भारत प्राचीन काल से ही इस दुनिया में विज्ञान और तकनीक से जुड़े ज्ञान का केंद्र माना जाता रहा है। बीच में एक दौर ऐसा भी आया जब विदेशी शासकों और औपनिवेशिक युग ने कई प्रमुख संस्थानों को इतना नुकसान पहुंचाया कि उन्हें आज तक फिर जिंदा नहीं किया जा सका। लेकिन ‘देश, काल, परिस्थिति’ के महत्व का यह वर्णन प्राचीन पवित्र ग्रंथों में रहा है और बीते 10 बरसों में हम धर्म के प्रति समग्र दृष्टिकोण में बड़े और स्पष्ट बदलाव होते देख रहे हैं। भू-राजनीति से लेकर हमारी विदेश नीति तक, ‘भारतीय बोध’ के एकीकरण और ‘हम’ पर जोर ने भारत को देखने वाले दुनिया के नजरिये पर जबर्दस्त प्रभाव डाला है।
यह मान लेना अज्ञानता ही होगी कि इसके पीछे विविध पृष्ठभूमि से आने वाले 140 करोड़ भारतीयों के समर्थन वाली मजबूत और स्थिर सरकार की कोई भूमिका नहीं रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में आज भारत 21वीं सदी की सबसे जागृत अवस्था में है। राष्ट्र की इस दिव्यता के पीछे जो प्रचुर आस्था है, उसे बस राजनीतिक इच्छाशक्ति के रूप में देखना सतही होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गवर्नंस के हर पहलू में बेहतर प्रदर्शन किया है और भारत को आध्यात्मिकता, तकनीक और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी लोकतंत्र बनाया है।
हर तरह से देश को एकजुट करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो सफलता हासिल की है, वह कोई दूसरा प्रधानमंत्री नहीं कर सका। चाहे सभ्यता और संस्कृति में उत्तर और दक्षिण की खाई को पाटने वाले ‘काशी तमिल संगमम’ की वाराणसी में स्थापना हो, जिसका मकसद उत्तर और दक्षिण के लोगों के बीच संबंध को मजबूत करना रहा। तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान से सिखों और गुरु ग्रंथ साहिब के तीन स्वरूपों की सम्मानजनक वापसी को भी इसमें याद किया जाएगा। सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटों की शहादत को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाए जाने का पीएम मोदी का ऐलान भी बहुप्रतीक्षित और ऐतिहासिक कदम रहा।
संसद की नई इमारत के निर्माण और इसकी शुरुआत ने भी भारत के स्वर्ण युग की यादें ताजा कर दी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 28 मई को जब नई संसद में चोल राजवंश से जुड़े ‘सेंगोल’ (राजदंड) की स्थापना की तो यह देश के लिए जड़ों से जोड़ने वाला संजोया गया क्षण रहा। हमारे देश ने दुनिया को कुछ ऐसी अवधारणाएं दी हैं, जो पश्चिमी देशों के लिए अकल्पनीय रही हैं। यह दावा करना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हमारे ज्यादातर प्राचीन ज्ञान का आधार वैज्ञानिक अनुसंधान और अवधारणाएं रही हैं। हालांकि, कुछ सदियों तक इस अहसास को मिटा दिया गया, लेकिन हाल में इस प्राचीन विरासत का बोध फिर लौट रहा है। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ताकतवर नेता हैं, जो लोकतंत्र के पावन मंदिर में इन प्राचीन अनुष्ठानों को करके देशवासियों में गर्वोक्ति का भाव भर रहे हैं।
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का जीर्णोद्धार और उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर के निर्माण ने हमारे प्राचीन इतिहास के अहम पहलुओं को फिर से उजागर किया है। इसके साथ ही, चोरी और लूट के जरिए विदेश पहुंचीं कलाकृतियों और मूर्तियों का लौटना भारतीय विरासत के लिए गर्व का क्षण है, जो विभिन्न देशों की ओर से खेद जताने का प्रतीक भी है। ऐसे महत्वपूर्ण काम हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के स्थायी साक्ष्य के रूप में देश की स्मृति में अंकित हो रहे हैं।
G20 शिखर सम्मेलन की कामयाबी भी बता रही है कि भारत की संस्कृति, विविधता और सभ्यता वैश्विक क्षेत्र में फिर से नया जीवन ले रही है। इस शिखर सम्मेलन में आए विदेशी मेहमानों को प्रधानमंत्री मोदी ने जो गिफ्ट दिए, वे भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का परिचायक हैं। इन उपहारों को चुनने की सोच को भी सराहा जाना चाहिए। मेहमानों को जो गिफ्ट दिए गए, उनमें खादी स्कार्फ, कन्नौज का जिगराना इत्र, कश्मीरी पश्मीना शॉल, अरकू कॉफी, दार्जिलिंग और नीलगिरि की चाय और पीतल की पट्टी वाले शीशम की लकड़ी से बने संदूक रहे। ये सभी भारत के कुदरती सौंदर्य और पारंपरिक शिल्प को दिखाते हैं।
अपनी विदेश यात्राओं में भी प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रप्रमुखों को ऐसे ही उपहार देते रहे हैं। जोहानिसबर्ग में हुई BRICS समिट में मोदी ने साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति को तेलंगाना की मशहूर सुराही गिफ्ट की तो उनकी पत्नी को नगा संस्कृति का शॉल दिया। ब्राजील के राष्ट्रपति को गोंड पेंटिंग गिफ्ट की। अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी जिल बाइडन को वह कश्मीरी बक्से में हीरा गिफ्ट कर चुके हैं। इस अनूठी उपहार परंपरा ने भारतीय कला को दुनियाभर में मशहूर करने का रास्ता दिखाया है।
बीते 9 बरसों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नेतृत्व से भारत की आध्यात्मिक विरासत को देश की एकता के साथ जोड़ने का काम किया है। धर्म के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के जरिये उन्होंने कई ऐसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, जो बेहतर अवसरों के साथ भारत को उज्ज्वल भविष्य की ओर ले जा रहे हैं।
योग दिवस और इंटरनैशनल इयर ऑफ मिलेट्स प्रोग्राम जैसे कई पहलों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ऐसे नेता साबित हुए हैं, जो अपनी सांस्कृतिक जड़ों से मजबूती से जुड़े हुए हैं। उनकी ही अगुआई में भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर वैश्विक मंच पर मजबूत शिखर के रूप में उभरा है। खास बात यह कि भारत ने उस ब्रिटेन को पीछे छोड़ यह कामयाबी पाई है, जिसका यह देश कभी उपनिवेश रहा है।
23 अगस्त 2023 की शाम 6:04 बजे भारत के चंद्रयान-3 ने इतिहास रचा। भारत अपने लैंडर को चांद के साउथ पोल पर उतारने वाला दुनिया का पहला देश बना। उस शाम जब हर भारतीय इस ऐतिहासिक क्षण के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए टीवी, फोन और रेडियो से चिपका हुआ था, तो हजारों मील दूर जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स समिट में मौजूद प्रधानमंत्री मोदी भी भावुक हो उठे। तब वह दुनिया को यह दिखाने से नहीं कतराए कि उन्हें देश की इस सफलता पर कितना गर्व है। कुछ साल पहले ही जब इस अभियान में नाकामी मिली थी, तब भी वह भारत की स्पेस एजेंसी इसरो के चीफ को सांत्वना देते दिखे थे। आखिर प्रधानमंत्री मोदी के दौर में ही भारत ने यह इतिहास रचा। इतना ही नहीं, हफ्ते भर बाद भारत ने सूर्य की स्टडी के लिए अपना पहला मिशन आदित्य एल-1 भी लॉन्च कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ आध्यात्मिक और वैज्ञानिक नेता ही नहीं हैं, वह महिला अधिकारों के कट्टर समर्थक भी हैं, जिसका बड़ा उदाहरण तीन तलाक जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ उनका रुख है। लिंग समानता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता मोदी के इस कथन से ही साबित होती है- ‘भारत मजबूत है, क्योंकि इसकी बेटियां मजबूत हैं।’ उनकी हर साल केदारनाथ यात्रा, सैनिकों के साथ दिवाली मनाना, बोहरा समुदाय के साथ आत्मीय नाता भारत के विविध समुदायों से जुड़ने के उनके प्रयासों को ही दिखाते हैं। सामाजिक विभाजन और दुष्प्रचार के बीच, करप्शन और भाई-भतीजावाद के खिलाफ उनकी अटूट जंग भारत को अभिजात्य प्रभुत्व से मुक्त कराने में अहम है।
जैसा कि सभी जानते हैं भारत ने पूरी बहादुरी से कोविड-19 महामारी से जंग लड़ी। यह प्रधानमंत्री मोदी का ही मिशन था कि इस वायरस से जंग में पहले देशवासियों को सुरक्षा दी जाए और फिर अन्य देशों को भी वैक्सीन के रूप में मदद दी गई। उनके लिए हर भारतीय, उनकी जिम्मेदारी सबसे पहले है। यही वजह है कि भारत को जल्द ‘अखंड भारत’ बनाने के मिशन में उनके अंदर सेल्फ-मेड लीडर की झलक दिखती है। वह एक नेता के रूप में समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं, जो अपने देश को न केवल वैश्विक मंच पर ले गया है बल्कि उस राह पर भी ले गया है, जो उससे परे थी।