भारत के रतन का जाना...

Published By : Admin | November 9, 2024 | 08:30 IST

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।

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राष्ट्र निर्माण के ‘अटल’ आदर्श की शताब्दी
December 25, 2024

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं...लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं...कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे...उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वो ये भी कहते थे... जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है..कौन जानता किधर सवेरा...आज अगर वो हमारे बीच होते, तो वो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वो दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था...और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वो स्नेह...वो अपनत्व...वो प्रेम...मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।

आज 25 दिसंबर का ये दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृतार्थ है।

21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी एनडीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि ये सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।

वो ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वो भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी, टेलीकम्यूनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, एनडीए ने टेक्नॉलजी को सामान्य मानवी की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किये गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा वो आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एनडीए गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने ना सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।

जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वो चाहते थे भारत के वर्ग, यानि ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने।

उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानवी के जीवन को बदलना ही रहा।

उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते है। देश को अब भी 11 मई 1998 का वो गौरव दिवस याद है, एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था। लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को ये दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।
उन्होंने पूरी दुनिया को ये संदेश दिया, ये पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी, कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से देश पर प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया।

वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। करगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायरना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।

जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि वो लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वो चर्चाएं सीखने का माध्यम बनतीं।

कुछ सांसदों की संख्या लेकर भी, वो कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में सफल होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया, ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है।

संसद में कहा गया उनका ये वाक्य... सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए...आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है।

वो भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वो ये भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरुरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेली। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। NDA की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। वो अनेक दलों को साथ लाए और NDA को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया।

पीएम पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। वो ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था, उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।

उन में सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति ना चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की।

संविधान के मूल्य संरक्षण में भी, उनके जैसा कोई नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद के निधन का उनपर बहुत प्रभाव पड़ा था। वो आपात के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। इमरजेंसी केबाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ का जनता पार्टी में विलय करने पर भी सहमति जता दी। मैं जानता हूं कि ये निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा, संविधान था।

हम सब जानते हैं, अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी हिंदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया।

राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, वो साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। वो एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में व्यक्ति को आशा और नव सृजन की प्रेरणा देते थे। वो हर उम्र के भारतीय के प्रिय थे। हर वर्ग के अपने थे।

मेरे जैसे भारतीय जनता पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, उनसे संवाद करने का अवसर मिला। अगर आज बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिसपर ये दृढ़ संगठन खड़ा है।

उन्होंने बीजेपी की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने बीजेपी को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त किया। श्री लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया।

जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने इस चुनाव में विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वो देश को ये समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। ऐसा दृष्टिकोण वास्तव में परिणाम दे सकता है।

आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करनें की प्रेरणा देते रहेंगे।