माननीय अध्यक्ष जी, 17वीं लोकसभा के गठन के बाद राष्ट्रपति महोदय के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को समर्थन करने के लिए, धन्यवाद करने के लिए मैं उपस्थित हुआ हूँ।
राष्ट्रपति जी ने अपने भाषण में- हम भारत को कहाँ ले जाना चाहते हैं, कैसे ले जाना चाहते हैं, भारत के सामान्य मानवी की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए किन चीजों को प्राथमिकता देना चाहते हैं, किन चीजों पर बल देना चाहते हैं- उसका एक खाका खींचने का प्रयास किया है। राष्ट्रपति जी का भाषण देश के सामान्य मानवी ने जिस आशा-आकांक्षाओं के साथ इस सदन में हमको भेजा है, उसका एक प्रकार से प्रतिध्वनि है, और इसलिए इस भाषण का धन्यवाद एक प्रकार से देश के कोटि-कोटि जनों का भी धन्यवाद है।
एक सशक्त, सुरक्षित, समृद्ध, समावेशी- ऐसा राष्ट्र का सपना हमारे देश के अनेक महापुरुषों ने देखा है। उसको पूर्ण करने के लिए संकल्पबद्ध हो करके, अधिक गति, अधिक तीव्रता के साथ हम सबको मिल-जुल करके आगे बढ़ना, ये समय की मांग है, देश की अपेक्षा है और आज के वैश्विक वातावरण में ये अवसर भारत ने खोना नहीं चाहिए।
उस मिज़ाज के साथ हम आगे बढें, हम सभी मिल करके आगे बढें- मैं समझता हूँ कि देश की आकांक्षाओं को पूर्ण करने में आने वाली हर चुनौती, हर बाधा को हम पार कर सकते हैं।
इस चर्चा में करीब 60 आदरणीय सांसदों ने हिस्सा लिया। जो पहली बार आए हैं, उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से अपनी बात को रखने का प्रयास किया, चर्चा को सार्थक बनाने का प्रयास किया। जो अनुभवी हैं, उन्होंने भी अपने-अपने तरीके से इस चर्चा को आगे बढ़ाया।
श्रीमान अधीर रंजन चौधरी जी, श्री टी.आर. बालू जी, श्री दयानिधि मारन जी, श्रीमान सौगत राय जी, जयदेव जी, सुश्री महुआ मोइत्रा, पी.वी. मिधुन रेड्डी जी, विनायक राउत, राजीव रंजन सिंह जी, पिनाकी मिश्रा, श्री नामा नागेश्वर राव, मोहम्मद आज़म खान, असदुद्दीन ओवैसी, श्री प्रताप चन्द्र षड़ंगी, डॉक्टर हिना गावित, समेत अन्य सभी का इस चर्चा को सार्थक बनाने के लिए मैं हृदय से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूँ।
ये बात सही है कि हम सब मनुष्य हैं, 30 दिन में जो मन पर छाप रहती है, प्रभाव रहता है, निकलना जरा कठिन होता है और उसके कारण चुनावी भाषणों का भी थोड़ा-बहुत असर नजर आता था। वो ही बातें यहां भी सुनने को मिल रही थीं। लेकिन शायद वो प्रकृति का नियम है, और इसलिए... अब देखिए मैं आपको भी इस गरिमापूर्ण पद पर जिस प्रकार से आपने सदन का संचालन किया, पूरी चर्चा को सबको विश्वास में लेते हुए आगे बढ़ाया, आप इस पद पर नए हैं, और जब आप नए होते हैं तो कुछ लोगों का मन भी करता है, जरा आपको शुरू में ही परेशानी में डाल दें।
लेकिन सब स्थितियों के बावजूद भी आपने बहुत ही बढ़िया ढंग से इन सारी चीजों को चलाया, इसके लिए भी मैं आपको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ और मैं सदन को भी नए स्पीकर महोदय को सहयोग देने के लिए भी उनका आभार व्यक्त करता हूँ।
माननीय अध्यक्ष जी, कई दशकों के बाद देश ने एक मजबूत जनादेश दिया है। एक सरकार को दोबारा फिर से लाए हैं, पहले से अधिक शक्ति दे करके लाए हैं। आज के इस सामान्य वातावरण में भारत जैसी vibrant democracy में हर भारतीय के लिए गौरव करने का विषय है कि हमारा मतदाता कितना जागरूक है, वो अपने से ज्यादा अपने देश को कितना प्यार करता है, अपने से ज्यादा अपने देश के लिए किस प्रकार से वो निर्णय करता है; इस चुनाव में साफ-साफ नजर आया है। और इसलिए देश के मतदाता अनेक-अनेक अभिनंदन के अधिकारी हैं।
मुझे इस बात का संतोष है, हमारी पूरी टीम को संतोष है कि 2014 में, जबकि हम पूरी तरह नए थे, देश के लिए भी हम अपरिचित थे, लेकिन उस स्थितियों से बाहर निकलने के लिए देश ने एक प्रयोग के रूप में- चलो भई जो भी हैं, इनसे तो बचेंगे- और हमें मौका दिया। लेकिन 2019 का जनादेश पूरी तरह कसौटी पर कसने के बाद, हर तराजू पर तोले जाने के बाद- पल-पल को जनता-जनार्दन ने बड़ी बारीकी से देखा है, परखा है, जांचा है और उसके आधार पर समझा है और तब जा करके दोबारा हमें बिठाया है। ये लोकतंत्र की बहुत बड़ी ताकत है। चाहे जीतने वाला हो, हारने वाला हो, चाहे मैदान में था या मैदान के बाहर था, हर किसी के लिए इस विजय को सरकार के पाँच साल के कठोर परिश्रम, सरकार के पाँच साल का जनता-जनार्दन की सुख-सुविधा के लिए पूर्ण समर्पण, पूर्ण रूप से ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’, इन नीतियों को लागू करने का सफल प्रयास- उसको लोगों ने फिर से एक बार अपना अनुमोदन दे करके देश की सेवा करने के लिए दोबारा बिठाया है।
माननीय अध्यक्ष जी, एक व्यक्ति के रूप में जीवन में इससे बड़ा कोई संतोष नहीं होता है, जब जनता-जनार्दन, जो कि ईश्वर का रूप होती है – वो आपके काम को अनुमोदित करती है। ये सिर्फ चुनाव की जीत और हार, आँकड़े, उसका खेल नहीं है जी- ये जीवन की उन आस्था का खेल है जहाँ commitment क्या होता है, dedication क्या होता है, जनता-जनार्दन के लिए जीना, जनता-जनार्दन के लिए जूझना, जनता-जनार्दन के लिए खपना- ये क्या होता है, ये पाँच साल की अखंड, एकनिष्ठ, अविरत तपस्या का जो फल मिलता है ना, तो उसका संतोष एक आध्यात्म की अनुभूति कराता है। और इसलिए कौन हारा-कौन जीता, इस दायरे में चुनाव को देखना मेरे सोच का हिस्सा नहीं हो सकता है, मैं इससे कुछ आगे सोचता हूँ। और इसलिए मुझे 130 करोड़ देशवासियों के, उनके सपने, उनकी आशा-आकांक्षा, ये मेरी नजर में रहती हैं।
माननीय अध्यक्ष जी, 2014 में जब देश की जनता ने अवसर दिया, पहली बार मुझे सेंट्रल हॉल में वक्तव्य देने का मौका मिला था, और सहज भाव से मैंने कहा था कि मेरी सरकार गरीबों को समर्पित है। आज उस पाँच साल के कार्यकाल के बाद बड़े संतोष के साथ कह सकता हूँ, और जो संतोष जनता-जनार्दन ने ईवीएम के बटन का दबा करके अभिव्यक्त किया है। जब चर्चा का प्रारंभ हुआ, पहली बार सदन में आए हुए श्रीमान प्रताप षड़ंगी जी ने और आदिवासी समाज से आई हुई मेरी बहन डॉक्टर हिना गावित जी ने जिस प्रकार से विषय को प्रस्तुत किया है, जिस बारीकी से चीजों को रखा- मैं समझता हूँ उसके बाद मैं कुछ भी न बोलूँ तो भी बात पहुँच चुकी है।
माननीय अध्यक्ष जी, हमारे देश के जितने भी महापुरुष हुए, सार्वजनिक जीवन में जिन्होंने मार्गदर्शन किया, उन्होंने एक बात हमेशा कही है और वो अंत्योदय की कही, आखिरी छोर पर बैठे हुए इंसान की भलाई की बात कही। चाहे पूज्य बापू हों, चाहे बाबा साहेब अम्बेडकर हों, चाहे लोहिया जी हों या दीनदयाल जी हों- हर किसी ने इसी बात को कहा। पिछले पाँच साल के कार्यकाल में हमारे मन में यही भाव रहा- जिसका कोई नहीं है, उसके लिए सरकार ही सिर्फ होती है।
हमने देश आजाद होने के बाद एक ऐसा कल्चर जाने-अनजाने में स्वीकार कर लिया, या तो उसको बढ़ाने में हमने बल दे दिया, और मैं शब्द प्रोब्ह्म करता हूँ, मैं किसी पर आरोप नहीं लगाता हूँ। हमने न जाने अनजाने में एक ऐसा कल्चर प्रसारित किया, जिसमें देश के सामान्य मानवी को अपने हक के लिए व्यवस्थाओं के साथ जूझना पड़ता है, जद्दोजहद करनी पड़ती है, उनको लड़ना पड़ता है। क्या सामान्य मानवी की हक की चीज़ें सहज रूप से व्यवस्था के तहत जिसका वो हकदार है, वो उसे मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? और मिले या न मिले, वो शिकायत करे या न करे- हमने मान लिया था कि ये तो ऐसे ही चलता है।
मैं जानता हूँ इन चीजों को बदलने में कितनी मेहनत लगती है। राज्यों को भी onboard लाने में कितनी तकलीफ होती है। और 70 साल की बीमारियों को पाँच साल में पूरा करना कठिन होता है। लेकिन मैं संतोष के साथ कह सकता हूँ कि हमने दिशा वो पकड़ी- कठिनाइयों के बावजूद भी उस दिशा को हमने छोड़ा नहीं है- ना divert ना dilute- हम उस मकसद से चलते रहे और ये देश दूध का दूध, पानी का पानी भलीभांति कर सकता है। और उसने शौचालय को सिर्फ चार दीवार नहीं समझा, घर में चूल्हा पहुँचा तो सिर्फ खाना ढंग से पका, उतना ही नहीं समझा, उन हर व्यवस्था के पीछे उस मकसद को उसने समझा कि आखिरकार ये क्यों कर रही है सरकार। मैंने तो चूल्हा माँगा नहीं था, मैंने तो बिजली के कनेक्शन के बिना जिंदगी गुजार दी थी, वो क्यों कर रहे हैं? पहले प्रश्न उठता था क्यों नहीं करते हैं? आज उसके मन में एक विश्वास पैदा हुआ कि क्यों कर रहे हैं। क्यों नहीं करते हैं से ले करके क्यों करते हैं- ये यात्रा बड़ी लंबी थी। लेकिन उसमें विश्वास भरा हुआ था, जिसने अपनेपन को उजागर कर दिया और जो आज देश में एक नए सामर्थ्य की अनुभूति करा रहा है और उसी को आगे बढ़ाने की दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।
ये बात सही है कि जिस प्रकार से एक welfare state के रूप में देश गरीबी से जब जूझ रहा है तो उनको उन योजनाओं के तहत ease of living के लिए जो भी एक सामान्य मानवी की आवश्यकता होती है, उसकी पूर्ति हो, लेकिन देश आगे भी बढ़ना चाहिए। गरीबों का कल्याण हो, गरीबों का उत्थान हो, गरीबों का empowerment हो, लेकिन साथ-साथ आधुनिक भारत को भी मजबूती से आगे बढ़ाना चाहिए। तो ऐसी पटरी पर विकास की धारा चलनी चाहिए, जहाँ एक तरफ welfare को ले करके ध्यान केन्द्रित हो, सामान्य मानवी की जिंदगी की आवश्यकताओं की पूर्ति पर भरपूर प्रयास हो और दूसरी तरफ, वो पटरी हो जो आधुनिक infrastructure का निर्माण करे, देश को आधुनिक बनाने के लिए योजनाओं को लागू करे।
और हमने उन दोनों तरफ बल दिया और highways हो या I-ways हों, waterways हों, रेल हो या रोड़ हो, उड़ान योजना से हवाई जहाज की व्यवस्था हो, startup हो, innovation हो, tinkering lab से ले करके चंद्रयान तक की यात्रा की कल्पना हो- इन सारी चीजों को एक आधुनिक भारत और इन अनेक चुनौतियों से लड़ने के लिए हमें आगे बढ़ना है।
यहाँ बहुत अच्छी बातें बताई गईं। कुछ तीखी बातें भी बताई गईं। ज्यादातर चुनावी सभाओं की छाया वाली बातें भी बताई गईं। हरेक का अपना-अपना एक एजेंडा होता है, उसके लिए मुझे कुछ कहना भी नहीं है, लेकिन यहाँ कहा गया कि हमारी ऊँचाई को कोई कम नहीं कर सकता है; ऐसी गलती हम नहीं कर सकते हैं। हम किसी की लकीर छोटी करने में अपना समय बर्बाद नहीं करते हैं, हम हमारी लकीर लंबी करने के लिए जिंदगी खपा देते हैं।
और आपकी ऊँचाई आपको मुबारक हो क्योंकि आप इतने ऊँचे चले गए हैं, इतने ऊँचे चले गए हैं कि जमीन दिखना बंद हो गई है। आप इतने ऊँचे चले गए हैं कि आप जो जड़ों से उखड़ चुके हैं। आप इतने ऊँचे चले गए हैं कि जो जमीन पर हैं वो आपको तुच्छ दिखता है। और इसलिए आपका और ऊँचा होना मेरे लिए अत्यंत संतोष....... और मेरी कामना है कि आप और ऊँचे बढ़ें। हमारी आपसे ऊँचाई के संबंध में कोई स्पर्धा ही नहीं है क्योंकि हमारा सपना ऊँचा होने का है ही नहीं- हमारा सपना जड़ों से जुड़ने का है।
हमारा सपना जड़ों की गहराई से जुड़ने का है, हमारा सपना, हमारा रास्ता जड़ों से ही ताकत पा करके और मजबूती देश को देना, ये हमारा रास्ता है। और इसलिए जिस स्पर्धा में हम नहीं हैं। उस स्पर्धा में हम आपको शुभकामना ही देते रहेंगे और ऊँचे, और ऊँचे, और ऊँचे जाइए। मैं देख रहा हूँ कि बार-बार चर्चा आती है, ये बात सही है कि कुछ लोगों को कुछ लोगों के लिए लगाव होता है, कि अगर उनका नाम नहीं आता है तो उनको परेशानी हो जाती है, जैसे नाम न आने से भी जैसे अपमानित कर दिया, ऐसा महसूस हो सकता है, होना नहीं चाहिए लेकिन होता है।
लेकिन मैं चुनौती देता हूँ 2004 से पहले देश में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी। 2004 से 2014 तक शासन में बैठे हुए लोगों ने अधिकृत कार्यक्रम में एक बार भी, एक बार भी अटल जी की सरकार की तारीफ की हो, उनके अच्छे कामों का उल्लेख किया हो, तो जरूर इस पटल पर रखें। इतना ही नहीं, अटलजी छोड़ो, नरसिम्हा राव की सरकार की तारीफ की हो, वो रखें। इतना ही नहीं, ये अभी के भाषण में भी एक बार डॉक्टर मनमोहन सिंह जी का नाम बोले होते तो मुझे बताएं। और वो बड़े-बड़े लोग, मैं उनकी बराबरी में कुछ नहीं हूँ, मैं तो सामान्य व्यक्ति हूँ। लेकिन लाल किले पर से शायद, verify करना चाहिए, शायद मैं पहला प्रधानमंत्री हूँ जिसने दो बार ये कहा है कि आजादी से ले करके अब तक केंद्र की और राज्य की जितनी भी सरकारें हुईं, सबका देश को आगे ले जाने में योगदान है।
इस सदन में भी अनेक बार मैं कह चुका हूँ, आज दोबारा कहता हूँ, हम वो लोग नहीं हैं। और इसलिए बार-बार ये कहना- हाँ, उनकी अपेक्षा है वो ही नाम आए, वो एक अलग बात है, लेकिन मैं एक उदाहरण देता हूँ- हम लोगों का character क्या है, हम लोगों चरित्र, हमारी सोच क्या है, जानकारी के लिए, तभी आपको समझने में सुविधा होगी, सबको नहीं होती है।
गुजरात में मुझे लंबे अर्से तक मुख्यमंत्री के नाते काम करने का अवसर मिला। गुजरात के 50 साल हुए थे, golden jubilee year था। उस गोल्डन जुबली ईयर का अनेक कार्यक्रम किए, सबको साथ ले करके किए। लेकिन एक महत्वपूर्ण काम मैं आज यहाँ बताना चाहता हूँ। मैंने सूचना दी सरकार को कि 50 साल में जो राज्यपाल महोदय के भाषण हुए हैं, उन भाषणों को compile करके उसका एक ग्रंथ निकाला जाए और वो हिस्ट्री का रिकॉर्ड बनना चाहिए। अब मुझे बताएं कि 50 साल तक governor का भाषण, मतलब किसका भाषण था?
उस समय की सरकारों की एक प्रकार से वाहवाही कहो या उस समय की सरकारों के काम का उसमें लेखा-जोखा था। हमारे दल की सरकारें नहीं थीं। लेकिन ये हमारी सोच का हिस्सा है कि शासन चलाने की व्यवस्था में जो भी हैं, देश को आगे ले जाने में जिसकी भूमिका है, और वो पूर्णत: सकारात्मक था। किसी अखबार के editorial का compilation नहीं छापना था, गवर्नर के भाषणों का छापना था और आज भी उपलब्ध है, जा करके देखिए।
और इसलिए ये कहना कि देश में पहले जो काम हुए हैं उसको हम बिल्कुल गिनते ही नहीं हैं और बार-बार हमको सुनाते रहना, ये सुनाने का उन्हीं को हक है जिन्होंने कभी किसी को स्वीकार किया हो। वरना देश को लगता था कि उनके कार्यकाल में नरसिम्हा राव को भारत रत्न मिलता, उनके कार्यकाल में पहले टर्म के बाद डॉक्टर मनमोहन सिंह जी को भारत रत्न मिलता।
लेकिन परिवार के बाहर के व्यक्तियों को कुछ नहीं मिलता है जी। ये हम हैं, हमारी सोच है- प्रणब दा किस दल से थे, किस पार्टी के लिए उन्होंने जीवन खपाया, उसके आधार पर हम निर्णय नहीं करते हैं, उनका देश के लिए योगदान था, भारत रत्न का निर्णय हम कर सकते हैं। और इसलिए कृपा करके- मेरे ये कहने के बाद मुझे अच्छा नहीं लग रहा है, मुझे आनंद नहीं हो रहा है, लेकिन बार-बार ये हमको सुनाया जाता है तो फिर thus far and no further.
आज मैं रिकॉर्ड पर इसलिए रखना चाहता हूँ कि ऐसा कृपा करके बार-बार मत बोलिए। हम किसी के योगदान को नकारते नहीं हैं जी। और जब हम कहते हैं कि सवा सौ करोड़ देशवासियों ने देश को आगे बढ़ाया है तो सवा सौ करोड़ देशवासियों में सब कोई आते हैं जी। और इसलिए कृपा करके हम चर्चाओं को इतना छोटा न बना दें।
माननीय अध्यक्ष जी, जब आपने हर चीज में कल तो बड़े नारे बुलवा लिए- किसने किया? किसने किया? किसने किया? आज 25 जून है साहब! बहुत लोगों को जानकारी भी नहीं कि 25 जून क्या है? अगल-बगल में पूछना पड़ता है। 25 जून की वो रात, देश की आत्मा को कुचल दिया गया था। भारत में लोकतंत्र संविधान के पन्नों से पैदा नहीं हुआ है, भारत में लोकतंत्र सदियों से हमारी आत्मा है, इस आत्मा को कुचल दिया गया था। देश के मीडिया को दबोच दिया गया था। देश के महापुरुषों को जेल की सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया था। पूरे हिंदुस्तान को जेलखाना बना दिया गया था- और सिर्फ किसी की सत्ता चली न जाए इसीलिए। न्यायपालिका का judgment था, न्यायपालिका का अनादर कैसे होता है, उसका वो जीता-जागता उदाहरण है।
आज 25 जून को हम लोकतंत्र के प्रति फिर से एक बार अपना समर्पण, अपना संकल्प, उसको और ताकत के साथ हमने समर्पित करना होगा। संविधान की बातें बताना और संविधान को कुचलने के पाप करना, इन चीजों को कोई भूल नहीं सकता है, और उस समय जो-जो भी इस पाप के भागीदार थे, ये दाग कभी मिटने वाला नहीं है। और इस बात को बार-बार स्मरण करने की भी जरूरत है कि ताकि देश में फिर कैसे कभी कोई ऐसा पैदा न हो, जिसको इस पाप के रास्ते पर जाने की इच्छा हो जाए- इसलिए याद करना जरूरी है, किसी को भला-बुरा कहने के लिए नहीं।
लोकतंत्र के प्रति आस्था का महत्व क्या है, ये समझाने के लिए भी लोकतंत्र पर किस प्रकार से प्रहार हुआ था, ये स्मरण कराना जरूरी होता है, किसी को बुरा-भला कहने के लिए नहीं होता है। उस समय जबकि मीडिया पर ताले लग चुके थे, हर कोई लगता था कि आज शाम को पुलिस आएगी पकड़ लेगी, ऐसे वातावरण में ये मेरे देश के नागरिकों की सामर्थ्य देखिए, इनकी ताकत देखिए- जाति, पंत, संप्रदाय सबसे ऊपर उठ करके देश ने उस समय चुनाव में नतीजा दिया था और लोकतंत्र के लिए वोट किया था और लोकतंत्र को पुन प्रस्थापित किया था। ये मेरे देश के मतदाताओं की ताकत है। इस बार फिर एक बार जाति, पंत, संप्रदाय, भाषा सबसे परे उतर करके सिर्फ और सिर्फ देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए इस बार फिर से एक बार देश ने मतदान किया है।
माननीय अध्यक्ष जी, राष्ट्रपति जी ने अपने भाषण में दो महत्वपूर्ण अवसरों का उल्लेख किया है- एक- गांधी 150 और दूसरा-आजादी 75. व्यक्ति का जीवन हो, परिवार का जीवन हो, समाज का जीवन हो; कुछ तारीखें होती हैं जो नया जज्बा पैदा करती हैं, जीवन को प्राणवान बनाने का अवसर बन जाती हैं, संकल्पों को पूर्ण करने के लिए समर्पण के भाव से जोड़ देती हैं। भारत के जीवन में भी आज हमारे पास पूज्य बापू से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं है। आज हमारे पास आजादी के लिए मर-मिटने वाले वीरों से बड़ी कोई यादें नहीं हैं। ये अवसर खोना नहीं चाहिए।
देश की आज़ादी के लिए जिन्होंने अपना जीवन खपा दिया, उनका पुण्य स्मरण करते हुए; जिन्होंने यातनाएँ झेलीं, जिन्होंने अपनी जवानी माँ भारती के लिए न्योच्छावर कर दी; उनका पुण्य स्मरण करते हुए और देश में आजादी के लिए जन आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व करते वाले पूज्य बापू का स्मरण करते हुए इन तारीखों का एक अवसर बना करके हम देश में फिर से एक बार spirit पैदा कर सकते हैं। और ये सरकार का एजेंडा नहीं हो सकता है, किसी दल का एजेंडा नहीं हो सकता है, ये पूरे देश का एजेंडा होता है, इसमें दल नहीं होते हैं, सिर्फ और सिर्फ देश होता है। राष्ट्रपति जी ने इस बात को कहा है। हमारे लिए संकल्प की घड़ी है। चुनाव के मैदान में तू-तू, मैं-मैं जो करना है, कर लीजिए, लेकिन एक अवसर है, इसको हम पकड़ें। आजादी से पहले देश के लिए मरने का मिजाज था, आज आजादी 75 पर देश के लिए जीने का मिजाज पैदा करने का हमें अवसर मिला है।
मैं इस सदन में सभी जन-प्रतिनिधियों से आग्रह करता हूँ, मैं देश के सभी सार्वजनिक जीवन का नेतृत्व करने वाले लोगों से आग्रह करता हूँ कि राष्ट्रपति जी ने हमें जो आदेश दिया है, जो हमसे अपेक्षा की है, उस अपेक्षा को पूर्ण करने के लिए हम आगे आएँ और इन दो महत्वपूर्ण अवसरों को नए भारत के निर्माण के लिए, जन-सामान्य को जोड़ने के लिए हम किस प्रकार से आगे ला सकते हैं, हम प्रयास करें।
हिन्दुस्तान गुलामी का कालखंड लंबा रहा है, लेकिन उस गुलामी के कालखंड में कोई भी काल ऐसा नहीं था जब किसी न किसी कोने में से आजादी की आवाज न उठी हो, त्याग-बलिदान की परम्परा न चली हो। 1857 में एक संगठित ग्रुप प्रकट हुआ, लेकिन महात्मा गांधी का एक बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने देश के सामान्य मानवी को आजादी का सिपाही बना दिया। अगर वो झाड़ू लगाता है- तो भी आजादी के लिए, वो बच्चों को शिक्षा देता है- तो भी आजादी के लिए, वो खादी के वस्त्र पहनता है- तो भी आजादी के लिए।
ये पूज्य बापू ने किया- पूरे हिन्दुस्तान में माहौल बना दिया। और 1942- भारत छोड़ो आंदोलन में देश का जन-जन जुड़ गया। 1942-47 एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण turning point है आजादी की जंग का। क्या हम गांधी-150 और आजादी-75 को उस 1942 के spirit के साथ देश को संकटों से मुक्ति दिलाना, देश को समस्याओं से मुक्ति दिलाना, अधिकार से ऊपर उठकर अब कर्तव्य पर बल देना, जिम्मेदारियों को निभाने के लिए देश को प्रेरित करना- क्या हम इसके लिए आगे आ सकते हैं?
मैं मानता हूँ राष्ट्रपति जी ने इस विषय को बहुत महत्वपूर्ण तरीके से हमारे सामने रखा है। और लोगों का आश्चर्य होता था जब आजादी की मांग हो रही थी। मजाक भी उड़ाया जाता था- कैसे चलाओगे, क्या चलाओगे? लेकिन आजादी के दीवानों के अंदर एक ललक थी। आजादी के लिए मरने वालों का एक मिजाज था, आजादी के लिए आजाद भारत के लिए जीने वालों का मिजाज पैदा करना, इस नेतृत्व में क्षमता है।
मैं चारों तरफ हाथ घुमा करके कह रहा हूँ। मैं सिर्फ मेरे लिए नहीं कह रहा हूँ, न मैं इस तरफ कह रहा हूँ। हम सब मिल करके इस बात को करेंगे और स्वभावत: मुझे तत्कालीन लाभ- ये मेरी सोच का दायरा नहीं होता है, छोटा सोचना मुझे पसंद नहीं है- और इसलिए मुझे कभी लगता है कि सवा सौ करोड़ देशवासियों के सपनों को अगर जीना है तो फिर छोटा देखने और सोचने का मुझे अधिकार भी नहीं है।
जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का
फिर देखना फिजूल है कद आसमान का।
इस मिजाज के साथ हमने आगे के लिए एक नए हौसले, नए बुलंद विचारों के साथ... इस सरकार को अभी तो तीन सप्ताह हुए हैं। लेकिन हमारे यहाँ कहावत है- पुत्र के लक्षण पालने में। किस प्रकार से तीन सप्ताह में- हमें भी मन करता था कि कहीं जाएँ मालाएँ पहनें, जयकारा करें, लेकिन हमने वो रास्ता नहीं चुना। हमें भी लगता था अरे इतने चुनाव, छह महीने से दौड़ रहे थे- चलो कुछ दिन हम भी आराम कर लें, लेकिन वो रास्ता हमें पसंद नहीं।
हमारा रास्ता वो नहीं है, हम तो देश के लिए जीने के लिए आए हैं। तीन सप्ताह के भीतर-भीतर कितने महत्वपूर्ण निर्णय लिए इस सरकार ने- एक गतिशील समय का पल-पल उपयोग करते हुए देश को कैसे आगे लाया जाना, छोटे किसान हों, छोटे दुकानदार हों, खेत-मजदूर हों; उनको साठ साल के बाद पेंशन वाला निर्णय- कर लिया।
हमारी पीएम-किसान समृद्धि योजना- हमने वादा किया था कि सभी किसानों को उसके दायरे में लाकर उसका लाभ दिया जाएगा- दे दिया गया। सेना के जवानों के बच्चों को जो scholarship मिलती है, उसमें बढ़ोत्तरी की, लेकिन साथ-साथ समाज की सुरक्षा में लगे हुए हमारे पुलिस के जवान हैं, उनके बच्चों को भी वो benefit मिले, इसका एक बहुत बड़ा निर्णय किया। मानव अधिकारों से जुड़े बहुत महत्वपूर्ण कानून इस संसद के अंदर हमने लाने के लिए जो भी आवश्यक तैयारियाँ थी, उसको पूरी कर ली।
2022 के सपनों को पूरा करना, मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाना, all party की मीटिंग बुलाना और all party presidents की मीटिंग बुलाना- हर चीज को जितना भी तीन सप्ताह के भीतर-भीतर सबको साथ ले करके चलने के लिए जितने भी काम हो सकते हों- एक के बाद एक कामों को उठाया। मैं पूरी गिनती करूँगा तो शायद daily के तीन काम निकल आएंगे। और इसलिए माननीय अध्यक्ष जी, राष्ट्रपति जी ने अपने भाषण में उल्लेख किया है। हमने, ऐसा तो नहीं है कि पहले की सरकारों ने कोई काम नहीं किया है।
यहां चर्चा हो रही थी, ये डेम बना, वो डेम बना, ढिकना डेम बना, फलाना डेम बना- काफी कुछ चर्चा हुई। अच्छा होता बाबा साहेब अंबेडकर के नाम का उल्लेख होता। हिन्दुस्तान में पानी के संबंध में जितने भी initiative लिए हैं, वो सारा काम बाबा साहेब अंबेडकर के नेतृत्व में किया गया जी। लेकिन क्या है कि एक सीमा के बाद बहुत ऊंचाई पर जाने के बाद दिखता नहीं है। और बाबा साहेब ने central waterways, irrigation, navigation और बाबा साहेब पानी के संबंध में कहते थे- मैं समझता हूं आज के लिए बाबा साहेब के ये आदेश हम सबके लिए उपयोगी हैं। वो कहते थे Man suffers more from the lack of water than from the access to it, मैं समझता हूं कि बाबा साहेब ने ये चिंता व्यक्त की थी। उस चिंता को समझते हुए हमें कुछ न कुछ सोचना पड़ेगा।
यहां पर अनेक डेम की बात हुई उसमें सरदार सरोवर डेम की भी बात आई। तो मैं थोड़ा समय लेना चाहता हूं माननीय अध्यक्ष जी। क्योंकि कभी क्या होता है कि ऐसे भ्रम फैलाए जाते हैं। अच्छा इनकी इको सिस्टम ऐसी है कि उनको भी उसी को आगे बढ़ाने में मजा आता है। सत्य कभी उजागर नहीं करने देते। मेरे आज बोलने के बाद भी सत्य आएगा इसकी कोई गांरटी नहीं है। ये यहीं रह जाएगा। लेकिन फिर भी मुझे अपना कर्तव्य पालन का संतोष जरूर होगा।
ये सरदार सरोवर डेम- 1961 में पंडित नेहरू ने उसकी नींव रखी थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल का वो सपना था लेकिन नींव रखी गई 1961 में। और दशकों तक मंजूरियां नहीं, पत्थर तो गाड़ दिया गया बिना मंजूरी। और उस समय छ: हजार करोड़ का प्रोजेक्ट था। वो पूरा होते होते 60-70 हजार करोड़ पर पहुंच गया।
ये देश की क्या सेवा की आप देखिए..... इतना ही नहीं यूपीए सरकार के समय भी उसको रोकने का प्रयास हुआ। 1986-1987 में छ: हजार करोड़ का खर्चा 62 हजार पहुंचा... हमने आकर करके इसको पूरा किया, मुझे अनशन पर बैठना पड़ा था। यूपीए सरकार के खिलाफ मुझे अनशन पर बैठना पड़ा था। मुख्यमंत्री था, क्योंकि सारी चीजें रोक दी गई थीं और तब जाकर के ये योजना और अभी मैंने इसे पूरा किया अभी प्रधानमंत्री बनने के पहले 15 दिन में मैंने जो रूकावटें थी, वो सारी हटाने का काम किया था।
आज करीब चार करोड़ लोगों को पानी मिल रहा है। सात महानगरों को, 107 नगरपालिकाओं को और 9 हजार गांव को पीने का शुद्ध पानी पहुँच रहा है। पानी की तकलीफ क्या होती है वो राजस्थान और गुजरात के लोग ज्यादा जानते हैं और इसलिए इस बार हमनें जल शक्ति मंत्रालय अलग से बनाया है। जल संकट को हमने गंभीरता से लेना होगा। और इस सीजन में भी हम जितना बल जल संचय पर दें हमने देना चाहिए।
और मेरी सभी आदरणीय सांसद महोदय से प्रार्थना है, सभी एनजीओ से प्रार्थना है, कि हम देश में पानी का महात्मय बढ़ाने में किस प्रकार से योगदान करें और सरकारी दायरे से बाहर हो करके करें। पानी बचाना है। इस काम को करके हम सामान्य मानवी की जिंदगी को बचाने में मदद कर सकते हैं। और पानी का संकट दो लोगों को सबसे ज्यादा संकट पैदा करता है- वो गरीब को और विशेष करके हमारी माताओं-बहनों को।
हमारे समाजवादी मित्रों का क्या हुआ, मुझे मालूम नहीं है, लेकिन लोहिया जी बहुत आग्रह से कहते थे कि देश की महिलाओं को दो समस्याएं हैं पानी और पैखाना। लोहिया जी लगातार कहते थे कि इन समस्याओं से माताओं-बहनों को मुक्त करो। पैखाने की संकट शौचालय बना करके माताओ-बहनों को इज्ज्त देने का लोहिया जी का सपना पूरा करने के लिए हमने जी-जान से काम किया है और हर घर को जल इस मंत्र को लेकर के आगे बढ़ना है।
मैं जानता हूं ये कठिन काम है बड़े काम हैं, हो सकता है कोई इसको तराजू में तोल करके हमें फेल भी कर देगा कि मोदी तुमको 100 में से 70 मार्क्स नहीं मिलेगें, 50 मिलेंगे- जो भी होगा लेकिन किसी को तो हाथ लेना पड़ेगा... लगाना पड़ेगा। हमने लगाया है जल शक्ति मंत्रालय की बात कही है। जल संचय दूसरी जिम्मेदारी है जल सींचन, दुनिया में proven है कि sugarcane की खेती में micro irrigation फायदा करता है। किसानों को कौन समझाएगा, micro irrigation के लिए को कौन समझाएगा। सरकार की योजना है पैसे मिल सकते हैं, पानी बचाने का बहुत बड़ा कारण बन सकता है। ऐसी अनेक चीजें है जिसकी ओर हमें बूंद-बूंद पानी बचा करके देश को कैसे ले जाना है।
Agriculture हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। हमारे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है लेकिन पुराने तौर-तरीकों से हमको बाहर आना पड़ेगा। हमें उसका input cost कम हो, zero budgeting खेती के जो प्रयोग चल रहे हैं उसको सफलता मिल रही है। उत्पादन में कोई कटौती नहीं आती है। क्वालिटी आज के holistic healthcare के जमाने में बढ़ रही है।
हम सबने राजनीतिक से परे होकर के किसी कार्यक्रम को सरकारी कार्यक्रम माने बिना ये देश के किसानों की भलाई के लिए है, हमें मिलकर के चलना होगा। हमें किसानों का hand holding करना पड़ेगा। हमनें corporate world agriculture sector में उनका कोई investment ही नहीं है। उनको हमें प्रेरित करना पड़ेगा, उनके लिए कुछ नए नीति-नियम बनाने पड़ेगें वरना कोई ट्रैक्टर बना दे और वो मानता है कि उसने investment कर दिया। हमें तो प्रत्यक्ष food processing में, warehouses बनाने में, cold storage बनाने में, corporate world का investment, ये समय की मांग है और उसको अब बल देने के लिए हमें काम करना चाहिए।
किसानों को APOs द्वारा अधिक से अधिक अवसर देकर के उनके लिए बीज से लेकर के बाजार तक की एक व्यवस्था खड़ी हो, जिसके कारण हमारा agriculture sector में export एक बहुत बड़ी अवसर है, बहुत बड़ी संभावना है। उन क्षेत्रों को हमें बल देना पड़ेगा।
पिछली बार जब 2014 में हमने देखा दाल के भाव, यही issue बन गया था। लेकिन देश के किसान का मिजाज देखिए जब मैंने simple request की थी कि आप pulses के लिए आगे आइए और मेरे देश के किसानों ने pulses के लिए देश की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए भरपूर काम किया। दलहन का हुआ- अब हमें देश के किसानों को तिलहन के लिए प्रेरित करना चाहिए और देश को एक बूंद भी तेल import न करना पड़े, edible oil.
मैं समझता हूं देश के किसान को प्रेरित कर सकते हैं उसको जोड़ सकते हैं। इन चीजों को लेकर के एक futuristic vision के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था किसान की ताकत और देश की requirement इसको हम जोड़कर के काम कर सकते हैं, उसकी दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।
माननीय अध्यक्ष जी ये बात सही है आलोचना करने के लिए आंकड़ो का हर प्रकार से उपयोग हो सकता है। लेकिन क्या इस देश का सपना कोई किसी के जमाने में कुछ हो तो बड़ा आनंद का विषय है लेकिन किसी और के समय हो तो बहुत बुरा.... इसी सदन में जब हम अर्थव्यवस्था में 11 या 13 नंबर में जब पहुंचे थे तो इतना बड़ा उमंग और उत्साह के साथ बैंच थपथपाई जा रही थी और बहुत बड़े achievement के रूप में इस चीज को प्रदर्शित किया गया था। 11 या 13 पर पहूंचे थे लेकिन जब छ: पर पहूंचे तो ऐसा लग रहा था कि ऐसा क्या हो गया भई। अरे देश वही है जी हम भी देश के लोग हैं, 11 पर जाने के पर आनंद आता है तो 6 पर तो और आना चाहिए।
कब तक, कब तक इतने ऊंचे रहेंगे कि नीचे दिखाई न दे और इसलिए five trillion dollars की economy, क्यों, हम सबका सपना क्यों नहीं होना चाहिए? हम सबने मिलकर देश को five trillion ले जाएंगेतो किसका नुकसान होने वाला है जी? सबका फायदा होने वाला है। और मैं मानता हूं कि इसके लिए हम सबने मेहनत करनी चाहिए और उस दिशा में आगे जाना चाहिए। एक सपना लेकर के चलना चाहिए और मुझे विश्वास है हमारे देश में make in India मजाक बहुत उड़ा लिया लेकिन क्या कोई इस बात से इन्कार कर सकता है कि देश में make in India होना चाहिए।
माननीय अध्यक्ष जी, मैं किसी की आलोचना करने के लिए नहीं न ही मैं अपना समय बर्बाद करता हूं, मुझे करने के लिए बहुत काम है। लेकिन देश को कुछ चीजों की जानकारी देना जरूरी होता है। हमारे देश के पास करीब 200-225 साल का आयुष बनाने का experience है, 200-225 साल, और जब देश आजाद हुआ तब इस देश के पास 18 ऐसी factories थी जो आयुष का निर्माण करती थी और देश जब आजाद हुआ उस समय चाइना आयुष के क्षेत्र में जीरो जगह पर था, जीरो... उसके पास कोई अनुभव नहीं था न कोई फैक्ट्री थी। आज चाइना दुनिया में अपने defense की चीजें एक्सपोर्ट करता है। और हम दुनिया के सबसे बड़े importer हैं। इस सच्चाई से हमें देश को बाहर लाना है। make in India की मजाक उड़ा कर क्या करेंगे जी, हो सकता है रात को अच्छी नींद आ जाएगी लेकिन देश का तो भला नहीं होगा। और इसलिए हां.... और अच्छा कैसे कहें।
अध्यक्ष जी, मैं आपका बहुत आभारी हूं और मैं सदन का भी आभारी हूं, कि मुझे अवसर दिया। भारत दुनिया के पहली पांच economy में कैसे प्रवेश करे। भारत export में कैसे बढ़ावा दें, make in India में कैसे बढ़ावा दें, startup की दुनिया में हमारे नौजवान बहुत कर रहे हैं। जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और अब जय अनुसंधान। हम देश में इन चीजों को कैसे बल दें। और हम हमारे नौजवानों को रोजगार भी दें। हमारे देश में tourism की बहुत संभावनाएं हैं, लेकिन हमने ही अपने देश के विषय में ऐसा हीन भाव पैदा कर दिया और उसके कारण विश्व के लोगों को हिन्दुस्तान के विषय में गर्व हो आकर्षित करनें में, हम कम पड़ गए।
स्वच्छता के अभियान ने एक ताकत दी है। हम tourism पर बल दे सकते हैं। और भारत में रोजगार की संभावनाए बढ़ सकती हैं। और दुनिया में भारत की एक नई पहचान tourism के माध्यम से हम कर सकते हैं। हमने इन चीजों को आगे बढ़ाना है। आने वाले दिनों में देश को आधुनिक infrastructure की ओर ले जाना है। 100 लाख करोड़ रुपया, ये भी कम पड़ जाएंगे इतनी देश को requirement है।
लेकिन इतने बड़े सपने को लेकर के हमने आगे बढ़ना है और जो भी व्यवस्थाएं हमें मिल सकती है दुनिया भर से, उन सारी व्यवस्थाओं का उपयोग करना है। और इन सारी चीजों के पीछे हमारा सपना- नया भारत, हमारा सपना आधुनिक भारत- और हमारा सपना ease of living. सामान्य मानवी की जिंदगी में सुगमता, वो अपने सपनों को साकार करने के लिए वो सारे अवसर उसके पास उपलब्ध हों। इस प्रकार की व्यवस्थाओं को विकसित करना और उसी बातों को लेकर के और चाहे गांव हो या शहर हो, हर एक के लिए समान अवसर को लेकर के हम आगे बढ़ना चाहते हैं।
आज दुनिया में हम demographic dividend की बात करते हैं, देश के पास युवा शक्ति है। लेकिन क्या विश्व की आवश्यकता के अनुसार हम हमारे युवा को तैयार कर पा रहे हैं? हमें बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। skill development की बात हो तो हमें उसके scale को भी बढ़ाना पड़ेगा और हर scope को हमें capture करना पड़ेगा। और हम आधुनिकता की दिशा में कैसे ले जाएं। राष्ट्रपति जी ने इस बात को आगे बढ़ाया है।
सरकार ने एक मार्किट के लिए JAM की व्यवस्था की है। मैं चाहूंगा कि जहां भी आपकी भी राज्य सरकारें हों, जिस दल की हों, देश JAM portal का उपयोग करे। बहुत बड़ी मात्रा में पैसे बच सकते हैं और बहुत लोगों की मदद हो सकती है। और छोटे से छोटे लोगों को भी अपना उत्पाद सरकार के दरवाजे तक पहुंचाया जा सकता है। उस दिशा में हमें काम करना चाहिए। ये मेरा आग्रह है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई हमारी जारी रहेगी। हमें इसलिए कोसा जा रहा है कि फलाने को जेल में क्यों नहीं डाला! ये इमरजेंसी नहीं है कि सरकार किसी को जेल में डाल दे ये लोकतंत्र है। ये काम न्यायपालिका का है। हम कानून से चलने वाले लोग हैं और किसी को जमानत मिलती है तो enjoy करें उसमें क्या है। बदले के भाव से काम नहीं होना चाहिए लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी। जितना भी ईश्वर ने हमें बुद्धि, शक्ति दी है लेकिन जो भी करेंगे ईमानदारी से करेंगे, किसी के प्रति हीनभाव से नहीं करेंगे और देश ने हमें इतना दिया है.... इतना दिया है, हमें गलत रास्ते पर जाने की जरूरत नहीं है। Technology का उपयोग बहुत बड़ी मात्रा में काम आ सकता है।
माननीय अध्यक्ष जी, आतंकवाद के विषय में देश में मतभेद क्यों होना चाहिए... ये मानवता के लिए बहुत बड़ा संकट है और ये मानवता को चुनौती है, जो भी मानवता में विश्वास रखते हैं उन सबने इकट्ठा होकर के, इस बात को लेकर के लड़ना होगा।
हम महिला सशक्तिकरण की बात करें- कांग्रेस को कई बार अच्छे अवसर मिले, लेकिन पता नहीं क्यों .... इतना ऊंचे हैं कि कुछ चीजें दिखती नहीं छुप जाती है। 50 के दशक में uniform civil code की चर्चा कर रहे थे, कांग्रेस के पास अवसर था, लेकिन कांग्रेस उसको miss कर गई। और Hindu code bill लाकर के उन्होंने अपनी गाड़ी चला ली।
उसके 35 साल बाद कांग्रेस को दूसरा अवसर मिला। शाहबानों का- सुप्रीम कोर्ट ने पूरी मदद की थी... और देश में एक gender equality के लिए एक अच्छा सा वातावरण की संभावना बनी लेकिन उस ऊंचाई ने नीचे की चीजे देखने से मना कर दिया और वो miss कर गया..... आज 35 साल के बाद फिर से एक बार कांग्रेस के पास मौका आया है....हम बिल लेकर के आएं हैं ये देश के नारी के गौरव का इसको किसी भी संप्रदाय से जोड़ने की आवश्यकता नहीं है।
मैं चाहूंगा कि कांग्रेस पार्टी विशेषकर से एक बात जो उस समय शाहबानों का जब चल रहा था। उस सारे कारोबार में जो मंत्री थे उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में जो बात कही है ... चौकाने वाली है... मेरे पास उसका सत्यापन करने के लिए कोई अवसर नहीं हैं, मैंने जो सुना है वो मैं बताता हूं। उन्होंने उस समय के कांग्रेस के मंत्रियों के मुंह से क्या बातें निकलती थी वो उन्होंने कही है और उन्होंने कहा है कि जब वो शाहबानों का मसला चल रहा था। तब कांग्रेस के किसी मंत्री ने कहा था कि मुसलमानों के उत्थान की जिम्मेदारी कांग्रेस की नहीं है। देखिए गंभीर बात है..... ‘मुसलमानों के उत्थान की जिम्मेदारी कांग्रेस की नहीं है। If they want to lie in the gutter let them be’ हमारे देश के नागरिक हैं उनको आगे ले जाने के लिए ...मिल जाएगा, मिल जाएगा, मिल जाएगा जी मिल जाएगा। मैं you tube की link भेज दूँगा आपको।
माननीय अध्यक्ष जी, मैं ज्यादा समय नहीं लेता हूं लेकिन जो राष्ट्रपति जी ने गांधी 150 और आजादी-75 की बात कही है, ... हम देखते हैं हमारे देश में किसी न किसी कारण से अधिकारों पर ही केंद्रित रही सारी बातें। हर कोई अधिकारों से जुड़ता रहा, अधिकारों की चिंता करता रहा। ये एक ऐसा अवसर है कि हम देश को paradigm shift करके अधिकार से कर्तव्यों की तरफ ले चलें। और जनप्रतिनिधि का भी ये काम है जनचेतना जगाना, जनप्रतिनिधि का काम है ऐसे समय में नेतृत्व करना और ये विषय ऐसा नहीं है जो मैं कह रहा हूं... हममे से हर किसी ने सुना भी है कि कर्तव्य की क्या ताकत होती है।
महात्मा गांधी कहा करते थे- every right carries with it a corresponding duty ! लोहिया जी कहते थे, कर्तव्य निभाते समय नफा-नुकसान नहीं देखा जाता। और मैं इस quote को जरा विस्तार से बताना चाहता हूं... बहुत पुरानी बात है जो कोट है “दुनिया को भारत की एक बड़ी सीख ये है कि यहां सबसे पहले कर्तव्य आते हैं और इन्हीं कर्तव्यों से अधिकार निकलते हैं। आज के आधुनिक भौतिकवादी विश्व में जहां हर तरफ टकराव दिखाई पड़ते हैं, वहां हर कोई अपने अधिकारों और सुविधा की बात करता है, शायद ही कोई कर्तव्यों की बात करता हो, यही टकराव की वजह है। ये वास्तविकता है कि अधिकारों और सुविधाओं के लिए ही हम लड़ाई लड़ते हैं लेकिन ऐसा करने में हम अगर कर्तव्यों को भूल जाएं तो ये अधिकार और सुविधाएं भी हमारे पास नहीं रह पाएंगी।”
मैं समझता हूं ये साफ-साफ दर्शन है। हम लोगों का दायित्व बनता है कि जिस महापुरुष ने ये बात कही है उसके बाद उसको भूला दिया गया है- उस महापुरुष का पुन: स्मरण करते हुए हम इस बात को आगे ले जा सकते हैं क्या? और वो महापुरुष थे जिन्होंने कहा था 14 जुलाई 1951 जब चुनाव से पहले कांग्रेस का पहला manifesto घोषित हो रहा था। उस घोषणा के समय ये पैराग्राफ पंडित नेहरू जी ने बोला था।
मैं समझता हूं उस पंडित नेहरू जी ने जो सपना 1951 में देखा था, उस सपना को पूरा करने के लिए, देश को कर्तव्य की राह पर ले जाने के लिए, पंडित जी की उस इच्छा को समझ करके हम आगे बढ़ सकते हैं क्या?... हम सब मिल करके तय करें और हम आगे चलने का प्रयास करें।
हमारा देश का अनुभव ऐसा है कि जब महात्मा गांधी ने देश के नौजवानों को कहा था किताबें छोड़ों, आजादी के लिए चलो- लोग निकल पड़े थे। गांधी जी ने कहा था विदेशी छोड़ो स्वदेशी करो- लोग चल पड़े थे। लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था एक टाइम खाना छोड़ दो अन्न का उत्पादन करो- देश ने कर दिया। मेरे जैसे छोटे व्यक्ति ने कहा कि गैस की सब्सिडी छोड़ दो- लोगों ने छोड़ दी। मतलब कि देश तैयार है ....देश तैयार है।
आइए... हम सब मिल करके एक नए भारत के निर्माण के लिए, आधुनिक भारत के निर्माण के लिए राजनीति की अपनी सीमाओं से भी ऊपर देश होता है, दल से बड़ा देश होता है। देश के करोड़ों लोगों की आशा-आंकाक्षाएं हैं, उसको पूरा करने के लिए राष्ट्रपति जी ने जो हमें मार्गदर्शन दिया है, जो दिशा-निर्देश दिया है। राष्ट्रपति जी का अभिनंदन करते हुए, उनका धन्यवाद करते हुए... हम सिर्फ उनके भाषण का ही धन्यवाद ही नहीं, उस भाषण के spirit को जी करके राष्ट्रहित में कुछ कर करके सत्य धन्यवाद पारित करें।
इसी एक अपेक्षा के साथ मैं सभी इस चर्चा को समृद्ध बनाने वाले आदरणीय सदस्यों का अभिनदंन करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।
आपका भी अध्यक्ष जी बहुत-बहुत धन्यवाद।