प्रधानमंत्री ने तीन राष्ट्रीय आयुष संस्थानों का उद्घाटन किया
"आयुर्वेद उपचार से भी आगे बढ़कर कल्याण को बढ़ावा देता है"
"पूरा विश्व स्वास्थ्य एवं कल्याण के एक वैश्विक उत्‍सव के रूप में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाता है"
"अब हम 'नेशनल आयुष रिसर्च कंसोर्टियम' बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं”
“आयुष उद्योग जो 8 साल पहले लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का था आज लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है”
"पारंपरिक चिकित्सा का क्षेत्र लगातार विस्तृत हो रहा है और हमें इसकी हर संभावना का पूरा लाभ उठाना है"
"'वन अर्थ, वन हेल्थ' का अर्थ है स्वास्थ्य का व्यापक दृष्टिकोण"

गोवा के गवर्नर श्री पीएस श्रीधरन पिल्लई जी, यहां के लोकप्रिय युवा मुख्यमंत्री वैद्य प्रमोद सावंत जी, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल जी, श्रीपद नाइक जी, डॉक्टर महेंद्रभाई मुंजापारा जी, श्रीमान शेखर जी, अन्य महानुभाव, वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस में देश-दुनिया से पधारे आयुष क्षेत्र के सभी विद्वान और विशेषज्ञगण, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

मैं गोवा की खूबसूरत धरती पर वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस के लिए देश-विदेश से एकत्रित हुये आप सभी साथियों का स्वागत करता हूँ। वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस की सफलता के लिए मैं आप सभी को हृदय से शुभकामनायें देता हूँ। ये आयोजन एक ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत की आजादी के अमृतकाल की यात्रा शुरू है। अपने ज्ञान-विज्ञान और सांस्कृतिक अनुभव से विश्व के कल्याण का संकल्प अमृतकाल का एक बड़ा लक्ष्य है। और, आयुर्वेद इसके लिए एक मजबूत और प्रभावी माध्यम है। भारत इस वर्ष G-20 समूह की अध्यक्षता और मेजबानी भी कर रहा है। हमने G-20 समिट की भी थीम रखी है- “One Earth, One Family, One Future”! ऐसे ही विषयों पर आप सभी वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस के इस आयोजन में चर्चा करेंगे, पूरे विश्व के स्वास्थ्य के लिए विमर्श करेंगे। मुझे खुशी है कि दुनिया के 30 से ज्यादा देशों ने आयुर्वेद को ट्रेडिशनल Medicine के एक सिस्टम के रूप में मान्यता दे रखी है। हमें मिलकर इसे और ज्यादा से ज्यादा देशों तक पहुंचाना है, आयुर्वेद को मान्यता दिलवानी है।

साथियों,

आज मुझे यहाँ पर आयुष से जुड़े तीन institutes के लोकार्पण का अवसर भी मिला है। मुझे विश्वास है, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद-गोवा, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ यूनानी मेडिसिन-गाज़ियाबाद, और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होमियोपैथी-दिल्ली, ये तीनों आयुष हेल्थ केयर सिस्टम को नई गति देंगे।

साथियों,

आयुर्वेद एक ऐसा विज्ञान है, जिसका दर्शन, जिसका motto है- ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः’। यानी, सबका सुख, सबका स्वास्थ्य। जब बीमारी हो ही जाए तब उसके इलाज के लिए ये मजबूरी नहीं बल्कि जीवन निरामय होना चाहिए, जीवन बीमारियों से मुक्त होना चाहिए। सामान्य अवधारणा है कि अगर कोई प्रत्यक्ष बीमारी नहीं है तो हम स्वस्थ हैं। लेकिन, आयुर्वेद की दृष्टि में स्वस्थ होने की परिभाषा कहीं व्यापक है। आप सब जानते हैं कि आयुर्वेद कहता है- सम दोष समाग्निश्च, सम धातु मल क्रियाः। प्रसन्न आत्मेन्द्रिय मनाः, स्वस्थ इति अभिधीयते॥ अर्थात्, जिसके शरीर में संतुलन हो, सभी क्रियाएँ संतुलित हों, और मन प्रसन्न हो वही स्वस्थ है। इसीलिए, आयुर्वेद इलाज से आगे बढ़कर Wellness की बात करता है, Wellness को प्रमोट करता है। विश्व भी अब तमाम परिवर्तनों और प्रचलनों से निकलकर इस प्राचीन जीवन-दर्शन की ओर लौट रहा है। और मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि भारत में इसे लेकर काफी पहले से ही काम शुरू हो चुका है। जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में काम करता था, हमने उस समय से ही आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास शुरू किए थे। हमने आयुर्वेद से जुड़े संस्थानों को बढ़ावा दिया, गुजरात आयुर्वेद यूनिवर्सिटी को आधुनिक बनाने के लिए काम किया। उसका परिणाम है कि आज जामनगर में WHO की तरफ से विश्व का पहला और इकलौता global centre for traditional medicine खोला गया है। देश में भी हमने सरकार में एक अलग आयुष मंत्रालय की स्थापना की, जिससे आयुर्वेद को लेकर उत्साह भी आया, और विश्वास भी बढ़ा। आज एम्स की ही तर्ज पर

‘ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद’ भी खुल रहे हैं। इसी वर्ष ग्लोबल आयुष इनोवेशन और इनवेस्टमेंट समिट का सफल आयोजन भी हुआ है, जिसमें भारत के प्रयासों की तारीफ WHO ने भी की है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को भी अब पूरी दुनिया हेल्थ और वेलनेस के ग्लोबल फ़ेस्टिवल के तौर पर celebrate करती है। यानि जिस योग और आयुर्वेद को पहले उपेक्षित समझा जाता था, वो आज पूरी मानवता के लिए एक नई उम्मीद बन गया है।

साथियों,

आयुर्वेद से जुड़ा एक और पक्ष है, जिसका जिक्र मैं वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस में जरूर करना चाहता हूं। ये आने वाली सदियों में आयुर्वेद के उज्ज्वल भविष्य के लिए उतना ही आवश्यक है।

साथियों,

आयुर्वेद को लेकर वैश्विक सहमति, सहजता और स्वीकार्यता आने में इतना समय इसलिए लगा, क्योंकि आधुनिक विज्ञान में आधार, एविडेंस को, प्रमाण को माना जाता है। हमारे पास आयुर्वेद का परिणाम भी था, प्रभाव भी था, लेकिन प्रमाण के मामले में हम पीछे छूट रहे थे। और इसलिए, आज हमें ‘डेटा बेस्ड एविडेंसेस’ का डॉक्यूमेंटेशन करना अनिवार्य है। इसके लिए हमें लंबे समय तक निरंतर काम करना होगा। हमारा जो मेडिकल डेटा है, जो शोध हैं, जो जर्नल्स हैं, हमें उन सबको एक साथ लाकर आधुनिक वैज्ञानिक पैरामीटर्स पर हर claim को verify करके दिखाना है। भारत में बीते वर्षों में इस दिशा में लार्ज स्केल पर काम हुआ है। एविडेन्स बेस्ड रिसर्च डेटा के लिए हमने एक आयुष रिसर्च पोर्टल भी बनाया है। इस पर अब तक की करीब 40 हजार रिसर्च स्टडीज़ का डेटा मौजूद है। कोरोनाकाल के दौरान भी हमारे यहाँ आयुष से जुड़ी करीब 150 स्पेसिफिक रिसर्च स्टडीज़ हुईं हैं। उस अनुभव को आगे बढ़ाते हुये अब हम ‘National Ayush Research Consortium बनाने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं। भारत में यहाँ एम्स में सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड मेडिसिन जैसे संस्थानों में भी योग और आयुर्वेद से जुड़ी कई महत्वपूर्ण रिसर्च हो रही है। मुझे खुशी है कि यहां से निकले आयुर्वेद और योग से जुड़े रिसर्च पेपर्स प्रतिष्ठित इंटरनेशनल जर्नल्स में पब्लिश हो रहे हैं। हाल-फिलहाल में Journal of the American College of Cardiology और Neurology Journal जैसे सम्मानित जर्नल्स में कई रिसर्च पेपर्स पब्लिश हुए हैं। मैं चाहूँगा, वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस के सभी प्रतिभागी सारे देश भी आयुर्वेद को वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाने के लिए भारत के साथ आयें, collaborate करें और contribute करें।

भाइयों और बहनों,

आयुर्वेद की एक और ऐसी खूबी है, जिसकी चर्चा कम ही होती है। कुछ लोग समझते हैं कि आयुर्वेद, सिर्फ इलाज के लिए है, लेकिन इसकी खूबी ये भी है, आयुर्वेद हमें जीवन जीने का तरीका सिखाता है। अगर मैं आधुनिक टर्मिनोलॉजी का उपयोग करके आपको बताना चाहूं तो मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। आप दुनिया की अच्छी से अच्छी कंपनी की बेहतर से बेहतर कार खरीदें। उस कार के साथ उसकी manual book भी आती है। उसमें कौन सा fuel डालना है, कब और कैसे servicing करवानी है, कैसे रख-रखाव करना है, हमें ये ध्यान रखना पड़ता है। अगर डीजल इंजन कार में पेट्रोल डाल दिया, तो गड़बड़ तय है। इसी तरह, आप अगर कोई कंप्यूटर चला रहे हैं तो उसमें उसके सारे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर ठीक काम करने चाहिए। हम हमारी मशीनों का ख्याल तो रखते हैं, लेकिन हमारे शरीर को कैसा खाना, क्या खाना, कैसा रूटीन, क्या नहीं करना चाहिए, इस पर हम ध्यान ही नहीं देते हैं। आयुर्वेद हमें सिखाता है कि हार्डवेयर सॉफ्टवेयर की तरह ही शरीर और मन भी एक साथ स्वस्थ रहने चाहिए, उनमें समन्वय रहना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, आज proper sleep मेडिकल साइन्स के लिए एक बहुत बड़ा विषय है। लेकिन आप जानते हैं, महर्षि चरक जैसे आचार्यों ने सदियों पहले इस पर कितने विस्तार से लिखा है। यही आयुर्वेद की खूबी है।

साथियों,

हमारे यहाँ कहा जाता है- ‘स्वास्थ्यम् परमार्थ साधनम्’। अर्थात्, स्वास्थ्य ही अर्थ और उन्नति का साधन है। ये मंत्र जितना हमारे व्यक्तिगत जीवन के लिए सार्थक है, उतना ही प्रासंगिक अर्थव्यवस्था के नजरिए से भी है। आज आयुष के क्षेत्र में असीम नई संभावनाएं जन्म ले रहीं हैं। आयुर्वेदिक हर्ब्स की खेती हो, आयुष मेडिसिन्स की मैनुफेक्चुरिंग और सप्लाई हो, डिजिटल सर्विसेस हों, आयुष स्टार्टअप्स के लिए इनमें एक बड़ा स्कोप है।

भाइयों-बहनों,

आयुष इंडस्ट्री की सबसे बड़ी ताकत ये है कि इसमें हर किसी के लिए अलग-अलग तरह के अवसर उपलब्ध हैं। उदाहरण के तौर पर, आज भारत में आयुष के क्षेत्र में करीब 40 हजार MSMEs, लघु उद्योग अनेक विविध प्रोडक्ट दे रहे हैं, अनेक विविध initiatives ले रहे हैं। इनसे लोकल इकॉनमी को बड़ी ताकत मिल रही है। आठ साल पहले देश में आयुष इंडस्ट्री करीब–करीब 20 हजार करोड़ रुपए के आस-पास ही थी। आज आयुष इंडस्ट्री करीब-करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए के आस-पास पहुंच रही है। यानी, 7-8 वर्षों में करीब-करीब 7 गुना ग्रोथ। आप कल्पना कर सकते हैं, आयुष अपने आपमें कितनी बड़ी इंडस्ट्री, कितनी बड़ी इकोनॉमी बनकर उभर रहा है। आने वाले समय में इसका ग्लोबल मार्केट में और बड़ा विस्तार होना ही है। आप भी जानते हैं कि ग्लोबल हर्बल मेडिसिन और स्पाइसेस का मार्केट 120 बिलियन डॉलर यानि करीब-करीब 10 लाख करोड़ रुपए के आस-पास का है। ट्रेडिशनल मेडिसिन का ये सेक्टर निरंतर विस्तार ले रहा है और हमें इसकी हर संभावना का पूरा लाभ उठाना चाहिए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए, हमारे किसानों के लिए कृषि का एक पूरा नया सेक्टर खुल रहा है, जिसमें उन्हें काफी अच्छी कीमतें भी मिल सकती हैं। इसमें युवाओं के लिए हजारों-लाखों नए रोजगार पैदा होंगे।

साथियों,

आयुर्वेद की बढ़ती लोकप्रियता का एक और बड़ा पक्ष आयुर्वेद और योग टूरिज़्म भी है। गोवा जैसा राज्य, जो टूरिज़्म का एक हब है, वहाँ आयुर्वेद और नेचुरोपैथी को प्रमोट करके टूरिज़्म सेक्टर को और नई ऊंचाई दी जा सकती है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद-गोवा, इस दिशा में एक अहम शुरुआत साबित हो सकता है।

 

साथियों,

आज भारत ने दुनिया के सामने ‘One Earth, One Health’ एक फ्यूचरिस्टिक विजन भी रखा है। ‘One Earth, One Health’ का मतलब है हेल्थ को लेकर एक यूनिवर्सल विज़न। चाहे पानी में रहने वाले जीव-जंतु हों, चाहे वन्य पशु हों, चाहे इंसान हो, वनस्पति हो, इन सबकी हेल्थ inter-connected है। हमें इन्हें आइसोलेशन में देखने की जगह totality में देखना होगा। ये होलिस्टिक विजन आयुर्वेद का, भारत की परंपरा और जीवनशैली का हिस्सा रहा है। मैं चाहूँगा, गोवा में हो रही इस वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस में ऐसे सभी आयामों पर विस्तार से चर्चा हो। हम सभी मिलकर आयुर्वेद और आयुष को कैसे समग्रता से आगे बढ़ा सकते हैं, इसका एक रोडमैप तैयार किया जाए। मुझे विश्वास है, आपके प्रयास इस दिशा में जरूर प्रभावी होंगे। इसी विश्वास के साथ, आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। और आयुष को आयुर्वेद को अनेक-अनेक शुभकामनाएं।

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