देश के कोने-कोने से आए हुए और अपनी जिम्मेवारी को बखूबी निभा करके एक प्रेरणा रूप काम किया है, ऐसी सभी माताएं, बहनें।
मेरा सौभाग्य है कि आज 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर देश के कोने-कोने से आई हुई माताओं, बहनों का दर्शन करने का सौभाग्य मिला, उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला।
मुझे बताया गया कि आप में से कुछ लोग 3 दिन से यहां हैं, कोई दो लोग दिन से हैं, कुछ लोग दो दिन के बाद भी रुकने वाले हैं, अलग-अलग जिलों में जाके आए हैं, गांव कैसे होते हैं; वो देख करके आए हैं। यहां भी आप लोगों ने दो प्रदर्शनी देखी होंगी; एक गांव- गांव का विकास और उसमें स्वच्छता का महात्मय, आधुनिक Technology से बहुत ही उत्तम प्रकार की प्रदर्शनी यहां लगाई हुई है। मुझे आने में कुछ जो देर हुई, उसका एक कारण वो प्रदर्शनी में मेरा मन लग गया; मैं जरा देखता ही रह गया; तो उसके कारण यहां पहुंचने में देर हो गई। इतनी उत्तम प्रदर्शनी है, आपसे मेरा आग्रह है कि उसे सरसरी नजर से न देखें। एक विद्यार्थी की तरह उस पूरी प्रदर्शनी को आप देखिए। क्योंकि सरपंच के नाते आप जो दायित्व संभाल रहे हैं उस काम को करने में आपको एक नई दिशा मिलेगी, जानकारियां मिलेंगी, और आपका सकंल्प और दृढ़ होगा, ये मेरा विश्वास है।
दूसरा ये स्वच्छ शक्ति का समारोह है। गांधी की जन्मभूमि गुजरात में है, गांधी के नाम से बने शहर में है, और गांधी जिसे हम महात्मा कहते थे, उस महात्मा मंदिर में है; इससे इसका कितना महात्मय है, आप समझ सकते हैं। यहीं पर एक Digital प्रदर्शनी, Virtual Museum पूज्य बापू के जीवन पर है। गांधी कुटीर जो यहीं पर बनी हुई है, आप उसे भी जरूर देखिए। पूज्य बापू के जीवन के अगर हम समझेंगे तो स्वच्छता के लिए जो पूज्य बापू का आग्रह था, उसको परिपूर्ण करने का हमारा संकल्प और परिणाम लाने के लिए हमारे प्रयास कभी भी बेकार नहीं जाएंगे।
2019, महात्मा गांधी को 150 वर्ष हो रहे हैं। पूज्य बापू कहते थे कि हिन्दुस्तान गांवों में बसा हुआ है। दूसरी बात एक कहते थे, कि मुझे अगर आजादी और स्वच्छता, दोनों में से पहले कुछ पसंद करना है तो मैं स्वच्छता पसंद करूंगा। गांधी के जीवन में स्वच्छता का कितना महात्मय था वो उनकी इस Commitment से पता चलता है। 2019 में जब हम गांधी 150 मना रहे हैं, क्या तब तक हम स्वच्छता के विषय में जो गांधी का प्रयास था, किसी एक सरकार का प्रयास नहीं है; गांधी के समय से चलता आ रहा है। हर किसी ने कुछ न कुछ किया है। लेकिन अब हमने तय करना है कि यहां तक में हमें काफी कुछ कर देना है। इसके बाद ये विषय अब हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाएगा, हमारी राष्ट्रीय पहचान बन जायेगा; हमारी रगों में स्वच्छता अनुभव होगी। ये स्थिति हम पैदा करना चाहते हैं। और ये देश कर सकता है।
ये वो सरपंच बहनें हैं, जिन्होंने अपने गांव में ये करके दिखाया है। खुले में शौच जाना, उसके खिलाफ उन्होंने संघर्ष किया है। गांव में इस व्यवस्था को विकसित करने के लिए प्रयास किया है। वैसी स्वच्छता के संदेश को सफलतापूर्वक अपने गांव में लागू करने वाली शक्तिरूपा लोग यहां बैठे हैं। और इसलिए मेरा विश्वास बनता है कि जो गति आई है उस गति को अगर हम बहुत ही समयबद्ध तरीके से और पूरी बारीकी से लागू करने का प्रयास करेंगे, तो गांधी 150 होते-होते हम बहुत कुछ बदलाव ला सकते हैं।
अभी आपने फिल्म देखी, उसमें बयां है, स्वच्छता के संबंध में पहले हमारा rank 42% तक था । इतने कम समय में हम 62 पर पहुंच गए। अगर इतने कम समय में 20 प्रतिशत हम सुधार कर सकते हैं, तो आने वाले डेढ़ साल में हम और अधिक कर सकते हैं, ये साफ-साफ आप लोगों ने करके दिखाया है।
आज जिन माताओं, बहनों को सम्मान करने का मुझे अवसर मिला, उनकी एक-एक मिनट की फिल्म छोटी-छोटी हमने देखी। कुछ लोगों का जो भ्रम रहता है, उन सबके भ्रम तोड़ने वाली ये सारी फिल्में हैं। कुछ लोगों को लगता है कि पढ़े-लिखे लोग ही कुछ काम कर सकते हैं, इन बहनों ने करके दिखाया।
कुछ लोंगो को लगता है शहर में होंगे थोड़ी चपाचप अंग्रेजी बोल पाते होंगे वो ही कर पाते हैं। ये अपनी भाषा के सिवाय कोई भाषा नहीं जानते, तो भी ये कर पाते हैं। अगर किसी विषय के साथ व्यक्ति जुड़ जाता है, जीवन का मकसद अगर उसको मिल जाता है, तो वो उसे पार करके रहता है। बहुत लोगों को तो पता ही नहीं होता उनकी जिंदगी का मकसद क्या है। आप पूछोगे, कल क्या करोगे तो बोले शाम को सोचूंगा। जिनको अपने जीवन का मकसद ही पता नहीं है, वो जीवन में कभी कुछ नहीं कर पाते; जिंदगी गुजारा कर लेते है, दिन गिनते रहते हैं और कुछ चीजें दो-चार अच्छी हुई तो उसी के गाजे-बाजे के साथ गुजारा करके रात को सो जाते हैं।
लेकिन जिसको जिंदगी का मकसद मिल जाता है, Purpose of life जिसको पता चल जाता है, वह बिना रुके, बिना थके, बिना झुके, अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए, जिसकी भी जरूरत पड़े उसको साथ ले करके; संघर्ष करना पड़े तो संघर्ष करके, चुनौतियों से मुकाबला करना पड़े तो मुकाबला करके भी अपने मकसद को पूर्ण करने तक वो चैन से बैठते नहीं हैं।
आप में से सब सरपंच होना कोई छोटी बात नहीं है। कुछ लोग होंगे जिनको सरपंच बनने में शायद तकलीफ न हुई हो, लेकिन ज्यादातर ऐसे होंगे जिनको इस लोकतांत्रिक परम्परा में, यहां तक पहुंचने में काफी कुछ करना पड़ा होगा।
आज से 15 साल पहले कभी सरपंचों की मीटिंग हुआ करती थी, 33 percent reservation होता था, लेकिन मैं भी मीटिंगों में अनुभव करता था; मैं पहले गुजरात के बाहर काम करता था, कई अलग-अलग राज्यों में मैंने काम किया है। तो मैं पूछता था तो वो परिचय में बताते थे, पुरुष; कि मैं SP हूं। तो मुझे भी होता था ये सरकारी आदमी यहां कैसे आ गया? ये तो पार्टी की मीटिंग है, तो मैं पूछता था भाई आप SP यानी कहां नौकरी करते हैं? नहीं, नहीं बोले मैं SP हूं, तो मैंने कहा मतलब? तो बोले मैं सरपंच पति हूं। तो बोले मेरी बीवी सरपंच है लेकिन मीटिंग में मैं ही जाया करता हूं। अब किसी समय ऐसा था, आज ऐसा नहीं है। जिस महिला को सरपंच के नाते काम मिला है, उसको लगता है कि पांच साल मुझे जो मौका मिला है, मैं कुछ करके जाना चाहती हूं। वो अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों में सब adjust करती है। परिवार में भी अपनी Priority को लोग स्वीकार करें इसका वातावरण बनाती है। और अनुभव ये कहता है कि पुरुष सरपंच से ज्यादा महिला सरपंच अपने काम के प्रति ज्यादा समर्पित होती है। उसका Focus होता है। पुरुष सरपंच और पचासों चीजें करने में लगा रहता है। वो बना सरपंच होता है और अगली बार जिला परिषद में जाने के लिए सोचता रहता है। जिला परिषद में है तो धारा सभा में जाने के लिए सोचता रहता है। लेकिन महिलाएं जिस समय जो काम मिला उसको पूरी लगन से पूरा करने का प्रयास करती हैं। और उसका परिणाम है।
एक संस्था ने बड़ा मजेदार सर्वे किया है और उस सर्वे में उसने बड़ी महत्वपूर्ण चीजें पाई हैं। और उसने सारी जो professional महिलाएं हैं, उनका सर्वे किया था और उस सर्वे में पाया गया कि नई चीज सीखने की वृत्ति महिलाओं में ज्यादा होती है। जो काम उसको दिया गया, उसको पूरा करने के लिए जितनी अपनी क्षमता बनानी चाहिए, शक्ति लगानी चाहिए, उसमें कभी वो पीछे नहीं रहती है। जो काम उसको मिला, पूरा नहीं होता है वो चैन से बैठती नहीं है। वो उसको लगातार उसके पीछे लगी रहती है। अपना काम करने के लिए, जो तय किया हुआ है उसके जिम्मे है, उसको पूरा करने के लिए कौन-कौन से resource mobilize करने चाहिए, किस-किसकी शक्ति जोड़नी चाहिए, बड़ी आसानी से वो करती है उसको कोई Ego नहीं होता है। किसी को नमस्ते करके काम करवाना है तो नमस्ते करके करवा लेंगी, किसी से गुस्सा करके करवाना है तो गुस्सा करके करवा लेंगी। बड़ा Interesting Survey है ये।
हमारे देश की 50 प्रतिशत मातृ शक्ति भारत की विकास यात्रा की सक्रिय भागीदारी करे, हम देश को कहां से कहां पहुंचा सकते हैं। और इसलिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, इस मंत्र को ले करके भी देश में काम करने की बहुत आवश्यकता है। कम से कम जहां महिला सरपंच हो उस गांव में तो भ्रूण हत्या नहीं होनी चाहिए। मां के गर्भ में बच्ची को मार देने का पाप उस गांव में कतई नहीं होना चाहिए। और वो जागरूकता का काम एक सरपंच बहन अगर तय करे तो कर सकती है। पारिवारिक दबाव में किसी अगर बहु के ऊपर जुल्म हो रहा है तो सरपंच उसकी रक्षक बनके खड़ी हो सकती है, और एक बार वो कहने लगेगी तो कोई कुछ नहीं कर सकता है। बेटी बचाओ! आज समाज, जीवन में कैसी दुर्दशा आई है! 1000 बेटे के सामने कहीं 800, कहीं 850, कहीं 900, कहीं 925 (सवा नौ सौ) बेटियां हैं। अगर समाज में इतना बड़ा असंतुलन पैदा होगा तो ये समाज ये समाज चक्र चलेगा कैसे? और ये पाप है, इसके खिलाफ समाज का दायित्व है।
सरपंच महिलाएं शायद उसमें ज्यादा सफलता पा सकती हैं। समाज में जो मानसिकता है, बेटी है! अब छोड़ो, उसको तो दूसरे के घर जाना है। बेटा है, जरा संभालो। आप भी जब छोटे होंगे, मां! मां भी तो नारी है; लेकिन जब खाना परोसती और घी परोसती तो बेटे को दो चम्मच घी डालती है बेटी को एक चम्मच डालती है। क्यों? उसको तो दूसरे के घर जाना है। बेटा है तो बहुत खुश है, ये बिल्कुल सत्य नहीं है। मैंने ऐसी बेटियां देखी हैं, मां-बाप की इकलौती बेटी, बूढे मां-बाप को जीवन में कष्ट न हो; इसलिए उस बेटी ने शादी न की हो, मेहतन करती हो और मां-बाप का कल्याण करती हो; और मैंने ऐसे बेटे देखे हैं कि चार-चार बेटे हों, और मां-बाप वृद्धाश्रम में जिंदगी गुजारते हों, ऐसे बेटे भी देखे हैं।
और इसलिए ये जो भेदभाव की मानसिकता है, उस मानसिकता के खिलाफ हमें दृढ़ संकल्प हो करके बदलाव लाना, बदलाव आ रहा है। ऐसा नहीं है, कि नहीं आ रहा है। आप देखिए इस बार हिन्दुस्तान का नाम ओलम्पिक में किसने रोशन किया है! सभी मेरे देश की बेटियां हैं। देश का माथ ऊंचा कर दिया। आज 10वीं, 12वीं परीक्षा के रिजल्ट देख लीजिए, पहले दस में बेटियां ही बेटियां होती हैं। बेटे को ढूंढना पड़ता है कि नंबर लगा है क्या! क्षमता उन्होंने सिद्ध कर दी है।
जहां भी, जो भी अवसर मिला है, उस काम को देदिप्यमान करने का काम हमारी माताओं, बहनों ने किया है और इसलिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। ये हमारा सामाजिक दायित्व है, राष्ट्रीय दायित्व है, मानवीय दायित्व है। अमानवीय बात समाज में स्वीकृत नहीं हो सकती है और हमारे यहां तो शास्त्रों में कहा गया है, बेटी का महात्मय करते हुए,
यावत गंगा कुरूक्षेत्रे, यावत तिष्ठति मेदनी।
यावत सीता कथालोके, तावत जिवेतु बालिका।।
जब तक गंगा, कुरुक्षेत्र और हिमालय हैं, जब तक सीता की गाथा इस लोक में है, बालिका तुम तब तक जीवित रहो। तुम्हारा नाम तब तक दुनिया याद रखे। ये हमारे शास्त्रों में बेटी के लिए कहा गया है। और इसलिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ; कोई भेदभाव नहीं।
हमारे सरपंच महिलाओं से मेरा ये आग्रह है कि इस बात को आप अपने गांव में डंके की चोट पर देखें। अगर बेटा पढ़ता है गांव की बेटी भी पढ़नी चाहिए। गरीब से गरीब हो, और सरपंच ये न सोचे कि इसके लिए बजट की, बजट की जरूरत नहीं होती है। सरकार ने स्कूल बनाया हुआ है। सरकार ने टीचर रखा हुआ है। उसके लिए गांव को अलग खर्चा नहीं करना है, सिर्फ आपको निगरानी रखनी है कि बेटियां स्कूल में जाती हैं कि नहीं, जैसे कौन परिवार है जिसने अपनी बेटी को स्कूल में नहीं रखा है; इतना सारा देख लीजिए।
आप सरपंच हैं, एक काम कीजिए कभी, अच्छा लगेगा आपको भी। स्कूल में बच्चों को कहिए, कि वो गांव के सरपंच का नाम लिखें। उसी गांव के, दूसरे गांव के नहीं। आप गांव के सरपंच हैं, कोई दो साल से सरपंच होंगे, तीन साल से सरपंच होंगे, लेकिन आपके गांव के स्कूल का बच्चा आपका नाम नहीं जानता होगा कि वो जिस गांव में है, उस गांव के सरपंच कौन हैं; पता नहीं होगा। उसे ये पता होगा प्रधानमंत्री कौन है, उसे ये पता होगा मुख्यमंत्री कौन है, लेकिन उसे ये पता नहीं होगा कि उसके गांव के सरपंच कौन हैं? और जिसको पता होगा जरा उसको कहिए नाम लिखें, तो आपको ध्यान में आएगा जिस गांव के आप सरपंच हैं, जिस गांव में आपके गांव में स्कूल है, टीचर को तनख्वाह जा रही है, हजारों-लाखों रुपये का बिल्डिंग बना हुआ है, और उस गांव के बच्चे को आपके नाम को spelling भी ठीक से लिखना नहीं आता है तो आपको दुख होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? आप जरा जा करके प्रयोग कीजिए। देखने से तो बता देगा हां, ये हमारे प्रधान जी हैं, लेकिन नाम पता नहीं होगा।
मैं ये नहीं कहता हूं कि आप अपने गांव की पूरी खातिरदारी करते हैं कि नहीं करते हैं? महीने में एकाध बार आधा घंटा के लिए गांव के जितने टीचर हैं, अपने घर पर कभी चाय पीने के लिए बुला लीजिए। ऐसे उनसे कहिए कि भई देखिए, मैं सरपंच हूं और इस गांव में अपनी पढ़ाई में कोई बच्चा पीछे नहीं रहना चाहिए, तहसील में नंबर आना चाहिए, जिले में नंबर आना चाहिए, राज्य में नंबर आना चाहिए। बताओ फिर आपको कोई तकलीफ है क्या? देखिए एक बार आप चाय के लिए बुलाओगे ना महीने में एकाध बार, और साल में चार महीने तो छुट्टी रहती है तो 7-8 बार ही बुलाना पड़ेगा साल में। उसमें एकाध दिवाली का दिन आ जाएगा, एकाध होली का दिन आ जाएगा, कोई त्योहार का दिन आ जाएगा तो ऐसे तो सिर्फ दो बार ही बुलाना पड़ेगा। लेकिन उस टीचर को लगेगा सरपंच बहुत सक्रिय है, गांव में अच्छी शिक्षा की चिंता कर रहे हैं। लेकिन ज्यादातर सरपंच बाकी 50 काम करेंगे, इन मूलभूत काम, और आज गांव को, पहले की स्थिति ऐसी थी गांव के सरपंच ये नगरसेठ हुआ करते थे, क्यों? जो भी मेहमान आए उसको खिलाना, रखना, चाय पिलाना, वो एक ही आदमी घर रहता था। आज तो 14th Finance Commission के बाद दो लाख करोड़ रुपया सीधा-सीधा गांव में जाता है। दो लाख करोड़ रुपया छोटी रकम नहीं है।
आप गांव के अगर निर्धारित करें कि 5 साल में ये 25 कार्य मुझे पूरे करने हैं, आप आराम से कर सकते हैं। और आप सफलतापूर्वक कर सकते हैं। गांव की कभी आंगनवाड़ी में काम करने वाली बहनों को बुलाइए, कभी आप आंगनवाड़ी में चले जाइए, स्वच्छता है कि नहीं, टीचर ठीक है कि नहीं, खाना ठीक खिला रहे कि नहीं खिला रहे। बच्चों को जो खेलना चाहिए वो खिलाते हैं कि नहीं खिलाते हैं। अगर आपको थोड़ा सा ध्यान देंगे, आपको Leadership देनी चाहिए।
आपने देखा है कि सरकार खर्च करती हैं टीकाकरण के लिए, और मैं वो काम बता रहा हूं आपको, जिसके लिए अलग बजट की जरूरत नहीं है। आपको, आपके गांव को एक रुपया खर्च करने की जरूरत नहीं है। क्या कभी आपने सोचा है कि आपके गांव में 50 बालकों का टीकाकरण होना चाहिए? लेकिन इस बार 40 हुए, 10 क्यों नहीं हुए? उन 10 बच्चों का टीकाकरण कैसे करवाएंगे? अगर आपके यहां गांव के सभी बच्चों का टीकाकरण आप करवा लेते हैं, सरपंच के नाते पक्का कर लेते हैं, जितने भी टीका करवाने होते हैं, पूरा कोर्स करवा देते हो, क्या वो बच्चा कभी गंभीर बीमारी का शिकार होगा क्या? आपके गांव के हर बच्चे; आपके कार्यकाल में जितने बच्चे छोटे होंगे, वे अगर सलामत रहें, कोई बीमारी आने की संभावना नहीं रही तो जब वो 20 साल होंगे, 25 साल के होंगे तो आपको गर्व होगा कि हां हमारे गांव में मैंने शत-प्रतिशत टीकाकरण करवाया था तो मेरे कालखंड के जितने बच्चे हैं गांव के, सारे के सारे तंदुरूस्त बच्चे हैं। आप बताइए बुढ़ापे में आपको जीवन में कितना आनंद मिलेगा।
लेकिन टीकाकरण आए हैं। अच्छा, अच्छा आप लोगों ने कुछ खाया-पिया, चाय पिया, ठीक है, ठीक है कर लीजिए। नहीं, मैं सरपंच हूं, मेरे गांव में कोई टीकाकरण के बिना रहना नहीं चाहिए। मैं सरपंच हूं, मेरे गांव में कोई बच्ची स्कूल जाए बिना रहनी नहीं चाहिए। मैं सरपंच हूं, मेरे गांव के अंदर कोई बच्चा स्कूल छोड़ करके घर भाग नहीं जाना चाहिए। मैं सरपंच हूं, मेरे गांव का टीचर आता है कि नहीं आता है, मैं पूरा ध्यान रखूं।
ये काम अगर Leadership हमारे सरपंचों के द्वारा दी जाती है, कोई भी खर्च किए बिना, नया कोई पैसा लगाना नहीं है, सरकार की योजनाएं लागू करने से ही बहुत बड़ा लाभ होगा। कभी-कभी हमने सोचा होगा कि गांव के अंदर बीमारी का कारण है।
अब सब हम देखते हैं शौचालय क्योंकि ओर हमारा ध्यान केन्द्रित हो रहा है इन दिनों। लेकिन ये कभी सोचा है कि स्वच्छता से कितना आर्थिक लाभ होता है? World Bank की रिपोर्ट कहती है कि गंदगी के कारण जो गरीब परिवारों में बीमारी आती है, औसत 7 हजार रुपया एक गरीब परिवार को साल में दवाई का खर्चा हो जाता है। अगर हम स्वच्छता रखें, गांव में बीमारी को घुसने न दें तो इन गरीब का साल का 7 हजार रुपया बचेगा का नहीं बचेगा? उन पैसों से वो बच्चों को दूध पिलाएगा कि नहीं पिलाएगा? वो तंदुरुस्त बच्चे आपके गांव की शोभा बढ़ाएंगे कि नहीं बढ़ांएगे, और इसलिए गांव के सरपंच के नाते, गांव के प्रधान के नाते, मेरे कार्यकाल में, मेरे गांव में ये चीजें होनी चाहिए। इसमें मैं कोई समझौता नहीं होने दूंगी, इस विश्वास के साथ हम लोगों ने काम करना चाहिए।
हमारे देश में गांव का महात्मय हर किसी ने व्यक्त किया है लेकिन रवीन्द्रनाथ जी टैगोर ने 1924 में, शहर और गांव, उसके ऊपर कुछ पंक्तियां लिखी थीं, बांग्ला भाषा में लिखी थीं, लेकिन उसका हिन्दी अनुवाद मैं थोड़ा बताता हूं। आपको लगेगा हां हमारे साथ बराबर फिट, और 1924 में लिखा था। यानी करीब-करीब आज से 90 साल से पहले। उन्होंने लिखा था- और यहां महिला वर्ष है तो बहुत सटीक बैठता है-
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा था-
''गांव महिलाओं के समान होता है, यानी जैसा गांव; गांव वो होता है जैसे महिला होती है; उन्होंने कहा। उनके अस्तित्व में समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है, नारी के स्वभाव का प्रतिबिंब है। शहरों के मुकाबले गांव प्रकृति के अधिक समीप हैं, और जीवन धारा से अधिक जुड़े हुए हैं। उनमें प्राकृतिक रूप से Healing Power यानी समस्त घावों को भरने की शक्ति है। महिलाओं की तरह ग्राम भी मनुष्यों को भोजन, खुशी, जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं जीवन की एक सरल कविता के समान। साथ ही महिलाएं गांव में स्वत: जन्म लेने वाली सुदंर परम्पराओं की तरह उल्लास से भर देती हैं, लेकिन यदि ग्राम या महिलाओं पर अनवरत् भार डाला जाए, गावों के संसाधनों को शोषण किया जाए, तो उनकी आभा चली जाती है।''
अब हमने भी सोचा होगा कि गांव का संसाधनों का शोषण होना चाहिए क्या? प्राकृतिक रक्षा होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए? पेड़-पौधे, हरियाली, पानी, शुद्ध हवा के लिए हम ऐसा गांव क्यों न बनाएं कि शहर में रहने वालों को भी मन कर जाए कि एक छोटा सा घर गांव में भी बनाएं। और कभी सप्ताह में एकाध-दो दिन गांव में आ करके जिंदगी गुजारने का मन कर जाए ऐसा हम गांव क्यों न बनाएं। बन सकता है, आज जो Trend चला है ना, रहते गांव में हों लेकिन एकाध घर शहर में हो। छुट्टी के दिन चले जाना, बच्चों को लेके जाना। वो भी Trend शुरू हो सकता है कि गांव ऐसा हो कि छुट्टी के दिन दोस्तों को ले करके गांव चले जाएंगे, कुछ पल गांव में बिता करके आ जाएंगे। गांव ऐसा बनाया जा सकता है।
सरकार का भी प्रयास है, Rurban Mission। आत्मा गांव की हो, सुविधा शहर की हो। Optical Fibre Network से हिन्दुस्तान की हर पंचायत को जोड़ने की दिशा में काम चल रहा है। ढाई लाख पंचायतें हैं। करीब-करीब 70 हजार पंचायतों तक काम पूरा हुआ है। स्कूल तक Cable लगेगा, पंचायत घर तक Cable लगेगा। गांव की आवश्यकता के अनुसार उस Cable को विस्तृत किया जायेगा। आधुनिकता गांव को भी मिले, उस दिशा में सरकार काम कर रही है। इन दिनों गांव में भी, मैं अभी जब प्रदर्शनी देख रहा था; तो हमारे सचिव महोदय मुझे बता रहे थे कि गांव की जो सरपंच बहनें आई हैं वो बड़े मन से प्रदर्शनी देख रही थीं और बोले हर कोई सेल्फी ले रहा था। कभी-कभी हम पार्लियामेंट में सुनते हैं कि Technology कैसे आएगी, गांव में लोगों के पास Technology नहीं है, अब वो भाषण करने के लिए कहते हैं कि क्या कारण है मुझे मालूम नहीं, लेकिन मेरा अनुभव अलग है। Technology ने इतना बड़ा revolution किया है, मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री था तो यहां कपराड़ा करके एक स्थान है, वहां गया था। बड़ा पिछड़ा हुआ तहसील है, एकदम से एकदम से remote एरिया में और एक छोटा सा कार्यक्रम था Milk का chilling center का उद्घाटन, आदिवासी गांव में। और उन्होंने अब मैदान भी नहीं था क्योंकि जंगल है तो सभा करने के लिए वहां से तीन किलोमीटर दूर एक स्कूल के मैदान में सभा रखी और chilling center एक जगह पर बना हुआ था। मैं chilling center के उद्घाटन के लिए गया तो दूध भरने वाली 25-30 महिलाएं भी वहां थीं। वो बहनें वहां खड़ी थीं। हम लोग उसकी दीया जलाना, रिबन काटना, सब कर रहे थे। और मैं देखा कि सारी महिलाएं, और ये बात मैं करीब 10 साल पहले की कर रहा हूं, सारी महिलाएं, आदिवासी महिलाएं अपने मोबाइल फोन से फोटो निकाल रही हैं। मैं हैरान था, मैं उनके पास गया; मैंने कहा कि आपकी फोटो तो आ नहीं रही, मेरी फोटो निकाल के क्या करोगे? क्या आपको फोटो निकालनी आती है? आदिवासी बहनें थीं, अनपढ़ थीं। उन्होंने मुझे क्या जवाब दिया, वो जवाब मेरे लिए और प्रभावी था मेरे मन पर। उन्होंने कहा ये तो हम जा करके download करवा लेंगे। मैं हैरान था जी ये पढ़ी-लिखी बहनें नहीं थीं और वो कह रही है कि हम जा करके download करवा लेंगे।
किस प्रकार से Technology ने जन-सामान्य के जीवन में प्रवेश कर लिया है। हमने अपनी व्यवस्था में, अब आप यहां गांवों में Common Service Centre भारत सरकार ने खोले हैं। आपने कभी देखा है क्या कि Common Service Centre में Technology के माध्यम से ये जो नौजवान को वहां रोजगार मिला है, उसके पास कम्प्यूटर है, क्या-क्या सेवाएं दे रहा है? उन सेवाएं आपके गांव के लिए कैसे उपलब्ध हो सकती हैं, आप इस व्यवस्था का लाभ ले सकते हैं कि नहीं? मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि हम लोग आवश्यकता के अनुसार, पूरा प्रयत्न करके, Technology का उपयोग भी अपने गांव में लाने की दिशा में प्रयास करें। आप देखिए आपके गांव में एक बहुत बड़ा बदलाव इस Technology के माध्यम से आ सकता है।
हो सकता है हमें सब कुछ नहीं आता है लेकिन जिनको आता है उनको हम साथ में रख सकते हैं। पुरुषों को Ego होता है वो नहीं रखेंगे, आपको अपने घर में 12th का बच्चा होगा ना तो उसको भी पूछोगे तो बता देगा कि ऐसे-ऐसे करना चाहिए। लेकिन एक बार आप देखिए कि आपकी ताकत अनेक गुना बढ़ जाएगी।
हम गांव में रहते हैं, कभी हमने सोचा है कि हमारे गांव में सरकारी तिजौरी से पगार लेने वाले कितने लोग रहते हैं? किसी ने नहीं सोचा होगा। जो भी सरकारी पगार लेते हैं तिजौरी से, वे एक प्रकार से सरकार ही हैं। क्या महीने में एक बार आपके गांव में ऐसी एक छोटी सी सरकार की मीटिंग कर सकते हो? कोई ड्राइवर होगा जो आपके गांव का होगा, सरकारी बस चलाता होगा। कोई Compounder होगा, कोई Peon होगा, कोई clerk होगा, कोई teacher होगा; जिनको सरकार से तनख्वाह मिलती है। हर गांव में 15-20 लोग ऐसे मिलेंगे जो किसी न किसी रूप में सरकार से जुड़े हुए हैं। क्या महीने में एक बार ये जो सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, सरकार से तनख्वाह लेते हैं, सरकार क्या है जिनको अता-पता है, सरकार के ऊपर के लोगों को जानते हैं। क्या कभी आपने हर महीने में एक बार, अपने गांव के और कहीं पर भी काम करने वाले और गांव में रहते हैं, शाम को गांव आ जाते हैं; ऐसे लोगों की महीने में एक बार बैठ करके, भई अपने गांव में क्या कर सकते हैं? सरकार से क्या मदद ला सकते हैं? कैसे ला सकते हैं? तुम्हारी कोई जान-पहचान है क्या? ये अगर व्यवस्था विकसित करोगे तो आपकी ताकत।
आज क्या होता है, सरकार यानी एक पटवारी से ज्यादा आपको कोई दिखता नहीं है, लेकिन आंगनवाड़ी वर्कर हो, आशा वर्कर हो, टीचर हो, ये सारे सरकार के ही प्रतिनिधि हैं। आपने कभी उस व्यक्ति को जोड़ा नहीं है तो मेरा आग्रह है कि आप उनको जोडि़ए, आपकी शक्ति अनेक गुना बढ़ जाएगी और आपको काम की सरलता रहेगी।
एक दूसरा काम, साल में एक बार जरूरी कीजिए। आपके गांव से बहुत लोग गांव छोड़ करके शहर में चले गए होंगे। कभी शादी-ब्याह के लिए आते होंगे, रिश्तेदारी में कभी आते होंगे। गांव का जन्मदिन मनाना चाहिए। क्या कभी आपने सोचा है, जिन गांवों को पता नहीं कि उनके गांव का जन्मदिन क्या है वो चिट्ठी निकालकर तय करें कि भई ये फलानी तारीख हमारे गांव का जन्मदिन है। और फिर हर वर्ष बड़े आन-बान-शान से गांव का जन्मदिन मनाना चाहिए, हर वर्ष। और उस दिन आपके गांव के जितने लोग बाहर गए हैं उनको बुलाना चाहिए। तीन-चार दिन का कार्यक्रम करना चाहिए। गांव में 75 से ज्यादा आयु के जितने लोग हैं उनका सम्मान करना चाहिए, गांव में हर किसी को पौधा लगाने के लिए कहना चाहिए; गांव के बच्चों को स्वच्छता के अभियान के साथ जोड़ना चाहिए; और गांव के जो लोग बाहर रहते हैं उनको विशेष रूप से बुलाना चाहिए और उनको कहना चाहिए बताओ भाई गांव के लिए आप क्या कर सकते हैं। आप देखिए पूरे गांव एक प्राणवान गांव बन जाएगा। जीवंत गांव बन जाएगा। गांव यानी अब बस छोड़ो भाई, जल्दी 18 साल की उम्र हो जाए, चलें जाएं, छोड़ दें, क्या करें जिंदगी ऐसी जी करके। इससे उलटा करने का समय आया है और आप अगर इस बात को करेंगे, मुझे विश्वास है आपके गांव में एक नया जीवन आ जाएगा।
और जैसा मैंने कहा हमारे गांव में पशु होते हैं। कुछ लोग यहां देखने गए होंगे, मुझे बताया गया कि कुछ यहीं गांधीनगर के ही पास में पशुओं का होस्टल वाले कुछ गांव हैं। देखा होगा कि गांव में कूड़ा-कचरा कैसे, waste में से wealth create किया जा सकता है। ये जो हम waste मानते हैं वो waste नहीं है वो wealth है।
आप गांव में कोशिश कीजिए, कुछ लोगों को लगाइए, Self-help group बनाइए। गांव के कूडे-कचरे में से Compost खातर बनाइए, गांव खातर की बिक्री होगी, पंचायत की आय होगी। और जमीन का सुधार होगा तो गांव के लोगों की खेती भी अच्छी होगी। छोटे-छोटे काम जिसमें अलग बजट की जरूरत नहीं है, आप स्वयं थोड़ा initiative लें, आप अपने गांव को जैसे स्वच्छ बनाया है वैसे समर्थ भी बना सकते हैं। स्वच्छता को आपने स्वभाव बना करके सीखा है और स्वच्छता एक ऐसा विषय है जो हमें खुद को करनी पड़ती है। मान लीजिए हम कहीं जा रहे हों, अचानक हमारे शरीर पर कोई गंद पड़ी, कोई गंदी चीज पड़ गई। हम इंतजार करते हैं क्या? अड़ोस-पड़ोस में जो चल रहा है वो साफ करे, ऐसा करते हैं क्या? तुरंत, हम कितने ही बड़े महान पुरुष क्यों न हों, जेब से hanker chief निकालते हैं यूं करके साफ करना शुरू कर देते हैं, क्यों? गंदगी एक पल भी हमें पसंद नहीं है। हमारे शरीर पर अगर थोड़ी सी भी गंद पड़ी तो हम तुरंत साफ करते हैं। वैसे ही ये हमारी मां है भारतमाता, उस पर भी कोई गंद पड़े तो उसकी सफाई हम सबको मिल करके करनी होगी। ये स्वच्छता का स्वभाव बना लो। ये अगर स्वच्छता का स्वभाव बनाएंगे, और एक बार अगर गंदगी गई; आप देखिए फिर देश में कुपोषण की समस्या, बीमारी की समस्या, बीमारी के पीछे खर्चा, ये सब में कटौती आ जाएगी।
गरीब को सबसे ज्यादा फायदा होगा। गंदगी की सबसे ज्यादा परेशानी किसी को है तो गरीब को है, झुग्गी-झोंपड़ी में जिंदगी गुजारने वालों को है, गंदा पानी पीने वालों को है। ये मानवता का काम है, इस मानवता के काम को अगर हम उसी भाव से करेंगे, जनसेवा, यही प्रभुसेवा, ये हमारे कहा गया है; उसी भाव से अगर हम करेंगे तो मुझे विश्वास है कि 2019 में, स्वच्छ भारत में कुछ achieve करना है, बदलाव महसूस हो ऐसी स्थिति पैदा करनी है और ये सरकार के नाम करने की बात नहीं है मेरी। ये समाज का स्वभाव बनाना पड़ेगा, समाज में आंदोलन करना पड़ेगा, गंदगी के प्रति नफरत का वातावरण पैदा करना पड़ेगा; तो अपने आप होगा। शौचालय उसमें एक हिस्सा है। शौचालय हो गया मतलब स्वच्छता हो गई, ये हमारी कल्पना नहीं है। और पूरे देश में पहले कभी स्वच्छता पर चर्चा ही नहीं होती थी। अच्छा हुआ है पिछले दो साल से लगातार स्वच्छता पर चर्चा हो रही है। और मैं ये भी बात publically स्वीकार करता हूं कि आमतौर पर सरकार की तरफ से कोई बात कही जाए, उसी दिन media उसमें नुक्स निकालने में लग जाता है, क्या कमी है, क्या गलत है, क्या झूठ बोलते हैं, उसे वो पकड़ता है।
स्वच्छता एक ऐसा विषय मैंने देखा, media ने भी उसे गले लगाया है और सरकार जितना काम करती है उससे दो कदम ज्यादा media के लोग भी कर रहे हैं। ये एक ऐसा है जिसको देश के हर किसी ने स्वीकार किया है; हर किसी ने स्वीकार किया है। जिस काम को हर किसी ने स्वीकार किया हो उसमें सफलता मिलना स्वाभाविक है, उसका systematic ढंग से करना पड़ेगा। सिर्फ स्वच्छता के मंत्र बोलने से नहीं होगा। ये हमें actually physically करना पड़ेगा। और गांव में सफाई हुई, हिन्दुस्तान बदला हुआ नजर आएगा। हमारा जीवन बदला हुआ नजर आएगा।
मेरा आप सबसे, जिन-जिन लोगों का सम्मान हुआ है उनको मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं और उनका कार्य उनका जीवन, उनका पुरुषार्थ, उनका संकल्प हम सबके लिए प्रेरणा बनेगा। और देशभर से आई हुई महिलाएं अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर स्वच्छता और महिला; सीधा-सीधा संबंध है। क्योंकि आज तक हर प्रकार की स्वच्छता बनाए रखने में अगर सबसे ज्यादा किसी ने योगदान दिया है तो हमारे देश की नारी शक्ति ने दिया हुआ है। हर प्रकार की स्वच्छता, सामाजिक जीवन के हर पहलु की स्वच्छता, अगर आज भी बची है, संस्कार बचे हैं, सदगुण बचे हैं, सतकार्य बचे हैं, तो उसमें सबसे ज्यादा योगदान मातृ-शक्ति का है।
स्वच्छता के इस अभियान को भी मातृ-शक्ति के आशीर्वाद मिलेंगे, अभूतपूर्व सफलता मिलेगी, इस विश्वास के साथ फिर एक बार आपको बहुत-बहुत शुभ कामनाएं। बहुत-बहुत धन्यवाद।