महात्मा मंदिर, गांधीनगर

मंच पर विराजमान मंत्रे परिषद के मेरे साथी, राज्य के शिक्षा मंत्री श्रीमान भूपेन्द्र सिंह जी, प्रो. वसुबेन, इस कार्यक्रम को विशेषरूप से सहयोग दे रहे हैं ऐसे इटली के एम्बैसेडर हिज़ एक्सेलेन्सि डेनियल मानुसिनि, प्रो. दिनेश सिंह जी, प्रो. राजन वेलुकर जी, प्रो. चार्ल्सो जुकोस्‍की, प्रो. लता रामचन्द्र, डॉ. किशोर सिंह जी, मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए हुए शिक्षा क्षेत्र के सभी विद्वज जनों और विद्यार्थी मित्रों, मैं गुजरात की धरती पर आप सभी का बहुत-बहुत स्वातगत करता हूं..!

जिस स्थान पर हमारा ये कार्यक्रम चल रहा है, इस महात्मा मंदिर का निर्माण उस दौरान हुआ था, जब 2010 में हम गुजरात का गोल्डन जुबली ईयर मना रहे थे। उस समय हमने सोचा था कि ये गांधीनगर है तो गांधीजी की याद में भी यहां कुछ व्यवस्थाएं विकसित होनी चाहिए। आपको जानकर आनंद और आश्चर्य होगा कि हमारे देश में भी ऐसा निर्माण 182 दिनों में हो सकता है..! हमने इस महात्मा मंदिर का प्रमुख हिस्सा 2010 में कुल 182 दिनों में तैयार करके, 2011 में वाईब्रेंट समिट यहां आयोजित की थी। कहने का तात्प‍र्य यह है कि हमारे देश के पास अपार क्षमताएं हैं, विपुल संभावनाएं हैं और ढ़ेर सारी आकांक्षाएं हैं, आवश्यमकता है कि उसे समझें, उसे जोड़ें और देशवासी इसके लिए जुट जाएं, तो सब कुछ संभव होगा..!

हम लगातार विचार-विमर्श का प्रयास कर रहे हैं और हमारा एक कन्वींक्शन है कि देश के भिन्ने-भिन्न भागों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, देश के विद्वजनों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, दुनिया से भी बहुत कुछ सीखकर हमारे देश के काम लाया जा सकता है। यह अवसर हम सभी गुजरात वालों के लिए सीखने का अवसर है, जानने का अवसर है, समझने का अवसर है और आप सभी हमें ज्ञान देने के लिए, शिक्षा देने के लिए इतनी बड़ी मात्रा में आएं हैं, इसलिए मैं विशेष रूप से आप सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूं, स्वागत करता हूं..!

एक प्रकार से भारत का युवा मन, भारत की शिक्षा का स्वरूप, एक लघु रूप में आज इस महात्मा मंदिर में इक्ट्ठा हुआ है। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम में संघ शासित प्रदेश और राज्य‍ मिलाकर कुल 33 राज्यों से लोग आएं हैं और इस समारोह में शरीक हुए हैं। हिंदुस्तान के 100 से अधिक वाइस चांसलर और डायरेक्टर इस समारोह में मौजूद हैं। इस समिति में 84 ऐसे स्कॉ‍लर और इनोवेटर आएं है जिनकी विश्व में गणना होती है, उन सभी ने यहां आकर कॉन्फ्रेंस के भिन्न-भिन्न हिस्सों को सम्बोधित किया है। 1500 से अधिक प्रोफेसर और टीचर्स इसमें शरीक हुए हैं। गुजरात के 1500 और गुजरात के बाहर से 3000 से ज्यादा विद्यार्थी यहां मौजूद हैं। इसके अलावा, इस समिट में तकरीबन 40 देशों के 200 से अधिक छात्र भी मौजूद हैं। शिक्षा को लेकर किए गए इस प्रयास मे लोगों की उपस्थिति को देखा जाए तो भी, आप कल्पना कर सकते हैं कि यह प्रयास कितना महत्वपूर्ण है। मैं इस प्रयास में सहयोग देने वाले, इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हमारे डिपार्टमेंट के सभी लोगों को, यूर्नीवर्सिटी के सभी साथियों और देश के अन्य कोनों से मदद करने वाले सभी लोगों का हृदय से अभिनंदन करता हूं, उनका धन्यवाद करता हूं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

भाईयों-बहनों, हम सभी लम्बे अरसे से एक बात सुनते आ रहे हैं और बोलते भी आ रहे हैं -“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामों-निशां हमारा... कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी...” आखिर वो कौन सी बात है, कभी तो सोचें, क्या कारण है कि हजारों साल पुरानी परम्परा, हजारों साल पुराना ये समाज आज तक है, ये हस्ती मिटी क्यों नहीं..! हमले कम नहीं हुए है, संकट कम नहीं आए, दुविधाएं भी आई, प्रलोभन भी था, सब कुछ हुआ, लेकिन इसके बावजूद भी हस्ती मिटती नहीं हमारी, इसका कारण क्या है..? मित्रों, इस बात के कई कारण कई लोग बता सकते हैं और वह हो भी सकते हैं, लेकिन मैं जो कारण देख रहा हूं, वह यह है कि हमारे पूर्वजों ने जो इंवेस्टमेंट किया था, वह ह्यूमन वेल्थ के लिए किया था, उन्होने मानव समाज के निर्माण के लिए शक्ति जुटाई थी, हर युग में, हर समाज में, हर नेतृत्व में, निरंतर विकास किया था, व्यक्ति के निर्माण पर बल दिया गया था और व्यक्ति के निर्माण में शिक्षा-दीक्षा, गुरू-शिष्य, संस्कार-संक्रमण जैसी उत्तम परम्पाराओं को विकसित किया था, जिसके कारण एक ऐसे समाज की रचना हुई, जो ज्ञान पर आधारित था, उसके सारे पैरामीटर डायनामिक थे, वे बदलाव को स्वीकार करने वाली व्यवस्था वाले थे, युगानुकूल परिवर्तन को स्वीकार करने वाला समाज बनाया, ये ज्ञान की परम्प्रावाली हमारी जो विरासत है, इन्ही के भरोसे हम कह सकते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी..! और इसलिए अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई और चालाकी से इसी पर वार करने की कोशिश की थी। लॉर्ड मैकॉले ने उस काल में शिक्षा व्यावस्थाओं और पम्पराओं पर हमला बोला था, बाकी किसी ने हमें हिलाया-डुलाया और ड़राया नहीं, लेकिन ये एक ऐसा इंजेक्शन हो गया, जिसने हमारी भीतर की शक्ति को झकझोर डाला..!

समय की मांग थी कि देश की आजादी के बाद विश्व को क्या चाहिए, आने वाला कल कैसा होगा, समाज कैसा होना चाहिए, क्याक ये देश विश्व को कुछ देने का सामर्थ्ये रखता है या नहीं, क्या इस देश को विश्व को कुछ देने का मन बनाना चाहिए या नहीं, क्या‍ ऐसे बड़े सपने सजोने चाहिए या नहीं, अगर इन सभी मूलभूत बातों को उठाया होता और उसी को लेकर हम आगे चले होते, और हमारी पुरानी विरासत की अच्छा ईयों को आगे बढ़ाते हुए, उसमें आवश्यक आधुनिकताओं के बदलाव को स्वीकार करते हुए हम नवीन व्यवस्थाओं को विकसित करने का प्रयास करते, तो आज हम विश्व को कुछ दे पाने के योग्य बन जाते..! भाईयों-बहनों, अभी भी वक्त है, कुछ कठिनाईयां जरूर होगी लेकिन रास्ते अभी भी खोजे जा सकते है, मंजिलें अभी भी पार की जा सकती हैं और मानव जाति की कल्यांण के लिए नई ऊर्जा का स्त्रोत हमारी भारत मां की पवित्र भूमि बन सकती है, ऐसे सपने हमें संजोने चाहिए..!

आज कठिनाई क्या हुई है, कभी हम सोचें कि हमारा शिशु मंदिर का बालक, यूर्नीवर्सिटी में रिसर्च करने तक की यात्रा में क्याम कोई लिंक है..? हर जगह पर हमें बिखराव नजर आता है..! अगर पूरी विकास यात्रा इंटीग्रल नहीं है, अगर वो सर्किल के रूप में है, छोटा सर्कल, बड़ा सर्कल, उससे बड़ा सर्कल.... तो मेरी समझ के मुताबिक वह मनुष्यै के विकास से नहीं जुड़ेगा। अगर वह छोटे सर्कल में है तो वहीं रहेगा, बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, उससे बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, और उसी में घूमता रहेगा। अगर हम एक छोर से शुरू करें, और राउंड करते-करते उसी सर्कल को बढ़ाते चलें, व्यक्तित्व का विस्तार करते चलें, जो व्यूक्ति से लेकर समूह तक, समूह से समाज तक, समाज से समष्टि तक अगर उस यात्रा को आगे बढ़ाया जाएं तो उससे व्यक्तित्व का विकास होगा। हम वो लोग हैं, जो कहते हैं कि ‘नर करणी करे तो नारायण हो जाए’, हमारे यहां ऐसा नहीं माना जाता है कि ईश्वर पैदा होते हैं, हमारे यह माना जाता है कि हमारी सोच में इतना सामर्थ्य‍ है कि व्यक्ति के विकास को ईश्वर की ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है..!

हमें आवश्याकता है कि नई व्यवस्थाओं को विकसित किया जाए। हमने एक छोटा प्रयास किया, हम सभी जानते है कि हमारे देश में एक व्यंवस्था है जो अंग्रेजों के ज़माने से आई होगी, वो यह है कि जब भी हम स्कूल से पढ़कर निकलते हैं तो हमें एक कैरेक्टार सर्टिफिकेट दिया जाता है, और हम जहां भी जाते हैं वह कैरेक्टैर सर्टिफिकेट दिखाते रहते हैं। और देश के करोड़ों-करोड़ों नागरिकों के कैरेक्टर सर्टिफिकेट के शब्दे एक ही प्रकार के हैं, एक ही सॉफ्टवेयर से निकले हुए कैरेक्टोर सर्टिफिकेट हैं..! देने वाले को भी पता है क्यों दे रहा है और लेने वाले को भी पता है क्यों ले रहा है, फिर भी गाड़ी चल रही है, क्या किसी ने सवाल पूछा कि ये क्यों..? आखिर इसका क्या, उपयोग है..? और अगर सर्टिफिकेट मिल गया तो क्या मान लिया जाए कि वह व्यक्ति सही है..? मैनें अभी हमारी सरकार में एक सुझाव दिया है और उस पर काम चल रहा है कि क्यूं न हम बालक को एप्टीट्यूड सर्टिफिकेट दें..! जब वह स्कूल में पढ़ता है तो कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो उसका लगातार आर्ब्जूवेशन करता रहे, इसके लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए, बारी-बारी से उनसे संवाद करके पता किया जाए, उनकी दिनचर्या को देखा जाए, उनकी फैमिली को देखा जाए, तो इससे उसके बारे में पता चला चलेगा, जैसे-कि यह बच्चा बड़ा साहसी है, ये इसका एप्टीट्यूड है, और उसे उसी क्षेत्र में प्रेरित किया जाए, जैसे कि सेना के जवानों से मिलवाया जाए, कभी आर्मी कैन्टान्मेंट में ले जाया जाए, ऐसे बच्चों का टूर प्रोग्राम भी वहीं रखा जाएं तो इससे उसे लगेगा कि हां यार, जिन्दगी ऐसे बनानी चाहिए..! स्कूल के दस बच्चें हैं जिनके हाथ में कोई भी चीज आई तो वह चीजों को तोड़-फोड़ कर देखते हैं कि इसके अंदर क्या है, मतलब उसका एप्टीट्यूड रिसर्च करने वाला है, वह जानना-समझना चाहता है, तो ऐसे बच्चों को इक्ट्ठा करके उनका प्रोग्राम किसी अच्छी मैनुफैक्चरिंग कम्पनी जहां ऐसे रिसर्च होते हों, वहां ले जाओं तो वह बड़ा मन से देखेगें..! लेकिन हमारे यहां टूर प्रोग्राम होता है तो एक साथ सब उदयपुर देखने जाएंगे, सब ताजमहल देखने जाएंगे..! कहने का तात्प्र्य यह है कि हम माइंड एप्लाई ही नहीं करते, चलती है गाड़ी तो चलने दो..! क्या इसके लिए भी पार्लियामेंट में कानून बनाना पड़ेगा, कोई संशोधन करना पड़ेगा..? ऐसा नहीं है, मित्रों। हमने सिलेबस को बल दिया है, आवश्याकता है कि हम एक-एक बच्चेको सेलिब्रिटी मानें और उसके जीवन पर बल दें तो हम स्थितियों को बदल सकते हैं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

मित्रों, समाज और इन व्यवस्था ओं का डिस्कंनेक्टक कैसा हुआ है..! शायद चार-छ: महीने पहले की बात होगी, मैं रात को देर से आया तो सोचा कि दिन भर की क्या खबरें होगी इसलिए टीवी ऑन किया, एक टीवी चैनल पर विवाद चल रहा था - किसी स्कूल में बच्चे सफाई का काम कर रहे थे, झाडू-पोछा कर रहे थे, अपना स्कूल साफ कर रहे थे, और विवाद इस बात पर था कि बच्चों से ऐसा काम क्यों लिया जाता है..? मैं हैरान था, हमारे देश में तो गांधी जी भी कहते थे कि श्रम हमारी शिक्षा के केंद्र में होना चाहिए, उससे सारी चीजें करवानी चाहिए, तभी एक बालक तैयार होगा और हमारे देश का वर्तमान मीडिया इस बात पर बहस कर रहा था..! श्रम कार्य, हमारे देश में शिक्षा का हिस्सा था, लेकिन आज माना जाता है कि ये शिक्षा के व्यापारी लोग बच्चों का शोषण करते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं... परन्तु यदि हमें व्याक्तित्व का विकास करना हो, तो समाज को भी प्रशिक्षित करना पड़ेगा कि इसका क्या‍ महत्व है, क्या जरूरत है..! मैं इसे नहीं मानता हूं। जैसे हमारी पूरी सृष्टि की जो रचना है, तो हमारी मैथोलॉजी में जो कॉन्सेप्ट है, उसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की बात है, जिस प्रकार सृष्टि में तीनों का होना जरूरी है उसी प्रकार, शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व, के विकास में सिर्फ हेड से काम नहीं चलेगा, सिर्फ दिमाग में सब भरा जाएगा तो वह रोबोट की तरह कहीं उगलता रहेगा और उससे आगे दुनिया नहीं चलेगी, इसलिए सिर्फ हेड नहीं बल्कि हेड, हार्ट और हैंड, तीनों का मेल होना जरूरी है जैसे पूरी सृष्टि के लिए ब्रह्मा, विष्णु , महेश जरूरी है..! व्यक्ति की ऊर्मियां, उसकी भावनाएं, उसके भीतर पड़ी हुई ललक, उसके हृदय का स्पंदन, ये सब उसके व्यक्तित्व के साथ जुड़ा हुआ होता है। उसका हेड जितना सामर्थ्य्वान होगा, जितना फर्टाइल होगा, जितना इनोवेटिव होगा, जितना क्रिएटिव होगा, वह एक ताकत के रूप में उभरेगा, लेकिन अगर उसके हैंड बेकार है, उनमें कौशल नहीं है, अगर वह किसी के काम नहीं आते हैं, किसी के काम में जुड़ते नहीं है, तो उस व्यक्ति और एक अच्छी किताब के बीच कोई फर्क नहीं है..! हमें इंसान किताब के रूप में नहीं बल्कि जीती-जागती व्यवस्था के रूप में चाहिए, जो व्यवस्था!ओं को विकसित करने का हिस्सा बनना चाहिये। इसलिए, हमें हमारी शिक्षा को उस तराजु पर तौलने की आवश्यकता है कि वह मनुष्य के इस रूप को बनाने में सक्षम है या नहीं..!

प्राइमरी स्कूल में जो बच्चे होते हैं, उनमें से कुछ छूट जाते हैं, कुछ सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते हैं, कुछ हॉयर सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते है, कुछ कॉलेज में जाते हैं, और कॉलेज में भी कुछ इसलिए जाते हैं कि जाएं तो जाएं कहां...। इसके बाद, वो कहीं नौकरी के लिए जाते हैं तो उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है, डिग्री है, वो सब ठीक है, लेकिन क्या तुम्हे ये आता है..? तो छात्र बोलता है कि नहीं, हमें कॉलेज में ये तो नहीं सिखाया गया। फिर उस छात्र को लगता है कि मैनें अपनी जिन्देगी क्यों खराब की, चार साल कॉलेज में क्यों गया..? हमारी शिक्षा व्यवस्था से उस प्रकार का जीवन तैयार हों, उस प्रकार की शख्सियत तैयार हों, उस प्रकार की शक्ति तैयार हों, जिसे समाज खोजता हो..! लोग ऐसा कहें कि अरे मेरे यहां आओ, मुझे जरूरत है, तुम काम करो, तुम्हारे पास ताकत है, हम मिलकर कुछ करेगें... ये स्थिति हमें पैदा करनी चाहिए। और हमारी कोशिश यह है कि व्यक्तित्व को उस दिशा में ले जाना चाहिए..!

उसी प्रकार से, हमारे देश में व्हाइट कॉलर जॉब ने हमारा बहुत नुकसान किया है, लोगों की सोच बन गई है कि छोटा-मोटा काम करना बुरा है, हालांकि अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है, यूथ को लगने लगा है कि वह कुछ नया करें, अलग करें, अच्छा करें। हम समाज का ये स्वभाव कैसे बनाएं, कि ऑफिस में फाइलों में साइन करने के बजाय, या बैंकों में चेकबुक पर काम करने के बजाय भी तो दुनिया में कोई काम हो सकता है..! एक बार मैं एक एग्रीकल्चर के कार्यक्रम में गया था, हमारे कृषि विभाग का एक कार्यक्रम था, जिसमें किसानों को अवॉर्ड देना था। मैनें जाने से पहले सोचा कि सब वयोवृद्ध, तपोवृद्ध लोग होगें। उस दिन मुझे लगभग 35 कृषिकारों को अवॉर्ड देना था, और उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि उसमें से कम से कम 27-28 किसान, 35 से कम आयु वाले जींस-पैंट पहने हुए किसान थे, मन को बहुत आनंद हुआ कि नई पीढ़ी में भी बदलाव आया है..! कुछ दिनों पहले, मुझसे विदेश से एक-दो लड़के मिलने आए थे, वो बोले कि वह कुछ करना चाहते हैं। मैनें कहा कि क्या सोचा है..? वो बोले कि वह तबेला खोलेंगे, गाय-भैंस रखेगें, उनका लालन-पालन करेगें और दुध का मार्केट कैप्चर करूंगा। मैनें कहा गुजरात में क्या करोगे, यहां अमूल है, जो दिनेश सिंह की रगों तक पहुंच गया है..! उसने कहा कि मैं करूंगा और करके दिखाउंगा..! मित्रों, ये जो मन की रचना तैयार होती है वह सिर्फ किताबों से नहीं होती है, हमें वो एन्वॉयरमेंट तैयार करना पड़ेगा। क्या हमने वो माहौल तैयार किया है..? हमारी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में, हमारे कॉलेज में, जहां सभी आपस में ये बातें करते हैं कि किसने कितनी सेंचुरी मारी, किसने कितने रन बनाएं और उसी में सारा समय जाता है। कौन सा फिल्मं शो चल रहा है, अगले फ्राइडे कौन सी मूवी आएगी, किसने ज्यादा कमाई की, नई फैशन में क्या आया है... छात्र इसी बारे में बातें करते हैं और उनका सारा समय इसी में जाता है..! क्या कैम्पस में दुनिया कहां जा रही है, जगत में किस प्रकार की आधुनिक, आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तकनीकी आ रही है और उनका क्या प्रभाव है, क्या ऐसी सहज बातों का माहौल बनता है..? लेकिन एक-आध प्रोफेसर ऐसा होता है जो माहौल बदल देता है, जिसके कारण बदलाव आता है। कहा जाता है कि एक समय में वाराणसी का माहौल ऐसा था, कि लोग आते-जाते शास्त्र में बात करते थे, जीवन की समस्याओं की चर्चा भी शास्त्रों को वर्णित करके करते थे, शास्त्र बहुत सहज रूप से उनके जीवन का हिस्सा बन गया था, इसी कारण सदियों बाद भी वाराणसी उसकी पंडिताई के लिए जाना जाता है और उस समय ये सब कुछ इंफॉर्मल था। क्यों न हम ऐसी व्यवस्थाओं को विकसित करने की दिशा में एक एन्वॉयरमेंट डेपलप करें..!

सारी दुनिया जानती है कि 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंर्फोमेशन टेक्नो्लॉजी आई और रेवोल्यूशन हुआ, उसने जीवन पर बहुत बड़ा इम्पे्क्टा डाल दिया। 21 वीं सदी में ईटी यानि एन्वॉहयरमेंट टेक्नोलॉजी का प्रभाव रहने वाला है। क्या अभी से हमने अपने आपको ईटी के लिए तैयार किया है..? क्या हमारे इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स, हमारा मैनुफैक्चकरिंग सेक्टर, हमारे रिसर्चर ईटी के लिए तैयार हैं..? सारी दुनिया में एन्वॉयरमेंट टेक्नोहलॉजी एक पैरामीटर बन रहा है। क्या हमारे पास ऐसा बुद्धिधन है, जो एन्वॉयरमेंट टेक्नोलॉजी में पूरे विश्व को लीड़ कर सकें, उसे नए रास्ते दिखाएं..? अगर आईटी के माध्यम से हम जगत में अपनी जगह बना पाए हैं, तो इंजीनियरिंग स्किल के माध्यम से 21 वीं सदी में ईटी के क्षेत्र में भी दुनिया में अपनी जगह बना सकते हैं, दुनिया की आवश्य्कताओं की पूर्ति कर सकते हैं..!

आईटीआई, टेक्नोलॉजी फील्ड़ में स्किल डेवलपमेंट में शिक्षा के स्तर पर सबसे छोटी ईकाई होती है। हमने अपने राज्य में आईटीआई में छोटे-छोटे बदलाव किए हैं। हमारे राजेन्द्र् जी इंटरडिसीप्लेन के विषय के बारे में अभी कह रहे थे, कुछ चीज़ें कैसे बदलाव लाती हैं, और हमने इसमें प्रतिष्ठा देने के विषय में एक छोटा सा प्रयोग किया है। जो बच्चे 7 वीं कक्षा, 8 वी कक्षा में होते हैं और आगे पढ़ नहीं पाते हैं, उनका मन नहीं लगता है या संजोग नहीं हो पाता, और वह रोजी-रोटी कमाने के लिए कुछ काम सीखते हैं जैसे प्लैम्बर, टर्नर, फिटर, वायरमैन, आदि, और कोई सलाह देता है तो आईटीआई में चले जाते हैं कि इनमें से कुछ बन जाएंगे। वहां जाने के बाद, उसके अंदर मैच्योरिटी आती है, उसे लगता है कि स्कूल छूट गया तो अपना जीवन बर्बाद कर दिया, अब उसे कुछ करना चाहिए, लेकिन व्यवस्था ऐसा होती है कि दरवाजे बंद हो जाते हैं। उसे मन में इच्छा जग जाती है लेकिन हम उसकी इच्छा के अनुसार कोई व्यवस्थां विकसित नहीं करते हैं। इसी को लेकर हमने एक छोटा सा प्रयास किया, कि जिस बच्चेने 7 वीं, 8 वीं, और 9 वीं से कक्षा से स्कूल छोड़ दिया है और मान लीजिए कि वह दो साल आईटीआई करता है, तो हम उसे 10 वीं पास मानते हैं और उसे सर्टिफिकेट दे देते हैं..! पहले वो छात्र आईटीआई कहने से शर्माता था, कोई पूछता था कि क्याऔ पढ़ते हो, तो वह दूसरे विषय पर ही बात करने लगता था, उसे शर्म आती थी, लेकिन इस बदलाव को करने के बाद, छात्र में कॉन्फीडेंस बढ़ा, वो कहने लगा कि नहीं 10 वीं पास हूं। जो छात्र 10 वीं के बाद आईटीआई में जाता है और दो साल आईटीआई करता है उसे हमने 12 वीं पास के बराबर दर्जा दे दिया, वो कहने लगा कि हां मैने, 12 वीं पास किया है। 12 वीं के बराबर होने के नाते, उसके लिए डिप्लोमा इंजीनियरिंग के दरवाजे हमने खोल दिए, यूं तो उसके स्कूल 8 वीं में ही छोड़ दिया था, लेकिन इस आईटीआई और उसके एप्टीट्यूट के कारण उसे अवसर मिल गया और वह इंजीनियरिंग के डिप्लोमा में चला गया। और उसकी इन विषयों में रूचि होने के कारण, 8 वीं में पढ़ाई छोड़ने के बाद भी इंजीनियरिंग की ओर चला गया, डिग्री की ओर चला गया..! मित्रों, हमें दरवाजे खोलने होगें..! 8वीं, 9वीं, 10 वीं के कारणों से जिन छात्रों का जीवन रूक गया है, उसको रूकने नहीं देना होगा। हमें ऐसे छात्रों के लिए दरवाजे खोलने होगें, उन्हे अवसर देना होगा..! इसके लिए यहां हमारे शिक्षाशास्त्री बैठे हैं, हम इस बदलाव को कैसे एडॉप्ट कर सकते हैं, और उसे एडॉप्टए करने के बाद, उसके विकास के लिए क्या कर सकते हैं..? क्यों न हम बच्चों को उनके एप्टीट्यूड के हिसाब से काम दें..! मैने गुजरात सरकार में एक प्रयोग किया है, वैसे सरकारी व्यवस्थां में इस प्रकार का प्रयोग करने के लिए बहुत बड़ी हिम्मत लगती है, जो मेरे अंदर ज्या्दा ही है..! सरकार में पद्धति ऐसी होती है कि हर अफसर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक निर्धारित दायरे में अपना-अपना काम करता है और उसी दायरे में सोचता है, धीरे-धीरे वह रोबोट जैसा हो जाता है, उसे मालूम होता है कि दिन में 6 फाइल आने वाली हैं और उसे ऐसा-ऐसा करना है..! इसको लेकर हमने छोटा सा प्रयोग किया, हमने अफसरों के लिए ‘स्वान्त: सुखाय्’ नाम का एक कार्यक्रम बनाया, जिसमें सरकारी कामकाज के अलावा, उसके मन को आनंद देने वाले किसी एक काम को वो चुनें और करें। इस कार्यक्रम को लेकर मुझे इतने आश्चर्यजनक परिणाम मिले हैं कि हमारे सैं‍कड़ों सरकारी अधिकारियों ने उनकी निर्धारित नौकरी के अलावा, अपनी पसंद का एक काम लिया, उसमें जी-जान से जुट गए, और वह इतने इनोवेटिव होते हैं, इतने रिर्सोस मोबिलाइज़ करते हैं और साल-दो साल में उस काम को पूरा करते हैं। जब ट्रांसफर हो जाता है, तो ट्रांसफर होने के बाद भी अपने यार, दोस्तो और रिश्तेोदार आते हैं तो उनको साथ लेकर जाते हैं और बताते हैं कि मैं जब यहां कलेक्टबर था, तो ये काम किया था। इससे उसके जीवन को अत्यंत संतोष मिलता है, क्योंकि उसके एप्टीमट्यूट के अनुकूल उसे एक अवसर मिलता है, दिया जाता है..! अगर ऐसा परिवर्तन कट्टर सरकारी व्यवस्था में हो सकता है तो शिक्षा में आसानी से हो सकता है, ये मेरा मत है..!

इसलिए मित्रों, ये जो हमारा मंथन है, जो मोदी कह रहा है वो अल्टीमेट नहीं हो सकता है और न होना चाहिए, लेकिन इस ज्योत को जलाने की शुरूआत की जाए, इसे जलाया जाए, इसे स्पार्क किया जाए..! मिलें, बैठें और सपना देखें, 21 वीं सदी में विश्व को कुछ देने का सामर्थ्य देखें..! लोग कहते है कि 21 वीं सदी हिंदुस्तान की सदी है, इसका मतलब क्यां है..? इसके बारे में कुछ तो डिफाइन करो, हिंदुस्तान की सदी कैसे है, क्यों है..? परन्तु यदि हम पुरातन काल में देखें कि जब-जब मानव जाति ज्ञान के युग में जी रही थी, हर बार हिंदुस्तान ने मानव जाति का नेतृत्व किया था। 21 वीं सदी भी नॉलेज की सदी है, ज्ञान की सदी है और अगर यह ज्ञान की सदी है, तो हम लोग इसमें काफी कुछ कॉन्ट्रीब्यूट कर सकते हैं और हमें लीड करना चाहिए। हमारी दूसरी पॉजीटिव शक्ति यह है कि हम विश्व में सबसे युवा देश हैं। वी आर द यंगेस्ट नेशन..! हमारे देश की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। जिस देश के पास इतनी जवानी भरी हो, वो देश क्या नहीं कर सकता है..! डेमोग्रफिक डिवीडेंट हमारी सबसे बड़ी ताकत है..! हमारे देश के नौजवान आईटी के माध्यम से दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत रखते हैं..! ये जो हमारी डेमोग्राफिक स्ट्रेंथ है, डेमोग्रफिक डिवीडेंट है, अगर ऐसे नौजवानों को हुनर मिले, कौशल मिले, सामर्थ्य मिले, अवसर मिले, तो वह नौजवान पूरे विश्व में अपनी ताकत दिखा सकता है..! हमारा तीसरा सशक्त पहलू यह है कि हम एक वाईब्रेंट डेमोक्रेटिक देश हैं। ये लोकतंत्र हमारे देश की बहुत बड़ी अमानत है..! विश्व भर में चल रही स्पर्धा में हमारे पास ये चीज ऐसी है जिसके कारण हम पहले से एक कदम आगे होने की ताकत रखते हैं। अगर इन सपनों को लेकर, हम आगे की नई पीढ़ी को तैयार करने के लिए इस पर ध्यान दें कि कॉलेज की सोच कैसे बदलें, यूनिवर्सिटी की सोच कैसे बदलें, हमारी शिक्षा व्यवस्था की सोच कैसे बदलें, तो बेहतर होगा..! हमें सिर्फ नौकरशाहों को पैदा करने के लिए इतना बड़ा शिक्षा का क्षेत्र चलाने की क्या जरूरत है..? हमें तो समाज के निर्माताओं को तैयार करना है, युग निर्माताओं को तैयार करना है, आने वाली पीढि़यों को तैयार करने का काम करना है, और इस बदलाव को लेकर हम अपनी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर सोचें..!

मुझे विश्वास है कि दो दिन चलने वाला मंथन और पिछले 7 दिनों से इस संदर्भ में चल रहे प्रयासों से हमें कुछ न कुछ अमृत मिलेगा..! ये कोई टोकन काम नहीं है, हम लगातार इसके लिए प्रयासरत रहते हैं। पहले यूनीवर्सिटी के स्तृर पर काम किया, पिछले वाइब्रेंट समिति में पूरे विश्व से 45 यूनीवर्सिटी को बुलाकर एक वर्कशॉप किया। उसके बाद, लॉर्ड भीखु पारेख जैसे लोगों को बुलाकर एक इनहाउस मंथन का काम किया और आज इस स्तर पर कार्य कर रहे हैं। यानी कि हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, ये अचानक से काम शुरु नहीं किया है। इसके बाद भी हम और आगे जाएंगे, आगे सोचेंगे और कदम उठाएंगे। हमारी कोशिश है कि हम गुजरात में कुछ करना है। गुजरात कुछ सीखना चाहता है, देश के बुद्धिजीवियों को हमने कुछ सीखने के लिए बुलाया है। हम शिक्षाशास्त्री नहीं है, इसलिए अपने मन के विचारों को आप सभी के सामने रखने और आपसे सीखने के लिए बुलाया है। इससे कहीं तो कुछ शुरू होगा और कहीं भी कुछ भी शुरू होने पर परिवर्तन आ सकता है, और उसी के प्रयास के हिस्से के रूप में हम आएं हैं..!

हमें सेंटर फॉर एक्सीलेंसी की ओर बल देना होगा। मैने देखा है कभी-कभी गांव का एक किसान एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी के सांइटिस्ट से ज्यादा बढि़या काम करता है। गांव में खेती करने वाला किसान, लेबोरेट्री में काम करने वाले सांइटिस्ट‍ से अगर दो कदम आगे है तो दोनों को साथ में जोड़ने की जरूरत है..! एक वेटेनेरी डॉक्टर से ज्यादा, पशुओं का पालन करने वाली अनपढ महिला जानती होगी कि पशुओं की केयर कैसे करनी चाहिए, उसकी देखभाल कैसे की जाएं की वह ज्यादा दूध दे, वो ज्यादा जिन्देगी कैसे जिएं, तो इसमें भी दोनों को जोड़ने की जरूरत है..! अगर हम इन चीजों पर बल देगें तो बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। एक बार फिर से यहां आने वाले सभी लोगों का स्वागत करता हूं..! लता जी तो गला खराब होने के कारण बोल नहीं पा रही है, उसके बाद भी इस कार्यक्रम में शरीक हुई, मैं उनका विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं। आप सभी का स्वागत करते हुए, बहुत-बहुत धन्यउवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!

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There is only one mantra to fight cancer - Awareness, Action and Assurance: PM Modi
The Ayushman Bharat Yojana has reduced the financial problems in cancer treatment to a great extent: PM Modi

ನನ್ನ ಪ್ರಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳಿಗೆ ನಮಸ್ಕಾರ. 2025 ಇನ್ನೇನು ಬಂದೆ ಬಿಟ್ಟಿತು, ನವ ಸಂವತ್ಸರ  ಬಾಗಿಲು ತಟ್ಟುತ್ತಿದೆ. 2025ರ ಜನವರಿ 26 ರಂದು ನಮ್ಮ ಸಂವಿಧಾನ ಜಾರಿಗೆ ಬಂದು 75 ವರ್ಷಗಳು ತುಂಬುತ್ತವೆ. ನಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ಇದು ಹೆಮ್ಮೆಯ ವಿಷಯ. ನಮ್ಮ ಸಂವಿಧಾನ ನಿರ್ಮಾತೃಗಳು ನಮಗೆ ಒಪ್ಪಿಸಿದ ಸಂವಿಧಾನವು ಎಲ್ಲಾ ಕಾಲದಲ್ಲು ಪ್ರಸ್ತುತವಾಗಿದೆ. ಸಂವಿಧಾನ ನಮಗೆ ದಿಕ್ಸೂಚಿಯಾಗಿದೆ, ಮಾರ್ಗದರ್ಶಕನಾಗಿದೆ. ಭಾರತದ ಸಂವಿಧಾನದಿಂದಾಗಿಯೇ  ಇಂದು ನಾನು ಇಲ್ಲಿದ್ದೇನೆ, ನಿಮ್ಮೊಂದಿಗೆ ಮಾತನಾಡುತ್ತಿದ್ದೇನೆ. ಈ ವರ್ಷ, ನವೆಂಬರ್ 26 ರ ಸಂವಿಧಾನ ದಿನದಿಂದ ಒಂದು ವರ್ಷದ ಅವಧಿಯವರೆಗೆ ಜರುಗುವ ಅನೇಕ ಚಟುವಟಿಕೆಗಳು ಪ್ರಾರಂಭವಾಗಿವೆ. ದೇಶದ ನಾಗರಿಕರನ್ನು ಸಂವಿಧಾನದ ಪರಂಪರೆಯೊಂದಿಗೆ ಜೋಡಿಸಲು, constitution75.com ಎಂಬ ವಿಶೇಷ ವೆಬ್‌ಸೈಟ್ ಅನ್ನು ಸಹ ರಚಿಸಲಾಗಿದೆ. ಇದರಲ್ಲಿ ನೀವು ಸಂವಿಧಾನದ ಪೀಠಿಕೆಯನ್ನು ಓದಿ ನಿಮ್ಮ ವೀಡಿಯೊವನ್ನು ಅಪ್‌ಲೋಡ್ ಮಾಡಬಹುದು. ನೀವು ವಿವಿಧ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಸಂವಿಧಾನವನ್ನು ಓದಬಹುದು ಮತ್ತು ಸಂವಿಧಾನದ ಬಗ್ಗೆ ಪ್ರಶ್ನೆಗಳನ್ನು ಕೇಳಬಹುದು. ‘ಮನದ  ಮಾತಿನ’ ಕೇಳುಗರು, ಶಾಲಾ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು, ಕಾಲೇಜಿಗೆ ಹೋಗುವ ಯುವಕರು, ಈ ವೆಬ್‌ಸೈಟ್‌ಗೆ ಖಂಡಿತಾ ಭೇಟಿ ನೀಡಿ ಮತ್ತು ಇದರಲ್ಲಿ ಪಾಲ್ಗೊಳ್ಳಿ ಎಂದು ನಾನು ಆಗ್ರಹಿಸುತ್ತೇನೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಮುಂದಿನ ತಿಂಗಳು 13 ರಿಂದ ಪ್ರಯಾಗರಾಜ್‌ನಲ್ಲಿ ಮಹಾಕುಂಭವೂ ನಡೆಯಲಿದೆ. ಸದ್ಯ ಸಂಗಮದ ದಡದಲ್ಲಿ ಭರ್ಜರಿ ಸಿದ್ಧತೆಗಳು ನಡೆಯುತ್ತಿವೆ. ನನಗೆ ನೆನಪಿದೆ, ಕೆಲವೇ ದಿನಗಳ ಹಿಂದೆ, ನಾನು ಪ್ರಯಾಗರಾಜ್‌ಗೆ ಭೇಟಿ ನೀಡಿದಾಗ, ಹೆಲಿಕಾಪ್ಟರ್‌ನಿಂದ ಇಡೀ ಕುಂಭ ಜರುಗುವ ಪ್ರದೇಶವನ್ನು ವೀಕ್ಷಿಸಿ ನನಗೆ ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷವಾಯಿತು. ಎಷ್ಟು ಬೃಹದಾದುದು! ಎಷ್ಟು ಸುಂದರ! ಎಂತಹ ಭವ್ಯತೆ!

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಮಹಾಕುಂಭದ ವಿಶೇಷತೆ ಅದರ ಅಗಾಧತೆಯಲ್ಲಿ ಮಾತ್ರ ಅಡಗಿಲ್ಲ. ಅದರ ವೈವಿಧ್ಯತೆಯೂ ಕುಂಭದ ವಿಶೇಷತೆಯಾಗಿದೆ. ಈ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮದಲ್ಲಿ ಕೋಟಿಗಟ್ಟಲೆ ಜನ ಒಗ್ಗೂಡುತ್ತಾರೆ. ಲಕ್ಷಗಟ್ಟಲೆ ಸಂತರು, ಸಾವಿರಾರು ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳು, ನೂರಾರು ಪಂಥಗಳು, ಹಲವು ಅಖಾಡಗಳು, ಎಲ್ಲರೂ ಈ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮದಲ್ಲಿ ಮೇಳೈಸುತ್ತಾರೆ. ಯಾವುದೇ ತಾರತಮ್ಯವಿಲ್ಲ, ಯಾರೂ ದೊಡ್ಡವರಲ್ಲ, ಯಾರೂ ಚಿಕ್ಕವರಲ್ಲ. ಅನೇಕತೆಯಲ್ಲಿ ಏಕತೆಯ ಇಂತಹ ದೃಶ್ಯ ಜಗತ್ತಿನ ಬೇರೆಲ್ಲೂ ಕಾಣಲು ಸಾಧ್ಯವಿಲ್ಲ. ಆದ್ದರಿಂದಲೇ ನಮ್ಮ ಕುಂಭ ಏಕತೆಯ ಮಹಾಕುಂಭವಾಗಿದೆ. ಈ ಬಾರಿಯ ಮಹಾಕುಂಭವು ಏಕತೆಯ ಮಹಾಕುಂಭದ ಮಂತ್ರಕ್ಕೆ ಪುಷ್ಟಿ ನೀಡಲಿದೆ. ನಾವು ಕುಂಭದಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿದಾಗ,  ಏಕತೆಯ ಸಂಕಲ್ಪದೊಂದಿಗೆ ಹಿಂತಿರುಗೋಣ ಎಂದು ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರನ್ನು ಕೇಳಿಕೊಳ್ಳುತ್ತೇನೆ. ಸಮಾಜದಲ್ಲಿನ ಒಡಕು ಮತ್ತು ದ್ವೇಷ ಭಾವನೆಯನ್ನು ತೊಡೆದುಹಾಕುವ ಪ್ರತಿಜ್ಞೆಯನ್ನೂ ತೆಗೆದುಕೊಳ್ಳೋಣ. ಕೆಲವೇ ಪದಗಳಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆ ನಾನು ಹೇಳಬಯಸುವುದು …

ಮಹಾಕುಂಭದ ಸಂದೇಶಒಂದಾಗಲಿ ಸಂಪೂರ್ಣ ದೇಶ.

ಮಹಾಕುಂಭದ ಸಂದೇಶಒಂದಾಗಲಿ ಸಂಪೂರ್ಣ ದೇಶ.

ಮತ್ತು ನಾನು ಅದನ್ನು ಬೇರೆ ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಹೇಳುವುದಾದರೆನಾನು ಹೀಗೆ ಹೇಳುತ್ತೇನೆ ...

ಗಂಗೆಯ ನಿರಂತರ ಪ್ರವಾಹದಂತೆ ಇರಲಿ ಒಗ್ಗೂಡಿ ನಮ್ಮ ಸಮಾಜ ಇಬ್ಭಾಗವಾಗದಂತೆ.

ಗಂಗೆಯ ನಿರಂತರ ಪ್ರವಾಹದಂತೆ ಇರಲಿ ಒಗ್ಗೂಡಿ ನಮ್ಮ ಸಮಾಜ ಇಬ್ಭಾಗವಾಗದಂತೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಈ ಬಾರಿ ದೇಶ ಮತ್ತು ಪ್ರಪಂಚದಾದ್ಯಂತದ ಭಕ್ತರು ಪ್ರಯಾಗರಾಜ್‌ನಲ್ಲಿ ಡಿಜಿಟಲ್ ಮಹಾಕುಂಭಕ್ಕೆ ಸಾಕ್ಷಿಯಾಗಲಿದ್ದಾರೆ. ಡಿಜಿಟಲ್ ನ್ಯಾವಿಗೇಷನ್ ಸಹಾಯದಿಂದ, ನೀವು ವಿವಿಧ ಘಾಟ್‌ಗಳು, ದೇವಾಲಯಗಳು, ಸಾಧುಗಳ ಅಖಾಡಾಗಳನ್ನು ತಲುಪುವ ಮಾರ್ಗವು ಲಭಿಸಲಿದೆ. ಈ ನ್ಯಾವಿಗೇಷನ್ ಸಿಸ್ಟಮ್ ನಿಮಗೆ ಪಾರ್ಕಿಂಗ್ ತಲುಪಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ. ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ, ಮಹಾಕುಂಭ ಆಯೋಜನೆಯಲ್ಲಿ ಕೃತಕ ಬುದ್ಧಿಮತ್ತೆಯ ಚಾಟ್‌ಬಾಟ್ ಅನ್ನು ಬಳಸಲಾಗುವುದು. AI ಚಾಟ್‌ಬಾಟ್ ಮೂಲಕ, ಕುಂಭಕ್ಕೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ರೀತಿಯ ಮಾಹಿತಿಯನ್ನು 11 ಭಾರತೀಯ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಪಡೆಯಬಹುದು.  ಈ ಚಾಟ್‌ಬಾಟ್‌ ಗೆ text ಟೈಪ್ ಮಾಡುವ ಮೂಲಕ ಅಥವಾ ಧ್ವನಿ ಮೂಲಕ ಯಾವುದೇ ರೀತಿಯ ಸಹಾಯವನ್ನು ಯಾಚಿಸಬಹುದು. ಕಾರ್ಯಕ್ರಮ ನಡೆಯುವ ಸಂಪೂರ್ಣ ಪ್ರದೇಶವನ್ನು AI ಚಾಲಿತ ಕ್ಯಾಮೆರಾಗಳಿಂದ ಅವರಿಸಲಾಗಿದೆ. ಕುಂಭದಲ್ಲಿ ಯಾರಾದರೂ ತಮ್ಮ ಬಂಧು ಬಳಗದಿಂದ ಬೇರ್ಪಟ್ಟರೆ, ಅವರನ್ನು ಹುಡುಕಲು ಈ ಕ್ಯಾಮೆರಾಗಳು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತವೆ. ಭಕ್ತರು ಡಿಜಿಟಲ್ ಲಾಸ್ಟ್ & ಫೌಂಡ್ ಸೆಂಟರ್ ಸೌಲಭ್ಯವನ್ನೂ ಪಡೆಯಲಿದ್ದಾರೆ. ಸರ್ಕಾರದಿಂದ ಅನುಮೋದಿತ ಪ್ರವಾಸ ಪ್ಯಾಕೇಜ್‌ಗಳು, ವಸತಿ ಮತ್ತು ಹೋಂಸ್ಟೇಗಳ ಬಗ್ಗೆಯೂ ಭಕ್ತರಿಗೆ ಮೊಬೈಲ್‌ನಲ್ಲಿ ಮಾಹಿತಿ ನೀಡಲಾಗುವುದು.  ನೀವೂ ಸಹ ಮಹಾಕುಂಭಕ್ಕೆ ತೆರಳಿದರೆ, ಈ ಸೌಲಭ್ಯಗಳ ಪ್ರಯೋಜನವನ್ನು ಪಡೆದುಕೊಳ್ಳಿ ಮತ್ತು ನಿಮ್ಮ ಸೆಲ್ಫಿಯನ್ನು #EktaKaMahaKumbh ಜೊತೆಗೆ ಅಪ್‌ಲೋಡ್ ಮಾಡಿ.     

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ‘ಮನ್ ಕಿ ಬಾತ್’ ಅಂದರೆ ಎಂಕೆಬಿಯಲ್ಲಿ ಈಗ ನಾವು ಕೆಟಿಬಿಯ ಬಗ್ಗೆ ಮಾತನಾಡೋಣ, ಹಿರಿಯರಲ್ಲಿ, ಅನೇಕರಿಗೆ ಕೆಟಿಬಿ ಬಗ್ಗೆ ತಿಳಿದಿಲ್ಲ. ಆದರೆ ಮಕ್ಕಳನ್ನು ಕೇಳಿ, ಕೆಟಿಬಿ ಅವರಲ್ಲಿ ಬಹಳ ಸೂಪರ್ಹಿಟ್ ಆಗಿದೆ. ಕೆಟಿಬಿ ಎಂದರೆ ಕ್ರಿಶ್, ತ್ರಿಶ್ ಮತ್ತು ಬಾಲ್ಟಿಬಾಯ್. ಮಕ್ಕಳ ಮೆಚ್ಚಿನ ಅನಿಮೇಷನ್ ಸರಣಿಯ ಬಗ್ಗೆ ನಿಮಗೆ ತಿಳಿದಿರಬಹುದು, ಅದರ ಹೆಸರು ಕೆಟಿಬಿ – ಭಾರತ್ ಹೈ ಹಮ್ ಮತ್ತು ಈಗ ಅದರ ಎರಡನೇ ಸೀಸನ್ ಕೂಡ ಬಂದಿದೆ. ಈ ಮೂರು ಅನಿಮೇಷನ್ ಪಾತ್ರಗಳು ಬೆಳಕಿಗೆ ಬಾರದ ಭಾರತೀಯ ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯ ಹೋರಾಟದ ನಾಯಕರು ಮತ್ತು ನಾಯಕಿಯರ ಬಗ್ಗೆ ನಮಗೆ ಹೇಳುತ್ತವೆ. ಇತ್ತೀಚಿಗೆ ಗೋವಾದ ಇಂಟರ್ನ್ಯಾಷನಲ್ ಫಿಲ್ಮ್ ಫೆಸ್ಟಿವಲ್ ಆಫ್ ಇಂಡಿಯಾದಲ್ಲಿ ವಿಶೇಷ ಶೈಲಿಯಲ್ಲಿ ಅದರ ಸೀಸನ್-2 ನ್ನು ಪ್ರಾರಂಭಿಸಲಾಯಿತು. ಈ ಸರಣಿಯು ಹಲವು ಭಾರತೀಯ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೆ ವಿದೇಶಿ ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿಯೂ ಪ್ರಸಾರವಾಗುತ್ತದೆ ಎಂಬುದು ಅತ್ಯಂತ ಅದ್ಭುತ ಸಂಗತಿ. ಇದನ್ನು ದೂರದರ್ಶನ ಮತ್ತು ಇತರ OTT ಪ್ಲಾಟ್‌ಫಾರ್ಮ್‌ಗಳಲ್ಲಿ ನೋಡಬಹುದು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಮ್ಮ ಅನಿಮೇಷನ್ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು, ಸಾಮಾನ್ಯ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು ಮತ್ತು ಟಿವಿ ಧಾರಾವಾಹಿಗಳ ಜನಪ್ರಿಯತೆಯು ಸೃಜನಶೀಲ ಉದ್ಯಮದಲ್ಲಿ ಭಾರತದ ಅದೆಷ್ಟು ಸಾಮರ್ಥ್ಯ ಹೊಂದಿದೆ ಎಂಬುದನ್ನು ತೋರಿಸುತ್ತದೆ. ಈ ಉದ್ಯಮವು ದೇಶದ ಪ್ರಗತಿಯಲ್ಲಿ ದೊಡ್ಡ ಕೊಡುಗೆಯನ್ನು ನೀಡುತ್ತಿದೆ ಅಲ್ಲದೆ ನಮ್ಮ ಆರ್ಥಿಕತೆಯನ್ನು ಮತ್ತಷ್ಟು ಎತ್ತರಕ್ಕೆ ಕೊಂಡೊಯ್ಯುತ್ತಿದೆ. ನಮ್ಮ ಚಲನಚಿತ್ರ ಮತ್ತು ಮನರಂಜನಾ ಉದ್ಯಮವು ತುಂಬಾ ದೊಡ್ಡದಾಗಿದೆ. ದೇಶದ ಹಲವು ಭಾಷೆಗಳಲ್ಲಿ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ತಯಾರಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ ಮತ್ತು creative content ಸಿದ್ಧಗೊಳಿಸಲಾಗುತ್ತದೆ. ನಾನು ನಮ್ಮ ಚಲನಚಿತ್ರ ಮತ್ತು ಮನರಂಜನಾ ಉದ್ಯಮವನ್ನು ಅಭಿನಂದಿಸುತ್ತೇನೆ ಏಕೆಂದರೆ ಅದು ‘ಏಕ್ ಭಾರತ್ – ಶ್ರೇಷ್ಠ ಭಾರತ’ ಎಂಬ ಭಾವನೆಗೆ ಪುಷ್ಟಿ ನೀಡುತ್ತದೆ.   

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, 2024ರಲ್ಲಿ ನಾವು ಚಿತ್ರರಂಗದ ಅನೇಕ ಮಹಾನ್ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳ 100 ನೇ ಜನ್ಮ ಜಯಂತಿಯನ್ನು ಆಚರಿಸುತ್ತಿದ್ದೇವೆ. ಈ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳು ಭಾರತೀಯ ಚಿತ್ರರಂಗಕ್ಕೆ ವಿಶ್ವ ಮಟ್ಟದಲ್ಲಿ ಮನ್ನಣೆ ತಂದು ಕೊಟ್ಟರು. ರಾಜ್ ಕಪೂರ್ ಅವರು ಭಾರತದ ಸಾಫ್ಟ್ ಪವರ್ ಅನ್ನು ಚಲನಚಿತ್ರಗಳ ಮೂಲಕ ಜಗತ್ತಿಗೆ ಪರಿಚಯಿಸಿದರು. ರಫಿ ಸಾಹಬ್ ಅವರ ಧ್ವನಿಯಲ್ಲಿ ಎಂಥ ಮಾಂತ್ರಿಕತೆ ಇತ್ತೆಂದರೆ, ಎಲ್ಲರ ಹೃದಯವನ್ನು ಮುಟ್ಟುತ್ತಿತ್ತು. ಅವರ ಧ್ವನಿ ಅದ್ಭುತವಾಗಿತ್ತು. ಭಕ್ತಿಗೀತೆಗಳಾಗಲಿ, ಪ್ರಣಯ ಗೀತೆಗಳಾಗಲಿ, ನೋವಿನ ಗೀತೆಗಳಾಗಲಿ, ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಭಾವಕ್ಕೆ ತಮ್ಮ ಕಂಠದಿಂದ ಅವರು ಜೀವ ತುಂಬುತ್ತಿದ್ದರು. ಇಂದಿಗೂ ಯುವ ಪೀಳಿಗೆ ಅವರ ಹಾಡುಗಳನ್ನು ಅಷ್ಟೇ ಪ್ರೀತಿಯಿಂದ ಕೇಳುತ್ತಾರೆ ಎಂದರೆ ಈ ಮೂಲಕ ಆ ಕಲಾವಿದನ ಹಿರಿಮೆಯನ್ನು ಅಳೆಯಬಹುದಾಗಿದೆ. ಇದೆ ಅಲ್ಲವೇ ಕಾಲಾತೀತವಾದ ಕಲೆಯಾ ಗುರುತು. ಅಕ್ಕಿನೇನಿ ನಾಗೇಶ್ವರ ರಾವ್ ಅವರು ತೆಲುಗು ಚಿತ್ರರಂಗವನ್ನು ಹೊಸ ಎತ್ತರಕ್ಕೆ ಕೊಂಡೊಯ್ದಿದ್ದಾರೆ. ಅವರ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು ಭಾರತೀಯ ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳು ಮತ್ತು ಮೌಲ್ಯಗಳನ್ನು ಚೆನ್ನಾಗಿ ಪ್ರಸ್ತುತಪಡಿವೆ. ತಪನ್ ಸಿನ್ಹಾ ಅವರ ಚಿತ್ರಗಳು ಸಮಾಜಕ್ಕೆ ಹೊಸ ದೃಷ್ಟಿಕೋನ ನೀಡಿದವು. ಅವರ ಚಲನಚಿತ್ರಗಳು ಸಾಮಾಜಿಕ ಪ್ರಜ್ಞೆ ಮತ್ತು ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಏಕತೆಯ ಸಂದೇಶವನ್ನು ಒಳಗೊಂಡಿದ್ದವು. ಈ ಸೆಲೆಬ್ರಿಟಿಗಳ ಜೀವನ ನಮ್ಮ ಇಡೀ ಚಿತ್ರರಂಗಕ್ಕೆ ಸ್ಪೂರ್ತಿದಾಯಕ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಾನು ನಿಮಗೆ ಇನ್ನೊಂದು ಸಂತಸದಾ  ಸುದ್ದಿಯನ್ನು ನೀಡಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಭಾರತದ ಸೃಜನಶೀಲ ಪ್ರತಿಭೆಯನ್ನು ವಿಶ್ವದೆದುರು ಪ್ರದರ್ಶಿಸಲು ಒಂದು ದೊಡ್ಡ ಅವಕಾಶ ಒದಗಿ ಬಂದಿದೆ. ಮುಂದಿನ ವರ್ಷ, ವಿಶ್ವ ಆಡಿಯೋ ವಿಷುಯಲ್ ಎಂಟರ್‌ಟೈನ್‌ಮೆಂಟ್ ಶೃಂಗಸಭೆ ಅಂದರೆ ವೇವ್ಸ್ ಶೃಂಗಸಭೆಯನ್ನು ನಮ್ಮ ದೇಶದಲ್ಲಿ ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ ಆಯೋಜಿಸಲಾಗುವುದು. ವಿಶ್ವದ ಆರ್ಥಿಕ ಕ್ಷೇತ್ರದ ದಿಗ್ಗಜರು ಒಗ್ಗೂಡುವ ದಾವೋಸ್ ಬಗ್ಗೆ ನೀವೆಲ್ಲರೂ ಕೇಳಿರಬಹುದು. ಅದೇ ರೀತಿ, ವೇವ್ಸ್ ಶೃಂಗಸಭೆಯಲ್ಲಿ, ವಿಶ್ವದ ಮಾಧ್ಯಮ ಮತ್ತು ಮನರಂಜನಾ ಉದ್ಯಮದ ದಿಗ್ಗಜರು ಮತ್ತು ಸೃಜನಶೀಲ ಪ್ರಪಂಚದ ಜನರು ಭಾರತಕ್ಕೆ ಬರುತ್ತಾರೆ. ಭಾರತವನ್ನು ಜಾಗತಿಕ content creation ಕೇಂದ್ರವನ್ನಾಗಿ ಮಾಡುವ ನಿಟ್ಟಿನಲ್ಲಿ ಈ ಶೃಂಗಸಭೆಯು ಪ್ರಮುಖ ಹೆಜ್ಜೆಯಾಗಿದೆ. ಈ ಶೃಂಗಸಭೆಯ ತಯಾರಿಯಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ದೇಶದ ಯುವ creator ಗಳು ಕೂಡಾ ಸಂಪೂರ್ಣ ಉತ್ಸಾಹದಿಂದ ಭಾಗವಹಿಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ ಎಂದು ಹೇಳಲು ನನಗೆ ಹೆಮ್ಮೆಯಾಗುತ್ತಿದೆ. ನಾವು 5 ಟ್ರಿಲಿಯನ್ ಡಾಲರ್ ಆರ್ಥಿಕತೆಯತ್ತ ಸಾಗುತ್ತಿರುವಾಗ, ನಮ್ಮ creator  economy ಹೊಸ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ತುಂಬುತ್ತಿದೆ. ನೀವು ಯುವ creators ಆಗಿರಬಹುದು ಅಥವಾ ಪ್ರಸಿದ್ಧ ಕಲಾವಿದರಾಗಿರಬಹುದು, ಬಾಲಿವುಡ್ ಅಥವಾ ಪ್ರಾದೇಶಿಕ ಸಿನಿಮಾ ಕ್ಷೇತ್ರದವರಾಗಿರಬಹುದು, ಟಿವಿ ಉದ್ಯಮದಲ್ಲಿ ವೃತ್ತಿಪರರು ಅಥವಾ ಅನಿಮೇಷನ್, ಗೇಮಿಂಗ್ ಅಥವಾ ಮನರಂಜನಾ ತಂತ್ರಜ್ಞಾನದಲ್ಲಿ ಪರಿಣಿತರಾಗಿರಬಹುದು , ನೀವೆಲ್ಲರೂ ವೇವ್ಸ್ ಶೃಂಗಸಭೆಯಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿ ಎಂದು ನಾನು ಭಾರತದ ಸಂಪೂರ್ಣ ಮನರಂಜನೆ ಮತ್ತು ಸೃಜನಶೀಲ ಉದ್ಯಮವನ್ನು ಆಗ್ರಹಿಸುತ್ತೇನೆ .

ನನ್ನ ಪ್ರಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳೇ, ಭಾರತೀಯ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯ ಪ್ರಕಾಶ ಇಂದು ಪ್ರಪಂಚದ ಮೂಲೆ ಮೂಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಹೇಗೆ ಹರಡುತ್ತಿದೆ ಎಂಬುದು ನಿಮಗೆಲ್ಲರಿಗೂ ತಿಳಿದಿದೆ. ನಮ್ಮ ಸಾಂಸ್ಕೃತಿಕ ಪರಂಪರೆಯ ಜಾಗತಿಕ ವಿಸ್ತರಣೆಗೆ ಸಾಕ್ಷಿಯಾಗಿರುವ ಮೂರು ಖಂಡಗಳಿಂದ ಅಂತಹ ಪ್ರಯತ್ನಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಇಂದು ನಾನು ನಿಮಗೆ ಹೇಳಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಇವೆಲ್ಲವೂ ಒಂದಕ್ಕೊಂದು ಮೈಲುಗಟ್ಟಲೆ ದೂರದಲ್ಲಿದ್ದರೂ ಭಾರತದ  ಬಗ್ಗೆ ತಿಳಿದುಕೊಳ್ಳುವ ಮತ್ತು ನಮ್ಮ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯಿಂದ ಕಲಿಯುವ ಅವರ ಬಯಕೆ ಒಂದೇ ರೀತಿಯದ್ದಾಗಿದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ವರ್ಣಚಿತ್ರಗಳ ಪ್ರಪಂಚ ಎಷ್ಟು ಬಣ್ಣಗಳಿಂದ ತುಂಬಿರುತ್ತದೆಯೋ ಅಷ್ಟೇ ಸುಂದರವಾಗಿರುತ್ತದೆ. ಟಿವಿ ಮೂಲಕ ‘ಮನದ ಮಾತು’ ವೀಕ್ಷಿಸುತ್ತಿರುವ ಸ್ನೇಹಿತರು ಈಗ ಟಿವಿಯಲ್ಲಿ ಕೆಲವು ವರ್ಣಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ವೀಕ್ಷಿಸಬಹುದು. ಈ ವರ್ಣಚಿತ್ರಗಳಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ದೇವ ದೇವತೆಗಳು, ನೃತ್ಯ ಕಲೆಗಳು ಮತ್ತು ಶ್ರೇಷ್ಠ ವ್ಯಕ್ತಿಗಳನ್ನು ನೋಡಿ ನಿಮಗೆ ತುಂಬಾ ಸಂತೋಷವಾಗಬಹುದು. ಇವುಗಳಲ್ಲಿ ನೀವು ಭಾರತದಲ್ಲಿ ಕಂಡುಬರುವ ಪ್ರಾಣಿ ಪಕ್ಷಿಗಳಲ್ಲದೆ ಇನ್ನು ಬಹಳಷ್ಟು ವಿಷಯಗಳನ್ನು ನೋಡಬಹುದು. ಇವುಗಳಲ್ಲಿ ತಾಜ್ ಮಹಲ್‌ನ ಭವ್ಯವಾದ ವರ್ಣಚಿತ್ರವೂ ಸೇರಿದೆ, ಇದನ್ನು 13 ವರ್ಷದ ಬಾಲಕಿ ರಚಿಸಿದ್ದಾಳೆ. ಈ ಅಂಗವಿಕಲ ಬಾಲಕಿ ತನ್ನ ಬಾಯಿಯಿಂದಲೇ ಈ ಪ್ಯಾಟಿಂಗ್ ಅನ್ನು ಸಿದ್ಧಪಡಿಸಿದ್ದಾಳೆ ಎಂದು ತಿಳಿದು ನಿಮಗೆ ಆಶ್ಚರ್ಯವಾಗಬಹುದು. ಅತ್ಯಂತ ಕುತೂಹಲಕಾರಿ ಸಂಗತಿಯೆಂದರೆ, ಈ ಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ನಿರ್ಮಿಸಿದವರು ಭಾರತದವರಲ್ಲ ಹೊರತು ಈಜಿಪ್ಟ್‌ನ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು. ಕೆಲವೇ ವಾರಗಳ ಹಿಂದೆ ಈಜಿಪ್ಟ್ ನ ಸುಮಾರು 23 ಸಾವಿರ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು ಚಿತ್ರಕಲಾ ಸ್ಪರ್ಧೆಯಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿದ್ದರು. ಅಲ್ಲಿ ಅವರು ಭಾರತದ ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಮತ್ತು ಉಭಯ ದೇಶಗಳ ಐತಿಹಾಸಿಕ ಸಂಬಂಧಗಳನ್ನು ಬಿಂಬಿಸುವ ಚಿತ್ರಗಳನ್ನು ಬರೆಯಬೇಕಿತ್ತು. ಈ ಸ್ಪರ್ಧೆಯಲ್ಲಿ ಭಾಗವಹಿಸಿದ ಎಲ್ಲಾ ಯುವಕರನ್ನು ನಾನು ಅಭಿನಂದಿಸುತ್ತೇನೆ. ಅವರ ಸೃಜನಶೀಲತೆ ಬಗ್ಗೆ  ಎಷ್ಟು ಹೊಗಳಿದರೂ ಸಾಲದು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಪರಾಗ್ವೆ, ದಕ್ಷಿಣ ಅಮೆರಿಕಾದಲ್ಲಿರುವ ಒಂದು ದೇಶ. ಅಲ್ಲಿ ವಾಸಿಸುವ ಭಾರತೀಯರ ಸಂಖ್ಯೆ ಸಾವಿರದಷ್ಟಿರಬಹುದು. ಪರಾಗ್ವೆಯಲ್ಲಿ ಒಂದು ಅದ್ಭುತ ಪ್ರಯತ್ನ ಮಾಡಲಾಗುತ್ತಿದೆ. ಎರಿಕಾ ಹ್ಯೂಬರ್, ಅಲ್ಲಿನ ಭಾರತೀಯ ರಾಯಭಾರ ಕಚೇರಿಯಲ್ಲಿ ಉಚಿತವಾಗಿ ಆಯುರ್ವೇದ ಸಮಾಲೋಚನೆ ಕೈಗೊಳ್ಳುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಆಯುರ್ವೇದ ಸಲಹೆ ಪಡೆಯಲು ಅವರ ಬಳಿ ಹೆಚ್ಚಿನ ಸಂಖ್ಯೆಯಲ್ಲಿ ಸ್ಥಳೀಯರು ಆಗಮಿಸುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಎರಿಕಾ ಹ್ಯೂಬರ್ ಎಂಜಿನಿಯರಿಂಗ್ ವ್ಯಾಸಂಗ ಮಾಡಿದ್ದರೂ, ಅವರಿಗೆ ಆಯುರ್ವೇದದತ್ತ ಹೆಚ್ಚು ಒಲವು. ಆಯುರ್ವೇದಕ್ಕೆ ಸಂಬಂಧಿಸಿದ ಕೋರ್ಸ್‌ಗಳನ್ನು ಮಾಡಿದ್ದ ಅವರು ಕಾಲಕ್ರಮೇಣ ಅದರಲ್ಲಿ ಪ್ರಾವೀಣ್ಯತೆ ಸಾಧಿಸಿದ್ದಾರೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಪ್ರಪಂಚದ ಅತ್ಯಂತ ಪುರಾತನ ಭಾಷೆ ತಮಿಳು ಮತ್ತು ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬ ಭಾರತೀಯನಿಗೂ ಇದು ಹೆಮ್ಮೆಯ ವಿಷಯವಾಗಿದೆ. ಪ್ರಪಂಚದಾದ್ಯಂತದ ದೇಶಗಳಲ್ಲಿ ಇದನ್ನು ಕಲಿಯುವವರ ಸಂಖ್ಯೆ ನಿರಂತರವಾಗಿ ಹೆಚ್ಚುತ್ತಿದೆ. ಕಳೆದ ತಿಂಗಳ ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ, ಫಿಜಿಯಲ್ಲಿ ಭಾರತ ಸರ್ಕಾರದ ಸಹಾಯದಿಂದ ತಮಿಳು ಬೋಧನಾ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮ ಪ್ರಾರಂಭವಾಯಿತು. ಕಳೆದ 80 ವರ್ಷಗಳಲ್ಲಿ ತಮಿಳು ಭಾಷೆಯಲ್ಲಿ ತರಬೇತಿ ಪಡೆದ ಶಿಕ್ಷಕರು ಫಿಜಿಯಲ್ಲಿ ಈ ಭಾಷೆಯನ್ನು ಕಲಿಸುತ್ತಿರುವುದು ಪ್ರಥಮ ಬಾರಿಯಾಗಿದೆ. ಇಂದು ಫಿಜಿಯನ್ ವಿದ್ಯಾರ್ಥಿಗಳು ತಮಿಳು ಭಾಷೆ ಮತ್ತು ಸಂಸ್ಕೃತಿಯನ್ನು ಕಲಿಯಲು ಉತ್ಸುಕರಾಗಿರುವುದ್ದನ್ನು ಅರಿತು ನನಗೆ ಸಂತೋಷವಾಯಿತು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಈ ವಿಷಯಗಳು, ಈ ಘಟನೆಗಳು ಕೇವಲ ಯಶಸ್ಸಿನ ಕಥೆಗಳು ಮಾತ್ರವಲ್ಲ, ನಮ್ಮ ಸಾಂಸ್ಕೃತಿಕ ಪರಂಪರೆಯ ಗಾಥೆಗಳೂ ಆಗಿವೆ . ಈ ಉದಾಹರಣೆಗಳು ನಾವು ಹೆಮ್ಮೆ ಪಡುವಂತೆ ಮಾಡುತ್ತವೆ. ಕಲೆಯಿಂದ ಆಯುರ್ವೇದದವರೆಗೆ ಮತ್ತು ಭಾಷೆಯಿಂದ ಸಂಗೀತದವರೆಗೆ, ಭಾರತದಲ್ಲಿಯಾ ಅದೆಷ್ಟೋ ವಿಷಯಗಳು ವಿಶ್ವಾದ್ಯಂತ ಪ್ರಭಾವ ಬೀರುತ್ತಿವೆ. ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಚಳಿಗಾಲದ ಈ ಋತುವಿನಲ್ಲಿ ದೇಶಾದ್ಯಂತ ಕ್ರೀಡೆ ಮತ್ತು ಸದೃಢತೆ ಕುರಿತಂತೆ ಅನೇಕ ಚಟುವಟಿಕೆಗಳು ನಡೆಯುತ್ತಿವೆ. ಜನರು ಫಿಟ್ನೆಸ್ ಅನ್ನು ತಮ್ಮ ದಿನಚರಿಯ ಭಾಗವನ್ನಾಗಿಸಿಕೊಂಡಿರುವುದು ನನಗೆ ಸಂತಸ ತಂದಿದೆ. ಕಾಶ್ಮೀರದಲ್ಲಿ ಸ್ಕೀಯಿಂಗ್ ನಿಂದ ಹಿಡಿದು ಗುಜರಾತ್ ನಲ್ಲಿ ಗಾಳಿಪಟ ಸ್ಪರ್ಧೆಯವರೆಗೂ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ವಿಧದ ಕ್ರೀಡೆಯಲ್ಲಿ ಉತ್ಸಾಹ ಕಂಡು ಬರುತ್ತಿದೆ. #SundayOnCycle ಮತ್ತು #CyclingTuesday ನಂತಹ ಅಭಿಯಾನಗಳಿಂದ ಸೈಕ್ಲಿಂಗ್ ಗೆ ಸಾಕಷ್ಟು ಪ್ರಚಾರ  ದೊರೆಯುತ್ತಿದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಾನು ಈಗ ನಿಮಗೆ ವಿಶೇಷವಾದ ವಿಷಯವೊಂದನ್ನು ಹೇಳಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಇದು ನಮ್ಮ ದೇಶದಲ್ಲಿ ಉಂಟಾಗುತ್ತಿರುವ ಬದಲಾವಣೆ ಮತ್ತು ಯುವಜನತೆಯ ಉತ್ಸಾಹದ ಸಂಕೇತವಾಗಿದೆ.  ನಮ್ಮ ಬಸ್ತರ್ ನಲ್ಲಿ ಒಂದು ವಿಶಿಷ್ಠ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ಆರಂಭವಾಗಿದೆ ಎಂಬುದು ನಿಮಗೆ ಗೊತ್ತೇ! ಹೌದು, ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ ಬಸ್ತರ್ ನಲ್ಲಿ ನಡೆದಿರುವ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ನಿಂದ ಅಲ್ಲಿ ಹೊಸ ಕ್ರಾಂತಿ ಉದಯವಾಗುತ್ತಿದೆ. ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ಸ್ ನ ಕನಸು ನನಸಾಗುತ್ತಿರುವುದು ನನಗಂತೂ ಬಹಳ ಸಂತಸದ ವಿಷಯವಾಗಿದೆ. ಒಂದು ಕಾಲದಲ್ಲಿ ಮಾವೋವಾದಿಗಳ ಹಿಂಸಾಚಾರಕ್ಕೆ ಸಾಕ್ಷಿಯಾಗಿದ್ದ ಈ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ ಈಗ ಒಲಿಂಪಿಕ್ಸ್ ನಡೆದಿರುವುದು ನಿಮಗೆ ಕೂಡಾ ಸಂತಸವೆನಿಸುತ್ತದೆ.  ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ಸ್ ನ ಅದೃಷ್ಟರೂಪಿ ಬೊಂಬೆ – ‘ಕಾಡೆಮ್ಮೆ’ ಮತ್ತು ‘ಗುಡ್ಡಗಾಡಿನ ಮೈನಾ ಆಗಿದೆ. ಇದರಲ್ಲಿ ಬಸ್ತರ್ ನ ಶ್ರೀಮಂತ ಸಂಸ್ಕೃತಿಯ ನೋಟ ಕಂಡುಬರುತ್ತದೆ. ಈ ಬಸ್ತರ್ ಕ್ರೀಡಾ ಮಹಾಕುಂಭದ ಘೋಷ ವಾಕ್ಯ ಇದಾಗಿದೆ–

ಕರಸಾಯ ತಾ ಬಸ್ತರ್ ಬರಸಾಯೇ ತಾ ಬಸ್ತರ್

ಅಂದರೆಆಡುತ್ತದೆ ಬಸ್ತರ್ – ಗೆಲ್ಲುತ್ತದೆ ಬಸ್ತರ್ |

ಮೊದಲ ಬಾರಿಗೆ ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ನಲ್ಲಿ 7 ಜಿಲ್ಲೆಗಳ ಒಂದು ಲಕ್ಷ 65 ಸಾವಿರ ಆಟಗಾರರು ಪಾಲ್ಗೊಂಡಿದ್ದಾರೆ. ಇದು ಕೇವಲ ಅಂಕಿ-ಅಂಶ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ – ಇದು ನಮ್ಮ ಯುವಜನತೆಯ ಸಂಕಲ್ಪದ – ಬದ್ಧತೆಯ ಕಥೆಯಾಗಿದೆ. ಅಥ್ಲೆಟಿಕ್ಸ್, ಬಿಲ್ಲುಗಾರಿಕೆ, ಬ್ಯಾಡ್ಮಿಂಟನ್, ಫುಟ್ಬಾಲ್, ಹಾಕಿ, ವೈಟ್ ಲಿಫ್ಟಿಂಗ್, ಕರಾಟೆ, ಕಬಡ್ಡಿ, ಖೋ-ಖೋ, ಮತ್ತು ವಾಲೀಬಾಲ್ – ಹೀಗೆ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಆಟದಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ಯುವಜನತೆ ತಮ್ಮ ಪ್ರತಿಭೆಯನ್ನು ಪ್ರದರ್ಶಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಕಾರಿ ಕಶ್ಯಪ್ ಅವರ ಕತೆಯು ನನ್ನಲ್ಲಿ ಬಹಳ ಸ್ಫೂರ್ತಿ ತುಂಬುತ್ತದೆ. ಒಂದು ಸಣ್ಣ ಗ್ರಾಮದಿಂದ ಬಂದಿರುವ ಕಾರೀ ಅವರು ಬಿಲ್ಲುಗಾರಿಕೆಯಲ್ಲಿ ಬೆಳ್ಳಿ ಪದಕ ವಿಜೇತರಾಗಿದ್ದಾರೆ. ಅವರು ಹೀಗೆ ಹೇಳುತ್ತಾರೆ – “ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ನಮಗೆ ಕೇವಲ ಆಟದ ಮೈದಾನ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೇ ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಮುಂದೆ ಸಾಗುವ ಅವಕಾಶವನ್ನೂ ನೀಡಿದೆ ಸುಕ್ಮಾ ದ ಪಾಯಲ್ ಕವಾಸೀ ಅವರ ಮಾತುಗಳು ಕೂಡಾ ಬಹಳ ಸ್ಫೂರ್ತಿದಾಯಕವಾಗಿದೆ. Javelin ಎಸೆತದಲ್ಲಿ ಚಿನ್ನದ ಪದಕ ವಿಜೇತೆ ಪಾಯಲ್ ಹೀಗೆನ್ನುತ್ತಾರೆ – “ಶಿಸ್ತು ಮತ್ತು ಕಠಿಣ ಪರಿಶ್ರಮದಿಂದ ಯಾವುದೇ ಗುರಿ ಸಾಧನೆ ಅಸಂಭವವಲ್ಲ” ಸುಕ್ಮಾದ ದೋರನ್ ಪಾಲ್ ನ ಪುನೆಮ್ ಸನ್ನಾ ಅವರ ಕತೆಯಂತೂ ನವಭಾರತದ ಪ್ರೇರಣಾದಾಯಕ ಕತೆಯಾಗಿದೆ. ಒಂದೊಮ್ಮೆ ನಕ್ಸಲರ ಪ್ರಭಾವಕ್ಕೆ ಒಳಗಾಗಿದ್ದ ಪುನೇಮ್ ಅವರು ಇಂದು ಗಾಲಿಕುರ್ಚಿಯಲ್ಲಿ ಓಡಿ ಪದಕ ಗೆಲ್ಲುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಅವರ ಧೈರ್ಯ ಮತ್ತು ಸಾಹಸ ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರಿಗೂ ಸ್ಫೂರ್ತಿದಾಯಕವಾಗಿದೆ. ಕೋಡ್ ಗಾಂವ್ ನ ಬಿಲ್ಲುಗಾರ್ತಿ ರಂಜು ಸೋರಿ ಅವರನ್ನು ಬಸ್ತರ್ ಯೂತ್ ಐಕಾನ್ ಎಂದು ಆಯ್ಕೆ ಮಾಡಲಾಯಿತು. ಬಸ್ತರ್ ಒಲಿಂಪಿಕ್ ದೂರ ದೂರದ ಪ್ರದೇಶಗಳ ಯುವಜನತೆಗೆ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ವೇದಿಕೆ ತಲುಪುವ ಅವಕಾಶವನ್ನು ನೀಡುತ್ತಿದೆ ಎನ್ನುವುದು ಅವರು ಭಾವಿಸುತ್ತಾರೆ.   

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಒಲಿಂಪಿಕ್ ಕೇವಲ ಒಂದು ಕ್ರೀಡಾ ಆಯೋಜನೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲ. ಇದು ಅಭಿವೃದ್ಧಿ ಮತ್ತು ಕ್ರೀಡೆಯ ಸಂಗಮದ ವೇದಿಕೆಯಾಗಿದೆ. ಇಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ಯುವಜನತೆ ತಮ್ಮ ಪ್ರತಿಭೆಯನ್ನು ಮೆರೆಯುತ್ತಿದ್ದಾರೆ ಮತ್ತು ಒಂದು ನವ ಭಾರತ ನಿರ್ಮಾಣ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದಾರೆ.

ನೀವಿರುವ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ ಇಂತಹ ಕ್ರೀಡಾಕೂಟಗಳಿಗೆ ಪ್ರೋತ್ಸಾಹಿಸಿ.

ಆಡುತ್ತದೆ ಭಾರತ – ಗೆಲ್ಲುತ್ತದೆ ಭಾರತದೊಂದಿಗೆ ನಿಮ್ಮ ಪ್ರದೇಶದ ಕ್ರೀಡಾ ಪ್ರತಿಭೆಗಳ ಗಾಥೆಗಳನ್ನು ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳಿ.

ಸ್ಥಳೀಯ ಕ್ರೀಡಾ ಪ್ರತಿಭೆಗಳಿಗೆ ಮುನ್ನಡೆಯುವ ಅವಕಾಶ ನೀಡಿ ಎಂದು ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರಲ್ಲಿ ಮನವಿ ಮಾಡುತ್ತೇನೆ.

ನೆನಪಿಡಿ, ಕ್ರೀಡೆಗಳಿಂದ ಕೇವಲ ದೈಹಿಕ ಬೆಳವಣಿಗೆ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೇ, ಇದು ಕ್ರೀಡಾಕಾರ ಮನೋಭಾವದೊಂದಿಗೆ ಸಮಾಜವನ್ನು ಜೋಡಿಸುವ ಒಂದು ಪ್ರಬಲ ಮಾಧ್ಯಮವೂ ಆಗಿದೆ. ಚೆನ್ನಾಗಿ ಆಟವಾಗಿ – ಚೆನ್ನಾಗಿ ಆಟವಾಡಿ.

ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳೇ, ಭಾರತದ ಎರಡು ದೊಡ್ಡ ಸಾಧನೆಗಳು ಇಂದು ವಿಶ್ವದ ಗಮನವನ್ನು ಸೆಳೆಯುತ್ತಿವೆ. ಇದನ್ನು  ಕೇಳಿದರೆ ನೀವು ಕೂಡಾ ಹೆಮ್ಮೆ ಪಡುತ್ತೀರಿ - ಈ ಎರಡೂ ಯಶಸ್ಸುಗಳು  ಸಾಧನೆಯಾಗಿರುವುದು ಆರೋಗ್ಯ ಕ್ಷೇತ್ರದಲ್ಲಿ.  ಮೊದಲ ಯಶಸ್ತು ದೊರೆತಿರುವುದು ಮಲೇರಿಯಾ ವಿರುದ್ಧದ ಹೋರಾಟದಲ್ಲಿ. ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗವು ನಾಲ್ಕು ಸಾವಿರ ವರ್ಷಗಳಿಂದ ಮಾನವಕುಲಕ್ಕೆ ಒಂದು ದೊಡ್ಡ ಸವಾಲಾಗಿದೆ. ಸ್ವಾತಂತ್ರ್ಯದ ಸಮಯದಲ್ಲಿ ಕೂಡಾ ಇದು ನಮ್ಮ ಆರೋಗ್ಯ ಸಂಬಂಧಿತ ಸವಾಲುಗಳ ಪೈಕಿ ಒಂದೆನಿಸಿತ್ತು. ಒಂದು ತಿಂಗಳ ಶಿಶುವಿನಿಂದ ಹಿಡಿದು ಐದು ವರ್ಷ ವಯಸ್ಸಿನ ಮಕ್ಕಳ ಪ್ರಾಣ ಹರಣ ಮಾಡುವ ಎಲ್ಲಾ ಸಾಂಕ್ರಾಮಿಕ ರೋಗಗಳ ಪೈಕಿ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗಕ್ಕೆ ಮೂರನೇ ಸ್ಥಾನ. ಇಂದು, ದೇಶವಾಸಿಗಳೆಲ್ಲಾ ಒಗ್ಗಟ್ಟಾಗಿ ಈ ಸವಾಲನ್ನು ಎದುರಿಸಿದ್ದಾರೆಂದು ನಾನು ಸಂತೋಷದಿಂದ ಹೇಳಬಲ್ಲೆ. ವಿಶ್ವ ಆರೋಗ್ಯ ಸಂಘಟನೆ -WHO ವರದಿ ಹೀಗೆನ್ನುತ್ತದೆ “ಭಾರತದಲ್ಲಿ 2015 ರಿಂದ 2023 ರ ಮಧ್ಯೆ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗ ಮತ್ತು ಅದರಿಂದ ಸಂಭವಿಸುವ ಸಾವುಗಳ ಸಂಖ್ಯೆಯಲ್ಲಿ ಶೇಕಡಾ 80 ರಷ್ಟು ಕಡಿಮೆಯಾಗಿದೆ” ಇದು ಒಂದು ಸಣ್ಣ ಸಾಧನೆಯಲ್ಲ. ಅತ್ಯಂತ ಸಂತಸದ ವಿಷಯವೆಂದರೆ, ಈ ಯಶಸ್ಸು ಜನರ ಭಾಗೀದಾರಿಯಿಂದ ದೊರೆತಿದೆ. ಭಾರತ ಮೂಲೆ ಮೂಲೆಯಿಂದ, ಪ್ರತಿ ಜಿಲ್ಲೆಯಿಂದ, ಪ್ರತಿಯೊಬ್ಬರೂ ಆ ಅಭಿಯಾನದ ಭಾಗವಾಗಿದ್ದಾರೆ. ಅಸ್ಸಾಂನಲ್ಲಿ ಜೋರ್ ಹಾಟ್ ನ ಚಹಾ ತೋಟಗಳಲ್ಲಿ ನಾಲ್ಕು ವರ್ಷಗಳ ಹಿಂದಿನವರೆಗೂ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗ ಜನರ ಚಿಂತೆಯ ಬಹು ದೊಡ್ಡ ಕಾರಣವಾಗಿತ್ತು. ಆದರೆ ಅದನ್ನು ನಿರ್ಮೂಲಸಲು ಚಹಾ ತೋಟದಲ್ಲಿ ವಾಸಿಸುವ ಜನರು ಒಗ್ಗಟ್ಟಿನಿಂದ ಮುಂದೆ ಬಂದಾಗ, ಇದರಲ್ಲಿ ಸಾಕಷ್ಟು ಯಶಸ್ಸು ದೊರೆಯಲಾರಂಭಿಸಿತು. ಅವರು ತಮ್ಮ ಈ ಪ್ರಯತ್ನದಲ್ಲಿ ತಂತ್ರಜ್ಞಾನದ ಜೊತೆಗೆ ಸಾಮಾಜಿಕ ಮಾಧ್ಯಮವನ್ನು ಬಹಳಷ್ಟು ಉಪಯೋಗಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಇದೇ ರೀತಿ ಹರಿಯಾಣಾದ ಕುರುಕ್ಷೇತ್ರ ಜಿಲ್ಲೆಯು ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗದ ನಿಯಂತ್ರಣಕ್ಕಾಗಿ ಉತ್ತಮ ಮಾದರಿಯನ್ನು ಪ್ರಸ್ತುತಪಡಿಸಿದೆ. ಇಲ್ಲಿ ಮಲೇರಿಯಾ ರೋಗದ ಮೇಲೆ ನಿಗಾ ಇರಿಸುವುದಕ್ಕೆ ಜನರ ಸಹಭಾಗಿತ್ವ ಸಾಕಷ್ಟು ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಿದೆ. ಬೀದಿ ನಾಟಕಗಳು ಮತ್ತು ರೇಡಿಯೋ ಮೂಲಕ ಇಂತಹ ಸಂದೇಶಗಳಿಗೆ ಒತ್ತು ನೀಡಲಾಯಿತು. ಸೊಳ್ಳೆಗಳ ಸಂತಾನೋತ್ಪತ್ತಿ ಕಡಿಮೆ ಮಾಡುವಲ್ಲಿ ಇವು ಸಾಕಷ್ಟು ಸಹಾಯಕವಾಯಿತು. ದೇಶಾದ್ಯಂತ ಇಂತಹ ಪ್ರಯತ್ನಗಳಿಂದಲೇ ನಾವು ಮಲೇರಿಯಾ ವಿರುದ್ಧದ ಹೋರಾಟವನ್ನು ಮತ್ತಷ್ಟು ವೇಗವಾಗಿ ಮುನ್ನಡೆಸಲು ಸಾಧ್ಯವಾಯಿತು.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ನಾವು ನಮ್ಮ ತಿಳುವಳಿಕೆ ಮತ್ತು ಸಂಕಲ್ಪ ಶಕ್ತಿಯಿಂದ ಏನು ಬೇಕಾದರೂ ಸಾಧಿಸಬಹುದು ಎನ್ನುವುದಕ್ಕೆ ಮತ್ತೊಂದು ಉದಾಹರಣೆ ಎಂದರೆ ಅದು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ವಿರುದ್ಧದ ಹೋರಾಟ. ವಿಶ್ವದ ಪ್ರಸಿದ್ಧ ಮೆಡಿಕಲ್ ಜರ್ನಲ್ ಲ್ಯಾನ್ಸೆಟ್ ನ ಅಧ್ಯಯನ ನಿಜಕ್ಕೂ ಬಹಳ ಭರವಸೆದಾಯಕವಾಗಿದೆ. ಈ ಪತ್ರಿಕೆಯ ಅನುಸಾರ ಈಗ ಭಾರತದಲ್ಲಿ ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಕ್ಕೆ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಆರಂಭಿಸುವ ಸಾಧ್ಯತೆ ಬಹಳಷ್ಟು ಹೆಚ್ಚಾಗಿದೆ.  ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಎಂದರೆ– ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಿಯ ಚಿಕಿತ್ಸೆ 30 ದಿನಗಳೊಳಗಾಗಿ ಆರಂಭವಾಗುವುದು ಎಂದರ್ಥ ಹಾಗೂ ಇದರಲ್ಲಿ ‘ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಭಾರತ್ ಯೋಜನೆ‘ ಬಹು ದೊಡ್ಡ ಪಾತ್ರ ನಿರ್ವಹಿಸಿದೆ. ಈ ಯೋಜನೆಯಿಂದಾಗಿ ಶೇಕಡಾ 90 ರಷ್ಟು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಿಗಳು ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ತಮ್ಮ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಆರಂಭಿಸಲು ಸಾಧ್ಯವಾಗುತ್ತಿದೆ. ಹೀಗಾಗಿ ಈ ಮೊದಲು ಹಣದ ಕೊರತೆಯಿಂದಾಗಿ ಬಡ ರೋಗಿಗಳು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಕ್ಕಾಗಿ ತಪಾಸಣೆ ಮತ್ತು ಅದರ ಚಿಕಿತ್ಸೆಗೆ ಹಿಂಜರಿಯುತ್ತಿದ್ದರು. ಈಗ ‘ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಭಾರತ್ ಯೋಜನೆ’ ಅವರಿಗೆ ಬಹು ದೊಡ್ಡ ಆಸರೆಯಾಗಿದೆ. ಈಗ ಅವರು ತಮ್ಮ ರೋಗಕ್ಕೆ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಪಡೆಯಲು ಮುಂದಾಗುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಭಾರತ್ ಯೋಜನೆಯು ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗದ ಚಿಕಿತ್ಸೆಗೆ ಉಂಟಾಗುವ ಖರ್ಚಿನ ಆತಂಕವನ್ನು ಸಾಕಷ್ಟು ಕಡಿಮೆ ಮಾಡಿದೆ. ಇಂದು ಸಕಾಲದಲ್ಲಿ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗಕ್ಕೆ ಚಿಕಿತ್ಸೆ ಪಡೆದುಕೊಳ್ಳುವ ಕುರಿತು ಜನರು ಹಿಂದೆಂದಿಗಿಂತಲೂ ಹೆಚ್ಚು ಜಾಗರೂಕರಾಗಿದ್ದಾರೆ ಎನ್ನುವುದು ಉತ್ತಮ ವಿಚಾರವಾಗಿದೆ. ಈ ಸಾಧನೆಯು ನಮ್ಮ ಆರೋಗ್ಯರಕ್ಷಣೆ ವ್ಯವಸ್ಥೆಯಷ್ಟೇ, ನಮ್ಮ ವೈದ್ಯರು, ದಾದಿಯರು ಮತ್ತು ತಾಂತ್ರಿಕ ಸಿಬ್ಬಂದಿಯದ್ದೂ ಆಗಿದೆ, ಅಷ್ಟೇ ಅಲ್ಲ ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರದ್ದೂ, ನನ್ನ ನಾಗರಿಕ ಸೋದರ ಸೋದರಿಯರದ್ದೂ ಆಗಿದೆ. ಎಲ್ಲರ ಪ್ರಯತ್ನದಿಂದ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ರೋಗವನ್ನು ಹಿಮ್ಮೆಟ್ಟಿಸುವ ಸಂಕಲ್ಪ ಮತ್ತಷ್ಟು ಬಲವಾಗಿದೆ. ಅರಿವು ಮೂಡಿಸಲು ಪ್ರಮುಖ ಕೊಡುಗೆ ನೀಡಿದ ಎಲ್ಲರಿಗೂ ಆ ಯಶಸ್ಸಿನ ಶ್ರೇಯ ಸಲ್ಲುತ್ತದೆ.

ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ವಿರುದ್ಧ ಹೋರಾಡಲು ಒಂದೇ ಒಂದು ಮಂತ್ರವಿದೆ – ಅದೆಂದರೆ ಅರಿವು, ಕ್ರಮ ಮತ್ತು ಭರವಸೆ – ಅವೇರ್ನೆಸ್, ಆಕ್ಷನ್ ಮತ್ತು ಅಶ್ಯೂರೆನ್ಸ್. ಅವೇರ್ನೆಸ್ ಎಂದರೆ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ಮತ್ತು ಅದರ ಲಕ್ಷಣಗಳ ಕುರಿತ ಅರಿವು, ಆಕ್ಷನ್ ಎಂದರೆ ಸಮಯಕ್ಕೆ ಸರಿಯಾಗಿ ತಪಾಸಣೆ ಮತ್ತು ಚಿಕಿತ್ಸೆ, ಅಶ್ಯೂರೆನ್ಸ್ ಎಂದರೆ ರೋಗಿಗೆ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಸಹಾಯವೂ ಲಭ್ಯವಿದೆ ಎನ್ನುವ ಭರವಸೆ. ಬನ್ನಿ, ನಾವೆಲ್ಲರೂ ಒಗ್ಗಟ್ಟಾಗಿ ಕ್ಯಾನ್ಸರ್ ವಿರುದ್ಧದ ಈ ಹೋರಾಟವನ್ನು ವೇಗದಿಂದ ಮುನ್ನಡೋಸೋಣ ಮತ್ತು ಹೆಚ್ಚು ಹೆಚ್ಚು ರೋಗಿಗಳಿಗೆ ಸಹಾಯ ಮಾಡೋಣ.

ನನ್ನ ಪ್ರೀತಿಯ ದೇಶವಾಸಿಗಳೇ, ನಾನು ಇಂದು ನಿಮಗೆ ಒಡಿಶಾದ ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯಲ್ಲಿ ಅತ್ಯಂತ ಕಡಿಮೆ ನೀರು ಮತ್ತು ಕಡಿಮೆ ಸಂಪನ್ಮೂಲಗಳಿದ್ದರೂ ಕೂಡಾ ಅವಿರತ ಪ್ರಯತ್ನದಿಂದ ಸಾಧಿಸಿರುವ ಯಶಸ್ಸಿನ ಕತೆಯೊಂದನ್ನು ನಿಮಗೆ ಹೇಳಲು ಬಯಸುತ್ತೇನೆ. ಇದು ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ತರಕಾರಿ ಕ್ರಾಂತಿ. ಒಂದು ಕಾಲದಲ್ಲಿ ರೈತರು ಜಾಗ ತೊರೆದು ಬೇರೆಡೆಗೆ ಹೋಗಬೇಕಾಗಿತ್ತೋ ಅದೇ ಜಾಗ ಇಂದು, ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ಗೋಲಾ ಮುಂಡಾ ಬ್ಲಾಕ್ ನ ಒಂದು ತರಕಾರಿ ಹಬ್ ಆಗಿ ಪರಿವರ್ತನೆಯಾಗಿದೆ. ಈ ಪರಿವರ್ತನೆಯಾದದ್ದು ಹೇಗೆ? ಇದು ಕೇವಲ 10 ಮಂದಿ ರೈತರ ಒಂದು ಸಣ್ಣ ಗುಂಪಿನಿಂದ ಆರಂಭವಾಯಿತು. ಈ ಗುಂಪು ಒಂದುಗೂಡಿ ಒಂದು FPO - ‘ರೈತ ಉತ್ಪನ್ನ ಸಂಘ’ ಸ್ಥಾಪಿಸಿತು, ಕೃಷಿಯಲ್ಲಿ ಆಧುನಿಕ ತಂತ್ರಜ್ಞಾನದ ಬಳಕೆ ಶುರು ಮಾಡಿತು, ಮತ್ತು ಇಂದು ಅವರ ಈ FPO ಕೋಟಿಗಟ್ಟಲೆ ವಹಿವಾಟು ನಡೆಸುತ್ತಿದೆ. ಇಂದು 200 ಕ್ಕೂ ಅಧಿಕ ರೈತರು FPO ನೊಂದಿಗೆ ಜೋಡಣೆಯಾಗಿದ್ದಾರೆ, ಇದರಲ್ಲಿ 45 ಮಂದಿ ಮಹಿಳಾ ರೈತರೂ ಇದ್ದಾರೆ. ಇವರೆಲ್ಲರೂ ಸೇರಿ 200 ಎಕರೆ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ ಟೊಮ್ಯಾಟೋ ಕೃಷಿ ಮಾಡುತ್ತಿದ್ದಾರೆ, 150 ಎಕರೆ ಜಾಗದಲ್ಲಿ ಹಾಗಲಕಾಯಿ ಬೆಳೆಯುತ್ತಿದ್ದಾರೆ. ಈಗ ಈ FPO ದ ವಾರ್ಷಿಕ ವಹಿವಾಟು ಕೂಡಾ ಅಧಿಕವಾಗಿ, ಒಂದೂವರೆ ಕೋಟಿಗೆ ತಲುಪಿದೆ. ಇಂದು ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ತರಕಾರಿಗಳು ಕೇವಲ ಒಡಿಶಾದ ಬೇರೆ ಬೇರೆ ಜಿಲ್ಲೆಗಳಲ್ಲಿ ಮಾತ್ರವಲ್ಲದೇ, ಬೇರೆ ರಾಜ್ಯಗಳಿಗೂ ತಲುಪುತ್ತಿವೆ, ಮತ್ತು ಅಲ್ಲಿನ ರೈತ ಈಗ ಆಲೂಗಡ್ಡೆ ಮತ್ತು ಈರುಳ್ಳಿಯ ಕೃಷಿಯ ಹೊಸ ತಂತ್ರಗಳನ್ನು ಕೂಡಾ ಕಲಿಯುತ್ತಿದ್ದಾನೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಸಂಕಲ್ಪ ಶಕ್ತಿ ಮತ್ತು ಸಾಮೂಹಿಕ ಪ್ರಯತ್ನದಿಂದ ಏನೆಲ್ಲಾ ಸಾಧಿಸಬಹುದು ಎಂಬುದನ್ನು ಕಾಲಾಹಾಂಡಿಯ ಈ ಯಶಸ್ಸು ನಮಗೆ ಕಲಿಸುತ್ತದೆ. ನಾನು ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರಲ್ಲಿ ಮನವಿ ಮಾಡುವುದೇನೆಂದರೆ :-

  • ನೀವಿರುವ ಪ್ರದೇಶದಲ್ಲಿ FPO ಅನ್ನು ಪ್ರೋತ್ಸಾಹಿಸಿ.
  • ರೈತ ಉತ್ಪನ್ನ ಸಂಘಗಳೊಂದಿಗೆ ಸೇರಿಕೊಳ್ಳಿ ಮತ್ತು ಅವುಗಳನ್ನು ಬಲಪಡಿಸಿ. 

ನೆನಪಿಡಿ – ಸಣ್ಣ ಆರಂಭದಿಂದಲೇ ಭಾರೀ ಪರಿವರ್ತನೆಗಳು ಸಾಧ್ಯವಾಗುತ್ತವೆ. ಅದಕ್ಕಾಗಿ ನಮಗೆ ದೃಢ ಸಂಕಲ್ಪ ಮತ್ತು ಒಗ್ಗಟ್ಟಿನ ಭಾವನೆಯ ಅಗತ್ಯವಿರುತ್ತದೆ.

ಸ್ನೇಹಿತರೇ, ಇಂದು ‘ಮನದ ಮಾತಿನಲ್ಲಿ’ ನಮ್ಮ ಭಾರತ ವಿವಿಧತೆಯಲ್ಲಿ ಏಕತೆ ಎಂಬ ಭಾವನೆಯಿಂದ ಯಾವರೀತಿ ಮುಂದೆ ಸಾಗುತ್ತಿದೆ ಎಂಬುದನ್ನು ಆಲಿಸಿದೆವು. ಅದು ಆಟದ ಮೈದಾನವಿರಲಿ, ಅಥವಾ ವಿಜ್ಞಾನ ಕ್ಷೇತ್ರವೇ ಆಗಲಿ, ಆರೋಗ್ಯ ಅಥವಾ ಶಿಕ್ಷಣ ಕ್ಷೇತ್ರವೇ ಆಗಲಿ, ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಕ್ಷೇತ್ರದಲ್ಲಿ ಭಾರತ ಉನ್ನತ ಶಿಖರಗಳನ್ನು ತಲುಪುತ್ತಿದೆ. ನಾವು ಒಂದು ಕುಟುಂಬದಂತೆ ಒಂದುಗೂಡಿ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಸವಾಲನ್ನೂ ಎದುರಿಸಿದ್ದೇವೆ ಮತ್ತು ಹೊಸ ಸಾಧನೆಗಳನ್ನು ನಮ್ಮದಾಗಿಸಿಕೊಂಡಿದ್ದೇವೆ. 2014 ರಲ್ಲಿ ಆರಂಭವಾದ ‘ಮನದ ಮಾತಿನ’ 116 ಸಂಚಿಕೆಗಳಲ್ಲಿ ‘ಮನದ ಮಾತು’ ದೇಶದ ಸಾಮೂಹಿಕ ಶಕ್ತಿಯು ಜೀವಂತ ದಾಖಲೆಯಾಗಿರುವುದನ್ನು ನಾನು ನೋಡಿದ್ದೇನೆ.  ತಾವೆಲ್ಲರೂ ಈ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮವನ್ನು ತಮ್ಮದಾಗಿಸಿಕೊಂಡಿರುವಿರಿ. ಪ್ರತಿ ತಿಂಗಳೂ ನಿಮ್ಮ ನಿಮ್ಮ ಚಿಂತನೆಗಳು ಮತ್ತು ಪ್ರಯತ್ನಗಳನ್ನು ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಿದ್ದೀರಿ. ಕೆಲವೊಮ್ಮೆ ಯುವ ಆವಿಷ್ಕಾರಕನ ಚಿಂತನೆಯಿಂದ ಪ್ರಭಾವಿತನಾದರೆ, ಮತ್ತೊಮ್ಮೆ ಹೆಣ್ಣು ಮಗಳೊಬ್ಬಳ ಸಾಧನೆ ನನಗೆ ಹೆಮ್ಮೆ ತಂದಿದೆ. ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರ ಸಹಭಾಗಿತ್ವವೇ ದೇಶದ ಮೂಲೆ ಮೂಲೆಯಿಂದ ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ಒಟ್ಟುಗೂಡಿಸುತ್ತದೆ. 'ಮನದ ಮಾತು' ಈ ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಶಕ್ತಿ ವರ್ಧನೆಯ ವೇದಿಕೆಯಾಗಿ ಮಾರ್ಪಟ್ಟಿದೆ ಮತ್ತು ಈಗ, 2025 ಬಾಗಿಲು ತಟ್ಟುತ್ತಿದೆ. ಮುಂಬರುವ ವರ್ಷದಲ್ಲಿ ‘ಮನದ ಮಾತಿನ’ ಮೂಲಕ ನಾವೆಲ್ಲರೂ ಮತ್ತಷ್ಟು ಪ್ರೇರಣಾದಾಯಕ ಪ್ರಯತ್ನಗಳನ್ನು ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳೋಣ. ದೇಶವಾಸಿಗಳ ಸಕಾರಾತ್ಮಕ ಚಿಂತನೆ ಮತ್ತು ಆವಿಷ್ಕಾರದ ಭಾವನೆಯಿಂದ ಭಾರತ ಹೊಸ ಶಿಖರಗಳನ್ನು ತಲುಪುತ್ತದೆ ಎಂಬ ವಿಶ್ವಾಸ ನನಗಿದೆ. ನೀವೆಲ್ಲರೂ ನಿಮ್ಮ ಸುತ್ತಮುತ್ತಲಿನ ವಿಶಿಷ್ಠ ಪ್ರಯತ್ನಗಳ ಬಗ್ಗೆ #Mannkibaat  ನಲ್ಲಿ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳುತ್ತಿರಿ. ಮುಂದಿನ ವರ್ಷದ ಪ್ರತಿಯೊಂದು ಮನದ ಮಾತಿನಲ್ಲಿ ನಮ್ಮಲ್ಲಿ ಪರಸ್ಪರ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳಲು ಬಹಳಷ್ಟು ವಿಷಯಗಳಿರುತ್ತವೆ ಎಂದು ನನಗೆ ಗೊತ್ತು. ನಿಮ್ಮೆಲ್ಲರಿಗೂ 2025 ನೂತನ ವರ್ಷಕ್ಕಾಗಿ ಅನೇಕಾನೇಕ ಶುಭಾಕಾಂಕ್ಷೆಗಳು. ಆರೋಗ್ಯದಿಂದಿರಿ, ಸಂತೋಷದಿಂದಿರಿ. Fit India Movement ನೊಂದಿಗೆ ನೀವೆಲ್ಲರೂ ಸೇರಿಕೊಳ್ಳಿ, ನೀವೆಲ್ಲರೂ ಸದೃಢರಾಗಿರಿ. ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಅಭಿವೃದ್ಧಿ ಹೊಂದುತ್ತಿರಿ. ಅನೇಕಾನೇಕ ಧನ್ಯವಾದ.