भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी : सब से पहले, भारत में आपका स्वागत है। यह आपकी पहली भारत यात्रा है और मुझे ख़ुशी है कि पहले ही दौरे में हमारी मुलाकात हो गई। मुझे उम्मीद है कि यह अवसर, आपका यह दौरा भारत आने के लिए आपको और अधिक अवसर प्रदान करेगा।

टाइम : धन्यवाद, मैं भी यही उम्मीद करता हूँ। सबसे पहले, सरकार के एक साल पूरे होने पर आपको बधाई। कार्यालय में आपके लगभग अब एक वर्ष हो गए हैं। इसलिए, मैं यह जानने को उत्सुक हूँ कि किस चीज़ ने आपको सबसे ज्यादा हैरान किया। आप अक्सर एक बाहरी व्यक्ति होने की बात करते हैं। अब आप पूर्ण रूप से अंदरूनी हैं, आपको क्या लगता है कि आप जिन चीजों को करना चाह रहे हैं, उसके मजबूत पक्ष क्या हैं, उसके लिए क्या-क्या अवसर हैं और उसमें क्या-क्या परेशानियां हैं?

मोदी : पिछले चालीस वर्षों से अधिक समय से, मुझे पूरे भारत भर में सभी जगह की यात्रा करने का अवसर मिला है। शायद भारत के 400 से अधिक जिलों में, मैं रात में रहा हूँगा। इसलिए मैं भारत की ताकत से पूरी तरह वाकिफ हूं, मुझे यह भी पता है कि हमें किन-किन चुनौतियों का सामना करना है, मैं इससे अनजान नहीं हूँ। जो चीज़ मेरे लिए अपेक्षाकृत नई थी, वह है संघीय सरकार का ढांचा, सिस्टम, जिस तरह हम संघीय स्तर पर संचालन करते थे। यही वो चीज़ है जिसके बारे में मुझे जानकारी नहीं थी, जब तक में सरकार में आ नहीं गया।

मेरे अनुसार मेरी सबसे बड़ी चुनौती थी कि मेरे लिए संघीय सरकार की संरचना नई चीज़ थी। यह मेरे लिए नया था, मैं इसके लिए नया था, इसलिए एक-दूसरे के नजरिए को समझने की जरुरत थी। लेकिन बहुत ही कम समय में मैंने कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर इस अंतर को समाप्त कर दिया। अब सबकी सोच मिलती है। मैं उन्हें अच्छी तरह से समझता हूँ, वे मुझे अच्छे से समझते हैं। इस कारण से, बहुत ही कम समय में, हम संघीय ढांचे के अंतर्गत एक सरल एवं सहज कार्यप्रणाली बनाने में सक्षम हुए हैं।

मैं कई वर्षों तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहा। मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि केंद्र सरकार भारत के राज्यों के बारे में क्या सोचती है और राज्य सरकार संघीय सरकार के बारे में क्या सोचती है। मैं इस सोच, यह मूल विचार कि कैसे संघीय सरकार और राज्य सरकार एक-दूसरे को समझते हैं, को बदलना चाहता था। मैं चाहता था कि संघीय सरकार और राज्य सरकार एक साथ मिलकर देश के लिए काम करें। मैं मूल रूप से यह सोच बदलना चाहता था कि संघीय सरकार राज्य सरकार को देती है और राज्य सरकार संघीय सरकार से प्राप्त करती है। और मैं समझता हूँ कि बहुत ही कम समय में बहुत हद तक इस लक्ष्य को प्राप्त करने में हम कामयाब रहे हैं।

इसके लिए मैंने एक शब्द गढ़ा - सहकारी संघवाद (कोआपरेटिव फेडरलिस्म)। इसके पीछे मूल विचार यह है कि यह विभिन्न राज्य सरकारों को देश के विकास के लिए एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए प्रोत्साहित करेगा। मूलतः जो मैंने करने की कोशिश की है, और मुझे लगता है कि हम ऐसा करने में कामयाब रहे हैं कि हम इसे एक ऐसा देश बनाना चाहते हैं जो विकास के लिए एक स्तंभ पर निर्भर न होकर 30 स्तंभों पर निर्भर हो; भारत के 29 राज्य और संघीय केंद्र ये 30 स्तंभ हैं।

इसी तरह, जब मैं संघीय सरकार में आया तो मैंने देखा कि भारत सरकार के विभिन्न विभाग अलग-अलग काम करते थे, यह मेरा अनुभव था। प्रत्येक विभाग अपने आप में एक सरकार के रूप में काम करता था। इसका कारण यह था कि पिछले तीन दशकों से, संघीय स्तर पर बहुमत की सरकार नहीं रही; गठबंधन की सरकार रही जिसका सरकार के कार्यप्रणाली पर विशेष प्रभाव रहा और इस वजह से यह अलगाववादी स्थिति बन गई। मेरा प्रयास यह रहा है कि इस प्रक्रिया को समाप्त कर एक सामूहिक विचार प्रक्रिया की शुरुआत की जाए जो हम इस संघीय सरकार में लेकर आए। और मुझे लगता है कि बहुत कम समय में हम यह हासिल करने में कामयाब रहे हैं जहाँ सभी सामूहिक तौर पर सोचते हैं और सब लोग एक साथ मिलकर काम करते हैं। और इससे संघीय सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत हुई है जिसमें समस्याओं को सामूहिक तरीके से हल किया जाता है न कि व्यक्तिगत तरीके से।

मैं संघीय सरकार को संकलित इकाई न मानकर संगठित इकाई मानता हूँ जहाँ हर कोई एक दूसरे की समस्याओं को समझता है और उन समस्याओं का समाधान करने के लिए सामूहिक रूप से एक साथ काम कर सकता है।

टाइम : अमेरिका और अमेरिका-भारत संबंधों की बात करें तो राष्ट्रपति ओबामा ने आपकी काफी तारीफ की है और हाल ही में टाइम 100 पर भी उन्होंने आपकी प्रशंसा की है आप भारत को बदलने, आपके अनुसार सरकार में परिवर्तन लाने के लिए कार्यरत हैं, आप क्या सोचते हैं कि अमेरिका को इस देश को कैसे देखना चाहिए – एक साझेदार के रूप में, एक आर्थिक प्रतियोगी के रूप में? क्या “मेक इन इंडिया” से भारत में रोजगार के अवसर बन पाएंगे? सेवा क्षेत्र के मामले में जो विचार-विमर्श चल रहा है, क्या वो विनिर्माण क्षेत्र में भी होगा? भारत को अमेरिका किस रूप में देखता है? 

मोदी : मैं राष्ट्रपति ओबामा का अत्यंत आभार व्यक्त करता हूँ जिस तरह उन्होंने विचारशील और उदार तरीके से मेरा वर्णन किया है। उन्होंने हाल ही में टाइम पत्रिका में जो लिखा है, मैं उसके लिए भी उनका बहुत आभारी हूँ।

अगर मुझे एक शब्द में भारत-अमेरिका संबंधों का वर्णन करना हो तो मैं कहूँगा कि हम स्वाभाविक सहयोगी हैं। मेरा मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध, और दोनों देशों ने अपने आप में, एक अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

भारत और अमेरिका के बीच संबंध कैसे होने चाहिए, भारत अमेरिका के लिए क्या कर सकता है, अमेरिका भारत के लिए क्या कर सकता है, मेरे अनुसार यह एक सीमित नजरिया है। मैं मानता हूँ कि हमें इसे ऐसे देखना चाहिए कि भारत और अमेरिका एक साथ दुनिया के लिए क्या कर सकते हैं। हम संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हमारे संबंधों को इसी दृष्टिकोण से देखते हैं।

टाइम : आप इस वर्ष अभी तक 16 देशों का दौरा कर चुके हैं। आप और किसे अपना स्वाभाविक सहयोगी मानते हैं?

मोदी : मैं इस प्रश्न को पत्रकारिता के नजरिये से अपेक्षित मानता हूँ! मैं मानता हूँ कि प्रत्येक देश का अपना महत्व है और सभी संबंधों को इसके अपने परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। दुनिया के कई देशों के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी है। कई अन्य देश ऐसे हैं जिनके साथ हमारे संबंध कुछ अन्य मामलों में व्यापक हैं। शायद कुछ ऐसे देश भी हैं जो शुरू से ही हमारे स्वाभाविक सहयोगी हैं लेकिन हमें स्वाभाविक सहयोगी बनने के लिए कुछ चीजों पर अभी भी काम करने की जरुरत है। इसलिए मैं मानता हूँ कि हमें सभी संबंधों को एक समग्र परिप्रेक्ष्य में देखने की जरुरत है और भारत सभी देशों के साथ अपने रिश्तों को कैसे देखता है, यह भी काफी महत्वपूर्ण है।

उदाहरण के लिए अगर आप भारत-अमेरिका संबंधों पर नजर डालें तो इस रिश्ते में प्रवासी भारतीयों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाँ यह जरुर है कि हम लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करते हैं लेकिन भारत और अमेरिका के बीच मैत्री बंधन को मजबूत बनाने और दोनों देशों के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों को रेखांकित करने में प्रवासी भारतीयों की बड़ी भूमिका है।

इसके अलावा हमारा वैश्विक नजरिया... हमारे साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के अलावा, दुनिया के अलग-अलग स्थितियों पर विश्व को देखने के हमारे नजरिये में समानता है। इसलिए, अगर मुझे अन्य देशों के साथ संबंधों का वर्णन करना हो तो मैं कहूँगा कि अन्य देशों के साथ भारत के सभी संबंधों को एक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए जोकि एक दूसरे से काफी अलग है।

टाइम : प्रधानमंत्री, आप बहुत जल्द ही चीन की यात्रा पर जाएंगे। चीन दक्षिण एशिया क्षेत्र सहित दुनिया के मंच पर तेजी से अपना प्रभुत्व बना रहा है। चीन और भारत के बीच पहले ही सीमा युद्ध हो चुका है, और कभी-कभी रिश्ते, माहौल तनावपूर्ण हो सकता है। आपकी चीन यात्रा और चीन के नेताओं के साथ आपकी बैठक, चीन के साथ आप किस तरह का रिश्ता बनाना चाहते हैं? क्या आपको लगता है कि चीन के नेताओं आपके संबंध अच्छे हो सकते हैं और क्या भारत और चीन कभी दोस्त हो सकते हैं?

मोदी : 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद, 90 के दशक में भारत और चीन सीमा पर शांति और सौहार्द के लिए एक फ्रेमवर्क पर सहमत हुए। इसके अलावा, आज जब हम 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं, लगभग पिछले तीन दशकों से इस समय तक भारत-चीन सीमा पर बड़ी शांति और सौहार्द है। यह एक अस्थिर सीमा नहीं है। पिछले 25 वर्षों से अधिक समय से वहां एक भी गोली नहीं चली है। इससे वास्तव में यह पता चलता है कि दोनों देशों ने इतिहास से सीखा है।

जहाँ तक विशेष रूप से भारत-चीन संबंधों की बात है, यह सच है कि भारत और चीन के बीच एक लंबी सीमा है और इसका एक बड़ा हिस्सा विवादित है। फिर भी, मैं मानता हूँ कि दोनों देशों ने पिछले कुछ दशकों में आर्थिक सहयोग सुनिश्चित करने में काफी परिपक्वता दिखाई है और यह सहयोग पिछले 20 से 30 वर्षों में बढ़कर उस स्तर पर पहुँच गया है जहाँ आज दोनों देशों के बीच व्यापक व्यापार, निवेश और संबंधित परियोजना है। दुनिया के मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए, हम ऐसी जगह पर हैं जहाँ हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन का सहयोग कर रहे हैं लेकिन अगर वाणिज्य और व्यापार की बात आती है तो हम चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में भी हैं।

आपने इस क्षेत्र में और दुनिया में चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में बात की। मुझे पूरा विश्वास है कि दुनिया में एक देश ऐसा नहीं है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाना नहीं चाहता है, भले ही उसकी दस लाख हो या उससे ज्यादा। इसलिए मैं मानता हूँ कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देश अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं, अलग-अलग देशों के साथ अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को आगे बढ़ाना चाहते हैं, यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मेरा पूरा विश्वास है कि  अंतर्राष्ट्रीय नियमों और विनियमों और मानवीय मूल्यों के प्रति पूर्ण सम्मान, इन दो चीजों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक देश का यह अधिकार है कि वह वैश्विक समुदाय के लाभ के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति और अपना प्रभाव बढ़ाये।

टाइम : मैं इस पर एक ओर प्रश्न पूछना चाहता हूँ। चीन की अपनी यात्रा से पहले क्या आप राष्ट्रपति सी को एक विशेष संदेश भेजना चाहेंगे? यात्रा से पहले क्या आप उन्हें कुछ कहना चाहेंगे?

मोदी : मुझे पूरा विश्वास है कि दोनों देशों के बीच के रिश्ते, भारत-चीन संबंध, ऐसे होने चाहिए कि एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिए हमें किसी तीसरे माध्यम की जरुरत नहीं होनी चाहिए वास्तव में हमें एक तीसरी इकाई के माध्यम से जाने के लिए एक की जरूरत नहीं होनी चाहिए। वर्तमान में हमारे बीच ऐसे ही संबंध हैं।

टाइम : अमेरिका धीरे-धीरे अफगानिस्तान से अपनी सेना हटा रहा है। मैं सोच रहा हूँ कि तालिबान के सत्ता में लौटने और आईएसआईएस के खतरे से क्या आप चिंतित हैं और इन स्थितियों पर आपकी क्या राय है।

मोदी : आपके प्रश्न के दो अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और मैं इन दोनों का जवाब देने की कोशिश करूंगा। पहला है – भारत और अफगानिस्तान के बीच संबंध। यह सर्वविदित है कि भारत और अफगानिस्तान के संबंध बहुत पुराने हैं और दोनों एक दूसरे के काफी करीब हैं। लोग इन दिनों बुनियादी ढांचे के विकास की बात करते हैं। अगर आप इतिहास देखें तो आप इस क्षेत्र के पूर्व राजाओं में से एक शेरशाह सूरी को देखेंगे जिन्होंने कोलकाता-काबुल ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण किया था।

भारत-अफगानिस्तान के निकटतम संबंध में कोई नई बात नहीं है। यह घनिष्टता अति प्राचीन काल से है। एक करीबी दोस्त होने के नाते, भारत की आजादी के बाद से ही हम अफगानिस्तान के विकास और प्रगति के लिए काम करते आए हैं और जो कुछ भी आवश्यक होगा, वो हम करते रहेंगे।

राष्ट्रपति अशरफ घानी पिछले सप्ताह यहाँ आये हुए थे। हमारी अच्छी मुलाकात हुई और हमने व्यापक विचार-विमर्श किया। विचार-विमर्श के मुख्य बिंदुओं में से एक था - अफगानिस्तान में विकास और प्रगति के लिए रोडमैप। हम पूर्व में इसके लिए बड़े पैमाने पर अपनी प्रतिबद्धता जता चुके हैं। वास्तव में, भारत अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण और विकास के लिए लगभग 2.2 अरब डॉलर की सहायता दे रहा है। अफगानिस्तान के विकास के लिए आगे जो कुछ भी करना आवश्यक होगा, उसके लिए भी हम प्रतिबद्ध हैं। और न ही हम सिर्फ़ प्रतिबद्ध हैं बल्कि उन प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए हम विशेष एवं ठोस कदम भी उठा रहे हैं।

जहाँ तक अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की बात है तो पिछले साल सितंबर में अमेरिकी दौरे के दौरान इस मुद्दे पर मेरी राष्ट्रपति ओबामा के साथ विस्तृत चर्चा हुई थी। मैंने उन्हें कहा था कि सैनिकों को वापस बुलाने का निर्णय अमेरिकी सरकार का पाना एक स्वतंत्र निर्णय जरूर है लेकिन अफगानिस्तान में एक स्थिर सरकार के लिए यह जरुरी है कि उनकी सुरक्षा जरूरतों को समझने के लिए अफगान सरकार के साथ विचार-विमर्श हो क्योंकि अमेरिकी सैनिकों को वहां से वापस बुलाया जा रहा है। और मैंने यह भी कहा कि अमेरिकी सैनिकों के वहां से हटने के बाद हम सभी को अफगानिस्तान की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करना होगा। बाकी का निर्णय स्वाभाविक रूप से अमेरिकी सरकार का है। लेकिन हमारा उद्देश्य अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना है और उस के लिए जो भी जरुरी होगा, हम करेंगे।

जहाँ तक तालिबान और आईएसआईएस का संबंध है, मैं यह मानता हूँ कि अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय को समग्र परिप्रेक्ष्य का विस्तार से आत्मनिरीक्षण करने की जरुरत है, जिस तरह से वे अंतर्राष्‍ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के मुद्दे को देख रहे हैं। उदाहरण के लिए, 1993 तक कई देश इस बुराई की ताकत को पूरी तरह से नहीं समझ पाये थे। वे इसे देखते थे और इसे अंतर्राष्‍ट्रीय बुराई के रूप में न देखकर अलग-अलग देशों की कानून और व्यवस्था संबंधी स्थिति मानकर इसकी सराहना करते थे।

वास्तव में, अगर आप बारीकी से स्थिति का विश्लेषण करें तो देशों को मानवीय मूल्यों में विश्वास करते हुए एक साथ मिलकर आतंकवाद से लड़ने की जरूरत है। हम आतंकवाद को नेमप्लेट से नहीं देखना चाहिए – किस समूह के हैं, उनके नाम क्या हैं, उनकी भौगोलिक स्थिति क्या है, आतंकवाद के शिकार कौन हुए... मेरे अनुसार, हमें इसे अलग-अलग टुकड़ों में नहीं देखना चाहिए। बल्कि हमें आतंकवाद की विचारधारा को व्यापक रूप में देखना चाहिए, इसे मानवता के खिलाफ चल रही एक लड़ाई के रूप में देखना चाहिए क्योंकि आतंकवादी मानवता के खिलाफ लड़ रहे हैं।

अतः मानवीय मूल्यों में विश्वास करने वाले सभी देशों को एक साथ आकर वैचारिक शक्ति के रूप में इस बुराई के साथ लड़ना होगा और इसे तालिबान, आईएसआईएस, या अलग-अलग समूहों या नामों के रूप में न देखकर इसे व्यापक स्तर पर देखने की जरूरत है। ये अलग-अलग समूह या नाम तो बदलते रहेंगे। आज आपको तालिबान या आईएसआईएस दिख रहा है; कल हो सकता है आपको कोई और नाम मिले। और इसलिए, देशों को समूह, व्यक्तिगत नाम, भौगोलिक स्थिति और यहाँ तक कि किस तरह के लोग आतंकवाद के शिकार हुए हैं, इसे छोड़कर एकीकृत और सामूहिक रूप में आतंकवाद से लड़ने की जरुरत है।

टाइम : अगर सब साथ मिलकर लड़ें तो हम उसमें क्या अलग कर सकते हैं और अगर हम इस संकट को आपके दृष्टिकोण से देखें तो इस संकट से निपटने के लिए क्या कदम उठाये जाएंगे?

मोदी : मेरे अनुसार पहला कदम जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय निश्चित रूप से उठा सकता है, वह है, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के लिए संयुक्त राष्ट्र व्यापक समझौता, जो पिछले कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र में पड़ा हुआ है। मैं मानता हूँ कि यह हमारा पहला कदम हो सकता है। कम से कम इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि हम किसे आतंकवादी के रूप में देखते हैं और किसे आतंकवादी के रूप में नहीं देखते हैं। आतंकवाद की पारिभाषिक पहलुओं को पहचाना जा सकेगा।

दूसरी चीज़ जो यहाँ महत्वपूर्ण है, वह यह है कि आतंकवाद का विश्लेषण या इसे विशुद्ध रूप से राजनीतिक नजरिए से न देखा जाए बल्कि इसे मानवता के खिलाफ चल रही लड़ाई के रूप में देखा जाना चाहिए, जैसा मैंने पहले भी कहा था। अगर आप सीरिया के अन्दर के आतंकवाद और बाहर के आतंकवाद को अलग-अलग नजरिए से देखेंगे तो फिर समस्या होगी। अगर आप आतंकवाद को अच्छे और बुरे आतंकवाद के रूप में देखना शुरू कर देंगे तो यह भी एक चुनौती होगी। अगर आप तालिबान को अच्छा तालिबान या बुरा तालिबान के रूप में देखते हैं तो इससे एक अलग समस्या होगी।

मेरा मानना है कि हमें व्यक्तिगत रूप से इन चीजों को नहीं देखना चाहिए। हमें अलग-अलग होने की बजाय एक साथ मिलकर इस समस्या का समाधान करना चाहिए – अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई में हमें एक साथ मिलकर प्रयास करना चाहिए न कि अलग-अलग रहकर। मेरा विश्वास है कि यह आसानी से किया जा सकता है।

मेरे अनुसार दूसरी चीज़ जो करने की जरुरत है, वह है – हमें आतंकवाद और धर्म को एक-दूसरे से अलग करने के लिए निश्चित कदम उठाने होंगे। पिछले साल सितंबर में और इस साल जनवरी में, विशेष रूप से पिछले साल सितंबर में मैंने जब राष्ट्रपति ओबामा से मुलाकात की तो मैंने उनसे अनुरोध किया कि आतंकवाद को धर्म से अलग करने में वे प्रमुख भूमिका निभाएं। मेरा विश्वास है कि अगर हम इस लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम हुए और इस मार्ग पर आगे बढ़े तो इससे कम से कम भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने वाली बात समाप्त हो जाएगी जो इसमें पूरी तरह से जुड़ी हुई है। इससे हमें उन आतंकवादियों को अशक्त करने में भी मदद मिलेगी जो आतंकवाद और धर्म को जोड़ते हैं।

आतंकवाद के खिलाफ हमारी सामूहिक लड़ाई में एक अन्य चीज़ जो महत्वपूर्ण है, वह है संचार प्रौद्योगिकी, आतंकवादी संचार पद्धति का प्रयोग करते हैं, और उनके वित्तपोषण का तरीका। आतंकवादी काले धन, ड्रग्स, हथियारों की तस्करी से जुड़े होते हैं। हमें यह पता लगाना होगा कि ये आतंकवादी हथियार कहाँ से प्राप्त करते हैं? वे संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग कहाँ से करते हैं? इसके लिए उन्हें पैसा कहाँ से मिलता है? कुछ पहलू ऐसे हैं जिसमें पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक साथ आने की जरूरत है और इन महत्वपूर्ण चीजों पर पूर्ण रोक लगाने की जरुरत है जिसके माध्यम से आतंकवादी संचार, वित्त और हथियार प्राप्त करने और इसका प्रयोग करने में सक्षम हो पाते हैं।

अगर हम अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के लिए संयुक्त राष्ट्र व्यापक समझौता को पास करा लेते हैं और अभी मैंने जो सब चीजें बताई हैं, उस पर हम कदम उठाते हैं तो इससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को लाभ मिलेगा और उन देशों को भी अशक्त करने में मदद मिलेगी जो आतंकवाद के समर्थन में खड़े हैं।

टाइम : प्रधानमंत्री जी, आपने धर्म को आतंकवाद से अलग करने की बात कही। आपने तालिबान का उल्लेख किया, आईएसआईएस का उल्लेख किया। दो दल और हैं जो अपनी गतिविधियों से दुनिया भर में सुर्खियों में हैं - बोको हराम और अफ्रीका में अल शबाब। वे सब दावा करते हैं कि वे जो कुछ कर रहे हैं, इस्लाम के लिए कर रहे हैं। आपको नहीं लगता कि इस्लाम समुदाय, दुनिया के इस्लामी नेताओं को अपने उग्र समुदाय को उदार बनाना चाहिए, शैक्षिक पहलुओं पर और कार्य करना चाहिए और इन समस्यायों से निपटने के लिए और अधिक सहयोग करना चाहिए?

मोदी : प्रारंभिक सवाल में तालिबान और आईएसआईएस का संदर्भ था। और इसलिए जब मैंने जवाब दिया और अपनी प्रतिक्रिया दी तो मैंने मूल रूप से यही कहा कि हमें इसे व्यक्तिगत समूहों से परे हटकर देखना चाहिए। मैंने तालिबान या आईएसआईएस के लिए विशेष रूप से नहीं कहा, लेकिन मैं मानता हूँ कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस समस्या को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरुरत है, न कि किसी व्यक्ति विशेष या समूह विशेष के परिप्रेक्ष्य में, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है।

मैं मानता हूँ कि आतंकवाद एक सोच का विषय है। यह सोच का विषय ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक बड़ा खतरा है। मैं भी इसे किसी विशेष धर्म या धार्मिक नेताओं के कार्यों से नहीं जोड़ रहा हूँ। मैं इसे एक ऐसी चीज मानता हूँ, जिसका मैंने उल्लेख भी किया है, मानवीय मूल्यों में विश्वास करने वाले देशों को एक साथ आगे आना होगा और अलग-अलग समूहों को व्यक्तिगत धर्मों के नजरिए से न देख कर सामूहिक तौर पर इससे लड़ने की जरूरत है।

टाइम : प्रधानमंत्री जी, अगर मैं दो चीजों पर बात करूं जो आपने पहले कही कि प्रत्येक देश अपना प्रभाव, प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की कोशिश करता है। कभी-कभी यह बहुत सकारात्मक नहीं होता है। एक यह कि अमेरिका और भारत एक साथ दुनिया में क्या-क्या कर सकते हैं। लेकिन एक चीज जो अभी अमेरिका कर रहा है कि वह यूक्रेन में रूस के प्रभाव को दबाने की कोशिश कर रहा है। क्या आप रूस के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का समर्थन करते हैं?

मोदी : इस समस्या को जी-20 शिखर सम्मेलन में उठाया गया था। राष्ट्रपति ओबामा और राष्ट्रपति पुतिन वहां मौजूद थे, और मैंने दोनों की उपस्थिति में अपनी बात रखी। संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देश हैं, संयुक्त राष्ट्र में प्रावधान है; और मेरा मानना है कि संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क के अंतर्गत जिस बात पर भी सहमति होती है, उसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पालन करना चाहिए।

टाइम : एक और बड़ा अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन अभी होने वाला है, वह है इस वर्ष पेरिस में जलवायु शिखर सम्मेलन। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत का क्या रूख होगा?

मोदी : पूरे विश्व में, अगर आप अत्यंत बारीकी से विभिन्न देशों की संस्कृति और इसकी सभ्यता के इतिहास का विश्लेषण करें, खासकर वे दशकों और सदियों से जिस जीवन शैली को जीते आए हैं, तो आप पाएंगे कि दुनिया के इस हिस्से, खासकर भारत, में इसके हजारों साल के इतिहास में, आर्थिक विकास को प्रकृति के साथ-साथ अपनाया गया है। दुनिया के इस हिस्से में, विशेष रूप से भारतीय सभ्यता में, मूल सिद्धांत यह है कि प्रकृति का दोहन एक अपराध है, और हमें प्रकृति से वही चीजें लेनी चाहिए जो हमारे लिए अत्यंत आवश्यक हैं, इससे ज्यादा हमें प्रकृति का दोहन नहीं करना चाहिए।

हल्के-फुल्के अंदाज में कहूँ तो भारतीय संस्कृति में एक आम प्रथा है कि... जब आप सुबह उठते हैं और बिस्तर से नीचे उतरते हैं, धरती माँ के ऊपर पैर रखते हैं, तो इससे उन्हें तकलीफ़ होती है। हम अपने बच्चों को पढ़ाते हैं कि यह पृथ्वी हमारी माता है, यह हमें बहुत कुछ देती है। इसलिए जब भी आप इस पर अपने पैर रखें तो पहले प्रणाम कर इनसे माफ़ी मांगें।

हम अपने सांस्कृतिक इतिहास में यह भी पढ़ाते हैं कि पूरा ब्रह्मांड एक परिवार है। उदाहरण के लिए, सोने के समय सुनाई जाने वाली भारतीय कहानियों, स्कूल की किताबें में कई उद्धरण हैं जिसमें सूर्य को दादा और चंद्रमा को मामा की संज्ञा दी गई है। इसलिए जब हम इन पहलुओं को एक परिवार के नजरिए से देखते हैं तो प्रकृति के साथ हमारा संबंध और गहरा और बिल्कुल ही अलग तरह का होता है।

जहाँ तक मुख्य रूप से COP21 का सवाल है, अगर आप पूरे विश्व को देखें, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को देखें, तो दुनिया का एक भाग जो इस कार्य में स्वभावतः आगे है, वह है दुनिया का वह भाग जिसमें हम रहते हैं। जहाँ तक मेरी अपनी विशिष्ट भूमिका और जिम्मेदारी का सवाल है, मैं इससे पूर्णतः अवगत और सजग हूँ। दरअसल, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, मेरी सरकार विश्व की शायद चौथी राज्य सरकार थी जिसने अपने राज्य में जलवायु परिवर्तन विभाग की स्थापना के थी। और हमने बारीकी से इसके कार्य को विकास नीति से जोड़ दिया, हमने राज्य में यही पद्धति अपनाई।

भविष्य में भी, जो पहल हम करने वाले हैं उसमें भी उस तरह की उर्जा के प्रयोग पर बल दिया जाएगा जो पर्यावरण के अनुकूल होंगे। उदाहरण के लिए, हमने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी पहल शुरू करते हुए अक्षय स्रोतों से 175 गीगावॉट - सौर क्षेत्र से 100 गीगावॉट और पवन क्षेत्र से 75 गीगावॉट उर्जा का लक्ष्य रखा है। वास्तव में, यह मेरी सरकार द्वारा की गई बहुत बड़ी पहल है।

मैंने एक और मिशन मोड परियोजना शुरू की है - स्वच्छ गंगा मिशन। यह मूल रूप से गंगा नदी को नवशक्ति के रूप में उभारने के लिए शुरू किया गया है। गंगा नदी की लंबाई लगभग 2,500 किमी है। भारत की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस नदी से जुड़ी हुई है। यह महज एक स्वच्छ गंगा पहल नहीं है, सिर्फ एक नदी की सफाई नहीं है; वास्तव में, यह विकास के लिए किया गया बहुत बड़ा पहल है जिसका प्राथमिक उद्देश्य ऐसा विकास करना है जो पर्यावरण के अनुकूल हो।

वास्तव में - और मैं पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से यह कहता हूँ – जो अपने देशों में पर्यावरण के अनुकूल विकास करने में विश्वास करते हैं, मैं उन्हें गंगा नदी की सफाई में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित करता हूँ, जो मैं मानता हूँ और जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि सही रूप में यह पर्यावरण के अनुकूल विकास का मॉडल है जो पर्यावरण के संरक्षण पर केंद्रित है।

मैंने पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न स्तरों पर मिशन मोड में ये कदम उठाये हैं। उदाहरण के लिए, एक स्तर ऊर्जा की बचत करने से संबंधित है। हमने एलईडी बल्बों की लोकप्रियता सुनिश्चित करने और इसे वितरित करने के लिए देशव्यापी अभियान शुरू किया। यह राष्ट्र स्तर पर कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा की खपत में कार्बन के स्तर को अनिवार्य रूप से कम करेगा।

भारत के किसानों के लिए, मैंने मृदा स्वास्थ्य कार्ड नामक एक पहल शुरू की है। इस प्रणाली के माध्यम से हम किसानों को उनकी मिट्टी के बारे बताएंगे कि जिस मिट्टी में वे खेती कर रहे हैं, वह मिट्टी कितनी स्वस्थ है या कितनी प्रदूषित है। यहाँ सोच यह है कि इस पूरे मुद्दे को वैज्ञानिक तरीके से देखा जाए और किसानों को रासायनिक उर्वरकों के कम उपयोग, जैविक खाद के उपयोग में वृद्धि आदि में किसानों को सलाह दी सके ताकि मिट्टी की उर्वरता को संरक्षित किया जा सके। जाहिर है, इससे देश में कृषि कार्य से पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। मैं भारत के हिमालयी क्षेत्र को पूरी दुनिया के लिए जैविक खेती का गढ़ बनाना चाहता हूँ।

एक दूसरे पहल की बात करूँ, बहुत छोटा सा पहल है, लेकिन देश में इसका पर्यावरण पर बहुत प्रभाव पड़ा है। भारत में हम खाना पकाने के लिए परिवारों को रियायती एलपीजी गैस सिलेंडर प्रदान करते हैं। कुछ समय पहले, मैंने अमीर और संपन्न लोगों से अपनी-अपनी गैस सब्सिडी छोड़ने का अनुरोध किया था। कम ही समय में, 4,00,000 परिवारों ने अपना-अपना रियायती गैस सिलेंडर लेना छोड़ दिया। मेरा उद्देश्य है कि इन गैस सिलेंडरों को गरीब परिवारों तक पहुँचाया जाए, इससे हमें तीन उद्देश्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी। सबसे पहले, वे खाना पकाने के लिए जंगल की लकड़ी का उपयोग करना बंद कर देंगे जिससे वनों का क्षरण रुकेगा। जंगल की लकड़ी के जलने से जो कार्बन का उत्सर्जन होता है, वह कम होगा। तीसरा, खाना पकाने के लिए जंगल की लकड़ी को जलाने से गरीब परिवारों में जो स्वास्थ्य समस्याएं   होती हैं, वह कम होंगी। इसलिए हम सभी तीन उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं - कार्बन उत्सर्जन को कम करना, वन के क्षरण को कम करना, और अत्यंत सरल पर्यावरण के अनुकूल उपायों के माध्यम से गरीब परिवारों के स्वास्थ्य में सुधार लाना।

एक अन्य निर्णय जिसकी हमने हाल ही में घोषणा की है, उससे दो पहलू एक साथ आते हैं - ग्रामीण रोजगार उपलब्ध कराना और ग्रामीण इलाकों में हरित क्षेत्र में वृद्धि करना; हमने गाँव में वन लगाने, पर्यावरण के संरक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 40,000 करोड़ रुपये (लगभग 6.7 बिलियन डॉलर) उपलब्ध कराये हैं।

अक अन्य कदम जो हमने उठाया है, वह है - भारत के 50 शहरों में मेट्रो जन परिवहन सुविधाओं का निर्माण करना। इसी तरह, भारत के 500 शहरों में हमने विस्तृत अपशिष्ट जल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की योजना शुरू कर की है। यहाँ सोच यह है कि वैश्विक प्रतिस्पर्धी पहलुओं का उपयोग करते हुए सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से इन सुविधाओं का निर्माण किया जाए। ये सारे कदम, जिनका मैंने वर्णन किया है, पिछले 10 महीनों में उठाए गए हैं जिसका मुख्य उद्देश्य अनुकूल वातावरण में आर्थिक विकास करना है।

दूसरा पहलू, जो मैं हमेशा बोलता रहता हूँ, वह यह है कि हमारी जीवन शैली को बदलने की जरूरत है लेकिन शायद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अभी भी उस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए तैयार नहीं है या अभी तक उस पर ध्यान नहीं दे रहा है। मैं मानता हूँ कि चीजों का एक बार उपयोग करके उसे छोड़ देने की पद्धति पर्यावरण पर एक भारी बोझ का कारण है। मैं मानता हूँ कि रीसाइक्लिंग या पृथ्वी के संसाधनों का पुन: उपयोग करना काफी महत्वपूर्ण है जिसे हमें अपने दैनिक जीवन शैली में शामिल करना चाहिए। मैं मानता हूँ कि अपनी जीवन शैली में बदलाव लाना भी महत्वपूर्ण है। 

टाइम : प्रधानमंत्री जी, आपने आर्थिक और विकास सुधारों के बारे में बात की जो आपने भारत में शुरू की है लेकिन प्रगति के अन्य मानक होते हैं। इस वर्ष की शुरूआत में राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि अगर भारत को विकास करना है तो इसे धर्म के आधार पर टूटने से बचना होगा। आप राष्ट्रपति ओबामा की इस टिप्पणी पर क्या कहना चाहते हैं?

मोदी : भारत की सभ्यता और इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। अगर आप ध्यान से भारत के इतिहास का विश्लेषण करें, तो आपको शायद एक भी घटना नहीं मिलेगी जब भारत ने किसी दूसरे देश पर हमला किया हो। इसी प्रकार आपको हमारे इतिहास में एक भी ऐसा प्रकरण नहीं मिलेगा जब हमने नस्ल या धर्म के आधार पर युद्ध छेड़ा हो। भारत की विविधता, हमारी सभ्यता की विविधता, वास्तव में हमारे लिए अनमोल है और इस पर हमें बहुत गर्व है। हमारे संविधान में भी हमारे जीवन के मूल तत्व की झलक मिलती है जिसे हम हजारों साल से जीते आए हैं। हमारा संविधान किसी अमूर्त संकीर्णता के आधार पर नहीं बना हुआ है। यह सभी धर्मों के लिए समान सम्मान रखने की हमारी अपनी सभ्यता के संस्कार को दर्शाता है। भारतीय शास्त्रों में लिखा है, “सत्य एक है, लेकिन संत इसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।” इसी तरह, शिकागो में विश्व धर्म सम्मलेन में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि धर्मों का सम्मान करना केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता का सवाल नहीं है; यह विश्वास का सवाल है जिसमें सभी धर्म एक समान हैं। यह भारत और भारतीय सभ्यता का धर्म के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। आप दुनिया के सबसे कम अल्पसंख्यकों में से एक, पारसी समुदाय, को देखें तो आप पाएंगे कि यह भारत में सबसे ज्यादा फला-फूला है। हमारी सेना के प्रमुखों में से एक पारसी समुदाय से रहे हैं। हमारे सबसे बड़ी उद्योगपतियों में से एक पारसी समुदाय से हैं। उच्चतम न्यायालय के एक मुख्य न्यायाधीश इसी पारसी समुदाय के थे। इसलिए हमारे लिए, सभी धर्मों की स्वीकृति हमारे खून में है, यह हमारी सभ्यता में है। सभी धर्मों को एक साथ लेकर चलना हमारे खून में है।

मेरी सोच, मेरी पार्टी की सोच और मेरी सरकार की भी यही सोच है, जो मैंने कहा है, ‘सबका साथ, सबका विकास’, जिसका मतलब है “सभी के साथ, सभी का विकास”। इस सोच और उस विशेष आदर्श वाक्य का उद्देश्य है, सभी को एक साथ लेकर समावेशी विकास के मार्ग पर चलना।

टाइम : अमेरिका में राजनीतिक अभियान शुरू होने वाला है, अमेरिका के कई  राजनेता विश्वास की भूमिका और नेता के रूप में उनकी सोच के बारे में बात कर रहे हैं। क्या आप थोड़ा-बहुत इसके बारे में बता सकते हैं कि भारतीय नेता के रूप में हिंदू धर्म पर आपकी क्या सोच है?

मोदी : धर्म और आस्था व्यक्तिगत मुद्दे हैं। जहाँ तक सरकार का संबंध है, उसके लिए केवल एक पवित्र पुस्तक है, और वह है भारत का संविधान।

अगर मैं हिंदू धर्म की परिभाषा की बात करूं तो भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक सुंदर परिभाषा दी है; जिसमें यह कहा गया है कि हिंदू धर्म एक धर्म नहीं है बल्कि यह तो जीवन का एक तरीका है, जीवन का मार्ग है।

इस पर जहाँ तक मेरी सोच की बात है तो मैं मानता हूँ कि मैं उन मूल्यों के साथ बड़ा हुआ हूँ जिनका अभी मैंने उल्लेख किया है कि धर्म जीवन का एक मार्ग है। हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का पालन करते हैं – हमारे लिए पूरा विश्व एक परिवार है, और हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। मैं इन्हीं मूल्यों के साथ बड़ा हुआ हूँ।

भारतीय शास्त्र, हिंदू शास्त्र के मूल में एक ही सोच है कि सभी खुश रहें, सभी स्वस्थ रहें, सभी अपने जीवन को पूर्ण आनंद से जियें। यह किसी धर्म विशेष या किसी विशेष संप्रदाय से संबंधित नहीं है। यह एक सोच है, यह जीवन का एक मार्ग है जो सभी समाजों को अपने में समेटे हुए है।

हिंदू धर्म असीम गहराई और विविधताओं से पूर्ण धर्म है। उदाहरण के लिए, जो व्यक्ति मूर्ति पूजा करता है, वह एक हिंदू है और जो मूर्ति पूजा को नहीं मानता है, वह भी हिंदू हो सकता है।

टाइम : प्रधानमंत्री जी, आपकी पार्टी के कुछ सदस्यों ने भारत में अल्पसंख्यक धर्मों के बारे में कुछ द्वेषपूर्ण बातें कही है और हम समझते हैं कि मुस्लिम, ईसाई, और कुछ दूसरे भारत में अपने धर्म और आस्था के भविष्य के बारे में चिंतित है और हम यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि आपके नेतृत्व में उन्हें चिंता करने की जरुरत नहीं है?

मोदी : जहाँ तक भारतीय जनता पार्टी और मेरी सरकार का संबंध है, हम इस विचारधारा में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते। और जब भी कोई व्यक्ति किसी विशेष अल्पसंख्यक धर्म के बारे में अपना विचार प्रकट करता है तो हमने उसे तुरंत नकारा है। जहाँ तक भारतीय जनता पार्टी और मेरी सरकार का संबंध है, मैंने पहले भी कहा है कि हमारे लिए केवल एक पवित्र पुस्तक है, और वह है, भारत का संविधान। हमारे लिए, देश की एकता और अखंडता सबसे शीर्ष प्राथमिकता है। सभी धर्मों और सभी समुदायों को समान अधिकार है और उनकी पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करना मेरी जिम्मेदारी है। मेरी सरकार जाति, संप्रदाय और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव बर्दाश्त या स्वीकार नहीं करेगी। इसलिए भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संबंध में किसी भी काल्पनिक आशंकाओं के लिए कोई जगह नहीं है।

टाइम : प्रधानमंत्री जी, पिछले चुनाव की बात करूँ तो उस समय एक महत्वपूर्ण बात की जा रही थी और वह थी, अर्थव्यवस्था। लेकिन अब बहुत सारे निवेशकों ने सुधार की गति के बारे में सवाल पूछना शुरू कर दिया है कि क्या यह गति पर्याप्त है? तेल की कीमतों में गिरावट आने से अर्थव्यवस्था को लाभ मिला है... आपने जिस गति से सुधार किये हैं, उनपर उठ रहे प्रश्नों पर आपकी क्या राय है और आने वाले वर्ष में आप और किन सुधारों की योजना बना रहे हैं?

मोदी : अगर आप पिछले साल के मार्च-मई 2014 के समाचार पत्रों को पढ़ें तो आपको उन महत्वपूर्ण पहलुओं का पता लग जाएगा जिस पर हम उस समय अपनी बात रख रहे थे। उसमें जो एक प्रमुख बात थी, वह यह थी कि सरकार कुछ भी करती हुई दिखाई नहीं दे रही थी। उस समय सरकार के पास कोई नीति नहीं थी। दूसर, भ्रष्टाचार हर जगह अपना पांव पसार चुका था। तीसरा, कोई नेतृत्व करने वाला नहीं था; केंद्र में एक कमजोर सरकार थी। उस समय की मूल बात यही थी जिसके बाद लोगों ने मुझे चुना। पिछले साल 2014 में मेरा चुनाव, मेरी सरकार के सत्ता में आने को मई, 2014 से पहले देश में पिछले दस साल से अधिक के घटनाक्रम के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इसलिए आपको मेरी सरकार के दस महीने के शासन को पिछली सरकार के दस साल के शासन के साथ तुलना करके देखने की जरुरत है।

आप देखेंगे कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूरा विश्व एक बार फिर से भारत और यहाँ उपलब्ध अवसरों को लेकर बेहद उत्साहित है। इसको देखने का दूसरा नजरिया यह है कि 21 वीं सदी के शुरू में, चार प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए ब्रिक की शुरुआत की गई। यहाँ सोच यह थी कि ब्रिक में सम्मिलित देश अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विकास को आगे ले जाएंगे। 2014 से छह-सात साल पहले, एक सोच यह बनने लगी थी कि शायद ब्रिक देशों में भारत की भूमिका कम हो गई है या यह इस समूह में काफी पीछे रह गया है।

पिछले 10 महीनों में, भारत नेब्रिक्स में अपनी स्थिति पुनः मजबूत की है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, चाहे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष हो, विश्व बैंक हो, मूडी या अन्य ऋण एजेंसियों हैं, वे सब एक सुर में कह रहे हैं कि भारत का आर्थिक भविष्य बहुत उज्ज्वल है। यह तेज गति से प्रगति कर रहा है और एक बार फिर से अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली में विकास और स्थिरता का द्योतक बना है। अभी भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

जहाँ तक लोगों की उम्मीदों का प्रश्न है, पिछले दस महीनों में स्पष्ट रूप से यह साबित हो चुका है कि देश में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, दोनों ही जगह हम उनकी उम्मीदों को पूरा करने के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

मेरे दिमाग में एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार है कि हम अगले पांच साल में क्या-क्या करने जा रहे हैं। हमने पिछले एक साल में जो भी किया है, वह हमारी योजना के अनुसार ही हुआ है और सही भी हुआ है। और अगले चार वर्षों में हम कदम-दर-कदम आगे बढ़ेंगे और ये सारी चीजें लोगों के सामने आएंगी, जैसे-जैसे हम इसे करते जाएंगे। जहाँ तक पिछले ग्यारह महीनों में सुधार प्रक्रिया का संबंध है, यह मेरी सरकार के केवल नीतिगत सुधारों का सवाल नहीं है। हमने प्रशासनिक सुधारों के लिए भी कदम उठाये हैं। (i) व्यापार कार्य में आसानी (ii) सरकार को अधिक जवाबदेह बनाने (iii) प्रौद्योगिकी और प्रशासन के स्तर पर सुधार (iv) स्थानीय सरकार या राज्य सरकार या केंद्र सरकार, सभी सरकारी स्तरों पर सुधार यह की है या नहीं। हम सुधार प्रक्रिया को पूर्ण रूप से एक अलग स्तर पर ले गए हैं जहाँ संघ और राज्य, दोनों नीति आधारित और प्रशासनिक सुधार प्रणाली के माध्यम से कार्य करते हैं।

कराधान के क्षेत्र में भारत की आजादी के बाद से सबसे बड़ा सुधार जो होने वाला है, वह है, जीएसटी और हम यह उम्मीद करते हैं कि 2016 के वित्तीय वर्ष से हम इसे लागू कर देंगे।

एक अन्य उदाहरण है, बीमा के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 49% की वृद्धि। पिछले 7-8 साल से यह रुका हुआ था और आगे नहीं बढ़ रहा था। हमने यह सुनिश्चित किया कि हमारी सरकार के पहले साल के भीतर संसद में यह पारित हो।

टाइम : प्रधानमंत्री जी, जब कुछ लोग चीन और भारत के आर्थिक विकास की तुलना करते हैं, तो कुछ लोग कहते हैं कि चीन बहुत तेजी से और बहुत अधिक सफल रहा है क्योंकि वहां साम्यवाद है और पार्टी के नेता मूल रूप से अपना और अपने मंत्रिमंडल की नीतियां कार्यान्वित कर सकते हैं। ज़ाहिर है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। संसद के निचले सदन में आपको बहुमत प्राप्त है लेकिन ऊपरी सदन में आप अल्पमत में हैं। कुछ चीजें, जैसे आपके नया भूमि अधिग्रहण कानून को पारित कराने में भारत की प्रणाली बाधक बन सकती है। क्या आप कभी यह सोचते हैं कि जो शक्तियां चीनी राष्ट्रपति शी के पास हैं, वो शक्तियां अगर आपके पास भी होती तो इन चीजों से आसानी से निपटा जा सकता था?

मोदी : स्वभावतः भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यह सिर्फ हमारे संविधान के अनुसार एक लोकतांत्रिक देश नहीं है; यह हमारे डीएनए में है। जहाँ तक भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों का सवाल है, मुझे पूरा विश्वास है कि वे इतने प्रबुद्ध और परिपक्व हैं कि वे देश के सर्वोत्तम हित में निर्णय ले सकते हैं। मेरा दृढ विश्वास है कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था देश के सभी राजनीतिक दलों के लिए एक विश्वास की बात है। यह सच है कि ऊपरी सदन में हमारे पास बहुमत नहीं है। इसके बावजूद, अगर आप संसद की उत्पादकता पर नजर डालें तो यह वास्तव में हमारी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि रही है। संसद के निचले सदन लोकसभा में उत्पादकता 124% रही है जबकि ऊपरी सदन में उत्पादकता 107% रही। कुल मिलाकर, यह विधायी कार्यों के नजरिये से अत्यंत ही सकारात्मक संदेश है। कुल मिलाकर 40 विधेयक संसद में पारित हुए। तो अगर आप मुझसे यह पूछेंगे कि क्या आप भारत में शासन चलाने के लिए तानाशाही चाहते हैं तो मेरा जवाब होगा, बिल्कुल भी नहीं। अगर आप मुझसे यह पूछेंगे कि क्या इस देश को चलाने के लिए तानाशाही सोच की जरूरत है, तो मेरा जवाब होगा, नहीं, बिल्कुल नहीं। अगर भारत को आगे ले जाने के लिए किसी चीज की आवश्यकता है, तो वह है, लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों में सहज विश्वास। मैं मानता हूँ कि हमें इसी की जरुरत है और यह हमारे पास है। अगर आप व्यक्तिगत रूप से मुझे लोकतांत्रिक मूल्यों और धन, शक्ति, समृद्धि और प्रसिद्धि में से किसी एक का चयन करने को कहोगे तो मैं आसानी से और बिना किसी हिचक के लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास को चुनूंगा।

टाइम : लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं और इसके स्तंभों में से एक है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। इस साल की शुरुआत में भारत में अधिकारियों ने 2012 के दिसंबर में हुई बर्बर बलात्कार पर बने वृत्तचित्र पर प्रतिबंध लगा दिया था। अधिकारियों ने ऐसा क्यों किया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आपकी क्या सोच है? क्या आप मानते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कुछ सीमाएं होनी चाहिए?

मोदी : इस प्रश्न में दो अलग-अलग तरह की बातें हैं और मैं उन दोनों पर अपने विचार रखने की कोशिश करूंगा। लेकिन, पहले कुछ हल्के-फुल्के अंदाज में कहूं तो मुझे गैलिलियो से संबंधित एक प्रसिद्ध प्रकरण याद आता है। उन्होंने पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर चक्कर काटने के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया था, लेकिन तत्कालीन समय के सामाजिक प्रतिमान में देखा जाए तो ये सिद्धांत बाइबिल में लिखित सिद्धांतों के विपरीत थे जिसके बाद यह निर्णय लिया गया था कि गैलिलियो को कैद कर लिया जाए।

भारत एक ऐसी सभ्यता है जहाँ बलिदान के सिद्धांत और इसके पीछे की सोच हमारे नस-नस में व्याप्त है। अगर आप इसे पृष्ठभूमि में रखकर हमारे इतिहास पर नजर डालें तो एक समय में चार्वाक नामक एक महान विचारक थे जिन्होंने चरम उल्लास का एक सिद्धांत प्रतिपादित किया था जो भारतीय लोकाचार के विपरीत था। उन्होंने मूल रूप से यह कहा था “आपको भविष्य की चिंता करने की जरुरत नहीं है, बस जियो, खाओ, मगन रहो। लेकिन ऐसे खुले विचारों, जो भारतीय लोकाचार के बिल्कुल विपरीत थे, के बावजूद उन्हें ऋषि की उपाधि दी गई और भारतीय समाज में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी गई।

जहाँ तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संबंध है, इसको लेकर हमारे मन में कोई संदेह नहीं है, हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं और इसमें हमारा पूर्ण विश्वास है।

अगर उस वृत्तचित्र के प्रसारण की बात करें तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल नहीं है बल्कि यह एक कानूनी मुद्दा है। इसके दो-तीन पहलू हैं। एक पहलू यह है कि अगर इस साक्षात्कार को प्रसारित किये जाने की अनुमति दी जाती तो बलात्कार की शिकार की पहचान जगजाहिर हो जाती। और दूसरा पहलू यह है कि मामला अभी भी विचाराधीन है और साक्षात्कार में अपराधी को भी दिखाया गया है जो न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता था। तीसरा पहलू, पीड़ित की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम इसके प्रसारण की अनुमति देते तो यह पीड़िता की गरिमा का उल्लंघन होता। इसलिए मुझे नहीं लगता कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है, यह कानून से जुड़ा मुद्दा है, पीड़िता के सम्मान से जुड़ा मुद्दा है, इस मामले की न्यायिक प्रक्रियाओं से जुड़ा मुद्दा है। जहाँ तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है, मैंने पहले भी कहा है कि यह बिल्कुल भी मुद्दा नहीं है। यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसका हम पूरा सम्मान करते हैं।

टाइम : इससे पहले कि आप पीटर से मुख़ातिब हों, जो काफी उत्सुक है, मैं आपसे एक आखिरी सवाल पूछना चाहता हूँ। हम प्रभाव और टाइम 100 के बारे में बहुत बातें करते हैं, ये वो लोग हैं जिनका अभी विश्व मंच पर अपना जबर्दस्त प्रभाव है तो क्या आप हमें उनके बारे में बता सकते हैं जिन्होंने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया?

मोदी : वास्तव में, यह प्रश्न मेरे दिल को छू जाता है। मैं एक बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुआ था। मैं बचपन में रेलवे कोच में चाय बेचता था। मेरी माँ आजीविका कमाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन धोने और अन्य छोटे-छोटे घरेलू काम किया करती थी।

मैंने बहुत नजदीक से गरीबी को देखा है। मैं गरीबी में रह चुका हूँ। मेरा पूरा बचपन गरीबी में बीता है। मेरे लिए, गरीबी, एक तरह से, मेरे जीवन की पहली प्रेरणा, गरीबों के लिए कुछ करने की प्रतिबद्धता थी। मैंने फैसला किया कि मैं खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जियूँगा, उनके लिए काम करूँगा। गरीबी में जीने के अनुभव ने मेरे बचपन को बहुत प्रभावित किया। फिर 12 या 13 साल की उम्र में, मैंने स्वामी विवेकानंद को पढ़ना शुरू किया। इससे मुझे साहस मिला, एक नई सोच मिली, इसने मुझे और संजीदा एवं संवेदनशील बनाया, और जीवन में मुझे एक नया दृष्टिकोण और एक दिशा मिली। 15 या 16 वर्ष की उम्र में, मैंने स्वयं को दूसरों के लिए समर्पित करने का निर्णय किया और आज तक मैं उस निर्णय का पालन कर रहा हूँ।

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Joint Statement: Official visit of Shri Narendra Modi, Prime Minister of India to Kuwait (December 21-22, 2024)
December 22, 2024

At the invitation of His Highness the Amir of the State of Kuwait, Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah, Prime Minister of India His Excellency Shri Narendra Modi paid an official visit to Kuwait on 21-22 December 2024. This was his first visit to Kuwait. Prime Minister Shri Narendra Modi attended the opening ceremony of the 26th Arabian Gulf Cup in Kuwait on 21 December 2024 as the ‘Guest of Honour’ of His Highness the Amir Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah.

His Highness the Amir of the State of Kuwait Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah and His Highness Sheikh Sabah Al-Khaled Al-Sabah Al-Hamad Al-Mubarak Al-Sabah, Crown Prince of the State of Kuwait received Prime Minister Shri Narendra Modi at Bayan Palace on 22 December 2024 and was accorded a ceremonial welcome. Prime Minister Shri Narendra Modi expressed his deep appreciation to His Highness the Amir of the State of Kuwait Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah for conferring on him the highest award of the State of Kuwait ‘The Order of Mubarak Al Kabeer’. The leaders exchanged views on bilateral, global, regional and multilateral issues of mutual interest.

Given the traditional, close and friendly bilateral relations and desire to deepen cooperation in all fields, the two leaders agreed to elevate the relations between India and Kuwait to a ‘Strategic Partnership’. The leaders stressed that it is in line with the common interests of the two countries and for the mutual benefit of the two peoples. Establishment of a strategic partnership between both countries will further broad-base and deepen our long-standing historical ties.

Prime Minister Shri Narendra Modi held bilateral talks with His Highness Sheikh Ahmad Abdullah Al-Ahmad Al-Jaber Al-Mubarak Al-Sabah, Prime Minister of the State of Kuwait. In light of the newly established strategic partnership, the two sides reaffirmed their commitment to further strengthen bilateral relations through comprehensive and structured cooperation in key areas, including political, trade, investment, defence, security, energy, culture, education, technology and people-to-people ties.

The two sides recalled the centuries-old historical ties rooted in shared history and cultural affinities. They noted with satisfaction the regular interactions at various levels which have helped in generating and sustaining the momentum in the multifaceted bilateral cooperation. Both sides emphasized on sustaining the recent momentum in high-level exchanges through regular bilateral exchanges at Ministerial and senior-official levels.

The two sides welcomed the recent establishment of a Joint Commission on Cooperation (JCC) between India and Kuwait. The JCC will be an institutional mechanism to review and monitor the entire spectrum of the bilateral relations between the two countries and will be headed by the Foreign Ministers of both countries. To further expand our bilateral cooperation across various fields, new Joint Working Groups (JWGs) have been set up in areas of trade, investments, education and skill development, science and technology, security and counter-terrorism, agriculture, and culture, in addition to the existing JWGs on Health, Manpower and Hydrocarbons. Both sides emphasized on convening the meetings of the JCC and the JWGs under it at an early date.

Both sides noted that trade has been an enduring link between the two countries and emphasized on the potential for further growth and diversification in bilateral trade. They also emphasized on the need for promoting exchange of business delegations and strengthening institutional linkages.

Recognizing that the Indian economy is one of the fastest growing emerging major economies and acknowledging Kuwait’s significant investment capacity, both sides discussed various avenues for investments in India. The Kuwaiti side welcomed steps taken by India in making a conducive environment for foreign direct investments and foreign institutional investments, and expressed interest to explore investment opportunities in different sectors, including technology, tourism, healthcare, food-security, logistics and others. They recognized the need for closer and greater engagement between investment authorities in Kuwait with Indian institutions, companies and funds. They encouraged companies of both countries to invest and participate in infrastructure projects. They also directed the concerned authorities of both countries to fast-track and complete the ongoing negotiations on the Bilateral Investment Treaty.

Both sides discussed ways to enhance their bilateral partnership in the energy sector. While expressing satisfaction at the bilateral energy trade, they agreed that potential exists to further enhance it. They discussed avenues to transform the cooperation from a buyer-seller relationship to a comprehensive partnership with greater collaboration in upstream and downstream sectors. Both sides expressed keenness to support companies of the two countries to increase cooperation in the fields of exploration and production of oil and gas, refining, engineering services, petrochemical industries, new and renewable energy. Both sides also agreed to discuss participation by Kuwait in India's Strategic Petroleum Reserve Programme.

Both sides agreed that defence is an important component of the strategic partnership between India and Kuwait. The two sides welcomed the signing of the MoU in the field of Defence that will provide the required framework to further strengthen bilateral defence ties, including through joint military exercises, training of defence personnel, coastal defence, maritime safety, joint development and production of defence equipment.

The two sides unequivocally condemned terrorism in all its forms and manifestations, including cross-border terrorism and called for disrupting of terrorism financing networks and safe havens, and dismantling of terror infrastructure. Expressing appreciation of their ongoing bilateral cooperation in the area of security, both sides agreed to enhance cooperation in counter-terrorism operations, information and intelligence sharing, developing and exchanging experiences, best practices and technologies, capacity building and to strengthen cooperation in law enforcement, anti-money laundering, drug-trafficking and other transnational crimes. The two sides discussed ways and means to promote cooperation in cybersecurity, including prevention of use of cyberspace for terrorism, radicalisation and for disturbing social harmony. The Indian side praised the results of the fourth high-level conference on "Enhancing International Cooperation in Combating Terrorism and Building Resilient Mechanisms for Border Security - The Kuwait Phase of the Dushanbe Process," which was hosted by the State of Kuwait on November 4-5, 2024.

Both sides acknowledged health cooperation as one of the important pillars of bilateral ties and expressed their commitment to further strengthen collaboration in this important sector. Both sides appreciated the bilateral cooperation during the COVID- 19 pandemic. They discussed the possibility of setting up of Indian pharmaceutical manufacturing plants in Kuwait. They also expressed their intent to strengthen cooperation in the field of medical products regulation in the ongoing discussions on an MoU between the drug regulatory authorities.

The two sides expressed interest in pursuing deeper collaboration in the area of technology including emerging technologies, semiconductors and artificial intelligence. They discussed avenues to explore B2B cooperation, furthering e-Governance, and sharing best practices for facilitating industries/companies of both countries in the policies and regulation in the electronics and IT sector.

The Kuwaiti side also expressed interest in cooperation with India to ensure its food-security. Both sides discussed various avenues for collaboration including investments by Kuwaiti companies in food parks in India.

The Indian side welcomed Kuwait’s decision to become a member of the International Solar Alliance (ISA), marking a significant step towards collaboration in developing and deploying low-carbon growth trajectories and fostering sustainable energy solutions. Both sides agreed to work closely towards increasing the deployment of solar energy across the globe within ISA.

Both sides noted the recent meetings between the civil aviation authorities of both countries. The two sides discussed the increase of bilateral flight seat capacities and associated issues. They agreed to continue discussions in order to reach a mutually acceptable solution at an early date.

Appreciating the renewal of the Cultural Exchange Programme (CEP) for 2025-2029, which will facilitate greater cultural exchanges in arts, music, and literature festivals, the two sides reaffirmed their commitment on further enhancing people to people contacts and strengthening the cultural cooperation.

Both sides expressed satisfaction at the signing of the Executive Program on Cooperation in the Field of Sports for 2025-2028. which will strengthen cooperation in the area of sports including mutual exchange and visits of sportsmen, organising workshops, seminars and conferences, exchange of sports publications between both nations.

Both sides highlighted that education is an important area of cooperation including strengthening institutional linkages and exchanges between higher educational institutions of both countries. Both sides also expressed interest in collaborating on Educational Technology, exploring opportunities for online learning platforms and digital libraries to modernize educational infrastructure.

As part of the activities under the MoU between Sheikh Saud Al Nasser Al Sabah Kuwaiti Diplomatic Institute and the Sushma Swaraj Institute of Foreign Service (SSIFS), both sides welcomed the proposal to organize the Special Course for diplomats and Officers from Kuwait at SSIFS in New Delhi.

Both sides acknowledged that centuries old people-to-people ties represent a fundamental pillar of the historic India-Kuwait relationship. The Kuwaiti leadership expressed deep appreciation for the role and contribution made by the Indian community in Kuwait for the progress and development of their host country, noting that Indian citizens in Kuwait are highly respected for their peaceful and hard-working nature. Prime Minister Shri Narendra Modi conveyed his appreciation to the leadership of Kuwait for ensuring the welfare and well-being of this large and vibrant Indian community in Kuwait.

The two sides stressed upon the depth and importance of long standing and historical cooperation in the field of manpower mobility and human resources. Both sides agreed to hold regular meetings of Consular Dialogue as well as Labour and Manpower Dialogue to address issues related to expatriates, labour mobility and matters of mutual interest.

The two sides appreciated the excellent coordination between both sides in the UN and other multilateral fora. The Indian side welcomed Kuwait’s entry as ‘dialogue partner’ in SCO during India’s Presidency of Shanghai Cooperation Organisation (SCO) in 2023. The Indian side also appreciated Kuwait’s active role in the Asian Cooperation Dialogue (ACD). The Kuwaiti side highlighted the importance of making the necessary efforts to explore the possibility of transforming the ACD into a regional organisation.

Prime Minister Shri Narendra Modi congratulated His Highness the Amir on Kuwait’s assumption of the Presidency of GCC this year and expressed confidence that the growing India-GCC cooperation will be further strengthened under his visionary leadership. Both sides welcomed the outcomes of the inaugural India-GCC Joint Ministerial Meeting for Strategic Dialogue at the level of Foreign Ministers held in Riyadh on 9 September 2024. The Kuwaiti side as the current Chair of GCC assured full support for deepening of the India-GCC cooperation under the recently adopted Joint Action Plan in areas including health, trade, security, agriculture and food security, transportation, energy, culture, amongst others. Both sides also stressed the importance of early conclusion of the India-GCC Free Trade Agreement.

In the context of the UN reforms, both leaders emphasized the importance of an effective multilateral system, centered on a UN reflective of contemporary realities, as a key factor in tackling global challenges. The two sides stressed the need for the UN reforms, including of the Security Council through expansion in both categories of membership, to make it more representative, credible and effective.

The following documents were signed/exchanged during the visit, which will further deepen the multifaceted bilateral relationship as well as open avenues for newer areas of cooperation:● MoU between India and Kuwait on Cooperation in the field of Defence.

● Cultural Exchange Programme between India and Kuwait for the years 2025-2029.

● Executive Programme between India and Kuwait on Cooperation in the field of Sports for 2025-2028 between the Ministry of Youth Affairs and Sports, Government of India and Public Authority for Youth and Sports, Government of the State of Kuwait.

● Kuwait’s membership of International Solar Alliance (ISA).

Prime Minister Shri Narendra Modi thanked His Highness the Amir of the State of Kuwait for the warm hospitality accorded to him and his delegation. The visit reaffirmed the strong bonds of friendship and cooperation between India and Kuwait. The leaders expressed optimism that this renewed partnership would continue to grow, benefiting the people of both countries and contributing to regional and global stability. Prime Minister Shri Narendra Modi also invited His Highness the Amir of the State of Kuwait, Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah, Crown Prince His Highness Sheikh Sabah Al-Khaled Al-Sabah Al-Hamad Al-Mubarak Al-Sabah, and His Highness Sheikh Ahmad Abdullah Al-Ahmad Al-Jaber Al-Mubarak Al-Sabah, Prime Minister of the State of Kuwait to visit India.