राष्ट्र के विकास के लिए किसानों की समृद्धि जरूरी: प्रधानमंत्री 
हमने ग्रीन और वाईट रिवॉल्यूशन देखा, अब समय आ गया है ब्लू और स्वीट रिवॉल्यूशन का: पीएम मोदी 
'जन आंदोलन' और 'जल आंदोलन' का हमें भविष्य में फायदा होगा: प्रधानमंत्री मोदी

आज, 24 अगस्त, यानि संस्था के स्थापना दिवस को आप गर्व दिवस के रूप में मनाते हैं।

“बायफ” की राष्ट्र निर्माण में जो भूमिका रही है, उसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं।

मेरे लिए ये व्यक्तिगत रूप से बहुत सुखद होता कि मैं आज आपके बीच आकर आपकी खुशियों में शामिल होता, आपके नए अनुभव सुनता, आपसे कुछ नया सीखता।

मुझे  याद है जब कुछ वर्ष पहले “वाडी” कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, तो नवसारी और वलसाड में आपके कार्यों को मैंने बहुत करीब से देखा था। इसलिए “बायफ” के साथ मैं खुद को भावनात्मक रूप से बहुत जुड़ा हुआ महसूस करता हूं। जिस मिशन के साथ देश के कई राज्यों में आपकी संस्था काम कर रही है, वो एक संस्था के लिए संतोष का विषय है।

आज यहां इस कार्यक्रम में कई पुरस्कार भी दिए गए हैं। सम्मान पाने वालों में कुछ सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं, कुछ को व्यक्तिगत प्रयासों की वजह से पुरस्कार मिला है। कोई कर्नाटक का है, कोई गुजरात का है, कोई महाराष्ट्र का है, कोई झारखंड का है। मैं उन्हें भी बधाई देता हूं और ये कामना करता हूं कि इसी तरह वो समाजहित में काम करते रहेंगे।

साथियों, इसी वर्ष साबरमती आश्रम की स्थापना के 100 वर्ष और चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे हुए हैं। इसी वर्ष सार्वजनिक गणेशोत्सव के भी 125 वर्ष पूरे हो रहे हैं। देश के इतिहास में ये तीनों ही पड़ाव स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा देने वाले रहे हैं। जन-जन की भागीदारी से कैसे संकल्प की सिद्धि होती है, ये उसके प्रतीक हैं।

जन-भागीदारी से जन-कल्याण का ये विजन भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज फाउंडेशन का भी आधार रहा है। इसे 50 वर्ष भले अभी पूरे हो रहे हों लेकिन इसकी नींव तभी रख दी गई थी जब 1946 में मणिभाई, गांधी जी के साथ उरुलीकंचन गांव पहुंचे थे। गांधी जी की प्रेरणा से मणिभाई ने इस पूरे क्षेत्र के कायाकल्प का संकल्प लिया था और इसकी शुरुआत की थी, गुजरात के गीर से गायों को यहां लाकर।

हमारे गांवों में मौजूद परंपरागत ज्ञान और विज्ञान को आधुनिक तकनीक से जोड़कर किसान की आय कैसे बढ़ाई जा सकती है, ये आपकी संस्था ने करके दिखाया है।

साथियों, देश के संतुलित विकास के लिए बहुत आवश्यक है कि देश के गांवों में रहने वाला किसान सशक्त हो। एक सशक्त किसान के बिना न्यू इंडिया का सपना साकार नहीं हो सकता और इसलिए सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य पर काम कर रही है। इसलिए अब कृषि योजनाओं की अप्रोच में बदलाव करते हुए, उन्हें production centric होने के साथ ही income centric भी बनाया गया है।

आज सरकार बीज से बाजार तक किसान के साथ खड़ी है। पानी की एक-एक बूंद के इस्तेमाल पर जोर है। ऑर्गैनिक खेती और crop diversification को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों को मिट्टी की सेहत की जानकारी के लिए अब तक 9 करोड़ से ज्यादा सॉयल हेल्थ कार्ड दिए जा चुके हैं।

e-NAM योजना के तहत देशभर की 500 से ज्यादा कृषि मंडियों को ऑनलाइन जोड़ा जा रहा है। अभी हाल ही में “प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना” भी शुरू की गई है। इसका मकसद देश में भंडारण की समस्या से निपटना और फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देना है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि अगर किसी वजह से फसल खराब भी हो गई तो किसानों की जिंदगी पर आफत ना आए। किसानों को सूदखोरों के चुंगुल से निकालने के लिए सबसे कम ब्याज दरों पर कर्ज दिया जा रहा है।

आप देखेंगे कि सरकार के ये प्रयास इसलिए हैं कि किसान खेती से जुड़ी चिंता से बाहर निकले, उसका खर्च कम हो और आमदनी बढ़े। जब देश का अन्नदाता चिंतामुक्त होगा, तो देश भी विकास की नई ऊँचाई प्राप्त करेगा।

“बायफ” बहुत ही सेवाभाव से बरसों से इस कार्य में लगा हुआ है लेकिन आज मैं आपके बीच कुछ नए विचारों की seeding या बीजारोपण करना चाहता हूं। ये किसी एक्सपर्ट को राय या ज्ञान देना नहीं है बल्कि एक एक्सपर्ट से आग्रह करने की तरह है।

मुझे पता है कि महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप के माध्यम से “बायफ” किस तरह लाखों महिलाओं को सशक्त कर रहा है। लेकिन क्या इसे थोड़ा और Focus किया जा सकता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के पशुपालन सेक्टर को लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं मिलकर संभाल रही हैं। चाहे जानवरों के लिए चारे का इंतजाम हो, पानी की व्यवस्था हो, दवाई-दूध, सारे काम प्रमुखता से महिलाएं ही कर रही हैं।

यानि एक तरह से देश का पशुपालन सेक्टर पूरी तरह महिलाओं की कुशलता पर टिका हुआ है। इसलिए आज बहुत आवश्यकता है कि महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप को veterinary education, रिसर्च, सर्विस डिलिवरी सिस्टम के बारे में विशेष ट्रेनिंग दी जाए। जितनी ज्यादा महिलाएं इस फील्ड में trained होंगी, उतना ही देश का पशुधन मजबूत होगा और खुद महिलाओं का भी भला होगा।

“बायफ” जैसी संस्था ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को इसके लिए प्रेरित कर सकती है, उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए कार्यक्रमों की शुरुआत कर सकती है।

साथियों, हमारे देश में हर साल लगभग 40 हजार करोड़ रुपए का नुकसान पशुओं को होने वाली बीमारियों की वजह से होता है। इससे निपटने के लिए कुछ राज्यों में पशु आरोग्य मेले लगाए जाते हैं। इनमें पशुओं के कैटैरेक्ट के ऑपरेशन से लेकर दांतों की सफाई तक के काम किए जाते हैं। लेकिन इस तरह के पशु आरोग्य मेलों की संख्या को और बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। “बायफ” जैसी संस्थाएं देश भर में राज्य सरकारों के साथ मिलकर पशु आरोग्य मेले लगाने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।

आपसे मेरा विशेष आग्रह इसलिए है क्योंकि आपकी संस्था पहले ही 15 राज्यों में काम कर रही है और आपकी क्षमता पूरे देश में विस्तार करने की है। देश के उत्तर-पूर्व के राज्य भी “बायफ” के कदम वहां जमने का इंतजार कर रहे हैं। देश के उत्तर-पूर्व के राज्य, जिन्हें मैं अष्टलक्ष्मी कहता हूं, वहां पर ऑर्गैनिक फॉर्मिंग की बहुत संभावनाएं हैं। उन्हें आपके अनुभव से बहुत फायदा मिल सकता है।

इसी तरह  Medicinal और Aromatic Plants की खेती को लेकर भी किसानों में जागरूकता बढ़ाने जाए की आवश्यकता है। हमारे देश में Medicinal और Aromatic Plants की हजारों species  हैं, दुनिया भर में इनकी डिमांड है। लेकिन डिमांड और सप्लाई का गैप भी बहुत ज्यादा है। सरकार, प्रगतिशील किसान और बायफ जैसे संगठन इसकी खेती के साथ ही पूरी सप्लाई चेन की जानकारी देने का काम मजबूती के साथ कर सकती है।

साथियों, Green Revolution और White Revolution से देश भली भांति परिचित है। समय की मांग ये है कि Blue Revolution के द्वारा हमारे मछुवारे भाइयों के जीवन में बदलाव लाया जाए,  Sweet Revolution, यानि मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन द्वारा किसानों की आय बढ़ाई जाए।

Green Revolution, White Revolution के साथ अब हम Blue Revolution, Sweet Revolution और water revolution को जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं।

खेती सिर्फ गेहूं-धान और सरसों पैदा करना ही नहीं है। परंपरागत खेती के साथ-साथ जितना खेती से जुड़े सब-सेक्टर्स पर ध्यान दिया जाएगा, उतना ही किसान को आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी। जैसे मधुमक्खी पालन, को ही लीजिए। एक रीसर्च के मुताबिक परंपरागत खेती कर रहा किसान, 50 bee कॉलोनी की छोटी यूनिट लगाकर 2 लाख रुपए सालाना की अतिरिक्त आय कमा सकता है। मधुमक्खियां शहद उत्पादन के साथ-साथ pollination support में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं।

मधुमक्खी पालन हो, मछली पालन हो, गन्ने, crop रेसिड्यू से इथेनॉल का उत्पादन हो, इनसे आज के समाज की डिमांड पूरी होती है और इसलिए परंपरागत खेती में जुटे किसानों को ऐसे सब-सेक्टर्स के प्रति जागरूक करने का काम, उनकी मदद करने का काम “बायफ” बखूबी कर सकती है।

साथियों, महाराष्ट्र का विदर्भ हो, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना-आंध्र प्रदेश के कुछ इलाके हों, यू पी का बुंदेलखंड हो, ये कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर किसान पानी की कमी से जूझता रहा है।

सरकार द्वारा अपनी तरफ से पानी की कमी दूर करने की कोशिश लगातार की जा रही है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 99 ऐसे projects पूरे किए जा रहे हैं जो बहुत समय से अधूरे पड़े हुए थे। इनमें से 21 projects इस साल पूरे हो चुके हैं। इसके साथ-साथ इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि पानी की हर बूंद का हम बेहतर इस्तेमाल करें। Drip irrigation, micro irrigation और crop diversification भी इसका माध्यम हैं। मनरेगा की भी 60 प्रतिशत से ज्यादा राशि सरकार जल संरक्षण और जल प्रबंधन पर ही खर्च कर रही है।

लेकिन, भाइयों और बहनों, जब तक सारे किसान इस प्रयास के साथ नहीं जुड़ेंगे तब तक हम इसे सफल नहीं बना पाएंगे। मुझे बताया गया है कि आज इस कार्यक्रम में हिवरे बाज़ार  से श्री पोपटराव पवार भी आए हुए हैं। हिवरे बाज़ार एक बेहतरीन उदाहरण है कि एक-साथ होकर, एक दूसरे के हितों को ध्यान में रखते हुए हम किस तरह से पानी का सही इस्तेमाल कर सकते हैं,ताकि हमारी water use efficiency  बढ़े और हमारे ग्राउंड वाटर रिसोर्सेज का sustainable तरीके से इस्तेमाल हो। मुझे “बायफ” से उम्मीद है कि जिन गांवों में वो काम कर रहे हैं वहां “जन-आंदोलन और जल-आंदोलन” की मिसाल खड़ी करेंगे।

इसके अलावा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और बैंकों से ही कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहित करके भी इन इलाकों के किसानों की जिंदगी आसान बनाने में आप मदद कर सकते हैं।

भाइयों और बहनों, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज ने ग्रामगीता में लिखा है-

“ग्रामसुधारणेचा मूलमंत्र, सज्जनांनी व्हावे एकत्र !

संघटन हेची शक्तिचे सूत्र, ग्रामराज्य निर्माण करी” !!

यानि ग्राम सुधार का मूल मंत्र है सभी लोग एकजुट होकर, संगठन शक्ति के साथ काम करें। तभी ग्राम-राज्य का निर्माण होगा। यही मंत्र महात्मा गांधी ने दिया था, इसी का पालन मणिभाई देसाई ने किया। आज आपकी संस्था की संगठन शक्ति से गांवों के विकास का नया द्वार खुल सकता है। आज आवश्यकता है कि हम अपने गांवों पर गर्व करें, गांव के लोग स्थापना दिवस मनाएं, एक विजन बनाएं, उसे लेकर आगे बढ़े। आप जिन 80 हजार गावों में काम कर रहे हैं, उनमें गांव का नेतृत्व एक विजन के साथ आगे बढ़े। यही न्यू इंडिया के निर्माण का एक माध्यम होगा।

साथियों, खेती की input cost कम करने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। आज सॉयल हेल्थ मैनेजमेंट की वजह से, सॉयल हेल्थ कार्ड की वजह से, यूरिया की नीम कोटिंग की वजह से, ड्रिप इरिगेशन को बढ़ावा देने की वजह से, खेती पर होने वाला किसानों का खर्च कम हुआ है। सोलर पंप का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करके भी किसान डीजल पर होने वाला खर्च बचा रहे हैं। इन आधुनिक तकनीकों के उपयोग से फसल का उत्पादन भी बढ़ा है। इस विषय में “बायफ” का भी पुराना अनुभव रहा है और इसलिए खेती की input cost कम करने के लिए और क्या-क्या किया जा सकता है, इस बारे में आपके सुझावों का हमेशा स्वागत है। आप जितना ज्यादा किसानों को इस अभियान में जोड़ेंगे, उतना किसानों की बचत होगी और मुनाफा बढ़ेगा।

साथियों, waste to wealth भी ऐसा विषय है, जो आज की आवश्यकताओं और भविष्य की चुनौतियों से जुड़ा हुआ है।

Agriculture waste की recycling का काम हो, compost बनाने का काम हो, इससे भी किसानों की आमदनी बढ़ सकती है और पूरे गांव को इसका फायदा मिल सकता है।

आज खेत में कोई चीज वेस्ट नहीं है, हर चीज इस्तेमाल हो सकती है, वो वेल्थ बन सकती है।

इसी तरह गांवों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देकर भी पूरे गांव को बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।

खेतों के किनारे इतनी जगह होती है, वहां पर सोलर पैनल लगाकर बिजली बनाने के लिए भी किसानों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। जैसे देशभर में मिल्क कॉपरेटिव होती है, वैसे ही सोलर कॉपरेटिव बनाकर बिजली का उत्पादन किया जा सकता है, उसे बेचा जा सकता है।

साथियों, आज आप लोग देखते होंगे, गांवों में भी लगभग हर घर के ऊपर एक छोटी सी छतरी दिख जाती है। ये डिजिटल तकनीक ही तो है जिसने सब कुछ इतना आसान कर दिया है। पहले एक दो चैनल आते थे, अब सौ-दो सौ चैनल आते हैं। रिमोट अब उनके लिए बहुत मुश्किल यंत्र नहीं रह गया है। दो-तीन साल का बच्चा भी रिमोट से चैनल बदल लेता है।

तकनीक से ऐसा ही अपनत्व देश में डिजिटल गांव की कल्पना को साकार करेगा। ऐसा गांव जहां ज्यादातर लेन-देन डिजिटल तरीके से हो, कर्ज से लेकर स्कॉलरशिप तक, सारे फॉर्म ऑनलाइन भरे जाएं, स्कूलों में डिजिटल तकनीक से पढ़ाई हो, स्वास्थ्य सेवा भी डिजिटल तकनीक से जुड़ी हो।

डिजिटल गांव की इस कल्पना को साकार करने के लिए सरकार देश की हर पंचायत को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ रही है। लेकिन साधन और संसाधन जुटाना ही काफी नहीं होगा। उनका इस्तेमाल करने के लिए लोगों को समर्थ करने का काम आप जैसी संस्थाएं ही कर सकती हैं। इसलिए क्या आपकी संस्था ये संकल्प ले सकती है कि हर साल कम से कम 500 गांवों को “कमकैश गांव” बनाएगी। आप देखिएगा, आप 500 गांवों को “कमकैश” बनाएंगे तो आसपास के एक दो हजार गांव अपने आप इस व्यवस्था को अपनाने लगेंगे। एक chain reaction की तरह ये एक गांव से दूसरे गांव में फैलेगा।साथियों, गांधी जी का मंत्र गांवों को सशक्त करके ही देश को मजबूत करने का था। उस मंत्र पर चलते हुए “बायफ” के सेवाभाव ने लाखों किसानों की जिंदगी बदली है, उन्हें स्वरोजगार करना सिखाया है। संकल्प लेकर सिद्धि कैसे की जाती है, उसका साक्षात प्रमाण आपकी संस्था है।

मेरा आग्रह है आपसे, जो विचार आपके सामने मैंने रखे हैं, उस से जुड़े हुए कुछ नए संकल्पों को अपने साथ जोड़िए। 2022 में, जब देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे करेगा, तब आपके संकल्पों की सिद्धि से देश के करोड़ों किसानों की सफलता सिद्ध होगी।

धन्यवाद !!! 

 

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