाता है। योजनाएं आपकी हैं जी।

अब यहां हमारे आजाद साहब ने food security bill की बात की और date के साथ बोले। मैं आपसे कोई भी पूछेगा जी आपने जो date दी हम तो उसके बाद आए हैं। एक साल बाद आए हैं। एक साल में आपने क्‍यों न होने दिया। और आपने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए पूछा कि सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है। आपको पता होना चाहिए कि केरल जहां आपकी सरकार थी उसने इसको स्‍वीकार नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट ने डंडा मारा था। लेकिन अब आप वो भी हमारे सर पर डाल देते हैं। आपने करना चाहिए था। और मैं मानता हूं कि जो हम निर्णय करें उसको पूरा करने की  तैयारी के साथ करना चाहिए।    

अब fertilizer के कारखानें खोलने के लिए तो आप कह रहे हैं हमारे समय हुआ, हमारे समय हुआ, हमारे समय हुआ लेकिन बंद भी तो आपके समय हुआ। हजारों लोग बेरोजगार भी तो आप ही के समय हुए उसकी भी तो क्रेडिट लीजिए। और इसलिए आज हम उसको अगर लागू कर रहे हैं और नीतिगत बदलाव करके कर रहे हैं। आज देखिए हमनें यूपी में गोरखपुर, बिहार में बरौनी, झारखंड में सिंगरी, ये यूरिया के कारखानें जो बंद पड़े थे उसको तेज गति से आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं हम। जगदीशपुर हल्‍दिया, गैस पाइप लाइन उसके साथ हमनें उसको जोड़ा। ये नीतिगत बदलाव किया ताकि उनको गैस मिल जाए तो कारखानें को चलाने में सुविधा हो जाएगी। और ये वो इलाका है देश का जहां पर इस प्रकार की व्‍यवस्‍था करें तो पूर्वी भारत के विकास की संभावना बढ़ जाएगी। और ये वो स्‍टेट नहीं है जहां भारतीय जनता पार्टी का झंडा फहर रहा है। देश के लिए जरूरी है कि पूर्वी भारत के राज्‍यों का विकास होना चाहिए। देश का संतुलित विकास होना चाहिए। ये सीधी-साधी development की theory के आधार पर हम काम कर रहे हैं। और मुझे विश्‍वास है कि आप इन चीजों को appreciate करेंगे।

हमारे माननीय सदस्‍य श्रीमान अमित शाह का भाषण हुआ। और मुझे अच्‍छा लगा कि आजाद साहब ने उसमें से ये खोज के निकाला कि आप इतना भाषण बोले सरदार पटेल का नाम क्‍यों नहीं बोले। मुझे अच्‍छा लगा कि आपने सरदार साहब को याद किया।

अभी-अभी गुजरात में चुनाव हुए थे। उस चुनाव में हमारे बाबु भाई बैठे हैं यहां सरदार पटेल कांग्रेस पार्टी के हर literature में सरदार साहब थे। मुझे इतना अच्‍छा लगा कि चलो बहुत सालों बाद ये भी दिन आया। लेकिन और जब मैं ये सोचता था कि ये परंपरा बनी रहेगी लेकिन गुजरात का चुनाव समाप्‍त हुआ और यहां आपके पार्टी का कार्यक्रम था। अभी भी अब पुराने चित्र देख सकते हैं। बैकड्राप पर कहीं सरदार साहब नहीं है और उस समय अखबारों ने लिखा कि एक सप्‍ताह के बाद आपके यहां कार्यक्रम हो रहा है और सरदार साहब गायब है। और ये भी याद कीजिए हम सरदार साहब का नाम देना, हमारे अध्‍यक्ष जी ने उल्‍लेख नहीं किया। वो आपने उपयोग करने की कोशिश की ये भी याद करें कि सरदार साहब को और बाबा साहेब अंबेडकर को भारत रत्‍न कब मिला। इतना समय बीच में क्‍यों चला गया। और इसलिए आप चर्चा करें आरोप करे। और ये राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण के बाहर का विषय था लेकिन फिर भी आपने उठाया तो अच्‍छी बात है, उठाया। लेकिन जब आप किसी चीज को उठाते हैं तो चार उंगलियां खुद की तरफ होती हैं ये आप न भूलें यही मेरा......आप हैरान होंगें जी… आपने इस प्रकार से काम हुए हमारे देश में, हो सकता है कि शायद आपकी कार्यशैली में इस प्रकार की बारीकियों में जाने का स्वभाव नही होगा।

मेरा सौभाग्‍य रहा कि मैं बहुत लंबे समय तक मुख्‍यमंत्री रहा। और इसके कारण आजाद साहब भी मुख्‍यमंत्री रहे तो पता है कि बहुत बारीकी में जाना पड़ता है। शरद राव लंबे समय तक मुख्‍यमंत्री रहे हैं इनको पता है कि बहुत बारीकी में जाना पड़ता है। मुख्‍यमंत्री इधर-उधर नहीं जा सकता है उसको बहुत detail में दीजिए। और हम सब जो मुख्‍यमंत्री रहे उनको पता है। लेकिन यहां मुख्‍यमंत्री तो बहुत कम आते हैं, आते हैं तो छोटे से department लेकर रहते हैं। मेरे जिम्‍मे एक बड़ा काम आ गया है। और इसलिए वो आदत मुझे मेरी काम आ रही है।

हमारे देश में पिछले वर्षों जो सिंचाई के project हुए जी dam बन गया होगा लेकिन ये पानी क्‍यों है? खेत के लिए है हमने network ही नहीं बनाया। 40-40 50-50 साल यानि कोई कल्‍पना कर सकता है कि छ: मंजिला बनाएं और staircase भी न हो lift भी न हो। कैसे ऐसे काम हो गया। मैंने उसमें से 99 को Identify किया। हजारों करोड़ रूपये की योजना से काम चालु किया। पानी किसानों को पहुंचे उस दिशा में काम किया है। और 50 योजनाएं पूरी हो चुकी है बाकी योजनाएं जल्‍दी से पूरी हो जाएं उस दिशा में काम चल रहा है।

सवाल है आपने बनाया-  बनाया, अच्‍छा काम किया- अच्‍छा किया, लेकिन सोच अधूरी काम अधूरी और रूपये गए, परिणाम नहीं मिला। और अच्‍छा होता अगर comprehensive होता, integrated approach होता, holistic view होता। तो आप ही के कालखंड में जो काम हुए हैं उसमें भी अगर पूरे किए होते तो देश का भला किया होता। आपने नहीं किए ये मैं नहीं कह रहा। लेकिन कुछ करने जैसे काम कैसे करने चाहिए उसमें बहुत बड़ी कमी रह गई है। जिन-जिन को अच्‍छा काम करने का अवसर मिला है उन लोगों का दायित्‍व बनता है कि चीज...

और इसलिए देखा होगा हमनें आकर के एक बड़ा बदलाव किया है.. हमनें हमारे देश में ज्‍यादातर बजट Allocation होना यानि वहीं से ज्‍यादातर संतोष माना जाता है। ताली बज जाती है वो Allocate हो जाता है। outlay की तरफ देखने वाली संख्‍या बड़ी कम है। output पर तरफ देखने वाली उससे भी कम है। और outcome की चर्चा ही नहीं होती थी। हमनें पूरा work culture ऐसा बना दिया है। इस सरकार ने आग्रह रखा है और Parliament में रखते हैं Outcome report ताकि रूपया जिस काम के लिए निकला था उसी काम में गया कि नहीं गया। और इसलिए outcome पर बल देने की दिशा में हमारा प्रयास रहना चाहिए।

अब किसानों की आमदनी बढ़ाने की विषय की यहां चर्चा हुई है। मैं हैरान हूं कि किसान की आमदनी डबल करने में किसको एतराज हो सकता है। कोई एतराज नहीं हो सकता है। और हम इसलिए नहीं कि उसके साथ कोई राजनीति है यहां बैठे हुए हर व्‍यक्ति के दिल में है कि भई ये एक ऐसा काम है जिसको हमें करना चाहिए। अब ये कैसे होगा। जमीन के टुकड़े बढ़ते जा रहे हैं। परिवार की संख्‍या बढ़ती है अगर उसकी 10 बीघा जमीन है तो बच्‍चों में बट जाती है तो 2 बीघा, 1 बीघा में आ जाता है तो कठिनाई है, तो हमनें Technology intervention agro tech की तरफ जाना ही पड़ेगा। हमें Modernise होना ही पड़ेगा। और ये अगर हम करते हैं तो बदलाव होगा। soil health card एक प्रयास है। per drop more crop, micro irrigation एक प्रयास है। sprinkler.. एक जमाना था हमारे देश में किसान flood irrigation के बिना sugar cane हो ही नहीं सकता इस conviction वाला था। वो यही मानता था कि गन्‍ने की खेती के लिए तो खेत एकदम लबालब पानी से भरा हुआ होना चाहिए। लेकिन अनुभव से...मैं तो गुजरात में था मेरा तो नियम था sprinkler से sugar cane हो रही है sugar  का level बहुत ऊंचा आया है। अब धीरे-धीरे देश भर में तो पानी बचेगा। अब ये ऐसे कई प्रयोग है। पहले सबको मालूम है केले की खेती जो करते थे। केले की खेती करने वाला केले का फल मिलने के बाद वो जो उसका थड़ खड़ा रहता है। उसको निकालने के लिए उसको पैसा देना पड़ता था। एक एकड़ पर 5 हजा, 10 हजार, 15 हजार देना पड़ता था।

हमारे यहां Agriculture University ने जो परिणाम दिया  - केले के थड़ में से उसने फाइबर बनाया, fabrics बनाया और कपड़े बनाए। और बहुत बढि़या quality के कपड़े बन रहे हैं। इतना ही नहीं जहां सूखी भूमि है वहां उधर उसको काट कर के डाल दिया तो 90 दिन तक बिना पानी वहां पेड़-पौधे आगे बढ़ सकते हैं। अब आज जो wastage था वो wealth  में create हुआ और आज उसको लेने के लिए लोग आते हैं और उसका 10 हजार, 15 हजार एकड़ का दे रहे हैं। हमारे देश में Agriculture का जो waste है उसी पर हम बल दें तो भी हम उनकी Income में मदद कर सकते हैं। और देश में भी अब sugar हमारे यहां sugar ज्‍यादा हो जाए तो भी किसान मरेगा, sugar कम हो जाए तो भी किसान मरेगा। sugar ज्‍यादातर किसानों के द्वारा चली हुई फैक्‍ट्रीया हैं। अब हमनें इंथोनल 10 प्रतिशत कर दिया। अब इसके कारण जिस समय ये प्रेशर आएगा sugar के market पर global impact रहता है तो इंथोनल पर divert करेंगे तो किसान को सुरक्षा की संभावना हो जाएगी।

हमनें किसान संपदा योजना भी, हमें मालूम है लाखों करोड़ों रूपया हमारा इसलिए बर्बाद हो रहा है कि खेत से लेकर के मार्किट तक चेन में कई  weak point है। Infrastructure के कई weak point है। हमारा बीज से बाजार तक का comprehensive approach होगा तब जाकर के प्रयास होगा और इसलिए हम उस दिशा में काम कर रहे हैं।

और मैं मानता हूं कि e-NAM योजना हो, e-NAM योजना अभी तो प्रारंभ हुआ है। कई राज्‍य हैं जिन्‍होंने अभी भी अपने APMC Act में बदलाव करना चाहिए नहीं किया है। लेकिन करीब-करीब 36 हजार करोड़ रूपये का कारोबार e-NAM के ऊपर किसानों ने Online बिक्री करके किया है। 36 हजार का कारोबार अपने आपमें बड़ा होता है शुभ शुरूआत है। वो मैं समझता हूं काफी आगे जाएगा।

हमें Value Addition पर जाना पड़ेगा। किसान अगर हरी मिर्च बेचता है तो बहुत कम मिलता है लेकिन मिर्ची अगर लाल होती है तो लाल होकर के पाऊडर होती है। पाऊडर होकर के पैकिंग होता है और वो भी अच्‍छे ढंग से ब्रांडिंग होता है तो किसान की आय बढ़ती है। हमें Value Addition पर जाना होगा।

हमारे किसान की Allied Activity आज खेत के अंदर Solar Energy का Farm जोड़ा जा सकता है किसान की आय बढ़ा सकता है। Solar pump उसकी बिजली भी पैदा कर सकता है। Solar pump चला सकता है। Diesel का खर्चा कम कर सकता है। बिजली का खर्चा कम कर सकता है। और वो बिजली राज्‍य सरकारें खरीद भी सकती हैं। तो उसका एक बहुत बड़े खर्चे में कमी होगी।

आज हमनें बांस Bamboo 90 साल सेआपका दोष नहीं है। 90 साल से कानून बना दिया कि ये तो tree है कोई काट नहीं सकता। जबकि सारी दुनिया में Bamboo Grass है। अब ये आपने करना चाहिए तो चलो क्रेडिट आपको जाता है। हमने सोचा, हमने उठायाआज हमने Bamboo को Grass की category में रखा। आज किसान अपने खेत के बार्डर पर Bamboo की खेती कर सकता है। Bamboo की खेती से उसकी फसल को कोई नुकसान नहीं है। वो अतिरिक्‍त है। और Bamboo आज हिन्‍दुस्‍तान हजारों करोड़ का Bamboo Import करता है। हम दियासलाई के लिए Bamboo बाहर से लाते हैं, पतंग के लिए Bamboo बाहर से लाते हैं, अगरबत्‍ती के लिए Bamboo बाहर से लाते हैं। एक छोटा सा निर्णय है कि किसान की आय बढ़ाने की ताकत आ जाए।

हमारा किसान मधुमक्‍खीअब मैं हैरान हूं जी मधुमक्‍खी के क्षेत्र में कितना काम हो सकता था हम उसको नहीं कर पाए। मैं हैरान हूं क्‍यों नहीं कर पाए। इन दिनों हमनें चार वर्ष में 11 Integrated bee keeping development centre खड़े किए हैं। और शहद के उत्‍पादन में 38 प्रतिशत increase हुआ है। और ये शहद अब दुनिया के बाजार में जाने लगा है। और सबसे बड़ी बात जिस पर हमें ध्‍यान देने की जरूरत है। आज दुनिया holistic health care की तरफ चली है। दुनिया Eco friendly life की तरफ conscious हुई है। और उसके कारण chemical wax के बजाय bee wax की मांग बढ़ रही है। हमारा ये honey bee का काम इतनी बड़ी मात्रा में bee wax को बल दे सकता है कि जिसके कारण आने वाले दिनों में हम बहुत बड़ा Global Market Capture कर सकते हैं। और हमारा किसान साइड में एक पेड़ के नीचे काम कर सकता है- पशु-पालन, fisheries, poetry, value addition ऐसी कई चीजें हैं जिसको हम एक साथ जोड़ करके किसानों के घर तक पहुंचाएंगे। मैं नहीं मानता हूं कि किसान की आय दोगुनी करने में कोई दिक्‍कत हो सकती है। किसान को ताकत मिल सकती है। प्रयास हम सबने करने होंगे और हम सब प्रयास करेंगे। तो परिणाम जरूर मिलेगा। और हमारा उस दिशा में प्रयास रहना चाहिए।

आज हमारे देश में स्‍वच्‍छ भारत अभियान का मजाक उड़ाया जा रहा है, Make in India का मजाक उड़ाया जा रहा है, जनधन योजना का मजाक उड़ाया जा रहा है, अंतरराष्‍ट्रीय योगा दिवस का मजाक उड़ाया जा रहा है, कालेधन पर हो रही कार्यवाही का मजाक उड़ाया जा रहा है, सर्जिकल स्‍ट्राइक पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

लेकिन अब आप मुझे बताइए ओबीसी कमीशन को संविधान का दर्जा मिला कौन इसका विरोध करना चाहिए कोई कारण बताइए इतने सालों से मांग थी। आपकी कोई मजबूरियां होंगी नहीं लाएं। इस सदन में हमनें इसको इस कमेटी में डालोउस कमेटी में डालो, लटका पड़ा है। क्‍या हम इस काम को नहीं कर सकते ?

ये जब खुला विरोध करने की जब हिम्‍मत नहीं होती है, जनता जर्नाधन को फेस करने की ताकत नहीं होती है, आज जो ओबीसी समाज के अंदर जो aspirations जगे हैं, आज जो ओबीसी समाज जागरूक हुआ है, ओबीसी अपने हक के लिए मैदान में आया है। और आपकी राजनीति खुले आम बात करने की हिम्‍मत नहीं करती है इसलिए बहाने बाजी करके कर रहे हो। लेकिन इस देश का ओबीसी समाज देश को देने वालों में से है वो अगर अपना हक मांगता है तो मैं आग्रह करूंगा कि राजनीति छोड़ करके और नई-नई चीजें जोड़ने के नाम पर रोकने का प्रयास करने के बजाय इसको पारित करे। 

तीन तलाक... अगर आपको लगता है कि तीन तलाक के विषय पर आप जिस प्रकार का कानून चाहते हैं। किसने रोका था आपको 30 साल पहले मामला आपके हाथ में आया था। आपको जैसा चाहिए बनाना था करना तो था। लेकिन आपकी राजनीति... आप ही के मंत्री का भाषण था... था उसमें तीन तलाक क्‍यों जाना चाहिए। लेकिन जब चारों तरफ से आवाज उठीराजनीति खतरे में आई वोट बैंक खतरे में पड़ गया और अचानक से उस मंत्री को भी जाना पड़ा और उस मिशन को भी जाना पड़ा। और इस‍लिए जो कारण दिए जा रहे हैं। हिन्‍दुस्‍तान के हर Criminal कानून के अंदर जहां सजा है जो logic दे रहे हैं लागू हो सकता है। कि भई उसने किसी की हत्‍या की घर का इकलौता बेटा है, 30 साल की उम्र है। अब उसको जेल जाने का कानून क्‍यों बनाया। बूढ़े मां-बाप क्‍या खाएगें। हिंदु दो शादी करे वो जेल चला जाए उसके लिए सजा हो। तब आपको विचार नहीं आया कि उसके परिवार के लोग क्‍या खाएगें। है सजा ? और इसलिए मैं नहीं मानता हूं कोई भी इसको अध्‍ययन करेगा तो उसको आश्‍चर्य होगा कि आप किस बात की बात कर रहे हो।

कभी-कभी मुझे लगता है शायद हमारे नरेश जी ने बड़ी हमदर्दी दिखाई थी कि वो चीर हरण कर रहे थे वो कहना कठिन है। लेकिन बहुत कुछ कह रहे थे। भयजेल हम तो भुगत भोगी है, 15 साल तक क्‍या कुछ झेला है हमें मालूम है। लेकिन कानून-कानून का काम करे कि न करे और आप यहां कहें किसी के बेटे को फंसाया जा रहा है, उसको परेशान किया जा रहा है। कितना किया जा रहा है। और क्‍या मैं समझता हूं कि इस प्रकार की बातें करना कानून का उपहास कर रहे हैं कि नहीं कर रहे। कानून तय करेगा क्‍या होगा। और इसलिए मुझे जवाब कह कर मदद करो। ऐसे से हमें मदद करो।

एक कवि दुष्‍यंत कुमार की कविता के शब्‍द हैं

उनकी अपील है कि उन्‍हें हम मदद करें,

उनकी अपील है कि उन्‍हें हम मदद करें,

चाकू की पसलियों से गुंजारिश तो देखिए

महिलाओं पर अत्‍याचारमैं नहीं मानता हूं महिला पर अत्‍याचार ये कांग्रेसबीजेपीढिगनी पार्टीफलानी पार्टी का विषय है। हो ही नहीं सकता और जो चिंता आपने जताई है वो चिंता बहुत स्‍वाभाविक है। जो आजाद साहब ने बताई है। और इसीलिए मैंने हिम्‍मत की थी लालकिले पर से कहने की...कि बेटियों के लिए तो बहुत कुछ कहा जाता है लेकिन कोई तो पूछो बेटा शाम को देर से घर क्‍यों आता है ? कोई तो पूछो बेटा शाम को कहां जाता हैकिसको मिलता है? कोई तो चिंता करे कि बेटो को भी तो संस्‍कार करने की चिंता है। क्‍या हम सब एक स्‍वर से उन माताओं को झकझोर नहीं सकते, उन पिताओं को झकझोर नहीं सकते, उन शिक्षकों को नहीं झकझोर सकते कि आखिर किसी न किसी का तो बेटा है जो किसी बेटी के ऊपर अत्‍याचार कर रहा है। किसी न किसी का तो बेटा है। क्‍या हम सब एक स्‍वर में इस विषय पर समाज और आखिरकर ये सामाजिक दूषण और उसमें जितने ज्‍यादा हम मिलकर के करेगें और इसलिए मैं चाहता हूं कि हमने इन सारी चीजों में उज्जवला योजनामहिला सशक्तिकरण का एक बहुत बड़ा कामलेकिन हमनें भी ये सोचना होगा और मैं तो चाहूंगा कि सदन के माध्‍यम से देश के startup वालों से खास आग्रह करूंगा।

Clean Cooking ये हम मिशन मोड में काम देश में करना चाहिए। और हो सके तो solar आधारित नए ऐसे चूल्‍हे innovate हो ऐसे innovation हो ताकी गरीब को खाना पकाने का एक नया पैसा खर्चा न हो। और गैस ट्रांसपोटेशन के खर्चे बच जाएं। और अपने ही घर में solar की व्‍यवस्‍था हो। और आधुनिक ऐसे Innovation से चूल्‍हे बन सकते हैं। Clean Cooking ये हमारे समान्‍य जीवन के environment के लिए, महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए आवश्‍यक है। और ये कोई राजनीतिक एजेंडा का कार्यक्रम नहीं है। देश हित के काम हैं। हम मिल बैठकर के इसको आगे बढ़ाए।

अब वहां चर्चा हुई कि ये स्‍वच्‍छ भारत की advertisement पर खर्चा इतना हुआ है। मैं चाहता नहीं हूं किसी को बुरा लगे ऐसी कोई बात बताने के लिए लेकिन आप सरकार में रहे हैं। आप सार्वजनिक जीवन में जीते हैं। शौचालय स्‍वच्‍छता ये विषय जितनी मात्रा में Infrastruture का issue है उससे ज्‍यादा Behavioural issue है। आदत का विषय है और इसलिए दुनिया में इस विषय का अध्‍ययन करने वाले हर किसी ने ये कहा है। आप जब सरकार में थे तब भी इसी पर फोकस था कि जब तक behavioural change नहीं आता है इसमें breakthrough नहीं होता है। अब advertisement जो है वो सरकार के कार्यक्रमों की जगमगाहट नहीं है। behavioural change के लिए छोटी-छोटी घटनाओं को लेकर के लोगों को शिक्षित करने का काम हो रहा है। और ये कहने से पहले हम ये न भूलें कि इस गरीब आदमी के पैसो से खजानें में आए हुए पैसे परिवार के कुछ लोगों के जन्‍म दिन पर अखबारों में एक-एक पेज की advertisement छपा करती थीं। कितने रूपये- देश का हिसाब लगा दीजिए। एक ही परिवार के लोगों के जन्‍म दिन के advertisement पर कितने रूपयों के खर्चे हुए चौक जाएगें और ये behavioural change के लिए है और हम सबको प्रयास करना पड़ेगा। आपकी भी जहां राज्‍य सरकारें है उनको भी आप कहिए कि behavioul change के लिए बजट allot करें। लोगों को शिक्षित करें।

आदरणीय सभापति जी हमारे राष्‍ट्रपति जी ने...

हमारे मान्‍य आजाद साहब ने बोफोर्स के मुद्दे को बड़ा विस्‍तार से कहा और क्रेडिट लेने की कोशिश की। मैं एक quote पड़ना चाहता हूं। ये quote कांग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री और बाद में निर्विवादित राष्‍ट्रपति श्रीमान आर वेंकटरमन जी की आत्‍मकथा का हि‍स्‍सा है। आत्‍मकथा है जब मैं राष्‍ट्रपति था - आर वेंकटरमन जी का, उन्‍होंने लिखा है- उन्‍होंने जे आर डी टाटा से मुलाकात हुई और मुलाकात का ब्‍यौरा उन्‍होंने किताब में लिखा है- लिखा है टाटा ने कहा कि तोप और दूसरे रक्षा सौदे में राजीव गांधी या उनके परिवार को लाभ हुआ हो या न हुआ हो लेकिन इसको नकारना मुश्किल होगा कि कांग्रेस पार्टी को कोई कमीशन नहीं मिला। उन्‍हें लगता था कि 1980 के बाद से ये मैं आर वेंकटरमन जी की किताब पढ़ रहा हूं मेरा कुछ नहीं है। उन्‍हें लगता था कि 1980 के बाद से उद्योगपतियों से चंदा नहीं मांगा गया है और पार्टी का खर्चा ऐसे सौदों से मिलने वाले कमीशन से चलता है।

और इसलिए ये तो आर वेंकटरमन जी थे। बड़े वरिष्‍ठ नेता रहे हैं आपके और राष्‍ट्रपति थे। यहां पर कभी परिवारवाद की बात आई तो बड़ा दुख हुआगुस्‍सा भी होता है बहुत स्‍वाभाविक है क्‍योंकि मैं नहीं चाहता हूं आपमें से किसी की राजनीति को चोट पहुंचे। मैं नहीं चाहूंगा। लेकिन आप ही के एक महाशय जिनका मीडिया में  रिपोर्टेड है। उन्‍होंने क्‍या कहा। sultanate gone but we behave like sultans सुल्‍तानी तो गई लेकिन हम अभी भी सुल्‍तान की तरह behave कर रहे हैं। मैं जयराम जी के खुलेपन के लिए बधाई देता हूं।

निम्‍न मध्‍यम वर्गमध्‍यम वर्ग देखिए महंगाई का सबसे बड़ा प्रभाव मध्‍यम वर्ग पर पड़ता है और पहले महंगाई कहां तक पहुंची थी वो आज सब जानते हैं। हमने कोशिश की है कि महंगाई 2 से 6 प्रतिशत के बीच नियत्रिंत रखें । अगर जिस तेजी से जिस क्रम से मंहगाई बढ़ रही है इसी क्रम से चलती तो  निम्‍न मध्‍यम वर्गमध्‍यम वर्ग का जीना कितना मुश्किल हो जाता ये आप कल्‍पना कर सकते हैं। इन कदमों से इनको सुरक्षित करने का काम मध्‍यम वर्गीय परिवारों को बचाने का काम हमने किया है। गरीब और  मध्‍यम वर्ग के परिवार अपने मकान बनाना चाहते हैं तो बैंक के ब्‍याज दर में कटौती करके उसको सब्सिडी देकर के उसको प्रोत्‍साहित करने का काम बड़ा महत्‍वपूर्ण काम इस सरकार ने किया है।

प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी उसमें नई categories हमनें निर्माण की है। और घर बनाने के लिए 9 लाख रूपये तक के कर्ज में 4 प्रतिशत की छूट दी है ये मध्‍यम वर्ग जिसका खुद का घर हो aspiratons होता है ये पूरा करने का काम हुआ है। और 12 लाख रूपये तक का मकान है तो 3 प्रतिशत ब्‍याज में रियायत देने का काम किया है। उसी प्रकार से गांव के अंदर पुराने घर है। अब परिवार बड़ा हुआ है उसको थोड़ा विस्‍तार करना है। एक कमरा बनाना हैदो कमरे बनाने हैं तो दो लाख रूपये तक कर्ज में हमने 3 प्रतिशत तक रियायत दी है। ये सारी चीजें निम्‍न मध्‍यम वर्गमध्‍यम वर्ग को अपनी aspirations को पूरा करने के लिए काम आने वाले विषय है।

उसी प्रकार Real Estate Regulating Act- RERA आज उसने जो मध्‍यम वर्ग का मानवी मकान बनाने में जो चिंतित रहता था। एक सुरक्षा प्रदान की गई है। हमनें कई उसमें नियम किए जिसका लाभ सामान्‍य मानवी को हमने consumer protection act और उसमें consumer empowerment पर भी बल दिया है।

लोगों को सस्‍ती दवा मिलेभारतीय जन औषधि और 800 से ज्‍यादा दवाईय बहुत सस्‍ते में दी है और आपने देखा होगा, जो लोग उन दवाईयों से उनका अनुभव कर रहे हैं उनको लगता है कि उनका 60-70 प्रतिशत खर्चा कम हुआ है। knee Implants  नए आपरेशन करवाने हैं खर्चा कम किया। stent का खर्चा कम किया। dialysis.. हमारे देश में इन दिनों किडनी की समस्‍या इतनी उजागर हुई। लेकिन हमारे यहां routine व्यवस्था में dialysis के लिए या तो district headquarter में या तो बड़े शहर में जाना पड़ता था। हमनें एक मिशन बोर्ड में काम किया। करीब 500 से अधिक जिलों में बहुत ही nominal charge से ये dialysis का movement  चला है अब तक वहां पहुंचे है और अब तक कि मेरी जानकारी है करीब 22 लाख्‍ से ज्‍यादा dialysis का session हुआ है। ये सारे मानवता की दृष्टि से करने वाले काम हैं। जिसको हमनें बल दिया है।

LED बल्‍ब के कारण क्‍या लाभ हुंआ है वो आप भली भांति जान रहे हैं। हजारों करोड़ रूपये मध्‍यम वर्ग की जेब में बच रहे हैं। करीब-करीब 15-15 हजार करोड़ रूपया बढ़ रहा है।

एक विषय राष्‍ट्रपति जी ने अपने भाषण में कहा है। और मेरा उस विषय में मत है कि कोई सरकार का काम नहीं है। और न ही ये किसी दल का काम है। देश की जिनकी चिंता है ऐसे सब लोगों का काम है। और इस सदन में बैठे हुए हर किसी का काम है। और सबका बराबर काम है। और विषय राष्‍ट्रपति जी ने स्‍पष्‍ट किया। पहले प्रणव दा जब राष्‍ट्रपति थे तब उन्‍होंने भी उल्‍लेख किया था। अब पहले भी कई लोगों ने इस विषय पर अपने विचार रखे हैं और वो है लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ करवाना। ये ठीक है राज्‍य सभा में जो आते हैं उनको ये चुनाव की आपाधापी क्‍या होती है, जो लोकसभा और राज्‍यसभा दोनों करके आए उनको पता है। कुछ लोग पराजित होकर के बाद में राज्‍य सभा में पहुंचते हैं उनको भी अनुभव है कि क्‍या कठिनाई रहती है। लेकिन कभी सोचना होगा कि एक स्‍वस्‍थ परंपरा क्‍योंकि भारत का लोकतंत्र काफी mature हुआ है। हम सब हिम्‍मत करके  स्‍वस्‍थ परंपरा की दिशा में हम जा सकते हैं क्‍याऔर मैं चाहता हूं कि 1967 तक ये चला है। लोकसभा विधानसभा साथ हुए लगभग 1967 तक ये चला है। उसमें एक आध दो अपवाद हो सकते हैं लेकिन चला है। और उस समय कोई किसी को तकलीफ हुई नहीं। लेकिन बाद में किसी न किसी राजनीतिक कारणों से असं‍तुलन पैदा हुआ और आज हम देखते है एक चुनाव आया पूरा हुआ तो दूसरे की तैयारी हो जाती है दूसरा पूरा तीसरा। और उसका दबाव केंद्र सरकार पर राज्‍य सरकार पर रहता है। Federal infrastructure की एक सुखद atmosphere होना चाहिए। चुनाव के चार छ: महीने हम समझ सकते है तू-तूमैं-मैं चल जाए। लेकिन चार साढे चार साल तो कम से कम हम मिल बैठकर के देश के लिए काम कर सके। हमारी पूरी शक्ति काम में लगे। उस दिशा में हमें काम करना चाहिए। और मैं चाहता हूं कि उस दिशा में एक व्‍यापक चर्चा हो। और आप देखेगें अब जब लोकसभा का चुनाव होगा। तो चार राज्‍य उसके साथ हैं। आंध्रतेलगांनाअरूणाचल और उड़ीसा। कठिनाईया क्‍या है वो हम भली-भांति जानते है। 2009 में करीब-करीब 1 हजार करोड़ रूपया खर्चा हुआ लोकसभा के चुनाव में। 2014 में ये करीब-करीब 4 हजार करोड़ पहुंच गया। एक हजार से चार हजार। इतना ही नहीं 2014 के बाद जो assembly के चुनाव होते हैं उसमें अब तक करीब-करीब 3 हजार करोड़ खर्चा हुआ है।

अब ये हम कल्‍पना कर सकते हैं। भारत जैसा देश जहां गरीबों के लिए बहुत कुछ पहुंचाना हमारी जिम्‍मेवारी है। और हम चुनावों के अंदर हमारे यहां 1 करोड़ से ज्‍यादा लोग 9 लाख 30 हजार पोलिंग स्‍टेशनों पर उनकी डयूटी लगती है। बहुत मात्रा में security forces चुनाव प्रबंधन में ही लगे रहते हैं। security के मसले नई-नई challenge उभरती चली जाती है। और हमारा force बस उसी काम में लगा रहता है। ये पक्षा-पक्षी से परे का विषय है। देश हित के विषय में हो सकता है इसमें मतभेद भी हो लेकिन तर्क की चर्चा तू-तू मैं-मैं से न हो। एक प्रमाणिक पवित्रता से हम बहस करें। मिल बैठकर के कोई रास्‍ते खोजें। और मुझे लगता है हम इसको आगे बढ़ाने में सफल हो सकते हैं। हमनें ऐसे बहुत ऐसे निर्णय किए हैं जो बहुत दुनिया के देशों को अजूबा लगता है। इतनी पार्टियां और ऐसा निर्णय हो सकता है। लेकिन यही सदन में बैठे हुए लोगों ने भूतकाल में किए हैं। श्रेष्‍ठ निर्णय किए हैं। आने वाली पीढि़यों को लाभ करने वाले निर्णय किए हैं। मैं समझता हूं फिर एक बार दोनों सदन में बैठे हुए सभी महानुभव के सामने एक बड़ा सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है कि हम इसको करें।

मान्‍य सभापति जी कई विषयों पर सभी महानुभावो ने कई विषय कहे हैं। राष्‍ट्रपति जी का अभिभाषण अपने-आप में एक पूर्ण अभिभाषण है। दिशा क्‍या हैगति क्‍या हैइरादें क्‍या है और सामान्‍य मानवी के हितों की दिशा में हम कैसे आगे बढ़ रहे हैं उसका एक जितनी समय सीमा रहती है उसका खाता रख सकते हैं। वो रखने का उन्‍होंने प्रयास किया है। हम सब सर्वसम्‍मति से आदरणीय राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण को स्‍वीकृति दें। और धन्‍यवाद प्रस्‍ताव पारित करें। इसी एक अपेक्षा के साथ मेरा समर्थन देते हुए मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Urban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM Modi in Gandhinagar
May 27, 2025
QuoteTerrorist activities are no longer proxy war but well thought out strategy, so the response will also be in a similar way: PM
QuoteWe believe in ‘Vasudhaiva Kutumbakam’, we don’t want enemity with anyone, we want to progress so that we can also contribute to global well being: PM
QuoteIndia must be developed nation by 2047,no compromise, we will celebrate 100 years of independence in such a way that whole world will acclaim ‘Viksit Bharat’: PM
QuoteUrban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM
QuoteToday we have around two lakh Start-Ups ,most of them are in Tier2-Tier 3 cities and being led by our daughters: PM
QuoteOur country has immense potential to bring about a big change, Operation sindoor is now responsibility of 140 crore citizens: PM
QuoteWe should be proud of our brand “Made in India”: PM

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

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साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!