“आजादी के इन 75 सालों ने जुडिशरी और एग्जीक्यूटिव, दोनों के ही रोल्स और रिस्पांसिबिलिटीज को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये रिलेशन लगातार इवॉल्व हुआ है”
"हम किस तरह अपने जुडिशल सिस्टम को इतना समर्थ बनाएँ कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए"
"अमृत काल में हमारी दृष्टि एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था की होनी चाहिए, जिसमें आसान न्याय, त्वरित न्याय और सभी के लिए न्याय हो"
"भारत सरकार भी जुडिशल सिस्टम में टेक्नोलॉजी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है"
"कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे"
“आज देश में करीब साढ़े तीन लाख प्रिजनर्स ऐसे हैं, जो अंडर-ट्रायल हैं और जेल में हैं। इनमें से अधिकांश लोग गरीब या सामान्य परिवारों से हैं"
“मैं सभी मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अपील करूंगा कि वे इन्हें प्राथमिकता दें”
“हमारी समृद्ध कानूनी विशेषज्ञता के साथ, हम मध्यस्थता द्वारा समाधान के क्षेत्र में एक विश्व गुरु बन सकते हैं। हम पूरी दुनिया के सामने एक मॉडल पेश कर सकते हैं"

Hon’ble Chief Justice of India श्री एनवी रमन्ना जी, जस्टिस श्री यूयू ललित जी, देश के कानून मंत्री श्री किरण रिजिजू जी, राज्य मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल जी, राज्यों के सभी आदरणीय मुख्यमंत्री गण, लेफ्टिनेंट गवर्नर्स ऑफ UTs, Hon’ble Judges of the Supreme Court of India, Chief Justices of High Courts, distinguished guests, उपस्थित अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

राज्य के मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट्स के मुख्य-न्यायाधीशों की ये जॉइंट कॉन्फ्रेंस हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है। मुझे ख़ुशी है कि इस अवसर पर मुझे भी आप सबके बीच कुछ पल बिताने का अवसर मिला है। हमारे देश में जहां एक ओर judiciary की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं legislature नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का roadmap तैयार करेगा। मैं आप सभी को इस आयोजन के लिए हृदय से शुभकामनायें देता हूँ।

साथियों,

मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों की ये जॉइंट कॉन्फ्रेंसेस पहले भी होती आई हैं। और, उनसे हमेशा देश के लिए कुछ न कुछ नए विचार भी निकले हैं। लेकिन, ये इस बार ये जो आयोजन अपने आपमें और भी ज्यादा खास है। आज ये कॉन्फ्रेंस एक ऐसे समय में हो रही है, जब देश अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आज़ादी के इन 75 सालों ने judiciary और executive, दोनों के ही roles और responsibilities को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये relation लगातार evolve हुआ है। आज आज़ादी के अमृत महोत्सव में जब देश नए अमृत संकल्प ले रहा है, नए सपने देख रहा है, तो हमें भी भविष्य की तरफ देखना होगा। 2047 में जब देश अपनी आज़ादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपने judicial system को इतना समर्थ बनाएँ कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। अमृतकाल में हमारा विज़न एक ऐसी न्याय व्यवस्था का होना चाहिए जिसमें न्याय सुलभ हो, न्याय त्वरित हो, और न्याय सबके लिए हो।

साथियों,

देश में न्याय की देरी को कम करने के लिए सरकार अपने स्तर से हर संभव प्रयास कर रही है। हम judicial strength को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, judicial infrastructure को बेहतर करने की कोशिश चल रही है। Case management के लिए ICT के इस्तेमाल की शुरुआत भी की गई है। Subordinate Courts और district courts से लेकर high courts तक, vacancies को भरने के लिए भी प्रयास हो रहे हैं। साथ ही, Judicial infrastructure को मजबूत करने के लिए भी देश में व्यापक काम हो रहा है। इसमें राज्यों की भी बहुत बड़ी भूमिका है।

साथियों,

आज पूरी दुनिया में नागरिकों के अधिकारों के लिए, उनके सशक्तिकरण के लिए technology एक important tool बन चुकी है। हमारे judicial system में भी, technology की संभावनाओं से आप सब परिचित हैं। हमारे Honourable judges समय-समय पर इस विमर्श को आगे भी बढ़ाते रहते हैं। भारत सरकार भी judicial system में technology की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है। उदाहरण के तौर पर, e-courts project को आज mission mode में implement किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट e-committee के मार्गदर्शन में judicial system में technology integration और digitization का काम तेजी आगे बढ़ रहा है। मैं यहाँ उपस्थित सभी मुख्यमंत्रियों और high courts के सभी chief justices से भी आग्रह करूंगा कि, इस अभियान को विशेष महत्व दें, इसे आगे बढ़ाएँ। डिजिटल इंडिया के साथ judiciary का ये integration आज देश के सामान्य मानवी की अपेक्षा भी बन गई है। आप देखिए, आज कुछ साल पहले डिजिटल transaction को हमारे देश के लिए असंभव माना जाता था। लोगों को लगता था, लोग शक करते थे अरे यह हमारे देश में कैसे हो सकता है? और ये भी सोचा जाता इसका स्कोप केवल शहरों तक ही सीमित रह सकता है, उससे आगे बढ़ नहीं सकता है। लेकिन आज छोटे कस्बों और यहाँ तक कि गाँवों में भी डिजिटल transaction आम बात होने लगी है। ये पूरे विश्व में पिछले साल जितने डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए, उसमें से 40 प्रतिशत डिजिटल ट्रांजेक्शन भारत में हुए हैं। सरकार से जुड़ी वो सेवाएँ जिनके लिए पहले नागरिकों को महीनों offices के चक्कर काटने पड़ते थे, वो अब मोबाइल पर available हो रही हैं। ऐसे में स्वाभाविक है, जिस नागरिक को सेवाएँ और सुविधाएं ऑनलाइन उपलब्ध हो रही हैं, वो न्याय के अधिकार को लेकर भी वैसी ही अपेक्षाएँ करेगा।

साथियों,

आज जब हम technology और futuristic approach की बात कर रहे हैं, तो इसका एक important aspect tech-friendly human resource भी है। Technology आज युवाओं के जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है। ये हमें सुनिश्चित करना है कि युवाओं की ये expertise उनकी professional strength कैसे बने। आजकल कई देशों में law universities में block-chains, electronic discovery, cyber-security, robotics, Artificial Intelligence और bio-ethics जैसे विषय पढ़ाये जा रहे हैं। हमारे देश में भी legal education इन international standards के मुताबिक हो, ये हम सबकी ज़िम्मेदारी है। इसके लिए हमें मिलकर प्रयास करने होंगे।

साथियों,

हमारे शास्त्रों में कहा गया है- 'न्यायमूलं सुराज्यं स्यात्'। अर्थात् किसी भी देश में सुराज का आधार न्याय होता है। इसलिए न्याय जनता से जुड़ा हुआ होना चाहिए, जनता की भाषा में होना चाहिए। जब तक न्याय के आधार को सामान्य मानवी नहीं समझता, उसके लिए न्याय और राजकीय आदेश में बहुत फर्क नहीं होता है। मैं इन दिनों सरकार में एक विषय पर थोड़ा दिमाग खपा रहा हूं। दुनिया के कई देश ऐसे हैं। जहां कानून बनाते हैं तो एक तो legal terminology में कानून होता है। लेकिन उसके साथ एक और कानून का रूप भी रखा जाता है। जो लोक भाषा में होता है, सामान्य मानवी की भाषा में होता है और दोनों मान्य होते हैं और उसके कारण सामान्य मानवी को कानूनी चीजों को समझने में न्याय के दरवाजे खटखटाने की जरूरत नहीं पड़ती है। हम कोशिश कर रहे हैं कि आने वाले दिनों में हमारे देश में भी कानून की एक पूरी तरह legal terminology हो, लेकिन साथ–साथ वो ही बात सामान्य व्यक्ति की समझ में आए। उस भाषा में और वो भी दोनों एक साथ Assembly में या Parliament में पारित हो ताकि आगे चलकर के सामान्य मानवी उसके आधार पर अपनी बात रख सकता है। दुनिया के कई देशों में ये परंपरा है। अभी मैनें एक टोली बनाई है, वो उसका अध्ययन कर रही है।

साथियों,

हमारे देश में आज भी high courts और supreme court की सारी कार्यवाही इंग्लिश में होती है और मुझे अच्छा लगा CGI ने स्वयं ने इस विषय को स्पर्श किया तो कल अखबारों को पॉजिटीव खबर का अवसर तो मिलेगा अगर उठा लें तो। लेकिन उसके लिए बहुत इंतजार करना पड़ेगा।

साथियों,

एक बड़ी आबादी को न्यायिक प्रक्रिया से लेकर फैसलों तक को समझना मुश्किल होता है। हमें इस व्यवस्था को सरल और आम जनता के लिए ग्राह्य बनाने की जरूरत है। हमें courts में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेगा। अब इस समय हम यह कोशिश कर रहे हैं कि Technical Education और Medical Education मात्र भाषा में क्यों नहीं होना चाहिए। हमारे बच्चे जो बाहर जाते हैं, दुनिया की वो भाषा कोशिश करते हैं, पढ़कर के, फिर मेडिकल कॉलेज की, हम हमारे देश में कर सकते हैं और मुझे खुशी है कई राज्यों ने मातृ भाषा में Technical Education, Medical Education के लिए कुछ initiative लिए हैं। तो आगे चलकर उसके कारण गांव का गरीब का बच्चा भी जो भाषा के कारण रुकावटें महसूस करता है। उसके लिए सारे रास्ते खुल जाएंगे और ये भी तो एक बड़ा न्याय है। ये भी एक सामाजिक न्याय है। सामाजिक न्याय के लिए न्यायपालिका की तराजू तक जाने की जरूरत नहीं होती है। सामाजिक न्याय के लिए कभी भाषा भी बहुत बड़ा कारण बन सकती है।

साथियों,

एक गंभीर विषय सामान्य आदमी के लिए कानून की पेंचीदगियां भी हैं। 2015 में हमने करीब 18 सौ ऐसे क़ानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 क़ानूनों को हमने खत्म किया। लेकिन, राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं। मैं आज सभी मुख्यमंत्रीगण यहां बैठे हैं। मैं आपसे बहुत आग्रह करता हूं कि अपने राज्य के नागरिकों के अधिकारों के लिए, उनकी ease of living के लिए आपके यहां भी ये कानूनों का इतना बड़ा जाल बना हुआ है। कालबाह्य कानूनों में लोग फंसे पड़े हैं। उन कानूनों को निरस्त करने की दिशा में आप कदम उठाइये, लोग बहुत आर्शीवाद देंगे।

साथियों,

न्यायिक सुधार केवल एक नीतिगत विषय या policy matter ही नहीं है। देश में लंबित करोड़ों केसेस के लिए policy से लेकर technology तक, हर संभव प्रयास देश में हो रहे हैं और हमने बार-बार इसकी चर्चा भी की है। इस conference में भी आप सब experts इस विषय पर विस्तार से बात करेंगे ही ये मुझे पूरा विश्वास है और मैं शायद बहुत लंबे अर्से से तक इस मीटिंग में बैठा हुआ हूं। शायद judges को ऐसी मीटिंग में आने का जितना अवसर मिला होगा, उससे ज्यादा मुझे मिला है। क्योंकि मैं कई वर्षों तक मुख्यमंत्री के रूप में इस कांफ्रेंस में आता रहता था। अब यहां बैठने का मौक़ा आ गया है तो यहाँ से आता रहता हूं। एक प्रकार से मैं इस महफिल में सीनियर हूं।

साथियों,

इस विषय में मैं जब बात कर रहा था, तो मैं ये मानता हूं कि इन सारे कामों में मानवीय संवेदनाएं जुड़ी हैं। मानवीय संवेदनाओं को भी हमें केंद्र में भी रखना ही होगा। आज देश में करीब साढ़े तीन लाख prisoners ऐसे हैं, जो under-trial हैं और जेल में हैं। इनमें से अधिकांश लोग गरीब या सामान्य परिवारों से हैं। हर जिले में डिस्ट्रिक्ट जज की अध्यक्षता में एक कमेटी होती है, ताकि इन केसेस की समीक्षा हो सके, जहां संभव हो बेल पर उन्हें रिहा किया जा सके। मैं सभी मुख्यमंत्रियों और high courts के justices से अपील करूंगा कि मानवीय संविधानों उन संवेदनाओं और कानून के आधार पर इन मामलों को भी अगर संभव हो तो प्राथमिकता दी जाये। इसी तरह न्यायालयों में, और ख़ासकर स्थानीय स्तर पर लंबित मामलों के समाधान के लिए मध्यस्थता- Mediation भी एक महत्वपूर्ण जरिया है। हमारे समाज में तो मध्यस्थता के जरिए विवादों के समाधान की हजारों साल पुरानी परंपरा है। आपसी सहमति और परस्पर भागीदारी, ये न्याय की अपनी एक अलग मानवीय अवधारणा है। अगर हम देखें, तो हमारे समाज का वो स्वभाव कहीं न कहीं अभी भी बना हुआ है। हमने हमारी उन परंपराओं को खोया नहीं है। हमें इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने की जरूरत है और जैसे शिव साहब ने ललित जी की तारीफ की मैं भी करना चाहूंगा। उन्होंने पूरे देश में भ्रमण किया, हर राज्य में गये इस काम के लिए और सबसे बड़ी बात है कोरोना काल में गए।

साथियों,

मामलों का कम समय में समाधान भी होता है, न्यायालयों का बोझ भी कम होता है, और social fabric भी सुरक्षित रहता है। हमने इसी सोच के साथ संसद में Mediation Bill को भी एक umbrella legislation के रूप में पेश किया है। अपनी rich legal expertise के साथ हम ‘mediation से solution’ की विधा में ग्लोबल लीडर बन सकते हैं। हम पूरी दुनिया के सामने एक model पेश कर सकते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि प्राचीन मानवीय मूल्यों और आधुनिक approach के साथ इस कॉन्फ्रेंस में ऐसे सभी विषयों पर आप सभी विद्वत जन विस्तार से चर्चा करके मंथन करके उस अमृत को लाओगे, जो शायद आने वाली पीढ़ीयों तक काम आएगा। इस कॉन्फ्रेंस से जो नए ideas निकलेंगे, जो नए निष्कर्ष निकलेंगे, वो नए भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने का माध्यम बनेंगे। इसी विश्वास के साथ, मैं फिर एक बार आप सबके मार्गदर्शन के लिए मैं आपका आभारी हूं और मैं सरकार की तरफ से ये विश्वास दिलाता हूं कि देश की न्याय व्यवस्था के लिए सरकारों ने जो करना होगा चाहे राज्य सरकार हो, केन्द्र सरकार हो वो भरसक प्रयास करेगी. ताकि हम सब मिलकर के देश के कोटि–कोटि नागरिकों की आशा अपेक्षाओं को पूर्ण कर सकें और 2047 में देश जब आजादी के 100 साल मनाए तब हम न्याय के क्षेत्र में भी और अधिक गौरव के साथ और अधिक सम्मान के साथ और अधिक संतोष के साथ आगे बढ़े, यही मेरी बहुत–बहुत शुभकामनाएं हैं, बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

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Prime Minister Shri Narendra Modi met with the Prime Minister of Dominica H.E. Mr. Roosevelt Skeritt on the sidelines of the 2nd India-CARICOM Summit in Georgetown, Guyana.

The leaders discussed exploring opportunities for cooperation in fields like climate resilience, digital transformation, education, healthcare, capacity building and yoga They also exchanged views on issues of the Global South and UN reform.