नवभारत टाइम्स के साथ श्री नरेन्द्र मोदी के इंटरव्यू के प्रमुख अंश:
करीब दो महीने तक चले मैराथन इलेक्शन कैंपेन में जमकर हुआ नमो-नमो का जाप। जाहिर है, बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी को एनडीए जहां हीरो के रूप में पेश कर रहा था, वहीं यूपीए और अन्य दल उन्हें विलेन साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे थे। लेकिन भारतीय लोकतंत्र में पहली बार ऐसा चुनाव देखने को मिला, जो सत्तापक्ष की मुखालफत के बजाय विपक्ष के एक 'कद्दावर' पीएम कैंडिडेट को केंद्र में रखकर लड़ा गया। ऐसे में मोदी का आभामंडल पूरे चुनावी अभियान के दौरान 'विराट' होता चला गया। मौजूदा चुनावी माहौल में जो कटुता देखने को मिली, उस बारे में मोदी का क्या नजरिया है? यदि मोदी पीएम बनते हैं, तो उनका विकास का रोड मैप क्या होगा? मोदी से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में गुलशन राय खत्री और नरेंद्र नाथ ने ऐसे ही कई अहम सवाल पूछे, पेश है खास अंशः
1-एनबीटीः चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों में कड़वाहट बढ़ी है। क्या इससे बचा जा सकता था? क्या आने वाले दिनों में इसका असर सरकार और विपक्ष के संबंधों पर भी देखने को मिल सकता है?
नरेंद्र मोदीः यह बात सही है कि जैसे-जैसे चुनावी प्रचार परवान चढ़ता गया, भाषणों और वक्तव्यों में हमारे विरोधियों ने सारी मर्यादाएं तोड़ दी हैं, खासकर शुरुआती राउंड में भारी पोलिंग के बाद सहमे कांग्रेस और उसके साथी दलों ने गाली-गलौज करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। शुरुआत में हमने यह तय किया था कि इस पूरे चुनाव को विकास और सुशासन जैसे सकारात्मक मुद्दों पर लड़ेंगे। यदि अन्य राजनीतिक दल भी इस पहल में हमारा साथ देते तो शायद भारतीय चुनावी राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ जाता। लेकिन अफसोस, हमारे विरोधी दलों ने चुनाव को उसी पुरानी जाति और संप्रदाय की राजनीति की तरफ धकेलने में ही अपना सारा जोर लगा दिया। इसके बावजूद यह पहला चुनाव है जिसमें बीजेपी जैसी कोई बड़ी पार्टी विकास और सुशासन के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। पिछले छह महीने से मेरा यह ईमानदार और गंभीर प्रयास रहा है कि हम नागरिकों के असली मुद्दों को उठाएं।
मीडिया का यह कहना कि चुनाव के दौरान पैदा हुई कटुता का प्रभाव चुनाव के बाद भी देखने को मिलेगा, एक अतिशयोक्तिपूर्ण सोच है। दरअसल, जमीनी हकीकत ऐसी नहीं है। अक्सर आपने देखा होगा कि चुनावी समर में एक-दूसरे पर तीखे वार करने वाले नेता जब अनायास किसी हवाई अड्डे पर मिलते हैं, तब उनके बीच बड़े ही सहज ढंग से बातचीत होती है। ऐसा नहीं है कि चुनावी जंग की तल्खियां राजनेताओं के आपसी रिश्ते पर हावी हो जाती है। गर्मजोशी के साथ मिलने के बाद जब वे फिर रैलियों में पहुंचते हैं तो आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। यह समझना होगा कि राजनीति में प्रतिस्पर्धा तो होती है, लेकिन दुश्मनी कतई नहीं। एक अहम बात और कहना चाहूंगा। इधर, पिछले कुछ समय से सार्वजनिक जीवन में व्यंग्य और विनोद का चलन खत्म-सा होता जा रहा है। सार्वजनिक जीवन में गंभीरता के साथ-साथ व्यंग्य और विनोद का होना भी जरूरी है, आपसी रिश्तों में उदासीनता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
मालूम हो कि व्यंग्य, कार्टून तथा लतीफों की दुनिया में भी हम राजनेताओं की मौजूदगी व्यापक स्तर पर होती है। इन दिनों 'मॉरल पुलिसिंग' का दौर भी चल रहा है। एक हद तक तो यह सही है, लेकिन इसका अतिरेक निश्चित ही गैरजरूरी प्रतीत होता है। जहां तक आने वाले दिनों में इसके असर की बात है तो हम न तो बदले की भावना से कोई काम करेंगे और न ही चुनावी प्रतिद्वंद्विता को चुनाव पश्चात आगे ले जाएंगे। हम पूरी शालीनता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे और हमारे विरोधियों के साथ भी आपसी सहयोग से देश के विकास के लिए कार्यरत रहेंगे।
2-एनबीटीः अगर आप सत्ता में आते हैं तो यह देश आपसे क्या उम्मीद करे? आप विपक्ष को किस तरह से साथ लेकर चलेंगे और विपक्ष को साथ लेकर चलने के लिए क्या कदम उठाएंगे?
नरेंद्र मोदीः हम इतना सुनिश्चित करेंगे कि लोगों की जो आशाएं और अपेक्षाएं हमसे जगी हैं, उन्हें पूरा करने के लिए पुरजोर मेहनत करेंगे। हमारा यह प्रयास होगा कि देश का विकास करने और सुशासन प्रदान करने के लिए हम दिन-रात कार्यरत रहेंगे। देश की प्रगति और लोकतंत्र की मजबूती के लिए जागरुक विपक्ष का होना आवश्यक है। मुद्दों के आधार पर विरोध की गुंजाइश को समझा जा सकता है। इसके लिए हम खुले मन से चर्चा को तैयार रहेंगे। देश हित में आम राय बनाकर चलना हमारी कार्यशैली का हिस्सा होगा।
3-एनबीटीः इस देश में 90 के दशक में उदारवादी आर्थिक नीतियां शुरू हुई थीं। क्या ये आगे भी जारी रहेंगी या फिर वक्त के साथ इनमें कुछ बदलाव करने की जरूरत है?
नरेंद्र मोदीः कोई भी देश या समाज यदि एक ही जगह स्थिर रह जाए तो वह विकास नहीं कर सकता। समयानुरूप बदलाव की आवश्यकता हर देश में होती है। अर्थव्यवस्था में भी निरंतर गति बनाए रखने के लिए सुधार जरूरी है। हम हर उस कदम को उठाएंगे, जिससे अर्थव्यवस्था सुधरे, विकास की गति बढ़े और रोजगार के अवसर पैदा हों।
4-एनबीटीः जीएसटी और मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई पर आपकी क्या राय है? क्या यह होना चाहिए या नहीं?
नरेंद्र मोदीः जीएसटी राजस्व में बढ़ोतरी का सरल और बेहतर उपाय है। राज्यों को मिलने वाली सहायता राशि में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने की वजह से जीएसटी स्थगित हो गया है। लेकिन हमारी सरकार जीएसटी की सभी बाधाओं और उसमें होने वाले करप्शन और अनुचित देरी की संभावनाओं को दूर करने के लिए सकारात्मक भूमिका अदा करेगी। जीएसटी के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आईटी नेटवर्क का देशव्यापी ढांचा खड़ा करना जरूरी है, मगर यूपीए सरकार ने इस दिशा में एक कदम भी नहीं बढ़ाया। तमाम अहम मामलों में देरी या कहें कि 'पॉलिसी पैरालिसिस' की स्थिति के लिए राज्य सरकारों को बदनाम करने की यूपीए सरकार की बीमार मानसिकता रही है। मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई का जहां तक सवाल है, हमारी पार्टी का आधिकारिक रुख हमारे मेनिफेस्टो में साफ कर दिया गया है।
5-एनबीटीः आप अक्सर देश में बुलेट ट्रेनें चलाने और सौ नए शहर बसाने की वकालत करते रहे हैं। इससे देश का आर्थिक विकास तो तेज होगा, लेकिन इसके लिए भारी-भरकम राशि का इंतजाम कहां से होगा? मुंबई-अहमदाबाद के बीच ही एक बुलेट ट्रेन चलाने के लिए करीब 60 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है तो क्या इस तरह की बुलेट ट्रेनें देश भर में चलाने पर वे आर्थिक लिहाज से कामयाब होंगी?
नरेंद्र मोदीः हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि अब तक जिस प्रकार की सरकारें यहां चलाई गईं, उसमें मानों गरीबी एक अभिशाप नहीं वरन एक वरदान हो, एक आवश्यकता हो। भले वह चाहे वोट बैंक की राजनीति के लिए हो या सत्तारूढ़ राजनेताओं में दीर्घदृष्टि के अभाव चलते हो। नतीजा यह, कि हम न कुछ बड़ा सोच पाते हैं, न कुछ विश्वस्तरीय करने का प्रयास करते हैं। दूसरी तरफ, आजादी के समय भारत जैसी ही हालात वाले साउथ कोरिया जैसे छोटे देश एक व्यापक सोच के कारण विकास की बुलंदियों को छू रहे हैं। अटल जी की सरकार में स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी योजनाओं को लागू करने की एक अहम शुरुआत हुई। वह एक प्रयास था कि भारतीय नागरिकों को भी वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध करवाया जाए। दुर्भाग्यवश पिछले दस साल में हम उस दिशा में आगे बढ़ने के बजाय बहुत पीछे धकेल दिए गए हैं। मेरा मानना है कि यदि हमारा विजन बड़ा हो, उसके अनुरूप पुरुषार्थ करने की क्षमता और तैयारी हो तो हमारा देश भी प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है। हम भी अपने नागरिकों को क्रमशः हर क्षेत्र में वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया करा सकते हैं। रही पैसों की बात मुझे नहीं लगता कि मौजूदा समय में ऐसी योजनाओं के लिए पैसे जुटाना मुश्किल है।
6-एनबीटीः पाक समेत पड़ोसी देशों के साथ इस वक्त भारत के रिश्तों की आपको जानकारी है? क्या इन रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए आपके दिमाग में कोई योजना है? यदि हां, तो वह क्या है?
नरेंद्र मोदीः आज जब आतंकवाद ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है और हमारा देश भी कई मोर्चों पर इससे मुकाबला कर रहा है। ऐसे में, यह जरूरी हो जाता है कि एक स्वस्थ और मजबूत रिश्ते की बुनियाद आतंकवाद के खिलाफ साथ मिलकर लड़ने की रणनीति पर रखी जाए। जब तक कोई भी पड़ोसी देश भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देगा तब तक उसके साथ अच्छे रिश्ते बनाना मुश्किल है। मेरा मानना है कि हमारी विदेश नीति आपसी सम्मान और भाईचारे पर आधारित होनी चाहिए। इसी तरह अन्य देशों के साथ हमारे संबंध भी बराबरी और परस्परता पर आधारित होने चाहिए। देश हित सर्वोपरि रखा जाना चाहिए। हम न किसी को आंख दिखाना चाहते हैं और न ही चाहते हैं कि कोई हमें आंख दिखाए। हम चाहते हैं आंख से आंख मिलाकर बात करें।
7-एनबीटीः केंद्र और राज्यों के बीच भी आप पीएम और सीएम टीम की बात करते रहे हैं, लेकिन क्या राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारों के होते हुए भी यह संभव है? यदि हां, तो केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों को किस तरह से और कौन सी नई शक्ल देंगे?
नरेंद्र मोदीः मेरी सोच के मुताबिक टीम इंडिया में प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्री शामिल होने चाहिए। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री साथ मिलकर बतौर टीम काम करें। यदि सब साथ मिलकर काम करें, तभी हम सही मायने में प्रगति कर सकते हैं। सारी निर्णय प्रक्रिया में राज्यों को बराबर का भागीदार बनाया जाए। बड़े प्रॉजेक्ट को मंजूरी के वक्त राज्य सरकार को भी साथ रखा जाए। यह हमारी प्राथमिकता होगी कि सभी राज्यों को विकास की प्रक्रिया में बराबर का साझीदार समझा जाए। जब हम भागीदारी की बात करते हैं, तो इससे हमारी साफ नीयत का पता चलता है। यदि नीयत सही है, तो राज्यों में विपक्षी दल की सरकार का होना रुकावट की वजह नहीं बनेगा।
8-एनबीटीः इस वक्त महंगाई की मार से देश के लोग त्रस्त हैं। महंगाई, राज्य सरकारों की पहल के बिना खत्म नहीं हो सकती। ऐसे में राज्यों को इसके लिए कैसे तैयार करेंगे?
नरेंद्र मोदीः महंगाई को नियंत्रित करने के लिए डिमांड-सप्लाई मिसमैच यानी कि मांग-आपूर्ति के असंतुलन को दूर करने की आवश्यकता है। इसके लिए खाद्यान्न और अन्य पदार्थों की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धि सुनिश्चित कराना जरूरी है। यह तभी संभव हो पाएगा, जब कृषि पर आवश्यक बल दिया जाए और सिंचाई सुविधाओं का विकास किया जाए। इस बारे में एक नई सोच के साथ काम करने की जरूरत है। हमारी पार्टी के मेनिफेस्टो में कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार के लिए 'प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना' का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, आज हमारे देश में कृषि क्षेत्र का कोई रीयल टाइम डेटा उपलब्ध नहीं है। लिहाजा, कृषि विकास के लिए योजनाएं बनाने का कोई सटीक मतलब नहीं रह जाता। हम कृषि क्षेत्र का रीयल टाइम डेटा हासिल कर उसके मुताबिक पॉलिसी और प्रोग्राम बनाएंगे। खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर रखने के लिए विशेष फंड बनाया जाएगा। हम गुजरात की श्वेत क्रांति का देशभर में प्रसार करना चाहेंगे।
9-एनबीटीः इस वक्त देश की जनता की इतनी सारी उम्मीदें आपसे जुड़ गई हैं। क्या आपको इन उम्मीदों का बोझ महसूस होता है? इन पर खरा उतरने के लिए आपकी क्या तैयारी है?
नरेंद्र मोदीः दरअसल, पिछले दशकों के दौरान राजनीति के स्तर में जो गिरावट आई है, उसके चलते सरकारों के प्रति आम जनमानस में निराशा और तिरस्कार की भावना बन गई थी। बड़े लंबे समय बाद चुनावी राजनीति में लोगों की दिलचस्पी वापस आई है, मतदाताओं का भरोसा पुनःस्थापित होता दिख रहा है। समूचे देश में एक आशा का संचार हुआ है। मुझे इस बात का अहसास है कि बीजेपी से देशभर में बहुत ज्यादा उम्मीदें बांधी जा रही हैं। लेकिन मुझे लगता है कि अपने नागरिकों को भी सपने संजोने का हक है, आशावादी होने का अधिकार है। उम्मीदें बांधने की इजाजत होनी चाहिए, इसमें कुछ बुरा नहीं है। इन सारी बातों का हमें पूरा ख्याल है और उसी के अनुसार कठिन से कठिन परिश्रम करने की मानसिक तैयारी हम कर चुके हैं।
10-एनबीटीः विदेश से काला धन लाना आसान नहीं है? कई विदेशी कानून इसमें अड़चन बने हुए हैं। आप इन्हें कैसे दूर करेंगे और यदि काला धन वापस आता है तो इससे देश के लोगों को क्या फायदा होगा? आपकी नजर में कितना काला धन हो सकता है?
नरेंद्र मोदीः सबसे पहली बात है काला धन वापस लाने की मंशा और संकल्पशक्ति। बीजेपी ने काले धने को वापस लाने की अपनी मंशा साफ तौर पर व्यक्त की है। हम मानते हैं कि काले धन की समस्या एक बड़ी चुनौती है। यह सिर्फ टैक्स चोरी ही नहीं बल्कि देशद्रोही प्रवृत्ति भी है। काला धन जो पैदा हुआ है और विदेशों में जमा हो रहा है, वह आगे चलकर गैर-कानूनी और देशद्रोही गतिविधियों की दिशा में चला जाता है। हमारे लिए यह अत्यंत अहम मुद्दा है। मैं देशवासियों को भरोसा दिलाता हूं कि काला धन वापस लाने की मेरी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है और हम तत्काल ही एक टास्क फोर्स का गठन करेंगे और इसके लिए जरूरी कानूनी सुधार के साथ-साथ कानूनी फ्रेमवर्क-ढांचे में जरूरी बदलाव भी लाएंगे। इतना ही नहीं, देश में ऐसा काला धन वापस लाकर उसका आंशिक हिस्सा ईमानदार करदाताओं विशेषकर सैलरीज क्लास के टैक्स पेयर्स को प्रदान करेंगे। यह जरूरी है कि हमारी कर-व्यवस्था-टैक्स सिस्टम ईमानदार टैक्स पेयर्स को प्रोत्साहन और इनाम देने वाली कर चोरों के खिलाफ सख्ती से पेश आने वाली हो।
11-एनबीटीः इस वक्त लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में है? आपको क्या लग रहा है कि अगली लोकसभा का सीन क्या रहने वाला है?
नरेंद्र मोदीः अब तस्वीर बिल्कुल साफ हो गई है कि देश की जनता बदलाव चाहती है। महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटालों के दलदल में फंसी यूपीए सरकार ने देशवासियों को सिवाय नाउम्मीदी के कुछ और नहीं दिया। अब तक 9 में से 8 चरणों का मतदान पूरा हो चुका है। और इन चरणों में हुए मतदान के रुझान से साफ हो गया है कि यूपीए सरकार का सत्ता से जाना वोटरों ने तय कर दिया है। वहीं, बीजेपी और साथी दलों की सरकार की नींव भी रख दी गई है। अब सिर्फ 41 सीटों पर पोलिंग होनी है। मुझे आशा है कि देश के अन्य राज्यों की ही तरह जहां मतदान होना बाकी है, वहां मतदाता बीजेपी और साथी दलों को अपार समर्थन देने वाले हैं।
12-एनबीटीः आप कहते हैं कि कांग्रेस का आंकड़ा दहाई तक ही पहुंच पाएगा तो आपको क्या लगता है कि सबसे बड़ा विपक्षी दल कौन होगा?
नरेंद्र मोदीः जी हां! इन चुनावों में कांग्रेस अपने चुनावी इतिहास के सबसे खराब प्रदर्शन का एक नया रेकॉर्ड बनाने जा रही है। बहुत संभव है कि वह दहाई के आंकड़े तक ही सिमट कर रह जाएगी। इन सबके बीच कांग्रेस के आला नेता पार्टी को प्रासंगिक बनाए रखने की खातिर परिस्थितियों को किस तरह मैनेज करते हैं, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। हम तो चाहते हैं कि सबसे बड़ा विपक्ष चाहे कोई भी हो, वह सकारात्मक राजनीति करे और देश की प्रगति और खुशहाली के लिए जिम्मेदार राजनीति की एक स्वच्छ परंपरा का पालन करे।
13-एनबीटीः आप कांग्रेस में किसी नेता को पीएम लायक मानते हैं? यदि हां, तो वह कौन है?
नरेंद्र मोदीः देखिए, मैं समझता हूं कि आज कांग्रेस नेतृत्वविहीन पार्टी हो गई है। जनता से जुड़ा कोई कद्दावर नेता, जिसकी आवाज कश्मीर से कन्याकुमारी तक गूंजती हो, कांग्रेस के पास नहीं है। गांधी परिवार की भक्ति और परिक्रमा ही कांग्रेस के नेताओं का एकसूत्रीय अजेंडा है। ऐसे में पीएम पद के लायक नेता ढूंढ़ना बहुत दूर की कौड़ी है। इंदिरा जी के जमाने से ही किसी नेता का कद इतना बड़ा नहीं होने दिया गया कि वह आगे चलकर गांधी परिवार के लिए चुनौती साबित हो।
14-एनबीटीः डॉ. मनमोहन सिंह को निजी तौर पर कैसे आंकते हैं? क्या वे पीएम के रूप में ही अच्छे साबित नहीं हुए या फिर निजी तौर पर उनमें अच्छे गुण भी हैं?
नरेंद्र मोदीः देखिए, किसी भी इंसान के आकलन/मूल्यांकन के लिए उसे करीब से देखना जरूरी है। डॉ. मनमोहन सिंह के साथ बहुत ज्यादा मुलाकात तो नहीं हुई। हां, कुछ आधिकारिक मुलाकातें जरूर हुई हैं, लेकिन उन चंद मुलाकातों के आधार पर मैं उनके बारे में कोई राय कायम करना उचित नहीं समझता। रही बात बतौर प्रधानमंत्री उनके आकलन की तो उनके निराशाजनक कार्यकाल को देखकर देश हकीकत समझ चुका है।
15-एनबीटीः अगर आप सत्ता में आए तो वे ऐसे पांच काम कौन से हैं, जो आप सबसे पहले करना चाहेंगे?
नरेंद्र मोदीः सरकार और सरकारी व्यवस्था में भरोसा लौटाना हमारा पहला काम होगा। दूसरा, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कारगर कदम उठाना हमारी प्राथमिकता होगी। तीसरा, महंगाई को नियंत्रित करने के लिए त्वरित कदम उठाए जाएंगे और चौथा, सरकारी व्यवस्था में जान फूंकना और निर्णय प्रक्रिया को कारगर बनाना होगा। पांचवां काम पॉलिसी पैरालिसिस से निजात पाना होगा।
16-एनबीटीः क्या आपको लगता है कि आपके पीएम पद तक पहुंचने की राह में कोई रुकावट बन सकता है?
नरेंद्र मोदीः देखिए, एक सामान्य परिवार का बेटा आज यहां तक पहुंचा है। इस लंबे सामाजिक और राजनीतिक सफर में न जाने कितने लोगों का समर्थन, आशीर्वाद और दुआएं मुझे मिली हैं। मैं समझता हूं यह एक काल्पनिक सवाल है, जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है।
17-एनबीटीः वाजपेयी जी की याद आती है? क्या आपकी सरकार में उनके कामकाज की छवि नजर आएगी?
नरेंद्र मोदीः बीजेपी का एक सिपाही होने के नाते निश्चित रूप से वाजपेयी जी की याद तो आती ही है। भारत के इतिहास में एकमात्र पूर्णकालिक गैर-कांग्रेसी सरकार चलाने का यश उन्हें जाता है। आम जनता को ध्यान में रखते हुए ऐसे कई कार्य वाजपेयी जी ने किए थे, जो आज भी याद किए जाते हैं। चूंकि मैंने अपना राजनीतिक सफर वाजपेयी जी की छत्रछांव में ही तय किया है, लिहाजा यह लाजिमी है कि काम करने की उनकी विशिष्ट शैली और आम जनता से हमेशा सरोकार रखने की उनकी शिद्दतभरी आतुरता का मैं कायल रहा हूं। सबसे बड़ी बात, कांग्रेस शासनकाल में महंगाई से त्रस्त देश की जनता को जिस तरह से वाजपेयी जी की सरकार ने राहत दी थी, हम चाहेंगे कि आम जन को यह राहत एक बार फिर से मिले।
Courtesy: Navbharat Times