Our definition of democracy can't be restricted to elections & governments only. Democracy is strengthened by ‘Jan Bhagidari’: PM
It is public participation that strengthens democracy: PM Modi
Mahatma Gandhi brought sea change in the freedom struggle. He made it a 'Jan Andolan': PM
I want to make India's development journey a 'Jan Andolan'; everyone must feel he or she is working for India's progress: PM Modi
#SwachhBharat has turned into a people’s movement: PM Narendra Modi
Democracy faces threat of 'Mantantra' and 'Moneytantra': Prime Minister
Restricting ourselves to private & public sectors will limit our development. The personal sector is a source of great strength: PM
Small scale industries are growing & providing jobs to several people across the country: PM
Our Government has launched 'Mudra Bank Yojana' to boost the small scale industries: PM Modi

श्री संजय गुप्‍ता जी, श्री प्रशांत मिश्रा जी, उपस्थित सभी गणमान्‍य महानुभाव जागरण परिवार के सभी स्‍वज़न... 

हमारे यहां कहा जाता है कि राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम: eternal vigilance is the price of liberty और आप तो स्‍वयं दैनिक जागरण कर रहे हैं। कभी-कभी यह भी लगता है कि, कि क्‍या लोग 24 घंटे में सो जाते हैं, कि फिर 24 घंटे के बाद जगाना पड़ता है। लेकिन लोकतंत्र की सबसे पहली अनिवार्यता है और वो है जागरूकता और उस जागरूकता के लिए हर प्रकार के प्रयास निरन्‍तर आवश्‍यक होते हैं। अब जितनी मात्रा में जागरूकता बढ़ती है, उतनी मात्रा में समस्‍याओं के समाधान के रास्‍ते अधिक स्‍पष्‍ट और निखरते हैं, जन भागीदारी सहज बनती है और जहां जन-भागीदारी का तत्व बढ़ता है, उतनी ही लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाएं मजबूत होती हैं, विकास की यात्रा को गति आती है और लक्ष्‍य प्राप्ति निश्चित हो जाती है।

उस अर्थ में लोकतंत्र की यह पहली आवश्‍यकता है निरन्तर जागरण| जाने अनजाने में यह क्‍यों न हो लेकिन हमारे देश में लोकतंत्र का एक सीमित अर्थ रहा और वो रहा, चुनाव, मतदान और सरकार की पसंद| ऐसा लगने लगा मतदाताओं को कि चुनाव आया है तो अगले पांच साल के लिए किसी को कॉन्‍ट्रेक्‍ट देना है, जो हमारी समस्‍याओं का समाधान कर देगा और अगर पांच साल में वो कॉन्‍ट्रेक्‍ट में fail हो गया तो दूसरे को ले आएंगे। यह सबसे बड़ी हमारे सामने चुनौती भी है और कमी भी । लोकतंत्र अगर मतदान तक सीमित रह जाता है, सरकार के चयन तक सीमित रह जाता है, तो वो लोकतंत्र पंगु हो जाता है।

लोकतंत्र सामर्थ्‍यवान तब बनता है, जब जन-भागीदारी बढ़ती है और इसलिए जन-भागीदारी को हम जितना बढायें| अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। अगर हम हमारे देश के आजादी के आंदोलन की ओर देखें- ऐसा नहीं है कि इस देश में आजादी के लिए मरने वालों की कोई कमी रही। देश जब से गुलाम हुआ तब से कोई दशक ऐसा नहीं गया होगा कि जहां देश के लिए मर मिटने वालों ने इतिहास में अपना नाम अंकित न किया हो। लेकिन होता क्‍या था , वे आते थे, उनका एक जब्‍बा होता था और वो मर मिट जाते थे। फिर कुछ साल बाद स्थिरता आ जाती थी फिर कोई पैदा हो जाता था। फिर निकल पड़ता था। फिर उसकी आदत हो जाती थी। आजादी के आंदोलन के लिए मरने वालों का तांता अविरत था, निरंतर था। लेकिन गांधी जी ने जो बहुत बड़ा बदलाव लाया वो यह था कि उन्‍होंने इस आजादी की ललक को जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। उन्‍होंने सामान्‍य मानविकी को , आजादी के आंदोलन का सिपाही बना दिया था।

एक आध वीर शहीद तैयार होता था, तो अंग्रेजों के लिए निपटना बड़ा सरल था। लेकिन यह जो एक जन भावना का प्रबल, आक्रोश प्रकट होने लगा, अंग्रेजों के लिए उसको समझना भी मुश्किल था | उसको हैंडल कैसे करना है यह भी मुश्किल था और महात्‍मा गांधी ने इसको इतना सरल बना दिया था कि देश को आजादी चाहिए न , अच्‍छा तुम ऐसा करो तकली ले करके, रूई ले करके, धागा बनाना शुरू कर दो, देश को आजादी आ जाएगी। किसी को कहते थे कि आपको आजादी का सिपाही बनना है तो अगर तुम्‍हारे गांव में निरक्षर है उनको शिक्षा देने का काम करो, आजादी आ जाएगी। किसी को कहते थे तुम झाडू लगाओ, आजादी आ जाएगी।

उन्‍होंने हर सामाजिक काम को स्वयं से जो भी अलग होता था उसको उन्‍होंने राष्‍ट्र की आवश्‍यकता के साथ जोड़ दिया और जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। सिर्फ सत्‍याग्रह ही जन-आंदोलन नहीं था। समाज सुधार का कोई भी काम एक प्रकार से आजादी के आंदोलन का एक हिस्‍सा बना दिया गया था और उसका परिणाम यह आया कि देश के हर कोने में हर समय कुछ न कुछ चलता था। कोई कल्‍पना कर सकता है ? अगर आज बहुत बड़ा मैनेजमेंट expert होगा कोई बहुत बड़ा आंदोलन शास्‍त्र का जानकार होगा। उसको कहा जाए कि भाई एक मुटठी भर नमक उठाने से कोई सल्‍तनत चली जा सकती है यह thesis बना कर दो हमको, मैं नहीं मान सकता हूं कि कोई कल्‍पना कर सकता है कि एक मुटठी भर नमक की बात एक सल्‍तनत को नीचे गिराने का एक कारण बन सकती है। यह क्‍यों हुआ , यह इसलिए हुआ कि उन्‍होंने आजादी के आंदोलन को जन-जन का आंदोलन बना दिया था।

आजादी के बाद अगर देश ने अपनी विकास यात्रा का मॉडल गांधी से प्रेरणा ले करके जन भागीदारी वाली विकास यात्रा, जन आंदोलन वाली विकास यात्रा, उसको अगर तवज्जो दी होती तो आज जो बन गया है सब कुछ सरकार करेगी| कभी-कभी तो अनुभव ऐसा आता है कि किसी गांव में गड्ढ़ा हो, रोड पर और वो पांच सौ रूपये के खर्च से वो गड्ढ़ा भरा जा सकता हो लेकिन गांव का पंचायत का प्रधान गांव के दो चार और मुखिया किराये पर जीप खरीदेंगे लेंगे , सात सौ रूपया जीप का किराया देंगे और state headquarter पर जाएंगे और memorendum देंगे कि हमारे गांव में गड्ढ़ा है उस गड्ढे को भरने के लिए कुछ करो। यह स्थिति बन चुकी है| सबकुछ सरकार करेगी।

गांधी जी का model था- सारी सबकुछ जनता करेगी। आजादी के बाद जन-भागीदारी से अगर विकास यात्रा का मॉडल बनाया गया होता तो शायद हम सरकार के भरोसे जिस गति से चले हैं अगर जनता के भरोसे चलते तो उसकी गति हजारों गुना तेज होती | उसका व्‍याप, उसकी गहराई अकल्पित होती और इसलिए आज समय की मांग है कि हम भारत की विकास यात्रा को development को , एक जन-आंदोलन बनाएं।

समाज के हर व्‍यक्ति को लगना चाहिए कि मैं अगर स्‍कूल में टीचर हूं। मैं क्‍लास में पूरा समय जब पढ़ाता हूं, अच्‍छे से पढ़ाता हूं, मतलब कि मैं मेरे देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए काम कर रहा हूं। मैं अगर रेलवे का कर्मचारी हूं और मेरे पास जिम्‍मा है रेल समय पर चले। मैं इस काम को ठीक से करता हूं| रेल समय पर चलती है। मतलब मैं देश की बहुत बड़ी सेवा कर रहा हूं। मैं देश को आगे ले जाने की जिम्‍मेदारी निभा रहा हूं। हम अपने कर्तव्य को अपने काम को , राष्‍ट्र को आगे ले जाने का दायित्‍व मैं निभा रहा हूं। इस प्रकार से अगर हम जोड़ते हैं तो आप देखिए हर चीज का अपना एक संतोष मिलता है।

इन दिनों स्‍वच्‍छ भारत अभियान किस प्रकार से जन आंदोलन का रूप ले रहा है। वैसे यह काम ऐसा है कि किसी भी सरकार और राजनेता के लिए इसको छूना मतलब सबसे बड़ा संकट मोल लेने वाला विषय है, क्‍योंकि कितना ही करने के बाद दैनिक जागरण के फ्रंट पेज पर तस्‍वीर छप सकती है कि मोदी बातें बड़ी-बड़ी करता है, लेकिन यहां कूड़े-कचरे का ढेर पड़ा हुआ है। यह संभव है, लेकिन क्‍या इस देश में माहौल बनाने की आवश्‍यकता नहीं है। और अनुभव यह आया कि आज देश का सामान्‍य वर्ग, यहां जो बैठे हैं आपके परिवार में अगर पोता होगा तो पोता भी आपको कहता होगा कि दादा यह मत करो मोदी जी ने मना किया है। यह जन-आंदोलन का रूप है जो स्थितियों को बदलने का कारण बनता है। 

हमारे देश में वो एक समय था जब लाल बहादुर शास्‍त्री जी कुछ कहें तो देश उठ खड़ा होता था, मानता था। लेकिन धीरे-धीरे वो स्थिति करीब-करीब नहीं है| ठीक है आप लोगों को तो मजा आ रहा है। नेता बन गए हो, आपको क्‍या गंवाना है यह स्थिति आ चुकी थी। लेकिन अगर ईमानदारी से समाज की चेतना को स्‍पष्‍ट किया जाए तो बदलाव आता है। अगर हम यह कहें कि भई आप गरीब के लिए अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दो, छोड़ना बहुत मुश्किल काम होता है। लेकिन यह देश आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूं 52 लाख लोग ऐसे आए, जिन्‍होंने सामने से हो करके अपनी गैस सब्सिडी surrender कर दी।

यह जन-मन कैसे बदल रहा है उसका यह उदाहरण है। और सामने से सरकार ने भी कहा कि आप जो गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ोगे, वो हम उस गरीब परिवार को देंगे, जिसके घर में लकड़ी का चूल्‍हा जलता है, धुंआ होता है और बच्‍चे बीमार होते हैं, मां बीमार होती है, उसको मुक्ति दिलाने के लिए करेंगे और अब तक 52 लाख लोगों ने छोड़ा| 46 लाख लोगों को, 46 लाख गरीबों को already आवंटित कर दिया गया है। इतना ही नहीं जिसने छोड़ा उसको बता दिया गया कि उन्‍होंने मुंबई में यह छोड़ा लेकिन राजस्‍थान के जोधपुर के उस गांव के अंदर उस व्‍यक्ति को यह दे दिया गया है। इतनी transparency के साथ। जिसने छोड़ा....इसमें पैसे का विषय नहीं है।

समाज के प्रति एक भाव जगाने का प्रयास किस प्रकार से परिणाम लाता है। हम अंग्रेजों के जमाने में जो कानून बने , उसके साथ पले-बढ़े हैं। यह सही है कि हम गुलाम थे, अंग्रेज हम पर भरोसा क्यों करेगा। कोई कारण ही नहीं था और उस समय जो कानून बने वो जनता के प्रति अविश्‍वास को मुख्‍य मानकर बनाए गए। हर चीज में जनता पर अविश्‍वास पहली बेस लाइन थी। क्‍या आजादी के बाद हमारे कानूनों में वो बदलाव नहीं आना चाहिए जिसमें हम जनता पर सबसे ज्‍यादा भरोसा करें।

कोई कारण नहीं है कि सरकार में जो पहुंच गए...मैं elected representatives नहीं कह रहा हूं, सारे system पर, मुलाज़िम होगा clerk होगा। जो इस व्‍यवस्‍था में आ गए – वे ईमानदार है, लेकिन जो व्‍यवस्‍था के बाहर है वे याचक है। यह खाई लोकतंत्र में मंजूर नहीं हो सकती। लोकतंत्र में खाई रहनी नहीं चाहिए। अब यह छोटा सा उदाहरण मैं बताता हूं - हम लोगों को सरकार में कोई आवेदन करना है तो अपने जो सर्टिफिकेट होते थे, वो उसके साथ जोड़ने पड़ते थे, attest करने पड़ते थे। हमारा क्‍या था कानून, कि आपको किसी Gazetted officer के पास जा करके ठप्‍पा मरवाना पड़ेगा। उसे certify करवाना पड़ेगा, तब जाएगा। अब वो कौन Gazetted officer हैं जो verify करता हैं, अच्‍छा देख रहा हूं... आपका चेहरा ठीक है, कौन करता है, कोई नहीं करता। वो भी समय के आभाव में थोपता जाता है। उनके घर के बाहर जो लड़का बैठता है वो देता है । हमने आ करके कहा कि भई भरोसा करो न लोगों पर , हमने कहा यह कोई requirement नहीं है xerox का जमाना है, तुम xerox करके डाल दो जब फाइनल verification की जरूरत होगी, तब original देख लिया जाएगा। और आज वह चला गया विषय | चीजें छोटी है, लेकिन यह उस बात का प्रतिबिम्‍ब करती है कि हमारी सोच किस दिशा में है। हमारी पहली सोच यह है कि जनसामान्‍य पर भरोसा करो। उन पर विश्‍वास करो, उनके सामर्थ्‍य को स्‍वीकार करो। अगर हम जनसामान्‍य के स्‍वार्थ को स्‍वीकार करते हैं तो वो सच्‍चे अर्थ में लोकतंत्र लोकशक्ति में परिवर्तित होता है।

हमारे देश में लोकतंत्र के सामने दो खतरे भी है। एक खतरा है मनतंत्र का, दूसरा खतरा है मनीतंत्र का। आपने देखा होगा इन दिनों जरा ज्‍यादा देखने को मिलता है , मेरी मर्ज़ी , मेरा मन करता है, मैं ऐसा करूंगा। क्‍या देश ऐसे चलता है क्‍या? मनतंत्र से देश नहीं चलता है , जनतंत्र से देश चलता है। आपके मन में आपके विचार कुछ भी हो, लेकिन इससे व्‍यवस्‍थाएं नहीं चलती है। अगर सितार में एक तार ज्‍यादा खींचा होता है तो भी सुर नहीं आता है और एक तार ढीला होता है तो भी सुर नहीं आता है। सितार के सभी तार सामान रूप से उसकी खिंचाई होती है, तब जा करके आता है और इसलिए मनतंत्र से लोकतंत्र नहीं चलता है... मनतंत्र से जनतंत्र नहीं चलता है। जनतंत्र की पहली शर्त होती है मेरे मन में जो भी है जन व्‍यवस्‍था के साथ मुझे उसे जोड़ना पड़ता है। मुझे assimilate करना पड़ता है, मुझे अपने आप को dilute करना पड़े तो dilute करना पड़ता है। और अगर मुझमें रूतबा है तो मेरे विचारों से convince कर करके उसे बढ़ाते-बढ़ाते लोगों को साथ ले करके चलना होता है। हम इस तरीके से नहीं चल सकते |

दूसरा का चिंता विषय होता है - मनीतंत्र। भारत जैसे गरीब देश में मनीतंत्र लोकतंत्र पर बहुत बड़ा कुठाराघात कर सकता है। हम उससे लोकतंत्र को कैसे बचाएं। उस पर हमारा कितना बल होगा। मैं समझता हूं कि उसके आधार पर हम प्रयास करते हैं।

हम देखते हैं कि पत्रकारिता, भारत में अगर हम पत्रकारिता की तरफ नजर करें तो एक मिशन मोड में हमारे यहाँ पत्रकारिता चली| Journalism, अखबार सब पत्रिकाएं एक कालखंड था जहां पत्र-पत्रिका की मूल भूमिका रही समाज सुधार की। उन्‍होंने समाज में जो बुराइयां थी उन पर प्रहार किए। अपनी कलम का पूरा भरपूर उपयोग किया। अब राजा राममोहन राय देख लीजिए या गुजरात की ओर वीर नर्मद को देख लीजिए .. कितने सालों पहले, शताब्‍दी पहले वे अपनी ताकत का उपयोग समाज की बुराइयों पर कर रहे थे।

दसूरा एक कालखंड आया जिसमें हमारी पत्रकारिता ने आजादी के आंदोलन को एक बहुत बड़ा बल दिया। लोकमान्‍य तिलक , महात्‍मा गांधी , अरबिंदो घोष , सुभाष चंद्र बोस , लाला लाजपत राय , सब, उन्‍होंने कलम हाथ में उठाई। अखबार निकाले। और उन्‍होंने अखबार के माध्‍यम से आजादी के आंदोलन को चेतना दी और हम कभी-कभी सोचें तो हमारे देश में इलाहबाद में एक स्‍वराज नाम का अखबार था। आजादी के आंदोलन का वह अख़बार था। और हर अखबार के बाद जब editorial निकलता था , editorial छपता था और editorial लिखने वाला संपादक जेल जाता था। कितना जुल्‍म होता था। तो स्‍वराज अखबार ने एक दिन advertisement निकाली। उसने कहा, हमें संपादकों की जरूरत है। तनख्‍वाह में दो सूखी रोटी, एक गिलास ठंडा पानी और editorial छपने के बाद जेल में निवास। यह ताकत देखिए जरा। यह ताकत देखिए। इलाहाबाद से निकलता हुआ स्‍वराज अखबार ने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी थी | उसके सारे संपादकों की जेल निश्चित थी, जेल जाते थे, संपदाकीय लिखते थे और लड़ाई लड़ते थे। हिन्‍दुस्‍तान के गणमान्‍य लोगों का उसके साथ नाता रहा।

कुछ मात्रा में तीसरा काम जो रहा वो मिशन मोड पर चला है और वो है अन्‍याय के खिलाफ आवाज़ उठाना। चाहे समाज सुधार की बात हो, चाहे स्‍वतंत्रता आंदोलन हो, चाहे अन्‍याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की बात हो हमारे देश की पत्र-पत्रिकाओं ने हर समय अपने कालखंड में कोई न कोई सकारात्‍मक भूमिका निभाई है। यह मिशन मोड, यह हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी जड़ी-बूटी है। उसको कोई चोट न पहुंचे, उसको कोई आंच न आ जाए। बाहर से भी नहीं, अंदर से भी नहीं। इतनी सजगता हमारी होनी चाहिए |

मैं समझता हूं - आजादी के आंदोलन में अब देखिए कनाडा से ग़दर अखबार निकलता था, लाला हरदयाल जी द्वारा और तीन भाषा में उस समय निकलता था- उर्दू, गुरूमुखी और गुजराती। कनाडा से वो आजादी की जंग की लड़ाई लड़ते थे। मैडम कामा, श्याम जी कृष्‍ण वर्मा.. ये लोग थे जो लंदन से पत्रकारिता के द्वारा भारत की आजादी की चेतना को जगाए रखते थे। उसके लिए प्रयास करते थे। और उस समय भीम जी खैराज वर्मा करके थे ...उन को सिंगापुर में पत्रकारिता के लिए फांसी की सजा दी गई। वह भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि यह कंधे से कंधे मिला करके चलने वाली व्‍यवस्‍था है। दैनिक जागरण के माध्‍यम से इसमें जो भी योगदान दिया जा रहा है, वो योगदान राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम: उस मंत्र को साकार करने के लिए अविरत रूप से काम आएगा।

मैं कभी कभी कहता हूं minimum government maximum governance ...हमारे देश में एक कालखंड ऐसा था कि सरकारों को इस बात पर गर्व होता था कि हमने कितने कानून बनाए हैं। मैंने दूसरी दिशा में सोचा है | मेरा इरादा यह है कि जब मैं पांच साल मेरा कार्यकाल पूरा होगा यह, तब तक मैं रोज एक कानून खत्‍म कर सकता हूं क्या , यह इरादा है मेरा। अभी मैने काफी identify किए हैं। सैकड़ों की तादाद में already कर दिए हैं। राज्‍यों को भी मैंने आग्रह किया है। लोकतंत्र की ताकत इसमें है कि उसको कानूनों के चंगुल में जनसामान्‍य को सरकार पर dependent नहीं बनाना चाहिए।

Minimum government का मेरा मतलब यही है कि सामान्‍य मानव को डगर-डगर सरकार के भरोसे जो रहना पड़ता है, वो कम होते जाना चाहिए। और हमारे यहां तो महाभारत के अंदर से चर्चा है| अब उस ऊंचाईयों को हम पार कर पाएंगे मैं नहीं सकता इस वक्‍त, लेकिन महाभारत में शांति पर्व में इसकी चर्चा है | इसमें कहा गया है - न राजा न च राज्यवासी न च दण्डो न दंडिका सर्वे प्रजा धर्मानेव् रक्षन्ति स्मः परस्पर:... न राज्‍य होगा न राजा होगा, न दंड होगा, न दंडिका होगी अगर जनसामान्‍य अपने कर्तव्‍यों का पालन करेगा तो अपने आप कानून की व्‍यवस्‍था बनी रहेगी, यह सोच महाभारत में उस जमाने में थी ।

और हमारे यहां मूलत: लोकतंत्र के सिद्धांतों में माना गया है ‘वादे-वादे जायते तत्‍व गोधा’ यह हमारे यहां माना गया है कि जितने भिन्‍न-भिन्‍न विचारों का मंथन होता रहता है उतनी लोकतांत्रिक ताकत मजबूत होती है। यह हमारे यहां मूलभूत चिंतन रहा है। इसलिए जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो हम उन मूलभूत बातों को ले करके कैसे चलें उस पर हमारा बल रहना चाहिए।

आर्थिक विकास की दृष्‍टि से हमारे देश में दो क्षेत्रों की चर्चा हमेशा चली है और सारी आर्थिक नींव उन्‍हीं दो चीजों के आस-पास चलाई गई है। एक private sector, दूसरा public sector अगर हमें विकास को जन आंदोलन बनाना है तो private sector public sector की सीमा में रहना हमारी गति को कम करता है और इसलिए मैंने एक विषय जोड़ा है उसमें - public sector, private sector and personal sector .

यह जो personal sector है यह अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत है। हम में से बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हमारे देश की economy को कौन drive करता है। कभी-कभी लगता है कि यह जो 12-15 बहुत बड़े-बड़े कोरपोरेट हाऊस हैं, अरबों-खरबों रुपये की बातें आती हैं। जी नहीं, देश की economy को या देश में सबसे ज्‍यादा रोजगार देने का काम यदि कहीं हुआ है तो हमारे छोटे-छोटे लोगों का है। कोई कपड़े का व्‍यापार करता होगा छोटा-मोटा, कोई पान की दुकान पर ठेका ले करके बैठा होगा। कोई भेलपुरी-पानीपुरी का ठेका चलाता होगा, कोई धोबी होगा, कोई नाई होगा, कोई साइकिल किराये पर देने वाला होगा, कोई ऑटो रिक्‍शा वाला, यह छोटे-छोटे लोगों का कारोबार का नेटवर्क हिंदुस्तान में बहुत बड़ा है। यह जो bulk है वो एक प्रकार के middle class लेवल पर नहीं आया है। लेकिन गरीबी में नहीं है | अभी उसका मीडिल क्‍लास में जाना बाकी है, लेकिन है अपने पैरों पर खड़ा । personal sector को बहुत ताकत देता है। क्‍या ऐसी हमारी व्‍यवस्‍था न हो जो हमारे इस personal sector को हम empower करे। कानूनी दिक्‍कतों से उसको मुक्ति दिलाए। आर्थिक प्रबंधन में उसकी मदद करें। ज्‍यादातर यह लोग वह हैं बेचारों को साहूकारों के पास पैसे ले करके काम करना पड़ता है, तो अपनी income का काफी पैसा फिर सरकार के पास चला जाता है, उसी चंगुल में वो फंस जाता है।

आज वे लोग ऐसे हैं जो ज्‍यादातर करीब 70% लोग इसमें से scheduled caste, scheduled tribe और OBC हैं। गरीब हैं, पिछड़े तबके से हैं। अब वे लोग देश में करीब-करीब 12-14 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। इतनी ताकत हैं इन लोगों में । हर कोई एक को रोजगार देता है, कोई दो को देता है, कोई part-time देता हैं। लेकिन 12 से 14 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। अगर उनको थोड़ा बल दिया जाए, थोड़ी मदद दी जाए उनको थोड़ा आधुनिक करने का प्रयास किया जाए तो इनकी ताकत हैं कि 15-20 करोड़ लोगों को रोजगार देने का सामर्थ्‍य है। और इसके लिए हमने एक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को बल दिया है।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को ऐसे आगे बढ़ाया है कि कोई गारंटी की जरूरत नहीं लोगों से। वह बैंक में जायें और बैंक की जिम्‍मेदारी रहेगी उनकी मदद करना। 10 हजार, 15 हजार, 25 हजार, 50 हजार, ज्‍यादा रकम उनको चाहिए नहीं...बहुत कम रकम से वह काम कर लेते हैं अपना| अभी तो इस योजना का हो -हल्‍ला इतना शुरू नहीं हुआ है, ऐसे ही silently काम हो रहा है। लेकिन अब तक करीब 62 लाख परिवारों को करीब-करीब 42000 करोड़ रूपये उन तक पहुंचा दिए गए। और यह वो लोग हैं जो साहस भी करने को तैयार हैं और अनुभव आया है कि 99% लोग समय से पहले अपने पैसे वापस दे रहे हैं। कोई नोटिस नहीं देना पड़ रहा|

यानी हम personal sector को कितना बल दे। personal sector का एक और आज हमने पहलू उठाया है जिस प्रकार से समाज का यह तबका है जो अभी मध्‍यम वर्ग में पहुंचा नहीं है, गरीबी में रहता नहीं है ऐसी अवस्‍था है उसकी कि वो सबसे ज्‍यादा कठिन होती है | लेकिन एक और वर्ग है जो highly intellectual है -जो भारत का youth power है । उसके पास कल्‍पकता है, नया करने की ताकत है और वो देश को आधुनिक बनाने में बहुत बड़ा contribute कर सकता है। वो globally कम्‍पीट कर सकता है।

जैसे एक तबके को हमें मजबूत करना है वैसा दूसरा तबका है यह हमारी युवा शक्ति जिसमें यह विशेषताएं हैं। और इसके लिए हमने मिशन मोड पर काम लिया है। start-up India stand-up India. जब मैं start-up India की बात करता हूं तो उसमें भी मैंने दो पहलू पकड़े हैं।

हमने बैंकों को कहा कि समाज के अति सामाजिक दृष्टि से जो पीछे वर्ग के लोग हैं क्‍या एक बैंक एक की उंगली पकड़ सकती है क्‍या। एक बैंक की ब्रांच एक व्‍यक्ति को और एक महिला को बल दे सकती है | एक देश में सवा लाख ब्रांच। एक महिला को और एक गरीब को उनका अगर हाथ पकड़ ले उसको नये सिरे से ताकत दे तो ढाई लाख नये Entrepreneurs खड़े करने की हमारी ताकत है । वो छोटा काम दिया है लेकिन cumulative effect बहुत बड़ा होगा और दूसरी तरफ जो innovation करते हैं जो ग्‍लोबल competition में अपने आप को खड़ा कर सकते हैं और आज जब ग्‍लोबल मार्केट है तो प्रगति का सबसे बड़ा आधार है innovation. जो देश innovation में पीछे रह जाएगा वो आने वाले दिनों में इस दौड़ से बाहर निकल जाएगा और इसलिए innovation को अगर बल देना है तो start-up India stand-up India का मोड चलाया है। ऐसे लोगों को आर्थिक मदद मिले। उनको एक नई पॉलिसी ले करके हम आ रहे हैं। और मुझे विश्‍वास है कि भारत के नौजवानों की जो ताकत है, तो वो ताकत एक बहुत बड़ा बदलाव है।

इन सारी चीजों में आपने देखा होगा कि हम empowerment पर बल दे रहे हैं। कानूनी सरलीकरण भी हो, इससे भी empowerment होता है, आर्थिक व्‍यवस्‍थाएं सुविधाएं हो, उससे भी empowerment होता है।

Global economy के सम्बन्ध में कहां टिक सकता है? उसके लिए क्‍या सपोर्ट सिस्‍टम होना चाहिए, उस पर बल देना। यह चीजें हैं जिसके कारण आज हमारे देश में हमने काम को सुविधाजनक बनाया। जैसा मैंने शुरू में कहा था, आपको हैरानी होगी।

पार्लियामेंट चलती है कि नहीं चलती। अब डिबेट आप लोगों की कठिनाई है, आपके विषय, आपका व्यापार तो है ही है लेकिन इस बार पार्लियामेंट नहीं चलने से एक बात की तरफ ध्‍यान नहीं जा रहा| एक ऐसा कानून लटका पड़ा है और आज सुनने में आपको भी लगेगा कि भाई यह काम नहीं होना चाहिए क्‍या। हम एक कानून लाए हैं, जिसमें गरीब व्‍यक्ति जो नौकरी करता है उसके बोनस के सम्बन्ध में | अभी अगर उसकी monthly सात हजार रुपया से कम income है तो बोनस का हकदार होता है और 3500 रुपये तक उसको बोनस मिलता है। हम कानून में बदलाव लाए minimum 7000 की बजाए 21000 कर दिया जाए। monthly अगर उसकी income 21000 minimum है तो वो बोनस का हकदार बनना चाहिए जो अभी 7000 है और तीसरा 3500 बोनस की बात है उसे 7000 कर दिया जाए। यह सीधा सीधा गरीब के हित का काम है कि नहीं है ? लेकिन आज मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि पार्लियामेंट चल नहीं रही है, गरीब का हक रूका पड़ा है।

लेकिन चर्चा क्‍या होती है GST और parliament. अरे भई GST का जो होगा, सब मिलकरके जो भारत का भाग्‍य तय होगा वो होगा। लेकिन गरीबों का क्‍या? सामान्‍य मानविकी का क्‍या? और इसलिए हम संसद चलाने के लिए, इनके लिए , कह रहे हैं। लोकतंत्र में संसद से बड़ी कौन सी जगह होती है जहां पर वाद-विवाद, संवाद, विरोध सब हो सकता है। लेकिन हम उस institution को ही नकार देंगे तो फिर तो लोकतंत्र पर सवालिया निशान होगा और इसलिए मैं आज जब दैनिक जागरण में जिन विषयों का मूल ले करके आप चले हैं उस पर बात कर रहा हूं तो लोकतंत्र का मंदिर हमारी संसद है, उसकी गरिमा और सामान्‍य मानव के हितों के काम को फटाफट निर्णय करते हुए आगे बढ़ाना। यह देश के लिए बहुत आवश्यक है। उसको हम कैसे गति दें, केसे बल दें और उसको हम कैसे परिणामकारी बनायें ? बाकी तो मैं सरकार की विकास यात्रा के कई मुद्दे कह सकता हूं लेकिन मैं आज उसको छोड़ रहा हूं यही काफी हो गया ।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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भारत माता की जय!
भारत माता की जय!
भारत माता की जय!

साथियों,

आज की चुनाव सभा को संबोधन करने से पहले मैं महाकुंभ में जो दुखद हादसा हुआ है, उस हादसे में हमें कुछ पुण्यात्माओं को खोना पड़ा है। कई लोगों को चोटें भी आई हैं। मैं प्रभावित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं और घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं। मैं यूपी सरकार के साथ निरंतर संपर्क में हूं। मौनी अमावस्या की वजह से करोड़ों श्रद्धालु आज वहां पहुंचे हुए हैं। कुछ समय के लिए स्नान की प्रक्रिया में रूकावटें आईं थीं। लेकिन अब कई घंटों से सुचारू रूप से यात्री स्नान कर रहे हैं। मैं फिर एक बार उन परिवारजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।

साथियों,

दिल्ली का ये क्षेत्र यमुना जी के तट पर बसा है। और इस इलाके में तो बाबा श्यामगिरी भी विराजते हैं। मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए, आप सभी जनता-जनार्दन को भी प्रणाम करता हूं। आप यहां वर्किंग डे होने के बावजूद भी इतनी विशाल संख्या में, और वो भी दोपहर के समय हम सबको आशीर्वाद देने आए हैं। मैं आप का हृदय से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं। लेकिन ये जो दृश्य है, ये दिल्ली का मूड बता रहा है। ये दिल्ली के जनादेश के दर्शन करा रहा है।

दिल्ली कह रही है- अब ‘आप’दा के बहाने नहीं चलेंगे।
दिल्ली कह रही है- अब ‘आप’दा के फर्जी वादे नहीं चलेंगे।
दिल्ली कह रही है- अब ‘आप’दा की लूट और झूठ नहीं चलेगा।

दिल्ली भाजपा की यहां के लोग भाजपा की ऐसी डबल इंजन सरकार चाहते है- जो गरीबों के कल्याण और दिल्ली के विकास, दोनों पर एक साथ काम करे। दिल्ली एक ऐसी सरकार चाहती है, जो गरीबों के लिए घर बनाए, जो दिल्ली को आधुनिक बनाए। दिल्ली एक ऐसी सरकार चाहती है, जो हर घर नल से जल पहुंचाए। टैंकर माफिया से मुक्ति दिलाए! इसलिए, पूरी दिल्ली आज कह रही है- 5 फरवरी आएगी.... ‘आप’दा जाएगी— भाजपा आएगी।

मैं दिल्ली भाजपा को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। दिल्ली भाजपा ने एक शानदार संकल्प पत्र दिल्ली की जनता के चरणों में समर्पित किया है। इस संकल्प पत्र में दिल्ली की महिलाओं के लिए, युवाओं के लिए, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के लिए, दिल्ली के मध्यम वर्ग के लिए, ऑटो चलाने वालों के लिए, दुकानदारों के लिए, झुग्गी-झौपड़ी में रहने वालों के लिए...हर वर्ग के लिए अच्छी योजनाएं लाने का दिल्ली की जनता को सार्वजनिक रूप से वादा किया है। दिल्ली में बनने वाली भाजपा सरकार अपने वायदे पूरे करेगी। मैं फिर दोहराता हूं, 8 तारीख के बाद जब दिल्ली में भाजपा की सरकार बनेगी, जो भी वादे आपको किये गए हैं, वो सारे के सारे वादे समय सीमा में पूरे किए जाएंगे। ये मोदी की गारंटी है। और मोदी की गारंटी मतलब, गारंटी पूरा होने की गारंटी।

साथियों,

भारत के करोड़ों नागरिक, विकसित भारत के संकल्प को लेकर के दिन-रात जुटे हुए हैं। ये बहुत जरूरी है कि विकसित भारत की राजधानी भी, एक विकसित देश का मॉडल शहर बने। क्या आज हमारी दिल्ली को लेकर जो बदहाली देखने को मिल रही है। क्या हम ये कह सकते हैं क्या? क्या दिल्ली, एक आधुनिक देश की राजधानी, क्या उसका रंग-रूप ऐसा नजर आ रहा है क्या?

साथियों,

मुझे जवाब देने की जरूरत नहीं है। दिल्ली के करोड़ों नागरिक सुबह-शाम अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं और उसमें सब कुछ आ जाता है।

साथियों,

ये 21वीं सदी है। 21वीं सदी के 25 साल बीत चुके। आपने 21वीं सदी के पहले 14 साल देखे हैं। उसमें कांग्रेस का कार्यकाल भी देखा है। फिर 11 साल इस ‘आप’दा सरकार को दिए। लेकिन दिल्ली की समस्या तो वहीं की वहीं है। 25 साल इन दोनों ने आप की दो-दो पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है। जब दिल्ली की बात आती है तो किसी ने 14 साल राज किया, किसी ने 11 साल राज किया। फिर भी वही जाम, वही गंदगी, वही टूटी-फूटी सड़कें, गलियों में बहता गंदा पानी, वही जलभराव, वही प्रदूषण, पीने के पानी के लिए लोग तरस रहे हैं। हाहाकार हो रहा है। कुछ नहीं बदला। इन हालातों से दिल्ली को बाहर निकालना है कि नहीं निकालना है। इन हालातों से दिल्ली को बाहर निकालना है कि नहीं निकालना है। कौन निकाल सकता है? कौन निकाल सकता है? कौन निकाल सकता है? मोदी नहीं, आपका एक वोट इन मुसीबतों से मुक्ति दिला सकता है। आपके वोट की ताकत है। हमें 11 साल के पेंडिंग काम भी पूरे करने हैं और आने वाले 25-30 साल की तैयारियां भी करनी हैं। और इसलिए, मैं दिल्लीवासियों से आग्रहपूर्वक कहना चाहता हूं, मोदी को दिल्ली की सेवा करने का कुछ मौका दीजिए। देशभर में मैं बहुत कुछ कर पाया हूं। दिल्ली में आपने मुझे सेवा करने का अवसर नहीं दिया है। आपने 25 साल कांग्रेस भी देखी, ‘आप’दा भी देखी। अब एक बार कमल को भी देख लीजिए। मुझे सेवा करने का अवसर दीजिए। और मैं दिल्लीवासियों को कहता हूं जैसे परिवार का मुखिया अपने परिवार का ख्याल रखता है। मैं दिल्लीवासियों एक परिवार के सदस्य के नाते आपका ख्याल रखूंगा। आपके सपने मेरे सपने होंगे। आपके सपनों को पूरा करने के लिए मैं अपना समय, शक्ति, बुद्धि जो कुछ भी है, आपके लिए खपा दूंगा।

साथियों,

भाजपा सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड है कि वो जो कहती है, वो करके दिखाती है। आजादी के अनेक दशकों बाद भी, देश में करोड़ों लोग टॉयलेट, बिजली, गैस कनेक्शन, बैंक खाते ऐसी सुविधाओं से वंचित थे। यहां उत्तराखंड से आए काफी सारे परिवार बसे हुए हैं। उत्तराखंड, हिमालय की गोद, पहाड़ी इलाका, पैदल जाना हो तो भी दम उखड़ जाए। वहां भाजपा सरकार है। हमने दूर-दराज के गांवों पर सड़कें पहुंचाई हैं। नौजवान अब वापस गांव की तरफ रुख कर रहे हैं। 2014 में देश में सिर्फ, ये आंकड़ा चौंकाने वाला है, 2014 आपने मुझे बैठाया, उसके पहले, 2014 के पहले 3 करोड़ ग्रामीण परिवारों के पास नल का कनेक्शन था। कितने 3 करोड़, कितने 3 करोड़, कितने 3 करोड़, ये मैं इसलिए कह रहा हूं कि ये याद रहे आपको। कितने घरों के पास 3 करोड़। बीते 5 साल में 12 करोड़ नए परिवारों को नल से जल की सुविधा पहुंचाई है। आप मुझे बताइये, पहले की सरकार में नल से जल की योजना थी कि नहीं। थी...कांग्रेस के जमाने में ये योजना थी। क्या हमने आकर के बंद कर दी क्या? नहीं बंद कर दी। हमने ऊपर से उसको मजबूत किया। उनका काम तो नहीं होता था। वो तो 3 करोड़ घरों पर अटक चुके थे। जो काम देश की आजादी के बाद इतने दिनों नहीं कर पाए। हमने पांच साल में करके दिखाया कि नहीं। हम योजनाओं को बंद करने वालों में से नहीं है, हम योजनाओं को बल देने वाले लोगों में से हैं। और आज इन घरों में नल से साफ पानी आता है। अगर हिंदुस्तान के दूरदराज के गांवों में, गरीब से गरीब घर में, नल से जल पहुंच सकता है, तो मेरे दिल्ली के भाई-बहन मुझे बताएं देश की राजधानी दिल्ली में ना नल से जल आता है और जहां आता भी है...वो बताने लायक भी नहीं है, पीने की तो बात छोड़ो, साफ नहीं होता है। अगर भाजपा, दुर्गम गांवों में पानी का नल पहुंचा सकती है। नल से जल पहुंचा सकती है, तो दिल्ली के हर घर को भी नल से साफ-साफ जल ये भाजपा दे सकती है।

साथियों,

‘आप’दा वालों ने दिल्ली को पानी माफिया के भरोसे छोड़ दिया है। इन लोगों ने तीन चुनावों में यमुना जी की सफाई के नाम पर वोट मांगे। आज कह रहे हैं, और बेशर्मी देखिए, अब कहां तक पहुंच गए हैं। अरे भई यमुना जी वोट थोड़े मिलता है। हम यमुना जी की सफाई नहीं करेंगे। बेशर्मी से ये कहने की इनकी हिम्मत। ये चौंकाने वाला चरित्र है जी। बेशर्मी है, बेईमानी है, बदनीयती है। ये दिल्ली वालों को पानी के लिए तरसाना चाहते हैं। ये चाहते हैं कि हमारे पूर्वांचली साथी हर साल गंदगी में ही छठी मैया की पूजा करें।

साथियों,

अपने राजनीतिक स्वार्थ में ‘आप’दा वालों ने एक और घोर पाप किया है। और ये पाप कभी भी माफ नहीं हो सकता है। इतिहास भी कभी माफ नहीं करेगा। आज भले आपके चेले-चपाटे बात को दबा देने की कोशिश करते हों, भले आज आप की इकोसिस्टम आप के इस पाप पर कपड़ा ढकने की कोशिश कर रही हो। लेकिन देश नहीं भूल सकता, दिल्ली नहीं भूल सकता, हरियाणा का एक-एक बच्चा नहीं भूल सकता। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री ने हरियाणा के लोगों पर घिनौने आरोप लगा दिए हैं। हार के डर से ‘आप’दा वाले बौखला गए हैं। आप बताइए, हरियाणा के लोग दिल्ली से अलग हैं क्या। क्या हरियाणा वालों के परिवार बाल-बच्चे नाते-रिश्तेदार दिल्ली में नहीं रहते क्या। क्या हरियाणा के लोग अपने ही बच्चों के पानी में जहर मिला सकते हैं क्या। हरियाणा का भेजा यही पानी दिल्ली में रहने वाला हर कोई पीता है। पिछले 11 साल से ये प्रधानमंत्री भी वो ही पानी पीता है। हरियाणा का भेजा यही पानी दिल्ली में रहने वाले हमारे सारे न्यायाधीश, सारे न्यायमूर्ति, सभी हमारे सम्मानित सदस्य भी पीते हैं। जो विदेश की एंबेसिया हैं, दुनियाभर की एंबेसियां हैं वो भी वही पानी पीते हैं। गरीब के घर के आसपास भी वो ही पानी होता है। क्या कोई ये सोच सकता है क्या...कि मोदी को जहर देने के लिए हरियाणा बीजेपी की सरकार ने पानी में जहर डाल दिया। क्या बोल रहे हो। क्या देश के न्यायाधीशों को जहर पिला करके मारने का षडयंत्र कर रहा था क्या, क्या बोल रहे हो। मेरे दिल्लीवासियों, गलती माफ करना वो भारत के नागरिकों का उदार चरित्र है। लेकिन जानबूझ करके, बद इरादे से पाप करने वालों को ना दिल्ली कभी माफ करता है ना देश कभी माफ करता है।

साथियों,
मैंने हरियाणा की रोटी खाई है। हरियाणा ने मुझे राजनीति में ऊंगली पकड़कर के चलाया है। मैं हरियाणा को भली-भांति जानता हूं। वहां का एक-एक नागरिक धर्म परायण है। अनेक घरों में सुबह यज्ञ होता है, ऐसा सात्विक जीवन मैंने हरियाणा में देखा है। ये देशभक्ति से भरे हुए लोग हैं, कोई परिवार ऐसा नहीं होगा, जिसका बेटा सीमा पर मां भारती की रक्षा ना करता हो। क्या ऐसे लोगों को जहर पिलाने वाले, ऐसा आरोप लगा दो आप। और ये देश तो ऐसा है पशु-पक्षियों तक को पानी पिलाता है। कभी उनको नुकसान नहीं पहुंचाता है। और ये ‘आप’दा वाले कह रहे हैं कि हरियाणा वाले दिल्ली के पानी में जहर मिलाते हैं। ये सिर्फ हरियाणा का अपमान नहीं है, ये भारतीयों का अपमान है। हमारे संस्कारों का अपमान है हमारे चरित्र का अपमान है। ये वो देश है, जो पानी पिलाना धर्म माना जाता है...जहां पियाऊ रखने की परंपरा है। इस देश में ऐसे लोग हो गए, जिन्होंने खुद का घर नहीं बनवाया. लेकिन गांववालों के लिए कुंआ खोदा या बावड़ी बना दी। इस देश में देशवासियों को ऐसा झूठा आरोप लगाते हो। चुनाव हारने का ऐसा डर कि कुछ भी बोलो। मुझे पक्का विश्वास है...ऐसी ओछी बातें करने वालों को दिल्ली इस बार जरूर सबक सिखाएगी। इन ‘आप’दा वालों की लुटिया...यमुना जी में ही डूबेगी।

साथियों,

‘आप’दा वालों की नीयत ही काम करने की नहीं है। पिछले 5 साल में दिल्ली विधानसभा सिर्फ 70-75 दिन चली है। ये दिल्ली विधानसभा के इतिहास का सबसे कम कामकाज रहा। इस दौरान दिल्ली में समस्याएं बढ़ीं, लेकिन कानून सिर्फ 14 पास हुए। 5 साल में 14 कानून इनमें से भी पांच कानून उनके जो विधायक हैं ना, उनकी सैलरी और पेंशन तो तय करने के लिए रहे पांच। यानी ‘आप’दा वालों को दिल्ली की आम जनता की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है। दिल्ली की समस्याओं के समाधान ढूंढने के बजाय इन्होंने विधानसभा के पवित्र मंच को, लोकतंत्र के मंदिर को गाली-गलोज के लिए इस्तेमाल किया।

साथियों

भारतीय गणतंत्र के 75 साल पूरे होने का जोश पूरे देश में है। 26 जनवरी को कर्तव्य पथ पर देशभक्ति की झांकी देश ने देखी। भारतीय सेना की दहाड़ आसमान तक गूंज रही थी। आज भी शाम को बीटिंग रिट्रीट में हमारी सेनाओं का कौशल दिखाई देगा। लेकिन हमें नहीं भूलना है, इसी दिल्ली में ‘आप’दा पार्टी ने सेना के पराक्रम पर सवाल उठाए थे। इन लोगों ने विधानसभा सत्र बुलाकर हमारी बहादुर सेना से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे थे। ‘आप’दा वालों ने हमारे सैनिकों की वीरता का अपमान किया था। आज दिल्ली के लोगों से मैं कहना चाहता हूं। मां भारती से विश्वासघात करने वाले ऐसे लोगों को सजा देने का मौका है- 5 फरवरी। आपका एक वोट उनको सजा दे सकता है। ‘आप’दा वालों को इस चुनाव में जरूर सबक सिखाना है।

साथियों,

आज अगर कोई दिल्ली का नाम लेता है, तो सिर्फ यही कहता है कि ये देश की राजधानी है। दिल्ली शहर की अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बन पाई। आप पड़ोस में देखिए...गुड़गांव और नोएडा। आज इनकी पहचान आईटी सेक्टर से है। स्टार्ट अप्स से है। मैन्यूफैक्चरिंग से है। बेंगलुरु की आईटी से पहचान है। मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री से पहचान है। साफ-सफाई की बात आती है, तो देश के 5 टॉप शहरों में इंदौर, सूरत, नवी मुंबई, विशाखापट्टनम और भोपाल के नाम लिए जाते हैं।

साथियों,

21वीं सदी की दिल्ली को भी हमें एक अलग, विशेष पहचान दिलवानी है। दुनिया, दिल्ली को सिर्फ भारत की राजधानी के रूप में जाने, इतना नहीं है, बल्कि विकसित भारत के मॉडल सिटी के रूप में भी जाने। भाजपा ये लक्ष्य लेकर काम कर रही है। जो दिल्ली को दुनिया का सबसे बड़े मेट्रो नेटवर्क वाला शहर बना रही है- वो और कोई नहीं, भाजपा है। जो दिल्ली को- देश का पहला नमो रेल कनेक्टिविटी वाला शहर बना रही है- वो है भाजपा। जो दिल्ली को सबसे ज्यादा एक्सप्रेसवे से कनेक्टेड शहर बना रही है- तो वो है भाजपा। वो है भाजपा। वो है भाजपा। और जिसने सूरजमल विहार में डीयू के पूर्वी कैंपस पर काम शुरू किया है- वो है भाजपा। वो है भाजपा।

साथियों,

भाजपा का संकल्प दिल्ली को एक ऐसा शहर बनाने का है, जो रहने के लिए बेस्ट हो, कारोबार के लिए बेस्ट हो। ये जो दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे है। दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे है। ईस्टर्न पेरीफरल एक्सप्रेसवे है। ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित दिल्ली की पहचान बनेगा।

साथियों,

दिल्ली को शानदार शहर बनाने के लिए ही, हमने दिल्ली की सैकड़ों अनाधिकृत कॉलोनियों को रेगुलर करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए स्पेशल कैंप चल रहे हैं। लेकिन ‘आप’दा सरकार, इन कॉलोनियों को भी पानी और सीवर के लिए तरसा रही है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं भाजपा सरकार आते ही, पाइपलाइन और सीवर बिछाने का काम तेजी से पूरा होगा।

साथियों,

जब तक झुग्गियों में रहने वालों का जीवन बेहतर नहीं होगा, तब तक भाजपा चैन से नहीं बैठ सकती। और इसलिए भाजपा सरकार, हजारों झुग्गीवासियों के लिए पक्के घर बना रही है। जहां झुग्गी है, वहां अच्छे घर दे रही है। हजारों झुग्गीवासियों को उनके घर की चाबी मिल चुकी है। और आज आप मेरा एक काम और करना। जो झुग्गियों में रहने वाले लोग हैं...उनसे कहना आप जब मिलने के लिए जाइए ना, झुग्गी वालों से, तो उनको कहना कि अब तक आपका घर नहीं बना है, ये हमने नोट कर लिया है। और मेरी तरफ से एक काम करना आप लोग, करोगे...जरा हाथ ऊपर करके बताइए, मेरा काम करोगे। आप उन सब झुग्गी-झोंपड़ी वालों को बता देना। देखिए मेरे लिए आप ही मोदी हैं। आप उनको बता देना, मेरी तरफ से बता देना, हिम्मत के साथ। जो भी झुग्गी-झोंपड़ी वाले हैं, उनको बता देना। मोदी की गारंटी है, आपका पक्का घर बनके रहेगा। ये बताएंगे, बताएंगे।

साथियों,

मोदी के पास अपना कोई घर नहीं है। लेकिन मोदी का सपना है, हर गरीब के पास अपना पक्का घर हो। ये शीशमहल बनाने वाले, जनता के करोड़ों रुपए लुटाने वाले, ऐशो-आराम करने वाले, कभी गरीब के घर के बारे में नहीं सोच सकते। इसलिए ये ‘आप’दा वाले झुग्गियों में जाकर के झूठी बातें फैला रहे हैं।

साथियों,

इनकी झूठ बोलने की ताकत इतनी है कि आपको मेहनत जरा ज्यादा करनी होगी। क्योंकि चेहरा इतना भोला-भाला करके झूठ बोलते हैं। आपने वो चार्ल्स शोभराज का नाम सुना होगा। वो जाना-माना ठगी था, लेकिन ठगी करने में ऐसा एक्सपर्ट था कि हर बार लोग गलती कर बैठते थे। हर बार लोग फंस जाते थे। और इसलिए ऐसे लोगों से संभलके रहना बहुत जरूरी होता है।

साथियों,

घरों में साफ-सफाई, खाना बनाना, बच्चों की देखभाल, ड्राइविंग का काम करना ऐसे अनेक कामों से जुड़े हजारों लोग दिल्ली में रहते हैं। इनके लिए भी दिल्ली भाजपा ने कल्याण बोर्ड बनाने और 10 लाख तक का बीमा देने की घोषणा की है। हर परिवार में ऐसे जो काम करने वाले हैं, उनको बताने की जिम्मेवारी हम सबकी है। उनको पता होना चाहिए कि मोदी गारंटी क्या है। आपको बच्चों की पढ़ाई की फीस की चिंता भी नहीं करनी है। दिल्ली भाजपा ने केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा देने का संकल्प लिया है।

साथियों,

ये एक और अफवाह फैला रहे हैं कि भाजपा योजनाएं बंद करेगी। ये कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है झूठ बोलने की। 2014 में जब में चुनाव लड़ रहा था लोकसभा का। तो ये कांग्रेस वाले गांव-गांव, गली-गली जाकर कहते थे कि मोदी आएगा, भाजपा आएगी तो मनरेगा बंद हो जाएगा। आपकी रोजी-रोटी खत्म हो जाएगी। भड़का रहे थे। आज 11 साल हो गए। मैंने उस दिन भी कहा था, मैं योजनाओं को बंद नहीं करूंगा, मैं योजनाओं को बल दूंगा और हमने बल दिया। उसमें जो बेइमानी थी। मनरेगा में से बेइमानी को हटाया और मजबूती देने का काम किया। हमारे देश में परंपरा है, किसी भी सरकार कितनी ही बुरी क्यों ना हो, कितने ही बदनाम क्यों ना हो। लेकिन अगर उसके कार्यकाल में कोई अच्छी चीज शुरू हुई हो, तो हर सरकार उसको आगे चलाती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की थी। उसके बाद कांग्रेस आई। तो अखबार वाले लिखते थे कि अटल जी की ये पीएम ग्राम सड़क योजना चालू रहेगी क्या। मनमोहन सिंह जी के समय भी चालू रही और बाद में मोदी के आने के बाद भी चालू रही। इतना ही नहीं गति बढ़ा दी गई। सरकारें, ये झूठ बोलने वालों को पता नहीं है कि सरकारें ऐसे नहीं चलती हैं। और इसलिए जो भी अच्छा है, जो दिल्ली के कल्याण के लिए है। दिल्लीवासियों की भलाई के लिए है। उसको आगे चलाया जाएगा। उसे और मजबूती दी जाएगी। उसे बल दिया जाएगा। हां, बेइमानों को जाना पड़ेगा। जिस काम के लिए पैसे हैं, टैक्सपेयर के पैसे, गरीब के लिए जो काम हो रहा हैं, उनके लिए ही जाएंगे। भाजपा सरकार इन योजनाओं में पारदर्शिता लाएगी। इनमें भ्रष्टाचार को बंद किया जाएगा।

साथियों,

आप याद कीजिए, CAG की रिपोर्ट...1860 से ये व्यवस्था चल रही है। CAG का जन्म हुआ, अंग्रेज गए, योजना चलती रही। अनेक सरकारें आईं, CAG योजना चलती रही। ये पहला ऐसा व्यक्ति आया, जिसने इतनी पुरानी CAG जैसी संस्था, इतनी क्रेडिबल इंस्टीट्यूट और सरकार में चैक और बैलेंस के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यवस्था, उसको उसने कागज का टुकड़ा बनाकर के फेंक दिया।

साथियों,

‘आप’दा सरकार CAG की रिपोर्ट को दबाकर बैठ गई है। इन्हें शराब घोटाले, शीशमहल घोटाले, शिक्षा घोटाले, अस्पताल घोटाले...ऐसी हर चीज से पर्दा उठने का डर है। आप भाजपा-NDA के उम्मीदवारों को जिताइए। विधानसभा के ये दूसरी मोदी की गारंटी भी लिख लीजिए, विधानसभा के पहले सत्र में ही CAG रिपोर्ट टेबल पे कर दी जाएगी।

साथियों,

ये ‘आप’दा वाले इतने अहंकार में डूबे हैं कि खुद को दिल्ली के मालिक समझ बैठे हैं। इनका ये अहंकार दिल्ली की जनता इस चुनाव में तोड़ने वाली है। ये लोग खुद को दिल्ली की माताओं-बहनों का सुरक्षा कवच कहते हैं। बेशर्मी तो देखो, खुद को। दिल्ली की माताओं-बहनों का सुरक्षा कवच कहने की हिम्मत। मेरे प्यारे देशवासियों, मेरे प्यारे दिल्लीवासियों, नेता कितना ही बड़ा क्यों ना हो। नेता किसी का सुरक्षा कवच नहीं होता है। नेता तो सिर्फ और सिर्फ सेवक होता है। ये मेरा सौभाग्य है कि देशभर की माताएं-बहनें मोदी का सुरक्षा कवच हैं। माताएं-बहनें-बेटियां मोदी का सुरक्षा कवच इसलिए बनी हैं, क्योंकि मोदी मन से, समर्पण भाव से उनकी सेवा कर रहा है। जिनको पहली बार टॉयलेट मिला, गैस कनेक्शन मिला, पीने का पानी नल से मिला, कोविड के कठिन कालखंड से आज तक मुफ्त अनाज मिला, वो सारी बहनें मोदी का सुरक्षा कवच हैं। बहनें कह रही हैं कि भाजपा सरकार ने मुफ्त गैस कनेक्शन दिया, तो सस्ता गैस सिलेंडर भी वही देगी। सामान्य मानवी कहता है भाजपा सरकार ने बैंक खाता खोला, तो पैसा भी उसमें वही भेजेगी।

साथियों,

दिल्ली की महिलाओं का ‘आप’दा पार्टी से भरोसा उठ चुका है। ‘आप’दा की बड़ी-बड़ी घोषणाओं पर दिल्ली की बहनें भरोसा ही नहीं कर रहीं। वो पूछ रही हैं कि 11 साल राज करने के बाद आज घोषणा क्यों कर रहे हो। ये घोषणाएं पहले लागू क्यों नहीं कीं। दिल्ली में महिलाओं के लिए जो 11 सौ रूपये देने की घोषणा की थी, वो पैसे किसके जेब में गए। महिलाओं के खाते में तो नहीं गए। पंजाब में तीन साल पहले 11 सौ रुपये देने का वादा किया था। आज तक वो पूरा क्यों नहीं किया। दिल्ली की बहनें भाजपा की राज्य सरकारों का भी काम देख रही हैं। दिल्ली में हर राज्य के लोग रहते हैं। वो अपने-अपने राज्य की बातें बताते हैं। मध्य प्रदेश हो, महाराष्ट्र हो, छत्तीसगढ़ हो, ओडिशा हो, जहां भी बीते एक-डेढ़ साल में चुनाव हुए हैं, वहां सरकार बनते ही बहनों के खाते में पैसा भेजना शुरू हो गया। दिल्ली भाजपा ने भी घोषणा की है कि सरकार बनते ही हर महीने ढाई हजार रुपये, कितने, कितने, कितने ढाई हजार रुपए बहनों के खातों में जमा किए जाएंगे। गर्भावस्था के दौरान 21000 रुपए बहनों को दिए जाएंगे। ताकि वे अच्छा और पोषक खाना खा सकें। और उसके पेट में जो बच्चा है, वो भी तंदुरुस्त बच्चा देश को मिले।

साथियों,

आप सभी को इनकी, ‘आप’दा वालों की एक और चाल से सावधान रहना है। ‘आप’दा को हार का अहसास हो चुका है। इनके हर विधायक को लेकर जनता में बहुत गुस्सा है। इसलिए ‘आप’दा और कांग्रेस ने पर्दे के पीछे एक-दूसरे से गठबंधन कर लिया है। ‘आप’दा वाले कोशिश कर रहे हैं कि उसका नहीं तो कांग्रेस का विधायक जीत जाए। ताकि बाद में मिलकर के सत्ता हथियाने का काम हो जाए। ऐसे तो दिल्ली पर डबल आपदा आ जाएगी। इसलिए आपको घर-घर जाना है। सबको कहना है कि कमल निशान पर ही वोट दें। और बुराड़ी वाले तीर निशान पर वोट डालें। पांच फरवरी को दिल्ली में वोटिंग के सारे रिकॉर्ड टूटने चाहिए। आप याद रखना, ‘आप’दा नहीं सहेंगे, बदल के रहेंगे। ‘आप’दा नहीं सहेंगे, बदल के रहेंगे। ‘आप’दा नहीं सहेंगे, बदल के रहेंगे। ‘आप’दा नहीं सहेंगे, बदल के रहेंगे। आप इतनी विशाल संख्या में हमें आशीर्वाद देने आए, मैं आप सभी का आभार व्यक्त करता हूं।

भारत माता की जय!

भारत माता की जय!

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।