बंदा सिंह बहादुर एक महान योद्धा थे: प्रधानमंत्री मोदी
बंदा सिंह बहादुर के प्रयासों के चलते किसानों को पहली बार उनका अधिकार मिला, आम आदमी को उनके अधिकार दिए: प्रधानमंत्री
बंदा सिंह बहादुर खुद को शासन का सिर्फ एक साझीदार मानते थे। उन्‍होंने अपने लिए कभी इस हक का उपयोग नहीं किया: प्रधानमंत्री मोदी
बंदा सिंह बहादुर जी ने गुरू गोविंद सिंह के वचनों को अपने मन और क्रम में बसा लिया और गुरु-शिष्य परंपरा की उज्ज्वल मिसाल कायम की: प्रधानमंत्री
मैं बाबा बंदा बहादुर को उनकी बहादुरी और बलिदान के लिए नमन करता हूं: प्रधानमंत्री
बंदा सिंह बहादुर का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है: प्रधानमंत्री मोदी

इस साल बाबा बंदा सिंह बहादुर दा 300 साला शहीदी दिवस ना सिर्फ पंजाब जां हिन्दुस्तान दी धरती ते ही सगों संसार भर विच जिथे-जिथे वी हिन्दुस्तानी वसदे हन, बड़े उत्साह नाल मनाया जा रिहा है। हुण जदों असी सारे उन्हां दी लासानी शहीदी नू याद करके नतमस्तक हुन्दे हां, उदों मैं तुहाड़े नाल इस महान योद्वे बारे कुछ गल्लां सांझीया करना चाहंवांगा। 

आज हमने कविवर रवीन्‍द्रनाथ टैगोर द्वारा रची हुई बाबा बंदा सिंह की त्‍याग और बलिदान की गाथा एक बहुत ही खूबसूरत कविता के माध्‍यम से हमने सुनी और जैसे मानो वो कालखंड हमारे सामने जीवित हो गया। इस कविता से यह बात स्‍पष्‍ट है कि बंदा बहादुर वो उस शख्‍सियत का नाम था, जहां पर त्‍याग और बलिदान की धरोहर पर, समाज के प्रति संवेदना, समाज के सुख-दुख के लिए मर-मिटने की कामना, न सिर्फ वीरता, न सिर्फ बलिदान; लेकिन समाज सुधार, सामान्‍य मानविकी के आधार, ऐसी मजबूत नींव जिस महापुरुष ने, जिस वीर योद्धा ने रखी, उनकी 300वीं शहीदी पर आज हम उनसे प्रेरणा लेने के लिए, उनसे कुछ सीखने के लिए और उनकी सीख को हमारे कार्यकलाप में लाने के लिए आज हम उनका पुण्‍य स्‍मरण कर रहे हैं।

बाबा बंदा सिंह की बात पंजाब या उत्‍तर भारत तक सीमित नहीं था। उनका जीवन एक आदर्श है जो 300 साल से भारत के लोगों को प्रेरणा देता रहा है। हम सब जानते हैं कि बंदा बहादुर जी एक महान योद्धा होने के साथ-साथ सामान्‍य मानविकी के प्रति अत्‍यन्‍त संवेदनशील प्रशासक के रूप में इतिहास पर अपना नाम अंकित करके गए है। लेकिन जब गुरुदेव टैगोर ने उनके बारे में लिखा तो वो मानवीय गुण हमारे सामने प्रस्‍तुत किए, जो दूसरों के लिए मिसाल होते हैं। जो दूसरों को जीवन भर प्रेरणा देते हैं। युद्ध के दौरान मुश्‍किल से मुश्‍किल हालात में भी बंदा सिंह बहादुर को कभी-भी पूरे कार्यकाल में एक पल भी, एक डगर भी अपने मार्ग से विचलित हुआ, बहादुर बंदा सिंह को इतिहास में कहीं ढूंढने पर भी नज़र नहीं आता है। ये छोटी बात नहीं है।

बंदा सिंह पूरे कार्यकाल तक सिर्फ हाथ में तलवार रखते थे, ऐसा नहीं है। वो तलवार की धार पर जीवन जी लेते थे और उसके कारण जीवन का इतना संघर्षमय काल, शासकीय काल, लेकिन कभी भी मार्ग से विचलित नहीं होना, लक्ष्‍य को ओझल नहीं होने देना; मैं समझता हूं कि इतिहास में ऐसी शक्‍तियां बहुत कम नज़र आती है।

बंदा सिंह बहादुर जी का साहस, उनका कर्तव्‍य था। रवीन्‍द्र टैगोर की प्रेरणा बने। ये अपने आप में एक मिसाल है। विपरीत परिस्‍थितियों में भी साहस के साथ, स्‍वाभिमान के साथ, जीवन में मुकाबला किया जाता है, ये अगर किसी से सीखना है तो बंदा बहादुर जी पर गुरु रवीन्‍द्रनाथ जी ने जो कविता लिखी है, उस कविता के एक-एक शब्‍द से हमें वो जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है, हमारा रास्‍ता प्रशस्‍त करती है।

18 वीं शताब्‍दी के जिस दौर में बंदा बहादुर सिंह जी का जन्‍म हुआ, उस वक्‍त देश सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उथल-पुथल से गुज ररहा था। आप कितनी भी उम्र के हो, देश के किसी भी हिस्‍से में हो, लेकिन इन परिवर्तनों का असर सीधा-सीधा असर समाज के हर तबके-तबके पर पड़ता है। बंदा बहादुर जी का बचपन भी इन बातों से अछूता नहीं रहा। वे आसपास के माहौल को देख रहे हैं, समझ रहे हैं। लेकिन कहते हैं कि इंसान की जिंदगी में कई बार सिर्फ एक घटना उसकी आने वाली जिंदगी का सफल तय कर देती है। बंदा सिंह बहादुर जी के साथ भी ऐसा ही हुआ था। किशोर अवस्‍था में एक जानवर को मारने के बाद वो इतने परेशान हो गए, उन्‍हें इतनी आत्‍मग्‍लानि हुई, वो वैरागी हो गए।

हम भगवान बुद्ध की कथा सुनते हैं। दो भाई जंगल जाते हैं हम उस मारने वाले कि बचाने वाले का और जो बचाने वाला का पक्ष लेता था वो सिद्धार्थ बुद्ध बन जाता है। बंदा बहादुर सिंह, एक घटना उनके मन को आंदोलित कर गई और वे वैरागी बन गए। यह वैराग उन्‍हें गुरू गोविंद सिंह के चरणों में ले गया। नांदेड़ में गुरू गोविंद सिंह जी मुलाकात के बाद ही उनके पुराने जीवन की पहचान पीछे छुट गई। संसार का वो हाथ छोड़ दिया। कभी माधव दास के नाम से जाने जाते थे, वो बात इतिहास के घर में डूब गई और वे बंदा सिंह का नाम धारण करते हुए इस मुलाकात के बाद इस वैरागी किशोर गुरू गोविंद सिंह जी की प्रेरणा से एक महान सैनिक बनने की राह पर चल पड़ा। बाबा बंदा सिंह बहादुर जी ने गुरू गोविंद सिंह के वचनों को अपने मन और क्रम में बसा लिया। शायद गुरू के प्रति ऐसा समर्पण जो बंदा बहादुर ने दिखाया है वो गुरू-शिष्‍य परंपरा की एक उज्‍जवल मिसाल में कह सकता हूं और इतिहास गवां है कि इसके बाद गुरू गोविंद सिंह जी के इस बंदे ने कैसे अपने साथ हजारों लोगों को जोड़ा, व्‍यवस्‍था परिवर्तन की एक नई शुरूआत की। एक महान संगठन के रूप में उन्‍होंने समाज के हर तबके के लोगों को अपने साथ जोड़ा। जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने छोटे-छोटे मालवाओं को अपने साथ जोड़ करके एक महान सैन्‍यशक्ति का निर्माण किया था। बंदा सिंह बहादुर ने भी समाज के हर तबके के लोगों को अपने साथ जोड़ करके एक महान सैन्‍य शक्ति का अपनी संगठन कौशल्‍य का, एक great organizer का उन्‍होंने परिचय करवाया था। और संगठन की शक्ति से बड़े-बड़े लक्ष्‍य भी हासिल किये जा सकते हैं। उनके पास न संसाधन थे, न रुपये-पैसे थे, न राज था। संगठन का कौशल्‍य था, हौसला बुलंद था और जो ठान लेते थे उसे करने के लिए जीवनभर को खपाने के लिए दम-खम के साथ अपने आप को आहूत करने के लिए वो हर पल तैयार रहते थे। बंदा सिंह बहादुर के शासन में पहली बार पंजाब की धरती पर गरीब किसान जमीन का मालिक बना। जो बोये वही खाये यह सिद्धांत को बंदा सिंह बहादुर ने किसानों को उनका अधिकार वापस लौटाया। बंदा सिंह जानते थे कि अगर गरीबों का उत्‍थान करना है तो उन्‍हें अधिकार देना ही होगा। वो किसानों की आर्थिक आजादी के पक्षधर थे। जो आज समाजवादी विचारधारा की चर्चा करते हैं बंदा सिंह के शासनकाल के एक-एक निर्णय को देखेंगे। तो समाज के सामान्‍य मानवीय को empower कैसे करना है। उसके भीतर विकास की अलक कैसे जगाना और सामान्‍य मानव की शक्तियों के भरोसे पूरे मुल्‍क को आजादी की ओर कैसे ले जाना यह बंदा सिंह जी की पूरे शासनकाल के हर निर्णय के भीतर हम महसूस करते थे। वो जानते थे कि इस देश में गरीबी तब दूर होगी, जब समाज के हर तबके का विकास होगा। असंतुलित विकास की हर अड़चन को उन्‍होंने दूर किया। उनके साधन में गरीबों और पिछड़ी जातियों के हित पूरी तरह सुरक्षित थे और उन्‍हें बिना किसी भेदभाव के साथ न्‍याय मिलता था। एक महान योद्धा होते हुए भी उस दौर में लोकतंत्र के प्रति बंदा सिंह बहादुर का समर्पण आज भी एक मिसाल है, प्रेरणादायक है। उन्होंने शासन की सारी शक्‍तियां सिर्फ अपने हाथ में नहीं रखी। वे खुद को शासन का सिर्फ एक साझीदार मानते थे। यहां तक कि सिक्‍के और मुहर भी उन्‍होंने अपने नहीं, गुरु नानक देव जी का और गुरु गोविंद सिंह जी के नाम चलवाए। अपना नाम कभी आगे नहीं रखा। आज के युग की राजनीति को देखे। पता चले वो तो तलवार की नोंक पर जीवन आहुत करके शासन व्‍यवस्‍था पर विराजमान हुए थे। उनका हक बनता था लेकिन उन्‍होंने अपने लिए कभी इस हक का उपयोग नहीं किया। अंतर्भूत मन में लोकतांत्रिक मूल्‍यों का कैसा जतन हुआ होगा, वो हम इस बात से महसूस कर सकते थे, अनुभव कर सकते हैं।

वे इस देश की सांस्‍कृतिक और धार्मिक विविधताओं को सम्‍मान देते थे। वैसे तो सिख, इतिहास के हर पन्‍ने पर.. और ये मैं बहुत जिम्‍मेवारी के साथ कहता हूं। सिख इतिहास के हर पन्‍ने पर शहीदों की दास्‍ताने दर्ज है। लेकिन बाबा सिंह बहादुर जी की शहादत का शायद ही, कोई और उदाहरण हमें मिल सकता है। जो कभी वैरागी थे, उन्‍हें राष्‍ट्रभक्‍ति ने इतना हौसला दे दिया था कि वो न यातनाओं से डरे, न वो मौत से डरे थे।

इस 300 साल शहीदी समागम के मौके पर मैं बंदा सिंह जी की विलक्षण प्रतिभा, उनके साहस और उनकी शहादत को शत-शत नमन करता हूं। श्री गुरु ग्रंथ साहब में अंकित भक्‍त कबीर जी के शब्दों में ही कहूं तो-

सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत।

पुर्जा-पुर्जा कर मरे, कबहू ना छोड़े खेत।।

मुझे खुशी है कि आदरणीय प्रकाश सिंह जी बादल के नेतृत्‍व में पंजाब सरकार ने 2010 में चप्‍पड़ चिड़ी के ऐतिहासिक मैदान में फतह बुर्ज बनवाकर, बाबा बंदा सिंह बहादुर और उनके साथियों की शहादत को श्रद्धांजलि दी, एक बहुत ऐतिहासिक सम्‍मान दिया। यह फतह बुर्ज सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्‍कि दूसरे देश के हिस्‍सों के लिए भी, नौजवानों के लिए भी, आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत है।

पिछले एक साल में पंजाब सरकार समेत शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और दिल्‍ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, बाबा बंदा सिंह बहादुर जी के 300 साल शहीदी समागम मनाने के लिए कई आयोजन कर चुकी है और आगे भी कई आयोजन होने वाले है। मेरी इस महापुरुष को नमन करने के साथ-साथ, इन कार्यक्रमों के लिए भी अनेक-अनेक शुभकामनाएं।

इस साल और भी एक सौभाग्‍य, देश के कोटि-कोटि जनों को मिलने वाला है और वो सौभाग्‍य है गुरु गोविंद सिंह जी के जन्म की 350 वीं वर्षगांठ बहुत ही सम्मान के साथ भारत सरकार मनाने जा रही है और देश के हर कोने में मनायी जाएगी। दुनिया भर में जहां हिन्‍दुस्‍तानी फैले हैं उन सब जगह पर मनाई जाएगी। इस प्रयोजन हेतु भारत सरकार ने 100 करोड़ रुपए की राशि आबंटित की है। समारोह के आयोजन के लिए एक उच्च स्तरीय राष्ट्रीय समिति गठन किया जा रहा है।

मुझे विश्‍वास है कि इतिहास की ये घटनाएं हमारी आने वाली पीढ़ी को, हमारी जड़ों से जोड़ेगी। जो इतिहास को भुला देते हैं वे कभी इतिहास रच नहीं सकते हैं। इतिहास वहीं रच सकते हैं जो इतिहास की जड़ों से जुड़े रहते हैं। इसलिए शायद हम 300 साल मनाए, हम 350 साल मनाए, हम शताब्‍दी मनाए, ये सारे अवसर हमें उन महान परंपराओं के साथ जोड़ते हैं, ऐतिहासिक धरोहर के साथ जोड़ते हैं और उससे भविष्‍य की राह तय करने के लिए हमें एक नई ऊर्जा देते हैं, नई प्रेरणा देते हैं, एक नवचेतना देते हैं।

मुझे विश्‍वास है कि बाबा बंदा सिंह बहादुर जी को जो स्‍मरण कर रहे हैं वे वीरता के साथ-साथ, त्‍याग और बलिदान के साथ-साथ एक प्रशासक के रूप में, समाज सुधारक के रूप में भी समाज के पास पहुंचेगा। मैं उनके श्री चरणों में प्रणाम करता हूं और उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम समाज की सेवा कर सके, देश की सेवा करे, यही कामना करता हूं और इस समारोह में आने के लिए मुझे अवसर मिला, मुझे जो सम्‍मान मिला, इसके लिए मैं सबका बहुत-बहुत आभारी हूं। वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतह।

 

Explore More
78ನೇ ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯ ದಿನಾಚರಣೆಯ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ ಕೆಂಪು ಕೋಟೆಯಿಂದ ಪ್ರಧಾನಮಂತ್ರಿ ಶ್ರೀ ನರೇಂದ್ರ ಮೋದಿ ಅವರು ಮಾಡಿದ ಭಾಷಣದ ಕನ್ನಡ ಅನುವಾದ

ಜನಪ್ರಿಯ ಭಾಷಣಗಳು

78ನೇ ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯ ದಿನಾಚರಣೆಯ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ ಕೆಂಪು ಕೋಟೆಯಿಂದ ಪ್ರಧಾನಮಂತ್ರಿ ಶ್ರೀ ನರೇಂದ್ರ ಮೋದಿ ಅವರು ಮಾಡಿದ ಭಾಷಣದ ಕನ್ನಡ ಅನುವಾದ
Snacks, Laughter And More, PM Modi's Candid Moments With Indian Workers In Kuwait

Media Coverage

Snacks, Laughter And More, PM Modi's Candid Moments With Indian Workers In Kuwait
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
ಸಾಮಾಜಿಕ ಮಾಧ್ಯಮ ಕಾರ್ನರ್ 22 ಡಿಸೆಂಬರ್ 2024
December 22, 2024

PM Modi in Kuwait: First Indian PM to Visit in Decades

Citizens Appreciation for PM Modi’s Holistic Transformation of India