यूनिवर्सिटी सिर्फ उच्च शिक्षा का केंद्र भर नहीं होती, यह ऊंचे लक्ष्यों, ऊंचे संकल्पों को साधने की शक्ति को हासिल करने का स्थान भी होती है : पीएम मोदी
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लक्ष्य है कि देश का हर युवा खुद को जान सके, अपने मन को टटोल सके : प्रधानमंत्री मोदी
साल 2014 के पहले 20 वर्षों में जितने रुपयों की खादी की बिक्री हुई थी। उससे ज्यादा की बिक्री पिछले 6 वर्षों में हुई है : पीएम मोदी

नमस्‍कार!

केन्‍द्रीय मंत्रीमण्‍डल में मेरे वरिष्‍ठ सहयोगी और लखनऊ के सांसद श्रीमान राजनाथ सिंह जी, उत्तर प्रदेश के मुख्‍मंत्री श्रीमान योगी आदित्‍यनाथ जी, उप मुख्‍यमंत्री डॉक्टर दिनेश शर्मा जी, उच्च शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती नीलिमा कटियार जी, यूपी सरकार के अन्य सभी मंत्रीगण, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति श्री आलोक कुमार राय जी, विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्रगण, देवियों और सज्जनों,

लखनऊ विश्वविद्यालय परिवार को सौ वर्ष पूरा होने पर हार्दिक शुभकामनाएं! सौ वर्ष का समय सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है। इसके साथ अपार उपलब्धियों का एक जीता-जागता इतिहास जुड़ा हुआ है। मुझे खुशी है कि इन 100 वर्षों की स्मृति में एक स्मारक डाक टिकट, स्मारक सिक्के और कवर को जारी करने का अवसर मुझे मिला है।

साथियों,

मुझे बताया गया है कि बाहर गेट नंबर-1 के पास जो पीपल का पेड़ है, वो विश्वविद्यालय की 100 वर्ष की अविरत यात्रा का अहम साक्षी है। इस वृक्ष ने, यूनिवेर्सिटी के परिसर में देश और दुनिया के लिए अनेक प्रतिभाओं को अपने सामने बनते हुए, गढ़ते हुए देखा है। 100 साल की इस यात्रा में यहां से निकले व्यक्तित्व राष्ट्रपति पद पर पहुँचे, राज्यपाल बने। विज्ञान का क्षेत्र हो या न्याय का, राजनीतिक हो या प्रशासनिक, शैक्षणिक हो या साहित्य, सांस्कृतिक हो या खेलकूद, हर क्षेत्र की प्रतिभाओं को लखनऊ यूनिवर्सिटी ने निखारा है, संवारा है। यूनिवर्सिटी का Arts quadrangle अपने आप में बहुत सारा इतिहास समेटे हुए है। इसी Arts quadrangle में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आवाज गूंजी थी और उस वीर वाणी में कहा था- "भारत के लोगों को अपना संविधान बनाने दो या फिर इसका खमियाजा भुगतो" कल जब हम भारत के लोग अपना संविधान दिवस मनाएंगे, तो नेताजी सुभाष बाबू की वो हुंकार, नई ऊर्जा लेकर आएगी।

साथियों

लखनऊ यूनिवर्सिटी से इतने सारे नाम जुड़े हैं, अनगिनत लोगों के नाम, चाहकर भी सबके नाम लेना संभव नहीं है। मैं आज के इस पवित्र अवसर पर उन सभी का वंदन करता हूं। सौ साल की यात्रा में अनेक लोगों ने अनेक प्रकार से योगदान किया है। वे सब अभिनंदन के अधिकारी हैं। हां, इतना जरूर है कि मैं जब भी लखनऊ यूनिवर्सिटी से पढ़कर निकले लोगों से बात करने का मौका मिला है और यूनिवर्सिटी की बात निकले और उनकी आंखों में चमक न हो, ऐसा कभी मैंने देखा नहीं। यूनिवर्सिटी में बिताए दिनों को, उसकी बाते करते-करते वो बड़े उत्‍साहित हो जाते हैं ऐसा मैंने कई बार अनुभव किया है और तभी तो लखनऊ हम पर फिदा, हम फिदा-ए-लखनऊ का मतलब और अच्छे से तभी समझ आता है। लखनऊ यूनिवर्सिटी की आत्मीयता यहाँ की "रूमानियत" ही कुछ और रही है। यहां के छात्रों के दिल में टैगोर लाइब्रेरी से लेकर अलग-अलग कैंटीनों के चाय-समोसे और बन-मक्खन अब भी जगह बनाए हुए हैं। अब बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन लखनऊ यूनिवर्सिटी का मिजाज लखनवी ही है, अब भी वही है।

साथियों,

ये संयोग ही है कि आज देव प्रबोधिनी एकादशी है। मान्यता है कि चातुर्मास में आवागमन में समस्याओं के कारण जीवन थम सा जाता है। यहां तक कि देवगण भी सोने चले जाते हैं। एक प्रकार से आज देवजागरण का दिन है। हमारे यहां कहा जाता है- “या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी" जब सभी प्राणियों के साथ-साथ देवता तक सो रहे होते हैं, तब भी संयमी मानव लोक कल्याण के लिए साधनारत रहता है। आज हम देख रहे हैं कि देश के नागरिक कितने संयम के साथ, कोरोना की इस मुश्किल चुनौती का सामना कर रहे हैं, देश को आगे बढ़ा रहे हैं।

साथियों,

देश को प्रेरित करने वाले, प्रोत्साहित करने वाले नागरिकों का निर्माण शिक्षा के ऐसे ही संस्थानों में ही होता है। लखनऊ यूनिवर्सिटी दशकों से अपने इस काम को बखूबी निभा रही है। कोरोना के समय में भी यहां के छात्र-छात्राओं ने, टीचर्स ने अनेक प्रकार के समाधान समाज को दिए हैं।

साथियों,

मुझे बताया गया है कि लखनऊ यूनिवर्सिटी के क्षेत्र-अधिकार को बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। यूनिवर्सिटी द्वारा नए रिसर्च केंद्रों की भी स्थापना की गई है। लेकिन मैं इसमें कुछ और बातें जोड़ने का साहस करता हूं। मुझे विश्‍वास है कि आप लोग उसको अपनी चर्चा में जरूर उसको रखेंगे। मेरा सुझाव है कि जिन जिलों तक आपका शैक्षणिक दायरा है, वहां की लोकल विधाओं, वहां के लोकल उत्पादों से जुड़े कोर्सिस, उसके लिए अनुकूल skill development, उसकी हर बारीकी से analysis, ये हमारी यूनिवर्सिटी में क्‍यों न हों। वहां उन उत्पादों की प्रोडक्शन से लेकर उनमें वैल्यू एडिशन के लिए आधुनिक समाधानों, आधुनिक टेक्नॉलॉजी पर रिसर्च भी हमारी यूनिवर्सिटी कर सकती है। उनकी ब्रांडिंग, मार्केटिंग और मैनेजमेंट से जुड़ी स्ट्रेटेजी भी आपके कोर्सेज का हिस्सा हो सकती है। यूनिवर्सिटी के छात्रों की दिनचर्या का हिस्सा हो सकती है। अब जैसे लखनऊ की चिकनकारी, अलीगढ़ के ताले, मुरादाबाद के पीतल के बर्तनों, भदोही के कालीन ऐसे अनेक उत्पादों को हम Globally Competitive कैसे बनाएं। इसको लेकर नए सिरे से काम, नए सिरे से स्टडी, नए सिरे से रिसर्च क्‍या हम नहीं कर सकते हैं, जरूर कर सकते हैं। इस स्टडी से सरकार को भी अपने निति निर्धारण में, पॉलिसीज बनाने में बहुत बड़ी मदद मिलती है और तभी वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट की भावना सच्‍चे अर्थ में साकार हो पाएगी। इसके अलावा हमारे आर्ट, हमारे कल्चर, हमारे आध्यात्म से जुड़े विषयों की Global reach के लिए भी हमें निरंतर काम करते रहना है। भारत की ये सॉफ्ट पावर, अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की छवि मजबूत करने में बहुत सहायक है। हमने देखा है पूरी दुनिया में योग की ताकत क्‍या है, कोई योग कहता होगा, कोई योगा कहता होगा, लेकिन पूरे विश्‍व को योग को अपना एक प्रकार से जीवन का हिस्‍सा बनाने के लिए प्रेरित कर दिया है।

साथियों,

यूनिवर्सिटी सिर्फ उच्च शिक्षा का केंद्र भर नहीं होती। ये ऊंचे लक्ष्यों, ऊंचे संकल्पों को साधने की शक्ति को हासिल करने का भी एक बहुत बड़ा power house होता है, एक बहुत बड़ी ऊर्जा भूमि होती है, प्रेरणा भूमि होती है। ये हमारे Character के निर्माण का, हमारे भीतर की ताकत को जगाने की प्रेरणास्थली भी है। यूनिवर्सिटी के शिक्षक, साल दर साल, अपने Students के Intellectual, Academic और Physical Development को निखारते हैं, छात्रों का सामर्थ्य बढ़ाते हैं। छात्र अपने सामर्थ्य को पहचानें, इसमें भी आप शिक्षकों की बड़ी भूमिका होती है।

लेकिन साथियों, लंबे समय तक हमारे यहां समस्या ये रही है कि हम अपने सामर्थ्य का पूरा उपयोग ही नहीं करते। यही समस्या पहले हमारी गवर्नेंस में, सरकारी तौर-तरीकों में भी थी। जब सामर्थ्य का सही उपयोग न हो, तो क्या नतीजा होता है, मैं आज आपके बीच में उसका एक उदाहरण देना चाहता हूं और यहां यूपी में वो जरा ज्‍यादा suitable है। आपके बहुत, लखनऊ से जो बहुत दूर नहीं है रायबरेली, रायबरेली का रेलकोच फैक्ट्री। बरसों पहले वहां निवेश हुआ, संसाधन लगे, मशीनें लगीं, बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुईं, रेल कोच बनाएंगे। लेकिन अनेक सालों तक वहां सिर्फ डेंटिंग-पेंटिंग का काम होता रहा। कपूरथला से डिब्बे बनकर आते थे और यहां उसमें थोड़ा लीपा-पोती, रंग-रोगन करना, कुछ चीजें इधर-उधर डाल देना, बस यही होता था। जिस फैक्ट्री में रेल के डिब्बे बनाने का सामर्थ्य था, उसमें पूरी क्षमता से काम कभी नहीं हुआ। साल 2014 के बाद हमने सोच बदली, तौर तरीका बदला। परिणाम ये हुआ कि कुछ महीने में ही यहां से पहला कोच बनकर तैयार हुआ और आज हर साल सैकड़ों डिब्बे यहां से निकल रहे हैं। सामर्थ्य का सही इस्तेमाल कैसे होता है, वो आपके बगल में ही है और दुनिया आज इस बात को देख रही है और यूपी को तो इस बात पर गर्व होगा कि अब से कुछ समय बाद दुनिया की सबसे बड़ी, आपको गर्व होगा साथियों, दुनियो की सबसे बड़ी रेल कोच फैक्ट्री, अगर उसके नाम की चर्चा होगी तो वो चर्चा रायबरेली के रेल कोच फैक्‍ट्री की होगी।

साथियों,

सामर्थ्य के उपयोग के साथ-साथ नीयत और इच्छा शक्ति का होना भी उतना ही जरूरी है। इच्छाशक्ति न हो, तो भी आपको जीवन में सही नतीजे नहीं मिल पाते। इच्छाशक्ति से कैसे बदलाव होता है, इसका उदाहरण, देश के सामने कई उदाहरण हैं, मैं जरा यहां आज आपके सामने एक ही सैक्‍टर का उल्‍लेख करना चाहता हूं यूरिया। एक जमाने में देश में यूरिया उत्पादन के बहुत से कारखाने थे। लेकिन बावजूद इसके काफी यूरिया भारत, बाहर से ही मंगवाता था, import करता था। इसकी एक बड़ी वजह ये थी कि जो देश के खाद कारखाने थे, वो अपनी फुल कैपेसिटी पर काम ही नहीं करते थे। सरकार में आने के बाद जब मैंने अफसरों से इस बारे में बात की तो मैं हैरान रह गया।

साथियों,

हमने एक के बाद एक नीतिगत निर्णय लिए, इसी का नतीजा है कि आज देश में यूरिया कारखाने पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं। इसके अलावा एक और समस्या थी- यूरिया की ब्लैक मार्केटिंग। किसानो के नाम पर निकलता था और पहुंचता कहीं और था, चोरी हो जाता था। उसका बहुत बड़ा खामियाजा हमारे देश के किसानों को उठाना पड़ता था। यूरिया की ब्लैक मार्केटिंग का इलाज हमने किया, कैसे किया, यूरिया की शत-प्रतिशत, 100 percent नीम कोटिंग करके। ये नीम कोटिंग का कॉन्सेप्ट भी कोई मोदी के आने के बाद आया है, ऐसा नहीं है, ये सब known था, सब जानते थे और पहले भी कुछ मात्रा में नीम कोटिंग होता था। लेकिन कुछ मात्रा में करने से चोरी नहीं रूकती है। लेकिन शत-प्रतिशत नीम कोटिंग के लिए जो इच्छाशक्ति चाहिए थी, वो नहीं थी। आज शत-प्रतिशत नीम कोटिंग हो रही है और किसानों को पर्याप्त मात्रा में यूरिया मिल रहा है।

साथियों,

नई टेक्नॉलॉजी लाकर, पुराने और बंद हो चुके खाद कारखानों को अब दोबारा शुरू भी करवाया जा रहा है। गोरखपुर हो, सिंदरी हो, बरौनी हो, ये सब खाद कारखाने कुछ ही वर्षों में फिर से शुरू हो जाएंगे। इसके लिए बहुत बड़ी गैस पाइपलाइन पूर्वी भारत में बिछाई जा रही है। कहने का मतलब ये है कि सोच में Positivity और अप्रोच में Possibilities को हमें हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए। आप देखिएगा, जीवन में आप कठिन से कठिन चुनौती का सामना इस तरह कर पाएंगे।

साथियों,

आपके जीवन में निरंतर ऐसे लोग भी आएंगे जो आपको प्रोत्साहित नहीं बल्कि हतोत्साहित करते रहेंगे। ये नहीं हो सकता है, अरे ये तू नहीं कर सकता है यार तो सोच तेरा काम नहीं है, ये कैसे होगा, अरे इसमें तो ये दिक्कत है, ये तो संभव ही नहीं है, अरे इस तरह की बातें लगातार आपको सुनने को मिलती होंगी। दिन में दस लोग ऐसे मिलते होंगे जो निराशा, निराशा, निराशा की ही बाते करते रहते हैं और ऐसी बातें सुनकर के आपके कान भी थक गए होंगे। लेकिन आप खुद पर भरोसा करते हुए आगे बढ़िएगा। अगर आपको लगता है कि आप जो कर रहे हैं, वो ठीक है, देश के हित में है, वो न्यायोचित तरीके से किया जा सकता है, तो उसे हासिल करने के लिए अपने प्रयासों में कभी कोई कमी मत आने दीजिए। मैं आज आपको एक और उदाहरण भी देना चाहूंगा।

साथियों,

खादी को लेकर, हमारे यहां खादी को लेकर जो एक वातावरण है लेकिन मेरा जरा उल्‍टा था, मैं जरा उत्साहित रहा हूं, मैं उसे जब मैं गुजरात में सरकारों के रास्‍ते पर तो नहीं था तब मैं एक सामाजिक काम करता था, कभी राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में काम करता था। खादी पर हम गर्व करते हैं, चाहते हैं, खादी की प्रतिबद्धता, खादी के प्रति झुकाव, खादी के प्रति लगाव, खादी की प्रसिद्धि, ये पूरी दुनिया में हो, ये मेरे मन में हमेशा रहा करता था। जब मैं वहां का मुख्यमंत्री बना, तो मैंने भी खादी का खूब प्रचार प्रसार करना शुरू किया। 2 अक्‍टूबर को मैं खुद बाजार में जाता था, खादी के स्‍टोर में जाके खुद कुछ न कुछ खरीदता था। मेरी सोच बहुत Positive थी, नीयत भी अच्छी थी। लेकिन दूसरी तरफ कुछ लोग हतोत्साहित करने वाले भी मिलते थे। मैं जब खादी को आगे बढ़ाने के बारे में सोच रहा था, जब कुछ लोगों से इस बारे में चर्चा की तो उन्होंने कहा कि खादी इतनी boring है और इतनी un-cool है। आखिर खादी को आप हमारे आज के youth में प्रमोट कैसे कर पाएंगे? आप सोचिए, मुझे किस तरह के सुझाव मिलते थे। ऐसी ही निराशावादी अप्रोच की वजह से हमारे यहां खादी के revival की सारी possibilities मन में ही मर चुकी थी, समाप्त हो चुकी थीं। मैंने इन बातों को किनारे किया और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ा। 2002 में, मैंने पोरबंदर में, महात्‍मा गांधी जी की जन्मजयंती के दिन, गांधी जी की जन्‍मस्थली में ही खादी के कपड़ों का ही एक फैशन शो प्लान किया और एक यूनिवर्सिटी के young students को ही इसकी जिम्मेदारी दी। फैशन शो तो होते रहते हैं लेकिन खादी और Youth दोनों ने मिलकर उस दिन जो मजमा जमा दिया, उन्‍होंने सारे पूर्वाग्रहों को ध्वस्त कर दिया, नौजवानों ने कर दिया था और बाद में उस event की चर्चा भी बहुत हुई थी और उस समय मैंने एक नारा भी दिया था कि आजादी से पहले खादी for nation, आजादी के बाद खादी for fashion, लोग हैरान थे कि खादी कैसे fashionable हो सकती है, खादी कपड़ों का फैशन शो कैसे हो सकता है? और कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है कि खादी और फैशन को एक साथ ले आए।

साथियों,

इसमें मुझे बहुत दिक्कत नहीं आई। बस, सकारात्मक सोच ने, मेरी इच्छाशक्ति ने मेरा काम बना दिया। आज जब सुनता हूं कि खादी स्टोर्स से एक-एक दिन में एक-एक करोड़ रुपए की बिक्री हो रही है, तो मैं अपने वो दिन भी याद करता हूं। आपको जानकर हैरानी होगी और ये आंकड़ा याद रखिए आप, साल 2014 के पहले, 20 वर्षों में जितने रुपए की खादी की बिक्री हुई थी, उससे ज्यादा की खादी पिछले 6 साल में बिक्री हो चुकी है। कहां 20 साल का कारोबार और कहां 6 साल का कारोबार।

साथियों,

लखनऊ यूनिवर्सिटी कैंपस के ही कविवर प्रदीप ने कहा है, आप ही की यूनिवर्सिटी से, इसी मैदान की कलम से निकला है, प्रदीप ने कहा है- कभी-कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो। अपनी नज़र में तुम क्या हो? ये मन की तराजू पर तोलो। ये पंक्तियां अपने आप में विद्यार्थी के रूप में, शिक्षक के रूप में या जनप्रतिनिधि के रूप में, हम सभी के लिए एक प्रकार से गाइडलाइंस हैं। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में खुद से साक्षात्कार, खुद से बात करने, आत्ममंथन करने की आदत भी छूटती जा रही है। इतने सारे डिजिटल गैजेट्स हैं, इतने सारे प्लेटफॉर्म हैं, वो आपका समय चुरा लेते हैं, छीन लेते हैं, लेकिन आपको इन सबके बीच अपने लिए समय छीनना ही होगा, अपने लिए समय निकालना होगा।

साथियों,

मैं पहले एक काम करता था, पिछले 20 साल से तो नहीं कर पाया क्‍योंकि आप सबने मुझे ऐसा काम दे दिया है, मैं उसी काम में लगा रहता हूं। लेकिन जब मैं शासन व्‍यवस्‍था में नहीं था, तो मेरा एक कार्यक्रम होता था हर साल, मैं मुझसे मिलने जाता हूं, उस कार्यक्रम का मेरा नाम था मैं मुझसे मिलने जाता हूं और मैं पांच दिन, सात दिन ऐसी जगह पर चला जाता था जहां कोई इंसान न हो। पानी की थोड़ी सुविधा मिल जाए बस, मेरे जीवन के वो पल बड़े बहूमुल्‍य रहते थे, मैं आपको जंगलों में जाने के लिए नहीं कर रहा हूं, कुछ तो समय अपने लिए निकालिए। आप कितना समय खुद को दे रहे हैं, ये बहुत महत्वपूर्ण है। आप खुद को जाने, खुद को पहचानें, इसी दिशा में सोचना जरूरी है। आप देखिएगा, इसका सीधा प्रभाव आपके सामर्थ्य पर पड़ेगा, आपकी इच्छाशक्ति पर पड़ेगा।

साथियों,

छात्र जीवन वो अनमोल समय होता है, जो गुजर जाने के बाद फिर लौटना मुश्किल होता है। इसलिए अपने छात्र जीवन को Enjoy भी कीजिए, encourage भी कीजिए। इस समय बने हुए आपके दोस्त, जीवन भर आपके साथ रहेंगे। पद-प्रतिष्ठा, नौकरी-बिजनेस, कॉलेज, ये दोस्त इतनी सारी भरमार में आपके शिक्षा जीवन के दोस्‍त चाहे स्‍कूली शिक्षा हो या कॉलेज की, वो हमेशा एक अलग ही आपके जीवन में उनका स्‍थान होता है। खूब दोस्ती करिए और खूब दोस्ती निभाइए।

साथियों,

जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई है, उसका लक्ष्य भी यही है कि देश का हर युवा खुद को जान सके, अपने मन को टटोल सके। नर्सरी से लेकर पीएचडी तक आमूल-चूल परिवर्तन इसी संकल्प के साथ किए गए हैं। कोशिश ये है कि पहले Self-confidence, हमारे Students में एक बहुत बड़ी आवश्‍यकता होनी चाहिए। Self-Confidence तभी आता है जब अपने लिए निर्णय लेने की उसको थोड़ी आज़ादी मिले, उसको Flexibility मिले। बंधनों में जकड़ा हुआ शरीर और खांचे में ढला हुआ दिमाग कभी Productive नहीं हो सकता। याद रखिए, समाज में ऐसे लोग बहुत मिलेंगे जो परिवर्तन का विरोध करते हैं। वो विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि वो पुराने ढांचों के टूटने से डरते हैं। उनको लगता है कि परिवर्तन सिर्फ Disruption लाता है, Discontinuity लाता है। वो नए निर्माण की संभावनाओं पर विचार ही नहीं करते। आप युवा साथियों को ऐसे हर डर से खुद को बाहर निकालना है। इसलिए, मेरा लखनऊ यूनिवर्सिटी के आप सभी टीचर्स, आप सभी युवा साथियों से यही आग्रह रहेगा कि इन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर खूब चर्चा करें, मंथन करें, वाद करें, विवाद करें, संवाद करें। इसके तेज़ी से अमलीकरण पर पूरी शक्ति के साथ काम करें। देश जब आज़ादी के 75 वर्ष पूरे करेगा, तब तक नई शिक्षा नीति व्यापक रूप से Letter and Spirit में हमारे Education System का हिस्सा बने। आइए "वय राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:" इस उद्घोष को साकार करने के लिए जुट जाएं। आइए, हम मां भारती के वैभव के लिए, अपने हर प्रण को अपने कर्मों से पूरा करें।

साथियों,

1947 से लेकर के 2047 आजादी के 100 साल आएंगे, मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी से आग्रह करूंगा, इसके निती निर्धारकों से आग्रह करूंगा कि पांच दिन सात दिन अलग-अलग से तौलिया बना कर के मंथन कीजिए और 2047, जब देश आजादी के 100 साल मनाएगा, तब लखनऊ यूनिवर्सिटी कहां होगी, तब लखनऊ यूनिवर्सिटी ने आने वाले 25 साल में देश को क्‍या दिया होगा, देश की कौन सी ऐसी आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए लखनऊ यूनिवर्सिटी नेतृत्‍व करेगी। बड़े संकल्‍प के साथ, नए हौसले के साथ जब आप शताब्‍दी मना रहे हैं, तो बीते हुए दिनों की गाथाएं आने वाले दिनों के लिए प्रेरणा बननी चाहिए, आने वाले दिनों के लिए पगडंडी बननी चाहिए और तेज गति से आगे बढ़ने की नई ऊर्जा मिलनी चाहिए।

ये समारोह 100 की स्‍मृति तक सीमित न रहे, ये समारोह आने वाले आजादी के 100 साल जब होंगे, तब तक के 25 साल के रोड मैप को साकार करने का बने और लखनऊ यूनिवर्सिटी के मिजाज में ये होना चाहिए कि हम 2047 तक जब देश की आजादी के 100 साल होंगे, हमारी ये यूनिवर्सिटी देश को ये देगी और किसी यूनिवर्सिटी से 25 साल का कार्यकाल देश के लिए नई ऊचाईयों पर ले जाने के लिए समर्पित कर देता है, क्‍या कुछ परिणाम मिल सकते हैं, ये आज पिछले 100 साल का इतिहास गवाह है, 100 साल की लखनऊ यूनिवर्सिटी की सबका जो समय निकला है, जो achievement हुए हैं वो उसके गवाह है और इसलिए मैं आज आपसे आग्रह करूंगा, आप मन में 2047 का संकल्‍प को लेकर के आजादी के 100 साल तक व्‍यक्‍ति के जीवन में मैं ये दूंगा, यूनिवर्सिटी के रूप में हम ये देंगे, देश को आगे बढ़ाने में हमारी ये भूमिका होगी इसी संकल्‍प के साथ आप आगे बढ़े। मैं आज फिर एक बार, इस शताब्‍दी के समारोह के समय पर अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं और आपके बीच आने का मुझे अवसर मिला, मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं।

धन्‍यवाद !!

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November 23, 2024
आज महाराष्ट्र ने विकास, सुशासन और सच्चे सामाजिक न्याय की जीत देखी है: पीएम मोदी
महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा को कांग्रेस और उसके सहयोगियों की कुल सीटों से कहीं ज़्यादा सीटें दी हैं: पीएम मोदी
महाराष्ट्र ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यह पिछले 50 सालों में किसी भी पार्टी या चुनाव-पूर्व गठबंधन की सबसे बड़ी जीत है: पीएम मोदी
‘एक हैं तो सेफ हैं’ देश का ‘महामंत्र’ बन गया है: पार्टी मुख्यालय में भाजपा कार्यकर्ताओं से पीएम मोदी
महाराष्ट्र देश का छठा राज्य बन गया है जिसने लगातार तीसरी बार भाजपा को जनादेश दिया है: पीएम मोदी

जो लोग महाराष्ट्र से परिचित होंगे, उन्हें पता होगा, तो वहां पर जब जय भवानी कहते हैं तो जय शिवाजी का बुलंद नारा लगता है।

जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...

आज हम यहां पर एक और ऐतिहासिक महाविजय का उत्सव मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं। आज महाराष्ट्र में विकासवाद की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सुशासन की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सच्चे सामाजिक न्याय की विजय हुई है। और साथियों, आज महाराष्ट्र में झूठ, छल, फरेब बुरी तरह हारा है, विभाजनकारी ताकतें हारी हैं। आज नेगेटिव पॉलिटिक्स की हार हुई है। आज परिवारवाद की हार हुई है। आज महाराष्ट्र ने विकसित भारत के संकल्प को और मज़बूत किया है। मैं देशभर के भाजपा के, NDA के सभी कार्यकर्ताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, उन सबका अभिनंदन करता हूं। मैं श्री एकनाथ शिंदे जी, मेरे परम मित्र देवेंद्र फडणवीस जी, भाई अजित पवार जी, उन सबकी की भी भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं।

साथियों,

आज देश के अनेक राज्यों में उपचुनाव के भी नतीजे आए हैं। नड्डा जी ने विस्तार से बताया है, इसलिए मैं विस्तार में नहीं जा रहा हूं। लोकसभा की भी हमारी एक सीट और बढ़ गई है। यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान ने भाजपा को जमकर समर्थन दिया है। असम के लोगों ने भाजपा पर फिर एक बार भरोसा जताया है। मध्य प्रदेश में भी हमें सफलता मिली है। बिहार में भी एनडीए का समर्थन बढ़ा है। ये दिखाता है कि देश अब सिर्फ और सिर्फ विकास चाहता है। मैं महाराष्ट्र के मतदाताओं का, हमारे युवाओं का, विशेषकर माताओं-बहनों का, किसान भाई-बहनों का, देश की जनता का आदरपूर्वक नमन करता हूं।

साथियों,

मैं झारखंड की जनता को भी नमन करता हूं। झारखंड के तेज विकास के लिए हम अब और ज्यादा मेहनत से काम करेंगे। और इसमें भाजपा का एक-एक कार्यकर्ता अपना हर प्रयास करेगा।

साथियों,

छत्रपति शिवाजी महाराजांच्या // महाराष्ट्राने // आज दाखवून दिले// तुष्टीकरणाचा सामना // कसा करायच। छत्रपति शिवाजी महाराज, शाहुजी महाराज, महात्मा फुले-सावित्रीबाई फुले, बाबासाहेब आंबेडकर, वीर सावरकर, बाला साहेब ठाकरे, ऐसे महान व्यक्तित्वों की धरती ने इस बार पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। और साथियों, बीते 50 साल में किसी भी पार्टी या किसी प्री-पोल अलायंस के लिए ये सबसे बड़ी जीत है। और एक महत्वपूर्ण बात मैं बताता हूं। ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा के नेतृत्व में किसी गठबंधन को लगातार महाराष्ट्र ने आशीर्वाद दिए हैं, विजयी बनाया है। और ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।

साथियों,

ये निश्चित रूप से ऐतिहासिक है। ये भाजपा के गवर्नंस मॉडल पर मुहर है। अकेले भाजपा को ही, कांग्रेस और उसके सभी सहयोगियों से कहीं अधिक सीटें महाराष्ट्र के लोगों ने दी हैं। ये दिखाता है कि जब सुशासन की बात आती है, तो देश सिर्फ और सिर्फ भाजपा पर और NDA पर ही भरोसा करता है। साथियों, एक और बात है जो आपको और खुश कर देगी। महाराष्ट्र देश का छठा राज्य है, जिसने भाजपा को लगातार 3 बार जनादेश दिया है। इससे पहले गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, और मध्य प्रदेश में हम लगातार तीन बार जीत चुके हैं। बिहार में भी NDA को 3 बार से ज्यादा बार लगातार जनादेश मिला है। और 60 साल के बाद आपने मुझे तीसरी बार मौका दिया, ये तो है ही। ये जनता का हमारे सुशासन के मॉडल पर विश्वास है औऱ इस विश्वास को बनाए रखने में हम कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेंगे।

साथियों,

मैं आज महाराष्ट्र की जनता-जनार्दन का विशेष अभिनंदन करना चाहता हूं। लगातार तीसरी बार स्थिरता को चुनना ये महाराष्ट्र के लोगों की सूझबूझ को दिखाता है। हां, बीच में जैसा अभी नड्डा जी ने विस्तार से कहा था, कुछ लोगों ने धोखा करके अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की, लेकिन महाराष्ट्र ने उनको नकार दिया है। और उस पाप की सजा मौका मिलते ही दे दी है। महाराष्ट्र इस देश के लिए एक तरह से बहुत महत्वपूर्ण ग्रोथ इंजन है, इसलिए महाराष्ट्र के लोगों ने जो जनादेश दिया है, वो विकसित भारत के लिए बहुत बड़ा आधार बनेगा, वो विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि का आधार बनेगा।



साथियों,

हरियाणा के बाद महाराष्ट्र के चुनाव का भी सबसे बड़ा संदेश है- एकजुटता। एक हैं, तो सेफ हैं- ये आज देश का महामंत्र बन चुका है। कांग्रेस और उसके ecosystem ने सोचा था कि संविधान के नाम पर झूठ बोलकर, आरक्षण के नाम पर झूठ बोलकर, SC/ST/OBC को छोटे-छोटे समूहों में बांट देंगे। वो सोच रहे थे बिखर जाएंगे। कांग्रेस और उसके साथियों की इस साजिश को महाराष्ट्र ने सिरे से खारिज कर दिया है। महाराष्ट्र ने डंके की चोट पर कहा है- एक हैं, तो सेफ हैं। एक हैं तो सेफ हैं के भाव ने जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर लड़ाने वालों को सबक सिखाया है, सजा की है। आदिवासी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, ओबीसी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, मेरे दलित भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, समाज के हर वर्ग ने भाजपा-NDA को वोट दिया। ये कांग्रेस और इंडी-गठबंधन के उस पूरे इकोसिस्टम की सोच पर करारा प्रहार है, जो समाज को बांटने का एजेंडा चला रहे थे।

साथियों,

महाराष्ट्र ने NDA को इसलिए भी प्रचंड जनादेश दिया है, क्योंकि हम विकास और विरासत, दोनों को साथ लेकर चलते हैं। महाराष्ट्र की धरती पर इतनी विभूतियां जन्मी हैं। बीजेपी और मेरे लिए छत्रपति शिवाजी महाराज आराध्य पुरुष हैं। धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज हमारी प्रेरणा हैं। हमने हमेशा बाबा साहब आंबेडकर, महात्मा फुले-सावित्री बाई फुले, इनके सामाजिक न्याय के विचार को माना है। यही हमारे आचार में है, यही हमारे व्यवहार में है।

साथियों,

लोगों ने मराठी भाषा के प्रति भी हमारा प्रेम देखा है। कांग्रेस को वर्षों तक मराठी भाषा की सेवा का मौका मिला, लेकिन इन लोगों ने इसके लिए कुछ नहीं किया। हमारी सरकार ने मराठी को Classical Language का दर्जा दिया। मातृ भाषा का सम्मान, संस्कृतियों का सम्मान और इतिहास का सम्मान हमारे संस्कार में है, हमारे स्वभाव में है। और मैं तो हमेशा कहता हूं, मातृभाषा का सम्मान मतलब अपनी मां का सम्मान। और इसीलिए मैंने विकसित भारत के निर्माण के लिए लालकिले की प्राचीर से पंच प्राणों की बात की। हमने इसमें विरासत पर गर्व को भी शामिल किया। जब भारत विकास भी और विरासत भी का संकल्प लेता है, तो पूरी दुनिया इसे देखती है। आज विश्व हमारी संस्कृति का सम्मान करता है, क्योंकि हम इसका सम्मान करते हैं। अब अगले पांच साल में महाराष्ट्र विकास भी विरासत भी के इसी मंत्र के साथ तेज गति से आगे बढ़ेगा।

साथियों,

इंडी वाले देश के बदले मिजाज को नहीं समझ पा रहे हैं। ये लोग सच्चाई को स्वीकार करना ही नहीं चाहते। ये लोग आज भी भारत के सामान्य वोटर के विवेक को कम करके आंकते हैं। देश का वोटर, देश का मतदाता अस्थिरता नहीं चाहता। देश का वोटर, नेशन फर्स्ट की भावना के साथ है। जो कुर्सी फर्स्ट का सपना देखते हैं, उन्हें देश का वोटर पसंद नहीं करता।

साथियों,

देश के हर राज्य का वोटर, दूसरे राज्यों की सरकारों का भी आकलन करता है। वो देखता है कि जो एक राज्य में बड़े-बड़े Promise करते हैं, उनकी Performance दूसरे राज्य में कैसी है। महाराष्ट्र की जनता ने भी देखा कि कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल में कांग्रेस सरकारें कैसे जनता से विश्वासघात कर रही हैं। ये आपको पंजाब में भी देखने को मिलेगा। जो वादे महाराष्ट्र में किए गए, उनका हाल दूसरे राज्यों में क्या है? इसलिए कांग्रेस के पाखंड को जनता ने खारिज कर दिया है। कांग्रेस ने जनता को गुमराह करने के लिए दूसरे राज्यों के अपने मुख्यमंत्री तक मैदान में उतारे। तब भी इनकी चाल सफल नहीं हो पाई। इनके ना तो झूठे वादे चले और ना ही खतरनाक एजेंडा चला।

साथियों,

आज महाराष्ट्र के जनादेश का एक और संदेश है, पूरे देश में सिर्फ और सिर्फ एक ही संविधान चलेगा। वो संविधान है, बाबासाहेब आंबेडकर का संविधान, भारत का संविधान। जो भी सामने या पर्दे के पीछे, देश में दो संविधान की बात करेगा, उसको देश पूरी तरह से नकार देगा। कांग्रेस और उसके साथियों ने जम्मू-कश्मीर में फिर से आर्टिकल-370 की दीवार बनाने का प्रयास किया। वो संविधान का भी अपमान है। महाराष्ट्र ने उनको साफ-साफ बता दिया कि ये नहीं चलेगा। अब दुनिया की कोई भी ताकत, और मैं कांग्रेस वालों को कहता हूं, कान खोलकर सुन लो, उनके साथियों को भी कहता हूं, अब दुनिया की कोई भी ताकत 370 को वापस नहीं ला सकती।



साथियों,

महाराष्ट्र के इस चुनाव ने इंडी वालों का, ये अघाड़ी वालों का दोमुंहा चेहरा भी देश के सामने खोलकर रख दिया है। हम सब जानते हैं, बाला साहेब ठाकरे का इस देश के लिए, समाज के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है। कांग्रेस ने सत्ता के लालच में उनकी पार्टी के एक धड़े को साथ में तो ले लिया, तस्वीरें भी निकाल दी, लेकिन कांग्रेस, कांग्रेस का कोई नेता बाला साहेब ठाकरे की नीतियों की कभी प्रशंसा नहीं कर सकती। इसलिए मैंने अघाड़ी में कांग्रेस के साथी दलों को चुनौती दी थी, कि वो कांग्रेस से बाला साहेब की नीतियों की तारीफ में कुछ शब्द बुलवाकर दिखाएं। आज तक वो ये नहीं कर पाए हैं। मैंने दूसरी चुनौती वीर सावरकर जी को लेकर दी थी। कांग्रेस के नेतृत्व ने लगातार पूरे देश में वीर सावरकर का अपमान किया है, उन्हें गालियां दीं हैं। महाराष्ट्र में वोट पाने के लिए इन लोगों ने टेंपरेरी वीर सावरकर जी को जरा टेंपरेरी गाली देना उन्होंने बंद किया है। लेकिन वीर सावरकर के तप-त्याग के लिए इनके मुंह से एक बार भी सत्य नहीं निकला। यही इनका दोमुंहापन है। ये दिखाता है कि उनकी बातों में कोई दम नहीं है, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ वीर सावरकर को बदनाम करना है।

साथियों,

भारत की राजनीति में अब कांग्रेस पार्टी, परजीवी बनकर रह गई है। कांग्रेस पार्टी के लिए अब अपने दम पर सरकार बनाना लगातार मुश्किल हो रहा है। हाल ही के चुनावों में जैसे आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, हरियाणा और आज महाराष्ट्र में उनका सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस की घिसी-पिटी, विभाजनकारी राजनीति फेल हो रही है, लेकिन फिर भी कांग्रेस का अहंकार देखिए, उसका अहंकार सातवें आसमान पर है। सच्चाई ये है कि कांग्रेस अब एक परजीवी पार्टी बन चुकी है। कांग्रेस सिर्फ अपनी ही नहीं, बल्कि अपने साथियों की नाव को भी डुबो देती है। आज महाराष्ट्र में भी हमने यही देखा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसके गठबंधन ने महाराष्ट्र की हर 5 में से 4 सीट हार गई। अघाड़ी के हर घटक का स्ट्राइक रेट 20 परसेंट से नीचे है। ये दिखाता है कि कांग्रेस खुद भी डूबती है और दूसरों को भी डुबोती है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ी, उतनी ही बड़ी हार इनके सहयोगियों को भी मिली। वो तो अच्छा है, यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस के सहयोगियों ने उससे जान छुड़ा ली, वर्ना वहां भी कांग्रेस के सहयोगियों को लेने के देने पड़ जाते।

साथियों,

सत्ता-भूख में कांग्रेस के परिवार ने, संविधान की पंथ-निरपेक्षता की भावना को चूर-चूर कर दिया है। हमारे संविधान निर्माताओं ने उस समय 47 में, विभाजन के बीच भी, हिंदू संस्कार और परंपरा को जीते हुए पंथनिरपेक्षता की राह को चुना था। तब देश के महापुरुषों ने संविधान सभा में जो डिबेट्स की थी, उसमें भी इसके बारे में बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी। लेकिन कांग्रेस के इस परिवार ने झूठे सेक्यूलरिज्म के नाम पर उस महान परंपरा को तबाह करके रख दिया। कांग्रेस ने तुष्टिकरण का जो बीज बोया, वो संविधान निर्माताओं के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है। और ये विश्वासघात मैं बहुत जिम्मेवारी के साथ बोल रहा हूं। संविधान के साथ इस परिवार का विश्वासघात है। दशकों तक कांग्रेस ने देश में यही खेल खेला। कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए कानून बनाए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक की परवाह नहीं की। इसका एक उदाहरण वक्फ बोर्ड है। दिल्ली के लोग तो चौंक जाएंगे, हालात ये थी कि 2014 में इन लोगों ने सरकार से जाते-जाते, दिल्ली के आसपास की अनेक संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी थीं। बाबा साहेब आंबेडकर जी ने जो संविधान हमें दिया है न, जिस संविधान की रक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। संविधान में वक्फ कानून का कोई स्थान ही नहीं है। लेकिन फिर भी कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए वक्फ बोर्ड जैसी व्यवस्था पैदा कर दी। ये इसलिए किया गया ताकि कांग्रेस के परिवार का वोटबैंक बढ़ सके। सच्ची पंथ-निरपेक्षता को कांग्रेस ने एक तरह से मृत्युदंड देने की कोशिश की है।

साथियों,

कांग्रेस के शाही परिवार की सत्ता-भूख इतनी विकृति हो गई है, कि उन्होंने सामाजिक न्याय की भावना को भी चूर-चूर कर दिया है। एक समय था जब के कांग्रेस नेता, इंदिरा जी समेत, खुद जात-पात के खिलाफ बोलते थे। पब्लिकली लोगों को समझाते थे। एडवरटाइजमेंट छापते थे। लेकिन आज यही कांग्रेस और कांग्रेस का ये परिवार खुद की सत्ता-भूख को शांत करने के लिए जातिवाद का जहर फैला रहा है। इन लोगों ने सामाजिक न्याय का गला काट दिया है।

साथियों,

एक परिवार की सत्ता-भूख इतने चरम पर है, कि उन्होंने खुद की पार्टी को ही खा लिया है। देश के अलग-अलग भागों में कई पुराने जमाने के कांग्रेस कार्यकर्ता है, पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, जो अपने ज़माने की कांग्रेस को ढूंढ रहे हैं। लेकिन आज की कांग्रेस के विचार से, व्यवहार से, आदत से उनको ये साफ पता चल रहा है, कि ये वो कांग्रेस नहीं है। इसलिए कांग्रेस में, आंतरिक रूप से असंतोष बहुत ज्यादा बढ़ रहा है। उनकी आरती उतारने वाले भले आज इन खबरों को दबाकर रखे, लेकिन भीतर आग बहुत बड़ी है, असंतोष की ज्वाला भड़क चुकी है। सिर्फ एक परिवार के ही लोगों को कांग्रेस चलाने का हक है। सिर्फ वही परिवार काबिल है दूसरे नाकाबिल हैं। परिवार की इस सोच ने, इस जिद ने कांग्रेस में एक ऐसा माहौल बना दिया कि किसी भी समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए वहां काम करना मुश्किल हो गया है। आप सोचिए, कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकता आज सिर्फ और सिर्फ परिवार है। देश की जनता उनकी प्राथमिकता नहीं है। और जिस पार्टी की प्राथमिकता जनता ना हो, वो लोकतंत्र के लिए बहुत ही नुकसानदायी होती है।

साथियों,

कांग्रेस का परिवार, सत्ता के बिना जी ही नहीं सकता। चुनाव जीतने के लिए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं। दक्षिण में जाकर उत्तर को गाली देना, उत्तर में जाकर दक्षिण को गाली देना, विदेश में जाकर देश को गाली देना। और अहंकार इतना कि ना किसी का मान, ना किसी की मर्यादा और खुलेआम झूठ बोलते रहना, हर दिन एक नया झूठ बोलते रहना, यही कांग्रेस और उसके परिवार की सच्चाई बन गई है। आज कांग्रेस का अर्बन नक्सलवाद, भारत के सामने एक नई चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। इन अर्बन नक्सलियों का रिमोट कंट्रोल, देश के बाहर है। और इसलिए सभी को इस अर्बन नक्सलवाद से बहुत सावधान रहना है। आज देश के युवाओं को, हर प्रोफेशनल को कांग्रेस की हकीकत को समझना बहुत ज़रूरी है।

साथियों,

जब मैं पिछली बार भाजपा मुख्यालय आया था, तो मैंने हरियाणा से मिले आशीर्वाद पर आपसे बात की थी। तब हमें गुरूग्राम जैसे शहरी क्षेत्र के लोगों ने भी अपना आशीर्वाद दिया था। अब आज मुंबई ने, पुणे ने, नागपुर ने, महाराष्ट्र के ऐसे बड़े शहरों ने अपनी स्पष्ट राय रखी है। शहरी क्षेत्रों के गरीब हों, शहरी क्षेत्रों के मिडिल क्लास हो, हर किसी ने भाजपा का समर्थन किया है और एक स्पष्ट संदेश दिया है। यह संदेश है आधुनिक भारत का, विश्वस्तरीय शहरों का, हमारे महानगरों ने विकास को चुना है, आधुनिक Infrastructure को चुना है। और सबसे बड़ी बात, उन्होंने विकास में रोडे अटकाने वाली राजनीति को नकार दिया है। आज बीजेपी हमारे शहरों में ग्लोबल स्टैंडर्ड के इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। चाहे मेट्रो नेटवर्क का विस्तार हो, आधुनिक इलेक्ट्रिक बसे हों, कोस्टल रोड और समृद्धि महामार्ग जैसे शानदार प्रोजेक्ट्स हों, एयरपोर्ट्स का आधुनिकीकरण हो, शहरों को स्वच्छ बनाने की मुहिम हो, इन सभी पर बीजेपी का बहुत ज्यादा जोर है। आज का शहरी भारत ईज़ ऑफ़ लिविंग चाहता है। और इन सब के लिये उसका भरोसा बीजेपी पर है, एनडीए पर है।

साथियों,

आज बीजेपी देश के युवाओं को नए-नए सेक्टर्स में अवसर देने का प्रयास कर रही है। हमारी नई पीढ़ी इनोवेशन और स्टार्टअप के लिए माहौल चाहती है। बीजेपी इसे ध्यान में रखकर नीतियां बना रही है, निर्णय ले रही है। हमारा मानना है कि भारत के शहर विकास के इंजन हैं। शहरी विकास से गांवों को भी ताकत मिलती है। आधुनिक शहर नए अवसर पैदा करते हैं। हमारा लक्ष्य है कि हमारे शहर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहरों की श्रेणी में आएं और बीजेपी, एनडीए सरकारें, इसी लक्ष्य के साथ काम कर रही हैं।


साथियों,

मैंने लाल किले से कहा था कि मैं एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लाना चाहता हूं, जिनके परिवार का राजनीति से कोई संबंध नहीं। आज NDA के अनेक ऐसे उम्मीदवारों को मतदाताओं ने समर्थन दिया है। मैं इसे बहुत शुभ संकेत मानता हूं। चुनाव आएंगे- जाएंगे, लोकतंत्र में जय-पराजय भी चलती रहेगी। लेकिन भाजपा का, NDA का ध्येय सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, हमारा ध्येय सिर्फ सरकारें बनाने तक सीमित नहीं है। हम देश बनाने के लिए निकले हैं। हम भारत को विकसित बनाने के लिए निकले हैं। भारत का हर नागरिक, NDA का हर कार्यकर्ता, भाजपा का हर कार्यकर्ता दिन-रात इसमें जुटा है। हमारी जीत का उत्साह, हमारे इस संकल्प को और मजबूत करता है। हमारे जो प्रतिनिधि चुनकर आए हैं, वो इसी संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें देश के हर परिवार का जीवन आसान बनाना है। हमें सेवक बनकर, और ये मेरे जीवन का मंत्र है। देश के हर नागरिक की सेवा करनी है। हमें उन सपनों को पूरा करना है, जो देश की आजादी के मतवालों ने, भारत के लिए देखे थे। हमें मिलकर विकसित भारत का सपना साकार करना है। सिर्फ 10 साल में हमने भारत को दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी बना दिया है। किसी को भी लगता, अरे मोदी जी 10 से पांच पर पहुंच गया, अब तो बैठो आराम से। आराम से बैठने के लिए मैं पैदा नहीं हुआ। वो दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर रहेगा। हम मिलकर आगे बढ़ेंगे, एकजुट होकर आगे बढ़ेंगे तो हर लक्ष्य पाकर रहेंगे। इसी भाव के साथ, एक हैं तो...एक हैं तो...एक हैं तो...। मैं एक बार फिर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, देशवासियों को बधाई देता हूं, महाराष्ट्र के लोगों को विशेष बधाई देता हूं।

मेरे साथ बोलिए,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम ।

बहुत-बहुत धन्यवाद।