मेरे प्यारे देशवासियो, 

नमस्कार, 

मन की बात करने का मन नहीं हो रहा था आज। बोझ अनुभव कर रहा हूँ, कुछ व्यथित सा मन है। पिछले महीने जब बात कर रहा था आपसे, तो ओले गिरने की खबरें, बेमौसमी बरसात, किसानों की तबाही। अभी कुछ दिन पहले बिहार में अचानक तेज हवा चली। काफी लोग मारे गए। काफी कुछ नुकसान हुआ। और शनिवार को भयंकर भूकंप ने पूरे विश्व को हिला दिया है। ऐसा लगता है मानो प्राकृतिक आपदा का सिलसिला चल पड़ा है। नेपाल में भयंकर भूकंप की आपदा। हिंदुस्तान में भी भूकंप ने अलग-अलग राज्यों में कई लोगों की जान ली है। संपत्ति का भी नुकसान किया है। लेकिन नेपाल का नुकसान बहुत भयंकर है। 

मैंने 2001, 26 जनवरी, कच्छ के भूकंप को निकट से देखा है। ये आपदा कितनी भयानक होती है, उसकी मैं कल्पना भली-भांति कर सकता हूँ। नेपाल पर क्या बीतती होगी, उन परिवारों पर क्या बीतती होगी, उसकी मैं कल्पना कर सकता हूँ। 

लेकिन मेरे प्यारे नेपाल के भाइयो-बहनो, हिन्दुस्तान आपके दुःख में आपके साथ है। तत्काल मदद के लिए चाहे हिंदुस्तान के जिस कोने में मुसीबत आयी है वहां भी, और नेपाल में भी सहाय पहुंचाना प्रारंभ कर दिया है। सबसे पहला काम है रेस्क्यू ऑपरेशन, लोगों को बचाना। अभी भी मलबे में दबे हुए कुछ लोग जीवित होंगे, उनको जिन्दा निकालना हैं। एक्सपर्ट लोगों की टीम भेजी है, साथ में, इस काम के लिए जिनको विशेष रूप से ट्रेन किया गया है ऐसे स्निफ़र डॉग्स को भी भेजा गया है। स्निफर डॉग्स ढूंढ पाते हैं कि कहीं मलबे के नीचे कोई इंसान जिन्दा हो। कोशिश हमारी पूरी रहेगी अधिकतम लोगों को जिन्दा बचाएं। रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद रिलीफ का काम भी चलाना है। रिहैबिलिटेशन का काम भी तो बहुत लम्बा चलेगा। 

लेकिन मानवता की अपनी एक ताकत होती है। सवा-सौ करोड़ देश वासियों के लिए नेपाल अपना है। उन लोगों का दुःख भी हमारा दुःख है। भारत पूरी कोशिश करेगा इस आपदा के समय हर नेपाली के आंसू भी पोंछेंगे, उनका हाथ भी पकड़ेंगे, उनको साथ भी देंगे। पिछले दिनों यमन में, हमारे हजारों भारतीय भाई बहन फंसे हुए थे। युद्ध की भयंकर विभीषिका के बीच, बम बन्दूक के तनाव के बीच, गोलाबारी के बीच भारतीयों को निकालना, जीवित निकालना, एक बहुत बड़ा कठिन काम था। लेकिन हम कर पाए। इतना ही नहीं, एक सप्ताह की उम्र की एक बच्ची को जब बचा करके लाये तो ऐसा लग रहा था कि आखिर मानवता की भी कितनी बड़ी ताकत होती है। बम-बन्दूक की वर्षा चलती हो, मौत का साया हो, और एक सप्ताह की बच्ची अपनी जिन्दगी बचा सके तब एक मन को संतोष होता है। 

मैं पिछले दिनों विदेश में जहाँ भी गया, एक बात के लिए बहुत बधाइयाँ मिली, और वो था यमन में हमने दुनिया के करीब 48 देशों के नागरिकों को बचाया था। चाहे अमेरिका हो, यू.के. हो, फ्रांस हो, रशिया हो, जर्मनी हो, जापान हो, हर देश के नागरिक को हमने मदद की थी। और उसके कारण दुनिया में भारत का ये “सेवा परमो धर्मः”, इसकी अनुभूति विश्व ने की है। हमारा विदेश मंत्रालय, हमारी वायु सेना, हमारी नौसेना इतने धैर्य के साथ, इतनी जिम्मेवारी के साथ, इस काम को किया है, दुनिया में इसकी अमिट छाप रहेगी आने वाले दिनों में, ऐसा मैं विश्वास करता हूँ। और मुझे खुशी है कि कोई भी नुकसान के बिना, सब लोग बचकर के बाहर आये। वैसे भी भारत का एक गुण, भारत के संस्कार बहुत पुराने हैं। 

अभी मैं जब फ्रांस गया था तो फ्रांस में, मैं प्रथम विश्व युद्ध के एक स्मारक पर गया था। उसका एक कारण भी था, कि प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी तो है, लेकिन साथ-साथ भारत की पराक्रम का भी वो शताब्दी वर्ष हैI भारत के वीरों की बलिदानी की शताब्दी का वर्ष है और “सेवा परमो-धर्मः” इस आदर्श को कैसे चरितार्थ करता रहा हमारा देश , उसकी भी शताब्दी का यह वर्ष है, मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि 1914 में और 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध चला और बहुत कम लोगों को मालूम होगा करीब-करीब 15 लाख भारतीय सैनिकों ने इस युद्ध में अपनी जान की बाजी लगा दी थी और भारत के जवान अपने लिए नहीं मर रहे थेI हिंदुस्तान को, किसी देश को कब्जा नहीं करना था, न हिन्दुस्तान को किसी की जमीन लेनी थी लेकिन भारतीयों ने एक अदभुत पराक्रम करके दिखाया थाI बहुत कम लोगों को मालूम होगा इस प्रथम विश्व युद्ध में हमारे करीब-करीब 74 हजार जवानों ने शहादत की थी, ये भी गर्व की बात है कि इस पर करीब 9 हजार 2 सौ हमारे सैनिकों को गैलेंट्री अवार्ड से डेकोरेट किया गया थाI इतना ही नहीं, 11 ऐसे पराक्रमी लोग थे जिनको सर्वश्रेष्ठ सम्मान विक्टोरिया क्रॉस मिला थाI खासकर कि फ्रांस में विश्व युद्ध के दरमियान मार्च 1915 में करीब 4 हजार 7 सौ हमारे हिनदुस्तानियों ने बलिदान दिया था। उनके सम्मान में फ्रांस ने वहां एक स्मारक बनाया है। मैं वहाँ नमन करने गया था, हमारे पूर्वजों के पराक्रम के प्रति श्रध्दा व्यक्त करने गया था। 

ये सारी घटनायें हम देखें तो हम दुनिया को कह सकते हैं कि ये देश ऐसा है जो दुनिया की शांति के लिए, दुनिया के सुख के लिए, विश्व के कल्याण के लिए सोचता है। कुछ न कुछ करता है और ज़रूरत पड़े तो जान की बाज़ी भी लगा देता है। यूनाइटेड नेशन्स में भी पीसकीपिंग फ़ोर्स में सर्वाधिक योगदान देने वालों में भारत का भी नाम प्रथम पंक्ति में है। यही तो हम लोगों के लिए गर्व की बात है। 

पिछले दिनों दो महत्वपूर्ण काम करने का मुझे अवसर मिला। हम पूज्य बाबा साहेब अम्बेडकर की 125 वीं जयन्ती का वर्ष मना रहे हैं। कई वर्षों से मुंबई में उनके स्मारक बनाने का जमीन का विवाद चल रहा था। मुझे आज इस बात का संतोष है कि भारत सरकार ने वो जमीन बाबा साहेब अम्बेडकर के स्मारक बनाने के लिए देने का निर्णय कर लिया। उसी प्रकार से दिल्ली में बाबा साहेब अम्बेडकर के नाम से एक इंटरनेशनल सेंटर बने, पूरा विश्व इस मनीषी को जाने, उनके विचारों को जाने, उनके काम को जाने। ये भी वर्षों से लटका पड़ा विषय था, इसको भी पूरा किया, शिलान्यास किया, और 20 साल से जो काम नहीं हुआ था वो 20 महीनों में पूरा करने का संकल्प किया। और साथ-साथ मेरे मन में एक विचार भी आया है और हम लगे हैं, आज भी हमारे देश में कुछ परिवार हैं जिनको सर पे मैला ढ़ोने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 

क्या हमें शोभा देता है कि आज भी हमारे देश में कुछ परिवारों को सर पर मैला ढोना पड़े? मैंने सरकार में बड़े आग्रह से कहा है कि बाबा साहेब अम्बेडकर जी के पुण्य स्मरण करते हुए 125 वीं जयन्ती के वर्ष में, हम इस कलंक से मुक्ति पाएं। अब हमारे देश में किसी गरीब को सर पर मैला ढोना पड़े, ये परिस्थति हम सहन नहीं करेंगे। समाज का भी साथ चाहिये। सरकार ने भी अपना दायित्व निभाना चाहिये। मुझे जनता का भी सहयोग चाहिये, इस काम को हमें करना है। 

बाबा साहेब अम्बेडकर जीवन भर शिक्षित बनो ये कहते रहते थे। आज भी हमारे कई दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित समाज में, ख़ास करके बेटियों में, शिक्षा अभी पहुँची नहीं है। बाबा साहेब अम्बेडकर के 125 वीं जयन्ती के पर्व पर, हम भी संकल्प करें। हमारे गाँव में, नगर में, मोहल्ले में गरीब से गरीब की बेटी या बेटा, अनपढ़ न रहे। सरकार अपना कर्त्तव्य करे, समाज का उसमें साथ मिले तो हम जरुर संतोष की अनुभूति करते हैं। मुझे एक आनंद की बात शेयर करने का मन करता है और एक पीड़ा भी बताने का मन करता है। 

मुझे इस बात का गर्व होता है कि भारत की दो बेटियों ने देश के नाम को रौशन किया। एक बेटी साईना नेहवाल बैडमिंटन में दुनिया में नंबर एक बनी, और दूसरी बेटी सानिया मिर्जा टेनिस डबल्स में दुनिया में नंबर एक बनी। दोनों को बधाई, और देश की सारी बेटियों को भी बधाई। गर्व होता है अपनों के पुरुषार्थ और पराक्रम को लेकर के। लेकिन कभी-कभी हम भी आपा खो बैठते हैं। जब क्रिकेट का वर्ल्ड कप चल रहा था और सेमी-फाइनल में हम ऑस्ट्रेलिया से हार गए, कुछ लोगों ने हमारे खिलाड़ियों के लिए जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया, जो व्यवहार किया, मेरे देशवासियो, ये अच्छा नहीं है। ऐसा कैसा खेल हो जिसमें कभी पराजय ही न हो अरे जय और पराजय तो जिन्दगी के हिस्से होते हैं। अगर हमारे देश के खिलाड़ी कभी हार गए हैं तो संकट की घड़ी में उनका हौसला बुलंद करना चाहिये। उनका नया विश्वास पैदा करने का माहौल बनाना चाहिये। मुझे विश्वास है आगे से हम पराजय से भी सीखेंगे और देश के सम्मान के साथ जो बातें जुड़ी हुई हैं, उसमें पल भर में ही संतुलन खो करके, क्रिया-प्रतिक्रिया में नहीं उलझ जायेंगे। और मुझे कभी-कभी चिंता हो रही है। मैं जब कभी देखता हूँ कि कहीं अकस्मात् हो गया, तो भीड़ इकट्ठी होती है और गाड़ी को जला देती है। और हम टीवी पर इन चीजों को देखते भी हैं। एक्सीडेंट नहीं होना चाहिये। सरकार ने भी हर प्रकार की कोशिश करनी चाहिये। लेकिन मेरे देशवासियो बताइये कि इस प्रकार से गुस्सा प्रकट करके हम ट्रक को जला दें, गाड़ी को जला दें.... मरा हुआ तो वापस आता नहीं है। क्या हम अपने मन के भावों को संतुलित रखके कानून को कानून का काम नहीं करने दे सकते हैं? सोचना चाहिये। 

खैर, आज मेरा मन इन घटनाओं के कारण बड़ा व्यथित है, ख़ास करके प्राकृतिक आपदाओं के कारण, लेकिन इसके बीच भी धैर्य के साथ, आत्मविश्वास के साथ देश को भी आगे ले जायेंगे, इस देश का कोई भी व्यक्ति...दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो, आदिवासी हो, गाँव का हो, गरीब हो, किसान हो, छोटा व्यापारी हो, कोई भी हो, हर एक के कल्याण के मार्ग पर, हम संकल्प के साथ आगे बढ़ते रहेंगे। 

विद्यार्थियों की परीक्षायें पूर्ण हुई हैं, ख़ास कर के 10 वीं और 12 वीं के विद्यार्थियों ने छुट्टी मनाने के कार्यक्रम बनाए होंगे, मेरी आप सबको शुभकामनाएं हैं। आपका वेकेशन बहुत ही अच्छा रहे, जीवन में कुछ नया सीखने का, नया जानने का अवसर मिले, और साल भर आपने मेहनत की है तो कुछ पल परिवार के साथ उमंग और उत्साह के साथ बीते यही मेरी शुभकामना है। 

आप सबको मेरा नमस्कार। 

धन्यवाद। 

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Text of PM’s speech at ‘Jahan-e-Khusrau 2025’ programme in Delhi
February 28, 2025

कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. कर्ण सिंह जी, मुजफ्फर अली जी, मीरा अली जी, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

आज जहान-ए-खुसरो में आकर मन खुश होना बहुत स्वाभाविक है। हजरत अमीर खुसरो जिस बसंत के दीवाने थे, वो बसंत आज यहां दिल्‍ली में मौसम है ही नहीं, बल्कि जहान-ए-खुसरो की इस आबोहवा में भी घुला हुआ है। हजरत खुसरो के शब्दों में कहे तो-

सकल बन फूल रही सरसों, सकल बन फूल रही सरसों,

अम्बवा फूटे टेसू फूले, कोयल बोले डार-डार...

यहां माहौल वाकई कुछ ऐसा ही है। यहां महफिल में आने से पहले अभी मुझे तह बाजार घूमने का मौका मिला। उसके बाद बाग़-ए-फिरदौस में कुछ साथियों से भी अलब-दलब दुआ सलाम हुई। अभी नजर-ए-कृष्णा और जो विभिन्न आयोजन हुए, असुविधा के बीच कलाकार के लिए माइक की अपनी एक ताकत होती है, लेकिन उसके बाद भी प्रकृति के सहारे उन्होंने जो कुछ भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया, शायद उनको भी थोड़ी निराशा हुई होगी। जो लोग इस आनंद को पाने के लिए आए थे, उनको भी शायद निराशा हुई होगी। लेकिन कभी-कभी ऐसे अवसर भी जीवन में बहुत कुछ सीख देकर के जाते हैं। मैं मानता हूं आज की अवसर भी हमें सीख देकर के जाएगा।

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साथियों,

ऐसे मौके देश की कला-संस्कृति के लिए तो जरूरी होते ही हैं, इनमें एक सुकून भी मिलता है। जहान-ए-खुसरो का ये सिलसिला अपने 25 साल भी पूरे कर रहा है। इन 25 वर्षों में इस आयोजन का लोगों के जेहन में जगह बना लेना, ये अपने आप में इसकी सबसे बड़ी कामयाबी है। मैं डॉ. कर्ण सिंह जी, मित्र मुजफ्फर अली जी, बहन मीरा अली जी और अन्य सहयोगियों को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। जहान-ए-खुसरो का ये गुलदस्ता इसी तरह खिलता रहे, मैं इसके लिए रूमी फाउंडेशन को और आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। रमज़ान का मुबारक महीना भी शुरू होने वाला है। मैं आप सभी को और सभी देशवासियों को रमज़ान की भी मुबारकबाद देता हूं। आज मैं सुंदर नर्सरी आया हूं, तो His Highness प्रिंस करीम आगा ख़ान की भी याद आना मुझे बहुत स्वाभाविक है। सुंदर नर्सरी को सजाने-संवारने में उनका जो योगदान है, वो लाखों कला प्रेमियों के लिए वरदान बन गया है।

साथियों,

गुजरात में सूफी परंपरा का बड़ा सेंटर सरखेज रोज़ा रहा है। वक्त के थपेड़ों में एक समय उसकी हालत काफी खराब हो गई थी। जब मैं मुख्यमंत्री था, तब उसके रिस्टोरेशन पर काफी काम करवाया गया था और बहुत कम लोगों को मालूम होगा, एक जमाना था जहां सरखेज रोज़ा में बड़ी धूमधाम के साथ कृष्ण उत्सव मनाया जाता था और बहुत बड़ी मात्रा में बनाया जाता था और आज भी यहां कृष्ण भक्ति के रंग में हम सब रंग गए थे। मैं सरखेज रोज़ा में होने वाले सालाना सूफी संगीत कार्यक्रम में शिरकत भी औसतन किया करता था। सूफी संगीत एक ऐसी साझी विरासत है, जिसको हम सब मिल जुलकर जीते आए हैं। हम सब ऐसे ही बड़े हुए हैं। अब यहां नजर-ए-कृष्णा की जो प्रस्तुति हुई, उसमें भी हमारी साझी विरासत की झलक दिखाई देती है।

साथियों,

जहान-ए-खुसरो के इस आयोजन में एक अलग खुशबू है। ये खुशबू हिन्‍दुस्‍तान की मिट्टी की है। वो हिन्‍दुस्‍तान जिसकी तुलना हजरत अमीर खुसरो ने जन्नत से की थी। हमारा हिन्‍दुस्‍तान जन्नत का वो बगीचा है, जहां तहजीब का हर रंग फला-फूला है। यहां की मिट्टी के मिजाज में ही कुछ खास है। शायद इसलिए जब सूफी परंपरा हिन्‍दुस्‍तान आई, तो उसे भी लगा जैसे वो अपनी ही जमीन से जुड़ गई हो। यहां बाबा फरीद की रूहानी बातों ने दिलों को सुकून दिया। हजरत निजामुद्दीन की महफिलों ने मोहब्बत के दीये जलाए। हजरत अमीर खुसरो की बोलियों ने नए मोती पिरोए और जो नतीजा निकला, वो हजरत खुसरो की इन मशहूर पंक्तियों में व्यक्त हुआ।

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बन के पंछी भए बावरे, बन के पंछी भए बावरे,

ऐसी बीन बजाई सँवारे, तार तार की तान निराली,

झूम रही सब वन की डारी।

भारत में सूफी परंपरा ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। सूफी संतों ने खुद को महज मस्जिदों या खानकाहों तक सीमित नहीं रखा, उन्होंने पवित्र कुरान के हर्फ पढ़े, तो वेदों के स्‍वर भी सुने। उन्होंने अजान की सदा में भक्ति के गीतों की मिठास जोड़ी और इसलिए उपनिषद जिसे संस्कृत में एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति कहते थे, हजरत निजामुद्दीन औलिया ने वही बात हर कौम रास्त राहे, दीने व किब्‍ला गाहे जैसे सूफी गीत गाकर कही। अलग-अलग भाषा, शैली और शब्द लेकिन संदेश वही, मुझे खुशी है कि आज जहान-ए-खुसरो उसी परंपरा की एक आधुनिक पहचान बन गया है।

साथियों,

किसी भी देश की सभ्यता, उसकी तहजीब को स्वर, उसके गीत, संगीत से मिलती है। उसकी अभिव्यक्ति कला से होती है। हजरत खुसरो कहते थे भारत के इस संगीत में एक सम्‍मोहन है, एक ऐसा सम्मोहन कि जंगल में हिरण अपने जीवन का डर भूलकर स्थिर हो जाते थे। भारतीय संगीत के इस समंदर में सूफी संगीत एक अलग रौ के तौर पर आकर के मिला था और ये समंदर की खूबसूरत लहर बन गया। जब सूफी संगीत और शास्त्रीय संगीत की वो प्राचीन धाराएं एक दूसरे से जुड़ी, तो हमें प्रेम और भक्ति की नई कल-कल सुनने को मिली। यही हमें हजरत खुसरो की कव्वाली में मिली। यहीं हमें बाबा फरीद के दोहे मिले। बुल्ले-शाह के स्वर मिले, मीर के गीत मिले, यहां हमें कबीर भी मिले, रहीम भी मिले और रसखान भी मिले। इन संतों और औलियायों ने भक्‍ति को एक नया आयाम दिया। आप चाहे सूरदास को पढ़ें या रहीम और रसखान को या फिर आप आंख बंद करके हजरत खुसरो को सुने, जब आप गहराई में उतरते हैं, तो उसी एक जगह पहुंचते हैं, ये जगह है अध्‍या‍त्‍मिक प्रेम की वो ऊंचाई जहां इंसानी बंदिशें टूट जाती हैं और इंसान और ईश्वर का मिलन महसूस होता है। आप देखिए, हमारे रसखान मुस्लिम थे, लेकिन वो हरि भक्त थे। रसखान भी कहते हैं- प्रेम हरी को रूप है, त्यों हरि प्रेम स्वरूप। एक होई द्वै यों लसैं, ज्यौं सूरज अरु धूप॥ यानी प्रेम और हरि दोनों वैसे ही एक ही रूप हैं, जैसे सूरज और धूप और यही एहसास तो हजरत खुसरो को भी हुआ था। उन्होंने लिखा था खुसरो दरिया प्रेम का, सो उलटी वा की धार। जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।। यानी प्रेम में डूबने से ही भेद की बाधाएं पार होती हैं। यहां अभी जो भव्य प्रस्तुति हुई, उसमें भी हमने यही महसूस किया है।

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साथियों,

सूफी परंपरा ने न केवल इंसान की रूहानी दूरियों को दूर किया, बल्कि दुनिया की दूरियों को भी कम किया है। मुझे याद है साल 2015 में जब मैं अफगानिस्तान की Parliament में गया था, तो वहां मैंने बड़े भाव भरे शब्दों में रूमी को याद किया था। आठ शताब्दी पहले रूमी वहां के ही बल्ख प्रांत में पैदा हुए थे। मैं रूमी के लिखे का हिंदी का एक तरजुमा जरूर यहां दोहराना चाहूंगा क्योंकि ये शब्द आज भी उतने ही प्रासंगिक है। रूमी ने कहा था, शब्दों को ऊंचाई दें, आवाज को नहीं, क्योंकि फूल बारिश में पैदा होते हैं, तूफान में नहीं।। उनकी एक और बात मुझे याद आती है, मैं थोड़ा देशज शब्दों में कहूं, तो उसका अर्थ है, मैं न पूरब का हूं न पश्चिम का, न मैं समंदर से निकला हूं और न मैं जमीन से आया हूं, मेरी जगह कोई है, है ही नहीं, मैं किसी जगह का नहीं हूं यानी मैं सब जगह हूं। ये विचार, ये दर्शन वसुधैव कुटुंबकम की हमारी भावना से अलग नहीं है। जब मैं दुनिया के विभिन्न देशों में भारत का प्रतिनिधित्व करता हूं, तो इन विचारों से मुझे ताकत मिलती है। मुझे याद है, जब मैं ईरान गया था, तो ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय मैंने वहां मिर्जा गालिब का एक शेर पढ़ा था-

जनूनत गरबे, नफ्से-खुद, तमाम अस्त।

ज़े-काशी, पा-बे काशान, नीम गाम अस्त॥

यानी, जब हम जागते हैं तो हमें काशी और काशान की दूरी केवल आधा कदम ही दिखती है। वाकई, आज की दुनिया के लिए, जहां युद्ध मानवता का इतना बड़ा नुकसान कर रहा है, वहां ये संदेश कितने काम आ सकता हैं।

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साथियों,

हजरत अमीर खुसरो को ‘तूती-ए हिन्द’ कहा जाता है। भारत की तारीफ़ में, भारत से प्रेम में उन्होंने जो गीत गाये हैं, हिंदुस्तान की महानता और मनमोहकता का जो वर्णन किया है, वो उनकी किताब नुह-सिप्हर में देखने को मिलता है। हजरत खुसरो ने भारत को उस दौर की दुनिया के तमाम बड़े देशों से महान बताया। उन्होंने संस्कृत को दुनिया की सबसे बेहतरीन भाषा बताया। वो भारत के मनीषियों को बड़े-बड़े विद्वानों से भी बड़ा मानते हैं। भारत में शून्य का, गणित, और विज्ञान और दर्शन का ये ज्ञान कैसे बाकी दुनिया तक पहुंचा, कैसे भारत का गणित अरब पहुंचकर वहां पर जाकर के हिंदसा के नाम से जाना गया। हजरत खुसरो न केवल अपनी किताबों में उसका ज़िक्र करते हैं, बल्कि उस पर गर्व भी करते हैं। गुलामी के लंबे कालखंड में जब इतना कुछ तबाह किया गया, अगर आज हम अपने अतीत से परिचित हैं, तो इसमें हजरत खुसरो की रचनाओं की बड़ी भूमिका है।

साथियों,

इस विरासत को हमें निरंतर समृद्ध करते रहना है। मुझे संतोष है, जहान-ए-खुसरो जैसे प्रयास इस दायित्व को बखूबी निभा रहे हैं और अखंड रूप से 25 साल तक ये काम करना, ये छोटी बात नहीं है। मैं मेरे मित्र को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं, एक बार फिर आप सभी को इस आयोजन के लिए बधाई देता हूँ। कुछ कठिनाइयों के बीच भी इस समारोह का मजा लेने का कुछ अवसर भी मिल गया, मैं इसके लिए मेरे मित्र का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद! बहुत-बहुत शुक्रिया!