“विश्वनाथ धाम एक भव्य भवन भर नहीं है, ये प्रतीक है हमारे भारत की सनातन संस्कृति का! ये प्रतीक है हमारी आध्यात्मिक आत्मा का! ये प्रतीक है भारत की प्राचीनता का, परम्पराओं का! भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का”
“पहले यहां जो मंदिर क्षेत्र केवल 3000 वर्ग फीट में था, वह अब करीब 5 लाख वर्ग फीट का हो गया है। अब मंदिर और मंदिर परिसर में 50 से 75 हजार श्रद्धालु आ सकते हैं’
“काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण भारत को एक निर्णायक दिशा देगा, एक उज्ज्वल भविष्य की तरफ ले जाएगा। ये परिसर साक्षी है हमारे सामर्थ्य का, हमारे कर्तव्य का। अगर सोच लिया जाए, ठान लिया जाए, तो असंभव कुछ भी नहीं”
“मेरे लिए जनता जनार्दन ईश्वर का ही रूप है, हर भारतवासी ईश्वर का ही अंश है, मैं आपसे हमारे देश के लिए तीन संकल्प चाहता हूं- स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर प्रयास”
“गुलामी के लंबे कालखंड ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास ऐसा तोड़ा कि हम अपने ही सृजन पर विश्वास खो बैठे। आज हजारों वर्ष पुरानी इस काशी से मैं हर देशवासी का आह्वान करता हूं- पूरे आत्मविश्वास से सृजन करिए, नवाचार करिए, अभि‍नव तरीके से करिए”
काशी विश्वनाथ धाम के निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों का अभिनंदन एवं भोजन किया

हर हर महादेव। हर हर महादेव। नमः पार्वती पतये, हर हर महादेव॥ माता अन्नपूर्णा की जय। गंगा मइया की जय। इस ऐतिहासिक आयोजन में उपस्थित उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल जी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कर्मयोगी श्री योगी आदित्यनाथ जी, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, हम सबके मार्गदर्शक श्रीमान जे.पी.नड्डा जी, उपमुख्यमंत्री भाई केशव प्रसाद मौर्या जी, दिनेश शर्मा जी, केंद्र में मंत्री परिषद के मेरे साथी महेंद्र नाथ पांडे जी, उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह जी,  यहां के मंत्री श्रीमान नीलकंठ तिवारी जी,  देश के हर कोने से आए हुए पूज्य संत गण, और मेरे प्यारे मेरे काशीवासी, और देश-विदेश से इस अवसर के साक्षी बन रहे सभी श्रद्धालु साथीगण! काशी के सभी बंधुओं के साथ, बाबा विश्वनाथ के चरणों में हम शीश नवावत हई। माता अन्नपूर्णा के चरणन क बार बार बंदन करत हई। अभी मैं बाबा के साथ साथ नगर कोतवाल कालभैरव जी के दर्शन करके ही आ रहा हूँ, देशवासियों के लिए उनका आशीर्वाद लेकर आ रहा हूँ। काशी में कुछ भी खास हो, कुछ भी नया हो, तो सबसे पहले उनसे पूछना आवश्यक है। मैं काशी के कोतवाल के चरणों में भी प्रणाम करता हूँ। गंगा तरंग रमणीय जटा-कलापम्, गौरी निरंतर विभूषित वाम-भागम्नारायण प्रिय-मनंग-मदाप-हारम्, वाराणसी पुर-पतिम् भज विश्वनाथम्। हम बाबा विश्वनाथ दरबार से, देश दुनिया के, उन श्रद्धालु-जनन के प्रणाम करत हई, जो अपने अपने स्थान से,  इस महायज्ञ के साक्षी बनत हऊअन। हम आप सब काशी वासी लोगन के, प्रणाम करत हई, जिनके सहयोग से, ई शुभ घडी आयल हौ। हृदय गद् गद् हौ। मन आह्लादित हौ। आप सब लोगन के बहुत बहुत बधाई हौ।

साथियों,

हमारे पुराणों में कहा गया है कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। भगवान विश्वेश्वर का आशीर्वाद, एक अलौकिक ऊर्जा यहाँ आते ही हमारी अंतर-आत्मा को जागृत कर देती है। और आज, आज तो इस चिर चैतन्य काशी की चेतना में एक अलग ही स्पंदन है! आज आदि काशी की अलौकिकता में एक अलग ही आभा है! आज शाश्वत बनारस के संकल्पों में एक अलग ही सामर्थ्य दिख रहा है! हमने शास्त्रों में सुना है, जब भी कोई पुण्य अवसर होता है तो सारे तीर्थ, सारी दैवीय शक्तियाँ बनारस में बाबा के पास उपस्थित हो जाती हैं। कुछ वैसा ही अनुभव आज मुझे बाबा के दरबार में आकर हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि,  हमारा पूरा चेतन ब्रह्मांड इससे जुड़ा हुआ है। वैसे तो अपनी माया का विस्तार बाबा ही जानें, लेकिन जहां तक हमारी मानवीय दृष्टि जाती है, ‘विश्वनाथ धाम’ के इस पवित्र आयोजन से इस समय पूरा विश्व जुड़ा हुआ है।

साथियों,

आज भगवान शिव का प्रिय दिन, सोमवार है, आज विक्रम संवत् दो हजार अठहत्तर, मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष, दशमी तिथि, एक नया इतिहास रच रही है। और हमारा सौभाग्य है कि हम इस तिथि के साक्षी बन रहे हैं। आज विश्वनाथ धाम अकल्पनीय-अनंत ऊर्जा से भरा हुआ है। इसका वैभव विस्तार ले रहा है। इसकी विशेषता आसमान छू रही है। यहां आसपास जो अनेक प्राचीन मंदिर लुप्त हो गए थे, उन्हें भी पुनः स्थापित किया जा चुका है। बाबा अपने भक्तों की सदियों की सेवा से प्रसन्न हुए हैं, इसलिए उन्होंने आज के दिन का हमें आशीर्वाद दिया है। विश्वनाथ धाम का ये पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, ये प्रतीक है, हमारे भारत की सनातन संस्कृति का! ये प्रतीक है, हमारी आध्यात्मिक आत्मा का! ये प्रतीक है, भारत की प्राचीनता का, परम्पराओं का! भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का! आप यहाँ जब आएंगे तो केवल आस्था के ही दर्शन होंगे एैसा नहीं है। आपको यहाँ अपने अतीत के गौरव का अहसास भी होगा। कैसे प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव हो रही हैं, कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं,  इसके साक्षात दर्शन विश्वनाथ धाम परिसर में हम कर रहे हैं।

साथियों,

जो माँ गंगा, उत्तरवाहिनी होकर बाबा के पाँव पखारने काशी आती हैं, वो मां गंगा भी आज बहुत प्रसन्न होंगी। अब जब हम भगवान विश्वनाथ के चरणों में प्रणाम करेंगे, ध्यान लगाएंगे, तो माँ गंगा को स्पर्श करती हुई हवा हमें स्नेह देगी, आशीर्वाद देगी। और जब माँ गंगा उन्मुक्त होंगी, प्रसन्न होंगी, तो बाबा के ध्यान में हम ‘गंग-तरंगों की कल-कल’ का दैवीय अनुभव भी कर सकेंगे। बाबा विश्वनाथ सबके हैं, माँ गंगा सबकी हैं। उनका आशीर्वाद सबके लिए हैं। लेकिन समय और परिस्थितियों के चलते बाबा और माँ गंगा की सेवा की ये सुलभता मुश्किल हो चली थी, यहाँ हर कोई आना चाहता था,  लेकिन रास्तों और जगह की कमी हो गई थी। बुजुर्गों के लिए, दिव्यांगों के लिए यहाँ आने में बहुत कठिनाई होती थी। लेकिन अब, ‘विश्वनाथ धाम परियोजना के पूरा होने से यहाँ हर किसी के लिए पहुँचना सुगम हो गया है। हमारे दिव्यांग भाई-बहन, बुजुर्ग माता-पिता सीधे बोट से जेटी तक आएंगे। जेटी से घाट तक आने के लिए भी एस्कलेटर लगाए गए हैं। वहाँ से सीधे मंदिर तक आ सकेंगे। सँकरे रास्तों की वजह से दर्शन के लिए जो घंटों तक का इंतज़ार करना पड़ा था, जो परेशानी होती थी,  वो भी अब कम होगी। पहले यहाँ जो मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था, वो अब करीब करीब 5 लाख वर्ग फीट का हो गया है। अब मंदिर और मंदिर परिसर में 50, 60, 70  हजार श्रद्धालु आ सकते हैं। यानि पहले माँ गंगा का दर्शन-स्नान, और वहाँ से सीधे विश्वनाथ धाम, यही तो है, हर-हर महादेव !

साथियों,

जब मैं बनारस आया था तो एक विश्वास लेकर आया था। विश्वास अपने से ज्यादा बनारस के लोगों पर था, आप पर था। आज हिसाब-किताब का समय नहीं है लेकिन मुझे याद है, तब कुछ ऐसे लोग भी थे जो बनारस के लोगों पर संदेह करते थे। कैसे होगा., होगा ही नहीं., यहाँ तो ऐसे ही चलता है! ये मोदी जी जैसे बहुत आके गये। मुझे आश्चर्य होता था कि बनारस के लिए ऐसी धारणाएँ बना ली गई थीं! ऐसे तर्क दिये जाने लगे थे! ये जड़ता बनारस की नहीं थी! हो भी नहीं सकती थी! थोड़ी बहुत राजनीति थी, थोड़ा बहुत कुछ लोगों का निजी स्वार्थ, इसलिए बनारस पर आरोप लगाए जा रहे थे। लेकिन काशी तो काशी है! काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हों, उस काशी को भला कौन रोक सकता है? काशीखण्ड में भगवान शंकर ने खुद कहा है- “विना मम प्रसादम् वै, कः काशी प्रति-पद्यते”। अर्थात्, बिना मेरी प्रसन्नता के काशी में कौन आ सकता है, कौन इसका सेवन कर सकता है? काशी में महादेव की इच्छा के बिना न कोई आता है, और न यहाँ उनकी इच्छा के बिना कुछ होता है। यहाँ जो कुछ होता है, महादेव की इच्छा से होता है। ये जो कुछ भी हुआ है, महादेव ने ही किया है। ई विश्वनाथ धाम, त बाबा आपन आशीर्वाद से बनईले हवुअन। उनकर इच्छा के बिना, का कोई पत्ता हिल सकेला? कोई कितना बड़ा हव, तो अपने घरै क होइहें। ऊ बूलय्ये तबे कोई आ सकेला, कुछ कर सकेला।

साथियों,

बाबा के साथ अगर किसी और का योगदान है तो वो बाबा के गणों का है। बाबा के गण यानी हमारे सारे काशीवासी, जो खुद महादेव के ही रूप हैं। जब भी बाबा को अपनी शक्ति अनुभव करानी होती है, वो काशीवासियों का माध्यम ही बना देते हैं। फिर काशी करती है और दुनिया देखती है। “इदम् शिवाय, इदम् न मम्”

भाइयों और बहनों,

मैं आज अपने हर उस श्रमिक भाई-बहनों का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूं जिसका पसीना इस भव्य परिसर के निर्माण में बहा है। कोरोना के इस विपरीत काल में भी, उन्होंने यहां पर काम रुकने नहीं दिया। मुझे अभी अपने इन श्रमिक साथियों से मिलने का अवसर मिला, उनके आशीर्वाद लेने का सौभाग्य मिला। हमारे कारीगर, हमारे सिविल इंजीनयरिंग से जुड़े लोग, प्रशासन के लोग, वो परिवार जिनके यहां घर हुआ करते थे, मैं सभी का अभिनंदन करता हूं। और इन सबके साथ, मैं यूपी सरकार, हमारे कर्मयोगी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का भी और उनकी पूरी टीम का भी अभिनंदन करता हूं, जिन्होंने काशी विश्वनाथ धाम परियोजना को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया।

साथियों,

हमारी इस वाराणसी ने युगों को जिया है, इतिहास को बनते बिगड़ते देखा है, कितने ही कालखंड आए, गए! कितनी ही सल्तनतें उठीं और मिट्टी में मिल गईं, फिर भी, बनारस बना हुआ है, बनारस अपना रस बिखेर रहा है। बाबा का ये धाम शाश्वत ही नहीं रहा है, इसके सौन्दर्य ने भी हमेशा संसार को आश्चर्यचकित और आकर्षित किया है। हमारे पुराणों में प्राकृतिक आभा से घिरी काशी के ऐसे ही दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। अगर हम ग्रंथों को देखेंगे, शास्त्रों को देखेंगे।  इतिहासकारों ने भी वृक्षों, सरोवरों, तालाबों से घिरी काशी के अद्भुत स्वरूप का बखान किया है। लेकिन समय कभी एक जैसा नहीं रहता। आतातायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किए, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए! औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है। जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की! लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है। यहाँ अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं! अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। और अंग्रेजों के दौर में भी, वारेन हेस्टिंग का क्या हाल काशी के लोगों ने किया था, ये तो काशी के लोग समय समय पर बोलते रहतें हैं और काशी की जुबान पर निकलता है। घोड़े पर हौदा और हाथी पर जीनजान लेकर भागल वारेन हेस्टिंग।

साथियों,

आज समय का चक्र देखिए, आतंक के वो पर्याय इतिहास के काले पन्नों तक सिमटकर रह गए हैं! और मेरी काशी आगे बढ़ रही है, अपने गौरव को फिर से नई भव्यता दे रही है।

साथियों,

काशी के बारे में, मैं जितना बोलता हूँ, उतना डूबता जाता हूँ, उतना ही भावुक होता जाता हूँ। काशी शब्दों का विषय नहीं है, काशी संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी वो है- जहां जागृति ही जीवन है, काशी वो है- जहां मृत्यु भी मंगल है! काशी वो है- जहां सत्य ही संस्कार है! काशी वो है- जहां प्रेम ही परंपरा है।

भाइयों बहनों,

हमारे शास्त्रों ने भी काशी की महिमा गाते, और गाते हुये आखिर में, आखिर में क्या कहा, ‘नेति-नेति’ ही कहा है। यानी जो कहा, उतना ही नहीं है, उससे भी आगे कितना कुछ है! हमारे शास्त्रों ने कहा है- “शिवम् ज्ञानम् इति ब्रयुः, शिव शब्दार्थ चिंतकाः”। अर्थात् शिव शब्द का चिंतन करने वाले लोग शिव को ही ज्ञान कहते हैं। इसीलिए, ये काशी शिवमयी है, ये काशी ज्ञानमयी है। और इसीलिए ज्ञान, शोध, अनुसंधान, ये काशी और भारत के लिए स्वाभाविक निष्ठा रहे हैं। भगवान शिव ने स्वयं कहा है- “सर्व क्षेत्रेषु भू पृष्ठे, काशी क्षेत्रम् च मे वपु:”। अर्थात्, धरती के सभी क्षेत्रों में काशी साक्षात् मेरा ही शरीर है। इसीलिए, यहाँ का पत्थर, यहां का हर पत्थर शंकर है। इसलिए, हम अपनी काशी को सजीव मानते हैं, और इसी भाव से हमें अपने देश के कण-कण में मातृभाव का बोध होता है। हमारे शास्त्रों का वाक्य है- “दृश्यते सवर्ग सर्वै:, काश्याम् विश्वेश्वरः तथा”॥ यानी, काशी में सर्वत्र, हर जीव में भगवान विश्वेशर के ही दर्शन होते हैं।  इसीलिए, काशी जीवत्व को सीधे शिवत्व से जोड़ती है। हमारे ऋषियों ने ये भी कहा है- “विश्वेशं शरणं, यायां, समे बुद्धिं प्रदास्यति”। अर्थात्, भगवान विश्वेशर की शरण में आने पर सम बुद्धि व्याप्त हो जाती है। बनारस वो नगर है जहां से जगद्गुरू शंकराचार्य को श्रीडोम राजा की पवित्रता से प्रेरणा मिली, उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प लिया। ये वो जगह है जहां भगवान शंकर की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस जैसी अलौकिक रचना की है।

यहीं की धरती सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ। समाजसुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीषी यहाँ प्रकट हुये। समाज को जोड़ने की जरूरत थी तो संत रैदास जी की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी ये काशी बनी। ये काशी अहिंसा और तप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीर्थंकरों की धरती है। राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा से लेकर वल्लभाचार्य और रमानन्द जी के ज्ञान तक, चैतन्य महाप्रभु और समर्थगुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंद और मदनमोहन मालवीय तक, कितने ही ऋषियों और आचार्यों का संबंध काशी की पवित्र धरती से रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहां से प्रेरणा पाई। रानीलक्ष्मी बाई से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद तक, कितने ही सेनानियों की कर्मभूमि-जन्मभूमि काशी रही है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, पंडित रविशंकर, और बिस्मिल्लाह खान जैसी प्रतिभाएं, इस स्मरण को कहाँ तक लेते जायें, कितना कहते जायें! भंडार भरा पड़ा है। जिस तरह काशी अनंत है वैसे ही काशी का योगदान भी अनंत है। काशी के विकास में इन अनंत पुण्य-आत्माओं की ऊर्जा शामिल है। इस विकास में भारत की अनंत परम्पराओं की विरासत शामिल है। इसीलिए, हर मत-मतांतर के लोग, हर भाषा-वर्ग के लोग यहाँ आते हैं तो यहाँ से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं।

साथियों,

काशी हमारे भारत की सांस्कृतिक आध्यात्मिक राजधानी तो है ही, ये भारत की आत्मा का एक जीवंत अवतार भी है। आप देखिए, पूरब और उत्तर को जोड़ती हुई यूपी में बसी ये काशी, यहाँ विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया तो मंदिर का पुनर्निमाण, माता अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया। जिनकी जन्मभूमि महाराष्ट्र थी, जिनकी कर्मभूमि इंदौर-माहेश्वर और अनेक क्षेत्रों में थी। उन माता अहिल्याबाई होल्कर को आज मैं इस अवसर पर नमन करता हूं। दो सौ-ढाई सौ साल पहले उन्होंने काशी के लिए इतना कुछ किया था। तब के बाद से काशी के लिए इतना काम अब हुआ है। 

साथियों,

बाबा विश्वनाथ मंदिर की आभा बढ़ाने के लिए पंजाब से महाराजा रणजीत सिंह ने 23 मण सोना चढ़ाया था, इसके शिखर पर सोना मढ़वाया था। पंजाब से पूज्य गुरुनानक देव जी भी काशी आए थे, यहाँ सत्संग किया था। दूसरे सिख गुरुओं का भी काशी से विशेष रिश्ता रहा था। पंजाब के लोगों ने काशी के पुनर्निर्माण के लिए दिल खोलकर दान दिया था। पूरब में बंगाल की रानी भवानी ने बनारस के विकास के लिए अपना सब कुछ अर्पण किया। मैसूर और दूसरे दक्षिण भारतीय राजाओं का भी बनारस के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है। ये एक ऐसा शहर है जहां आपको उत्तर, दक्षिण, नेपाली, लगभग हर तरह की शैली के मंदिर दिख जाएंगे। विश्वनाथ मंदिर इसी आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रहा है, और अब ये विश्वनाथ धाम परिसर अपने भव्य रूप में इस चेतना को और ऊर्जा देगा।

साथियों,

दक्षिण भारत के लोगों की काशी के प्रति आस्था, दक्षिण भारत का काशी पर और काशी का दक्षिण पर प्रभाव भी हम सब भली-भांति जानते हैं। एक ग्रंथ में लिखा है- तेनो-पयाथेन कदा-चनात्, वाराणसिम पाप-निवारणन। आवादी वाणी बलिनाह, स्वशिष्यन, विलोक्य लीला-वासरे, वलिप्तान। कन्नड़ भाषा में ये कहा गया है, यानि जब जगद्गुरु माध्वाचार्य जी अपने शिष्यों के साथ चल रहे थे, तो उन्होंने कहा था कि काशी के विश्वनाथ, पाप का निवारण करते हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को काशी के वैभव और उसकी महिमा के बारे में भी समझाया। 

साथियों,

सदियों पहले की ये भावना निरंतर चली आ रही है। महाकवि सुब्रमण्य भारती, काशी प्रवास ने जिनके जीवन की दिशा बदल दी, उन्होंने एक जगह लिखा है, तमिल में लिखा है- "कासी नगर पुलवर पेसुम उरई दान, कान्जिइल के-पदर्कोर, खरुवि सेवोम" यानि "काशी नगरी के संतकवि का भाषण कांचीपुर में सुनने का साधन बनाएंगे" काशी से निकला हर संदेश ही इतना व्यापक है, कि देश की दिशा बदल देता है। वैसे मैं एक बात और कहूंगा। मेरा पुराना अनुभव है। हमारे घाट पर रहने वाले, नाव चलाने वाले कई बनारसी साथी तो रात में कभी अनुभव किया होगा तमिल, कन्नड़ा, तेलुगू, मलयालम, इतने फर्राटेदार तरीके से बोलते हैं कि लगता है कहीं केरला-तमिलनाडू या कर्नाटक तो नहीं आ गए हम! इतना बढ़िया बोलते हैं!  

साथियों,

भारत की हजारों सालों की ऊर्जा, ऐसे ही तो सुरक्षित रही है, संरक्षित रही है। जब अलग-अलग स्थानों के, क्षेत्रों के एक सूत्र से जुड़ते हैं तो भारत ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के रूप में जाग्रत होता है। इसीलिए, हमें ‘सौराष्ट्रे सोमनाथम्’ से लेकर ‘अयोध्या मथुरा माया, काशी कांची अवंतिका’ का हर दिन स्मरण करना सिखाया जाता है। हमारे यहाँ तो द्वादश ज्योतिर्लिंगों के स्मरण का ही फल बताया गया है- “तस्य तस्य फल प्राप्तिः, भविष्यति न संशयः”॥ यानी, सोमनाथ से लेकर विश्वनाथ तक द्वादश ज्योतिर्लिंगों का स्मरण करने से हर संकल्प सिद्ध हो जाता है, इसमें कोई संशय ही नहीं है। ये संशय इसलिए नहीं है क्योंकि इस स्मरण के बहाने पूरे भारत का भाव एकजुट हो जाता है। और जब भारत का भाव आ जाए, तो संशय कहाँ रह जाता है, असंभव क्या बचता है?

साथियों,

ये भी सिर्फ संयोग नहीं है कि जब भी काशी ने करवट ली है, कुछ नया किया है, देश का भाग्य बदला है। बीते सात वर्षों से काशी में चल रहा विकास का महायज्ञ, आज एक नई ऊर्जा को प्राप्त कर रहा है। काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण, भारत को एक निर्णायक दिशा देगा, एक उज्जवल भविष्य की तरफ ले जाएगा। ये परिसर, साक्षी है हमारे सामर्थ्य का, हमारे कर्तव्य का। अगर सोच लिया जाए, ठान लिया जाए, तो असंभव कुछ भी नहीं है। हर भारतवासी की भुजाओं में वो बल है, जो अकल्पनीय को साकार कर देता है। हम तप जानते हैं, तपस्या जानते हैं, देश के लिए दिन रात खपना जानते हैं। चुनौती कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, हम भारतीय मिलकर उसे परास्त कर सकते हैं। विनाश करने वालों की शक्ति, कभी भारत की शक्ति और भारत की भक्ति से बड़ी नहीं हो सकती। याद रखिए, जैसी दृष्टि से हम खुद को देखेंगे, वैसी ही दृष्टि से विश्व भी हमें देखेगा। मुझे खुशी है कि सदियों की गुलामी ने हम पर जो प्रभाव डाला था, जिस हीन भावना से भारत को भर दिया गया था, अब आज का भारत उससे बाहर निकल रहा है। आज का भारत सिर्फ सोमनाथ मंदिर का सुंदरीकरण ही नहीं करता बल्कि समंदर में हजारों किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर भी बिछा रहा है। आज का भारत सिर्फ बाबा केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार ही नहीं कर रहा बल्कि अपने दम-खम पर अंतरिक्ष में भारतीयों को भेजेने की तैयारी में जुटा है। आज का भारत सिर्फ अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर ही नहीं बना रहा बल्कि देश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज भी खोल रहा है। आज का भारत, सिर्फ बाबा विश्वनाथ धाम को भव्य रूप ही नहीं दे रहा बल्कि गरीब के लिए करोड़ों पक्के घर भी बना रहा है।

साथियों,

नए भारत में अपनी संस्कृति का गर्व भी है और अपने सामर्थ्य पर उतना ही भरोसा भी है। नए भारत में विरासत भी है और विकास भी है। आप देखिए, अयोध्या से जनकपुर आना-जाना आसान बनाने के लिए राम-जानकी मार्ग का निर्माण हो रहा है। आज भगवान राम से जुड़े स्थानों को रामायण सर्किट से जोड़ा जा रहा है और साथ ही रामायण ट्रेन चलाई जा रही है। बुद्ध सर्किट पर काम हो रहा है तो साथ ही कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी बनाया गया है। करतारपुर साहिब कॉरिडोर का निर्माण किया गया है तो वहीं हेमकुंड साहिब जी के दर्शन आसान बनाने के लिए रोप-वे बनाने की भी तैयारी है। उत्तराखंड में चारधाम सड़क महापरियोजना पर भी तेजी से काम जारी है। भगवान विठ्ठल के करोड़ों भक्तों के आशीर्वाद से श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का भी काम अभी कुछ हफ्ते पहले ही शुरू हो चुका है। 

साथियों,

केरला में गुरुवायूर मंदिर हो या फिर तमिलनाडु में कांचीपुरम-वेलन्कानी, तेलंगाना का जोगूलांबा देवी मंदिर हो या फिर बंगाल का बेलूर मठ, गुजरात में द्वारका जी हों या फिर अरुणाचल प्रदेश का परशुराम कुंड, देश के अलग-अलग राज्यों में हमारी आस्था और संस्कृति से जुड़े ऐसे अनेकों पवित्र स्थानों पर पूरे भक्ति भाव से काम किया गया है, काम चल रहा है।

भाइयों और बहनों,

आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजो रहा है। यहां काशी में तो माता अन्नपूर्णा खुद विराजती हैं। मुझे खुशी है कि काशी से चुराई गई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा, एक शताब्दी के इंतजार के बाद, सौ साल के बाद अब फिर से काशी में स्थापित की जा चुकी है। माता अन्नपूर्णा की कृपा से कोरोना के कठिन समय में देश ने अपने अन्न भंडार खोल दिए, कोई गरीब भूखा ना सोए इसका ध्यान रखा, मुफ्त राशन का इंतजाम किया। 

साथियों,

जब भी हम भगवान के दर्शन करते हैं, मंदिर आते हैं, कई बार ईश्वर से कुछ मांगते हैं, कुछ संकल्प लेकर भी जाते हैं। मेरे लिए तो जनता जनार्दन ईश्वर का रूप है। मेरे लिए हर भारतवासी, ईश्वर का ही अंश है। जैसे ये सब लोग भगवान के पास जाकर के मांगते हैं, जब मैं आपको भगवान मानता हूं, जनता जर्नादन को ईश्वर का रूप मानता हूं तो मैं आज आपसे कुछ मांगना चाहता हूं, मैं आपसे कुछ मांगता हूं। मैं आपसे अपने लिए नहीं, हमारे देश के लिए तीन संकल्प चाहता हूं, भूल मत जाना, तीन संकल्प चाहता हूं और बाबा की पवित्र धरती से मांग रहा हूं- पहला स्वच्छता, दूसरा सृजन और तीसरा आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर प्रयास। स्वच्छता, जीवनशैली होती है, स्वच्छता अनुशासन होती है। ये अपने साथ कर्तव्यों की एक बहुत बड़ी श्रृंखला लेकर आती है। भारत चाहे जितना ही विकास करे, स्वच्छ नहीं रहेगा, तो हमारे लिए आगे बढ़ पाना मुश्किल होगा। इस दिशा में हमने बहुत कुछ किया है, लेकिन हमें अपने प्रयासों को और बढ़ाने होंगे। कर्तव्य की भावना से भरा आपका एक छोटा सा प्रयास, देश की बहुत मदद करेगा। यहां बनारस में भी, शहर में, घाटों पर, स्वच्छता को हमें एक नए स्तर पर लेकर जाना है। गंगा जी की स्वच्छता के लिए उत्तराखंड से लेकर बंगाल तक कितने ही प्रयास चल रहे हैं। नमामि गंगे अभियान की सफलता बनी रहे, इसके लिए हमें सजग होकर काम करते रहना होगा।

साथियों,

गुलामी के लंबे कालखंड ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास ऐसा तोड़ा कि हम अपने ही सृजन पर विश्वास खो बैठे। आज हजारों वर्ष पुरानी इस काशी से, मैं हर देशवासी का आह्वान करता हूं- पूरे आत्मविश्वास से सृजन करिए, Innovate  करिए, Innovative तरीके से करिए। जब भारत का युवा, कोरोना के इस मुश्किल काल में सैकड़ों स्टार्ट अप बना सकता है, इतनी चुनौतियों के बीच, 40 से ज्यादा यूनिकॉर्न बना सकता है, वो भी ये दिखाता है कि कुछ भी कर सकता है। आप सोचिए, एक यूनिकॉर्न यानि स्टार्ट-अप करीब- करीब सात-सात हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा का है और पिछले एक डेढ़ साल में बना है, इतने कम समय में। ये अभूतपूर्व है। हर भारतवासी, जहां भी है, जिस भी क्षेत्र में है, देश के लिए कुछ नया करने का का प्रयास करेगा, तभी नए मार्ग मिलेंगे, नए मार्ग बनेंगे और हर नई मंजिल पाकर रहेंगे।

भाइयों और बहनों,

तीसरा एक संकल्प जो आज हमें लेना है, वो है आत्मनिर्भर भारत के लिए अपने प्रयास बढ़ाने का। ये आजादी का अमृतकाल है। हम आजादी के 75वें साल में हैं। जब भारत सौ साल की आजादी का समारोह बनाएगा, तब का भारत कैसा होगा, इसके लिए हमें अभी से काम करना होगा। और इसके लिए जरूरी है हमारा आत्मनिर्भर होना। जब हम देश में बनी चीजों पर गर्व करेंगे, जब हम लोकल के लिए वोकल होंगे, जब हम ऐसी चीजों को खरीदेंगे जिसे बनाने में किसी भारतीय का पसीना बहा हो, तो इस अभियान को मदद करेंगे। अमृतकाल में भारत 130 करोड़ देशवासियों के प्रयासों से आगे बढ़ रहा है। महादेव की कृपा से, हर भारतवासी के प्रयास से हम, आत्मनिर्भर भारत का सपना सच होता देंखेंगे। इसी विश्वास के साथ, मैं बाबा विश्वनाथ के, माता अन्नपूर्णा के, काशी-कोतवाल के, और सभी देवी देवताओं के चरणों में एक बार फिर प्रणाम करता हूँ। इतनी बड़ी तादाद में देश के अलग-अलग कोने से पूज्य संत-महात्मा पधारे हैं, ये हमारे लिए, मुझ जैसे सामान्य नागरिक के लिए, ये सौभाग्य के पल हैं। मैं सभी संतों का, सभी पूज्य महात्माओं का सर झुका करके हृदय से अभिनंदन करता हूं, प्रणाम करता हूं। मैं आज सभी काशीवासियों को, देशवासियों को फिर से बधाई देता हूं, बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। हर हर महादेव।

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Text of PM Modi's address at the Parliament of Guyana
November 21, 2024

Hon’ble Speaker, मंज़ूर नादिर जी,
Hon’ble Prime Minister,मार्क एंथनी फिलिप्स जी,
Hon’ble, वाइस प्रेसिडेंट भरत जगदेव जी,
Hon’ble Leader of the Opposition,
Hon’ble Ministers,
Members of the Parliament,
Hon’ble The चांसलर ऑफ द ज्यूडिशियरी,
अन्य महानुभाव,
देवियों और सज्जनों,

गयाना की इस ऐतिहासिक पार्लियामेंट में, आप सभी ने मुझे अपने बीच आने के लिए निमंत्रित किया, मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। कल ही गयाना ने मुझे अपना सर्वोच्च सम्मान दिया है। मैं इस सम्मान के लिए भी आप सभी का, गयाना के हर नागरिक का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। गयाना का हर नागरिक मेरे लिए ‘स्टार बाई’ है। यहां के सभी नागरिकों को धन्यवाद! ये सम्मान मैं भारत के प्रत्येक नागरिक को समर्पित करता हूं।

साथियों,

भारत और गयाना का नाता बहुत गहरा है। ये रिश्ता, मिट्टी का है, पसीने का है,परिश्रम का है करीब 180 साल पहले, किसी भारतीय का पहली बार गयाना की धरती पर कदम पड़ा था। उसके बाद दुख में,सुख में,कोई भी परिस्थिति हो, भारत और गयाना का रिश्ता, आत्मीयता से भरा रहा है। India Arrival Monument इसी आत्मीय जुड़ाव का प्रतीक है। अब से कुछ देर बाद, मैं वहां जाने वाला हूं,

साथियों,

आज मैं भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आपके बीच हूं, लेकिन 24 साल पहले एक जिज्ञासु के रूप में मुझे इस खूबसूरत देश में आने का अवसर मिला था। आमतौर पर लोग ऐसे देशों में जाना पसंद करते हैं, जहां तामझाम हो, चकाचौंध हो। लेकिन मुझे गयाना की विरासत को, यहां के इतिहास को जानना था,समझना था, आज भी गयाना में कई लोग मिल जाएंगे, जिन्हें मुझसे हुई मुलाकातें याद होंगीं, मेरी तब की यात्रा से बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं, यहां क्रिकेट का पैशन, यहां का गीत-संगीत, और जो बात मैं कभी नहीं भूल सकता, वो है चटनी, चटनी भारत की हो या फिर गयाना की, वाकई कमाल की होती है,

साथियों,

बहुत कम ऐसा होता है, जब आप किसी दूसरे देश में जाएं,और वहां का इतिहास आपको अपने देश के इतिहास जैसा लगे,पिछले दो-ढाई सौ साल में भारत और गयाना ने एक जैसी गुलामी देखी, एक जैसा संघर्ष देखा, दोनों ही देशों में गुलामी से मुक्ति की एक जैसी ही छटपटाहट भी थी, आजादी की लड़ाई में यहां भी,औऱ वहां भी, कितने ही लोगों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया, यहां गांधी जी के करीबी सी एफ एंड्रूज हों, ईस्ट इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष जंग बहादुर सिंह हों, सभी ने गुलामी से मुक्ति की ये लड़ाई मिलकर लड़ी,आजादी पाई। औऱ आज हम दोनों ही देश,दुनिया में डेमोक्रेसी को मज़बूत कर रहे हैं। इसलिए आज गयाना की संसद में, मैं आप सभी का,140 करोड़ भारतवासियों की तरफ से अभिनंदन करता हूं, मैं गयाना संसद के हर प्रतिनिधि को बधाई देता हूं। गयाना में डेमोक्रेसी को मजबूत करने के लिए आपका हर प्रयास, दुनिया के विकास को मजबूत कर रहा है।

साथियों,

डेमोक्रेसी को मजबूत बनाने के प्रयासों के बीच, हमें आज वैश्विक परिस्थितियों पर भी लगातार नजर ऱखनी है। जब भारत और गयाना आजाद हुए थे, तो दुनिया के सामने अलग तरह की चुनौतियां थीं। आज 21वीं सदी की दुनिया के सामने, अलग तरह की चुनौतियां हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी व्यवस्थाएं और संस्थाएं,ध्वस्त हो रही हैं, कोरोना के बाद जहां एक नए वर्ल्ड ऑर्डर की तरफ बढ़ना था, दुनिया दूसरी ही चीजों में उलझ गई, इन परिस्थितियों में,आज विश्व के सामने, आगे बढ़ने का सबसे मजबूत मंत्र है-"Democracy First- Humanity First” "Democracy First की भावना हमें सिखाती है कि सबको साथ लेकर चलो,सबको साथ लेकर सबके विकास में सहभागी बनो। Humanity First” की भावना हमारे निर्णयों की दिशा तय करती है, जब हम Humanity First को अपने निर्णयों का आधार बनाते हैं, तो नतीजे भी मानवता का हित करने वाले होते हैं।

साथियों,

हमारी डेमोक्रेटिक वैल्यूज इतनी मजबूत हैं कि विकास के रास्ते पर चलते हुए हर उतार-चढ़ाव में हमारा संबल बनती हैं। एक इंक्लूसिव सोसायटी के निर्माण में डेमोक्रेसी से बड़ा कोई माध्यम नहीं। नागरिकों का कोई भी मत-पंथ हो, उसका कोई भी बैकग्राउंड हो, डेमोक्रेसी हर नागरिक को उसके अधिकारों की रक्षा की,उसके उज्जवल भविष्य की गारंटी देती है। और हम दोनों देशों ने मिलकर दिखाया है कि डेमोक्रेसी सिर्फ एक कानून नहीं है,सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है, हमने दिखाया है कि डेमोक्रेसी हमारे DNA में है, हमारे विजन में है, हमारे आचार-व्यवहार में है।

साथियों,

हमारी ह्यूमन सेंट्रिक अप्रोच,हमें सिखाती है कि हर देश,हर देश के नागरिक उतने ही अहम हैं, इसलिए, जब विश्व को एकजुट करने की बात आई, तब भारत ने अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान One Earth, One Family, One Future का मंत्र दिया। जब कोरोना का संकट आया, पूरी मानवता के सामने चुनौती आई, तब भारत ने One Earth, One Health का संदेश दिया। जब क्लाइमेट से जुड़े challenges में हर देश के प्रयासों को जोड़ना था, तब भारत ने वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड का विजन रखा, जब दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हुए, तब भारत ने CDRI यानि कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रज़ीलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर का initiative लिया। जब दुनिया में pro-planet people का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करना था, तब भारत ने मिशन LiFE जैसा एक global movement शुरु किया,

साथियों,

"Democracy First- Humanity First” की इसी भावना पर चलते हुए, आज भारत विश्वबंधु के रूप में विश्व के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहा है। दुनिया के किसी भी देश में कोई भी संकट हो, हमारा ईमानदार प्रयास होता है कि हम फर्स्ट रिस्पॉन्डर बनकर वहां पहुंचे। आपने कोरोना का वो दौर देखा है, जब हर देश अपने-अपने बचाव में ही जुटा था। तब भारत ने दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों के साथ दवाएं और वैक्सीन्स शेयर कीं। मुझे संतोष है कि भारत, उस मुश्किल दौर में गयाना की जनता को भी मदद पहुंचा सका। दुनिया में जहां-जहां युद्ध की स्थिति आई,भारत राहत और बचाव के लिए आगे आया। श्रीलंका हो, मालदीव हो, जिन भी देशों में संकट आया, भारत ने आगे बढ़कर बिना स्वार्थ के मदद की, नेपाल से लेकर तुर्की और सीरिया तक, जहां-जहां भूकंप आए, भारत सबसे पहले पहुंचा है। यही तो हमारे संस्कार हैं, हम कभी भी स्वार्थ के साथ आगे नहीं बढ़े, हम कभी भी विस्तारवाद की भावना से आगे नहीं बढ़े। हम Resources पर कब्जे की, Resources को हड़पने की भावना से हमेशा दूर रहे हैं। मैं मानता हूं,स्पेस हो,Sea हो, ये यूनीवर्सल कन्फ्लिक्ट के नहीं बल्कि यूनिवर्सल को-ऑपरेशन के विषय होने चाहिए। दुनिया के लिए भी ये समय,Conflict का नहीं है, ये समय, Conflict पैदा करने वाली Conditions को पहचानने और उनको दूर करने का है। आज टेरेरिज्म, ड्रग्स, सायबर क्राइम, ऐसी कितनी ही चुनौतियां हैं, जिनसे मुकाबला करके ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवार पाएंगे। और ये तभी संभव है, जब हम Democracy First- Humanity First को सेंटर स्टेज देंगे।

साथियों,

भारत ने हमेशा principles के आधार पर, trust और transparency के आधार पर ही अपनी बात की है। एक भी देश, एक भी रीजन पीछे रह गया, तो हमारे global goals कभी हासिल नहीं हो पाएंगे। तभी भारत कहता है – Every Nation Matters ! इसलिए भारत, आयलैंड नेशन्स को Small Island Nations नहीं बल्कि Large ओशिन कंट्रीज़ मानता है। इसी भाव के तहत हमने इंडियन ओशन से जुड़े आयलैंड देशों के लिए सागर Platform बनाया। हमने पैसिफिक ओशन के देशों को जोड़ने के लिए भी विशेष फोरम बनाया है। इसी नेक नीयत से भारत ने जी-20 की प्रेसिडेंसी के दौरान अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल कराकर अपना कर्तव्य निभाया।

साथियों,

आज भारत, हर तरह से वैश्विक विकास के पक्ष में खड़ा है,शांति के पक्ष में खड़ा है, इसी भावना के साथ आज भारत, ग्लोबल साउथ की भी आवाज बना है। भारत का मत है कि ग्लोबल साउथ ने अतीत में बहुत कुछ भुगता है। हमने अतीत में अपने स्वभाव औऱ संस्कारों के मुताबिक प्रकृति को सुरक्षित रखते हुए प्रगति की। लेकिन कई देशों ने Environment को नुकसान पहुंचाते हुए अपना विकास किया। आज क्लाइमेट चेंज की सबसे बड़ी कीमत, ग्लोबल साउथ के देशों को चुकानी पड़ रही है। इस असंतुलन से दुनिया को निकालना बहुत आवश्यक है।

साथियों,

भारत हो, गयाना हो, हमारी भी विकास की आकांक्षाएं हैं, हमारे सामने अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन देने के सपने हैं। इसके लिए ग्लोबल साउथ की एकजुट आवाज़ बहुत ज़रूरी है। ये समय ग्लोबल साउथ के देशों की Awakening का समय है। ये समय हमें एक Opportunity दे रहा है कि हम एक साथ मिलकर एक नया ग्लोबल ऑर्डर बनाएं। और मैं इसमें गयाना की,आप सभी जनप्रतिनिधियों की भी बड़ी भूमिका देख रहा हूं।

साथियों,

यहां अनेक women members मौजूद हैं। दुनिया के फ्यूचर को, फ्यूचर ग्रोथ को, प्रभावित करने वाला एक बहुत बड़ा फैक्टर दुनिया की आधी आबादी है। बीती सदियों में महिलाओं को Global growth में कंट्रीब्यूट करने का पूरा मौका नहीं मिल पाया। इसके कई कारण रहे हैं। ये किसी एक देश की नहीं,सिर्फ ग्लोबल साउथ की नहीं,बल्कि ये पूरी दुनिया की कहानी है।
लेकिन 21st सेंचुरी में, global prosperity सुनिश्चित करने में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है। इसलिए, अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान, भारत ने Women Led Development को एक बड़ा एजेंडा बनाया था।

साथियों,

भारत में हमने हर सेक्टर में, हर स्तर पर, लीडरशिप की भूमिका देने का एक बड़ा अभियान चलाया है। भारत में हर सेक्टर में आज महिलाएं आगे आ रही हैं। पूरी दुनिया में जितने पायलट्स हैं, उनमें से सिर्फ 5 परसेंट महिलाएं हैं। जबकि भारत में जितने पायलट्स हैं, उनमें से 15 परसेंट महिलाएं हैं। भारत में बड़ी संख्या में फाइटर पायलट्स महिलाएं हैं। दुनिया के विकसित देशों में भी साइंस, टेक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स यानि STEM graduates में 30-35 परसेंट ही women हैं। भारत में ये संख्या फोर्टी परसेंट से भी ऊपर पहुंच चुकी है। आज भारत के बड़े-बड़े स्पेस मिशन की कमान महिला वैज्ञानिक संभाल रही हैं। आपको ये जानकर भी खुशी होगी कि भारत ने अपनी पार्लियामेंट में महिलाओं को रिजर्वेशन देने का भी कानून पास किया है। आज भारत में डेमोक्रेटिक गवर्नेंस के अलग-अलग लेवल्स पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व है। हमारे यहां लोकल लेवल पर पंचायती राज है, लोकल बॉड़ीज़ हैं। हमारे पंचायती राज सिस्टम में 14 लाख से ज्यादा यानि One point four five मिलियन Elected Representatives, महिलाएं हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, गयाना की कुल आबादी से भी करीब-करीब दोगुनी आबादी में हमारे यहां महिलाएं लोकल गवर्नेंट को री-प्रजेंट कर रही हैं।

साथियों,

गयाना Latin America के विशाल महाद्वीप का Gateway है। आप भारत और इस विशाल महाद्वीप के बीच अवसरों और संभावनाओं का एक ब्रिज बन सकते हैं। हम एक साथ मिलकर, भारत और Caricom की Partnership को और बेहतर बना सकते हैं। कल ही गयाना में India-Caricom Summit का आयोजन हुआ है। हमने अपनी साझेदारी के हर पहलू को और मजबूत करने का फैसला लिया है।

साथियों,

गयाना के विकास के लिए भी भारत हर संभव सहयोग दे रहा है। यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश हो, यहां की कैपेसिटी बिल्डिंग में निवेश हो भारत और गयाना मिलकर काम कर रहे हैं। भारत द्वारा दी गई ferry हो, एयरक्राफ्ट हों, ये आज गयाना के बहुत काम आ रहे हैं। रीन्युएबल एनर्जी के सेक्टर में, सोलर पावर के क्षेत्र में भी भारत बड़ी मदद कर रहा है। आपने t-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप का शानदार आयोजन किया है। भारत को खुशी है कि स्टेडियम के निर्माण में हम भी सहयोग दे पाए।

साथियों,

डवलपमेंट से जुड़ी हमारी ये पार्टनरशिप अब नए दौर में प्रवेश कर रही है। भारत की Energy डिमांड तेज़ी से बढ़ रही हैं, और भारत अपने Sources को Diversify भी कर रहा है। इसमें गयाना को हम एक महत्वपूर्ण Energy Source के रूप में देख रहे हैं। हमारे Businesses, गयाना में और अधिक Invest करें, इसके लिए भी हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

साथियों,

आप सभी ये भी जानते हैं, भारत के पास एक बहुत बड़ी Youth Capital है। भारत में Quality Education और Skill Development Ecosystem है। भारत को, गयाना के ज्यादा से ज्यादा Students को Host करने में खुशी होगी। मैं आज गयाना की संसद के माध्यम से,गयाना के युवाओं को, भारतीय इनोवेटर्स और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने के लिए भी आमंत्रित करता हूँ। Collaborate Globally And Act Locally, हम अपने युवाओं को इसके लिए Inspire कर सकते हैं। हम Creative Collaboration के जरिए Global Challenges के Solutions ढूंढ सकते हैं।

साथियों,

गयाना के महान सपूत श्री छेदी जगन ने कहा था, हमें अतीत से सबक लेते हुए अपना वर्तमान सुधारना होगा और भविष्य की मजबूत नींव तैयार करनी होगी। हम दोनों देशों का साझा अतीत, हमारे सबक,हमारा वर्तमान, हमें जरूर उज्जवल भविष्य की तरफ ले जाएंगे। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं, मैं आप सभी को भारत आने के लिए भी निमंत्रित करूंगा, मुझे गयाना के ज्यादा से ज्यादा जनप्रतिनिधियों का भारत में स्वागत करते हुए खुशी होगी। मैं एक बार फिर गयाना की संसद का, आप सभी जनप्रतिनिधियों का, बहुत-बहुत आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।