मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्रीमान नितिन गडकरी जी, श्रीमान उपेंद्र जी कुशवाहा, मंचस्थ महानुभाव सभी आदरणीय सांसद महोदय और सभी देशवासी, 

देश आजाद हुआ तब से अब तक ग्रामीण विकास के संदर्भ में सभी सरकारों ने अपने-अपने तरीके से प्रयास किए हैं। और ये प्रयास निरंतर चलते रहने चाहिए। समयानुकूल परिवर्तन के साथ चलते रहने चाहिए। बदलते हुए युग के अनुकूल योजनाएं बननी चाहिए, बदलते हुए विश्व की गति के अनुसार परिवर्तन की भी गति तेज होनी चाहिए और ये न रुकने वाली प्रक्रिया है। लेकिन हर बार उस प्रक्रिया को और अधिक तेज बनाने के लिए, उस प्रक्रिया में प्राण-शक्ति भरने के लिए कुछ नए Element हर बार जोड़ते रहना जरूरी होता है। 

हमारे देश में हर राज्य में 5-10, 5-10 गांव जरूर ऐसे हैं कि जिसके विषय में हम गर्व कर सकते हैं। उस गांव में प्रवेश करते ही एक अलग अनुभूति होती है। अगर सरकारी योजना से ही ये गांव बनते, तो फिर तो और भी गांव बनने चाहिए थे। और नहीं बने, कुछ ही बने, इसका मतलब ये हुआ कि सरकारी योजनाओं के सिवाय भी कुछ है। सरकारी योजनाओं के सिवा जो है वो ही इस सांसद आदर्श ग्राम योजना की आत्मा है। 

योजनाएं तो सभी गांव के लिए हैं। लेकिन कुछ ही गांवों ने प्रगति की क्योंकि उस गांव में कुछ लोग थे जिनकी सोच भिन्न थी। कोई नेता थे जिन्होंने एक अलग ढंग से Lead किया और उसी के कारण ये परिवर्तन आया है। ऐसा नहीं है कि हम जो सोच रहे हैं उससे भी ज्यादा अच्छे गांव नहीं हैं। उससे भी ज्यादा अच्छे गांव हैं, लोगों ने बनाए हैं। आवश्यकता ये है कि हमें अगर निर्णय की प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन लाना है तो कहीं से हमें शुरू करना चाहिए। 

आज श्रद्धेय जय प्रकाश नारायण जी की जन्म जयंती का पावन पर्व है। आजादी के आंदोलन में मुखर युवा शक्ति, और आजादी के बाद राजनीति से अपने आप को भिन्न रखते हुए रचनात्मक कामों में अपने आप को आहूत करते हुए, उन्होंने अपने जीवन को जिस प्रकार से जिया, हम सबके लिए प्रेरणा बने हैं। जय प्रकाश जी की एक बात.. उनके विचारों पर गांधी, विनोबा की छाया हमेशा रहती थी। लोहिया की छाया भी रहती थी। उन्होंने एक बात कही कि ग्राम धर्म एक महत्वपूर्ण बात है और जब तक एक समाज की तरह गांव सोचता नहीं है, चलता नहीं है, तो ग्राम धर्म असंभव। है और अगर ग्राम धर्म संभव है, तो ग्राम नई ऊंचाईयों को पाने का रास्‍ता अपने आप चुन सकता है। 

महात्‍मा गांधी के जीवन में गांव का जिक्र हर बात में आता है। गांधी जी 1915 में विदेश से वापस आए। दो साल के भीतर-भीतर उन्‍होंने जो कुछ भी अध्‍ययन किया, वही बिहार के चंपारण में जाकर के गांव के लोगों के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ना शुरू कर दिया। जन भागीदारी के साथ कर दिया। इतने बड़े आजादी के आंदोलन का बीज गांव में बोया गया था, गांधी के द्वारा। आज जयप्रकाश नारायण जी के अनन्‍य साथी श्रीमान नानाजी देशमुख की भी जन्‍म जयंति है। नानाजी देशमुख ने जयप्रकाश नारायण और उनकी श्रीमती जी प्रभा देवी, उनके नाम से चित्रकूट के पास जयप्रभा नगर के विकास के लिए अपने आप को आछूत किया था। जयप्रभा नगर के मॉडल के आधार पर उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश के कई गांवों में, गांवों के जीवन को self sufficient बनाना, इस मकसद को लेकर उन्‍होंने काम किया था। 

हमारे पूर्व राष्‍ट्रपति अब्‍दुल कलाम जी स्‍वयं उन गांवों का विजिट करने गए थे और उन्‍होंने बड़े विस्‍तार से अपनी बातों में उसका उल्‍लेख कई बार किया है। कहने का तात्‍पर्य यह है, कि आज हम जब आदर्श ग्राम योजना और वो भी सांसद के मार्गदर्शन में, सांसद के नेतृत्‍व में, सांसद के प्रयत्‍नों से, इसको हमें आगे बढ़ाना है। फिलहाल तो इस टर्म में Total 3 गांवों की कल्‍पना की है। 16 तक एक गांव का मॉडल खड़ा हो जाए, उसके अनुभव के आधार पर 19 तक दो और गांव हो जाए और आगे चलकर के फिर हर वर्ष एक गांव सांसद करे। करीब-करीब हम 800 सांसद है। अगर 19 के पहले हम तीन-तीन गांव करते हैं तो ढ़ाई हजार गांव तक पहुंच पाते हैं। 

इसी योजना के प्रकाश में अगर राज्‍य भी विधायकों के लिए अगर कोई स्‍कीम बनाती है, और विधायक के नेतृत्‍व में आदर्श ग्राम… तो छह-सात हजार गांव और जुड़ सकते हैं। और, अगर एक ब्‍लॉक में, एक ब्‍लॉक में, एक गांव अच्‍छा बन जाता है तो बात वहां रूकती नहीं है। अगल-बगल के गांवों को भी हवा लगती है, वहां भी चर्चा होती है कि भई देखो वहां यह हुआ, हम भी कर सकते हैं। यहां ये प्रयोग हुआ, हम भी कर सकते हैं। इसका viral effect शुरू हो सकता है। इसलिए सबसे महत्‍वपूर्ण बात हम किस प्रकार से इसकी नींव रखते है। 

हमारे देश में लंबे अरसे से आर्थिक क्षेत्र में चर्चा करने वाले, विकास के क्षेत्र में चर्चा करने वाले, एक बहस लगातार चल रही है। और वह चर्चा है कि भई विकास का model top-to-bottom हो कि bottom-to-top हो? यह चर्चा हो रही है। अब चर्चा करने वालों का काम… चर्चा करनी भी चाहिए। उसमें से नई-नई चीजें निकलती हैं। लेकिन काम वालों का काम है – कि चलो भाई, हम कहीं से शुरू तो करें। तो top-to-bottom जाना है कि bottom-to-top जाना है, वह चर्चा जहां होती है, होती रहे। देखिए हम तो कम से कम bottom में बैठकर के एक गांव को देखें तो सही। 

इसका सबसे बड़ा लाभ यह होने वाला है, जिसका अंदाजा बहुत कम लोगों को है। आज सांसद अपने क्षेत्र के विकास के लिए, अपने क्षेत्र की जन समस्‍याओं के लिए जुटा रहता है, किसी भी दल का क्‍यों न हो, वह accountable होता है, उसे काम करते रहना पड़ता है। हर पल उसको जनता के बीच रहना पड़ता है। लेकिन ज्‍यादातर उसकी शक्ति और समय तत्‍कालीन समस्‍याओं को सुलझाने में जाता है। दूसरा, उसका शक्ति और समय सरकार से काम निकलवाने के लिए अफसरों के पीछे लगता है। मैं आज एकदम से इन स्थितियों को बदल पाऊंगा या नहीं, कह नहीं रहा। लेकिन इस प्रयोग के कारण… MPLADS fund होता है, उसमें भी होता क्‍या है? उसको, इलाके के लोग कहते हैं, मुझे यह चाहिए, यह चाहिए। फिर वो बांट देता है। सरकारी अफसर को दे देता है, देखों भाई ज्‍यादा से ज्‍यादा गांव खुश हो जाए ऐसा कर लेना जरा। छोटी-छोटी स्कीम… आखिरकार होता यही है। 

ये काम ऐसा है कि जहां आज उसको एक Focussed activity के द्वारा ये लगने लगेगा कि, हां भई, उस गांव के साथ आने वाले दशकों तक उसका नाम जुड़ने वाला है। वो गांव हमेशा याद करेगा कि, भई, पहले तो हमारा गांव ऐसा था लेकिन हमारे एक MP बने थे, उनके रहते हुए ये बदलाव आ गया। 

आज सरकारी योजनाएं बहुत सारी हैं। टुकड़ों में शायद एक सांसद उन योजनाओं से संपर्क में आता है लेकिन सभी योजनाओं की धाराएं एक जगह पर ले जाने में कठिनाइयां क्या हैं? कमियां क्‍या हैं? और अच्छा बनाने का रास्ता क्या है? ये सारी बातें, जब एक सांसद एक गांव को लेकर चर्चा शुरू करेगा, तो सरकारी व्यवस्थाओं की बहुत सी कमियां उजागर होने वाली हैं। 

ये मैंने छोटा Risk नहीं लिया है। लेकिन बहुत समझदारी, जानकारी और अनुभव के आधार पर मैं कहता हूं - एक बार सांसद जब उसमें जुड़ेगा, सारी कमियां उभरकर के सामने आएगीं। और फिर जाकर के व्यवस्था में परिवर्तन शुरू होगा। फिर सबको लगेगा, “हां देखो यार! उस गांव में हमने इतना बदल किया तो सब जगह पर हम कर सकते हैं।“ आज होता क्या है, एक गांव में एक योजना होती है, टंकी एक जगह पर बन जाएगी, पानी का ट्यूबवैल दूसरी जगह पर होगा। जहां टंकी वहां ट्यूबवैल नहीं, जहां ट्यूबवैल है वहां टंकी नहीं। खर्चा हुआ? हुआ! Output हुआ? हुआ! Outcome हुआ? नहीं हुआ! इसलिए, Outcome पर Focus देने के लिए एक बार सांसद, गांव के जीवन की सभी बातों से वो जुड़ने वाला है। 

इसमें इतनी Flexibility है, इस कार्यक्रम में, कि वो अपनी मर्जी से कोई गांव चुन ले। हो सके तो तीन हजार, पांच हजार की बस्ती में हो लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कहीं 2800-2600 हैं तो लेना नहीं। और कहीं 5200 हो गए तो हाथ मत लगाओ। यह Flexible है लेकिन मोटा-मोटा अंदाज रहे कि तीन हजार-पांच हजार की बस्ती रहे तो एक व्यवस्था गढ़ी जाए। जहां पहाड़ी इलाके हैं, Tribal इलाके हैं वहां इतने बड़े गांव नहीं होते, तो वहां एक हजार और तीन हजार के बीच की संख्या हो। 

सिर्फ एक शर्त रखी है मैंने, वो शर्त ये रखी है कि ये उसका अपना गांव नहीं होना चाहिए। या अपना सुसराल नहीं होना चाहिए। इसके सिवाए वो कोई भी गांव Select कर ले। वहां के जनप्रतिनिधियों के साथ बैठकर के करे। मुझे भी बनारस के लिए गांव अभी Select करना बाकी है। आज एक Guidelines आ गई हैं। मैं भी बनारस जाऊंगा, बात करूंगा और सबका मन बनाकर के मैं भी एक गांव Select करूंगा। 

ये पूरी योजना.. आजकल हमारी एक सबसे बड़ी समस्या ये रही है कि हमारा विकास का मॉडल Supply-driven रहा है। दिल्ली में या लखनऊ में या गांधीनगर में योजना बन गई। फिर वही Inject करने का प्रयास होता है। हम इस आदर्श ग्राम के द्वारा Supply-driven से Shift करके Demand-driven बनाना चाहते हैं। गांव में urge पैदा हो। गांव कहे कि हां, ये करना है। अब ये चीज ऐसी नहीं, गांव में एक Bridge बना देना है या गांव के अंदर एक बुहत बड़ा तालाब बना देना है। इस प्रकार का नहीं है। 

हमारी आज के स्थितियों में बदलाव लाया जा सकता है कि नहीं लाया जा सकता है। अब कोई मुझे बताए, गांव के स्कूल हों, गांव का पंचायत घर हो, गांव का कोई मंदिर हो, गांव का कोई और तीर्थ क्षेत्र हो, पूजाघर हो - कम से कम वहां सफाई हो। अब इसके लिए बजट लगता है क्या? लेकिन मैं खुद गांवों में जाता था। 

मेरा ये भाग्य रहा है कि शायद, शायद राजनीतिक जीवन में काम करने वालों में बहुत कम लोगों को ये सौभाग्य मिला होगा, जो मुझे मिला है। मैंने 45 साल तक भ्रमण किया है। मैं 400 से अधिक गांवों में… Sorry, 400 से अधिक जिलों में… मुझे हिंदुस्तान में रात्रि मुकाम का अवसर मिला है। इसलिए मुझे, मुझे धरती की सच्चाई का पता है। गुजरात के बाहर कम से कम 5000 से अधिक गांव ऐसे होंगे, जहां कभी न कभी मेरा जाना हुआ होगा। और इसलिए मैं स्‍व-अनुभव से इन चीजों को जानता हूं, समझता हूं। और उसके आधार पर मैं कहता हूं कि हम एक बार गांव में विश्‍वास पैदा करें। गांव को तय करवायें कि हां, ये करना है। 

अब मुझे बताइए, किसी गावं में, 3000-5000 की बस्‍ती हो, एक साल में डिलीवरी कितनी होती है। Maximum 100। उसमें 50-60 महिलाएं ऐसी होंगी, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्‍छी होगी। 25-30 महिलाएं ऐसी होगी, जिनको इस गर्भावस्‍था में, अगर पोषण की व्‍यवस्‍था गांव कर दे, तो कभी भी कुपोषित बच्‍चा पैदा होने की संभावना नहीं है। माता के मरने की संभावना नहीं है। 

अगर यही काम भारत सरकार को करना है तो Cabinet का note बनेगा, Department का Comment आएगा, Cabinet पास करेगी, Tender निकलेगा, Tender निकलने के बाद क्‍या होगा, सबको मालूम है। फिर छह महीने के बाद अखबार में खबर आएगी कि ये हुआ। इसमें न Tender लगेगा न बजट लगेगा, न कोई Cabinet की जरूरत पड़ेगी, न मंत्री की जरूरत पड़ेगी। गांव के लोग मिलके तय करेंगे कि हर वर्ष 25 महिलाएं अगर गर्भावस्‍था है, गरीब है तो उनको तीन महीने-चार महीने Extra Nutritional food के लिए हम गांव के लोग मिलकर के काम करेंगे। 

मैं बताता हूं, यह काम आसान है साथियों। हमें मिजाज बदलने की आवश्‍यकता है। हमें जन-मन को जोड़ने की आवश्‍यकता है। और सांसद महोदय भी, यूं Political Activity करते होंगे, लेकिन उस गांव में जब जाएंगे, तो No Political Activity। पारिवारिक संबंध, पूरा परिवार जाए, बैठे, गांव के लोगों के साथ बैठे। आप देखिए, चेतना आएगी, गांव जुड़ जाएगा। समस्‍याओं का समाधान हो जाएगा। 

हमारे यहां सरकार की योजना से मध्‍याह्न भोजन चलता है। अच्‍छी बात है, चलाना भी चाहिए। लेकिन गांव में भी 80-100 परिवार ऐसे होते हैं जो अपना जन्‍मदिन, अपने पिताजी की पुण्‍यतिथि, कुछ-न-कुछ मनाते हैं। अगर थोड़ा उनसे संपर्क कर कहा जाए कि आप भले मनाते हो, लेकिन आपको जीवन का अच्‍छा प्रसंग हो तो आप परिवार के साथ स्‍कूल में आइए। घर से कुछ मिठाई-विठाई लेकर के आइए। और बच्‍चे जब मध्‍याह्न भोजन करते हैं, आप भी उनके साथ बैठिए, आप भी अपना कुछ साथ बांटिए। मुझे बताइए, Social Harmony का कितना बढि़या Movement चल सकता है। At the same time, मध्‍याह्न भोजन की Quality में change लाने के लिए यह Input काम में आ सकता है कि नहीं आ सकता है? कोई बहुत बड़े circular की जरूरत नहीं पड़ती है। बहुत बड़ी योजना की जरूरत नहीं पड़ती। ये तिथि भोजन का कार्यक्रम हम आगे बढ़ा सकते हैं कि नहीं बढ़ा सकते हैं? 

गांवों में सरकार की योजना है, गोबर गैस के प्‍लांट लगाने की। होता क्‍या है, हम सबको मालूम है। कोई बेचारा एक-आध व्‍यक्ति लगा देता है, पैसे हैं, सरकारी पैसा लाने की ताकत है, लगा देता है, लेकिन गोबर नहीं मिलता है। फिर साल, दो साल में वो स्‍मारक बन जाता है। अब ये स्‍मारक बनाना, कितना बनाते रहोगे आप? लेकिन अगर मान लीजिए, गांव की ही गोबर बैंक बना दी जाए। एक जगह पर, गांव में जितना गोबर हो, जिस तरह बैंक रुपया जमा करते है, गोबर बैंक में गोबर जमा करा दें, उसका एक common Gas Plant बने। पूरे गांव में Gas supply हो, धुएं से चूल्‍हें में काम करते-करते हमारी माताएं-बहनें परेशानी झेलती हैं, बिना खर्च के संभावना है कि नहीं है? पूरी संभावना मैं देख रहा हूं। और जो गोबर जमा करे, जब खेती का मौसम आए तो उतना ही गोबर उसे वापस दे दिया जाए Fertilizer के रूप में। गांव की गंदगी जाएगी। Fertilizer मिल जाएगा। Gas मिल जाएगा। और पूरा गांव साफ-सुथरा होने के कारण जो Health Parameter में सुधार आएगा, वह Extra Benefit है। मेरा कहने का तात्पर्य ये है, कि हम खुद Interest लेकर के गांव में एक माहौल बनाएं। 

मैं कभी सोचता हूं, कि गांव के लोग अपने गांव के प्रति गर्व करें, ऐसा माहौल हम बनाते हैं क्या? जब तक हम ये पैदा नहीं करेंगे, बदलाव नहीं आएगा जी। ये बहुत आवश्यक होता है। गांव का अपना भी तो जन्मदिन होता है। उसको एक उत्सव के रूप में गांववाले क्यों न मनाएं? उस गांव के लोग पढ़े-लिखे जितने शहरों में गए हैं उस दिन खास गांव में क्यों न आएं? सब मिलकर के आएंगे तो सोचेंगे, “यार अपने गांव में ये नहीं है, चलो मिलकर के ये कर दें। ये गांव में ये कर दें, ये कर दें।“ ये जब तक हमारा मिजाज नहीं बने… और मैं मानता हूं, आदर्श ग्राम योजना के मूल में सरकारी योजनाएं पहले भी थीं, परिवर्तन नहीं आया है। जो कमी थी उसको भरने के लिए ये “एक” प्रयोग है। यही एक Ultimate है, ये अगर मैं सोचूंगा, तो मैं मुनष्य की बुद्धि शक्ति पर ही भरोसा नहीं करता हूं, ये अर्थ होता है। कोई पूर्ण सोच नहीं होती है। हर सोच पूर्णतया की ओर आगे बढ़ती है। 

इसलिए मैं उस तत्व में विश्वास करता हूं कि कुछ भी Ultimate नहीं है। जो जब तक हुआ, अच्छा है। जो आज हो रहा है, एक कदम आगे है। आगे कोई और आएगा और अच्छा करेगा। अगर हम इसी को पूर्ण विराम मानेंगे तो काम नहीं चलता। लेकिन कहने का हमारा तात्पर्य यह है कि एक… वहां की Requirement के अनुसार, लचीलेपन के साथ सरकारी तंत्र भी हुक्म से काम न करवाए, प्रेरित करे। प्रेरित करके करवाएं। मैं विश्वास से कहता हूं, 2016 के बाद जिस सांसद ने काम किया होगा वो अपने रिश्तेदारों के लिए हमेशा उस गांव को तीर्थ क्षेत्र के रूप में बनाएगा। रिश्तेदारों को कहेगा कि चलो-चलो मैंने जो गांव बनाया है, देखने के लिए आइए। ये जो Satisfaction level है ना, वो किसी भी व्यक्ति को जीवन में समाधान देता है। 

जय प्रकाश नारायण जी ने एक महत्वपूर्ण बात बताई थी। मैं समझता हूं, आज के युग में ये बहुत ही हम लोगों के लिए प्रेरक है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र का स्वभाविक स्वभाव है, राजनीति का होना। ये आवश्यक है। लेकिन गंदी राजनीति के कारण हम परेशान हैं। गंदी राजनीति के कारण बदनामी हुई। पूरे राजनीतिक क्षेत्र की बदनामी हुई है। मुद्दा ये पार्टी, वो पार्टी नहीं है। एक विश्वास के माहौल को चोट पहुंची है। तो जय प्रकाश नारायण जी ने एक अच्छी बात बताई थी। उन्होंने कहा था कि राजनीति से मुक्ति, ये मार्ग नहीं है। मार्ग ये है, गंदी राजनीति की जगह उदार और अच्छी राजनीति इतनी तेजी से आए कि उसकी जगह ले ले। 

मैं मानता हूं, सांसद आदर्श ग्राम योजना एक रचनात्मक राजनीति का नया द्वार खोल रही है। 

उस गांव में हमें वोट मिले या न मिले, उस गांव की कोई बिरादरी हमारा सहयोग करे या न करे, मेरी उस गांव के किसी नेता के साथ पटती हो या न पटती हो, इन सबसे परे होकर के, एक गांव के लिए.. एक गांव के लिए ये सारे बंधन, सब गांव के बाहर छोड़कर आ जाऊंगा। यहां तो गांव एक Community है, वो एक सामूहिक समाज है, एक रस समाज है, एकत्व की अनुभूति से काम करने वाला है और सपनों को पूर्ति करने के लिए मैं एक catalytic agent के रूप में, मैं एक Facilitator के रूप में, मैं उनका साथी बनकर के काम कर सकता हूं क्या। 

जब 2016 में, इस अनुभव के आधार पर, जब संसद में चर्चा होगी.. मैं जानता हूं कि इस अनुभव के बाद जो सांसद Parliament में बोलेगा, अनुभव के आधार पर बोलेगा - कितनी भी असंवेदनशील सरकार होगी उसको भी उस सांसद के अनुभव को मानना पड़ेगा। कितनी भी बहुमत वाली सरकार क्यों न हो, उसको अपनी नीतियों को बदलना पड़ेगा। सांसद की बात का महात्‍म्‍य बढ़ जाने वाला है। 

कोई सरकार नकार नहीं पाएगी.. कि भई तुम तो फलानी पार्टी के हो, ठीक है आलोचना कर दो। नहीं होने वाला है..क्योंकि वो कह रहा है, मैं उस गांव में गया था, मैं काम कर रहा हूं, मेरे गांव में ये दिक्कत आ रही है, आपकी सरकार की नीतियां गलत हैं, आपकी योजनाएं गलत हैं, आपको अफसरों को समझ नहीं है… वो बोलेगा! 

उस बोलने में जो वजन होगा, जो ताकत होगी वो सरकार की नीतियां बदलने के लिए कारण बन जाएगी और ये देश को… Bottom-to-top वाला जो रास्ता हैं न, वो उसी से चुना जाने वाला है। Academic world में Bottom to top, Top to bottom चर्चा होती रहेगी। हम कहीं से शुरूआत करना चाहते हैं और इसलिए मैं कहता हूं Supply-Driven नहीं, Demand-Driven हम विकास को ले जा सकते हैं। सरकार के द्वारा नहीं, समाज के द्वारा विकास का रास्ता चुन सकते हैं क्या? सरकारी सहायताओं के साथ-साथ जन-भागीदारी के महत्व को बढ़ा सकते हैं क्या? 

हम अभी एक आंध्र के गांव को देख रहे थे। इतने छोटे से गांव में उन्होंने 28 कमिटियां बनाई हैं। सारी कमिटियां functional हैं, ऐसा नहीं कि सिर्फ मालाएं पहनने के लिए। सारी कमिटियां Functional है और उन्‍होंने इन काम को करके दिखाया है। अगर हम ये प्रेरणा दें। और अगर आज सांसद के द्वारा, कल MLA के द्वारा, अगर हर वर्ष हम सात-आठ हजार गांवों को आगे बढ़ाते हैं, देखते-ही-देखते ऐसा Viral effect होगा कि हम पूरे ग्रामीण परिसर के विकास के Model को बदल कर रख देंगे। 

हम यह समझ कर चलें कि गांव के व्‍यक्ति के aspirations भी शहर के लोगों से कम नहीं हैं। वह दुनिया देख रहा है। वह अपनी Quality of life में बदलाव चाहता है। उसको भी बच्‍चों के लिए अच्‍छी शिक्षा चाहिए। उसको भी अगर long distance education मिलता है, तो उसको चाहिए। 

अब हम मानो, कहते हैं कि भाई, Drip irrigation। पानी का संकट है दुनिया में कौन इंकार करता है? हर कोई कहता है, पानी का संकट है। क्‍या मैं जिस आदर्श ग्राम को चुनूंगा, वहां पर जितने किसान होंगे, वहां का एक भी खेत ऐसा नहीं होगा, जहां पर मैं drip irrigation न लगवाऊं। सरकार की जितनी स्‍कीमें होंगी, वो लाऊंगा। बैंक वालों से बोल कर उनको Loan दिलवा दूंगा। लेकिन Drip irrigation करके मैं उनके Product को बढ़ावा दे सकता हूं क्‍या? गांव की Economy बदल जाएगी। वहां भी पशुपालन होगा। Milk productivity बढ़े, पशु की स्थिति में सुधार आए, उसका scientific development हो - मैं अफसरों को लाउंगा, समझाऊंगा, मैं खुद उनको समझाऊंगा। मैं बदलाव ला सकता हूं। 

मित्रों, मैं मानता हूं ग्रामीण परिसर के जीवन को बदला जा सकता है। जो लोग शहर से MP चुनकर आए हैं - एक भी गांव नहीं है। मेरी उनसे प्रार्थना है, आप अपने शहरी क्षेत्र के नजदीक का कोई गांव है, उसकी तरफ ध्‍यान दीजिए। आप जिम्‍मा लीजिए। आप उसपे काम कीजिए। जो राज्‍यसभा के मित्र हैं, वे उस राज्‍य के अंदर, जहां से वे चुनकर आए हैं, जो भी उनको मनमर्जी पड़े गांव select कर लें, जो Nominated MPs है, वे हिंदुस्‍तान में जहां उन्‍हें ठीक लगे, कोई गांव पसंद करें। एक गांव को करें। लेकिन हम सब मिलके एक रचनात्‍मक राजनीति का द्वार खोलने का काम करेंगे और राजनीतिक छूआछूत से परे हो के काम करेंगे। 

जयप्रकाश नारायण जी का, महात्‍मा गांधी का, राम मनोहर लोहिया जी का, पंडित दीन दयाल उपाध्‍याय जी का। ये ऐसी पिछली शताब्‍दी की विचार धारा का प्रतीक है, जिनकी छाया किसी न किसी राजनीतिक जीवन पर आज भी है। सबकी सब पर नहीं होगी, लेकिन किसी ना किसी की किसी पर है। उनसे प्रेरणा लेकर के हम इस काम को आगे बढ़ाये, यही मेरी आपसे अपेक्षा है। 

मैंने 15 अगस्‍त को कहा था कि 11 अक्‍टूबर, जयप्रकाश जी के जन्‍म दिन पर इसकी guidelines पेश करेंगे। कुछ मित्रों में मुझे उसी शाम को Email करके, कि मैंने एक गांव Select किया है, ऐसा मुझे बताया था। और वे भाजपा के ही लोग थे, ऐसा नहीं है। भाजपा के सिवा MP ने भी, कॉंग्रेस के MPs ने भी मुझे लिखकर के दिया है। तभी मुझे लगा था कि बात में दम है। राजनीति से परे होकर के सबको इसको गले लगा रहे हैं। 

लेकिन बहुत सारे… जैसे मुझे, मुझे भी अभी गांव तय करना, मेरे इलाके में अभी बाकी है। क्योंकि मैं भी चाहता था कि Guidelines तय होने के बाद मैं, मेरे बनारस के लोगों से मिलकर के, बैठकर के, वहां के अफसरों से भी मिलकर के, बैठकर के एकाध गांव Select करूंगा। आने वाले 15-20 दिन में मैं जरूर कर लूंगा। लेकिन हम मिलकर के अपने यहां विश्वास जताएं कि हम करेंगे और उनको विश्वास भेजिए, कि आप MP रहेंगे तो आगे भी और गांव होंगे। एक model बन रहा है। और फिर और गांववालों को उस model को दिखाने के लिए लाने का प्रबंध करोगे तो अपने आप में बदलाव आ जाएगा। लेकिन हम अपने प्रयत्नों से ग्राम विकास.. यह मूल मद्दा है। अपने प्रयत्नों से, अपने हुक्म से नहीं। चिट्ठी लिख दी ये बात छूटी, ये ऐसा नहीं है। ये काम, मैं एक MP के नाते सवाल पूछ लूं पूरा हो जाए, ऐसा नही है। हम मिलकर के एक गांव करेंगे। 

मैं समझता हूं भारत मां की बहुत बड़ी सेवा करने का एक नया तरीका हम आजमा रहे हैं। मैं सभी सांसदों का हृदय से अभिनंदन करता हूं कि उन्होंने बड़े उमंग के साथ सभी दल के महानुभावों ने इसको स्वीकार किया है, स्वागत किया है और सबके मार्गदर्शन में… यह कोई योजना Ultimate नहीं है, इसमें बहुत बदलाव आएंगे। बहुत सुधार आएंगे, बहुत Practical बातें आएंगी। लेकिन ये रुपए-पैसों वाली योजना नहीं है। यह योजना People-Driven है, People's Participation से होने वाली है और सांसद मार्गदर्शन में होने वाली है। उसको आगे बढ़ायें, इसी अपेक्षा के साथ, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। 

फिर एक बार जय प्रकाश जी को आदरपूर्वक नमन करता हूं। 

Thank you. 

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | आज जब मैं आपसे ‘मन की बात’ कर रहा हूँ, तो मन में गहरी पीड़ा है | 22 अप्रैल को पहलगाम में हुई आतंकी वारदात ने देश के हर नागरिक को दुख पहुँचाया है | पीड़ित परिवारों के प्रति हर भारतीय के मन में गहरी संवेदना है | भले वो किसी भी राज्य का हो, वो कोई भी भाषा बोलता हो, लेकिन वो उन लोगों के दर्द को महसूस कर रहा है, जिन्होंने इस हमले में अपने परिजनों को खोया है | मुझे ऐहसास है, हर भारतीय का खून, आतंकी हमले की तस्वीरों को देखकर खौल रहा है | पहलगाम में हुआ ये हमला, आतंक के सरपरस्तों की हताशा को दिखाता है, उनकी कायरता को दिखाता है | ऐसे समय में जब कश्मीर में शांति लौट रही थी, स्कूल-कॉलेजों में एक vibrancy थी, निर्माण कार्यों में अभूतपूर्व गति आई थी, लोकतंत्र मजबूत हो रहा था, पर्यटकों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही थी, लोगों की कमाई बढ़ रही थी, युवाओं के लिए नए अवसर तैयार हो रहे थे | देश के दुश्मनों को, जम्मू-कश्मीर के दुश्मनों को, ये रास नहीं आया | आतंकी और आतंक के आका चाहते हैं, कश्मीर फिर से तबाह हो जाए और इसलिए इतनी बड़ी साजिश को अंजाम दिया | आतंकवाद के खिलाफ इस युद्ध में देश की एकता, 140 करोड़ भारतीयों की एकजुटता, हमारी सबसे बड़ी ताकत है | यही एकता, आतंकवाद के खिलाफ हमारी निर्णायक लड़ाई का आधार है | हमें देश के सामने आई इस चुनौती का सामना करने के लिए अपने संकल्पों को मजबूत करना है | हमें एक राष्ट्र के रूप में दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना है | आज दुनिया देख रही है, इस आतंकी हमले के बाद पूरा देश एक स्वर में बोल रहा है |

साथियो, 

भारत के हम लोगों में जो आक्रोश है, वो आक्रोश पूरी दुनिया में है | इस आतंकी हमले के बाद लगातार दुनिया-भर से संवेदनाएं आ रही हैं | मुझे भी Global leaders ने phone किए हैं, पत्र लिखे हैं, संदेश भेजे हैं | इस जघन्य तरीके से किए गए आतंकी हमले की सब ने कठोर निंदा की है | उन्होंने मृतकों के परिवारजनों के प्रति संवेदनाएं प्रकट की हैं | पूरा विश्व, आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई में, 140 करोड़ भारतीयों के साथ खड़ा है | मैं पीड़ित परिवारों को फिर भरोसा देता हूँ कि उन्हें न्याय मिलेगा, न्याय मिलकर रहेगा | इस हमले के दोषियों और साजिश रचने वालों को कठोरतम् जवाब दिया जाएगा | 

साथियो, 

दो दिन पहले हमने देश के महान वैज्ञानिक डॉ० के. कस्तूरीरंगन जी को खो दिया है | जब भी कस्तूरीरंगन जी से मुलाकात हुई, हम भारत के युवाओं के talent, आधुनिक शिक्षा, space-science ऐसे विषयों पर काफी चर्चा करते थे | विज्ञान, शिक्षा और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाई देने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा | उनके नेतृत्व में ISRO को एक नई पहचान मिली | उनके मार्गदर्शन में जो space programme आगे बढ़े, उससे भारत के प्रयासों को global मान्यता मिली | आज भारत जिन satellites का उपयोग करता है, उनमें से कई डॉ० कस्तूरीरंगन की देखरेख में ही launch की गई थी | उनके व्यक्तित्व की एक और बात बहुत खास थी, जिससे युवा-पीढ़ी उनसे सीख सकती है | उन्होंने हमेशा innovation को महत्व दिया | कुछ नया सीखने, जानने और नया करने का vision बहुत प्रेरित करने वाला है | डॉ० के. कस्तूरीरंगन जी ने देश की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार करने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी | डॉ० कस्तूरीरंगन, 21वीं सदी की आधुनिक जरूरतों के मुताबिक forward looking education का विचार लेकर आए थे | देश की नि:स्वार्थ सेवा और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा | मैं डॉ० के. कस्तूरीरंगन जी को विनम्र भाव से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ |

मेरे प्यारे देशवासियो,

इसी महीने अप्रैल में आर्यभट्ट Satellite की launching के 50 वर्ष पूरे हुए हैं | आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, 50 वर्षों की इस यात्रा को याद करते हैं - तो लगता है हमने कितनी लंबी दूरी तय की है | अंतरिक्ष में भारत के सपनों की ये उड़ान एक समय केवल हौंसलों से शुरू हुई थी | राष्ट्र के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा पाले कुछ युवा वैज्ञानिक - उनके पास न तो आज जैसे आधुनिक संसाधन थे, न ही दुनिया की Technology तक वैसी पहुँच थी - अगर कुछ था तो वो था, प्रतिभा, लगन, मेहनत और देश के लिए कुछ करने का जज्बा | बैलगाड़ियों और साइकिलों पर Critical Equipment को खुद लेकर जाते हमारे वैज्ञानिकों की तस्वीरों को आपने भी देखा होगा | उसी लगन और राष्ट्रसेवा की भावना का नतीजा है कि आज इतना कुछ बदल गया है | आज भारत एक Global Space Power बन चुका है | हमने एक साथ 104 Satellite का Launch करके Record बनाया है | हम चंद्रमा के South Pole पर पहुँचने वाले पहले देश बने हैं | भारत ने Mars Orbiter Mission Launch किया है और हम आदित्य - L1 Mission के जरिए सूरज के काफी करीब तक पहुंचे हैं | आज भारत पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा cost effective लेकिन Successful Space Program का नेतृत्व कर रहा है | दुनिया के कई देश अपनी Satellites और Space Mission के लिए ISRO की मदद लेते हैं | 

साथियो,

हम जब ISRO द्वारा किसी Satellite का launch देखते हैं तो हम गर्व से भर जाते हैं | ऐसी ही अनुभूति मुझे तब हुई जब मैं 2014 में PSLV-C-23 की launching का साक्षी बना था | 2019 में Chandrayaan-2 की landing के दौरान भी, मैं बेंगलुरू के ISRO Center में मौजूद था | उस समय Chandrayaan को वो अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी, तब वैज्ञानिकों के लिए, वो, बहुत मुश्किल घड़ी थी | लेकिन मैं अपनी आंखों से वैज्ञानिकों के धैर्य और कुछ कर गुजरने का जज्बा भी देख रहा था | और कुछ साल बाद पूरी दुनिया ने भी देखा कैसे उन्हीं वैज्ञानिकों ने Chandrayaan-3 को सफल करके दिखाया | 

साथियो,

अब भारत ने अपने Space Sector को Private Sector के लिए भी Open कर दिया है | आज बहुत से युवा Space Startup में नए झंडे लहरा रहे हैं | 10 साल पहले इस क्षेत्र में सिर्फ एक Company थी, लेकिन आज देश में, सवा तीन सौ से ज्यादा Space Startup काम कर रहे हैं | आने वाला समय Space में बहुत सारी नई संभावनाएं लेकर आ रहा है | भारत नई ऊंचाइयों को छूने वाला है | देश गगनयान, SpaDeX और Chandrayaan-4 जैसे कई अहम् मिशन की तैयारियों में जुटा है | हम Venus Orbiter Mission और Mars Lander Mission पर भी काम कर रहे हैं | हमारे Space Scientists अपने Innovations से देशवासियों को नए गर्व से भरने वाले हैं |

साथियो,

पिछले महीने म्यांमार में आए भूकंप की खौफनाक तस्वीरें आपने जरूर देखी होंगी | भूकंप से वहाँ बहुत बड़ी तबाही आई, मलबे में फंसे लोगों के लिए एक-एक सांस, एक-एक पल कीमती था | इसलिए भारत ने म्यांमार के हमारे भाई-बहनों के लिए तुरंत Operation Brahma शुरू किया | Air force के aircraft से लेकर Navy के ships तक म्यांमार की मदद के लिए रवाना हो गए | वहाँ भारतीय टीम ने एक field hospital तैयार किया | इंजीनियरों की एक टीम ने अहम् इमारतों और infrastructures को हुए नुकसान का आकलन करने में मदद की | भारतीय team ने वहां कंबल, tent, sleeping bags, दवाइयां, खाने-पीने के सामान के साथ ही और भी बहुत सारी चीजों की supply की | इस दौरान भारतीय टीम को वहाँ के लोगों से बहुत सारी तारीफ भी मिली | 

साथियो,

इस संकट में, साहस, धैर्य और सूझ-बूझ के कई दिल छू जाने वाले उदाहरण सामने आए | भारत की टीम ने 70 वर्ष से ज्यादा उम्र की एक बुजुर्ग महिला को बचाया जो मलबे में 18 घंटों से दबी हुई थी | जो लोग अभी TV पर ‘मन की बात’ देख रहे हैं, उन्हें उस बुजुर्ग महिला का चेहरा भी दिख रहा होगा | भारत से गई टीम ने उनके oxygen level को stable करने से लेकर fracture के treatment तक, इलाज की हर सुविधा उपलब्ध कराई | जब इस बुजुर्ग महिला को अस्पताल से छुट्टी मिली तो उन्होंने हमारी टीम का बहुत आभार जताया | वो बोली कि, भारतीय बचाव दल की वजह से उन्हें नया जीवन मिला है | बहुत से लोगों ने हमारी टीम को बताया कि उनकी वजह से वो अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को ढूंढ पाए | 

साथियो,

भूकंप के बाद म्यांमार में मांडले की एक monastery में भी कई लोगों के फंसे होने की आशंका थी | हमारे साथियों ने यहां भी राहत और बचाव अभियान चलाया, इसकी वजह से उन्हें बौद्ध भिक्षुओं का ढ़ेर सारा आशीर्वाद मिला | हमें Operation Brahma में हिस्सा लेने वाले सभी लोगों पर बहुत गर्व है | हमारी परंपरा है, हमारे संस्कार हैं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना - पूरी दुनिया एक परिवार है | संकट के समय विश्व-मित्र के रूप में भारत की तत्परता और मानवता के लिए भारत की प्रतिबद्धता हमारी पहचान बन रही है |

साथियो,

मुझे अफ्रीका के Ethiopia में प्रवासी भारतीयों के एक अभिनव प्रयास का पता चला है | Ethiopia में रहने वाले भारतीयों ने ऐसे बच्चों को इलाज के लिए भारत भेजने की पहल की है जो जन्म से ही हृदय की बीमारी से पीड़ित हैं | ऐसे बहुत से बच्चों की भारतीय परिवारों द्वारा आर्थिक मदद भी की जा रही है | अगर किसी बच्चे का परिवार पैसे की वजह से भारत आने में असमर्थ है, तो इसका भी इंतजाम, हमारे भारतीय भाई-बहन कर रहे हैं | कोशिश ये है कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे Ethiopia के हर जरुरतमन्द बच्चे को बेहतर इलाज मिले | प्रवासी भारतीयों के इस नेक कार्य को Ethiopia में भरपूर सराहना मिल रही है | आप जानते हैं कि भारत में मेडिकल सुविधाएँ लगातार बेहतर हो रही हैं | इसका लाभ दूसरे देश के नागरिक भी उठा रहे हैं |

साथियो,

कुछ ही दिन पहले भारत ने अफगानिस्तान के लोगों के लिए बड़ी मात्रा में vaccine भी भेजी है | ये Vaccine, Rabies, Tetanus, Hepatitis B और Influenza जैसी खतरनाक बीमारियों से बचाव में काम आएगी | भारत ने इसी हफ्ते नेपाल के आग्रह पर वहाँ दवाईयाँ और vaccine की बड़ी खेप भेजी है | इनसे thalassemia और sickle cell disease के मरीजों को बेहतर इलाज सुनिश्चित होगा | जब भी मानवता की सेवा की बात आती है, तो भारत, हमेशा इसमें आगे रहता है और भविष्य में भी ऐसी हर जरूरत में हमेशा आगे रहेगा | 

साथियो, 

अभी हम Disaster Management की बात कर रहे थे | और किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने में बहुत अहम् होती है -आपकी alertness, आपका सचेत रहना | इस alertness में अब आपको अपने मोबाईल के एक स्पेशल APP से मदद मिल सकती है | ये APP आपको किसी प्राकृतिक आपदा में फंसने से बचा सकते हैं और इसका नाम भी है ‘सचेत’ | ‘सचेत APP’, भारत की National Disaster Management Authority (NDMA) ने तैयार किया है | बाढ़, Cyclone, Land-slide, Tsunami, जंगलों की आग, हिम-स्खलन, आंधी, तूफान या फिर बिजली गिरने जैसी आपदाएँ हो, ‘सचेत APP’ आपको हर प्रकार से informed और protected रखने का प्रयास करता है | इस APP के माध्यम से आप मौसम विभाग से जुड़े updates प्राप्त कर सकते हैं | खास बात ये है कि ‘सचेत APP’ क्षेत्रीय भाषाओं में भी कई सारी जानकारियां उपलब्ध कराता है | इस APP का आप भी फायदा उठायें और अपने अनुभव हमसे जरूर साझा करें |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज हम पूरी दुनिया में भारत के talent की तारीफ होते देखते हैं | भारत के युवाओं ने भारत के प्रति दुनिया का नज़रिया बदल दिया है, और, किसी भी देश के युवा की रुचि किस तरफ है, किधर है, उससे पता चलता है कि देश का भविष्य कैसा होगा | आज भारत का युवा, Science, Technology और Innovation की ओर बढ़ रहा है | ऐसे इलाके, जिनकी पहचान पहले पिछड़ेपन और दूसरे कारणों से होती थी, वहां भी युवाओं ने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, जो हमें, नया विश्वास देते हैं | छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का विज्ञान केंद्र आजकल सबका ध्यान खींच रहा है | कुछ समय पहले तक, दंतेवाड़ा का नाम केवल हिंसा और अशान्ति के लिए जाना जाता था, लेकिन अब वहाँ, एक Science Centre, बच्चों और उनके माता-पिता के लिए उम्मीद की नई किरण बन गया है | इस Science Centre में जाना बच्चों को खूब पसंद आ रहा है | वे अब नई–नई मशीनें बनाने से लेकर technology का उपयोग करके नए products बनाना सीख रहे हैं | उन्हें 3D printers और robotic कारों के साथ ही दूसरी innovative चीजों के बारे में जानने का मौका मिला है | अभी कुछ समय पहले मैंने गुजरात Science City में भी Science Galleries का उद्घाटन किया था | इन galleries से ये झलक मिलती है कि आधुनिक विज्ञान का potential क्या है, विज्ञान हमारे लिए कितना कुछ कर सकता है | मुझे जानकारी मिली है कि इन galleries को लेकर वहाँ बच्चों में बहुत उत्साह है | Science और Innovation के प्रति ये बढ़ता आकर्षण, जरूर भारत को नई ऊंचाई पर ले जाएगा |

मेरे प्यारे देशवासियो,

हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत हमारे 140 करोड़ नागरिक हैं, उनका सामर्थ्य है, उनकी इच्छा शक्ति है | और जब करोड़ों लोग, एक-साथ किसी अभियान से जुड़ जाते हैं, तो उसका प्रभाव बहुत बड़ा होता है | इसका एक उदाहरण है ‘एक पेड़ माँ के नाम’ - ये अभियान उस माँ के नाम है, जिसने हमें जन्म दिया और ये उस धरती माँ के लिए भी है, जो हमें अपनी गोद में धारण किए रहती है | साथियो, 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर इस अभियान के एक साल पूरे हो रहे हैं | इस एक साल में इस अभियान के तहत देश-भर में माँ के नाम पर 140 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगाए गए हैं | भारत की इस पहल को देखते हुए, देश के बाहर भी लोगों ने अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगाए हैं | आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें, ताकि एक साल पूरा होने पर, अपनी भागीदारी पर आप गर्व कर सकें |

साथियो,

पेड़ों से शीतलता मिलती है, पेड़ों की छाँव में गर्मी से राहत मिलती है, ये हम सब जानते हैं | लेकिन बीते दिनों मैंने इसी से जुड़ी एक और ऐसी खबर देखी जिसने मेरा ध्यान खींचा | गुजरात के अहमदाबाद शहर में पिछले कुछ वर्षों में 70 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए हैं | इन पेड़ों ने अहमदाबाद में green area काफी बढ़ा दिया है | इसके साथ–साथ, साबरमती नदी पर River Front बनने से और कांकरिया झील जैसे कुछ झीलों के पुनर्निर्माण से यहाँ water bodies की संख्या भी बढ़ गई है | अब news reports कहती हैं कि बीते कुछ वर्षों में अहमदाबाद global warming से लड़ाई लड़ने वाले प्रमुख शहरों में से एक हो गया है | इस बदलाव को, वातावरण में आई शीतलता को, वहाँ के लोग भी महसूस कर रहे हैं | अहमदाबाद में लगे पेड़ वहाँ नई खुशहाली लाने की वजह बन रहे हैं | मेरा आप सबसे फिर आग्रह है कि धरती की सेहत ठीक रखने के लिए, Climate Change की चुनौतियों से निपटने के लिए, और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए, पेड़ जरूर लगाएं ‘एक पेड़ - माँ के नाम’ |

साथियो, 

एक बड़ी पुरानी कहावत है ‘जहां चाह-वहां राह’ | जब हम कुछ नया करने की ठान लेते हैं, तो मंजिल भी जरूर मिलती है | आपने पहाड़ों में उगने वाले सेब तो खूब खाए होंगे | लेकिन, अगर मैं पुछूँ कि क्या आपने कर्नाटक के सेब का स्वाद चखा है ? तो आप हैरान हों जाएंगे | आमतौर पर हम समझते हैं कि सेब की पैदावार पहाड़ों में ही होती है | लेकिन कर्नाटक के बागलकोट में रहने वाले श्री शैल तेली जी ने मैदानों में सेब उगा दिया है | उनके कुलाली गांव में 35 डिग्री से ज्यादा तापमान में भी सेब के पेड़ फल देने लगे हैं | दरअसल श्री शैल तेली को खेती का शौक था तो उन्होंने सेब की खेती को भी आजमाने की कोशिश की और उन्हें इसमें सफलता भी मिल गई | आज उनके लगाए सेब के पेड़ों पर काफी मात्रा में सेब उगते हैं जिसे बेचने से उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है |

साथियो,

अब जब सेबों की चर्चा हो रही है, तो आपने किन्नौरी सेब का नाम जरूर सुन होगा | सेब के लिए मशहूर किन्नौर में केसर का उत्पादन होने लगा है | आमतौर पर हिमाचल में केसर की खेती कम ही होती थी, लेकिन अब किन्नौर की खूबसूरत सांगला घाटी में भी केसर की खेती होने लगी | ऐसा ही एक उदाहरण केरला के वायनाड का है | यहां भी केसर उगाने में सफलता मिली है | और वायनाड में ये केसर किसी खेत या मिट्टी में नहीं बल्कि Aeroponics Technique से उगाए जा रहे हैं | कुछ ऐसा ही हैरत भरा काम लीची की पैदावार के साथ हुआ है | हम तो सुनते आ रहे थे कि लीची बिहार, पश्चिम बंगाल या झारखंड में उगती है | लेकिन अब लीची का उत्पादन दक्षिण भारत और राजस्थान में भी हो रहा है | तमिलनाडु के थिरु वीरा अरासु, कॉफी की खेती करते थे | कोडईकनाल में उन्होंने लीची के पेड़ लगाए और उनकी 7 साल की मेहनत के बाद अब उन पेड़ों पर फल आने लगे | लीची उगाने में मिली सफलता ने आसपास के दूसरे किसानों को भी प्रेरित किया है | राजस्थान में जितेंद्र सिंह राणावत को लीची उगाने में सफलता मिली है | ये सभी उदाहरण बहुत प्रेरित करने वाले हैं | अगर हम कुछ नया करने का इरादा कर लें, और मुश्किलों के बावजूद डटे रहें, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज अप्रैल का आखिरी रविवार है | कुछ ही दिनों में मई का महिना शुरू हो रहा है | मैं आपको आज से करीब 108 साल पहले लेकर चलता हूँ | साल 1917, अप्रैल और मई के यही दो महीने - देश में आजादी की एक अनोखी लड़ाई लड़ी जा रही थी | अंग्रेजों के अत्याचार उफान पर थे | गरीबों, वंचितों और किसानों का शोषण अमानवीय स्तर को भी पार कर चुका था | बिहार की उपजाऊ धरती पर ये अंग्रेज किसानों को नील की खेती के लिए मजबूर कर रहे थे | नील की खेती से किसानों के खेत बंजर हो रहे थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत को इससे कोई मतलब नहीं था | ऐसे हालात में, 1917 में गांधी जी बिहार के चंपारण पहुंचे हैं | किसानों ने गांधी जी को बताया – हमारी जमीन मर रही है, खाने के लिए अनाज नहीं मिल रहा है | लाखों किसानों की उस पीड़ा से गांधी जी के मन में एक संकल्प उठा | वहीं से चंपारण का ऐतिहासिक सत्याग्रह शुरू हुआ | ‘चंपारण सत्याग्रह’ ये बापू द्वारा भारत में पहला बड़ा प्रयोग था | बापू के सत्याग्रह से पूरी अंग्रेज हुकूमत हिल गई | अंग्रेजों को नील की खेती के लिए किसानों को मजबूर करने वाले कानून को स्थगित करना पड़ा | ये एक ऐसी जीत थी जिसने आजादी की लड़ाई में नया विश्वास फूंका | आप सब जानते होंगें इस सत्याग्रह में बड़ा योगदान बिहार के एक और सपूत का भी था, जो आजादी के बाद देश के पहले राष्ट्रपति बने | वो महान विभूति थे – डॉ० राजेन्द्र प्रसाद | उन्होंने ‘चंपारण सत्याग्रह’ पर एक किताब भी लिखी – ‘Satyagraha in Champaran’, ये किताब हर युवा को पढ़नी चाहिए | भाईयों-बहनों, अप्रैल में ही स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के कई और अमिट अध्याय जुड़े हुए हैं | अप्रैल की 6 तारीख को ही गांधी जी की ‘दांडी यात्रा’ संपन्न हुई थी | 12 मार्च से शुरू होकर 24 दिनों तक चली इस यात्रा ने अंग्रेजों को झकझोर कर रख दिया था | अप्रैल में ही जलियाँवाला बाग नरसंहार हुआ था | पंजाब की धरती पर इस रक्तरंजित इतिहास के निशान आज भी मौजूद हैं |

साथियो ,

कुछ ही दिनों में, 10 मई को, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वर्षगांठ भी आने वाली है | आज़ादी की उस पहली लड़ाई में जो चिंगारी उठी थी, वो आगे चलकर लाखों सेनानियों के लिए मशाल बन गई | अभी 26 अप्रैल को हमने 1857 की क्रांति के महान नायक बाबू वीर कुंवर सिंह जी की पुण्यतिथि भी मनाई है | बिहार के महान सेनानी से पूरे देश को प्रेरणा मिलती है | हमें ऐसे ही लाखों स्वतंत्रा सेनानियों की अमर प्रेरणाओं को जीवित रखना है | हमें उनसे जो ऊर्जा मिलती है, वो अमृतकाल के हमारे संकल्पों को नई मजबूती देती है |

साथियो,

‘मन की बात’ की इस लंबी यात्रा में आपने इस कार्यक्रम के साथ एक आत्मीय रिश्ता बना लिया है | देशवासी जो उपलब्धियाँ दूसरों से साझा करना चाहते हैं उसे ‘मन की बात’ के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं | अगले महीने हम फिर मिलकर देश की विविधताओं, गौरवशाली परंपराओं और नई उपलब्धियों की बात करेंगे | हम ऐसे लोगों के बारे में जानेंगे जो अपने समर्पण और सेवा भावना से समाज में बदलाव ला रहे हैं | हमेशा की तरह आप हमें अपने विचार और सुझाव भेजते रहिए | धन्यवाद, नमस्कार |